खण्ड III : रोजाना की जिन्दगी, संस्कृति और राजनीति
अध्याय12 मुद्रण संस्कृति और आधुनिक दुनिया
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
बहु–विकल्पीय प्रश्न
- मुद्रण की सबसे पहली तकनीक किन तीन राष्ट्रों में आई थी ?
(i) चीन, जापान, कोरिया
(ii) कोरिया, जापान,पाकिस्तान
(iii) भारत, बांग्लादेश, चीन
(iv) कोरिया, चीन, पाकिस्तान।
- जापान की सबसे पुरानी पुस्तक डायमंड सूत्र कब छपी थी ?
(i) 822 ई. में
(ii) 844 ई. में
(iii) 868 ई. में
(iv) 878 ई. में।
- “मुद्रण ईश्वर की दी महानतम देन है, सबसे बड़ा तोहफा।” यह कथन किसका है ?
(i) मार्टिन लूथर
(ii) मेनोकियो
(iii) इरैस्मस
(iv) जेम्स हॉकिंग्टन।
- पत्रिकाओं का प्रकाशन किस सदी में शुरू हुआ ?
(i) सोलहवीं सदी में
(ii) सत्रहवीं सदी में
(iii) अठारहवीं सदी में
(iv) उन्नीसवीं सदी में।
- भारत में प्रेस का जनक किसे कहा जाता है ?
(i) इरैस्मस
(ii) हिकी
(iii) गोबिन्द मोहन
(iv) जयदेव।
- 1448 ई. में गुटेन्बर्ग ने कौन-सी पहली पुस्तक छापी थी ?
(i) बाइबिल
(ii) महाभारत
(iii) कुरान
(iv) रामायण।
- दो फारसी अखबार जाम-ए-जहाँनामा और शम्सुल अखबार प्रकाशित हुए-
(i) 1882 में
(ii) 1892 में
(iii) 1897 में
(iv) 1905 में।
- सोलहवीं सदी में यूरोप के बाजार में कितनी मुद्रित किताबें आईं ?
(1) 8 करोड़
(ii) 10 करोड़
(iil) 17 करोड़
(iv) 20 करोड़।
- वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट कब लागू किया गया ?
(i) 1885 ई. में
(ii) 1880 ई. में
(iii) 1878 ई. में
(iv) 1870 ई. में।
- 1857 में बाल-पुस्तकें छापने के लिए प्रेस किस देश में स्थापित हुआ?
(i) भारत
(ii) जर्मनी
(iii) इंग्लैण्ड
(iv) फ्रांस।
- ‘केशरी’ समाचार पत्र का प्रकाशन किसने किया था ?
(i) गाँधीजी
(ii) बाल गंगाधर तिलक
(iii) बिपिन चंद्र पाल
(iv) सुभाष चन्द्र बोस।
- 1876 में प्रकाशित ‘आमार जीवन’ आत्मकथा लिखी थी-
(i) आशापूर्णा देवी
(ii) रशसुंदरी देवी
(iii) शिवानी
(iv) कैलाशबाशिनी देवी।
- मार्टिन लूथर कौन था ?
(1) पत्रकार
(ii) वैज्ञानिक
(iii) धर्म सुधारक
(iv) लेखक।
- 1821 से ‘संवाद कौमुदी’ का प्रकाशन किसने शुरू किया ?
(i) विनोबा भावे
(ii) स्वामी विवेकानन्द
(iii) दयानंद सरस्वती
(iv) राजा राममोहन राय।
- किस सदी में यूरोप ने जन-साक्षरता की दिशा में लम्बी छलांग लगाई ?
(i) उन्नीसवीं सदी में
(ii) अठारहीं सदी में
(ii) सत्रहवीं सदी में
(iv) सोलहवीं सदी में।
उत्तर-1. (i), 2. (iii), 3. (i), 4. (iii), 5. (ii), 6. (i), 7. (i), 8. (iv), 9. (iii), 10. (iv), 11. (ii),
- (ii), 13. (iii), 14. (iv), 15. (iv).
- रिक्त स्थानों की पूर्ति
- चीनी बौद्ध प्रचारक 768-770 ई. के आसपास छपाई की तकनीक लेकर…………………आए।
- इंग्लैण्ड में पेनी चैपबुक्स या एकपैसिया किताबें बेचने वालों को……………कहा जाता था।
- अठारहवीं सदी के अन्त तक प्रेस……………से बनने लगे थे।
- पारम्परिक चीनी किताब………………….शैली में, किनारों को मोड़ने के बाद मिलकर बनाई जाती थी।
- एक लम्बे अरसे तक मुद्रित सामग्री का सबसे बड़ा उत्पादक……………राजतन्त्र था।
- पश्चिमी शैली के स्कूलों की जरूरतों को पूरा करने वाला प्रिंट संस्कृति का नया केन्द्र………………बन गया।
उत्तर-1. जापान, 2. चैपमेन, 3. धातु, 4. ‘एकॉर्डियन’, 5. चीनी, 6. शंघाई।
. सत्य/असत्य
- करीब सौ सालों के दौरान (1450-1550) यूरोप के ज्यादातर राष्ट्रों में छापेखाने लग गए थे।
- अठारहवीं सदी के अंत तक यूरोप के कुछ हिस्सों में तो साक्षरता दर 30 से 40 प्रतिशत तक हो गई थी।
- गुटेन्बर्ग के पिता शिक्षक थे।
- मार्टिन लूथर प्रोटेस्टेण्ट सुधारकों में से एक थे।
- उन्नीसवीं सदी से किराए पर किताब देने वाले पुस्तकालय अस्तित्व में आ गए थे।
उत्तर-1. सत्य, 2. असत्य, 3. असत्य, 4.सत्य,5. असत्य।
सही जोड़ी बनाइए
‘अ’
- आमार जीवन
- गुलामगिरी
- डायमंड सूत्र
- वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट
- प्रेस कानून पुनर्समीक्षा
‘ब’
(क) ज्योतिबा फुले
(ख) 868 ई.
