NCERT Imp Questions for Class 12 Sociology Indian Society Chapter 6 सांस्कृतिक विविधता की चुनौतियाँ [Challenges of Cultural Diversity]

अध्याय 6 सांस्कृतिक विविधता की चुनौतियाँ [Challenges of Cultural Diversity]

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहु-विकल्पीय प्रश्न

1. भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषता कौन-सी है ?

(A) अनेकता में एकता,

(B) अनेक भाषाएँ,

(C) अनेक प्रजातियाँ,

(D) अनेक धर्म।

2. भारत में सांस्कृतिक विविधता का आधार क्या है ?

(A) धर्म,

(B) भाषाएँ,

(C) जातियाँ,

(D) ये सभी ।

3. क्षेत्रवाद से क्या आशय है ?

(A) अपनी भाषा को अधिक महत्त्व देना,

(B) अपने क्षेत्र के लिए अधिकार की माँग,

(C) अन्य क्षेत्रों को हीन समझना,

(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं।

4. सामुदायिक पहचान की प्रकृति होती है

(A) अर्जित,

(B) प्रदत्त,

(C) राष्ट्रीय,

(D) परिवर्तनशील।

5. भारत में राष्ट्रीय एकीकरण को प्रभावशाली बनाने वाली संस्था का नाम है

(A) लोकतान्त्रिक,

(B) धर्मनिरपेक्ष शिक्षा,

(C) वयस्क मताधिकार,

(D) भारत का संविधान

6. अल्पसंख्यक आयोग की नियुक्ति कब हुई ?

(A) 15 अगस्त, 1971 में,

(B) 15 जनवरी, 1975 में,

(C) 28 नवम्बर, 1981 में,

(D) 15 जनवरी, 1978 में।

7. कौन-सा अधिनियम धर्मनिरपेक्षता से सम्बन्धित नहीं है ?

(A) विशेष विवाह अधिनियम, 1954,

(B) पोटा अधिनियम, 2002,

(C) अस्पृश्यता अधिनियम, 1955,

(D) बंगाल सती अधिनियम, 1829,

8. जो राज्य जनसामान्य के हितों एवं आवश्यकताओं की बिना भेदभाव के पूर्ति करने का प्रयास करता है, उसे माना जाता है

(A) निष्पक्ष राज्य,

(B) कल्याणकारी राज्य,

(C) उत्तम राज्य,

(D) कठोर राज्य।

9. धर्मनिरपेक्षता की भावना के प्रबल हो जाने पर

(A) धर्म के प्रभाव कमी आ जाती है,

(B) तर्क एवं विवेक की प्रधानता हो जाती है,

(C) वैज्ञानिक आविष्कारों को महत्त्व दिया जाता है,

(D) उपर्युक्त सभी लक्षण स्पष्ट हो जाते हैं।

10. भारत में धर्मनिरपेक्षता के सहायक कारक हैं

(A) आधुनिक शिक्षा प्रणाली,

(B) नगरीकरण एवं औद्योगिकीकरण,

(C) पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव,

(D) ये सभी।

उत्तर- 1. (A), 2. (D) 3. (B) 4. (B), 5. (D), 6. (D) 7. (B), 8. (B), 9. (D), 10. (D).

रिक्त स्थान पूर्ति

1. संस्कृति एक सीखा हुआ……………………. है।

2. व्यक्ति के प्राथमिक समाजीकरण का प्रमुख साधन……………………..है।

3. सामाजिक व्यवस्था में ………………….का गुण पाया जाता है।

4. सामुदायिक पहचानों के डर से राज्य द्वारा………………विविधता को मिटाने की कोशिश की जाती है।

5. भारत सांस्कृतिक दृष्टि से………………राष्ट्र हैं।

6. भारत में क्षेत्रवाद भाषाओं, संस्कृतियों, जनजातियों और धर्मों को………………………… के कारण पाया जाता है।

7. भाषाई राज्यों ने भारतीय एकता को…………………………करने में सहायता दी।

8. धार्मिक पहचान अन्य सभी की तुलना में…………………होती है।

9. नागरिक समाज उस व्यापक कार्यक्षेत्र को कहते हैं जो परिवार के……………………… से परे होता है।

10. भारत में अल्पसंख्यक वर्ग से सम्बन्धित निर्वाचित होने वाले भारत के पहले राष्ट्रपति……………. का नाम है।

उत्तर- 1. व्यवहार, 2. परिवार, 3. अनुकूलन, 4. सांस्कृतिक, 5. विविधतापूर्ण, 6. विविधता, 7. मजबूत, 8. सर्वोपरि, 9, निजी क्षेत्र, 10. डॉ. जाकिर हुसैन

