mpboard SOCIAL SCIENCE Chapter 1 Resource and Development (अध्याय 1 संसाधन एवं विकास) IMPORTANT QUESTIONS Social Science Class 10 Important Questions Geography Chapter 1 Resources and Development IN HINDI
प्रथम भाग समकालीन भारत – 2
अध्याय 1 संसाधन एवं विकास
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
बहु विकल्पीय प्रश्न
- मृदा निर्माण में सबसे अधिक योगदान होता है
(i) शैल का
(ii) पर्वत का
(iii) जल का
(iv) वायु का
- निम्न में से एक नवीकरणीय संसाधन है
(i) खनिज तेल
(ii) कोयला
(iii) मृदा
(iv) थर्मल बिजली।
- आन्ध्र प्रदेश और उड़ीसा (ओडिशा) के डेल्टा क्षेत्रों तथा गंगा के मैदानों में सामान्यतः कौन-सी मृदा पायी जाती है ?
(i) लाल मिट्टी
(ii) जलोढ़ मिट्टी
(iii) काली मिट्टी
(iv) लैटेराइट मिट्टी
- लौह अयस्क किस प्रकार का संसाधन है ?
(i) नवीकरण योग्य
(ii) प्रवाह
(iii) जैव
(iv) अनवीकरण योग्य
- इनमें से किस राज्य में काली मृदा मुख्य रूप से पाई जाती है ?
(i) जम्मू और कश्मीर
(ii) राजस्थान
(iii) महाराष्ट्र
(iv) झारखण्ड ।
- निम्नलिखित में से किस प्रान्त में सीढ़ीदार (सोपानी) खेती की जाती है ?
(i) पंजाब
(ii) उत्तर प्रदेश के मैदान
(iii) हरियाणा
(iv) उत्तराखंड।
- कौन-सा कारक मृदा के निर्माण में सहयोगी नहीं है ?
(i) वायु और जल
(ii) सडे-गले पेड़-पौधे तथा जीव-जन्तु
(iii) शैल और तापमान
(iv) पानी का इकट्ठा होना।
- मृदा संरक्षण के लिए समोच्च रेखा बन्ध बनाने की विधि प्रायः किस क्षेत्र में उपयोग में लायी जाती है ?
(i) डेल्टा प्रदेश
(ii) पठारी प्रदेश
(iii) पहाड़ी क्षेत्र
(iv) मैदानी क्षेत्र ।
- निम्न में से कौन-सा मानवकृत संसाधन नहीं है ?
(i) मशीन
(ii) वन
(iv) तकनीक
(iii) भवन I
- पश्चिमी घाट प्रदेश में किस प्रकार की मृदा पाई जाती है ?
(i) जलोढ़ मृदा
(ii) काली मृदा
(iii) लैटेराइट मृदा
(iv) लाल मृदा ।
- ज्वारीय ऊर्जा निम्नलिखित में से किस प्रकार का संसाधन नहीं है ?
(i) पुन: पूर्ति योग्य
(ii) अजैव
(iii) मानवकृत
(iv) अचक्रीय ।
- पंजाब में भूमि निम्नीकरण का निम्नलिखित में से मुख्य कारण क्या है ?
(i) गहन खेती
(ii) अधिक सिंचाई
(iii) वनोन्मूलन
(iv) अति पशुचारण
- शैल और धातुएँ किस प्रकार के संसाधन हैं ?
(i) अजैविक
(ii) जैविक
(iii) नवीकरण
(iv) निजी।
- काली मृदा कहलाती है
(i) जलोढ़ मृदा
(ii) दलदली मृदा
(iii) खारी मृदा
(iv) रेगर मृदा ।
- निम्न में से कौन-सा कारक भूमि उपयोग का भौतिक कारक नहीं है ?
