अध्याय 18 भारतीय राजनीति : नए बदलाव [Recent Developments in Indian Politics]
वस्तुनिष्ठ प्र
बहु-विकल्पीय प्रश्न
- राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के प्रथम अध्यक्ष थे
(i) वी. पी. मण्डल
(ii) आर. एन. प्रसाद
(iii) वी. पी. सिंह
(iv) काका कालेश्वर ।
- अन्य पिछड़े वर्गों को जिस आधार पर आरक्षण दिया जाता है, वह आधार है
(i) सामाजिक पिछड़ापन
(ii) शैक्षिक पिछड़ापन
(iii) सामाजिक एवं शैक्षिणक पिछड़ापन
(iv) आर्थिक एवं शैक्षिक पिछड़ापन ।
- सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के आधार पर पिछड़े वर्गों हेतु आरक्षण लागू किया गया
(i) 30 अप्रैल, 1981 को
(ii) 25 सितम्बर, 1991 को
(iii) 16 नवम्बर, 1992 को
(iv) 8 सितम्बर, 1993 को।
- अन्य पिछड़े वर्गों को सेवाओं में कितने प्रतिशत स्थान आरक्षित हैं ?
(i) 23 प्रतिशत
(ii) 25 प्रतिशत
(iii) 27 प्रतिशत
(iv) 29 प्रतिशत ।
- निम्नांकित में किस सरकार द्वारा मण्डल आयोग की सिफारिशों को लागू किया गया था ?
(i) राष्ट्रीय मोर्चा
(ii) रा. ज. ग.
(iii) संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन
(iv) वाम मोर्चा |
- बहुजन समाजपार्टी (बसपा) के संस्थापक हैं
(i) मायावती
(ii) मुलायम सिंह
(iii) योगी आदित्यनाथ
(iv) कांशीराम ।
- भारत के सबसे बड़े राजनीतिक दल ‘भारतीय जनता पार्टी’ (भाजपा) की स्थापना कब हुई ?
(i) 14 अप्रैल, 1984
(ii) 6 अप्रैल, 1980
(iii) 2 अक्टूबर, 2012
(iv) 1 अप्रैल, 1977.
- प्राथमिक सदस्यता के मामले में विश्व के सबसे बड़े राजनीतिक दल भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन हैं ?
(i) जगत प्रसाद नड्डा
(ii) अमित शाह
(iii) राजनाथ सिंह
(iv) राम माधव
- निम्नांकित में किस प्रधानमन्त्री की सरकार लोकसभा में बहस के दौरान एक मत से गिरी थी ?
(i) मोरारजी देसाई
(ii) चरण सिंह
(iii) अटल बिहारी बाजपेयी
(iv) वी. पी. सिंह
- निम्नांकित में कौन एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल नहीं है ?
(i) कांग्रेस
(ii) भाजपा
(iii) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
(iv) समाजवादी पार्टी।
उत्तर – 1. (i), 2. (iii), 3. (iv), 4. (iii), 5. (i), 6. (iv), 7. (in), 8. (i). 9. (im). 10. (iv).
- रिक्त स्थानों की पूर्ति
- संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन का नेतृत्व……………….. द्वारा किया जा रहा है।
2…………………. पार्टी का गठन एक महिला नेता द्वारा किया गया था।
- भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने ……………………में क्रीमीलेयर सिद्धान्त प्रतिपादित किया था।
- भारत में नए आर्थिक सुधारों की शुरुआत …………………..सरकार के समय में हुई।
- भारत में प्रथम केन्द्र गठबन्धन सरकार ………………….के नेतृत्व में बनी।
उत्तर – 1. कांग्रेस, 2. तृणमूल कांग्रेस, 3. इन्द्रा साहनी विवाद, 4. राजीव गाँधी, 5. वी. पी. सिंह।
जोड़ी मिलाइए
I.
- भाजपा द्वारा सोमनाथ से अयोध्या तक
- 6 दिसम्बर, 1992
- राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन (रा.ज.ग.)
