भाग ‘अ’ समकालीन विश्व राजनीति
1 अध्याय शीत युद्ध का दौर [Cold War Era]
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
बहु-विकल्पीय प्रश्न
- बोल्शेविक (रूसी) क्रान्ति कब हुई थी ?
(i) 1917
(ii) 1921 में
(iii) 1912 में
(iv) 1909 में ।
- शीत युद्ध का चरम बिन्दु क्या था ?
(i) क्यूबा मिसाइल संकट
(ii) बर्लिन की दीवार
(iii) कोरियाई संकट
(iv) सोवियत संघ का हंगरी में हस्तक्षेप ।
- शीत युद्ध के दौरान किन देशों में व्यापक जनहानि हुई थी ?
(i) श्रीलंका, बांग्लादेश तथा भूटान,
(ii) भारत, पाकिस्तान तथा नेपाल
(iii) कोरिया, वियतनाम तथा अफगानिस्तान
(iv) चीन, अमेरिका, सूडान ।
- पाकिस्तान के किस अमेरिकी सैनिक गुट में सम्मिलित होने पर पंडित जवाहरलाल नेहरू ने तीव्र आलोचना की थी ?
(i) रियो सन्धि
(ii) आजंस सन्धि
(iii) नाटो
(iv) सीटो।
- शीत युद्ध के दौरान दूसरी दुनिया के देश किस सैनिक संधि के साथ जुड़े थे ?
(i) सीटो
(ii) वारसा पैक्ट
(iii) नाटो
(iv) बगदाद पैक्ट |
- निम्नांकित में कौन एक सैनिक शक्ति नहीं है ?
(i) सेण्टो
(ii) सिएटो
(iii) ईईसी
(iv) नाटो ।
- निम्नांकित में से किस देश ने नवम्बर 1997 में नाटो की सदस्यता ग्रहण करने हेतु जनमत संग्रह कराया ?
(i) हंगरी
(ii) चीन
(iii) जापान
(iv) सोवियत संघ |
- निम्नांकित में किस देश ने नाटों में अमेरिकी नेतृत्व का विरोध किया था ?
(i) इटली
(ii) ब्रिटेन
(iv) पश्चिमी जर्मन
(iii) फ्रांस
- अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा तथा नागासाकी पर परमाणु बम कब गिराए थे ?
(i) अगस्त 1914 में
(ii) अक्टूबर 1918 में
(iii) अगस्त 1945 में
(iv) सितम्बर 1947 में।
- मई 1945 में राइस्टैंग बिल्डिंग (बर्लिन, जर्मनी) पर किस देश के सैनिकों ने ध्वज फहराया था ?
(i) ब्रिटेन
(ii) सोवियत संघ
(iii) अमेरिका
(iv) फ्रांस ।
उत्तर- 1. (i), 2. (i), 3. (iii), 4. (iv), 5. (ii), 6. (ii), 7. (i). 8. (iii) 9. (iii), 10. (ii).
रिक्त स्थानों की पूर्ति
- शीत युद्ध शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग……………..ने किया था।
- शीत युद्ध का उदय चर्चिल के………………..भाषण से हुआ।
- पुराने शीत युद्ध का केन्द्र यूरोप था, जबकि नए शीत युद्ध का………………………..था।
- ………………का तात्पर्य विकासशील अथवा अल्प विकसित देशों का समूह है।
- वारसा सन्धि की स्थापना का प्रमुख कारण………………………. में सम्मिलित देशों का यूरोप में मुकाबला करना था।
- चूँकि………………. में आस्था रखता था, अत: वह नाटो अथवा सीटो का सदस्य नहीं बना।
- शीत युद्ध के दौरान महाशक्तियों के बीच प्रमुख केन्द्र………………..महाद्वीप था।
- शीत युद्ध की समाप्ति का प्रमुख……………………था।
उत्तर – 1. बर्नार्ड बारूस, 2. फुल्टन, 3. एशिया, 4. तीसरी दुनिया, 5. नाटो, 6. गुटनिरपेक्षता नीति, 7 यूरोप, 8. सोवियत संघ का विघटन
जोड़ी मिलाइए
‘क’
- शीत युद्ध की शुरुआत
- नाटो
- बर्लिन की दीवार खड़ी हुई
- क्यूबा मिसाइल संकट
- नवीन शीत युद्ध
- पूँजीवादी गुट
- गुटनिरपेक्ष आन्दोलन
‘ख’
(i) अप्रैल 1949
(ii) 1980-1987 तक
(iii) 1962
(iv) 1945
(v) 1961
(vi) नाइजीरिया, श्रीलंका
(vii) फ्रांस, जापान
उत्तर- 1. (iv), 2. (i), 3. (v), 4. (iii) 5. (ii) 6. (vii),7. → (vi).
