अध्याय 11 एक दल के प्रभुत्व का दौर [Era of One Party Dominance]
बहु-विकल्पीय प्रश्न
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- कांग्रेस का गठन कब हुआ था ?
(i) 1857
(ii) 1875
(iii) 1885
(iv) 1930.
- कांग्रेस के संस्थापक कौन थे ?
(i) ए.ओ. ह्यूम
(ii) डब्ल्यू बनर्जी
(iii) एनी बेसेन्ट
(iv) लाला लाजपत राय।
- भारत में किस राजनीतिक दल को छत्तरी संगठन के रूप में जाना जाता है ?
(i) भारतीय साम्यवादी दल
(ii) कांग्रेस
(iii) भारतीय जनता पार्टी
(iv) बहुजन समाजवादी ।
- आजादी के बाद कांग्रेस का विभाजन किस वर्ष हुआ ?
(i) 1960 में
(ii) 1961 में
(iii) 1969 में
(iv) 1970
- निम्नांकित में किसने 1951 में भारतीय जनसंघ पार्टी की स्थापना की थी ?
(i) श्यामाप्रसाद मुखर्जी
(ii) चौधरी चरणसिंह
(iii) अटल बिहारी बाजपेयी
(iv) दीनदयाल उपाध्याय ।
- ‘स्वतन्त्र पार्टी की स्थापना निम्नांकित में किसके द्वारा की गई ?
(i) आचार्य नरेन्द्र देव
(ii) बलराज मधोक
(iii) मीनू मसानी
(iv) सी. राजगोपालाचारी ।
- किस देश में 60 वर्षों तक इंस्टीट्यूशनल रिवोल्यूशनरी पार्टी’ सत्तारूढ़ रही थी ?
(i) म्यांमार
(ii) मैक्सिको
(iii) इटली
(iv) चीन।
- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी कब विभाजन का शिकार हुई थी ?
(i) 1935 में
(ii) 1941 में
(iii) 1951 में
(iv) 1964 में ।
उत्तर – 1. (iii) 2. (i), 3. (ii), 4. (iii), 5. (i), 6. (iv), 7. (ii), 8. (iv).
- रिक्त स्थानों की पूर्ति
- प्रथम आम चुनाव में ……………………पार्टी दूसरे स्थान पर रही थी।
- भारत के पहले मुख्य चुनाव आयुक्त ……………………थे।
- …………………………….हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रतिपादक एवं भारत विभाजन के विरोधी थे।
- भारत में पहले तीन चुनावों में ……………………..का प्रभुत्व रहा।
- संविधान सभा की सदस्य…………………………1957 तक स्वास्थ्य मन्त्री के पद पर रही थीं।
- 1952 के चुनावों में भारतीय जनसंघ को लोकसभा की ……………………सीटों पर सफलता मिली थी।
- 1952 के पहले आम चुनाव में लोकसभा के साथ-साथ ………………………..के लिए भी चुनाव कराए गए थे।
8…………………………..लोकसभा के पहले आम चुनाव में 16 सीटें जीतकर दसूरे स्थान पर रही।
- …………………………………स्वतन्त्र पार्टी का एक निर्देशक सिद्धान्त था।
उत्तर – 1. कम्युनिस्ट, 2. सुकुमार सेन, 3. मौलाना अबुल कलाम, 4. कांग्रेस, 5. राजकुमारी अमृत कौर, 6. तीन, 7. राज्य विधानसभा, 8 भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, 9. राज्य के नियन्त्रण से मुक्त अर्थव्यवस्था ।
जोड़ी मिलाइए
I.
‘क’
- कामराज योजना
- 1952-67 में कांग्रेसी प्रभुत्व का उत्तरदायी तत्व
- स्वतन्त्र भारत के पहले
- जनसंघ का चुनाव चिह्न
- स्वतन्त्र भारत के प्रथम मन्त्रिमण्डल में संचार मंत्री
‘ख’
(i) राष्ट्रीय आन्दोलन की विरासत
(ii) डॉ. बी. आर. आम्बेदकर विधि मन्त्री
(iii) रफी अहमद किवई
(iv) 8 अगस्त, 1963
(v) दीपक
उत्तर – 1. (iv), 2. (i), 3 → (ii), 4. (v), 5. (iii).
