Pariksha Adhyayan Economics इकाई5 सह-सम्बन्ध, सूचकांक से परिचय in Hindi Class 11th Arthashastra mp board

इकाई5
सह-सम्बन्ध, सूचकांक से परिचय

इकाई5 सह-सम्बन्ध, सूचकांक से परिचय
इकाई5
सह-सम्बन्ध, सूचकांक से परिचय

वस्तुनिष्ठ प्रश्न
-विकल्पीय प्रश्न

1. सह-सम्बन्ध गुणांक का सांकेतिक शब्द है-
(ii) X
(iii)Y
(iv) Y.

2. अन्तर कोटि रीति किसकी देन है ?
(i) कार्ल पियर्सन की
(a) स्पियरमैन की
(iii) फिशर की
(iv) बाउले की।

3. सूचकांकों का सर्वप्रथम निर्माण करने का श्रेय किस अर्थशास्त्री को जाता है ?
(i) काली
(ii) जेवेन्स
(iii) एजवर्थ
(iv) फिशर।

4. निर्देशांक की रचना करते समय आधार वर्ष का चयन निम्न आधार पर किया
जाता है-
(i) वर्ष में कृषि उत्पादन अधिक हो
(ii) वर्ष में औद्योगिक उत्पादन अधिक हो
(सामान्य वर्ष हो
(iv) वर्ष में राजनीतिक स्थिरता रही हो।

5. सूचकांक को प्रदर्शित करते हैं-
(0 Bol
(ii) C01
( Poi
(iv) P10-

6. निर्देशांक का गुण है-
(1) तुलना का आधार
(ii) प्रतिशतों का आधार
(iii) संख्या द्वारा प्रदर्शित
(iv) ये सभी।

ANS. (i), 2. (10). 3. (1). 4. (iii), 5. (), 6. (IV)

* रिक्त स्थान पूर्ति
1. सह-सम्बन्ध तकनीक की खोज …… ने की थी।
(2019)
2. निर्देशांक एक …………” की माप है।
(2019)
3. + 1 ……” सह-सम्बन्ध है।
4. जब दो चरों के मान एक ही दिशा में संचालित होते हैं तो सह-सम्बन्ध …..” कहा
जाता है।
5. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक को ……..” सूचकांक भी कहते हैं।
उत्तर-1. कार्ल पियर्सन, 2. संख्यात्मक, 3. पूर्ण, 4. धनात्मक, 5. जीवन-निर्वाह

* सत्य/असत्य
1. एक वर्ष जिसमें युद्ध हुआ हो, आधार वर्ष बनाया जा सकता है।
2. सह-सम्बन्ध गुणांक सदैव +1 और – 1 के बीच आता है।
3. कार्ल पियर्सन पद्धति से निकाला गया। का मान तथा अन्तर रीति से निकाले गए।
4. हम निर्देशांक पर पूर्ण विश्वास कर सकते हैं।
5. निर्वाह व्यय निर्देशांक सामान्यत: बहुत परिशुद्ध होते हैं।
6. सूचकांक आर्थिक बैरोमीटर कहलाते हैं।
उत्तर-1. असत्य, 2. सत्य, 3. सत्य, 4. असत्य, 5. असत्य, 6. सत्य।

एक शब्द/वाक्य में उत्तर
1. क्या एक वर्ष, जिसमें सूखा पड़ा हो, आदर्श वर्ष हो सकता है।
उत्तर-नहीं।

2. कोटि अन्तर विधि का प्रतिपादन किसने किया ?
उत्तर-स्पियरमैन।

3. आर्थिक बैरोमीटर किसे कहते हैं?
उत्तर-निर्देशांक।

4. सह-सम्बन्ध गुणांक मापने की सर्वोत्तम रीति का प्रतिपादन किस सांख्यिक ने किया है?
उत्तर-कार्ल पियर्सन।

5. यदि दो चरों में सह-सम्बन्ध 0.95 है, तो इसका अर्थ है।
(2018)
उत्तर-धनात्मक सह-सम्बन्ध।

6. सूचकांक तकनीक का विकास सबसे पहले किसने किया ? (2018)
उत्तर-काली।

7. फिशर का सूत्र लिखें।

8. निर्देशांक किस प्रकार की माप है।
उत्तर-सापेक्ष माप।

9. निर्देशांक होता है।
उत्तर-एक विशिष्ट प्रकार का माध्य।

10. निर्देशांक कितने प्रकार के होते हैं ?.
उत्तर-पाँच।

11. सह-सम्बन्ध का एक गुण लिखिए।
(2018)
उत्तर-+1 तथा-1 के मध्य इसका मान होता है।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. धनात्मक सह-सम्बन्ध किसे कहते हैं ? 1
उत्तर-जब दो चरों में परिवर्तन एक ही दिशा की और होता है, अर्थात् जब एक बढ़ता है तो दूसरा भी बढ़ता है और अगर एक घटता है तो दूसरा भी घटता है, तो ऐसे सम्बन्धों को चरों का धनात्मक सह-सम्बन्ध कहा जाता है।

