MP Board Class 12th History chapter 15 संविधान का निर्माण – एक नए युग की शुरूआत important Questions in Hindi Medium (इतिहास)

अध्याय   15

संविधान का निर्माण – एक नए युग की शुरूआत

 

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

 

बहु-विकल्पीय प्रश्न

 

  1. संविधान सभा का गठन कैबिनेट मिशन योजना के अन्तर्गत कब हुआ था ?

(अ) अक्टूबर 1945 ई.,

 

(ब) अक्टूबर 1946 ई.,

 

(स) अक्टूबर 1947 ई.,

 

(द) अक्टूबर 1948 ई.

 

  1. संविधान सभा की पहली बैठक किसकी अध्यक्षता में हुई थी ?

(अ) डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा,

 

(ब) पं. जवाहरलाल नेहरू,

 

(स) डॉ. भीमराव आम्बेदकर,

 

(द) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ।

 

  1. संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष कौन थे ?

 

(अ) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद,

 

(ब) अल्लादि कृष्णास्वामी अय्यर,

 

(स) डॉ. भीमराव आम्बेदकर,

 

(द) पं. जवाहर लाल नेहरू ।

 

  1. संविधान सभा के स्थायी अध्यक्ष कौन थे ?

 

(अ) डॉ. भीमराव आम्बेदकर,

 

(ब) सरदार वल्लभ भाई पटेल,

 

(स) डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा,

 

(द) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद

 

  1. भारतीय संविधान कब लागू किया गया ?

 

(अ) 26 जनवरी, 1947 ई.,

 

(ब) 26 जनवरी, 1948 ई.,

 

(स) 26 जनवरी, 1949 ई.,

 

(द) 26 जनवरी, 1950 ई. ।

 

उत्तर – 1. (ब), 2. (अ), 3. (स), 4. (द), 5. (द)।

 

  • रिक्त स्थानों की पूर्ति

 

  1. भारत के विभाजन के समय जम्मू-कश्मीर के शासक ………. थे।

 

  1. संविधान सभा की पहली बैठक दिनांक ……..को हुई थी।

 

 

 

  1. स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत में …….देशी रियासतें थीं।

 

  1. देशी रियासतों को भारतीय संघ में विलय कराने का महत्वपूर्ण कार्य …… ने किया था।

 

 

  1. संविधान सभा द्वारा संविधान के प्रारूप को पारित कराने का उत्तरदायित्व ……….सौंपा गया था। को

 

उत्तर – 1. महाराजा हरिसिंह, 2. 9 दिसम्बर, 1946 ई., 3. 562, 4. सरदार वल्लभ भाई पटेल, 5. डॉ. भीमराव आम्बेदकर।

 

सत्य/असत्य

 

  1. स्वतंत्र भारत के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल थे। 2. संविधान सभा का गठन ‘माउन्टबेटन योजना’ के अन्तर्गत किया गया था।

 

  1. संविधान सभा की पहली बैठक पं. जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में हुई थी। 4. भारतीय संविधान दिसम्बर 1946 ई. से नवम्बर 1949 ई. के मध्य सूत्रबद्ध किया

 

गया था।

 

  1. महात्मा गाँधी ‘ हिन्दुस्तानी’ को राष्ट्रभाषा बनाना चाहते थे।

 

उत्तर – 1. सत्य, 2. असत्य, 3. असत्य, 4. असत्य, 5. सत्य

 

सही जोड़ी बनाइए

 

‘अ’

 

  1. संविधान सभा के अध्यक्ष

 

(i) डॉ. भीमराव आम्बेदकर

 

  1. स्वतंत्र भारत के प्रथम गृहमंत्री

 

  1. संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष (ii) केन्द्र सरकार के विषय (iii) राज्य सरकार के विषय (v) सरदार वल्लभ भाई पटेल

 

  1. प्रथम सूत्री

 

(iv) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद

 

  1. द्वितीय सूत्री उत्तर – 1. → (iv), 2. → (i), 3. → (v), 4. → (ii), 5. (iii).

 

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

 

  1. संविधान सभा का गठन किस योजना के अन्तर्गत किया गया था ?

 

  1. संविधान सभा में ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ किसके द्वारा प्रस्तुत किया गया था ?

 

  1. संविधान सभा के समक्ष ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ कब पेश किया गया था ?

 

  1. संविधान सभा द्वारा भारत के संविधान को किस दिन पारित किया गया था ?

 

  1. भारतीय संविधान किस दिन लागू किया गया ?

 

उत्तर- 1. कैबिनेट मिशन योजना, 2. पं. जवाहर लाल नेहरू, 3. 13 दिसम्बर, 1946 ई. को, 4. 26 नवम्बर, 1949 ई. को, 5. 26 जनवरी, 1950 ई. को।

 

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

 

प्रश्न 1. भारतीय संविधान किस अवधि में सूत्रबद्ध किया गया ?

उत्तर – भारतीय संविधान दिसम्बर, 1946 ई. से नवम्बर, 1949 के मध्य सूत्रबद्ध किया गया था।

 

प्रश्न 2. संविधान निर्माण के दौरान संविधान सभा के कुल कितने सत्र आयोजित हुए और कितने दिन बैठकें आयोजित हुई ?

उत्तर- संविधान निर्माण के दौरान संविधान सभा के कुल 11 सत्र आयोजित हुए, जिनमें 165 दिन भिन्न-भिन्न मुद्दों पर बैठकें आयोजित की गई।

 

प्रश्न 3. संविधान सभा के छह प्रमुख सदस्यों के नाम बताइए।

उत्तर-संविधान सभा के छह प्रमुख सदस्यों के नाम इस प्रकार हैं-(1) पं. जवाहर लाल नेहरू, (2) सरदार वल्लभ भाई पटेल, (3) डॉ. भीमराव आम्बेदकर, (4) के. एम. मुंशी, (5) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और (6) अल्लादि कृष्णास्वामी अय्यर

 

प्रश्न 4. संविधान सभा की पहली बैठक कब और किसकी अध्यक्षता में हुई थी ?

उत्तर- संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसम्बर, 1946 ई. को सच्चिदानन्द सिन्हा की अध्यक्षता में हुई थी।

 

प्रश्न 5. संविधान सभा में ‘ऐतिहासिक उद्देश्य प्रस्ताव’ कब और किसके द्वारा प्रस्तुत किया गया ?

