अध्याय 10
उपनिवेशवाद और देहात – सरकारी अभिलेखों का अध्ययन
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
बहु-विकल्पीय प्रश्न
- बंगाल में स्थायी बन्दोबस्त (इस्तमरारी बन्दोबस्त) किसने लागू किया था ?
(अ) वारेन हेस्टिंग्स,
(ब) लॉर्ड कार्नवलिस,
(स) थॉमस मुनरो,
(द) मार्टिन वर्ड।
- बंगाल में भू-राजस्व सम्बन्धी ‘स्थायी बन्दोबस्त’ (इस्तमरारी बन्दोबस्त) कब लागू किया गया था ?
(अ) 1757 ई.,
(ब) 1777 ई.,
(स) 1793 ई.,
(द) 1857 ई.।
- ईस्ट इंडिया कम्पनी के प्रशासन तथा क्रियाकलापों सम्बन्धी ‘पाँचवीं रिपोर्ट’ ब्रिटिश पार्लियामेण्ट में कब पेश की गई थी ?
(अ) 1793 ई.,
(ब) 1813 ई.,
(स) 1857 ई.,
(द) 1875 ई. ।
- संथाल विद्रोह कब हुआ था ?
(अ) 1855-56 ई.,
(स) 1857 ई.,
(ब) 1810-11 ई.,
(द) 1875 ई. ।
- दक्कन विद्रोह कब प्रारंभ हुआ ?
(अ) मई 1813 ई.,
(ब) मई 1857 ई.,
(स) मई 1875 ई.,
(द) मई 1878 ई. ।
उत्तर- 1. (ब), 2. (स), 3. (ब), 4. (अ), 5. (स) ।
- रिक्त स्थानों की पूर्ति
- जोतदार लोग अपनी भूमि के काफी बड़े हिस्से पर ………..से खेती करवाते थे।
- राजमहल की पहाड़ियों के आस-पास रहने वाले लोगों ………..को कहा जाता था।
- 1838 ई. में संथालों के गाँवों की संख्या मात्र ………..थी।
- फ्रांसिस बुकानन एक ………..था।
- बम्बई दक्कन में भू-राजस्व ………..की व्यवस्था को लागू किया गया था।
उत्तर – 1. बटाईदारों, 2. पहाड़िया, 3. चालीस, 4. चिकित्सक, 5. रैयतवाडी ।
सत्य / असत्य
- बंगाल में 1877 ई. में भूमि को एक वर्षीय ठेके पर देने की प्रथा की गई थी। 2. वारेन हेस्टिंग्स ने 1793 ई. बंगाल में भू-राजस्व के ‘स्थायी बन्दोबस्त’ को लागू किया
था।
- स्थायी बन्दोबस्त के अंतर्गत सरकार का किसान से प्रत्यक्ष सम्बन्ध स्थापित हुआ।
- पहाड़िया लोगों की खेती मुख्यत: हल पर आश्रित थी। 5. 1857 ई. में ब्रिटेन में ‘कपास आपूर्ति संघ’ की स्थापना की गई थी।
उत्तर – 1. सत्य, 2. असत्य, 3. असत्य, 4. असत्य, 5. सत्य
सही जोड़ी बनाइए
‘अ’
‘ब’
- 1793.
- 1813.
(i) मैनचेस्टर कॉटन कंपनी की स्थापना
(ii) दक्कन दंगा रिपोर्ट ब्रिटिश संसद में पेश
- 1857 ई.
- 1859.
(iii) बंगाल में स्थायी बन्दोबस्त लागू (iv) कपास आपूर्ति संघ की स्थापना
(v) पाँचव रिपोर्ट ब्रिटिश पार्लियामेण्ट में पेश
- 1878
उत्तर – 1. → (iii), 2. → (v), 3. → (iv), 4. → (i), 5. → (ii).
एक शब्द / वाक्य में उत्तर
- फ्रांसिस बुकानन कौन था ?
- पहाड़िया लोग किस प्रकार की खेती करते थे ?
- ‘दमिन ए कोह’ नामक भू-भाग पर किसे बसाया गया था ?
- मई 1875 ई. में दक्कन विद्रोह का प्रारम्भ किस स्थान से हुआ था ?
- दक्कन दंगा आयोग की रिपोर्ट ब्रिटिश पार्लियामेण्ट में कब पेश की गई ?
उत्तर – 1. एक चिकित्सक, 2. झूम खेती, 3. संथालों को, 4. पूना के सूपा ग्राम से, 5.1878 ई.।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. ईस्ट इंडिया कम्पनी ने भारत में लगान वसूली का कार्य अपने हाथ में कब लिया था ?
उत्तर-ईस्ट इंडिया कम्पनी ने गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स के शासनकाल (1772-85 ई.) में लगान वसूली का कार्य अपने हाथ में ले लिया था।
प्रश्न 2. अंग्रेजों ने मुख्य रूप से बंगाल में किन दो प्रकार की भू-राजस्व व्यवस्थाओं का अनुसरण किया था ?
उत्तर- अंग्रेजों ने मुख्य रूप से बंगाल में अग्रांकित दो प्रकार का भू-राजस्व व्यवस्थाओं का अनुसरण किया था (1) इजारेदारी व्यवस्था अथवा ठेकेदारी व्यवस्था, (2) इस्तमरारी व्यवस्था अथवा स्थायी बन्दोबस्त
प्रश्न 3. बंगाल में इस्तमरारी बन्दोबस्त किसने और कब लागू किया था ?
