अध्याय 13
महात्मा गाँधी और राष्ट्रीय आन्दोलन सविनय अवज्ञा और उससे आगे
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
बहु-विकल्पीय प्रश्न
- महात्मा गाँधी का जन्म कब हुआ था ?
(अ) 1867 ई.,
(ब) 1869 ई.,
(स) 1877 ई.,
(द) 1879 ई. ।
- महात्मा गाँधी दक्षिण अफ्रीका से भारत कब लौटे ?
(अ) 1893 ई.,
(ब) 1915 ई.,
(स) 1920 ई.,
(द) 1928 ई.
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना कब हुई थी ?
(अ) 1867 ई.,
(ब) 1869 ई.,
(स) 1885 ई.,
(द) 1900 ई.।
- गाँधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन कब शुरू किया गया ?
(अ) 1915 ई.,
(ब) 1920 ई.,
(स) 1928 ई.,
(द) 1930 ई. ।
- गाँधीजी ने भारत में सत्याग्रह का प्रथम प्रयोग कहाँ किया था ?
(अ) चम्पारन में,
(ब) अहमदाबाद में,
(स) डांडी में,
(द) इनमें से कोई नहीं।
- गाँधीजी द्वारा सविनय अवज्ञा आन्दोलन कब शुरू किया गया ?
(अ) 1920 ई.,
(ब) 1928 ई.,
(स) 1930 ई.,
(द) 1942 ई.
- गाँधी-इरविन समझौता कब हुआ था ?
(अ) 1929 ई. में,
(ब) 1930 ई. में,
(स) 1931 ई. में,
(द) 1932 ई. में।
- गाँधीजी ने किस गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया था ?
(अ) प्रथम,
(स) तृतीय,
(ब) द्वितीय,
(द) इनमें से कोई नहीं।
- महात्मा गाँधी ने भारत छोड़ो आन्दोलन’ कब शुरू किया ?
(अ) 1920 ई.,
(स) 1940 ई.,
(ब) 1930 ई..
(द) 1942 ई. ।
- महात्मा गाँधी ने ‘करो या मरो’ का नारा किस आन्दोलन में दिया था ?
(अ) व्यक्तिगत सत्याग्रह,
(ब) असहयोग आन्दोलन,
(स) सविनय अवज्ञा आन्दोलन,
(द) भारत छोड़ो आन्दोलन ।
- महात्मा गाँधी के राजनीतिक गुरु कौन थे ?
(अ) लाला लाजपत राय,
(ब) गोपाल कृष्ण गोखले
(स) विपिन चन्द्र पाल,
(द) बाल गंगाधर तिलक ।
उत्तर- 1. (ब), 2. (ब), 3. (स), 4. (ब), 5. (अ), 6. (स), 7. (स), 8. (ब), 9. (द) 10. (द) 11. (ब)।
- रिक्त स्थानों की पूर्ति
- महात्मा गाँधी का पूरा नाम ………. है
- महात्मा गाँधी की माता का नाम………है।
- महात्मा गाँधी द्वारा प्रथम सत्याग्रह वर्ष……… में चम्पारन में किया गया था।
- प्रिंस ऑफ वेल्स का भारत आगमन ………में हुआ था।
- भारत का विभाजन ………हुआ था।
उत्तर- 1. मोहनदास करमचन्द गाँधी, 2. पुतलीबाई, 3. 1917 ई., 4. 1921 ई., 5. 1947 ई.।
सत्य / असत्य
- महात्मा गाँधी के राजनीतिक गुरु मदन मोहन मालवीय थे।
- महात्मा गाँधी ने साबरमती आश्रम की स्थापना दिल्ली में की थी।
- महामा गाँधी ने चौरी-चौरा की हिंसात्मक घटना से आहत होकर असहयोग आन्दोलन स्थगित कर दिया था।
- प्रथम गोलमेज सम्मेलन 1930 ई. में पेरिस में आयोजित किया गया था।
- द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में महात्मा गाँधी कांग्रेस प्रतिनिधि के रूप में शामिल हुए थे।
उत्तर- 1. असत्य, 2. असत्य, 3. सत्य, 4. असत्य, 5. सत्य।
सही जोड़ी बनाइए
‘अ’। ‘ब’
- 1920. (i) दाण्डी यात्रा
- 1928. (ii) असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ
- 1930. (iii) भारत छोड़ो आन्दोलन प्रारम्भ
- 1931. (iv) साइमन कमीशन का आगमन
- 1942 ई. (v) गाँधी-इरविन समझौता
उत्तर – 1. → (ii), 2. → (iv), 3. → (i), 4. → (v), 5. → (iii).
एक शब्द / वाक्य में उत्तर
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना कब हुई थी ?
- दक्षिण अफ्रीका जाने वाले प्रथम भारतीय बैरिस्टर कौन थे ?
- गाँधीजी अपना राजनीतिक गुरु किसे मानते थे ?
- जलियाँवाला बाग की घटना कब हुई थी ?
- गाँधीजी ने किस घटना के कारण असहयोग आन्दोलन स्थगित कर दिया था ?
- साइमन कमीशन का गठन किसकी अध्यक्षता में किया गया था ?
- कांग्रेस के किस अधिवेशन में पूर्ण स्वतन्त्रता’ को अन्तिम लक्ष्य घोषित किया गया था ?
- महात्मा गाँधी ने नमक यात्रा (दाण्डी) कब प्रारम्भ की ?
- ‘कैबिनेट मिशन’ कब भारत आया ?
- माउन्टबेटन योजना की घोषणा कब की गई ?
उत्तर- 1. 1885 ई., 2. मोहनदास करमचन्द गाँधी, 3. गोपाल कृष्ण गोखले, 4. 1919 ई., 5. चौरी-चौरा की हिंसात्मक घटना, 6. सर जॉन साइमन, 7. 1929 ई. के लाहौर अधिवेशन में 8. 12 मार्च, 1930 ई., 9. 1946 ई., 10. 3 जून, 1947 ई.
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के 1919 ई.-1947 ई. के काल को गाँधी युग’ के नाम से क्यों जाना जाता है ?
उत्तर भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के 1919 ई.-1947 ई. के काल को ‘गाँधी युग’ के नाम से इसलिए जाना जाता है, क्योंकि इस अवधि में महात्मा गाँधी ही राष्ट्रीय आन्दोलन के केन्द्र बिन्दु बने रहे।
प्रश्न 2. महात्मा गाँधी का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
उत्तर- महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 ई. को काठियावाड़ (गुजरात) के पोरबन्दर नामक स्थान पर हुआ था।
प्रश्न 3. भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में कौन-से नेताओं को त्रिमूर्ति के नाम से जाना जाता है ?