उत्तर- संविधान सभा में ऐतिहासिक उद्देश्य प्रस्ताव’ 13 दिसम्बर, 1946 ई. को पं. जवाहर लाल नेहरू द्वारा प्रस्तुत किया गया था।

 

प्रश्न 6. संविधान प्रारूप समिति का गठन कब किया गया था और इसके अध्यक्ष कौन थे ?

उत्तर- संविधान प्रारूप समिति का गठन 29 अगस्त, 1947 ई. को किया गया था। इसके अध्यक्ष डॉ. भीमराव आम्बेदकर थे।

 

प्रश्न 7. स्वतंत्र भारत के नये संविधान को 26 जनवरी, 1950 ई. से क्यों लागू किया गया था ?

उत्तर- स्वतंत्र भारत के नये संविधान को 26 जनवरी, 1950 ई. से इसलिए लागू किया गया, क्योंकि यह तिथि उस ऐतिहासिक दिवस की बीसवीं वर्षगाँठ थी, जब पं. जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस ने ‘पूर्व स्वराज’ को अपना लक्ष्य घोषित किया था।

 

प्रश्न 8. जवाहर लाल नेहरू के ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ को एक ऐतिहासिक प्रस्ताव क्यों कहा जाता है ? उत्तर- जवाहर लाल नेहरू के ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ को एक ऐतिहासिक प्रस्ताव निम्नांकित कारणों से कहा जाता है

 

(1) ‘ उद्देश्य प्रस्ताव’ में स्वतन्त्र भारत के संविधान के मूल आदर्शों की रूपरेखा प्रस्तुत की गई थी और वह फ्रेमवर्क सुझाया गया था, जिसके तहत संविधान का कार्य आगे बढ़ना था।

(2) इसमें भारत को एक ‘स्वतन्त्र सम्प्रभु गणराज्य’ घोषित किया गया था और नागरिकों को न्याय, समानता व स्वतन्त्रता का आश्वासन दिया गया था।

 

प्रश्न 9. संविधान की ‘ उद्देशिका’ या ‘ प्रस्तावना’ की कोई चार प्रमुख बातें अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर- संविधान की ‘उद्देशिका’ या ‘प्रस्तावना’ की चार प्रमुख बातें निम्नांकित हैं (1) भारत में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की स्थापना की जायेगी।

 

(2) भारत में विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म तथा उपासना की स्वतन्त्रता स्थापित की जायेगी।

 

3) भारतीय लोकतान्त्रिक गणराज्य में प्रतिष्ठा व अवसर की समानता स्थापित की जायेगी।

 

(4) आपसी बन्धुत्व को बढ़ावा दिया जायेगा।

 

प्रश्न 10. संविधान क्या है ? भारतीय संविधान कब बनकर तैयार हुआ और यह कब लागू हुआ ?

उत्तर- संविधान एक कानूनी दस्तावेज है, जिसके द्वारा किसी देश का शासन चलाया जाता है। भारत का संविधान 26 नवम्बर, 1949 ई. को बनकर तैयार हुआ और दो माह बाद 26 जनवरी, 1950 ई. को इसे लागू किया गया।

 

प्रश्न 11. भारतीय संविधान के अनुसार धर्मनिरपेक्षता क्या है ?

उत्तर भारतीय संविधान के अनुसार, धर्मनिरपेक्षता का तात्पर्य यह है कि भारत किसी – धर्म या पंथ को राज्य धर्म के रूप में स्वीकार नहीं करता है और न ही किसी धर्म का विरोध करता है। संविधान की प्रस्तावना के अनुसार भारतवासियों को धार्मिक विश्वास, धर्म व उपासना की स्वतन्त्रता होगी।

 

प्रश्न 12. वयस्क मताधिकार पर आधारित लोकतन्त्र को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – वयस्क मताधिकार के अन्तर्गत प्रत्येक स्त्री-पुरुष को, जिसकी आयु 18 वर्ष हो चुकी है, उसे मत देने का अधिकार है। वह इस अधिकार द्वारा अपना मनचाहा प्रतिनिधि तथा दल चुन सकता है। किसी दल विशेष को बहुमत प्राप्त होने पर उस दल की सरकार बनती है। अतः इस तरह से बनने वाली सरकार लोकतान्त्रिक होती है।

 

प्रश्न 13. संविधान सभा में प्रान्तों को अधिक शक्तियाँ देने के विरोध अथवा मजबूत केन्द्र के पक्ष में दिए गए कोई दो तर्क लिखिए।

उत्तर- (1) बहुत से सदस्यों का कहना था कि केन्द्र की शक्तियों में भारी वृद्धि की जानी चाहिए ताकि वह साम्प्रदायिक हिंसा को रोक सके।

 

(2) संयुक्त प्रान्त के एक सदस्य श्री बालकृष्ण शर्मा ने यह तर्क दिया कि केवल शक्तिशाली केन्द्र ही देश के हित में योजना बना सकेगा, एक उचित शासन व्यवस्था स्थापित कर सकेगा और देश की विदेशी आक्रमणों से रक्षा कर सकेगा।

 

प्रश्न 14. संविधान सभा में श्री बालकृष्ण शर्मा द्वारा शक्तिशाली केन्द्र के पक्ष में दिए गए तर्कों को लिखिए।

उत्तर संविधान सभा में संयुक्त प्रान्त के सदस्य श्री बालकृष्ण शर्मा ने केन्द्र का शक्तिशाली होना आवश्यक बताया। इस संदर्भ में उन्होंने तर्क दिया कि देश के हित में योजना बनाने के लिए उपलब्ध आर्थिक संसाधनों को जुटाने के लिए, उचित शासन व्यवस्था स्थापित करने के लिए और देश को विदेशी आक्रमणों से बचाने के लिए केन्द्र सरकार का शक्तिशाली होना आवश्यक है।

 

प्रश्न 15. संविधान सभा में हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने के विरोध में क्या तर्क दिया गया ?

उत्तर-संविधान सभा में हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने के विरोध में मद्रास की सदस्य श्रीमती दुर्गाबाई का कहना था कि दक्षिण में हिन्दी का विरोध बहुत अधिक वहाँ के लोग हिन्दी के लिए हो रहे प्रचार को प्रान्तीय भाषाओं की जड़ें खोदने का प्रयास मानते हैं।

 

प्रश्न 16. सर्वप्रभुत्व सम्पन्न राष्ट्र का क्या अर्थ है ?