- स्वर्ण मन्दिर
- लाइसेंस राज की
‘ख’
(i) हरमन्दिर साहब अथवा दरबार साहब
(ii) रथयात्रा निकाली
(iii) पामुलापति वेंकट नरसिंह राव
(iv) मस्जिद विध्वंस
(v) भारतीय जनता पार्टी एवं क्षेत्रीय दल
उत्तर – 1. (ii), 2. → (iv), 3. → (v), 4. (i), 5 → (iii). ‘क’
‘क’
- सर्वानुमति की राजनीति
- जाति आधारित दल
- पर्मनल लॉ और लैंगिक न्याय
- क्षेत्रीय पार्टियों की बढ़ती ताकत
(i) शाहबानो मामला
(ii) अन्य पिछड़ा वर्ग का उभार
(iii) गठबन्धन सरकार
(iv) आर्थिक नीतियों पर सहमति
उत्तर- 1. (iv). 2. (1) 3. (i). 4. (iii).
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एक शब्द/वाक्य में उत्तर
- पी. वी. नरसिंह राव सरकार ने चुनाव आयोग को बहुसदस्यीय बनाने का निर्णय क्यों लिया ?
- 1967 से 1971 के मध्य अधिकतम गठबन्धन सरकारें बनाने का कीर्तिमान किस राज्य का है ?
- मण्डल आयोग के अध्यक्ष कौन थे ? उनकी प्रमुख सिफारिश क्या थी ?
- काका कालेलकर की अध्यक्षता में पहला पिछड़ा वर्ग आयोग कब गठित किया गया ?
- ओ. बी. सी. का शब्द विस्तार क्या है ?
उत्तर- 1. मुख्य निर्वाचन आयुक्त टी. एन. शेषन के संघर्षात्मक रवैये के कारण, 2. उत्तर प्रदेश, 3. बी. पी. मण्डल (विन्देश्वरी प्रसाद मण्डल) जिनकी प्रमुख सिफारिश पिछड़े वर्गों को आरक्षण देना था, 4. 1953, 5. ओ. बी. सी. का शब्द विस्तार ‘अंदर बैकवर्ड क्लासेज’ अथवा ‘अन्य पिछड़ा वर्ग’ है।
सत्य / असत्य
- 17वीं लोकसभा में कांग्रेस एक मान्यता प्राप्त राजनीतिक विपक्षी दल है।
- भारत में 1989 से गठबन्धन की राजनीति का युग प्रारम्भ हुआ।
- भारत के विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व गठबन्धन सरकार का प्रमुख गुण है।
- 1991 के लोकसभाई चुनावों में भाजपा सबसे बड़ी विजयी पार्टी के रूप में सामने आई।
- अप्रैल, 1997 से मार्च, 1998 तक कांग्रेस के समर्थन से संयुक्त मोर्चा सरकार का नेतृत्व इन्द्र कुमार गुजराल ने किया।
उत्तर- 1. 2. सत्य, 3. सत्य, 4. असत्य, 5. सत्य।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. वी. पी. मण्डल आयोग ने अपनी रिपोर्ट भारत सरकार को कब सौंपी श्री ?
उत्तर- 31 दिसम्बर, 1980.
प्रश्न 2. केन्द्र सरकार ने मण्डल आयोग की रिपोर्ट को संसद में कब प्रस्तुत किया था ?
उत्तर- 30 अप्रैल, 1981.
प्रश्न 3. अन्य पिछड़े वर्ग का क्या अर्थ है ?
उत्तर- ऐसे लोगों का वर्ग जो सामाजिक, आर्थिक तथा शैक्षिक रूप वे अन्य पिछड़े वर्ग के रूप में जाने जाते हैं।
प्रश्न 4. क्रीमीलेयर क्या है ?
उत्तर- पिछड़े वर्ग में जिन लोगों को उच्च सामाजिक एवं आर्थिकता प्राप्त हो चुका है, उन्हें ही क्रीमीलेयर अथवा सम्पन्न वर्ग कहा जाता है।
प्रश्न 5. गठबन्धन सरकार का क्या अर्थ है ?