(i) अपवाह
(ii) भूमि की ढाल
(iii) जनसंख्या
(iv) मृदा आवरण की उपस्थिति।
उत्तर – 1. (i), 2. (iii), 3. (ii), 4. (iv), 5. (iii), 6. (iv), 7. (iv), 8. (i), 9.(ii),10.(ii),11. (i), 12. (ii), 13. (i), 14. (iv), 15. (iii) |
- रिक्त स्थानों की पूर्ति
- सम्पूर्ण उत्तरी मैदान………मृदा से बना है।
- वे संसाधन जो निर्जीव वस्तुओं से बने हैं,…………….. संसाधन कहलाते हैं।
- किसी प्रदेश में विद्यमान संसाधन जिनका अब तक उपयोग नहीं किया गया है,…………संसाधन
कहलाते हैं।
- वे संसाधन जिनका सर्वेक्षण किया जा चुका है और उनके उपयोग की गुणवत्ता और मात्रा निर्धारित की जा चुकी है ………….कहलाते हैं।
- मानव स्वयं संसाधनों का ……………हिस्सा है।
- संसाधन नियोजन के उद्देश्य की पूर्ति के लिए…………..पंचवर्षीय योजना से प्रयास किए गए।
- देश के क्षेत्रफल का लगभग………….. प्रतिशत हिस्सा पठारी है।
उत्तर – 1. जलोढ़, 2. अजैव, 3. संभावी, 4. विकसित संसाधन, 5. महत्त्वपूर्ण, 6. प्रथम, 7.27 I
*सत्य / असत्य
- लैटेराइट मृदा अधिकतर गहरी तथा अम्लीय होती है। 2. मरुस्थली मृदाओं का रंग पीला होता है।
3.मृदा सबसे महत्त्वपूर्ण अनवीकरण योग्य संसाधन है।
- भारत का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 32.8 लाख वर्ग किमी है।
- हमारे देश में राष्ट्रीय वन नीति (1952) द्वारा निर्धारित वनों के अन्तर्गत 43 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र वांछित है।
उत्तर – 1. सत्य, 2. असत्य, 3. असत्य, 4. सत्य, 5. असत्य।
सही जोड़ी बनाइए
‘अ’
- रियो डी जेनेरो पृथ्वी सम्मेलन, 1992
- संसाधन संरक्षण की वकालत, 1968
- भारत में भू क्षेत्र मैदान
- भारत में पर्वत क्षेत्र
- भारत में वन क्षेत्र
‘ब’
(क) 30 प्रतिशत
(ख) 33 प्रतिशत
(ग) ब्राजील
(घ) क्लब ऑफ रोम
(ङ) 43 प्रतिशत
उत्तर- 1. (ग), 2. (घ), 3. (ङ), 4. (क), 5. (ख)
एक शब्द/वाक्य में उत्तर
- नवीन जलोढ़क का स्थानीय नाम बताइए।
- रेगर या कपास वाली मिट्टी को क्या कहते हैं ?
- तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश और केरल की लाल लैटेराइट मृदाएँ किसकी फसल के लिए उपयुक्त हैं ?
- डेल्टाई भागों में सामान्यत: कौन-सी मृदा पायी जाती है ?
- देश के क्षेत्रफल का कितने प्रतिशत हिस्सा पठारी क्षेत्र है ?
- पवन और सौर ऊर्जा संसाधनों की बहुतायत किस राज्य में है ?
- हम भोजन, मकान और कपड़े की अपनी मूल आवश्यकताओं का कितने प्रतिशत भाग भूमि से प्राप्त करते हैं ?
उत्तर – 1. खादर, 2. काली मिट्टी, 3 काजू, 4. जलोढ़ मृदा, 5. 27 प्रतिशत, 6. राजस्थान, 7. 95प्रतिशत।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. तीन राज्यों के नाम बताएँ जहाँ काली मृदा पाई जाती है। इस पर मुख्य रूप से कौन-सी फसल उगाई जाती है ?
उत्तर- काली मृदा महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के पठार में पाई जाती है। काली मृदा कपास की खेती के लिए उचित समझी जाती है और काली कपासी मृदा के नाम से भी जानी जाती है।
प्रश्न 2. पूर्वी तट के नदी डेल्टाओं पर किस प्रकार की मृदा पाई जाती है ? इस प्रकार की मृदाकी तीन मुख्य विशेषताएँ क्या हैं ?
उत्तर-पूर्वी तट के नदी डेल्टाओं पर जलोढ़ मृदा पाई जाती है।
विशेषताएँ- (1) इस मिट्टी में विभिन्न मात्रा में रेत, गाद तथा मृत्तिका (चौक मिट्टी) मिली होती है।
(2) यह मृदा सबसे अधिक उपजाऊ होती है।
(3) इस मृदा में साधारणतया पोटाश, फॉस्फोरिक अम्ल तथा चूना पर्याप्त मात्रा में होता है।
प्रश्न 3. पहाड़ी क्षेत्रों में मृदा अपरदन की रोकथाम के लिए क्या कदम उठाने चाहिए ?
उत्तर- पहाड़ी क्षेत्रों में मृदा अपरदन की रोकथाम के लिए निम्न कदम उठाने चाहिए-(1) समोच्च जुताई, (2) सीढ़ीदार खेती (3) पट्टीदार खेती।
प्रश्न 4. जैव और अजैव संसाधन क्या होते हैं ? कुछ उदाहरण दें।
उत्तर- जैव संसाधन-इन संसाधनों की प्राप्ति जीवमण्डल से होती है और इनमें जीवन व्याप्त है, जैसे- मानव, वनस्पतिजात, प्राणिजात, मत्स्य जीवन, पशुधन आदि।
अजैव संसाधन-वे संसाधन जो निर्जीव वस्तुओं से बने हैं, अजैव संसाधन कहलाते हैं। उदाहरणार्थ, चट्टानें और धातुएँ ।
प्रश्न 5. भारत में पाई जाने वाली मिट्टियों के नाम लिखिए।
उत्तर भारत में पाई जाने वाली मिट्टियाँ हैं- (1) जलोढ़ मिट्टी, (2) काली या रेगर मिट्टी, (3) लाल मिट्टी, (4) लैटेराइट मिट्टी, (5) मरुस्थलीय मिट्टी, (6) पर्वतीय मिट्टी ।
प्रश्न 6. मृदा अपरदन से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर- मृदा के कटाव और उसके बहाव की प्रक्रिया को मृदा अपरदन कहा जाता है। प्रश्न 7. पवन अपरदन किसे कहते हैं ? उत्तर- पवन द्वारा मैदान अथवा ढालू क्षेत्र से मृदा को उड़ा ले जाने की प्रक्रिया को पवन अपरदन कहा जाता है।
प्रश्न 8. समोच्च जुताई किसे कहा जाता है ?
