अध्याय 15अनुच्छेद लेखन
अनुच्छेद लेखन से विद्यार्थी में सोचने-समझने तथा अभिव्यक्त करने की समझ विकसित होती है। इसके अतिरिक्त विस्तृत विषय को संक्षेप में कहना आता है। भाषा से ज्ञान की वृद्धि होती है तथा दूसरों को प्रभावित करने की क्षमता बढ़ती है। इसके द्वारा अपनी बात को स्पष्ट करना एवं सीखने के साथ-साथ विषय का ज्ञान भी बढ़ता है।
अनुच्छेद लेखन के उदाहरण
(1) राष्ट्रीय एकता
राष्ट्र का निर्माण करने वाले तत्व- भूमि उस पर निवास करने वाले मनुष्य एवं उनकी संस्कृति हैं। राष्ट्र की भूमि से वहाँ के निवासियों का गहरा प्यार होता है। इसी कारण वे सब मिल-जुलकर रहते हैं। धर्म, जाति, सम्प्रदाय अलग होने पर भी सबका मन एक होता है। मातृभूमि सबको बाँधे रखती है। यदि कोई विग्रह करने का प्रयत्न करता है तो उसका विरोध सभी मिलकर करते हैं। राष्ट्र का प्रत्येक खण्ड प्राणों से प्रिय होता है। एकता के बल पर वे राष्ट्र को सुरक्षित रखते हैं।
(2) मेरा विद्यालय
मेरा विद्यालय नगर का सबसे अच्छा विद्यालय है। यह बहुत पुराना होने के साथ-साथ बहुत अच्छा शिक्षा का केन्द्र भी है। यहाँ के विद्यार्थी प्रदेश में तथा देश में अच्छे-अच्छे पदों पर कार्य कर रह है। यहाँ के विद्यार्थियों का प्रतिवर्ष चिकित्सा तथा इंजीनियरिंग के क्षेत्र में अच्छा प्रवेश होता है। पिछले वर्ष कई विद्यार्थी आई. आई. टी में चयनित हुए थे। इसके अतिरिक्त खेलकूद, सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि में भी मेरे विद्यालय के छात्र अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं। इसी वर्ष हमारे विद्यालय की क्रिकेट टीम ने प्रदेश में प्रथम स्थान प्राप्त किया।
(3) आधुनिक भारत
मेरा देश भारत संसार का सिरमौर रहा है। इसे दुनिया को शिक्षित करने का गौरव प्राप्त है। इसीलिए यह ज्ञान गुरु कहलाता है। इसका अतीत जितना गरिमामय रहा है वर्तमान भी उतना ही महिमाशाली है। इक्कीसवीं सदी का भारत शक्ति, शिक्षा, संस्कृति तथा विज्ञान के क्षेत्र में लगातार आगे बढ़ रहा है। संसार के विकासशील देशों में भारत सबसे आगे है। संसार के सबसे बड़े लोकतन्त्र के रूप में यह कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। कृषि, व्यापार, उद्योग-धन्धे आदि में भारत का काफी योगदान है। यह देश अग्रणी है। यहाँ के लोग मिल-जुलकर आगे बढ़ने में लगे हैं। आधुनिक भारत विश्व में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
(4) मूल्य वृद्धि या महँगाई समस्या
बाजार में प्रत्येक चीज के मूल्य बढ़ गए हैं। इससे आम आदमी का जीवन कष्टमय हो गया है। खाने-पीने की सामग्री बहुत महंगी हो गई है। ऐसी स्थिति में शासन को कीमतों पर नियन्त्रण करना चाहिए। किन्तु देखा जा रहा है कि अधिकारियों का इस ओर ध्यान ही नहीं है। व्यापारी मनमाने दामों में सामान बेच रहे हैं। दवाओं की कीमतें तो आसमान छू रही हैं। जीवन रक्षक दवाएँ तो मिलती ही नहीं हैं और मिलती हैं तो ऊने-दूने दामों में यही स्थिति सभी चीजों की हो गई है। यदि कीमतों को नहीं रोका गया तो सामाजिक विस्फोट हो जाएगा।
(5) बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ
कहते हैं बेटा भाग्य है तो बेटी सौभाग्य बेटी ही विभिन्न रूपों में समाज को सेवा करती है, सम्पन्नता बढ़ाती है। किन्तु कुछ समय पूर्व बेटियों के प्रति सद्भाव की कमी रही। यही कारण है कि बेटा-बेटी की संख्या में अन्तर आ गया। इसे ठीक करने के लिए सन् 2015 में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान प्रारम्भ हुआ। इसके प्रयासों के फलस्वरूप बेटियों की संख्या बढ़ रही है। बेटियों को सम्मान शिक्षा तथा महत्व दिया जा रहा है। इस अभियान में बेटा-बेटी का अनुपात सुधर रहा है। बेटियाँ शिक्षित हो रही है। समाज में बेटा-बेटी के भेद की मानसिकता में परिवर्तन आ रहा है। अब बेटियाँ शिक्षित हो रही है तथा कई परीक्षाओं में वे बेटों से अच्छे परिणाम प्राप्त कर रही है।