उत्तर भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक और विपिन चन्द्र पाल को ‘ त्रिमूर्ति’ के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 4. महात्मा गाँधी ने भारत में सत्याग्रह का प्रथम प्रयोग कहाँ और कब किया था?
उत्तर- महात्मा गाँधी ने भारत में सत्याग्रह का प्रथम प्रयोग बिहार के चम्पारन जिले में 1917 ई. में किया था।
प्रश्न 5. भारत में महात्मा गाँधी की प्रथम महत्वपूर्ण सार्वजनिक उपस्थिति कब और कहाँ हुई थी ?
उत्तर भारत में महात्मा गाँधी की प्रथम महत्वपूर्ण सार्वजनिक उपस्थिति फरवरी, 1916 ई. में बनारस में ‘बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय’ के उद्घाटन समारोह में हुई थी।
प्रश्न 6. भारतीयों ने साइमन कमीशन का विरोध क्यों किया ? एक प्रमुख कारण लिखिए।
उत्तर- भारतीयों ने साइमन कमीशन का विरोध इसलिए किया, क्योंकि इसके सभी सदस्य अंग्रेज थे। इस कमीशन के सदस्यों में एक भी भारतीय नहीं था।
प्रश्न 7. महात्मा गाँधी ने दाण्डी यात्रा कहाँ से और कब प्रारम्भ की ?
उत्तर- महात्मा गाँधी ने दाण्डी यात्रा साबरमती आश्रम से 12 मार्च, 1930 ई. को प्रारम्भ की थी।
प्रश्न 8. क्रिप्स मिशन कब भारत आया ? इसका क्या उद्देश्य था ?
उत्तर- क्रिप्स मिशन 23 मार्च, 1942 ई. को दिल्ली पहुँचा था, इसका उद्देश्य भारत के राजनीतिक एवं वैधानिक गतिरोध को दूर करना था।
प्रश्न 9. भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान महात्मा गाँधी ने कौन-सा नारा दिया था ?
उत्तर- भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान महात्मा गाँधी ने ‘करो या मरो’ का नारा दिया था।
प्रश्न 10. कैबिनेट मिशन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर- 1946 ई. में ब्रिटिश सरकार ने भारतीय नेताओं से अनौपचारिक विचार-विमर्श के लिए एक संसदीय दल भारत भेजा, जिसे कैबिनेट मिशन’ के नाम से जाना जाता है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. 1915 ई. में जब गाँधीजी भारत लौटे तो उन्होंने यहाँ कौन-से परिवर्तन देखे ? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर- 1915 ई. में जब गाँधीजी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे तब तक भारत में अनेक परिवर्तन घटित हो चुके थे। यद्यपि भारत अभी भी एक ब्रिटिश उपनिवेश था, तथापि राजनीतिक दृष्टि से भारत पहले की अपेक्षा अब कहीं अधिक जागरूक एवं सक्रिय हो गया था। इस समय तक भारत के लगभग सभी प्रमुख शहरों और कस्बों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की शाखाएँ स्थापित हो चुकी थीं। इसी दौरान ब्रिटिश सरकार द्वारा 1905 ई. में किए गए बंग-भंग के विरोध में प्रारम्भ हुए ‘स्वदेशी आन्दोलन’ के परिणामस्वरूप भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का मध्यम वर्गों के बीच विस्तार हो गया था। इस आन्दोलन ने महाराष्ट्र के बाल गंगाधर तिलक, बंगाल के विपिन चन्द्र पाल और पंजाब के लाला लाजपत राय जैसे राष्ट्रवादी नेताओं को जन्म दिया, जो भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में ‘लाल-बाल-पाल’ के नाम से जाने जाते हैं। इन नेताओं ने अंग्रेजी शासन के विरुद्ध उग्र राष्ट्रीय आन्दोलन का समर्थन किया, वहीं उदारवादी नेताओं का एक समूह अंग्रेजों के प्रति विशुद्ध संवैधानिक और विनम्र नीति का समर्थन कर रहा था। महात्मा गाँधी इन उदारवादी नेताओं में से गोपाल कृष्ण गोखले से काफी प्रभावित थे, उन्होंने उन्हें अपना राजनीतिक गुरु स्वीकार कर लिया था।
प्रश्न 2. महात्मा गाँधी के फरवरी, 1916 के बनारस भाषण को किस दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है ? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर- गाँधीजी की पहली महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक उपस्थिति फरवरी 1916 ई. में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के उद्घाटन समारोह में हुई। इस समारोह में मुख्यतः उन राजाओं और मानव प्रेमियों को बुलाया गया था, जिनके द्वारा दिए गए दान से इस विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी। इस समारोह में श्रीमती एनी बेसेंट जैसे कांग्रेस के कुछ प्रतिष्ठित नेता भी शामिल हुए थे। महात्मा गाँधी को इस समारोह में एक प्रतिष्ठित नेता के रूप में नहीं बुलाया गया था, अपितु उन्हें दक्षिण भारत में उनके द्वारा किए गए कार्यों के आधार पर बुलाया गया था। इस समारोह में जब महात्मा गाँधी को उद्बोधन का अवसर मिला तो उन्होंने पूर्व में उद्बोधन देने वाले विशिष्ट वर्ग के वक्ताओं द्वारा गरीब मजदूरों का कोई उल्लेख न किए जाने के कारण उनकी आलोचना की। उन्होंने कहा कि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना निश्चय ही शानदार है, लेकिन यहाँ उपस्थित सम्पन्न भद्रजनों एवं अनुपस्थित लाखों गरीब भारतीयों के बीच की विषमता चिन्ता का विषय है। उन्होंने समारोह में विशिष्ट विशेष सुविधा प्राप्त आमन्त्रितों से आह्वान करते हुए कहा, “भारत के लिए मुक्ति तब तक सम्भव नहीं है जब तक कि आप अपने को इन अलंकरणों से मुक्त न कर लें और इन्हें भारत के अपने हमवतनों की भलाई में न लगा दें।” इसके अतिरिक्त उन्होंने आगे बोलते हुए कहा, “हमारे लिए स्वशासन का तब तक कोई अर्थ नहीं है जब तक हम किसानों से उनके श्रम का लगभग सम्पूर्ण लाभ स्वयं अथवा अन्य लोगों को ले लेने की अनुमति देते रहेंगे। हमारी मुक्ति केवल किसानों के माध्यम से ही हो सकती है। न तो वकील, न डॉक्टर और न ही , जमींदार इसे सुरक्षित रख सकते हैं।” यद्यपि राष्ट्रवादी विश्वविद्यालय की स्थापना का यह समारोह भारतीय धन और भारतीय प्रयासों का परिचायक था, तथापि गाँधीजी ने स्वयं को बधाई का पात्र मानने की बजाय उपस्थित प्रतिष्ठित लोगों को उन किसानों और श्रमिकों की याद दिलाई जो भारतीय जनसंख्या में बहुसंख्यक होते हुए भी वहाँ श्रोता के रूप में उपस्थित नहीं थे। इस प्रकार महात्मा गाँधी ने फरवरी 1916 के अपने बनारस भाषण से यह स्पष्ट कर दिया था कि भारतीय राष्ट्रवाद वकीलों, डॉक्टरों और जमींदारों जैसे विशिष्ट वर्गों द्वारा निर्मित ” था, जबकि भारतीय राष्ट्रवाद के विकास में सम्पूर्ण भारतीय लोगों की सहभागिता होनी चाहिए। वह भारतीय राष्ट्रवाद के विकास में सम्पूर्ण भारतीय जनता को साथ लेकर चलना चाहते थे।