- एक शब्द / वाक्य में उत्तर
- बगदाद संधि पर किस वर्ष हस्ताक्षर हुए थे ?
- शीत युद्ध का सम्बन्ध किन-किन गुटों से था ?
- शीत युद्ध की समाप्ति कब हुई थी ?
- “हमें धोखे में नहीं रहना चाहिए, आज हम एक शीत युद्ध के बीच खड़े हैं।” उक्त कथन किसका है ?
- शीत युद्ध से जुड़े दो प्रमुख व्यक्तियों के नाम लिखिए।
- अप्रैल 1949 में गठित नाटो में स्थापना के समय कितने देश सम्मिलित थे ?
- क्यूबा मिसाइल संकट के समय सोवियत संघ का नेतृत्व कौन कर रहा था ?
- छोटे देश किन कारणों से महाशक्तियों के लिए बड़े उपयोगी थे ?
- बगदाद संधि का नया नाम क्या रखा गया ?
10.संयुक्त राष्ट्र संघ का व्यापार एवं विकास सम्मेलन कब हुआ ?
उत्तर- 1.1955, 2. अमेरिका तथा सोवियत संघ, 3.1991 के अन्त में, 4. बर्नार्डबारूस, 5. (1) जोसेफ स्टालिन तथा (2) फोस्टर डलेस, 6. बारह, 7. निकिता खुश्चेव, 8. तेल व खनिज, भू-क्षेत्र तथा सैन्य ठिकानों के कारण उपयोगी थे, 9. सेन्टो, 10. 1964 1
- सत्य / असत्य
- शीत युद्ध एक वाक युद्ध है जिसमें प्रचार का महत्व है तथा यह वास्तविक युद्ध न होकर युद्ध का वातावरण है।
- शीत युद्ध ने संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्यों को गति प्रदान की थी।
- शीत युद्ध के अन्त का प्रमुख कारण सोवियत संघ में उभरता हुआ आर्थिक एवं राजनीतिक संकट था।
- 25 अक्टूबर 1947 को आर्शल योजना के प्रतिउत्तर में सोवियत संघ ने मोलोटोव योजना की घोषणा की थी।
- 1989 में बर्लिन की दीवार गिराई गई।
- गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के संस्थापक ट्रूमैन थे।
- फुल्टन भाषण में ब्रिटिश प्रधानमन्त्री चर्चिल ने सोवियत संघ की प्रशंसा की थी।
- स्टालिन ने सोवियत संघ में ऐसा कठोर प्रावधान किया जिससे देश में बाहरी समाचारों का प्रवेश अथवा देश के समाचारों का बाहर जाना असम्भव था।
उत्तर – 1. सत्य, 2. असत्य, 3. सत्य, 4. सत्य, 5. सत्य, 6. असत्य, 7. असत्य,8. सत्य।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. शीत युद्ध किन साधनों से लड़ा जाता है ?
उत्तर- शीत युद्ध प्रतियोगिता, घृणा तथा दूसरों को नीचा दिखाने इत्यादि साधनों से लड़ा जाता है।
प्रश्न 2. गुट निरपेक्षता का प्रमुख उद्देश्य लिखिए।
उत्तर- गुट निरपेक्षता का प्रमुख उद्देश्य तनाव की प्रवृत्तियों को कमजोर करके शान्ति की प्रत्येक सम्भावना का विस्तार करना है।
प्रश्न 3. वारसा सन्धि में कौन देश सम्मिलित ?
