CLASS 9TH HINDI MP BOARD NCERT अध्याय 15 निबन्ध-लेखन Pariksha Adhyayan Hindi 9th

CLASS 9TH HINDI MP BOARD NCERT अध्याय 15 निबन्ध-लेखन Pariksha Adhyayan Hindi 9th

CLASS 9TH HINDI  MP BOARD NCERT  अध्याय 15  निबन्ध-लेखन Pariksha Adhyayan Hindi 9th
CLASS 9TH HINDI MP BOARD NCERT अध्याय 15 निबन्ध-लेखन Pariksha Adhyayan Hindi 9th

 

अध्याय 15

निबन्ध-लेखन

1. ‘दीपावली’
अथवा
मेरा प्रिय त्यौहार
[रूपरेखा-(1) प्रस्तावना, (2) तैयारियाँ, (3) दीपावली का आयोजन-धनतेरस, छोटी दिवाली,
दीपावली, गोवर्धन पूजा तथा भैया दूज, (4) दीपावली का महत्व, (5) उपसंहार।]
प्रस्तावना-भारतीय त्यौहार समाज के लिए सामूहिक उत्सव हैं, इन त्यौहारों पर जनसामान्य अपनी आन्तरिक और बाह्य भावनाओं को अपनी किसी भी कार्य-शैली के माध्यम से प्रकट करता है। इसका कारण है कि मनुष्य इन उत्सवों के मनाने के लिए विविध आयोजनों की रूपरेखा तैयार करता है। भारत में प्रत्येक महीने त्यौहार मनाये जाते दिखते हैं। कभी-कभी तो कई दिन तक त्यौहारों का क्रम चलता है। इसी आधार पर भारत
को त्यौहारों और पर्वो का देश कहा जाता है। तैयारियाँ-दीपावली आने से कई दिन पहले से ही इसकी तैयारियाँ करना प्रारम्भ कर दी जाती हैं। घरों और दुकानों की सफाई की जाती है। उनमें चित्र टाँग दिए जाते हैं। इन चित्रों से वे सजे हुए अच्छे लगते हैं।
चारों ओर, चाहे शहर हो, गाँव हो या छोटा शहर, सभी सजे हुए इस तरह प्रतीत होते हैं जैसे मानो वे लक्ष्मीजी के आने की प्रतीक्षा कर रहे हों। यह दीपावली त्यौहार शरद ऋतु के प्रारम्भ में आता है। उस समय न अधिक गर्मी होती है और न अधिक ठण्ड। मौसम सुहावना होता है। इस समय धीरे-धीरे शीतल और सुगन्ध युक्त हवा बहती रहती है। प्रकृति खुशनुमा होती है। पशु-पक्षी, लता-वृक्ष, स्त्री-पुरुष सभी आनन्दमय होते हैं। प्रकृति भी इस त्यौहार को मनाने के लिए तत्पर प्रतीत होती है।
दीपावली का आयोजन-दीपावली का पर्व हिन्दू कार्तिक महीने की अमावस्या को पड़ता है। वैसे यह त्यौहार कार्तिक महीने की कृष्णपक्षीय तेरस (धन तेरस) से लेकर कार्तिक शुक्ल द्वितीया (दौज) तक लगातार पाँच दिन तक बड़ी धूमधाम और सज-धजकर मनाया जाता है। यह धन तेरस का दिन भगवान् धन्वन्तरि का जन्मदिन माना जाता है। अत: वैद्य लोग इस दिन उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। लोग इस दिन बर्तनों की खरीददारी करना शुभ मानते हैं। अत: इस दिन बाजारों में बड़ी-बड़ी दुकानें बर्तनों से भरी हुई और सजावट की हुई आकर्षक लगती हैं। इसके दूसरे दिन चतुर्दशी (नरक चतुर्दशी) होती है। लोग प्रात: तेल-मालिश कर नहाते हैं और समझा जाता है कि इस तरह के स्नान करने से उनके शारीरिक रोग व पाप दूर हो जाते हैं। सायंकाल घर की प्रमुख नाली के पास दीपक जलाया जाता है। इसे छोटी दीपावली कहते हैं।, अमावस्या का दिन दीपावली का मुख्य त्यौहार होता है। दिन में पकवान, मिठाइयाँ आदि बनते हैं। बच्चे
नये स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं। वे अति प्रसन्न दिखाई देते हैं। विभिन्न पकवान और मिठाइयाँ खाकर वे चारों ओर धमाचौकड़ी भरते नजर आते हैं। सर्वत्र खुशी का वातावरण होता है। रात्रि का आगमन होने पर निर्दिष्ट बेला में लक्ष्मीजी की पूजा होती है। घर-दुकान, कारखानों पर पूजा विद्वान पण्डित कराते हैं। उन्हें विविध उपहार व मिठाइयाँ दी जाती हैं। व्यापारी लोग अपने खाते और बहीखाते बदलते हैं। पूजा में प्रमुख रूप से ताजे फूल, रोली, चन्दन, धूपबत्ती, मिठाई, खील व बतासे रखे जाते हैं। लोग पटाखे जलाते हैं। दीपक जलाये जाते हैं, चारों ओर उजाला होता है। घर-घर मिठाई बाँटी जाती है। खील और पकवानों से गोवर्धन की पूजा की जाती है। गोवर का गोवर्धन बनाया जाता है। सायंकाल को घर दीपावली के दूसरे दिन प्रतिपदा (पड़वा) होती है। इस दिन गोवर्धन पूजा का उत्सव होता है। दूध, के सभी सदस्य एकत्र होकर पूजा करते है। पांचवें दिन या दौज होती है। बहनें अपने भाइयों का टीका करती हैं। उन्हें मिठाई, वस्त्र आदि देती है और उनके स्वस्थ रहने तथा दीर्घायु होने की कामना करती है। भाई उनको अंट देकर उनका सम्मान करते हैं। इस दौज को भाई-बहन (यम-द्वितीया पर) यमुना में साथ-साथ स्नान करके दीर्घ आयु प्राप्त करने का वरदान पाते हैं। दीपावली का महत्व-दीपावली हिन्दुओं का राष्ट्रीय पर्व है। इस पर्व पर सभी प्रतिष्ठानों आदि की मरम्मत आदि करा दी जाती है। सफाई की जाती है। रंगाई और पुताई से दुकान और घर सुन्दर लगते हैं। मक्खी-मच्छर मर जाते हैं। लोगों में विशेष उत्साह होता है क्योंकि उनकी खरीफ की फसल पक जाती है और रबी की फसल बोये जाने की तैयारी की जाती है। लोग परस्पर मिलकर इस उत्सव को मनाते हैं।

उपसहार-इस उत्सव पर कुछ लोग जुआ आदि खेलकर या नशा करके इसकी पवित्रता को दाग लगा सद्भाव और सहानुभूति की जागृति होती है। देते हैं। इन गन्दी आदतों से मुक्ति पाने के लिए सभी समाज के लोगों को मिलकर प्रयास करना चाहिए। यह
भाई-चारे तथा प्रेम का त्यौहार है। इसे हर्ष से मनाना चाहिए।

2. भारत की राष्ट्रीय एकता
अथवा
राष्ट्रीय एकता का महत्त्व
[रूपरेखा-(1) प्रस्तावना, (2) राष्ट्र के अंग, (3) एकता की अनिवार्यता, (4) स्वार्थलोलुप राजनीति,
(5) एकता के मार्ग में अवरोध, (6) सम्पूर्ण वर्गों का योगदान, (7) उपसंहार।]

प्रस्तावना-वही राष्ट्र सुख, वैभव एवं प्रगति की मंजिल को स्पर्श करता है जहाँ समस्त नागरिक बन्धुत्व,
स्नेह, सद्भावना तथा एकता के सूत्र में आबद्ध हों। यदि नागरिकों के मनमानस में एकता एवं अपनेपन को भावना नहीं होगी तो वह राष्ट्र पतन के गर्त में चला जायेगा। राष्ट्र के अंग-राष्ट्र के तीन अंग होते हैं। प्रथम वहाँ के निवासी, द्वितीय संस्कृति, तृतीय सभ्यता। ये तीनों चीजें ही एक राष्ट्र का निर्माण करती हैं तथा उन्हें एकता के सूत्र में पिरोती हैं। सभ्यता यदि शरीर है तो राष्ट्र उसका प्राण है। इसीलिए राष्ट्ररूपी शरीर के लिए संस्कृतिरूपी प्राण को बनाए रखना अत्यावश्यक है। एकता की अनिवार्यता-आज समस्त विश्व में आतंकवाद अपना सिर उठा रहा है। निरीह लोगों की हत्या करके ये आतंकवादी अपने कुत्सित एवं घृणित इरादों को भी अंजाम दे रहे हैं। गुजरात में जो कुछ हुआ वह इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। अत: आज के युग में राष्ट्रीय एकता परमावश्यक है। भारत के अभिन्न अंग कश्मीर में पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद की एजेन्सियाँ लगातार हमला कर रही हैं। असंख्य क्षेत्रीय लोग मारे जा चुके हैं। वहाँ से पलायन कर चुके हैं। अब कश्मीर से धारा 370 हटा दी गई है अब वहाँ केन्द्र का शासन है। हमारी फौज भी इस दिशा में सही निर्णय ले रही हैं। अब वहाँ शान्ति स्थापित होने की उम्मीद है। स्वार्थलोलुप राजनीति-ये स्वार्थी राजनीतिज्ञ, राष्ट्र के समक्ष अवसर मिलते ही गम्भीर संकट खड़ा कर देते हैं। इन्हें नैतिकता तथा राजनीतिक स्तर का तनिक भी ध्यान नहीं रहता।
एकता के मार्ग में अवरोध-एकता के मार्ग में कुछ तत्व आज भी अवरोध बने हुए हैं। अंग्रेजों ने इस देश की धरती पर ऐसे विषैले बीजों को बो दिया है जो आज भी पनप रहे हैं। आज अनेक विघटनकारी शक्तियाँ हमारे देश का नाश करने पर तुली हुई हैं। अगर राष्ट्र के कर्णधार देश या राष्ट्र की एकता को स्थिर रखने का प्रयास करते हैं तो वे इसमें बाधा डालने का प्रयत्न करते हैं। भारत की भूमि पर ही भारत के खिलाफ प्रपंच रचकर यहाँ की अखण्डता को खण्डित करना चाहते हैं। आतंकी संगठन भाषायी आधार पर भी भड़काने का काम करते हैं। सभी वर्गों का योगदान-राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता को सुरक्षित रखने के लिए सभी वर्गों का योगदान अपेक्षित है। सरकार तथा समाज दोनों मिलकर ही सफलता का मार्ग निकालेंगे। विद्यार्थी, राजनीतिक, मजदूर, धर्म सुधारक एवं वैज्ञानिक सभी को किसी न किसी रूप में राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने में सहयोग देना चाहिए। सभी वर्गों में एक-दूसरे के धर्म के प्रति सम्मान होना चाहिए। आर्थिक स्वतन्त्रता भी परमावश्यक है। किसी शायर ने ठीक ही कहा है “जब जेब में पैसा है तब पेट में रोटी है, तो हर एक शबनम
मोती है।”
उपसंहार-आज साम्प्रदायिकता का जहरीला नाग मानवता को डसने के लिए अपना फन फैला रहा है, सबसे प्रथम उसका फन कुचलना होगा। देश के कर्णधारों को सत्ता लोलुप एवं स्वार्थ की भावना से ऊपर उठकर राष्ट्र का हित चिन्तन करना होगा तभी राष्ट्र में एकता के स्वर गुंजित होंगे तथा निम्न राग दोहराना होगा-“सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।”

