Pariksha Adhyayan Economics इकाई6 विकास नीतियाँ और अनुभव (1947-90) in Hindi Class 11th Arthashastra mp board

इकाई6
विकास नीतियाँ और अनुभव (1947-90)

 इकाई6 विकास नीतियाँ और अनुभव (1947-90)

इकाई6
विकास नीतियाँ और अनुभव (1947-90)

वस्तुनिष्ठ प्रश्न
* बहु-विकल्पीय प्रश्न

1. अंग्रेजों ने भारत में आकर किस अर्थव्यवस्था को जन्म दिया ?
(i)अर्द्धसामन्तवादी अर्थव्यवस्था
(ii) पिछड़ी अर्थव्यवस्था
(ii) सुस्त अर्थव्यवस्था
(iv) सामान्य अर्थव्यवस्था।

2. भारत को स्वतन्त्रता मिली-
(i) 15 अगस्त, 1945 को
(ii)10/- 15 अगस्त, 1947 को
(iii) 26 जनवरी, 1947 को
(iv) 26 जनवरी, 1950 को।

3. ‘नागपुर योजना’ का सम्बन्ध है-
(i) विद्युत शक्ति से
(it) सड़कों के विकास से
(iii) संचार के विकास से
(iv) चीनी उद्योग से।

4. भारत में आर्थिक नियोजन (पहली पंचवर्षीय योजना) प्रारम्भ किया गया-
(i) 1 अप्रैल, 1990 से
(ii) 1 फरवरी, 1980 से
(iii) 1 अप्रैल, 1951 से
(iv) 31 मार्च, 2002 से।

5. भारत के आर्थिक विकास के लिए कौन-सी अर्थव्यवस्था को अपनाया गया है?
(i) पूँजीवाद
(ii) समाजवाद
(v) मिश्रित
(iv) साम्यवाद।

6. वर्तमान में योजना आयोग (नीति आयोग) के अध्यक्ष हैं-
(i) श्रीमती प्रतिभा पाटिल
(ii) नरेन्द्र मोदी
(iii) मोहम्मद हामिद अंसारी
(iv) श्री सोमनाथ चटर्जी।

7. भारत सरकार ने ‘योजना आयोग का गठन कब किया ?
अथवा
राष्ट्रीय योजना आयोग की नियुक्ति की गई-
for 15 मार्च, 1950 को
(ii) 15 मार्च, 1970 को
(ii) 15 मार्च, 1990 को
(iv) 15 मार्च, 1947 को।
उत्तर-1.(i), 2. (ii), 3. (ii), 4. (iii), 5. (iii), 6. (ii), 7. (i)|

* रिक्त स्थान पूर्ति
1. ब्रिटिश शासन से पूर्व भारत की अर्थव्यवस्था………….थी।
2. भारत का भौगोलिक क्षेत्रफल …………… लाख वर्ग किलोमीटर है।
3. ब्रिटिश शासन के समय भारतीय अर्थव्यवस्था का………..हुआ।
4. स्वतंत्रता के समय भारत में लगभग प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर…………..थी।
5. वानिकी तथा मछली पालन…………..क्षेत्र में शामिल है।
6. भारत में स्वतंत्रता के समय ………..” क्षेत्र पर जनसंख्या की निर्भरता न्यूनतम थी।
7…………..” का विकास प्रथम पंचवर्षीय योजना का मुख्य उद्देश्य था।
8. कुछ अर्थशास्त्री 1966-69 तक की अवधि को योजना…………की संख्या देते हैं।
9. कृषि के संस्थागत उपायों में कार्यक्रम प्रमुख है।
10. वर्तमान में केन्द्रीय सार्वजनिक उपक्रमों की संख्या
है।
उत्तर-1. आत्मनिर्भर, 2. 32,87,269, 3. शोषण, 4.72,5. प्राथमिक, 6. विनिर्माण (द्वितीयक क्षेत्र), 7. कृषि, 8. अवकाश, 9. भूमि सुधार, 10. 300 ।

* सत्य/असत्य
1. भारत में पहली रेलगाड़ी मुम्बई से थाणे तक चलाई गई थी।
2. ब्रिटिश काल में कच्चे माल का आयात किया जाता था।
3. भारतीय अर्थव्यवस्था को स्वतन्त्रता के समय विभाजन से हानियाँ हुई।
4. स्वतन्त्रता के समय रेल परिवहन की स्थिति अच्छी नहीं थी।
5. आर्थिक नियोजन अल्पकालीन प्रक्रिया है।
6. हरित क्रान्ति का सम्बन्ध दुग्ध उत्पादन से है।
उत्तर-1. सत्य, 2. असत्य, 3, सत्य, 4. सत्य, 5. असत्य, 6. असत्य।

* जोड़ी बनाइए

1. प्राथमिक क्षेत्र (क) भारतीय अर्थव्यवस्था का औपनिवेशिक शोषण किया।
2. भारत में वायु परिवहन शुभारम्भ (ख) कृषि
3. ब्रिटिश शासन ने (ग) 1927
4. पिछड़ी अर्थव्यवस्था (घ) औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था/भारतीय
अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गयी
थी।
5. स्वतन्त्रता के समय (ङ) निम्न जीवनस्तर
6. भारत में रेल सेवा का प्रारम्भ (च) 1853
उत्तर-1. → (ख), 2. → (ग), 3. → (क), 4. → (ङ), 5. → (घ),
6. →(च)।

* एक शब्द/वाक्य में उत्तर
1. प्राथमिक क्षेत्र किसे कहते हैं ?
उत्तर-कृषि से सम्बन्धित क्षेत्र।

2. भारत में पहली रेलगाड़ी मुम्बई और किस स्थान के बीच शुरू हुई ?
उत्तर-थाणे।

3. स्वतन्त्रता के समय भारत की शिशु मृत्यु दर कितनी थी?
उत्तर-218 प्रति हजार।

4. भारत में महान विभाजक वर्ष किसे कहा जाता है ?
उत्तर-1921, जब जनसंख्या वृद्धि में गिरावट देखी गई।

5. एम. आर. टी. पी. एक्ट का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर-एकाधिकार एवं प्रतिबन्ध व्यापार व्यवहार अधिनियम (Monopoly Restrictive Trade Practices Act)

6. जी. डी. पी. का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर-सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product).

7. योजना आयोग का गठन कब हुआ?
उत्तर-15 मार्च, 1950

8. भारत में किन फसलों की प्रमुखता है ?
उत्तर-खाद्यान्न फसलों की।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की क्या स्थिति थी?
उत्तर-स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था अल्पविकसित, गतिहीन, निर्धन, पिछड़ी, असंतुलित और औपनिवेशिक थी।

प्रश्न 2. बाजार अर्थव्यवस्था का अर्थ बताइए।
उत्तर-जिस व्यवसाय में समस्त वस्तुओं, सेवाओं का क्रय-विक्रय-भुगतान और प्राप्तियों का आधार मुद्रा हो और सारा उत्पादन बाजार बेचने के उद्देश्य से किया जाए, उसे बाजार अर्थव्यवस्था कहते हैं।

प्रश्न 3. व्यावसायिक संरचना (आकार) से क्या आशय है ?
उत्तर-व्यावसायिक संरचना से आशय किसी देश की श्रम शक्ति का विभिन्न उद्योगों तथा क्षेत्रों में वितरण है। इन क्षेत्रों को हम मुख्य रूप से तीन भागों में बाँट सकते हैं-(1)
(2) उद्योग, (3) सेवाएँ।

प्रश्न 4. औपनिवेशिक काल में भारतीय सम्पत्ति के निष्कासन से आप क्या समझते हैं ?
1) कृषि,
उत्तर-अंग्रेजों ने भारतीय अर्थव्यवस्था का नियमित ढंग से शोषण किया और उपहार स्वरूप भारी मात्रा में भारत की सम्पत्ति अपने देश में भेजने लगे। यह क्रिया इतने व्यापक स्तर पर की गई कि इसे सम्पत्ति के निष्कासन के नाम से पुकारा जाने लगा।

प्रश्न 5. तृतीयक क्षेत्र के दो उदाहरण लिखिए।
उत्तर-परिवहन, संचार, बैंक, व्यापार आदि से सम्बन्धित गतिविधियाँ तृतीयक क्षेत्र में आती हैं।

प्रश्न 6. गतिहीन अर्थव्यवस्था से क्या आशय है ?
उत्तर-गतिहीन अर्थव्यवस्था से आशय ऐसी स्थिति से है जब किसी देश की वास्तविक राष्ट्रीय आय में लम्बे समय तक कोई वृद्धि नहीं होती है।

प्रश्न 7. भारत में प्रथम रेलगाड़ी कब और कहाँ चलाई गई ?
उत्तर-भारत में प्रथम रेलगाड़ी मुम्बई से थाणे के मध्य 16 अप्रैल 1853 को चलाई गई।

