NCERT Class 10 SOCIAL SCIENCE Geography: अध्याय 20 लोकतन्त्र की चुनौतियाँ IMPORTANT QUESTIONS

  अध्याय 20 लोकतन्त्र की चुनौतियाँ

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

. बहु-विकल्पीय प्रश्न

  1. लोकतन्त्र के कुशल संचालन में निम्न में से कौन-सी एक बात बाधा नहीं पहुँचाती ?

(i) आर्थिक विषमता

(ii) मौलिक अधिकारों का संरक्षण

(iii) जातिवाद

(iv) महिलाओं की असमानता।

  1. अपने क्षेत्र को बढ़ावा देने के विचार को क्या कहते हैं ?

(i) क्षेत्रीय प्रगति

(ii) क्षेत्रवाद

(iii) क्षेत्रीय अव्यवस्था

(iv) क्षेत्रीयता।

  1. पूरी दुनिया में लोकतन्त्र के विचार के प्रति जबरदस्त समर्थन का भाव है। इसके लिए निम्नलिखित

में से कौन-सा कारण सबसे उपयुक्त है ?

(i) यह लोगों की अपनी सरकारें होती हैं

(ii) यह आर्थिक समानता बनाए रखती है

(iii) इसके कारण उच्च आर्थिक विकास दर होती है

(iv) यह गरीबी से मुक्त करती है।

उत्तर-1. (ii), 2. (ii), 3. (i).

. रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. समकालीन विश्व में शासन का एक प्रमुख रूप है।
  2. निश्चित रूप से सुधारों के मामले में की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
  3. साम्प्रदायिकता के मार्ग में एक बड़ी बाधा है।
  4. अलग-अलग समाजों में की लोकतन्त्र से अलग-अलग अपेक्षाएँ होती हैं।
  5. लोकतान्त्रिक सुधार तो मुख्यत: ही करते हैं।

उत्तर-1. लोकतन्त्र, 2. कानून, 3. लोकतन्त्र एवं राष्ट्रीय एकता, 4. आम आदमी, 5. राजनीतिक दल।

. सत्य/असत्य

  1. निश्चित रूप से सुधारों के मामले में कानून की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
  2. क्षेत्रवाद राष्ट्रीय एकता का मूलाधार है।
  3. जनसंख्या विस्फोट से संसाधनों में कमी हो जाती है।
  4. सऊदी अरब में धार्मिक अल्पसंख्यकों को आजादी नहीं है।
  5. अलग-अलग देशों के सामने एक समान चुनौतियाँ होती हैं।

उत्तर-1.सत्य, 2. असत्य, 3. सत्य, 4. सत्य, 5. असत्य।

सही जोड़ी बनाइए

‘अ’

  1. मंडेला
  2. अमरीका
  3. सऊदी अरब
  4. युगोस्लाविया
  5. चीन

‘ब’

(क) महिलाओं को आजादी नहीं

(ख) कोसोवो प्रान्त

(ग) सत्ता पर एकाधिकार

(घ) दक्षिण अफ्रीका

(ङ) गुआंतानामो बे

उत्तर-1.→ (घ),2.→ (ङ),3.२ (क),4.२ (ख),5. → (ग)।

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

  1. दुनिया के कितने हिस्से में अभी लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था नहीं है ?
  2. चीन में किस पार्टी का शासन है ?
  3. पाकिस्तान में जनमत संग्रह किसने कराया था उस समय मतदाता सूची में गड़बड़ी के आरोप लगे थे?
  4. श्रीलंका में गृह युद्ध का अन्त कब हुआ?
  5. बोलिविया जल-संघर्ष के समर्थक जो प्रधानमन्त्री बने।

उत्तर-1. एक-चौथाई, 2. कम्युनिस्ट पार्टी, 3. जनरल मुशर्रफ, 4. 2009 में, 5. मोरालेज।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं के सामने अपने विस्तार की चुनौती है। स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-अधिकांश स्थापित लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं के सामने अपने विस्तार की चुनौती है। इसमें लोकतान्त्रिक शासन के बुनियादी सिद्धान्तों को सभी इलाकों, सभी सामाजिक समूहों और विभिन्न संस्थाओं में लागू करना शामिल है। स्थानीय सरकारों को अधिक अधिकार सम्पन्न बनाना, संघ की सभी इकाइयों के लिए संघ के सिद्धान्तों को व्यावहारिक स्तर पर लागू करना, महिलाओं और अल्पसंख्यक समूहों की उचित भागीदारी सुनिश्चित करना आदि ऐसी ही चुनौतियाँ हैं। इसका आशय यह भी है कि कम-से-कम ही चीजें लोकतान्त्रिक नियन्त्रण के बाहर रहनी चाहिए। भारत और दुनिया के सबसे पुराने लोकतन्त्रों में एक अमरीका जैसे देशों के सामने भी यह चुनौती है।