उत्तर- बंगाल में इस्तमरारी बन्दोबस्त 1793 ई. में गवर्नर जनरल लॉर्ड कार्नवालिस ने लागू किया था।
प्रश्न 4. लॉर्ड कार्नवालिस ने बंगाल में भू-राजस्व की किस पद्धति को प्रचलित किया था ?
उत्तर- लॉर्ड कार्नवालिस ने बंगाल में भू-राजस्व के ‘इस्तमरारी बन्दोबस्त’ को प्रचलित किया था।
प्रश्न 5. ‘बेनामी’ के अभिप्राय को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- ‘बेनामी’ का शाब्दिक अर्थ है, जिसका कोई नाम न हो अर्थात् ‘गुमनाम’ | हिन्दी एवं कुछ अन्य भारतीय भाषाओं में इस शब्द का प्रयोग ऐसे सौदों के लिए किया जाता है जो किसी फर्जी अथवा अपेक्षाकृत महत्वहीन व्यक्ति के नाम किए जाते हैं।
प्रश्न 6. पहाड़िया कौन थे ?
उत्तर- राजमहल की पहाड़ियों के आस-पास रहने वाले लोगों को ‘पहाड़िया’ के नाम से जाना जाता था।
प्रश्न 7.1780 ई. दशक में पहाड़िया लोगों के समक्ष शान्ति प्रस्ताव किसने रखा था ?
उत्तर- 1780 ई. के दशक में भागलपुर के कलेक्टर ऑगस्टस क्लीवलैंड ने पहाड़िया लोगों के समक्ष शान्ति प्रस्ताव प्रस्तावित किया था।
प्रश्न 8. बम्बई दक्कन में अंग्रेजों द्वारा लागू की गई राजस्व प्रणाली का नाम बताइए।
उत्तर- बम्बई दक्कन में अंग्रेजों द्वारा भू-राजस्व की ‘रैयतवाड़ी व्यवस्था’ को लागू किया गया था।
प्रश्न 9. ब्रिटेन में कपास आपूर्ति संघ’ की स्थापना कब की गई थी ? उत्तर- ब्रिटेन में ‘कपास आपूर्ति संघ’ की स्थापना 1857 ई. में की गई थी।
प्रश्न 10. मैनचेस्टर कॉटन कम्पनी कब स्थापित हुई ?
उत्तर- मैनचेस्टर कॉटन कम्पनी की स्थापना 1859 ई. में हुई थी।
प्रश्न 11. 1861 ई. के अमरीकी गृह युद्ध के दौरान जब अमरीका के दक्षिण भाग से आने वाली कपास अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में आनी बन्द हो गई तो इसका भारत पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर- अमरीका से आने वाली कपास जब अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में आनी बन्द हो गई — तो इसके परिणामस्वरूप भारत को लंकाशायर के कपास की आपूर्ति के स्रोत के रूप में देखा जाने लगा। कपास के मूल्यों में वृद्धि होने पर बम्बई के कपास निर्यातक, ब्रिटेन की मांग को पूरा करने के लिए अधिक से अधिक कपास खरीदने का प्रयत्न करने लगे। 1860-64 की अवधि में भारत में कपास उगाने वाला क्षेत्र बढ़कर दोगुना हो गया।
प्रश्न 12. 1855-56 ई. के संथाल विद्रोह का सर्वाधिक महत्वपूर्ण नेता कौन था ?
उत्तर- 1855-56 ई. के संथाल विद्रोह का सर्वाधिक महत्वपूर्ण नेता सिद्ध था।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. स्थायी बन्दोबस्त की प्रमुख विशेषताएँ क्या थीं ? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर- स्थायी बन्दोवस्त की प्रमुख विशेषताएँ निम्नांकित थीं
(1) स्थायी बन्दोबस्त बंगाल, बिहार, उड़ीसा और उत्तरी कर्नाटक के राजाओं एवं तालुक्कदारों के साथ किया गया। इसके द्वारा उन्हें भूमि का स्वामी बना दिया गया। उन्हें उस समय तक भूमि से नहीं हटाया जा सकता था, जब तक वे अपना निश्चित भू-राजस्व (लगान) सरकार को देते रहें। इस प्रकार भूमि पर उनका पैत्रक अधिकार स्वीकार कर लिया गया।
(2) जमींदारों द्वारा सरकार को दिया जाने वाला वार्षिक लगान स्थायी रूप से निश्चित कर दिया गया। इस प्रकार अब जमींदार ग्राम में भू-स्वामी नहीं अपितु राजस्व संग्राहक मात्र था। उन्हें आदेशित किया गया कि वे किसानों से लगान के रूप में वसूल की गई धनराशि का केवल 1/11 भाग अपने पास रखें और 10/11 भाग सरकार को दें।
(3) स्थायी बन्दोबस्त के अन्तर्गत सरकार का किसानों से कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं रहा। सरकार ने जमींदारों तथा किसानों के पारस्परिक मामलों में किसी प्रकार का हस्तक्षेप न करने का आश्वासन दिया। जमींदारों के पास अनेक और कभी-कभी चार सौ तक गाँव होते थे। एक जमींदारी के भीतर आने वाले सभी गाँवों को मिलाकर एक राजस्व सम्पदा का निर्माण होता था। कम्पनी समस्त सम्पदा पर कुल माँग का निर्धारण करती थी। तदोपरान्त जमींदार भिन्न-भिन्न गाँवों से लिए जाने वाले राजस्व की मात्रा का निर्धारण करता था।
(4) किसानों से उनका भूमि सम्बन्धी परम्परागत अधिकार छीन लिया गया, जमींदारों की दया पर छोड़ दिया गया। उन्हें
प्रश्न 2. जोतदारों की शक्ति जमींदारों से अधिक कैसे हो गई ? स्पष्ट करें।
अथवा
ग्रामीण बंगाल के बहुत से इलाकों में जोतदार एक ताकतवर हस्ती क्यों था ?
