Pariksha Adhyayan Economics इकाई 2 आँकड़ों का संग्रहण, व्यवस्थापन और प्रस्तुतीकरण in Hindi Class 11th Arthashastra mp board

इकाई 2
आँकड़ों का संग्रहण, व्यवस्थापन और प्रस्तुतीकरण

इकाई 2 आँकड़ों का संग्रहण, व्यवस्थापन और प्रस्तुतीकरण
इकाई 2
आँकड़ों का संग्रहण, व्यवस्थापन और प्रस्तुतीकरण

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

* बहु-विकल्पीय प्रश्न

1. द्वितीयक समंकों का स्रोत है-
(i) जनगणना
(ii) भारतीय रिजर्व बैंक
(iii) एन. एस. ओ. रिपोर्ट
(iv) उपर्युक्त सभी।

2. आँकड़ों के वर्गीकरण में पहला कदम है-
वर्गीकरण
(ii) सारणीयन
(iii) विश्लेषण
(iv) निर्वचन।

3. वर्ग 10-15 में वर्ग अन्तराल है-
(i) 1
(ii) 4
(iv) 10.

4. दैव प्रतिचयन की विधि नहीं है-
(i) लॉटरी रीति
(ii) ढोल घुमाकर
(ii) टिप्पेट की दैव संख्याओं द्वारा
(iv) व्यवस्थित रीति।

5. समग्र की प्रत्येक इकाई का अध्ययन करने वाली रीति है-
” संगणना
(ii) प्रतिचयन
(iii) न्यादर्श
(iv) इनमें से कोई नहीं।

6. चित्रमय प्रदर्शन का सबसे सरल रूप है-
सरल दण्ड चित्र
(ii) वृत्तीय चित्र
(iii) बहुगुणी दण्ड चित्र
(iv) आयत चित्र।

7. अनुसन्धानकर्ता कहलाता है-
(1) प्रगणक
(ii) अन्वेषक
(iv) ये सभी।

8. एक ऊर्ध्व दण्ड चित्र में तुलना का आधार है-
(i) लम्बाई
(iii) ऊँचाई
(सी) चौड़ाई
(iv) क्षेत्रफल।

9. वृत्तीय चित्र में सभी मदों को बदल देते हैं-
(i) लम्बाई में
(iii) वर्गों में
(ii) रेखाओं में
(iiकोणों में।
(i) तोरण

10. सामान्यतया खण्डित श्रेणी के लिए प्रयुक्त किया जाता है-
(iii) आयत
(iv) आवृत्ति रेखाचित्र।
(ii) सूत्रक
(ii) आवृत्ति बहुभुज

उत्तर-1. (iv), 2. (i), 3. (iii), 4. (iv), 5. (i), 6. (i), 7. (iii), 8. (ii), 9. (iv),
10. (iv)|

* रिक्त स्थान पूर्ति
1. प्राथमिक समंक ………….” होते हैं।
2. एक अच्छी प्रश्नावली का आकार होना चाहिए।
3. प्रश्नावली में ………” स्पष्ट व संक्षिप्त होने चाहिए।

4. मध्य-मूल्य = पद की निम्न सीमा + ….”
5. सारणीयन समंकों के ……… की प्रक्रिया है।
उत्तर-1, मौलिक, 2. छोटा, 3. निर्देश, 4. उच्च सीमा, 5. प्रस्तुतीकरण।

* सत्य/असत्य
1. समंक चार प्रकार के होते हैं।
2. दैव निदर्शन न्यादर्श को चुनने की सर्वोत्तम विधि मानी जाती है।
3.आँकड़ों का संग्रहण, व्यवस्थापन और प्रस्तुतीकरण चित्र सांख्यिकीय विश्लेषण में सहायता नहीं करते।
4. अनुसूची में टिप्पणियाँ दी जाती हैं।
5. वर्गीकरण तथा सारणीयन के क्रम में अन्तर होता है।
उत्तर-1. असत्य, 2. सत्य, 3. सत्य, 4. असत्य, 5. सत्य।

जोड़ी बनाइए
‘अ’
1. प्रश्नावली विधि
2. चित्रमय प्रदर्शन सम्भव है
3. आयत वर्ग नियम
4. संगणना रीति
5. निर्देशन रीति
‘व
(क) समंकों का
(ख) द्विविमा चित्र/द्वि-विभाजित
(ग) निदर्श 0
(घ) कम खर्चीली
(ङ) खर्चीली

उत्तर-1.→ (ग), 2. → (क), 3.→ (ख),4.→ (ङ),5.- (घ)।

* एक शब्द/वाक्य में उत्तर
प्रश्न 1. समंक कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर-दो प्रकार के।

प्रश्न 2. अनुसंधानकर्ता द्वारा संग्रह किये गये समंक किस प्रकार के होते हैं ?
उत्तर-प्राथमिक समंक।

प्रश्न 3. द्वितीयक आँकड़े क्या हैं ?
उत्तर-ये किसी व्यक्ति या संस्थान द्वारा पूर्वकाल में एकत्रित किये जा चुके होते हैं।

प्रश्न 4. समंकों को स्पष्ट बनाने के लिए उचित रीति से पंक्तियों और स्तम्भों में क्रमबद्ध किया जाना क्या कहलाता है ?
उत्तर-सारणीयन।

प्रश्न 5. संख्याओं के घटते हुए क्रम को क्या कहते हैं ?
उत्तर-अवरोही क्रम।

प्रश्न 6. जनसंख्या को जब स्त्री तथा पुरुष, शिक्षित तथा अशिक्षित वर्गों में बाँटा जाता है, तो यह कौन-सा वर्गीकरण कहलाता है ?
उत्तर-गुणात्मक वर्गीकरण।

प्रश्न 7. किस विधि में एक वर्गान्तर की उच्चतम सीमा अगले वर्गान्तर की निचली सीमा होती है?
उत्तर-अपवर्जी विधि।

प्रश्न 8. रिपोर्ट ऑन करेन्सी एण्ड फाइनेंस कौन प्रकाशित करता है ?
उत्तर-रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया।

प्रश्न 9. समग्र में से प्रतिदर्श चुनने की एक रीति का नाम बताइए।
उत्तर-दैव प्रतिचयन।

प्रश्न 10. वर्ग दो’ नियम किसने दिया है ?
उत्तर-लुट्स।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

1. प्राथमिक समंक से क्या आशय है ?
उत्तर-प्राथमिक समंकों से आशय ऐसे समंकों से है, जो अनुसन्धानकत्ता द्वारा स्वयं एकत्रित किये जाते हैं। प्राथमिक समंक मौलिक होते हैं, क्योंकि वे समंक नये सिरे से एकत्रित किये जाते हैं। उदाहरण के लिए, किसी फैक्ट्री के श्रमिकों के दैनिक खर्च से सम्बन्धित समंक एकत्रित करने हैं, जो अनुसन्धानको द्वारा एक-एक श्रमिक के पास प्रत्यक्ष रूप से जाकर समंक प्राप्त किये जाते हैं।

पश्न 2. प्राथमिक समंक के संग्रहण हेतु किन्हीं दो स्रोतों के नाम लिखिए।
अथवा
प्राथमिक समंकों के संकलन की कोई दो विधियाँ लिखिए।
उत्तर-(1) प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसन्धान, (2) सूचकों द्वारा प्रश्नावली भरवाकर सूचना प्राप्त करना।

प्रश्न 3. द्वितीयक समंकों से क्या आशय है ?
उत्तर-द्वितीयक समंकों से आशय ऐसे समकों से है जिनका संकलन किसी अन्य व्यक्ति या संगठन द्वारा हो चुका है और अनुसन्धानकर्ता केवल उनका प्रयोग करता है।