(6) पुस्तकालय
पुस्तकालय ज्ञान के भण्डार होते हैं। विभिन्न विषयों की पुस्तकें उनमें सुरक्षित होती हैं। वहाँ बैठकर पुस्तकें पढ़ सकते हैं और आवश्यकता हो तो घर के लिए ले जा सकते हैं। एक अच्छी पुस्तक एक विचारक का ज्ञान समेटे होती है। इसे पढ़कर व्यक्ति अपनी ज्ञान वृद्धि कर सकता है। सभी प्रकार को श्रेष्ठ पुस्तकें घर पर नहीं होती हैं इसलिए पुस्तकालय हो इस सुविधा को प्राप्त कराते हैं। पुस्तकालय में ज्ञान-विज्ञान के साथ मनोरजन, स्वास्थ्य, खेल-कूद, राजनीति आदि की पुस्तकें भी उपलब्ध होती हैं। पुस्तकें जाग्रत देवता होती हैं जिन्हें पढ़कर तुरन्त वरदान प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए पुस्तकालय देवालय के समान पूज्य स्थल हैं।
अथवा
(7) स्वच्छ भारत अभियान स्वच्छ भारत स्वस्थ भारत
महात्मा गाँधी ने स्वच्छ भारत का जो स्वप्न देखा था उसे साकार करने के लिए ‘स्वच्छ भारत अभियान’ का प्रारम्भ सन् 1914 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया। सभी को पता है स्वच्छता से मनुष्य का तन मन तथा परिवेश सभी शोभायमान होते हैं। गन्दगी जहाँ भी, जिस रूप में होती है वह विकार ही पैदा करती है। भारत में गाँवों से लेकर नगरों, महानगरों तक में गन्दगी का जो विनाशकारी रूप रहा है उसे समाप्त करने में स्वच्छता अभियान कारगर हो रहा है। गाँवों तथा शहरों में निम्न वर्ग खुले में शौच करते थे। अब शौचालयों के निर्माण हो गए हैं। जो माँ-बहिनें खुले में शौच जाती थीं अब वे घर के शौचालय का प्रयोग कर रही हैं। नालियों, सड़कों तथा नालों को नियमित रूप से साफ किया जा रहा है। यह अभियान जन-जन तक पहुँच गया है इसलिए स्वच्छता के प्रति सभी सजग हो गए हैं।
(8) परोपकार
अथवा
परहित सरिस धर्म नहिं भाई
परोपकार का अर्थ दूसरों की भलाई करना है। इसी आपसी सहयोग और सहानुभूति के बल पर समाज विकसित हुआ है। दूसरे के कष्ट में सहायता करना मनुष्य का स्वभाव है। इसी से प्रेरित होकर मनुष्य परोपकार करता है और महानता की सीढ़ी चढ़ता जाता है। परोपकार करने वाले का हृदय छल-कपट, ईर्ष्या-द्वेष से रहित होता है। उसके शान्त तथा करुणापूर्ण स्वभाव में लोकमंगल की भावना भरी होती है। परोपकार प्रकृति का स्वभाव है। प्रकृति के सूर्य, चन्द्रमा वायु, जल, वृक्ष, नदी, पशु-पक्षी सभी परोपकार में लगे रहते हैं। वृक्ष फल फुल देते हैं, नदियाँ जल देती है सूर्य ताप तथा ऊर्जा देता है। सम्भवतः मनुष्य ने प्रकृति के प्रभाव से ही परोपकार के भाव को सीखा है। परोपकार करने वाले ऊपर हो गए। दधीचि रतिदेव बुद्ध महावीर कबीर, तुलसी, महात्मा गाँधी को कौन आदर से याद नहीं करता है। परोपकारी व्यक्ति किसी का अहित नहीं करता, वह सबका भला चाहता है।
(9) बेरोजगारी की समस्या
आज बेरोजगारी की समस्या निरन्तर बढ़ती जा रही है। बेरोजगारों को फौज यहाँ से वहाँ तक फैली है। अशिक्षित से लेकर उच्च शिक्षा प्राप्त लोग आज रोजगार के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। बेरोजगारी के कारण हो अपराध बढ़ रहे हैं. मानसिक शिथिलता तथा शारीरिक निष्क्रियता आ रही है। खाली दिमाग शैतान का घर बनते जा रहे हैं। इस बेरोजगारी के कई कारण है, जैसे जनसंख्या वृद्धि दृषित शिक्षा प्रणाली, कौशल विकास की कमी, उद्योग-धन्धों का अभाव आदि बरोजगारी पर नियन्त्रण तभी सम्भव है जब जनसंख्या पर नियन्त्रण किया जाए, आवश्यकता के अनुरूप शिक्षा प्रणाली विकसित की जाए, अकुशल लोगों को कौशल सिखाया जाय तथा उद्योग-धन्धों की बढ़ोत्तरी की जाए। इसके लिए शासन तथा समाज दोनों को प्रयास करना होगा। तब ही इस बढ़ती बेरोजगारी से छुटकारा मिल सकेगा।
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