उत्तर- उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भिक वर्षों में बंगाल के ग्रामीण समाज में क्रियात्मक रूप से जोतदारों की शक्ति जमींदारों की शक्ति की तुलना में अधिक हो गई थी। इसके मूल में अनेक कारण थे, जैसे –
(1) अत्यधिक धन-सम्पन्नता ने जमींदारों को आलसी तथा विलासी बना दिया था और ये लोग नगरों में रहने लगे थे। इन लोगों का गरीब ग्रामवासियों से कोई प्रत्यक्ष सम्पर्क नहीं होता था जबकि जोतदार गाँवों में ही निवास करते थे और गरीब ग्रामवासियों के विशाल वर्ग से उनका प्रत्यक्ष सम्पर्क रहता था, इससे उनका ग्रामवासियों पर नियन्त्रण रहता था।
(2) जमींदारों द्वारा जब लगान वृद्धि का प्रयास किया जाता था, तब जोतदार गाँव में जमींदारों द्वारा थोपी गई लगान वृद्धि का विरोध करते थे तथा जमींदारी अधिकारियों को भी अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करने देते थे। इससे ग्रामवासी जोतदारों को अपना हितैषी समझने लगे थे।
(3)जोतदार लोग रैयत को अपने पक्ष में करके उन्हें एकजुट रखते थे। ये लोग रैयत का समर्थन प्राप्त करके जमींदार को राजस्व के भुगतान में जान-बूझकर देरी करा देते थे। ऐसी स्थिति में जमींदार अपने राजस्व का भुगतान करने में असमर्थ हो जाता था। जर्मंदारों की इस लाचारी ने जोतदारों को सशक्त बनाया।
(4) जब जर्मीदार अपने राजस्व का निर्धारित समयावधि में भुगतान करने में असफल हो जाता था, तो सरकार द्वारा उसकी जमींदारी नीलाम की जाती थी। ऐसी स्थिति में प्राय: जोतदार ही उनकी जमीनों को खरीद लेते थे।
प्रश्न 3. जमींदार लोग अपनी जमींदारियों पर किस प्रकार नियंत्रण बनाए रखते थे?
उत्तर- भू-सम्पदा की संभावित नीलामी से बचने के लिए बंगाल के जमींदारों द्वारा निम्नांकित रणनीतियाँ अपनाई गई
(1) ईस्ट इंडिया कम्पनी के नियमानुसार महिलाओं की सम्पत्ति को नहीं छीना जा सकता था। अत: जर्मीदार अपनी जमींदारी का कुछ भाग अपने ही परिवार की किसी महिला सदस्य के नाम कर देते थे ताकि उस पर उनका परोक्ष नियंत्रण बना रहे।
(2) जमींदार फर्जी बिक्री के माध्यम से भी अपनी जमींदारियों पर अधिकार बनाए रखते थे। राजस्व भुगतान न कर पाने की स्थिति में जब जमींदारी नीलाम की जाती थी तब जमींदार के आदमी या अभिकर्ता जमींदारी को खरीद लेते थे। इस प्रकार की बिक्री की वजह से जमींदारी को बार-बार बेचना पड़ता था। फिर भी किसी न किसी हथकंडे का इस्तेमाल करके जमींदार अपनी जमींदारी पर अपना नियंत्रण बनाए रखता था। एक समय ऐसा आता था जब उस जमींदारी की बोली लगाने में कोई भी अपनी दिलचस्पी नहीं दिखाता था तब सरकार को वह जमींदारी पुराने जमींदार को ही कम कीमत पर बेचनी पड़ती थी।
प्रश्न 4. संथालों ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह क्यों किया ?
उत्तर- संथालों को स्थायी कृषि के लिए राजमहल की पहाड़ियों में ‘दामिन-ए-कोह’ के नाम से भूमि दी गई थी। वे एक जगह स्थायी रूप से बस गए थे और बाजार के लिए कई प्रकार की वाणिज्यिक फसलों की खेती करने लगे थे। वे व्यापारियों तथा साहूकारों के साथ लेन-देन भी करने लगे थे। परन्तु उन्हें शीघ्र ही इस बात का आभास हो गया कि उन्होंने जिस भूमि पर खेती करनी शुरू की थी, वह उनके हाथ से निकलती जा रही है। इसके कई कारण
(1) संथालों ने जिस भूमि को साफ करके खेती शुरू की थी, उस पर सरकार भारी कर लगा रही थी।
(2) साहूकार उनके ऋण पर बहुत ऊँची दर से ब्याज लगा रहे थे।
( 3 ) ऋण अदा न कर पाने की दशा में वे उनकी भूमि पर कब्जा कर रहे थे।
(4) जमींदार लोग दामिन प्रदेश पर अपने नियंत्रण का दावा कर रहे थे।
एक आदर्श संसार का निर्माण करने के लिए उनका अपना शासन होना आवश्यक है। उक्त कारणों से 1850 के दशक तक संथाल लोग यह अनुभव करने लगे थे कि अपने इसीलिए उन्होंने जर्मीदारों, साहूकारों और औपनिवेशिक राज के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।
प्रश्न 5. दक्कन के रैयत ऋणदाताओं के प्रति क्रुद्ध क्यों थे ?
