अध्याय 16 जन आन्दोलनों का उदय [Rise of Popular Movements]
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
बहु-विकल्पीय प्रश्न
- ‘दलित पैंथर्स’ का गठन हुआ था
(i) 1968 में
(ii) 1970 में
(iii) 1972 में
(iv) 1977 में ।
- ‘दलित पैंथर्स’ के संघर्ष के फलस्वरूप शासन द्वारा दलित अत्याचारों के निवारण हेतु कानून बनाया था –
(i) 1973 में
(ii) 1980 में
(iii) 1984 में
(iv) 1989 में।
- सरकार द्वारा विद्युत दरों में बढ़ोत्तरी का विरोध करने हेतु लगभग 20 हजार किसान जनवरी 1988 में कहाँ एकत्र हुए थे ?
(i) मेरठ में
(ii) पानीपत में
(iii) सहारनपुर में
(iv) इंदौर में ।
- 1987 में किसानों का एक जबरदस्त आन्दोलन किसके नेतृत्व में चलाया गया था ?
(i) चौधरी चरणसिंह
(ii) महेन्द्रसिंह टिकैत
(iii) चौधरी अजीत सिंह
(iv) चौधरी देवीलाल
- ताड़ी विरोधी आन्दोलन का सम्बन्ध निम्नांकित में से किस राज्य (प्रदेश) से था ?
(i) मध्य प्रदेश
(ii) उत्तर प्रदेश
(iii) महाराष्ट्र
(iv) आन्ध्र प्रदेश।
- सूचना अधिकार आन्दोलन की शुरुआत राजस्थान की भीम तहसील से कब हुई थी ?
(i) 1980 में
(ii) 1984 में
(iii) 1990 में
(iv) 1992 में।
उत्तर – 1. (iii), 2. (iv), 3. (i), 4. (ii), 5. (iv), 6. (iii).
- रिक्त स्थानों की पूर्ति
- दलित पँथर मुख्यतया…………………….. में सक्रिय था।
- बी. के. यू. ……………………के किसानों का संगठन था।
- आन्ध्र प्रदेश में स्थानीय शराब को………………….. कहते हैं।
- भारत में सूचना के अधिकार को राष्ट्रपति द्वारा ………………………में मंजूरी प्रदान की गई।
उत्तर- 1. महाराष्ट्र, 2. उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा, 3. अराक अथवा ताड़ी, 4.2005.
- जोड़ी मिलाइए
‘क’
- मछुआरों का संगठन
- ‘अँधेरे में पदयात्रा’ के रचयिता
- 1980 के दशक का कृषक आन्दोलन का
- ताड़ी विरोधी आन्दोलन
‘ख’
(i) भारतीय किसान यूनियन (बी. के. यू.)
(ii) नामदेव ढसाल
(iii) नेशनल फिश वर्कर्स फोरम अग्रणी संगठन
(iv) अक्टूबर 1992
उत्तर – 1. → (iii), 2. → (ii), 3. → (i), 4. → (iv).
एक शब्द / वाक्य में उत्तर
- राष्ट्रीय किसान आयोग के वर्तमान अध्यक्ष का नाम लिखिए।
- सूचना के अधिकार आन्दोलन की प्रमुख नेता कौन थीं ?
- किसने दलित अधिकारों की दावेदारी करते हुए जन-कार्यवाही का रास्ता अपनाया ?
- दलित पँथर्स की अवनति से उत्पन्न रिक्त स्थान की पूर्ति किसके द्वारा की गई ?
उत्तर- 1. डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन, 2. अरुणाराय, 3. दलित पैंथर्स, 4. बामसेफ (बैकवर्ड एण्ड माइनॉरिटी कम्युनिटीज एम्पलाईज फेडरेशन)।
सत्य / असत्य
- 1990 के दशक के प्रारम्भिक वर्षों में बी के यू ने सभी राजनीतिक दलों में सहयोग लिया।
- ताड़ी विरोधी आन्दोलन महिला आन्दोलन का एक हिस्सा बना
- 1980 में गोविन्द निहलानी ने अपनी फिल्म ‘आक्रोश’ में शराबखोरी उठाया।
उत्तर- 1. असत्य, 2. सत्य, 3. सत्य
- अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. किसान आन्दोलन का प्रमुख उद्देश्य क्या है ?
उत्तर- इसका प्रमुख उद्देश्य किसानों (कृषकों) को आर्थिक एवं राजनीतिक शोषण से मुक्ति दिलाकर समाज में उन्हें प्रतिष्ठित स्थान दिलाना है।
प्रश्न 2. भारतीय किसान यूनियन ने किन अन्य महत्वपूर्ण किसान संगठनों के साथ समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया ?
उत्तर- महाराष्ट्र का ‘शेतकारी संगठन’ तथा कर्नाटक का प्रभाव संच’ ।
प्रश्न 3. ताड़ी विरोधी आन्दोलन का नारा (श्लोगन) क्या था ?
