कवियों का साहित्यिक परिचय ncert class 10th imp questions

अध्याय 4

कवियों का साहित्यिक परिचय

  1. सूरदास
  • जीवन परिचय-सूरदास का जन्म आगरा के पास रुनकता (गऊ घाट) में सन् 1478 ई. में हुआ था। कुछ विद्वान उनका जन्म स्थान दिल्ली के पास ‘सीही’ नामक गाँव को मानते हैं। एक बार बल्लभाचार्य जी गऊ घाट पर रुके तो सूरदास ने एक पद गाकर सुनाया। बल्लभाचार्य जी बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने उनको अपना शिष्य बनाकर श्रीनाथ जी के मन्दिर के कीर्तन की सेवा सौंप दी। ‘अष्टछाप’ के कवियों में सूरदास महत्वपूर्ण स्थान है। इन्होंने कृष्ण लीलाओं का मार्मिक वर्णन किया। सन् 1583 में गोवर्धन के पास ‘पारसौली’ गाँव में उनका निधन हुआ।
  • रचनाएँ-(1) ‘सूरसागर’, (2) साहित्य लहरी’, (3) सूर सारावली’।
  • काव्यगत विशेषताएँ (अ) भावपक्ष-(1) वात्सल्य वर्णन-सूरदास ने वात्सल्य रस के दोनों पक्षों-संयोग और वियोग का विस्तृत वर्णन किया है। कृष्ण का घुटनों चलना, अपनी छाँह को पकड़ना आदि लीलाओं का मनोहारी चित्रण

सूर के काव्य में हुआ है।

(2) श्रृंगार वर्णन-सूरदास ने शृंगार के संयोग और वियोग दोनों रूपों का वर्णन किया है; यथा-

संयोग-“खेलनि हरि निकसे ब्रज खोरी।”

वियोग-“बिनु गोपाल बैरिन भई कुंज।”

(3) भक्ति-भावना-सूरदास उच्चकोटि के भक्त थे। उनके आराध्य कृष्ण हैं। उनके मन में कृष्ण के प्रति अनन्य भाव हैं।

(4) प्रकृति-चित्रण-इन्होंने प्रकृति का बड़ा सुन्दर वर्णन किया है।

(ब) कलापक्ष- (1) भाषा-सूरदास की भाषा सुललित, माधुर्यमयी ब्रजभाषा है। उसमें संस्कृत के तत्सम और तद्भव दोनों रूप मिलते हैं। लोकोक्तियों और मुहावरों का प्रयोग हुआ

(2) शैली-सूरदास ने गेय पद शैली का प्रयोग किया है।

(3) अलंकार-उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, अनुप्रास आदि सभी अलंकारों का इन्होंने स्वाभाविक प्रयोग किया है।

  • साहित्य में स्थान- भाव-सौन्दर्य की दृष्टि से सूरदास का स्थान सर्वोपरि है। इनका वात्सल्य वर्णन

अद्वितीय है। सूरदास को ‘वात्सल्य सम्राट’ माना गया है। उनकी गोपियाँ बहुत चतुर हैं। उनमें कृष्ण के प्रति

एकनिष्ठ प्रेम है। सूरदास विश्व साहित्य के महान कवि हैं।

 

  1. तुलसीदास
  • जीवन परिचय-तुलसीदास राम के अनन्य भक्त थे। इनकी जन्म तिथि और जन्म स्थान के बारे में मतभेद है। सामान्य रूप से इनका जन्म सन् 1532 ई. में माना जाता है। कुछ विद्वान इनका जन्म 1497 ई. में मानते हैं। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के राजापुर ग्राम में हुआ था। कुछ विद्वान इनका जन्म सोरों, जिला एटा में

मानते हैं। गुरु नरहरिदास ने इनकी पढ़ने की व्यवस्था की। बड़े होने पर इनका विवाह दीनबन्धु पाठक की पुत्री रत्नावली से हुआ। पत्नी के व्यंग्य बाणों से आहत होकर अयोध्या आ गए और ‘रामचरितमानस’ की रचना की। इनकी मृत्यु सन् 1623 ई. में हुई।