प्रश्न 8. ‘नागपुर योजना’ क्या है ? 4
उत्तर-भारत में सड़कों के विकास की दिशा में पहला आयोजित प्रयास 1943 में किया गया था। इस वर्ष सड़कों के मुख्य इंजीनियर नागपुर में मिले थे। इन्होंने सड़कों के विकास के
लिए एक दसवर्षीय योजना तैयार की थी, जिसे ‘नागपुर योजना’ का नाम दिया गया। विकास नीतियाँ और अनुभव (1947-190)

प्रश्न 9. प्राथमिक क्षेत्र के दो उदाहरण लिखिए।
उत्तर-(1) कृषि, (2) मछली पालन।

प्रश्न 10. आर्थिक नियोजन का क्या आशय है?
उत्तर-आर्थिक नियोजन का आशय एक केन्द्रीय सत्ता द्वारा देश में उपलब्ध प्राकृतिक एवं मानवीय संसाधनों का सन्तुलित ढंग से, एक निश्चित अवधि के अन्तर्गत, निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति करना है जिससे देश का तीव्र गति से आर्थिक विकास किया जा सके।

प्रश्न 11. भारत में आर्थिक नियोजन के प्रमुख उद्देश्य बताइए।
उत्तर-भारत में आर्थिक नियोजन के मुख्य रूप से पाँच उद्देश्य हैं-
(1) आर्थिक संवृद्धि या विकास, (2) आत्मनिर्भरता, (3) रोजगार, (4) आर्थिक
असमानताओं में कमी, एवं (5) गरीबी निवारण।

प्रश्न 12. भारत में प्रथम पंचवर्षीय योजना कब प्रारम्भ हुई?
उत्तर-भारत में प्रथम पंचवर्षीय योजना 1 अप्रैल, 1951 से प्रारम्भ हुई थी।

प्रश्न 13. भारत में राष्ट्रीय आय की धीमी वृद्धि की तीन उत्तरदायी त्रुटियाँ बताइए।
उत्तर-(1) पूँजी निर्माण की दर बहुत कम है।
(2) औद्योगिक क्षेत्र में धीमी प्रगति।
(3) जनसंख्या वृद्धि।

प्रश्न 14.आर्थिक नियोजन द्वारा आय की समानता किस प्रकार लाई जा सकती है?
उत्तर-नियोजन का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य आर्थिक समानता है ताकि देश में सामाजिक न्याय की स्थापना की जा सके। धन व आय की असमानताएँ सामान्य जीवन-स्तर को ऊपर
उठाने में बाधक होती हैं। नियोजन में समाजवादी विचारधारा विद्यमान होती है। अत: आर्थिक विषमता को कम करने में भी नियोजन महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

प्रश्न 15. ‘आर्थिक विकास’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-आर्थिक विकास एक सतत् प्रक्रिया है, जिसमें एक निश्चित अवधि में देश को वास्तविक राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है।

प्रश्न 16. हरित क्रान्ति से क्या आशय है ?
(2018)
उत्तर-हरित क्रान्ति से आशय कृषि उत्पादन तथा उत्पादकता में उस वृद्धि से है जो देश में थोड़े समय में अधिक मात्रा में ऊँची उपज देने वाले बीजों तथा रासायनिक खादों के प्रयोग
के फलस्वरूप हुई है। इसमें बीज व खाद के संयोग को सफल बनाने के लिए इनसे सम्बन्धित अन्य आवश्यक साधनों जैसे-सिंचाई, मशीनों, कीटनाशक दवाओं आदि को भी जुटाया
जाता है।

प्रश्न 17. योजना आयोग के कार्य लिखिए।
उत्तर-योजना आयोग के कार्य-योजना आयोग के प्रमुख कार्य राष्ट्र की आवश्यकताओं को ध्यान रखते हुए राष्ट्रीय संसाधनों के कुशलतम उपयोग के लिए योजनाएँ बनाना एवं उनकी क्रियान्वित करने के लिए सुझाव देने तथा विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना है।

प्रश्न 18. कुटीर उद्योगों से क्या आशय है ?
उत्तर-कुटीर उद्योगों से आशय ऐसे उद्योगों से है जो प्रायः ग्रामीण एवं अर्द्ध शहरी क्षेत्रों में स्थापित होते हैं तथा अंशकालीन रोजगार प्रदान करते हैं। इनमें निवेशित पूँजी व तकनीक का स्तर अपेक्षाकृत निम्न होता है। यह उद्योग परिवार के सदस्यों द्वारा संचालित होते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. गतिहीनता, निर्धनता और आर्थिक पिछड़ापन, अंग्रेजी शासनकाल में परस्पर एक-दूसरे से सम्बन्धित थे। समझाइए, कैसे ?
उत्तर-गतिहीनता, निर्धनता और आर्थिक पिछड़ेपन में सम्बन्ध
ब्रिटिश शासनकाल में गतिहीनता, निर्धनता और आर्थिक पिछड़ापन एक-दूसरे से जुड़े हुए थे, लेकिन भारत की दुर्दशा का मूल कारण गतिहीनता ही थी। अंग्रेजों के आने से पूर्व भारत
न तो समकालीन यूरोप की तुलना में निर्धन था और न ही उसे आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा माना जा सकता है, लेकिन उस समय भी उसमें विकास के तत्व नहीं थे। आत्मनिर्भर ग्रामीण समाज
में जड़ता थी और विश्व में होने वाले परिवर्तनों से कटे हुए इन गाँवों में विकास की सम्भावनाएँ नहीं थीं। शहरों में दस्तकार कुशल अवश्य थे लेकिन उन्हें मशीनों का उपयोग पता नहीं था।
यही कारण है कि जब भारतीय अर्थव्यवस्था पर अंग्रेजों ने चोट की तो वह बिखर गई और दो सौ वर्षों में कोई विकास नहीं हुआ। आर्थिक जीवन में यह गतिहीनता भारत की गरीबी और
आर्थिक पिछड़ेपन का कारण बनी।

प्रश्न 2, रेलों के विकास के दुष्परिणाम बताइए।
उत्तर-(1) रेलों के निर्माण से भारत की कृषि का स्वरूप पूर्णत: उपनिवेशवादी हो गया। अंग्रेज पहले ही भारत को इंग्लैण्ड के उद्योगों के लिए कच्चे माल का उत्पादक बना रहे थे, रेलों के निर्माण ने यह कार्य आसान कर दिया।
(2) रेल निर्माण ने व्यापार की वृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान दिया, परन्तु व्यापार का रूप भी उपनिवेशवादी हो गया। रेलों की सहायता से इंग्लैण्ड की बनी हुई वस्तुएँ भारत के गाँव गाँव तक पहुँचने लगीं। इस प्रकार, रेलों द्वारा भी अंग्रेज भारत का शोषण करने में सफल हुए।
(3) रेलों ने 19वीं शताब्दी में भारतीय दस्तकारियों को नष्ट करने में अंग्रेजों की पूरी मदद की। परन्तु बीसवीं शताब्दी में भारतीय रेलों ने उद्योगों और विशेषकर भारी उद्योगों की स्थापना में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

प्रश्न 3. ब्रिटिश आर्थिक नीति का भारतीय उद्योगों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-भारत में ब्रिटिश सरकार की आर्थिक नीतियों के कारण भारतीय उद्योग-व्यापार नष्ट हो गये। औद्योगिक क्रान्ति के पश्चात् इंग्लैण्ड में सूती वस्त्र उद्योग के विकास के कारण तथा यूरोप में आयातों पर बढ़ते प्रतिबन्ध के कारण अंग्रेजी सरकार ने भारतीय उद्योगों को नष्ट करने की नीति अपनायी। भारत कुछ ही दशकों के भीतर एक प्रमुख निर्यातक की स्थिति से गिरकर विदेशी वस्तुओं का सबसे बड़ा उपभोक्ता राष्ट्र बन गया। भारतीय कुटीर तथा छोटे
पैमाने के उद्योगों का तेजी से पतन हो गया, क्योंकि वे इंग्लैण्ड के कारखानों के बने माल की प्रतियोगिता विदेशी सरकार की शत्रुतापूर्ण नीति के कारण न कर सके। अब वह ब्रिटिश उद्योगों
के लिए कच्चे माल का उत्पादन करने लगे। भारत का विदेशी व्यापार भारतीय व्यापारियों के हाथों से निकल गया।