प्रश्न 4. द्वितीयक आँकड़ों के क्या स्रोत हैं ?
उत्तर-अन्तर्राष्ट्रीय प्रकाशन, सरकारी प्रकाशन, अर्द्ध-सरकारी प्रकाशन, अनुसन्धान संस्थाओं के प्रकाशन, पत्र-पत्रिकाएँ एवं व्यापारिक संस्थाओं के प्रकाशन।

प्रश्न 5. राष्ट्रीय न्यादर्श सर्वेक्षण संगठन (National Sample Survey Organisation) की स्थापना कब की गई?
उत्तर-राष्ट्रीय न्यादर्श सर्वेक्षण संगठन (N.S.S.O) की स्थापना सन् 1950 में की गई। वर्तमान समय में, यह तथ्य एकत्रण की प्रमुख संस्था है और देश की सांख्यिकीय व्यवस्था में इसका विशिष्ट स्थान है।

प्रश्न 6. जनगणना से क्या आशय है? भारत में प्रथम विधिवत् जनगणना कब हुई?
उत्तर-संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) के अनुसार, “जनगणना से आशय एक सुनिश्चित समयव देश या क्षेत्र में रहने वाले सभी व्यक्तियों के सम्बन्ध में जनांकिकीय, आर्थिक एवं सामाजिक तथ्यों के संकलन, सम्पादन एवं प्रकाशन करने की सम्पूर्ण प्रक्रिया से है।” भारत में पहली जनगणना सन् 1872 में आयोजित की गयी थी। परन्तु इस जनगणना में अनेक त्रुटियाँ थीं। इसलिए, सन् 1881 की जनगणना को भारत की प्रथम विधिवत जनगणना माना जाता है।

प्रश्न 6. समंकों के वर्गीकरण से क्या आशय है ?
उत्तर-संकलित समंकों को किसी गुण के आधार पर समान व असमान अलग-अलग वर्गों में बाँटने की प्रक्रिया को वर्गीकरण कहा जाता है। मुख्य वर्गों में विभाजित किया जाता है-
आँकड़ों का संग्रहण, व्यवस्थापन और प्रस्तुतीकरण

प्रश्न 8. वर्गीकरण की रीतियाँ कौन-सी हैं ?
उत्तर-तथ्यों के दो प्रकारों के आधार पर, वर्गीकरण की रीतियों को निम्नलिखित दो
(1) गुणात्मक वर्गीकरण इसका वर्गीकरण दो प्रकार का हो सकता है-
(1) सरल वर्गीकरण, (ii) बहुगुण वर्गीकरण।
(II) संख्यात्मक वर्गीकरण-(i) समयानुसार वर्गीकरण, (ii) भौगोलिक वर्गीकरण ।

प्रश्न 9, सारणीयन क्या है ?
उत्तर-सारणीयन वह विधि है जिसमें संकलित समंकों को स्पष्ट बनाने के लिए उचित रीति से पंक्तियों और स्तम्भों में क्रमबद्ध किया जाता है।

प्रश्न 10. चित्रमय प्रदर्शन से क्या आशय है ?
उत्तर-चित्रमय प्रदर्शन तथ्यों के प्रस्तुतीकरण की वह रीति है जिसमें चित्रों की भाषा में तथ्यों को दर्शाया जाता है। इसके अन्तर्गत, विभिन्न प्रकार की रोचक और आकर्षक ज्यामितीय
आकृतियाँ; जैसे-दण्ड वृत्त, आयत, वर्ग इत्यादि के साथ ही तस्वीरों, मानचित्रों और चार्टी का

प्रश्न 11. बिन्दुरेखीय प्रदर्शन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-ब्लेयर के शब्दों में, “बिन्दुरेख, समझने से सबसे अधिक सुगम, रचना करने में सबसे अधिक सरल और अत्यधिक व्यापक रूप से प्रयोग किया जाने वाला चार्ट है।” प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 12. संचयी बारम्बारता वक्र क्या है ?
उत्तर-दिये हुए वर्गान्तरों की ऊपरी सीमाओं (Upper limits) को भुजाक्ष पर और संचयी आवृत्तियों को कोटि-अक्ष पर अंकित करने से जो वक्र तैयार होता है, उसे ‘संचयी बारम्बारता वक्र’ या ‘ओजाइव वक्र’ कहते हैं।

प्रश्न 13. द्वि-विमा चित्र किसे कहते हैं ?
उत्तर-द्वि-विमा चित्र से आशय ऐसे चित्रों से है जिनके निर्माण और निर्वचन में चित्र की लम्बाई (या ऊँचाई) और चौड़ाई दोनों को ध्यान में रखा जाता है। इसलिए, इन्हें क्षेत्रफल चित्र या धरातल चित्र भी कहते हैं।

प्रश्न 14. बहुगुणी दण्ड चित्र का प्रयोग कब किया जाता है ?
उत्तर-दो या दो से अधिक सम्बन्धित अंक समूहों की कई वर्षों या स्थानों की तुलना करने के लिए बहुगुणी दण्ड चित्रों का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 15. चित्रलेख (Pictogram) क्या है ? समझाइए।
(2019)
उत्तर-इसके अन्तर्गत समंकों को सम्बन्धित वस्तुओं के आकर्षक चित्रों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। उदाहरणार्थ, जनसंख्या को मनुष्य के चित्रों द्वारा, मुद्रा की आपूर्ति को रुपये की थैली बनाकर प्रदर्शित किया जा सकता है। यह समंकों के अनुपात में बनाये जाते हैं। इन चित्रों को एक सामान्य व्यक्ति भी आसानी से समझ सकता

प्रश्न 16. सारणीयन के दो महत्व लिखिये का
(2019)
उत्तर-(1) सारणीयन द्वारा विशाल तथ्यों को थोड़े संक्षिप्त रूप में व्यक्त किया जाता है, जिससे समय तथा स्थान की बचत होती है।
(2) सारणियों में प्रविष्ट तथ्यों को बिन्दु-रेखा एवं चित्रों के रूप में सरलता से प्रस्तुत किया जा सकता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्राथमिक व द्वितीयक समंक में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
प्राथमिक समंकों की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
• संकेत : प्राथमिक समंक में देखे।
अथवा
द्वितीयक समंकों की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
प्राथमिक एवं द्वितीयक समंकों में अन्तर
उत्तर-
प्राथमिक समंक (Primary Data)
द्वितीयक समंक (Secondary Data)
प्राथमिक समंक मौलिक होते हैं। द्वितीयक समंक सांख्यिकी यन्त्रों से एक
• सांख्यिकीय अनुसंधान में उनका स्थान बार गुजर चुके होते हैं। इनका स्थान निर्मित
कच्चे माल के समान होता है। माल के समान होता है।
2. प्राथमिक समंक अनुसन्धानकर्ता द्वारा किसी द्वितीयक समंक अन्य अनुसन्धानकर्ता द्वारा
भी रीति से स्वयं संकलित किये जाते हैं। पहले से ही संकलित होते हैं।
3. प्राथमिक समंकों में धन, समय, श्रम तथा द्वितीयक समंक सरलता से उपलब्ध हो
बुद्धि का प्रयोग अधिक करना पड़ता है। जाते हैं। उनमें अधिक धन, समय, श्रम
तथा बुद्धि का प्रयोग नहीं करना पड़ता।
4. प्राथमिक समंक उद्देश्य को ध्यान में रखकर द्वितीयक समंक अपने उद्देश्य के अनुकूल
संकलित किये जाते हैं। अत: ये अनुसन्धान हों, यह आवश्यक नहीं है। उनमें प्रायः
के लिए अधिक उपयुक्त होते हैं। संशोधन की आवश्यकता होती है तथा उन्हें
अनुसन्धान के अनुकूल बनाना पड़ता है।
5. प्राथमिक समंक स्वयं अपने उद्देश्य के लिए द्वितीयक समंक कोई अन्य पक्ष उसके अपने
एकत्रित कराये जाते हैं।
| उद्देश्य के लिए एकत्रित कराता है।
जाता है।