प्रश्न 3. भारत में महात्मा गाँधी के सत्याग्रह के प्रथम प्रयोग के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर भारत में गाँधीजी ने सत्याग्रह का प्रथम प्रयोग बिहार के चम्पारन जिले में किया। – गाँधीजी को सूचना मिली कि बिहार के चम्पारन क्षेत्र में अंग्रेजों द्वारा नील की खेती करने वाले किसानों पर तरह-तरह के अत्याचार किए जाते हैं। 1917 ई. में गाँधीजी चम्पारन पहुँचे। जब जाँच-पड़ताल से उन्हें वास्तविक स्थिति का ज्ञान प्राप्त हुआ, तो उन्हें बड़ा दुःख हुआ और उन्होंने निश्चय किया कि किसानों के कष्टों को दूर करने के लिए प्रयत्न किया जाना चाहिए। जब वे चम्पारन क्षेत्र में स्थिति का अध्ययन कर रहे थे तो उन्हें कमिश्नर की ओर से चम्पारन छोड़ने का आदेश प्राप्त हुआ। लेकिन उन्होंने एक सच्चे सत्याग्रही की भाँति इस आदेश की ओर तनिक भी ध्यान नहीं दिया और अपने कार्य में लगे रहे। अन्तत: बिहार के लेफ्टीनेण्ट गवर्नर ने इस मामले को अपने हाथ में लेकर गाँधीजी को परीक्षण का अधिकार प्रदान कर दिया। उनके परीक्षण के आधार पर बिहार व्यवस्थापिका में एक विधेयक पारित किया गया, जिससे किसानों की समस्याएँ काफी सीमा तक दूर हो गईं। एक सत्याग्रही के रूप में भारत में यह उनकी पहली विजय थी। इससे गाँधीजी को यह विश्वास हो गया कि भारत में भी सत्याग्रह का प्रयोग किया जा सकता है। इसके बाद उन्होंने अहमदाबाद और खेड़ा में सत्याग्रह के दो और प्रयोग किए।
प्रश्न 4. रौलट अधिनियम के बारे में आप क्या जानते हैं ? संक्षेप में बताइए।
उत्तर- प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् ब्रिटिश सरकार की नीतियों के परिणामस्वरूप सम्पूर्ण भारत में असन्तोष एवं क्षोभ की भावनाएँ प्रबल होती जा रही थीं। उस पर अंकुश लगाने के लिए सरकार को जिन कानूनों की आवश्यकता थी, इस विषय पर विचार करने के लिए सर सिडनी रौलट को नियुक्त किया गया। सर सिडनी रौलट ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि तत्कालीन परिस्थितियों में ऐसे कानून की आवश्यकता है जिसके द्वारा राजद्रोहात्मक गतिविधियों के सन्देह में किसी भी व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाए बन्दी बनाने, उससे जमानत लेने व कार्यों पर प्रतिबन्ध लगाने का अधिकार सरकार को प्राप्त हो सके। इसी आधार पर 1919 ई. में रौलट अधिनियम पारित किया गया। इस अधिनियम के पारित होने के अत्यन्त दूरगामी परिणाम हुए। “इस अधिनियम ने ही सर्वप्रथम महात्मा गाँधी को उदार राजनीति को त्यागकर सरकार का सीधे विरोध करने के लिए विवश किया।”
प्रश्न 5. जलियाँवाला बाग की घटना के विषय में आप क्या जानते हैं ? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर- महात्मा गाँधी ने रौलट अधिनियम का विरोध करने के लिए ‘सत्याग्रह लीग’ की स्थापना की थी। गाँधीजी के ही प्रयत्नों से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 30 मार्च, 1919 ई. को सम्पूर्ण देश में रौलट अधिनियम के विरुद्ध हड़ताल करने का निर्णय किया, किन्तु बाद में यह 6 अप्रैल को हुई। हड़ताल में पंजाब ने सरकार विरोधी गतिविधियों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। दुर्भाग्यवश पंजाब का ले. गवर्नर माइकेल ओ डायर तानाशाही प्रवृत्ति का था। 13 अप्रैल, 1919 ई. को वैसाखी के दिन अपराह्न में जलियाँवाला बाग में एक सभा का आयोजन किया गया जिसमें बिना किसी प्रकार की चेतावनी दिए सैनिकों को गोली चलाने का आदेश दिया जिससे सैकड़ों लोग मारे गए। दुःख की बात है कि इंग्लैण्ड में संसद ने भी डायर का समर्थन किया तथा उसे ‘सम्मान की तलवार’ (Sword of Honour) दी गई। इससे भारतीयों के दिलों में धधकती आग और भी तीव्र हो गई।
प्रश्न 6. खिलाफत आन्दोलन के बारे में आप क्या जानते हैं ? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर- प्रथम विश्व युद्ध के समय भारतीय मुसलमानों की स्थिति अत्यन्त विषम हो गई, क्योंकि तुर्की सुल्तान अब्दुल II इस युद्ध में जर्मनी व उसके सहयोगी देशों का समर्थन कर रहा था। अतः भारतीय मुसलमानों के लिए एक ओर राजनीतिक निष्ठा व दूसरी ओर धार्मिक निष्ठा थी, जिनमें से एक को चुनना था अंग्रेजों ने कूटनीति का आश्रय लेते हुए घोषणा की कि तुर्क साम्राज्य की अखण्डता व पवित्र स्थलों की रक्षा की जाएगी। अतः भारतीय मुसलमानों ने प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेजों का ही साथ दिया, किन्तु युद्ध की समाप्ति पर अंग्रेजों के द्वारा तुर्कों को अपमानजनक शर्तें स्वीकार करने पर विवश किया गया, जिससे भारतीय मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँची। अतः सितम्बर 1919 ई. में लखनऊ में एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें अखिल भारतीय खिलाफत समिति का निर्माण किया गया, जिसने ‘खिलाफत आन्दोलन’ को जन्म दिया। गाँधीजी के प्रयासों से कांग्रेस ने इस आन्दोलन
में भाग लिया।
प्रश्न 7. असहयोग आन्दोलन के दौरान कौन-कौन से कार्यक्रम निर्धारित किए गए थे ?