3. भारत की बढ़ती जनसंख्या

[रूपरेखा-(1) प्रस्तावना, (2) जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न अन्य समस्याएँ, (3) अभाव की स्थिति,
(4) जनसंख्या वृद्धि का प्रभाव, (5) जनसंख्या वृद्धि की समस्या का समाधान, (6) उपसंहार।]
प्रस्तावना-विश्व के विभिन्न देश अपनी-अपनी समस्याओं से घिरे हैं। उसी तरह भारतीय गणराज्य भी कई समस्याओं से घिरा हुआ है। जिनमें सर्वोपरि है- भारत की बढ़ती जनसंख्या। बढ़ती हुई जनसंख्या के साथ ही अन्य अनेक समस्याएँ स्वतः ही उत्पन्न होती रहती हैं जिससे देश की तरक्की के विषय में जारी की गई योजनाएँ प्रभावित हो जाती हैं। भारत में जनसंख्या की वृद्धि एक गम्भीर समस्या है, लेकिन यहाँ के नागरिक उसके प्रति बिल्कुल भी गम्भीर नहीं हैं।
जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न समस्याएँ-जनसंख्या वृद्धि एक ऐसी समस्या है, जो अन्य अनेक समस्याओं को जन्म देती है। उन समस्याओं में सबसे बड़ी समस्या है-बढ़ते लोगों को रोटी देने की, उनके लिए वस्त्र आदि की व्यवस्था करने की तथा उन्हें आवास प्रदान करने की। इनकी समस्याओं के साथ ही, उनको उचित शिक्षा देने, उन लोगों की स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं के सुलझाने की, स्वच्छ पानी देने, स्वच्छ वातावरण प्रदान करने सम्बन्धी विभिन्न समस्याएँ पैदा हो जाती हैं।
अभाव की स्थिति-देश ने आजादी प्राप्त की। इसके साथ ही विकास योजनाएँ प्रारम्भ हुई। कृषि, उद्योग एवं व्यवसाय के क्षेत्रों में विकास तीव्र गति से बढ़ने लगा। खेती, कारखानों में उत्पादन शुरू हुआ। नई तकनीक अपनाई गई। कृषि आधारित उद्योग पनपने लगे। विकास तो अपनी तीव्र गति से होने लगा परन्तु बढ़ती
जनसंख्या ने उसकी गति को बहुत ही प्रभावित कर दिया। विकास के कार्यों के लिए राष्ट्र हित में कर्ज लिया जाने लगा। देश जिस गति से आगे बढ़ता, उतनी गति विकास के क्षेत्र में नहीं पकड़ सका। इस जनसंख्या वृद्धि ने सभी क्षेत्र के विकास सम्बन्धी कार्यों को ठप्प कर दिया। जनसंख्या वृद्धि का प्रभाव-जनसंख्या की बढ़ोत्तरी ने अपना प्रभाव सभी क्षेत्रों में दिखाया है। शिक्षा का क्षेत्र भी प्रभावित हुआ, यातायात व्यवस्था-रेल परिवहन, सड़क परिवहन आदि का विकास रुक गया। भोजन, पानी, आवास व वस्त्र आदि की समस्या से ग्रसित भारतीय समाज फिर से अभावग्रस्त होने लगा। परन्तु भारतीय सरकार ने शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, कल-कारखानों और व्यवसाय के क्षेत्र में तीव्र विकास करना शुरू किया। बढ़ती जनसंख्या को रोजगार देने की दिशा में प्रभावकारी कदम उठाया। परन्तु इन सभी समस्याओं के
समाधान के साथ ही साथ अन्य अनेक समस्याओं; जैसे- भ्रष्टाचार, स्वास्थ्य समस्याओं और प्रदूषण समस्याओं ने देश को बुरी तरह जकड़ा हुआ है। साथ ही बेरोजगार लोगों की फौज प्रतिवर्ष बढ़ जाती है। इस दशा में तो विकास दर गिरती लग रही है। इस तरह इस जनसंख्या वृद्धि की समस्या ने अनेक ऐसी समस्याओं को जन्म दे दिया है जिनका समाधान शायद निकट भविष्य में होता दिखाई नहीं पड़ता।

निबन्ध-लेखन

जनसंख्या वृद्धि की समस्या का समाधान-राष्ट्रीय समस्या बनी जनसंख्या वृद्धि के हल के लिए किए गए उपाय भी प्रभावहीन होते जा रहे हैं। लोगोंम इस समस्या के निराकरण के लिए जागृति पैदा की जा ही है। उन्हें बताया जा रहा है कि जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण करें। नियोजित परिवार ही सुखी हो सकता है,
तरक्की कर सकता है,समृद्धि प्राप्त कर सकता है। सरकार की ओर से और व्यक्तिगत रूप से विविध संस्थानों शिक्षित बनें, अपनी सन्तान को, बालिकाओं और चालकों को शिक्षा ग्रहण कराये जिससे वे राष्ट्रहित की सोच द्वारा लोगों को इस समस्या के समाधान के उपाय बताए गए लोगों को उत्साहित किया जा रहा है कि वे भक तथा स्वयं को राष्ट्रकल्याण के मार्ग से जोड़कर कार्य करें।
उपसंहार-देशवासियों को राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान के लिए निरन्तर कार्य करना चाहिए। उन्हें जन-जागृति पैदा करके अपने कर्तव्य का और उत्तरदायित्व का पालन करना चाहिए।

4.विज्ञान के बढ़ते चरण
अथवा
विज्ञान से लाभ हानि
अथवा
विज्ञान के चमत्कार
अथवा
विज्ञान और मानव
[रूपरेखा-(1) प्रस्तावना, (2) आवागमन के साधन, (3) बिजली : एक वरदान, (4) कृषि में योगदान,
(5) चिकित्सा के क्षेत्र में योगदान, (6) श्रम की वचत, (7) अन्तरिक्ष के क्षेत्र में योगदान, (8) विज्ञान से खतरा,
(9) उपसंहार।]

प्रस्तावना-आज विज्ञान का युग है। विज्ञान ने विश्व में सभी क्षेत्रों में अपनी विजय पताका फहरा रखी है। यह अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आज के युग को यदि हम वैज्ञानिक युग का नाम दे दें। प्राचीन और आधुनिक काल में पूर्णत: विपरीत प्रतीत हो रहे हैं। रहन-सहन, खान-पान, वस्त्र पहनावा, यातायात तथा जीवन
प्रणाली पूर्णतः परिवर्तित हो गई है। उसमें नवीनता का समावेश हो चुका है। आज की दुनिया प्रतिक्षण बदलती दिख रही है। परिवर्तन ही विकास है।
आवागमन के साधन-आज आवागमन के साधन भी विज्ञान की कृपा से सर्वसुलभ हो गये हैं। रेल, मोटर साइकिल, स्कूटर, जलयान तथा वायुयान इस क्षेत्र में अभूतपूर्व चुनौती दे रहे हैं। राष्ट्रीय पर्वो एवं शोक के अवसर पर समस्त राष्ट्र के राष्ट्राध्यक्षों का एक मंच पर उपस्थित होना इस बात का ज्वलन्त उदाहरण है।
बिजली : एक वरदान-बिजली प्रतिपल एक दासी की भाँति सेवा में जुटी रहती है। कारखाने, रेडियो, टेलीविजन बिजली की सहायता से चलते हैं। बिजली से चलने वाले पंखे दोपहर में निरन्तर चलकर मानव को परम शान्ति प्रदान कर रहे हैं। यह मानव जीवन के लिए वरदान सिद्ध हो रही है। कृषि में योगदान-कृषि के लिए नये यन्त्र विज्ञान ने आविष्कृत किये हैं। विज्ञान द्वारा उपलब्ध रासायनिक खाद उत्पादन क्षमता में वृद्धि कर रहे हैं। रासायनिक दवाइयाँ फसल को बीमारियों से बचा रही हैं।
चिकित्सा के क्षेत्र में योगदान- एक्स-रे शरीर का आन्तरिक फोटो लेकर अनेक बीमारियों का पता लगा रहा है। कैंसर तथा एड्स जैसे रोगों पर निरन्तर शोध जारी है। परमाणु शक्ति भी विज्ञान की ही देन है। श्रम की बचत-विज्ञान के द्वारा आविष्कृत मशीनों के माध्यम से पूरे दिन का कार्य मनुष्य कुछ ही घंटों में समाप्त कर लेता है। बचे हुए समय को मनुष्य मनोरंजन या स्वाध्याय में व्यतीत करता है। अन्तरिक्ष के क्षेत्र में योगदान-अन्तरिक्ष के क्षेत्र में भी आज मनु पुत्र अपने कदम बढ़ा चुका है। जो चन्दा मामा कभी बालकों के लिए अगम बना हुआ था, आज वैज्ञानिक उसके तल पर पहुँचने में सक्षम विज्ञान से खतरा-हर अन्नई के पीछे बुराई लिपी रहती है। जहाँ विज्ञान ने सुख-सुविधाएँ प्रदान की।वहाँ अशान्ति तथा दु:ख का भी सूजन किया है। एक पटमयम अपार बिना
कर सकता है। अगर हम सावधानीपूर्वक विचार करें तो विदित होता है कि इनमें विज्ञान का नाम नहीं है जितना कि मानव की कुत्सित प्रवृत्तियाँ दोषी हैं। इसलिए विज्ञान को विवेक से नियन्त्रित रखन
उपसंहार-विज्ञान स्वयं में अच्छा-बुरा नहीं है। यह मानव के प्रयोग पर निर्भर है। आजार के गलत प्रयोग के फलस्वरूप ही दुनिया में विनाशकारी दृश्य नजर आ रहा है। अत: आज विज्ञान
आवश्यक है। का मानव के कल्याण के निमित्त प्रयोग करके सुख एवं समृद्धि का साधन बनाना है। इसी मैं सबका हित निति

5. भ्रष्टाचार-समस्या और समाधान
[ रूपरेखा-(1) प्रस्तावना, (2) भ्रष्टाचार के कारण, (3) भ्रष्टाचार से प्रभावित क्षेत्र, (4) भ्रष्टाचार दुष्परिणाम, (5) भ्रष्टाचार को रोकने के उपाय, (6) उपसंहार ।]
प्रस्तावना-भ्रष्टाचार का शाब्दिक अर्थ होता है-आचरण (व्यबहार या चरित्र) से गिरा हुआ। इसका तात्पर्य है कि जो व्यक्ति नैतिक रूप से पतित व्यवहार करता है वह अनैतिक और भ्रष्ट आचरण वाला हुआ करता है। जब कोई व्यक्ति सामाजिक व्यवस्था में न्याय के पक्ष से गिरकर मान्य नियमों का पालन करते हुए अपने गलत निर्णय लेता है और व्यवहार में गिरा हुआ हो जाता है, तो वह भ्रष्टाचारी कहा जाता है। वह इस तरह के व्यवहार को अपनी स्वार्थपरता के कारण किया करता है। अनुचित रूप से स्वयं लाभ प्राप्त करता है।