प्रश्न 4. भारतीय अर्थव्यवस्था पर ब्रिटिश शासन का रचनात्मक प्रभाव चार बिन्दुओं में लिखिए। 4
उत्तर-
भारतीय अर्थव्यवस्था पर ब्रिटिश शासन के रचनात्मक प्रभाव
(1) नवीन सामाजिक व्यवस्था-पुरानी सामाजिक व्यवस्था को समाप्त कर अंग्रेजों ने नवीन सामाजिक व्यवस्था की नींव रखी थी। ब्रिटिश सभ्यता के आगमन से लोगों के रहन-सहन और सोचने-विचारने के तरीकों में परिवर्तन आया। सामाजिक पथ में यह एक अनुकूल प्रभाव था।
(2) यातायात तथा संचार साधनों का विकास-उन्नीसर्वी सदी के मध्य तक भारत में परिवहन के साधन पिछड़े हुए थे। ब्रिटिश शासन ने इनमें सुधार किये। “उन्होंने नदियों में स्टीमर चलाए तथा सड़कों को सुधारना आरम्भ किया। ग्रैंड ट्रंक रोड पर कोलकाता से दिल्ली तक का काम 1839 में प्रारम्भ किया गया और उसे उन्नीसर्वी सदी के छठे दशक में पूरा कर लिया गया। किन्तु परिवहन में असली सुधार सिर्फ रेलमार्गों के निर्माण से हुआ। रेलवे के विकास से भारत में विकास की संभावनाएँ बड़ी सुदृढ़ हुई।”
(3) औद्योगिक विकास-जहाँ एक ओर भारत के हस्त उद्योगों का पतन हो रहा था, वहीं दूसरी ओर नवीन प्रकार के उद्योगों का भारत में जन्म भी हो रहा था। भारत में आधुनिक उद्योगों का विकास 1850 के पश्चात् हुआ। नवीन औद्योगिक क्रिया ने दो रूप
लिये-बागान उद्योग एवं कारखाना उद्योग। कारखाना उद्योग की वास्तविक व सन्तोषजनक प्रगति 1875 के पश्चात् हुई। आगे चलकर सूती और जूट उद्योग का पर्याप्त विकास हुआ।
इसके अतिरिक्त, ऊन, चमड़ा, चीनी और कागज जैसे उद्योग भी उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त तक स्थापित हो गये थे।
(4) शिक्षा का विकास-ब्रिटिश शिक्षा भारत के लिए हानिप्रद रही, तो कुछ क्षेत्रों में लाभप्रद भी रही। जैसा कि श्री ताराचन्द लिखते हैं-“यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि अंग्रेजी शिक्षा ने एक आधुनिक समाज के विकास में निश्चित योगदान दिया और भारत के लोगों के एकीकरण में हाथ बटाया।”

प्रश्न5. देश विभाजन का भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा? (काइचार)
अथवा
पन
सन् 1947 में देश के विभाजन का भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा?
अथवा
देश के विभाजन से उत्पन्न चार समस्याएं लिखिए।
उत्तर-देश विभाजन का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव विभाजन से भारतीय अर्थव्यवस्था पर दूरगामी कुप्रभाव पड़े। विभाजन के मुख्य प्रार्थिक घातक परिणाम निम्नलिखित हैं-
(1) विभाजन के पश्चात् खाद्य समस्या गम्भीर हो गई। इसका प्रमुख कारण यह था कि भारत के हिस्से में 82 प्रतिशत जनसंख्या आई, जबकि चावल के उत्पादन का केवल प्रतिशत और गेहूँ के उत्पादन का केवल 65 प्रतिशत भाग भारत को मिला।
(2) भारत विभाजन के परिणामस्वरूप कृषि व्यवसाय को जो विभाजन हुआ उससे देश के सूती वस्त्र और जूट उद्योगों को बहुत हानि हुई। भारत में स्थापित जूट मिलों को कच्चा जुट मिलना बन्द हो गया व मुम्बई तथा अहमदाबाद कपड़ा मिलों को कपास मिलना बन्द हो गया।
(3) भारत विभाजन से पूर्व कुशल कारीगर अधिक संख्या में मुस्लिम थे। विभाजन के पश्चात् ये लोग बड़ी संख्या में पाकिस्तान चले गये, जिसके फलस्वरूप भारत में योग्य कारीगरों
के अभाव का अनुभव किया जाने लगा।
(4) भारत के विभाजन के परिणामस्वरूप देश की परिवहन व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। विभाजन से पूर्व भारत में 68,300 किलोमीटर लम्बी रेल लाइनें थीं। विभाजन के
पश्चात् लगभग 11,000 किलोमीटर लम्बी रेल लाइन पाकिस्तान में चली गई। विभाजन के फलस्वरूप भारत के दो बड़े बन्दरगाह कराची और चटगाँव पाकिस्तान में चले गये। चटगाँव से असम और पश्चिमी बंगाल का माल निर्यात होता था। उसे कोलकाता तक लाने के लिए यातायात व्यवस्था करनी पड़ी। इसी प्रकार, कराची भी एक बड़ा बन्दरगाह था जिससे भारत का
विदेशी व्यापार होता था। इसकी कमी को पूरा करने के लिए भारत को काँडला का बन्दरगाह विकसित करना पड़ा।
संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि स्वतन्त्रता के समय देश में सामाजिक और आर्थिक चुनौतियाँ बहुतु/अधिक थीं।

प्रश्न 6. परिवहन का अर्थ एवं उसके महत्व को समझाइए।
अथवा
परिवहन का आर्थिक महत्व लिखिए।
उत्तर-परिवहन का अर्थ-परिवहन का अर्थ है, मनुष्य या सम्पत्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाना या ले आना। परिवहन के अन्तर्गत सड़क, रेल तथा वायु परिवहन आते हैं।
महत्व-यातायात के सभी साधनों ने मिलकर सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक क्रान्ति पैदा की है। इन साधनों का जीवन के हर क्षेत्र में विशेष महत्व है जो अग्र प्रकार है-

(1) यातायात के साधनों से हम आसानी से कम समय में एक स्थान से दूसरे स्थान
(2) औद्योगिक कच्चे माल को उनके प्राप्ति स्थल से औद्योगिक केन्द्रों तक तथा औद्योगिक केन्द्रों से तैयार माल को बाजारों और उपभोक्ताओं तक पहुँचाते हैं।
(3) इन साधनों के द्वारा उपभोक्ता वस्तुएँ बाजारों तथा उपभोक्ताओं तक शीघ्रता से पहुँचायी जाती हैं।
(4) देश के विभिन्न क्षेत्रों में अशान्ति, सूखा, बाढ़, महामारियों आदि की स्थिति उत्पन्न होने पर तत्काल सहायता पहुँचाने में यातायात के साधन मददगार होते हैं।

प्रश्न 7. सामाजिक अधो-संरचना के महत्व की विवेचना कीजिए।
उत्तर-सामाजिक आधारित संरचना से आशय उस आधारिक संरचना से है जो आर्थिक क्रियाओं को अप्रत्यक्ष रूप से तथा उत्पादन एवं वितरण प्रणाली को बाहर से अपना योगदान
देती है। शिक्षा, प्रशिक्षण तथा शोध, स्वास्थ्य, आवास आदि सामाजिक आधारिक संरचनाएँ हैं। सामाजिक आधारिक संरचना के फलस्वरूप लोगों की उत्पादन क्षमता बढ़ जाती है और वे
अधिक कुशलतापूर्वक उत्पादन कर पाते हैं। इसके प्रमुख महत्व निम्नांकित हैं-
(1) शिक्षा प्रशिक्षण, शोध, स्वास्थ्य तथा आवास आदि सामाजिक संरचनाओं के घटक हैं।
(2) इन संरचनाओं का उद्देश्य मानव तथा उसके वातावरण को सुधारना है।
(3) ये संरचनाएँ प्रबन्धक, इंजीनियर आदि उपलब्ध कराती हैं।
(4) ये संरचनाएँ अर्थव्यवस्था को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं।
(5) ये आर्थिक संरचनाओं का आधार है।

प्रश्न 8. औद्योगिक विकास में धीमी वृद्धि के कारण बताइए। (2018)
उत्तर-औद्योगिक विकास में धीमी वृद्धि के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
(1) औद्योगिक नियमन व नियन्त्रण-देश में औद्योगिक नियमन व नियन्त्रण के कठोर
कानून बनाये गये जिनका औद्योगिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
(2) तेल कीमतों में वृद्धि-खनिज तेलों की कीमतों में बहुत तेजी से वृद्धि हुई है
जिसका औद्योगिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
(3) कृषि क्षेत्र में धीमी प्रगति-कृषि का तेजी से विकास न हो पाने के कारण उद्योगों
में कच्चे माल व उत्पादित वस्तुओं की माँग की समस्या रही। फलस्वरूप, औद्योगिक विकास
धीमा हुआ।
(4) हड़ताले व तालाबन्दी-देश में औद्योगिक शान्ति का अभाव रहा है। विभिन्न वर्षों
में हड़ताले व तालाबन्दी बड़ी मात्रा में हुईं। इसका उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।

