अध्याय 12
औपनिवेशिक शहर – नगरीकरण, नगर – योजना, स्थापत्य
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
बहु-विकल्पीय प्रश्न
- औपनिवेशिक काल में अखिल भारतीय जनगणना का प्रथम प्रयास कब किया गया था ?
(अ) 1872 ई.,
(स) 1881 ई.,
(ब) 1878 ई.,
(द) 1900 ई. ।
- भारत में रेलवे की शुरुआत कब हुई ?
(अ) 1757 ई.,
(ब) 1853 ई.,
(द) 1881 ई. ।
(स) 1857 ई.,
- ‘राइटर्स बिल्डिंग’ कहाँ स्थापित थी ?
(अ) मद्रास,
(ब) बम्बई,
(स) कलकत्ता,
(द) सूरत
- हिल स्टेशन शिमला की स्थापना कब की गई थी ?
(अ) 1815-16 ई.,
(ब) 1818 ई.,
(स) 1835 ई.,
(द) 1853 ई.
- वायसराय जॉन लारेन्स ने अपनी काउंसिल को अधिकारिक रूप से शिमला में कब स्थानान्तरित किया था ?
(अ) 1853 ई.,
(ब) 1857 ई.,
(स) 1864 3.,
(द) 1881 ई. ।
- भारत में ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी की व्यापारिक गतिविधियों का सबसे पहला केन्द्र कौन-सा था ?
(अ) मद्रास,
(ब) बम्बई,
(स) कलकत्ता,
(द) सूरत।
- अंग्रेजों द्वारा ‘फोर्ट सेंट जॉर्ज’ कहाँ बनवाया गया था ?
(अ) कलकत्ता,
(ब) मद्रास,
(स) सूरत,
(द) बम्बई।
- ‘फोर्ट विलियम’ नामक किला कहाँ बनवाया गया था ?
(अ) बम्बई,
(ब) सूरत,
(स) कलकत्ता,
(द) मद्रास
- लॉर्ड वेलेजली भारत में गवर्नर जनरल बनकर कब आए ?
(अ) 1757 ई.,
(ब) 1764 ई.,
(स) 1798 ई.,
(द) 1864 ई. ।
- कलकत्ता में गवर्नमेण्ट हाउस’ का निर्माण किसने करवाया था ?
(अ) डूप्ले ने,
(ब) लॉर्ड वेलेजली ने,
(स) जॉन लॉरन्स ने,
(द) लॉर्ड क्लाइव ने।
- कलकत्ता में लॉटरी कमेटी का गठन कब हुआ था ?
(अ) 1803 ई.,
(ब) 1817 ई.,
(स) 1857 ई.,
(द) 1864 ई. ।
- लॉर्ड वेलेजली द्वारा नगर नियोजन सम्बन्धी प्रशासकीय आदेश कब जारी किया गया ?
(अ) 1798 ई.,
(स) 1803 ई.,
(ब) 1800 ई.,
(द) 1817 ई. ।
उत्तर- 1. (अ) 2. (ब), 3. (स), 4. (अ), 5. (स), 6. (द), 7. (ब), 8. (स) 9. (स) 10. (ब), 11. (ब), 12. (स) ।
- रिक्त स्थानों की पूर्ति
- ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भारत में सबसे पहली व्यापारिक कोठी वर्ष ……….. में सूरत में स्थापित की थी।
- ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के एजेण्ट वर्ष……….. में मद्रास में बसे ।
- ह्वाइट टाउन में केवल………. लोगों को रहने की अनुमति थी।
- औपनिवेशिक शहरों में भारतीयों की बस्ती को………कहा जाता था।
- ‘मद्रासपटम’ को स्थानीय लोग……… कहते थे।
- पुर्तगालियों ने 1510 ई. में …… में अपनी बस्ती स्थापित की थी।
- डचों ने वर्ष…….. में मछलीपट्नम में अपनी बस्ती स्थापित की थी।
.
- फ्रांसीसियों ने 1673 ई में ……में अपनी बस्ती स्थापित की थी।
- इंग्लैण्ड के शासक ने वर्ष …….में ईस्ट इंडिया कम्पनी को बम्बई पट्टे पर दिया था।
- प्रारम्भ में बम्बई……. द्वीपों का समूह था ।
उत्तर- 1. 1613 ई., 2. 1639 ई. 3. यूरोपीय, 4. ब्लैक टाउन, 5. चेनापट्टनम, 6. पणजी, 7.1605 ई., 8. पांडिचेरी, 9. 1668 ई., 10. सात
सत्य / असत्य
- ईस्ट इंडिया कम्पनी ने भारत में अपना पहला किलेबन्द कारखाना सूरत में स्थापित किया था।
- भारत में आने वाले प्रथम यूरोपीय व्यापारी डच थे।
- इंग्लैण्ड के शासक ने 1668 ई. में बम्बई को ईस्ट इंडिया कम्पनी को पट्टे पर दिया था।
- अंग्रेजों ने कलकत्ता में फोर्ट विलियम नामक व्यापारिक केन्द्र की स्थापना की थी।
- 1835 ई. में अंग्रेजों ने सिक्किम के राजाओं से दार्जिलिंग छीना था।
उत्तर – 1. असत्य, 2. असत्य, 3. सत्य, 4. सत्य, 5. सत्य।
सही जोड़ी बनाइए
‘अ’. ‘ब’
- अंग्रेजों की पहली व्यापारिक कोठी. (i) बम्बई
- पुर्तगालियों की बस्ती. (ii) मद्रास
- फोर्ट सेंट जॉर्ज. (iii) सूरत
- फोर्ट विलियम. (iv) पणजी
- ताजमहल होटल. (v) कलकत्ता
उत्तर 1. (iii), 2. → (iv), 3. → (ii), 4. → (v), 5. → (i).
एक शब्द / वाक्य में उत्तर
- अखिल भारतीय जनगणना का प्रथम प्रयास कब किया गया ?