उत्तर- 1919 ई. में कलकत्ता में कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में पारित असहयोग आन्दोलन सम्बन्धी प्रस्ताव को 1920 ई. में नागपुर में आयोजित कांग्रेस के नियमित अधिवेशन में स्वीकार कर दो महत्त्वपूर्ण निर्णय लिए थे। पहले निर्णय के अनुसार कांग्रेस ने अब ‘ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर स्वशासन’ का लक्ष्य त्याग कर ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर और आवश्यक हो तो उसके बाहर ‘स्वराज्य का लक्ष्य’ घोषित किया। दूसरे निर्णय के अनुसार कांग्रेस ने रचनात्मक कार्यों की निम्नलिखित सूची तैयार की
(i) सभी वयस्कों को कांग्रेस का सदस्य बनाना;
(ii) तीन सौ सदस्यों की अखिल भारतीय कांग्रेस समिति का गठन;
(iii) भाषायी आधार पर प्रान्तीय कांग्रेस समितियों का पुनर्गठन;
(iv) स्वदेशी मुख्यतया हाथ की कताई-बुनाई को प्रोत्साहन;
(v) यथासम्भव हिन्दी का प्रयोग।
कांग्रेस ने इस असहयोग आन्दोलन के अन्तर्गत सरकार को कर देने से मना करने की जनता से अपील की थी। कांग्रेस की नीतियों में आए परिवर्तन के विरोध में ऐनी बेसेन्ट, मुहम्मद अली जिन्ना, बिपिनचन्द्र पाल, सर नारायण चन्द्रावरकर, शंकर नायर ने कांग्रेस को छोड़ दिया।
असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रम के दो प्रमुख भाग थे-रचनात्मक और नकारात्मक। रचनात्मक कार्यक्रमों में थे- (i) राष्ट्रीय विद्यालयों, पंचायती अदालतों की स्थापना, (ii) अस्पृश्यता का अन्त, हिन्दू मुस्लिम एकता, (iii) स्वदेशी का प्रसार, कताई-बुनाई।
नकारात्मक कार्यक्रमों में थे- (i) सरकारी उपाधियों, प्रशस्ति पत्रों को वापस करना, (ii) सरकारी स्कूलों, कॉलेजों, अदालतों, विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार, (iii) सरकारी उत्सवों, समारोहों का बहिष्कार, (iv) विदेशी सभी वस्तुओं का बहिष्कार तथा स्वदेशी का प्रचार, (v) अवैतनिक पदों से तथा स्थानीय निकायों के नामांकित पदों से त्याग-पत्र
प्रश्न 8. भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में ‘असहयोग आन्दोलन’ का क्या महत्व था ? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर- यद्यपि असहयोग आन्दोलन अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल नहीं हो सका, फिर भी भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन के इतिहास में इसका महत्त्वपूर्ण स्थान है। असहयोग आन्दोलन भारत का पहला जन-आन्दोलन था। इसका सूत्रपात एक क्रान्तिकारी कदम था, जिसने कांग्रेस के स्वरूप और स्वभाव में मूलभूत परिवर्तन ला दिया था। असहयोग आन्दोलन ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को अंग्रेजी शासन से मुक्ति के राष्ट्रीय संघर्ष में जनसाधारण का संगठनकर्त्ता एवं नेतृत्वकर्ता बना दिया था। इस आन्दोलन की एक प्रमुख विशेषता यह थी कि यह आन्दोलन मात्र शिक्षित वर्ग तक सीमित रहने वाला आन्दोलन नहीं था, यह आन्दोलन आम जनता का आन्दोलन बन गया था। इसके परिणामस्वरूप जनसाधारण में एक नवीन राजनीतिक चेतना का प्रादुर्भाव हुआ। इस आन्दोलन के माध्यम से कांग्रेस ने पहली बार प्रार्थना पत्रों के स्थान पर एक कठोर कदम उठाया और ब्रिटिश सरकार से सीधी टक्कर ली। इस आन्दोलन ने जनसाधारण को निडरता, आत्मनिर्भरता और स्वदेशी का पाठ पढ़ाकर राष्ट्रीय आन्दोलन को मजबूती प्रदान की।
असहयोग आन्दोलन भारत का पहला जन-आन्दोलन था। इस आन्दोलन के गाँव-गाँव तक पहुँचने के कारण सम्पूर्ण देश में राजनीतिक चेतना व राष्ट्रवाद का विकास हुआ।
प्रश्न 9. महात्मा गाँधी ने खुद को आम लोगों जैसा दिखने के लिए क्या किया ?
उत्तर- महात्मा गाँधी ने खुद को आम लोगों जैसा दिखाने के लिए अनेक कदम उठाए
(1) महात्मा गाँधी ने सबसे पहले अपने राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले की सलाह पर एक वर्ष तक देश के विभिन्न भागों का भ्रमण किया ताकि वे भारत-भूमि और इसके लोगों को अच्छी तरह जान सकें।
(2) महात्मा गाँधी ने फरवरी 1916 ई. में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में अपनी पहली •महत्वपूर्ण सार्वजनिक उपस्थिति में भाषण देते हुए भारत के लाखों गरीबों और किसानों के प्रति चिन्ता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि “हमारी मुक्ति केवल किसानों के माध्यम से ही हो सकती है। न तो वकील, न डॉक्टर और न ही जमींदार इसे सुरक्षित रख सकते हैं।” इस प्रकार महात्मा गाँधी ने स्पष्ट कर दिया था कि वे सम्पूर्ण भारतीय जनता को साथ लेकर चलना चाहते हैं।
(3) महात्मा गाँधी ने सर्व साधारण गरीब लोगों, खेती का काम करने वाले मजदूरों, अहमदाबाद के मिल मजदूरों और खेड़ा में गरीब किसानों के हित में बात की और उनकी सहानुभूति प्राप्त करने की कोशिश की।
(4) महात्मा गाँधी ने सर्व-साधारण की तरह मामूली कपड़े विशेषकर खद्दर के कपड़े पहने हाथ में आम किसान की तरह लाठी उठाई, चरखा काता, हरिजनों के हितों की बात की, महिलाओं के प्रति सद्व्यवहार और सच्ची सहानुभूति प्रदर्शित की।
(5) महात्मा गाँधी ने बार-बार यह दोहराया कि भारत गाँवों में बसता है, किसानों और गरीब लोगों की समृद्धि और खुशहाली के बिना देश की उन्नति नहीं हो सकती। महात्मा गाँधी की सीधी-सादी जीवन शैली एवं हाथों से काम करने के प्रति उनका लगाव उन्हें आम लोगों के बहुत निकट ले आया था।
प्रश्न 10. महात्मा गाँधी ने चरखे को राष्ट्रवाद का प्रतीक क्यों चुना ?