प्रश्न 2. सह-सम्बन्ध के अभाव से क्या आशय है ?
उत्तर-यदि दो शृंखलाओं या चरों में कोई सम्बन्ध नहीं पाया जाता, अर्थात् एक में होने वाले परिवर्तनों का दूसरों पर कोई प्रभाव नहीं पड़े, तो उन शृंखलाओं या चरों में सह-सम्बन्ध
का अभाव पाया जाता है।

प्रश्न 3. उच्च स्तर का सह-सम्बन्ध कब होता है ?
उत्तर-जब श्रेणियों में सह-सम्बन्ध पूर्ण न हो, परन्तु फिर भी अधिक मात्रा में हो, तो वहाँ उच्च स्तर का सह-सम्बन्म होता है, ऐसी स्थिति में सह-सम्बन्ध गुणांक 0-75 और । के मध्य पाया जाता है। – होने पर यह उच्च धनात्मक व होने पर उच्च ऋणात्मक सह-सम्बन्ध कहलाता है।

प्रश्न 4. सरल सह-सम्बन्ध गुणांक की तुलना में कोटि सम्बन्ध गुणांक कब अधिक परिशुद्ध होता है?
उत्तर-जब चरों को संख्याओं में नहीं मापा जा सकता है, तब उनका सह-सम्बन्ध गुणांक स्पियरमैन की कोटि सम्बन्ध गुणांक द्वारा निकाला जाता है। ये सरल सह-सम्बन्ध की तुलना में अधिक परिशुद्ध होते हैं।

प्रश्न 5. क्या शून्य सह-सम्बन्ध का अर्थ स्वतन्त्रता है?
उत्तर-शून्य सह-सम्बन्ध का अर्थ स्वतन्त्रता से है, अर्थात् दो समंकमालाओं के परिवर्तन के मध्य किसी प्रकार की आश्रितता नहीं पायी जाती है। यहाँ, एक श्रेणी के परिवर्तन का प्रभाव
दूसरी श्रेणी पर बिल्कुल नहीं पड़ता है।

प्रश्न 6. निर्देशांक की परिभाषा दीजिए।
अथवा
निर्देशांक (सूचकांक) किसे कहते हैं ?
उत्तर-किनले (Kinley) के अनुसार, “निर्देशांक वह अंक है जो किसी पूर्व निश्चित तिथि को चुनी हुई वस्तुओं या वस्तु समूह की कीमतों का प्रतिनिधित्व करता है तथा उसे प्रमाणित मानते हुए किसी वाद को तिथि पर उन्हीं वस्तुओं की कीमत से तुलना करता है।”

लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1 सह-सम्बन्ध से क्या आशय है ? सह-सम्बन्ध का महत्व बताइए। (2018)
[संकेत : सह-सम्बन्ध का आशय दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 1 का उत्तर देखें।
अथवा
सह-सम्बन्ध के अध्ययन के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-सह-सम्बन्ध विश्लेषण का प्रयोग हमारे जीवन में विभिन्न स्तरों पर किया जाता है। इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं-
(1) चरों के मध्य सम्बन्धों का अध्ययन-सामान्यतया, बहुत से चर परस्पर निर्भर होते हैं और बहुत से चर परस्पर निर्भर नहीं होते हैं। सह-सम्बन्ध चरों के मध्य इस सम्बन्ध को निर्धारित करने में सहायक होता है। इसकी सहायता से भविष्य के निर्णय लिए जा सकते हैं।
(2) आर्थिक व्यवहार को समझने में सहायक-सह-सम्बन्ध विश्लेषण वस्तु की कीमत एवं माँग, लाभ एवं लाभांश, वस्तु की कीमत एवं पूर्ति, वर्षा एवं कृषि उत्पादन, आय तथा व्यय, ऊँचाई एवं भार, वस्तु की त्रिज्या एवं घेरा आदि के मध्य सम्बन्धों को ज्ञात करने में
सहायक होता है। इसके द्वारा भविष्य की योजनाओं का निर्माण किया जा सकता है।
(3) अनिश्चितता के विस्तार में कमी करना-सह-सम्बन्ध विश्लेषण के बिना किया गया पूर्वानुमान गलत हो सकता है। फलस्वरूप, प्राप्त हुए परिणामों व उनके आधार पर लिए गए निर्णयों में गड़बड़ी होने की आशंका हो सकती है। अत: इन सभी समस्याओं से बचने के लिए सह-सम्बन्ध विश्लेषण सहायक होता है।
(4) अधिक विश्वसनीय-सह-सम्बन्ध के द्वारा यदि एक समंक श्रेणी के चर मूल्यों के आधार पर दूसरी श्रेणी के चर मूल्यों का अन्तर्गणन अथवा बाह्यगणन किया जाता है, तो यह अधिक विश्वसनीय होता है।

