अध्याय 16 जाति, धर्म और लैंगिक मसले
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
.बहु-विकल्पीय प्रश्न
- देश के छह राज्यों में समय उपयोग’ सम्बन्धी सर्वेक्षण के अनुसार एक औरत रोजाना कितने
घण्टे कार्य करती है ?
(i) साढ़े पाँच घण्टे
(ii) साढ़े छह घण्टे
(iii) साढ़े सात घण्टे से ज्यादा
(iv) उपर्युक्त में कोई नहीं।
- औरत और पुरुष के समान अधिकारों और अवसरों में विश्वास करने वाली महिला या पुरुष
को कहा जाएगा-
(i) नारीवादी
(ii) साम्यवादी
(iii) सम्प्रदायवादी
(iv) समाजवादी।
- निम्नलिखित में से किसमें महिलाओं के लिए एक-तिहाई स्थान आरक्षित हैं ?
(i) राज्यों की विधानसभाएँ
(ii) पंचायतों
(iii) लोकसभा
(iv) सरकारी नौकरियाँ।
- उस प्रक्रिया को क्या कहते हैं जिसमें लोग ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर पलायन करते हैं ?
(i) पश्चिमीकरण
(ii) आधुनिकीकरण
(ii) ग्रामीकरण
(iv) नगरीकरण।
- जब हम लैंगिक विभाजन की बात करते हैं, तो हमारा अभिप्राय होता है-
(i) स्त्री और पुरुष के बीच जैविक अन्तर
(ii) समाज द्वारा स्त्री और पुरुष को दी गई असमान भूमिकाएँ
(iii) बालक और बालिकाओं की संख्या का अनुपात
(iv) लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं में महिलाओं को मतदान का अधिकार न मिलना।
- धर्म के आधार पर भेदभाव न करने वाले व्यक्ति को क्या कहते हैं ?
(i) धर्मनिरपेक्ष
(ii) जातिवादी
(iii) नारीवादी
(iv) साम्प्रदायिक।
- 2011 की जनगणना के अनुसार प्रति हजार बालकों पर बालिकाओं की संख्या थी-
(i) 936
(ii) 956
(11) 928
(iv) 919.
- 2019 में महिला सांसदों की संख्या कितनी फीसदी थी?
(1) 18.9 फीसदी
(ii) 22.5 फीसदी
(iii) 14:36 फीसदी
(iv) 12.56 फीसदी।
- 2011 में देश की आबादी में अनुसूचित जातियों का हिस्सा था-
(i) 20-2 फीसदी
(ii) 16.6 फीसदी
(iii) 14.6 फीसदी
(iv) 8.6 फीसदी।
- 2011 में देश की आबादी में अनुसूचित जनजातियों का हिस्सा था-
(i) 8.6 फीसदी
(ii) 11-5 फीसदी
(iii) 5-6 सदी
(iv) 12.6 फीसदी।
- भारतीय संविधान के बारे में इनमें से कौन-सा कथन गलत है ?
(i) यह धर्म के आधार पर भेदभाव की मनाही करता है
(ii) यह एक धर्म को राजकीय धर्म बताता है
(iii) सभी लोगों को कोई भी धर्म मानने की आजादी देता है
(iv) किसी धार्मिक समुदाय में सभी नागरिकों को बराबरी का अधिकार देता है।
- निम्नलिखित में से कौन-सा सांप्रदायिकता का कारण नहीं है ?
(i) राज्य का अपना कोई धर्म नहीं होता
(ii) जब एक धर्म के साथ दूसरे धर्म का भेदभाव होता है
(iii) किसी एक धार्मिक समूह की माँग दूसरे धार्मिक समूह के विरोध में होती है
(iv) धर्म आधारित देश।
- वह समाज जो महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों को अधिक महत्त्व एवं ज्यादा शक्ति प्रदान करता
(ii) डेनमार्क
(i) साम्यवादी समाज
(ii) पितृप्रधान समाज
(iii) नारीवादी समाज
(iv) समाजवादी समाज।
- निम्न में से किस देश में महिलाओं की सार्वजनिक क्षेत्र में सहभागिता बहुत कम है ?