उत्तर- ऐसा राष्ट्र जिसमें प्रभुत्व जनता में निहित है। इसका अभिप्राय यह है कि यह किसी भी बाहरी दबाव से मुक्त है और यह अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में स्वेच्छानुसार कार्य करने में पूर्ण स्वतन्त्र है।

 

लघु उत्तरीय प्रश्न

 

प्रश्न 1. देशी रियासतों का एकीकरण किसने किया तथा एकीकरण की प्रक्रिया कैसे हुई ?

उत्तर-देशी रियासतों के एकीकरण में भारत के तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण थी । स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत में 562 देशी रियासतें थीं, जिन्हें भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 द्वारा भारत अथवा पाकिस्तान में सम्मिलित होने अथवा दोनों से अलग रहने की पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान कर दी गयी थी। वस्तुतः यह ब्रिटिश सरकार की एक गहरी चाल थी। इसके माध्यम से ब्रिटिश सरकार देश की एकता पर तीव्र प्रहार करके पुनः राजनीतिक दुर्बलता एवं अराजकता की ओर धकेल देना चाहती थी। देशी रियातों के स्वतंत्र अस्तित्व में बने रहने से देश की स्वतंत्रता को कभी भी गम्भीर खतरा उत्पन्न हो सकता था। अत: देश की स्वतंत्रता को स्थायी बनाए रखने के लिए देशी रियासतों का भारत में विलय करना नितांत आवश्यक था। देशी रियासतों का भारत में विलय करना एक अत्यन्त जटिल समस्या थी, क्योंकि अधिकांश ” देशी रियासतें अपने स्वतंत्र अस्तित्व को कायम रखना चाहती थीं। इस परिस्थिति में भारत के गृहमंत्री सरदार वल्ली। भाई पटेल ने असाधारण योग्यता का परिचय दिया। उन्होंने अपने अथक् प्रयत्नों और सूझ-बूझ से इस समस्या के समाधान में सफलता प्राप्त की। उन्होंने रियासतों से अपील की कि वे भारत की अखण्डता को बनाए रखने में उनकी सहायता करें। उन्होंने मैत्री व सद्भाव का हाथ बढ़ाया व भारत में सम्मिलित हो जाने के लिए आह्वान किया। उनके प्रयत्नों के परिणामस्वरूप अधिकांश देशी रियासतें भारतीय संघ में सम्मिलित हो गईं। उन्होंने 216 छोटी-छोटी रियासतों का विलय करके उन्हें पड़ोसी प्रान्तों – उड़ीसा, मध्य प्रदेश और बम्बई आदि में सम्मिलित कर दिया। कुछ बड़ी-बड़ी रियासतों को मिलाकर उनके पृथक् प्रान्त बना दिये; जैसे- सौराष्ट, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश आदि। कुछ रियासतों को केन्द्रशासित राज्यों का दर्जा दे दिया गया। 15 अगस्त, 1947 ई. तक जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर को छोड़कर शेष सभी रियासतें भारतीय संघ में शामिल हो गईं। जूनागढ़, हैदराबाद व जम्मू-कश्मीर की रियासतों का भारत में विलय करने के लिए सरदार वल्लभ भाई पटेल को सेना की सहायता लेनी पड़ी।

 

प्रश्न 2. हैदराबाद रियासत को भारतीय संघ का अंग किस प्रकार बनाया गया ?

उत्तर – हैदराबाद रियासत का निजाग भी हैदराबाद को भारत में सम्मिलित करने के पक्ष में नहीं था। जबकि हैदराबाद की जनता हैदराबाद को भारत में मिलाना चाहती थी, अतः उसने निजाम के विरुद्ध प्रदर्शन प्रारम्भ कर दिए। परिणामतः निजाम ने हिन्दुओं पर भयंकर अत्याचार प्रारम्भ कर दिये। कासिम रिजवी के नेतृत्व में नवाब के रजाकारों ने समस्त रियासत में आतंक कायम कर लूट-पाट प्रारम्भ कर दी। अंतत: हैदराबाद की जनता की रक्षा करने के लिए सरदार पटेल ने 13 सितम्बर, 1948 को भारतीय सेना हैदराबाद भेजी। तीन दिनों के बाद हैदराबाद के निजाम ने आत्मसमर्पण कर दिया और तत्पश्चात् भारतीय संघ में विलय को स्वीकार कर लिया।

 

प्रश्न 3. संविधान सभा के ‘ उद्देश्य प्रस्ताव’ में किन आदर्शों पर जोर दिया गया था ?

उत्तर- पं. जवाहर लाल नेहरू ने 13 दिसम्बर, 1946 ई. को संविधान सभा के समक्ष एक ऐतिहासिक प्रस्ताव प्रस्तुत किया, जिसे ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ के नाम से जाना जाता है। इस ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ में संविधान के निम्नांकित आदर्शों पर जोर दिया गया

 

(1) उद्देश्य प्रस्ताव में भारत को ‘स्वतंत्र सम्प्रभु गणराज्य’ घोषित किया गया।

 

(2) नागरिकों को न्याय, समानता और स्वतंत्रता का आश्वासन दिया गया।

 

(3) अल्पसंख्यकों, पिछड़े व जनजातीय क्षेत्रों और दलित एवं अन्य पिछड़े वर्गों के लिए पर्याप्त रक्षात्मक प्रावधान किए जाने का वचन दिया गया।

 

(4) गणतंत्र की क्षेत्रीय अखंडता और इसके प्रभुसत्ता सम्बन्धी सभी अधिकारों को सभ्य राष्ट्रों के नियमों तथा न्याय के अनुसार बनाए रखा जाएगा।

 

(5) भारत गणराज्य विश्व शान्ति तथा मानव कल्याण को बढ़ावा देने में अपना पूरा योगदान देगा।

 

प्रश्न 4. संविधान सभा में हुई चर्चाएँ जनमत से कैसे प्रभावित हुईं ? संक्षेप में लिखिए।

