pariksha adhyayan class 11th इतिहास – HISTORY अध्याय 2 संविधान का राजनीतिक दर्शन MP BOARD SOLUTION

अध्याय 2
संविधान का राजनीतिक दर्शन

अध्याय 2 संविधान का राजनीतिक दर्शन
अध्याय 2
संविधान का राजनीतिक दर्शन

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहु-विकल्पीय प्रश्न

1. भारतीय संविधान के दर्शन का प्रमुख तत्व है-
(i) उदारवाद (ii) सामाजिक न्याय
(ii) धर्मनिरपेक्षता (iv) उपरोक्त सभी।

2. भारतीय संविधान की प्रस्तावना में’धर्मनिरपेक्ष’ शब्द किस संवैधानिक संशोधन द्वारा जोड़ा गया-
(i)42वें संवैधानिक संशोधन (ii) 52वें संवैधानिक संशोधन
(iii) 73वें संवैधानिक संशोधन (iv) 86वें संवैधानिक संशोधन

3. भारतीय संविधान की प्रस्तावना में जिस प्रकार का न्याय प्रदान किया गया है, वह है-
(I) आर्थिक (ii) सामाजिक
(iii) राजनीतिक (iv)उपरोक्त सभी।

4. निम्नांकित में से किसने पुरातनी हिन्दू धर्म के दायरे में सामाजिक न्याय का जज्बा जगाया-
(i) स्वामी विवेकानन्द (ii) के. सी. सेन
(iii) न्यायमूर्ति रानाडे (iv) उक्त सभी चिन्तकों ने।

5. निम्नांकित में किस राज्य को अनुच्छेद 371 द्वारा विशेष श्रेणी प्रदान की गई-
(i) उत्तराखण्ड (ii) नागालैण्ड
(iii) राजस्थान (iv) जम्मू कश्मीर।

उत्तर-1.(iv), 2. (1), 3. (iv),4.(iv), 5.(ii).

1. 19वीं शताब्दी के प्रारम्भ में ………. ने प्रेस की स्वतन्त्रता पर लगाए जा रहे प्रतिवन्धों का विरोध किया।
2. भारतीय संविधान का ………” स्वतन्त्रता, समानता, लोकतन्त्र, सामाजिक न्याय तथा राष्ट्रीय एकता के प्रति प्रतिबद्धता है।
3. ब्रिटिश सरकार के ……….. ने हमारी व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के अपहरण का प्रयास किया था।
4. हमारा संविधान सामाजिक न्याय से जुड़ा है इसका श्रेष्ठ उदाहरण अनुसूचित जाति एवं जनजाति हेतु ……..” का प्रावधान है।
5. 1947 के जापानी संविधान को साधारण बोलचाल की भाषा में……..…. संविधान कहा जाता है।

उत्तर-1. राजा राममोहन राय, 2. राजनीतिक दर्शन,
3. रौलेट एक्ट, 4. आरक्षण, 5. शान्ति।

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

1. संविधान को अंगीकार करने का प्रमुख कारण क्या है ?
उत्तर-सत्ता को निरंकुश होने से रोकना।
2. संविधान किस प्रकार के लोगों हेतु राजनीतिक आत्मनिर्णय का उद्घोष है ?
उत्तर-औपनिवेशिक दासता में रहने वाले लोगों।
3. सांस्कृतिक विशिष्टता की अभिव्यक्ति के अधिकार को और किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर-बहुसंस्कृतिवाद।
4. 1895 में अनौपचारिक रूप से संविधान बनाने का पहला प्रयास किस बिल से हुआ?
उत्तर-कांस्ट्यूिशन ऑफ इण्डिया बिल।

सत्य/असत्य

1. भारतीय संविधान ने 1964 से दो दशक पहले सकारात्मक कार्य योजना को अपना लिया था।
2. धर्म और राज्य परस्पर एक-दूसरे से सम्बद्ध होने चाहिए।
3. राष्ट्रीय स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान रौलेट एवट’ का पुरजोर समर्थन किया गया था।
4. धर्मनिरपेक्ष राज्य का अभिप्राय है कि राज्य विभिन्न धर्मों में किसी के साथ पक्षपात न करें।