उत्तर- दक्कन के रैयत ऋणदाताओं के प्रति अग्रांकित कारणों से क्रुद्ध थे
(1) पहले ऋणदाताओं ने कपास की खेती के लिए रैयतों को काफी उधार दिया और मुनाफा कमाया परन्तु जब उन्हें लगने लगा कि अब भारतीय कपास की माँग कम होती जा रही है और रैयत उनका कर्ज नहीं चुका सकते हैं तो उन्होंने ऋण देने से इंकार कर दिया।
(2) रैयत अब अपने को असहाय महसूस कर रहे थे। ऋणदाताओं द्वारा ऋण देने से इंकार को लेकर उन्हें बहुत गुस्सा आया।
(3) रैयत केवल इस बात से क्रोधित नहीं थे कि वे ऋण के बोझ से दबे जा रहे थे अथवा वे अपने जीवन को बचाने के लिए ऋणदाता पर पूर्ण रूप से निर्भर थे, अपितु उन्हें इस बात का ज्यादा गुस्सा था कि ऋणदाता वर्ग इतना संवेदनहीन हो गया था कि वह उनकी हालत पर कोई तरस नहीं खा रहा था।
(4) ऋण देने वाले लोग गाँव के प्रथागत परम्परागत मानकों अर्थात् रिवाजों का भी उल्लंघन कर रहे थे।
प्रश्न 6. दक्कन दंगा आयोग और उसके द्वारा तैयार रिपोर्ट पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर जिस समय दक्कन में विद्रोह फैला तब प्रारम्भ में बम्बई की सरकार ने इस विद्रोह को गम्भीरता से नहीं लिया। किन्तु जब विद्रोह ने उग्र और गम्भीर रूप धारण कर लिया तब बम्बई की सरकार ने शान्ति व्यवस्था को कायम करने के लिए आवश्यक कार्यवाहियाँ प्रारम्भ की। लेकिन भारत सरकार इस विद्रोह को लेकर काफी चिंतित हो गई, अतः उसने बम्बई की सरकार पर दबाव डाला कि वह दंगों के कारणों की छानबीन के लिए एक आयोग की स्थापना करे। भारत सरकार के दबाव के कारण बम्बई सरकार ने दंगों के कारणों का पता लगाने के लिए एक जाँच आयोग की स्थापना की। इस जाँच आयोग ने एक रिपोर्ट तैयार की, जो 1878 ई. में ब्रिटिश संसद में पेश की गई।
आयोग द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट को ‘दक्कन दंगा रिपोर्ट’ के नाम से जाना जाता है। आयोग ने अपनी इस रिपोर्ट को तैयार करने से पहले अनेक महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ एकत्र कीं, जैसे- दंगा प्रभावित जिलों में जाँच-पड़ताल करवाई गई; किसानों, साहूकारों और चश्मदीद गवाहों के बयान लिए गए; भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में राजस्व की दरों, कीमतों और ब्याज की दरों के आँकड़े एकत्र किए गए और जिला कलेक्टरों द्वारा भेजी गई रिपोर्टों का भी संकलन किया गया। इन समस्त सूचनाओं और आँकड़ों के आधार पर आयोग द्वारा रिपोर्ट तैयार की गई थी।
प्रश्न 7. इस्तमरारी बन्दोबस्त के बाद बहुत सी जमींदारियाँ क्यों नीलाम कर दी गई ?
