MP Board Class 12th Political Science (राजनीति शास्त्र) chapter 13 भारत के विदेश सम्बन्ध [India’s External Relations] important Questions in Hindi Medium

अध्याय 13 भारत के विदेश सम्बन्ध [India’s External Relations]

 

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहु-विकल्पीय प्रश्न

  1. निम्नांकित में भारतीय विदेश नीति का निर्धारक तत्व नहीं है

(i) राष्ट्रीय सुरक्षा

(ii) अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा

(iii) सैनिक गठजोड़

(iv) राष्ट्रीय विकास ।

 

  1. भारतीय विदेश नीति का मुख्य लक्ष्य है

(i) संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ सहयोग

(ii) गुट निरपेक्षता की सदस्यता में बढ़ोत्तरी

(iii) साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, शोषण एवं आधिपत्य का विरोध

(iv) उपर्युक्त सभी लक्ष्य

 

  1. गुटनिरपेक्षता शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किया था

(i) पं. जवाहरलाल नेहरू ने

(ii) टीटो ने

(iii) नासिर ने

(iv) जॉर्ज लिस्का ने।

 

  1. निम्नांकित में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के प्रमुख नेता थे

(i) महात्मा गाँधी

(ii) मौलाना आजाद

(iii) पं. जवाहरलाल नेहरू

(iv) सरदार पटेल।

 

  1. भारतीय विदेश नीति में गुट निरपेक्षता का अभिप्राय है

(i) विश्व के मामलों से पृथकता

(ii) दूसरे के मामलों में तटस्थता

(iii) तटस्थता के सिद्धान्तों को मानना

(iv) किसी महाशक्ति के साथ अपने को सम्मिलित नहीं करना तथा स्वतन्त्र नीति का परिचालन करना।

 

  1. 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध का क्या परिणाम हुआ ?

(i) भारत-पाकिस्तान गतिरोध

(ii) बांग्लादेश का उदय

(iii) शरणार्थियों की वापसी

(iv) भारत-अफगानिस्तान व्यापार का खुलना ।

  1. भारत ने ‘परमाणु अप्रसार सन्धि पर हस्ताक्षर नहीं किए, क्योंकि

(i) भारत परमाणु क्लब में प्रवेश हेतु इच्छुक था

(ii) परमाणु अप्रसार संधि अविभेदकारी थी

(iii) संधि द्वारा परमाणु शस्त्रों के परिष्करण पर रोक लगाई गयी

(iv) संधि भारतीय गुटनिरपेक्ष नीति के विपरीत थी।

 

  1. भारत ने किस देश के साथ सन्धि की जिसकी प्रस्तावना में पंचशील के सूत्र रखे हुए थे

(i) अमेरिका के साथ

(ii) पाकिस्तान के साथ

(iii) चीन के साथ

(iv) सोवियत संघ के साथ।

 

उत्तर – 1. (iii). 2. (iv), 3. (iv), 4. (iii), 5. (iv), 6. (ii), 7. (ii), 8. (iii).

 

  • रिक्त स्थानों की पूर्ति
  1. ……………………………को अफ्रीकन गाँधी के नाम से जाना जाता है।
  2. भारतीय विदेश नीति के मौलिक सिद्धान्तों का उल्लेख संविधान के…………………….. में किया गया।
  3. भारतीय विदेश नीति के मुख्य निर्माता……………………. थे।
  4. पंचशील सिद्धान्त……………………….. से सम्बन्धित है।
  5. भारत ने सदैव साम्राज्यवाद तथा…………………………. का विरोध किया।
  6. 1961 में यूगोस्लाविया की राजधानी बेलग्रेड में सम्पन्न प्रथम गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन का मुख्य विषय …………………….था।

उत्तर – 1. नेल्सन मंडेला, 2. अनुच्छेद 51, 3. पण्डित जवाहरलाल नेहरू, 4. नेहरू चाऊ-एन-लाई, 5. उपनिवेशवाद, 6. उपनिवेशवाद की समाप्ति ।

 

  • जोड़ी मिलाइए

 

‘क’

