अध्याय 23 मुद्रा और साख बहु-विकल्पीय प्रश्न
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
- दस रुपये के नोट पर क्या लिखा होता है ?
(i) भारतीय स्टेट बैंक
(ii) सेण्ट्रल बैंक
(iv) बैंक ऑफ बड़ौदा ।
(iii) रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया
- मुद्रा का प्रमुख कार्य है–
(i) विनिमय का माध्यम
(iii) स्थगित भुगतानों का मान
(ii) मूल्य संचय
(iv) ये सभी।
- साहूकारों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है-
(i) औद्योगिक वित्त में
(ii) विकास वित्त में
(iii) कृषि वित्त में
(iv) इनमें से कोई नहीं।
- साहूकार के ऋण पर ब्याज होता है-
(i) बहुत कम
(ii) बहुत अधिक
(iii) उपर्युक्त दोनों
(iv) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
- ऋण के औपचारिक स्रोतों में शामिल नहीं है-
(i) बैंक
(ii) सहकारी समिति
(iii) नियोक्ता
(iv) उपर्युक्त में कोई नहीं।
- स्वयं सहायता समूह में बचत और ऋण सम्बन्धित अधिकतर निर्णय लिए जाते हैं-
(i) बैंक द्वारा
(ii) सदस्यों द्वारा
(iii) गैर-सरकारी संस्था द्वारा
(iv) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
- बांग्लादेश के ग्रामीण बैंक से कर्ज लेने वाले अधिकांश हैं-
(i) वरिष्ठ नागरिक
(ii) युवा
(iii) महिलाएँ
(iv) उपर्युक्त सभी।
- निम्नलिखित में से कौन मुद्रा को विनिमय के माध्यम के रूप में अधिकृत करता है ?
(i) भारतीय रिजर्व बैंक
(ii) स्वयं-सहायता समूह
(iii) केन्द्रीय सरकार
(iv) भारत का राष्ट्रपति।
- स्वयं सहायता समूह का सम्बन्ध है-
(i) ग्रामीण लोगों का समूह जो ऋण के क्षेत्रक में मिलकर काम करते हैं
(ii) अमीर लोगों का समूह जो मिलकर कार्य करते हैं
(iii) एक औपचारिक ऋण क्षेत्रक
(iv) उपरोक्त में से कोई नहीं।
- करेंसी मुद्रा का कौन-सा रूप है ?
(i) सबसे पुराना
(ii) नया
(iii) दोनों (i) और (ii)
(iv) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
- बैंक किस तरह के किसानों को ऋण देने से हिचकिचाते हैं ?
(i) छोटे
(ii) बड़े
(iii) मध्यम
(iv) उपर्युक्त सभी।
- सहकारी समितियाँ किस क्षेत्र के स्रोत हैं ?
(i) प्राथमिक
(ii) द्वितीयक
(iii) औपचारिक
(iv) अनौपचारिक।
उत्तर-1.(iii), 2. (iv), 3. (iii), 4. (ii), 5. (iii), 6. (ii),7.(iii), 8. (i), 9.(i), 10. (ii), 11.(i),
- (iii).
. रिक्त स्थानों की पूर्ति
- . ……………..ऋण की लागत ऋण का बोझ बढ़ाती है।
- . बैंक …………पर देने वाले ब्याज से ऋण पर अधिक ब्याज होते हैं।
- …………..सम्पत्ति है जिसका मालिक कर्जदार होता है जिसे वह ऋण लेने के लिए गारण्टी के रूप में इस्तेमाल करता है, जब तक ऋण चुकता नहीं हो जाता।
- …………परिवारों की ऋण की अधिकांश जरूरतें अनौपचारिक स्रोतों से पूरी होती हैं।
- …………. केन्द्रीय सरकार की ओर से करेंसी नोट जारी करता है।
- स्व-सहायता समूह में सदस्यों की अधिकतम संख्या………….होती है।
- वस्तुओं एवं सेवाओं का क्रय-विक्रय…………….. के माध्यम से किया जाता है।
उत्तर-1. अधिकतम, 2. जमा, 3. समर्थक ऋणाधार ऐसी, 4. निर्धन, 5. रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया,
6.20, 7. मुद्रा।
सत्य/असत्य
- मुद्रा का प्रयोग हमारे प्रतिदिन के जीवन का एक बहुत बड़ा हिस्सा नहीं है।
- भारतीय रिजर्व बैंक ऋणों के औपचारिक स्रोतों की कार्यप्रणाली पर नजर रखता है।
- बैंक केवल लाभ कमाने वाले व्यापारियों को ऋण उपलब्ध कराती हैं।
- बैंक जमा पर जो ब्याज देते हैं उससे ज्यादा ब्याज ऋण पर लेते हैं।
- मुद्रा के आधुनिक रूपों में करेंसी-कागज के नोट और सिक्के शामिल हैं।
उत्तर-1. असत्य, 2. सत्य, 3. असत्य, 4. सत्य, 5. सत्य।
. सही जोड़ी बनाइए
‘अ’
- रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया
- साख मुद्रा
- औपचारिक ऋण
- अनौपचारिक ऋण
- करेंसी
‘ब’
(क) बैंक और सहकारी समितियों के ऋण
(ख) साहूकार, व्यापारी, रिश्तेदार
(ग) देश की सरकार उसे प्राधिकृत करती है
(घ) “बैंकों का बैंक”
(ङ) चेक, बैंक ड्राफ्ट, क्रेडिट कार्ड, ए.टी.एम.
उत्तर-1.→ (घ),2. → (ङ),3.→ (क),4. → (ख),5. → (ग)।
एक शब्द/वाक्य में उत्तर
- बैंक जमा राशि के एक बड़े भाग को किसके लिए इस्तेमाल करते हैं ?
- ब्याज दर, समर्थक ऋणाधार, आवश्यक कागजात और भुगतान के तरीकों को सम्मिलित रूप से क्या कहा जाता है ?
- भारत में केन्द्रीय सरकार की तरफ से करेंसी नोट कौन जारी करता है ?
- भारत में सहकारी बैंकों की रचना किस प्रकार की है ?
- बांग्लादेश में ग्रामीण बैंकों की स्थापना कब और किसने की?
उत्तर-1. ऋण देने, 2. ऋण की शर्ते, 3. भारतीय रिजर्व बैंक, 4. त्रिस्तरीय, 5. 1970 में, मोहम्मद यूनुस ने।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. वस्तु विनिमय क्या है ?
उत्तर-एक वस्तु के बदले में दूसरी वस्तु प्राप्त करना या अदला-बदली करना वस्तु विनिमय कहलाता है।
प्रश्न 2. ‘मुद्रा’ क्या है ?