उत्तर- महात्मा गाँधी चरखे को एक आदर्श समाज के प्रतीक के रूप में देखते थे। वे प्रतिदिन अपना कुछ समय चरखा चलाने में व्यतीत करते थे। उनका विचार था कि चरखा गरीबों को पूरक आमदनी प्रदान करके उन्हें आर्थिक दृष्टि से स्वावलम्बी बना सकता था। उनके अनुसार भारत एक गरीब देश है; चरखा गरीबों को पूरक आमदनी प्रदान करेगा जिससे वे स्वावलम्बी बनेंगे, चरखा उन्हें बेरोजगारी और गरीबी से छुटकारा दिलाने में मदद करेगा।
वास्तव में चरखे के साथ गाँधीजी भारतीय राष्ट्रवाद की सर्वाधिक स्थायी पहचान बन गए थे। वे अन्य राष्ट्रवादियों को भी चरखा चलाने के लिए प्रोत्साहित करते थे। चरखा जनसामान्य से सम्बन्धित था और आर्थिक प्रगति का प्रतीक था, इसलिए इसे राष्ट्रवाद के प्रतीक के रूप में चुना गया था।
प्रश्न 11. किसान महात्मा गाँधी को किस तरह देखते थे ?
उत्तर- भारत के किसानों के लिए गाँधीजी एक उद्धारक के समान थे। भारतीय किसानों में गाँधीजी ‘गाँधी बाबा’, ‘गाँधी महाराज’, अथवा ‘महात्मा’ जैसे अनेक सम्मानसूचक नामों से जाने जाते थे। भारतीय किसानों का यह मानना था कि गाँधीजी उन्हें लगान की ऊँची दरों और दमनकारी अंग्रेज अधिकारियों से बचा सकते थे। इसके अतिरिक्त गाँधीजी ही उनकी मान-मर्यादा और स्वायत्तता को वापस दिला सकते थे। भारत की गरीब जनता, विशेषकर किसान महात्मा गाँधी की सात्विक जीवन शैली तथा उनके द्वारा ग्रहण किए गए धोती और चरखे जैसे प्रतीकों से बहुत प्रभावित थे। यद्यपि गाँधीजी जाति से एक व्यापारी और पेशे से एक वकील थे, लेकिन फिर भी उनकी सादगीपूर्ण जीवन शैली और गरीबों के प्रति उनकी सहानुभूति; उन्हें जनसाधारण के बहुत निकट ले आई थी।
प्रश्न 12. सविनय अवज्ञा आन्दोलन की प्रमुख माँगों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – सविनय अवज्ञा आन्दोलन की प्रमुख माँगें निम्नांकित थीं
(1) रुपये की विनिमय दर घटाकर 1 शिलिंग 4 पैंस की जाए।
(2) लगान 50% कम किया जाए।
(3) सिविल सर्विस के कर्मचारियों का वेतन आधा किया जाए।
(4) पूर्ण नशाबन्दी लागू की जाए।
(5) भारतीयों को बन्दूकें रखने का लाइसेन्स प्रदान किया जाए।
(6) नमक पर से कर समाप्त किया जाए।
(7) अहिंसात्मक ढंग से कार्य करने वाले राजनीतिक बन्दियों को छोड़ दिया जाए।
(8) गुप्तचर विभाग बन्द कर दिया जाए अथवा उस पर सार्वजनिक नियन्त्रण स्थापित
(9) तटीय यातायात रक्षक विधेयक पारित किया जाए।
(10) सैनिक व्यय में कम-से-कम 50% की कटौती की जाए।
(11) रक्षात्मक शुल्क लगाए जाएँ और आयातित कपड़ों के आयात में कमी की जाए।
महात्मा गाँधी ने गवर्नर जनरल को सूचित किया कि यदि उनकी माँगों को पूरा नहीं किया गया तो वह नमक कानून तोड़कर 12 मार्च, 1930 ई. को सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू कर देंगे।
प्रश्न 13. नमक कानून स्वतन्त्रता संघर्ष का महत्वपूर्ण मुद्दा क्यों बन गया ?
उत्तर- महात्मा गाँधी ने अंग्रेजी शासन के विरोध में नमक का प्रतीक रूप में चयन निम्नांकित कारणों से किया था- (1) नमक कानून ब्रिटिश सरकार का एक घृणित कानून था, इसके अन्तर्गत नमक के उत्पादन और विक्रय पर राज्य का सर्वाधिकार स्थापित था।
(2) भारतीय जनता नमक कानून को घृणा की दृष्टि से देखती थी। नमक प्रत्येक परिवार के भोजन का एक अपरिहार्य अंग था, लेकिन भारतीय लोग अपने घरेलू प्रयोग के लिए स्वयं नमक नहीं बना सकते थे। नमक कानून के कारण भारतीय लोगों को मजबूत ऊँचे दामों पर नमक दुकानों से खरीदना पड़ता था।
(3) ब्रिटिश सरकार ने नमक कानून लागू करके भारतीयों को सरलता से उपलब्ध ग्राम उद्योग से वंचित कर दिया था। चूँकि भारतीय लोगों में नमक कानून अत्यधिक अलोकप्रिय था, इसलिए महात्मा गाँधी नमक को विरोध का प्रतीक बनाकर राष्ट्रीय आन्दोलन में जनसाधारण का अधिकाधिक सहयोग प्राप्त करना चाहते थे। यह निर्णय उनकी सूझ-बूझ का परिचायक था।
प्रश्न 14. राष्ट्रीय आन्दोलन के अध्ययन के लिए अखबार महत्वपूर्ण स्रोत क्यों हैं ?