● सत्य/असत्य

1. क्षेत्रफल के आधार पर भारत संसार का दूसरा बड़ा देश है।

2. सामुदायिक पहचान जन्म तथा अपनेपन पर आधारित होती है।

3. समाजीकरण की प्रक्रिया काफ़ी लम्बी एवं विस्तृत होती है।

4. प्रत्येक व्यक्ति की एक मातृभूति और मातृभाषा होना आवश्यक नहीं है।

5. राष्ट्र का अन्तर या भेद दर्शाने वाली सबसे नजदीकी कसौटी राज्य है।

6. क्षेत्रीय वंचन का भाव अग्नि में घी का काम करता है।

7. राष्ट्रीय एकता में साम्प्रदायिकता सहायक है।

8. संस्कृतियों के बीच विद्यमान विविधताएँ अनेक प्रकार की कठोर चुनीतियाँ प्रस्तुत करती है।

9. भारत में क्षेत्रवाद भारत की भाषाओं, संस्कृतियों, जनजातियों और धर्मों की विविधता के कारण पाया जाता है।

10. नागरिक समाज उस व्यापक कार्यक्षेत्र को कहते हैं जो परिवार के निजी क्षेत्र से परे होता है।

उत्तर- 1. असत्य, 2. सत्य, 3. सत्य, 4. असत्य, 5, सत्य, 6. सत्य, 7. असत्य, 8. सत्य, 9. सत्य, 10. सत्य

जोड़ी मिलाइए

1. आर्य प्रजाति

2. धार्मिक स्वतन्त्रता

3. अनुच्छेद 25

4. अनुच्छेद 29

5. अनुच्छेद 15

6. अनुच्छेद 16

(i) धर्म, वंश, जाति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं

(ii) नौकरी आदि में स्त्री को समान अवसर की समानता

(iii) धार्मिक संस्थाओं को स्थापित करने की स्वतन्त्रता

(iv) धार्मिक स्वतन्त्रता

(v) उत्तर भारत

(vi) 1955

उत्तर- 1. (v). 2. (vi), 3. (iv), 4. → (ii), 5. → (i), 6. → (ii).

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

1. राष्ट्रीय एकता में सर्वप्रमुख बाधक तत्व क्या है?

2. नागरिक समाज का एक उदाहरण बताइए।

3. शिक्षा की सामाजिक भूमिका क्या है?

4. भारत में अल्पसंख्यकों की श्रेणियाँ बताइए।

5. केन्द्रीय वक्फ बोर्ड का गठन किस समुदाय के हितों के लिए किया गया ?

6. भारत को प्रजातियों का मिश्रण पात्र क्यों कहा जाता है?

7. धर्मनिरपेक्षता के आवश्यक तत्त्व क्या हैं ?

8. कुछ अल्पसंख्यक समुदायों के नाम बताइए।

9. भारत एक राष्ट्र राज्य है अथवा एक राज्य राष्ट्र ?

10. भारत में आपातकाल की घोषणा किस वर्ष की गई ?

उत्तर- 1. भाषावाद एवं क्षेत्रवाद, 2. स्वयंसेवी संगठन, 3. व्यक्ति का समाजीकरण करना तथा आर्थिक विकास में योगदान करना, 4. धार्मिक, भाषाई तथा जनजातीय प्रजाति मिश्रण के कारण ही भारत को ‘प्रजातियों का मिश्रण पात्र’ कहा जाता 5. मुस्लिम समुदाय, 6. भारत में श्वेत, पीत, काली प्रजाति के लोग पाये जाते हैं। इस 7. विभेदीकरण की प्रक्रिया, तार्किकता तथा धार्मिक संकीर्णता का ध्यान 8. पारसी, जैन एवं सिक्ख, 9. राष्ट्र राज्य, 10. वर्ष 1975.

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषता क्या है ?

उत्तर भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषता है- अनेकता में एकता।

प्रश्न 2. राष्ट्रीय एकीकरण क्या है ?

उत्तर- राष्ट्रीय एकीकरण का अभिप्राय-राष्ट्र में रहने वाले निवासियों के बीच जाति. पंथ और भाषा का भेदभाव किए बिना उनमें परस्पर समान अनुभूतियों और सुख-दुःख को भावना का होना राष्ट्रीय एकीकरण कहलाता है।

प्रश्न 3. अपने क्षेत्र के प्रति उस लगाव को क्या कहते हैं, जिसमें व्यक्ति अन्य क्षेत्रों में रहने वाले व्यक्तियों के हितों की अनदेखी करता है ?

उत्तर- व्यक्ति की इस प्रवृत्ति को क्षेत्रवाद कहा जाता है।

प्रश्न 4. सत्तावादी राज्य का क्या अर्थ है ? उत्तर- सत्तावादी राज्य वे हैं, जहाँ नागरिकों की आवाज दबा दी जाती है। सरकार किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं होती है तथा वहाँ भाषण की स्वतन्त्रता, प्रेस की स्वतन्त्रता, राजनीतिक क्रियाकलाप की स्वतन्त्रता, सत्ता के दुरुपयोग से संरक्षण का अधिकार नहीं होते हैं।

प्रश्न 5. प्रदत्त पहचान से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर- जो पहचान जन्म के माध्यम से प्राप्त होती है इसमें व्यक्तियों की पसन्द-नापसन्द शामिल नहीं होती। यह पहचान उसे अपने परिवार, जाति अथवा समुदाय से प्राप्त होती है।

प्रश्न 6. पंथ निरपेक्षता से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर-पंथ निरपेक्षता से आशय ऐसे राज्य से है जो किसी विशेष धर्म का अन्य धर्मों की तुलना में पक्ष नहीं लेता है, राज्य के लिए सभी धर्म समभाव होते हैं।

प्रश्न 7. अल्पसंख्यक कौन हैं ?

