पाठ 4 एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा! -शिवप्रसाद मिश्र ‘रुद्र’ 4 कहानी for class 10th mp board ncert hindi

पाठ 4
एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!
-शिवप्रसाद मिश्र ‘रुद्र’
4 कहानी

अभ्यास

प्रश्न 1. हमारी आज़ादी की लड़ाई में समाज के उपेक्षित माने जाने वाले वर्ग का योगदान भी कम नहीं रहा है। इस कहानी में ऐसे लोगों के योगदान को लेखक ने किस प्रकार उभारा है? उत्तर-हमारी आजादी की लड़ाई में समाज के उपेक्षित माने जाने वाले वर्ग का योगदान भी वास्तव में कम नहीं रहा है। इस कहानी में ऐसे लोगों के योगदान को लेखक ने दुलारी, टुन्नू तथा आम जनता के माध्यम से उभारा है। एक बार दुलारी की गली से होकर विदेशी वस्त्रों को जलाने हेतु उनका संग्रह करता हुआ देश के दीवानों का दल भैरवनाथ की संकरी गली में घुसा और ‘भारतजननी तेरी जय, तेरी जय हो’ गीत की ध्वनि से दोनों ओर खड़ी इमारतों की प्रत्येक कोठरी गूंज गई। एक बड़ी-सी चादर फैलाकर चार व्यक्तियों ने उसके चारों कोनों को मजबूती से पकड़ रखा था। उसी पर खिड़कियों से विदेशी धोती, साड़ी, कमीज़ आदि की वर्षा होने लगी। तभी सहसा दुलारी ने भी अपनी खिड़की खोली और मैंचेस्टर तथा लंकाशायर के मिलों की बनी बारीक सूत की मखमली किनारे वाली नयी कोरी धोतियों का बण्डल नीचे फैली चादर पर फेंक दिया। टुन्नू भी मलमल के वस्त्रों का परित्याग करके खद्दर का कुरता और लखनवी दोपलिया के स्थान पर गाँधी टोपी धारण करने लगा था।

प्रश्न 2. कठोर हृदयी समझी जाने वाली दुलारी टुनू की मृत्यु पर क्यों विचलित हो उठी ?
उत्तर-कठोर हृदयी समझी जाने वाली दुलारी टुन्नू की मृत्यु पर इसलिए विचलित हो उठी कि वह टुन्नू को अपना सच्चा प्रेमी मानती थी। सत्यता तो यही है कि वास्तव में टुन्नू भी दुलारी से आत्मिक प्रेम करता था। एक बार नौ वर्षीय झींगुर बालक ने उसके आँगन में प्रवेश किया और बतलाया कि टुन्नू महाराज को गोरे सिपाहियों ने मार डाला और लाश भी उठा ले गए। इस समाचार को सुनते ही दुलारी निस्तब्ध हो गई। उसने यह भी नहीं पूछा कि घटना कहाँ तथा किस तरह हुई है। कभी किसी बात पर न पसीजने वाला उसका हृदय कातर हो उठा और सदैव मरुभूमि की तरह जलने वाली दुलारी की आँखों में मेघमाला (आँसू) घिर आयी।

प्रश्न 3. कजली दंगल जैसी गतिविधियों का आयोजन आयोजनों का उल्लेख कीजिए। वो आ करता होगा ? कुछ और परम्परागत लोक उत्तर-‘कजरी’ एक प्रकार का लोकगीत है जो भादो माह की तीज पर गाया जाता है। प्रस्तुत कहानी की नायिका दुलारी तथा नायक दुन्नू दोनों ही कजरी दंगल के लिए प्रसिद्ध थे। कजरी-दंगल को अवसर पर निकटस्थ क्षेत्र को गायक-नृत्यांगनाएँ अपनी कला के माध्यम से स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करना चाहती हैं। इस दंगल में पचमय भाषा में ही सवाल-जबाव किए जाते हैं। कजरी-दंगल जैसी गतिविधियों के आयोजन का उद्देश्य मनोरंजन के साथ-साथ लोगों को अपनी कला का प्रदर्शन करना भी है। इसी दंगल में दुलारी टुन्नू को अपना दिल दे बैठी थी। इसके अतिरिक्त परम्परागत लोक आयोजनों में विभिन्न मेले, उत्सव, रासलीला, लोककथा, रंगमंचीय नाटक, नृत्य गीत आयोजन किए जाते हैं।