II.
- एस. ए. डांगे
- श्यामा प्रसाद मुखर्जी
- मीनू मसानी
- अशोक मेहता
(i) भारतीय जनसंघ
(ii) स्वतन्त्र पार्टी
(iii) प्रजा सोशलिस्ट पार्टी
(iv) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
उत्तर – 1. (iv), 2. → (i), 3. → (ii), 4. → (iii).
एक शब्द / वाक्य में उत्तर
- स्वतन्त्र भारत में पहले आम चुनाव कब हुए थे ?
- एक दलीय प्रभुत्व से आप क्या समझते हैं ?
- भारत में किस दल ने एक दल, एक संस्कृति तथा एक राष्ट्र के संगठन पर जोर दिया ?
- पण्डित जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु के उपरान्त उनका राजनीतिक उत्तराधिकारी कौन बना ?
- भारत में चुनाव कराने के लिए कौन उत्तरदायी है ?
उत्तर- 1. अक्टूबर 1951 से फरवरी 1952 के बीच हुए, 2. एक दलीय प्रभुत्व वह है जहाँ बहुदलीय प्रणाली के अन्तर्गत किसी एक दल की प्रधानता होती है, 3. भारतीय जनसंघ, 4. लाल बहादुर शास्त्री, 5. भारतीय चुनाव आयोग
सत्य / असत्य
- डॉ. बी. आर. आम्बेदकर ने ‘हिन्दू कोड बिल पर नेहरू से मतभेद होने पर 1951 में मन्त्रिमण्डल से त्यागपत्र दे दिया था।
- केरल में सर्वप्रथम लोकतान्त्रिक रूप से निर्वाचित साम्यवादी सरकार सत्तारूढ़ हुई।
- वर्तमान में कांग्रेस का चुनाव चिह्न ‘गाय एवं बछड़ा है ।
- वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी का चुनाव चिह्न ‘कमल का फूल’ है।
- पहले आम चुनाव में समाजवादी पार्टी’ का प्रदर्शन अत्यन्त उत्साहवर्द्धक था।
- स्वतन्त्र पार्टी ने भारतीय गुटनिरपेक्ष नीति का समर्थन किया था ।
- भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की जड़ें भारतीय जनसंघ में हैं।
- विकल्प के रूप में किसी मजबूत राजनीतिक दल का अभाव एकल पार्टी प्रभुत्व का कारण था।
- जनमत की कमजोरी के कारण एक पार्टी का प्रभुत्व कायम हुआ।
- एकल पार्टी प्रभुत्व का सम्बन्ध राष्ट्र के औपनिवेशिक अतीत से है।
- एकल पार्टी प्रभुत्व से देश में लोकतान्त्रिक आदर्शों के अभाव की झलक मिलती है।
उत्तर – 1. सत्य, 2. सत्य, 3. असत्य, 4. सत्य, 5. असत्य, 6. असत्य, 7. सत्य, 8. सत्य, 9. असत्य, 10. सत्य, 11. असत्य ।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. आजादी के बाद भारत में कांग्रेस के प्रभुत्व का दौर क्यों रहा ? उत्तर- आजादी के बाद भारत में कांग्रेस के प्रभुत्व का दौर रहा क्योंकि इसका संगठन अखिल भारतीय स्तर तक पहुँच चुका था।
प्रश्न 2. भारत में पहले तीन चुनावों में कांग्रेस प्रभुत्व के कोई दो कारण लिखिए।
उत्तर – ( 1 ) स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान कांग्रेसियों का लोगों में अधिक लोकप्रिय होना, तथा (2) यह एकमात्र ऐसा दल था जिसके पास ग्रामीण स्तर तक विस्तृत फैला हुआ संगठन था।
प्रश्न 3. भारतीय जनसंघ ने किन दो प्रमुख विचारों पर विशेष जोर दिया ?