प्रश्न 2. एक चुनौती लोकतन्त्र को मजबूत करने की है। स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-हर लोकतान्त्रिक व्यवस्था के सामने किसी-न-किसी रूप में यह चुनौती है ही। इसमें लोकतान्त्रिक संस्थाओं और बरतावों को मजबूत बनाना शामिल हैं। यह कार्य इस प्रकार से होना चाहिए कि लोग लोकतन्त्र से जुड़ी अपनी उम्मीदों को पूरा कर सकें। लेकिन, अलग-अलग समाजों में आम आदमी की लोकतन्त्र से अलग-अलग अपेक्षाएँ होती हैं इसलिए यह चुनौती दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अलग अर्थ और अलग स्वरूप लेती है। संक्षेप में कहा जा सकता है संस्थाओं की कार्यपद्धति को सुधारना और मजबूत करना होता है ताकि लोगों की भागीदारी और नियन्त्रण में वृद्धि हो। इसके लिए फैसला लेने की प्रक्रिया पर अमीर और प्रभावशाली लोगों के नियन्त्रण और प्रभाव को कम करने की जरूरत होती है।

प्रश्न 3. साम्प्रदायिकता के मुख्य कारण लिखिए।

उत्तर-साम्प्रदायिकता मानवता और राष्ट्रीय एकता के लिये गम्भीर अभिशाप है। साम्प्रदायिकता के कारण-साम्प्रदायिकता के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-

(1) फूट डालो और शासन करो की नीति-ब्रिटिश सरकार की देश को विभाजित करने की नीति ने साम्प्रदायिकता को बढ़ावा दिया है। परिणामत: देश में वर्षों से साथ रह रहे विभिन्न सम्प्रदायों के लोगों में अविश्वास की भावना बढ़ गई जो कि साम्प्रदायिकता के रूप में आज भी विद्यमान है।

(2) राजनीतिक स्वार्थ-राजनीतिज्ञों, नेताओं और सरकारों द्वारा राजनीतिक स्वार्थ के तहत चुनाव जीतने के लिये धर्मों एवं सम्प्रदायों की माँगों को स्वीकार कर लिया जाता है और उन्हें खुश करने के प्रयास किये जाते हैं।

(3) अशिक्षा – साम्प्रदायिकता का एक कारण लोगों का अशिक्षित होना है। अशिक्षित व्यक्तियों का दृष्टिकोण संकुचित होता है। वे अपना निर्णय स्वयं नहीं ले पाते। वे कथित गुरुओं के बहकावे में आ जाते हैं। तथाकथित गुरु अपने स्वार्थ के लिए उन्हें गुमराह करते हैं।

(4) भ्रामक प्रचार-देश में होने वाली हर छोटी घटना को कुछ देश तूल देकर प्रसारित करते हैं। इससे देश में साम्प्रदायिकता की भावना को प्रोत्साहन मिलता है।

प्रश्न 4. अलग-अलग देशों के सामने अलग-अलग तरह की चुनौतियाँ होती हैं। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- अलग-अलग देशों के सामने अलग-अलग प्रकार की चुनौतियाँ होती हैं। विश्व के एक-चौथाई हिस्से में अभी भी लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था नहीं हैं। इन इलाकों में लोकतन्त्र के लिए बहुत ही मुश्किल चुनौतियाँ हैं। इन राष्ट्रों में लोकतान्त्रिक व्यवस्था की तरफ जाने और लोकतान्त्रिक सरकार गठित करने के लिए जरूरी बुनियादी आधार बनाने की चुनौती है। इनमें मौजूदा गैर-लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था को गिराने, सत्ता पर सेना के नियन्त्रण को समाप्त करने और एक सम्प्रभु तथा कारगर शासन व्यवस्था को स्थापित करने की चुनौती है।