(ग) 1878
(घ) रशसुन्दरी देवी
(ङ) गवर्नर जनरल बैंटिंक
उत्तर-1.→(घ), 2. →(क),3. + (ख),4. →(ग),5.→ (ङ)।
. एक शब्द/वाक्य में उत्तर
- तुलसीदास जी की सोलहवीं सदी की किताब रामचरितमानस का पहला मुद्रित संस्करण कब और कहाँ से प्रकाशित हुआ?
- शक्ति चालित बेलनाकार प्रेस को किसने बनाया था ?
- मार्टिन लूथर कौन था ?
- 1448 ई. में गुटेन्बर्ग ने कौन-सी पहली पुस्तक छापी थी ?
- जेम्स ऑगस्टन हिक्की ने कब से बंगाल गजट नामक एक साप्ताहिक पत्रिका का सम्पादन शुरू किया?
- 1857 में सिर्फ बाल-पुस्तकें छापने के लिए एक प्रेस किस देश में स्थापित किया गया ?
उत्तर-1. 1810 में कलकत्ता में, 2. रिचर्ड एम. हो, 3. धर्म सुधारक, 4. बाइबिल, 5. 1780, 6. फ्रांस।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. पंचांग से क्या अर्थ है ?
उत्तर- चाँद सूरज की गति, ज्वार भाटा के समय और लोगों के दैनिक जीवन से जुड़ी कई अहम जानकारियाँ देना वार्षिक पंचांग कहलाता है।
प्रश्न 2. चैपबुक (गुटका) से क्या आशय है ?
उत्तर- चैपबुक पॉकेट बुक के आकार की किताबों के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है। इन्हें आमतौर पर फेरीवाले बेचते थे। ये सोलहवीं सदी की मुद्रण क्रान्ति के समय से लोकप्रिय हुए।
प्रश्न 3. निरंकुशवाद से क्या अर्थ है ?
उत्तर- निरंकुशवाद राजकाज की ऐसी व्यवस्था है जिसमें किसी एक व्यक्ति को सम्पूर्ण शक्ति प्राप्त हो, और उस पर न कानूनी पाबंदी लगी हो, न ही संवैधानिक।
प्रश्न 4. उलमा व फतवा से क्या आशय है ?
उत्तर- उलमा- इस्लामी कानून और शरिया के विद्वान उलमा कहलाते थे। फतवा- अनिश्चय या असमंजस की स्थिति में इस्लामी कानून जानने वाले विद्वान, सामान्यतः मुफ्ती के द्वारा की जाने वाली वैधानिक घोषणा।
प्रश्न 5. त्रिपीटका कोरियाना क्या है ?
उत्तर- तेरहवीं शताब्दी के मध्य में, त्रिपीटका कोरियाना, वुडब्लॉक्स (Woodblocks) मुद्रण के रूप में बौद्ध ग्रंथों का कोरियाई संग्रह है। इन ग्रंथों को लगभग 80,000 वुडब्लॉक्स पर उकेरा गया था। इन्हें 2007 में यूनेस्को मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में अंकित किया गया।
प्रश्न 6. वेलम क्या है ?
उत्तर- वेलम, चर्म-पत्र या जानवरों के चमड़े से बनी लेखन सतह है। मुद्रित किताबों को सस्ती, अश्लील मानने वाले कुलीन वर्गों और भिक्षु-संघों के लिए छपी किताबों के विलासी संस्करण अभी भी बेशकीमती वेलम या चर्म पत्र पर छपते थे।
प्रश्न 7. प्लाटेन से क्या आशय है ?
उत्तर- लेटर प्रेस छपाई में प्लाटेन एक बोर्ड होता है, जिसे कागज के पीछे दबाकर टाइप की छाप ली जाती थी। पहले यह बोर्ड काठ का होता था, बाद में इस्पात का बनने लगा।
प्रश्न 8. कम्पोजीटर व गैली क्या है ? उत्तर- कम्पोजीटर-छपाई के लिए इवारत कम्पोज करने वाला व्यक्ति। गैली- धातुई फ्रेम, जिसमें टाइप बिछाकर इवारत बनाई जाती थी।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. मुद्रण की सबसे पहली तकनीक कहाँ और कैसे विकसित हुई ?