  1. 1966 का ताशकंद समझौता
  2. 1972 का शिमला समझौता
  3. पंचशील की घोषणा
  4. कारगिल संघर्ष
  5. भारत का प्रथम परमाणु / आण्विक परीक्षण

 

‘ख’

 

(i) श्रीमती इन्दिरा गाँधी एवं जुल्फिकार अली भुट्टो

(ii) 18 मई, 1974

(iii) भारत-पाकिस्तान

(iv) लाल बहादुर शास्त्री एवं जनरल अयूब

(v) 29 अप्रैल, 1954

 

उत्तर – 1. (iv), 2. → (i), 3. → (v), 4. → (iii), 5. → (ii).

 

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

  1. अखिल भारतीय कांग्रेस समिति ने अपने विदेश विभाग की स्थापना किस वर्ष की थी ?
  2. भारतीय विदेश नीति के सम्बन्ध में नेहरू जी ने अपना पहला सार्वजनिक वक्तव्य कब दिया था ?
  3. 2003 में भारत, ब्राजील तथा दक्षिण अफ्रीका ने परस्पर सहयोग के लिए कौन-मा संगठन बनाया ?
  4. साम्यवादी चीन की दमनकारी नीतियों से विवश होकर किसने 1959 में भारत में शरण ली थी ?
  5. भारत-चीन युद्ध 1962 के समय भारत के रक्षा मन्त्री कौन थे ?
  6. किस पड़ौसी देश के साथ भारत की सीमा सबसे लम्बी है ?
  7. वर्तमान में भारत के विदेश मन्त्री कौन हैं ?

 

उत्तर – 1. 1927, 2.7 सितम्बर, 1946, 3. इब्सा, 4. दलाईलामा, 5. वी. के. कृष्णा मेनन, 6. बांग्लादेश, 7. डॉ. सुब्रह्मण्यम जयशंकर ।

 

सत्य / असत्य

  1. भारत ने शुरू से ही पड़ोसी राष्ट्रों के प्रति सहयोग का दृष्टिकोण रखा है। है।
  2. गुटनिपेक्षता का अभिप्राय विश्व की राजनीति से दूर रहना
  3. भारत सभी प्रकार के परमाणु परीक्षणों का विरोधी है।
  4. भारत मैकमोहन रेखा को अमान्य ठहराता है।
  5. एक ध्रुवीयता के युग में भारत अपनी स्वतन्त्र विदेशी नीति पर नहीं चल सकता।
  6. दक्षिण-दक्षिण सहयोग का तात्पर्य विकासशील एवं गरीब देशों में परस्पर सहसोग को बढ़ाना है।
  7. गुटनिरपेक्ष देशों के जहाँ प्रारम्भ में 25 सदस्य थे वहीं अब इसके सदस्यों की संख्या बढ़कर 120 हो गयी।

 

उत्तर- 1. सत्य, 2. असत्य, 3. असत्य, 4. असत्य, 5. असत्य, 6. सत्य, 7. सत्य ।

 

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. विदेश नीति से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर – एक राष्ट्र विभिन्न देशों, अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों, अन्तर्राष्ट्रीय गतिविधियों तथा आन्दोलनों एवं अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं के प्रति जिन नीतियों को अपनाता है, उन नीतियों को सामूहिक रूप से विदेश नीति कहा जाता है।

 

प्रश्न 2. भारतीय विदेश नीति का प्रमुख सिद्धान्त लिखिए।

उत्तर- भारतीय विदेश नीति का प्रमुख सिद्धान्त अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में स्वतन्त्र विदेश नीति का पालन करना है।

 

प्रश्न 3. भारतीय विदेश नीति का मूलभूत सिद्धान्त क्या है ?