उत्तर-1.सत्य, 2. असत्य, 3. असत्य, 4. सत्य।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. हमारा संविधान किसके प्रति प्रतिबद्ध है तथा उसके दर्शन की झलक संविधान के किस भाग में मिलती है?
उत्तर-भारतीय संविधान स्वतन्त्रता, लोकतन्त्र, समानता, सामाजिक न्याय तथा एकता के प्रति प्रतिबद्ध है और संविधान के दर्शन की झलक ‘प्रस्तावना’ में स्पष्ट रूप से देखने को मिलती है।

प्रश्न 2.भारतीय संविधान में पारस्परिक निषेध का क्या अर्थ है
उत्तर-भारतीय संविधान में पारस्परिक निषेध का तात्पर्य है कि राज्य एवं धर्म परस्पर एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों से दूर रहेंगे। इसका उद्देश्य व्यक्तियों की स्वतन्त्रता की सुरक्षा
की रक्षा करना है। राज्य के लिए धर्म से एक उचित दूरी बनाए रखना जरूरी है।

प्रश्न 3. संविधान राज्य पर कैसे अंकुश लगाता है ?
उत्तर-संविधान सिद्धान्तों का समूह है, जिसके माध्यम से राज्य की सीमाएँ निर्धारित की जाती हैं। इनसे किसी समूह के हितों का नुकसान नहीं होता तथा लोगों के अधिकारों का
भी दुरुपयोग नहीं होता है।

प्रश्न 4. सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार क्या है तथा इसे एक उपलब्धि क्यों माना जाता है?
उत्तर-शिक्षा, सम्पत्ति, लिंग तथा अन्य किसी भेदभाव के बिना
भाव के बिना सर्वसाधारण को मत देने का अधिकार सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार कहलाता है। 18 वर्ष की आयु पूर्ण करnचुके भारतीयों को मत देने का अधिकार है। भारत में सार्वभौमिक मताधिकार उस समय प्रदान किया गया जब पश्चिम में श्रमिकों एवं महिलाओं को मताधिकार प्रदान नहीं किया गया था।

प्रश्न 5. अनुसूचित जाति तथा जनजातियों के हितों की रक्षा के लिए संविधान में कौन-से दो उपाय किए गए हैं ?
उत्तर-(1) उचित प्रतिनिधित्व हेतु विधायिका में स्थानों का आरक्षण तथा (2) शासकीय सेवाओं एवं शिक्षा संस्थाओं में उचित आरक्षण की व्यवस्था।

प्रश्न 6. भारतीय संविधान की दो सीमाएँ क्या हैं?
उत्तर-(1) सामाजिक-आर्थिक अधिकारों को राज्य के नीति निदेशक तत्व वाले भागnमें रखा गया है तथा (2) लिंगगत न्याय के महत्वपूर्ण प्रश्नों जैसे परिवार से जुड़े मामलों पर
उचित ध्यान नहीं दिया गया है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. संविधान के प्रति राजनीतिक दर्शन के दृष्टिकोण में प्रमुख रूप से कौन-कौन सी बातें सम्मिलित हैं?
उत्तर-संविधान के प्रति राजनीतिक दर्शन के दृष्टिकोण में प्रमुख रूप से निम्न बातें
सम्मिलित हैं-
(1) कुछ प्रमुख अवधारणाओं के आधार पर संविधान का निर्माण हुआ है। इन अवधारणाओं की व्याख्या परमावश्यक है। उदाहरणार्थ अधिकार, नागरिकता तथा अल्पसंख्यक
अथवा लोकतन्त्र।
(2) संविधान का निर्माण जिन आदर्शों के बलबूते हुआ है उन पर हमारी अटूट पकड़ होनी चाहिए। हमारे समक्ष समाज एवं शासन व्यवस्था को सुस्पष्ट छवि होनी चाहिए जो संविधान
की आधारभूत अवधारणाओं की हमारी व्यवस्था से सम्बद्ध हो।
(3) भारतीय संविधान को स्पष्टतया समझने हेतु उसे संविधान सभा की बहसों के साथ जोड़ा जाना चाहिए जिससे हम सैद्धान्तिक रूप से समझ सकें कि ये आदर्श कहाँ तक और क्यों उचित हैं तथा भविष्य में इनमें क्या सुधार हो सकते हैं।
है?