उत्तर- संविधान सभा में होने वाली चर्चाओं पर जनमत का भी प्रभाव होता था। यहाँ यह तथ्य उल्लेखनीय है कि संविधान सभा में सभी प्रस्तावों पर सार्वजनिक रूप से बहस की जाती थीं। संविधान सभा में बहस करने वाले विभिन्न पक्षों की दलीलें अखबारों में प्रकाशित होती थीं। इस प्रकार सार्वजनिक रूप से प्रेस में होने वाली आलोचना और समालोचना किसी भी विषय पर बनने वाली सहमति अथवा असहमति को व्यापक रूप से प्रभावित करती थी। इसके अतिरिक्त सामूहिक सहभागिता के उद्देश्य से जनसाधारण से भी सुझावों को आमंत्रित किया जाता था। संविधान सभा को जनसाधारण से मिलने वाले तमाम सुझावों में से कुछ को ही देखने से स्पष्ट होता है कि हमारे संविधान निर्माता परस्पर विरोधी हितों पर भी गहन विचार-विमर्श के बाद ही उचित निष्कर्षों पर पहुँचे थे, जैसे-कई भाषाई अल्पसंख्यकों की माँग थी कि मातृभाषा में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान की जाए और भाषाई आधार पर प्रान्तों का पुनर्गठन किया जाए; कई धार्मिक अल्पसंख्यकों की माँग थी कि उन्हें विशेष सुविधाएँ प्रदान की जाएँ; कई निचली जातियों के समूहों की माँग थी कि उन्हें जाति-शोषण से मुक्ति प्रदान की जाए और सरकारी संस्थाओं में आरक्षण प्रदान किया जाए। इस प्रकार के अनेक सामाजिक न्याय और सांस्कृतिक अधिकारों के विषयों पर संविधान सभा में बहस हुई।

 

प्रश्न 5. विभिन्न समूह’ अल्पसंख्यक’ शब्द को किस तरह परिभाषित कर रहे थे ?

उत्तर – विभिन्न समूह ‘अल्पसंख्यक’ शब्द को अपने-अपने ढंग से परिभाषित कर रहे थे, जिनका वर्णन निम्नवत् है

 

(1) मद्रास के बी. पोकर बहादुर का कहना था कि अल्पसंख्यक सभी जगह होते हैं और चाहने पर भी उन्हें हटाया नहीं जा सकता, इसलिए उनके हितों की रक्षा के लिए पृथक् निर्वाचिका को बनाए रखना चाहिए। उनका मानना था कि मुसलमानों की जरूरतों को गैर-मुसलमान अच्छी तरह नहीं समझ सकते और न ही अन्य समुदायों के लोग मुसलमानों का कोई सही प्रतिनिधि चुन सकते हैं।

 

(2) किसान आन्दोलन के नेता और समाजवादी विचारधारा के समर्थक एन. जी. रंगा का कहना था कि अल्पसंख्यक शब्द की व्याख्या आर्थिक मानदण्डों के आधार पर की जानी चाहिए। उनके अनुसार अल्पसंख्यक वास्तव में ‘गरीब’ और ‘दबे-कुचले’ लोग हैं। उन्होंने आदिवासियों को भी अल्पसंख्यकों में गिनाया था।

 

(3) आदिवासी सदस्य जयपाल सिंह का कहना था कि असली अल्पसंख्यक आदिवासी लोग हैं, जिन्हें पिछले 6000 वर्षों से अपमानित किया जा रहा है, उपेक्षित किया जा रहा है, उन्हें संरक्षण की आवश्यकता है।

 

(4) दमित जातियों के नेताओं के अनुसार असली अल्पसंख्यक तो वे ही हैं, जो चाहे गिनती में तो कम नहीं हैं, लेकिन समाज के अन्य वर्गों का उनके साथ व्यवहार बहुत ही गलत रहा है। ऐसे नेताओं की आवाज को सुना जाए और अस्पृश्यता का उन्मूलन किया जाए।

 

प्रश्न 6. प्रान्तों के लिए ज्यादा शक्त्यिों के पक्ष में क्या तर्क दिए गए ?

उत्तर- प्रान्तों (राज्यों) के अधिकारों को लेकर काफी शक्तिशाली तर्क मद्रास के सदस्य के सन्थानम द्वारा प्रस्तुत किए गए। उनका मानना था कि न केवल राज्यों को अपितु केन्द्र को भी शक्तिशाली बनाने के लिए भी शक्तियों का पुनर्वितरण आवश्यक है। यदि केन्द्र सरकार के पास जरूरत से ज्यादा जिम्मेदारियाँ होंगी तो वह प्रभावी ढंग से कार्य करने में समर्थ नहीं हो पाएगा, इसलिए केन्द्र सरकार के कुछ दायित्वों में कमी करके उन्हें राज्य सरकारों को सौंप देने से शक्तिशाली केन्द्र सरकार का निर्माण किया जा सकता है।

के. सन्थानम का मानना था कि राजकोषीय प्रावधानों के अन्तर्गत शक्तियों का मौजूदा वितरण राज्यों को पंगु बनाने वाला है, क्योंकि भू-राजस्व के अतिरिक्त अधिकतर कर केन्द्र सरकार के अधिकार में थे। यदि राज्यों के पास धन ही नहीं होगा, तो राज्यों में विकास परियोजनाओं को कार्यान्वित करना संभव नहीं होगा। इस सन्दर्भ में के. सन्थानम ने राज्य के अधिकारों की पुरजोर वकालत करते हुए कहा, “मैं ऐसा संविधान नहीं चाहता जिसमें इकाई को आकर केन्द्र से यह कहना पड़े कि “मैं अपने लोगों की शिक्षा की व्यवस्था नहीं कर सकता। मैं उन्हें नहीं दे सकता, मुझे सड़कों में सुधार, उद्योगों की स्थापना के लिए खैरात दे दीजिए।” बेहतर होगा कि हम संघीय व्यवस्था को पूरी तरह खत्म कर दें और एकल व्यवस्था ( यूनिटरी सिस्टम) स्थापित करें। सन्थानम का स्पष्ट कहना था कि यदि बिना सोचे-समझे शक्तियों के प्रस्तावित वितरण को लागू किया गया तो इसे दुष्परिणाम देखने को मिलेंगे और कुछ ही वर्षों में सारे प्रान्त केन्द्र के विरुद्ध खड़े हो जाएँगे।

प्रान्तों के अन्य अनेक सदस्यों ने भी शक्तियों के वितरण को लेकर इसी प्रकार की आशंकाएँ व्यक्त कीं, उन्होंने समवर्ती सूची और केन्द्रीय सूची में कम-से-कम विषयों को रखे जाने पर बल दिया। उड़ीसा के एक सदस्य ने तो यहाँ तक आशंका व्यक्त की कि अत्यधिक केन्द्रीकरण से केन्द्र बिखर जाएगा।