उत्तर- सामान्य भाषा में अल्पसंख्यक वे लोग कहलाते हैं जो धर्म व भाषा की दृष्टि से संख्या में कम हैं या एक अन्य रूप में कहा जा सकता है कि किसी भी समाज की जनसंख्या में जिन लोगों का धर्म के आधार पर कम प्रतिनिधित्व होता है, उन्हें अल्पसंख्यक कहते हैं।

प्रश्न 8. भारत की भौगोलिक विभिन्नता का क्या अर्थ है ?

उत्तर- भारत एक विशाल देश है। सम्पूर्ण भारत का कुल क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किलोमीटर है। अत्यधिक विशाल देश होने के कारण भारत की भौगोलिक बनावट और उसकी जलवायु में बहुत भिन्नता पाई जाती है। में

प्रश्न 9. राज्य क्या है ?

उत्तर-राज्य एक ऐसा निकाय है जो एक विशेष क्षेत्र में विधि-सम्मत एकाधिकार का सफलतापूर्वक दावा करता है। इसमें राजनीतिक विधिक संस्थाओं के समुच्चय निहित होते हैं।

प्रश्न 10. नागरिक समाज किसे कहते हैं ?

उत्तर- नागरिक समाज एक संगठित सामाजिक जीवन को दर्शाता है जो कि स्वैच्छिक स्व-जनित व स्वसमर्थित होता है और एक वैधानिक व्यवस्था या सहभागिता के मूल्यों के पुंज द्वारा घिरा होता है।

प्रश्न 11. नागरिक समाज की अवधारणा के संगठन बताइए।

उत्तर- स्वदेशी लोगों का संगठन, मजदूर संगठन, किसान संगठन, स्वयंसेवी संगठन इत्यादि नागरिक समाज के संगठन है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. सामुदायिक पहचान क्या होती है और वह कैसे बनती है ?

उत्तर- सामुदायिक पहचान जन्म तथा अपनेपन पर आधारित होती है, न कि किसी अर्जित योग्यता या उपलब्धि के आधार पर किसी समुदाय में जन्म लेने के लिए हमें कुछ नहीं करना होता। इस प्रकार की पहचानें प्रदत्त कहलाती है, क्योंकि किसी परिवार या देश में जन्म लेने पर हमारा कोई वश नहीं है। इसमें पसन्द-नापसन्द शामिल नहीं होती।

हम अक्सर ऐसे समुदाय के साथ अपनी पहचान मजबूती से स्थापित कर लेते हैं। प्रदत्त पहचान तथा सामुदायिक भावना सर्वव्यापी होती हैं। प्रत्येक व्यक्ति की एक मातृभूमि, एक मातृभाषा तथा एक निष्ठा होती है। हम सभी अपनी-अपनी पहचान के प्रति प्रतिबद्ध होते हैं। समुदाय हमें मातृभाषा, मूल्य एवं संस्कृति प्रदान करते हैं जिसके माध्यम से हम विश्व का आंकलन करते हैं। समाजीकरण की प्रक्रिया में हमारे आस-पास से जुड़े लोगों के साथ निरन्तरता बढ़ती जाती है। इसमें माता-पिता सम्बन्धी, परिवार तथा समुदाय सम्मिलित होते हैं। अतएव समुदाय हमारी पहचान का एक मुख्य हिस्सा होता है।

प्रश्न 2. राज्य अक्सर सांस्कृतिक विविधता के बारे में शंकालु क्यों होते हैं?

उत्तर-सांस्कृतिक विविधता का अर्थ है- देश में अलग-अलग धर्मों समुदायों संस्कृतियों, परम्पराओं, रीति-रिवाजों का मौजूद होना। परन्तु सांस्कृतिक विविधता के कारण देश में बहुत सी समस्याएँ भी उत्पन्न होने की आशंका होती है। नागरिक अपने देश के साथ अपन रखने के साथ-साथ अपने नृजातीय, धार्मिक, भाषाई अथवा अन्य किसी प्रकार के समुदाय के साथ भी गहरा सम्बन्ध रखते हैं जिससे देश में जातिवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद, साम्प्रदायिकता आदि दंगे फैलने का डर रहता है। इससे देश में समायोजन करना कठिन हो जाता है। यही कारण है कि राज्य अक्सर सांस्कृतिक विविधता के बारे में शंकालु होते हैं।

प्रश्न 3. राष्ट्र को परिभाषित करना क्यों कठिन है ? आधुनिक समाज में राष्ट्र और राज्य कैसे सम्बन्धित हैं ?

