MP Board Class 12th History chapter 8 कृषि समाज किसान, जमींदार और राज्य – कृषि और मुगल साम्राज्य important Questions in Hindi Medium (इतिहास)

अध्याय 8

कृषि समाज किसान, जमींदार और राज्य – कृषि और मुगल साम्राज्य

 

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

 

बहु-विकल्पीय प्रश्न

 

  1. भारत में मुगल साम्राज्य का संस्थापक कौन था ?

 

(अ) शेरशाह,

 

(ब) बाबर,

 

(स) हुमायूँ,

 

(द) जहाँगीर

 

  1. भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना कब हुई थी ?

 

(अ) 1526 ई.,

 

(ब) 1527 ई.,

 

(स) 1528 ई.,

 

(द) 1529 ई.।

 

  1. ‘बाबरनामा’ की रचना किसने की थी ?

 

(अ) अबुल फजल,

 

(ब) अकबर,

 

(स) बाबर,

 

(द) गुलबदन बेगम

 

  1. ‘अकबरनामा’ की रचना किसने की थी ?

 

 

(अ) गुलबदन बेगम,

 

(ब) अकबर,

 

(स) हुमायूँ,

 

(द) अबुल फजल

 

  1. ‘अकबरनामा’ कितने भागों (जिल्दों) में विभक्त है

 

(अ) दो,

 

(ब) तीन,

 

(स) चार,

 

(द) पाँच।

 

  1. ‘अकबरनामा’ की रचना का कार्य कब पूरा हुआ ?

 

 

(अ) 1556 ई.,

 

(ब) 1567 ई.,

 

(स) 1598 ई.,

 

(द) 1605 ई.।

 

  1. ‘अकबरनामा’ किस भाषा में लिखा गया ?

 

(अ) फारसी,

 

(ब) तुर्की,

 

(स) हिन्दी,

 

(द) संस्कृत ।

 

  1. ‘आइन-ए-अकबरी’ को कितने भागों (दफ्तरों) में विभक्त किया गया है ?

 

(अ) दो,

 

(ब) तीन,

 

(स) चार,

 

(द) पाँच।

 

 

  1. ‘आइन-ए-अकबरी’ को अंतिम रूप देने से पहले अबुल फजल ने इसमें कितनी बार संशोधन किए ?

 

(अ) तीन,

 

(ब) पाँच,

 

(स) सात,

 

(द) नौ।

 

  1. भारत में तम्बाकू की खेती किस मुगल सम्राट के शासनकाल में प्रारम्भ हुई ?

 

(अ) बाबर,

 

(ब) हुमायूँ,

 

(स) अकबर,

 

(द) जहाँगीर

 

उत्तर – 1. (ब), 2. (अ), 3. (स), 4. (द), 5. (ब), 6. (स), 7. (अ), 8. (द), 9. (ब), 10. (द) ।

 

  • रिक्त स्थानों की पूर्ति

 

  1. ‘आइन-ए-अकबरी’ की रचना मुगल सम्राट ………..के शासनकाल में हुई थी।

 

  1. ‘आइन – ए- अकबरी’ की रचना मुगल सम्राट अकबर के दरबारी इतिहासकार……….. (नाम) ने की थी।

 

  1. ‘आइन-ए-अकबरी’ के पहले भाग अर्थात् पहली किताब को ………..नाम दिया गया है।

 

  1. ‘अकबरनामा’ के तीसरे भाग (जिल्द) को ………..के नाम से जाना जाता है।

 

  1. भू-राजस्व की ‘दहसाला बन्दोबस्त’ प्रणाली मुगल सम्राट ……….. द्वारा लागू की गई थी।

 

उत्तर – 1. अकबर, 2. अबुल फजल, 3 मंजिल आबादी, 4. आइन-ए-अकबरी, 5. अकबर।

 

सत्य / असत्य

 

  1. मुगल सम्राट बाबर पितृ पक्ष से चंगेज खाँ का वंशज था।

 

  1. 16वीं – 17वीं शताब्दी के कृषि इतिहास को जानने में तत्कालीन किसानों के वृत्तान्तों से सहायता प्राप्त होती है।