प्रश्न 2. प्रश्नावली व अनुसूची क्या है ? इनकी क्या उपयोगिता है ?
उत्तर-प्राथमिक समंकों के संकलन में प्रश्नावली और अनुसूची का व्यापक प्रयोग किया जाता है, यद्यपि सामान्य रूप में दोनों को पर्यायवाची मान लिया जाता है। प्रश्नावली एक ऐसा फार्म या प्रपत्र है जिसमें विषय से सम्बन्धित अभीष्ट तथा विस्तृत जानकारी प्राप्त करने हेतु प्रश्नों का क्रमानुसार तथा प्राथमिकतानुसार ब्यौरा होता है, जिसका उत्तर सूचकों द्वारा दिया सांख्यिकीय अनुसन्धान की सफलता मुख्य रूप से प्रश्नावली की उत्तमता पर निर्भर करती है। एक उत्तम प्रश्नावली तैयार करने के लिए उच्चकोटि की योग्यता, दक्षता एवं अनुभव की आवश्यकता होती है। आर प्रस्तुतीकरण

प्रश्न 3. प्रश्नावली और अनुसूची में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
क. सं.
प्रश्नावली
प्रश्नावली और अनुसूची में अन्तर
अनुसूची
1.
सूचक स्वयं देता है।
|प्रश्नावली के अन्तर्गत प्रश्नों के उत्तर अनुसूची में प्रश्नों के उत्तर प्रगणक
इसमें टिप्पणियाँ दी जाती हैं।
2.
सूचकों से पूछताछ करके भरता है।
इसमें टिप्पणियाँ देने की आवश्यकता
नहीं होती, क्योंकि प्रगणक स्वयं प्रश्न
को समझा सकता है।
उत्तरों के लिए रिक्त स्थान छोड़ने की उत्तरों के लिए रिक्त स्थान छोड़ना
अनिवार्य है।
3.
4.
उत्तर-
आवश्यकता नहीं होती है।
की जाती हैं।
इसमें प्रायः डाक द्वारा सूचनाएँ प्राप्त प्रगणक अपनेआप सूचकों के पास जाकर
सूचनाएँ एकत्र करते हैं।

प्रश्न 4. प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसन्धान के गुण लिखिए।
प्रत्यक्ष व्यक्तिगत
अनुसन्धान के गुण
(1) समंकों में परिशुद्धता की मात्रा पायी जाती है।
(2) समंकों में मौलिकता का गुण पाया जाता है।
(3) समंकों का संकलन एक ही व्यक्ति द्वारा किये जाने के कारण उनमें सजातीयता व एकरूपता का गुण पाया जाता है।
(4) तुलनात्मक अध्ययन सम्भव हो जाता है।
(5) यह विधि लोचदार है, क्योंकि अनुसन्धानकर्ता उद्देश्य की पूर्ति के लिए आवश्यकतानुसार परिवर्तन कर सकता है।

प्रश्न 5. द्वितीयक समंकों के संकलन के कोई चार प्रकाशित स्रोत लिखिए।
उत्तर-प्रकाशित समंकों के प्रमुख स्रोत निम्न हैं-
(1) अन्तर्राष्ट्रीय प्रकाशन-अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा समय-समय पर विभिन्न प्रकार की सूचनाएँ प्रकाशित की जाती हैं। इन प्रकाशनों का प्रयोग द्वितीयक समंकों का संकलन करने
के लिए किया जाता है; जैसे-अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष व अन्तर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य संगठन की वार्षिक रिपोर्ट आदि।
(2) सरकारी प्रकाशन-केन्द्रीय सरकार के विभाग अथवा मन्त्रालय, राज्य सरकारों के विभिन्न मन्त्रालय और स्थानीय सरकारें, अपने-अपने विभागों से सम्बन्धित समंक एकत्रित
और प्रकाशित कराते रहते हैं। ये समंक बहुत विश्वसनीय होते हैं। उदाहरण के लिए, केन्द्रीय सांख्यिकीय संगठन (C.S.O), रिजर्व बैंक बुलेटिन (मासिक), भारत 1990, वार्षिक आर्थिक
समीक्षा इत्यादि। सम्बन्धी आँकड़े।
(3) अर्द्ध-सरकारी प्रकाशन-नागरपालिकाएँ, नगर-निगम, जिला बोर्ड,आदि विभिन्न प्रकार के आँकड़े संकलित कराकर प्रकाशित करवाते हैं। जैसे-जन्म-मरण, शिक्षा व स्वास्थ्य
(4) अनुसन्धान संस्थाओं के प्रकाशन-इन संस्थाओं द्वारा समय-समय पर शोध- सम्बन्धी कार्यों के परिणामों को प्रकाशित किया जाता है। ये समंक भी उपयोगी व विश्वसनीय
होते हैं। उदाहरण के लिए, भारतीय सांख्यिकीय संस्थान (Indian Statistical Institute), व्यावहारिक आर्थिक शोध की राष्ट्रीय परिषद् (National Council of Applied Economic.

प्रश्न 6. संगणना तथा निदर्शन रीति में अन्तर बताइए।
अथवा
संगणना व प्रतिचयन रीति में अन्तर लिखिए।
संगणना एवं निदर्शन विधि में अन्तर
उत्तर-
क्र.सं.
संगणना विधि
निदर्शन विधि
1. इसमें प्रत्येक इकाई का गहन अध्ययन इस विधि में उच्चस्तरीय शुद्धता नहीं
होता है तथा परिणामों में उच्चस्तरीय पायी जाती है तथा परिणामों में पूर्ण विश्वसनीयता विद्यमान होती है। विश्वसनीयता का अभाव होता है।
इस विधि में समय अधिक लगता है और इस विधि में समय कम लगता है और निष्कर्ष निकालने में विलम्ब हो जाता है। निष्कर्ष शीघ्रता से प्राप्त हो जाते हैं।
3. यह विधि खर्चीली है।
यह विधि अपेक्षाकृत कम खर्चीली है।
इस विधि में समग्र की प्रत्येक इकाई | समय की प्रत्येक इकाई की सूचना प्राप्त
के सम्बन्ध में व्यापक सूचना प्राप्त हो नहीं होती वरन् प्रतिनिधि मदों की सूचना
सकती है।
प्राप्त होती है।
5. यह विधि वहाँ पर उपयोगी होती है जहाँ यह विधि वहाँ पर उपयोगी सिद्ध हो
पर समग्र की इकाइयाँ विजातीय हों। सकती है जहाँ समग्र की सभी इकाइयाँ
सजातीय हों।