उत्तर- जब अनेक राजनीतिक दल एक मोर्चा अथवा गठबन्धन बनाकर न्यूनतम मात्रा कार्यक्रम के अन्तर्गत सरकार गठित करते हैं तब इसे गठबन्धन सरकार कहा जाता है।
प्रश्न 6. गठबन्धन राजनीति के वर्तमान दौर में राजनीतिक दल किस बात पर बल देते हैं ?
उत्तर- विचारधारागत अन्तर के स्थान पर सत्ता में अधिकाधिक सहभागिता की बातों पर बल देते हैं।
प्रश्न 7. गठबन्धन सरकार की प्रमुख राजनीतिक समस्या लिखिए।
उत्तर- गठबन्धन राजनीति में विचारों की एकरूपता नहीं होती तथा गठबन्धन सरकार अस्थायी, कम गतिशील तथा खतरे की लटकी हुई तलवार के नीचे कार्य करती है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. मण्डल आयोग का गठन कब हुआ तथा इसे कौन-कौन से कार्य संप गए ?
उत्तर- जनता पार्टी के शासनकाल के दौरान जनवरी, 1979 को बिहार के पूर्व मुख्यमन्त्री वी. पी. मण्डल की अध्यक्षता में एक पिछड़ा वर्ग आयोग गठित किया गया, जिसे मण्डल आयोग के नाम से जाना जाता है। इस मण्डल आयोग के सदस्य एल. आर नायक, मोहन लाल, न्यायमूर्ति आर. आर. भोला तथा के. सुब्रह्मण्यम पिछड़े वर्ग से ही बनाए गए थे। इस मण्डल आयोग को निम्नलिखित कार्य सौंपे गए
(1) पिछड़े वर्ग के विकास हेतु उठाए जाने वाले कदमों की सिफारिश करना।
(2) सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े हुए वर्गों को परिभाषित करने हेतु मापदण्ड निर्धारित करना।
(3) केन्द्र, राज्य तथा केन्द्र प्रशासित क्षेत्रों की सेवाओं की जाँच करना, जिसमें पिछड़े वर्ग को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला है।
प्रश्न 2. मण्डल आयोग की किन्हीं चार सिफारिशों का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
उत्तर- मण्डल आयोग ने अपनी रिपोर्ट 31 दिसम्बर, 1980 को भारत सरकार को साँपी जिसे 30 अप्रैल, 1981 को संसद के पटल पर रखा गया। मण्डल आयोग ने इस रिपोर्ट में 3,743 जातियों को पिछड़े वर्ग की श्रेणी में रखते हुए अनेक सिफारिशों की थॉ, इनमें से प्रमुख चार अग्रवत् हैं(1) पिछड़े वर्ग की जातियों के लिए आयोग ने 27 प्रतिशत स्थान आरक्षित करने की सिफारिश की थी। (2) अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों की ही तरह पिछड़े वर्ग को भी निर्धारित आयु सीमा में छूट प्रदान की जाए। (3) निजी क्षेत्र में जो उद्योग शासकीय अनुदान प्राप्त करते हैं, उनमें भी पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण लागू होना चाहिए। (4) विश्वविद्यालयों तथा कॉलेजों में प्रवेश के लिए पिछड़े वर्ग हेतु आरक्षण की व्यवस्था लागू की जानी चाहिए।
प्रश्न 3. आरक्षण के पक्ष एवं विपक्ष में दो-दो तर्क दीजिए।
उत्तर- आरक्षण के पक्ष में निम्न दो तर्क दिए जा सकते हैं
(1) हमारे देश में अनुसूचित जातियाँ, अनुसूचित जनजातियाँ तथा अन्य पिछड़े वर्ग लम्बी समयावधि तक शोषण एवं पिछड़ेपन का शिकार रहे हैं। अतः इनके उत्थान हेतु आरक्षण की जरूरत है।
(2) लोकतन्त्र को सुदृढ़ करने हेतु विभिन्न सामाजिक वर्गों में समानता होना जरूरी है। आरक्षण द्वारा ही कमजोर वर्गों को लोकतन्त्र की मुख्य धारा से जोड़ा जा सकता है। आरक्षण के विपक्ष में निम्न दो तर्क प्रस्तुत किए जा सकते हैं (1) आरक्षण से प्रशासनिक सेवाओं की गुणवत्ता प्रभावित होती है। अतः यह योग्यता के सिद्धान्त के सर्वथा विपरीत है।
(2) आरक्षण समानता के सिद्धान्त के अनुकूल नहीं है अतः इससे अनारक्षित वर्गों में कुंठा की भावना जाग्रत हो सकती है।
प्रश्न 4. गठबन्धन सरकार की प्रमुख चुनौतियों अथवा समस्याओं को लिखिए। उत्तर- गठबन्धन सरकार की प्रमुख चुनौतियों अथवा समस्याओं को संक्षेप में निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है