उत्तर- ढाल वाली भूमि पर समोच्च रेखाओं के समानान्तर हल चलाने से ढाल के साथ जल बहाव की
गति घटती है। इसे समोच्च जुताई कहा जाता है।
प्रश्न 9. ‘संसाधन’ से क्या आशय है ?
उत्तर- पर्यावरण में उपलब्ध प्रत्येक वस्तु जो हमारी आवश्यकताओं को पूरा करने में प्रयुक्त की जा में सकती है और जिसको बनाने के लिए प्रौद्योगिकी उपलब्ध है, एक ‘संसाधन’ है।
प्रश्न 10. सतत् पोषणीय विकास से क्या आशय है ?
उत्तर- सतत् पोषणीय आर्थिक विकास का अर्थ है कि विकास पर्यावरण को बिना नुकसान पहुँचाए और वर्तमान विकास की प्रक्रिया भविष्य की पीढ़ियों की आवश्यकता की अवहेलना न करे।
प्रश्न 11. मृदा संरक्षण से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर- मिट्टी के अपरदन या क्षय को रोकना ही मृदा का संरक्षण है। बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण प्राकृतिक संसाधनों का बड़े पैमाने पर विनाश हुआ है। इसलिए मृदा संरक्षण द्वारा विनाश रोकना आवश्यक है।
प्रश्न 12. बाँगर क्या है ?
उत्तर- पुरानी जलोढ़ मिट्टी को बाँगर कहते हैं। यह नदियों द्वारा निर्मित प्राचीन मृदा है। ऊँचे भागों में पाये जाने वाली यह मिट्टी उन क्षेत्रों में मिलती है जहाँ नदियों की बाढ़ का जल नहीं पहुँच पाता। बाँगर स्लेटी रंग की चिकनी मिट्टी होती है। यह कम उपजाऊ होती है। इसमें प्राय: कंकड़ (कैल्शियम कार्बोनेट) पाये जाते हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. संसाधन से क्या आशय है ? इनका हमारे जीवन में क्या महत्त्व है ?
उत्तर- कोई वस्तु या तत्त्व तभी संसाधन कहलाता है जब उससे मानव की किसी आवश्यकता की पूर्ति
होती है, जैसे-जल एक संसाधन है क्योंकि इससे मनुष्यों व अन्य जीवों की प्यास बुझती है, खेतों में फसलों की सिंचाई होती है और यह स्वच्छता प्रदान करने, भोजन पकाने आदि कार्यों में हमारे लिए आवश्यक होता है। इसी प्रकार, वे सभी पदार्थ जो मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायक हैं, संसाधन कहलाते हैं। महत्त्व – संसाधन मानव जीवन को सुखद व सरल बनाते हैं। आदिकाल में मानव पूर्णतः प्रकृति पर निर्भर था। धीरे-धीरे मानव ने अपनी बुद्धि कौशल से प्रकृति के तत्त्वों का अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अधिकाधिक उपयोग किया। आज विश्व के वे राष्ट्र अधिक उन्नत व सम्पन्न माने जाते हैं जिनके पास अधिक संसाधन हैं। आज संसाधन हमारी प्रगति के सूचक बन गये हैं। इसीलिए संसाधनों का हमारे जीवन में बड़ा महत्त्व है।
प्रश्न 2. नवीकरण योग्य और अनवीकरण योग्य संसाधन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- (1) नवीकरण योग्य संसाधन-वे संसाधन जिन्हें भौतिक, रासायनिक या यान्त्रिक प्रक्रियाओं द्वारा नवीकृत या पुनः उत्पन्न किया जा सकता है, उन्हें नवीकरण योग्य अथवा पुनः पूर्ति योग्य संसाधन कहा जाता है। उदाहरण के लिए, सौर तथा पवन ऊर्जा; जल, वन व वन्य जीवन |
(2) अनवीकरण योग्य संसाधन-इन संसाधनों का विकास एक लम्बे भू-वैज्ञानिक अन्तराल में होता है। खनिज और जीवाश्म ईंधन इस प्रकार के संसाधनों के उदाहरण हैं। इनके बनने में लाखों वर्ष लग जाते हैं।
इनमें से कुछ संसाधन जैसे धातुएँ पुनः चक्रीय हैं और कुछ संसाधन जैसे जीवाश्म ईंधन अचक्रीय हैं व एक बार के प्रयोग के साथ ही समाप्त हो जाते हैं।
प्रश्न 3. “भारत में कुछ ऐसे प्रदेश भी हैं, जहाँ एक तरह के संसाधनों की प्रचुरता है, परन्तु दूसरे तरह के संसाधनों की कमी है।” क्या आप इस कथन से सहमत हैं ?