प्रश्न 9. भारत में नियोजन की व्यूह रचना से क्या आशय है ?
उत्तर-योजनाओं में उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए कुछ विशेष कार्य करने पड़ते हैं। उदाहरण के लिए, प्रथम पंचवर्षीय योजना का उद्देश्य भारत की अस्त-व्यस्त अर्थव्यवस्था को संगठित करना तथा अनाज के अभाव को दूर करना था। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कृषि के विकास को विशेष महत्व दिया गया। इसे प्रथम योजना की व्यूह रचना कहा गया। अर्थात् व्यूह रचना से
आशय उन कार्यों तथा नीतियों से जिनके द्वारा योजना के निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति की जाती है।

प्रश्न 10. आर्थिक नियोजन के राजनैतिक उद्देश्यों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-आर्थिक नियोजन के राजनैतिक उद्देश्य-राजनैतिक उद्देश्यों की पूर्ति में आर्थिक नियोजन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। नियोजन के प्रमुख राजनैतिक उद्देश्य निम्न प्रकार हैं-
(1) शान्ति-शान्ति की स्थापना आज के आर्थिक नियोजन का मुख्य राजनैतिक उद्देश्य माना जाता है। शान्ति के बिना आर्थिक विकास एवं समृद्धि की कल्पना करना ही व्यर्थ है। आज विश्व शान्ति को संसार की आर्थिक समृद्धि का आवश्यक अंग माना जाने लगा है।
(2) सुरक्षा-किसी देश के आर्थिक विकास के लिए देश की आन्तरिक एवं बाह्य सुरक्षा अति आवश्यक होती है। सम्भावित आक्रमण से देश की सीमाओं की सुरक्षा करने के लिए देश के संसाधनों का समायोजन, उद्योगों का संगठन एवं नीतियों का परिचालन नियोजन के माध्यम से किया जाता है।
(3) युद्ध-पूर्व में आर्थिक नियोजन का उद्देश्य साम्राज्यवाद का विस्तार करना था। परन्तु आज इन उद्देश्यों को ध्यान में रखकर आर्थिक नियोजन नहीं किया जाता। यह उद्देश्य शान्ति एवं सुरक्षा उद्देश्यों में समाहित है।

प्रश्न 11. भारत में कृषि उत्पादकता को बढ़ाने के लिए सुझाव दीजिए। (2018)
उत्तर- भारत में कृषि उत्पादकता को बढ़ाने के लिए निम्न सुझाव दिये जा सकते हैं-
(1) उत्तम बीजों का प्रयोग-विभिन्न कृषि क्षेत्रों की प्राकृतिक परिस्थितियों के अनुरूप उत्तम किस्म के बीजों का प्रयोग किया जाये। इससे उत्पादकता में वृद्धि होगी।
(2) सिंचाई के साधनों का विकास- भारत में कृषि वर्षा पर निर्भर न रहे इसके लिए सिंचाई सुविधाओं का विस्तार किया जाये। इसमें लघु एवं मध्यम परियोजनाओं को बढ़ाया जाये
(3) फसलों की सुरक्षा-फसलों को रोगों एवं कीटाणुओं से जो हानि पहुँचती है उसे कीटनाशक दवाओं के प्रयोग से रोका जा सकता है।
(4) कृषि साख की व्यवस्था में सुधार-छोटे किसानों को नीची ब्याज दरों पर वित्त की सुविधा उपलब्ध करायी जाये। तभी वह कृषि की आधुनिक तकनीक का प्रयोग कर सकते हैं। इसके लिए ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकों व अन्य वित्तीय संस्थाओं का विकास किया जाये।

प्रश्न 12. प्रथम पंचवर्षीय योजना के प्रमुख उद्देश्य बताइए।
अथवा
प्रथम पंचवर्षीय योजना के दो उद्देश्य लिखिए।
उत्तर-प्रथम पंचवर्षीय योजना (1 अप्रैल, 1951 से 31 मार्च, 1956 तक)-प्रथम पंचवर्षीय योजना के अनुसार, “नियोजन का मुख्य उद्देश्य जनता के जीवन स्तर को ऊँचा उठाना तथा उसे एक आर्थिक रूप में शक्तिशाली एवं विविधतामय जीवन व्यतीत करने के
अग्रलिखित लक्ष्य निर्धारित किये गये थे-
लिए अवसर प्रदान करना है।” इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रथम पंचवर्षीय योजना के विकास नीतियाँ और अनुभव (1947-90) 115
(1) देश में द्वितीय विश्व युद्ध एवं भारत-विभाजन के परिणामस्वरूप उत्पन्न असन्तुलन को ठीक करना।
(2) प्रत्येक क्षेत्र में सन्तुलित आर्थिक विकास करना, राष्ट्रीय आय, प्रति व्यक्ति आय एवं जनता के रहन-सहन के स्तर में वृद्धि करना।
(3) अधिकतम उत्पादन प्राप्त करने के लिए देश के मानवीय एवं भौतिक साधनों का विवेकपूर्ण एवं सर्वोत्तम उपयोग करना।
(4) देश में व्याप्त आय, सम्पत्ति एवं अवसरों की विषमता को समाप्त करना।

प्रश्न 13. योजना आयोग क्या है ? इसके कार्य समझाइए। 4.
उत्तर- भारत में योजना आयोग का गठन परामर्शदात्री एवं विशेषज्ञ संस्था के रूप में संघ के मन्त्रिमण्डल के एक संकल्प द्वारा 1950 में किया गया। योजना आयोग के प्रधानमन्त्री पदेन अध्यक्ष होते हैं तथा सरकार की इच्छानुसार इसके उपाध्यक्ष एवं सदस्यों का चुनाव किया जाता है। इसके प्रमुख कार्य निम्न प्रकार हैं-
(1) राष्ट्र के भौतिक, पूँजीगत एवं मानवीय संसाधनों का अनुमान लगाना तथा उसमें वृद्धि सम्बन्धित उपाय सुझाना।
(2) राष्ट्रीय संसाधनों के अधिक से अधिक प्रभावी एवं सन्तुलित उपयोग हेतु आयोजन की रूपरेखा बनाना।
(3) योजना के विभिन्न चरणों का निर्धारण करना एवं प्राथमिकता के आधार पर संसाधनों का आबंटन करने का प्रस्ताव करना।
(4) योजना के प्रत्येक चरण की कार्यशीलता का आकलन करना और सुधारात्मक सुझाव देना।

प्रश्न 14. राष्ट्रीय विकास परिषद् के किन्हीं चार कार्यों को लिखिए।
उत्तर-राष्ट्रीय विकास परिषद् का गठन 6 अगस्त, 1952 को किया गया। प्रधानमन्त्री
इसके पदेन अध्यक्ष होते हैं। इस परिषद के प्रमुख कार्य हैं-
(1) योजना आयोग को प्राथमिकताएँ निर्धारण में परामर्श देना।
(2) योजना के लक्ष्यों के निर्धारण में योजना आयोग को सुझाव देना।
(3) योजना को प्रभावित करने वाले आर्थिक एवं सामाजिक घटकों की समीक्षा करना।
(4) योजना आयोग द्वारा तैयार की गई योजना का अध्ययन करके उसे अन्तिम रूप देना तथा स्वीकृति प्रदान करना।