(1) गठबन्धन सरकार की प्रमुख चुनौती शासन की अस्थिरता एवं गठबन्धन में सम्मिलित दलों की परस्पर खींचतान है। परस्पर खींचतान से नीतियों में समायोजन एवं एकरूपता नहीं आ पाती है।
(2) गठबन्धन सरकार में संसदीय प्रणाली के प्रमुख सिद्धान्त सामूहिक उत्तरदायित्व का परिपालन नहीं हो पाता क्योंकि गठबन्धन सरकार में विभिन्न राजनीतिक दलों के मन्त्री सम्मिलित होते हैं।
(3) संसदात्मक लोकतन्त्र में शासन का प्रमुख लक्षण राजनीतिक सजातीयता है। गठबन्धन सरकार में राजनीतिक सजातीयता सिद्धान्त परिपालन नहीं हो पाता है।
(4) हमारे देश में गठवन्धन सरकारों में क्षेत्रीय दलों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। चूँकि भारत में क्षेत्रीय दल स्थानीय हितों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। अतः क्षेत्रीय हित राष्ट्रीय हितों पर हावी होने का प्रयास करते हैं।
दीर्घ उत्तरीय / विश्लेषणात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. पिछड़े वर्ग में सम्पन्न वर्ग किसे कहा गया है ? इसके सम्बन्ध में क्या व्यवस्थाएँ हैं ?
उत्तर पिछड़े वर्ग में क्रीमीलेयर (सम्पन्न वर्ग)
पिछड़े वर्ग में जिन लोगों को उच्च सामाजिक एवं आर्थिक स्तर प्राप्त हो चुका है उन्हें क्रीमीलेयर अथवा सम्पन्न वर्ग कहा जाता है। ऐसे वर्ग के लोगों के पुत्र-पुत्रियों को नौकरियों में आरक्षण की सुविधा नहीं दी जाती। शासन द्वारा जिन लोगों को क्रीमीलेयर अथवा सम्पन्न वर्ग के अन्तर्गत रखा गया है, वे निम्न प्रकार हैं
(1) संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्तियों; जैसे- राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, मर्वोच्च तथा उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश, संघ लोक सेवा आयोग तथा राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्य, मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा भारत के नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक इत्यादि क्रीमीलेयर में आते हैं।
(2) माता-पिता में से कोई एक प्रथम श्रेणी का राजपत्रित अधिकारी हो अथवा दोनों अभिभावक द्वितीय श्रेणी के राजपत्रित अधिकारी हों।
(3) अभिभावकों में से कोई एक अथवा दोनों सेना में कर्नल अथवा उससे ऊपर के पद पर अथवा नौसेना या वायुसेना तथा अर्द्धसैनिक बलों में इसके समकक्ष पद पर हो।
(4) जिन परिवारों के स्वामित्व में राज्य भूमि सीमा कानून के अन्तर्गत सिंचित भूमि की अधिकतम सीमा के 85% से अधिक सिंचित भूमि हो ।
(5) जिन लोगों की सकल वार्षिक आय वेतन अथवा कृषि योग्य भूमि से होने वाली आय को छोड़कर ₹8 लाख अथवा उससे अधिक हो या निरन्तर तीन वर्षों तक जिनके पास सम्पत्ति पर कानून में निर्धारित छूट सीमा से ज्यादा की सम्पत्ति रही हो।
प्रश्न 2. काका कालेलकर आयोग का गठन एवं पाँच संस्तुतियाँ लिखिए।
उत्तर- 29 जनवरी, 1953 को गठित काका कालेलकर आयोग ने अपनी सिफारिशें 1955 में सरकार को सौंपी। इसमें निम्नलिखित सिफारिशें की गई थीं
(1) न्यूनतम एक चौथाई स्थान पिछड़े वर्गों हेतु प्रथम श्रेणी सेवाओं में आरक्षित किया जाए।
( 2 ) इसी प्रकार द्वितीय श्रेणी सेवाओं में भी इस वर्ग के लिए 33.5 प्रतिशत आरक्षण दिया जाए।
(3) तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी सेवाओं में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का न्यूनतम प्रतिशत 40 होना चाहिए।
(4) तकनीकी शिक्षा, मेडिकल तथा वैज्ञानिक पाठ्यक्रमों में कम से कम 70% स्थान इस वर्ग हेतु सुरक्षित रखे जाएँ।
(5) पिछड़े वर्गों के कल्याणार्थ एक पृथक् मन्त्रालय गठित किया जाए।
प्रश्न 3. 1989 के पश्चात् अनेक महत्वपूर्ण मुद्दों पर अधिकांश दलों के बीच एक व्यापक सहमति उभरती-सी प्रतीत हुई। यह सहमति किन मुद्दों पर दिखाई देती है ?