 

  1. मुगलकाल में पाही काश्तकार किसान, जिस गाँव में रहते थे, उसी गाँव में खेती करते

 

थे। 4. 16वीं 17वीं शताब्दी में कृषि व्यक्तिगत मिल्कियत के सिद्धान्त पर आधारित थी।

 

  1. 16वीं 17वीं शताब्दी में भारत में लगभग 40 फीसदी भूमि जंगल से आच्छादित थी।

 

उत्तर – 1. असत्य, 2. असत्य, 3. असत्य, 4. सत्य, 5. सत्य।

 

सही जोड़ी बनाइए

 

अ                                       ‘ब’

  1. मुगल साम्राज्य की स्थापना. (i) अबुल फजल

 

  1. दहसाला बन्दोबस्त. (ii) बाबर

 

  1. तम्बाकू की खेती. (iii) बहादुरशाह द्वितीय

 

  1. मुगल साम्राज्य का अंतिम शासक (iv) अकबर

 

  1. मुगलकालीन दरबारी इतिहासकार। (v) जहाँगीर

 

3-1. (ii), 2. → (iv), 3. → (v), 4. → (iii), 5. → (i).

 

एक शब्द / वाक्य में उत्तर

 

  1. ‘आइन-ए-अकबरी’ का रचनाकार कौन है ?

 

  1. ‘आइन-ए-अकबरी’ के तीसरे भाग अर्थात् तीसरी किताब को क्या नाम दिया गया है ?

 

  1. 16वीं 17वीं शताब्दी में भारत में कितने फीसदी लोग गाँवों में निवास करते थे ?

 

  1. 16वीं 17वीं शताब्दी के भारतीय-फारसी स्रोतों में ‘किसान’ के लिए किस शब्द का प्रयोग किया जाता था ?

 

  1. मुगलकाल में ग्राम पंचायत के मुखिया को क्या कहा जाता था ?

 

उत्तर- 1. अबुल फजल, 2. मुल्क आबादी, 3. लगभग 85 फीसदी, 4. रैयत या मुजरियान, 5. मुकद्दम अथवा मण्डल।

 

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

 

प्रश्न 1. भारत के पहले मुगल सम्राट का नाम बताइए, उसका विश्व के किन दो महान विजेताओं से रक्त सम्बन्ध था ?

उत्तर भारत का प्रथम मुगल सम्राट बाबर था। उसका विश्व के दो महान – विजेताओं- तैमूर और चंगेज खाँ से रक्त सम्बन्ध था। वह पितृ पक्ष से तैमूर का वंशज और – मातृ-पक्ष से चंगेज खाँ का वंशज था।

 

प्रश्न 2. ‘अकबरनामा’ नामक ग्रन्थ के रचनाकार कौन हैं ? यह ग्रन्थ कितने भागों (जिल्दों) में विभक्त है ?

उत्तर- ‘अकबरनामा’ की रचना मुगल सम्राट अकबर के दरबारी इतिहासकार अबुल फजल ने की थी। यह ग्रन्थ तीन भागों (जिल्दों) में विभक्त है।

 

प्रश्न 3. 17वीं शताब्दी के स्रोतों में किसानों की कितनी श्रेणियों का उल्लेख मिलता है ? उनके नाम भी लिखिए।

उत्तर – 17वीं शताब्दी के स्रोतों में मुख्य रूप से किसानों की दो श्रेणियों – (1) खुदकाश्त, और (2) पाहीकाश्त का उल्लेख मिलता है। अधिकांश इतिहासकारों के विचारानुसार मुगलकालीन भारत में ‘मुकरारी काश्तकार’ नामक एक तीसरी श्रेणी भी विद्यमान थी।

 

प्रश्न 4. ‘जिन्स-ए-कामिल’ के अन्तर्गत आने वाली किन्हीं पाँच फसलों के नाम बताइए।

उत्तर- ‘जिन्स-ए-कामिल’ के अन्तर्गत आने वाली फसलों के नाम इस प्रकार हैं (1) गन्ना, (2) कपास, (3) तिलहन, (4) दलहन, (5) पोस्त आदि ।

 

प्रश्न 5. 16वीं 17वीं शताब्दी के दौरान ग्रामीण समुदाय के तीन महत्वपूर्ण घटक कौन-कौन से थे ?