- भारत सर्वेक्षण (सर्वे ऑफ इंडिया) का गठन कब किया गया था ?
- किस वायसराय ने आधिकारिक रूप से अपनी काउंसिल को शिमला में स्थानांतरित कर दिया था ?
- भारत में रेलवे की शुरुआत कब हुई थी ?
- बम्बई के ‘टाउन हॉल’ का निर्माण कब किया गया था ? 6. बम्बई में स्थित ‘हार्निमान सर्कल’ के निर्माण में कौन-सी स्थापत्य शैली का प्रयोग किया गया था ?
- ‘विक्टोरिया टर्मिनस’ के निर्माण में कौन-सी स्थापत्य शैली का प्रयोग किया गया था ?
- प्रारम्भ में बम्बई कितने द्वीपों का समूह था ?
- औपनिवेशिक भारत की वाणिज्यिक राजधानी का नाम बताइए।
- बम्बई में ‘ताजमहल होटल’ का निर्माण किसने करवाया था ?
उत्तर- 1. 1872 ई. में, 2. 1878 ई. में, 3. जॉन लारेन्स ने, 4. 1853 ई. में, 5. 1833 ई. में 6 नियोक्लासिकल शैली, 7. नव-गॉथिक शैली, 8. सात, 9. बम्बई, 10. जमशेदजी टाटा
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. अखिल भारतीय जनगणना कराने के किसी एक उद्देश्य को लिखिए।
उत्तर- अखिल भारतीय जनगणना का प्रथम प्रयाम 1872 ई. में किया गया था, इसका प्रारम्भिक उद्देश्य शहरीकरण के रुझानों को समझना था।
प्रश्न 2. ब्रिटिश काल के प्रारम्भ में बनाए गए ह्वाइट टाउन और ब्लैक टाउन के अन्तरों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- ब्रिटिश काल में ह्वाइट टाउन किलेबन्द क्षेत्र के अन्दर बनाया जाता था, इसमें यूरोपीय लोग ही निवास करते थे, दीवारों और बुर्जों के द्वारा इसे एक विशेष प्रकार की किलेबन्दी का रूप दिया जाता था जबकि ब्लैक टाउन किलेबन्द क्षेत्र के बाहर स्थापित किया जाता था, इसकी संरचना परम्परागत भारतीय शहरों के समान होती थी।
प्रश्न 3. आरम्भिक हिल स्टेशनों की स्थापना के क्या उद्देश्य थे ?
उत्तर- आरम्भिक हिल स्टेशनों की स्थापना का उद्देश्य ब्रिटिश सेना की आवश्यकताओं से सम्बन्धित थे। सेना को ठहराने, सीमा की निगरानी करने के साथ-साथ शत्रु पर आक्रमण करने के लिए महत्वपूर्ण स्थान थे ।
प्रश्न 4. फोर्ट सेंट जॉर्ज के बाहर अंग्रेजों द्वारा विकसित नए ब्लैक टाउन की किन्हीं दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर- (1) नए ब्लैक टाउन की संरचना परम्परागत भारतीय शहरों के समान थी। उसके मन्दिर और बाजार के आस-पास निवास स्थान का निर्माण किया गया था।
(2) इसकी गलियाँ आड़ी-टेढ़ी और सँकरी थी, इसमें अलग-अलग जातियों के मौहल्ले थे।
प्रश्न 5. दुवाश कौन थे ? वे मद्रास में क्या थे ?
उत्तर-दुवाश स्थानीय भाषा और अंग्रेजी दोनों को बोलने में कुशल थे। ये लोग मद्रास में भारतीयों और गोरों के बीच मध्यस्थ का कार्य करते थे। इनकी सरकार में पहुँच थी और वे इसका प्रयोग अधिकाधिक धन सम्पत्ति इकट्ठा करने में करते थे।
प्रश्न 6. लॉर्ड वेलेजली के कलकत्ता से जाने के बाद नगर नियोजन कार्य जिस एजेन्सी ने संभाला, उसका नाम लिखिए। उसका यह नाम क्यों रखा गया ?
उत्तर- लॉर्ड वेलेजली के भारत से चले जाने के बाद, ‘लॉटरी कमेटी’ ने नगर-नियोजन का कार्य संभाला। यह कमेटी नगर सुधार के लिए आवश्यक धन का प्रबन्ध जनता में लॉटरी बेचकर करती थी, इसलिए यह ‘लॉटरी कमेटी’ के नाम से प्रसिद्ध हुई।
प्रश्न 7. भारत में पहली रेलवे लाइन कब और कहाँ तक बिछाई गई ?
उत्तर भारत में पहली रेलवे लाइन 1853 ई. में बम्बई से थाणे तक बिछाई गई थी।
प्रश्न 8. ब्रिटिशकालीन भारत की किन्हीं दो स्थापत्य शैलियों के नाम लिखिए, जिनका प्रयोग ब्रिटिश प्रशासकों ने किया ?
उत्तर-ब्रिटिशकालीन भारत में निम्नांकित दो प्रमुख स्थापत्य शैलियों का प्रयोग ब्रिटिश प्रशासकों ने किया
(1) नियोक्लासिकल शैली,
(2) नव-गॉथिक शैली।
प्रश्न 9. नव-गॉथिक शैली में बनी बम्बई की ऐसी दो इमारतों का उल्लेख कीजिए जिनके निर्माण के लिए भारतीयों ने पैसे दिए।
उत्तर- (1) बम्बई में बम्बई यूनिवर्सिटी हाल- इसके निर्माण के लिए धन की व्यवस्था एक धनी पारसी व्यापारी सर कोवासजी जहाँगीर रेडीमनी द्वारा की गई थी।
(2) बम्बई यूनिवर्सिटी लाइब्रेरी का घण्टाघर-इसके निर्माण के लिए प्रेमचन्द रायचन्द ने धन दिया था।
प्रश्न 10. स्थापत्य की नव-गॉथिक शैली का सर्वोत्तम उदाहरण कौन-सा है ?