उत्तर – ( 1 ) भारत एवं पाकिस्तान को एक करके ‘अखण्ड भारत’ बनाने पर बल दिया, तथा (2) भारत द्वारा आण्विक हथियारों के निर्माण का समर्थन किया।
प्रश्न 4. समाजवादी पार्टी तथा कम्युनिस्ट पार्टी के बीच दो अन्तर लिखिए।
उत्तर- (1) समाजवादी पार्टी लोकतान्त्रिक विचारधारा में आस्था रखती है जबकि कम्युनिस्ट पार्टी सर्वहारा वर्ग के अधिनायकवादी लोकतन्त्र में विश्वास करती है। (2) समाजवादी पार्टी पूँजीपतियों एवं पूँजी को आवश्यक तथा समाज विरोधी नहीं मानती जबकि कम्युनिस्ट पार्टी निजी पूँजी एवं पूँजीपतियों को पूर्णरूपेण अनावश्यक एवं समाज विरोधी मानती है।
प्रश्न 5. स्वतन्त्र पार्टी किस कारण अपना मजबूत सांगठनिक ढाँचा खड़ा नहीं कर पायी थी ?
उत्तर- स्वतन्त्र पार्टी का समाजिक आधार अत्यधिक संकुचित था तथा इसके पास दलीय सदस्य के रूप में समर्पित कार्यकताओं की कमी थी। अतः अपना मजबूत सांगठनिक ढाँचा खड़ा करने में विफल रही।
प्रश्न 6. भारत एवं मैक्सिको दोनों में लम्बी समयावधि तक एकदलीय प्रभुत्व रहा, लेकिन दोनों में काफी अन्तर था। बताइए कि वह अन्तर क्या था ?
उत्तर – जहाँ भारत में लोकतान्त्रिक आधार पर एकदलीय प्रभुत्व रहा वहीं मैक्सिको में एकदलीय तानाशाही थी जिसमें जनसाधारण तक को अपने विचार प्रकट करने का अधिकार नहीं था।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. प्रथम आम चुनाव से 2004 तक के चुनावों में मतदान की विधियों में क्या-क्या बदलाव हुए ?
उत्तर – प्रथम आम चुनाव से 2004 तक के चुनावों में मतदान की विधियों (तरीकों) से में काफी बदलाव किए गए। 1952 के पहले आम चुनाव में प्रत्येक मतदान केन्द्र में प्रत्येक उम्मीदवार के लिए एक मतपेटी रखी गयी जिस पर प्रत्याशी का चुनाव चिह्न अंकित था। प्रत्येक मतदाता को एक खाली मतपत्र दिया गया जिसे उसे अपनी पसन्द के उम्मीदवार की मतपेटी में डालना था। इस कार्य हेतु लगभग 20 लाख मत पेटियाँ प्रयुक्त की गईं। अगले चुनाव में इस व्यवस्था को परिवर्तित किया गया तथा मतपत्र पर प्रत्येक उम्मीदवार का नाम उसके चुनाव चिह्न सहित उर्दू, हिन्दी तथा पंजाबी में अंकित किया जाने लगा। इसके साथ मतपेटी पर चुनाव क्षेत्र, चुनाव केन्द्र तथा मतदान केन्द्र की संख्या वाला एक कागज पीठासीन अधिकारी के हस्ताक्षर सहित मतपेटी पर चिपकाया जाने लगा। मतपेटी के ढक्कन को एक तार की सहायता से सीलबंद किया जाता था। प्रत्येक मतदाता अपने-अपने मतपत्र पर अपनी पसन्द के प्रत्याशी के सम्मुख एक मोहर लगाकर मतपेटी में डालता था। चुनाव का यही तरीका अगले 40 वर्षों तक प्रयुक्त किया जाता रहा जिसमें मतदान पूर्णतया गुप्त रहता था। भारतीय चुनाव आयोग ने 1990 के दशक के अन्त में चुनावों में इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ई. वी. एम.) का प्रयोग प्रारम्भ किया तथा 2004 तक सम्पूर्ण देश में ई. वी. एम. प्रयुक्त की जाने लगी जिसमें मतदाता को मोहर लगाने की जरूरत नहीं होती। अब मतदाता इस मशीन में अपनी पसन्द के उम्मीदवार के आगे दिए गए बटन को दबाता है जिससे उसका मत सम्बन्धित प्रत्याशी को मिल जाता है। ई. वी. एम. से मतगणना शीघ्रतम हो जाती है।