उत्तर–अंग्रेजी तथा विभिन्न भारतीय भाषाओं में छपने वाले समाचार पत्रों से भी भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन की महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। विभिन्न समाचार पत्र महात्मा गाँधी की गतिविधियों पर पैनी नजर रखते थे, इन समाचार पत्रों में महात्मा गाँधी की गतिविधियों और उनसे सम्बन्धित समाचारों को प्रकाशित किया जाता था। इन समाचार पत्रों से यह भी जानकारी मिलती है कि जन-साधारण की महात्मा गाँधी के विषय में क्या धारणा थी। लेकिन यहाँ यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि अनेक समाचार-पत्रों में प्रकाशित ब्यौरे पूर्वाग्रहों से मुक्त भी होते थे, क्योंकि इन समाचार पत्रों के प्रकाशकों की अपनी-अपनी राजनीतिक सोच थी और विश्व के प्रति उनका अपना नजरिया था। उनके अपने विचारों के आधार पर ही यह निश्चित होता था कि क्या प्रकाशित किया जाना है और घटनाओं की रिपोर्टिंग किस प्रकार की जानी है। इसीलिए लन्दन से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों के विवरण भारत के राष्ट्रवादी – समाचार पत्रों में छपने वाले विवरणों के समान नहीं हो सकते थे। –
इन समाचार पत्रों के अध्ययन से किसी निष्कर्ष पर पहुँचने से पूर्व हमें यह ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि इन समाचार पत्रों में वर्णित घटनाक्रम शब्दशः सत्य नहीं माना जा सकता। समाचार पत्रों के विवरणों से ऐसे अफसरों की आशंकाओं और बेचैनियों के बारे में – भी जानकारियाँ प्राप्त होती हैं, जो आन्दोलन विशेष को नियन्त्रित नहीं कर पा रहे थे और उसके प्रसार को लेकर चिंतित थे। वे यह निर्णय लेने में भी असमंजस में थे कि उन्हें महात्मा गाँधी को बन्दी बनाना चाहिए अथवा नहीं। निष्कर्षतः यह आवश्यक है कि सरकारी रिकॉर्ड्स और समाचार पत्रों के सावधानीपूर्वक निष्पक्ष अध्ययन से भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के विषय में महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त की जा सकती हैं और महात्मा गाँधी को समझा जा सकता है।
दीर्घ उत्तरीय / विश्लेषणात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. महात्मा गाँधी ने 1920 ई. में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध असहयोग आन्दोलन क्यों प्रारम्भ किया ? सविस्तार लिखिए।
उत्तर- महात्मा गाँधी ने निम्नलिखित परिस्थितियों तथा कारणों से असहयोग आन्दोलन को प्रारम्भ किया था –
( 1 ) प्रथम विश्व- व युद्ध के परिणाम प्रथम विश्व युद्ध के समय ब्रिटिश सरकार ने यह घोषणा की थी कि भारत में स्वशासन संस्थाओं का विकास किया जाएगा। ब्रिटिश प्रधानमन्त्री ने यह भी कहा था कि “यह युद्ध लोकतन्त्र की रक्षा के लिए लड़ा जा रहा है। ” परन्तु युद्ध समाप्त हो जाने के पश्चात् ब्रिटिश सरकार ने अपनी घोषणाओं तथा सिद्धान्तों की उपेक्षा की। परिणामस्वरूप महात्मा गाँधी भी असहयोगी बन गये।
(2) 1917 की रूसी क्रान्ति-महात्मा गाँधी को कुछ तत्कालीन अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों ने भी प्रभावित किया था। 1917 ई. में रूस में एक व्यापक क्रान्ति हुई जिसने भारतीयों को यह सिखाया कि किस प्रकार जनता शक्तिशाली आन्दोलन चलाकर अपने लक्ष्यों तथा अधिकारों को प्राप्त कर सकती है।
(3) 1919 का अधिनियम-ब्रिटिश सरकार ने 1919 के अधिनियम द्वारा द्वैध शासन प्रणाली की स्थापना की थी। कांग्रेस के नेताओं ने इसको अंग्रेजों की कूटनीतिक चाल बताया
क्योंकि इसमें साम्प्रदायिक चुनाव प्रणाली द्वारा हिन्दू तथा मुसलमानों में फूट डालने का प्रयास किया गया था।
(4) रॉलेट एक्ट – असहयोग आन्दोलन को प्रारम्भ करने का प्रमुख कारण रॉलेट एक्ट था। इस एक्ट के द्वारा किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जा सकता था तथा कानूनी कार्यवाही किये बिना दीर्घकाल तक नजरबन्द रखा जा सकता था रॉलेट एक्ट का प्रमुख उद्देश्य राष्ट्रीय • आन्दोलनों को कुचलना था, अत: गाँधीजी ने इस एक्ट का व्यापक विरोध किया।
(5) जलियाँवाला हत्याकाण्ड-रॉलेट एक्ट का विरोध करने के लिए 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग में एक सार्वजनिक सभा हो रही थी। जनरल डायर ने बाग को घेरकर बिना चेतावनी दिये निहत्थी भीड़ पर गोलियों की वर्षा की जिसके परिणामस्वरूप लगभग 1,000 व्यक्ति मारे गये तथा 1,600 घायल हो गये। इस हत्याकाण्ड का महात्मा गाँधी पर गहरा प्रभाव पड़ा और वे ब्रिटिश साम्राज्य के घोर शत्रु हो गये।
(6) अकाल तथा महामारी- सन् 1917 ई. में पर्याप्त वर्षा न होने से देश में व्यापक अकाल पड़ा। जनसाधारण के कष्टों को दूर करने के लिए सरकार द्वारा कोई विशेष उपाय नहीं किये गये। अकाल के साथ-साथ ही देश में प्ले भी फैला। सरकार द्वारा इस दिशा में जन-राहत के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, अतः जनसाधारण में ब्रिटिश शासन के प्रति व्यापक असन्तोष फैल गया।
(7) खिलाफत आन्दोलन-टर्की का सुल्तान मुस्लिम जगत का खलीफा माना जाता था। प्रथम विश्व युद्ध के समय में ब्रिटिश सरकार ने यह घोषणा की थी कि तुर्की का विभाजन नहीं किया जाएगा तथा न तुर्की के सुल्तान के अधिकार ही छीने जाएँगे। परन्तु प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् तुर्की का विभाजन किया गया तथा सुल्तान के समस्त अधिकार छीन लिये गये। इससे भारतीय मुसलमानों के हृदय पर गहरा आघात लगा तथा वे भी ब्रिटिश साम्राज्य के विरोधी हो गये। महात्मा गाँधी ने इस परिस्थिति का लाभ उठाकर खिलाफत आन्दोलन में सक्रियता से भाग लिया। परिणामस्वरूप खिलाफत आन्दोलन के मुस्लिम नेताओं ने भी काँग्रेस का पक्ष लेते हुए असहयोग आन्दोलन में निष्ठा से भाग लिया।
प्रश्न 2. असहयोग आन्दोलन एक तरह का प्रतिरोध कैसे था ?