उत्तर-राष्ट्र एक अनूठे किस्म का समुदाय होता है, जिसका वर्णन तो आसान है पर इसे परिभाषित करना कठिन है। ऐसे अनेक विशिष्ट राष्ट्र हैं जिनकी स्थापना साझे धर्म, भाषा, नृजातीयता इतिहास अथवा क्षेत्रीय संस्कृति जैसी साझी सांस्कृतिक संस्थाओं के आधार पर की गई है। किन्तु किसी राष्ट्र के पारिभाषिक लक्षणों का निर्धारित करना कठिन है। राष्ट्र समुदाय का समुदाय है। एक राजनीतिक समूहवाद के अन्तर्गत किसी देश में नागरिक अपनी आवश्यकताओं का सहभाजन करते हैं। राष्ट्र ऐसे समुदायों से निर्मित है जिनके अपने राज्य होते हैं।

आधुनिक काल में राष्ट्र और राज्यों के बीच सम्बन्ध होता है, क्योंकि एक राष्ट्र का अस्तित्व प्रदान करने वाले लोग विभिन्न राज्यों के नागरिक या निवासी होते हैं। आधुनिक युग का एक विशिष्ट लक्षण है। राजनीतिक वैधता के प्रमुख स्रोतों के रूप में लोकतन्त्र तथा राष्ट्रवाद की स्थापना, अर्थात् एक राज्य के लिए राष्ट्र एक सर्वाधिक स्वीकृत औचित्यपूर्ण आवश्यकता है। जबकि लोग राष्ट्र की वैधता के अहम् स्रोत हैं।

प्रश्न 4. आपकी राय में राज्यों के भाषाई पुनर्गठन ने भारत का हित या अहित किया है ?

उत्तर-राज्यों के भाषाई पुनर्गठन से भारत का हित-1956 में भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन किया गया। भाषा के कारण संवाद सुगम बना तथा प्रशासन और अधिक प्रभावकारी हो पाया। मद्रास प्रेसीडेंसी मद्रास, केरल तथा मैसूर राज्यों में विभाजित हो गया। राष्ट्र को राजनीतिक तथा संस्थागत जीवन की एक नई दिशा दी। कन्नड़, बंगाली, तमिल, गुजराती और भारतीय के रूप में देश में एकात्मकता बनी रही। राज्यों के पुनर्गठन से भारत का अहित-राज्यों के भाषाई पुनर्गठन ने देश का अहित भी किया इससे क्षेत्रवाद की भावना उत्पन्न हुई। अलगाववाद की भावना को बल मिला, भाषा के आधार पर राज्यों के गठन की माँग शुरू हुई। दक्षिण भारत के लोग आज भी हिन्दी भाषा को अपनी भाषा नहीं मानते हैं। वह अपनी मातृभाषा के साथ-साथ अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करना ही पसन्द करते हैं। वर्तमान में 28 राज्य तथा 8 केन्द्रशासित प्रदेश भारतीय राष्ट्र राज्य में विद्यमान है।

प्रश्न 5. ‘अल्पसंख्यक’ (वर्ग) क्या होता है ? अल्पसंख्यक वर्गों को राज्य से संरक्षण की क्यों जरूरत होती है ?

उत्तर- एक निर्धारित समाज में लोगों का ऐसा समूह जो अपनी सांस्कृतिक विशेषताओं की वजह से अल्पमत में है, अल्पसंख्यक कहलाता है। कुल जनसंख्या में से कोई समूह की धर्म, जाति या किसी और आधार पर संख्या में कम होते हैं, जैसे-भारत में मुसलमान, सिक्ख, बौद्ध, ईसाई, जैन धर्मों के लोग अल्पसंख्यक समूह है। अल्पसंख्यक वर्ग के सदस्य एक सामूहिकता का निर्माण करते हैं। इन वर्गों में अपने समूह के प्रति एकात्मकता, एकजुटता व उससे सम्बन्धित होने का प्रबल भाव होता है। एक मजबूत तथा लोकतन्त्रात्मक देश के लिए सभी समूहों व विशेष रूप से अल्पसंख्यक समूह के अधिकारों को सुनिश्चित करने वाले संवैधानिक प्रावधानों की जरूरत होती है।

प्रश्न 6. सम्प्रदायवाद या साम्प्रदायिकता क्या है ?

उत्तर- सम्प्रदायिकता का अर्थ है, धार्मिक पहचान पर आधारित आक्रामक उग्रवाद, अर्थात् अपना धर्म मानने वालों को अपना मित्र व अन्य धर्म व सम्प्रदाय मानने वाले को अपना शत्रु समझना। साम्प्रदायिकता धर्म से जुड़ी एक आक्रामक राजनीतिक विचारधारा है। साम्प्रदायिकता का सरोकार राजनीति से हैं, धर्म से नहीं। यद्यपि सम्प्रदायवादी धर्म के साथ गहन रूप से जुड़े होते हैं। एक सम्प्रदायवादी श्रद्धालु भी हो सकता है और नहीं भी हो सकता। यह अपनी धार्मिक पहचान के रास्ते में आने वाली हर चीज को रौंद डालता है। भारत में साम्प्रदायिक दंगों के उदाहरण- शिया-सुन्नी का संघर्ष, अकालियों व निरंकारियों का संघर्ष, सनातनी और आर्य समाजियों की रस्साकसी, गुजरात के दंगे इत्यादि हैं।