उत्तर-वह वस्तु जो वस्तुओं तथा सेवाओं को खरीदने एवं ऋणों का भुगतान करने के लिए स्वीकार की जाती है, मुद्रा कहलाती है।
प्रश्न 3. बैंक तथा गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों में मुख्य अन्तर क्या है ?
उत्तर- बैंक मध्यस्थ साख निर्माण करते हैं। वे जनता से जमाएँ लेकर निश्चित दर पर रिजर्व अनुपात रखते हुए बाकी धन उधार देते हैं जबकि गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियाँ साख का निर्माण नहीं करतीं ये तो केवल तरलता का निर्माण करती हैं।
प्रश्न 4. मानव को एक छोटा व्यवसाय करने के लिए ऋण की जरूरत है। मानव किस आधार पर यह निश्चित करेगा कि उसे यह ऋण बैंक से लेना चाहिए या साहूकार से ? चर्चा कीजिए।
उत्तर- यदि मानव के पास गिरवी रखने के लिए कोई सम्पत्ति है, तो वह बैंक से ऋण ले सकता है। दूसरी ओर यदि मानव कम व्याज दर पर ऋण चाहता है तो उसे बैंक से ऋण लेना चाहिए न कि साहूकार से। यदि वह छोटी अवधि के लिए ऋण चाहता है तो उसे ऋण साहूकार से लेना चाहिए एवं यदि ऋण लम्बी अवधि के लिए चाहिए तो बैंक से ऋण लेना उचित होगा।
प्रश्न 5. विकास में ऋण की भूमिका का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर – विकास में ऋण की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। उत्पादन के लिए कार्यशील पूँजी की जरूरत को ऋण द्वारा पूरा किया जाता है। ऋण उस उत्पादन के कार्यशील खर्चों तथा उत्पादन को समय पर पूरा करने में सहायता करता है और वह आय को बढ़ाता है। इस प्रकार ऋण एक महत्त्वपूर्ण तथा सकारात्मक भूमिका अदा करता है।
प्रश्न 6. वे दूसरे स्रोत कौन हैं, जिनसे छोटे किसान कर्ज ले सकते हैं ?
उत्तर- अनौपचारिक उधारदाता में साहूकार, व्यापारी, मालिक, रिश्तेदार, दोस्त इत्यादि आते हैं।
प्रश्न 7. भारत में विमुद्रीकरण कब और कैसे किया गया ?
उत्तर भारत में नवम्बर 2016 में ₹500 और ₹1000 के करेंसी नोटों को अमान्य घोषित कर दिया गया। लोगों से कहा गया कि वे इन नोटों को एक निश्चित अवधि तक बैंकों में जमा कर दें और बदले में ₹500 तथा ₹2000 के नये नोट प्राप्त कर लें। इसे विमुद्रीकरण कहते हैं
। प्रश्न 8. चेक द्वारा भुगतान कैसे होता है ?
अथवा
चेक क्या है ?
उत्तर- चेक से भुगतान के लिए भुगतानकर्त्ता, जिसका किसी बैंक में खाता है, एक निश्चित रकम के से लिए चेक काटता है। चेक एक ऐसा कागज है जो बैंक को किसी व्यक्ति के खाते से चेक पर लिखे नाम के किसी दूसरे व्यक्ति को एक खास रकम का भुगतान करने का आदेश देता है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. मुद्रा आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या को किस तरह सुलझाती है ? अपनी ओर से उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर- यदि व्यक्ति के पास मुद्रा है, तो वह इसका विनिमय किसी भी वस्तु या सेवा खरीदने के लिए
सरलता से कर सकता है। उदाहरण के लिए, एक जूता निर्माता बाजार में जूता बेचकर गेहूँ खरीदना चाहता है।
जूता बनाने वाला पहले जूतों के बदले मुद्रा प्राप्त करेगा और फिर इस मुद्रा का प्रयोग गेहूँ खरीदने के लिए करेगा। यदि जूता निर्माता बिना मुद्रा का प्रयोग किए जूते का सीधे गेहूँ से विनिमय करता है तो उसे कठिनाई होती है। उसे गेहूँ उगाने वाले ऐसे किसान को खोजना पड़ता है जो न केवल गेहूँ बेचना चाहता हो, बल्कि साथ में जूते भी खरीदना चाहता हो। अर्थात् दोनों पक्ष एक-दूसरे से चीजें खरीदने और बेचने पर सहमति रखते हों। इसे आवश्यकताओं का दोहरा संयोग कहा जाता है। एक व्यक्ति जो वस्तु बेचने की इच्छा रखता हो, वही वस्तु दूसरा व्यक्ति खरीदने की भी इच्छा रखता हो। वस्तु विनिमय प्रणाली में, जहाँ मुद्रा का उपयोग किये बिना वस्तुओं का विनिमय होता है, वहाँ आवश्यकताओं का दोहरा संयोग होना अनिवार्य विशिष्टता है।
प्रश्न 2. हमें भारत में ऋण के औपचारिक स्रोतों को बढ़ाने की क्यों जरूरत है ?