उत्तर-औपनिवेशिक शासन द्वारा 1793 ई. में इस्तमरारी बन्दोबस्त को लागू किया गया था। इस्तमरारी बन्दोबस्त के तहत प्रत्येक जमींदार को एक निश्चित राशि राजस्व के रूप में जमा करानी होती थी। लेकिन इस्तमरारी बन्दोबस्त लागू होने के पश्चात् कुछ प्रारंभिक दशकों में जमींदारों ने राजस्व माँग को अदा करने में बराबर अपनी हिचिकिचाहट दिखाई और इस कारण राजस्व की बकाया राशि में निरन्तर वृद्धि होती चली गई। इस्तमरारी बन्दोबस्त के अन्तर्गत ऐसी व्यवस्था की गई थी कि निर्धारित राशि नहीं चुका पाने वाले जमींदारों से राजस्व वसूल करने के लिए उनकी सम्पदाएँ नीलाम कर दी जाती थीं। अतः निर्धारित बकाया राशि नहीं चुका वाले जमींदारों की जमींदारियाँ नीलाम कर दी जाती थीं। यद्यपि इससे जमींदारों की शक्ति और प्रभाव में गिरावट आने लगी थी, लेकिन उन्होंने भू-सम्पदा की संभावित नीलामी के संकट से निपटने के लिए अनेक नई रणनीतियों को ढूंढ़ निकाला था।
दीर्घ उत्तरीय / विश्लेषणात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. स्थायी बन्दोबस्त (इस्तमरारी बन्दोबस्त) के लाभों की विवेचना कीजिए।
उत्तर- स्थायी बन्दोबस्त (इस्तमरारी बन्दोबस्त) व्यवस्था से अनेक महत्वपूर्ण लाभ थे, जिनका वर्णन निम्नांकित है
(1) स्थायी बन्दोबस्त से कम्पनी की सरकार को लाभ ही हुआ। वह बार-बार के बन्दोबस्त से मुक्त हो गई। बार-बार बन्दोबस्त करने में धन का जो अपव्यय होता था, वह बच गया।
(2) अब कम्पनी को यह निश्चित रूप से ज्ञात हो गया कि भूमि के लगान से कम्पनी को प्रतिवर्ष कितनी आमदनी होगी। इससे कम्पनी को आर्थिक योजनाएँ बनाने में सुविधा हो गई। इससे कम्पनी की लोकप्रियता में वृद्धि हुई।
(3) स्थाई बन्दोबस्त के कारण कम्पनी को जमींदारों के रूप में एक कट्टर वर्ग प्राप्त हुआ, जो ब्रिटिश उपनिवेशवाद की शक्ति का स्तम्भ सिद्ध हुआ।
(4) स्थायी बन्दोबस्त से जमींदारों को लाभ हुआ। जमींदार लोग कृषि में रुचि लेने लगे और उसकी उन्नति के लिए प्रयत्न करने लगे, क्योंकि उत्पादन में वृद्धि होने पर भी उन्हें सरकार को पूर्व निर्धारित लगान का ही भुगतान करना था।
(5) स्थायी बन्दोबस्त से कम्पनी की आमदनी में वृद्धि हुई। यद्यपि कम्पनी सरकार लगान में वृद्धि नहीं कर सकती थी, लेकिन इस व्यवस्था के फलस्वरूप उद्योग-धन्धों और व्यापार-वाणिज्य में होने वाली प्रगति से सरकारी आय में वृद्धि होने लगी।
(6) स्थायी बन्दोबस्त से बंगाल प्रान्त आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न हो गया और इसकी गणना भारत के सबसे अधिक धनी प्रान्तों में होने लगी। इस सम्पन्नता का बंगाल के व्यापार और उद्योग-धन्धों पर बहुत असर पड़ा। उसके व्यापार तथा उद्योग-धन्धों में बड़ी वृद्धि हुई, जिससे उसकी धन-सम्पन्नता बढ़ती चली गई।
प्रश्न 2. स्थायी बन्दोबस्त (इस्तमरारी बन्दोबस्त) के दोषों की विवेचना कीजिए। उत्तर- कार्नवालिस के स्थायी बन्दोबस्त के कतिपय स्थायी लाभ अवश्य हुए थे किन्तु इसने शीघ्र ही उत्पीड़न व शोषण के ताण्डव नृत्य को जन्म दे दिया। इस व्यवस्था के दोषों को निम्नांकित बिन्दुओं से समझा जा सकता है
(1) स्थायी बन्दोबस्त व्यवस्था का सबसे बड़ा दोष यह था कि इस व्यवस्था ने किसान व सरकार के मध्य खाई को और अधिक चौड़ा कर दिया। सरकार व किसान के मध्य जमींदार वर्ग के रूप में सामने आया।
(2) इस व्यवस्था ने जमींदार को भूमि का मालिक बना दिया था। इसका परिणाम यह हुआ कि कल तक जो भूमिपति थे, वे अब जमींदारों के कृपापात्र बन गए और किराएदार की श्रेणी में आ गए। भारत के सम्पूर्ण इतिहास में ऐसा आज तक नहीं हुआ था।
(3) यद्यपि इस व्यवस्था ने जमींदारों को भू-स्वामी बना दिया था, फिर भी जमींदार वर्ग इससे सन्तुष्ट नहीं था। जमींदार वर्ग भू-राजस्व भुगतान के सूर्यास्त के नियम से अत्यन्त दुःखी था। जमींदारों को निश्चित दिन सूर्यास्त से पूर्व राजकोष में धन जमा कराना होता था। यदि कोई जर्मीदार निश्चित दिन सूर्यास्त से पूर्व राजस्व जमा नहीं कर पाता था तो उसकी भूमि जब्त कर ली जाती थी। 1797-98 में तो लगभग 17 फीसदी जमींदारों की भूमि को सरकार ने नीलाम किया था। इस प्रकार नए-नए जर्मीदारों के आने से किसानों को भी परेशानी का सामना करना पड़ता था।
(4) स्थायी बन्दोबस्त से सरकार को भी हानि हुई। कृषि के उत्पादन में वृद्धि होने से सरकार के लगान में कोई वृद्धि नहीं होती थी, उसका सम्पूर्ण लाभ जमींदार को प्राप्त होता था। क्योंकि जमींदार सरकार को पूर्व निर्धारित राजस्व का ही भुगतान करता था।
(5) इस व्यवस्था में एक मुख्य दोष यह भी उत्पन्न हुआ कि अधिकांश जमींदारों ने अपनी भूमि बिचौलियों को पट्टे पर दे दी और स्वयं नगरों में रहने लगे। ये बिचौलिए किसानों से अधिक-से-अधिक लगान वसूल करते थे। सरकार ने प्रारम्भ में इसका विरोध भी किया परन्तु 1819 ई. में इसे मान्यता दे दी। इससे बिचौलियों की संख्या में वृद्धि हुई और किसानों का शोषण बढ़ा। इसी कारण इस व्यवस्था के अन्तर्गत उच्च स्तर पर सामन्तवादी शोषण और निम्न स्तर पर दासता की भावना को प्रोत्साहन प्राप्त हुआ।
(6) स्थायी बन्दोबस्त ने सामाजिक असमानता को भी बढ़ावा दिया। इससे बंगाल में धनी और निर्धन लोगों की दो पृथक्-पृथक् श्रेणियाँ स्थापित हो गईं।
(7) यद्यपि भू-राजस्व की इस व्यवस्था ने सरकार को जमींदारों के रूप में एक स्वामीभक्त समर्थक वर्ग प्रदान कर दिया था, लेकिन अब करोड़ों लोग अंग्रेजों से नाराज हो गए थे। अब ग्रामीण समाज आसामी व जमींदार इन दो वर्गों में स्पष्ट रूप से विभक्त हो गया।
प्रश्न 3. पहाड़िया लोगों ने बाहरी लोगों के आगमन पर कैसी प्रतिक्रिया दर्शायी ?