उत्तर- 1989 के पश्चात् भारतीय राजनीति में अनेक परिवर्तन हुए जिनमें गठबन्धन की राजनीति विकसित हुई। गठबन्धन की राजनीति ने विविध मुद्दों को प्रभावित किया। अधिकांश राजनीतिक दल महत्वपूर्ण मुद्दों पर परस्पर सहमत हैं तथा उन्होंने इसके अनुरूप अपनी विचारधारा एवं सिद्धान्तों में बदलाव करते हुए उसे व्यावहारिक रूप दिया। इस व्यापक परस्पर सहमति के मुद्दों को संक्षेप में निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है
(1) नवीन आर्थिक नीतियों पर सहमति- हालांकि अनेक समूह नवीन आर्थिक नीतियों के खिलाफ हैं लेकिन भारत के अधिकांश राजनीतिक दल इन नीतियों के प्रबल हिमाराती हैं। ज्यादातर भारतीय राजनीतिक दल मानते हैं कि नई आर्थिक नीतियों से भारत समृद्ध होगा तथा इन पर चलकर वह जल्दी ही विश्व की एक आर्थिक शक्ति के रूप में उभरकर सामने आएगा।
(2) पिछड़ी जातियों के राजनीतिक एवं सामाजिक दावे की स्वीकृति – वर्तमान में सभी राजनीतिक दल इस तथ्य से भली प्रकार अवगत हैं कि पिछड़ी जातियों के सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक दावों को स्वीकृत करने की महती जरूरत है। अतः देश के सभी राजनीतिक दल शिक्षा एवं रोजगार में पिछड़ी जातियों के लिए स्थानों को सुरक्षित करने के प्रबल हिमापती हुए। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि अब राजनीतिक दल यह भी सुनिश्चित करने हेतु तत्पर हैं कि अन्य पिछड़ा वर्ग को सत्ता में समुचित सहभागिता मिल सके।
(3) राष्ट्रीय शासन में प्रान्तीय दलों की भूमिका को स्वीकृति – वर्तमान परिस्थितियों में राष्ट्रीय दल तथा क्षेत्रीय दल के बीच का अन्तर लगातार कम होता चला जा रहा है। अब राज्य विधानसभाओं तथा लोकसभाई चुनावों में राष्ट्रीय दल क्षेत्रीय दलों के साथ गठबन्धन बनाने हेतु इच्छुक रहते हैं। इस परिवर्तित स्थिति में क्षेत्रीय दल भारतीय राजनीति में भूमिका का निवर्हन करने लगे हैं। प्रमुख
(4) विचारधारा की अपेक्षाकृत कार्यसिद्धि पर जोर तथा विचारात्मक सहमति हेतु राजनीतिक गठबन्धन- प्राय: सभी राजनीतिक दलों में यह व्यावहारिक सहमति हो गई है कि गठबन्धन निर्माण में विभिन्न दलों के बीच विचारात्मक अन्तर कोई बाधा अथवा रुकावट नहीं रही है। अब राजनीतिक दल अवसरवादी एवं सिद्धान्तहीन गठबन्धन बनाने पर सदैव तत्पर रहने लगे हैं क्योंकि वे प्रत्येक परिस्थिति में सत्ता में सहभागिता चाहते हैं।