प्रश्न 2. “भारत में जनमत की कमजोरी की वजह से एकदलीय प्रभुत्व कायम हुआ।” संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर भारत में लम्बी समयावधि तक एकदलीय प्रधानता रही जिसका प्रमुख कारण जनमत की कमजोरी थी। देश की आजादी से 1967 तक केन्द्र तथा राज्यों में अधिकांशतया कांग्रेसी सरकारें ही सत्तारूढ़ रहीं तथा किसी अन्य दल को जनमत ही प्राप्त न हो सका। हालांकि 1967 में आठ राज्यों में गैर कांग्रेसवाद’ से प्रभावित होकर संविदा हुई सरकारें स्थायी न रह सकी तथा शीघ्र ही गिर गई। अनेक राज्यों में राष्ट्रपति शासन लागू करना पड़ा तथा इसके पश्चात हुए चुनावों में कांग्रेस फिर से मचा हुई। तमिलनाडु में द्रमुक, जम्मू कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस तथा पश्चिम बंगाल में कम्युनिस्ट सरकार को छोड़कर सम्पूर्ण भारत में कांग्रेसी शासन ही रहा। देश की जनता के समक्ष अन्य कोई भी ऐसा विरोधी दल नहीं था जिसे वैकल्पिक रूप से शासन की बांगडोर सौंपी जा सके। सभी जानते हैं कि एकदलीय प्रधानता लोकतन्त्र के लिए घातक है। हालांकि मार्च 1977 में कांग्रेस के स्थान पर केन्द्र तथा प्रदेशों में जनता पार्टी सत्तारूढ़ हुई परन्तु परम्पर स्वींचतान की वजह से शीघ्र ही केन्द्र की जनता सरकार का पतन हो गया।
प्रश्न 3. भारत में एकदलीय प्रभुत्व विश्व के अन्य देशों में एक पार्टी के प्रभुत्व से किस प्रकार अलग ( भिन्न) था ?
उत्तर भारत में एकदलीय प्रभुत्व तथा विश्व के विभिन्न देशों में एक पार्टी के प्रभुत्व के बीच भारी अन्तर है। संसार के विभिन्न देशों में एक पार्टी का प्रभुत्व लोकतन्त्र की कीमत पर स्थापित हुआ कुछ देशों में (उदाहरणार्थ चीन, क्यूबा तथा सीरिया के संविधान में) केवल एक ही दल को देश के शासन की अनुमति दी गयी। म्यांमार, बेलारूस तथा इरीट्रिया इत्यादि कुछ देशों में कर दलीय प्रभुत्व कानूनी एवं सैन्य उपायों के चलते स्थापित हुआ। इसी प्रकार कुछ वर्षों पहले तक मैक्सिको, दक्षिण कोरिया तथा ताइवान भी एक पार्टी प्रभुत्व वाले देश थे। भारत में स्थापित एकदलीय प्रभुत्व उक्त उदाहरणों से सर्वथा अलग है। हमारे देश में एकदलीय प्रभुत्व लोकतान्त्रिक परिस्थितियों में स्थापित हुआ अनेक राजनीतिक दलों ने मुक्त एवं निष्पक्ष चुनावी वातावरण में परस्पर एक दूसरे से प्रतिस्पर्द्धा की थी तथा तब भी कांग्रेस एक के बाद एक चुनावों में अपनी विजय पताका लहराती रही। दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की समाप्ति के पश्चात् अफ्रीका नेशनल कांग्रेस का भी कुछ ऐसा ही दबदवा स्थापित हुआ। भारतीय उदाहरण भी काफी कुछ दक्षिण अफ्रीका से ही मिलता-जुलता है।
प्रश्न 4. “श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने काँग्रेस प्रणाली को पुनर्स्थापित किया परन्तु उसकी प्रकृति को परिवर्तित कर दिया।” संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – विभिन्न विद्वानों का अभिमत है कि श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने जो कुछ कदम उठाए थे, प्राचीन कांग्रेस को पुनर्जीवित करने वाले नहीं थे। विविध मसलों में कांग्रेस श्रीमती गाँधी के हाथों नवीन तर्ज पर संगठित हुई। लोकप्रियता के दृष्टिकोण से कांग्रेस को वही स्थान हासिल हुआ जो उसे प्रारम्भिक दौर में प्राप्त था लेकिन यह अलग प्रकार की