आचरण की भ्रष्टता, रिश्वतखोरी, कालाबाजारी, भाई-भतीजावाद फैलाकर जातीय आधार पर उल्लू सीधा करना, किसी वस्तु पर जान-बूझकर अधिक लाभ कमाने की दृष्टि से मूल्य वृद्धि कर देना, रुपये-पैसेलेकर कार्य करना, अपने तुच्छ लाभ के लिए दूसरों को बड़ी हानि पहुँचा देना आदि सभी आचरण भ्रष्ट (पतित)
कहे जाते हैं। आजकल देश व सम्पूर्ण समाज भ्रष्टाचार की गिरफ्त में आ चुका है। भारतीय संस्कृति, राजनीति, समाज, धर्म, व्यापार, उद्योग, कला एवं शासन-प्रशासन पूर्णतः भ्रष्ट हो चुका है। इस भ्रष्टाचार से मुक्ति पाना मुझे तो असम्भव ही लगता है।
भ्रष्टाचार के कारण-
(1) किसी क्षेत्र के अभाव के कारण उत्पन्न असन्तोष किसी को व्यावहारिक रूप से भ्रष्ट और पतित बना देता है। अपनी इस विवशता के कारण वह भ्रष्टाचारी हो जाता है।
(2) स्वार्थ के वशीभूत होकर सम्मान प्राप्त न होने से आर्थिक, सामाजिक पद-प्रतिष्ठा में कमी के कारण भ्रष्टाचार पनपने
लगता है।
(3) भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा कारण भाई-भतीजावाद, जाति-वर्ग एवं साम्प्रदायिकता, भाषावाद आदि के कारण उचित न्याय नहीं कर पाते और भ्रष्ट बन जाते हैं।
भ्रष्टाचार से प्रभावित क्षेत्र- भ्रष्टाचार का क्षेत्र बहुत ही विस्तृत है। जीवन का प्रत्येक भाग भ्रष्टाचार से प्रभावित है। किसी भी क्षेत्र का विधायक या सांसद हो, वह अपने निजी जीवन में किसी भी तरह प्राकृतिक अथवा अप्राकृतिक रूप में भ्रष्ट पाया जाता है, तो यह उसकी महान गलती है। हमारे ऊपर बैठी ईश्वरीय सत्ता के प्रति विश्वास और श्रद्धा समाप्त हो जाती है। इस भ्रष्टाचार ने सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक और आर्थिक सभी क्षेत्रों को इतना प्रदूषित कर दिया है कि वहाँ साँस लेना दूभर हो गया है।
भ्रष्टाचार के दुष्परिणाम-भ्रष्टाचार के दुष्परिणाम यह हुए हैं कि ईमानदारी और सत्यता विलुप्त होती जा रही है। बेईमानी और कपट का प्रसार होता जा रहा है। भ्रष्टाचार को मिटाना बड़ी चुनौती हो चुकी है। नकली माल बेचना, खरीदना, वस्तुओं में मिलावट करना, धर्म के नाम पर अधर्म का आचरण
करना, रिश्वतखोर अपराधी को रिश्वत के ही बल पर छुड़ा लेना, कालाबाजारी करना आदि भ्रष्टाचार के ही दुष्परिणाम हैं।

भ्रष्टाचार को रोकने के उपाय-भ्रष्टाचार संक्रामक रोग की तरह सब ओर फैलता जा रहा है। अत: समाज में व्याप्त इस भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कठोर दण्ड की व्यवस्था की जानी चाहिए। भ्रष्टाचार की दशा ऐसी है कि भ्रष्ट व्यक्ति रिश्वत देकर (भ्रष्टाचार के द्वारा) हो मुक्त हो जाता है। उसे राजदण्ड का कोई भय नहीं
है। उसके जीवन में शिष्ट आचरण की महत्ता बिल्कुल भी नहीं है। भ्रष्टाचारी को कठोर दण्ड से ही सुधारा जा सकता है। कितने ही ऊँचे प्रतिष्ठित पद पर आसीन भ्रष्ट व्यक्ति को कठोरतम दण्ड देकर दण्डित किया जाय। भ्रष्टाचारी का दण्डित किये बिना स्थिति में सुधार नहीं आ सकता। भ्रष्टाचारी को किसी भी सामाजिक उत्सव
में उपेक्षित किया जाना बहुत ही आवश्यक है।
उपसहार-भ्रष्टाचारी लोग समाज और राष्ट्र को बहुत बड़ी हानि पहुंचा रहे हैं। हमारे राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय चरित्र और राष्ट्रीय मूल्यों पर प्रश्नचिह लग चुका है। इसे मिटाने की दिशा में राजनैतिक लोगों और समाज के प्रबुद्ध लोगों को आगे आना होगा और स्वयं को सर्वप्रथम न्यायवादी और शिष्टाचारी सिद्ध करना
होगा।

6. वृक्षारोपण
अथवा
वन महोत्सव
अथवा
हरियाली से खुशहाली
[रूपरेखा-(1) प्रस्तावना, (2) वृक्षों पर कुठाराघात, (3) वृक्षों की उपयोगिता, (4) सरकार का प्रयास, (5) उपसहार।

प्रस्तावना- भारत प्रकृति का पालना है। यहाँ की धरती पर चहुँओर हरियाली दृष्टिगोचर होती है। कहीं-कहीं वनों में मयूर नृत्य करते हुए नजर आते हैं तो कहीं कोयल को मधुर कूक सुनायी देती है। यह हरियाली, सुषमा वृक्षों के कारण अस्तित्व में है। हमारे देश में प्राचीन काल से ही वृक्षों को अति महत्वपूर्ण
स्थान दिया गया है। वृक्षों की छाया में बैठकर ही ऋषि-मुनियों ने ज्ञान को अर्जित किया था। प्राणिमात्र के पालन-पोषण के उपयोगी तत्वों के स्रोत वन ही थे। अत: इनके आरोपण और संरक्षण की अति आवश्यकता है।वृक्षों पर कुठाराघात-आज का मानव पूरी तरह भौतिकवादी बन गया है। लोभ के वशीभूत होकर उद्योगों के नाम पर विशाल पैमाने पर वृक्षों का विनाश कर रहा है। उन्हें कटने में कुछ ही समय लगता है। प्रकृति
से दूर होने के कारण आज मनुपुत्र अनेक रोगों का शिकार हो रहा है। वृक्षों की उपयोगिता-वृक्ष मानव के लिए बहुत ही उपयोगी हैं। वनों से जीवनदायिनी औषधि प्राप्त होती है। भवनों को बनाने के लिए दियासलाई तथा कागज बनाने में भी वनों को लकड़ी आवश्यक है। इन वृक्षों से फल-फूल, वनस्पति, औषधि, जड़ी-बूटियाँ बहुत प्राप्त होती हैं। धरती पर प्राणवायु संचरित होती है।
वनों से पहाड़ों का कटाव रुकता है। नदियों को उचित बहाव मिलता है। इमारती लकड़ी, आश्रय आदि सभी
मिलते हैं। क्ष विषाक्त गैस कार्बन डाइ-ऑक्साइड का शोषण करके मानव को बीमारियों से बचाते हैं। सरिता के किनारे लगे वृक्ष भूमि के कटाव को रोकते हैं। वृक्ष लगाना एक तरह से परोपकार की कोटि में आता है। ये हमें प्राण वायु देते हैं।
सरकार का प्रयास-हमारी राष्ट्रीय सरकार ने आज वनों की सुरक्षा तथा वृक्षों को बढ़ाने का संकल् लिया है। प्रत्येक वर्ष वन महोत्सव सप्ताह सम्पन्न किया जाता है। यदि कोई स्वार्थी व्यक्ति इन वृक्षों को काट है तो कानून की दृष्टि से वह अपराध का भागी होता है।

उपसंहार-हम सबनी वृक्षों के पालवन पर्व xिam A अलपूर्ण लगाना देना aftsm लगाने के लिए लोगही के अनमानस में नयी उमंग जानी चाहिए वृक्ष की शिनासकालीन सन्निहित है।

7.विद्यार्थी जीवन
[सपरेखा-1) प्रस्तावना, (2) विद्यार्थी जीवन का अहम विनाशी कसाल विद्यार्थी जीवन, ७) अनुशासनहीनता को दूर किया जा सकता है,Mause बाधा नहीं पहुँचाता। परन्तु विद्यार्थी जीवन का काल है जिसमें विद्यार्थी विद्या का विधान कात है। इस विद्यार्जन की प्रक्रिया में एक कम होता है। जितनी अवधि तक विद्यार्थी विधान करता है सरकार जीवन विद्यार्थी जीवन कहलाता है।
विद्यार्थी जीवन का पालन-विद्यार्थी जीवन जिटली का जर्षिय बाल होता है। इसी जीवन निर्य अपने भविष्य के जीवन की आधारशिला रखता है। यहीं से मुटा भी दह जीवन की सही मानतीजस्ता (क) पर पर विद्यार्थी के भविष्य का भवन खड़ा हो पाता है जो बहुत ही बालक होगा। विद्यार्थी जीवन में ही एक छात्र अमन नारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक गुणी की विकास की एक दिशा प्रदान करता है। इन गुणों के विकसित होने पर ही छह विद्यार्थी व्यक्ति एक व्यकिल का भी विद्यार्थी के लक्षण-विद्यार्थी का जीवन किसी तपस्वी है जीवन से काकटर नहीं होता तिसराती की कृपा प्राप्त करना बहुत ही कठिन है। विद्या कभी भी आराम से, समुन्छ त प्राप्त नहीं हो सकती। जीटा
गृहत्यागी, अन्याहारी, विद्यार्थी पत्र माणाम् उपर्युक पयांश में बताए गए लक्षणों बाला विद्यार्थी अपने जीवन में सदैव सतना होता है। दह औदन आधुनिक विद्यार्थी जीवन-आज हमारे देश की समाज व्यानरमा तहखड़ा रही है। विद्यार्थी ने आन विद्यादेवी की आराधना का मन्दिा नहीं रह गया है। वह तो उई मनोरजन तथा समय काटने का स्थल पर रह गया है। विद्यार्थी में उद्दण्डता और असत्यता बा बनाए बैठी है। परिक्रमा करने से अब वह पीछे हट रहा है। उपका लक्ष्य प्राप्त करना, केवल धीखा और चालापही रह गया है। वह अनुशासनहीन होकर ही अपना कलंकित बना लिया है।
अनुशासनहीनता को दूर किया जा सकता है, अनुशासनहीनता की टू करने के लिए विद्यार्थी अमन अग्री की अनुशासित जीवन ये सीख प्राप्त करें। विद्यालयों के वातावरण को सही कर देना चाहिए। अध्यापकों की विशेष रूप से विद्यार्थियों की प्रत्येक प्रक्रिया पर सख्त नजर रखनी होगी। उन प्रति अपनी आन्दाम का
भी प्रभाव अदना पड़ेगा। अार्यहर-आज का विद्यार्थी कल के राष्ट्र है कर्णधार है। अत: इनें आपने अदा ने वैज्ञानिक के. कैच विचारक के, वे चिन्तनकर्ता के महान गुणों को अपने में विकसित करते हुए आपने अभिन्नाभित नव्या गुणों को अपने अन्दर विकसित कर लेना चाहिए। एक आदर्श नागरिक बनकर राष्ट्र की सेवा करते हुए राष्ट्रवामी का पालन कर सकते में समर्थ होते हैं। किसी विद्वान ने उचित ही कहा है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है। शरीर की जय

प्रस्तावना-जीवन में वही मनुष्य प्रसन्नतापूर्वक जीवनयापन कर सकता है,जो व्यस्थ एवं एकात। निरोग बनाने के लिए सम्यक् खान-पान के साथ ही नियमित रूप से व्यायाम करना तथा खलना परमायापक है। खेलों के माध्यम से शरीर स्वस्थ रहता है। साथ-साथ भरपूर मनोरंजन भी होता है। मनमस्तिष्क एवं खेल-मानव के मन तथा मस्तिष्क से खेल का घनिष्ठ सम्बन्ध है। खिलाड़ी अश रुचि के अनुसार खेल का चयन करता है। आज का जीवन संघर्षमय है। मनुष्य दिनभर रोजी-रोटी की समस्या को हल करने में लगा रहता है। दिनभर की मानसिक थकान को मिटाने के लिए मानव खेल के मैदान में उतरता है। इससे टप असीम का एवं ताजगी का अनुभव होता है।
खेलों के प्रकार-प्रमुख रूप से दो प्रकार के खेल खेलने का प्रचलन है। एक बे जो घर के अन्य खेले जाते हैं। दूसरे प्रकार के खेल मैदानों में खेले जाते हैं। घर के अन्दर खेलने वाले खेल लूटी, टॉलय, शतरंज, कैरम आदि हैं। मैदानों में खेले जाने वाले खेलों के अन्तर्गत हॉकी, क्रिकेट, फुटबॉल, कबडी तय बास्केटबॉल इत्यादि हैं। खेलों का महत्व-खेल मनोरंजन का सबसे उत्तम साधन है। इससे मानव की थकान दूर होती है। समय का सदुपयोग होता है। सामाजिक भावना का भी खेल के मैदान में पल्लवन होता है। इससे जीवन में निखार तथा प्रेम का अभ्युदय होता है।
खेल हमें अनुशासन एवं समय का पाठ पढ़ाते हैं। जीवन में संघर्षों से जूझने की शक्ति आती है। साहस, धौरता, गम्भीरता तथा उदारता के भाव भी जाग्रत होते हैं।
उपसंहार-भली प्रकार चिन्तन एवं मनन करने से यह तथ्य उजागर होता है कि खेलों का जीवन में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है। खेल यथार्थ में शिक्षा एवं जीवन का एक भाग है। खेलों से खेल भावना के साथ ही भाईचारे की भावना का भी विकास होता है। श्रम के प्रति निष्ठा खेलों से उत्पन्न होती है। हार को प्रसन्नतापूर्वक
सहन करने की क्षमता का विकास होता है। आज आवश्यकता इस बात की है कि हमें राजनैतिक दांव-पेंच में न उलझकर खेलों को प्रोत्साहन देना चाहिए। छात्रों में खेल के मैदान में खेल भावना विकसित होती है। उसके सहारे प्रगति की मंजिल पर निरन्तर अग्रसर होते जाते हैं।