(i) दक्षिण अफ्रीका
(iii) नार्वे
(iv) स्वीडन।
उत्तर-1.(iil), 2. (i), 3. (ii), 4. (iv), 5. (ii), 6. (i), 7. (iv), 8. (iii), 9. (ii), 10. (1), II. (ii),
- (i), 13. (ii), 14.(i).
- रिक्त स्थानों की पूर्ति
- …………..पर आधारित सामाजिक विभाजन सिर्फ भारत में ही है।
- भारत में औसतन एक स्त्री एक पुरुष की तुलना में रोजाना ………ज्यादा काम करती है।
- गाँधीजी का धर्म से मतलब हिन्दू या इस्लाम जैसे धर्म से न होकर ………..से था, जो सभी धर्मों से जुड़े हैं।
- समान मजदूरी से सम्बन्धित अधिनियम में कहा गया है कि समान काम के लिए………… दी जाएगी।
- लैंगिक विभाजन के विपरीत धार्मिक विभाजन अक्सर राजनीति के मैदान में………….. होता है।
उत्तर-1. जातिवाद, 2. 1 घण्टा, 3. अनैतिक मूल्यों, 4. समान मजदूरी, 5. अभिव्यक्त।
. सत्य/असत्य
- जनगणना में प्रत्येक 10 वर्ष बाद सभी नागरिकों के धर्म को भी दर्ज किया जाता है।
- लैंगिक असमानता का आधार स्त्री और पुरुष की जैविक बनावट है।
- भारत की आबादी में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ी जातियों का हिस्सा लगभग दो-तिहाई है।
- 2011 की जनगणना के अनुसार पुरुषों की साक्षरता 76 फीसदी है।
- भारत में राज्यों की विधान सभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 8 फीसदी से अधिक है।
उत्तर-1.सत्य, 2. असत्य, 3. सत्य, 4. सत्य, 5. असत्य।
. सही जोड़ी बनाइए
‘अ’
- श्रीलंका
- इंग्लैण्ड
- पाकिस्तान
- महिला साक्षरता दर
- पुरुष साक्षरता दर
‘ब
(क) 54 प्रतिशत
(ख) 76 प्रतिशत
(ग) बौद्ध धर्म
(घ) ईसाई धर्म
(ङ) इस्लाम
उत्तर-1.→ (ग),2. → (घ), 3. → (ङ), 4. → (क),5. → (ख)।
. एक शब्द/वाक्य में उत्तर
- धर्म के आधार पर भेदभाव न करने वाले व्यक्ति को क्या कहते हैं ?
- लैंगिक विभाजन किस पर आधारित है ?
- 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में साक्षरता दर क्या थी ?
- 2011 की जनगणना के अनुसार लिंग अनुपात बताइए।
- महिलाओं के लिए पंचायतों में कितना स्थान आरक्षित है ?
उत्तर – 1. धर्मनिरपेक्ष 2. सामाजिक अपेक्षाओं, 3. 73 प्रतिशत, 4. 943, 5. एक-तिहाई।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. पितृ-प्रधान क्या है ?
उत्तर- इसका शाब्दिक अर्थ तो पिता का शासन है पर इस पद का प्रयोग महिलाओं की तुलना में पुरुषों में को ज्यादा महत्त्व, ज्यादा शक्ति देने वाली व्यवस्था के लिए भी किया जाता है।
प्रश्न 2. पारिवारिक कानून क्या है ?
उत्तर- विवाह, तलाक, गोद लेना और उत्तराधिकार जैसे परिवार से जुड़े मसलों से सम्बन्धित कानून हमारे देश में सभी धर्मों के लिए अलग-अलग पारिवारिक कानून हैं।
प्रश्न 3. गाँधीजी का धर्म और राजनीति के विषय में क्या विचार था ?
उत्तर- गाँधीजी कहा करते थे कि धर्म को कभी भी राजनीति से अलग नहीं किया जा सकता। धर्म से उनका आशय हिन्दू या इस्लाम जैसे धर्म से न होकर नैतिक मूल्यों से था, जो सभी धर्मों से जुड़े हैं। उनका मानना था कि राजनीति धर्म द्वारा स्थापित मूल्यों से निर्देशित होनी चाहिए।
प्रश्न 4. श्रम का लैंगिक विभाजन क्या है ?