उत्तर- निम्नलिखित कारणों से भारत में ऋण के औपचारिक स्रोतों को बढ़ाने की जरूरत है
(1) पहला, औपचारिक स्रोत अभी भी ग्रामीण परिवारों की कुल ऋण आवश्यकताओं का केवल 50 प्रतिशत पूरा कर पाता है। शेष आवश्यकताएँ अनौपचारिक स्रोतों से पूरी होती हैं। अनौपचारिक ऋणदाताओं से लिए गये उधार पर आमतौर से ब्याज की दरें बहुत ज्यादा होती हैं और यह उधार कर्जदाताओं की आय बढ़ाने का काम कम ही कर पाता है। इसलिए, बैंकों और सहकारी समितियों को अपनी गतिविधियाँ विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ाने की आवश्यकता है जिससे कर्जदारों की अनौपचारिक स्रोत पर से निर्भरता घटे।
(2) दूसरा, यदि एक तरफ औपचारिक स्रोत के ऋणों का विस्तार होना चाहिए तो दूसरी ओर यह भी आवश्यक है कि यह ऋण सभी लोगों को प्राप्त हो सके। वर्तमान समय में अमीर परिवार ही औपचारिक स्रोतों से ऋण प्राप्त करते हैं जबकि निर्धन परिवारों को अनौपचारिक स्रोतों पर ही निर्भर रहना पड़ता है। यह अनिवार्य है कि औपचारिक ऋण का अधिक समान वितरण हो जिससे निर्धन परिवार भी सस्ते ऋण का लाभ उठा सकें।
प्रश्न 3. गरीबों के लिए स्वयं सहायता समूहों के संगठनों के पीछे मूल विचार क्या हैं? अपने शब्दों में व्याख्या कीजिए।
उत्तर- गरीबों के लिए स्वयं सहायता समूहों के संगठनों के पीछे मूल विचार निम्न प्रकार हैं
(1) ग्रामीण क्षेत्रों के निर्धनों विशेषकर महिलाओं छोटे-छोटे स्वयं सहायता समूहों में संगठित करने और उनकी बचत पूँजी को एकत्रित करने पर आधारित है।
(2) एक विशेष स्वयं सहायता समूह में एक-दूसरे के पड़ोसी 15-20 सदस्य होते हैं, जो नियमित रूप से मिलते हैं और बचत करते हैं। प्रति व्यक्ति बचत ₹25 से लेकर ₹100 या अधिक हो सकती है। यह परिवारों की बचत करने की क्षमता पर निर्भर करता है।
(3) सदस्य अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए छोटे कर्ज समूह से ही कर्ज ले सकते हैं। समूह इन कर्जों पर ब्याज लेता है लेकिन यह साहूकार द्वारा लिए जाने वाले व्याज से कम होता है। (4) एक या दो वर्षों के बाद अगर समूह नियमित रूप से बचत करता है, तो समूह बँक से ऋण लेने के योग्य हो जाता है। ऋण समूह के नाम पर दिया जाता है और इसका उद्देश्य सदस्यों के लिए स्वरोजगार के अवसरों का सृजन करना है।
प्रश्न 4. ए. टी. एम. (ATM) क्या है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- ए. टी. एम. ATM (Automated Tellar Machine ) – ए. टी. एम. से आशय एक ऐसी व्यवस्था से है जिससे कभी भी पैसे निकाले जा सकते हैं। इसका कार्ड प्लास्टिक का बना होता है और इसमें धातु की एक चिप लगी रहती है, जिस पर बैंक एकाउण्ट से सम्बन्धित सभी विवरण दर्ज रहते हैं। ए.टी.एम. से एक दिन में एक निश्चित धनराशि ही निकाली जा सकती है। यह धनराशि अलग-अलग बैंकों के A.T.M. कार्ड के लिए अलग-अलग हो सकती है। वास्तविकता यह है कि ए.टी.एम. ने बैंकिंग कार्य को बहुत सरल एवं सुविधाजनक बना दिया है।
प्रश्न 5. केन्द्रीय बैंक से आप क्या समझते हैं ? इसके प्रमुख कार्य संक्षेप में बताइए।
उत्तर- केन्द्रीय बैंक केन्द्रीय बैंक देश का राष्ट्रीय बैंक होता है। यह बैंक अन्य बैंकों से भिन्न होता है। इस बैंक का मुख्य कार्य देश की बैंकिंग प्रणाली को व्यवस्थित एवं सुसंगठित रूप से संचालित तथा देश के अन्य बैंकों पर प्रभावी ढंग से नियन्त्रण करना होता है। केन्द्रीय बैंक देश की आवश्यकतानुसार पत्र मुद्रा का निर्गमन करता है, देश की साख एवं बैंकिंग प्रणाली का नियन्त्रण करता है तथा सरकार के वित्तीय प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है। भारत में रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया, केन्द्रीय बैंक के रूप में कार्य करता है। कीजिए।
प्रश्न 6. औपचारिक क्षेत्रक और अनौपचारिक क्षेत्रक के ऋणों के बीच प्रमुख अन्तरों का उल्लेख
उत्तर
औपचारिक ऋण
- औपचारिक ऋण में बैंकों और सहकारी समितियों के लिए कर्ज आते हैं।
- ये भारतीय रिजर्व बैंक की निगरानी में कार्य करते हैं।
- ब्याज की दर अपेक्षाकृत कम होती है।
अनौपचारिक ऋण
- अनौपचारिक उधारदाता में साहूकार, व्यापारी, मालिक, रिश्तेदार, दोस्त इत्यादि आते हैं।
- अनौपचारिक क्षेत्रक में ऋणदाताओं की गतिविधियों की देखरेख करने वाली कोई संस्था नहीं है।
- व्याज की दर अपेक्षाकृत अधिक होती है।
प्रश्न 7. क्या कारण है कि बैंक कुछ कर्जदारों को कर्ज देने के लिए तैयार नहीं होते ?
उत्तर- बँक कुछ कर्जदारों को कर्ज देने के लिए तैयार नहीं होते हैं जिसके निम्न कारण हैं
(1) कुछ कर्जदारों के पास बैंक में गिरवी रखने के लिए कोई सम्पत्ति नहीं होती है।
(2) कुछ कर्जदार इस अवस्था में नहीं होते हैं कि ऋण का भुगतान कर सकें।
(3) कुछ कर्जदार पहले से ही ऋण के जाल में फँसे होते हैं, इसलिए बैंक उन लोगों को ऋण देना नहीं चाहते हैं।
प्रश्न 8. भारतीय रिजर्व बैंक अन्य बैंकों की गतिविधियों पर किस तरह नजर रखता है ? यह जरूरी क्यों है ?
उत्तर- भारतीय रिजर्व बैंक ऋणों के औपचारिक स्रोतों की कार्यप्रणाली पर नजर रखता है। उदाहरण के लिए, बैंक अपनी जमा का एक न्यूनतम नकद हिस्सा अपने पास रखते हैं। आर.बी.आई. नजर रखता है कि बैंक वास्तव में नकद शेष बनाए हुए हैं। आर.बी.आई. इस बात पर भी नजर रखता है कि बैंक केवल लाभ अर्जित करने वाले व्यवसायियों और व्यापारियों को ही ऋण उपलब्ध नहीं करा रहे, बल्कि छोटे किसानों, छोटे उद्योगों, छोटे कर्जदारों इत्यादि को भी ऋण दे रहे हैं। समय-समय पर बैंकों द्वारा आर.बी.आई. को यह जानकारी देनी पड़ती है कि वे कितना और किनको ऋण दे रहे हैं और उसकी ब्याज की दरें क्या हैं ?
दीर्घ उत्तरीय / विश्लेषणात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. अतिरिक्त मुद्रा वाले लोगों और जरूरतमंद लोगों के बीच बैंक किस तरह मध्यस्थता करते हैं ?