उत्तर-पूर्वी यूरोपीय साम्यवादी देशों ने 1955 में वारसा सन्धि की स्थापना की थी। जिसमें सोवियत संघ, पोलैण्ड, पूर्वी जर्मनी, चैकोस्लोवाकिया, हंगरी, रूमानिया तथा बुल्गारिया इत्यादि देश सम्मिलित थे।
प्रश्न 4. उत्तरी अटलांटिक सन्धि संगठन (नाटो) में कौन देश सम्मिलित थे ?
उत्तर- 1949 में अमेरिकी नेतृत्व में गठित नाटों में अमेरिका, फ्रांस, स्पेन, पुर्तगाल, ब्रिटेन, पश्चिमी जर्मनी, इटली, नीदरलैण्ड, बेल्जियम, नार्वे, डेनमार्क तथा फिनलैण्ड शामिल थे।
प्रश्न 5. शीत युद्ध की कोई दो सैन्य (सैनिक) विशेषताएँ अथवा लक्षण लिखिए।
उत्तर- (1) नाटो, सिएटो, सेंटो तथा वारसा पैक्ट इत्यादि सैन्य गठबन्धनों का निर्माण करके इसमें अधिक से अधिक देशों को सम्मिलित करना, (2) शस्त्रीकरण एवं अत्याधुनिक परमाणु मिसाइलें बनाकर उन्हें सम्भावित युद्ध स्थलों पर स्थापित करना ।
प्रश्न 6. शीत युद्ध के दौरान छोटे देशों द्वारा स्वयं को महाशक्तियों के साथ जोड़ने के दो कारण लिखिए।
उत्तर – (1) असुरक्षा की भावना से ग्रसित छोटे देश स्वयं को बड़ी शक्तियों से जोड़कर अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहते थे। (2) कुछ छोटे देशों का मानना था कि वे महाशक्तियों के साथ जुड़ेंगे तो उन्हें अपनी सुरक्षा पर अधिक सैन्य व्यय नहीं करना पड़ेगा तथा प्राकृतिक आपदओं के दौरान उन्हें बिना विलम्ब के मदद मिलेगी।
प्रश्न 7. महाशक्तियों के बीच गहरी प्रतिद्वन्द्विता होने के बाद भी शीत युद्ध वास्तविक युद्ध का रूप क्यों नहीं ले पाया था ?
उत्तर–महाशक्तियाँ इस तथ्य से भली प्रकार अवगत थीं कि परमाणु युद्ध की परिस्थिति में दोनों ही पक्षों अमेरिका एवं सोवियत संघ को इतना नुकसान उठाना पड़ेगा कि उनमें विजेता कौन है, यह निर्धारित करना भी असम्भव होगा।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. शीत युद्ध के अर्थ एवं प्रकृति को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर- शीत युद्ध का अभिप्राय: शब्दों के बीच पैदा होने वाले तनाव से है। इसमें प्रत्येक । पक्ष ऐसी नीतियों का अनुसरण करता है जिनका लक्ष्य स्वयं को मजबूत करते हुए दूसरे पक्ष को कमजोर करना है। शीत युद्ध हथियारों के स्थान पर प्रतियोगिता, घृणा तथा दूसरों को नीचा दिखाकर लड़ा जाता है। शीत युद्ध का अर्थ स्पष्ट करते हुए डी. एफ. फ्लेमिंग ने कहा है कि “यह एक ऐसा युद्ध है जो युद्ध क्षेत्र में नहीं अपितु मनुष्य के मस्तिष्क एवं बुद्धिमानी से लड़ा जाता है तथा इसके द्वारा उसके विचारों पर नियन्त्रण स्थापित किया जाता है।”शीत युद्ध दूसरे महायुद्ध के दौरान अपनी प्रकृति को विकसित कर पाया। शीत युद्ध के दौरान दोनों महाशक्तियों (अमेरिका एवं सोविवत संघ) ने नए आजाद हुए राष्ट्रों को अपनी ओर आकर्षित करने हेतु प्रत्यक्ष रूप से हथियारों एवं आर्थिक मदद दी थी। इस दौरान अप्रत्यक्ष रूप से शस्त्रीकरण, हस्तक्षेप, जासूसी तथा तकनीकी क्षेत्र में बराबरी का लगातार प्रयोग किया जाता रहा।
प्रश्न 2. शीत युद्ध के कोई चार कारण लिखिए।
उत्तर- -शीत युद्ध के चार प्रमुख कारण निम्नवत् थे
(1) शीत युद्ध का कारण संघर्षों की अनिवार्यता थी।
(2) दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका तथा सोवियत संघ के बीच वैचारिक मतभेदों की वजह से तनाव पैदा हुआ। इस प्रकार विचारधाराओं का परस्पर टकराव शीत युद्ध का कारण बना।
(3) शीत युद्ध को पुष्पित एवं पल्लवित करने में सोवियत संघ तथा पश्चिमी देशों के परस्पर आपसी सन्देह एवं अविश्वास ने भी निर्णायक भूमिका का निवर्हन किया।
(4) विजित प्रदेशों पर नियन्त्रण भी इच्छा और परस्पर विरोधी प्रचार भी शीत युद्ध का ही एक कारण रहा था।
प्रश्न 3. ‘क्यूबा मिसाइल संकट’ क्या था तथा इसमें किन विश्व नेताओं ने महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया ?