पार्टी थी जो अपने सर्वोच्च नेतृत्वकर्ता की लोकप्रियता पर आश्रित थी। इस दल का सांगठनिक ढाँचा भी पहले की अपेक्षाकृत काफी कमजोर था। इस कांग्रेस पार्टी के भीतर अनेक गुट नहीं थे अर्थात् अब वह विभिन्न मतों एवं हितों को एक साथ लेकर चलने वाला दल नहीं रहा। हालांकि इस कांग्रेस ने चुनावों में अपनी विजय पताका तो फहराई लेकिन इस जीत के लिए उसे गरीबों, महिलाओं, दलितों, आदिवासियों एवं अल्पसंख्यकों जैसे सामाजिक वर्गों पर अधिक निर्भर रहना पड़ा। अब जो कांग्रेस थी वह एकदम नवीन थी। इस प्रकार श्रीमती गाँधी ने जिस कांग्रेस को पुनर्स्थापित किया उसकी प्रकृति बदली हुई थी। कांग्रेस प्रणाली का एक विशेष लक्षण था कि वह प्रत्येक तनाव एवं संघर्ष का सामना सरलतापूर्वक कर लेती थी लेकिन नवीन कांग्रेस लोकप्रिय होने के बावजूद भी इस विशेषता से परिपूर्ण नहीं थी। हालांकि कांग्रेस ने अपनी पकड़ पहले की अपेक्षा मजबूत की तथा श्रीमती गाँधी का राजनीतिक कद भी अप्रत्याशित रूप से बढ़ा लेकिन जन आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति की लोकतान्त्रिक जमीन सिकुड़ती नजर आई। विकास एवं आर्थिक बदहाली के मुद्दों पर जनाक्रोश तथा लाभबन्दी निरन्तर बढ़ी जिससे राजनीतिक संकट भी गहराया और देश के संवैधानिक लोकतन्त्र के अस्तित्व पर भी प्रश्न चिह्न लगा।
प्रश्न 5. भारतीय जनसंघ तथा स्वतन्त्र पार्टी के बीच प्रमुख अन्तरों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर – भारतीय जनसंघ तथा स्वतन्त्र पार्टी के मध्य निम्नलिखित अन्तर थे (1) भारतीय जनसंघ सम्पूर्ण भारत में एक भाषा तथा एक संस्कृति की प्रबल समर्थक थी तथा उसने अनुच्छेद 370 का विरोध भी किया। इसके विपरीत स्वतन्त्र पार्टी ने न तो एक भाषा एवं एक संस्कृति की बात की और न ही अनुच्छेद 370 का विरोध ही किया।
(2) भारतीय जनसंघ द्वारा अंग्रेजी के स्थान पर हिन्दी को राष्ट्र भाषा के रूप में व्यवहारिक रूप से लागू किए जाने की माँग की थी इसके विपरीत स्वतन्त्र पार्टी अंग्रेजी भाषा को हटाए जाने का विरोध करती थी ।
(3) जहाँ भारतीय जनसंघ ने देश की संस्कृति एवं परम्परा के आधार पर विकास योजनाओं तथा अर्थव्यवस्था को अपनाए जाने पर बल दिया, वहीं स्वतन्त्र पार्टी ने स्वतन्त्र व्यापार, खुली प्रतियोगिता तथा आर्थिक क्षेत्र में शासकीय हस्तक्षेप न किए जाने का समर्थन किया।
(4) भारतीय जनसंघ ने भारत द्वारा आण्विक हथियार बनाए जाने की वकालत की थी जबकि स्वतन्त्र पार्टी गुटनिरपेक्षता एवं सोवियत संघ से भारत के दौत्य सम्बन्धों को अनुचित मानती थी तथा भारत के अमेरिका से मित्रता को और अधिक मजबूत किए जाने की प्रबल हिमायती थी ।
दीर्घ उत्तरीय / विश्लेषणात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. एकदलीय प्रभुत्व प्रणाली के लाभ (गुण) एवं हानियों (अवगुणों) का वर्णन कीजिए। एकदलीय प्रभुत्व के लाभ एवं हानियाँ
उत्तर एकदलीय प्रभुत्व प्रणाली के लाभों को संक्षेप में निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है
(1) एकदलीय प्रभुत्व प्रणाली में सत्ताधारी दल की सुदृढ़ स्थिति होती है तथा वह स्वतन्त्रतापूर्वक शासन संचालित कर सकता है।