उत्तर- 16वीं 17वीं शताब्दी के दौरान ग्रामीण समुदाय के तीन महत्वपूर्ण घटक थे—(1) खेतिहर किसान, (2) पंचायत, और (3) गाँव का मुखिया, जिसे मुकद्दम अथवा मण्डल कहा जाता था।

 

प्रश्न 6. मुगलकाल में अपनाए जाने वाले सिंचाई के कृत्रिम साधन क्या-क्या थे ?

उत्तर- मुगलकाल में कुओं, तालाबों और नहरों जैसे सिंचाई के कृत्रिम साधनों से पानी में खेतों को पहुँचाया जाता था। कुओं से सिंचाई के लिए पानी ढेंकली, चमड़े की बाल्टी और रहट आदि के माध्यम से निकालकर खेतों तक पहुँचाया जाता था।

 

प्रश्न 7. मुगलकाल में रोजमर्रा के आहार की खेती के अन्तर्गत कौन-कौन सी फसलें उगाई जाती थीं ?

 

उत्तर- मुगलकाल में रोजमर्रा के आहार की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए चावल, गेहूँ, ज्वार और बाजरा आदि की फसलें अधिक उगाई जाती थीं।

 

प्रश्न 8. ‘आइन-ए-अकबरी’ के अनुसार दिल्ली प्रान्त में रबी और खरीफ में कुल कितनी किस्म की फसलें उगाई जाती थीं ?

उत्तर- ‘आइन-ए-अकबरी’ के अनुसार दिल्ली प्रान्त में रबी और खरीफ में तैंतालीस किस्मों की फसलें उगाई जाती थीं।

 

प्रश्न 9. 17वीं और 18वीं शताब्दी के भारतीय ग्राम में छोटा गणराज्य’ क्यों कहा जाता था ?

उत्तर- 17वीं और 18वीं शताब्दी के भारतीय ग्राम को ‘छोटा गणराज्य’ इसलिए कहा जाता था, क्योंकि ग्राम अपनी आवश्यकता की लगभग सभी वस्तुओं का उत्पादन स्वयं कर लेता था और अपने आन्तरिक प्रशासन के लिए भी किसी पर निर्भर नहीं रहता था ।

 

प्रश्न 10. सर्वप्रथम किस मुगल सम्राट ने भू-राजस्व को सुचारू रूप से व्यवस्थित किया ?

उत्तर- सर्वप्रथम मुगल सम्राट अकबर ने भू-राजस्व को सुचारू रूप से व्यवस्थित किया। उसने भू-राजस्व की जिस प्रणाली को स्थापित किया वह सम्पूर्ण मुगलकाल में भू-राजस्व व्यवस्था का प्रमुख आधार बनी रही।

 

लघु उत्तरीय प्रश्न

 

प्रश्न 1. मुगलकालीन कृषि इतिहास के प्रमुख स्रोतों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।

उत्तर- मुगलकाल के कृषि इतिहास को जानने के लिए मुख्यतः उन ऐतिहासिक ग्रन्थों और दस्तावेजों की सहायता लेते हैं, जिनकी रचना मुगल दरबार की निगरानी में की गई थी। इस काल में अबुल फजल द्वारा रचित ‘आइन-ए-अकबरी’ एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ माना जाता है। इस ग्रन्थ से विभिन्न विषयों से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण समकालीन आँकड़े प्राप्त होते हैं। इसके अतिरिक्त इस काल के सरकारी दस्तावेज जैसे-‘दस्तूर-अल-अमल-ए-आलमगिरी और में सिंचाई के लिए दो नहरों का निर्माण कराया गया। इसके अतिरिक्त शाहजहाँ ने पुरानी नहरों क जीर्णोद्धार भी कराया और उसको सिंचाई के योग्य बनवाया।

 