प्रश्न 15. अनवरत योजना क्या है ? भारत में इसकी कब और क्यों आवश्यकता पड़ी?
अथवा
अनवरत योजना से आप क्या समझते हैं ? समझाइए।
उत्तर- जनता पार्टी सरकार ने पाँचवीं योजना को, चार वर्ष पूरा होने पर 31 मार्च, 1978 को समाप्त घोषित कर दिया तथा 1978-1983 की अवधि के लिए एक पंचवर्षीय योजना तैयार कराई। यह योजना समय को स्थिर न मानकर निरन्तर गतिशील मानती थी, इसलिए इस योजना को अनवरत योजना (Rolling Plan) कहा जाता है। योजना की कार्य नीति में यह एक मूलभूत परिवर्तन था क्योंकि इसमें योजनाकारों ने प्रस्ताव रखा था कि वर्तमान वर्ष की परिस्थिति के अनुरूप अगले पाँच वर्षों के लिए और अगले वर्ष की परिस्थिति के अनुरूप अगले पाँच
जनता पार्टी की सरकार गिरने के पश्चात् जनवरी 1980 में बनी कांग्रेस (इ) सरकार ने इस अनवरत योजना के सिद्धान्त को नकार दिया।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न । स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारतीय अर्थव्यवस्था के पिछड़ेपन के कारणों को समझाइए।
अथवा
क्या स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था पिछड़ी हुई थी ? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
ब्रिटिश शासन का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव लिखिए। (कोई पाँच)
(2019)
(संकेत : रचनात्मक प्रभाव के लिए लघु उत्तरीय प्रश्न 4 का उत्तर देखें।
उत्तर-(1) कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था-स्वतन्त्रता के समय लगभग 70 प्रतिशत श्रम शक्ति कृषि में लगी हुई थी। ब्रिटिश शासन ने खाद्यान्न के स्थान पर वाणिज्यिक फसलों के उत्पादन पर जोर दिया, जिससे भारत में खाद्यान्नों की कमी हो गयी। स्वतन्त्रता के समय भारत में खाद्यान्नों को भारी कमी थी। भारत में भूमि पर जनसंख्या का दबाव बढ़ता रहा था, जिसके कारण कृषि में उत्पादकता का ह्रास हुआ।
(2) प्रति व्यक्ति निम्न आय-भारतीय अर्थव्यवस्था का पिछड़ापन इस बात से भी स्पष्ट होता है कि भारत की प्रति व्यक्ति आय बहुत कम थी। श्री के. मुखर्जी के अनुसार, वर्ष 1947 में जो प्रति व्यक्ति आय थी, वह सन् 1901 में प्रति व्यक्ति आय के बराबर थी। दूसरे
शब्दों में, कहा जा सकता था कि स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था इसलिए पिछड़ी हुई थी क्योंकि यहाँ की प्रति व्यक्ति आय या तो स्थिर थी या फिर उसमें वृद्धि बहुत कम थी।
(3) गरीबी-किसी देश में गरीबी का पाया जाना इस बात का संकेत करता है कि वहाँ की अर्थव्यवस्था पिछड़ी है। यह बात भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी लागू होती है। स्वतन्त्रता
के समय भारत की 40 करोड़ आबादी अपर्याप्त भोजन पर अपना जीवन-निर्वाह करती थी। अधिकांश जनता के भोजन में चीनी, माँस, चिकनाई आदि की मात्रा बहुत कम थी।
(4) परम्परागत कृषि- भारत में परम्परागत ढंग से खेती होती थी, अर्थात् वही पुराने लकड़ी के हल व बैल कृषि में प्रयोग होते थे। वर्षा के अलावा सिंचाई का अन्य कोई साधन नहीं था। इससे स्पष्ट होता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था पिछड़ी थी।
(5) उद्योगों का कम विकास-भारत में उद्योगों का विकास बहुत कम हुआ था। भारी तथा आधारित उद्योग; जैसे-मशीन, लोहा, इस्पात आदि बहुत कम थे। उपभोग्य वस्तुओं के ही उद्योग प्राय: मुख्य रूप से स्थापित थे। साथ ही लघु एवं पिछड़े उद्योगों की प्रधानता थी।
(6) निरक्षरता-निरक्षरता भी किसी देश के पिछड़ेपन का संकेत होती है। भारत में भी व्यापक निरक्षरता पाई जाती थी। ब्रिटिश काल की अन्तिम जनगणना 1941 में हुई थी जिसमें पाया गया था कि भारत में 10 वर्ष से कम आयु के बच्चों को छोड़कर शेष कुल जनसंख्या पाई जाती थी। के केवल 17 प्रतिशत व्यक्ति ही साक्षर थे। ग्रामीण क्षेत्र में तो स्त्री साक्षरता नाममात्र को ही
(7) आधारिक संरचना का कम विकास स्वतन्त्रता के समय भारत की आधारिक संरचना; जैसे-बिजली, संचार, यातायात आदि के साधनों का बहुत कम विकास हुआ था। यहाँ शक्ति के साधन पर्याप्त मात्रा में नहीं थे। सड़कें बहुत कम थीं। जो सड़कें थीं, वे कच्ची थीं। सन्देशवाहन के लिए यद्यपि डाक-तार विभाग था, लेकिन यह बड़े शहरों व नगरों को ही जोड़ पाता था। ग्रामीण क्षेत्र इससे अलग था। बैंकों का विकास पूर्णरूप से नहीं हुआ था। दीर्घकालीन वित्त प्रदान करने वाली कोई संस्था नहीं थी। इस तरह, उस समय भारत की आधारिक संरचना का ढाँचा बहुत कमजोर था, जबकि किसी भी देश का विकास आधारिक ढाँचे पर निर्भर करता है।

प्रश्न 2. स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारतीय जनसंख्या के व्यावसायिक वितरण की विशेषताएँ बताइए।
अथवा
प्राथमिक क्षेत्र की परिभाषा दीजिए।
(2018)
|संकेत : प्राथमिक क्षेत्र शीर्षक देखें।।
अथवा
द्वितीयक क्षेत्र की परिभाषा दीजिए।
(2018)
[संकेत : द्वितीयक क्षेत्र शीर्षक देखें।।
उत्तर-जनसंख्या का व्यावसायिक वितरण आर्थिक विकास के स्तर का महत्वपूर्ण मापदण्ड है। व्यावसायिक वितरण से आशय कार्यशील जनसंख्या का विभिन्न आर्थिक क्रियाओं में विभाजन से है, अर्थात् विभिन्न आर्थिक क्रियाओं में क्रियाशील जनसंख्या की तुलनात्मक मात्रा के अध्ययन को व्यावसायिक वितरण के अध्ययन में शामिल किया जाता है। अर्थशास्त्रियों ने विभिन्न व्यवसायों को तीन भागों में बाँटा हुआ है-
(1) प्राथमिक क्षेत्र-इस क्षेत्र में कृषि, वानिकी, मछली पकड़ना, जंगलों से वस्तुएँ प्राप्त करना इत्यादि को शामिल किया जाता है।
(2) द्वितीयक क्षेत्र-इस क्षेत्र में विनिर्माण उद्योग, गैस तथा बिजली इत्यादि के उत्पादन को शामिल किया जाता है।
(3) तृतीयक क्षेत्र-इस वर्ग में प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्र की क्रियाओं को सहायता देने वाले व्यवसायों को शामिल किया जाता है। स्वतन्त्रता के समय व्यावसायिक संरचना की स्थिति निम्न प्रकार थी-
कार्यशील जनसंख्या का प्रतिशत क्षेत्र
उपर्युक्त तालिका के आँकड़ों से स्पष्ट है कि 1901 और 1921 की अवधि में कार्यशील जनसंख्या का प्राथमिक क्षेत्र में अनुपात निरन्तर बढ़ता गया। इसका मुख्य कारण ब्रिटिश सरकार
की वाणिज्यिक नीति थी, जिसके अन्तर्गत भारत के कुटीर उद्योगों और निर्मित वस्तुओं को इंग्लैण्ड में मशीनों द्वारा निर्मित वस्तुओं से प्रतियोगिता करनी पड़ी। फलस्वरूप, कुटीर और लघु उद्योगों का पतन होने लगा और उन उद्योग में लगी जनसंख्या मजबूरी में अपनी आजीविका पूर्ति के लिए कृषि पर आश्रित होने लगी। इस व्यावसायिक ढाँचे से स्पष्ट है कि उस समय भारत में अविकसित अर्थव्यवस्था थी।

प्रश्न 3. ब्रिटिश शासन से पूर्व की भारतीय अर्थव्यवस्था का वर्णन करो।
उत्तर-
किया जा सकता है-
(1) ग्रामीण अर्थव्यवस्था-ब्रिटिश-पूर्व भारत में ग्रामीण समाज साधारण श्रम विभाजन पर आधारित था। कृषक भूमि की जुताई करते थे और मवेशी पालन करते थे। इसी प्रकार, वहाँ अन्य श्रेणियों के लोग भी बसते थे, जैसे-जुलाहे, सुनार, बढ़ई, कुम्हार, तेली, मोची, नाई आदि। ये सब धन्धे वंशानुगत थे और पिता से पुत्र को हस्तांतरित होते चले आते थे।
(2) मुद्रा का प्रयोग-शहरों में मुद्रा का व्यापक रूप से प्रचलन था। मुद्रा के अभाव में भारतीय नगरों में व्यापार की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। सभी प्रकार का लेन-देन और क्रय-विक्रय धातुओं के सिक्कों के माध्यम से होता था। लेकिन मुद्रा का प्रयोग ग्रामीण क्षेत्र में बहुत कम था। मुख्य रूप से वस्तु विनिमय प्रणाली का प्रचलन था। खाद्य सामग्री को मुख्य रूप से विनिमय का साधन माना जाता था।
(3) बैंकिंग व्यवस्था-देशी बैंकिंग व्यवस्था का विकास प्राय: शहरों तक ही सीमित था। यद्यपि देश में आधुनिक बैंकों की स्थापना नहीं हुई थी, फिर भी देशी बैंकरों का कार्य बड़े पैमाने पर फैला था। शहरों में व्यवसाय करने वाले अनेक देशी बैंक आधुनिक बैंकों की तरह प्रेषण की सुविधाएँ भी प्रदान करते थे।
(4) संगठित बाजार-शहरी क्षेत्र का आर्थिक संगठन भारतीय गाँवों के आर्थिक संगठन से पूरी तरह भिन्न था। शहरों में संगठित बाजार पाए जाते थे। थोक व्यापारी छोटे व्यापारियों को माल बेचते थे। दलाल, आढ़तिये लगभग वर्तमान स्थिति की तरह कार्य करते थे।
(5) आन्तरिक एवं बाह्य व्यापार-गाँवों की सन्तुलित व्यवस्था के कारण आन्तरिक व्यापार बहुत अधिक विकास नहीं कर सका था। परन्तु विदेशी व्यापार उन्नत अवस्था में था। भारत अनेक वस्तुओं का निर्यात करता था। इन वस्तुओं के बदले वह सोना व चाँदी प्राप्त करता था क्योंकि दूसरे देश की वस्तुओं की भारत में माँग नहीं थी।