दीर्घ उत्तरीय / विश्लेषणात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. भारतीय प्रजातन्त्र की सफलता में बाधक किन्हीं पाँच तत्त्वों को लिखिए।

उत्तर प्रजातन्त्र की सफलता में बाधक तत्त्व

भारतीय प्रजातन्त्र का ढाँचा संविधान पर आधारित है और राजनीतिक दलों के सहयोग से यह व्यवस्था क्रियाशील है। समय के साथ-साथ व्यवस्थाओं में कुछ कमियाँ आ जाती हैं जो वर्तमान व्यवस्था को चुनौती देती हैं। भारतीय प्रजातन्त्र को भी अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इनमें प्रमुख निम्नलिखित हैं

(1) निर्धनता और बेरोजगारी- देश की जनसंख्या का लगभग 26 प्रतिशत भाग निर्धनता रेखा के नीचे जीवन निर्वाह कर रहा है। देश में शिक्षित और अशिक्षित करोड़ों नागरिकों को नियमित रोजगार का कोई साधन नहीं है। नागरिकों के उसी बड़े वर्ग के कारण लोकतन्त्र के संचालन में कठिनाई आती है।

(2) जातीयता, क्षेत्रीयता और भाषायी समस्याएँ- हमारे देश में बिना किसी भेद-भाव के सभी नागरिकों को स्वतन्त्रता और समानता के अधिकार प्रदान किए गए हैं किन्तु यथार्थ में देश में प्रचलित जातिवाद और क्षेत्रवाद स्वतन्त्रता और समानता के अधिकार को वास्तविक नहीं बनने दे रहे हैं। भारतीय प्रजातन्त्र में विश्वास करने वाले यह मानते थे कि भारत में धीरे-धीरे जातिवाद स्वतः समाप्त हो जायेगा। लेकिन व्यक्ति जब जाति को प्राथमिकता देकर राजनीतिक कार्य और व्यवहार निर्धारित करता है तब लोकतन्त्र के संचालन में अवरोध आना स्वाभाविक है।

(3) निरक्षरता – किसी भी देश में लोकतन्त्र की सफलता के लिए वहाँ के नागरिकों का साक्षर होना आवश्यक है। अशिक्षित लोग न तो अपने अधिकारों व कर्त्तव्यों को जानते हैं और न ही अपने मत का ठीक प्रयोग ही कर पाते हैं। इसलिए निरक्षरता प्रजातन्त्र के लिए अभिशाप

(4) सामाजिक कुरीतियाँ- भारतीय समाज परम्परागत समाज है। यहाँ प्रजातन्त्र की भावना के अनुकूल लोकमत की कम अभिव्यक्ति होती है। अभी भी हमारे समाज में अस्पृश्यता की भावना, महिलाओं के प्रति भेदभाव, जातीय श्रेष्ठता के भाव, सामन्तवादी मानसिकता, सामाजिक कुरीतियाँ व अन्धविश्वास आदि की भावना व्याप्त है। इस प्रकार के विचार लोकतन्त्र के मार्ग में बाधा हैं।

(5) संचार साधनों की नकारात्मक भूमिका- संचार साधनों के माध्यम से सरकार और नागरिकों के मध्य एक घनिष्ठ नाता बनता है। प्रजातन्त्र में सरकार द्वारा जनकल्याण की अनेक योजनाएँ और कार्यक्रम संचालित किए जाते हैं। जनसंचार के साधनों द्वारा इनका प्रसार केवल व्यावसायिक आधार पर किया जाता है।

शासन और प्रशासन की सकारात्मक भूमिका के प्रति इनमें आकर्षण कम है जबकि जनमत बनाना और जनमत को दिशा देने में यह साधन प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं। भारत में इनकी भूमिका इतनी सकारात्मक नहीं है जितनी होनी चाहिए।

प्रश्न 2. प्रजातन्त्र की बाधाओं को दूर करने के उपाय बताइए।

उत्तर-

प्रजातन्त्र की बाधाओं को दूर करने के उपाय

 (1) निर्धनता और बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिये शासन के साथ-साथ सामाजिक जागरूकता की भी आवश्यकता है। व्यक्ति और समाज को मिलकर शासन की योजनाओं का लाभ उठाना होगा। व्यावसायिक शिक्षा और स्वरोजगार के प्रयासों में और तेजी की आवश्यकता है।