उत्तर – भारतीय विदेश नीति का मूलभूत सिद्धान्त शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व तथा पंचशील है।

 

प्रश्न 4. नेहरू युग तथा उत्तर नेहरू युग की भारतीय विदेश नीति में क्या अन्तर

उत्तर- जहाँ नेहरू युग की भारतीय विदेश नीति में आदर्शवादिता का तत्व प्रबल था । उत्तर नेहरू युग में भारतीय विदेश नीति का झुकाव यथार्थवादिता पर है।

 

 

प्रश्न 5. ‘ट्रैक-टू कूटनीति’ से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर – जब निजी संस्थाओं एवं समूहों अथवा व्यक्तियों द्वारा दो अथवा अधिक देशों 5 बीच कूटनीतिक भूमिका का निर्वाह किया जाता है तो उसे ट्रैक-टू कूटनीति कहा जाता है।

 

 

प्रश्न 6. ‘ब्रिक्स’ का अद्यतन 11वाँ शिखर सम्मेलन कब एवं कहाँ हुआ ?

उत्तर- ‘ब्रिक्स’ का अद्यतन 11वाँ शिखर सम्मेलन 13-14 नवम्बर, 2019 को ब्रासीलिया (ब्राजील) में आयोजित किया गया जिसकी अध्यक्षता ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोल्सनारों द्वारा की गयी। इस सम्मेलन की थीम ‘अभिनव भविष्य के लिए आर्थिक वृद्धि’ थी।

 

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व का आशय स्पष्ट कीजिए। उत्तर – भारतीय विदेश नीति मैत्री एवं सह-अस्तित्व पर आधारित है। इस सम्बन्ध में पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था, “विश्व में आज अलगाववाद हेतु कोई स्थान नहीं है, हम दूसरों से अलग रहकर जीवित रहने की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। हमें या तो सहयोग करना चाहिए अथवा युद्ध। हम शान्ति चाहते हैं। अपना वश चलते हम किसी भी देश के साथ लड़ाई नहीं चाहते।” भारत की स्पष्ट मान्यता है कि यदि सह-अस्तित्व को स्वीकार नहीं किया गया, तो परमाणु हथियारों से सम्पूर्ण संसार का विनाश हो जाएगा। अपनी सह-अस्तित्व की नीति की वजह से भारत ने विश्व के विभिन्न देशों के साथ मैत्री सन्धियाँ की हैं।

 

प्रश्न 2. भारतीय विदेश नीति हेतु हिन्द महासागर की उपयोगिता किन प्रमुख कारणों की वजह से है ? उत्तर – भारतीय विदेश नीति हेतु हिन्द महासागर की उपयोगिता निम्नलिखित कारणों से है

(1) हिन्द महासागर के शान्त एवं स्थिर रहने की परिस्थिति में ही भारतीय समुद्री सीमाएँ सुरक्षित हैं।

( 2 ) भारत के सैकड़ों द्वीप हिन्द महासागर में स्थित हैं, अतः इनकी सुरक्षा हिन्द महासागर के शान्त रहने पर ही निर्भर करती है।

(3) भारत को अन्य महाद्वीपों से परस्पर जोड़ने वाले समुद्री एवं वायु मार्ग हिन्द महासागर क्षेत्र से गुजरते हैं, अत: यहाँ से सुरक्षित आवागमन इस क्षेत्र की शान्ति पर ही टिका हुआ है।

(4) तेल, खनिज एवं मछली पालन की योजनाएँ तथा जीवन के विविध क्षेत्र हिन्द महासागर से सम्बद्ध हैं, अतः इस दृष्टिकोण से इसकी उपयोगिता अत्यधिक बढ़ जाती है।

 

प्रश्न 3. भारतीय विदेश नीति को प्रभावित करने वाले चार तत्वों को लिखिए।

उत्तर भारतीय विदेश नीति को प्रभावित करने वाले चार प्रमुख तत्व निम्नवत् है

(1) भारतीय विदेश नीति को प्रभावित करने वाला प्रमुख तत्व देश की भौगोलिक परिस्थितियाँ थीं।

(2) भारत के सांस्कृतिक, ऐतिहासिक तथा राजनीतिक मूल्यों ने भी देश की विदेश नीति को प्रभावित किया था।

(3) भारतीय विदेश नीति को प्रभावित करने वाला एक अन्य तत्व देश का रेलू वातावरण भी था।

(4) भारत की विदेश नीति को तत्कालीन अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था ने भी प्रभावित किया।

 