प्रश्न 7. समंकों के वर्गीकरण से आप क्या समझते हैं ? इसकी परिभाषा दीजिए।
उत्तर-वर्गीकरण जटिल एवं अव्यवस्थित आँकड़ों को सरल, व्यवस्थित एवं बोधगम्य रूप से प्रस्तुत करने की विधि है। अत: वर्गीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा अव्यवस्थित
आँकड़ों को व्यवस्थित रूप में प्रस्तुत करके सम्भावित एवं महत्वपूर्ण परिणाम निकाले जा सकते हैं।
होरेस सेक्राइस्ट के अनुसार, “वर्गीकरण समकों को उनकी सामान्य विशेषताओं के आधार पर क्रम या समूहों में क्रमबद्ध तथा विभिन्न परन्तु सम्बन्धित हिस्सों में अलग-अलग करने की प्रक्रिया है।”
स्मिथ के शब्दों में, “सम्बन्धित तथ्यों को व्यवस्थित करके, वर्गों में
क्रिया को वर्गीकरण कहते हैं।”
प्रस्तुत करन वर्गों में क्रमबद्ध और व्यवस्थित करने से है।
निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता है कि वर्गीकरण का आशय समंकों को विभिन्न सम्बन
प्रश्न 8. वर्गीकरण के उद्देश्य बताइए।
उत्तर-वर्गीकरण के उद्देश्य-वर्गीकरण के निम्नलिखित उद्देश्य होते हैं-
(1) सांख्यिकीय सामग्री को सरल व संक्षिप्त यनाना-वर्गीकरण का प्रमुख उद्देश्य साख्यिकीय सामग्री को सरल एवं संक्षिप्त बनाना है, जिससे उन्हें सुविधा से समझा जा सके।
सहायता के आधार पर की जाती है।
(2) आँकड़ों को तुलना योग्य बनाना-वर्गीकरण द्वारा आँकड़ों की तुलना करने में मिलती है। उदाहरण के लिए, दो राज्यों में साक्षरता की तुलना केवल वर्गीकृत तो
(3) समंकों की समानता व असमानता को स्पष्ट करना-समंकों के वर्गीकरण से समंकों की समानता व असमानता स्पष्ट हो जाती है, क्योंकि समान गुणों वाले समक साथ-साथ खे जाते हैं; जैसे-साक्षर, निरक्षर तथा विवाहित, अविवाहित आदि। अन्य क्रियाओं का आधार तैयार हो जाता है।
(4) सारणी का आधार तैयार करना-वर्गीकरण द्वारा सारणीयन तथा विश्लेषण की इस प्रकार संकलित समंकों के विश्लेषण एवं प्रस्तुतीकरण के लिए समंकों का वर्गीकरण आवश्यक होता है। बिना वर्गीकरण के, न तो समंकों को आसानी से समझा जा सकता है और न ही उनका तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकता है।
प्रश्न 9. सारणीयन क्या है ? इसके मुख्य उद्देश्य लिखिए।
उत्तर-सारणीयन वह विधि है जिसमें संकलित समकों को स्पष्ट बनाने के लिए उचित रीति से पंक्तियों और स्तम्भों में क्रमबद्ध किया जाता है। ब्लेयर के शब्दों में, “सबसे विस्तृत अर्थ में समंकों की खानों और पंक्तियों की क्रमबद्ध व्यवस्था को सारणीयन कहते हैं।”
उद्देश्य-सारणी के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
(1) समंकों को सारणीयन की सहायता से प्रस्तुत करने का मुख्य उद्देश्य सूचना को क्रमबद्ध व सुव्यवस्थित रूप में प्रस्तुत करना है।
(2) समंकों के तुलनात्मक अध्ययन में सुविधा।
(3) समंकों को कम-से-कम स्थान में संक्षिप्त रूप से प्रस्तुत करना।
(4) समस्या का सरल व स्पष्ट हो जाना।

प्रश्न 10. निदर्शन रीति के चार आवश्यक तत्वों को समझाइए।
उत्तर- निदर्शन या प्रतिचयन रीति के आवश्यक तत्व
एक निदर्शन (प्रतिचयन) रीति में निम्नलिखित आवश्यक तत्त्व होने चाहिए-
(1) प्रतिनिधित्व-प्रतिदर्श इस प्रकार का होना चाहिए कि वह समग्र की सभी विशेषताओं का पूर्ण प्रतिनिधित्व करे। यह तभी सम्भव हो सकता है जब समग्र की प्रत्येक इकाई को प्रतिदर्श के रूप में चुने जाने का समान अवसर प्राप्त हो।
(2) सजातीयता-यदि किसी समग्र में दो या दो से अधिक सैम्पल छाँटे जाएँ तो उनमें समानता होनी चाहिए, अर्थात् उनकी विशेषताएँ एक जैसी होनी चाहिए।
(3) स्वतन्त्रता-समग्र की सभी इकाइयाँ एक-दूसरे से स्वतन्त्र होनी चाहिए। इससे पर निर्भर नहीं होना अभिप्राय यह है कि किसी एक इकाई का प्रतिदर्श में शामिल होना दूसरी चाहिए।
चाहिए तभी विश्वसनीय निष्कर्ष प्राप्त होंगे।
(4) पर्याप्तता-प्रतिदर्श के रूप में चुनी जाने वाली इकाइयों की संख्या पर्याप्त होती

प्रश्न 11, दैव निदर्शन क्या है? यह स्तरित दैव निदर्शन से किस प्रकार भिन्न है?,
उत्तर-न्यादर्श को चुनने के लिए यह सर्वोत्तम विधि मानी जाती है। इस विधि के द्वारा इसमें सभी इकाइयों के चुनाव न्यादर्श के रूप में किये जाने के समान अवसर होते है। इस विधि अनुसन्धानकर्ता अपनी इच्छानुसार इकाइयों का चुनाव न्यादर्श के रूप में नहीं करता है, यकि, में सम्पूर्ण समग्र की प्रत्येक इकाई को न्यादर्श में सम्मिलित किए जाने की सम्भावना रहती है,
इसलिए इस विधि को सम्भावना या प्रायिकता न्यादर्श भी कहा जाता है।
दैव निदर्शन स्तरित दैव निदर्शन से भिन्न होता है। इसमें चुनाव के लिए किसी नियम का पालन नहीं किया जाता है। परन्तु दैव निदर्शन एक वैज्ञानिक विधि है और इसमें इकाई का चुनाव करते समय नियमों का पालन किया जाता है।

प्रश्न 12. प्रतिचयन या निदर्शन रीति के प्रमुख दोष बताइए।
उत्तर-निदर्शन विधि के निम्नलिखित दोष हैं-
(1) निदर्शन विधि से अनुसन्धान कार्य किया जाता है, तो उसमें अनुसन्धानकर्ता द्वारा पक्षपात करने की सम्भावना रहती है।
(2) निदर्शन विधि द्वारा प्राप्त समंकों में उच्च स्तर की परिशुद्धता नहीं पाई जाती है।
(3) यदि समग्र में से चुनी हुई इकाइयाँ उचित मात्रा में नहीं हैं, तो परिणाम अविश्वसनीय हो सकते हैं।
(4) यदि समग्र काफी छोटा हो, तो उसमें से न्यादर्श बनाना सम्भव नहीं होता है।

प्रश्न 13. संगणना विधि किन परिस्थितियों में उपयुक्त है ?
उत्तर-संगणना अनुसन्धान रीति का प्रयोग निम्नलिखित परिस्थितियों में उपयुक्त है-
(1) जब अनुसन्धान का क्षेत्र सीमित हो।
(2) किसी विषय के लिए गहन अध्ययन की आवश्यकता हो।
(3) अधिक परिशुद्धता की आवश्यकता हो।
(4) जहाँ विस्तृत सूचनाएँ एकत्र करनी हों।
(5) निदर्शन विधि का प्रयोग उचित न हो।