उत्तर- औपनिवेशिक काल में बम्बई में निर्मित ‘विक्टोरिया टर्मिनस’ नव-गॉथिक शैली का सर्वोत्तम उदाहरण है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. पूर्व-औपनिवेशिक काल में कस्बे ग्रामों से किन रूपों में भिन्न होते थे ?
उत्तर-कस्बों का स्वरूप सामान्यतः ग्रामीण क्षेत्रों से भिन्न होता था। कस्बे मुख्यतः विशेष प्रकार की आर्थिक गतिविधियों और संस्कृतियों के प्रतिनिधि के रूप में विकसित हुए थे। ग्रामीण क्षेत्रों में लोग कृषि, पशुपालन और जंगलों से संग्रहण करके अपना जीवन यापन करते थे जबकि कस्बों में शिल्पकार, व्यापारी, प्रशासक और शासक लोग निवास करते थे। ये लोग अपने जीवन-यापन के लिए कृषि अथवा पशुपालन पर निर्भर नहीं थे। वास्तव में इन लोगों का ग्रामीण जनता पर प्रभुत्व होता था; कृषि से प्राप्त करों और अधिशेषों से ये फलते-फूलते थे। कस्बों और शहरों की एक विशेषता यह थी कि कस्बे और शहरों की प्राय: किलेबन्दी की जाती थी, जो इनकी ग्रामीण क्षेत्रों से पृथकता को इंगित करती थी।
प्रश्न 2. औपनिवेशिक शहरों में रिकॉर्ड्स सँभाल कर क्यों रखे जाते थे ?
उत्तर-औपनिवेशिक शहरों में रिकॉर्ड्स को अग्रांकित कारणों से सँभाल कर रखा जाता था
(1) इन रिकॉर्ड्स से शहरों की जनसंख्या के उतार-चढ़ाव का पता लगाया जा सकता था। रिकॉर्ड्स के अध्ययन से ही इस निष्कर्ष पर पहुँचा जाता था कि शहर की आबादी में कितने फीसदी बढ़ोत्तरी हुई है अथवा गिरावट आई है।
(2) इन रिकॉर्ड्स के अध्ययन से ही शहर के सामाजिक, आर्थिक और अन्य परिवर्तनों को समझा जा सकता था।
(3) इन रिकॉर्ड्स के अध्ययन से शहरों में व्यापारिक और औद्योगिक गतिविधियों के विकास को समझा जा सकता था।
(4) इन रिकॉर्ड्स से शहरों में सफाई, सड़क परिवहन और अन्य गतिविधियों की स्थिति को औंका जा सकता था। इसके अतिरिक्त प्रशासनिक कार्यालयों की आवश्यकताओं को समझने और तदनुसार आवश्यक कार्यवाही करने में भी रिकॉर्ड्स से महत्वपूर्ण सहायता प्राप्त होती थी।
प्रश्न 3. औपनिवेशिक सन्दर्भ में शहरीकरण के रुझानों को समझने के लिए जनगणना सम्बन्धी आँकड़े किस हद तक उपयोगी होते हैं ?
उत्तर भारत में शहरीकरण का अध्ययन करने या शहरीकरण के रुझानों को समझने के लिए जनगणना सम्बन्धी आँकड़े बहुत उपयोगी सिद्ध होते हैं, इनसे निम्नांकित महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त होती हैं (1) जनगणना सम्बन्धी आँकड़ों से भारत के विभिन्न शहरों में रहने वाले अलग-अलग तरह के लोगों की कुल जनसंख्या का आसानी से पता लगाया जा सकता है।
(2) जनगणना सम्बन्धी आँकड़ों से विभिन्न शहरों के निर्माण और विस्तार के विषय में पता लगाया जा सकता है।
(3) जनगणना सम्बन्धी आँकड़ों से लोगों के जीवन स्तर, बीमारियों से होने वाली मौतों के विषय में भी जानकारी प्राप्त होती है।
(4) जनगणना सम्बन्धी आँकड़ों से शहरों में रहने वाले लोगों की आयु, लिंग, जाति एवं व्यवसाय आदि के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त होती हैं।
इस प्रकार जनगणना सम्बन्धी आँकड़ों की सहायता से औपनिवेशिक सन्दर्भ में शहरीकरण के रुझानों को समझा जा सकता है।
प्रश्न 4. औपनिवेशिक काल में शहरों के मानचित्रों की उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- औपनिवेशिक सरकार अपने शासन के प्रारम्भिक वर्षों से ही भारत में शहरों के मानचित्र तैयार करवाने पर ध्यान देने लगी थी। सरकर किसी भी जगह की बनावट एवं भू-दृश्य को समझने के लिए नक्शों अर्थात् मानचित्रों को आवश्यक मानती थी। औपनिवेशिक सरकार का मानना था कि मानचित्रों की सहायता से कि वह किसी भी क्षेत्र विशेष पर ज्यादा बेहतर नियन्त्रण कायम कर सकते थे। भारत में जब शहर बढ़ने लगे तो उनके विकास की योजनाओं को तैयार करने, व्यवसायों का विकास करने और औपनिवेशिक सत्ता को मजबूत करने के लिए भी मानचित्रों का निर्माण किया जाने लगा। क्षेत्र विशेष में विकास की योजनाओं को क्रियान्वित करने, व्यावसायिक सम्भावनाओं का पता लगाने और टैक्स व्यवस्था (कराधान) की रणनीति बनाने में भी मानचित्रों से सहायता प्राप्त होती है। शहरों के मानचित्रों से उस स्थान की नदियों, पहाड़ियों और हरियाली की भी जानकारी मिलती है, ये जानकारियाँ रक्षा सम्बन्धी उद्देश्यों के लिए योजनाएँ बनाने में महत्त्वपूर्ण सहयोग देती हैं।
प्रश्न 5. 1857 ई. के विद्रोह के पश्चात् अंग्रेजों ने अपनी बस्तियों की सुरक्षा को लेकर कौन-कौनसे कदम उठाए ? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर- 1857 ई. के विद्रोह ने भारत में अंग्रेजों को इतना आतंकित कर दिया कि उन्हें लगातार विद्रोह की आशंका बनी रहती थी। अतः उन्होंने अपनी सुरक्षा को पूर्ण रूप से सुनिश्चित करने के लिए निम्नांकित कदम उठाए
(1) पुराने कस्बों के आसपास स्थित चरागाहों और खेतों को साफ करवा दिया।
(2) नए शहरी इलाके विकसित किए गए, जिन्हें सिविल लाइन्स’ का नाम दिया गया।
(3) ‘सिविल लाइन्स’ इलाके में केवल ‘गोरे’ ही निवास कर सकते थे। यह इलाका कालों के लिए प्रतिबन्धित कर दिया गया।
(4) छावनियों का सुरक्षित स्थान के रूप में विकास किया गया। छावनियाँ मुख्य शहर से अलग लेकिन जुड़ी हुई होती थीं। छावनियों में बड़े बड़े बगीचों में विशाल बंगलों, बैरकों, परेड मैदान आदि का निर्माण कराया गया। छावनियों में चौड़ी-चौड़ी सड़कों का भी निर्माण कराया गया।
(5) छावनियों में यूरोपीय कमान के अधीन भारतीय सैनिकों को भी तैनात किया गया। ये छावनियाँ यूरोपीय लोगों के लिए एक सुरक्षित आश्रय स्थल के रूप में व्यवस्थित शहरी जीवन का एक नमूना थीं।
प्रश्न 6. ‘ह्वाइट’ और ‘ब्लैक’ टाउन शब्दों का क्या महत्व था ?