प्रश्न 2. भारतीय संविधान को लोकतान्त्रिक बदलाव का साधन क्यों माना जाता
उत्तर-भारतीय संविधान को लोकतान्त्रिक बदलाव का साधन निम्न कारणों की वजह से माना जाता है-
(1) संविधान सत्ता को निरंकुश होने से बचाता है।
(2) संविधान सभी वर्गों तथा जातियों के हितों का रक्षक है।
(3) संविधान सामाजिक बदलाव के लिए शान्तिपूर्ण लोकतान्त्रिक साधन प्रदान करता है।
(4) संविधान की वजह से ही कमजोर वर्गों को सत्ता में आने का अवसर मिलता है
क्योंकि सभी को सार्वभौमिक मताधिकार दिया गया है।

प्रश्न 3. भारतीय संविधान की कोई तीन महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ लिखिए।
उत्तर-हमारे देश के संविधान की महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ निम्न प्रकार हैं-
(1) भारतीय संविधान ने उदारवादी व्यक्तिवाद की अवधारणा पर जोर देकर एवं उसे अपनाकर मजबूती प्रदान की है। यह महत्वपूर्ण उपलब्धि है क्योंकि यह सब उस समाज में
सम्भव हुआ जहाँ सामुदायिक जीवन मूल्य व्यक्ति की स्वायत्तता को कोई महत्व नहीं देते थे।
(2) भारत के संविधान में व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को प्रभावित किए बिना सामाजिक न्याय के सिद्धान्त को स्वीकारा गया। जाति आधारित सकारात्मक कार्य योजना के प्रति संवैधानिक
वचनबद्धता से स्पष्ट है कि हमारा देश दूसरे राष्ट्रों की अपेक्षाकृत कहीं आगे है। जहाँ संयुक्त राज्य अमेरिका में सकारात्मक कार्य योजना 1964 के नागरिक आन्दोलन के बाद प्रारम्भ हुई, वहीं भारत ने इसे दो दशक पहले ही अपना लिया था।
(3) भारतीय संविधान के समूहगत अधिकार हैं। विभिन्न समुदायों के परस्पर तनाव एवं झगड़ों की पृष्ठभूमि के बावजूद हमारे संविधान ने समूहगत अधिकार उदाहरणार्थ सांस्कृतिक
विशिष्टता की अभिव्यक्ति का अधिकार इत्यादि प्रदान किए। भारतीय संविधान शिल्पियों ने बहुसंस्कृतिवाद को दृष्टिगत रखते हुए समूहगत अधिकारों का पूर्णरूपेण ध्यान रखा।