प्रश्न 14. चित्र बनाने के सामान्य नियमों को लिखिए।
उत्तर-चित्र रचना के सामान्य नियम-चित्र रचना करते समय निम्नलिखित आवश्यक बातों का ध्यान रखना अति आवश्यक है-
(1) चित्र पर उचित शीर्षक होना चाहिए, जिससे ज्ञात हो जाए कि चित्र में क्या प्रदर्शित किया गया है।
(2) चित्र आकर्षक, साफ और सुन्दर होने चाहिए। आंकड़ों का संग्रहण, व्यवस्थापन और प्रस्तुतीकरण के अनुसार होना चाहिए।
(3) चित्र न तो बहुत बड़ा होना चाहिए और न बहुत छोटा। चित्र का आकार कागज चित्र के एक कोने में कर देना चाहिए।
द्वारा तथ्यों की विशेषताओं का भली-भांति स्पष्टीकरण हो सके, इसलिए पैमाने का उल्लेख का चित्र रचना में पहले उपयुक्त पैमाना निर्धारित करना आवश्यक होता है। पैमाने उपकरणों; जैसे-परकार, पटरी इत्यादि का प्रयोग करना चाहिए। चित्र के ऊपर एक कोने में दिया जाना चाहिए।
(5) चित्र के निर्माण में स्वच्छता की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए और रेखागणितीय
(6) चित्र में प्रयुक्त रंगों या चिह्नों द्वारा किन-किन तथ्यों का प्रदर्शन किया गया है, यह

प्रश्न 15. चित्रमय प्रदर्शन की सीमाएँ लिखिए।
अथवा
रेखाचित्र प्रदर्शन की सीमाएँ लिखिए।
उत्तर-चित्रमय प्रदर्शन की सीमाएँ-चित्रमय प्रदर्शन की निम्नलिखित सीमाएँ हैं-
(1) चित्रों द्वारा यथार्थ संख्यात्मक प्रदर्शन सम्भव नहीं है। वे सन्निकट मूल्यों पर आधारित होते हैं।
(2) चित्रमय निरूपण की उपयोगिता केवल सामान्य व्यक्ति के लिए है, विशेषज्ञों के करना कठिन होता है।
(3) यदि मापों के बीच अन्तर बहुत अधिक है, तो उस अन्तर को चित्र द्वारा प्रदर्शित
(4) चित्रों के रूप में बहुगुणी सूचनाएँ प्रदर्शित नहीं की जा सकी।
(5) चित्रों का सरलता से दुरुपयोग किया जा सकता है। अलग-अलग पैमाने के आधार पर बने चित्र भ्रामक होते हैं।
प्रश्न 16. आवृत्ति आयत चित्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-आवृत्ति आयत चित्र-आवृत्ति आयत चित्र आवृत्ति वितरण को प्रदर्शित की सर्वाधिक प्रचलित और लोकप्रिय रीति है। इसे बनाने के लिए वर्गान्तर सीमाओं को X-अक्ष पर तथा आवृतियों को Y-अक्ष पर प्रदर्शित किया जाता है। प्रत्येक वर्गान्तर की सीमाओं के माप बिन्दुओं पर आवृत्ति की ऊँचाई के बराबर लम्ब रेखाएँ खींचकर आयत बना लिये जाते हैं व सभी आयतों को एक-दूसरे से सटे रूप में रखा जाता है, अर्थात् यह कह सकते हैं कि
आवृत्ति आयत चित्र आयताकार चित्रों का सटा हुआ वह समूह होता है, जिसमें आयतों की ऊँचाई आवृत्तियों के अनुपात में रखी जाती है।

प्रश्न 17. आवृत्ति बहुभुज पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
-आवृत्ति बहुभुज-आवृत्ति चित्र को आवृत्ति बहुभुज के रूप में भी प्रदर्शित
उत्तर-
किया जा सकता है। आवृत्ति बहुभुज बनाने के लिए प्रत्येक आयत के शीर्ष के मध्य बिन्दुओं को सरल रेखाओं द्वारा मिला देते हैं। इसमें यह मान्यता रहती है कि वर्गान्तर में आवृत्तियों का
समान रूप से वितरण है। आवृत्ति बहुभुज का क्षेत्रफल आवृत्ति चित्र के बराबर ही होता है, क्योंकि जितना भाग छोड़ा जाता है, उसके बराबर ही भाग शामिल हो जाता है। इसको निम्न
प्रकार परिभाषित किया जा सकता है-“आवृत्ति बहुभुज अनेक भुजाओं वाला ज्यामितीय चित्र

प्रश्न 18. निम्न आवृत्ति वितरण का बिन्दुरेखीय चित्रण कीजिए-
होता है, जो मूल्यों या मध्य बिन्दुओं और उनकी आवृत्तियों के आधार पर बनाया जाता है।”

प्रश्न 19, मिश्रित दण्ड चित्र के प्रकारों को समझाइए।
(2019)
उत्तर-मिश्रित दण्ड चित्र (Compound Bar Diagram)-इसे बहुदण्ड चित्र भी कहते हैं।
बहुगुणी दण्ड चित्रों का प्रयोग जब दो या दो से अधिक तथ्यों में
करना हो, तब किया जाना चाहिए। एक समय से सम्बन्धित विभिन्न समंकों के दण्ड चित्र आपस में साथ-साथ मिलाकर बनाये जाते हैं व प्रत्येक चर के मूल्य को प्रदर्शित करने के लिए अलग
दण्ड बनाये जाते हैं। आँकड़ों को हमेशा आरोही या अवरोही क्रम में व्यवस्थित करना चाहिए तथा दण्डों के रंगों अथवा चिह्नों को स्पष्ट करने के लिए निर्दिष्टिका (Index) बनायी जाती है।
उदाहरण-आगे कुछ वर्षों के औद्योगिक तथा कृषि उत्पादन दिये हुए हैं। इन्हें बहुगुणी दण्ड आरेख के रूप में प्रदर्शित करें-

प्रश्न 20, निम्नलिखित छात्रों द्वारा परीक्षा में प्राप्त अंकों को साधारण दण्ड चित्र द्वारा प्रदर्शित कीजिए-