उत्तर- काम के बँटवारे का वह तरीका जिसमें घर के अन्दर के सारे काम परिवार की औरतें करती हैं या अपनी देख-रेख में घरेलू नौकरों/नौकरानियों से कराती हैं।
प्रश्न 5. नारीवादी का क्या अर्थ है ?
उत्तर-औरत और मर्द के समान अधिकारों और अवसरों में विश्वास करने वाली महिला या पुरुष को नारीवादी कहते हैं।
प्रश्न 6. भारत में एक व्यक्ति की जाति कैसे निश्चित होती है ?
उत्तर- एक व्यक्ति की जाति उसके परिवार से जिसमें वह जन्म लेता/ लेती है निश्चित होती है।
प्रश्न 7. साम्प्रदायिक राजनीति किसे कहते हैं ?
उत्तर- साम्प्रदायिक राजनीति उस राजनीति को कहते हैं जिसमें उम्मीदवारों का चयन तथा मतदान आदि धर्म के आधार पर किया जाता है।
प्रश्न 8. दो समाज सुधारकों के नाम बताइए जिन्होंने जाति रहित समाज के लिये काम किया।
उत्तर – (i) पेरियार रामास्वामी, (ii) ज्योतिबा फुले ।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. साम्प्रदायिकता क्या है ?
उत्तर- जब राजनीति में धर्म की अभिव्यक्ति एक समुदाय की विशिष्टता के दावे और पक्षपोषण का रूप लेने लगती है तथा इसके अनुयायी दूसरे धर्मावलंबियों के खिलाफ मोर्चा खोलने लगते हैं। ऐसा तब होता है जब एक धर्म के विचारों को दूसरे से श्रेष्ठ माना जाने लगता है और कोई एक धार्मिक समूह अपनी माँगों को दूसरे समूह के विरोध में खड़ा करने लगता है। इस प्रक्रिया में जब राज्य अपनी सत्ता का इस्तेमाल किसी एक धर्म के पक्ष में करने लगता है, तो स्थिति और विकट होने लगती है। राजनीति से धर्म को इस तरह जोड़ना ही साम्प्रदायिकता है।
प्रश्न 2. धर्मनिरपेक्ष शासन का महत्व बताइए।
उत्तर- साम्प्रदायिकता हमारे देश के लोकतंत्र के लिए एक बड़ी चुनौती रही है। हमारे संविधान निर्माता इस चुनौती के प्रति सचेत थे। इसी कारण उन्होंने धर्मनिरपेक्ष शासन का मॉडल चुना और इसी आधार पर संविधान में अनेक प्रावधान किए गए। धर्मनिरपेक्षता कुछ पार्टियों या व्यक्तियों की एक विचारधारा भर नहीं है। यह विचार हमारे संविधान की बुनियाद है। साम्प्रदायिकता भारत में सिर्फ कुछ लोगों के लिए ही एक खतरा नहीं है। यह भारत की अवधारणा के लिए एक चुनौती है, एक खतरा है। हमारी तरह का धर्मनिरपेक्ष संविधान जरूरी चीज है।
प्रश्न 3. लैंगिक असमानता का आधार क्या है ?
उत्तर- लैंगिक असमानता को स्वाभाविक या कहें कि प्राकृतिक और अपरिवर्तनीय मान लिया जाता है लेकिन लैंगिक असमानता का आधार स्त्री और पुरुष की जैविक बनावट नहीं बल्कि इन दोनों के बारे में प्रचलित रूढ़ छवियाँ और तयशुदा सामाजिक भूमिकाएँ हैं।
प्रश्न 4. नारीवादी आन्दोलन क्या है ?