उत्तर- अप्रैल 1961 में सोवियत नेतृत्वकर्ता को भय था कि अमेरिका क्यूबा पर हमला कर सकता है। अतः 1962 में निकिता खुश्चेव ने क्यूबा में परमाणु मिसाइलें तैनात कर दीं। इससे सोवियत संघ पूर्व की अपेक्षाकृत अब अमेरिकी मुख्य भू-भाग के लगभग दुगुने ठिकानों अथवा शहरों पर हमला करने में सक्षम हो गया। सोवियत संघ द्वारा क्यूबा में परमाणु मिसाइलें लगाने सम्बन्धी जानकारी अमेरिका को तीन सप्ताह के बाद हुई । अमेरिका परमाणु युद्ध नहीं चाहता था, अत: अमेरिकी राष्ट्रपति कैनेडी ने अमेरिकी लड़ाकू बेड़ों को आगे करके क्यूबा की तरफ जाने वाले सोवियत जहाजों को रोकने का आदेश दिया। अमेरिका अपनी इस कार्यवाही से सोवियत संघ को चेतावनी देना चाहता था। इस परिस्थिति से ऐसा प्रतीत होने लगा कि अब युद्ध को रोका नहीं जा सकता। उक्त घटनाक्रम ही क्यूबा मिसाइल संकट के रूप में विख्यात है। हालांकि सम्पूर्ण विश्व संघर्ष की आशंका से चिन्तित था लेकिन तभी दोनों महाशक्तियाँ युद्ध यलने का निर्णय लिया। क्यूवा मिसाइल संकट शीत युद्ध का चरम बिन्दु था। उल्लेखनीय है कि इस संकट के पश्चात् तनाव एवं संघर्ष की श्रृंखला के रूप में शीत युद्ध चलता रहा। क्यूबा मिसाइल संकट में विश्व विख्यात अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी तथा सोवियत संघ प्रमुख निकिता ख्रुश्चेव ने महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया तथा विश्व को तीसरे महायुद्ध से बचा लिया।
प्रश्न 4. महाशक्तियाँ छोटे देशों के साथ सैन्य गठबन्धन क्यों रखती थीं ? कोई तीन कारण लिखिए। उत्तर- महाशक्तियाँ छोटे देशों के साथ निम्न कारणों की वजह से सैन्य गठबन्धन रखती थीं
(I) संयुक्त राज्य अमेरिका तथा पूर्व सोवियत संघ (तत्कालीन महाशक्तियाँ) छोटे देशों को अपने-अपने हथियार (अस्त्र) बेचती थीं तथा उनके यहाँ अपने सैन्य अड्डे स्थापित करके सैन्य गतिविधियों का संचालन करती थीं।
(2) इन दोनों महाशक्तियों को छोटे देशों से तेल एवं खनिज पदार्थ इत्यादि प्राप्त होते थे।
(3) छोटे देशों में अमेरिका तथा सोवियत संघ अपने अड्डे स्थापित करके परस्पर एक दूसरे गुट की जासूसी किया करते थे।
प्रश्न 5. असंलग्नता अथवा गुटनिरपेक्षता में आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- असंलग्नता अथवा गुटनिरपेक्षता का अभिप्राय विश्व के शक्तिशाली गुटों से अलग अथवा तटस्थ रहकर अपनी स्वतन्त्र विदेशी नीति का संचालन करना तथा अपने राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा करना है। गुटनिरपेक्षता का अर्थ स्पष्ट करते हुए सुकर्णो ने कहा है कि, “इस नीति का तात्पर्य युद्ध में तटस्थ रहना न होकर स्वतन्त्रता, शान्ति एवं सामाजिक न्याय के कार्य में सक्रिय योगदान देना है।” जार्ज लिस्का के मतानुसार, “असंलग्नता अथवा गुटनिरपेक्षता का आशय सही एवं गलत में भेद (अन्तर) करके सदैव सही नीति का समर्थन करता है।” गुटनिरपेक्षता के आशय के सन्दर्भ में अप्पादोराय ने कहा है कि, “किसी भी देश के साथ सैन्य सन्धि तथा विशेषतया किसी साम्यवादी अथवा पश्चिमी गुट के किसी राष्ट्र के साथ सैनिक सन्धि में सम्मिलित न होना ही असंलग्नता है।” अत: स्पष्ट है कि गुटनिरपेक्षता एक ऐसी सकारात्मक एवं रचनात्मक नीति है, जो सामूहिक सुरक्षा का मार्ग प्रशस्त करती है।