उत्तर- अतिरिक्त मुद्रा वाले लोगों और जरूरतमंद लोगों के बीच बैंक निम्न तरह से मध्यस्थता करते हैं
(1) लोग अतिरिक्त नकद को बैंकों में अपने नाम से खाता खोल कर जमा कर देते हैं।
(2) बैंक जमा स्वीकार करते हैं और इस पर सूद भी देते हैं।
(3) इस तरह लोगों का धन बैंकों के पास सुरक्षित रहता है और इस पर सूद भी मिलता है। लोगों को अपनी आवश्यकता के अनुसार इसमें से धन निकालने की सुविधा भी उपलब्ध होती है।
(4) बैंक जमा राशि के एक बड़े भाग को ऋण देने के लिए इस्तेमाल करते हैं। विभिन्न आर्थिक गतिविधियों के लिए ऋण की बहुत माँग रहती है।
(5) बैंक जमा राशि का लोगों की ऋण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए इस्तेमाल करते हैं।
(6) बैंक जमा पर जो ब्याज देते हैं उससे ज्यादा ब्याज ऋण पर लेते हैं। कर्जदारों से लिए गए ब्याज और जमाकर्ताओं को दिये गये ब्याज के बीच का अन्तर बैंकों की आय का प्रमुख स्रोत है। इस तरह, बैंक जिनके पास अतिरिक्त राशि है (जमाकर्ता) एवं जिन्हें राशि की जरूरत है (कर्जदारों) के बीच मध्यस्थता का काम करते हैं।
प्रश्न 2. जोखिम वाली परिस्थितियों में ऋण कर्जदार के लिए और समस्याएँ खड़ी कर सकता है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- जोखिम वाली परिस्थितियों में ऋण कर्जदार के लिए समस्याएँ खड़ी कर सकता है। उदाहरण के लिए, एक छोटा किसान रामू 2 एकड़ जमीन पर कपास उगाता है। वह इस आशा पर कि फसल तैयार होने पर कर्ज चुका देगा, खेती के खर्चे के लिए साहूकार से ऋण लेता है। फसल पर कीटनाशकों के हमले से फसल बर्बाद हो जाती है। जबकि रामू ने फसल पर महँगी कीटनाशक दवाइयों को छिड़का था, उससे विशेष अन्तर नहीं पड़ा। वह साहूकार का कर्ज लौटाने में असमर्थ रहता है और वर्ष भर में यह कर्ज बड़ी रकम बन जाता है। अगले वर्ष, रामू खेती के लिए दुबारा उधार लेता है। इस वर्ष फसल ठीक रहती है, किन्तु इतनी कमाई नहीं होती कि वह अपना कर्ज वापस कर सके। वह कर्ज में फँस जाता है। उसे कर्ज अदा करने के लिए अपनी जमीन का कुछ भाग बेचना पड़ता है। कर्ज ने रामू की कमाई को बढ़ाने के बजाय उसकी स्थिति बदतर कर दी। इसे साधारण भाषा में कर्ज जाल कहा जाता है। इस मामले में ऋण कर्जदार को ऐसी स्थिति में धकेल देता है, जहाँ से बाहर निकलना काफी कष्टदायक होता है।
प्रश्न 3. आधुनिक करेंसी विनिमय के माध्यम में क्यों स्वीकार की जाती है जबकि इसका अपना कोई उपयोग नहीं है ? कारण बताइए।
अथवा
रुपया व्यापक स्तर पर विनिमय का माध्यम स्वीकार किया गया है। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- मुद्रा के आधुनिक रूपों में करेंसी में कागज के नोट और सिक्के शामिल हैं। वे वस्तुएँ जो पहले मुद्रा रूप में प्रयोग की जाती थीं, उसके विपरीत आधुनिक मुद्रा बहुमूल्य धातुओं, जैसे- सोना-चाँदी और ताँबे के बने सिक्कों से नहीं बनी है। अनाज और पशुओं की तरह वे रोजमर्रा की चीजें भी नहीं हैं। आधुनिक मुद्रा का इस प्रकार का अपना कोई प्रयोग नहीं है। इसे विनिमय का माध्यम इसलिए स्वीकार किया जाता है, क्योंकि किसी देश की सरकार इसे प्राधिकृत करती है। भारत में भारतीय रिजर्व बैंक केन्द्रीय सरकार की तरफ से करेंसी नोट जारी करता है। भारतीय कानून के अनुसार किसी व्यक्ति या संस्था को मुद्रा जारी करने की इजाजत नहीं है। इसके अलावा कानून विनिमय के माध्यम के रूप में रुपये का इस्तेमाल करने की वैधता प्रदान करता है, जिसे भारत में सौदों में अदायगी के लिए मना नहीं किया जा सकता। भारत में कोई व्यक्ति कानूनी तौर पर रुपयों में अदायगी को अस्वीकार नहीं कर सकता। इसलिए रुपया व्यापक स्तर पर विनिमय का माध्यम स्वीकार किया गया है।
प्रश्न 4. माँग जमा क्या है ? इसकी प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- लोग बैंकों में एक खाता खोलकर अपने धन की बचत करते हैं। बैंकों में खातों में जमा धनराशि को माँग के आधार पर निकाला जा सकता है, इसलिए इन खातों को माँग जमा के नाम से भी जाना जाता है। इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(1) बैंक जमाओं को स्वीकार करती हैं तथा जमा पर ब्याज की अदायगी भी करती हैं। इस प्रकार से लोगों का धन सुरक्षित भी रहता है और इससे ब्याज के रूप में आमदनी भी होती है।
(2) माँग जमाओं के बदले चेक लिखने की सुविधा से बिना कुछ उपयोग किए सीधे भुगतान करना संभव हो जाता है क्योंकि माँग जमाओं को करेंसी के साथ-साथ व्यापक स्तर पर भुगतान का माध्यम स्वीकार किया जाता है।
(3) यह देश की सरकार द्वारा प्राधिकृत है।
(4) इसकी माँग और आपूर्ति पर भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा नियन्त्रण किया जाता है।
प्रश्न 5. स्व-सहायता समूह किसे कहते हैं ? इसके गठन के क्या-क्या उद्देश्य हो सकते हैं ? लिखिए।
अथवा
स्व-सहायता समूह के गठन के कोई चार उद्देश्य लिखिए।
उत्तर- स्व-सहायता समूह-स्व-सहायता समूह निर्धन व्यक्तियों का एक स्वैच्छिक संगठन है। इन समूहों का गठन आपसी सहयोग द्वारा अपनी समस्याओं के समाधान के लिए किया जाता है। यह समूह अपने सदस्यों के बीच छोटी-छोटी बचतों को प्रोत्साहित करता है। इन बचतों को बैंक में जमा किया जाता है। बैंक
के जिस खाते में यह राशि जमा की जाती है, वह खाता समूह के नाम होता है। सामान्यत: एक समूह के सदस्यों की अधिकतम संख्या 20 होती है।