उत्तर- ‘ह्वाइट’ और ‘ब्लैक’ टाउन भारतीयों पर अंग्रेजों की श्रेष्ठता के प्रतीक थे। अंग्रेज गोरे थे, इसलिए उनके लिए ‘ह्वाइट टाउन’ और भारतीय काले होते थे, इसलिए उनके लिए ‘ब्लैक टाउन’ बनाए गए थे। ह्राइट टाउन, ब्लैक टाउन की अपेक्षाकृत अधिक सुरक्षित स्थान पर बनाए गए थे; यहाँ चौड़ी सड़कें, दोनों तरफ हरियाली, बाग-बगीचे, बंगले, परेड मैदान, चर्च आदि से लैस छावनियाँ अंग्रेजों के लिए एक सुरक्षित आश्रय स्थल थीं जबकि ब्लैक टाउन अव्यवस्थित तथा गन्दगी से परिपूर्ण थे, इन्हें अराजकता का केन्द्र माना जाता था।
प्रश्न 7. 1853 ई. में रेलवे की शुरुआत ने शहरों की किस प्रकार काया पलट कर दी ? दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर- 1853 ई. में रेलवे की शुरुआत ने शहरों की काया पलट दी। आर्थिक गतिविधियों का परम्परागत शहरों में ह्रास होने लगा। क्योंकि रेलवे के विकास से दूरस्थ क्षेत्र भी जुड़ गए। प्रत्येक रेलवे स्टेशन कच्चे माल के संग्रह केन्द्र बन गए, इसके साथ ही ये आयातित वस्तुओं वितरण केन्द्र भी बन गए। उदाहरणार्थ- (1) भारत में ब्रिटिश सत्ता स्थापित होने से पहले गंगा के किनारे स्थित मिर्जापुर दक्कन से कपास और सूती वस्त्रों के संग्रह का केन्द्र था, किन्तु बम्बई के रेलवे लाइन से जुड़ जाने के बाद यह अपने महत्व को खोने लगा।
(2) रेलवे नेटवर्क के विस्तार के परिणामस्वरूप जमालपुर, वाल्टेयर बरेली जैसे रेलवे नगर अस्तित्व में आने लगे तथा रेलवे वर्कशॉप एवं रेलवे कॉलोनियों की भी स्थापना की जाने लगी।
प्रश्न 8. लॉर्ड वेलेजली को कलकत्ता के हिन्दुस्तानी आबादी वाले क्षेत्र को देखकर जो चिन्ताएँ महसूस हुई, उनका उल्लेख कीजिए।
उत्तर- कलकत्ता में रहते हुए लॉर्ड वेलेजली को शहर के हिन्दुस्तानी आबादी वाले क्षेत्र की सघन भीड़-भाड़, बहुतायत में हरियाली, गंदे दुर्गंध युक्त तालाबों और नालियों की खस्ता हालत देख कर चिन्ता हुई; क्योंकि उनका मानना था कि दलदली जमीन एवं ठहरे हुए गन्दे पानी के तालाबों से जहरीली गैसें उत्पन्न होती हैं, जिनसे लोगों में बीमारियाँ फैलती हैं। अतः 1803 ई. में लॉर्ड वेलेजली ने कलकत्ता के नगर-नियोजन की आवश्यकता पर जोर देते हुए एक प्रशासकीय आदेश जारी किया, जिसके तहत नगर-नियोजन की उद्देश्य पूर्ति के लिए अनेक कमेटियों का गठन किया गया। लॉर्ड वेलेजली के कार्यकाल में शहर को साफ-सुथरा बनाने के लिए अनेक बाजारों, घाटों, कब्रिस्तानों और चर्मशोधन इकाइयों को साफ कर दिया गया अथवा हटा दिया गया। इसके पश्चात् शहरों की सफाई और नगर नियोजन की परियोजनाओं में ‘जन स्वास्थ्य’ एक प्रमुख उद्देश्य बन गया।
प्रश्न 9. ब्रिटिश शासकों ने किन उद्देश्यों से विभिन्न प्रकार के भवनों के निर्माण में यूरोपीय स्थापत्य शैली का अनुसरण किया ?