उत्तर- हाँ, हम इस कथन से सहमत हैं
(i) अरुणाचल प्रदेश में जल संसाधन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं, परन्तु मूल विकास की कमी है।
(ii) राजस्थान में पवन और सौर ऊर्जा संसाधनों की बहुतायत है, लेकिन जल संसाधनों की कमी है।
(iii) लद्दाख का शीत मरुस्थल देश के अन्य भागों से अलग-थलग पड़ता है। यह प्रदेश सांस्कृतिक विरासत का धनी है परन्तु यहाँ जल, आधारभूत अवसंरचना तथा कुछ महत्त्वपूर्ण खनिजों की कमी है।
प्रश्न 4. मृदा – परिच्छेदिका से क्या तात्पर्य है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- मृदा के क्रमिक क्षैतिज परतों, विन्यास और उनकी स्थितियों को दिखाने वाले ऊर्ध्व काट को
मृदा परिच्छेदिका कहते हैं। इस प्रकार मृदा के परतों के विन्यास को मृदा परिच्छेदिका कहते हैं-
(1) ऊपरी परत को ऊपरी मृदा,
(2) दूसरी परत को उप मृदा,
(3) तीसरी परत को अपक्षयित मृदा चट्टानी पदार्थ, तथा (4) चौथी परत में मूल चट्टानें होती हैं। ऊपरी परत की ऊपरी मृदा ही वास्तविक मृदा की परत है। इसकी सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता इसमें ह्यूमस तथा जैव पदार्थों का पाया जाना है। दूसरी परत में उपमृदा होती है, जिसमें चट्टानों के टुकड़े, बालू, गाद और चिकनी मिट्टी होती है, तीसरी परत में अपक्षयित मूल चट्टानी पदार्थ तथा चौथी परत में मूल चट्टानी पदार्थ होते हैं।
प्रश्न 5. प्रौद्योगिक और आर्थिक विकास के कारण संसाधनों का अधिक उपभोग कैसे हुआ है ?
उत्तर- संसाधन जिस प्रकार, मानव के जीवन यापन के लिए अत्यन्त आवश्यक हैं, उसी प्रकार जीवन की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए भी महत्त्वपूर्ण हैं। संसाधन प्रकृति की देन हैं। फलस्वरूप मनुष्य ने इनका अंधाधुन्ध उपयोग किया है, जिससे निम्नलिखित प्रमुख समस्याएँ उत्पन्न हो गई हैं
(i) प्रौद्योगिक विकास ने औद्योगिकीकरण तथा शहरीकरण को जन्म दिया है जिससे प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग में वृद्धि हुई है।
(ii) आर्थिक विकास से आधुनिकता को बढ़ावा मिला है, फलस्वरूप संसाधनों की माँग बढ़ी है।
(iii) सूचना प्रौद्योगिकी के आने से लोगों के रहन-सहन में परिवर्तन आया है। अब मानव पश्चिमी सभ्यता को अपनाने के लिए परिक्षित है।
(iv) प्रौद्योगिकी से खनन प्रक्रिया में सुधार हुआ है जिसके तहत प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक शोषण हुआ है।
प्रश्न 6. जलोढ़ एवं काली मिट्टी में अन्तर बताइए।
उत्तर
जलोढ़ एवं काली मिट्टी में अन्तर
जलोढ़ मिट्टी
- इस मिट्टी का रंग हल्का भूरा होता है।
2.नदियों द्वारा बहाकर लायी गयी मिट्टी को जलोढ़ मृदा कहते हैं।
3.यह देश की भूमि के 40 प्रतिशत भाग में फैली हुई है। दक्षिण भारत में महानदी, गोदावरी कृष्णा, कावेरी नदियों के डेल्टा में यह मिट्टी पायी जाती है।
4.इस मिट्टी में ह्यूमस तथा चूने का अंश अधिक होता है।
काली मिट्टी
1.यह मिट्टी काले रंग की होती है।
2.काली मिट्टी का निर्माण ज्वालामुखी उद्गार से निकले लावा द्वारा होता है।
3.यह देश की भूमि के 18.5 प्रतिशत भाग में फैली हुई है। यह मुख्यतः महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, आन्ध्र प्रदेश और कनार्टक में पायी जाती है।
4.इसमें मैग्मा के अंश, लोहा व ऐल्युमिनियम की प्रधानता पायी जाती है।
प्रश्न 7. बांगर तथा खादर मृदाओं के बीच अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- बांगर और खादर में निम्न अन्तर पाये जाते हैं
बांगर
- पुराने जलोढ़ अवसादों के निक्षेप से निर्मित उच्च भू-आकार को बांगर कहते हैं।
2.ऊँचाई के कारण बाढ़ का जल यहाँ तक नहीं पहुँचता
3.बांगर के क्षेत्र में चूना युक्त कंकड़ों की बहुलता है जिसमें आर्द्रता कम होती है, अतः कम उपजाऊ होती है।