उत्तर- मुद्रण की सबसे पहली तकनीक चीन, जापान और कोरिया में विकसित हुई। यह छपाई हाथ से होती थी। तकरीबन 594 ई. से चीन में स्याही लगे काठ के ब्लॉक या तख्ती पर कागज को रगड़कर किताबें छापी जाने लगी थीं। चूँकि पतले, छिद्रित कागज के दोनों तरफ छपाई सम्भव नहीं थी, इसलिए पारम्परिक चीनी किताब ‘एकॉर्डियन’ शैली में किनारों को मोड़ने के बाद सिलकर बनाई जाती थी। किताबों का सुलेखन या खुशनवीसी करने वाले लोग दक्ष सुलेखक या खुशखत होते थे, जो हाथ से बड़े सुन्दर-सुडौल अक्षरों में सही-सही कलात्मक लिखाई करते थे।
प्रश्न 2. मुद्रित दुनिया की सबसे पुरानी मौजूद पुस्तक जिक्जी (Jikji) के बारे में बताइए।
उत्तर= कोरिया की जिक्जी मूवेबल मेटल टाइप (Movable metal type) के साथ मुद्रित दुनिया की सबसे पुरानी मौजूदा पुस्तकों में से है। इसमें जेन (Zen) बौद्ध धर्म की मुख्य विशेषताएँ हैं। पुस्तक में भारत, चीन और कोरिया के लगभग 150 बौद्ध भिक्षुओं का उल्लेख किया गया है। इसे 14वीं शताब्दी के अंत में मुद्रित किया गया था। पुस्तक का पहला खण्ड उपलब्ध नहीं है, दूसरा खण्ड फ्रांस की नेशनल लाइब्रेरी में उपलब्ध है। यह कार्य मुद्रण संस्कृति में एक महत्त्वपूर्ण तकनीकी परिवर्तन साबित हुआ। इसी कारण इसे 2001 में यूनेस्को मेमोरी ऑफ द वर्ल्ड रजिस्टर में अंकित किया गया।
प्रश्न 3. वुडब्लॉक प्रिंट या तख्ती की छपाई यूरोप में 1295 के बाद आई। कारण दें।
उत्तर- वुडब्लॉक प्रिंट या तख्ती की छपाई यूरोप में 1295 के बाद आई-इसके प्रमुख कारण थे
(1) 1295 ई. में मार्को पोलो नामक महान् खोजी यात्री चीन में काफी साल तक खोज करने के बाद इटली वापस लौटा।
(2) चीन के पास वुडब्लॉक (काठ की तख्ती) वाली छपाई की तकनीक पहले से मौजूद थी। मार्को पोलो यह ज्ञान अपने साथ लेकर लौटा।
(3) इसके बाद से ही, इतालवी भी तख्ती की छपाई से किताबें निकालने लगे और जल्द ही यह तकनीक बाकी यूरोप में फैल गई।
प्रश्न 4. मार्टिन लूथर मुद्रण के पक्ष में था और उसने इसकी खुलेआम प्रशंसा की। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- मार्टिन लूथर मुद्रण के पक्ष में था और उसने इसकी खुलेआम प्रशंसा की-धर्म सुधारक मार्टिन लूथर ने रोमन कैथलिक चर्च की कुरीतियों की आलोचना करते हुए अपनी पिच्चानवे स्थापनाएँ लिखीं। इसकी एक छपी प्रति विटेनबर्ग के गिरजाघर के दरवाजे पर टाँगी गई। इसमें लूथर ने चर्च को शास्त्रार्थ के लिए चुनौती दी थी। शीघ्र ही लूथर के लेख बड़ी संख्या में छापे और पढ़े जाने लगे। परिणामस्वरूप चर्च में विभाजन हो गया और प्रोटेस्टेण्ट धर्म सुधार की शुरूआत हुई। कुछ ही हफ्तों में न्यू टेस्टामेंट के लूथर के तर्जुमे या अनुवाद की 5,000 प्रतियाँ बिक गईं और तीन महीने के अन्दर दूसरा संस्करण निकालना पड़ा। प्रिंट के प्रति तहेदिल से कृतज्ञ लूथर ने कहा, “मुद्रण ईश्वर की दी हुई महानतम देन है, सबसे बड़ा तोहफा।”
प्रश्न 5. गुटेन्बर्ग कौन था ? मुद्रण क्रान्ति में उनका योगदान बताइए।
उत्तर- गुटेन्बर्ग के पिता व्यापारी थे और वह खेती की एक बड़ी रियासत में पल-बढ़कर बड़ा हुआ। वह बचपन से ही तेल और जैतून पेरने की मशीनें देखता आया था। बाद में उसने पत्थर पर पॉलिश करने की कला सीखी, फिर सुनारी और अन्त में उसने शीशे को इच्छित आकृतियों में गढ़ने में महारत हासिल कर ली। अपने ज्ञान और अनुभव का उपयोग उसने अपने नए आविष्कार में किया जैतून प्रेस ही प्रिंटिंग प्रेस का मॉडल या आदर्श बना और साँचे उपयोग अक्षरों की धातुई आकृतियों को गढ़ने के लिए किया गया। गुटेन्बर्ग ने 1448 तक अपना यह यंत्र बना लिया था। उसने पहली किताब छापी, वह बाइबिल थी। लगभग 180 प्रतियाँ बनाने में उसे तीन साल लगे जो उस समय के हिसाब से काफी था।
प्रश्न 6. मुद्रण ने वैज्ञानिकों तथा दार्शनिकों के विचारों से जनता को किस प्रकार अवगत कराया था ?
उत्तर- वैज्ञानिक और दार्शनिक भी आम जनता की पहुँच के बाहर नहीं रहे। प्राचीन व मध्यकालीन ग्रन्थ संकलित किए गए, और नक्शों के साथ-साथ वैज्ञानिक खाके भी बड़ी मात्रा में छापे गए। जब आइजैक न्यूटन जैसे वैज्ञानिकों ने अपने आविष्कार प्रकाशित करने शुरू किए तो उनके लिए विज्ञान-बोध में पगा एक बड़ा पाठक वर्ग तैयार हो चुका था। टॉमस पेन, वॉल्टेयर और ज्याँ जैक रूसो जैसे दार्शनिकों की किताबें भी भारी मात्रा में छपने और पढ़ी जाने लगीं। जाहिर है कि विज्ञान, तर्क और विवेकवाद के उनके विचार लोकप्रिय साहित्य में भी जगह पाने लगे।
प्रश्न 7. रोमन कॅथलिक चर्च ने सोलहवीं सदी के मध्य से प्रतिबन्धित किताबों की सूची रखनी शुरू कर दी। क्यों ?