प्रश्न 4. भारतीय संविधान को उदारवादी क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-हमारे देश का संविधान सामाजिक न्याय से सम्बद्ध (जुड़ा) है। इसका श्रेष्ठ उदाहरण अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लिए समुचित आरक्षण का प्रावधान
है। भारतीय संविधान शिल्पियों को पूरा विश्वास था कि केवल समता का अधिकार दे देना इन वर्गों के साथ शताब्दियों से हो रहे अन्याय का प्रतिकार नहीं है। अत: उन्होंने इन वर्गों के हितों को प्रोत्साहित करने हेतु विशेष संवैधानिक उपायों के अन्तर्गत समुचित आरक्षण का प्रावधान किया। भारतीय संविधान का उदारवाद सामुदायिक जीवन मूल्यों का प्रबल हिमायती (पक्षधर) है। ऐसे ही संविधान के एक उदारवादी दृष्टिकोण का एक अन्य श्रेष्ठ उदाहरण धार्मिक समुदायों
को अपने शिक्षा संस्थान स्थापित करने का अधिकार है। हमारे देश के संविधान की यह उपलब्धि इस वजह से महत्वपूर्ण कही जा सकती है कि यह एक ऐसे समाज में किया गया जहाँ अनेक धार्मिक एवं भाषाई समुदाय के लोग हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. विवेचना कीजिए कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है।
उत्तर-भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य
हालांकि प्राचीनकाल में भारत में धर्म की अत्यधिक उपयोगिता थी और भारतीय सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन धर्म से ओत-प्रोत था लेकिन वर्तमा में देश लोकतान्त्रिक गणराज्य, नैतिकता, आध्यात्मिकता तथा मानवीय धर्म पर आधारित है। धर्मनिरपेक्ष राज्य को
सुदृढ़ आधार देने हेतु भारतीय संविधान में निम्न प्रावधान किए गए हैं-
(1) हमारे देश के संविधान के अनुसार धर्म एवं राज्य परस्पर एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों से दूर रहेंगे तथा राज्य के दृष्टिकोण से सभी धर्म एक समान हैं।
(2) संविधान के अनुच्छेद 14 में स्पष्ट प्रावधान है कि भारतीय राज्य क्षेत्र में सभी व्यक्ति कानूनी दृष्टिकोण से एकसमान हैं तथा धर्म, जाति अथवा लिंगीय आधार पर उनके साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाएगा।
(3) भारत के संविधान द्वारा प्रत्येक नागरिक को अपनी अन्तरआत्मा अर्थात् स्वेच्छा से किसी भी धर्म का पालन करने, छोड़ने तथा प्रचार-प्रसार करने का पूर्ण अधिकार है। किसी भी नागरिक को किसी धर्म विशेष का परिपालन करने अथवा न करने के लिए मजबूर (बाध्य) नहीं किया जा सकता है।
(4) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 28 द्वारा यह प्रावधान है कि शासकीय तथा अन्य सभी गैर-सरकारी शिक्षण संस्थाओं में किसी भी प्रकार की धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती है।
(5) संविधान के अन्तर्गत धार्मिक कार्यों के लिए किए जाने वाले व्यय को भी कर मुक्त घोषित किया गया है।
उक्त से स्पष्ट है कि भारत में सच्चे अर्थों में धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना की गई है।

प्रश्न 2. भारत के संविधान की आलोचना यह कहकर की जाती है कि यह एक विदेशी दस्तावेज है। इस सम्बन्ध में अपना दृष्टिकोण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-हालांकि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि भारत का संविधान आधुनिक तथा अन्तत: पश्चिमी है। लेकिन केवल इसी तथ्य के आधार पर हम इसे पूर्णरूपेण विदेशी संविधान को उपमा नहीं दे सकते। अनेक भारतवासियों ने चिन्तन का न केवल आधुनिक तरीका अपना लिया बल्कि उसे आत्मसात भी कर लिया है। एक तरह से पश्चिमीकरण
हमारी पराम्परागत कमियों के विरोध का एक माध्यम अथवा तरीका ही था। इस परम्परा का श्रीगणेश राजा राममोहन राय से हुआ। यह प्रवृत्ति वर्तमान में भी दलितों द्वारा प्रयुक्त की जा रही है। उत्तर भारत के तिरस्कृत तथा अछूत कहलाने वाले दलित नवीन कानूनों को प्रयुक्त करने में जरा भी संकोच नहीं कर रहे। इन लोगों द्वारा समय-समय पर नवीन कानूनी प्रणाली की मदद लेकर गरिमा एवं न्याय के लिए न्यायपालिका की शरण ली है। पाश्चात्य आधुनिकता का स्थानीय सांस्कृतिक व्यवस्था से टकराव होने पर एक
नवीन प्रकार की संस्कृति का प्रादुर्भाव हुआ है। पश्चिमी आधुनिकता तथा देशी सांस्कृतिक व्यवस्था के सहयोग से उत्पन्न हुई इस संस्कृति में आधुनिकता का चरित्र स्पष्ट रूप से
परिलक्षित होता है। भारतीयों ने न केवल अपनी परम्परागत बुराइयों से ही छुटकारा पाने का प्रयास किया बल्कि अपने ऊपर लादे गए पाश्चात्य आधुनिकता के बन्धनों को भी उतार फेंकना चाहा है। हमारे संविधान शिल्पियों ने संविधान को निर्मित करते समय परम्परागत भारतीय एवं पश्चिमी मूल्यों के उचित सामंजस्य को अपनाने का पूर्णरूपेण प्रयत्न किया। अतः स्पष्ट है कि भारत का संविधान सचेत चयन तथा पारिस्थितिक अनुकूलन का प्रतिफल है, न कि किसी मॉडल की नकल! देश के संविधान को पूरी तरह से विदेशी दस्तावेज नहीं कहा जा सकता है।

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