प्रश्न 4. आर्थिक नियोजन का किन्हीं पाँच बिन्दुओं के आधार पर महत्व लिखिए।
अथवा
आर्थिक नियोजन के चार लाभ लिखिए।
(2019)
उत्तर-
आर्थिक नियोजन का महत्व
प्रो. रॉबिन्स ने कहा है, “आर्थिक नियोजन हमारे इस युग की महान औषधि है।” अग्रलिखित बातें आर्थिक नियोजन के महत्व को दर्शाती हैं-
(1) साधनों का अनुकूलतम उपयोग-अल्पविकसित देशों में साधन सीमित होते हैं तथा उनका भी उचित ढंग से उपयोग नहीं हो पाता है। अत: इन सीमित साधनों का सर्वोत्तम उपयोग करने के लिए नियोजन की आवश्यकता होती है।
(2) आर्थिक संरचना का विकास एक राष्ट्र का सवांगीण विकास तभी सम्भव है, जब उस राष्ट्र में अन्य सुविधाएँ; जैसे-बिजली, पानी, परिवहन आदि भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हों। ये सुविधाएँ आर्थिक नियोजन के माध्यम से ही उपलब्ध कराई जा सकती हैं।
इससे आर्थिक संरचना का विकास होता है।
(3) बेरोजगारी की समस्या-अल्पविकसित राष्ट्रों में बेरोजगारी व्यापक मात्रा में पायी जाती है, जिसका धीमी आर्थिक विकास की स्थिति में समाप्त करना सम्भव नहीं है। अत: आर्थिक विकास की गति को तीव्र करके बेरोजगारी दूर करने के लिए आर्थिक नियोजन की आवश्यकता होती है।
(4) पूँजी निर्माण-आर्थिक नियोजन के फलस्वरूप उत्पादन बढ़ता है, जिससे प्रति व्यक्ति आय बढ़ती है जिससे बचतों में वृद्धि होती है, परिणामस्वरूप पूँजी निर्माण की दर में वृद्धि होती है।
(5) जनसंख्या की समस्या-अल्पविकसित देशों में प्राय: जनसंख्या आधिक्य की स्थिति होती है जो आर्थिक विकास में बाधक होती है। अत: देश के विकास के लिए आवश्यक होता है कि जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण किया जाए जो कि नियोजन द्वारा ही सम्भव है।

प्रश्न 5. भारत में आर्थिक नियोजन के उद्देश्य लिखिए।
भारत में आर्थिक नियोजन के उद्देश्य भारत में आर्थिक नियोजन के प्रमुख उद्देश्य निम्न प्रकार हैं-
(1) आर्थिक संवृद्धि या विकास-भारत की सभी पंचवर्षीय योजनाओं का मुख्य उद्देश्य आर्थिक संवृद्धि रहा है। आर्थिक विकास की गति को तेज करके ही आत्मनिर्भरता की स्थिति को प्राप्त किया जा सकता है तथा गरीबी और बेरोजगारी जैसी आधारभूत समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।
(2) आत्मनिर्भरता-आत्मनिर्भरता प्राप्त करना आर्थिक नियोजन का प्रमुख उद्देश्य है। तीसरी योजना के बाद से इस उद्देश्य पर विशेष बल दिया गया। छठी योजना में तो इस लक्ष्य की प्राप्ति पर अधिक जोर दिया गया। इस योजना में निम्नलिखित बातें इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु कही गई-
(i) विदेशी सहायता पर निर्भरता में कमी,
1) घरेलू उत्पादन में विविधता और इसके परिणामस्वरूप कुछ महत्वपूर्ण वस्तुओं के आयात में कमी, तथा
(iii) निर्यात को प्रोत्साहित करना ताकि हम अपने साधनों से आयातों को भुगतान कर
(3) रोजगार के अवसरों में वृद्धि करना-सभी को रोजगार प्रदान करना आर्थिक नियोजन का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य है। इसलिए, प्रत्येक योजना में रोजगार के अवसरों को बढ़ाने तथा अर्द्ध-वेरोजगारी को दूर करने के कार्यक्रमों पर विशेष ध्यान दिया गया है।
(4) आर्थिक असमानताओं में कमी-नियोजन का एक अन्य महत्वपूर्ण उद्देश्य आर्थिक समानता है ताकि देश में सामाजिक न्याय की स्थापना की जा सके। धन व आय की असमानताएँ सामान्य जीवन स्तर को ऊपर उठाने में बाधक होती है। स्वस्थ आर्थिक विकास के लिए आवश्यक है कि इन असमानताओं को दूर किया जाए। नियोजन का मुख्य उद्देश्य देश में समाजवादी ढंग के समाज की स्थापना है।
(5) आर्थिक स्थिरता-आर्थिक नियोजन का एक अन्य महत्वपूर्ण उद्देश्य अर्थव्यवस्था में स्थिरता लाना और उसे बनाये रखना है। आर्थिक स्थिरता से अभिप्राय है कि अर्थव्यवस्था में होने वाले अनियमित उतार-चढ़ाव को समाप्त किया जाए, जिससे अर्थव्यवस्था ठीक ढंग से आगे बढ़ सके और जनसाधारण के जीवन-स्तर में समय के साथ सुनिश्चित सुधार लाया जा सके।

प्रश्न 6. भारतीय पंचवर्षीय योजनाओं को सफल बनाने के उपाय लिखिए।
अथवा
भारत में विकास योजनाओं को सफल बनाने के लिए सुझाव दीजिए।
उत्तर-भारत में विकास योजनाओं (आर्थिक नियोजन) की सफलता के लिए
निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं-
(1) कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार है। अत: इसके विकास हेतु तेजी से प्रयास किये जाने चाहिए।
(2) आर्थिक नियोजन की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि उनका व्यापक स्तर पर प्रचार किया जाए।
(3) योजनाएँ इस प्रकार की होनी चाहिए कि उपलब्ध मानवीय शक्ति का अधिकाधिक प्रयोग किया जा सके। इससे बेरोजगारी की समस्या हल होगी।
(4) आर्थिक नियोजन की सफलता के लिए बढ़ती हुई जनसंख्या पर नियन्त्रण होना आवश्यक है।
(5) योजनाबद्ध विकास के लिए व्यापार एक आवश्यक तत्व माना जाता है। आयात में वृद्धि के साथ-साथ निर्यात की मात्रा में भी वृद्धि होनी चाहिए।
(6) विकास योजनाओं की सफलता के लिए सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के उद्योगों में परस्पर समन्वय होना चाहिए।

प्रश्न 7. भारत में पंचवर्षीय योजनाओं की प्रमुख उपलब्धियों को लिखिए।
अथवा
भारत में आर्थिक नियोजन की कोई चार उपलब्धियाँ बताइए। (2019)
उत्तर-(1) राष्ट्रीय आय में वृद्धि-इस दिशा में पहला संकेत राष्ट्रीय आय है जो वर्तमान कीमतों पर वर्ष 1950-51 में ₹2,92,996 करोड़ थी वह वर्ष 2016-17 में बढ़कर
₹1,20,34,713 करोड़ हो गयी।
(2) प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि-1950-51 में प्रति व्यक्ति आय ₹7,513 से बढ़कर
वर्ष 2016-17 में ₹ 1,03,219 पर पहुँच गयी।
(3) पूँजी निर्माण की दर-अर्थव्यवस्था में योजना काल के प्रारम्भिक वर्षों में पूँजी निर्माण की दर कम रही है, परन्तु अब पूँजी निर्माण की दर में सुधार है। वर्ष 1950-51 में पूँजी
निर्माण की दर सकल घरेलू उत्पाद का 9.3% थी जो वर्ष 2016-17 में बढ़कर 33-3% हो गई।
(4) कृषि क्षेत्र-नियोजन काल में कृषि के उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। खाद्यान्न उत्पादन जो वर्ष 1950-51 में 508 लाख टन था, वह वर्ष 2016-17 में बढ़कर 2,757
(5) विद्युत् उत्पादन-योजनाकाल के दौरान विद्युत का उत्पादन तेजी से बढ़ा है। अनेक नई विद्युत् परियोजनाओं का निर्माण किया गया। ताप-विद्युत, जल-विद्युत् और आणु शक्ति के
विकास का प्रयत्न किया गया। विद्युत् उत्पादन वर्ष 1950-51 में 5-1 बिलियन किलोबाट या जो वर्ष 2016-17 में 1,433-4 बिलियन किलोवाट हो गया।