उत्तर- पहले सिर्फ पुरुषों को ही सार्वजनिक मामलों में भागीदारी करने, वोट देने या सार्वजनिक पदों के लिए चुनाव लड़ने की अनुमति थी। धीरे-धीरे राजनीति में लैंगिक मुद्दे उभरे। विश्व के अलग-अलग हिस्सों में महिलाओं ने अपने संगठन बनाए और बराबरी के अधिकार हासिल करने के लिए आन्दोलन किए। विभिन्न देशों में महिलाओं को वोट का अधिकार प्रदान करने के लिए आंदोलन हुए। इन आन्दोलनों में महिलाओं के राजनीतिक और वैधानिक दर्जे को ऊँचा उठाने और उनके लिए शिक्षा तथा रोजगार के अवसर बढ़ाने की माँग की गई। मूलगामी बदलाव की माँग करने वाले महिला आन्दोलनों ने औरतों के व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन में भी बराबरी की माँग उठाई। इन आन्दोलनों को ‘नारीवादी आन्दोलन’ कहा जाता है।
प्रश्न 5. लैंगिक विभाजन की राजनीतिक अभिव्यक्ति ने किस प्रकार औरतों के जीवन को प्रभावित किया है ?
उत्तर- लैंगिक विभाजन की राजनीतिक अभिव्यक्ति और इस सवाल पर राजनीतिक गोलबंदी ने सार्वजनिक जीवन में औरतों की भूमिका बढ़ाने में सहायता की। आज हम वैज्ञानिक, डॉक्टर, इंजीनियर, प्रबंधक, कॉलेज और विश्वविद्यालयी शिक्षक जैसे पेशों में बहुत सी महिलाओं को पाते हैं जबकि इन कार्यों को महिलाओं के योग्य नहीं माना जाता था। विश्व के कुछ देशों, जैसे स्वीडन, नार्वे और फिनलैण्ड जैसे स्कैंडिनेवियाई देशों में सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी का स्तर काफी ऊँचा है।
प्रश्न 6. दो कारण बताएँ कि क्यों सिर्फ जाति के आधार पर भारत में चुनावी नतीजे तय नहीं हो सकते।
उत्तर-(1) देश के किसी भी एक संसदीय चुनाव क्षेत्र में किसी एक जाति के लोगों का बहुमत नहीं है इसलिए हर पार्टी और उम्मीदवार को चुनाव जीतने के लिए एक जाति और एक समुदाय से ज्यादा लोगों का भरोसा हासिल करना पड़ता है।
(2) अगर किसी चुनाव क्षेत्र में एक जाति के लोगों का प्रभुत्व माना जा रहा हो तो अनेक पार्टियों को उसी जाति का उम्मीदवार खड़ा करने से कोई रोक नहीं सकता। ऐसे में कुछ मतदाताओं के सामने उनकी जाति के एक से ज्यादा उम्मीदवार होते हैं, तो किसी-किसी जाति के मतदाताओं के सामने उनकी जाति का एक भी उम्मीदवार नहीं होता।
प्रश्न 7. भारत की विधायिकाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की स्थिति क्या है ?
उत्तर- (1) भारत की विधायिका में महिला प्रतिनिधियों का अनुपात बहुत ही कम है। जैसे- लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या पहली बार 2019 में 14-36 फीसदी तक पहुँच सकी है।
(2) राज्यों की विधान सभाओं में उनका प्रतिनिधित्व 5 फीसदी से भी कम है। इस मामले में भारत का स्थान विश्व के राष्ट्रों में काफी नीचे है। भारत इस मामले में अफ्रीका और लातिन अमरीका के कई विकासशील राष्ट्रों से भी पीछे है।
(3) कभी-कभार कोई महिला प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री की कुर्सी तक आ गई है पर मंत्रिमण्डलों में पुरुषों का ही दबदबा रहा है।
(4) भारत में पंचायती राज के अन्तर्गत कुछ ऐसी व्यवस्था की गई है। स्थानीय सरकारों यानी पंचायतों और नगरपालिकाओं में एक-तिहाई पद महिलाओं के लिए आरक्षित कर दिए गए हैं। आज भारत के ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकायों में निर्वाचित महिलाओं की संख्या 10 लाख से अधिक है।