उत्तर- निःसन्देह असहयोग आन्दोलन रूप प्रकार का प्रतिरोध था। यह रॉलेट एक्ट के विरुद्ध जन आक्रोश और प्रतिरोध अभिव्यक्ति का एक लोकप्रिय माध्यम था। असहयोग आन्दोलन इसलिए भी एक प्रतिरोध आन्दोलन था, क्योंकि इसके द्वारा राष्ट्रीय नेता जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड जैसी घिनौनी घटना के विरुद्ध अपना प्रतिरोध प्रकट करना चाहते थे। असहयोग आन्दोलन इसलिए भी एक प्रकार का प्रतिरोध था, क्योंकि यह खिलाफत आन्दोलन का समर्थक था। खिलाफत आन्दोलन टर्की साम्राज्य के बँटवारे के विरुद्ध और खलीफा के पक्ष में छेड़ा गया एक जोरदार आन्दोलन था।
असहयोग आन्दोलन इसलिए भी एक प्रकार का प्रतिरोध था, क्योंकि इसके द्वारा सरकारी नौकरियों, उपाधियों, अवेतनिक पदों, सरकारी अदालतों, सरकारी शिक्षण संस्थाओं आदि का बहिष्कार किया जाना था।
असहयोग आन्दोलन इसलिए भी एक प्रकार का प्रतिरोध था, क्योंकि भारतीय जनमानस विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करके, सरकार द्वारा आयोजित चुनावों में भाग न लेकर, सरकार को करों का भुगतान न करके तथा सरकारी कानूनों की शान्तिपूर्ण ढंग से अवहेलना करके ब्रिटिश शासन के विरुद्ध अपना प्रतिरोध प्रकट करना चाहते थे।
इस प्रकार यह कहना उचित ही होगा कि असहयोग आन्दोलन का प्रमुख उद्देश्य औपनिवेशिक शासन का प्रतिरोध करना था।
प्रश्न 3. महात्मा गाँधी ने राष्ट्रीय आन्दोलन के स्वरूप को किस तरह बदल डाला ?
उत्तर- महात्मा गाँधी ने राष्ट्रीय आन्दोलन के स्वरूप को पूरी तरह बदल दिया था। अब यह आन्दोलन सिर्फ व्यावसायिकों तथा बुद्धिजीवियों का ही नहीं रह गया था, बल्कि अब हजारों की संख्या में किसानों, श्रमिकों तथा कारीगरों ने भी इमें हिस्सा लेना शुरू कर दिया। इनमें से अनेक गाँधीजी के प्रति आदर व्यक्त करने के लिए उन्हें अपना ‘महात्मा’ कहने लगे। उन्हें इस बात का गर्व होता था कि गाँधीजी उनकी ही तरह वस्त्र पहनते थे, उनकी ही तरह रहते थे और उनकी ही भाषा बोलते थे। वह दूसरे नेताओं की भाँति सामान्य जनसमूह से पृथक् नहीं खड़े होते थे बल्कि वह उनसे सहानुभूति रखने तथा उनसे घनिष्ठ सम्बन्ध भी जोड़ लेते थे। वह प्रतिदिन कुछ समय के लिए चरखा चलाते थे और इसके लिए दूसरों को भी प्रेरित करते थे। सूत कताई के कार्य ने गाँधीजी को पारम्परिक जाति व्यवस्था में प्रचलित मानसिक श्रम और शारीरिक श्रम की दीवार को तोड़ने में मदद की गाँधीजी ने किसानों तथा अन्य निर्धन लोगों के कष्टों को दूर करने का प्रयत्न किया। उनके सम्बन्ध में चमत्कारों के बारे में फैली अफवाहों ने उनकी लोकप्रियता को घर-घर पहुँचा दिया। अतः बड़ी संख्या में लोग राष्ट्रीय आन्दोलन से जुड़ते चले गए। गाँधीजी ने राष्ट्रवादी सन्देश का प्रसाद अंग्रेजी भाषा की बजाय स्थानीय भाषाओं में करने पर बल दिया। राष्ट्रीय आन्दोलन के आधार को मजबूत करने के लिए उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल दिया। गाँधीजी ने राष्ट्रीय आन्दोलन को चलाने के लिए नये तरीकों को आजमाया और वे इसमें सफल भी रहे। उनके दर्शन के आधारभूत सिद्धान्त थे- अहिंसा, सत्याग्रह, गरीबों के प्रति सच्ची सहानुभूति, महिलाओं का सशक्तिकरण, कुटीर उद्योग धन्धे, चरखा एवं खादी अपनाने पर बल, रंगभेद और जातीय भेद का विरोध, साम्प्रदायिक सद्भाव और अस्पृश्यता का विरोध आदि। अपने आधारभूत सिद्धान्तों के माध्यम से गाँधीजी ने राष्ट्रीय आन्दोलन को वास्तविक अर्थों में एक जन-आन्दोलन बना दिया था।
प्रश्न 4. द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में हुई वार्ता से कोई नतीजा क्यों नहीं निकल पाया ?