उत्तर- ताड़ी की बिक्री बन्द करो।
प्रश्न 4. नेल्लोर जिले में ताड़ी की नीलामी कितनी बार रद्द हुई थी ?
उत्तर- 17.
प्रश्न 5. दिल्ली में सूचना के अधिकार को लेकर राष्ट्रीय समिति का गठन और किसके द्वारा किया गया ?
उत्तर- 1996 में एम. के. एस. एस. द्वारा।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. किसान आन्दोलन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- किसान आन्दोलन किसानों का आन्दोलन है, जो कृषक समस्याओं तथा कृषि की आवश्यकताओं से सम्बन्धित है। किसान आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य कृषकों को आर्थिक, राजनीतिक शोषण से मुक्ति दिलाकर समाज में उन्हें प्रतिष्ठित स्थान दिलाना है। ब्रिटिश शासन तथा इससे पूर्व के समय में किसान आन्दोलन प्राय: स्थानीय होते थे।
प्रश्न 2. भारतीय किसान यूनियन ने नब्बे के दशक में किन मुद्दों को था ?
अथवा
भारतीय किसान यूनियन किसानों की दुर्दशा की तरफ ध्यान आकर्षित करने वाला अग्रणी संगठन है। नब्बे के दशक में इसने किन मुद्दों को उठाया और इसे कहाँ तक सफलता मिली ? कब
उत्तर – भारतीय किसान यूनियन ने नब्बे के दशक में मुख्य रूप से निम्नलिखित मुद्दों को उठाया (1) विद्युत् दरों में की गई बढ़ोत्तरी का विरोध करते हुए समुचित दर पर गारण्टीशुदा बिजली आपूर्ति की माँग की गई।
(2) गन्ने तथा गेहूँ की सरकारी खरीद मूल्य में बढ़ोत्तरी की पुरजोर माँग की गई।
(3) कृषि उत्पादों के अन्तर्राज्यीय आवाजाही पर लगी पाबंदियाँ हटाने का मुद्दा भी बी. के. यू. द्वारा ही उठाया गया था।
(4) किसानों के लिए पेंशन व्यवस्था का प्रावधान किए जाने की माँग उठाई गई। इस संगठन ने हरियाणा और उत्तर प्रदेश राज्य में मौजूद अन्य किसान संगठनों के साथ मिलकर अपनी कुछ माँगों को मनवाने में सफलता प्राप्त की थी।
प्रश्न 3. दलित पैंथर्स ने कौन-से मुद्दे उठाए ?
उत्तर- दलित पैंथर्स 20वीं सदी के सातवें दशक के शुरुआती वर्षों में दलित शिक्षित युवा वर्ग का आन्दोलन था। इस आन्दोलन में अधिकांशतया झुग्गी एवं बस्तियों में पलकर बड़े हुए दलित सम्मिलित हुए। दलित पैंथर्स ने दलित समुदाय से सम्बन्धित सामाजिक असमानता, जातिगत आधार पर भेदभाव, दलित समाज की महिलाओं से दुर्व्यवहार, दलितों का सामाजिक एवं आर्थिक उत्पीड़न तथा दलित वर्गों के लिए आरक्षण जैसे गम्भीर मुद्दों को उठाया। दलित पैंथर्स द्वारा दलित युवाओं को एक ऐसा मंच दिया जिसके द्वारा वे अपनी रचनात्मक क्षमता तथा विरोध दोनों को ही प्रकट कर सकते थे।
प्रश्न 4. जन-आन्दोलनों की आवश्यकता एवं महत्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
उत्तर- जन आन्दोलनों तथा विरोध की कार्यवाहियों से हमारे देश का लोकतन्त्र पहले की अपेक्षा और अधिक मजबूत हुआ है। जन-आन्दोलनों तथा विरोध की कार्यवाहियों का अभिप्राय केवल सामूहिक कार्यवाही ही नहीं होता बल्कि इन आन्दोलनों का एक प्रमुख काम सम्बन्धित लोगों को अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों के प्रति जागरूक बनाना भी है। भारत में समय-समय पर चलने वाले विभिन्न जन-आन्दोलनों जैसे चिपको आन्दोलन, किसान आन्दोलन, ताड़ी विरोधी आन्दोलन, नर्मदा बचाओ आन्दोलन तथा सूचना अधिकार आन्दोलन इत्यादि ने भारतीय जनसाधारण को पर्याप्त रूप से जागरूक बनाया। अतः जन आन्दोलनों एवं विरोध की कार्यवाहियों ने लोकतन्त्र को नुकसान न पहुँचाकर उसे मजबूत किया। लोकप्रिय जनान्दोलन लोकतान्त्रिक राजनीति का अनिवार्य हिस्सा है। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि भारत में इस प्रकार के आन्दोलनों के सीमित प्रभाव की वजह से लोगों में इनके प्रति कम रुचि है।