प्राय: समूह के सदस्य ऐसे व्यक्ति होते हैं जिनकी पहुँच बैंक आदि वित्तीय संस्थाओं तक नहीं होती। अत: समूह सदस्यों को बचत की ऐसी विधि सिखाता है, जो सदस्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु उपयुक्त है। समूह सदस्यों को कम ब्याज दर पर आसानी से छोटे ऋण उपलब्ध कराता है। इन समूहों ने महिला सशक्तिकरण की दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। समूह की बैंकिंग सम्बन्धित गतिविधियों का उद्देश्य समाज के उन निर्धन और पिछड़े व्यक्तियों को बैंकों से जोड़ना है जिनको अभी तक अनदेखा किया गया है। देश में स्व-सहायता समूह महिलाओं का हो सकता है, पुरुषों का हो सकता है या फिर महिला और पुरुष दोनों का मिश्रित हो सकता है, परन्तु यह देखा गया है कि महिला स्व-सहायता समूह अधिक सफल रहे हैं।
स्व-सहायता समूह के गठन के उद्देश्य
स्व-सहायता समूह के गठन के निम्नलिखित उद्देश्य हो सकते हैं
(1) सामूहिक रूप से संगठित होकर कार्य करने की भावना विकसित करना ।
(2) सदस्यों में बेहतर भविष्य के लिए बचत करने की आदत विकसित करना ।
(3) सदस्यों में स्वावलम्बन की भावना का विकास करना।
(4) स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा और घरेलू हिंसा जैसे विषयों के प्रति जागृति उत्पन्न करना।
(5) सदस्यों को ऋण प्रदान करके स्वरोजगार के अवसरों का सृजन करना।
(6) सरकार, बैंक तथा अन्य स्वयंसेवी संस्थाओं की सहायता से कल्याणकारी गतिविधियों का संचालन आदि।
प्रश्न 6. मुद्रा के प्रमुख कार्यों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर मुद्रा के प्रमुख कार्य मुद्रा के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं
(1) विनिमय का माध्यम- यह मुद्रा का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कार्य है। इस कार्य द्वारा मुद्रा ने वस्तु ने विनिमय के दोहरे संयोग के अभाव की कठिनाई को दूर करके विनिमय रीति को व्यवस्थित और सरल बना दिया है अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति अपनी वस्तु के बदले मुद्रा प्राप्त करता है और फिर उस मुद्रा से अपनी आवश्यकताओं के की पूर्ति करता है। प्रो. मार्शल के अनुसार, “मुद्रा को केवल इसलिए प्राप्त नहीं किया जाता है कि वह स्वयं मूल्यवान होती है वरन् इसलिए कि इसके द्वारा वस्तुओं और सेवाओं को प्राप्त किया जा सकता है, क्योंकि उसमें सामान्य क्रय-शक्ति होती है।”
(2) मूल्य का मापक – मुद्रा का दूसरा महत्त्वपूर्ण कार्य मूल्य मापक के रूप में विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाओं की विनिमय शक्ति को आँकने का रहा है। वस्तु विनिमय के अन्तर्गत विभिन्न वस्तुओं का अन्य वस्तुओं के रूप में मूल्य मापन एक कठिन कार्य था। मुद्रा के प्रचलन से अब यह कठिनाई दूर हो गयी है और सभी वस्तुओं व सेवाओं के मूल्यों को मुद्रा में मापा जा सकता है। प्रो. कोलबर्न के अनुसार, “यह माप या तुलना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था में लाभ और हानि का अनुमान इसी के आधार पर लगाया जाता है।”
(3) मूल्य संचय का आधार प्रत्येक व्यक्ति भविष्य की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए संग्रह करना आवश्यक समझता है। यदि यह संग्रह वस्तुओं के रूप में किया जाये तो यह स्पष्ट है कि वस्तुएँ कुछ समय पश्चात् नष्ट हो जायेंगी। मुद्रा के आविष्कार ने इस समस्या का समाधान किया। वर्तमान में प्रत्येक व्यक्ति मुद्रा को संग्रह करके रखता है, क्योंकि मुद्रा में वस्तुओं को क्रय करने की शक्ति होती है।
(4) मूल्य का हस्तान्तरण- मुद्रा द्वारा मूल्य का हस्तान्तरण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति और एक स्थान से दूसरे स्थान पर सरलतापूर्वक किया जा सकता है, क्योंकि इसमें सामान्य स्वीकृति का गुण पाया जाता है। जैसे कोई व्यक्ति भोपाल छोड़कर इलाहाबाद (प्रयागराज) बसना चाहता है तो वह भोपाल में स्थित मकान व अन्य सम्पत्ति को मुद्रा में बेचकर उसी मुद्रा से प्रयागराज में नया मकान व सम्पत्ति क्रय कर सकता है।
इसके साथ ही मुद्रा के माध्यम से उधार लेन-देन की प्रक्रिया बहुत सरल हो गई है। उपभोक्ता मुद्रा के माध्यम से अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त करता है तथा उत्पादक अपने उत्पादन की मात्रा को बढ़ाता है। संक्षेप में, मनुष्य के जीवन में मुद्रा अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य करती है।
उत्तर- यदि व्यक्ति के पास मुद्रा है, तो वह इसका विनिमय किसी भी वस्तु या सेवा खरीदने के लिए
सरलता से कर सकता है। उदाहरण के लिए, एक जूता निर्माता बाजार में जूता बेचकर गेहूँ खरीदना चाहता है।
जूता बनाने वाला पहले जूतों के बदले मुद्रा प्राप्त करेगा और फिर इस मुद्रा का प्रयोग गेहूँ खरीदने के लिए करेगा। यदि जूता निर्माता बिना मुद्रा का प्रयोग किए जूते का सीधे गेहूँ से विनिमय करता है तो उसे कठिनाई होती है। उसे गेहूँ उगाने वाले ऐसे किसान को खोजना पड़ता है जो न केवल गेहूँ बेचना चाहता हो, बल्कि साथ में जूते भी खरीदना चाहता हो। अर्थात् दोनों पक्ष एक-दूसरे से चीजें खरीदने और बेचने पर सहमति रखते हों। इसे आवश्यकताओं का दोहरा संयोग कहा जाता है। एक व्यक्ति जो वस्तु बेचने की इच्छा रखता हो, वही वस्तु दूसरा व्यक्ति खरीदने की भी इच्छा रखता हो। वस्तु विनिमय प्रणाली में, जहाँ मुद्रा का उपयोग किये बिना वस्तुओं का विनिमय होता है, वहाँ आवश्यकताओं का दोहरा संयोग होना अनिवार्य विशिष्टता है।
प्रश्न 2. हमें भारत में ऋण के औपचारिक स्रोतों को बढ़ाने की क्यों जरूरत है ?