  • रचनाएँ-‘रामचरितमानस’, ‘विनयपत्रिका’, ‘कवितावली’, ‘गीतावली’, ‘दोहावली’, ‘बरवै रामायण’, हनुमान बाहुक’, ‘जानकीमंगल’ आदि।
  • काव्यगत विशेषताएँ

(अ) भावपक्ष-(1) भक्ति भावना-तुलसीदास सगुण ईश्वर को मानते थे। उनकी भक्ति में असीम दैन्य, अनन्य आत्म समर्पण है। राम ही एकमात्र भरोसा है। देखिए-

“एक भरोसो एक बल, एक आस विश्वास।

एक राम घनश्याम हित, चातक तुलसीदास ॥

(2) समन्वयवादी विचार-इनका दृष्टिकोण समन्वयवादी रहा है। रामभक्त होते हुए भी सभी

देवी-देवताओं की वन्दना की। इनके काव्य में कर्तव्यपरायणता और लोक-कल्याण का सन्देश मिलता है।

(3) लोकमंगल का भाव-तुलसी के काव्य में लोकमंगल की भावना व्यक्त है। उन्होंने भील, कोल,

शबरी आदि को अपनाया है।

(4) तुलसी रससिद्ध कवि हैं। उनकी कविताओं में शृंगार, शान्त, वीर रसों का सुन्दर चित्रण हुआ है। रौद्र, करुण एवं अद्भुत रसों का भी वर्णन हुआ है

(ब) कला पक्ष-

(1) भाषा-तुलसी ने ब्रज और अवधी भाषा को अपनाया है। जहाँ-तहाँ अरबी, फारसी, भोजपुरी,

बुन्देलखण्डी भाषाओं के शब्द भी मिल जाते हैं।

(2) अलंकार योजना-तुलसी का अलंकार विधान अनुपम है। इन्होंने उपमा अलंकार को ही नहीं

बल्कि कहीं रूपक, कहीं उत्प्रेक्षा तो कहीं दृष्टान्त का भी प्रयोग किया है।

(3) छंद-तुलसीदास ने चौपाई, दोहा, पद, सवैया, कवित्त आदि छंदों में काव्य रचना की है।

(4) शैली-तुलसी ने प्रबन्ध एवं मुक्तक दोनों शैलियों में काव्य रचना की है।

  • साहित्य में स्थान-लोक कल्याण के भाव से काव्य रचना करने वाले तुलसीदास विश्वविख्या कवि हैं। उनके बारे में उक्ति है-“कविता करके तुलसी न लसे, कविता लसी या तुलसी की कला” । वे संसार के अमर कवि हैं।

 

3.जयशंकर प्रसाद

  • जीवन परिचय-जयशंकर प्रसाद का जन्म वाराणसी (उत्तर प्रदेश) के जाने-माने सुंघनी शाहू परिवार में सन् 1889 ई. में हुआ था। बचपन में ही इनके माता-पिता का देहान्त हो गया। आपने आठवीं कक्षा तक ही स्कूल में पढ़ाई की। इसके बाद घर पर ही हिन्दी, अंग्रेजी, उर्दू, संस्कृत की शिक्षा प्राप्त की। आपने वेद, उपनिषद्, इतिहास, दर्शन आदि का स्वाध्याय किया। संघर्षमय जीवन में आपने अनेक कठिनाइयों का सामना किया। सन् 1937 ई. में आपका निधन हो गया।
  • रचनाएँ-(1) ‘कामायनी’ (महाकाव्य), (2) — लहर’, (3) करुणालय’, (4) आँसू’, (5) ‘झरना’,

(6) महाराणा का महत्व’, (7) चित्राधार’, (8) प्रेम पथिक’, (9) कानन कुसुम’ आदि आपकी प्रमुख काव्य

कृतियाँ हैं।

 

  • काव्यगत विशेषताएँ

(अ) भावपक्ष-प्रसाद जी के काव्य के भावपक्ष की विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं-

(1) समरसता का सन्देश-प्रसाद जी ने अपने महाकाव्य ‘कामायनी’ में समरसता का सन्देश दिया

है। जैसे-जैसे मानव, जगत् एवं जीवन के अखण्ड रूप से परिचित होने लगेगा, वैसे ही मनु की तरह विषमता

समाप्त होने लगेगी तथा समरसता का संचार प्रारम्भ होगा।

(2) छायावाद के जनक-हिन्दी काव्य में छायावाद का शुभारम्भ करने का श्रेय प्रसाद जी को ही जाता