प्रश्न 4. भारत की परमाणु नीति की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर- हालांकि भारत सरकार द्वारा आधिकारिक रूप से किसी परमाणु नीति की घोषणा नहीं की है परन्तु परमाणु शक्ति एवं हथियारों के सम्बन्ध में उसके दृष्टिकोण के आधार पर भारतीय परमाणु नीति की निम्न विशेषताएँ अथवा लक्षण स्पष्ट होते हैं

(1) भारत परमाणु ऊर्जा के शान्तिपूर्ण प्रयोग हेतु प्रत्येक देश के अधिकार का प्रबल समर्थक है।

(2) हमारा देश आण्विक हथियारों के अस्तित्व को अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा हेतु एक खतरा मानता है, अतः भारत व्यापक परमाणु निःशस्त्रीकरण का समर्थक है।

(3) भारत की मान्यता है कि प्रत्येक देश का यह मौलिक अधिकार है कि वह अपनी सुरक्षा एवं आत्मरक्षा हेतु समुचित उपाय करे। अपनी सुरक्षा जरूरतों के दृष्टिकोण से भारत ने परमाणु हथियारों का अपना विकल्प खुला रखने की नीति अपनाई है।

(4) हमारा देश परमाणु हथियारों के मामलों में पहले प्रयोग न करने के सिद्धान्त का समर्थन करता है तथा घोषित करता है कि वह गैर-परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों के खिलाफ परमाणु का प्रयोग कदापि नहीं करेगा।

 

दीर्घ उत्तरीय / विश्लेषणात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. भारतीय विदेश नीति के निर्धारक तत्वों की विवेचना कीजिए। भारतीय विदेश नीति के निर्धारक तत्व

उत्तर भारतीय विदेश नीति के निर्धारक तत्वों को संक्षेप में निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है

(1) भू-राजनीतिक आवश्यकताएँ- अन्य देशों की तरह भारतीय विदेश नीति का

निर्धारण भी उसकी भू-राजनीतिक जरूरतों के अनुरूप किया जाता है। आजादी से पहले भारतीय भू-क्षेत्र को ब्रिटिश भारत कहते थे तथा उसके एक हिस्से को उससे अलग करके पाकिस्तान का निर्माण किया गया 565 देशी रियासतों को किसी देश में मिलने अथवा अपना स्वतन्त्र अस्तित्व रखने की छूट दी गई थी। इसी आधार पर कश्मीर का प्रश्न भारत-पाक रिश्तों का निर्धारक तत्व बना हुआ है।

(2) पड़ोसी देशों के सम्बन्ध में भारत की स्थिति-भारत के निकट पड़ोसी देशों के साथ उठने वाले विवाद की भारत की विदेश नीति के निर्धारक तत्व रहे हैं। उदाहरणार्थ श्रीलंका के साथ भारतीय मूल के श्रीलंका निवासियों की समस्या एक ऐसी समस्या रही, जिसकी वजह से भारत-श्रीलंका सम्बन्ध बनते-बिगड़ते रहे हैं।

(3) राष्ट्रीय विकास- भारतीय अर्थव्यवस्था का संचालन अंग्रेजी हुकूमत द्वारा जि तरह किया गया था, उससे इसको गहरा आघात पहुँचा था, अतः आजादी के पश्चात् आर्थिक विकास भारत के लिए एक अनिवार्यता थी। राष्ट्रीय विकास की इस जरूरत को पूर्ण करने हेतु भारत को ऐसी विदेशी नीति अपनानी पड़ी जिससे विश्व के अन्य देशों को उस विकास हेतु आवश्यक धन एवं तकनीकी इत्यादि प्राप्त हो सके।

(4) राष्ट्रीय सुरक्षा – भारतीय विदेश नीति के निर्माण में राष्ट्र की सुरक्षा ने भी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया। लम्बी परतन्त्रता के पश्चात् भारत के पास ऐसे साधन नहीं बचे थे जिनसे वह अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति निश्चिन्त रह सकता। अतः अपनी विदेश नीति के अन्तर्गत भारत ने अनेक देशों से ऐसे सम्बन्ध स्थापित किए, जिनकी मदद से देश अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित कर सके तथा धीरे-धीरे इस दृष्टिकोण से अपने को आत्मनिर्भर बना सके।