उत्तर- ब्रिटिश शासकों ने निम्नांकित उद्देश्यों से विभिन्न प्रकार के भवनों के निर्माण में यूरोपीय स्थापत्य शैली का अनुसरण किया
(1) अंग्रेज भारत में विदेशी थे, यह देश उनके लिए अजनबी था अतः वे यहाँ बनाए जाने वाले भवनों में यूरोपीय स्थापत्य शैली का अनुसरण करके एक अजनबी देश में जाना-पहचाना सा भू-दृश्य रचना चाहते थे।
(2) अंग्रेज भारत में बनाए जाने वाले भवनों में यूरोपीय स्थापत्य शैली का प्रयोग अपनी श्रेष्ठता, अधिकार एवं सत्ता के प्रतीक के रूप में करना चाहते थे।
(3) अंग्रेज स्वयं को प्रत्येक दृष्टि से भारतीयों से श्रेष्ठ समझते थे। जातीय विभेद भारत में औपनिवेशिक प्रशासन का प्रमुख आधार था। यूरोपीय ढंग के दिखने वाले भवनों के निर्माण से वे औपनिवेशिक स्वामियों एवं भारतीय प्रजा के मध्य अन्तर को और अधिक उजागर करना चाहते थे।
प्रश्न 10. औपनिवेशिक शासकों के लिए हिल स्टेशन क्यों महत्वपूर्ण थे ? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
औपनिवेशिक शासन में हिल स्टेशनों की स्थापना क्यों की गई थी ?
उत्तर- (1) हिल स्टेशन फौजियों को ठहराने, सीमा की देख-रेख करने और शत्रु पर आक्रमण करने के लिए महत्वपूर्ण स्थान थे।
(2) हिल स्टेशन कई मायनों में लाभप्रद थे। यहाँ की जलवायु ठण्डी और मृदु थी जो इंग्लैण्ड की जलवायु से समानता रखती थी।
(3) अंग्रेज गर्म मौसम को बीमारियों की जड़ मानते थे, इसलिए हिल स्टेशन उनके लिए महत्वपूर्ण थे।
(4) हिल स्टेशनों को सेनेटोरियम के रूप में भी विकसित किया गया था। इसलिए सिपाहियों को यहाँ विश्राम करने और इलाज कराने के लिए भेजा जाता था।
(5) हिल स्टेशन ऐसे अंग्रेजों और यूरोपियनों के लिए भी आदर्श स्थान थे, जो अपने घर जैसी बस्तियाँ बसाना चाहते थे। इनकी इमारतें यूरोपीय शैली की होती थी।
दीर्घ उत्तरीय / विश्लेषणात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. पूर्व-औपनिवेशिक काल में मध्यकालीन शहरों के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दियों के दौरान भारत में मुगल शासकों द्वारा अनेक शहरों का विकास किया गया था, ये शहर जनसंख्या के केन्द्रीकरण, अपने भव्य विशाल भवनों और शाही प्रतिष्ठा व समृद्धि के लिए जाने जाते थे। मुगलों के शासन के दौरान आगरा, दिल्ली और लाहौर सत्ता और शाही प्रशासन के प्रमुख केन्द्र थे। मुगल प्रशासन के अन्तर्गत मनसबदार और जमींदार, जिन्हें साम्राज्य के विभिन्न भागों में क्षेत्र प्रदान किए गए थे, अपने आवास सामान्यत: इन शहरों में ही रखते थे। इन सत्ता केन्द्रों में आवास प्रतिष्ठा का विषय माना जाता था। सत्ता के इन महत्त्वपूर्ण केन्द्रों में शासक और कुलीन वर्ग को विभिन्न प्रकार की सेवाएँ प्रदान करने के लिए अन्य अनेक लोग भी निवास करते थे। शिल्पकार कुलीन वर्ग के परिवारों की जरूरतों की पूर्ति के लिए अनेक प्रकार के विशिष्ट हस्तशिल्पिों का उत्पादन करते थे। शहर के निवासियों और सेना की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ग्रामीण क्षेत्रों से बड़ी मात्रा में अनाज शहर के बाजारों में लाया जाता था। राजकोष भी शाही राजधानी में स्थित होता था, अतः राज्य का राजस्व भी नियमित रूप से राजधानी में आता था। मुगलकाल में महत्त्वपूर्ण नगर एक दीवार से चारों ओर से घिरे होते थे। नगर में प्रवेश के लिए अनेक द्वार होते थे, इन द्वारों से आने-जाने पर नियन्त्रण रखा जाता था। नगरों के अन्दर बाग-बगीचे, मस्जिदें, मन्दिर, मकबरे, महाविद्यालय, बाजार और कारवाँ सराय आदि स्थित होती थीं। सम्राट का निवास एक किलेबन्द महल में होता था। नगर में महल और मुख्य मस्जिद आकर्षण के प्रमुख केन्द्र होते थे।
दक्षिण भारत के प्रमुख नगरों में मदुरई और काँचीपुरम महत्त्वपूर्ण थे, इन नगरों में मुख्य केन्द्र मन्दिर होता था। ये नगर व्यापारिक गतिविधियों के भी महत्त्वपूर्ण केन्द्र माने जाते थे। इन नगरों में धार्मिक त्यौहार अक्सर मेलों के साथ मनाए जाते थे, जिसके परिणामस्वरूप इन नगरों में तीर्थ और व्यापार स्वभाविक तौर पर परस्पर जुड़ जाते थे। इन नगरों में सामान्यत: शासक को धार्मिक संस्थानों का सर्वोच्च अधिकारी और संरक्षक माना जाता था। समाज एवं शहर में अन्य समूहों और वर्गों के स्थान को शासक के साथ उनके सम्बन्धों से आँका जाता था।
प्रश्न 2. अठारहवीं शताब्दी में शहरी केन्द्रों का रूपान्तरण किस तरह हुआ ?