प्रश्न 7. 16वीं-17वीं शताब्दी में कृषि उत्पादन को किस हद तक महज गुजारे के लिए खेती कह सकते हैं? अपने उत्तर के कारण स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-16वीं-17वीं शताब्दी में खेती का प्राथमिक उद्देश्य जनसाधारण का पेट भरन था, अत: रोजमर्रा के आहार की खेती पर अधिक बल दिया जाता था। रोजमर्रा के आहार को आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए चावल, गेहूँ, ज्वार आदि फसलें अधिक उगाई जाती थी।

यद्यपि रोजमर्रा के आहार से सम्बन्धित खाद्यान्नों की खेती पर विशेष बल दिया जात था, लेकिन इसका मतलब यह कदापि नहीं था कि मध्यकालीन भारत में कृषि उत्पादन महब गुजारे के लिए किया जाने वाला उत्पादन था। गेहूँ, चना, जौ, ज्वार, चावल और बाजरा जैसी रोजमर्रा के आहार की फसलों के अतिरिक्त गन्ना, कपास, तिलहन, दलहन, नील, अफीम और पोस्ट आदि की खेती भी इस काल की महत्त्वपूर्ण फसलें थीं। मुगलकाल में इन फसलों को ‘जिन्स-ए-कामिल’ अर्थात् सर्वोत्तम फसलें कहा जाता था। ‘जिन्स-ए-कामिल’ के अन्तर्गत आने वाली फसलों को उगाने के लिए किसानों को शासन सत्ता द्वारा प्रोत्साहित भी किया जाता था। क्योंकि ‘जिन्स-ए-कामिल’ के अन्तर्गत आने वाली फसलों से राज्य को अधिक कर प्राप्त होता था। ‘जिन्स-ए-कामिल’ के अन्तर्गत आने वाली फसलों को ‘नगदी फसल’ के नाम से भी जाना जाता था। इस प्रकार मध्यकालीन खेती को महज गुजारे की खेती कहना उचित प्रतीत नहीं होता। एक सामान्य किसान के द्वारा रोजमर्रा के आहार से जुड़े खाद्यान्नों के अतिरिक्त व्यावसायिक फसलों की भी खेती की जाती थी। .

 

प्रश्न 8. मुगलकाल में ग्राम पंचायत के मुखिया का चुनाव और उसके कार्यों की विवेचना कीजिए।

उत्तर–प्रत्येक ग्राम पंचायत का एक मुखिया होता था, जिसे ‘मुकद्म’ अथवा ‘मण्डल’ कहा जाता था। समकालीन साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि ग्राम पंचायत के मुखिया का चुनाव गाँव के बुजुर्गों की सहमति से किया जाता था। चुनाव के उपरान्त चयनित मुखिया की स्वीकृति जमींदार से कराना आवश्यक था। ग्राम पंचायत का मुखिया अपने पद पर तभी तक रह सकता था जब तक उसे गाँव के बुजुर्गों का विश्वास प्राप्त होता था। अविश्वास की स्थिति में गाँव के बुजुर्ग मुखिया को पदच्युत कर सकते थे।

गाँव की प्रत्येक व्यवस्था के लिए ग्राम पंचायत उत्तरदायी होती थी। गाँव की रक्षा, प्रारम्भिक शिक्षा, स्वास्थ्य, सफाई, सिंचाई, निर्माण कार्य, मनोरंजन, न्याय, जनसामान्य के नैतिक एवं धार्मिक उत्थान के कार्य आदि सभी कार्य ग्राम पंचायत द्वारा ही किए जाते थे। गाँव की आय-व्यय का हिसाब रखना मुखिया का एक प्रमुख कार्य था। वह पंचायत के पटवारी की सहायता से इस कार्य को किया करता था।

 