10. पुस्तकालय
अथवा
पुस्तकालय का महत्व
[रूपरेखा-(1) प्रस्तावना, (2) पुस्तकालय का अर्थ, (3) पुस्तकालयों के प्रकार, (4) पुस्तकालयों से
लाभ, (5) विख्यात पुस्तकालय (6) उपसंहार।]
प्रस्तावना-मनुष्य के मनमानस में जिज्ञासा की भावना प्रतिपल जाग्रत होती रहती है। उसकी यह आकांक्षा रहती है कि सीमित समय में अधिक से अधिक जानकारी हासिल कर सके। लेकिन प्रत्येक मनुष्य की अपनी सीमाएँ होती हैं। प्राय: प्रत्येक मनुष्य में इतनी क्षमता नहीं होती कि मनवांछित पुस्तकें क्रय करके
उनका अध्ययन कर सके। पुस्तकालय मानव की इसी इच्छा की पूर्ति करता है। पुस्तकालय का अर्थ-पुस्तकालय का अर्थ है-‘पुस्तकों का घर’, जिस जगह अनेक प्रकार की पुस्तको का संग्रह होता है, उसे पुस्तकालय कहा जाता है। पुस्तकालयों में मानव मन में उमड़ती-घुमड़ती शंकाओं का निराकरण करके आनन्द की अनुभूति प्राप्त करता है। पुस्तकालयों के प्रकार-जिन्हें पुस्तकों से लगाव होता है वे अपने घर में निजी पुस्तकालय बना लेते हैं। विद्यालय, महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालयों में भी पुस्तकालय होते हैं। सार्वजनिक पुस्तकालय भी होते हैं जिनमें अधिक से अधिक लोग ज्ञान अर्जन कर सकते हैं। सामाजिक एवं साहित्यिक संस्थाएँ ऐसे पुस्तकालयों का संचालन करती हैं। आज पुस्तकों की माँग के फलस्वरूप चलते-फिरते पुस्तकालय भी अवलोकनीय हैं।
इसके अतिरिक्त वाचनालयों में दैनिक, साप्ताहिक, मासिक पत्रिकाएँ भी सुगमता से पढ़ने को उपलब्ध हो जाती हैं।

अपने ज्ञान का विकास भी करता है। पुस्तकालय के अमूल्य प्रन्यों से हमें धार्मिक, सामाजिक एवं आर्थिक पुस्तकालयों से लाभ-पुस्तकालय ज्ञान-विज्ञान, साहित्य एवं संस्कृति का अश्लय कोष होते हैं। प्राचीन ग्रन्थ भी यहाँ उपलब्ध होते हैं। विकार हर विषय की जिज्ञासा शान्त करते हैं। पुस्तकालयों में पाठक विभिन्न प्रकार की पत्र-पत्रिकाओं का अध्ययन करके मनोरंजन के साथ-सा
सुधारों की प्रेरणा मिलती है। विख्यात पुस्तकालय-पुस्तकालय प्रत्येक समृद्ध राष्ट्र की आधारशिला होते हैं। नालन्दा तथा तक्षशिला में भारत के गौरवमयी पुस्तकालय थे। आज भी कोलकाता, दिल्ली, बनारस, प्रयागराज, आगरा, पटना आदि
में कई प्रसिद्ध पुस्तकालय है।
उपसंहार-पुस्तकालय ज्ञान का ऐसा पवित्र एवं स्वच्छ सरोवर है जिनमें स्नान करके मन एवं मस्तिष्क को एक नयी ऊर्जा प्राप्त होती है। हमारा यह कर्तव्य बनता है कि हम पुस्तकालयों का क्षमता के अनुसार प्रयोग करने का अधिक से अधिक प्रयत्न करें। पुस्तकालय के अपने कुछ निर्धारित नियम होते हैं जिनका पालन करना हर मानव का दायित्व है। आज हमें देश की धरती पर एक ऐसे पुस्तकालय की स्थापना करनी चाहिए, जहाँ ज्ञान-विज्ञान, साहित्य, कला एवं संगीत सभी विषयों की पुस्तकें आसानी से उपलब्ध हो सके। उन्नत पुस्तकालय देश के भावी कर्णधारों के लिए एक अमूल्य धरोहर है जो उनके जीवन के लिए प्रगति का एक सबल माध्यम है।

11. कम्प्यूटर
अथवा
कम्प्यूटर की उपयोगिता/महत्व
[रूपरेखा-(1) प्रस्तावना, (2) विज्ञान की महत्वपूर्ण देन, (3) क्या है कम्प्यूटर?, (4) कम्प्यूटर का आविष्कार, (5) शिक्षा के क्षेत्र में कम्प्यूटर, (6) अन्य क्षेत्रों में कम्प्यूटर का प्रयोग, (7) कम्प्यूटर से लाभ, (8) उपसंहार।]
प्रस्तावना-विज्ञान ने आज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपना जवरदस्त प्रभाव छोड़ा है। उसकी सहायता से मनुष्य ने जीवन में काम आने वाली अनेक उपयोगी वस्तुओं और मशीनों का आविष्कार किया है। इन मशीनों ने मनुष्य की व्यस्तता प्रधान जीवन-शैली को सुखकर बनाया है। सुविधाएँ दे दी गई हैं। कम्प्यूटर की सहायता से मनुष्य ने अपने लिए श्रम, समय और शक्ति की बचत कर डाली है। अपनी बची हुई शक्ति, श्रम
और समय को अन्य किसी काम में लगाकर अपने लिए उपयोगी बना लेता है और उसका सीधा लाभ प्राप्त करता है।
विज्ञान की महत्वपूर्ण देन–’कम्प्यूटर’ विज्ञान का अनोखा उपहार है। इसकी सहायता से सही और सरल तरीके से नाप-तौल कर सकते हैं। उसके आँकड़े भी आसानी से तैयार किए जा सकते हैं। कम्प्यूटर की सहायता से हमें तत्काल ही स्थितियों का ज्ञान हो जाता है। इस मशीन से एक ही बार में अन्य कई काम किये
जा सकते हैं।
क्या है कम्प्यूटर?-कम्प्यूटर यान्त्रिक मस्तिष्कों का समन्वयात्मक एवं गुणात्मक योग है जिससे हमें त्रुटिहीन जानकारी बहुत कम समय में प्राप्त हो जाती है। इससे प्राप्त गणनाएँ शुद्ध, उपयोगी तथा त्वरित हुआ करती हैं।
इसके सारे कार्य संकेतों पर अवलम्बित होते हैं। ये संकेत गणितीय भाषा में होते हैं। बड़े-बड़े रिकॉर्डी को कम्प्यूटर की स्मृति भण्डार में संचित किया जाता है। इच्छानुसार इन्हें उपयोग के लिए प्राप्त कर सकते हैं। कम्प्यूटर का आविष्कार-कम्प्यूटर विज्ञान की आधारशिला अंग्रेज गणितज्ञ चार्ल्स बावेल ने उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य भाग में रखी। इसका आविष्कार सन् 1940 में बेल हेग नामक विद्वान ने किया। इसकी प्रणाली का चरम विकसित रूप सोवियत रूस और अमेरिका में देखने को मिलता है। शिक्षा के क्षेत्र में कम्प्यूटर-शिक्षा के क्षेत्र में कम्प्यूटर का प्रयोग अधिकाधिक किया जा रहा है। विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों में अनेक पाठ्यक्रमों के शिक्षण का कार्य कम्प्यूटर द्वारा किया जा रहा है।

अन्य क्षेत्रों में कम्प्यूटर का प्रयोग-सेना, डाक-तार विभाग, चिकित्सा, यातायात व्यवस्था, पुलिस एवं न्याय व्यवस्था में तथा व्यावहारिक जीवन के अनेक क्षेत्रों में कम्प्यूटर की उपयोगिता निरन्तर वृद्धि की ओर अग्रसर है।
कम्प्यूटर से लाभ-आज भौतिक युग है। मानव अपनी दिन-प्रतिदिन की समस्याओं को हल करने के लिए अथक् श्रम में जुटा रहता है। मानव ने कार्य को शीघ्र करने की भावना के फलस्वरूप अपने बुद्धिकौशल से कम्प्यूटर की खोज की।
उपसंहार-कम्प्यूटरों से सहायता प्राप्त करने के लिए इसकी सारी जानकारी रखना अनिवार्य है। अनुभव से अपना कार्य-क्षेत्र बढ़ाया जा सकता है। कम्प्यूटर की वर्तमान समय में व्यापक स्वीकार्यता को देखते हुए विद्यार्थियों के लिए इसकी शिक्षा ग्रहण करना अनिवार्य हो गया है। अत: आज के इस युग में कम्प्यूटर की
शिक्षा का प्रचार-प्रसार होना चाहिए।