 

प्रश्न 7. महात्मा गाँधी को ऐसा क्यों लगता था कि हिन्दुस्तानी राष्ट्रीय भाषा होनी चाहिए।

उत्तर- महात्मा गाँधी, हिन्दुस्तानी को राष्ट्रभाषा बनाना चाहते थे। उनका मानना था कि प्रत्येक को एक ऐसी भाषा का प्रयोग करना चाहिए, जिसे सभी लोग आसानी से समझ सकें। महात्मा गाँधी ने राष्ट्रीय भाषा की विशेषता बताते हुए कहा था, “यह हिन्दुस्तानी नतो संस्कृतनिष्ठ हिन्दी होनी चाहिए और न ही फारसीनिष्ठ उर्दू । इस दोनों का सुन्दर मिश्रण होना चाहिए। उसे विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं से शब्द खुलकर उधार लेने चाहिए। विदेशी भाषाओं के ऐसे शब्द लेने में कोई हर्ज नहीं है जो हमारी राष्ट्रीय भाषा में अच्छी तरह और आसानी से घुल-मिल सकते हैं। इस प्रकार हमारी राष्ट्रीय भाषा एक समृद्ध और शक्तिशाली भाषा होनी चाहिए जो मानवीय विचारों और भावनाओं के पूरे समुच्चय को अभिव्यक्ति दे सके। खुद को हिन्दी या उर्दू से बाँध लेना देशभक्ति की भावना तथा समझदारी के विरुद्ध एक अपराध होगा।” महात्मा गाँधी का मानना था कि यह बहुसांस्कृतिक भाषा हिन्दुस्तानी विभिन्न समुदायों के बीच संचार की एक आदर्श भाषा हो सकती है। यह हिन्दू और मुस्लिम लोगों को तथा उत्तर व दक्षिण के लोगों को आपस में समान रूप से एकजुट कर सकती है।

 

दीर्घ उत्तरीय / विश्लेषणात्मक प्रश्न

 

प्रश्न 1. शरणार्थियों की समस्या के विषय में आप क्या जानते हैं ? इस समस्या को कैसे दूर किया गया है ?

उत्तर- भारत विभाजन के परिणामस्वरूप शरणार्थियों की गम्भीर समस्या देश के समक्ष उपस्थित हो गई। जैसा कि पहले उल्लिखित किया जा चुका है कि विभाजन के कारण लाखों हिन्दू और सिक्ख परिवार पाकिस्तान को छोड़कर भारत आने के लिए विवश हो गए। पाकिस्तान से आने वाले इन शरणार्थियों की सम्पत्ति, घर, दुकान, जमीन और व्यवसाय आदि सभी कुछ पाकिस्तान में ही रह गया। भारत आने वाले इन बेसहारा और बेघर शरणार्थियों के पास न तो पेट भरने के लिए अन्न था और न तन ढकने के लिए पर्याप्त कपड़े थे। लाखों की संख्या में इन असहाय और बेसहारा शरणार्थियों को पुनर्स्थापित करने की गम्भीर समस्या स्वतंत्र भारत की सरकार के समक्ष उपस्थित थी। इस गम्भीर समस्या का प्राथमिकता के आधार पर समाधान करने के लिए भारत सरकार द्वारा एक पृथक् विभाग की स्थापना की गई, जिसके द्वारा अनेक शरणार्थी कैम्प स्थापित किए गए और शरणार्थियों को हर संभव राहत प्रदान करने के प्रयत्न किए गए। शरणार्थियों के लिए योग्यतानुसार रोजगार उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गई तथा देश के विभिन्न भाग में उन्हें वसाने के लिए मकान, दुकान और जमीनें भी प्रदान की गईं। शरणार्थियों की समस्या से देश को अनेक वर्षों तक जूझना पड़ा।

 

प्रश्न 2. स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत की आर्थिक स्थिति कैसी थी ? आर्थिक विकास के लिए क्या कदम उठाए गए ?

उत्तर-स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् विभाजन के परिणामस्वरूप भारत को आर्थिक संसाधनों की कमी का भी सामना करना पड़ा। क्योंकि विभाजन की वजह से भारत का काफी बड़ा उपजाऊ क्षेत्र पाकिस्तान के अधिकार में चला गया, जिसके फलस्वरूप भारत के उद्योग-धन्धों, व्यापार और कृषि को गम्भीर आघात पहुँचा। भारत के जूट उत्पादन का 85 प्रतिशत क्षेत्र, कपास उत्पादन का 40 प्रतिशत क्षेत्र तथा गेहूँ व चावल उत्पादन का 40 प्रतिशत क्षेत्र विभाजन के उपरान्त पाकिस्तान में चला गया था; जबकि इन कृषि उत्पादों के प्रमुख कारखाने भारत में मौजूद थे। परिणामत: पर्याप्त मात्रा में कच्चा माल उपलब्ध न हो पाने के कारण भारतीय कारखानों व उद्योग-धन्धों को अनेक वर्षों तक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उत्पादन में कमी होने के कारण बेरोजगारी की समस्या भी तेजी से बढ़ने लगी। स्वतंत्र भारत की सरकार द्वारा आर्थिक समस्याओं के चक्रव्यूह से निकलने के लिए 1948 ई. में आर्थिक नीति की घोषणा की गई जिसके तहत् अनेक योजनाओं को क्रियान्वित किया गया। तत्पश्चात् 1950 ई. में प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक ‘ योजना आयोग’ की स्थापना की गई, इस आयोग का मुख्य कार्य देश की आवश्यकताओं एवं स्रोतों का अध्ययन करते हुए विकास की योजनाओं का निर्माण करना था। योजना आयोग के अन्तर्गत भारत में आर्थिक नियोजन के लिए पंचवर्षीय योजनाओं को प्रारम्भ किया गया। 1 अप्रैल, 1951 ई. को प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-1956 ई.) को लागू किया गया। इस पंचवर्षीय योजना का प्रमुख उद्देश्य जनसाधारण के जीवन स्तर को उन्नत करना तथा उन्हें आर्थिक उन्नति के अवसर उपलब्ध कराना था, इसके अतिरिक्त इस योजना के तहत् कृषि, सिंचाई, बिजली, परिवहन आदि पर अधिक बल दिया गया जिससे भविष्य में औद्योगिक विकास को तीव्र गति प्राप्त हो सके।

 

प्रश्न 3. वे कौन-सी ऐतिहासिक ताकतें थीं जिन्होंने संविधान का स्वरूप तय किया ?