- इसका विस्तार पंजाब व उत्तर प्रदेश में अधिक पाया जाता है।
खादर
1.बाढ़ की नवीन जलोढ़ मिट्टी से निर्मित निचले भाग को खादर कहते हैं।
2.यह सम्पूर्ण भाग बाढ़ का मैदान है।
3.खादर में उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी पायी जाती है।
4.इसका विस्तार पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड व पश्चिम बंगाल में है।
प्रश्न 8. लाल मिट्टी एवं लैटेराइट मिट्टी में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
लाल मिट्टी
1.यह मिट्टी शुष्क और तर जलवायु में प्राचीन रवेदार और परिवर्तित चट्टानों की टूट-फूट से बनती है।
2.यह मिट्टी लाल, पीली एवं चॉकलेटी रंग की होती है। इस मिट्टी में लोहा, ऐल्युमिनियम और चूना अधिक होता है। यह मिट्टी अत्यन्त रन्ध्रयुक्त है।
3.यह मिट्टी उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड से लेकर दक्षिण के प्रायद्वीप तक पायी जाती है। यह मध्य प्रदेश, झारखण्ड, पश्चिमी बंगाल, मेघालय नागालैण्ड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु तथा महाराष्ट्र में मिलती है।
4.इस मिट्टी में बाजरा की फसल अच्छी पैदा होती है, किन्तु गहरे लाल रंग की मिट्टी कपास, गेहूँ, दालें और मोटे अनाज के लिए उपयुक्त है।
लैटेराइट मिट्टी
- मिट्टी का निर्माण ऐसे भागों में हुआ है, जहाँ शुष्क व तर मौसम बारी-बारी से होता है। यह लैटेराइट चट्टानों की टूट-फूट से बनती है।
2.यह मिट्टी चौरस उच्च भूमियों पर मिलती है। इसमें वनस्पति का अंश पर्याप्त होता है। गहरी लैटेराइट मिट्टी में लोहा, ऑक्साइड और पोटाश की मात्रा अधिक होती है।
3.यह तमिलनाडु के पहाड़ी भागों और निचले क्षेत्रों, कर्नाटक के कुर्ग जिले केरल राज्य के चौड़े समुद्री तट, महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले, पश्चिमी बंगाल के बेसाइट और ग्रेनाइट पहाड़ियों के बीच तथा ओडिशा के पठार में मिलती है।
4.यह मिट्टी चावल, कपास, गेहूँ, दाल, मोटे अनाज, सिनकोना, चाय, कहवा आदि फसलों के लिए उपयोगी है।
दीर्घ उत्तरीय / विश्लेषणात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. भारत में जलोढ़ मिट्टी व काली मिट्टी की विशेषताएँ एवं वितरण को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(1) जलोढ़ मिट्टी- यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मिट्टी है। भारत के काफी बड़े क्षेत्रों में यही मिट्टी पायी जाती है। इसके अन्तर्गत 40 प्रतिशत भाग सम्मिलित है। वास्तव में सम्पूर्ण उत्तरी मैदान में यही मिट्टी पायी जाती है। यह मिट्टी हिमालय से निकलने वाली तीन बड़ी नदियों- सतलुज, गंगा तथा ब्रह्मपुत्र और उनकी सहायक नदियों द्वारा बहाकर लायी गयी है और उत्तरी मैदान में जमा की गयी है। हजारों वर्षों तक सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय करते हुए नदियों ने अपने मुहानों पर मिट्टी के बहुत बारीक कणों को जमा किया है। मिट्टी के इन बारीक कणों को जलोढ़क कहते हैं। सम्पूर्ण उत्तरी मैदान के अतिरिक्त एक सँकरे गलियारे के द्वारा राजस्थान और गुजरात तक तथा महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी नदियों के डेल्टा तक फैली है।
विशेषताएँ-
(1) इस मिट्टी में विभिन्न मात्रा में रेत, गाद तथा मृत्तिका (चीका मिट्टी) मिली होती है।
(2) यह मिट्टी सबसे अधिक उपजाऊ होती है।
(3) इस मृदा में साधारणतया पोटाश, फॉस्फोरिक अम्ल तथा चूना पर्याप्त मात्रा में होता है।
(4) इसमें नाइट्रोजन तथा जैविक पदार्थों की कमी होती है।
(5) इसमें कुएँ खोदना और नहरें निकालना सरल होता है, अत: यह कृषि के लिए बहुत ही उपयोगी है।