उत्तर- अठारहवीं शताब्दी में भारत में नगरों के स्वरूप में अनेक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन परिलक्षित हुए। भारत में राजनीतिक तथा व्यापारिक पुनर्गठन के परिणामस्वरूप पुराने नगर पतनोन्मुख होने लगे और नए नगर विकसित होने लगे। मुगल सत्ता के क्रमिक पतन के फलस्वरूप उसके शासन से सम्बद्ध नगरों का भी पतन होने लगा। मुगलों के राजधानी नगर आगरा और दिल्ली भी अपने राजनीतिक प्रभुत्व से वंचित होने लगे। अब नई क्षेत्रीय शक्तियों के विकास के फलस्वरूप नई क्षेत्रीय राजधानियों के रूप में लखनऊ, हैदराबाद, सेरिंगपट्म (श्रीरंगपट्टम), पूना (पुणे), नागपुर, बड़ौदा तथा तंजौर (तंजावुर) नामक नगरों का महत्त्व बढ़ने लगा। व्यापारी, प्रशासक, शिल्पकार और अन्य लोग रोजगार तथा संरक्षण की खोज में पुराने मुगल नगर केन्द्रों को छोड़कर नए राजधानी नगरों में बसने लगे। नई क्षेत्रीय शक्तियों के मध्य प्रभुत्व स्थापना को लेकर निरन्तर संघर्षरत रहने के कारण इन राज्यों में भाड़े के सैनिकों के लिए रोजगार के पर्याप्त अवसर सुलभ थे। इसी दौरान परिस्थितियों से जनित अवसरों का लाभ उठाते हुए कुछ स्थानीय विशिष्ट लोगों और उत्तर भारत में मुगल सत्ता से सम्बद्ध अधिकारियों ने ‘कस्बे’ और ‘गंज’ जैसी नई शहरी बस्तियों को भी बसाया।
इस काल में व्यापार-तन्त्रों में होने वाले परिवर्तनों ने शहरी केन्द्रों के इतिहास को भी प्रभावित किया। यूरोप की व्यापारिक कम्पनियों ने मुगलकाल में ही भारत के विभिन्न स्थानों पर अपनी बस्तियाँ स्थापित कर ली थीं। उदाहरणार्थ- पुर्तगालियों ने 1510 ई. में पणजी में, डचों ने 1605 ई. में मछलीपट्नम में, अंग्रेजों ने 1639 ई. में मद्रास में और फ्रांसीसियों ने 1673 ई. में पांडिचेरी (पुदुचेरी) में अपनी बस्तियाँ स्थापित कर ली थीं। व्यापारिक गतिविधियों के विकास के साथ-साथ इन व्यापारिक केन्द्रों के आस-पास नवीन नगरों का विकास प्रारम्भ हो गया।
भारत में 18वीं शताब्दी के मध्य से परिवर्तन का एक नवीन चरण विकसित हुआ। इस काल में सत्रहवीं शताब्दी में विकसित हुए सूरत, मछलीपट्नम और ढाका जैसे महत्त्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र पतन की ओर अग्रसर हो गए तथा व्यापारिक गतिविधियाँ अन्य स्थानों पर केन्द्रित होने लगीं। 1757 ई. में प्लासी के युद्ध के परिणामस्वरूप अंग्रेजों ने बंगाल में राजनीतिक नियन्त्रण प्राप्त किया। इस उपलब्धि के साथ-साथ ईस्ट इंडिया कम्पनी के व्यापार में तेजी के साथ वृद्धि होने लगी, जिससे मद्रास, कलकत्ता और बम्बई जैसे औपनिवेशिक बन्दरगाह शहर तीव्रता से नई आर्थिक राजधानियों के रूप में विकसित हो गए। शीघ्र ही ये शहर औपनिवेशिक प्रशासन और सत्ता के प्रमुख केन्द्र बन गए। इन औपनिवेशिक शहरों को नए तरीकों से व्यवस्थित किया गया तथा इनमें नए भव्य और विशाल भवनों तथा संस्थानों को स्थापित किया गया, इससे इन नगरों में नए रोजगार सृजित हुए। इन औपनिवेशिक शहरों के प्रति लोगों का आकर्षण इतना अधिक बढ़ गया कि लगभग 1800 ई. तक ये शहर जनसंख्या की दृष्टि से भारत के विशालतम शहर बन गए।
प्रश्न 3. प्रमुख भारतीय व्यापारियों ने औपनिवेशिक शहरों में खुद को किस तरह स्थापित किया ?
उत्तर- प्रमुख भारतीय व्यापारियों ने औपनिवेशिक शहरों अर्थात् मद्रास, कलकत्ता और बम्बई में एजेण्टों तथा विचौलियों के रूप में काम करना शुरू कर दिया था। उन्होंने ब्लैक टाउन में बाजारों के आस-पास परम्परागत ढंग के दालानी मकान बनवाए। इसके अतिरिक्त उन्होंने भविष्य में पैसा लगाने के लिए शहर के अन्दर बड़ी-बड़ी जमीनें भी खरीद ली थीं। ये लोग अंग्रेज स्वामियों को प्रभावित करने के लिए त्योहारों पर रंगीन भोजों का आयोजन किया करते थे। इन लोगों ने समाज में अपनी उच्च स्थिति को दर्शाने के लिए मन्दिर भी बनवाए। मद्रास में कुछ दुवाश व्यापारी ऐसे भारतीय थे, जो स्थानीय भाषा और अंग्रेजी, दोनों ही कुशलता से बोलना जानते थे। अतः ये लोग भारतीय समाज और गोरों के बीच मध्यस्थ का काम करते थे। इस वजह से इनकी सरकार में भी अच्छी पहुँच थी और वे इसका प्रयोग अधिक-से-अधिक सम्पत्ति इकट्ठा करने के लिए करते थे। चूँकि ये लोग धन सम्पन्न हो गए थे, अत: ब्लैक टाउन में परोपकारी कार्यों के लिए और मन्दिरों के लिए धन दिया करते थे। इस प्रकार इन लोगों ने खुद को औपनिवेशिक शहरों में स्थापित कर लिया था। इसके परिणामस्वरूप समाज में इनकी स्थिति सम्मानीय और प्रभावशाली थी।
प्रश्न 4. औपनिवेशिक शहर में सामने आने वाले नए तरह के सार्वजनिक स्थान कौन-से थे ? उनके क्या उद्देश्य थे ?