प्रश्न 9. कृषि उत्पादन में महिलाओं की भूमिका का विवरण दीजिए।

उत्तर- मध्यकालीन भारत के कृषि समाज में उत्पादन की प्रक्रिया में महिलाएँ महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती थीं। इस काल में महिलाएँ कृषि उत्पादन प्रक्रिया में पुरुषों के साथ कन्धे से कन्ध • मिलाकर खेतों में काम करती थी। कृषि उत्पादन में महिलाओं का सक्रिय सहयोग प्राप्त होता था। खेतों में पुरुष लोग जुताई और हल चलाने का काम करते थे, और महिलाएँ खेतों में  निराई तथा कटाई का काम किया करती थीं, इसके अतिरिक्त वे पकी हुई फसल का बुआई, दाना निकालने का भी काम करती थीं। लेकिन जब मध्यकाल में छोटी-छोटी ग्रामीण इकाइयों और व्यक्तिगत खेती का विकास हुआ, जोकि मध्यकालीन भारतीय कृषि की प्रमुख विशेषता थी, तब घर-परिवार के संसाधन और श्रम, उत्पादन के प्रमुख आधार बन गए थे। अतः ऐसे में समाज में लिंग बोध के आधार पर किया जाने वाला फर्क (अर्थात् घर के लिए महिला और बाहर के लिए पुरुष) नामुमकिन हो गया था।

मध्यकालीन समाज में दस्तकारी के काम, जैसे- सूत कातना, बर्तन बनाने के लिए मिट्टी साफ करना और गूँधना, कपड़ों पर कढ़ाई करना आदि उत्पादन के ऐसे पहलू थे, जो महिलाओं के श्रम पर ही आधारित थे। मध्यकाल में जैसे-जैसे वस्तुओं का वाणिज्यीकरण होता गया, वैसे-वैसे वस्तुओं के उत्पादन के लिए महिलाओं के श्रम की माँग भी बढ़ती गई।

परिणामत: किसान और दस्तकार महिलाएँ न केवल खेतों में काम करती थीं अपितु आवश्यकता होने पर नियोक्ताओं के घरों पर काम करने भी जाती थी और अपने उत्पादों की बिक्री के लिए बाजारों में भी जाती थीं।

 

प्रश्न 10. ‘जाति पंचायत’ के विषय में आप क्या जानते हैं ? इसके कार्यों का उल्लेख कीजिए ।

उत्तर- प्रत्येक गाँव में ग्राम पंचायत के अतिरिक्त प्रत्येक जाति की अपनी पंचायत भी होती थी, जिसे ‘जाति-पंचायत’ के नाम से जाना जाता था। जाति-पंचायत, मध्यकालीन ग्रामीण समाज की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता थी, यह पंचायत काफी शक्तिशाली होती थी। समकालीन साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि मध्यकाल में राजस्थान में जाति पंचायतें अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किया करती थीं। ये पंचायतें भिन्न-भिन्न जातियों के मध्य होने वाले दीवानी के झगड़ों का निपटारा करती थीं। भूमि से सम्बन्धित दावेदारियों के झगड़े भी इन्हीं पंचायतों द्वारा सुलझाए जाते थे। ये पंचायतें विवाह सम्बन्धी जातिगत मानदण्डों के पालन पर जोर दिया करती थीं तथा यह भी सुनिश्चित करती थीं कि विवाह सम्बन्धों में जातिगत मानदण्डों का पालन किया जाए। ये पंचायतें यह भी तय करती थीं कि गाँव के आयोजनों में किसको किसके ऊपर महत्त्व दिया जाना है। फौजदारी के मामलों को छोड़कर अन्य अधिकतर मामलों में राज्य भी जाति- पंचायत के निर्णयों का समर्थन करता था।

 

दीर्घ उत्तरीय / विश्लेषणात्मक प्रश्न

 

 