( 2 ) काली मिट्टी- इस मिट्टी का रंग काला है। अतः इसे काली मिट्टी कहते हैं। इस मिट्टी का निर्माण लावा के प्रवाह से हुआ है। इस मिट्टी में मैग्मा के अंश, लोहा व ऐल्युमिनियम की प्रधानता पायी जाती है। इस मिट्टी में नमी बनाये रखने की अद्भुत क्षमता होती है। इस मिट्टी का स्थानीय नाम ‘रेगर’ है। ये मृदा महाराष्ट्र, सौराष्ट्र, मालवा, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के पठार में पाई जाती है।
विशेषताएँ- (1) काली मिट्टी का निर्माण बहुत ही महीन मृत्तिका (चीका) के पदार्थों से हुआ है।
(2) इसकी अधिक समय तक नमी धारण करने की क्षमता प्रसिद्ध है।
(3) इसमें मिट्टी के पोषक तत्त्व पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं। कैल्सियम कार्बोनेट, मैग्नीशियम कार्बोनेट,
पोटाश और चूना इसके मुख्य पोषक तत्त्व हैं।
(4) यह मिट्टी कपास की फसल के लिए बहुत उपयुक्त है। अतः इसे कपास वाली मिट्टी भी कहा जाता है।
प्रश्न 2. मृदा अपरदन के प्रमुख कारण बताइए।
उत्तर- मृदा अपरदन के प्रमुख कारण निम्न प्रकार हैं
(1) वनों का नाश – कृषि के लिये भूमि का विस्तार करने तथा जलाने व इमारती लकड़ी की बढ़ती हुई माँग को पूरा करने के लिए पिछले कई वर्षों से वनों का विनाश हो रहा है। फलतः पानी को नियन्त्रित करने
की शक्ति घटी है और भूमि का कटाव बढ़ गया है।
(2) अत्यधिक पशु चारण- पशु चारण पर नियन्त्रण न रखने से भी जंगलों की घास काट ली जाती है अथवा जानवरों द्वारा चर ली जाती है। इससे भूमि की ऊपरी परत हट जाती है और भूमि कटाव होने लगता है।
(3) आदिवासियों द्वारा झूमिंग कृषि करना- हमारे देश में अनेक स्थानों पर आदिवासी जंगलों को साफ करके खेती करते हैं। फिर उस भूमि को छोड़कर दूसरे स्थानों पर चले जाते हैं जिससे पहले वाली भूमि पर कटाव की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
(4) पवन अपरदन- इस तरह का कटाव वनस्पति का आवरण हटने से होता है। भू-गर्भ में पानी की सतह से अत्यधिक नीचे चले जाने से भी वायु अपरदन होता है।
(5) भारी वर्षा – मिट्टी का कटाव भारी वर्षा से होता है, क्योंकि मिट्टी कटकर बह जाती है। वास्तव में पानी से होने वाला कटाव तीन तरह से होता है- पहला परत का कटाव, फिर नाली का कटाव और अन्त में बाढ़ का कटाव
प्रश्न 3. मृदा संरक्षण के प्रमुख तरीकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर
मृदा संरक्षण
बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण प्राकृतिक संसाधनों का बड़े पैमाने पर विनाश हुआ है। अनेक प्राकृतिक संसाधनों के नष्ट होने का खतरा पैदा हो गया है। इसलिए मृदा संरक्षण द्वारा विनाश रोकना आवश्यक है। मृदा संरक्षण के लिए निम्न उपाय किये जा सकते हैं
(1) मिट्टी की उर्वरता बनाये रखने के लिए वैज्ञानिक तरीकों को अपनाना।
(2) मिट्टी की उर्वरता को बनाये रखने के लिए रासायनिक उर्वरकों के साथ-साथ जैविक खादों को भी प्रयोग में लाना।
(3) वृक्ष लगाकर मृदा अपरदन को रोकना।
(4) नदियों पर बाँध बनाकर जल के तीव्र प्रवाह को रोककर भूमि के कटाव को रोकना ।
(5) पर्वतीय भागों में सीढ़ीनुमा खेत बनाना।
(6) खेतों की ऊँची मेंड़ बनाना ।
(7) ग्रामीण खेतों में चरागाहों का विकास करना।
प्रश्न 4. भारत में भूमि निम्नीकरण की समस्या पर एक लेख लिखिए व इन समस्याओं को सुलझाने के उपाय बताइए।
उत्तर – ( 1 ) मानव क्रियाकलापों के कारण न केवल भूमि का निम्नीकरण हो रहा है बल्कि भूमि को नुकसान पहुँचाने वाली प्राकृतिक ताकतों को भी बल मिला है।
(2) भारत में लगभग 13 करोड़ हेक्टेयर भूमि निम्नीकृत है। इसमें से लगभग 28 प्रतिशत भूमि निम्नीकृत वनों के अन्तर्गत है, 56 प्रतिशत क्षेत्र जल अपरदित है और शेष क्षेत्र लवणीय और क्षारीय है।
(3) कुछ मानव क्रियाओं; जैसे-वनोन्मूलन, अति पशुचारण, खनन ने भी भूमि के निम्नीकरण में प्रमुख भूमिका निभाई है।
(4) खनन के उपरान्त खदानों वाले स्थानों को गहरी खाइयों और मलबे के साथ खुला छोड़ दिया जाता