दीर्घ उत्तरीय / विश्लेषणात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. ताड़ी विरोधी आन्दोलन के उद्देश्य एवं प्रभाव को लिखिए।
उत्तर- ताड़ी विरोधी आन्दोलन के उद्देश्य ताड़ी (शराब अथवा अराक) विरोधी आन्दोलन की शुरुआत आन्ध्र प्रदेश के नेल्लौर जिले के दुबरगंटा गाँव में अक्टूबर 1992 में हुई। 1990 के प्रारम्भ में चले महिला प्रौढ़ शिक्षा
कार्यक्रम ने ताड़ी विरोधी आन्दोलन के प्रचार-प्रसार में महती भूमिका का निर्वहन किया। इस आन्दोलन के प्रमुख उद्देश्यों को संक्षेप में निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है
(1) प्रभावित महिलाओं का शारीरिक एवं मानसिक शोषण पर प्रभावी रोक लगवाना।
(2) पुरुषों में घर कर चुकी शराब की बुरी आदत को छुड़ाना।
(3) परिवार की जर्जर होती जा रही आर्थिक स्थिति में सुधार करना।
(4) महिलाओं में शिक्षा का प्रचार-प्रसार करके लैगिक समानता स्थापित करना।
(5) बेरोजगारी को कम करना ।
(6) राजनीति एवं अपराध के बीच मजबूत हो रहे सम्बन्धों को समाप्त करना।
ताड़ी विरोधी आन्दोलन का प्रभाव
हालांकि ताड़ी विरोधी आन्दोलन ग्रामीण क्षेत्र की कुछ महिलाओं द्वारा ही शुरू किया गया था लेकिन उनके सद्प्रयासों के फलस्वरूप इसने एक विशाल जनान्दोलन का स्वरूप धारण कर लिया। इसे एक महिला आन्दोलन का दर्जा भी दिया जा सकता है क्योंकि इससे न केवल नशे के खिलाफ जनमत तैयार हुआ बल्कि अन्य सामाजिक बुराइयों; जैसे- दहेज प्रथा, घरेलू हिंसा, कार्यस्थल पर भेदभाव तथा सम्पत्ति अधिकार इत्यादि को दूर करने का संकल्प भी लिया जा सका। ताड़ी विरोधी आन्दोलन की सबसे बड़ी सफलता इस बात में है कि इसने महिलाओं को उनके अधिकारों के सम्बन्ध में जागरूक किया तथा इससे उनकी स्थिति में एक क्रान्तिकारी बदलाव आया।
प्रश्न 2. जन-आन्दोलनों से हमें क्या शिक्षा मिलती है ?
उत्तर
जन-आन्दोलनों से शिक्षा
समय-समय पर हमारे देश में चले जन-आन्दोलनों से हमें निम्न शिक्षा प्राप्त होती है
(1) जन आन्दोलन भारतीय लोकतान्त्रिक राजनीति को समझाने में सहायक हैं। विविध जन-आन्दोलनों की वजह से देश के लोकतन्त्र में सामाजिक संघर्ष एवं असन्तोष की हिंसक अभिव्यक्ति की सम्भावना को कम किया जा सका। इन जनान्दोलनों ने जन-सहभागिता को व्यापक स्वरूप प्रदान करके उसे मजबूत बनाया है।
(2) जन-आन्दोलनों द्वारा समाज के कमजोर वर्गों तथा महिलाओं इत्यादि में उनके अधिकारों तथा भूमिका के प्रति जागरूकता पैदा की है जिससे भारत में लोकतन्त्र का विस्तार हुआ है। नागरिकों की जागरूकता के अभाव में लोकतन्त्र सफल नहीं हो सकता है।
(3) विभिन्न जन-आन्दोलनों ने उपेक्षित मुद्दों की तरफ शासन का ध्यान खींचा जिसकी वजह से सरकार में उत्तरदायित्व की भावना को बढ़ावा मिला। सुशासन की धारणा को व्यवहारिक स्वरूप देने के लिए जन-आन्दोलन परमावश्यक हैं।
(4) विभिन्न जनान्दोलनों में प्रमुख रूप से समाज के पिछड़े एवं कमजोर वर्गों की सहभागिता अधिक रही है। अतः इनसे वंचित एवं कमजोर वर्गों के हितों की पूर्ति हुई तथा इनकी आवाज राजनीति की मुख्य धारा तक सफलतापूर्वक पहुँच सकी।
(5) शासकीय नीतियों के निर्माण में जनआन्दोलनों की सीमित भूमिका रही है। इसका मुख्य कारण यह है कि ये आन्दोलन किसी एक अथवा स्थानीय मुद्दे को लेकर चले जिसमें अनेक बार किसी एक विशिष्ट समूह के हितों की पूर्ति का प्रयत्न किया गया। अत: शासन ने नीति निर्माण में इन आन्दोलनों की माँगों को सम्मिलित करने का प्रयास नहीं किया। यदि भारतीय लोकतान्त्रिक राजनीति में इन आन्दोलनों का एक व्यापक गठबन्धन हो जाए तो नीति निर्माण में इनकी प्रभावी भूमिका को सुनिश्चित किया जा सकेगा।
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