प्रश्न 7. भारत में वह विभिन्न भाव (अर्थ) कौन से हैं जिनमें धर्मनिरपेक्षता या धर्मनिरपेक्षतावाद को समझा जाता है ? उत्तर भारतीय सामाजिक जीवन में एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र परिवर्तन की एक विशेष प्रक्रिया क्रियाशील हुई है जो जन-जीवन के दिन-प्रतिदिन के कार्यकलापों में दिखाई देती है और वह प्रक्रिया है धर्मनिरपेक्षता या धर्मनिरपेक्षीवाद। धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है किसी भी धर्म के प्रति सापेक्ष भाव न रखना। धर्म निरपेक्षता के आधार पर राज्य के सभी धार्मिक समूहों एवं धार्मिक विश्वासों को एक समान माना जाता है। निरपेक्षता का सम्बन्ध तटस्थता है। राज्य सभी धर्मों को समानता की नजर से देखता है तथा किसी के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाता है और लोगों को किसी विशेष धर्म को मानने या पालन के लिए बाध्य नहीं किया जाता है।

प्रश्न 8. आज नागरिक समाज संगठनों की क्या प्रासंगिकता है ?

उत्तर- नागरिक समाज उस व्यापक कार्यक्षेत्र को कहते हैं जो परिवार के निजी क्षेत्र से परे होता है। किन्तु राज्य तथा बाजार दोनों ही क्षेत्रों से बाहर होता है। नागरिक समाज सार्वजनिक क्षेत्रों का गैर-राज्यीय तथा गैर-बाजारी हिस्सा ही है। इसमें व्यक्ति संस्थाओं तथा संगठनों के निर्माण के लिए एक-दूसरे के साथ जुड़ जाते हैं। इसमें नागरिकों के समूहों के द्वारा बनाई गई स्वैच्छिक संस्थाएँ शामिल होती हैं। इसमें राजनीतिक दल, जनसंचार की संस्थाएँ, मजदूर संगठन, गैर-सरकारी संगठन, धार्मिक संगठन तथा अन्य प्रकार के सामूहिक संगठन शामिल होते हैं। नागरिक समाज विशुद्ध रूप से लाभ कमाने वाली संस्था नहीं होनी चाहिए। आज नागरिक समाज संगठनों की गतिविधियाँ विभिन्न मुद्दों को लेकर व्यापक स्वरूप ग्रहण कर चुकी हैं, इनमें राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय अभिकरणों के साथ तालमेल के साथ ही प्रचार करने तथा विभिन्न आन्दोलनों में सक्रियतापूर्वक भाग लेना स्वाभाविक है। समाचार-पत्र, दूरदर्शन आदि गैर-सरकारी संगठन है।

दीर्घ उत्तरीय/विश्लेषणात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. सांस्कृतिक विविधता का क्या अर्थ है ? भारत को एक अत्यन्त विविधतापूर्ण देश क्यों माना जाता है ?

उत्तर- भारत एक बहुरंगी देश है। भारत में विभिन्न प्रकार की भू-आकृतियाँ, भाँति-भाँति की भाषा, कई प्रकार के खान-पान, विभिन्न प्रकार के जातीय समुदाय और नाना प्रकार के रहन-सहन हैं। यहाँ हर प्रदेश की अपनी सांस्कृतिक परम्परा और लोकाचार है। यह विभिन्नता और विविधता भारत को एक सुन्दर पारम्परिक और सांस्कृतिक देश बनाती है। भारत में कोई भी किसी परम्परा का उल्लंघन नहीं करते हैं। यहाँ सभी अपनी जीवन शैली और सांस्कृतिक धरोहर के साथ मिल-जुलकर रहते हैं। यहाँ पाई जाने वाली प्रमुख विविधताओं में प्रमुख इस प्रकार हैं

(1) बहुलतावादी समाज-भारत एक बहुलतावादी समाज है। यहाँ विविधता में एकता है।

(2) भाषाई विविधताएँ- भारत एक बहुभाषी राष्ट्र है। यहाँ अनेक भाषाओं व बोलियों का प्रचलन रहा है।

(3) प्रजातीय विविधताएँ-भारत को विभिन्न प्रजातियों का देश कहा जाता है।

(4) धार्मिक विविधताएँ-भारत में विभिन्न धर्मों के लोगों का निवास है। हिन्दू धर्म के अनगिनत रूपों के अतिरिक्त इस्लाम, ईसाई, सिक्ख, बौद्ध आदि धर्मों के लोग हैं।

(5) क्षेत्रीय विविधताएँ- भारत देश अनेक क्षेत्रों में विभाजित है। इन विभिन्न क्षेत्रों में भौगोलिक, जनसंख्यात्मक, आर्थिक, सांस्कृतिक, पर्यावरण सम्बन्धी विविधताएँ देखने को मिलती हैं। इन सभी विविधताओं के कारण ही भारत अत्यन्त विविधतापूर्ण देश माना जाता है।

प्रश्न 2. क्षेत्रवाद क्या होता है ? आमतौर पर यह किन कारकों पर आधारित होता है ?