है। उनकी कविता में छायावाद की सम्पूर्ण विशेषताएँ तथा चरमोत्कर्ष विद्यमान है।

(3) प्रेम-वेदना की मर्मस्पर्शी झाँकी– -प्रसाद जी के काव्य में प्रेम एवं वेदना के मार्मिक चित्र अंकित

किये गये हैं। प्रिय के विरह में जिन्दगी की वाटिका नष्ट हो चुकी है। कलियाँ बिखर गई हैं तथा पराग चारों

ओर फैल रहा है। अनुराग-सरोज शुष्क हो रहा है।

(4) दार्शनिकता-प्रसाद जी के काव्य में दार्शनिकता का पुट भी देखा जा सकता है। प्रसाद जी मूलतः

एक दार्शनिक कवि हैं। काव्य में आनन्दवाद की बहुत ही सशक्त अभिव्यक्ति है। दार्शनिकता की वजह से

काव्य में रहस्यात्मकता का स्वाभाविक ही सामंजस्य हो गया है।

(5) प्रकृति चित्रण-प्रसाद जी ने अपने काव्य में प्रकृति के मृदु एवं कर्कश (कठोर) दोनों रूपों का जीवन्त वर्णन प्रस्तुत किया है।

(6) राष्ट्रीयता-प्रसाद जी ने राष्ट्र के प्रति भी अपने कर्तव्य का निर्वाह किया है। वे प्रेम की मदिरा का

पान करके भी राष्ट्र के प्रति उदासीन नहीं हुए हैं।

(ब) कलापक्ष-(1) भाषा-प्रसाद जी की भाषा परिमार्जित, व्याकरण सम्मत, संस्कृतनिष्ठ खड़ी

बोली है। आपने भाव के अनुरूप भाषा का प्रयोग किया है।

(2) अलंकार-जयशंकर प्रसाद की कविताओं में प्राचीन तथा नवीन अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है। विशेषण विपर्यय तथा मानवीकरण जैसे पाश्चात्य अलंकारों का भी आपने सफल प्रयोग किया है।

(3) छंद-प्रसाद जी ने प्राचीन छंदों के साथ-साथ नवीन छंदों में भी काव्य रचना की है।

(4) शैली-प्रसाद जी ने प्रबन्ध तथा मुक्तक दोनों शैली अपनाई हैं। आपकी ‘कामायनी’ आधुनिक

काल की श्रेष्ठ रचना है।

  • साहित्य में स्थान-आधुनिक हिन्दी साहित्य में जयशंकर प्रसाद का शीर्ष स्थान है। आपके काव्य

में संगीत का मधुर नाद उल्लास पैदा करता है। महाकाव्यकार, कवि, नाटककार, कथाकार आदि सभी रूपों में जयशंकर प्रसाद महान साहित्यकार सिद्ध होते हैं वे विश्व साहित्य के श्रेष्ठ रचनाकार हैं।

 

  1. सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
  • जीवन परिचय-सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म सन् 1899 ई. में वसन्त पंचमी के दिन बंगाल

के मेदिनीपुर जिले की महिषादल नामक रियासत में हुआ था। उनके पिता रामसहाय त्रिपाठी मूलतः उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गढ़ाकोला के रहने वाले थे किन्तु नौकरी के कारण वे बंगाल चले गए थे। इनकी माता क।निधन तीन वर्ष बाद ही हो गया। पिता के कठोर स्वभाव के कारण निराला का बचपन ममता रहित ही बीता।इनकी शिक्षा-दीक्षा बंगाल में ही हुई। पत्नी मनोरमा की प्रेरणा से निराला जी को हिन्दी साहित्य तथा संगीत मेंरुचि उत्पन्न हुई। इन्होंने स्वाध्याय से संस्कृत, बंगला तथा अंग्रेजी का ज्ञान प्राप्त किया। रामकृष्ण परमहंस तथा विवेकानन्द के विचारों से विशेष प्रभावित हुए। जीवन भर संघर्ष करते रहने वाले निराला जी का सन् 1961 में निधन हो गया।

  • रचनाएँ-सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की प्रमुख काव्य कृतियाँ इस प्रकार हैं-