अथवा
पहाड़िया लोगों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर- राजमहल की पहाड़ियों के इर्द-गिर्द रहने वाले लोगों को ‘पहाड़िया’ कहा जाता था। ये लोग जंगल की उपज से अपना जीवकोपार्जन करते थे और झूम की खेती करते थे। ये लोग जंगल के छोटे-से हिस्से में झाड़ियों को काटकर और घास-फँस को जलाकर जमीन साफ कर लेते थे और राख की पोटाश से उपजाऊ बनी जमीन पर अपने खाने के लिए विभिन्न प्रकार की दालें और ज्वार-बाजरा पैदा करते थे। पहाड़ियों को अपना मूल आधार बनाकर ये लोग वहाँ रहते थे। ये लोग अपने क्षेत्र में बाहरी लोगों के प्रवेश का प्रतिरोध करते थे। ये लोग समूहों में संगठित रहते थे, प्रत्येक समूह का एक मुखिया होता था, जो अपने-अपने समूह की एकता को संगठित रखता था। ये लोग अन्य जनजातियों तथा मैदानी लोगों के साथ संघर्ष की स्थिति में अपनी जनजाति का नेतृत्व भी करते थे।
पहाड़िया लोग उन मैदानी क्षेत्रों पर बराबर आक्रमण करते रहते थे, जहाँ किसान एक स्थान पर वस कर स्थायी खेती करते थे। पहाड़िया लोगों द्वारा अधिकांशतः इस प्रकार के आक्रमण अभाव अथवा अकाल के वर्षों मे किए जाते थे, मैदानी क्षेत्रों पर आक्रमण करके जो खाद्य सामग्री वे लूटते थे वह उन्हें अकाल एवं अभाव के दिनों में जीवित रखने के लिए होती थी। साथ ही पहाड़िया लोगों द्वारा इस प्रकार के आक्रमण अपनी शक्ति के प्रदर्शन के लिए भी किए जाते थे, इन आक्रमणों के द्वारा वे मैदानों में बसे समुदायों पर अपनी धाक जमाना चाहते थे।
मैदानी क्षेत्रों में रहने वाले जमींदार इन आक्रमणों से बचाव के लिए पहाड़िया मुखियाओं को नियमित रूप से खिराज का भुगतान करते थे। इसी प्रकार व्यापारी लोग भी पहाड़िया लोगों द्वारा नियन्त्रित मार्गों का प्रयोग करने के लिए पहाड़िया मुखियाओं को पथकर का भुगतान करते थे, इससे व्यापारियों को जान-माल की सुरक्षा का आश्वासन प्राप्त होता था।
अट्ठारहवीं शताब्दी के अन्तिम दशकों में स्थितियाँ परिवर्तित होने लगीं। अंग्रेजों ने बंगाल की सत्ता हाथ में आने के बाद पूर्वी भारत में स्थिर खेती की क्षेत्र सीमाएँ विस्तृत करने की नीति अपनाई। इस नीति के तहत् उन्होंने जंगलों को साफ करके स्थायी कृषि क्षेत्र के विस्तार को प्रोत्साहन दिया। जिसके परिणामस्वरूप जमींदारों और जोतदारों ने परती भूमि को धान के खेतों में परिवर्तित कर दिया।
स्थायी कृषि के विस्तार के कारण जंगलों एवं चरागाहों का क्षेत्र संकुचित होता गया। चूँकि पहाड़िया लोग अपनी आजीविका के लिए जंगलों और चारागाहों पर आश्रित थे, अतः उन्होंने इसके विरुद्ध तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त की। परिणामत: पहाड़िया लोगों का स्थायी खेतिहरों के साथ संघर्ष प्रारम्भ हो गया। पहाड़िया लोग अब पहले से भी अधिक नियमित रूप से गाँवों पर हमले करके गाँववासियों से अनाज और पशु लूटने लगे। अंग्रेज अधिकारियों ने उत्तेजित होकर पहाड़िया लोगों को काबू में करने के लिए भरसक प्रयत्न किए लेकिन कोई सफलता नहीं मिली।
अंतत: अंग्रेज अधिकारियों ने 1770 ई. के दशक में पहाड़िया लोगों को निर्मूल कर देने की क्रूर नीति अपना ली और उनका क्रूरतापूर्वक संहार करना प्रारम्भ कर दिया। लेकिन शीघ्र ही अंग्रेजों को यह समझ आ गया कि पहाड़िया लोगों का पूर्ण रूप से दमन करना एक दुष्कर कार्य है। अतः 1780 ई. के दशक में भागलपुर के कलेक्टर ऑगस्टस क्लीवलैंड ने पहाड़िया लोगों के समक्ष एक शान्ति स्थापना की नीति प्रस्तावित की। इसके अनुसार सरकार द्वारा पहाड़िया मुखियाओं को एक वार्षिक भत्ता दिया जाना था और बदले में पहाड़िया मुखियाओं को अपने आदमियों के अच्छे व्यवहार की जिम्मेदारी लेनी थी, इसके अतिरिक्त मुखियाओं को अपनी बस्तियों में शान्ति व्यवस्था बनाए रखने और अपने लोगों को अनुशासन में रखने का आश्वासन भी देना था। सरकार के इस प्रस्ताव को अनेक पहाड़िया मुखियाओं ने स्वीकार नहीं किया। लेकिन कुछ मुखियाओं ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया, इनमें से अधिकांश अपने समुदाय में अपनी सत्ता से बेदखल हो गए।
प्रश्न 4. पहाड़िया लोगों की आजीविका संथालों की आजीविका से किस प्रकार भिन्न थी ?