12. राष्ट्रीय पर्व
अथवा
गणतन्त्र दिवस
[रूपरेखा-(1) प्रस्तावना, (2) गणतन्त्र दिवस का इतिहास, (3) 26 जनवरी के कार्यक्रम, (4)26 जनवरी का गौरव, (5) स्वतन्त्र भारत के नागरिकों का दायित्व, (6) उपसंहार ।]
प्रस्तावना-भारत त्यौहारों का देश है। इसकी धरती पर विभिन्न प्रकार के धार्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक त्यौहार सम्पन्न किये जाते हैं। परन्तु ये त्यौहार किसी धर्म, सम्प्रदाय अथवा जाति से जुड़े रहते हैं। लेकिन जो पर्व समस्त देश में एक साथ मनाया जाता है उसे राष्ट्रीय पर्व को संज्ञा से विभूषित किया जाता है।
इसी श्रृंखला में 26 जनवरी हमारा राष्ट्रीय पर्व है। हर वर्ष 26 जनवरी को विशेष उल्लास के साथ यह पर्व मनाया जाता है क्योंकि इसी दिन हमारे देश को पूर्ण गणतन्त्र घोषित किया गया था। गणतन्त्र दिवस का इतिहास-यद्यपि सन् 1857 में स्वतन्त्रता की चिंगारी भड़की थी, परन्तु पारिवारिक फूट का लाभ उठाकर अंग्रेजों ने इन आन्दोलनों को कुचल दिया। परन्तु तिलक, गाँधी, सुभाष तथा नेहरू ने देश को आजाद कराने का प्रण लिया। राजनीतिक क्षितिज पर 1947 को भारत को आजादी मिली। 26 जनवरी सन् 1950 से हमारा संविधान लागू हुआ और यह दिन हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण है। अंग्रेजों के गवर्नर जनरल
की जगह भारत का शासन राष्ट्रपति के हाथों आया। इस भाँति 26 जनवरी की महिमा सर्वत्र व्याप्त है। 26 जनवरी के कार्यक्रम-26 जनवरी को सभी जगह ध्वजारोहण किया जाता है। सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। प्रभात फेरियाँ निकाली जाती हैं। दिल्ली में सैनिकों की परेड भी उत्साहवर्द्धक होती है। आकाशवाणी से राष्ट्रपति तथा प्रधानमन्त्री के भाषण प्रसारित होते हैं। रात्रि में भी दिन जैसा प्रकाश होता है।
26 जनवरी का गौरव-यह दिन हमें देश के लिए सर्वस्व बलिदान करने की याद दिलाता है। दिल्ली में आयोजित विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम देश के उत्थान के परिचायक हैं। स्वतन्त्र भारत के नागरिकों का दायित्व-स्वतन्त्र भारत ने अपनी आजादी और इसको अखण्डता की सुरक्षा के लिए अति महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। हमारी सीमाओं की सुरक्षा, आन्तरिक शान्ति व्यवस्था में सैनिक बल और अर्द्ध-सैनिक बल अपना उत्तरदायित्व निभाते हुए पूर्ण सहयोग कर रहे हैं। साथ ही सम्पूर्ण जनता उनकी अभिवृद्धि और खुशहाली के लिए सहयोग के साथ प्रार्थना भी करती है। यद्यपि देश में आतंकवादी एजेन्सियाँ मिलकर अपना कार्य कर रही हैं, परन्तु हमारे सैनिक व सुरक्षा बल उस आतंकवाद को समूल नष्ट करने के लिए तत्पर हैं, सक्षम हैं। गणतन्त्र दिवस का पर्व हम सभी भारतीयों का आह्वान करता है कि अभी भी वास्तविक रूप से गणतन्त्र की स्थापना में कुछ कमी है। वह कमी है सभी को सामाजिक व्यवस्था में समानता के अधिकार
की। आर्थिक एवं शैक्षिक रूप से विपन्न आम नागरिक भारत गणराज्य की ओर एकटक बेबसी की दृष्टि से देखने को मजबूर है। हमें उसके सपनों को एक नई दिशा प्रदान करने में अपनी भूमिका का निर्वहन करना है।
उपसंहार-हमारे देश में स्वतन्त्रता देवी का आगमन कठोर साधना एवं बलिदान के फलस्वरूप सम्पन्न करना सार्थक होगा।
है। अत: देश के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि इसे अण्ण बनाने में सहयोग दे। तभी इस पावन पर्व को

13. पर्यावरण प्रदूषण
अथवा
प्रदूषण : कारण और निदान
[रूपरेखा-(1) प्रस्तावना, (2) प्रदूषण का आशय, (3) प्रदूषण के कारण, (4) पर्यावरण प्रदूषण के निराकरण के उपाय, (5) उपसंहार।]
प्रस्तावना-आज पर्यावरण प्रदूषण विश्व के समक्ष एक विकराल समस्या की तरह उपस्थित है। पर्यावरण प्रदूषण ने मानव के जीवन को नरकतुल्य बना दिया है। आज विश्व में कोई भी देश ऐसा शेष नहीं है जो इस समस्या से ग्रस्त न हो। विश्व के वैज्ञानिक एवं मनीषी लोग इस समस्या के निवारण के लिए अथक
परिश्रम कर रहे हैं। साधन तलाश कर रहे हैं।
प्रदूषण का आशय-जल, वायु, पृथ्वी के रासायनिक, जैविक, भौतिक गुणों में घटित होने वाला अवांछनीय परिवर्तन प्रदूषण की श्रेणी में आता है। वर्तमान में विश्व नवीन युग में पदार्पण कर रहा है। लेकिन खेद का विषय है कि आज विषाक्त वातावरण उसके जीवन में जहर घोल रहा है।
प्रदूषण के कारण-प्रदूषण का सबसे अहम् महत्वपूर्ण कारण जनसंख्या वृद्धि है। बढ़ते हुए कल-कारखाने भी पर्यावरण प्रदूषण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। वाहनों से निकलने वाला धुआँ, पानी का शुद्ध न होना, ध्वनि प्रदूषण, नये आविष्कृत वाहन ये सभी पर्यावरण प्रदूषण को बढ़ावा दे रहे हैं। गन्दगी
फैलने से अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न हो रहे हैं। पर्यावरण को प्रदूषित करने के महत्वपूर्ण कारण हैं-(1) निरन्तर
बढ़ती हुई जनसंख्या। (2) वनों और वृक्षों का अनियोजित ढंग से काटा जाना। (3) शहरों के कूड़े-करकट का
सुनियोजित निस्तारण न किया जाना। (4) जल निकासी और उसके प्रवाह का अनुचित प्रबन्ध। पर्यावरण प्रदूषण के निराकरण के उपाय-वृक्षारोपण, ध्वनि नियन्त्रण यन्त्रों का प्रयोग, परमाणु
विस्फोटों पर रोक, कल-कारखानों में फिल्टर का प्रयोग नुकसानदायक, रासायनिक तत्वों को नष्ट करना, नदियों में प्रवाहित गन्दगी पर रोक, इन सभी के द्वारा हम प्रदूषण को पूर्णरूप से तो नष्ट नहीं कर सकते लेकिन उसे कुछ मात्रा में कम तो कर ही सकते हैं। प्रदूषण को रोकने वाले तत्वों में प्रधान तत्व हैं-वृक्षों का आरोपण, उनकी सुरक्षा और देखभाल का उचित प्रबन्ध। प्राचीन वनों को सुरक्षित रखा जाए। नवीन वनों का प्रबन्ध किया जाए। वृक्ष लगाये जाएँ। पौधों की सिंचाई व्यवस्था ठीक की जाए।
उपसंहार- पर्यावरण प्रदूषण के निवारण हेतु विश्व के समस्त देश निरन्तर प्रयासरत हैं। आशा है निकट
भविष्य में मनु पुत्र को इस समस्या से कुछ हद तक छुटकारा अवश्य प्राप्त होगा। क्योंकि बीमारी का तो इलाज
है लेकिन प्रदूषण द्वारा उत्पन्न रोग असाध्य हैं।

14.समाचार-पत्रों की उपयोगिता/महत्ता
अथवा
समाचार-पत्र
[रूपरेखा-(1) प्रस्तावना, (2) इतिहास, (3) विभिन्न व्यक्तियों को लाभ,(4) समाचार-पत्रों का महत्व, (5) सम्पादक का दायित्व, (6) अखबार प्रकाशन के आज के साधन, (7) स्वतन्त्रता से पूर्व समाचार-पत्रों का दायित्व, (8) युद्ध एवं विपत्ति में समाचार-पत्रों का दायित्व, (9) हानियाँ, (10) जनता का सम्बन्ध,
(11) उपसंहार।
प्रस्तावना-आज समाचार-पत्र जनजीवन का अभिन्न अंग बन गया है। प्रातःकाल उठते ही हर व्यक्ति चाय ग्रहण करने के साथ ही अखबार को पढ़कर अपना मनोरंजन कर लेता है। परिवार के सभी सदस्य अखबार पढ़ने एवं समाचार जानने के लिए लालायित हो उठते हैं। समाचार देश-विदेश की खबरों को जानने
का सर्वसुलभ साधन है। इतिहास-समाचार-पत्र का प्रचलन इटली के वेनिस नगर में तेरहवीं शताब्दी में हुआ। जैसे-जैसे मुद्रण
कला का विकास हुआ, समाचार-पत्रों का भी उसी गति से प्रचार एवं प्रसार हुआ।
विभिन्न व्यक्तियों को लाभ-बेरोजगार युवक रोजगार के विषय में, खिलाड़ी खेल के विषय में, नेता राजनीतिक हलचल के विषय में, व्यापारी वस्तु के भावों के विषय में सूचना समाचार-पत्रों के माध्यम से ही ज्ञात करते हैं।
समाचार-पत्रों का महत्व-आज विश्व की परिस्थिति निरन्तर जटिल होती चली जा रही है। जीवन संघर्षमय हो गया है, राजनीतिक गतिविधियाँ निरन्तर अपना रंग दिखा रही है, ऐसे में समाचार-पत्रों के माध्यम से इनके विषय में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इनके अभाव में ज्ञान का क्षेत्र अधूरा प्रतीत
होता है। सम्पादक का दायित्व-सम्पादकीय टिप्पणी पढ़कर ही किसी समाचार-पत्र का स्तर निर्धारित होता है। इसमें राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं को उजागर किया जाता है।
अखबार प्रकाशन के आज के साधन-आज हैण्ड कम्पोजिंग के स्थान पर कम्प्यूटर काम में लाया जाता है। इससे समाचार-पत्र का प्रकाशन सुलभ एवं सस्ता हो गया है। ज्ञान के प्रचारक एवं प्रमुख बाहक समाचार-पत्र, पाठकों के ज्ञान का विस्तार करता है। देश के कर्णधारों के आदर्शों से प्रभावित होकर जन-सामान्य उनका अनुगमन करके अपने जीवन को सफल बनाते हैं। स्वतन्त्रता से पूर्व समाचार-पत्रों का दायित्व-सम्पादकों ने अंग्रेजों के शोषण तथा अत्याचार को देश समक्ष अखबारों के माध्यम से निडरता से उजागर किया। ऐसा करने से उन्हें कठिनाइयों का सामना करना
पड़ा लेकिन वे अपने लक्ष्य से विचलित नहीं हुए। युद्ध एवं विपत्ति में समाचार-पत्रों का दायित्व-प्राकृतिक प्रकोपों की सूचना जन-सामान्य तक
समाचार-पत्रों के माध्यम से पहुँचती है। इसको पढ़कर समाजसेवी संस्थाएँ उन स्थानों तक यथासम्भव सहायता पहुँचाती हैं।
हानियाँ-कल्पित तथा झूठे समाचार-पत्र जन-सामान्य को भुलावे में डाल देते हैं। यदा-कदा इनके फलस्वरूप साम्प्रदायिक दंगों का जन्म होता है। जनता का सम्बन्ध-समाचार-पत्रों के माध्यम से सरकार जनता की भावनाओं से अवगत होती है।
उपसंहार-समाचार-पत्र राष्ट्र विशेष की अमूल्य सम्पत्ति होते हैं, इनकी तनिक-सी लापरवाही से राष्ट्र की विशेष हानि हो सकती है। अत: समाचार-पत्रों को अपने उद्देश्य के प्रति प्रतिपल सजग रहना चाहिए। ये राष्ट्र विशेष के जीवन्त प्रहरी हैं। इनके माध्यम से राष्ट्र अवनति के गर्त में जा सकता है। अत: इनका प्रतिपल जागरूक रहना अत्यावश्यक है।

15. दूरदर्शन
अथवा
दूरदर्शन से लाभ/हानि
[रूपरेखा-(1) प्रस्तावना, (2) दूरदर्शन की खोज, (3) उपयोगिता एवं महत्व, (4) हानियाँ,
(5) उपसंहार।
प्रस्तावना-महाभारत काल में व्यास मुनि द्वारा संजय को दिव्य चक्षु प्रदान किए गये थे जिससे कि वह
अंधे धृतराष्ट्र को महल में बैठे हुए ही युद्ध का आँखों देखा हाल सुना सकें। आज हम वही चमत्कार दूरदर्शन
के माध्यम से घटित होता हुआ प्रत्यक्ष रूप से देख रहे हैं। दूरदर्शन रेडियो का ही विकसित रूप है। रेडियो से
हम केवल आवाज या गीतों को केवल सुन ही पाते थे, लेकिन दूरदर्शन पर सुन और देख पाते हैं। बेतार-संवाद
प्रेषण का यह आधुनिकतम सफल आविष्कार है। इसके अन्तर्गत ज्ञान-विज्ञान तथा उल्लास की किरणें विखरी हैं।
दूरदर्शन की खोज-सन् 1927 में इंग्लैण्ड में एक इंजीनियर जॉन बेयर्ड ने दूरदर्शन का आविष्कार किया। इस विस्मयपूर्ण खोज ने संसार को चकित कर दिया। आज न केवल भारत, बल्कि सम्पूर्ण विश्व में टी. वी. का उच्च तकनीक प्रसार हो रहा है। गाँव-गाँव और नगर-नगर में इसने अपना स्थान बना लिया है। जिस प्रकार रेडियो किसी ध्वनि को विद्युत् तरंगों में बदलकर प्रसारित करता है और प्रसारित विद्युत् तरंगों को पुन: ध्वनि में बदल देता है, उसी प्रकार दूरदर्शन प्रकाश को विद्युत् तरंगों में बदलकर प्रसारित करता है।