(1) अनामिका’, (2) ‘परिमल’, (3) गीतिका’, (4) ‘तुलसीदास’, (5) ‘अणिमा’, (6) ‘बेला’,

(7) आराधना’, (8) अपरा’, (9) ‘गीत गूंज’, (10) ‘कुकुरमुत्ता’, (11) नये पत्ते’ आदि।

  • काव्यगत विशेषताएँ

(अ) भावपक्ष-(1) प्रेम और सौन्दर्य वर्णन-निराला के काव्य में प्रेम और सौन्दर्य के मोहक चित्र मिलते हैं। उनके सौन्दर्य वर्णन में ताजगी, आकर्षण और स्वच्छन्दता

(2) प्रकृति-चित्रण-निराला ने प्रकृति के सजीव चित्र अंकित किये हैं। उनका प्रकृति वर्णन अत्यन्त

मधुर और हृदयस्पर्शी है।

(3) भक्ति एवं दर्शन-जीवन के अन्तिम वर्षों में लिखी गयी निराला की कविताओं में कबीर जैसी

भक्ति-भावना, लोक-कल्याण, रहस्यवाद का स्वर विद्यमान है।

(4) प्रगतिवादी दृष्टिकोण-महाप्राण निराला के काव्य में दीन-हीन निर्धन किसानों के प्रति गहरी

सहानुभूति है। निराला की ‘कुकुरमुत्ता’, तोड़ती पत्थर’, दीन’ आदि कविताएँ इसी की पुष्टि करती हैं।

(5) राष्ट्रीयता-निराला जी का काव्य देश-प्रेम और राष्ट्रीयता की भावनाओं से परिपूर्ण है। कविताओं

में राष्ट्रीय प्रेम ओज के साथ उमड़कर आया है।

(ब) कलापक्ष-(1) भाषा-निराला जी की भाषा भावों के अनुरूप बदलती जाती है। देश-प्रेम तथा भक्तिपरक कविताओं में इनकी भाषा सरल है। गम्भीर रचनाओं में आपकी भाषा क्लिष्ट एवं संस्कृतनिष्ठ हो

गयी है।

(2) शैली-‘निराला’ की दो शैलियाँ स्पष्ट हैं-(1) उत्कृष्ट छायावादी गीतों में प्रयुक्त, लम्बी तत्सम

एवं दुरूह शैली और

(2) सरल, प्रवाहपूर्ण, प्रचलित उर्दू के शब्द लिए व्यंग्यपूर्ण और चुटीली शैली।

(3) छंद-निराला ने छंदों के क्षेत्र में नये-नये प्रयोग किये हैं। आपने तुकान्त एवं अतुकान्त दोनों प्रकार

के छंद लिखे हैं। मुक्तक छंद को आपने ही जन्म दिया।

  • साहित्य में स्थान-आधुनिक कवियों में महाप्राण निराला का उत्कृष्ट स्थान है। वे मुक्तक के जनक वे थे। निराला जी ने हिन्दी कविता को नयी दिशा प्रदान की। इन्होंने हिन्दी कविता को नवीन विषयों और शैलियो से समृद्ध किया। निराला जी हिन्दी के मूर्धन्य रचनाकार हैं।

 

5.गिरिजाकुमार माथुर

  • जीवन परिचय-गिरिजाकुमार माथुर का जन्म सन् 1919* में मध्य प्रदेश के अशोक नगर में हुआ।

उनकी प्रारम्भिक शिक्षा घर पर हुई। झाँसी, ग्वालियर से माध्यमिक शिक्षा प्राप्त की तथा लखनऊ विश्वविद्यालय

से । एम. ए. (अंग्रेजी) की उपाधि प्राप्त की। कुछ समय वकालत करने के बाद आपने आकाशवाणी और दूरदर्शन

में नौकरी कर ली। आकाशवाणी का विविध भारती कार्यक्रम आपकी परिकल्पना थी। उनका निधन सन् 1994 में हुआ।

  • रचनाएँ-गिरिजाकुमार माथुर की प्रमुख काव्य रचनाएँ हैं-‘ मंजीर’, ‘नाश और निर्माण’, ‘धूप के