प्रश्न 2. कार्ल पियर्सन के सह सम्बन्ध गुणांक के दो गुण एवं दो दोष लिखिए।
अथवा
कार्ल पियर्सन के सह-सम्बन्ध गुणांक के चार महत्व लिखिए।
उत्तर-गुण-(1) बीजगणितीय दृष्टि से उत्तम-यह माप बीजगणितीय दृष्टि से उत्तम है, क्योंकि यह दोनों समंकमालाओं के सभी पदों पर आधारित होता है।
(2) सांख्यिकीय दृष्टि से आदर्श-यह गुणांक सांख्यिकीय दृष्टि से भी एक आदर्श माप है, क्योंकि यह समान्तर माध्य और प्रमाप विचलन पर आधारित है।
(3) दो मूल्यों के बीच सम्बन्ध मापने की लोकप्रिय विधि-कार्ल पियर्सन का सह- सम्बन्ध गुणांक दो चरों के मध्य सम्बन्ध मापने की सबसे महत्वपूर्ण, लोकप्रिय व विश्वसनीय विधि है।
(4) मात्रा और दिशा की जानकारी-इस माप की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसके गुणांक से सह-सम्बन्ध की मात्रा और दिशा दोनों की जानकारी मिलती है।
दोष-(1) गणितीय दृष्टि से जटिल-कार्ल पियर्सन सह-सम्बन्ध गुणांक की गणना क्रिया जटिल है।
(2) रेखीय सम्बन्ध की मान्यता-इस गुणांक में यह मान्यता है कि समंकमालाओं के मध्य रेखीय सम्बन्ध है, लेकिन व्यवहार में अनेक परिस्थितियों में ऐसा नहीं होता।

प्रश्न 3. सरल तथा आंशिक सह-सम्बन्ध को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-(1) सरल सह-सम्बन्ध-दो चरों के बीच सह-सम्बन्ध को सरल सह-सम्बन्ध कहते हैं; जैसे-मूल्य और माँग। इन दो चर मान में से एक कारण या स्वतन्त्र चर कहलाता है, जबकि दूसरा परिणाम या आश्रित चर कहलाता है।
(2) आंशिक सह-सम्बन्ध-आंशिक सह-सम्बन्ध तब होता है जब दो से अधिक चरों के बीच सह-सम्बन्ध का अध्ययन तो किया जाता है, परन्तु अन्य चर-मानों को स्थिर मानकर केवल दो चर-मानों के बीच सह-सम्बन्ध का अध्ययन किया जाता है। उदाहरणार्थ; वर्षा, खाद व गेहूँ में से वर्षा की मात्रा को स्थिर मानकर खाद की मात्रा व गेहूँ की उपज में सम्बन्ध का अध्ययन किया जाए, तो वह आंशिक सह-सम्बन्ध कहलाएगा।

प्रश्न 4. निर्देशांक किसे कहते हैं ? सरल तथा भारित निर्देशांक में दो अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-निर्देशांक से आशय-निर्देशांक एक ऐसी संख्यात्मक माप है जिसके द्वारा समय, स्थान या अन्य विशेषताओं के आधार पर किसी चर मूल्य या सम्बन्धित चर मूल्यों के समूह में होने वाले परिवर्तनों को मापा जाता है।
(1) सरल निर्देशांक में सभी मदों को समान महत्त्व दिया जाता है, जबकि भारित निर्देशांक में विभिन्न पदों को भिन्न-भिन्न महत्व दिया जाता है।
(2) सरल या अधारित निर्देशांकों का निर्माण करने में केवल वस्तुओं की कीमतें दी होती हैं, जबकि भारित निर्देशांकों में कीमत के साथ-साथ वस्तु की मात्रा भी दी होती है।

प्रश्न 5.निर्देशांक के निर्माण की उपयोगिता बताइए।
अथवा
निर्देशांकों का महत्व लिखिए।
उत्तर-(1) व्यापारी के लिए उपयोगिता-निर्देशांक की सहायता से व्यापारी अपनी उत्पादित वस्तुओं की बिक्री में होने वाली वृद्धि या कमी से अवगत हो जाते हैं।
(2) उत्पादकों के लिए उपयोगिता-निर्देशांकों की सहायता से उत्पादकों को यह ज्ञात होता है कि किस उद्योग में उत्पादन बढ़ रहा है तथा किस उद्योग में घट रहा है।
(3) जीवन निर्वाह लागत निर्देशांक-जीवन निर्वाह लागत निर्देशांक से हमें यह ज्ञात हो जाता है कि श्रमिकों की वास्तविक मजदूरी घट रही है या बढ़ रही है। इनकी सहायता से मजदूरी तथा जीवन निर्वाह लागत का समायोजन किया जा सकता है, जिससे सेवायोजकों तथा श्रमिकों के मध्य अच्छे सम्बन्ध बनाये रखने में सहायता मिलती है।
(4) मुद्रा के मूल्य की माप-सामान्य कीमत-सूचकांकों की सहायता से देश के भीतर कीमत-स्तर में होने वाले परिवर्तनों की जानकारी हो जाती है। इनकी सहायता से इस बात का भी ज्ञान हो जाता है कि कोमत-स्तर में होने वाले परिवर्तनों का देश के विभिन्न वर्गों पर प्रभाव पड़ता है ? सूचकांकों द्वारा हम यह भी जान सकते हैं कि देश में मुद्रा-स्फीति की दिशा उत्पन्न हो गयी है और इस पर नियन्त्रण के लिए क्या उपाय किये जा सकते हैं।
(5) जटिल तथ्यों को सरल बनाना-इस विषय में डॉ. बाउले ने कहा है कि,”निर्देशांक किसी मात्रा के ऐसे परिवर्तनों को मापने के लिए उपयोग में लाये जाते हैं जिनका हम प्रत्यक्ष रूप से अवलोकन नहीं कर सकते।” इसका आशय यह है कि जिन तथ्यों के परिवर्तनों का मापन किसी अन्य साधन से सम्भव नहीं होता, उनको निर्देशांक की सहायता से मापा जा सकता है।