उत्तर- द्वितीय गोलमेज सम्मेलन 7 सितम्बर, 1931 ई. को लन्दन में प्रारम्भ हुआ। इस सम्मेलन में गाँधीजी कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में सम्मिलित हुए। इसी सम्मेलन में मुहम्मद अली जिन्ना मुस्लिम लीग के प्रतिनिधि के रूप में सम्मिलित हुए। गाँधीजी ने इस सम्मेलन में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को सम्पूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टी बताया, किन्तु उनके इस दावे को तीन पार्टियों द्वारा चुनौती दी गई। मुस्लिम लीग का दावा था कि वह अल्पसंख्यक मुस्लिमों के हितों की रक्षक है। राजे-रजवाड़ों (देशी राजा) का कहना था कि कांग्रेस उनके नियन्त्रण वाले भू-भाग का प्रतिनिधित्व नहीं करती है। कुशल वकील एवं विचारक डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने गाँधीजी के दावे का विरोध करते हुए इस बात पर बल दिया कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस निचली जातियों का प्रतिनिधित्व नहीं करती है। इस सम्मेलन में मुस्लिम लीग ने साम्प्रदायिक चुनाव प्रणाली की माँग की। इसी प्रकार अन्य दोनों पक्षों ने भी पृथक चुनाव और पृथक् प्रतिनिधित्व की माँग प्रारम्भ कर दी। यह सम्मेलन साम्प्रदायिक समस्या के विवाद के कारण पूर्णतः असफल हो गया। परिणामतः 1 दिसम्बर, 1931 ई. को यह सम्मेलन समाप्त घोषित कर दिया गया। 28 दिसम्बर, 1931 ई. को गाँधीजी निराश होकर भारत वापस आ गए।
प्रश्न 5. भारत छोड़ो आन्दोलन के महत्व को स्पष्ट कीजिए। उत्तर- यद्यपि ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन अपने लक्ष्य को तत्काल प्राप्त कर न सका, फिर भी इस आन्दोलन को असफल नहीं कहा जा सकता। भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के इतिहास में इस आन्दोलन का विशेष महत्त्व है। ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन एक जन-आन्दोलन था, इसमें सामान्य भारतीयों ने लाखों की संख्या में सहभागिता की थी। यह आन्दोलन भारत की स्वतन्त्रता के लिए छेड़ा गया अन्तिम महान् संग्राम था, जिसने बड़ी भारी संख्या में युवकों को अपनी ओर आकर्षित किया, जिन्होंने कॉलेजों को छोड़कर जेल को अपना घर बना लिया था। इस आन्दोलन के परिणामस्वरूप भारतीय जनसाधारण में अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों का वीरता के साथ सामना करने का साहस बढ़ गया था और उन्हें जेलें तीर्थ स्थानों के रूप में नजर आने लगी थीं। इसी आन्दोलन ने भारत की स्वतन्त्रता की पृष्ठभूमि तैयार की और अंग्रेजों को भारतीयों की स्वतन्त्रता की प्रबल भावनाओं से अवगत कराया। इसके परिणामस्वरूप इंग्लैण्ड के विभिन्न राजनीतिक दल भारतीय समस्या पर गम्भीरतापूर्वक विचार करने के लिए विवश हुए और अंततः अंग्रेजों का भारत छोड़ना लगभग निश्चित हो गया।
प्रश्न 6. भारत छोड़ो आन्दोलन की असफलता के कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर- ब्रिटिश सरकार ने अपने दमन चक्र से भारत छोड़ो आन्दोलन को कुचल दिया। यह आन्दोलन अपने उद्देश्य में असफल रहा। इस आन्दोलन की असफलता का मुख्य कारण प्रभावी संगठन का अभाव था। इस आन्दोलन के सूत्रपात के साथ ही कांग्रेस के समस्त प्रमुख नेता अचानक गिरफ्तार कर लिए गए थे, जिसके परिणामस्वरूप नेतृत्वविहीन उत्तेजित जनता ने हिंसा का मार्ग अपना लिया। महात्मा गाँधी को भी यह उम्मीद नहीं थी कि उन्हें अचानक गिरफ्तार कर लिया जाएगा, उनको यह उम्मीद थी कि ब्रिटिश सरकार उन्हें बातचीत के लिए आमन्त्रित करेगी तथा बातचीत असफल होने की स्थिति में ही कुछ दमनात्मक कार्यवाही की जाएगी। लेकिन ब्रिटिश सरकार की त्वरित दमनात्मक कार्यवाही की रूपरेखा के बारे में किसी भी कांग्रेसी नेता को जानकारी नहीं थी। ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव के तहत् महात्मा गाँधी ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध कार्यवाही तो करना चाहते थे, परन्तु उन्होंने यह निश्चित रूप से नहीं बताया कि वह क्या करना चाहते थे? एक जन-आन्दोलन का सूत्रपात करने के लिए आन्दोलन के कार्यक्रम की एक स्पष्ट रूपरेखा जनसाधारण व नेताओं को निश्चित रूप से ज्ञात होनी चाहिए, जबकि इस आन्दोलन की कोई स्पष्ट रूपरेखा न तो नेताओं को ज्ञात थी और न ही जनमानस को। ऐसी स्थिति में नेतृत्वविहीन भारतीय जनता को केवल यह याद रहा कि महात्मा गाँधी ने ‘करो या मरो’ का नारा दिया है, परिणामतः सूत्रपात से ही आन्दोलन हिंसात्मक हो गया। हिंसात्मक आन्दोलन को कुचलने के लिए ब्रिटिश सरकार के पास दमनात्मक शक्तियों का अभाव नहीं था। ब्रिटिश सरकार ने अपनी दमन शक्ति से आन्दोलन को कुचल दिया।
प्रश्न 7. भारतीय स्वतन्त्रता अधिनियम की प्रमुख धाराएँ क्या थीं ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – ‘भारतीय स्वतन्त्रता अधिनियम’ की प्रमुख धाराएँ निम्नांकित थीं
(1) इस अधिनियम द्वारा भारत का विभाजन कर पाकिस्तान की स्थापना कर दी गई। यह निश्चित किया गया कि 15 अगस्त, 1947 ई. को भारत दो अधिराज्यों-भारत व पाकिस्तान में विभाजित कर दिया जाएगा। सिन्ध, उत्तर-पूर्वी सीमा प्रान्त, पश्चिमी पंजाब, बलूचिस्तान तथा असम का सिलहट जिला पाकिस्तान में तथा शेष भारत में रहेगा। संविधान
(2) इस अधिनियम द्वारा यह व्यवस्था की गई कि ब्रिटिश सरकार दोनों अधिराज्यों की सभाओं को सत्ता का उत्तरदायित्व सौंप देगी।
(3) भारत और पाकिस्तान दोनों अधिराज्यों में एक-एक गवर्नर जनरल होगा, जिनकी नियुक्ति उनके मन्त्रिमण्डल की सलाह से की जाएगी।
(4) भारत मन्त्री का पद समाप्त कर दिया जाएगा, क्योंकि 15 अगस्त, 1947 ई. के उपरान्त इंग्लैण्ड की संसद का भारत और पाकिस्तान पर कोई नियन्त्रण नहीं रहेगा।
(5) जिस समय तक संविधान सभाएँ संविधान का निर्माण नहीं कर लेती हैं, उस समय तक वे विधानमण्डल के रूप में भी कार्य करती रहेंगी और उनकी विधायिनी शक्तियों पर किसी प्रकार का कोई नियन्त्रण नहीं होगा।
(6) जिस समय तक नवीन विधान के अनुसार प्रान्तों के निर्वाचन नहीं होते हैं, उस समय तक प्रान्तों में इस समय के विधानमण्डल ही कार्यरत् रहेंगे।
(7) देशी रियासतों को स्वतन्त्र घोषित कर दिया गया, उनको किसी भी अधिराज्य में सम्मिलित होने की स्वतन्त्रता प्रदान की गई।
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