प्रश्न 6. गुटनिरपेक्षता के आवश्यक तत्वों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर- असंलग्नता अथवा गुटनिरपेक्षता के कर्णधारों ने इसके निम्नलिखित पाँच आवश्यक तत्व बताए हैं
(1) इससे सम्बद्ध देश अपनी स्वतन्त्र नीति का अनुसरण करता हो।
(2) इसका सदस्य देश उपनिवेशवाद का विरोध करता हो।
(3) इसका सदस्य देश किसी भी सैनिक गुट का सदस्य न हो।
(4) सदस्य देश ने किसी बड़ी शक्ति अथवा ताकत के साथ द्विपक्षीय समझौता न किया हो।
(5) इसके सदस्य देश ने किसी बड़ी शक्ति को अपने क्षेत्र में सैन्य अड्डा बनाने की अनुमति प्रदान न की हो।
प्रश्न 7. वर्तमान में गुटनिरपेक्षता की क्या उपयोगिता अथवा महत्व है ?
उत्तर- वर्तमान में दिन-प्रतिदिन परिवर्तित होती हुई परिस्थितियों में गुटनिरपेक्षता का ( स्वरूप तो जरूर बदला है, लेकिन इसके बावजूद इसकी उपयोगिता अथवा महत्व में कोई कमी नहीं आई है। गुटनिरपेक्ष नीति पर चलने वाले देशों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। यही नहीं संयुक्त राष्ट्र संघ में गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों की आवाज बुलन्द हुई है तथा अब वे विश्व में शान्ति बनाए रखने में उपयोगी भूमिका का निर्वहन करने की स्थिति में हैं। विश्व के परतन्त्र राष्ट्रों को आजाद कराने तथा रंगभेद की नीति का विरोध करने में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की भूमिका अब किसी से छिपी नहीं है। बदलती हुई परिस्थितियों में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन ने अब गरीब (तथा पिछड़े हुए देशों के आर्थिक विकास पर विशेष रूप से ध्यान देना भी शुरू कर दिया है।
प्रश्न 8. गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के उद्देश्यों को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर- गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के प्रमुख उद्देश्यों को संक्षेप में निम्नलिखित बिन्दुओं (द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है
(1) एशिया, अफ्रीका तथा नव स्वतन्त्र एवं विकासशील देशों को सशक्त कर उनकी ●आवाज को विश्व स्तर पर उठाना।
(2) प्रत्येक प्रकार के साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद का विरोध करना तथा इसकी समाप्ति के लगातार प्रयास करते रहना।
(3) विश्व की समस्त समस्याओं के शान्तिपूर्ण समाधान तलाशने पर बल देना।
(4) संयुक्त राष्ट्र संघ का समर्थन करते हुए इस मंच पर पारस्परिक एकता को प्रदर्शित करना।
(5) नवीन अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था हेतु संगठनात्मक प्रयास करना।
प्रश्न 9. गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की संस्थागत संरचना को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर- इसके दो उपसंगठन (1) समन्वय ब्यूरो तथा (2) सम्मेलन हैं, जिन्हें संक्षेप में निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है