उपयोगिता एवं महत्व-दूरदर्शन आधुनिक समाज में वैज्ञानिक प्रगति और मानवीय विकास की दृष्टि से अत्यधिक उपयोगी सिद्ध हुआ है। मनोरंजन के साथ-साथ शिक्षा के क्षेत्र में भी दूरदर्शन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। विभिन्न विषयों का शैक्षिक कार्यक्रम दूरदर्शन पर दिखाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त अन्य ज्ञानवर्षक पर दी जाती है। इसके अतिरिक्त हम अन्य अनेक राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और मनोरंजक
कार्यक्रम दूरदर्शन पर देख सकते हैं।
हानियाँ-हर एक वस्तु के दो पक्ष होते हैं एक अच्छा और दूसरा बुरा । दूरदर्शन से जहाँ अनेक लाभ । वहाँ उससे कतिपय हानियाँ भी हैं। इससे स्वास्थ्य और आँखों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। बच्चों की पढ़ाई में व्यवधान होता है। अनेक बार दूरदर्शन में खोये रहने के कारण चोरी की घटनाएँ भी हो जाती हैं। इससे सामाजिक परस्परता कम हो जाती है। लेकिन थोड़े अनुशासन एवं नियन्त्रण में रहकर इन हानियों से बचा जा सकता है।
उपसंहार-इस प्रकार दूरदर्शन हमारे मनोरंजन और ज्ञानवर्धन का सशक्त एवं प्रभावशाली माध्यम है। जिन स्थानों पर पहुँचना दुर्गम है वहाँ के दृश्य हम दूरदर्शन पर घर बैठे देख सकते हैं। पूरे परिवार के साथ बैठकर फिल्म देखने का आनन्द भी ले सकते हैं। इसमें सन्देह नहीं कि दूरदर्शन हमारी उन्नति एवं विकास में
अधिक सहायक हो सकता है। यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम किस प्रकार इसको अपने लाभदायक उपयोग में लाते हैं।

16. मेरा प्रिय खेल (बैडमिण्टन)
[रूपरेखा-(1) प्रस्तावना, (2) खेल के नियम, (3) बैडमिण्टन अन्तर्राष्ट्रीय खेल, (4) उपसंहार।]
प्रस्तावना-स्वास्थ्य रक्षा के लिए खेल अत्यन्त आवश्यक हैं। विद्यार्थी जीवन में तो खेलकूद आवश्यक रूप से विद्यालय में कराए जाते हैं। लेकिन आम लोगों के लिए भी खेल स्वास्थ्य और मनोरंजन के लिए आवश्यक और प्रिय बन जाते हैं। खेल कई प्रकार के होते हैं, जैसे-हॉकी, फुटबॉल, क्रिकेट, बैडमिण्टन, शतरंज, ताश, कैरम आदि। मेरा प्रिय खेल बैडमिण्टन है जिसमें कम से कम दो और अधिक से अधिक चार खिलाड़ी खेल सकते हैं। यह खेल मेरे लिए सुविधाजनक और आसान है। इसके लिए न तो क्रीड़ा मैदान में जाना होता है और न ही टीम जुटानी पड़ती है। इसमें दो खिलाड़ी, दो रैकिट और एक शटल कॉक को आवश्यकता होती है।
खेल के नियम-यह खेल बच्चों, किशोरों, वयस्कों और वृद्धों सभी का स्वागत करता है। इस खेल को घर के लोग या पड़ोसी मिल कर खेल सकते हैं। इस खेल में पुरुष और महिला के अनुसार 5 वर्ग हो जाते हैं-पुरुष एकल, पुरुष डबल्स, महिला एकल, महिला डबल्स और मिक्स्ड डबल्स। इस खेल के लिए 44 फीट लम्बा और 23 फीट चौड़ा समतल भूमि का टुकड़ा पर्याप्त है। क्षेत्र के बीच में एक नेट 5 फीट की ऊँचाई में दोनों ओर के लोहे के लट्ठों में बँधा रहता है। दोनों क्षेत्रीय भागों में साइड गैलरी (लम्बाई में) और पीछे की गैलरी चौड़ाई में होती है। टॉस जीतने वाला प्रायः सर्विस लेना पसन्द करता है। फिर रैकिट और शटल कॉक से खेल प्रारम्भ हो जाता है। पुरुषों के खेल में 15 मैच प्वॉइंट और महिलाओं में 10 मैच प्वॉइंट का होता है। मुझे अपने मित्र या पिताजी के साथ खेलने में बड़ा आनन्द आता है। यह खेल एकाग्रता का खेल है। इस खेल से स्वास्थ्य तो बढ़ता ही है साथ ही साथ एकाग्रता और फुर्तीलापन आता है। बैडमिण्टन अन्तर्राष्ट्रीय खेल-यह एक अन्तर्राष्ट्रीय खेल है। जापान, चीन, भारत, इण्डोनेशिया, कोरिया,
मलाया तथा यूरोपीय देश इस प्रतिस्पर्धा में भाग लेते हैं। बड़े ऊँचे हॉल इस खेल के लिए बनाए हुए हैं। दूरदर्शन पर हम इसका सीधा प्रसारण देख सकते हैं। प्रथम श्रेणी के अम्पायर नियमों के अनुसार अपने निर्णय देते हैं।
उपसंहार-यह खेल अन्य खेलों की तरह अधिक खर्चीला नहीं है। इसमें अधिक से अधिक मनोरंजन होता है। यह विश्व में अधिक लोकप्रिय हो रहा है। टेबिल टेनिस भी इसी वर्ग का खेल है। भारत के खेल मन्त्रालय को इस खेल को अधिक से अधिक प्रोत्साहन और सहायता देनी चाहिए। भारत में प्रतिभा की कमी नहीं है। क्रिकेट की भाँति यह खेल भी लोकप्रियता ग्रहण कर सकता है।

17. दहेज प्रथा
रूपरेखा-(1) प्रस्तावना, (2) दहेज का आशय, (3) दहेज प्रथा का प्रचलन एवं कारण, (4) दहेज प्रथा एक अभिशाप, (5) निराकरण के उपाय, (6) उपसंहार ।।
प्रस्तावना-धर्मप्रधान भारतवर्ष का मानचित्र सदैव गौरवशाली रहा है, लेकिन दुर्भाग्यवश इस मानचित्र पर दहेज के रूप में आज एक काला धब्या दृष्टिगोचर हो रहा है। इसने सम्पूर्ण देश के मानचित्र को अशोभनीय एवं कुरूप बना दिया है।
दहेज का आशय-दहेज का अर्थ उस सम्पत्ति से है जो एक पुत्री का पिता उसकी शादी में वर पत्र को देता है। प्राचीन काल में इसे स्वेच्छा से दिया जाता था तथा यह यौतुक के नाम से सम्बोधित किया जाता था लेकिन आज स्वेच्छा से दिये गये धन ने अनिवार्यता का रूप ग्रहण कर लिया है। आज के जमाने में वर पश्न
अनेक वस्तुओं की माँग करता है। आज दहेज रूपी दानव के कारण कितनी कन्याओं की माँग सूनी हो गयी तथा हँसती-खिलखिलाती जिन्दगी नरक समान हो गयी। उनके स्वप्न चकनाचूर हो गये। इनकी इच्छाओं को कोमल कलियों के सदृश मसल दिया गया।
दहेज प्रथा का प्रचलन एवं कारण-प्राचीन काल से ही दहेज का प्रचलन चला आ रहा है, लेकिन उस समय यह केवल कुलीन, सामन्तों एवं राजा महाराजाओं तक ही सीमित था। पुत्री की शादी में सामन्त लोग हीरे-जवाहरात, घोड़े, हाथी तथा दास-दासियाँ दहेज के रूप में दिया करते थे। सुभद्रा, द्रौपदी एवं उत्तरा की शादी में भी दहेज का उल्लेख है, लेकिन आज दहेज प्रथा ने लालच का रूप ले लिया है। वास्तव में, वर्तमान समय में धन से ही मानव की प्रतिष्ठा आँकी जाती है। लड़कियों के गुण, प्रतिभा,
बुद्धि एवं सौन्दर्य का कोई स्थान नहीं है। आज लड़की कुरूप या मंदबुद्धि है तो उसका पिता पैसे के बल पर अपनी लड़की को उच्च घर में ब्याह सकता है, लेकिन गुणवती एवं सुन्दर गरीब कन्या का पिता अपनी लड़की की शादी के बारे में सोच भी नहीं सकता।
दहेज प्रथा एक अभिशाप-समाज के लिए दहेज प्रथा कोढ़ की तरह अभिशाप सिद्ध हो रही है। निर्धन माँ-बाप की पुत्रियाँ आज कुँवारी तथा निराश हैं। दहेज देने में असमर्थ अपने माता-पिता को देखकर आत्महत्या करके मौत का आलिंगन कर रही हैं। आज कितनी ही रूपवती एवं शिक्षित कन्याओं को दहेज न
देने के कारण जलने पर मजबूर होना पड़ता है। निराकरण के उपाय-राष्ट्र के कर्णधार एवं सुधारक इसके निराकरण के लिए प्रयासरत हैं। केन्द्रीय सरकार इसे कानून के माध्यम से अपराध घोषित कर चुकी है, लेकिन इस समस्या से अभी छुटकारा नहीं मिल पाया है। इसके लिए अन्तर्जातीय विवाह सम्पन्न करने होंगे। दहेजलोलुप लोगों का सामाजिक बहिष्कार करना होगा। सामूहिक विवाह करने होंगे। समाज में ऐसी चेतना एवं जागृति लानी होगी कि कोई व्यक्ति दहेजलोलुप मनुष्यों के घर शादी में न जाए।
उपसंहार-वर्तमान में दहेज के प्रति यह धारणा पनप रही है कि इससे किसी तरह छुटकारा पाया जाए। इस दिशा में विभिन्न संगठन एवं युवा वर्ग सक्रिय हैं। विश्वास है कि दहेज प्रथा का उन्मूलन होकर रहेगा।