उत्तर- संविधान का स्वरूप तय करने में अनेक ऐतिहासिक ताकतों ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की, जिनका विवरण निम्नांकित है

 

(1) संविधान का स्वरूप तय करने का श्रेय संविधान सभा को जाता है। संविधान सभा का गठन कैबिनेट मिशन योजना के अनुसार 1946 ई. में किया गया था, इसका गठन 1946 ई. के प्रान्तीय चुनावों के आधार पर किया गया था। संविधान सभा में प्रान्तों द्वारा भेजे गए सदस्यों के साथ-साथ देशी रियासतों के प्रतिनिधियों को भी सम्मिलित किया गया था। संविधान सभा में विशेष रूप से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्यों का प्रभाव सर्वाधिक था, क्योंकि संविधान सभा में 82 प्रतिशत सदस्य कांग्रेसी थे।

 

(2) यद्यपि संविधान सभा में कांग्रेस का पर्याप्त आधार था, तथापि इसके सदस्यों में पर्याप्त वैचारिक भिन्नता भी पायी जाती थी। कांग्रेस के सदस्यों में कई सदस्य समाजवाद से प्रेरित थे, तो कई सदस्य जमींदारों का समर्थन करने वाले थे, इसी प्रकार कई कांग्रेसी साम्प्रदायिक दलों के करीब थे, तो कई सदस्य धर्म निरपेक्षता के पक्के समर्थक थे। इन सभी विचारधाराओं ने संविधान के निर्धारण में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

 

(3) संविधान सभा में विभिन्न धर्मों एवं जातियों को प्रतिनिधित्व देने के उद्देश्य से कुछ स्वतंत्र सदस्यों और महिलाओं को भी नामांकित किया गया था। इन सभी ने संविधान के स्वरूप निर्धारण को अनेक रूपों में प्रभावित किया।

 

(4) कांग्रेस ने विधि विशेषज्ञों को संविधान सभा में स्थान दिए जाने पर विशेष ध्यान दिया। सुप्रसिद्ध विधिवेत्ता डॉ. भीमराव आम्बेदकर संविधान सभा के सर्वाधिक प्रभावशाली सदस्यों में से एक थे, उन्होंने संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में सराहनीय कार्य किया। इनके अतिरिक्त गुजरात के सुप्रसिद्ध वकील के. एम. मुंशी तथा मद्रास के वकील अल्लादि कृष्णास्वामी अय्यर की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही, इन्होंने संविधान के प्रारूप पर महत्वपूर्ण सुझाव दिए। इन विधि विशेषज्ञों ने संविधान के स्वरूप निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

 

(5) संविधान का स्वरूप निर्धारित करने में जनमत का भी महत्वपूर्ण स्थान था। संविधान सभा में सभी प्रस्तावों पर सार्वजनिक रूप से बहस की जाती थी। संविधान सभा में बहस करने वाले विभिन्न पक्षों की दलीलें अखबारों में प्रकाशित होती थीं। इससे संविधान सभा में होने वाली चर्चाओं पर जनमत का भी पर्याप्त प्रभाव होता था। जनसामान्य से सुझावों को भी आमंत्रित किया जाता था, जिसके परिणामस्वरूप सामूहिक सहभागिता का भाव उत्पन्न होता था।

इस विवेचन से स्पष्ट होता है कि संविधान के स्वरूप निर्धारण में अनेक ऐतिहासिक ताकतों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

 

प्रश्न 4. भारतीय संविधान के निर्माण में प्रमुख छह व्यक्तियों के योगदान का वर्णन कीजिए।

उत्तर- संविधान सभा में तीन सौ सदस्य थे, इन सदस्यों में से छह सदस्यों की प्रमुख – भूमिका थी, जिनके नाम इस प्रकार हैं- पं. जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, डॉ. भीमराव आम्बेदकर, के. एम. मुंशी और अल्लादि कृष्णास्वामी अय्यर। इन छह सदस्यों में से तीन सदस्य- पं. जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल और डॉ. राजेन्द्र प्रसाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे।

भारतीय संविधान का उद्देश्य प्रस्ताव’ पं. जवाहरलाल नेहरू के द्वारा प्रस्तुत किया गया था। इसके अतिरिक्त पं. जवाहरलाल नेहरू ने यह प्रस्ताव भी प्रस्तुत किया था कि “भारत का राष्ट्रीय ध्वज केसरिया, सफेद एवं हरे रंग की तीन बराबर चौड़ाई वाली पट्टियों का तिरंगा झण्डा होगा, जिसके मध्य में गहरे नीले रंग का चक्र होगा।” संविधान निर्माण के कार्य में सरदार वल्लभभाई पटेल की भूमिका अत्यंत उल्लेखनीय थी उन्होंने मुख्य रूप से परदे के पीछे रहकर अनेक महत्वपूर्ण कार्यों को अंजाम तक पहुँचाया। इसके अतिरिक्त उन्होंने कई रिपोर्टों के प्रारूप लिखने और अनेक परस्पर विरोधी विचारों के बीच सहमति बनाने में सराहनीय योगदान दिया। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष थे, इस पद की जिम्मेदारियों के तहत् उनका महत्वपूर्ण कार्य सदन की चर्चा को सकारात्मक दिशा प्रदान करना तथा प्रत्येक सदस्य को अपने विचार प्रकट करने के अवसर उपलब्ध करना था।

प्रख्यात विधिवेत्ता और अर्थशास्त्री डॉ. भीमराव आम्बेदकर संविधान सभा के सर्वाधिक महत्वपूर्ण सदस्यों में से एक थे। यद्यपि वह कांग्रेस के राजनीतिक विरोधी रहे थे, लेकिन स्वतंत्रता के समय महात्मा गाँधी की सलाह पर उन्हें केन्द्रीय विधिमंत्री पद के लिए आमंत्रित किया गया था। इस भूमिका में उन्होंने संविधान की ‘प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में सराहनीय कार्य किया था। संविधान सभा द्वारा संविधान प्रारूप समिति का गठन 29 अगस्त, 1947 को किया गया था। गुजरात के सुप्रसिद्ध वकील के. एम. मुंशी तथा मद्रास के वकील अल्लादि कृष्णास्वामी अय्यर, डॉ. आम्बेदकर के प्रमुख सहयोगी थे। इन दोनों सदस्यों के द्वारा संविधान के प्रारूप पर महत्वपूर्ण सुझाव दिए गए।