प्रश्न 6. अच्छे आधार वर्ष की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-एक अच्छे आधार वर्ष के विषय में प्राय: कहा जाता है कि-
(1) एक वर्ष ऐसा होना चाहिए जिसमें कोई सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक व प्राकृतिक असामान्य घटना नहीं घटी हो, अर्थात्, यह सामान्य वर्ष होना चाहिए।
(2) वास्तविक हो, काल्पनिक न हो।
(3) उस काल की समस्त सूचनाएँ उपलब्ध हों।
(4) वह वर्ष अधिक पुराना भी न हो।

प्रश्न 1. निर्देशांक बनाने में आने वाली कठिनाइयों का वर्णन कीजिए। (2019)
अथवा
निर्देशांक तैयार करते समय किन-किन प्रमुख समस्याओं (कठिनाइयों) का सामना
करना पड़ता है ? समझाइए। र
उत्तर-निर्देशांक बनाने में अग्रलिखित प्रमुख कठिनाइयाँ आती है-
सह-सम्बन्ध, सूचकांक से परिचय 95
(1) आधार-वर्ष के चुनाव में कठिनाई-निर्देशांक बनाते समय पहली समस्या आधार-वर्ष को चुनने की होती है, क्योंकि कोई भी वर्ष पूर्णत: सामान्य वर्ष नहीं कहा जा सकता है, प्रत्येक वर्ष में कुछ-न-कुछ असामान्य घटनाएँ अवश्य ही हो जाती हैं। अतः इस बात को निश्चित करना कठिन हो जाता है कि कौन-से वर्ष को आधार वर्ष माना जाए।
(2) प्रतिनिधि वस्तुओं के चुनाव में कठिनाई-निर्देशांकों का निर्माण करते समय एक समस्या यह आती है कि इसमें किन प्रतिनिधि वस्तुओं को सम्मिलित किया जाए।
(3) वस्तुओं की कीमतों की जानकारी प्राप्त करने की कठिनाई-निर्देशांक बनाते समय तीसरी प्रमुख समस्या यह आती है कि प्रतिनिधि वस्तुओं की फुटकर कीमतों को लिया जाए या थोक कीमतों को।
(4) औसत निकालने में कठिनाई-निर्देशांक के निर्माण में एक समस्या यह आती है कि कौन-सी विधि से औसत निकाला जाए। कभी-कभी, एक ही सांख्यिकी सामग्री से विभिन्न औसत रीतियों का प्रयोग करने पर विभिन्न परिणाम प्राप्त होते हैं।

प्रश्न 8. “निर्देशांक आर्थिक वायुमापक यन्त्र है।” उक्त कथन के सन्दर्भ में निर्देशांकों का महत्व बताइए। अथवा
“निर्देशांक आर्थिक बैरोमीटर के समान होते हैं।” विस्तार से समझाइए।
उत्तर-निर्देशांक को आर्थिक क्रियाओं का वायुदाबमापी यन्त्र कहना युक्तिसंगत है। जिस प्रकार एक वायुदाबमापी यन्त्र द्वारा हवा का दबाव व रुख जानने में सहायता मिलती है, उसी प्रकार आर्थिक तथा व्यावसायिक गतिविधियों की प्रवृत्ति की जानकारी निर्देशांकों द्वारा प्राप्त होती है। निर्देशांकों का निर्माण करने के लिए एक निश्चित आधार होता है, लेकिन इसे आवश्यकतानुसार परिवर्तित भी किया जा सकता है। शृंखला मूल्यानुपातों की सहायता से तो पिछले वर्ष से तुलना करना भी सरल हो जाता है। निर्देशांकों के द्वारा उन आर्थिक शक्तियों की जानकारी होती है जिनके कारण आर्थिक व्यवहार प्रभावित हुआ है। मूल्य निर्देशांकों से यह पता चलता है कि किसी आर्थिक तत्व (उदाहरण के लिए, उत्पादन, उपभोग, बचत निवेश, मजदूरी, आय आदि) में जो परिवर्तन हुआ है वह केवल मौद्रिक है या वास्तविक है। यदि यह परिवर्तन मात्र वास्तविक ही नहीं है, बल्कि मूल्यों में परिवर्तन से भी प्रभावित हुआ है, तो निर्देशांकों की सहायता से यह सरलता से पता लगाया जा सकता है कि वास्तविक परिवर्तन कितना है।
कीमत निर्देशांक का उपयोग अर्थ नीति के निर्धारण के लिए भी किया जाता है। कीमत निर्देशांक मौद्रिक अधिकारियों और सरकार को यह सूचना देते हैं कि सामान्य मूल्य स्तर में
कितना परिवर्तन हो रहा है और विभिन्न प्रकार के मूल्यों में परिवर्तन की गति क्या है ? इन परिवर्तनों को देखते हुए मौद्रिक अधिकारी और सरकार अपनी नीतियाँ तय करते हैं। इस
प्रकार, निर्देशांक किसी राष्ट्र के आर्थिक वायुमापक यन्त्र (Economic Barometer) होते हैं।