(2) एकदलीय प्रभुत्व प्रणाली में स्थायित्व रहता है तथा राष्ट्रीय नीतियों में अधिक बदलाव नहीं किए जाते जिसके फलस्वरूप उनमें निरन्तरता बनी रहती है।
(3) एकदलीय प्रभुत्व प्रणाली का एक लाभ यह भी है कि इससे समाज में सुदृढ़ कानून व्यवस्था रहती है तथा शासन का संचालन सामाजिक एवं आर्थिक विकास के लिए आसानी से किया जा सकता है।
(4) यह प्रणाली आपातकालीन परिस्थितियों का मुकाबला सरलतापूर्वक कर सकती है। उक्त लाभों के बावजूद एकदलीय प्रभुत्व से कुछ हानियाँ भी होती हैं जिन्हें संक्षेप में निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है
(1) एकदलीय प्रभुत्व व्यवस्था लोकतन्त्र की सफलता एवं विकास के लिए अनुचित है। ( 2 ) इस प्रणाली में प्रभुत्वशाली राजनीतिक दल शासन का संचालन तानाशाही तरीके से मनमर्जी से करने लगता है जिससे शक्ति का दुरुपयोग होता है। ( 3 ) एकदलीय प्रभुत्व से एक हानि यह भी है कि इसमें विपक्ष अर्थात् विरोधी दल अत्यधिक कमजोर होते हैं अतः वे प्रभावशाली तरीके से शासन की आलोचना नहीं कर पाते। (4) एक दलीय प्रभुत्व व्यवस्था के तानाशाही व्यवस्था में बदलने का डर होने की वजह से जनसाधारण के अधिकार एवं स्वतन्त्रताओं पर अंकुश की सम्भावना सदैव बनी रहती है।
प्रश्न 2. प्रारम्भिक वर्षों में भारत में एक दलीय प्रधानता (वर्चस्व) के प्रमुख कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर- भारत में एकदलीय प्रधानता के कारण हमारे देश में आजादी के पश्चात् हुए चुनावों में एकदलीय प्रभुत्व (प्रधानता) के अनेक कारण हैं, जिन्हें संक्षेप में निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है
(1) सभी वर्गों को समान प्रतिनिधित्व- भारत में लम्बी समयावधि तक कांग्रेसी प्रभुत्व रहा जिसका महत्वपूर्ण कारण दस दल के भीतर सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व होना था। कांग्रेस एक ऐसा मंच था जिस पर अनेक समूह, हित तथा राजनीतिक दल एकत्र हो जाते थे अत: जनसाधारण ने इसे अपने मतरूपी स्नेह से सिंचित किया।
(2) कांग्रेस से अधिकांश दलों का गठन- आजादी के पश्चात् भारत में जितने भी विरोधी दल बने उनमें से अधिकांश का उदय कांग्रेस से ही हुआ था। अतः जनसाधारण ने कांग्रेस से उत्पन्न हुए दलों की अपेक्षा उसी को अपना वोट देना उचित समझा था ।
(3) दलीय नीतियों एवं कार्यक्रमों में समानता- कांग्रेस तथा उसकी विरोधी पार्टियों की नीतियों एवं कार्यक्रमों में काफी कुछ समानता थी। अतः भारतीय मतदाताओं द्वारा अन्य दलों को मत देने की अपेक्षा कांग्रेस को ही अपना समर्थन देना सही समझा जिससे उसका प्रभुत्व स्थापित हुआ।
(4) राजनीतिक दल-बदल- 1967 के आम चुनावों के बाद भारतीय राजनीति में दल-बदल का दौर चला जिसने प्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस को और अधिक मजबूत होने का अवसर दिया। दल-बदल से परेशान जनता ने शासन में स्थिरता हेतु कांग्रेस को अपना समर्थन दिया फलस्वरूप उसका वर्चस्व बढ़ा।