( 2 ) शिक्षा के प्रति लोकचेतना को और अधिक विस्तार देने की आवश्यकता है। जातिवाद के विचार, क्षेत्रीयता की भावना और भाषायी अवरोधों का सम्बन्ध नागरिकों की मानसिकता से है। इन विचारों में परिवर्तन के लिए कार्य किया जा सकता है। हमें देश में निरक्षरता को दूर करने के लिये सामूहिक प्रयास करने की आवश्यकता है।

(3) देश में सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध कानून हैं किन्तु अनेक लोगों को इन कानूनों से भय नहीं है, सामाजिक कानूनों का पालन सुनिश्चित करने के प्रयास आवश्यक हैं।

(4) प्रजातन्त्र में भ्रष्टाचार को कम करने, समाप्त करने तथा अपराधों के नियन्त्रित करने की अत्यन्त आवश्यकता है। अपराधियों को जल्दी सजा दी जाये। इसके लिए न्याय प्रणाली में सुधार करने चाहिए। राजनीतिक दलों की संख्या को कानून बनाकर कम करना चाहिए। राजनेताओं के लिए नैतिकता और नैतिक सिद्धान्तों का प्रशिक्षण आयोजित होते रहना चाहिए। राजनीतिक दलों में सुधार के लिए नये कानूनों की आवश्यकता है। संचार साधनों की बढ़ती भूमिका के कारण उनके लिये दिशा-निर्देश और कानूनों की आवश्यकता है।

प्रश्न 3. क्षेत्रवाद का राष्ट्रीय एकता पर क्या प्रभाव पड़ता है ? लिखिए।

उत्तर भारत एक विशाल राष्ट्र है। विशालता के कारण भौगोलिक, भाषायी, जातीय, साम्प्रदायिक तथा धार्मिक विभिन्नताओं का होना स्वाभाविक है। देश का कोई भाग उपजाऊ तथा कोई रेतीला तथा पथरीला है। भाषा की दृष्टि से अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं। धर्म की दृष्टि से अनेक धर्मों के अनुयायी रहते हैं। इस प्रकार भारत में अनेक भाषाएँ, धर्म और रहन सहन की विधियाँ पायी जाती हैं परन्तु जब इन विभिन्नताओं के कारण विभिन्न वर्गों द्वारा अपनी भाषा, क्षेत्र, धर्म और अपने राज्यों के हितों को अधिक प्रधानता दी जाती है तो क्षेत्रीय आकांक्षाएँ जन्म लेती हैं। क्षेत्रवाद का प्रभाव क्षेत्रवाद राष्ट्र की एकता में बहुत बड़ी बाधा है। क्षेत्रवाद से प्रभावित होकर अनेक राजनीतिक दलों का निर्माण हुआ है। इनमें डी. एम. के., तेलुगूदेशम, अकाली दल तथा असम गण परिषद आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। ये दल क्षेत्रवाद की भावना से प्रेरित होकर कार्य करते हैं और राष्ट्रीय हितों की परवाह नहीं करते। इसी कारण मतदाता क्षेत्रवाद के आधार पर वोट डालते हैं और राष्ट्रीय हितों को अनदेखा कर देते हैं। क्षेत्रवाद आन्दोलनों को जन्म देता है। गोरखालैण्ड आन्दोलन, पंजाब के उग्रवादियों द्वारा खालिस्तान की माँग तथा कुछ वर्ष पूर्व-दक्षिण के राज्यों द्वारा भारत से अलग होने की माँग इसके स्पष्ट उदाहरण हैं। अत: क्षेत्रवाद ने पृथक्वाद को जन्म दिया है। इनके कारण देश में समय-समय पर दंगे-फसाद आदि होते रहते हैं। इस प्रकार क्षेत्रवाद राष्ट्र की एकता में बाधक है।

.

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. लोकतन्त्र में आम सहमति से जो फैसले लिये जाते हैं उनका क्या लाभ होता है ?

उत्तर- लोकतन्त्र में आम सहमति से लिया गया कोई भी फैसला वैध होता है क्योंकि वह जनता को मंजूर होता है। इस प्रकार के फैसले वास्तव में लोगों की समस्या का समाधान करते हैं।

प्रश्न 2. प्रजातन्त्र में बहुमत के शासन का क्या आशय होता है ?