प्रश्न 4. दुलारी विशिष्ट कहे जाने वाले सामाजिक- सांस्कृतिक दायरे से बाहर है। फिर भी अति विशिष्ट है। इस कथन को ध्यान में रखते हुए दुलारी की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए। उत्तर-दुलारी विशिष्ट कहे जाने वाले सामाजिक तथा सांस्कृतिक दायरे से बाहर है फिर भी वह अति विशिष्ट है। इस कथन को ध्यान में रखते हुए दुलारी के चरित्र की विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं- (1) वह नृत्य कला से परिपूर्ण एक सुन्दर नृत्यांगना है। (2) दुलारी का शरीर स्वस्थ एवं बलिष्ट है। वह नित्य व्यायाम करके शरीर का पसीना निकालती है तथा भीगे हुए चने खाती है। (3) वह एक सच्ची प्रेमिका भी है। दुलारी अपने प्रेमी टुन्नू से सच्चा एवं आत्मिक प्रेम करती है। (4) वह एक सच्ची देश-प्रेमिका है। (5) सत्यवक्ता होने के साथ-साथ दुलारी एक मधुर गायिका भी है। (6) नारी सम्मान के प्रति सजग रहने के साथ-साथ दुलारी भावुक स्वभाव की स्त्री है।

प्रश्न 5. दुलारी का टुनू से पहली बार परिचय कहाँ और किस रूप में हुआ ?
उत्तर-दुलारी का टुन्नू से पहली बार परिचय खोजवाँ बाज़ार (काशी) कजरी-दंगल में गायक-गायिका के रूप में हुआ था। भादों में तीज के अवसर पर दुलारी खोजवाँ बाज़ार गाने गई थी। गानेवालियों में दुलारी की प्रसिद्धि थी। उसे पद्य में सवाल-जवाब करने की अद्भुत क्षमता प्राप्त थी। ‘कजरी’ को गाने वाले बड़े-बड़े विख्यात शायर उससे जीत नहीं पाते थे। दुलारी को कजरी-दंगल में अपनी ओर खड़ा करके खोजवाँ वालों ने अपनी जीत सुनिश्चित समझ ली थी परन्तु जब एक सोलह-सत्रह वर्ष का लड़का (दुन) विपक्ष में खड़ा हो गया था तब उन्हें अपनी विजय पर विश्वास नहीं रहा।

प्रश्न 6. दुलारी का टुनू को यह कहना कहाँ तक उचित था-“तँ सरबठला बोलजिनगी मेंकबदेखलेलोट?–1” दुलारी के इस आपेक्ष में आज के युवा वर्ग के लिए क्या सन्देश छिपा है ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-दुलारी की इस पद्य-पंक्ति का अर्थ है कि तुझे लोग व्यर्थ आदमी समझते हैं। तू तो वास्तव में बगुला है। बगुले के पर जैसा ही तेरे शरीर का अंग है। वैसे तू बगुला भगत भी है। उसी की तरह तुझे भी हंस को चाल चलने का हौसला हुआ है परन्तु कभी-न-कभी तेरे गले में मछली का कौटा जरूर अटकेगा और उसी दिन तेरी कलई खुल जायेगी। दुलारी के इसी आक्षेप में आज के युवा वर्ग के लिए यह सन्देश छिपा है कि पुरुष स्त्रियों को मात्र भोग्य-वस्तु न समझें, उन्हें सम्मान दें।

प्रश्न 7. भारत के स्वाधीनता आन्दोलन में दुलारी और दुनू ने अपना योगदान किस प्रकार दिया ?
उत्तर-यह कहानी उस समय की है जब देश में विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर उनकी होली जलाई जा रही थी। स्वदेशी आन्दोलन के चलते टुतू ने दुलारी को एक खादी की साड़ी भेंट की थी। दुलारी ने भी उस साड़ी को संभालकर अपने पास रख लिया था। टुन ने भी मलमल के वस्त्रों के स्थान पर खद्दर का कुरता और गाँधी टोपी पहनना प्रारम्भ कर दिया था। दुलारी ने भी विदेशी वस्त्रों/वस्तुओं की होली जलाने वाली टोली की चादर पर अनेक मखमली किनारे वाली नयी कोरी धोतियों का बण्डल उस स्वदेशी जवानों की टोली को समर्पित कर दिया। इस प्रकार भारत के स्वाधीनता आन्दोलन में दुलारी और टुनू ने अपना योगदान दिया।