उत्तर- पहाड़िया लोगों की आजीविका संथालों की आजीविका से कई रूपों में भिन्न थी, इस भिन्नता को निम्नांकित बिन्दुओं से समझा जा सकता है (1) पहाड़िया लोग झूम की खेती करते थे और जंगल के उत्पादों से अपना जीविकोपार्जन करते थे। इस प्रकार वे अपनी आजीविका के लिए जंगलों और चारागाहों पर निर्भर थे जबकि संथाल लोग स्थायी खेती करते थे, उन्होंने अपने परिश्रम से अपने कृषि क्षेत्र की सीमाओं में – पर्याप्त वृद्धि करके इसे एक उपजाऊ क्षेत्र के रूप में बदल दिया था और इसी से वे अपना जीविकोपार्जन करते थे।
(2) पहाड़िया लोगों की खेती मुख्य रूप से कुदाल पर आश्रित थी, वे कुदाल से जमीन को थोड़ा खुरच लेते थे और कुछ वर्षों तक उस साफ की गई जमीन पर खेती करते थे, तत्पश्चात् वे उसे कुछ वर्षों के लिए परती छोड़ देते थे और नए क्षेत्र में जमीन तैयार करके खेती करते थे जबकि संथाल लोग हल से खेती करते थे, वे नई जमीन साफ करने में अत्यधिक कुशल थे। अपने परिश्रम से उन्होंने चट्टानी भूमि को भी अत्यधिक उपजाऊ बना दिया था।
(3) पहाड़िया लोगों की आजीविका के साधनों में कृषि के अतिरिक्त जंगल उत्पाद भी महत्वपूर्ण साधन था। ये लोग खाने के लिए जंगल से महुआ के फूल एकत्र करते थे, काठ कोयला बनाने के लिए लकड़ी एकत्र करते थे और रेशम के कोया (रेशम के कीड़ों का घर या घोंसला) एवं राल एकत्रित करके बेचते थे। इस प्रकार शिकार करना, झूम की खेती करना, खाद्य संग्रह, काठ कोयला बनाना, रेशम के कीड़े पालना आदि पहाड़िया लोगों के मुख्य व्यवसाय थे जबकि संथाल लोग खानाबदोश जीवन को छोड़कर एक स्थान पर बस जाने के कारण स्थायी खेती करने लगे थे। ये लोग अच्छी किस्म की तम्बाकू और सरसों जैसी वाणिज्यिक फसलों को उगाने लगे थे, जिसके परिणामस्वरूप उनकी आर्थिक स्थिति उन्नत होने लगी थी और वे व्यापारियों एवं साहूकारों के साथ लेन-देन भी करने लगे थे।
प्रश्न 5. संथाल विद्रोह पर एक निबन्ध लिखिए।
उत्तर संथालों ने जिस जंगली भूमि को अथक परिश्रम करके कृषि योग्य बनाया था, वह भूमि इस्तमरारी बन्दोबस्त के कारण उनके हाथों से निकलने लगी थी। नए जमींदार उनकी जमीनों के मालिक बनकर उनसे मनमाना कर वसूलने लगे थे। लगान का भुगतान करने के लिए संथाल व्यापारियों और साहूकारों से ऊँची ब्याज दर पर कर्ज लेने के लिए विवश हो जाते थे, ब्याज पचास से लेकर पाँच सौ प्रतिशत तक वसूल किया जाता था। जमींदार, पुलिस, राजस्व और अदालत के नौकरशाह तथा कर्मचारी सभी संथालों का भयंकर शोषण करते थे और बलपूर्वक उनकी सम्पत्ति छीन लेते थे और उन्हें अपमानित करते थे।
संथालों के प्रति इन अत्याचारों ने भयंकर असंतोष का रूप धारण कर लिया, जो 1855-56 ई. में एक सशस्त्र विद्रोह के रूप में प्रस्फुटित हुआ। इस विद्रोह में विशेष रूप से भागलपुर, मानभूम और राजमहल की जनजातियों ने भाग लिया। राजमहल के भगनाडीही गाँव के चुलू संथाल के चार पुत्रों-सिद्ध, कान्हू, चाँद और भैरव ने इस विद्रोह को नेतृत्व किया। 30 जून, 1855 ई. में लगभग दस हजार संथालों की एक सभा आयोजित हुई, इस सभा का सिद्धू और कान्हू ने सम्बोधित किया तथा संथालों पर हो रहे अत्याचारों का खुलकर विरोध किया। इसी सभा में संथालों ने अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी। संथालों ने संगठित होकर डाक तथा रेल व्यवस्था को भागलपुर तथा राजमहल के बीच नष्ट करके इस क्षेत्र पर अपना कब्जा जमा लिया। संथालों ने हथियारों से लैस होकर और साथ में धनुष व जहरीले बाणों को लेकर हिंसक कार्यवाहियाँ प्रारम्भ कर दीं। विदेशियों, बागान मालिकों, रेलवे कर्मचारियों, पुलिस अधिकारियों और व्यापारियों आदि का कत्ल किया और बहुत से यूरोपियों के ठिकानों को वीरभूमि, राजमहल तथा भागलपुर जिलों में नष्ट कर दिया।