धान’, ‘ शिलापंख चमकीले’, ‘भीतरी नदी की यात्रा’, ‘छाया मत छूना’ आदि।

  • काव्यगत विशेषताएँ-गिरिजाकुमार माथुर के काव्य की भाव एवं कला की विशेषताएँ निम्न

प्रकार हैं-

(अ) भावपक्ष-(1) सरसता एवं रागात्मकता-गिरिजाकुमार माथुर का काव्य सरसता एवं रागात्मकता

से परिपूर्ण है। राग एवं ध्वनियों के संयोग से आपने अनुपम रागात्मकता उत्पन्न की है।

(2) मानव मन की अभिव्यक्ति-माथुर के काव्य में मानव मन की सहज अभिव्यक्ति हुई है। अपनी

अनुभूतियों का विश्लेषण भी वे करते जाते हैं।

(3) प्रेम एवं सौन्दर्य-प्रयोगवादी कवि माथुर के काव्य में प्रेम एवं सौन्दर्य को वर्ण्य विषय के रूप में

स्वीकार किया गया है।

(4) प्रकृति चित्रण-माथुर जी के काव्य में प्रकृति का जो चित्रण हुआ है, वह विलक्षण है।

(5) नवीन चिन्तनधारा-माथुर के काव्य में नवीन चिन्तनधारा की अभिव्यक्ति हुई है। बुद्धि तत्व की

प्रधानता तथा व्यंग्यात्मकता ने आपके काव्य को प्रभावी बना दिया है।

(ब) कलापक्ष-(1) भाषा-शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली में काव्य सृजन करने वाले माथुर ने

चित्रोपमता का अद्भुत विधान किया है।

(2) छंद-प्रारम्भ में प्राचीन छंदों में काव्य रचना करने वाले माथुर ने लोक धुनों पर प्रयोग कर नवीन

छंदों की रचना की है।

(3) अलंकार-अनुप्रास, रूपक आदि के साथ-साथ मानवीकरण, विशेषण विपर्यय आदि अलंकारों

का सुन्दर प्रयोग गिरिजाकुमार माथुर ने किया है।

(4) शैली-प्रयोगधर्मा कवि गिरिजाकुमार माथुर ने सहज, सरस एवं सरल शैली में काव्य रचना की है।

  • साहित्य में स्थान-प्रथम तारसप्तक के प्रमुख कवि गिरिजाकुमार माथुर प्रयोगवाद के महत्वपूर्ण

कवि हैं। आपने अपने नवीन दृष्टिकोण के माध्यम से साहित्य को नई प्रेरणा तथा दिशा प्रदान की है। हिन्दी

साहित्य में आप निरन्तर स्मरण किए जाते रहेंगे।

 

  1. ऋतुराज
  • जीवन-परिचय-ऋतुराज का जन्म सन् 1940 में राजस्थान के भरतपुर में हुआ। प्रारम्भिक एवं

माध्यमिक शिक्षा पूर्ण कर आपने राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से एम. ए. (अंग्रेजी) करने के बाद अध्यापन

कार्य किया। अब अवकाश प्राप्त कर साहित्य रचना कर रहे हैं।

  • रचनाएँ-ऋतुराज की काव्य कृतियों में ‘मैं आंगिरस’, ‘पुल पर पानी’, ‘एक मरण-धर्मा और

अन्य’, ‘सुरत निरत’, ‘लीला मुखारबिन्द’, ‘कितना थोड़ा वक्त’ आदि आपकी प्रमुख काव्य कृतियाँ हैं।

  • काव्यगत विशेषताएँ

(अ) भावपक्ष-ऋतुराज ने अलग-अलग हाशिए के समाज की समस्याओं को अपनी रचनाओं का

विषय बनाया है। उन्होंने परम्परागत रूढ़ियों तथा अन्धविश्वासों पर प्रहार किया है। वे समय के साथ बदलते

रूपों के पक्षधर हैं। जागरूक साहित्यकार के रूप में उन्होंने समाज को सही दिशा देने का प्रयास किया है।

(ब) कलापक्ष-(1) भाषा-ऋतुराज ने शुद्ध खड़ी बोली में काव्य रचना की है। आप लोक जीवन

की भाषा को महत्व देते हैं। आवश्यकतानुसार आपने संस्कृत के तत्सम, तद्भव, देशज एवं विदेशी शब्दों का