उत्तर- रोमन कैथलिक चर्च ने सोलहवीं सदी के मध्य से प्रतिबन्धित किताबों की सूची रखनी शुरू कर दी – सोलहवीं सदी की इटली के एक किसान मेनोकियो ने अपने इलाके में उपलब्ध किताबों को पढ़ना शुरू कर दिया था। उन किताबों के आधार पर उसने बाइबिल के नए अर्थ लगाने शुरू कर दिए और उसने ईश्वर और सृष्टि के बारे में ऐसे विचार बनाए कि रोमन कैथलिक चर्च उससे क्रुद्ध हो गया। ऐसे धर्म-विरोधी विचारों को दबाने के लिए रोमन चर्च ने जब इन्क्वीजीशन (धर्म-द्रोहियों को दुरुस्त करने वाली संस्था) शुरू किया तो मेनोकियो को दो बार पकड़ा गया और आखिरकार उसे मौत की सजा दे दी गई। धर्म के पास ऐसे पाठ और उस पर उठाए जा रहे सवालों से परेशान रोमन चर्च ने प्रकाशकों और पुस्तक विक्रेताओं पर कई प्रकार के प्रतिबन्ध लगाए और 1558 ई. से प्रतिबन्धित किताबों की सूची रखने लगे।
प्रश्न 8. छोटी टिप्पणी में इनके बारे में बताएँ
(क) गुटेन्बर्ग प्रेस,
(ख) छपी किताब को लेकर इरैस्मस के विचार,
(ग) वर्नाक्युलर या देसी प्रेस एक्ट
उत्तर-(क) गुटेन्बर्ग प्रेस-गुटेन्बर्ग ने 1448 में प्रिंटिंग प्रेस का मॉडल बनाया। इस प्रेस में स्क्रू से लगा लम्बा हैंडल था। इस हैंडल की मदद से स्क्रू घुमाकर प्लाटेन को गीले कागज पर दबा दिया जाता था। गुटेन्बर्ग ने रोमन वर्णमाला के सभी 26 अक्षरों के लिए टाइप बनाए, और प्रयास किया कि इन्हें इधर-उधर ‘मूव’ कराकर या घुमाकर शब्द बनाए जा सकें। लिहाजा, इसे ‘मूवेबल टाइप प्रिंटिंग मशीन’ के नाम से जाना गया और यही अगले 300 सालों तक छपाई की बुनियादी तकनीक रही। हर छपाई के लिए तख्ती पर खास आकार उकेरने की पुरानी तकनीक की तुलना में अब किताबों का इस तरह छापना निहायत तेज हो गया। गुटेन्बर्ग प्रेस एक घण्टे में 250 पन्ने (एक साइड) छाप सकता था।
(ख) छपी किताब को लेकर इरैस्मस के विचार-लातिन के विद्वान और कैथलिक धर्म सुधारक इरैस्मस जिसने कैथलिक धर्म की ज्यादतियों की आलोचना की, पर लूथर से भी एक दूरी बनाकर रखी- प्रिंट को लेकर बहुत आशंकित था। उसने एडेजेज में लिखा-‘किताबें भिनभिनाती मक्खियों की तरह हैं, दुनिया का कौन-सा कोना है, जहाँ ये नहीं पहुँच पात ? हो सकता है कि जहाँ तहाँ, एकाध जानने लायक चीजें भी बताएँ, लेकिन इनका ज्यादा हिस्सा तो विद्वता के लिए हानिकारक ही है। बेकार ढेर है, क्योंकि अच्छी चीजों की अति भी हानिकारक ही है, इनसे बचना चाहिए ये (मुद्रक) दुनिया को सिर्फ तुच्छ (जैसे कि मेरी लिखी) चीजों से ही नहीं पाट रहे, बल्कि बकवास, बेवकूफ, सनसनीखेज, धर्मविरोधी, अज्ञानी और षड्यंत्रकारी किताबें छापते हैं, और उनकी तादाद ऐसी है कि मूल्यवान साहित्य का मूल्य ही नहीं रह जाता।
(ग) वर्नाक्युलर या देसी प्रेस एक्ट-
(1) 1857 के विद्रोह के बाद प्रेस की स्वतन्त्रता के प्रति रवैया बदल गया क्रुद्ध अंग्रेजों ने ‘देसी’ प्रेस का मुँह बन्द करने की माँग की। जैसे-जैसे भाषाई समाचार पत्र राष्ट्रवाद के समर्थन में मुखर होते गए वैसे-वैसे औपनिवेशिक सरकार में कड़े नियन्त्रण के प्रस्ताव पर बहस तेज होने लगी।
( 2 ) आइरिश प्रेस कानून के तर्ज पर 1878 में वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट लागू कर दिया गया। इससे सरकार को भाषाई प्रेस में छपी रिपोर्ट और सम्पादकीय को सेंसर करने का व्यापक अधिकार मिल गया।
(3) सरकार ने विभिन्न प्रदेशों से छपने वाले भाषाई अखबारों पर नियमित नजर रखनी शुरू कर दी।
(4) यदि किसी रिपोर्ट को बागी करार दिया जाता था तो अखबार को पहले चेतावनी दी जाती थी और अगर चेतावनी की अनसुनी हुई तो अखबार को जब्त किया जा सकता था और छपाई की मशीनें छीन ली जा सकती थीं।
दीर्घ उत्तरीय / विश्लेषणात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. अठारहवीं सदी के यूरोप में कुछ लोगों को ऐसा क्यों लगता था कि मुद्रण संस्कृति से निरंकुशवाद का अन्त और ज्ञानोदय होगा ?