प्रश्न 8. किन्हीं दो प्रावधानों का जिक्र करें जो भारत को धर्मनिरपेक्ष देश बनाते हैं।
उत्तर- (1) भारतीय संविधान सभी नागरिकों और समुदायों को किसी भी धर्म का पालन करने और प्रचार करने की आजादी देता है।
(2) संविधान धर्म के आधार पर किए जाने वाले किसी तरह के भेदभाव को अवैधानिक घोषित करता है। इसके साथ ही संविधान धार्मिक समुदायों में समानता सुनिश्चित करने के लिए शासन को धार्मिक मामलों में दखल देने का अधिकार देता है। जैसे-यह छुआछूत की इजाजत नहीं देता।
दीर्घ उत्तरीय / विश्लेषणात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. “जाति राजनीति में कई तरह की भूमिकाएँ निभाती है।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- राजनीति भी जातियों को राजनीति के अखाड़े में लाकर जाति व्यवस्था और जातिगत पहचान को प्रभावित करती है। इस तरह सिर्फ राजनीति ही जातिग्रस्त नहीं होती, जाति भी राजनीतिग्रस्त हो जाती है। यह बात अनेक रूप लेती है
(1) हर जाति खुद को बड़ा बनाना चाहती है। इसलिए पहले वह अपने समूह की जिन उपजातियों को छोटा या नीचा बताकर अपने से बाहर रखना चाहती थी अब उन्हें अपने साथ लाने की कोशिश करती है।
(2) चूँकि एक जाति अपने दम पर सत्ता पर कब्जा नहीं कर सकती इसलिए वह ज्यादा राजनीतिक शक्ति पाने के लिए दूसरी जातियों या समुदायों को साथ लेने की कोशिश करती है और इस तरह उनके मध्य संवाद और मोल-तोल होता है। राजनीति में नए किस्म की जातिगत गोलबंदी भी हुई है, जैसे-‘अगड़ा’ और ‘पिछड़ा’। इस प्रकार जाति राजनीति में कई तरह की भूमिकाएँ अदा करती है और एक तरह से यही चीजें विश्व भर की राजनीति में चलती हैं। विश्व भर में राजनीतिक दल वोट पाने के लिए सामाजिक समूहों और समुदायों को गोलबंद करने का प्रयास करते हैं। कुछ खास स्थितियों में राजनीति में जातिगत विभिन्नताएँ और असमानताएँ वंचित और कमजोर समुदायों के लिए अपनी बातें आगे बढ़ाने और सत्ता में अपनी हिस्सेदारी माँगने की गुंजाइश भी उत्पन्न करती हैं। इस आशय में जातिगत राजनीति ने दलित और पिछड़ी जातियों के लिए सत्ता तक पहुँचने तथा निर्णय प्रक्रिया को बेहतर ढंग से प्रभावित करने की स्थिति भी उत्पन्न की है।
प्रश्न 2. बताइए कि भारत में किस तरह अभी भी जातिगत असमानताएँ जारी हैं ?
उत्तर- लिंग और धर्म पर आधारित विभाजन तो विश्व भर में हैं लेकिन जाति पर आधारित विभाजन सिर्फ भारतीय समाज में ही देखने को मिलता है। जैसे कि निम्न बातों से स्पष्ट है
(1) वर्ण व्यवस्था अन्य जाति समूहों से भेदभाव और उन्हें अपने से अलग मानने की धारणा पर आधारित है। इसमें ‘अंत्यज’ जातियों के साथ छुआछूत का व्यवहार किया जाता था। इसी कारण ज्योतिबा फुले, महात्मा गाँधी, डॉ. आंबेडकर और पेरियार रामास्वामी नायर जैसे राजनेताओं और समाज सुधारकों ने जातिगत भेदभाव से मुक्त समाज व्यवस्था बनाने की बात की और उसके लिए काम किया।
(2) समकालीन भारत से जाति प्रथा विदा नहीं हुई है। जाति व्यवस्था के कुछ पुराने पहलू अभी भी बरकरार हैं। अभी भी ज्यादातर लोग अपनी जाति या कबीले में ही शादी करते हैं।