 उत्तर- प्रजातन्त्र में बहुमत के शासन का आशय होता है कि हर निर्णय या चुनाव में अलग-अलग लोग और समूह बहुमत का निर्माण कर सकते हैं या बहुमत में हो सकते हैं।

प्रश्न 3. आप कैसे कह सकते हैं कि लोकतान्त्रिक सरकार वैध होती है ?

उत्तर- लोकतान्त्रिक सरकार को लोगों द्वारा चुना जाता है इसलिए ऐसी सरकार वैध होती है।

प्रश्न 4. लोकतान्त्रिक सरकारों से क्या उम्मीदें करना उचित है ?

उत्तर- एक व्यापक धरातल पर लोकतान्त्रिक सरकारों से यह उम्मीद करना उचित ही है कि वे लोगों की जरूरतों और माँगों का ध्यान रखने वाली हों और भ्रष्टाचार से मुक्त शासन दें।

 प्रश्न 5. तानाशाही का क्या आशय है ?

उत्तर- तानाशाही सरकार का वह रूप है जिसमें एक व्यक्ति ( तानाशाह) अथवा दल संवैधानिक अथवा वैध सरकार का तख्ता पलटकर सत्ता हथिया लेते हैं और उसके पश्चात् शासन को अपनी इच्छानुसार चलाता है।

 प्रश्न 6. लोकतन्त्र में निर्णय लेने में देरी क्यों होती है ?

उत्तर- लोकतन्त्र में निर्णय सोच-समझकर तथा विचार-विमर्श करके लिये जाते हैं, इस कारण निर्णय लेने में देरी होती है।

प्रश्न 7. आर्थिक विकास किस पर निर्भर करता है ?

उत्तर- आर्थिक विकास कई कारकों, जैसे देश की जनसंख्या के आकार, वैश्विक स्थिति, अन्य राष्ट्रों से सहयोग तथा देश द्वारा तय की गई आर्थिक प्राथमिकताओं पर निर्भर करता है।

 

प्रश्न 8. लोकतन्त्र में सबसे बड़ी चिन्ता क्या होती है ?

उत्तर- लोकतन्त्र में सबसे बड़ी चिन्ता यह होती है कि लोगों का अपना शासक चुनने का अधिकार और शासकों पर नियन्त्रण बरकरार रहे।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. लोकतन्त्र में नागरिकों की भूमिका संक्षेप में बताइए।

 उत्तर – ( 1 ) नागरिक देश की समस्याओं और मुद्दों के प्रति सचेत रहते हैं।

(2) नागरिक अपने अधिकारों और स्वतन्त्रता के लिए प्रयास करते हैं और लोकतान्त्रिक व्यवस्था से लाभ उठाते हैं।

(3) वे कानून व्यवस्था के पालन में सहयोग करते हैं।

(4) वे अपने अधिकारों और कर्त्तव्यों के प्रति सचेत रहते हैं।

प्रश्न 2. लोकतन्त्र के परिणामों से क्या अपेक्षाएँ हैं ? व्याख्या कीजिए।

उत्तर-(1) एक सरकार जिसे चुना जाता है और जो लोगों के प्रति उत्तरदायी होती है, उसे लोकतान्त्रिक सरकार कहा जाता है।

(2) एक सरकार जो लोगों की आवश्यकताओं के प्रति जिम्मेदार होती है।

(3) सभी प्रकार के सामाजिक विभाजनों को अनुकूल बनाती है।

(4) यह व्यक्ति की स्वतंत्रता व बड़प्पन के लिए आश्वस्त करती है।

प्रश्न 3. लोकतन्त्र में सामाजिक विभिन्नताओं के साथ सामंजस्य बैठाने की क्या दो स्थितियाँ हैं ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं को स्वयं भी दो शर्तों को पूरा करना होता है

(1) यह गौर करना जरूरी है कि लोकतन्त्र का सीधे-सीधे अर्थ बहुमत की राय से शासन करना नहीं है। बहुमत को सदा ही अल्पमत का ध्यान रखना होता है। उसके साथ काम करने की जरूरत होती है तभी सरकार जन-सामान्य की इच्छा का प्रतिनिधित्व कर पाती है। बहुमत और अल्पमत की राय कोई स्थायी चीज नहीं होती।