 

प्रश्न 5. दमित समूहों की सुरक्षा के पक्ष में किए गए विभिन्न दावों पर चर्चा कीजिए।

उत्तर- संविधान सभा में दमित जातियों (दलित जातियों) के अधिकारों के प्रश्न पर लम्बी चर्चा चली। दमित जातियों के अधिकारों के सन्दर्भ में दमित जातियों के कुछ प्रतिनिधियों का यह मानना था कि संरक्षण और बचाव के द्वारा ‘अस्पृश्यों’ (अछूतों) की समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता। जाति विभाजित समाज के सामाजिक कायदे-कानून और नैतिक मूल्य मान्यताएँ उनकी अपंगता के कारण हैं। तथाकथित सवर्ण समाज उनकी सेवाओं और श्रम का तो प्रयोग करता है, परन्तु उनके साथ सामाजिक सम्बन्ध स्थापित करने से कतराता है, उनके साथ बैठकर खाना नहीं खाता और उन्हें मन्दिरों में घुसने नहीं दिया जाता। मद्रास के प्रतिनिधि जे. नागप्पा ने इस संदर्भ में स्पष्ट करते हुए कहा कि हरिजन संख्या की दृष्टि से अल्पसंख्यक नहीं हैं, क्योंकि वे कुल जनसंख्या का 20-25 प्रतिशत हैं; लेकिन उनकी पीड़ा का मूल कारण उन्हें स्पष्ट तौर पर समाज और राजनीति के हाशिए पर रखा जाना है। उन्हें न तो शिक्षा प्रदान की गई और न ही उन्हें शासन सत्ता में भागीदारी दी गई। इस स्थिति के सन्दर्भ में जे. नागप्पा ने कहा, “हम सदैव कष्ट उठाते रहे हैं पर अब और कष्ट उठाने को तैयार नहीं हैं। हमें अपनी जिम्मेदारियों का अहसास हो गया है। हमें मालूम है कि अपनी बात कैसे मनवानी है।” इसी सन्दर्भ में मध्य प्रान्त के श्री. के. जे. खाण्डेलकर ने सवर्ण बहुमत वाली संविधान सभा को सम्बोधित करते हुए कहा, ‘हमें हजारों वर्षों तक दबाया गया है। दबाया गया इस हद तक दबाया गया कि हमारे दिमाग, हमारी देह काम नहीं करती और अब हमारा हृदय भी भावशून्य हो चुका है। न ही हम आगे बढ़ने के लायक रह गए हैं। यही हमारी स्थिति है।” राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान डॉ. भीमराव आम्बेदकर ने दमित जातियों के लिए पृथक् निर्वाचिकाओं की माँग की थी। लेकिन महात्मा गाँधी ने डॉ. आम्बेदकर की इस माँग का विरोध किया था, क्योंकि उनका मानना था कि ऐसा करने से दमित समुदाय सदैव के लिए शेष समाज से पृथक् हो जाएगा। लेकिन भारत विभाजन के परिणामस्वरूप हुई हिंसा और रक्तपात के बाद डॉ. आम्बेदकर ने पृथक् निर्वाचिका की माँग को छोड़ दिया। अंततः संविधान सभा द्वारा ये सुझाव दिए गए कि अस्पृश्यता का उन्मूलन कर दिया जाए, हिन्दू मन्दिरों के द्वार सभी जातियों के लिए खोल दिए जाएँ और विधायिकाओं व सरकारी नौकरियों में निचली जातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की जाए। अनेक लोगों का यह मानना था कि सामाजिक भेदभाव को समाप्त करने के लिए केवल संवैधानिक कानून पास करना पर्याप्त नहीं होगा, अपितु इसके लिए समाज की सोच को परिवर्तित करना आवश्यक है। लेकिन लोकतांत्रिक जनता ने संविधान सभा के उक्त प्रावधानों का स्वागत किया।

 

प्रश्न 6 स्पष्ट कीजिए कि संविधान सभा की बहसों में अनेक नेताओं ने शक्तिशाली केन्द्र की माँग क्यों की थी ?

अथवा

संविधान सभा के कुछ सदस्यों ने उस समय की राजनीतिक परिस्थिति और एक मजबूत केन्द्र सरकार की जरूरत के बीच क्या सम्बन्ध देखा ?

उत्तर- एक और संविधान सभा के कुछ सदस्य प्रान्तों को अधिक शक्तियाँ दिये जाने की वकालत कर रहे थे, वहीं दूसरी ओर कुछ सदस्य शक्तिशाली केन्द्र सरकार की आवश्यकता पर बल दे रहे थे। डॉ. भीमराव आम्बेदकर ने घोषणा की कि वह “एक शक्तिशाली और एकीकृत केन्द्र चाहते हैं; (सुनिए, सुनिए), 1935 ई. के गवर्नमेंट एक्ट में हमने जो केन्द्र बनाया था, उससे भी ज्यादा शक्तिशाली केन्द्र चाहते हैं। अनेक सदस्यों का बार-बार यही कहना था कि एक शक्तिशाली केन्द्र ही साम्प्रदायिक हिंसा को रोकने में समर्थ हो सकता है। गोपाल स्वामी अय्यर प्रान्तों की अपेक्षा केन्द्र को अधिक महत्वपूर्ण मानते थे, उनका कहना था कि “केन्द्र अधिक-से-अधिक मजबूत होना चाहिए।” इसी प्रकार संयुक्त के एक सदस्य बालकृष्ण शर्मा ने भी केन्द्र का शक्तिशाली होना आवश्यक बताया। इस सन्दर्भ में उन्होंने कहा कि देश के हित में योजना बनाने के लिए उपलब्ध आर्थिक संसाधनों को जुटाने के लिए, उचित शासन व्यवस्था स्थापित करने के लिए और देश को विदेशी आक्रमणों से बचाने के लिए केन्द्र सरकार का शक्तिशाली होना आवश्यक है।