प्रश्न 8. दुलारी और टुन के प्रेम के पीछे उनका कलाकार मन और उनकी कला थी ? यह प्रेम दुलारी को देश-प्रेम तक कैसे पहुंचाता है?
उत्तर-वास्तव में दुलारी और उनू के प्रेम के पीछे उनका कलाकार मन और उनकी कला थी। दुलारी एवं टुनू का प्रेम शारीरिक न होकर आत्मिक था। उसमें वासना नहीं थी। यही सात्विक प्रेम दुलारी को देश-प्रेम तक पहुँचाता है। देश-प्रेम की भावना में बहकर ही दुलारी ने अपनी विदेशी कीमती साड़ियों की गठरी को स्वदेशी आन्दोलन में जलाने हेतु समर्पित कर दिया। अन्त में वह टुन्नू द्वारा लाई गई खादी की साड़ी पहनती है।

प्रश्न 9. जलाए जाने वाले विदेशी वस्त्रों के ढेर में अधिकांश वस्त्र फटे-पुराने थे परन्तु दुलारी द्वारा विदेशी मिलों से बनी कोरी साड़ियों का फेंका जाना उसकी किस मानसिकता को दर्शाता है ?
उत्तर-जलाए जाने वाले विदेशी वस्रों के ढेर में अधिकांश वस्त्र फटे-पुराने थे परन्तु दुलारी द्वारा विदेशी मिलों से बनी कोरी साड़ियों का फेंका जाना उसकी सच्ची देशभक्ति की मानसिकता तथा फेंकू जैसे धनी-वर्ग के लोगों द्वारा दी जाने वाली साड़ियों को न पहनने की मानसिकता को दर्शाता है। अतः अन्त में दुलारी अपने प्रेमी द्वारा दी गई खद्दर की साड़ी ही पहनती है।

प्रश्न 10. “मन पर किसी का बस नहीं, वह रूप या उमर का कायल नहीं होता।” टुनू के इस कथन में उसका दुलारी के प्रति किशोर जनित प्रेम व्यक्त हुआ है परन्तु उसके विवेक ने उसके प्रेम को किस दिशा की ओर मोड़ा?
उत्तर-इस कथन में टुन्नू का दुलारी के प्रति किशोर जनित प्रेम व्यक्त हुआ है परन्तु उसके विवेक ने उसके प्रेम को देशप्रेम वाली दिशा की ओर मोड़ दिया। टुन्नू में देशप्रेम की भावना जाग्रत होती है और वह स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़ जाता है। अन्त में वह अंग्रेजी सिपाही के बूट की ठोकर खाकर देश के लिए वीरगति को प्राप्त होता है।

प्रश्न 11. ‘एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’ का प्रतीकार्थ समझाइए। ‘एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’ पंक्ति का अर्थ
उत्तर- है-हे राम! इसी स्थान पर मेरी नाक की लौंग खो गई है। दुलारी को लाचारी में अमन सभा द्वारा टाउन हॉल में आयोजित समारोह में नाचने-गाने हेतु जाना पड़ा। वह उस स्थान पर गाना नहीं चाहती थी जहाँ आठ घंटे पहले उसके प्रेमी की हत्या की गई थी परन्तु उसे विवश होकर गाना पड़ा। उसने अजीब दर्द भरे गले से गाया-‘एही ठैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा! कासों मैं पूछू ? इस पंक्ति का प्रतीकार्थ है-हे राम! इसी स्थान पर मेरे प्रेमी (टुन्नू) की हत्या की गई थी, मैं किससे पूछू ? यह गीत गाते-गाते उसकी आँखों से अश्रुधारा उमड़ पड़ी। नृत्यांगना दुलारी एवं टुन्नू का प्रेम अन्त में देशप्रेम में बदल जाता है।

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*