(5) गठबन्धन सरकारों पर सहमति- हालांकि शुरुआत में राष्ट्रीय दलों ने गठबन्धन सरकारों को स्वीकार नहीं किया लेकिन कालान्तर में जब 1989 के चुनावों के पश्चात् जनता दल सरकार गठित हुई। तब भाजपा ने इसे स्वीकारते हुए अपना समर्थन दिया। इसी प्रकार उसे समर्थन देने में वामपंथी दल भी पीछे नहीं रहे। अब कोई राजनीतिक दल यह नहीं चाहता कि सरकार जल्दी गिरे तथा नए चुनाव हों। अत: चुनावी भय से गठबन्धन राजनीति सुदृढ़ हुई तथा सभी भारतीय राजनीतिक दल मानसिक रूप से गठबन्धन सरकारों हेतु सहमत हो गए हैं।
प्रश्न 4. अनेक लोग सोचते हैं कि सफल लोकतन्त्र के लिए दो-दलीय व्यवस्था जरूरी है। पिछले तीस सालों के भारतीय अनुभवों को आधार बनाकर एक लेख लिखिए और इसमें बताइए कि भारत की मौजूदा बहुदलीय व्यवस्था के क्या फायदे हैं ?
उत्तर- कुछ विद्वानों का अभिमत है कि सफल लोकतन्त्र हेतु द्विदलीय व्यवस्था परमावश्यक है। इनका स्पष्ट अभिमत है कि द्वि-दलीय व्यवस्था में साधारण बहुमत के अवगुणों का अन्त होकर एक स्थायी सरकार गठित होती है। द्वि-दलीय व्यवस्था भ्रष्टाचार को न्यूनतम करके जल्दी निर्णय लेने में सक्षम होती है। भारत की मौजूदा बहुदलीय प्रणाली के लाभ (फायदे) हमारे देश में बहुदलीय प्रणाली अस्तित्व में है। कुछ विद्वान मानते हैं कि भारत में बहुदलीय प्रणाली ठीक प्रकार से कार्यों को क्रियान्वित नहीं कर पा रही है। यह भारतीय लोकतन्त्र के लिए रुकावट पैदा कर रही है। अतः हमें द्वि-दलीय प्रणाली को अपनाना चाहिए। लेकिन पिछले तीस वर्षों के अनुभव के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बहुदलीय प्रणाली से भारतीय राजव्यवस्था को निम्न लाभ (फायदे) हुए हैं
(1) विभिन्न मतों का प्रतिनिधित्व भारतीय राजनीति में बहुदलीय प्रणाली की वजह से सभी वर्गों तथा हितों को प्रतिनिधित्व प्राप्त हो जाता है। इस प्रणाली के फलस्वरूप हो देश में सच्चे लोकतन्त्र की स्थापना होती है।
(2) मतदाताओं को अधिक आजादी-अधिक राजनीतिक दलों की वजह से मतदाताओं को अपने वोट को प्रयुक्त करने की अधिक स्वतन्त्रता होती है तथा वह अपनी विचारधारा से मेल खाने वाले दल को सरलता से मतदान करता है।
(3) देश दो गुटों में विभक्त नहीं होता-बहुदलीय प्रणाली की वजह से भारत कभी भी दो विरोधी गुटों में विभक्त नहीं हुआ है।
(4) विभिन्न विचारधाराओं का प्रतिनिधित्व- बहुदलीय प्रणाली की वजह से ही भारतीय व्यवस्थायिका में अनेक विचारधाराओं को प्रतिनिधित्व मिलता है।
(5) मन्त्रिमण्डलीय तानाशाही स्थापित नहीं होती- भारत में बहुदलीय प्रणाली का एक लाभ यह भी है कि इसकी वजह से देश में मन्त्रिमण्डल कभी तानाशाह नहीं बन सकता है।
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