प्रश्न 8. भारत में आर्थिक नियोजन पूर्ण रूप से सफल क्यों नहीं हुआ है ?
भारतीय नियोजन की असफलता के कारण बताइए।
भारत में आर्थिक नियोजन की असफलताओं का वर्णन कीजिए।
उताभारत में आर्थिक नियोजन की असफलता के कारण
भारत में आर्थिक नियोजन की सौमित सफलता के अनेक कारण है। इनमें प्रमुख निम्न
(1) प्राकृतिक कारण-भारत में प्राकृतिक दुर्घटनाएँ समय-समय पर अपना प्रभाव mदिखाती रही हैं। कभी देश को बाढ़ की मुसीबत झेलनी पड़ती है, कभी सूखे की। कृषि पर इसका विशेष रूप से प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। कृषि उत्पादन में कमी अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों को प्रभावित करती है। इसलिए देश में आर्थिक नियोजन को पूरी सफलता नहीं मिली है।
(2) जनसंख्या में भारी वृद्धि-सन् 1951 से 2011 तक भारत की जनसंख्या में 85 करोड़ 10 लाख की वृद्धि हुई, अर्थात् जनसंख्या ढाई गुना हो गई। इस अवधि में उत्पादन में जो वृद्धि हुई उसे बढ़ी हुई जनसंख्या खा गई जो नियोजन काल में बाधक रही।
(3) सार्वजनिक क्षेत्र की अकुशलता-भारत में आयोजन की सफलता बहुत कुछ सार्वजनिक क्षेत्र की कुशलता पर निर्भर थी। भारत के लोकतान्त्रिक राजनैतिक डाँचे में सार्वजनिक क्षेत्र की योजनाओं को बनाना, उन पर लोकसभा में विचार होना, उसमें बार-बार काँट-छौंट होना आदि में समय की हानि हुई है। अधिकारियों में आपसी तालमेल का अभाव रहा। कभी-कभी विभिन्न परस्पर विरोधी नीतियों को अपनाते रहे। इन सबका संयुक्त परिणाम हुआ आर्थिक आयोजन की सीमित सफलता।
(4) प्रतिरक्षा का भारी बोझ-शान्तिप्रिय राष्ट्र होने के बावजूद भारत पर युद्ध के बादल सदा मँडराते रहे हैं, जिससे निपटने के लिए आवश्यक है कि भारत अपनी प्रतिरक्षा व्यवस्था मजबूत करे। साथ ही, युद्ध की आधुनिक तकनीक में अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन होते जा रहे हैं। फलस्वरूप, प्रतिरक्षा की व्यवस्था पर होने वाले व्यय की राशि निरन्तर बढ़ती जा रही है।
(5) अन्य आर्थिक कारण-किसी राष्ट्र के तीव्र आर्थिक विकास के लिए कुछ मौलिक सुविधाओं की आवश्यकता होती है, जैसे-यातायात एवं संचार के विकसित साधन, शक्ति के साधनों की उपलब्धि, प्रशिक्षित कारीगर, इंजीनियर, तकनीशियन और वैज्ञानिक, उन्नत बैंकिंग व्यवस्था और पर्याप्त मात्रा में पूँजी निर्माण। स्वतन्त्रता के समय देश में इन मौलिक आवश्यकताओं
का अभाव था। पूँजी निर्माण की दर केवल 5% वार्षिक थी, जबकि विकास के लिए कम से

कम 25 प्रतिशत होनी चाहिए। प्रशिक्षित कारीगर तथा इंजीनियर नहीं थे। बहुत सा समय और साधन इन मौलिक आवश्यकताओं के निर्माण में व्यय हो गए। इस प्रकार, आर्थिक विकास को गति धीमी रही और योजनाओं में सफलता भी सीमित ही रही। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि नियोजनकाल में कृषि, उद्योग, शिक्षा आदि के क्षेत्रों में जहाँ विकास हुआ है, वहीं बेरोजगारी, निर्धनता तथा असमानताओं आदि के क्षेत्र में असफलता रही है। अत: नियोजनकाल की सफलताएँ सीमित रही हैं।

प्रश्न 9. राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
आन्तरिक तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में भेद स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-राष्ट्रीय (आन्तरिक) व्यापार-जब किसी देश की सीमाओं के अन्दर विभिन्न स्थानों, प्रदेशों तथा क्षेत्रों के बीच वस्तुओं और सेवाओं का क्रय-विक्रय होता है, तो इसे आन्तरिक व्यापार या राष्ट्रीय व्यापार कहते हैं। इसे स्थानीय व्यापार या अन्तक्षेत्रीय व्यापार भी कहते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार-जब दो या दो से अधिक राष्ट्रों के बीच वस्तुओं और सेवाओं का क्रय-विक्रय होता है, तो इसे अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार कहते हैं। यह व्यापार अलग-अलग देशों
या राष्ट्रों के बीच होता है। संक्षेप में, आन्तरिक व्यापार देश की सीमाओं के अन्दर होता है और अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार, देश की सीमाओं के बाहर होता है। राष्ट्रीय (आन्तरिक) और अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में अन्तर
प्रमुख अन्तर निम्नलिखित हैं-
(1) मुद्रा प्रणाली तथा भौगोलिक सीमाओं के आधार पर-अन्तक्षेत्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में यह मुख्य अन्तर है कि आन्तरिक व्यापार देश की सीमाओं के भीतर होता है तथा उस समस्त देश में एक ही मुद्रा प्रणाली (नोट सिक्के या मुद्रा) चलन में होती है, जबकि विदेशी व्यापार एक देश का दूसरे देश से होता है जिनमें अलग-अलग मुद्राएँ प्रचलन में होती हैं तथा नीतियाँ भी भिन्न-भिन्न होती हैं।
(2) बाजारों की पृथकता तथा जीवन-स्तर में भिन्नता के आधार पर-अन्तक्षेत्रीय व्यापार के विपरीत, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के क्षेत्र में क्रेता तथा विक्रेताओं के बीच भौगोलिक दूरी के अतिरिक्त भाषा, रीति-रिवाज, परम्परा, आदत, माप-तौल तथा बिक्री की शैली में भिन्नता पायी जाती है। इसके साथ ही, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में दो समुदायों (जिनके बीच व्यापार हो हा हो) के जीवन-स्तर में भिन्नता पायी जाती है।
प्रो. हैरोड के अनुसार, “यह स्पष्ट है कि उक्त दो प्रकार के विनिमय के व्यवहार और प्रकृति को निर्धारित करने वाले सिद्धान्तों को कुछ अर्थों में भिन्न होना चाहिए।”

(3) राजनीतिक इकाई तथा वस्तुओं के आवागमन पर प्रतिबन्ध में अन्तर-घरेलू व्यापार में राजनीतिक इकाई एक होती है, जबकि अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में अनेक देशों की अलग-अलग इकाइयाँ होती हैं, इस कारण सभी में अलग-अलग व्यापार की शर्ते आदि निर्धारित करनी पड़ती हैं। प्रत्येक देश की अपनी स्वतन्त्र व्यापार नीति होती है तथा वस्तुओं के आवागमन पर प्रतिबन्ध में भी अन्तर होता है। इसी कारण अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार, आन्तरिक
व्यापार की अपेक्षा कुछ जटिल-सा मालूम पड़ता है।
(4) साधनों की गतिशीलता तथा उत्पादन सुविधाओं में अन्तर-देश में सभी साधन गतिशील होते हैं, जबकि देश के बाहर गतिहीन। अत: एकसमान वस्तु का उत्पादन विभिन्न देशों में भिन्न-भिन्न होता है। साथ ही, आन्तरिक तथा बाह्य व्यापार में उत्पादन सुविधाओं में भी अन्तर होता है।
(5) प्राकृतिक तथा भौगोलिक परिस्थितियों की भिन्नता-प्रत्येक देश में प्राकृतिक साधनों की उपलब्धता तथा भौगोलिक परिस्थितियों में अन्तर पाया जाता है। अत: प्रत्येक देश
कुछ वस्तुओं के उत्पादन में विशिष्टता हासिल कर लेता है। विशिष्ट जलवायु की सुविधा तथा कच्चे माल की उपलब्धता को एक देश से दूसरे देश में स्थानान्तरित नहीं किया जा सकता है। अत: इस आधार पर भी बाह्य तथा आन्तरिक व्यापार में अन्तर हो सकता है।