उत्तर- (1) अठारहवीं सदी के मध्य तक यह आम विश्वास बन चुका था कि किताबों के द्वारा प्रगति और ज्ञानोदय होता है। कई सारे लोगों का मानना था कि किताबें दुनिया बदल सकती हैं कि वे निरंकुशवाद और आतंकी राजसत्ता से समाज को मुक्ति दिलाकर ऐसा दौर लाएँगी जब विवेक और बुद्धि का राज होगा।
(2) अठारहवीं सदी के फ्रांस के एक उपन्यासकार लुई सेबेस्तिएँ मर्सिए ने घोषणा की, “छापाखाना प्रगति का सबसे ताकतवर औजार है, इससे बन रही जनमत की आँधी में निरंकुशवाद उड़ जाएगा।” मर्सिए के उपन्यासों में नायक अक्सर किताबें पढ़ने से बदल जाते हैं। वे किताबें घोंटते हैं, किताबों की दुनिया में जीते हैं और इसी क्रम में ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं।
(3) ज्ञानोदय को लाने और निरंकुशवाद के आधार को नष्ट करने में छापेखाने की भूमिका के बारे में आश्वस्त मर्सिए ने कहा, “हे निरंकुशवादी शासको, अब तुम्हारे काँपने का वक्त आ गया है। आभासी लेखक की कलम के जोर के आगे तुम हिल उठोगे।”
(4) अठारहवीं सदी के अन्त तक यूरोप के कुछ हिस्सों में तो साक्षरता दर 60 से 80 प्रतिशत तक हो गई थी। यूरोपीय राष्ट्रों में साक्षरता और स्कूलों के प्रसार के साथ लोगों में पढ़ने का जैसे जुनून पैदा हो गया। लोगों को किताबें चाहिए थीं, इसलिए मुद्रक ज्यादा से ज्यादा किताबें छापने लगे।
प्रश्न 2. कुछ लोग किताबों की सुलभता को लेकर चिंतित क्यों थे ? यूरोप और भारत से एक-एक उदाहरण लेकर समझाएँ ।
उत्तर- हर कोई मुद्रित किताब को लेकर खुश नहीं था, जिन्होंने इसका स्वागत भी किया, उनके मन में इसको लेकर कई डर थे। कई लोगों को छपी किताब के व्यापक प्रसार और छपे शब्द की सुगमता को लेकर यह आशंका थी कि न जाने इसका आम लोगों के मस्तिष्क पर क्या प्रभाव होगा। भय था कि अगर छपे हुए और पढ़े जा रहे शब्दों पर कोई नियन्त्रण न होगा तो लोगों में बागी और अधार्मिक विचार पनपने लगेंगे। अगर ऐसा हुआ तो ‘ मूल्यवान’ साहित्य की सत्ता नष्ट हो जाएगी। धर्मगुरुओं और सम्राटों तथा कई लेखकों एवं कलाकारों द्वारा व्यक्त की गई यह चिन्ता नव-मुद्रित और नव प्रसारित साहित्य की व्यापक आलोचना का आधार बनी।
यूरोप का उदाहरण-सोलहवीं सदी की इटली के एक किसान मेनोकियो ने अपने इलाके में उपलब्ध किताबों को पढ़ना शुरू कर दिया था। उन किताबों के आधार पर उसने बाइबिल के नए अर्थ लगाने शुरू कर दिए जोकि रोमन कैथलिक चर्च के विरोधी थे। ऐसे धर्म-विरोधी विचारों को दबाने के लिए रोमन चर्च ने जब इन्क्वीजोशन शुरू किया तो मेनोकियों को पकड़ कर मौत की सजा दे दी गई। रोमन चर्च ने प्रकाशकों और पुस्तक विक्रेताओं पर कई तरह की पाबन्दियाँ लगाई और 1558 ई. से प्रतिबन्धित किताबों की सूची रखने लगे। भारत का उदाहरण- मुद्रित शब्द की ताकत का अंदाजा अक्सर सरकार द्वारा उसको नियन्त्रित करने की कोशिशों से मिलता है। औपनिवेशिक प्रशासन हमेशा तमाम किताबों और पत्र-पत्रिकाओं पर नजर रखता था। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारतीय रक्षा नियम के तहत 22 अखबारों को जमानत देनी पड़ी थी। इनमें से 18 ने सरकारी आदेश मानने की जगह खुद को बन्द कर देना उचित समझा। द्वितीय विश्व युद्ध की शुरूआत पर, भारतीय रक्षा अधिनियम पारित किया गया, ताकि युद्ध सम्बन्धी विषयों पर सेंसर किया जा सके। भारत छोड़ो आन्दोलन से जुड़ी तमाम रिपोर्ट इसी के तहत सेंसर होती थीं। अगस्त 1942 में तकरीबन 90 अखबारों का दमन किया गया।
प्रश्न 3. यूरोप में मुद्रण के आगमन पर टिप्पणी कीजिए।
अथवा
यूरोप में हाथ की छपाई की जगह यान्त्रिक मुद्रण के आने पर ही मुद्रण क्रान्ति सम्भव हुई। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- यूरोप में मुद्रण का आगमन-यूरोप में मुद्रण के आगमन के निम्न बिन्दु थे
(1) सदियों तक चीन से रेशम और मसाले रेशम मार्ग से यूरोप आते रहे थे। ग्यारहवीं सदी में चीनी कागज भी उसी रास्ते से वहाँ पहुँचा। कागज ने कातिबों या मुंशियों द्वारा सावधानीपूर्वक लिखी गई पांडुलिपियों के उत्पादन को सम्भव बनाया।
(2) 1295 ई. में मार्को पोलो नामक महान खोजी यात्री चीन में काफी साल तक खोज करने के बाद इटली वापस लौटा। चीन के पास वुडब्लॉक (काठ की तख्ती) वाली छपाई की तकनीक पहले से मौजूद थी। मार्को पोलो यह ज्ञान अपने साथ लेकर लौटा। इतालवी भी तख्ती की छपाई से किताबें निकालने लगे और यह तकनीक बाकी यूरोप में फैल गई।