(1) समन्वय ब्यूरो इसका कार्य गुटनिरपेक्ष देशों सतत् विचार विमर्श तथा समन्वय बनाए रखना है। मार्च, 1983 के नई दिल्ली शिखर सम्मेलन में इसकी सदस्य संख्या बढ़ाकर 66 कर दी गयी है। यहाँ उल्लेखनीय है कि इन सदस्यों का चुनाव होता है।
(2) सम्मेलन-गुटनिरपेक्ष नीति पर चलने वाले राष्ट्रों के द्विस्तरीय सम्मेलन- (i) विदेश मन्त्रियों का सम्मेलन, तथा (ii) शिखर सम्मेलन होते हैं। जहाँ विदेश मन्त्रियों के स्तर के शिखर सम्मेलनों में गुटनिरपेक्ष देशों के विदेश मन्त्री हिस्सा लेते हैं, वहीं शिखर सम्मेलन में इन देशों के प्रमुख अर्थात् राष्ट्राध्यक्ष भाग लेते हैं। शिखर सम्मेलन में चार प्रकार के अर्थात् पूर्ण सदस्य, पर्यवेक्षक सदस्य, गैर-पर्यवेक्षक सदस्य तथा अतिथि सदस्य हिस्सा लेते हैं। प्रति तीन वर्ष की समयावधि के पश्चात् शिखर सम्मेलन का आयोजन किया जाता है।
दीर्घ उत्तरीय / विश्लेषणात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. शीत युद्ध की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर – शीत युद्ध की विशेषताएँ- शीत युद्ध की प्रमुख विशेषताओं को संक्षेप में निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है
(1) शीत युद्ध दूसरे महायुद्ध के नकारात्मक प्रतिक्रियास्वरूप उत्पन्न हुआ और इसमें, परस्पर बदले की भावना सर्वोपरि रही ।
(2) मूलत: शीत युद्ध एक राजनीतिक युद्ध का स्वरूप था, जिसमें दो प्रतिद्वन्द्वी महाशक्तियों सोवियत संघ एवं संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच तनावपूर्ण स्थिति उत्पन्न हुई।
(3) शीत युद्ध वास्तविक युद्ध न होकर वातावरण एवं स्थिति के दृष्टिकोण से वाक् युद्ध था जिसमें परस्पर एक-दूसरे के खिलाफ झूठा प्रचार चरम बिन्दु तक किया गया।
(4) शीत युद्ध में जासूसी, गुप्त संधियाँ, प्रादेशिक गठबन्धन तथा अनेक सैन्य समझौते करके शक्ति का प्रसार करना सर्वोपरि है।
(5) अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय के राष्ट्रों की राजनीतिक तथा गैर-राजनीतिक समस्याएँ शीत युद्ध की प्रयोगशाला हैं।
प्रश्न 2. शीत युद्ध के कारणों की विस्तार से विवेचना कीजिए ।
उत्तर- शीत युद्ध की उत्पत्ति के प्रमुख कारण-शीत युद्ध की उत्पत्ति हेतु मुख्यतः निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे
(1) युद्धकालीन सन्देह एवं अविश्वास – यूरोपीय राष्ट्रों को साम्यवादी क्रान्ति की सफलता से गहरा आघात लगा। सोवियत सरकार पाश्चात्य देशों के शत्रुतापूर्ण व्यवहार को विस्तृत नहीं कर पायी। इसी प्रकार सोवियत संघ की पूँजीवाद विरोधी नीतियों तथा समस्त विश्व में साम्यवाद के प्रसार के लक्ष्य से पाश्चात्य शक्तियों रूस से भयभीत थीं और उसे सदैव सन्देह की दृष्टि से देखती थीं।
( 2 ) सैद्धान्तिक मतभेद- शीत युद्ध को विकसित करने में परस्पर दो विरोधी विचारधाराओं का भी योगदान रहा। जहाँ अमेरिका पूँजीवाद उदार लोकतन्त्रात्मक देश था, वहीं इसके ठीक विपरीत सोवियत संघ साम्यवादी एकदलीय व्यवस्था वाला देश था।
(3) अमेरिका विरोधी प्रचार-द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् सोवियत समाचार पत्रों एवं रेडियो ने अमेरिका के खिलाफ जबदरस्त प्रचार अभियान चलाया, जिससे अमेरिका में व्यापक जनअसन्तोष व्याप्त हो गया।