प्रश्न 9. जीवन-निर्वाह व्यय निर्देशांक की उपयोगिता समझाइए।
उत्तर-जीवन-निर्वाह व्यय निर्देशांक से हमें यह ज्ञात हो जाता है कि जीवन-निर्वाह लागत में क्या-क्या परिवर्तन हो रहे हैं, अर्थात् श्रमिकों की वास्तविक मजदूरी घट रही है या बढ़ रही है। इनकी सहायता से मजदूरी तथा जीवन निर्वाह लागत का समायोजन किया जा सकता है, जिससे सेवायोजकों तथा श्रमिकों के मध्य अच्छे सम्बन्ध बनाये रखने में सहायता मिलती है।

प्रश्न 10. जीवन-निर्वाह व्यय निर्देशांक बनाने के लिए उपभोग की जाने वाली
वस्तुओं का विभाजन किन शीर्षकों में किया जा सकता है ?
उत्तर-आमतौर पर उपभोग की जाने वाली वस्तुओं को पाँच प्रमुख श्रेणियों में बाँट लिया जाता है-(1) खाद्य सामग्री, (2) वस्त्र, (3) ईधन तथा प्रकाश, (4) मकान का किराया, तथा (5) विविध व्यय।

प्रश्न 1. निर्देशांक की प्रमुख विशेषताएँ कौन-कौन सी हैं ? वर्णन कीजिए।
(2019)
अथवा
निर्देशांक से क्या आशय है ? इसकी कोई तीन विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-(संकेत-निर्देशांक का आशय प्रश्न 4 के उत्तर में देखें।।
निर्देशांक की विशेषताएँ-विभिन्न परिभाषाओं के आधार पर निर्देशांक की प्रमुख
विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं-
(1) परिवर्तनों का सापेक्ष माप-निर्देशांकों की सहायता से समूह के सापेक्ष परिवर्तनों का माप किया जाता है। उदाहरण के लिए, मूल्य सम्बन्धी निर्देशांक वस्तुओं के मूल्यों में होने वाले वास्तविक अन्तरों को प्रदर्शित नहीं करते, बल्कि वे आधार वर्ष की तुलना में चालू वर्ष के मूल्य स्तर के प्रतिशत परिवर्तनों का सामान्य माप प्रस्तुत करते हैं।
(2) निर्देशांक प्रतिशतों का माध्य है-निर्देशांक किसी तथ्य में होने वाले परिवर्तनों को सदैव माध्य के रूप में ही प्रदर्शित करते हैं, क्योंकि आधार और चालू वर्ष के सन्दर्भ में जो मूल्यानुपात (Price Relatives) निकाले जाते हैं, निर्देशांक इन मूल्यानुपातों का माध्य होता है।
(3) तुलना का आधार-समय या स्थान के आधार पर तथ्यों का तुलनात्मक अध्ययन निर्देशांकों द्वारा सम्भव बनाया जा सकता है। अधिकांशतया तुलना का आधार समय ही होता है।
(4) व्यापक प्रयोग-निर्देशांक का प्रयोग अत्यधिक व्यापक है। किसी भी घटना के सापेक्ष मापन के लिए इनका प्रयोग किया जा सकता है।