(3) किताबों की माँग बढ़ने के साथ-साथ यूरोप- भर के पुस्तक विक्रेता विभिन्न देशों में निर्यात करने लगे। अलग-अलग जगहों पर पुस्तक मेले लगने लगे। बढ़ती माँग की आपूर्ति के लिए हस्तलिखित पांडुलिपियों के उत्पादन के भी नए तरीके सोचे गए।
(4) किताबों की अबाध बढ़ती माँग हस्तलिखित पांडुलिपियों से पूरी नहीं होने वाली थी। नकल उतारना बेहद खर्चीला, समयसाध्य और श्रमसाध्य कार्य था। पांडुलिपियाँ अक्सर नाजुक होती थीं, उनके लाने-ले जाने, रख-रखाव में तमाम कठिनाइयाँ थीं। इसलिए उनका सर्कुलेशन सीमित रहा तो किताबों की बढ़ती माँग के चलते वुडब्लॉक प्रिंटिंग (तख्ती की छपाई) उत्तरोत्तर लोकप्रिय होती गई। पंद्रहवीं सदी की शुरुआत तक यूरोप में बड़े पैमाने पर तख्ती की छपाई का प्रयोग करके कपड़े, ताश के पत्ते और छोटी-छोटी टिप्पणियों के साथ धार्मिक चित्र छापे जा रहे थे।
(5) किताबें छापने के लिए इससे भी तेज और सस्ती मुद्रण तकनीक की जरूरत थी। ऐसा छपाई की नयी तकनीक के आविष्कार से ही सम्भव होता जो 1430 के दशक में स्ट्रेसबर्ग के योहान गुटेन्बर्ग ने अंततः कर दिखाया गुटेन्बर्ग ने 1448 तक अपना यंत्र तैयार कर लिया था। उसने जो पहली किताब छापी, वह थी बाइबिल।
(6) करीब सौ सालों के दौरान (1450-1550) यूरोप के ज्यादातर राष्ट्रों में छापेखाने लग गए थे। जर्मनी के प्रिंटर या मुद्रक दूसरे देश जाकर नए छापेखाने खुलवाया करते थे। छपाईखाने की संख्या में वृद्धि के साथ-साथ पुस्तक उत्पादन में कमाल की बढ़ोत्तरी हुई। पंद्रदवीं सदी के दूसरे हिस्से में यूरोप के बाजार में 2 करोड़ मुद्रित पुस्तकें आईं। यह संख्या सोलहवीं सदी में 20 करोड़ हो गई। हाथ की छपाई की जगह यांत्रिक मुद्रण के आने पर ही मुद्रण क्रान्ति संभव हुई।
प्रश्न 4. मुद्रण क्रान्ति और उसके प्रभाव की विवेचना कीजिए।
अथवा
मुद्रण क्रांति के बाद मौखिक संस्कृति का मुद्रित संस्कृति में समन्वय हुआ। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- मुद्रण क्रांति क्या थी ? छापेखाने का आविष्कार महज तकनीकी दृष्टि से नाटकीय बदलाव की शुरूआत नहीं था। पुस्तक उत्पादन के नए तरीकों ने लोगों की जिन्दगी बदल दी, इसकी बदौलत सूचना और ज्ञान से, संस्था और सत्ता से उनका रिश्ता ही बदल गया। इससे लोकचेतना बदली और बदला चीजों को देखने का नजरिया मुद्रण क्रान्ति के निम्नलिखित प्रभाव हुए
(1) छापेखाने के आने से एक नया पाठक वर्ग उत्पन्न हुआ। छपाई से किताबों की कीमतें कम हुई। किताब की हर प्रति के उत्पादन में जो वक्त और श्रम लगता था, वह कम हो गया और बड़ी तादाद में प्रतियाँ छापना आसान हो गया। बाजार किताबों से पट गया, पाठक वर्ग भी बृहत्तर होता गया।
(2) किताबों तक पहुँच आसान होने से पढ़ने की एक नयी संस्कृति विकसित हुई। अब तक आम लोग मौखिक संसार में जीते थे। वे धार्मिक किताबों का वाचन सुनते थे, गाथा-गीत उनको पढ़कर सुनाए जाते थे, और किस्से भी उनके लिए बोलकर पढ़े जाते थे। ज्ञान का मौखिक लेन-देन ही होता था।
(3) छपाई क्रान्ति के पहले किताबें न केवल महँगी थीं, बल्कि उन्हें पर्याप्त मात्रा में छापना भी असम्भव था। अब किताबें समाज के व्यापक तबकों तक पहुँच सकती थीं। अगर पहले की जनता श्रोता थी, तो कह सकते हैं कि अब पाठक- जनता अस्तित्व में आ गई थी।
(4) किताबें सिर्फ साक्षर ही पढ़ सकते थे और यूरोप के अधिकांश देशों में बीसवीं सदी तक साक्षरता की दर सीमित थी। प्रकाशकों के लिए सवाल था कि लोगों में छपी किताब के प्रति दिलचस्पी कैसे जगाएँ ? इसके लिए उन्हें मुद्रित कृति की व्यापक पहुँच का ध्यान रखना था, जो नहीं पढ़ पाते थे, वे भी बोलकर पढ़े गए को सुनकर उसका लुत्फ तो उठाते ही थे ।
(5) इसलिए मुद्रकों ने लोकगीत और लोककथाएँ छापनी शुरू कर दीं और ऐसी किताबें आमतौर पर तस्वीरों से खूब सजी-धजी यानी सचित्र होती थीं फिर इन्हें सामूहिक ग्रामीण सभाओं में या शहरी शराबघरों में गाया सुनाया जाता था।
इस प्रकार मौखिक संस्कृति मुद्रित संस्कृति में दाखिल हुई और छपी सामग्री मौखिक अन्दाज में प्रसारित हुई। मौखिक और मुद्रित संस्कृतियों के बीच की विभाजक रेखा धुँधली पड़ गई। श्रोता और पाठक वर्ग एक-दूसरे में घुल-मिल गए।
प्रश्न 5. उन्नीसवीं सदी में भारत में मुद्रण-संस्कृति के प्रसार का इनके लिए क्या मतलब था ?