उत्तर- निम्नलिखित कारणों से भारत में ऋण के औपचारिक स्रोतों को बढ़ाने की जरूरत है
(1) पहला, औपचारिक स्रोत अभी भी ग्रामीण परिवारों की कुल ऋण आवश्यकताओं का केवल 50 प्रतिशत पूरा कर पाता है। शेष आवश्यकताएँ अनौपचारिक स्रोतों से पूरी होती हैं। अनौपचारिक ऋणदाताओं से लिए गये उधार पर आमतौर से ब्याज की दरें बहुत ज्यादा होती हैं और यह उधार कर्जदाताओं की आय बढ़ाने का काम कम ही कर पाता है। इसलिए, बैंकों और सहकारी समितियों को अपनी गतिविधियाँ विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ाने की आवश्यकता है जिससे कर्जदारों की अनौपचारिक स्रोत पर से निर्भरता घटे।
(2) दूसरा, यदि एक तरफ औपचारिक स्रोत के ऋणों का विस्तार होना चाहिए तो दूसरी ओर यह भी आवश्यक है कि यह ऋण सभी लोगों को प्राप्त हो सके। वर्तमान समय में अमीर परिवार ही औपचारिक स्रोतों से ऋण प्राप्त करते हैं जबकि निर्धन परिवारों को अनौपचारिक स्रोतों पर ही निर्भर रहना पड़ता है। यह अनिवार्य है कि औपचारिक ऋण का अधिक समान वितरण हो जिससे निर्धन परिवार भी सस्ते ऋण का लाभ उठा सकें।
प्रश्न 3. गरीबों के लिए स्वयं सहायता समूहों के संगठनों के पीछे मूल विचार क्या हैं? अपने शब्दों में व्याख्या कीजिए।
उत्तर- गरीबों के लिए स्वयं सहायता समूहों के संगठनों के पीछे मूल विचार निम्न प्रकार हैं
(1) ग्रामीण क्षेत्रों के निर्धनों विशेषकर महिलाओं छोटे-छोटे स्वयं सहायता समूहों में संगठित करने और उनकी बचत पूँजी को एकत्रित करने पर आधारित है।
(2) एक विशेष स्वयं सहायता समूह में एक-दूसरे के पड़ोसी 15-20 सदस्य होते हैं, जो नियमित रूप से मिलते हैं और बचत करते हैं। प्रति व्यक्ति बचत ₹25 से लेकर ₹100 या अधिक हो सकती है। यह परिवारों की बचत करने की क्षमता पर निर्भर करता है।
(3) सदस्य अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए छोटे कर्ज समूह से ही कर्ज ले सकते हैं। समूह इन कर्जों पर ब्याज लेता है लेकिन यह साहूकार द्वारा लिए जाने वाले व्याज से कम होता है। (4) एक या दो वर्षों के बाद अगर समूह नियमित रूप से बचत करता है, तो समूह बँक से ऋण लेने के योग्य हो जाता है। ऋण समूह के नाम पर दिया जाता है और इसका उद्देश्य सदस्यों के लिए स्वरोजगार के अवसरों का सृजन करना है।
प्रश्न 4. ए. टी. एम. (ATM) क्या है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- ए. टी. एम. ATM (Automated Tellar Machine ) – ए. टी. एम. से आशय एक ऐसी व्यवस्था से है जिससे कभी भी पैसे निकाले जा सकते हैं। इसका कार्ड प्लास्टिक का बना होता है और इसमें धातु की एक चिप लगी रहती है, जिस पर बैंक एकाउण्ट से सम्बन्धित सभी विवरण दर्ज रहते हैं। ए.टी.एम. से एक दिन में एक निश्चित धनराशि ही निकाली जा सकती है। यह धनराशि अलग-अलग बैंकों के A.T.M. कार्ड के लिए अलग-अलग हो सकती है। वास्तविकता यह है कि ए.टी.एम. ने बैंकिंग कार्य को बहुत सरल एवं सुविधाजनक बना दिया है।
प्रश्न 5. केन्द्रीय बैंक से आप क्या समझते हैं ? इसके प्रमुख कार्य संक्षेप में बताइए।
उत्तर- केन्द्रीय बैंक केन्द्रीय बैंक देश का राष्ट्रीय बैंक होता है। यह बैंक अन्य बैंकों से भिन्न होता है। इस बैंक का मुख्य कार्य देश की बैंकिंग प्रणाली को व्यवस्थित एवं सुसंगठित रूप से संचालित तथा देश के अन्य बैंकों पर प्रभावी ढंग से नियन्त्रण करना होता है। केन्द्रीय बैंक देश की आवश्यकतानुसार पत्र मुद्रा का निर्गमन करता है, देश की साख एवं बैंकिंग प्रणाली का नियन्त्रण करता है तथा सरकार के वित्तीय प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है। भारत में रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया, केन्द्रीय बैंक के रूप में कार्य करता है। कीजिए।
प्रश्न 6. औपचारिक क्षेत्रक और अनौपचारिक क्षेत्रक के ऋणों के बीच प्रमुख अन्तरों का उल्लेख
उत्तर
औपचारिक ऋण
- औपचारिक ऋण में बैंकों और सहकारी समितियों के लिए कर्ज आते हैं।
- ये भारतीय रिजर्व बैंक की निगरानी में कार्य करते हैं।
- ब्याज की दर अपेक्षाकृत कम होती है।
अनौपचारिक ऋण
- अनौपचारिक उधारदाता में साहूकार, व्यापारी, मालिक, रिश्तेदार, दोस्त इत्यादि आते हैं।
- अनौपचारिक क्षेत्रक में ऋणदाताओं की गतिविधियों की देखरेख करने वाली कोई संस्था नहीं है।
- व्याज की दर अपेक्षाकृत अधिक होती है।
प्रश्न 7. क्या कारण है कि बैंक कुछ कर्जदारों को कर्ज देने के लिए तैयार नहीं होते ?
उत्तर- बँक कुछ कर्जदारों को कर्ज देने के लिए तैयार नहीं होते हैं जिसके निम्न कारण हैं
(1) कुछ कर्जदारों के पास बैंक में गिरवी रखने के लिए कोई सम्पत्ति नहीं होती है।
(2) कुछ कर्जदार इस अवस्था में नहीं होते हैं कि ऋण का भुगतान कर सकें।
(3) कुछ कर्जदार पहले से ही ऋण के जाल में फँसे होते हैं, इसलिए बैंक उन लोगों को ऋण देना नहीं चाहते हैं।
प्रश्न 8. भारतीय रिजर्व बैंक अन्य बैंकों की गतिविधियों पर किस तरह नजर रखता है ? यह जरूरी क्यों है ?