प्रश्न 12. औद्योगिक उत्पादन निर्देशांक को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-औद्योगिक उत्पादन निर्देशांक-किसी विशेष अवधि में आधार वर्ष की तुलना में उद्योगों के उत्पादन स्तर में वृद्धि या कमी को मापने का निर्देशांक औद्योगिक उत्पादन निर्देशांक कहलाता है। यह बात ध्यान रखने योग्य है कि औद्योगिक उत्पादन निर्देशांक उत्पादन
की केवल मात्रा के परिवर्तन का माप है।
रचना-औद्योगिक उत्पादन के निर्देशांक की रचना निम्न ढंग से की जाती है-
(1) उद्योगों का वर्गीकरण-औद्योगिक उत्पादन का निर्देशांक बनाने के लिये उद्योगों को सामान्यतया निम्नलिखित वर्गों में बाँट लिया जाता है-(i) खनन, (ii) विनिर्माण, (iii) बिजली।
(2) उद्योगों के उत्पादन सम्बन्धी आँकड़े- उपर्युक्त उद्योगों के उत्पादन सम्बन्धी आँकड़े मासिक, त्रैमासिक या वार्षिक आधार पर एकत्रित किये जाते हैं।
(3) भारांकन-विभिन्न उद्योगों का भारांकन किया जाता है। विभिन्न उद्योगों को दिये गये भार उनके शुद्ध उत्पादन के मूल्य पर आधारित होते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. सह-सम्बन्ध को परिभाषित कीजिए तथा इसके प्रकार लिखिए।
अथवा
सह-सम्बन्ध के विभिन्न प्रकारों को संक्षेप में समझाइए।
(2019)
अथवा
सह-सम्बन्ध का अर्थ एवं दिशा के आधार पर सह-सम्बन्ध के प्रकार बताइए।
अथवा
सह-सम्बन्ध क्या है ? धनात्मक एवं ऋणात्मक सह-सम्बन्ध में अन्तर लिखिए।
अथवा
सह-सम्बन्ध की परिभाषा लिखिए, साथ ही धनात्मक सह-सम्बन्ध को स्पष्ट
कीजिए।
अथवा
सह-सम्बन्ध का अर्थ लिखिए।
(2019)
उत्तर-सह-सम्बन्ध दो चरों में ऐसे सम्बन्ध को स्पष्ट करता है जिसके अन्तर्गत किसी एक चर के मानों में परिवर्तन होने से दूसरे चर के मानों में भी परिवर्तन होता है। चरों में साथ-साथ परिवर्तन होने की इस प्रवृत्ति को सह-सम्बन्ध कहते हैं। उदाहरणार्थ, आय व उपभोग की मात्रा, कीमत व माँग की मात्रा, उत्पादकता और मजदूरी दर आदि। . परिभाषा-प्रो. किंग के अनुसार, “दो चरों या पदमालाओं के बीच कार्य-कारण
सम्बन्ध को ही सह-सम्बन्ध कहते हैं।” सह-सम्बन्ध के प्रकार-सह-सम्बन्ध मुख्यत: निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-
(1) दिशा के आधार पर
(a) धनात्मक सह-सम्बन्ध-यदि एक चर के मानों में वृद्धि (या कमी) होने पर दूसरे चर के मानों में वृद्धि (या कमी) हो, अर्थात् दोनों चरों में परिवर्तन एक ही दिशा में हो, तो इस प्रकार के सह-सम्बन्ध धनात्मक कहलाते हैं। वस्तुओं की माँग बढ़ने पर उनके मूल्यों में वृद्धि होना, वेतन वृद्धि के साथ मूल्य सूचकांक में वृद्धि होना, ऊँचाई में वृद्धि होने पर भार में वृद्धि होना, इत्यादि धनात्मक सह-सम्बन्ध के उदाहरण हैं।
(b) ऋणात्मक सह-सम्बन्ध-यदि एक चर के मानों में वृद्धि (या कमी) होने पर दूसरे चर के मानों में कमी (या वृद्धि) हो, अर्थात् दोनों चरों में परिवर्तन विपरीत दिशा में हो, तो इस प्रकार के सह-सम्बन्ध ऋणात्मक कहलाते हैं। उत्पादन बढ़ने पर मूल्य में कमी होना, मूल्य में वृद्धि होने पर माँग में कमी होना, इत्यादि ऋणात्मक सह-सम्बन्ध के उदाहरण हैं।
(2) चरों की संख्या के आधार पर
(a) सरल सह-सम्बन्ध-जब आँकड़ों में केवल दो चर ही हों, तो उनके बीच सह-सम्बन्ध सरल सह-सम्बन्ध कहलाता है।
पर अन्य दो या अधिक चरों के मानों का संयुक्त प्रभाव पड़े, तो उन चरों के बीच सह-सम्बन्ध
(5) बहुगुणी सह-सम्बन्ध- जब चरों की संख्या दो से अधिक हो तथा एक चर के मानी को बहुगुणी सह-सम्बन्ध कहते हैं। उदाहरणार्थ, सिंचाई और खाद की मात्रा का प्रभाव गेहूं
की उपज पर पड़ता है।
(c) आंशिक सह-सम्बन्ध-यह दो चरों । और ।’ के बीच सम्बन्ध होता है जबकि इन चरों पर अन्य चरों के प्रभाव को विलोपित कर दिया जाए।
(3) अनुपात के आधार पर
(a) रेखीय सह-सम्बन्ध-जब दो चरों में परिवर्तनों का अनुपात सदैव अचर रहता है, तो उन चरों के मध्य सह-सम्बन्ध को रेखीय सह-सम्बन्ध कहते हैं। उदाहरणार्थ, किसी विद्यालय
में छात्रों की संख्या तथा उनके द्वारा जमा किये गये शुल्क में रेखीय सह-सम्बन्ध होता है।
(1) अरेखीय सह-सम्बन्ध-जब दो चरों में परिवर्तनों का अनुपात अचर न हो, अर्थात् बदलता रहता हो, तो उनके मध्य सह-सम्बन्ध को अरेखीय सह-सम्बन्ध कहते हैं। जैसे, यदि
श्रमिकों की संख्या में वृद्धि करने पर उत्पादन में वृद्धि उसी अनुपात में न हो, तो उनके बीच अरेखीय सह-सम्बन्ध होगा।
(4) पूर्ण सह-सम्बन्ध सह-सम्बन्ध का मान – 1 से+1 के मध्य होता है। जब सह-सम्बन्ध का मान +1 होता है, तो उसे पूर्ण धनात्मक सह-सम्बन्ध कहते हैं, किन्तु जब सह-सम्बन्ध का मान – 1 होता है तो, उसे पूर्ण ऋणात्मक सह-सम्बन्ध कहते हैं।