है। खनन के कारण मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड और ओडिशा जैसे राज्यों में वनोन्मूलन भूमि निम्नीकरण का कारण बना है।
(5) गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में अति पशुचारण भूमि निम्नीकरण का मुख्य कारण
है।
(6) पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में अधिक सिंचाई भूमि निम्नीकरण के लिए उत्तरदायी है। अति सिंचन से उत्पन्न जलाक्रांतता भी भूमि निम्नीकरण के लिए उत्तरदायी है जिससे मृदा में लवणीयता और क्षारीयता बढ़ जाती है।
(7) खनिज प्रक्रियाएँ, जैसे सीमेंट उद्योग में चूना पत्थर को पीसना और मृदा बर्तन उद्योग में चूने (खड़िया मृदा) और सेलखड़ी के प्रयोग से बहुत अधिक मात्रा में वायुमण्डल में धूल विसर्जित होती है। जब इसकी परत भूमि पर जम जाती है तो मृदा की जल सोखने की प्रक्रिया अवरुद्ध हो जाती है।
भूमि निम्नीकरण की समस्या को दूर करने के उपाय
भूमि निम्नीकरण की समस्याओं को सुलझाने के कई उपाय हैं। वनारोपण और चरागाहों का उचित प्रबन्धन इसमें कुछ हद तक मदद कर सकते हैं। पेड़ों की रक्षक मेखला, पशुचारण नियन्त्रण और रेतीले टीलों को काँटेदार झाड़ियाँ लगाकर स्थिर बनाने की प्रक्रिया से भी भूमि कटाव की रोकथाम शुष्क क्षेत्रों में की जा सकती है। बंजर भूमि के उचित प्रबन्धन, खनन नियन्त्रण और औद्योगिक जल को परिष्करण के पश्चात् विसर्जित करके जल और भूमि प्रदूषण को कम किया जा सकता है।
प्रश्न 5. एजेंडा- 21 क्या है ? इसके सिद्धान्तों की सूची बनाइए।
उत्तर- एजेंडा-21- यह एक घोषणा है जिसे 1992 में ब्राजील के शहर रियो डी जेनेरो में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण और विकास सम्मेलन (UNCED) के तत्वाधान में राष्ट्राध्यक्षों द्वारा स्वीकृत किया गया था।
सिद्धान्त – (1) इसका उद्देश्य भूमण्डलीय सतत् पोषणीय विकास हासिल करना है। (2) यह एक कार्यसूची है जिसका उद्देश्य समान हितों, पारस्परिक आवश्यकताओं एवं सम्मिलित जिम्मेदारियों के अनुसार विश्व सहयोग के द्वारा पर्यावरणीय क्षति, निर्धनता और रोगों से निपटना है।
(3) एजेंडा-21 का मुख्य उद्देश्य यह है कि प्रत्येक स्थानीय निकाय अपना स्थानीय एजेंडा-21 तैयार
प्रश्न 6. संसाधन नियोजन क्यों आवश्यक है ? संसाधन नियोजन के क्या सोपान हैं ? करें।
उत्तर- संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग के लिए नियोजन एक सर्वमान्य रणनीति है। इसलिए भारत जैसे देश में जहाँ संसाधनों की उपलब्धता में बहुत अधिक विविधता है, यह और भी महत्त्वपूर्ण है। यहाँ ऐसे
प्रदेश भी हैं जहाँ एक तरह के संसाधनों की प्रचुरता है, परन्तु दूसरे प्रकार के संसाधनों की कमी है। कुछ ऐसे
प्रदेश भी हैं जो संसाधनों की उपलब्धता के सन्दर्भ में आत्मनिर्भर हैं और कुछ ऐसे भी प्रदेश हैं जहाँ महत्त्वपूर्ण संसाधनों की अत्यधिक कमी है। इसलिए राष्ट्रीय, प्रान्तीय, प्रादेशिक और स्थानीय स्तर पर सन्तुलित संसाधन नियोजन की आवश्यकता है। संसाधन नियोजन के सोपान संसाधन नियोजन एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें निम्नलिखित सोपान हैं
(1) राष्ट्र के विभिन्न प्रदेशों में संसाधनों की पहचान कर उनकी तालिका बनाना। इस कार्य में क्षेत्रीय सर्वेक्षण, मानचित्र बनाना और संसाधनों का गुणात्मक एवं मात्रात्मक अनुमान लगाना व मापन करना है।
(2) संसाधन विकास योजनाएँ लागू करने के लिए उपयुक्त प्रौद्योगिकी, कौशल और संस्थागत नियोजन ढाँचा तैयार करना।
(3) संसाधन विकास योजनाओं और राष्ट्रीय विकास योजना में समन्वय स्थापित करना । स्वतन्त्रता के बाद भारत में संसाधन नियोजन के उद्देश्य की पूर्ति के लिए प्रथम पंचवर्षीय योजना से ही प्रयास किए गए।