ब्रिटिश सरकार इस विद्रोह को देखकर आश्चर्यचकित रह गई। वे इस विद्रोह के लिए तैयार नहीं थी। ब्रिटिश सरकार ने संथालों के इस विद्रोह को कुचलने के लिए एक विशाल सेना भेजी। संथालों ने अंग्रेजी सेना के विरुद्ध खुला विद्रोह नहीं किया। संथाल लोग जंगलों में चले गये और उन्होंने छिपकर अंग्रेज सेना पर आक्रमण की नीति अपनाई। इस कार्यवाही से अंग्रेज सेना भयभीत हो गई। यह विद्रोह इतना गम्भीर हो गया कि अंग्रेजों ने संथाल प्रभावित क्षेत्र को अशान्त क्षेत्र घोषित कर दिया और इस क्षेत्र के विद्रोह को कुचलने के लिए इसे सेना के अधीन कर दिया। तोपों और बन्दुकों से लैस अंग्रेजी सैनिकों ने कठोर दमन नीति का अनुसरण करते हुए इस विद्रोह का दमन कर दिया।
1855-56 के संथाल विद्रोह के बाद सरकार ने संथाल परगना नामक एक पृथक् जिले का निर्माण कर दिया, इसके लिए 5500 वर्ग मील का क्षेत्र भागलपुर और वीरभूमि जिले से लिया गया। औपनिवेशिक सरकार को यह उम्मीद थी कि नए परगने के निर्माण और उसमें कुछ विशेष कानून लागू करने से संथाल लोग संतुष्ट हो जाएँगे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं, संथालों ने 1871 और 1880-81 में पुनः विद्रोह का झण्डा बुलन्द किया। लेकिन अंग्रेजी सेनाओं ने आधुनिक में हथियारों के बल पर विद्रोह को पुन: कुचल दिया।
प्रश्न 6. अमरीकी गृह युद्ध ने भारत में रैयत समुदाय के जीवन को कैसे प्रभावित किया ?
उत्तर- 1861 ई. में अमरीका में गृह युद्ध छिड़ गया। इस गृह युद्ध से ब्रिटेन के कपास क्षेत्र (मंड़ी तथा कारखानों में हड़कंप मच गया। अमरीका से आने वाली कच्ची कपास के आयात में भारी गिरावट आ गई। कच्ची कपास का आयात सामान्य मात्रा का मात्र तीन प्रतिशत रह गया। भारत तथा अन्य देशों को बड़ी व्यग्रता से यह संदेश भेजा गया कि ब्रिटेन को कपास का अधिक मात्रा में निर्यात करे भारत में साहूकारों को अधिक से अधिक अग्रिम धनराशियाँ दी गईं, ताकि वे रैयतों को अधिक से अधिक उधार दे सकें। दक्कन के रैयतों को अकस्मात् ही असीमित ऋण उपलब्ध होने लगा और उन्हें कपास उगाई जाने वाली प्रत्येक एकड़ जमीन के लिए 100 रुपये अग्रिम मिलने लगे। साहूकार भी दीर्घावधिक ऋण देने के लिए एकदम तैयार बैठे थे। अमरीकी संकट के दौरान कपास उगाने वाला क्षेत्रफल दो गुना हो गया। 1882 ई. तक स्थिति यह हो गई कि ब्रिटेन में आयात होने वाले कपास का 90 प्रतिशत भारत से निर्यात होता था।
लेकिन इन सबके बावजूद सभी किसान उत्पादकों को समृद्धि प्राप्त नहीं हो सकी। कुछ धनी किसानों के लिए तो यह काफी लाभकारी सिद्ध हुआ, लेकिन अधिकतर किसान कर्ज के बोझ से और अधिक दब गए। अमरीकी गृहयुद्ध की समाप्ति के पश्चात् भारतीय कपास की माँग धीरे-धीरे घटती चली गई। पूर्व में लिए गए ऋण को नहीं चुकाने के बावजूद रैयत फिर से ऋण लेने पर मजबूर होते गए। धीरे-धीरे साहूकारों ने ऋण देना भी बन्द कर दिया। परिणामतः रैयतों की स्थिति बेहद नाजुक हो गई और अंततः उन्होंने विद्रोह का रास्ता अपना लिया।
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