( 4 ) पाश्चात्य देशों की तुष्टिकरण की नीति- विश्व युद्ध के बाद साम्यवाद से) भयभीत होकर पाश्चात्य देशों ने तुष्टिकरण की नीति को अपनाया। उन्होंने अपने सोवियत विरोधी दृष्टिकोण की वजह से ही जर्मन एवं इटली के अधिनायकों की क्रूरताओं का विरोध न करके उनका समर्थन किया।
(5) सोवियत संघ का बार-बार निषेधाधिकार का प्रयोग- सोवियत संघ ने । पाश्चात्य देशों (विशेषतया अमेरिका) के प्रस्तावों एवं नीतियों के खिलाफ बार-बार वीटो) का प्रयोग करके उसके प्रस्तावों को रद्द कराया। इससे पाश्चात्य राष्ट्र सोवियत संघ के कट्टर विरोधी बन गए।
(6) लैण्ड-लीज समझौते का समापन- लैण्ड-लीज समझौते के आधार पर पाश्चात्य देशों द्वारा सोवियत संघ की आर्थिक मदद की जाती थी, जिसे पाश्चात्य शक्तियों ने अचानक रोक दिया। इसने शीत युद्ध को भड़काने में काफी योगदान दिया।
प्रश्न 3. अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों पर शीत युद्ध के पाँच प्रभावों को लिखिए।
उत्तर- शीत युद्ध का प्रभाव (परिणाम)- अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर शीत युद्ध के प्रभाव अथवा परिणाम को संक्षेप में निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है
(1) विश्व का दो गुटों में विभाजन- शीत युद्ध की वजह से विश्व राजनीति द्वि-ध्रुवीय हो गई। सोवियत संघ तथा संयुक्त राज्य अमेरिका अलग-अलग गुटों का नेतृत्व करने लगे।
(2) आतंक एवं अविश्वास में बढ़ोत्तरी- शीत युद्ध की वजह से देशों के बीच परस्पर अविश्वास, आतंक, तनाव तथा प्रतिस्पर्द्धा इत्यादि की भावना को पुष्पित एवं पल्लवित होने का अवसर मिला।
(3) आण्विक युद्धों का खतरा- द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान प्रयुक्त आण्विक हथियारों की विनाशलीला से दुनिया के सभी देश भयभीत हो गये। उन्हें यह भय सदैव सताता था कि शीत युद्ध में आण्विक हथियारों को बनाने की प्रतिस्पर्द्धा शुरू हो गयी है। यदि इनको कभी प्रयोग करने की स्थिति बनी तो इसके निर्माणकर्त्ता के साथ विश्व का महाविनाश हो जाएगा।
(4) शस्त्रीकरण की दौड़ तथा विश्व का यान्त्रिकीकरण- शीत युद्ध की वजह से विश्व के अनेक देशों में हथियारों की अंधी दौड़ को बढ़ावा मिला, जिससे निःशस्त्रीकरण का मार्ग कठिन हो गया। चूँकि शीत युद्ध ने विश्व को दो गुटों में विभक्त कर दिया था । अतः अमेरिका ने कहा था कि जो हमारे साथ नहीं है, वह हमारा विरोधी है। यह यान्त्रिकीकरण था।
(5) संयुक्त राष्ट्र संघ की कमजोर स्थिति- शीत युद्ध की वजह से संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थिति निर्बल हो गयी। महाशक्तियों के परस्पर विरोधी दृष्टिकोण के कारण संयुक्त राष्ट्र संघ कोई ठोस कार्यवाही नहीं कर सका।
प्रश्न 4. गुटनिरपेक्षता की नीति के प्रमुख लक्षण लिखिए।
उत्तर- गुटनिरपेक्ष नीति के प्रमुख लक्षय अथवा विशेषताएँ- असंलग्नता अथवा गुटनिरपेक्षता की नीति में विभिन्न लक्षण या विशेषताएँ विद्यमान हैं, जिन्हें संक्षेप में निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है