(i) गरीब जनता, (ii) सुधारक।
उत्तर- (i) गरीब जनता- (1) उन्नीसवीं सदी के मद्रासी शहरों में काफी सस्ती किताबें चौक-चौराहों पर बेची जाती थीं, जिसके चलते गरीब लोग भी बाजार से उन्हें खरीदने की स्थिति में आ गए थे।
(2) सार्वजनिक पुस्तकालय खुलने लगे थे जिससे पुस्तकों की पहुँच निःसंदेह बढ़ी। ये पुस्तकालय अक्सर शहरों या कस्बों में होते थे। यदा-कदा सम्पन्न गाँवों में भी स्थानीय अमीरों के लिए पुस्तकालय खोलना प्रतिष्ठा की बात थी।
(3) कारखानों में मजदूरों से बहुत ज्यादा काम लिया जा रहा था और उन्हें अपने तजुर्बी के बारे में ढंग से लिखने की शिक्षा तक नहीं मिली थी। लेकिन कानपुर के मिल-मजदूर काशीबाबा ने 1938 में छोटे और बड़े सवाल लिख और छापकर जातीय तथा वर्गीय शोषण के बीच का रिश्ता समझाने की कोशिश की।
(4) 1935 से 1955 के बीच सुदर्शन चक्र के नाम से लिखने वाले एक और मिल मजदूर का लेखन सच्ची कविताएँ नामक एक संग्रह में छापा गया। बंगलौर के सूती मिल मजदूरों ने खुद को शिक्षित करने के विचार से पुस्तकालय बनाए जिसकी प्रेरणा उन्हें बम्बई के मिल मजदूरों से मिली थी।
(ii) सुधारक- (1) उन्नीसवीं सदी के अंत से जाति भेद के बारे में तरह-तरह की पुस्तिकाओं और निबन्धों में लिखा जाने लगा था। ‘निम्न जातीय’ आन्दोलनों के मराठी प्रणेता ज्योतिबा फुले ने अपनी गुलामगिरी (1871) में जाति प्रथा के अत्याचारों पर लिखा।
(2) बीसवीं सदी के महाराष्ट्र में भीमराव अम्बेडकर और मद्रास में ई.वी. रामास्वामी नायर ने जो पेरियार के नाम से बेहतर जाने जाते हैं, जाति पर जोरदार कलम चलाई और उनके लेखन पूरे भारत में पढ़े गए।
(3) स्थानीय विरोध आन्दोलनों और सम्प्रदायों ने भी प्राचीन धर्मग्रन्थों की आलोचना करते हुए, नए और न्यायपूर्ण समाज का सपना बुनने की मुहिम में लोकप्रिय पत्र-पत्रिकाएँ और गुटके छापे।
(4) समाज-सुधारकों ने सामाजिक व धार्मिक कुरीतियों को समाप्त करने का प्रयास किया। उनकी कोशिश यह थी कि मजदूरों के बीच नशाखोरी कम हो, साक्षरता आए और उन तक राष्ट्रवाद का सन्देश भी यथासम्भव पहुँचे।
प्रश्न 6. अठारहवीं व उन्नीसवीं सदी में छापेखाने में नई तकनीकों के आने का क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर- (1) अठारहवीं सदी के अन्त तक प्रेस धातु से बनने लगे थे। पूरी उन्नीसवीं सदी के दौरान छापेखाने की तकनीक में निरन्तर सुधार हुए।
(2) उन्नीसवीं सदी के मध्य तक न्यूयॉर्क के रिचर्ड एम. हो. ने शक्ति चालित बेलनाकार प्रेस को कारगर बना लिया था। इससे प्रति घण्टे 8,000 शीट छाप सकते थे।
(3) सदी के अन्त तक ऑफसेट प्रेस आ गया था जिससे एक साथ छ: रंग की छपाई मशीन मुमकिन थी। (4) बीसवीं सदी के आरम्भ से ही बिजली से चलने वाले प्रेस के द्वारा छपाई का कार्य बड़ी तेजी सेहोने लगा।
(5) कागज डालने की विधि में सुधार हुआ, प्लेट की गुणवत्ता बेहतर हुई, स्वचलित पेपर- रील और रंगों के लिए फोटो- विद्युतीय नियन्त्रण काम में आने लगे। इस प्रकार कई छोटी-छोटी मशीनी इकाइयों में हुए सुधार की बदौलत छपे हुए पन्ने का रंग-रूप ही बदल गया।
(6) मुद्रकों और प्रकाशकों ने अपने उत्पाद बेचने के लिए नए गुर अपनाए। उन्नीसवीं सदी की पत्रिकाओं ने उपन्यासों को धारावाहिक छापा जिससे उपन्यास लिखने की एक खास शैली विकसित है। इंग्लैण्ड में 1920 के दशक में लोकप्रिय किताबें एक सस्ती श्रृंखला शिलिंग श्रृंखला के तहत छापी गईं।
(7) 1930 की आर्थिक मंदी के आने से प्रकाशकों को किताबों की बिक्री गिरने का भय हुआ। लिहाजा, पाठकों की जेब का ख्याल रखते हुए उन्होंने सस्ते पेपर बैंक या अजिल्द संस्करण छापे ।
प्रश्न 7. मुद्रण संस्कृति ने भारत में राष्ट्रवाद के विकास में क्या मदद की ?