प्रश्न 21. निम्न समंकों से रेखा आवृत्ति ग्राफ बनाओ-

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. द्वितीयक समंक क्या होते हैं ? इनके उपयोग से पहले क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए?
उत्तर – द्वितीयक समंक
द्वितीयक समंक वे समंक होते हैं जो किसी दूसरे द्वारा स्वयं अपने उद्देश्य के लिए एकत्रित कराये जाते हैं, किन्तु हम उन्हें अपने लिए प्रयोग कर लेते हैं। ब्लेयर के अनुसार, “द्वितीयक समंक वे हैं जो पहले से अस्तित्व में हैं और जो वर्तमान प्रश्नों के उत्तर में नहीं, अपितु किसी दूसरे उद्देश्य के लिए एकत्र किये गये हैं।”
द्वितीयक समंकों के प्रयोग में सावधानियाँ द्वितीयक समंकों का प्रयोग करने से पूर्व अनुसन्धानकर्ता को बहुत-सी बातों का ध्यान
रखना चाहिए। इस विषय में बाउले का मत उल्लेखनीय है-“प्रकाशित समंकों को बिना उनका अर्थ व सीमाएँ जाने, जैसा-का-तैसा स्वीकार कर लेना खतरे से खाली नहीं है और यह सर्वदा
अनिवार्य है कि उन तर्कों की आलोचना कर ली जाय जो उन पर आधारित किये जा सकते हो।” उनके अनुसार, “समंक विशेष रूप
से अन्य व्यक्तियों द्वारा संकलित समंक प्रयोग करने वाले के लिए अनेक त्रुटियों से पूर्ण होते हैं। इसलिए द्वितीयक समंकों का प्रयोग करने से पूर्व निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए-
(1) सबसे पहले यह देखना चाहिए कि द्वितीयक समंक पहले किस अनुसन्धानकर्ता सन्तोषजनक है, तो उन समंकों का प्रयोग किया जा सकता है। द्वारा प्राथमिक रूप से एकत्र किये गये थे। यदि उसकी योग्यता, अनुभव व निष्पक्षता आदि से मिलता-जुलता है, तब उनसमको का प्रयोग किया जा सकता है, अन्यथा ये अनुपयुक्त होंगे।
(2) प्राथमिक जाँच का उद्देश्य क्या था ? यदि प्राथमिक जाँच का प्रयोजन वर्तमान प्रयोजन
(3) प्रथम जाँच में शुद्धता का स्तर क्या था ? यदि शुद्धता का स्तर ऊँचा रहा हो, तो उन समंकों का प्रयोग विश्वसनीयता से किया जा सकता है अन्यथा नहीं। इकाइयों के अर्थ वर्तमान प्रयोग के अनुकूल है या नहीं।
(4) इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि पूर्व अनुसन्धान में
प्रयुक्त सांख्यिकीय
(5) पूर्व संकलित समंकों की परीक्षात्मक जाँच की जानी चाहिए। जाँच करने की उचित शैति यह है कि यदि एक ही समस्या से सम्बन्धित अनेक स्रोतों से द्वितीयक समंक उपलब्ध हैं,
तो उनकी सत्यता व शुद्धता की जाँच हेतु उनकी परस्पर तुलना कर लेनी चाहिए। यदि उनमें कोई विशेष अन्तर नहीं हो तो इस प्रकार की सामग्री पर विश्वास करके उसे द्वितीयक समर्को
के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि द्वितीयक समंकों का परीक्षण करने पर यदि वे विश्वसनीय,
पर्याप्त एवं उपयुक्त प्रतीत हों, तभी उनका प्रयोग प्रस्तुत
अनुसन्धान के लिए करना चाहिए, अन्यथा नहीं।

प्रश्न 2. राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन (NSSO) पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन (NSSO)-देश में प्रभावी नियोजन के उद्देश्य से राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण की स्थापना सन् 1950 में वित्त मन्त्रालय के अधीन एक निदेशालय के रूप में की गयी थी। सन् 1957 में इसे केन्द्रीय सचिवालय के अधीन हस्तान्तरित कर दिया गया। सांख्यिकीय व्यवस्था में अधिक समन्वय, व्यापकता एवं सक्रियता लाने की दृष्टि से NSS
का पुनर्गठन करते हुए, जनवरी 1971 में इसे राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन (NSSO) का रूप दे दिया गया। इस समय, NSso योजना मन्त्रालय के सांख्यिकीय विभाग के अधीन कार्यरत् है। समंक-संकलन का कार्य NSSO स्वयं करता है, जबकि सर्वेक्षणों का तकनीकी संचालन कोलकाता स्थित ‘भारतीय सांख्यिकी संस्थान द्वारा किया जाता है। उद्देश्य एवं क्षेत्र-समंक नीति-निर्माण के अस्त्र व आधार हैं। इस परिप्रेक्ष्य में, NSSO का उद्देश्य आर्थिक सामाजिक नीतियों के निर्धारण के लिए आवश्यक समंकों को उपलब्ध कराना है। इस संगठन का कार्य दैव प्रतिचयन (Random Sampling) के आधार पर सामाजिक-आर्थिक विषयों (Socio-economic Subjects) और जनांकिकीय पहलुओं (Demographic aspects) से सम्बन्धित समंकों का नियमित रूप से सर्वेक्षण करना है। इसके अलावा, यह संगठन भू-उपयोग सर्वेक्षण, फसल कटाई परीक्षण, फसलों की उपज की प्रतिदर्श जाँच तथा वार्षिक उद्योग सर्वेक्षण आदि का भी कार्य करता है।

प्रश्न 3. संगणना विधि क्या है ? इसके गुण-दोष बताइए।
उत्तर-
संगणना विधि
(Census Method]
जब किसी समस्या से सम्बन्धित पूरे समूह या समग्र की प्रत्येक व्यक्तिगत इकाई का विस्तारपूर्वक अध्ययन किया जाता है, तो वह समग्र या संगणना अनुसन्धान कहलाता है। इसके
अन्तर्गत अनुसन्धानकर्ता समस्त समूह की जाँच करता है और अनुसन्धान से सम्बन्धित प्रत्येक इकाई के बारे में आवश्यक सूचनाएँ एकत्रित करता है। उदाहरण के लिए, यदि हम उत्तर प्रदेश क्षेत्र के डिग्री कक्षाओं में पढ़ने वाले छात्रों की आर्थिक स्थिति का अध्ययन करना चाहते हैं, तो समग्र इस प्रदेश के समस्त कॉलेजों की डिग्री कक्षाओं के समस्त छात्रों से निर्मित होगा
और प्रत्येक छात्र से तत्सम्बन्धी सूचना प्राप्त करनी होगी। इसी प्रकार, यदि मनुष्य के रक्त का परीक्षण करना हो, तो मनुष्य के शरीर का समस्त रक्त समग्र कहलायेगा और समस्त रक्त की
प्रत्येक बूंद का परीक्षण करना होगा। जनगणना इसी रीति से की जाती है। संगणना अनुसन्धान के गुण-इस रीति के निम्नलिखित गुण हैं-
(1) इस विधि से संकलित समंक व उनसे निकाले गये परिणाम अधिक शुद्ध व विश्वसनीय होते हैं।
(2) इस रीति द्वारा विषय का गहन अध्ययन सम्भव होता है।
(3) समग्र की प्रत्येक के इकाई के बारे में विस्तृत अध्ययन करने से अनेक महत्वपूर्ण तथ्य प्रकाश में आते हैं।
(4) कुछ परिस्थितियों में यह रीति आवश्यक होती है; जैसे-जनगणना।
(5) जहाँ इकाइयाँ एक-दूसरे से भिन्न होती हैं वहाँ यही रीति उपयुक्त होती है।
संगणना अनुसन्धान के दोष-इस प्रणाली के निम्नलिखित दोष हैं-
(1) यह प्रणाली अधिक खर्चीली है।
(2) इस रीति में अधिक समय व श्रम लगता है।
(3) इसके लिए व्यापक संगठन बनाना पड़ता है।
(4) यह प्रणाली असुविधाजनक है।
(5) अनेक परिस्थितियों में यह रीति सम्भव नहीं है। जब समग्र अनन्त हो अथवा अनुसन्धान क्षेत्र विशाल व जटिल हो अथवा अनुसन्धान विधि में समग्र की सम्पूर्ण इकाइयाँ नष्ट
हो जाएँ, तो इस विधि का प्रयोग नहीं किया जा सकता है।