यहाँ यह तथ्य उल्लेखनीय है कि विभाजन से पहले कांग्रेस ने प्रान्तों को पर्याप्त स्वायत्तता प्रदान करने पर अपनी सहमति व्यक्त की थी। कांग्रेस ने कुछ सीमा तक मुस्लिम लीग को इस बात का विश्वास दिलाने का प्रयास किया था कि जिन प्रान्तों में लीग की सरकार बनी है, उन प्रान्तों में हस्तक्षेप नहीं किया जायेगा। लेकिन विभाजन के पश्चात् उत्पन्न हुई परिस्थितियों के परिणामस्वरूप अधिकांश राष्ट्रवादियों की राय बदल चुकी थी। अब उनका मानना था कि विद्यमान परिस्थितियों में विकेन्द्रीकृत संरचना के लिए पहले जैसे राजनीतिक दबाव शेष नहीं हैं, अतः प्रान्तों को अधिक शक्तियाँ दिए जाने की जरूरत नहीं है।

भारत में ब्रिटिश प्रशासकों द्वारा थोपी गई एकल व्यवस्था पहले से ही विद्यमान थी। उस समय घटित होने वाली घटनाओं ने केन्द्रीयतावाद को और अधिक प्रोत्साहित किया था। विभाजन व स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् देश में फैली अराजकता पर अंकुश लगाने और देश के आर्थिक विकास की योजना बनाने के लिए शक्तिशाली केन्द्र की आवश्यकता और भी अधिक आवश्यक बन गई थी। इसीलिए संविधान सभा के अनेक सदस्य शक्तिशाली केन्द्र सरकार की आवश्यकता पर जोर दे रहे थे। यही वजह है कि भारतीय संविधान में भारतीय संघ के घटक राज्यों की तुलना में केन्द्र सरकार के अधिकारों की ओर स्पष्ट झुकाव दिखाई देता है।

 

प्रश्न 7. भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए।

उत्तर – भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएँ निम्नांकित हैं

(1) प्रस्तावना – भारतीय संविधान की ‘प्रस्तावना’ इसकी सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है क्योंकि इसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता प्रदान करने की बात कही गई है। संविधान की प्रस्तावना में संविधान के उद्देश्यों व लक्ष्यों को स्पष्ट किया गया है, इसके साथ ही प्रस्तावना में संविधान की अन्तरात्मा की झलक मिलती है। .

 

(2) लिखित एवं विशाल संविधान- भारतीय संविधान की एक विशेषता इसका लिखा हुआ तथा विश्व का सबसे लम्बा संविधान होना है जबकि विश्व के कुछ देशों के संविधान लिखे हुए नहीं हैं, जिससे समय-समय पर उन देशों में समस्याएँ उठ खड़ी होती हैं।

 

(3) संघीय शासन की स्थापना- भारतीय संविधान की एक प्रमुख विशेषता उसका संघीय स्वरूप है। संविधान में भारत को राज्यों का संघ कहा गया है। संविधान के अनुसार केन्द्र सरकार तथा राज्य सरकारों के मध्य शक्ति विभाजन किया गया है। संविधान के अन्तर्गत केन्द्र में संघीय सरकार का शासन है तथा राज्यों में राज्य सरकार का, विशेष परिस्थितियों में राज्य सरकारें केन्द्र सरकार के निर्देश मानने के लिए बाध्य हैं।

 

(4) स्वतंत्र न्यायपालिका- भारतीय संविधान की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता स्वतंत्र न्यायपालिका की व्यवस्था है। भारतीय संविधान में न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर विशेष बल दिया गया है। न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका से स्वतंत्र है। भारत का ‘सर्वोच्च न्यायालय’ संविधान के रक्षक एवं संरक्षक के रूप में कार्य करता है।

 

(5) संसदीय शासन प्रणाली – भारतीय संविधान में संसदीय शासन पद्धति की स्थापना की गई है। इस शासन प्रणाली के अन्तर्गत केन्द्र में राष्ट्रपति और राज्यों में राज्यपाल शासन के संवैधानिक मुखिया होते हैं, लेकिन उनके पास नाम मात्र की शक्तियाँ होती हैं। शासन की वास्तविक शक्ति मन्त्रिपरिषद् के पास होती है, जो सामूहिक रूप से व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होती है। केन्द्रीय व्यवस्थापिका को संसद के नाम से जाना जाता है, जिसमें दो सदन लोकसभा और राज्यसभा हैं। इसी प्रकार प्रत्येक राज्य में एक अथवा दो सदनों वाली व्यवस्थापिका होती है।

 

(6) मौलिक अधिकार – भारतीय संविधान की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें नागरिकों को अपनी उन्नति और विकास के लिए कुछ महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार प्रदान किए हैं। प्रमुख मौलिक अधिकर हैं- समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण से रक्षा का अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, सांस्कृतिक एवं शिक्षा सम्बन्धी अधिकार और संवैधानिक उपचारों का अधिकार।

 

(7) राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्त राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्त भारतीय – संविधान की एक महत्वपूर्ण विशेषता हैं। संविधान में इन सिद्धान्तों के द्वारा केन्द्रीय तथा राज्य सरकारों को यह निर्देश दिया गया है कि जनता के जीवन को अधिक से अधिक सुखमय – बनाने के प्रयत्न करें। नीति निर्देशक सिद्धान्तों का उद्देश्य कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है। संविधान के द्वारा राज्य को यह निर्देश दिया गया है कि वह इन सिद्धान्तों के अनुसार ही अपनी नीति निर्धारित करे।

 

(8) सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार – भारतीय संविधान की एक प्रमुख विशेषता इसके द्वारा वयस्क मताधिकार की व्यवस्था किया जाना है। भारतीय संविधान ने बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक वयस्क भारतीय नागरिक, जिसकी उम्र 18 वर्ष अथवा इससे अधिक हैं, को मतदान का अधिकार प्रदान किया है।

 

(9) धर्मनिरक्षेप राज्य – भारतीय संविधान द्वारा भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है। इसका अर्थ यह है कि राज्य किसी धर्म विशेष के प्रति कोई लगाव नहीं रखेगा, उसकी दृष्टि में सभी धर्म समान होंगे। प्रत्येक नागरिक को धर्म के मामले में पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त होगी। धर्म के नाम पर किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।

निष्कर्षतः भारत का संविधान भारत की संप्रभुता के मूल सिद्धान्त पर आधारित है, यह भारतीय जनता की वास्तविक एकता का प्रतीक है। भारतीय संविधान के स्वरूप और विशेषताओं से यह स्पष्ट होता है कि भारत का संविधान एक ऐसा आदर्श प्रलेख है, जिसमें सिद्धान्त और व्यवहारिकता का श्रेष्ठ समन्वय दृष्टिगोचर होता है।

 

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