(2) इस बात को भी समझना आवश्यक है कि बहुमत के शासन का आशय धर्म, नस्ल अथवा भाषायी आधार के बहुसंख्यक समूह का शासन नहीं होता। बहुमत के शासन का आशय होता है कि हर फैसले या चुनाव में अलग-अलग लोग और समूह बहुमत का निर्माण कर सकते हैं या बहुमत में हो सकते हैं। लोकतन्त्र तभी तक लोकतन्त्र रहता है जब तक प्रत्येक व्यक्ति को किसी-न-किसी अवसर पर बहुमत का हिस्सा बनने का अवसर मिलता है।

प्रश्न 4. लोकतन्त्र को सबसे बेहतर क्यों बताया गया है ?

उत्तर- लोकतन्त्र को सबसे बेहतर बताया गया है, क्योंकि यह (1) नागरिकों में समानता को बढ़ावा देता है।

(2) व्यक्ति की गरिमा को बढ़ाता है।

(3) इससे फैसलों में बेहतरी आती है।

(4) टकरावों को टालने सँभालने का तरीका देता है।

(5) इसमें गलतियों को सुधारने की गुंजाइश होती है।

 

प्रश्न 5. “आज पूरी दुनिया में लोकतन्त्र के विचार का अत्यधिक समर्थन है।” कथन की पुष्टि कीजिए।

उत्तर- लोकतान्त्रिक शासन व्यवस्था लोगों की अपनी शासन व्यवस्था है। इसी कारण पूरी दुनिया में लोकतन्त्र के विचार के प्रति जबरदस्त समर्थन का भाव है। साथ दिए गए दक्षिण एशिया के प्रमाणों से जाहिर है कि यह समर्थन लोकतान्त्रिक शासन वाले मुल्कों में तो है ही उन देशों में भी है जहाँ लोकतान्त्रिक सरकारें नहीं हैं, लोग अपने द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों का शासन चाहते हैं। वे ये भी मानते हैं कि लोकतन्त्र उनके देश के लिए उपयुक्त है। अपने लिए समर्थन पैदा करने की लोकतन्त्र की क्षमता भी लोकतन्त्र का एक परिणाम ही है और इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती।

प्रश्न 6. ऐसे प्रमुख कारणों पर विचार कीजिए जो भारत में लोकतन्त्र की सफलता का वर्णन करते हैं।

उत्तर – (1) लोकतन्त्र वैध शासन मुहैया कराता है। (2) यह सरकार को सामाजिक विभिन्नताओं को अनुकूल बनाने में सहायता देता है। (3) लोकतन्त्र उत्तरदायी और जिम्मेदार है। (4) लोकतन्त्र की पारदर्शिता

 

प्रश्न 7. उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए कि आर्थिक विकास के मामले में तानाशाहियों का रिकॉर्ड थोड़ा बेहतर है

उत्तर-नीचे दी गई तालिका विभिन्न राष्ट्रों में आर्थिक विकास की दरों को स्पष्ट करती है

शासन का प्रकार और राष्ट्र

  • सभी लोकतान्त्रिक शासन

विकास दर=3.95

  • सभी तानाशाहियाँ

विकास दर=4.42

  • तानाशाही वाले गरीब राष्ट्र

विकास दर=4.34

  • लोकतन्त्र वाले गरीब राष्ट्र

विकास दर =4.28

तालिका से स्पष्ट है कि आर्थिक विकास के मामले में तानाशाहियों का रिकॉर्ड थोड़ा बेहतर है। किन्तु जब हम सिर्फ निर्धन मुल्कों के रिकॉर्ड की ही तुलना करते हैं तो अन्तर लगभग समाप्त हो जाता है।

प्रश्न 8. नीचे दिए गए ब्यौरों में लोकतन्त्र की चुनौतियों की पहचान करें। लोकतन्त्र को मजबूत बनाने के लिए नीतिगत संस्थागत उपाय भी सुझाएँ

(i) उच्च न्यायालय के निर्देश के बाद ओडिशा में दलितों के प्रवेश के लिए अलग-अलग दरवाजा रखने वाले एक मंदिर को एक ही दरवाजे से सबको प्रवेश की अनुमति देनी पड़ी ।