उत्तर-औपनिवेशिक शहर में सामने आने वाले नए तरह के सार्वजनिक स्थान और उनके उद्देश्य निम्नांकित थे –
(1) औपनिवेशिक शहरों को बंदरगाहों के रूप में इस्तेमाल किया गया। यहाँ जहाजों को लादने और उनसे उतारने का काम होता था।
(2) समुद्र तट से दूर कम्पनी के प्रमुख प्रशासकीय कार्यालयों की स्थापना की गई। कलकत्ता की राइटर्स बिल्डिंग इसी प्रकार का एक कार्यालय थी।
(3) समुद्र किनारे गोदाम, वाणिज्यिक कार्यालय, जहाजरानी उद्योग के लिए बीमा एजेंसियाँ, यातायात डिपो तथा बैंकों की स्थापना होने लगी।
(4) 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में ‘सिविल लाइन्स’ के नाम से नए शहरी क्षेत्र का प्रचलन हुआ। सिविल लाइन्स में केवल गोरे ही निवास कर सकते थे।
(5) नए शहरों में टाउनहॉल, पार्क, क्लब और बीसवीं शताब्दी में सिनेमाघर जैसे सार्वजनिक स्थान अस्तित्व में आने लगे थे। इनके परिणामस्वरूप लोगों को परस्पर मिलने-जुलने के अवसर मिलने लगे।
(6) 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भारत में रेलवे नेटवर्क का तीव्र गति से विस्तार होने के कारण प्रमुख औपनिवेशिक नगर शेष भारत से जुड़ गए और कच्चे माल व श्रम के स्रोत देहाती एवं दूरवर्ती क्षेत्र भी इन बंदरगाह शहरों से जुड़ने लगे। शहरों में रेलवे स्टेशन, रेलवे वर्कशॉप और रेलवे कॉलोनियों जैसे स्थान अस्तित्व में आने लगे।
(7) औपनिवेशिक शहरी विकास के एक महत्वपूर्ण अंग के रूप में हिल स्टेशन अर्थात् पर्वतीय सैरगाह विकसित किए गए इन हिल स्टेशनों को फौजियों को ठहराने, सीमा की देखभाल करने और शत्रु पर आक्रमण करने के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण समझा जाता था। विशाल संख्या में सैनिकों की उपस्थिति के कारण ये स्थान पहाड़ों पर नई छावनियों के रूप में विकसित होने लगे।
मौलिक रूप से इन स्थानों और भवनों की स्थापना रक्षा, प्रशासन एवं वाणिज्य जैसी प्राथमिक आवश्यकताओं को पूरा करने के उद्देश्य से की गई थी, किन्तु वास्तव में शाही सत्ता, राष्ट्रवाद और धार्मिक वैभव जैसे विचारों के भी प्रतिनिधि थे।
प्रश्न 5. नए शहरों में सामाजिक सम्बन्ध किस हद तक बदल गए ?
उत्तर- नवीन शहरों का परिवेश अनेक रूपों में पुराने शहरों के परिवेश से सर्वथा भिन्न था। पुराने शहरों में विद्यमान पारस्परिक सामंजस्य एवं जान-पहचान का नवीन शहरों में अभाव था। नवीन शहरों में लोग काफी व्यस्त रहते और उनका जीवन सदैव दौड़ता – भागता सा प्रतीत होता था। इन शहरों में एक ओर तो अत्यधिक सम्पन्नता दिखाई देती थी, जबकि दूसरी ओर अत्यधिक दरिद्रता भी विद्यमान थी। कहने का तात्पर्य यह है कि इन नवीन शहरों में अत्यधिक धनी व्यक्ति भी रहते थे और अत्यधिक गरीब भी यहाँ रहते थे। परिणामतः यहाँ लोगों का परस्पर मिलना-जुलना सीमित हो गया था। लेकिन इन नवीन शहरों में टाउन हॉल, सार्वजनिक पार्को, रंगशालाओं और बीसवीं शताब्दी में सिनेमा हॉलों जैसे सार्वजनिक स्थलों के बनने से शहरों में भी लोगों को मिलने-जुलने की उत्तेजक नई जगह और अवसर मिलने लगे थे। इन नवीन शहरों में नवीन सामाजिक समूह विकसित हो जाने के कारण पुरानी पहचानें और सम्बन्ध महत्त्वपूर्ण नहीं रहे।
इन नवीन शहरों के आकर्षण के कारण विभिन्न वर्गों के लोग शहरों में आकर बसने लगे थे। शहरों में विभिन्न प्रकार के नए-नए व्यवसायों के विकसित हो जाने के कारण शहरों में क्लर्कों, शिक्षकों, वकीलों, चिकित्सकों, इंजीनियरों और एकाउन्टेंट्स आदि की माँग निरन्तर बढ़ती जा रही थी। परिणामत: शहरों में मध्य वर्ग’ की वृद्धि होने लगी, यह वर्ग बौद्धिक एवं आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न था। शिक्षित होने के कारण इस वर्ग का समाज में विशेष महत्त्व था।
नवीन शहरों के परिवेश ने महिलाओं के सामाजिक जीवन को प्रभावित किया। नवीन शहरों में महिलाओं के लिए अनेक नए अवसर उपलब्ध थे। मध्य वर्ग की महिलाओं ने पत्र-पत्रिकाओं, आत्मकथाओं और पुस्तकों के माध्यम से समाज में अपनी स्वतन्त्र पहचान बनाने के प्रयत्न प्रारम्भ कर दिए थे। लेकिन पितृसत्तात्मक भारतीय समाज महिलाओं के इन प्रयत्नों हेतु असहमत था। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि महिलाओं की शिक्षा का समर्थन करने वाले समाज सुधारक भी महिलाओं को माँ और पत्नी की परम्परागत भूमिकाओं में ही देखना चाहते थे। लेकिन शिक्षा के प्रसार ने महिलाओं में जागरूकता उत्पन्न की और समय के साथ-साथ महिलाओं की सार्वजनिक स्थानों पर उपस्थिति बढ़ने लगी। अब वह सेविकाओं, फैक्ट्री मजदूरों, शिक्षिका, रंगकर्मी और फिल्म कलाकार के रूप में शहर के नए व्यवसायों में सम्मिलित होने लग लेकिन घर से निकलकर सार्वजनिक स्थानों पर जाने वाली महिलाओं को लम्बे समय तक सामाजिक रूप से सम्मानित नहीं समझा जाता था।