18. नारी शिक्षा
[रूपरेखा-(1) प्रस्तावना, (2) नारी शिक्षा की आवश्यकता, (3) नारी एवं शिक्षा, (4) उपसंहार।]
प्रस्तावना-शिक्षा का मानव जीवन से अटूट सम्बन्ध है। इसके अभाव में मानव जीवन की कहानी ही अधूरी है। आधुनिक युग में नारी की शिक्षा उतनी ही अपेक्षित है जितनी कि पुरुष की। शिक्षित नारी ही प्रगति की मंजिल पर चरण बढ़ा सकती है।
नारी शिक्षा की आवश्यकता-आज के व्यस्त एवं संघर्षशील युग में नारी शिक्षा की अत्यन्त आवश्यकता है। शिक्षित नारी अपनी सन्तानों को सुसंस्कारों से सम्पन्न कर सकती है। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई में समुचित योगदान करने में सहायक हो सकती है। घर-गृहस्थी के आय-व्यय को भली प्रकार सन्तुलित करके आर्थिक
बोझ को बहुत सीमा तक सन्तुलित कर सकती है। शिक्षित नारी विपत्ति के बादल मँडराने पर नौकरी करके परिवार को संकट से उबार सकती है। स्थायी होता है।
होती है। लोरी, पहेली तथा गाना गुनगुनाते हुए माँ बच्चे को शिक्षा प्रदान करती है। उसका प्रभाव अमिट तथा बच्चों के लिए घर ही नागरिक बनने की प्रथम पाठशाला होता है। माता ही इस पाठशाला की शिक्षिका नारी एवं शिक्षा-अब प्रश्न यह उठता होता है कि नारी के लिए किस प्रकार की शिक्षा-दीक्षा की व्यवस्था की जाए। नारी के लिए सबसे प्रथम गृह विज्ञान की शिक्षा देना परमावश्यक है। नारी का कार्यक्षेत्र घर होता है। उसे परिवार के कार्यों को सम्पन्न करने के साथ ही बच्चों को भी देखना तथा सँभालना पड़ता है। गृह विज्ञान की शिक्षा इस दिशा में बहुत ही लाभदायक सिद्ध होगी। आज नारी घर की सीमा से बाहर निकलकर पुरुष के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर जीवन संग्राम में
आगे कदम बढ़ा रही है। वह सामाजिक तथा राजनीतिक क्षेत्र में भी पुरुष के साथ सक्रिय भाग ले रही है। शिक्षा, विज्ञान, चिकित्सा तथा सांस्कृतिक क्रिया कलापों में भी उसके चरण निरन्तर गतिमान हैं। जीवन का ऐसा कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं है जिसमें आधुनिक शिक्षित नारी सहभागिनी न हो। दुर्भाग्य का विषय यह है कि आज भी नारी की शिक्षा का अनुपात उतना नहीं है जितना कि अपेक्षित है। की संख्या बहुत ही सीमित है। ग्रामीण अंचलों में आज भी अशिक्षित नारी जीवन के अभिशाप को विवशता की चट्टान के तले हाँफ हाँफ कर जी रही है। दकियानूसी तथा रूढ़िवादी लोग इस ओर से आँखें बन्द किए
उपसंहार-हर्ष का विषय है कि आज हमारे देश में नारी शिक्षा के महत्व को लोग समझ गए हैं। सरकार इस सन्दर्भ में आवश्यक कदम भी उठा रही है। सरकार के साथ-साथ जन-सहयोग भी परमावश्यक है। भारत को जनसख्या निरन्तर सुरसा के मुख की तरह बढ़ती जा रही है। उसकी तुलना में भारत में शिक्षित नारियों

19. जल ही जीवन है
अथवा
जल है तो कल है
रूपरेखा-(1) प्रस्तावना, (2) जल का महत्व, (3) जल के विभिन्न स्रोत, (4) जल का अभाव,
(5) जल समस्या का समाधान, (6) उपसंहार।
प्रस्तावना-सृष्टि की रचना जल, पृथ्वी, अग्नि, आकाश और वायु-पाँच तत्वों से हुई है। जल का इनमें महत्वपूर्ण स्थान है। संसार के दैनिक जीवन में भी जल आवश्यक तत्व है।
जल का महत्व-पृथ्वी के जीव-जन्तुओं, पशु-पक्षियों, फसलों, वनस्पतियों, पेड़-पौधों आदि सभी के लिए जल अनिवार्य है। बिना जल के इन सभी का रह पाना सम्भव नहीं है। जल से संसार में जीवन्तता दिखाई देती है। चारों ओर फैली हरियाली, फसलें, फल-फूल आदि सभी जल के कारण ही जीवित हैं। मानव तो बिना
जल के जीवित रह ही नहीं सकता है। अतः सृष्टि में जल विशेष महत्वपूर्ण है। रहीम लिखते हैं-
“रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरे मोती मानस चून॥’
जल के विभिन्न स्रोत-जल प्राप्त करने के कई स्रोत हैं। सागर में अथाह जल भरा है किन्तु वह खारी है इसलिए वह हर प्रकार की पूर्ति नहीं कर पाता है। पानी का मूल स्रोत वर्षा है। वर्षा का पानी ही नदियों, तालाबों, जलाशयों में एकत्रित होकर जल की पूर्ति करता रहता है। इसके अतिरिक्त पहाड़ों पर जमने वाली बर्फ
पिघलकर जल के रूप में नदियों में आती हैं। कुआँ, नलकूप आदि के द्वारा पृथ्वी के नीचे विद्यमान जल को प्राप्त किया जाता है। इस तरह विविध स्रोतों द्वारा जल की पूर्ति होती है।
जल का अभाव-विगत वर्षों में जल की निरन्तर कमी हो रही है। वर्षा कम हो रही है। धरती का जल स्तर लगातार गिर रहा है। जल की समस्या भारत ही नहीं संसार भर में हो रही है। कुछ स्थानों पर तो जल के लिए त्राहि-त्राहि मची है। कुछ लोगों का मानना है कि संसार का तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए ही होगा।
जल समस्या का समाधान-जल की कमी को देखते हुए यह आवश्यक है कि हम यह समस्या भयंकर रूप धारण करे उससे पहले ही जाग जाएँ। कम-से-कम जल नष्ट करें। जल का पूरी तरह सदुपयोग करें।
वर्षा के समय जो पानी नालों और नदियों के द्वारा बहकर समुद्र में पहुँच जाता है, उसे इकट्ठा करके उपयोग मे प्रति सजग रहना आवश्यक है। लाएँ। वर्षाकाल में पानी को पृथ्वी में नीचे पहुंचाया जाए तो जल स्तर ऊपर आएगा। इसलिए इस समस्या के
उपसंहार-यदि समय रहते जल संरक्षण की ओर ध्यान न दिया गया तो संसार का विनाश हो जाएगा। जल के बिना किसी का भी जीवित रहना सम्भव नहीं है। बिना जल के विनाश अवश्यम्भावी है। सत्य यह है कि जल ही जीवन है। इसलिए जल की पूर्ति आवश्यक है। अतः अब समय आ गया है कि बिना और विलय
किये मानव मात्र को जल के अपव्यय को रोकने के साथ-साथ उसके संरक्षण हेतु प्रभावी उपाय करने चाहिए। तभी हमारी आने वाली पीढ़ियों का भविष्य सुरक्षित हो सकेगा। यह सलाह नहीं, चेतावनी है।

20. राष्ट्रभाषा हिन्दी
अथवा
राष्ट्रभाषा का महत्व
[रूपरेखा-(1) प्रस्तावना, (2) राष्ट्रभाषा का स्वरूप, (3) राष्ट्रभाषा का महत्व, (4) राष्ट्रभाषा हिन्दी
(5) हिन्दी के मार्ग की बाधाएँ एवं उनका निराकरण, (6) उपसंहार ।],
“राष्ट्रभाषा राष्ट्र की महाशक्ति होती है।
अनेकता में एकता का नया बीज बोती है।’
प्रस्तावना-प्रत्येक राष्ट्र के कुछ प्रतीक होते हैं, जैसे-राष्ट्रध्वज, राष्ट्रगान आदि। इन्हीं प्रतीकों में हर राष्ट्र को एक मान्य भाषा होती है जिसे राष्ट्रभाषा का गौरव प्राप्त होता है। वह भाषा उस राष्ट्र की पहचान होती है। देश में अन्य भाषाएँ भी बोली जा सकती हैं किन्तु सम्पूर्ण राष्ट्र का सम्पर्क सूत्र राष्ट्रभाषा ही होती है।
इसलिए उसका विशिष्ट महत्व होता है।
राष्ट्रभाषा का स्वरूप-सामान्यत: किसी देश के अधिकांश लोगों द्वारा बोली जाने, समझी जाने वाली भाषा ही वहाँ की राष्ट्रभाषा होती है। राष्ट्रभाषा बनने के लिए कुछ बातें आवश्यक हैं-
(1) बहुसंख्यक लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा,
(2) लिखने, पढ़ने, सीखने में सरल, सुबोध भाषा,
(3) उस भाषा में राष्ट्र के आपसी
धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक कार्य हो सकें,
(4) कर्मचारियों तथा सरकारी अधिकारियों के लिए सुगम, सरल हो,
(5) यह भाषा स्थिर एवं टिकाऊ होनी चाहिए।
राष्ट्रभाषा का महत्व-राष्ट्रभाषा उस राष्ट्र के निवासियों की वाणी होती है। राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा होता है। यह भाषा ही सभी प्रकार की अभिव्यक्ति का माध्यम होती है। विचारों के पारस्परिक आदान-प्रदान के बिना नित्यप्रति सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक कार्यों का हो पाना संभव नहीं है। इस प्रकार राष्ट्रभाषा ही राष्ट्र के विकास की आधारशिला होती है। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी ने इसीलिए कहा है-
“निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटे न हिय को शूल ॥”
राष्ट्रभाषा हिन्दी-हिन्दी में भारत की राष्ट्रभाषा होने की सभी विशेषताएँ मौजूद हैं। हिन्दी को अधिकांश भारतवासी बोलते, लिखते, पढ़ते तथा समझते हैं। यह भारत के एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक सम्पर्क की भाषा है। स्वतंत्रता आन्दोलन के समय यह सिद्ध हो चुका है कि हिन्दी समस्त भारत को एक सूत्र में
पिरोने वाली भाषा है। हिन्दी संसार की सर्वाधिक वैज्ञानिक भाषा है। इसमें जो लिखते हैं वही पढ़ते हैं, बोलते हैं। हिन्दी सीखना बहुत सरल है। कम्प्यूटर आदि के लिए हिन्दी बहुत उपयुक्त भाषा है। इसीलिए हिन्दी को भारत की राष्ट्रभाषा होना चाहिए।
हिन्दी के मार्ग की बाधाएँ एवं उनका निराकरण-हिन्दी के मार्ग की कुछ बाधाएँ हैं। विज्ञान, चिकित्सा, तकनीकी की शिक्षा सम्बन्धी सामग्री का हिन्दी में अभाव है। प्रशासनतंत्र तथा राजनीतिक षड्यंत्र भी इसके मार्ग में बाधक हैं। 14 सितम्बर 1949 को हिन्दी को राजभाषा घोषित कर दिया किन्तु राष्ट्रभाषा नहीं बनाया। आवश्यकता इच्छाशक्ति की है। यदि सरकार तुष्टीकरण की नीति त्यागकर हिन्दी को राष्ट्रभाषा घोषित कर दे
तो छुट-पुट विरोध होगा, जो समय के साथ शान्त हो जाएगा।
उपसंहार-भले ही नेताओं की दोहरी नीति के कारण हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा नहीं बन सकी है किन्तु हिन्दी अपनी विशेषताओं के कारण आगे बढ़ रही है। इसका भविष्य उज्ज्वल है। वह दिन दूर नहीं जब हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा होगी और संसार में भारतवासियों के विचारों को फैलाएगी।

21. इक्कीसवीं सदी का भारत
[रूपरेखा-(1) प्रस्तावना, (2) 21वीं सदी का शुभारम्भ, (3) सामाजिक एवं आर्थिक सुधार,
प्रस्तावना-ससार को विकास का मार्ग दिखाने वाला भारत इक्कीसवीं सदी में प्रवेश कर चुका है।