उत्तर- क्षेत्रवाद एक राजनीतिक विचारधारा है जो किसी विशेष क्षेत्र, क्षेत्रों के समूह या अन्य उप-व्यावसायिक इकाई के राष्ट्रीय हितों पर केन्द्रित है। इनमें राजनीतिक विभाजन, प्रशासनिक विभाजन, सांस्कृतिक सीमाएँ, भाषाई क्षेत्र और धार्मिक जैसे अन्य मुद्दे शामिल हैं।

भारत में क्षेत्रवाद भारत की आर्थिक और सामाजिक संस्कृति में विविधता और भिन्नता के कारण आई। स्वतन्त्रता के बाद भारत सरकार ने राज्यों को अंग्रेजों द्वारा स्थापित स्थिति के अनुसार बनाकर रखा। इससे देश के अलग-अलग भागों से भाषाई आधार पर अलग-अलग राज्य की माँग उठने लगी। मद्रास राज्य में कई भाषाएँ बोलने वाले लोग रहते थे। जिस कारण उनमें कई समस्याएँ उत्पन्न होती थीं। इसीलिए भारत सरकार ने 1956 में राज्यों का भाषाई आधार पर पुनर्गठन किया तथा भाषा के आधार पर 19 राज्यों का गठन किया गया।

क्षेत्रवाद के कारक- अलग-अलग क्षेत्रों में असन्तुलन के कारण क्षेत्रवाद जन्म लेता है। कई भौगोलिक एवं सांस्कृतिक, आर्थिक असन्तुलन, प्रशासनिक कारण अलग-अलग भाषाएँ क्षेत्रवाद की भावनाओं को भड़काते हैं। कई राजनीतिक दल भी क्षेत्रीय भावनाओं को भड़काने का कार्य करते हैं।

प्रश्न 3. भारत में क्षेत्रवाद पर एक समाजशास्त्रीय निवन्ध लिखिए।

उत्तर भारत में जिन अवधारणाओं ने सामाजिक-राजनीतिक जीवन में अपना प्रभाव विस्तृत किया है, उनमें क्षेत्रीय असमानता या क्षेत्रीयता भी एक है। क्षेत्रवाद का अर्थ- क्षेत्रीयता उस अध्ययन से सम्बन्धित है, जिसमें कि एक भौगोलिक क्षेत्र तथा मानव व्यवहार के बीच पाए जाने वाले सम्बन्ध पर बल दिया जाता है। क्षेत्रवाद की प्रकृति- क्षेत्रीयता या क्षेत्रवाद एक क्षेत्र में पाए जाने वाली कुछ सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक समानताओं पर आधारित होता है। यह क्षेत्र एक ही राष्ट्र या समाज का अंग होता है। इसके अन्तर्गत अपने उस क्षेत्र के प्रति विशेष लगाव अधिक होता है। क्षेत्रीयता की वास्तविकता निम्न बातों पर निर्भर करती है (1) क्षेत्रीयता स्थानीय देशभक्ति तथा क्षेत्रीय श्रेष्ठता की भावना को बल देती है।

(2) क्षेत्रीयता क्षेत्र समूह के सदस्यों में अपने क्षेत्र के प्रति जो विशेष लगाव होता है और उनमें अपने क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत को अन्य क्षेत्र की तुलना में श्रेष्ठ समझने लगती है।

(3) क्षेत्रीयता की मात्रा उदार से उम्र तक हो सकती है।

(4) संकीर्ण क्षेत्रीयता के फलस्वरूप क्षेत्रीय स्वशासन यहाँ तक कि राजनीतिक पृथक्करण की माँग प्रस्तुत की जा सकती है। क्षेत्रवाद या क्षेत्रीयता के विकास के कारक

(1) भौगोलिक कारक-भारत चार स्पष्ट भौगोलिक क्षेत्रों में विभक्त है। उत्तर का पर्वतीय प्रदेश, गंगा-सिन्धु का विशाल मैदान, दक्षिणी पठार तथा मध्य भारत का रेगिस्तानी क्षेत्र प्रत्येक क्षेत्र के सामाजिक, धार्मिक रीति-रिवाज, भाषा, सांस्कृतिक परम्पराएँ, पोशाक, प्रकृति, खान-पान, रहन-सहन आदि दूसरे क्षेत्र से भिन्न हैं। इस भिन्नता ने क्षेत्रीयता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

(2) राजनीतिक कारक-भारत की कुछ राजनीतिक पार्टियाँ ऐसी हैं जो कि क्षेत्रीयता की भावना को भड़काकर लोकप्रिय होने का प्रयत्न करती हैं और अपने संकीर्ण स्वार्थों को सिद्ध करने में सफल होती हैं।

(3) सांस्कृतिक कारक-भारत की भौगोलिक परिस्थितियों ने भारत को विभिन्न सांस्कृतिक क्षेत्रों में भी बाँट दिया है। प्रत्येक संस्कृति का विशिष्ट सांस्कृतिक प्रतिमान होता है।