नवीन शहरों में विभिन्न व्यवसायों के अस्तित्व में आने के फलस्वरूप शहरों में श्रम करने वाले गरीब मजदूरों अथवा कामगारों का एक नया वर्ग उभर रहा था। ग्रामीण क्षेत्रों के गरीब लोग रोजगार की खोज में शहरों की ओर भाग रहे थे, तो कुछ लोग शहरों की जीवन शैली के आकर्षण से शहरों की ओर खिचे आ रहे थे। शहरों में मजदूरों का जीवन अनेक संघर्षों से परिपूर्ण था। शहरों में वस्तुएँ महंगी होने के कारण यहाँ रहने का खर्च उठाना मजदूरों के लिए आसान नहीं था। इसके अतिरिक्त मजदूरों की नौकरी भी पक्की नहीं होती थी और हमेशा काम मिलने की भी गारंटी नहीं होती थी। इसलिए ये पुरुष प्रवासी अपने जीवन निर्वाह की लागत पर अंकुश रखने के उद्देश्य से अपने परिवार गाँव में छोड़कर अकेले ही शहर में आते थे। यद्यपि शहरों में इनका जीवन यापन दुष्कर था, फिर भी इन गरीब – मजदूरों ने शहरों में अपनी एक अलग जीवंत शहरी संस्कृति की रचना कर ली थी। ये लोग उत्साहपूर्वक अपने धार्मिक त्यौहारों, तमाशों (लोक रंगमंच) और स्वांग आदि में भाग लेते थे। ये लोग प्राय: तमाशों और स्वांगों में अपने भारतीय और यूरोपीय मालिकों का मजाक उड़ाया करते थे।
प्रश्न 6 औपनिवेशिक काल में भवन निर्माण में प्रयुक्त नव-गॉथिक शैली में बनवाई गई इमारतों का विवरण दीजिए।
उत्तर- औपनिवेशिक काल में भारत में अनेक इमारतों के निर्माण में नव-गॉथिक शैली का प्रयोग किया गया। इस स्थापत्य शैली की प्रमुख विशेषता यह थी कि इमारतों में छतें उठी हुई ऊँची, मेहराबें नोंकदार और साज-सज्जा बारीक होती थी। गॉथिक शैली का उद्भव विशेषतः गिरजाघरों की इमारतों से हुआ था, जिनका बड़ी संख्या में निर्माण मध्य काल में उत्तरी यूरोप में किया गया था। 19वीं शताब्दी के मध्य में इंग्लैण्ड में भवन निर्माण के क्षेत्र में नव-गॉथिक शैली को दोबारा अपना लिया गया था। यह वही समय था जब बम्बई में औपनिवेशिक सरकार द्वारा बुनियादी ढाँचे का निर्माण कराया जा रहा था। औपनिवेशिक सरकार ने बम्बई में इस काल में विभिन्न इमारतों का निर्माण कराने के लिए इसी स्थापत्य शैली का चुनाव किया था।
औपनिवेशिक शासन के दौरान बम्बई में सचिवालय, बम्बई विश्वविद्यालय और उच्च न्यायालय जैसी अनेक भव्य इमारतें नव-गॉथिक शैली के आधार पर निर्मित की गईं। यहाँ यह तथ्य उल्लेखनीय है कि इनमें से कुछ इमारतों के निर्माण के लिए धनराशि भारतीयों के द्वारा दी गई थी। उदाहरणार्थ- ‘यूनिवर्सिटी हॉल’ के निर्माण के लिए धनराशि सर कोवासजी जहाँगीर रेडीमनी द्वारा प्रदान की गई थी, जोकि एक धनी पारसी व्यापारी थे। इसी प्रकार ‘यूनिवर्सिटी लाइब्रेरी’ के घण्टाघर के निर्माण के लिए धन श्री प्रेमचन्द रायचन्द ने प्रदान किया था, इस घण्टाघर का नाम उनकी माँ के नाम पर राजाबाई टावर रखा गया था। भारतीय व्यापारी वर्ग नव-गॉथिक शैली को पसन्द करता था, क्योंकि उनका मानना था कि अंग्रेजों के अनेक विचारों के समान उनकी भवन निर्माण शैलियाँ भी प्रगतिशील थीं। इस बम्बई को एक आधुनिक शहर बनाया जा सकता है।
औपनिवेशिक काल में बम्बई में निर्मित ‘विक्टोरिया टर्मिनस’ नव-गॉथिक शैली का सर्वोत्तम उदाहरण है। यह ग्रेट इण्डियन पेनिनस्युलर रेलवे कम्पनी का स्टेशन और मुख्यालय था। चूँकि अंग्रेज प्रशासक अखिल भारतीय रेलवे नेटवर्क के सफल निर्माण को अपनी एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानते थे, इसलिए उन्होंने शहरों में रेलवे स्टेशनों के डिजाइन एवं निर्माण पर पर्याप्त धनराशि निवेश की थी और अनेक स्टेशनों का निर्माण कराया था। मध्य बम्बई के क्षेत्र में नव-गॉथिक शैली की अनेक इमारतों का निर्माण किया गया था। निःसन्देह नव-गॉथिक शैली शहर के चरित्र को विशिष्टता प्रदान करती थी।
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