इसकी विकास यात्रा उत्तरोत्तर शीर्ष की ओर अग्रसर है। विश्व को लोकतंत्र का सच्चा स्वरूप दिखाने वाला भारत निरन्तर खुशहाल हो रहा है। कवि का यह कथन सत्य साकार हो रहा है-
“भारत सबसे बड़ा रहेगा।
सबसे ऊँची लिए पताका,
सदा हिमालय खड़ा रहेगा।”
21वीं सदी का शुभारम्भ-सतत् संघर्षों को झेलते हुए भारत ने इक्कीसवीं सदी में प्रवेश किया है। गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा, अपराध, भ्रष्टाचार आदि से घिरे इस देश में विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं को गति मिली है। कृषि, व्यवसाय, निर्माण आदि के कार्यों में निरन्तर सुधार हो रहा है। गुणवत्ता एवं रोजगारपरक
शिक्षा पर जोर दिया जा रहा है। सर्वशिक्षा, स्वरोजगार, स्वच्छता आदि अभियान चलाये जा रहे हैं।
सामाजिक एवं आर्थिक सुधार-स्वतन्त्रता के पश्चात् देश की सामाजिक तथा आर्थिक दशा को सुधारने के जो प्रयास चल रहे थे, अब उनको तीव्र गति मिली है। सामाजिक समरसता, भाईचारा बढ़ा है। आर्थिक दृष्टि से नोटबंदी आदि सुधारों को अपनाकर कालाबाजारी एवं काले धन पर नियंत्रण करने का प्रयास किया जा रहा है। देश की आर्थिक स्थिति में सुधार हो रहा है।
वैज्ञानिक प्रगति-ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में आविष्कार कर रहा है। मैट्रो रेल ने यातायात को सुगम कर दिया है। अनेक रक्षा यंत्रों का आविष्कार हो रहा है। चिकित्सा, कृषि, व्यापार आदि के साधन उपलब्ध कराये जा रहे हैं। कम्प्यूटर, इण्टरनेट आदि ने विश्व को
पास-पास ला दिया है। संसार की घटना दो क्षण में मिल जाती है।
से ही अग्रणी रहा भारत 21वीं सदी में नये-नये
सांस्कृतिक स्थिति-‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ को मानने वाले भारत की संस्कृति समन्वय की रही है। यहाँ सभी के प्रति सद्भाव तथा सहृदयता रही है। यह भाव आज लगातार विकसित हो रहा है। इस देश में उदारता, पवित्रता, स्वच्छता तथा सर्वधर्म समभाव का बोलबाला रहा है, वही भाव निरन्तर जारी है। बहुमुखी विकास-इक्कीसर्वी सदी में भारत कृषि, यातायात, चिकित्सा, उद्योग-धन्धे, औद्योगीकरण, वैज्ञानिक अनुसन्धान आदि में विकास की ओर अग्रसर है। अन्तरिक्ष विज्ञान में भारत को गति सराहनीय है।
जगद्गुरु-भारत ने सदैव विश्व का नेतृत्व किया है। 21वीं सदी में भी संसार के मार्गदर्शन का क्रम जारी है। विभिन्न क्षेत्रों में भारत की पताका उज्ज्वल रूप में फहरा रही है।
उपसंहार-भारत के सपूत 21वीं सदी में अधूरे कार्यों को पूरा करने का निरन्तर प्रयत्न कर रहे हैं। मुझे विश्वास है कि नया प्रभात आएगा, नयी आभा बिखरेगी, 21वीं सदी शुभ सिद्ध होगी। यह सत्य है
कि-
“हाँ वृद्ध भारत वर्ष ही संसार का सिरमौर है।
ऐसा पुरातन देश भी विश्व में क्या और है।’

22. विद्यालय का वार्षिक समारोह
[रूपरेखा-(1) प्रस्तावना, (2) समारोह की तैयारियाँ, (3) विविध कार्यक्रम, (4) पुरस्कार वितरण,
(5) समारोह की उपयोगिता, (6) उपसंहार।।
प्रस्तावना-सामान्य रूप से कॉलेज में अनेक उत्सव होते हैं, किन्तु वर्ष में एक बार एक विशेष समारोह होता है जिसे वार्षिक उत्सव कहते हैं। अच्छा अनुशासन रहने के कारण सभी छात्र एवं अध्यापक पाठ्येत्तर प्रतियोगिताओं में भाग लेते हैं। इसीलिए हमारा विद्यालय खेलकूद एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए भी प्रसिद्ध है। वार्षिक समारोह की परम्परा को विशेष सज-धज के साथ मनाया जाता है।

समान नियम, शुल्क आदि होंगे। (7) बच्चों को विषय चुनने की आजादी होगी। (४) अध्यापकों को पढ़ाने के
अतिरिक्त अन्य कार्य नहीं दिए जाएंगे। (७) त्रिभाषा में राज्य ही भाषा का चयन करेंगे।
उपसंहार- यह शिक्षा नीति सुविचारित शिक्षा व्यवस्था की दृष्टि से प्रारम्भ की जा रही है। विश्वास है

इसके परिणाम लाभकारी तथा देशहित में होंगे?

24. कोरोना वायरस : एक विश्वव्यापी महामारी
[रूपरेखा-(1) प्रस्तावना, (2) दुनिया भर में फैलाव, (3) संक्रमण के लक्षण, (4) संक्रमण से बचने
के उपाय, (5) उपचार, (6) उपसंहार।।
प्रस्तावना कोरोना वायरस दुनियाभर में व्याप्त भयानक महापारी है किससे संसार के अधिकांश देश
भयभीत हैं। इसका भरम्भ चीन के बुहान शहर से दिसम्बर 2019 में हुआ। दुनिया भर में फैलाकर चीन के साथ व्यापारिक आदि सम्बन्ध रखने वाले देशों में यह बीमारी लोगों के आवागमन से फैली हिसीलिए थाइलैण्ड, जापान, अमेरिका, फ्रांस, भारत, इटली, कनाडा, पाकिस्तान आदि देशों में इसका भयंकर प्रकोप दिखाई पड़ रहा है। इससे डरकर ही अन्तर्राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किया गया है। संक्रमण के लक्षण (कोरोना संक्रमित होने वाले व्यक्ति में रोग के कुछ लक्षण प्रकट होते हैं जैसे संक्रमित व्यक्ति को बुखार, खांसी, सांस में परेशानी या दस्त हो सकते हैं। डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, दमा आदि के रोगियों में यह संक्रमण जल्दी होता है। छींकने, खांसने से निकलने वाली बूंदों से संक्रमण
फैलता है। संक्रमण से बचने के उपाय-संक्रमण से बचने के प्रमुख उपाय इस प्रकार हैं-
(1) रोग प्रतिरोधक
शक्ति को बढ़ाना,
(2) बार-बार साबुन से हाथ धोना,
(3) घर से बाहर निकलने पर मास्क लगाना,
(4) बाहर निकलने पर व्यक्तियों से कम से कम एक मीटर की दूरी रखना, (5) सफाई पर ध्यान देना, (6) सुरक्षा
कवच का प्रयोग, (7) क्वारंटाइन (संगरोध) करना तथा घर से बाहर न निकलना, (8) सेनेटाइजर का प्रयोग
करना।
उपचार- इस रोग से बचने का कोई टीका तैयार नहीं हो पाया है किन्तु वैज्ञानिक लगातार प्रयास कर रहे हैं कि कोई उपचार शीघ्र तैयार हो सके। जो संक्रमित हो जाते हैं उनको क्वारंटाइन कर दिया जाता है। उन्हें पौष्टिक भोजन तथा आयुर्वेदिक काढ़े आदि दिए जाते हैं। व्यायाम तथा योग कराया जाता है जिससे वायरस
कमजोर पड़कर समाप्त हो जाता है। वर्तमान में रोग निरोधक क्षमता बढ़ाना ही इसका मूल उपचार है।
उपसंहार-सभी देशों को आतंकित कर रहे कोरोना वायरस का भारत में भी भयंकर प्रकोप है। यद्यपि लॉकडाउन आदि के द्वारा शासन तथा समाज के स्तर पर इसे रोकने के प्रयास किए जा रहे हैं। अब इस रोग के नियंत्रण हेतु वैक्सीन भी बन चुकी है तथा अपने देश में भी टीकाकरण की शुरूआत हो चुकी है। विश्वास है
शीघ्र ही इस संक्रमण पर नियन्त्रण लग सकेगा। कुछ अन्य विषयों पर निबन्धों की रूपरेखा

1. स्वतन्त्रता दिवस
(1) प्रस्तावना, (2) स्वतन्त्रता हेतु संघर्ष, (3) मनाने की रीति, (4) देश की समस्याएँ, (5) आजादी के
बाद उपलब्धियाँ, (6) उपसंहार।

2. बसन्त ऋतु
(1) प्रस्तावना, (2) ऋतु बसन्त का वैभव, (3) गाँवों तथा शहरों में बसन्त की छटा, (4) बसन्त और
कवि, (5) उपसंहार।

3. वर्षा ऋतु का वर्णन
(1) वर्षा के पूर्व, (2) वर्षा ऋतु का आरम्भ, (3) गाँवों में तथा शहरों में वर्षा ऋतु का वर्णन,
(4) अतिवृष्टि और बाढ़, (5) वर्षा का लाभ, (6) उपसंहार।

4. यात्रा का वर्णन
(1) यात्रा का स्थान चयन करना, (2) यात्रा पूर्व की तैयारियाँ, (3) रेलवे स्टेशन या बस स्टैण्ड का वर्णन,
(4) यात्रा का मार्ग, (5) गन्तव्य स्थान पर पहुँचना, (6) यात्रा से लाभ, कठिनाइयाँ, (7) उपसंहार।

5. साहित्य और समाज
(1) प्रस्तावना, (2) साहित्य एवं समाज का सम्बन्ध, साहित्य की उत्पत्ति समाज से, साहित्य समाज के
लिए, (3) साहित्य में अद्वितीय क्षमता, (4) साहित्य का उद्देश्य लोकमंगल, (5) उपसंहार ।

6. किसी मेले का आँखों देखा वर्णन
(1) प्रस्तावना, (2) यात्रा वर्णन, (3) मेले का महत्त्व और विशेषता, (4) मेला दर्शन, (5) मेले की भीड़,
दुर्घटना और व्यवस्था, (6) उपसंहार।

7. मूल्य वृद्धि या महँगाई समस्या
(1) प्रस्तावना, (2) मूल्य वृद्धि की गम्भीर स्थिति, (3) रोकने के उपाय-शासकीय स्तर तथा समाज के
स्तर पर, (4) महँगाई का नित्यप्रति के जीवन पर प्रभाव, (5) मूल्य वृद्धि को नियन्त्रित करने सम्बन्धी सुझाव,
(6) उपसहार।

8. देश-प्रेम या स्वदेश प्रेम
(5) उपसंहार।
(1) प्रस्तावना, (2) देश-प्रेम की भावना, (3) देश प्रेम की व्यापकता, (4) आदर्श देश-प्रेम,

9. भारत की सांस्कृतिक एकता
(1) प्रस्तावना-संस्कृति का अर्थ, (2) संस्कृति का महत्त्व एवं प्रभाव, (3) प्राचीनकाल में भारतीय
संस्कृति, (4) अनेकता में एकता, (5) अन्य संस्कृतियों से तुलना, (6) उपसंहार।

10. चरित्र बल
(1) चरित्र बल की महत्ता, (2) चरित्र का अभिप्राय, (3) चरित्र निर्माण के उपाय, (4) आदर्श चरित्र,
(5) चरित्रहीनता के कारण, (6) राष्ट्रीय चरित्र-निर्माण।

11. भारतीय किसान
(1) भारतीय किसान का परिचय, (2) भारतीय किसान का जीवन, (3) भारतीय किसान का रहन-सहन,
(4) भारतीय किसान की समस्याएँ, (5) भारतीय किसन की महत्ता।

12. मेरी प्रिय
पुस्तक
(1) प्रस्तावना, (2) प्रिय पुस्तक का परिचय, (3) अन्य पुस्तकों की तुलना में अच्छाइयाँ, (4) पुस्तक को
विशेषताएँ, (5) जीवन पुस्तक की उपयोगिता, (6) उपसंहार ।

13. स्वच्छ भारत अभियान
(1) प्रस्तावना, (2) स्वच्छ भारत अभियान का प्रारम्भ, (3) गन्दगी से हानियाँ, (4) स्वच्छता के लाभ,
(5) समग्र स्वच्छता, (6) सभी के सहयोग की अपेक्षा, (7) उपसंहार।

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