प्रश्न 1. ‘अकबरनामा’ किसने लिखा ? इसकी विषय वस्तु का सविस्तार वर्णन कीजिए।

उत्तर-‘अकबरनामा’ की रचना अबुल फजल ने की थी। अबुल फजल, मुगल सम्राट अकबर के दरबारी इतिहासकार थे। उनके द्वारा रचित ‘अकबरनामा’ तीन भागों (जिल्दों) में विभक्त है। इस ग्रन्थ के पहले दो भागों में ऐतिहासिक दास्तान (इतिहास) है और तीसरा भाग ‘आइन-ए-अकबरी’ है। तीसरे भाग ‘आइन-ए-अकबरी में उन शाही नियमों का संग्रह है, जिनका संकलन अकबर द्वारा अपने साम्राज्य के प्रशासन को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए किया गया था। ‘आइन-ए-अकबरी’ की रचना, अकबर की एक बहुत बड़ी ऐतिहासिक और प्रशासनिक परियोजना का परिणाम थी। इसे अकबर के शासन के 42वें वर्ष अर्थात् 1598 ई. में पाँच संशोधनों के उपरान्त पूरा किया गया था। ‘आइन-ए-अकबरी’ शाही नियम और कानून के सारांश और साम्राज्य के राजपत्र के रूप में संकलित रचना है। ‘आइन-ए-अकबरी’ विभिन्न प्रशासनिक एवं अन्य जानकारियों का महत्त्वपूर्ण खजाना है। इसमें दरबार, प्रशासन और सेना के संगठन, राजस्व के स्रोतों, मुगल साम्राज्य के प्रान्तों का भूगोल और लोगों की धार्मिक, सांस्कृतिक व साहित्यिक परम्पराओं पर विस्तार से चर्चा की गई है। ‘आइन-ए-अकबरी’ में अकबर के प्रशासन के विभिन्न विभागों और प्रान्तों के बारे में विस्तृत जानकारी के अतिरिक्त प्रान्तों से सम्बन्धित पेचीदी और आँकड़ेबद्ध सूचनाओं का भी वर्णन किया गया है।

 

प्रश्न 2. मुगलकाल में सिंचाई एवं उत्पादन की तकनीक की विस्तृत विवेचना कीजिए।

उत्तर- मुगलकाल में मानसून भारतीय कृषि की रीढ़ था और वर्तमान में भी है। भारत में वर्षा और नदियाँ सिंचाई के प्राकृतिक साधन थे। लेकिन इनके अतिरिक्त कृषि के लिए कुओं, तालाबों और नहरों जैसे सिंचाई के कृत्रिम साधनों से पानी खेतों तक पहुँचाया जाता था। कुओं से सिंचाई के लिए पानी ढेंकली, चमड़े की बाल्टी और रहट आदि के माध्यम से निकाल कर खेतों तक पहुँचाया जाता था। मध्य भारत, दक्कन और दक्षिण भारत में सिंचाई के प्रमुख साधन तालाब और हौज (जलाशय) थे। उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में सिंचाई के लिए नदियों से अनेक नहरें निकाली गई थीं।

यद्यपि कृषि अत्यधिक श्रम का कार्य था, लेकिन फिर भी कृषि कार्य को आसान बनाने के लिए किसानों द्वारा तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता था। कृषि उत्पादन तकनीक पशु- बल पर आधारित थी। भारत की हल्की मिट्टी के लिए भारी हलों की आवश्यकता नहीं होती थी। अतः ऐसे हल्के हल को प्रयोग किया जाने लगा जिसको एक छोर पर लोहे की नुकीली धार या फाल लगाकर आसानी से बनाया जा सकता था। ऐसे हलों से मिट्टी की बहुत गहराई तक खुदाई नहीं होती थी, जिसके परिणामस्वरूप तेज गर्मी के महीनों में भी भूमि में नमी बची रहती थी। सामान्यतः बीजों को हाथ से छिड़ककर बोया जाता था, लेकिन इस काल में बीज बोने के लिए बैलों के द्वारा खींचे जाने वाले बरमे का प्रयोग किया जाता था। इस काल में कृषि तकनीक के तौर पर मिट्टी की गुड़ाई और फसल की निराई के लिए लकड़ी की मूठ वाले लोहे के पतले धारों का प्रयोग किया जाता था।

 

प्रश्न 3. आपके मुताबिक कृषि समाज में सामाजिक व आर्थिक सम्बन्धों को प्रभावित करने में जाति किस हद तक एक कारक थी ?