उत्तर- भारतीय रिजर्व बैंक ऋणों के औपचारिक स्रोतों की कार्यप्रणाली पर नजर रखता है। उदाहरण के लिए, बैंक अपनी जमा का एक न्यूनतम नकद हिस्सा अपने पास रखते हैं। आर.बी.आई. नजर रखता है कि बैंक वास्तव में नकद शेष बनाए हुए हैं। आर.बी.आई. इस बात पर भी नजर रखता है कि बैंक केवल लाभ अर्जित करने वाले व्यवसायियों और व्यापारियों को ही ऋण उपलब्ध नहीं करा रहे, बल्कि छोटे किसानों, छोटे उद्योगों, छोटे कर्जदारों इत्यादि को भी ऋण दे रहे हैं। समय-समय पर बैंकों द्वारा आर.बी.आई. को यह जानकारी देनी पड़ती है कि वे कितना और किनको ऋण दे रहे हैं और उसकी ब्याज की दरें क्या हैं ?
दीर्घ उत्तरीय / विश्लेषणात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. अतिरिक्त मुद्रा वाले लोगों और जरूरतमंद लोगों के बीच बैंक किस तरह मध्यस्थता करते हैं ?
उत्तर- अतिरिक्त मुद्रा वाले लोगों और जरूरतमंद लोगों के बीच बैंक निम्न तरह से मध्यस्थता करते हैं
(1) लोग अतिरिक्त नकद को बैंकों में अपने नाम से खाता खोल कर जमा कर देते हैं।
(2) बैंक जमा स्वीकार करते हैं और इस पर सूद भी देते हैं।
(3) इस तरह लोगों का धन बैंकों के पास सुरक्षित रहता है और इस पर सूद भी मिलता है। लोगों को अपनी आवश्यकता के अनुसार इसमें से धन निकालने की सुविधा भी उपलब्ध होती है।
(4) बैंक जमा राशि के एक बड़े भाग को ऋण देने के लिए इस्तेमाल करते हैं। विभिन्न आर्थिक गतिविधियों के लिए ऋण की बहुत माँग रहती है।
(5) बैंक जमा राशि का लोगों की ऋण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए इस्तेमाल करते हैं।
(6) बैंक जमा पर जो ब्याज देते हैं उससे ज्यादा ब्याज ऋण पर लेते हैं। कर्जदारों से लिए गए ब्याज और जमाकर्ताओं को दिये गये ब्याज के बीच का अन्तर बैंकों की आय का प्रमुख स्रोत है। इस तरह, बैंक जिनके पास अतिरिक्त राशि है (जमाकर्ता) एवं जिन्हें राशि की जरूरत है (कर्जदारों) के बीच मध्यस्थता का काम करते हैं।
प्रश्न 2. जोखिम वाली परिस्थितियों में ऋण कर्जदार के लिए और समस्याएँ खड़ी कर सकता है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- जोखिम वाली परिस्थितियों में ऋण कर्जदार के लिए समस्याएँ खड़ी कर सकता है। उदाहरण के लिए, एक छोटा किसान रामू 2 एकड़ जमीन पर कपास उगाता है। वह इस आशा पर कि फसल तैयार होने पर कर्ज चुका देगा, खेती के खर्चे के लिए साहूकार से ऋण लेता है। फसल पर कीटनाशकों के हमले से फसल बर्बाद हो जाती है। जबकि रामू ने फसल पर महँगी कीटनाशक दवाइयों को छिड़का था, उससे विशेष अन्तर नहीं पड़ा। वह साहूकार का कर्ज लौटाने में असमर्थ रहता है और वर्ष भर में यह कर्ज बड़ी रकम बन जाता है। अगले वर्ष, रामू खेती के लिए दुबारा उधार लेता है। इस वर्ष फसल ठीक रहती है, किन्तु इतनी कमाई नहीं होती कि वह अपना कर्ज वापस कर सके। वह कर्ज में फँस जाता है। उसे कर्ज अदा करने के लिए अपनी जमीन का कुछ भाग बेचना पड़ता है। कर्ज ने रामू की कमाई को बढ़ाने के बजाय उसकी स्थिति बदतर कर दी। इसे साधारण भाषा में कर्ज जाल कहा जाता है। इस मामले में ऋण कर्जदार को ऐसी स्थिति में धकेल देता है, जहाँ से बाहर निकलना काफी कष्टदायक होता है।
प्रश्न 3. आधुनिक करेंसी विनिमय के माध्यम में क्यों स्वीकार की जाती है जबकि इसका अपना कोई उपयोग नहीं है ? कारण बताइए।
अथवा
रुपया व्यापक स्तर पर विनिमय का माध्यम स्वीकार किया गया है। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- मुद्रा के आधुनिक रूपों में करेंसी में कागज के नोट और सिक्के शामिल हैं। वे वस्तुएँ जो पहले मुद्रा रूप में प्रयोग की जाती थीं, उसके विपरीत आधुनिक मुद्रा बहुमूल्य धातुओं, जैसे- सोना-चाँदी और ताँबे के बने सिक्कों से नहीं बनी है। अनाज और पशुओं की तरह वे रोजमर्रा की चीजें भी नहीं हैं। आधुनिक मुद्रा का इस प्रकार का अपना कोई प्रयोग नहीं है। इसे विनिमय का माध्यम इसलिए स्वीकार किया जाता है, क्योंकि किसी देश की सरकार इसे प्राधिकृत करती है। भारत में भारतीय रिजर्व बैंक केन्द्रीय सरकार की तरफ से करेंसी नोट जारी करता है। भारतीय कानून के अनुसार किसी व्यक्ति या संस्था को मुद्रा जारी करने की इजाजत नहीं है। इसके अलावा कानून विनिमय के माध्यम के रूप में रुपये का इस्तेमाल करने की वैधता प्रदान करता है, जिसे भारत में सौदों में अदायगी के लिए मना नहीं किया जा सकता। भारत में कोई व्यक्ति कानूनी तौर पर रुपयों में अदायगी को अस्वीकार नहीं कर सकता। इसलिए रुपया व्यापक स्तर पर विनिमय का माध्यम स्वीकार किया गया है।
प्रश्न 4. माँग जमा क्या है ? इसकी प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर- लोग बैंकों में एक खाता खोलकर अपने धन की बचत करते हैं। बैंकों में खातों में जमा धनराशि को माँग के आधार पर निकाला जा सकता है, इसलिए इन खातों को माँग जमा के नाम से भी जाना जाता है। इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(1) बैंक जमाओं को स्वीकार करती हैं तथा जमा पर ब्याज की अदायगी भी करती हैं। इस प्रकार से लोगों का धन सुरक्षित भी रहता है और इससे ब्याज के रूप में आमदनी भी होती है।
(2) माँग जमाओं के बदले चेक लिखने की सुविधा से बिना कुछ उपयोग किए सीधे भुगतान करना संभव हो जाता है क्योंकि माँग जमाओं को करेंसी के साथ-साथ व्यापक स्तर पर भुगतान का माध्यम स्वीकार किया जाता है।