(4) भाषावाद-सांस्कृतिक कारकों में भिन्नता के कारण भाषा में भी भिन्नता है। प्रत्येक प्रादेशिक भाषा बोलने वालों का अपनी भाषा के प्रति अत्यधिक संवेगात्मक लगाव अन्य सभी भाषाओं से श्रेष्ठता का अनुभव कराता है और भाषा के आधार पर स्वायत्तता की माँग करते देखा जाता है।

क्षेत्रीयता को रोकने के उपाय

(1) केन्द्रीय सरकार की नीति कुछ इस प्रकार की होनी चाहिए कि सभी उपसंस्कृतियों का सन्तुलित आर्थिक विकास सम्भव हो जिससे कि विभिन्न क्षेत्रों के बीच आर्थिक तनाव कम-से-कम हो।

(2) सभी क्षेत्रों के लोगों को समान आर्थिक सुविधाएँ प्रदान की जाएँ जिससे कि अनावश्यक प्रतिस्पर्धा की भावना न पनप सके।

(3) जहाँ तक सम्भव हो, विभिन्न क्षेत्रों की उचित आकांक्षाओं की पूर्ति की जाए यदि उनका कोई बुरा प्रभाव राष्ट्रीय जीवन व संगठन पर न पड़ता हो।

(4) भाषा सम्बन्धी झगड़ों का शीघ्र ही हल ढूँढ लिया जाए।

(5) हिन्दी भाषा को किसी भी क्षेत्रीय समूह पर जबरदस्ती लादा न जाए, अपितु उस भाषा का प्रचार व विस्तार ढंग से किया जाए।

(6) केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल में सभी क्षेत्रों के नेताओं का सन्तुलित प्रतिनिधित्व हो ।

उपर्युक्त सभी उपाय एक-दूसरे के पूरक हैं। जब तक भारतवासी के मन में यह भावना जड़ न पकड़ ले कि हमारा क्षेत्र तो अपना है ही पर उससे भी कहीं विशाल एक क्षेत्र ‘भारत’ उससे कहीं अधिक अपना है।

प्रश्न 4. कौन-से भाषाई कारकों की वजह से भारत में विविधता पाई जाती है ?

उत्तर-भाषा विचारों के आदान-प्रदान की मूलाधार है। विश्व में कुल लगभग 2,796 भाषाएँ बोली जाती हैं, जिनमें से 1,200 भाषाएँ भारतीय जनजातियों के लोग बोलते हैं। भारत में राष्ट्रीय, स्थानीय और प्रान्तीय स्तर पर भिन्न-भिन्न भाषाएँ बोली जाती हैं। भारत में 1,652 कुल मातृभाषाएँ हैं। इनमें से केवल 22 भाषाओं को ही संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त है। देश में बोली जाने वाली कुल 826 भाषाओं में से 723 भारतीय मूल की तथा 103 विदेशी मूल अथवा गैर-भारतीय भाषाएँ हैं।

• संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त भाषाएँ-भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में भाषाओं की सूची दी गई है। पहले मान्यता प्राप्त भाषाओं की संख्या 14 थी, परन्तु 1992 में संविधान में तब्दीली के तहत इन भाषाओं की संख्या बढ़कर 18 हो गई। देवनागरी लिपि में हिन्दी को 14 सितम्बर, 1949 को राजकीय भाषा के रूप में अपनाया गया। 2003 में आठवीं अनुसूची में संशोधन करके चार अन्य भाषाओं को मान्यता दी गई।

गैर-संवैधानिक मान्यता प्राप्त प्रमुख भाषाएँ- इनमें हिमाचल प्रदेश में पहाड़ी भाषा, मंडयाली तथा सिरमारी, 673 अन्य भारतीय भाषाएँ तथा 103 गैर-भारतीय भाषाएँ अपेक्षाकृत कम लोगों द्वारा बोली जाती हैं।

भारत में भाषा परिवार भारत की सभी भाषाओं को मुख्य रूप से छ: भाषा परिवारों में बाँटा जा सकता है (1) नीग्रोइट, (2) आस्ट्रिक, (3) चीनी-तिब्बती (4) द्रविड़ (5) इंडो आर्यन, (6) अन्य भाषा परिवार। आर्यों के आगमन के साथ इंडो-आर्यन भाषाओं का आगमन हुआ। यह एक ऐसा भाषाई समूह है जो देश की कुल आबादी का तीन-चौथाई हिस्सा है। इस समूह की प्रमुख भाषाएँ हिन्दी, पंजाबी, बंगाली, गुजराती, मराठी, असमी, उड़िया, उर्दू, संस्कृत, कश्मीरी, सिन्धी, पहाड़ी, राजस्थानी भोजपुरी आदि हैं। भारत की प्रमुख भाषाओं की विभिन्न राज्यों की स्थिति-हिन्दी भाषा छः प्रदेशों की राजकीय भाषा है जिनमें हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, दिल्ली आदि हैं। इसके अतिरिक्त, असम में आसामी, कर्नाटक में कन्नड़, जम्मू-कश्मीर में लोग कश्मीरी बोलते हैं जबकि उर्दू यहाँ की राजकीय भाषा है। अंग्रेजी भाषा भारत को सम्पर्क भाषा है, परन्तु राजकीय भाषा नहीं है।