उत्तर- मुगलकाल में जाति एवं जाति जैसे अन्य भेदभावों ने खेतिहर किसानों को अनेक वर्गों में विभक्त कर दिया था। यद्यपि इस काल में कृषि योग्य भूमि का अभाव नहीं था, फिर भी कुछ जातियों के लोगों से केवल निम्न समझे जाने वाले कार्य ही कराये जाते थे। उदाहरणार्थ, खेतों की जुताई का काम अधिकांशतः ऐसे लागों से करवाया जाता था, जो सवर्ण हिन्दुओं द्वारा निम्न समझे जाने वाले कार्यों को करते थे अथवा खेतों में मजदूरी करते थे। जातिगत नियन्त्रणों के कारण उनके पास पर्याप्त आर्थिक संसाधन नहीं होते थे और वे गरीब रहने के लिए मजबूर थे। यद्यपि उस काल में जनगणना नहीं होती थी, फिर भी उस काल के कुछ आँकड़े और तथ्य साक्ष्यों के रूप में प्राप्त हुए हैं, जिनसे ज्ञात होता है कि ग्रामीण समुदाय के एक विशाल भाग का निर्माण करने वाले ये लोग विवशतापूर्वक दरिद्रता का जीवन व्यतीत करते थे। उच्च जातीय हिन्दू शूद्रों से घृणा करते थे और उनके साथ सामाजिक मेल-जोल नहीं रखते थे। हिन्दुओं के सम्पर्क में रहते हुए मुस्लिम समुदाय में भी जातीय भेदभाव फैलने लगे थे। निम्न जातीय हिन्दुओं की तरह निम्न जातीय मुसलमान भी गरीबी का जीवन जीने के लिए मजबूर थे, ये लोग न तो उच्च जातीय मुसलमानों की बस्ती में रह सकते थे और न ही उनके साथ सामाजिक सम्बन्ध बना सकते थे। उदाहरणार्थ, मुस्लिम समुदायों में हलालखोरान जैसे नीच कामों को करने वाले लोगों के समूह गाँव की सीमा के बाहर ही रह सकते थे। इसी तरह बिहार में मल्लाहजादाओं को निम्नजातीय समझा जाता था और उनकी स्थिति दासों के समान थी। इससे स्पष्ट होता है कि विचाराधीन काल में निम्न जातियों से सम्बन्धित लोग, चाहे वे हिन्दू थे अथवा मुसलमान, उनको न तो समाज में सम्मान प्राप्त था और न ही उनकी आर्थिक दशा अच्छी थी। वस्तुतः इस काल में कृषि समाज में सामाजिक एवं आर्थिक सम्बन्धों का निर्धारण मुख्य रूप से जाति द्वारा ही किया जाता था।

 

प्रश्न 4. पंचायत और गाँव का मुखिया किस तरह से ग्रामीण समाज का नियमन करते थे ?

उत्तर- मुगलकाल में पंचायत का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य ग्रामीण समाज का नियमन करना होता था। प्रत्येक पंचायत का यह प्रयास होता था कि गाँव में रहने वाले भिन्न-भिन्न समुदायों के लोग अपने-अपने जाति-नियमों का पालन करें और अपनी जाति की सीमाओं को न लांघें। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि “जाति की अवहेलना रोकने के लिए ” जनसाधारण के आचरण पर नियन्त्रण स्थापित करना मुखिया का एक महत्त्वपूर्ण कार्य था। जाति नियमों की अवहेलना करने वाले व्यक्ति के लिए कठोर दण्ड का प्रावधान था। ग्राम पंचायत आरोपी व्यक्ति पर जुर्माना लगा सकती थी और उसे समुदाय से निष्कासित करने जैसी कठोर सजा भी दे सकती थी। समुदाय से निष्कासन एक बड़ा दंड होता था, इसके अन्तर्गत दंडित व्यक्ति को निर्धारित समय के लिए गाँव छोड़ना पड़ता था, इस दौरान वह अपनी जाति और व्यवसाय दोनों से वंचित हो जाता था। इस प्रकार के नियमों का उद्देश्य प्रमुखतः जाति सम्बन्धी रीति-रिवाजों की अवहेलना पर नियन्त्रण लगाना था ताकि समाज में व्यवस्था कायम रहे।

 