(3) स्पष्ट संवैधानिक प्रावधान के बावजूद छुआछूत की प्रथा अभी पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है। जाति व्यवस्था के अन्तर्गत सदियों से कुछ समूहों को लाभ की स्थिति में तो कुछ समूहों को दबाकर रखा गया है। इसका प्रभाव सदियों के बाद आज तक नजर आता है।
(4) जिन जातियों में पहले से ही पढ़ाई-लिखाई का चलन मौजूद था और जिनकी शिक्षा पर पकड़ थी, आधुनिक शिक्षा व्यवस्था में भी उन्हीं का बोलबाला है। जिन जातियों को पहले शिक्षा से वंचित रखा जाता था उनके सदस्य अभी भी स्वाभाविक तौर पर पिछड़े हुए हैं। यही कारण है कि शहरी मध्यम वर्ग में अगड़ी जाति के लोगों का अनुपात असामान्य रूप से काफी ज्यादा है।
प्रश्न 3. जीवन के उन विभिन्न पहलुओं का जिक्र करें जिनमें भारत में स्त्रियों के साथ भेदभाव होता है या वे कमजोर स्थिति में होती हैं।
उत्तर- जीवन के वह पहलू जिनमें भारत में स्त्रियों के साथ भेदभाव होता है
(1) भारत के अनेक भागों में माँ-बाप को सिर्फ लड़के की चाह होती है। लड़की को जन्म लेने से पहले ही खत्म कर देने के तरीके इसी मानसिकता से पनपते हैं। इससे देश का लिंग अनुपात (प्रति हजार बालकों पर बालिकाओं की संख्या) गिरकर 919 रह गयी है। भारत के कुछ राज्यों में यह अनुपात गिरकर 850 और कहीं-कहीं तो 800 से भी नीचे चला गया है।
( 2 ) स्त्रियों के उत्पीड़न, शोषण और उन पर होने वाली हिंसा की खबरें हमें रोज पढ़ने को मिलती हैं। शहरी इलाके तो महिलाओं के लिए खास तौर से असुरक्षित हैं। वे अपने घरों में भी सुरक्षित नहीं हैं क्योंकि वहाँ भी उन्हें मारपीट तथा अनेक प्रकार की घरेलू हिंसा झेलनी पड़ती है।
(3) स्त्रियों में साक्षरता की दर अब भी मात्र 54 फीसदी है जबकि पुरुषों में 76 फीसदी। इसी प्रकार स्कूल पास करने वाली लड़कियों की एक सीमित संख्या ही उच्च शिक्षा की ओर कदम बढ़ा पाती हैं। आगे की पढ़ाई के दरवाज़े उनके लिए बंद हो जाते हैं क्योंकि माँ-बाप अपने संसाधनों को लड़के लड़की दोनों पर बराबर खर्च करने की जगह लड़कों पर ज्यादा खर्च करना पसन्द करते हैं।
(4) भारत में औसतन एक स्त्री एक पुरुष की तुलना में रोजाना एक घण्टा ज्यादा कार्य करती है पर उसको ज्यादातर कार्य के लिए पैसे नहीं मिलते इसलिए अक्सर उसके कार्य को मूल्यवान नहीं माना जाता।
(5) समान मजदूरी से सम्बन्धित अधिनियम 1976 में कहा गया है कि समान काम के लिए समान मजदूरी दी जाएगी। बहरहाल, कार्य के हर क्षेत्र में यानी खेल-कूद की दुनिया से लेकर सिनेमा के संसार तक और कल-कारखानों से लेकर खेत-खलिहान तक स्त्रियों को पुरुषों की तुलना में कम मजदूरी मिलती है।
(6) लड़के और लड़कियों के पालन-पोषण के दौरान यह मान्यता उनके मन में बैठा दी जाती है कि स्त्रियों की मुख्य जिम्मेदारी गृहस्थी चलाने और बच्चों के पालन-पोषण करने की है। यह बात अधिकतर परिवारों के श्रम के लैंगिक विभाजन से झलकती है। औरतें घर के अन्दर का सारा कार्य जैसे- खाना बनाना, सफाई करना, कपड़े धोना और बच्चों की देखभाल करना आदि करती है जबकि मर्द घर के बाहर का काम करते हैं।