(1) शक्ति गुटों अथवा सैनिक गठबन्धों से पृथकता- गुटनिरपेक्षता का प्रमुख लक्षण अथवा विशेषता शक्ति समूहों से अलग रहने की नीति है। विश्व के विभिन्न देशों को परस्पर विरोधी खेमों अथवा गुटों में विभक्त करने का कुप्रयास सम्पूर्ण दुनिया में तनाव का वातावरण निर्मित करता है। अतः गुटनिरपेक्ष नीति का लक्ष्य इन शक्ति खेमों से अलग रहकर तनाव को घटाना है।
( 2 ) विश्व शान्ति को प्रोत्साहन गुटनिरपेक्ष नीति का प्रमुख उद्देश्य तनाव की प्रवृत्तियों को कमजोर करके शान्ति की प्रत्येक सम्भावना का विस्तार करना है। इस नीति की वजह से ही भारत ने कोरिया, कांगो तथा साइप्रस इत्यादि में शान्ति स्थापना के प्रयास किए थे।
(3) साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, शोषण एवं आधिपत्य विरोधी नीति-गुटनिरपेक्षता की नीति राष्ट्रीय प्रभुसत्ता, स्वतन्त्रता, समानता तथा आपसी हितों के सवंर्द्धन में आस्था रखती है। इसके द्वारा संघर्ष, अन्याय, दमन तथा असहिष्णुता का प्रबल विरोध किया जाता है।
(4) स्वतन्त्र विदेशी नीति का परिपालन-गुटनिरपेक्ष नीति का अनुसरण करने वाले देश अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में स्वयं को किसी गुट विशेष से सम्बद्ध न करके अपने लिए स्वतन्त्र विदेश नीति के मार्ग का अनुसरण करते हैं।
(5) गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की सदस्यता ऐच्छिक – गुटनिरपेक्ष नीति का अनुसरण करने वाले देशों का अपना कोई गुट नहीं होता है। यह तो एक ऐसा आन्दोलन है, जिसमें गुटनिरपेक्षता की नीति का अनुसरण करने वाला कोई भी देश अपनी स्वयं की इच्छा से इसमें सम्मिलित हो सकता है।
प्रश्न 5. ‘गुट निरपेक्ष आन्दोलन अब अप्रासंगिक हो गया है। आप इस कथन के बारे में क्या सोचते हैं ? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर- वर्तमान परिस्थितियों में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन प्रासंगिक है। वर्तमान विश्व सोवियत संघ के बिखराव अर्थात् विघटन के बाद एक ध्रुवीय स्वरूप धारण कर चुका है। गुटनिरपेक्ष देशों के परस्पर मिल-जुलकर कार्य करने से वे एक शक्ति का स्वरूप ले सकते हैं। आज की परिस्थितियों में गुटनिरपेक्षता के अनुयायी देश संगठित होकर एकध्रुवीय विश्व चुनौतियों से सामना करने में सक्षम हैं। नवोदित देश अपना राजनीतिक एवं आर्थिक विकास परस्पर एक-दूसरे के सहयोग से ही कर सकते हैं। परिवर्तित अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों में अमेरिकी दबाव से छुटकारा दिलाने के लिए गुट निरपेक्ष आन्दोलन के सदस्यों का आपसी सहयोग जरूरी है। गुटनिरपेक्षता की नीति सदस्य देशों को सुरक्षा देने के साथ ही विश्व निःशास्त्रीकरण की जरूरत पर भी बल देती है। विश्व में मौजूद असमानताओं से निपटने हेतु गुटनिरपेक्ष आन्दोलन एक वैकल्पिक विश्व व्यवस्था बनाने और अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था को लोकतन्त्रधर्मी बनाने के संकल्प पर आधारित है। अतः शीत युद्ध के अन्त के पश्चात् इसके सदस्यों की संख्या में निरन्तर वृद्धि होती चली जा रही है, जो इस बात का परिचायक है कि वर्तमान में ही नहीं बल्कि आने वाले समय में भी इसकी प्रासंगिकता इसी प्रकार कायम रहेगी।
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