प्रयोग किया है।

(2) अलंकार-ऋतुराज को अलंकारों का मोह नहीं है फिर भी आपके काव्य में अनुप्रास, रूपक, उपमा

आदि अलंकार देखे जा सकते हैं।

(3) छंद-आपने मुक्त छंद को महत्व दिया है। भाव के अनुसार आरोहण-अवरोहण आपकी कविता की विशेषता है।

  • साहित्य में स्थान-समाज के हाशिए के लोगों की वाणी को स्वर देने वाले ऋतुराज का वर्तमान हिन्दी कवियों में महत्वपूर्ण स्थान है। उनहोंने अछूते विषयों को अपने काव्य का विषय बनाया है। ऋतुराज आज भी अपनी रचनाओं से हिन्दी साहित्य को सम्पन्न कर रहे हैं।

 

महत्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

* बहु-विकल्पीय प्रश्न

 

  1. निम्नलिखित में सूरदास की रचना है-

(क) साहित्य लहरी,

ख) विनय पत्रिका,

(ग) काव्य रसायन,

(घ) पदावली।

 

  1. सूरदास के पदों की भाषा कौन-सी है?

(क) अवधी,

(ख) ब्रजभाषा,

(ग) राजस्थानी,

(घ) बुन्देलखण्डी।

 

  1. तुलसीदास की रचना है-

(क) रामचन्द्रिका,

(ख) प्रेम पच्चीसी,

(ग) रामचरितमानस,

(घ) रसविलास।

 

  1. ‘विनय पत्रिका’ के कवि का क्या नाम है?

(क) सूरदास,

(ख) केशवदास,

(ग) रसखान,

(घ) तुलसीदास।

 

  1. जयशंकर प्रसाद का जन्म कहाँ हुआ था ?

(क) प्रयाग,

(ख) वाराणसी,

(ग) इन्दौर,

(घ) ग्वालियर।

 

  1. जयशंकर प्रसाद किसके प्रवर्तक माने जाते हैं ?

(क) छायावाद के,

(ख) प्रगतिवाद के,

(ग) प्रयोगवाद के.

(घ) नई कविता के।

 

  1. निम्नलिखित में कौन-सी रचना सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की है ?

(क) झरना,

(ख) कवि और कोकिल,

(ग) उत्साह,

(घ) संगतकार।

 

  1. सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म किस प्रदेश में हुआ था ?

(क) मध्य प्रदेश,

(ख) पश्चिमी बंगाल,

(ग) राजस्थान,

(घ) गुजरात।

 

  1. ‘छाया मत छूना’ किसकी रचना है ?

(क) निराला की.

(ख) मंगलेश डबराल की,

(ग) ऋतुराज की,

(घ) गिरिजाकुमार माथुर की।

 

  1. गिरिजाकुमार माथुर की रचना है-

(क) अणिमा,

(ख) नाश और निर्माण,

(ग) घर का रास्ता,

(घ) कुकुरमुत्ता।

 

  1. ‘सुरत निरत’ किसकी रचना है ?

(क) ऋतुराज,

(ख) मंगलेश डबराल,

(ग) गिरिजाकुमार माथुर,

(घ) नागार्जुन।

 

  1. ‘कन्यादान’ किस कवि की रचना है?

(क) गिरिजाकुमार माथुर की,

(ख) मंगलेश डबराल की,

(ग) ऋतुराज की,

(घ) नागार्जुन की।

उत्तर-1. (क), 2. (ख), 3. (ग), 4. (घ), 5. (ख), 6. (क), 7. (ग), 8. (ख), 9. (घ), 10. (ख), 11.(क), 12. (ग)।

 

* रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. ‘साहित्य लहरी’……………..की रचना है।
  2. सूरदास………….के सम्राट माने जाते हैं।
  3. तुलसीदास…………… शाखा के श्रेष्ठ कवि हैं।
  4. कवितावली…………….की रचना है।
  5. ‘आँसू…………….द्वारा रचित विरह काव्य है।
  6. जयशंकर प्रसाद की……………कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित है।
  7. सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’……………..के कवि माने जाते हैं।
  8. सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म सन्…………..में हुआ था।
  9. ‘धूप के धान’……………. का कविता संग्रह है।
  10. गिरिजाकुमार माथुर का निधन……………में हुआ था।
  11. ऋतुराज का जन्म सन्’…………….में हुआ।
  12. ‘पुल पर पानी’………….