(5) अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रोत्साहन – अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा ने भारतीय विदेश नीति के निघांरण में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। भारत यह भली-भाँति जानता है कि उसकी सुरक्षा हेतु यह जरूरी है कि विश्व के अन्य देशों में भी सुरक्षा की स्थिति बनी रहे। यही कारण है कि उन सभी संस्थाओं, संगठनों एवं कार्यक्रमों में अपना सहयोग देना भारतीय विदेश नीति का एक अंग है, जो विश्व शान्ति एवं अन्तर्राष्ट्रीय सुरक्षा हेतु कार्य कर रहे हैं।

 

प्रश्न 2. भारत की विदेश नीति के लक्ष्यों पर प्रकाश डालिए।

उत्तर- भारत की विदेश नीति के लक्ष्य (उद्देश्य) भारतीय विदेश नीति के प्रमुख लक्ष्यों अथवा उद्देश्यों को संक्षेप में निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है

(1) विश्व शान्ति को प्रोत्साहन- भारतीय विदेश नीति की गुटनिरपेक्षता का आधार  विश्व शान्ति की आकांक्षा है। इसका मुख्य लक्ष्य तनाव की प्रवृत्तियों को कमजोर करते हुए शान्ति की सम्भावनाओं का विस्तार है। अपनी इस गुटनिरपेक्षता की नीति की वजह से ही भारत ने विश्व के विभिन्न क्षेत्रों- कोरिया, कांगो तथा साइप्रस में शान्ति स्थापना के प्रयास किए।

(2) साम्राज्यवाद उपनिवेशवाद, शोषण एवं आधिपत्य का विरोध – भारतीय विदेश नीति का दूसरा प्रमुख लक्ष्य साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, नव-उपनिवेशवाद, रंगभेद तथा शोषण एवं आधिपत्य के समस्त रूपों का विरोध करना है।

(3) गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की सदस्यता में वृद्धि-गुटनिरपेक्षता का पालन करने वाले देशों का कोई एक गुट नहीं है, बल्कि यह तो एक आन्दोलन है। इसमें गुटनिरपेक्षता की नीति पर चलने वाला कोई भी देश स्वेच्छा से सम्मिलित हो सकता है। इस प्रकार गुटनिरपेक्ष देशों की सदस्य संख्या में वृद्धि करके इस आन्दोलन को प्रोत्साहन देना भी भारतीय विदेश नीति का एक प्रमुख लक्ष्य है।

(4) संयुक्त राष्ट्र के साथ सहयोग- भारतीय विदेश नीति का एक लक्ष्य संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ सहयोग करके उसके लिए रचनात्मक कार्य क्रियान्वित करना है।

(5) मैत्री एवं सहयोग की मजबूती प्रदान करना भारतीय विदेश नीति का एक लक्ष्य दक्षिण एशिया में अपने पड़ोसी देशों के साथ मैत्री एवं सहयोग को मजबूत बनाना है। इस प्रयोजन हेतु वह देश में स्थायी विश्वास एवं सूझबूझ का वातावरण निर्मित करता है। भारत ने सदैव सभी राष्ट्रों के साथ व्यापार, उद्योग, निवेश तथा तकनीक हस्तान्तरण इत्यादि को बढ़ावा एवं सहयोग दिया है।

 

प्रश्न 3. भारतीय विदेश नीति की कोई पाँच विशेषताओं को संक्षेप में समझाइए।

उत्तर – भारतीय विदेश नीति के प्रमुख लक्षण अथवा विशेषताएँ भारतीय विदेश नीति की प्रमुख विशेषताओं तथा लक्षणों को संक्षेप में निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है

(1) स्वतन्त्र विदेश नीति का पालन- भारत ने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में स्वयं को किसी गुट विशेष से सम्बद्ध न करके अपने लिए सत्य, न्याय एवं औचित्य पर आधारित स्वतन्त्र मार्ग अपनाया अर्थात् भारत किसी देश का पिछलग्गू नहीं बना तथा राष्ट्रीय हित को उसने सर्वोपरि रखते हुए अपनी विदेश नीति के माध्यम से सत्य, न्याय एवं औचित्य की शक्तियों को समर्थन दिया।