उत्तर- मुद्रण संस्कृति ने भारत में राष्ट्रवाद के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। जन-साधारण में जागृति लाने के लिए प्रेस एक शक्तिशाली माध्यम सिद्ध हुआ। भारतीयों में राष्ट्रीयता, देश भक्ति और राजनीतिक विचारों का संचार करने में तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं ने बहुत सहायता की प्रेस द्वारा ब्रिटिश सरकार की जमकर आलोचना की गयी तथा शोषण पर आधारित उनकी नीतियों का पर्दाफाश किया गया। इस कार्य को करने के लिए जिन पत्र-पत्रिकाओं ने योगदान दिया, उनमें प्रमुख हैं-अमृत बाजार पत्रिका, हिन्दू, इण्डियन मिरर, पैट्रियेट आदि। बंगाल से तथा मद्रास से स्वदेशी मित्र, हिन्दू और केरल पत्रिका, उत्तर प्रदेश से एडवोकेट, हिन्दुस्तानी और आजाद तथा पंजाब से कोहिनूर, अखबार-ए-आम और ट्रिब्यून आदि। आधुनिक राष्ट्रवाद के प्रसार में प्रेस ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं ने सरकारी नीतियों की खुलेआम आलोचना करके लोगों में विदेशी शासन के विरोध का उत्साह जाग्रत किया। दमन की नीति के बावजूद राष्ट्रवादी अखबार देश हर कोने में बढ़ते-फैलते गए। उन्होंने औपनिवेशिक कुशासन की रिपोर्टिंग और राष्ट्रवादी ताकतों की हौसला अफजाई जारी रखी। राष्ट्रवादी आलोचना को खामोश करने की तमाम कोशिशों का उग्र विरोध हुआ। जब पंजाब के क्रांतिकारियों को 1907 में कालापानी भेजा गया तो बालगंगाधार तिलक ने अपने केसरी में उनके प्रति गहरी हमदर्दी जताई। नतीजे के तौर पर उन्हें 1908 में कैद कर लिया गया, जिसके परिणामस्वरूप सम्पूर्ण भारत में व्यापक विरोध हुए।
प्रश्न 8. क्या मुद्रण संस्कृति ने फ्रांसीसी क्रान्ति के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ रचीं ? स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर- मुद्रण संस्कृति ने फ्रांसीसी क्रान्ति के लिए निम्नलिखित अनुकूल परिस्थितियाँ रचीं, जैसा निम्न तर्कों से स्पष्ट होता है
(1) छपाई के कारण ज्ञानोदय के चिन्तकों के विचारों का प्रसार हुआ। उनके लेखन ने कुल मिलाकर परम्परा, अंधविश्वास और निरंकुशवाद की आलोचना पेश की। उन्होंने रीति-रिवाजों की जगह विवेक के शासन पर बल दिया और माँग की कि हर चीज को तर्क और विवेक की कसौटी पर ही कसा जाए।
(2) चर्च की धार्मिक और राज्य की निरंकुश सत्ता पर प्रहार करके परम्परा पर आधारित सामाजिक व्यवस्था को दुर्बल कर दिया। वॉल्टेयर और रूसो के लेखन का व्यापक पाठक वर्ग और उनके पाठक एक नए, आलोचनात्मक, सवालिया और तार्किक नजरिये से दुनिया को देखने लगे थे।
(3) छपाई ने वाद-विवाद-संवाद की नयी संस्कृति को जन्म दिया। सारे पुराने मूल्य, संस्थाओं और कायदों पर आम जनता के मध्य तर्क-वितर्क हुए और उनके पुनर्मूल्यांकन का सिलसिला शुरू हुआ। तर्क की ताकत से परिचित यह नयी ‘जनता’ धर्म और आस्था को प्रश्नांकित करने का मोल समझ चुकी थी। इस तरह बनी ‘सार्वजनिक दुनिया से सामाजिक क्रान्ति के नए विचारों का सूत्रपात हुआ।
(4) 1780 के दशक तक राजशाही और उसकी नैतिकता का मजाक उड़ाने वाले साहित्य का ढेर लग चुका था। इस प्रक्रिया में सामाजिक व्यवस्था को लेकर तमाम प्रश्न खड़े किए गए कार्टूनों और व्यंग्य चित्रों में यह भाव उभरता था कि जनता तो कठिनाइयों में फँसी है जबकि राजशाही भोग-विलास में डूबी हुई है। भूमिगत घूमने वाले इस साहित्य ने लोगों को राजतन्त्र के खिलाफ भड़काया। अर्थात् इसमें कोई शक नहीं कि छपाई ने विचारों को फैलाने में सहायता की। लेकिन याद रहे कि लोग-बाग हर तरह की सामग्री पढ़ते थे। एक तरफ वे अगर रूसो और वॉल्टेयर पढ़ रहे थे तो दूसरी तरफ चर्च और राज्य का प्रोपेगण्डा या प्रचार भी इस प्रकार मुद्रण ने उनके मानस को सीधे तौर पर भले नहीं रचा हो, पर इसने अलग ढंग से सोचने की सम्भावनाएँ जरूर खोलीं।
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