की कविता है।

उत्तर-1. सूरदास, 2. वात्सल्य रस, 3. रामभक्ति, 4. तुलसीदास, 5. जयशंकर प्रसाद, 6. आत्मकथ्य,

  1. छायावाद, 8. 1899 ई., 9.गिरिजाकुमार माथुर, 10. 1964 ई., 11. 1940 ई., 12. ऋतुराज।

 

सत्य/असत्य

  1. ‘सूरसागर’ के कवि सूरदास हैं।
  2. ‘साहित्य लहरी’ तुलसीदास की कृति है।
  3. तुलसीदास के काव्य में लोकमंगल का भाव है।
  4. तुलसीदास की मृत्यु प्रयाग में हुई थी।
  5. जयशंकर प्रसाद छायावाद के कवि हैं।
  6. ‘उत्साह’ कविता के कवि जयशंकर प्रसाद हैं।
  7. ‘अट नहीं रही है’ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की रचना है।
  8. सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ पूँजीवाद के समर्थक थे।
  9. गिरिजाकुमार माथुर छायावादी कवि हैं।
  10. ‘शिला पंख चमकीले’ गिरिजाकुमार माथुर की रचना है।
  11. समाज के हाशिए के लोगों की समस्याओं को ऋतुराज ने महत्व दिया है।
  12. ‘फसल’ ऋतुराज की कविता है।

 

उत्तर-1.सत्य, 2. असत्य, 3. सत्य, 4. असत्य, 5. सत्य, 6. असत्य, 7. सत्य, 8. असत्य,9. असत्य,

  1. सत्य, 11. सत्य, 12. असत्य।

 

* सही जोड़ी मिलाइए

I.

‘अ’

  1. सूरदास
  2. योग का सन्देश
  3. विनय पत्रिका
  4. तुलसीदास
  5. वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
  6. जयशंकर प्रसाद

 

‘ब’

(क) उद्धव

(ख) सूर सारावली

(ग) कवितावली

(घ) तुलसीदास

(ङ) कामायनी

(च) जयशंकर प्रसाद

 

उत्तर-1.→ (ख), 2. → (क), 3. → (घ), 4.→ (ग),5. → (च), 6. → (ङ)।

 

II.

‘अ’

  1. सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
  2. छायावाद
  3. शिलापंख चमकीले
  4. गिरिजाकुमार माथुर
  5. ऋतुराज का जन्म स्थान
  6. सुरत निरत

 

‘ब’

 

(क) सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

(ख) अनामिका

(ग) नई कविता के कवि

(घ) गिरिजाकुमार माथुर

(ङ) ऋतुराज

(च) भरतपुर (राजस्थान)

 

उत्तर-1.→ (ख), 2. → (क), 3. → (घ),4.→ (ग), 5. → (च), 6.→ (ङ)।

 

* एक शब्द/वाक्य में उत्तर

  1. ‘सूर सारावली’ के कवि का क्या नाम है ?
  2. सूरदास ने किस भाषा में काव्य रचना की?
  3. ‘गीतावली’ किसकी रचना है ?
  4. ‘रामचरितमानस’ की रचना किस भाषा में हुई है ?
  5. जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित महाकाव्य का क्या नाम है ?
  6. ‘लहर’ के रचनाकार का क्या नाम है ?
  7. ‘उत्साह’ कविता किस कवि की है?
  8. ‘कुकुरमुत्ता’ के कवि का नाम बताइए।
  9. गिरिजाकुमार माथुर किस काव्य धारा के कवि हैं ?
  10. ऋतुराज की कौन-सी कविता आपकी पाठ्य-पुस्तक में है ?
  11. ‘नाश और निर्माण के कवि का क्या नाम है ?
  12. ‘पुल पर पानी’ के कवि का क्या नाम है ?

उत्तर-1. सूरदास, 2. ब्रजभाषा, 3. तुलसीदास, 4. अवधी में, 5. कामायनी, 6. जयशंकर प्रसाद,

  1. सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, 8. सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, 9. नई कविता के, 10. कन्यादान,
  2. गिरिजाकुमार माथुर, 12. ऋतुराज।

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