(5) गठबन्धन सरकारों की असफलता-कांग्रेस की प्रधानता की एक अन्य वजह अर्थात् कारण राज्यों में गठबन्धन सरकारों की असफलता भी थी। 1967 के आम चुनावों के पश्चात् भारतीय संघ के राज्यों में गैर-कांग्रेसी गठबन्धन सरकारें सत्तारूढ़ हुईं लेकिन ये गैर कांग्रेसी नेतृत्वकर्त्ता व्यक्तिगत स्वार्थों के कारण परस्पर लड़ते-झगड़ते रहे जिसके फलस्वरूप राज्यों की गठबन्धन सरकारें अपने कार्यकाल भी पूरा न कर सक तथा उन्हें सत्ता सुख से वंचित होना पड़ा। इस प्रकार भारतीय जनसाधारण का गैर-कांग्रेसी सरकारों से मोह भंग हो गया जिसका फायदा प्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस को मिला।
प्रश्न 3. लोकतन्त्र में विपक्ष एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है। क्या एकदलीय शासन के युग में सरकार की त्रुटियों तथा भूलों को उजागर कर जन-साधारण के समक्ष लाने की भूमिका का निर्वाह भारतीय विपक्षी दल कर पाए ? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए।
उत्तर- लोकतन्त्र में विपक्ष एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है। एक दलीय शासन युग में सरकार की त्रुटियों तथा भूलों को उजागर कर जनसाधारण के समक्ष लाने की भूमिका का निर्वाह भारतीय विपक्षी दलों ने किया था। अपने उत्तर के पक्ष में हम निम्न तर्क प्रस्तुत कर सकते हैं
(1) विपक्ष के उदय का प्रारम्भिक काल- 1950 के दशक में विपक्ष को लोकसभा अथवा विधानसभा में केवल नाममात्र का प्रतिनिधित्व मिला लेकिन इसके बावजूद भी विपक्षी दलों की मौजूदगी ने भारतीय शासन व्यवस्था के लोकतान्त्रिक चरित्र को कायम करने में महत्ती भूमिका का निर्वहन किया। भारत में आजादी से पहले ही कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी, कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय जनसंघ, स्वतन्त्र र पार्टी, द्रविड मुनेत्र कड़गम जैसे राजनीतिक दल गठित हो चुके थे तथा इन्होंने कांग्रेस नीतियों एवं व्यवहार की सकारात्मक आलोचनाएँ की थीं। उनकी आलोचनाओं में सिद्धान्तों पर विशेष बल दिया जाता था।
(2) सत्तारूढ़ दल की त्रुटियों को उजागर करना- भारत में सभी विपक्षी दलों की धारणाओं, मान्यताओं तथा कार्यशैली में अत्यधिक अन्तर था। अतः वे अपनी मान्यताओं एवं नीतियों के आधार पर एकदलीय शासन के खिलाफ आलोचनात्मक आवाज उठाने लगे। विपक्षी दलों ने शासक दल पर अंकुश लगाया। इन विपक्षी दलों की वजह से ही कांग्रेस के अन्दर शक्ति सन्तुलन में बदलाव हुआ। भारत के विपक्षी दलों ने लोकतान्त्रिक राजनीतिक विकल्प की सम्भावना को सदैव जीवन्त रखा।
(3) सत्तारूढ़ दल की तानाशाही पर अंकुश – भारत में विपक्ष ने सत्तारूढ़ दल की गलतियों एवं भूलों को जनसाधारण के समक्ष उजागर किया। वे शासक दल की तानाशाही प्रवृत्ति पर विराम लगाने हेतु सतत् रूप से अलोचनात्मक रवैया अपनाते थे। हालांकि शासक दल का कोई विकल्प नहीं था तथापि विपक्षी दल निरन्तर कांग्रेस की आलोचनाएँ करके उस पर दबाव डालते हुए उसे प्रभावित भी करती थी । यहाँ यह उल्लेखनीय है कि प्रारम्भिक वर्षों में कांग्रेस तथा विपक्षी दलों के मध्य पारस्परिक सम्मान की भावना थी। धीरे-धीरे अपने राजनीतिक प्रतिद्वन्द्वी से इस तरह का व्यक्तिगत रिश्ता एवं उसके प्रति सम्मान का भाव दलगत प्रतिस्पर्द्धा के तीव्र होने के पश्चात् लगातार घटता ही चला गया। आगे चलकर जैसे-जैसे कांग्रेस की क्षमता में कमी आई वैसे-वैसे भारत में अन्य विपक्षी दलों को महत्व मिलना प्रारम्भ हो गया ।
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