प्रश्न 2. निम्न श्रेणियों में श्रेणी अन्तर विधि द्वारा सह-सम्बन्ध गुणांक ज्ञात कीजिए-
(b) बहुगुणी सह सम्बन्ध-जब चरों की संख्या दो से अधिक हो तथा एक चर के मान पर अन्य दो या अधिक चरों के मानों का संयुक्त प्रभाव पड़े, तो उन चरों के बीच सह-सम्वत्र को बहुगुणी सह-सम्बन्ध कहते हैं। उदाहरणार्थ, सिंचाई और खाद की मात्रा का प्रभाव गेह की उपज पर पड़ता है।
(e) आंशिक सह-सम्बन्ध-यह दो चरों x और y के बीच सम्बन्ध होता है जबकि इन चरों पर अन्य चरों के प्रभाव को विलोपित कर दिया जाए।
(3) अनुपात के आधार पर
(a) रेखीय सह-सम्बन्ध-जब दो चरों में परिवर्तनों का अनुपात सदैव अचर रहता है, तो उन चरों के मध्य सह-सम्बन्ध को रेखीय सह-सम्बन्ध कहते हैं। उदाहरणार्थ, किसी विद्यालय में छात्रों की संख्या तथा उनके द्वारा जमा किये गये शुल्क में रेखीय सह-सम्बन्ध होता है।
(b) अरेखीय सह-सम्बन्ध-जब दो चरों में परिवर्तनों का अनुपात अचर न हो, अर्थात् बदलता रहता हो, तो उनके मध्य सह-सम्बन्ध को अरेखीय सह-सम्बन्ध कहते हैं। जैसे, यदि श्रमिकों की संख्या में वृद्धि करने पर उत्पादन में वृद्धि उसी अनुपात में न हो, तो उनके बीच अरेखीय सह-सम्बन्ध होगा।
(4) पूर्ण सह-सम्बन्ध 1 से+1 के मध्य होता है। जब सह-सम्बन्ध का मान +1 होता है, तो उसे पूर्ण धनात्मक सह-सम्बन्ध कहते हैं, किन्तु जब सह-सम्बन्ध का मान होता है तो, उसे पूर्ण ऋणात्मक सह-सम्बन्ध कहते हैं।

प्रश्न 2. निम्न श्रेणियों में श्रेणी अन्तर विधि द्वारा सह-सम्बन्ध गुणांक ज्ञात कीजिए-

प्रश्न 5. निर्देशांकों की रचना करते समय क्या-क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए ?
अथवा
निर्देशांक की रचना के चार मुख्य चरण बताइए।
अथवा
सूचकांक बनाते समय आप किन-किन बातों का ध्यान रखेंगे ? किन्हीं चार का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-(1) निर्देशांकों का उद्देश्य-निर्देशांक बनाने से पहले ही इनको बनाने का उद्देश्य निर्धारित कर लेना चाहिए, जिससे कि बाद में उद्देश्य के अनुसार ही आवश्यक सूचनाएँ एकत्रित की जा सकें।
(2) वस्तुओं का चुनाव-निर्देशांक बनाते समय वस्तुओं या मदों का चुनाव भी करना पड़ता है, क्योंकि किसी समय के समस्त मदों के आधार पर निर्देशांक बनाना न तो उचित है और न ही व्यावहारिक।
(3) आधार वर्ष का चुनाव-आधार वर्ष का चुनाव ऐसा होना चाहिए जिसमें कोई सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक व प्राकृतिक असामान्य घटना नहीं घटी हो, अर्थात् यह सामान्य वर्ष होना चाहिए।
(4) भारों का निर्धारण-यदि जिन मदों के सम्बन्ध में निर्देशांक बना रहे हैं, उनके महत्व में अन्तर है तो उनके महत्वानुसार भार भी देना पड़ता है। अत: भार देने की विधि का भी पहले ही निश्चय करना पड़ता है।
(5) उपयुक्त सूत्र का चुनाव-निर्देशांकों की रचना के लिए विभिन्न सूत्रों को प्रयोग में लाया जाता है, परन्तु उनमें से किसी एक उपयुक्त सूत्र को चुनना अत्यन्त आवश्यक है।