(2) विश्व शान्ति को प्रोत्साहन- भारतीय विदेश नीति का एक लक्षण विश्व शान्ति को प्रोत्साहन देना है। इतिहास साक्षी है कि भारत ने कोरिया, कांगो तथा साइप्रस इत्यादि में शान्ति स्थापना के प्रयास करके किस प्रकार विश्व शान्ति में अपना योगदान दिया था।

(3) साम्राज्य, उपनिवेशवाद, शोषण एवं आधिपत्य का विरोध – यह भारतीय विदेश नीति का ही लक्षण है, जो उसने साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, शोषण एवं आधिपत्य का विरोध किया। भारतीय विदेश नीति संघर्ष, दमन एवं असहिष्णुता विरोधी भी है।

(4) शस्त्रीकरण का विरोध – भारत हथियारों की होड़ का विरोध करता है। भारत का मानना है कि इस प्रतिस्पर्द्धा से आपस में तनाव की स्थिति उत्पन्न होती है, जो कि किसी भी राष्ट्र की प्रगति हेतु नुकसानदायक है।

(5) संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ सहयोग – भारतीय विदेश नीति की एक विशेषता संयुक्त राष्ट्र संघ को सही दिशा में आगे बढ़ाते हुए, उसे शक्तिशाली बनाना है।

 

प्रश्न 4. भारतीय विदेश नीति के प्रमुख सिद्धान्त लिखिए।

उत्तर- भारतीय विदेश नीति के सिद्धान्त

भारत की विदेश नीति के मौलिक सिद्धान्तों को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है

(1) तटस्थता अथवा असंलग्नता- भारत ने किसी भी सैनिक गुट में सम्मिलित न होकर तटस्थता अथवा असंलग्नता की नीति अपनाई।

(2) सह-अस्तित्व अथवा पंचशील – विभिन्न देशों के अस्तित्व के प्रति सहनशीलता, जिसे पंचशील का नाम भी दिया जाता है, भारतीय विदेश नीति का एक अन्य मौलिक सिद्धान्त है। भारत के लिए सह-अस्तित्व कोई नवीन सिद्धान्त नहीं है। उसने तो सदैव ही सहनशीलता के रास्ते को अपनाया है तथा यही सह-अस्तित्व का प्रमुख आधार भी है।

(3) आन्तरिक मामलों में विदेशी हस्तक्षेप का विरोध- भारतीय विदेश नीति का एक सिद्धान्त यह है कि वह विविध देशों के आन्तरिक मामलों में विदेशी हस्तक्षेप का प्रकल विरोधी है।

(4) साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद एवं रंगभेदपरक असमानता का विरोध- भारतीय विदेश नीति का एक अन्य सिद्धान्त किसी भी रूप में साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद तथा रंग का विरोध करना रहा है।

(5) निःशस्त्रीकरण का समर्थन- विश्व शान्ति का प्रबल समर्थक होने के कारण  भारत की विदेश नीति शस्त्रीकरण किए जाने के विरोध तथा निःशस्त्रीकरण के समर्थन की है।

 

प्रश्न 5. पंचशील के सिद्धान्त लिखिए।

उत्तर- पंचशील के सिद्धान्त- पंचशील सिद्धान्त का प्रतिपादन तिब्बत के सन्दर्भ में भारत-चीन के बीच हुए एक समझौते में 29 अप्रैल, 1954 को किया गया था। संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी 14 दिसम्बर, 1959 को पंचशील सिद्धान्तों को स्वीकृति प्रदान कर दी। पण्डित जवाहरलाल नेहरू तथा चाऊ- एन-लाई ने जिस पंचशील में अपनी आस्था व्यक्त की वे निम्न प्रकार हैं

(1) प्रत्येक राष्ट्र परस्पर एक-दूसरे की प्रादेशिक अखण्डता तथा प्रभुसत्ता का आदर करे।