(ii) भारत के विभिन्न राज्यों में बड़ी संख्या में किसान आत्महत्या कर रहे हैं।

(iii) जम्मू-कश्मीर के गंडवारा में मुठभेड़ बताकर जम्मू-कश्मीर पुलिस द्वारा तीन नागरिकों की हत्या करने के आरोप को देखते हुए इस घटना की जाँच के आदेश दिए गए।

उत्तर- (i) उच्च न्यायालय का आदेश सामाजिक असमानता को समाप्त करने वाला है, क्योंकि मन्दिर में सभी को एक ही दरवाजे से प्रवेश की अनुमति प्रदान की।

(ii) भारत में किसानों द्वारा विभिन्न राज्यों में आत्महत्या की घटना आर्थिक तंगी को दर्शाती है। शासन को निर्धन किसानों को आर्थिक सहायता तथा कम ब्याज पर ऋण देने की योजना लागू करनी चाहिए।

 (iii) जम्मू-कश्मीर पुलिस द्वारा मुठभेड़ दिखाकर तीन नागरिकों की हत्या पूर्णत: अलोकतांत्रिक है, इसके लिए सरकार को तुरन्त जाँच करवानी चाहिए।

दीर्घ उत्तरीय / विश्लेषणात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. सरकार के अन्य रूपों की अपेक्षा लोकतान्त्रिक सरकारें क्यों बेहतर हैं ? तुलना कीजिए। उत्तर

लोकतान्त्रिक देश

  1. लोकतान्त्रिक देशों में विरोधी दलों को स्वतन्त्रता से कार्य करने दिया जाता है।
  2. लोकतान्त्रिक राष्ट्रों के नागरिकों को सरकार द्वारा कुछ मौलिक अधिकार प्रदान किये जाते हैं।
  3.  लोकतन्त्र में लोग अपनी सरकार की आलोचना कर सकते हैं क्योंकि उन्हें विचार व्यक्त करने की पूर्ण स्वतन्त्रता होती है।
  4. लोकतान्त्रिक देश में लोग एक निश्चित समय के बाद चुनाव द्वारा अपने शासक को बदल सकते हैं।
  5. लोकतान्त्रिक देश में मीडिया को स्वतन्त्रता होती है। ये सरकार की नीतियों की आलोचना भी कर सकती है।

गैर-लोकतान्त्रिक देश

  1. गैर-लोकतान्त्रिक राष्ट्रों में प्रायः विपक्षी दलों की कोई भूमिका नहीं होती है अर्थात् सरकार के विरुद्ध नहीं बोल सकते।
  2. गैर-लोकतान्त्रिक राष्ट्रों में नागरिकों को कोई अधिकार प्रदान नहीं किये जाते हैं।
  3. गैर-लोकतान्त्रिक देशों में लोगों को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता नहीं होती।
  4. गैर-लोकतान्त्रिक देशों में चुनाव नहीं होते हैं जिससे वह अपने शासक को नहीं बदल सकते।
  5. गैर-लोकतान्त्रिक देशों में मीडिया पर अनेक प्रकार के प्रतिबन्ध होते हैं।

प्रश्न 2. “लोकतान्त्रिक व्यवस्थाएँ असमानताओं को कम करने में ज्यादा सफल नहीं हो पाई हैं।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-(1) लोकतान्त्रिक व्यवस्था राजनीतिक समानता पर आधारित होती है। प्रतिनिधियों के चुनाव में हर व्यक्ति का महत्व बराबर होता है। व्यक्तियों को राजनीतिक क्षेत्र में परस्पर बराबरी का दर्जा मिल जाता है। लेकिन इसके साथ-साथ हम आर्थिक असमानता को भी बढ़ता हुआ पाते हैं।

(2) मुट्ठीभर धनकुबेर अपनी सम्पत्ति में अपने अनुपात से बहुत ज्यादा हिस्सा पाते हैं। इतना ही नहीं, देश की कुल आय में उनका हिस्सा भी बढ़ता गया है।

 (3) समाज के सबसे निचले हिस्से के लोगों को जीवन यापन करने के लिए काफी कम साधन मिलते हैं। उनकी आय गिरती गई है। कई बार उन्हें भोजन, कपड़ा, मकान, शिक्षा और इलाज जैसी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरी करने में कठिनाइयाँ आती है।

(4) हमारे देश में गरीब मतदाताओं की संख्या काफी बड़ी है इसलिए कोई भी राजनैतिक दल उनके मतों से हाथ धोना नहीं चाहेगा।