प्रश्न 4. निदर्शन रीति क्या है ? इसके गुण-दोष बताइए।
उत्तर-
निदर्शन विधि
[Sample Method]
जब समग्र की जाँच न करके समग्र में से किसी विशिष्ट आधार पर न्यादर्श के रूप में कुछ प्रतिनिधि इकाइयाँ चुन ली जाती हैं और उन चुनी हुई इकाइयों के गहन अध्ययन से निष्कर्ष
निकाले जाते हैं, तो उसे निदर्शन अनुसन्धान कहते हैं। यदि न्यादर्श पर्याप्त व उचित रीति से लिया जाता है, तो उसके परिणाम भी पूर्णरूप से समग्र पर लागू होते हैं। उदाहरण के लिए, यदि गेहूँ के एक बड़े ढेर में से मुट्ठीभर गेहूँ का विश्लेषण करने पर यह ज्ञात होता है, “इसमें जौ, सरसों एवं आकड़ों का संग्रहण, व्यवस्थापन और प्रस्तुतीकरण 59 गेहूँ का अनुपात 3 : 1 : 100 है, तो इस निष्कर्ष को हम गेहूँ के समस्त ढेर के लिए स्वीकार कर लेते हैं। इसी प्रकार, किसी गाँव के 2,000 भूमिहीन श्रमिकों के रहन-सहन के स्तर की जाँच के लिए हम केवल 200 श्रमिकों की जाँच करें, तो इसे निदर्शन अनुसन्धान कहेंगे।”
निदर्शन अनुसन्धान के गुण-इस रीति के निम्नलिखित गुण हैं –
(1) यह रीति सरल एवं कम खर्चीली है।
(2) यह रीति अधिक वैज्ञानिक है।
(3) इसका कार्य व प्रशासन अधिक सुविधाजनक है।
(4) इस रीति में सांख्यिकीय विभ्रम को ज्ञात किया जा सकता है।
(5) कुछ विशेष दशाओं में यह रीति उपयुक्त है। जैसे यदि समग्र विशाल हो, या अनन्त हो, या विस्तृत भौगोलिक क्षेत्र में फैला हो, तो निदर्शन अनुसन्धान विधि का सहारा लेना पड़ता है।
निदर्शन अनुसन्धान के दोष-इस रीति के निम्नलिखित दोष हैं-
(1) प्रतिनिधि न्यादर्श बनाना कठिन होता है।
(2) यदि इकाइयाँ भिन्न प्रकार व प्रकृति की हैं, तो यह प्रणाली नहीं अपनायी जा सकती।
(3) उच्च स्तर की शुद्धता के लिए यह रीति अनुपयुक्त है।
(4) यदि न्यादर्श अनुपयुक्त या अपर्याप्त हो, तो परिणाम भ्रामक हो सकते हैं।
(5) कभी-कभी समग्र इतना छोटा होता है कि उसमें से न्यादर्श बनाना सम्भव नहीं होता।

5. एक आदर्श प्रश्नावली में कौन-कौन से गुण आवश्यक होते हैं 21
उत्तर-एक अच्छी प्रश्नावली में निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक है- हा प्रश्न छोटे और स्पष्ट हों-प्रश्नावली तैयार करते समय इस बात की ओर भी विशेष ध्यान देना चाहिए कि प्रश्न इस प्रकार के हों जिनके संक्षिप्त उत्तर दिये जा सकें, अर्थात्
उत्तरों में ‘न’, ‘हाँ’, छोटे वाक्यांश या संख्याओं का प्रयोग हो सके।
(2) सीमित प्रश्न-प्रश्नावली का आकार उचित होना चाहिए और यथासम्भव सीमित प्रश्न रखें जाने चाहिए। यदि अनावश्यक और अधिक प्रश्न होंगे, तो उसे भरने से अधिक समय लगेगा और सूचना देने वाला लापरवाही या उदासीनता दिखा सकता है।
(3) उचित क्रम-प्रश्नावली में समस्त प्रश्नों को क्रमबद्ध रूप में व्यवस्थित किया जाना चाहिए।
(चर्जित प्रश्न-प्रश्नावली में इस प्रकार के प्रश्नों का समावेश नहीं करना चाहिए, जिनसे उत्तर देने वालों के आत्मसम्मान, व्यक्तिगत, धार्मिक या सामाजिक भावनाओं को ठेस लगे।
(यथार्थता की जाँच-प्रश्नावली में कुछ ऐसे प्रश्नों को शामिल किया जाना चाहिए, जिनमें उत्तरों की मृत्यता और सूचना देने वालों की विश्वसनीयता की जाँच हो सके।
(9) पूर्व परीक्षण-प्रश्नावली का निर्माण करने के पश्चात् एक बार कुछ सूचकों पर विभिन्न प्रश्नों का पहले ही परीक्षण कर लेना चाहिए, जिससे कोई अशुद्धि या कमी होने पर आवश्यकतानुसार संशोधन या परिवर्तन किया जा सके।

प्रश्न 6. बनावट के आधार पर सारणी के प्रकार लिखिए।
उत्तर-बनावट के आधार पर सारणी दो प्रकार की होती है-
(1) सरल सारणी-सरल सारणी में समंकों के केवल एक ही गुण या विशेषता को प्रस्तुत किया जाता है। इसमें सिर्फ एक ही कॉलम होता है, उससे सम्बन्धित अन्य कोई दूसरा कॉलम नहीं होता है। सरल सारणी में केवल अनुसन्धानकर्ता एक ही सूचना प्राप्त करता है। इसका निर्माण अत्यन्त ही सरल होता है।
(2) जटिल सारणी-जब किसी सारणी द्वारा एक से अधिक गुणों या विशेषताओं के बारे में जानकारी प्राप्त होती है, तो वह जटिल सारणी कहलाती है। व्यवहार में ये सारणियाँ अधिक प्रचलित हैं, क्योंकि इनसे पूर्ण सूचनाएँ प्राप्त हो जाती हैं। ये सारणियाँ निम्न प्रकार की होती हैं-
(1) द्विगुण सारणी-जब किसी सारणी द्वारा दो प्रकार की सूचनाएँ प्राप्त होती हैं, तो वह द्विगुण सारणी कहलाती है।
(i) त्रिगुण सारणी-जब किसी सारणी द्वारा तीन प्रकार की विशेषताओं की जानकारी प्राप्त होती है, तो उसे त्रिगुण सारणी कहते हैं।
(iii) बहुगुण सारणी-इस प्रकार की सारणी जिसके द्वारा तीन से अधिक विशेषताएँ प्रस्तुत की जाती हों, बहुगुण सारणी कहलाती है।

प्रश्न 7. सारणी रचना के नियम बताइए।
अथवा
एक उत्तम सारणी की रचना किस प्रकार की जाती है ?
उत्तर-सारणी रचना के प्रमुख नियम निम्न प्रकार हैं-
(1) सारणी की रचना कागज के आकार के अनुरूप होनी चाहिए।
(2) सबसे ऊपर सारणी संख्या या सारणी का शीर्षक लिखना चाहिए।
(3) खानों एवं पंक्तियों की संख्या न तो बहुत ज्यादा होनी चाहिए और न बहुत कम होनी चाहिए।
(4) तुलनात्मक समंकों को साथ-साथ रखना चाहिए।
(5) सारणी में द्वितीयक सामग्री का प्रयोग हुआ है, तो उसका उल्लेख करना चाहिए।
(6) सारणी के विभिन्न स्तम्भों का जोड़ करना भी आवश्यक है।
(7) अन्त में सारणी के नीचे टिप्पणियाँ व स्रोतों को भी लिखना चाहिए।

प्रश्न 8. चित्रमय प्रदर्शन से आप क्या समझते हैं ? चित्रमय प्रदर्शन का महत्व बताइए।
अथवा
चित्रमय प्रदर्शन की कोई चार प्रमुख उपयोगिता लिखिए।
समंकों का चित्रमय प्रदर्शन चित्रमय प्रदर्शन का अध्ययन मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित है। व्यावहारिक
जीवन में अनेक बार ऐसा देखने को मिलता है कि हम किसी व्यक्ति को देखकर कहते हैं कि “आपको कहीं न कहीं देखा है। शक्ल तो जानी-पहचानी लगती है, पर नाम याद नहीं आ रहा
है।” यही कारण है कि सांख्यिकीय आँकड़ों को बोधगम्य बनाने के लिए चित्रों का सहारा लिया जाता है। इस प्रकार, चित्रमय प्रदर्शन तथ्यों को अधिक रोचक एवं सरल बनाने की प्रक्रिया है।
डॉ. बाउले के शब्दों में, “संख्याओं की कोई भी सूची जैसे जैसे उसकी लम्बाई बढ़ती जाती है, कम ग्राह्य होती है। इसके अतिरिक्त, एक गणक के लिए यह सम्भव नहीं है कि वह
विशाल तथ्यों को मानसपटल पर अंकित कर सके। इस कठिनाई को कुछ सीमा तक चित्रमय प्रदर्शन द्वारा हल करने पर प्रयल किया जाता है।”