प्रश्न 5. मुगलों की भू-राजस्व सम्बन्धी ‘दहसाला बन्दोबस्त’ प्रणाली के विषय में आप क्या जानते हैं ? इसकी विशेषताओं सहित विवेचना कीजिए।

उत्तर – दहसाला बन्दोबस्त – मुगलकाल में सम्राट अकबर प्रचलित भू-राजस्व की सर्वाधिक सफल प्रणाली- ‘दहसाला बन्दोबस्त’ के प्रमुख प्रणेता अकबर के वित्तमंत्री राजा टोडरमल थे। ‘दहसाला बन्दोबस्त’ से तात्पर्य यह था कि “पहले दस वर्षों के मूल्यों का औसत मिलाकर लगान निश्चित करना।” इस व्यवस्था के तहत प्रत्येक भूमि की पैमाइश करने के अतिरिक्त उसकी पैदावार का सही पता लगाने की व्यवस्था भी की गई थी और विभिन्न स्थानों पर खाद्यान्नों की विभिन्न कीमतों के आधार पर सिक्कों के रूप में लगान लेने की व्यवस्था की गई थी। मुगल साम्राज्य के आठ महत्वपूर्ण प्रान्तों-दिल्ली, आगरा, अवध, इलाहाबाद (प्रयागराज), मालवा, अजमेर, लाहौर और मुल्तान में दहसाला बन्दोबस्त’ व्यवस्था को लागू किया गया था।

 

दहसाला बन्दोबस्त की विशेषताएँ-दहसाला बन्दोबस्त की प्रमुख विशेषताएँ अग्रांकित थीं

 

(1) भूमि को नापने के लिए रस्सी के स्थान पर बाँस के टुकड़ों का इस्तेमाल किया गया, जो लोहे के छल्लों से जुड़े रहते थे क्योंकि रस्सी मौसम के प्रभाव से घट-बढ़ जाती थी।

 

(2) भूमि के क्षेत्रफल की इकाई बीमा मानी गयी, जिसकी नाप 60 गज × 60 गज = 3600 वर्ग गज थी।

 

(3) 1586-87 ई. से ‘गज-इलाही’ का प्रयोग प्रारम्भ किया गया, ‘गज-ए- सिकन्दरी’ का प्रयोग किया जाता था।

 

(4) इस व्यवस्था के अन्तर्गत कृषि योग्य भूमि को चार भागों में विभाजित किया गया। इससे पूर्व हिसाब-किताब सरकारी कर्मचारी तैयार करते थे।

 

(5) इस व्यवस्था के तहत पिछले दस वर्षों की उपज के औसत के आधार पर लगान की राशि निर्धारित की गयी।

 

(6) इस व्यवस्था के तहत पैदावार का 1/3 भाग लगान निर्धारित किया गया।

 

(7) इस व्यवस्था के तहत लगान सिक्कों के रूप में लिया गया था।

 

(8) इस व्यवस्था के तहत भूमि की किस्म, क्षेत्रफल, पैदावार और कीमतों का वार्षिक

 

 

(9) जो भूमि जागीरों के रूप में दी गयी थी, उसकी लगान-व्यवस्था का प्रबन्ध भी केन्द्रीय अधिकारी करते थे।

 

(10) अकबर ने किसानों को भूमि का स्वामी स्वीकार किया था और राज्य ने किसानों से सीधा सम्पर्क स्थापित किया था।

 

(11) इस व्यवस्था के तहत् आपातकाल की स्थिति में किसानों को राज्य की ओर से सुविधाएँ भी प्रदान की जाती थीं।

 

(12) इस व्यवस्था के तहत् अकबर ने जजिया और जकात जैसे धार्मिक करों को हटाने के अतिरिक्त किसानों की सुविधा के लिए पेड़ों व पशुओं को बेचने अथवा खरीदने, नमक बाजार, मकान, चमड़ा, कम्बल आदि विभिन्न वस्तुओं से कर हटा दिए थे। निःसन्देह ‘दहसाला बन्दोबस्त’ भू-राजस्व की अन्य प्रणालियों की अपेक्षा अधिक सफल और सराहनीय प्रणाली थी।

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