प्रश्न 7. स्वामित्व के आधार पर संसाधनों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर- स्वामित्व के आधार पर संसाधनों का वर्गीकरण इस प्रकार किया जा सकता है
(1) व्यक्तिगत संसाधन-संसाधन निजी व्यक्तियों के स्वामित्व में भी होते हैं। गाँव में बहुत से लोग भूमि के स्वामी भी होते हैं और बहुत से लोग भूमिहीन होते हैं। शहरों में लोग भूखण्ड, घरों व अन्य जायदाद के स्वामी होते हैं। बाग, चरागाह, तालाब और कुओं का जल आदि संसाधनों के निजी स्वामित्व के कुछ उदाहरण हैं।
(2) सामुदायिक स्वामित्व वाले संसाधन-वे संसाधन समुदाय के सभी सदस्यों को उपलब्ध होते हैं।
गाँव की शामिलात भूमि (चारण भूमि, श्मशान भूमि, तालाब इत्यादि) और नगरीय क्षेत्रों के सार्वजनिक पार्क,
पिकनिक स्थल और खेल के मैदान आदि वहाँ रहने वाले सभी लोगों के लिए उपलब्ध होते हैं।
(3) राष्ट्रीय संसाधन-तकनीकी तौर पर देश में पाये जाने वाले सारे संसाधन राष्ट्रीय हैं। सारे खनिज पदार्थ, जल संसाधन, वन, वन्य जीवन, राजनीतिक सीमाओं के अन्दर सारी भूमि और 12 समुद्री मील (22-2 किमी) तक महासागरीय क्षेत्र (भू-भागीय समुद्र) व इसमें पाए जाने वाले संसाधन राष्ट्र की सम्पदा हैं।
(4) अन्तर्राष्ट्रीय संसाधन-कुछ अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएँ संसाधनों को नियन्त्रित करती हैं। तट रेखा से 200 समुद्री मील की दूरी (अपवर्जक आर्थिक क्षेत्र) से परे खुले महासागरीय संसाधनों पर किसी देश का अधिकार नहीं है। इन संसाधनों को अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं की सहमति के बिना उपयोग नहीं किया जा सकता।
प्रश्न 8. निम्नलिखित पर टिप्पणी कीजिए
(1) भण्डार,
(2) संचित कोष,
(3) संसाधनों का संरक्षण
उत्तर- (1) भण्डार- पर्यावरण में उपलब्ध वे पदार्थ जो मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकते हैं, परन्तु उपयुक्त प्रौद्योगिकी के अभाव में उसकी पहुँच से बाहर हैं, भण्डार में शामिल हैं। उदाहरण के लिए, जल दो गैसों, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का यौगिक है, हाइड्रोजन ऊर्जा का मुख्य स्रोत बन सकता है। किन्तु इस उद्देश्य से, इसका प्रयोग करने के लिए हमारे पास उन्नत तकनीकी ज्ञान नहीं है।
(2) संचित कोष- यह संसाधन भण्डार का ही भाग है, जिन्हें उपलब्ध तकनीकी ज्ञान की सहायता से प्रयोग में लाया जा सकता है, परन्तु इनका उपयोग अभी प्रारम्भ नहीं हुआ है। इनका उपयोग भविष्य में आवश्यकता पूर्ति के लिए किया जा सकता है। नदियों के जल को विद्युत् पैदा करने में प्रयुक्त किया जा सकता है, किन्तु वर्तमान समय में इसका उपयोग सीमित मात्रा पर ही हो रहा है। इस प्रकार बाँधों में जल, वन आदि संचित कोष हैं जिनका उपयोग भविष्य में किया जा सकता है।
(3) संसाधनों का संरक्षण-संसाधन किसी प्रकार के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। किन्तु संसाधनों का विवेकहीन उपभोग और अति उपयोग के कारण कई सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। इन समस्याओं से बचाव के लिए विभिन्न स्तरों पर संसाधनों का संरक्षण आवश्यक है। आरम्भ से ही संसाधनों का संरक्षण बहुत से नेताओं और चिन्तकों के लिए चिन्ता का विषय रहा है। जैसे कि गाँधीजी ने संसाधनों के संरक्षण पर अपनी चिन्ता इन शब्दों में व्यक्त की है-“हमारे पास हर व्यक्ति की आवश्यकता पूर्ति के लिए बहुत कुछ है, लेकिन किसी के लालच की सन्तुष्टि के लिए नहीं। अर्थात् हमारे पास भेट भरने के लिए बहुत है लेकिन पेटी भरने के लिए नहीं।” उनके अनुसार विश्व स्तर पर, ह्रास के लिए लालची और स्वार्थी व्यक्ति तथा आधुनिक प्रौद्योगिकी की शोषणात्मक प्रवृत्ति जिम्मेदार है। वे संसाधन अत्यधिक उत्पादन के विरुद्ध थे और इसके स्थान पर अधिक बड़े जनसमुदाय द्वारा उत्पादन के पक्षधर थे।
Leave a Reply