प्रश्न 6. निर्देशांकों की रचना विधि का वर्णन कीजिए।
अथवा
साधारण एवं भारित निर्देशांक को समझाइए।
उत्तर-साधारण निर्देशांक-इनको अभारित निर्देशांक भी कहते हैं। इनके निर्माण में सभी वस्तुओं को समान महत्व दिया जाता है। सरल निर्देशांकों को बनाने की निम्नांकित
दो विधियाँ हैं-
(1) सरल समूही विधि-निर्देशांक बनाने की यह सबसे सरल विधि है। इस विधि के अन्तर्गत प्रचलित वर्ष के लिए निर्देशांकों की गणना निम्नलिखित सूत्र द्वारा की जाती है-
जहाँ Pon = प्रचलित वर्ष का निर्देशांक
Ep1 = प्रचलित वर्ष के मूल्यों का योग
Lpo = आधार वर्ष के मूल्यों का योग
(2) मूल्यानुपात सरल माध्य विधि-इस रीति के अनुसार निर्देशांक का निर्माण करने के लिए सबसे पहले वस्तुओं या मदों के मूल्यानुपात ज्ञात किये जाते हैं। इसके पश्चात् माध्य का प्रयोग करके निर्देशांक ज्ञात किये जाते हैं। इसका सूत्र निम्नलिखित प्रकार से है-
भारित निर्देशांक-इनकी रचना दो प्रकार से की जाती है-
(1) मूल्यानुपातों का भारित माध्य-इस विधि द्वारा निर्देशांक ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है-
(2) भारित समूह विधि- इस रीति में प्रत्येक वस्तु का संगत भार लिया जाता है, जिसे निर्धारित करने की अनेक विधियाँ हैं। यहाँ संगत भार को W द्वारा प्रदर्शित किया जाता है-

प्रश्न 7 निर्देशांक की परिभाषा दीजिए तथा इसकी सीमाएँ बताइए।
अथवा
निर्देशांक की कोई चार सीमाएं लिखिए।
उत्तर-निर्देशांक का अर्थ-निर्देशांकों से हमारा आशय उन अंकों से है जिनकी सहायता से दो भिन्न-भिन्न समयों पर मुद्रा के सामान्य मूल्य का अनुमान लगाया जा सकता है तथा मूल्य में हुए परिवर्तनों का आसानी से पता लगाया जा सकता है। निर्देशांक विशिष्ट प्रकार के माध्य होते हैं जिनके द्वारा काल श्रेणी (Time Series) तथा स्थान श्रेणी (Space Series) की केन्द्रीय प्रवृत्ति का मापन सम्भव बनाया जाता है। डॉ. ए. एल. बाउले के अनुसार, “निर्देशांकों की समंकमाला एक ऐसी समंकमाला होती है जो अपनी प्रवृत्ति एवं परिवर्तन के द्वारा उस मात्रा में होने वाले परिवर्तनों की जिससे वह सम्बन्धित है, स्पष्ट करती है।” निर्देशांकों की सीमाएँ-निर्देशांकों की प्रमुख सीमाएँ निम्नलिखित हैं-
( पूर्णत: शुद्ध नहीं-प्राय: निर्देशांक न्यादर्श के आधार पर बनाये जाते हैं, इसलिए न्यादर्श जितना ही अधिक हो और जितनी उचित रीति से लिया गया हो, परिणाम उतना ही शुद्धता
के निकट होगा, परन्तु कई प्रकार के निर्देशांक बनाते समय सभी इकाइयाँ सम्मिलित नहीं की जाती। इसलिए परिणाम पूर्णत: शुद्ध या विश्वसनीय नहीं होते।
(2) आधार वर्ष के ठीक चुनाव न होने से अशुद्ध परिणाम-यदि आधार वर्ष के चुनाव में जरा-सी भी असावधानी होती है, तो परिणाम भ्रमपूर्ण होंगे। सामान्य मूल्य निर्देशांक की रचना करते समय यदि आधार वर्ष ऐसा है जिसमें काफी मन्दी रही हो, तो निर्देशांक उतनी महँगाई प्रदर्शित करेंगे सम्भवतः जितनी न हो, यदि इसी प्रकार आधार वर्ष में महँगाई रही, तो काफी महँगाई रहने पर भी निर्देशांक उतनी महँगाई प्रदर्शित नहीं करेंगे।
(3) सामान्य रूप से सत्य-प्राय: निर्देशांक सामान्य रूप से सत्य होते हैं। ये समस्त इकाइयों पर औसत के रूप में लागू होते हैं। इसलिए वे व्यक्तिगत इकाइयों को ध्यान में नहीं रखते हैं।
(4) आर्थिक परिवर्तनों की व्याख्या का अभाव-आर्थिक परिवर्तनों पर विचार किये बिना दो समयों के बीच वस्तुओं के मूल्यों की ठीक-ठाक तुलना सम्भव नहीं। उदाहरण के लिए, यदि 1972 के मूल्यों की तुलना 1960 के मूल्यों से करना चाहें, तो राज्य द्वारा प्रदान किये गये अनुदान, राशनिंग व्यवस्था, वस्तुओं के चुनाव पर प्रतिबन्ध, अवमूल्यन आदि बातों पर पड़ने वाले प्रभाव को ध्यान में रखे बिना नहीं की जा सकती है।
(5) निर्देशांक लगभग संकेतक होते हैं-निर्देशांकों से वास्तविक स्थिति का ज्ञान सम्भव नहीं, क्योंकि ये आधार वर्ष के चुनाव, सम्मिलित की जाने वाली वस्तुओं के चुनाव, भार देने आदि पर निर्भर रहते हैं। इन कार्यों में थोड़ा भी अन्तर आ जाने से अन्तर आ
जाता है।

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