(2) कोई राष्ट्र किसी अन्य राष्ट्र पर आक्रमण न करे।

(3) राष्ट्र परस्पर एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करें।

(4) प्रत्येक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र के साथ समानता तथा पारस्परिक हितों के आधार पर आपसी  सम्बन्ध स्थापित करे।

(5) प्रत्येक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र के अस्तित्व का आदर करते हुए शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व की नीति पर चले।

 

प्रश्न 6. भारत द्वारा गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाए जाने के कारण लिखिए।

उत्तर- भारत द्वारा गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाने के कारण भारत ने मुख्यतया निम्नलिखित कारणों की वजह से गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनाया

(1) साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद के विरोध स्वरूप- भारत ने लम्बी समयावधि तक साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद की त्रासदी को सहा था। अतः उसने इस व्यवस्था के विरोध स्वरूप गुटनिरपेक्षता की नीति पर चलने का मन बनाया।

(2) शान्तिपूर्ण जीवन व्यतीत करने की इच्छा- भारत ने एक लम्बी लड़ाई लड़कर स्वतन्त्रता प्राप्त की थी, अत: वह चाहता था कि वह लम्बे समय तक शान्तिपूर्ण तरीके से अपना जीवन व्यतीत कर सके। चूँकि उस समय की परिस्थितियों में किसी भी गुट में शामिल होने का तात्पर्य उसके समर्थक देशों के साथ युद्ध में अपनी सहभागिता देना था। इस विकट परिस्थिति को टालने हेतु भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति पर चलने का फैसला लिया।

(3) राष्ट्रीय आजादी की भावना यदि भारत किसी गुट में मिलता तो उसे उसकी हाँ में हाँ मिलानी पड़ती। नव स्वतन्त्र भारत स्वतन्त्र रूप से अपने लिए नीतियों का निर्माण करने की दृढ़ इच्छा रखता था। अतः उसने गुटनिरपेक्षता की नीति को ही अपने लिए अधिक उपयुक्त समझा।

(4) आर्थिक विकास की आवश्यकता भारत विश्व की दोनों महाशक्तियों एवं उनके समर्थक राष्ट्रों से आर्थिक एवं तकनीकी मदद प्राप्त करना चाहता था और यह लक्ष्य किसी गुट विशेष से सम्मिलित होकर प्राप्त नहीं हो सकता था, अतः भारत ने अपने आर्थिक विकास की आवश्यकता को दृष्टिगत रखते हुए गुटनिरपेक्षता की नीति पर चलने का फैसला लिया।

 

प्रश्न 7. अगर आपको भारत की विदेश नीति के बारे में फैसला लेने को कहा जाए तो आप इसकी किन दो बातों को बदलना चाहेंगे ? ठीक इसी प्रकार यह भी बताए कि भारत की विदेश नीति के किन दो पहलुओं को आप बरकरार रखना चाहेंगे। अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए।

उत्तर- मैं भारतीय विदेश नीति में निम्न बदलाव लाना चाहूँगा

(1) वर्तमान अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए भारत की गुटनिरपेक्षता नीति में बदलाव किया जाना परमावश्यक है। वर्तमान वैश्वीकरण एवं उदारीकरण के दौर में किसी भी गुट से दूरी बनाकर रखना राष्ट्र हित में नहीं है।

(2) पड़ोसी देशों के साथ लचर विदेश नीति के स्थान पर आक्रामक नीति की महती आवश्यकता है। वर्तमान में पाकिस्तान एवं चीन के साथ जिस प्रकार की नीति अपनाई जा रही है उसे परिवर्तित करना ही होगा क्योंकि इन देशों के साथ पुरानी नीति से वांछित परिणाम नहीं मिल पा रहे हैं।

मैं भारतीय विदेश नीति में निम्नलिखित दो पहलुओं को बरकरार रखना चाहता हूँ

(1) सी. टी. बी. टी. के बारे में वर्तमान दृष्टिकोण को तथा वर्तमान परमाणु नीति को आगे भी जारी रखना चाहिए।

(2) हम संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता हेतु प्रयासों में तेजी लाएँगे तथा विश्व बैंक एवं अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में देश के सहयोग को निरन्तर जारी रखेंगे।

 

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