उत्तर-

2) अधिक समय तक स्मरणीय-समंकों को अधिक समय तक याद रखना कटिन
(3) समय या श्रम की बचत-चित्रों की सहायता से समंकों को समझने व उनके
(4) विशेष ज्ञान व शिक्षा की आवश्यकता नहीं-चित्रों को समझने के लिए विशेष
चित्रमय प्रदर्शन की उपयोगिता एवं लाभ
(1) समकों को सरल एवं सुबोध बनाना-चित्रों द्वारा जटिल एवं अव्यवस्थित विशाल तथ्यों को सरल एव जनसाधारण के समझने योग्य बनाया जा सकता है। चित्र एक स्पष्ट व तथा चित्र को सीधे आकर्षित करने वाली तस्वीर प्रदान करता है।”
आकर्षक तस्वीर प्रदान करता है। प्रो. स्टीफेन जुल्क के शब्दों में, “एक चित्र अधिक स्पष्ट होता है। इसके विपरीत, चित्रों द्वारा निकाले गये निष्कर्ष अधिक समय तक याद रहते हैं।
निष्कर्ष निकालने में बहुत कम समय व परिश्रम की आवश्यकता होती है। ज्ञान व प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं पड़ती। सामान्य व्यक्ति भी चित्रों को सरलता से समझ लेता है। इसी कारण विज्ञापन में चित्रों की सहायता ली जाती है।
(5) आकर्षक एवं प्रभावशाली-चित्र बहुत अधिक आकर्षक होते हैं। इनका मस्तिष्क पर स्थायी प्रभाव पड़ता है। सी. डब्ल्यू. लो के शब्दों में, “सभी प्रकार के समंकों का अत्यन्त
प्रभावशाली रूप में निरूपण करने के लिए चित्रों का प्रयोग किया जा सकता है।”

प्रश्न 9. आँकड़ों के बिन्दुरेखीय प्रदर्शन की उपयोगिता एवं सीमाएँ लिखिए।
अथवा
अथवा
बिन्दुरेखीय प्रदर्शन के दोष लिखिए।
[संकेत- ‘दोष’ शीर्षक देखें।
बिन्दुरेखीय प्रदर्शन के लाभ लिखिए।
उत्तर-जब समंकों को बिन्दुरेखीय पत्र पर प्रस्तुत किया जाता है, तो उसे समंकों का बिन्दुरेखीय प्रस्तुतीकरण कहते हैं। ब्लेयर के अनुसार, “समझने और रचना में सरलतम सर्वाधिक
चल और सबसे अधिक प्रयोग में लाया जाने वाला चित्र विन्दुरेख है।” बिन्दुरेखीय प्रदर्शन के गुण-आँकड़ों के बिन्दुरेखीय प्रदर्शन से निम्नलिखित लाभ हैं-
(आकर्षक व प्रभावशाली-बिन्दुरेखीय चित्र बहुत आकर्षक होते हैं। उन्हें देखकर सामान्य व्यक्ति भी प्रभावित हो जाता है।
( सह-सम्बन्ध का अध्ययन-इनकी सहायता से आँकड़ों में सह-सम्बन्ध की मात्रा मालूम की जा सकती है।
(अतुलनात्मक अध्ययन में सरलता-बिन्दुरेखीय प्रदर्शन में विभिन्न सूचनाओं की विभिन्न रेखाओं को देखकर उनका तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकता है।
(4) समय व श्रम की बचत-बिन्दुरेखीय प्रदर्शन द्वारा समंकों को निरूपित करने में समय व श्रम अपेक्षाकृत कम लगता है और उनके द्वारा समंकों के अध्ययन में भी समय व श्रम की बचत होती है।
(5) स्थायी प्रभाव-इनका प्रभावी स्थायी होता है, क्योंकि रेखाचित्रों को आकर्षक ढग से प्रस्तुत किया जाता है।
(6) स्थिति माध्यों का निर्धारण-इनकी सहायता से मध्यका, भूयिष्ठिक, चतुर्थक एवं अन्य विभाजित मूल्यों का निर्धारण किया जा सकता है।
(7) अन्तर्गणन की सुविधा-इनको पूर्वानुमान, अन्तर्गणन एवं बाह्यगणन के लिए भी बिन्दुरेखीय प्रदर्शन के दोष (सीमा)-बिन्दुरेखीय प्रदर्शन के निम्नलिखित दोष हैं–
उत्तर-
प्रयोग में लाया जाता है।
(1) बिन्दुरेख चित्रों द्वारा वास्तविक मूल्य का अनुमान सम्भव नहीं हो पाता जिसके कारण भ्रमात्मक निष्कर्ष निकालते हैं।
(इनके दुरुपयोग की अधिक सम्भावना रहती है।
(3) बिन्दुरेख चित्रों से वास्तविक मूल्य का ज्ञान नहीं होता और वक्रों की गति का प्रदर्शन मात्र होता है। इस दृष्टि से रेखाचित्रों के द्वारा समंकों की शुद्धता की जाँच नहीं हो पाती।
(4) इनके द्वारा सभी सांख्यिकीय सामग्री को प्रस्तुत नहीं किया जा सकता और न ही ये सभी प्रकार की सांख्यिकीय समस्याओं के समाधान में सहायक होते हैं।
(5) बिन्दुरेख का प्रभाव कभी-कभी आँखों तक ही रहता है। बिन्दुरेख के संगत न होने के कारण वे मस्तिष्क को प्रभावित नहीं कर पाते हैं।

प्रश्न 10. समंकों के चित्रमय प्रदर्शन एवं बिन्दुरेखीय प्रदर्शन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
चित्र एवं बिन्दुरेख में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
बिन्दुरेखीय तथा चित्ररेखीय प्रदर्शन में अन्तर
क्र.सं. बिन्दुरेखीय
चित्ररेखीय
बिन्दुरेखीय चित्र साधारण व्यक्तियों के चित्र साधारण व्यक्ति के लिए होते हैं,
लिए नहीं हैं।
इसलिए विज्ञापनों तथा प्रचार में इनका
प्रयोग होता है।
2. बिन्दुरेखीय प्रदर्शन स्थान सम्बन्धी चित्र प्रदर्शन स्थान सम्बन्धी आँकड़ों के आँकड़ों के प्रदर्शन हेतु अधिक अनुकूल प्रदर्शन के लिए अधिक अनुकूल होते हैं। नहीं होते हैं।
3. बिन्दुरेखीय प्रदर्शन में आकर्षण का अंश | चित्र प्रदर्शन आकर्षक होते हैं। भी नहीं पाया जाता है।
4. बिन्दुरेखीय चित्र सांख्यिकी विश्लेषण चित्र सांख्यिकीय विश्लेषण में सहायता में सहायता करते हैं।
बिन्दुरेखीय चित्र प्रदर्शन को एक से चित्र प्रदर्शन में आँकड़ों को

प्रश्न .निम्नलिखित आवृत्ति को एक आयत चित्र द्वारा प्रस्तुत कीजिए-

प्रश्न 12. भारत के पाँच बड़े शहरों में जनसंख्या समंकों को उचित दण्ड चित्र द्वारा प्रस्तुत करी। (2018)

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