प्रश्न 4. “महापुरुषों के प्रयासों और सामाजिक-आर्थिक परिवर्तनों के चलते आधुनिक भारत में जाति की संरचना और जाति व्यवस्था में भारी परिवर्तन आया है।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- ज्योतिबा फुले, महात्मा गाँधी, डॉ. आंबेडकर और पेरियार रामास्वामी नायर जैसे राजनेताओं और समाज सुधारकों ने जातिगत भेदभाव से मुक्त समाज व्यवस्था बनाने की बात की और उसके लिए काम किया। इन लोगों के प्रयासों और सामाजिक आर्थिक बदलावों के चलते आधुनिक भारत में जाति की संरचना और जाति व्यवस्था में भारी बदलाव आया है। आर्थिक विकास, शहरीकरण, साक्षरता और शिक्षा के विकास, पेशा चुनने की आजादी और गाँवों में आजादी के बाद जमींदारी व्यवस्था के कमजोर पड़ने से जाति व्यवस्था के पुराने स्वरूप और वर्ण व्यवस्था पर टिकी मानसिकता में परिवर्तन आ रहा है। नगरीय क्षेत्रों में तो ज्यादातर इस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता कि बस या ट्रेन में आपके साथ कौन बैठा है या होटल में आपकी मेज पर बैठकर खाना खा रहे आदमी की जाति क्या है ? संविधान में किसी भी तरह के जातिगत भेदभाव को निषेध किया गया है। संविधान ने जाति व्यवस्था से पैदा हुए अन्याय को समाप्त करने वाली नीतियों का आधार तय किया है। अगर सौ साल पहले का कोई व्यक्ति एक बार फिर भारत लौटकर आए तो यहाँ हुए परिवर्तनों को देखकर दंग रह जाएगा।
प्रश्न 5. विभिन्न तरह की साम्प्रदायिक राजनीति का ब्यौरा दें और सबके साथ एक-एक उदाहरण भी दें।
उत्तर- साम्प्रदायिक राजनीति इस सोच पर आधारित होती है कि धर्म ही सामाजिक समुदाय का निर्माण करता है। इस मान्यता के अनुकूल सोचना साम्प्रदायिकता है। इस सोच के अनुसार, एक खास धर्म में आस्था रखने वाले लोग एक ही समुदाय के होते हैं। उनके मौलिक हित एक जैसे होते हैं तथा समुदाय के लोगों के आपसी मतभेद सामुदायिक जीवन में कोई अहमियत नहीं रखते। साम्प्रदायिकता राजनीति में अनेक रूप धारण कर सकती है, यह बात निम्नलिखित विवरण तथा उदाहरणों से स्पष्ट है
(1) साम्प्रदायिक विचारधारा अक्सर अपने धार्मिक समुदाय का राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित करने के फिराक में रहती है, जो लोग बहुसंख्यक समुदाय के होते हैं उनकी यह कोशिश बहुसंख्यकवाद का रूप ले लेती है, जो अल्पसंख्यक समुदाय के होते हैं उनमें यह विश्वास अलग राजनीतिक इकाई बनाने की इच्छा का रूप ले लेता है।
(2) साम्प्रदायिकता की सबसे आम अभिव्यक्ति दैनंदिन जीवन में ही दिखती है। इनमें धार्मिक पूर्वाग्रह, धार्मिक समुदायों के बारे में बनी बनाई धारणाएँ और एक धर्म को दूसरे धर्म से श्रेष्ठ मानने की मान्यताएँ शामिल हैं। ये बातें इतनी आम हैं कि अक्सर हम उन पर ध्यान तक नहीं देते जबकि ये हमारे अंदर ही बैठी होती हैं।
(3) साम्प्रदायिक आधार पर राजनीतिक गोलबंदी साम्प्रदायिकता का दूसरा रूप है। इसमें धर्म के पवित्र प्रतीकों, धर्मगुरुओं, भावनात्मक अपील और अपने ही लोगों के मन में डर बैठाने जैसे तरीकों का उपयोग आम बात है। चुनावी राजनीति में एक धर्म के मतदाताओं की भावनाओं या हितों की बात उठाने जैसे रास्ते अक्सर अपनाए जाते हैं।
(4) अनेक बार साम्प्रदायिकता सबसे घृणित रूप लेकर सम्प्रदाय के आधार पर हिंसा, दंगा और नरसंहार कराती है। देश विभाजन के समय भारत और पाकिस्तान में भयावह साम्प्रदायिक दंगे हुए थे। आजादी के बाद भी समय-समय पर साम्प्रदायिक हिंसा हुई है।
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