(5) फिर भी लोकतान्त्रिक ढंग से निर्वाचित सरकारें निर्धनता के सवाल पर उतना ध्यान देने को तत्पर नहीं जान पड़ती जितने कि आप उनसे उम्मीद करते हैं। (6) कुछ अन्य देशों में हालत इससे भी ज्यादा खराब हैं। बांग्लादेश में आधी से ज्यादा आबादी निर्धनता में जीवन गुजारती है। अनेक निर्धन देशों के लोग अपनी खाद्य आपूर्ति के लिए भी अब अमीर राष्ट्रों पर निर्भर हैं। अतः वास्तविक जीवन में लोकतान्त्रिक व्यवस्थाएँ आर्थिक असमानताओं को कम करने में ज्यादा सफल नहीं हो पायी हैं।

 

प्रश्न 3. लोकतन्त्र किस तरह उत्तरदायी, जिम्मेदार और वैध सरकार का गठन करता है ?

उत्तर- लोकतन्त्र में उत्तरदायी, जिम्मेदार और वैध सरकार का गठन निम्न प्रकार प्राप्त होता है

(i) लोकतन्त्र में इस प्रकार की सरकार प्रधान होती है जो नागरिकों के प्रति उत्तरदायी होगी।

(ii) लोकतन्त्र वह शासन प्रणाली है जिसमें शासन जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि चलाते हैं। जनता द्वारा चुनी गई सरकार जनता के प्रति उत्तरदायी भी रहती है। सरकार के शासनकाल में लोग उससे उसकी नीतियों तथा कार्यक्रमों के बारे में जानकारी ले सकते हैं।

(iii) लोकतन्त्र एक वैध सरकार होती है क्योंकि वह वैधानिक रूप से कराए गए चुनावों में जनता द्वारा चुनी जाती है। जिस राजनीतिक दल को बहुमत प्राप्त होता है वह सरकार का गठन करता है। अन्य दल विपक्षी दल की भूमिका का निर्वाह करते हैं।

(iv) लोकतन्त्र में नागरिक सरकार द्वारा लिए जाने वाले निर्णयों में हिस्सा ले सकते हैं। राजनीतिक दल तथा दबाव-समूह को भी सरकार की नीतियों की आलोचना करने का अधिकार होता है, इस कारण सरकार कोई भी निर्णय लेने से पहले जनता की भावनाओं को ध्यान में रखती है, इससे सरकार जिम्मेवार बनी रहती है।

 

प्रश्न 4. लोकतन्त्र किन स्थितियों में सामाजिक विविधता को सँभालता है और उनके बीच सामंजस्य बैठाता है ?

उत्तर- लोकतन्त्र निम्न स्थितियों में सामाजिक विविधता को सँभालता है और उनके बीच सामंजस्य बैठाता है

(i) लोकतान्त्रिक व्यवस्था से यह उम्मीद करना उचित है कि वह सद्भावपूर्ण सामाजिक जीवन उपलब्ध कराएगी। लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ अनेक तरह के सामाजिक विभाजनों को सँभालती हैं।

(ii) लोकतान्त्रिक व्यवस्थाएँ आमतौर पर अपने अन्दर की प्रतिद्वंद्विताओं को सँभालने की प्रक्रिया विकसित कर लेती है। इससे टकरावों के विस्फोटक या हिंसक रूप लेने का अंदेशा कम हो जाता है।

(iii) कोई भी समाज अपने विभिन्न समूहों के बीच के टकरावों को पूरी तरह और स्थायी रूप से नहीं खत्म कर सकता, पर हम इन अन्तरों और विभेदों का आदर करना सीख सकते हैं और इनके बीच बातचीत से सामंजस्य बैठाने का तरीका विकसित कर सकते हैं। इस काम के लिए लोकतन्त्र सबसे अच्छा है।

(iv) गैर-लोकतान्त्रिक व्यवस्थाएँ आमतौर पर अपने अन्दरूनी सामाजिक मतभेदों से आँखें फेर लेती हैं या उन्हें दबाने की कोशिश करती हैं। इस प्रकार सामाजिक अन्तर विभाजन और टकरावों को सँभालना निश्चित रूप से लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं का एक बड़ा गुण है।

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