(3) यह देश की सरकार द्वारा प्राधिकृत है।
(4) इसकी माँग और आपूर्ति पर भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा नियन्त्रण किया जाता है।
प्रश्न 5. स्व-सहायता समूह किसे कहते हैं ? इसके गठन के क्या-क्या उद्देश्य हो सकते हैं ? लिखिए।
अथवा
स्व-सहायता समूह के गठन के कोई चार उद्देश्य लिखिए।
उत्तर- स्व-सहायता समूह-स्व-सहायता समूह निर्धन व्यक्तियों का एक स्वैच्छिक संगठन है। इन समूहों का गठन आपसी सहयोग द्वारा अपनी समस्याओं के समाधान के लिए किया जाता है। यह समूह अपने सदस्यों के बीच छोटी-छोटी बचतों को प्रोत्साहित करता है। इन बचतों को बैंक में जमा किया जाता है। बैंक
के जिस खाते में यह राशि जमा की जाती है, वह खाता समूह के नाम होता है। सामान्यत: एक समूह के सदस्यों की अधिकतम संख्या 20 होती है।
प्राय: समूह के सदस्य ऐसे व्यक्ति होते हैं जिनकी पहुँच बैंक आदि वित्तीय संस्थाओं तक नहीं होती। अत: समूह सदस्यों को बचत की ऐसी विधि सिखाता है, जो सदस्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु उपयुक्त है। समूह सदस्यों को कम ब्याज दर पर आसानी से छोटे ऋण उपलब्ध कराता है। इन समूहों ने महिला सशक्तिकरण की दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। समूह की बैंकिंग सम्बन्धित गतिविधियों का उद्देश्य समाज के उन निर्धन और पिछड़े व्यक्तियों को बैंकों से जोड़ना है जिनको अभी तक अनदेखा किया गया है। देश में स्व-सहायता समूह महिलाओं का हो सकता है, पुरुषों का हो सकता है या फिर महिला और पुरुष दोनों का मिश्रित हो सकता है, परन्तु यह देखा गया है कि महिला स्व-सहायता समूह अधिक सफल रहे हैं।
स्व-सहायता समूह के गठन के उद्देश्य
स्व-सहायता समूह के गठन के निम्नलिखित उद्देश्य हो सकते हैं
(1) सामूहिक रूप से संगठित होकर कार्य करने की भावना विकसित करना ।
(2) सदस्यों में बेहतर भविष्य के लिए बचत करने की आदत विकसित करना ।
(3) सदस्यों में स्वावलम्बन की भावना का विकास करना।
(4) स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा और घरेलू हिंसा जैसे विषयों के प्रति जागृति उत्पन्न करना।
(5) सदस्यों को ऋण प्रदान करके स्वरोजगार के अवसरों का सृजन करना।
(6) सरकार, बैंक तथा अन्य स्वयंसेवी संस्थाओं की सहायता से कल्याणकारी गतिविधियों का संचालन आदि।
प्रश्न 6. मुद्रा के प्रमुख कार्यों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर मुद्रा के प्रमुख कार्य मुद्रा के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं
(1) विनिमय का माध्यम- यह मुद्रा का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कार्य है। इस कार्य द्वारा मुद्रा ने वस्तु ने विनिमय के दोहरे संयोग के अभाव की कठिनाई को दूर करके विनिमय रीति को व्यवस्थित और सरल बना दिया है अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति अपनी वस्तु के बदले मुद्रा प्राप्त करता है और फिर उस मुद्रा से अपनी आवश्यकताओं के की पूर्ति करता है। प्रो. मार्शल के अनुसार, “मुद्रा को केवल इसलिए प्राप्त नहीं किया जाता है कि वह स्वयं मूल्यवान होती है वरन् इसलिए कि इसके द्वारा वस्तुओं और सेवाओं को प्राप्त किया जा सकता है, क्योंकि उसमें सामान्य क्रय-शक्ति होती है।”
(2) मूल्य का मापक – मुद्रा का दूसरा महत्त्वपूर्ण कार्य मूल्य मापक के रूप में विभिन्न वस्तुओं एवं सेवाओं की विनिमय शक्ति को आँकने का रहा है। वस्तु विनिमय के अन्तर्गत विभिन्न वस्तुओं का अन्य वस्तुओं के रूप में मूल्य मापन एक कठिन कार्य था। मुद्रा के प्रचलन से अब यह कठिनाई दूर हो गयी है और सभी वस्तुओं व सेवाओं के मूल्यों को मुद्रा में मापा जा सकता है। प्रो. कोलबर्न के अनुसार, “यह माप या तुलना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था में लाभ और हानि का अनुमान इसी के आधार पर लगाया जाता है।”
(3) मूल्य संचय का आधार प्रत्येक व्यक्ति भविष्य की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए संग्रह करना आवश्यक समझता है। यदि यह संग्रह वस्तुओं के रूप में किया जाये तो यह स्पष्ट है कि वस्तुएँ कुछ समय पश्चात् नष्ट हो जायेंगी। मुद्रा के आविष्कार ने इस समस्या का समाधान किया। वर्तमान में प्रत्येक व्यक्ति मुद्रा को संग्रह करके रखता है, क्योंकि मुद्रा में वस्तुओं को क्रय करने की शक्ति होती है।
(4) मूल्य का हस्तान्तरण- मुद्रा द्वारा मूल्य का हस्तान्तरण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति और एक स्थान से दूसरे स्थान पर सरलतापूर्वक किया जा सकता है, क्योंकि इसमें सामान्य स्वीकृति का गुण पाया जाता है। जैसे कोई व्यक्ति भोपाल छोड़कर इलाहाबाद (प्रयागराज) बसना चाहता है तो वह भोपाल में स्थित मकान व अन्य सम्पत्ति को मुद्रा में बेचकर उसी मुद्रा से प्रयागराज में नया मकान व सम्पत्ति क्रय कर सकता है।
इसके साथ ही मुद्रा के माध्यम से उधार लेन-देन की प्रक्रिया बहुत सरल हो गई है। उपभोक्ता मुद्रा के माध्यम से अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त करता है तथा उत्पादक अपने उत्पादन की मात्रा को बढ़ाता है। संक्षेप में, मनुष्य के जीवन में मुद्रा अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य करती है।
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