प्रश्न 5. नागरिक समाज का तात्पर्य समझाते हुए नागरिक समाज के उदाहरण बताइए।

उत्तर-नागरिक समाज शब्द उस समूह या संगठन के लिए प्रयुक्त किया जाता है जोकि सरकार के बाहर नागरिकों या जनता के हितों के लिए निर्मित होता है या बनाया जाता है। सामान्यतः श्रम संगठनों, सामाजिक संगठनों, चर्च, गैर-लाभ संगठनों व अन्य धार्मिक सामाजिक संगठनों के लिए नागरिक समाज की संज्ञा दी जाती है। कार्ल मार्क्स के अनुसार नागरिक समाज एक ऐसा आधार है जिसमें उत्पादक बल और सामाजिक सम्बन्धों का मेल होता है। पूँजीवाद और नागरिक समाज के बीच की कड़ी से सहमति जताते हुए मार्क्स का मानना था कि नागरिक समाज मोटे तौर पर पूँजीपति वर्ग के हितों का प्रतिनिधित्व करता है। नागरिक समाज के संघटक या उदाहरण-मोटे तौर पर नागरिक समाज की अवधारणा में निम्नलिखित संगठन और समूह आते हैं

(1) स्वदेशी लोगों का संगठन,

(2) बुद्धिजीवियों के संगठन,

(3) सामुदायिक कल्याण के धार्मिक व सामाजिक संगठन,

(4) मजदूर संगठन,

(5) गैर-सरकारी संगठन,

(6) किसान संगठन,

(7) युवा-दल व महिला दल,

(8) व्यावसायिक संगठन,

(9) स्वयंसेवी संगठन |

नागरिक समाज प्राचीन युग में भी थे, जैसे-ब्राह्मण सभा, वैश्य समाज आदि। इसी प्रकार, आर्य समाज, प्रार्थना समाज, ब्रह्म समाज, रामकृष्ण मिशन व ऐसे ही प्रकार के अनेक सामाजिक-धार्मिक आन्दोलनों से सम्बन्धित संगठन विकसित होते थे। 1970 के बाद में भारत में नागरिक समाजों की बाढ़ सी आ गई। रोटरी क्लब, लायन्स क्लब, भारत विकास परिषद् एवं इसी प्रकार के अन्य संगठनों का विकास महत्त्वपूर्ण है। मुख्य रूप से पिछले 100 वर्षों में विकसित हुए ‘नागरिक समाज के उदाहरण हैं- 1905 का स्वदेशी आन्दोलन, सत्याग्रह, 1973 का चिपको आन्दोलन, 1980 का जंगल बचाओ आन्दोलन, 1985 का नर्मदा बचाओ आन्दोलन, 2011 का जनलोकपाल, भ्रष्टाचार विरोधी अन्ना हजारे का आन्दोलन तथा अभी हाल ही में, प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्त्ता डॉ. योगेन्द्र यादव का स्वराज आन्दोलन भी चर्चा में है।

प्रश्न 6. भारत में नागरिक समाज का महत्त्व व नागरिक समाज की सीमाएँ क्या हैं ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- नागरिक समाज की अवधारणा आधुनिक युग की लोकप्रिय अवधारणा है। समाज का विकास करने एवं समाज में जागृति फैलाने में इसका महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। नागरिक समाज राज्य और अर्थव्यवस्था पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपनी लोकतान्त्रिक जागरूकता के माध्यम से नियन्त्रण रखता है।

सकता है नागरिक समाज की भूमिका या महत्व को निम्नलिखित बिन्दुओं पर स्पष्ट किया जा

(1) नागरिक समाज मूल रूप में समानता पर आधारित सार्वजनिक कल्याण को प्रेरित करने का कार्य करते हैं। इस उद्देश्य से नागरिक समाज आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े व्यक्तियों और समुदायों के विकास हेतु प्रयत्नशील रहते हैं।

(2) ये जनता को सरकारी योजनाओं तथा सरकार को जन समस्याओं से अवगत कराने का भी कार्य करते हैं।

(3) नागरिक समाज स्थानीय स्वशासन को सशक्त बनाते हैं।

(4) नागरिक समाज जनता की माँगों को संगठित करते हैं और जनता में राजनैतिक प्रशासनिक चेतना उत्पन्न करते हैं।

(5) नागरिक समाज स्थानीय समाज के लिए स्थानीय संस्थानों के उपयोग का रास्ता खोलते हैं।

नागरिक समाज (संगठनों) की सीमाएँ

(1) नौकरशाही का असहयोग और कभी-कभी प्रतिरोध।

(2) पर्याप्त उचित वित्तीय संसाधनों की कमी।

(3) प्रशिक्षित और पेशेवर विशेषज्ञ व कर्मचारियों की कमी।

(4) राजनैतिक हस्तक्षेप और प्रभाव।

(5) जातिवाद, साम्प्रदायिकता, निर्धनता, वर्ग संघर्ष।

अतः नागरिकों की समस्याओं की आवाज प्रदान करने जैसे अच्छे कार्य करता है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*