प्रश्न 10. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से होने वाले लाभ-हानियों की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लाभ
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से प्राप्त होने वाले प्रमुख लाभ निम्न प्रकार हैं-
(1) भौगोलिक तथा प्रादेशिक श्रम-विभाजन-अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के फलस्वरूप दो राष्ट्रों के बीच भौगोलिक एवं प्रादेशिक श्रम-विभाजन सम्भव हो जाता है। प्रत्येक राष्ट्र वही माल तैयार करता है जिसके उत्पादन में उसे अधिकतम प्राकृतिक लाभ होता है तथा
उनकी उत्पादन लागत न्यूनतम होती है। इस प्रकार, दोनों राष्ट्र ऐसी ही वस्तुओं के उत्पादन में विशेषज्ञता प्राप्त कर लेते हैं।
(2) प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग-प्रत्येक राष्ट्र केवल उन्हीं वस्तुओं का उत्पादन करता है जिनके उत्पादन में उसे तुलनात्मक लाभ अधिकाधिक प्राप्त होता हो। अत: प्रत्येक राष्ट्र अपने उपलब्ध प्राकृतिक साधनों का पूरा-पूरा प्रयोग करे। चूँकि किसी भी वस्तु के उत्पादन में उत्पादन के विभिन्न साधनों की आवश्यकता होती है, अत: वह देश अनिवार्य दुर्लभ साधनों का आयात करके अपने प्रचुर साधन का प्रयोग उत्पादन प्रक्रिया में कर सकता है। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के अभाव में दुर्लभ साधनों को प्राप्त नहीं किया जा सकता है, फलस्वरूप अपने प्रचुर साधन का उपयोग असम्भव बना रहता है। अत: अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का एक महत्वपूर्ण लाभ प्राकृतिक साधनों का अनुकूलतम उपयोग भी है।
(3) उत्पादन विधियों में सुधार-अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण देश के उद्योगपतियों को सदैव विदेशी प्रतियोगिता का सामना करना पड़ता है। इसलिए सदैव वैज्ञानिक उत्पादन विधियों द्वारा उत्पादन लागतों में कमी करके उत्तम वस्तुएँ निर्मित करने का प्रयास करते हैं। इससे देश की सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को लाभ होता है।
(4) बाजार का विस्तार-अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का एक लाभ यह भी होता है कि राष्ट्र के बाजार का विस्तार होता है। यदि बाजार राष्ट्र की सीमा के अन्दर तक ही सीमित रहता है तो माँग कम होती है तथा विक्रय भी कम होता है, जबकि विदेशी बाजार होने से माँग भी व्यापक हो जाती है तथा उत्पादन का क्षेत्र विस्तृत हो जाता है।
(5) विदेशी विनिमय की प्राप्ति-वर्तमान में विदेशी विनिमय किसी भी राष्ट्र के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। विशेष रूप से विकासशील राष्ट्रों के लिए विदेशी विनिमय की अति आवश्यकता होती है। विदेशी विनिमय के द्वारा वे विदेशों से आवश्यक मात्रा में औद्योगिक सामग्री एवं तकनीकी ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। विदेशी विनिमय अर्जित करने के लिए उसे अपने निर्यातों में वृद्धि करनी पड़ती है।
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की हानियाँ
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से होने वाली प्रमुख हानियाँ निम्न प्रकार हैं-
(1) कृषि प्रधान राष्ट्रों को हानि-अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से कृषि प्रधान राष्ट्रों को हानि होती है, क्योंकि इन राष्ट्रों को आयात की गई निर्मित वस्तुओं के बदले में कृषि उत्पादन का निर्यात करना पड़ता है और कृषि उत्पादन में उत्पत्ति हास नियम शीघ्र लागू होने के कारण उत्पादन व्यय में वृद्धि होती है, जबकि उद्योगों में काफी समय तक ‘उत्पत्ति वृद्धि नियम’ के अनुसार उत्पादन होता है और उत्पादन की लागत उत्पादन की मात्रा बढ़ने पर कम हो जाती है।
(2) विदेशी प्रतियोगिता से हानि-अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण स्वदेशी उद्योगों को कड़ी विदेशी प्रतियोगिता का सामना करना पड़ता है। फलस्वरूप, राष्ट्र के नव-विकसित उद्योगों का पतन होता है और नये उद्योगों की स्थापना नहीं हो पाती। उदाहरणार्थ-19वीं शताब्दी में ब्रिटिश प्रतियोगिता के कारण अनेक भारतीय लघु-कुटीर उद्योगों को हानि उठानी पड़ी।
(3) राशिपातन-अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में विकसित राष्ट्र कभी-कभी पिछड़े हुए राष्ट्रों में अपने माल को बहुत ही कम मूल्य पर बेचना शुरू कर देते हैं और कभी-कभी तो वे अपना माल उत्पादन लागत से भी कम मूल्य पर बेचते हैं। इस रीति को राशिपातन (Dumping) शीघ्र ही ठप हो जाते हैं। कहते हैं। इस प्रकार के राशिपातन से देशी उद्योगों पर घातक प्रभाव पड़ता है और अन्तत: वे
(4) प्राकृतिक संसाधनों का ह्रास-अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण ही कच्चे माल का आयात-निर्यात सम्भव हो सका है। राष्ट्र के प्राकृतिक संसाधनों का तीव्र गति से विदेशों को निर्यात कर दिया जाता है; जैसे- भारत के प्राकृतिक स्रोत मैंगनीज व अभ्रक दिन-प्रतिदिन कम होते जा रहे हैं, क्योंकि इनका भारी मात्रा में निर्यात किया जा रहा है।
(5) आर्थिक असन्तुलन-अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण कुछ राष्ट्र दूसरे राष्ट्रों से इस भाँति बँध जाते हैं कि एक राष्ट्र के आर्थिक असन्तुलन का प्रभाव अन्य सम्बद्ध राष्ट्रों पर भी पड़ता है। सन् 1929 की आर्थिक मन्दी इसी प्रकार की घटना थी, जिसके प्रभाव से सभी राष्ट्र प्रभावित हुए।

प्रश्न 11. परिवहन के विभिन्न साधनों को समझाइए।
(2019)
उत्तर-परिवहन का अर्थ मनुष्यों एवं वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान पर लाने-ले जाने से लगाया जाता है। परिवहन के मुख्य साधन रेल, सड़क, जल तथा वायु परिवहन हैं।
(1) रेल परिवहन-भारत में रेलवे का प्रारम्भ 16 अप्रैल, 1853 में हुआ, पहली रेलगाड़ी मुम्बई से ठाणे तक 34 किमी. चली। स्वतंत्रता से पूर्व रेलवे का स्वामित्व व प्रबन्ध निजी कम्पनियों के अधीन था जिसके मालिक अंग्रेज थे परन्तु स्वतंत्रता के बाद 1950 में रेलों का पूर्ण राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। वर्ष 1950-51 में रेलयात्रियों की संख्या 12,840 लाख तथा माल ढुलाई 732 लाख टन थी।
(2) सड़क परिवहन-भारत में प्राचीन काल में सड़कों के विकास की ओर बहुत ध्यान दिया गया था। मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा की खुदाई से इस बात का पता चलता है कि ईसा से लगभग 4,000 वर्ष पूर्व सड़को का निर्माण बहुत कुशलता से होता था। मुस्लिम शासक शेरशाह सूरी और अकबर के समय में भी सड़कों की ओर बहुत ध्यान दिया गया था। परन्तु बिट्रिश काल में सड़कों के विकास पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया। वर्ष 1950-51 में कुल सड़कों की लम्बाई 4 लाख किमी. थी जिनमें से । 57 लाख किमी, पक्की व शेष कच्ची सड़कें थीं।
(3) जल परिवहन-अंग्रेजी शासन में सामुद्रिक और तटीय परिवहन विदेशी कम्पनियों के हाथों में था। भारत में 19वीं शताब्दी के प्रारमा तक जल परिवहन का महत्वपूर्ण स्थान था,
इसके बाद इसमें कोई विशेष प्रगति नहीं हुई। सन् 1947 में भारतीय जहाजी बेड़े में 59 जलपोत थे। उस समय देश में केवल 5 बंदरगाह थे।
(4) वायु परिवहन-भारत में वायु परिवहन के विकास का प्रारम्भ 1927 में हुआ। सन् 1932 में टाटा बन्धुओं ने कराची व मद्रास के बीच स्वदेशी सेवा प्रारम्भ की। 1935 में टाटा ने बम्बई-दिल्ली सेवा प्रारम्भ की। द्वितीय विश्व युद्ध से इसका और विकास हुआ। सन् 1948 में सरकार ने विमान परिवहन नीति की घोषणा की। सन् 1947 में वायु परिवहन के द्वारा 3.1 लाख यात्रियों ने सफर किया तथा 4.6 लाख टन माल ढोया गया।

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