Pariksha Adhyayan Physics Class 9th अध्याय 4 व्याकरण भाग Sanskrit परीक्षा अध्ययन संस्कृत

4. व्याकरण भाग

अध्याय 4 व्याकरण भाग
अध्याय 4
व्याकरण भाग
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(iii) प्लुतों के साथ भी सन्धि नहीं होती है। जैसे-
एहि कृष्ण ३ अत्र गौश्चरति।
यहाँ कृष्ण + अत्र (अ + अ) में दीर्घ सन्धि नहीं होगी क्योंकि सम्बोधन पद ‘कृष्ण’ में ‘अ’ प्लुत है

(II) व्यञ्जन (हल्) सन्धि
जो वर्ण स्वर की सहायता से उच्चारित किया जाता है, वह व्यंजन वर्ण होता है। स्वर के बिना व्यंजनका उच्चारण सम्भव नहीं होता। जब व्यंजन का स्वर या व्यंजन से मेल होने पर व्यंजन में कोई परिवर्तन होताहै तो उसे व्यंजन सन्धि कहते हैं।

व्यञ्जन सन्धि के भेद-

१.श्चुत्व सन्धि (सूत्र-स्तोः श्चुनाश्चुः)
‘स्’ अथवा ‘त’ वर्ग (त् थ् द् ध् न्) के पहले या बाद में ‘श्’ अथवा ‘च’ वर्ग (च् छ् ज् झ् ज्) केवर्ण आते हैं तो ‘स्’ को ‘श्’ तथा ‘त्’ वर्ग (त् थ् द् ध् न) को क्रमश: ‘च’ वर्ग (च् छ् ज् झ् ब) हो जाता है।

निस् + छलः निश्छलः (स् को श्)
सत् + चरित्रम् सच्चरित्रम् (त् को च)
सत् + चित् सच्चित् (त् को )
उद् + ज्वल: उज्ज्वल: (द् को ज्)
उत् + चारणम् उच्चारणम् (त् को च्)
रामश्शेते (स् को श्)
हरिस् + शेते हरिश्शेते (स् को श)

२.ष्टुत्व सन्धि (सूत्र-ष्टुना ष्टुः)
‘स्’ अथवा ‘त्’ वर्ग (त् थ् द् ध् न्) के पहले या बाद में ‘ए’ अथवा ‘ट्’ वर्ग (ट् इद ण) केवर्ण आते हैं तो ‘स्’ को ‘ए’ तथा ‘त्’ वर्ग (त् थ् द् धन) को क्रमशः ” वर्ग (ड् दण्) हो जाता है।
रामस् षष्ठः रामपठः (स् को )

रामस् + टीकते = रामष्टीकते (स् को प्)
तत् + टीका तट्टीका (त् को )
उद् + डयनम् उड्डयनम् (द् को ड्)
हरिस् + टीकते हरिष्टीकते (स् को )
आकृष् + त: आकृष्टः (त् को )

३. जश्त्व सन्धि (सूत्र (अ) झलां जशोऽन्ते (ब) झलां जश् झशि)
(अ) पद के अन्त में या स्वर वर्ण आगे होने पर किसी भी वर्ग के प्रथम, द्वितीय, तृतीय और चतुर्थको तृतीय वर्ण हो जाता है।

जगत् + ईशः = जगदीश: [प्रथम वर्ण (त) को तृतीय वर्ण (द)]
दर्श + नम् = षड्दर्शनम् [प्रथम वर्ण (द्) को तृतीय वर्ण (इ)]
दिक + गजः = दिग्गजः [प्रथम वर्ण (क) को तृतीय वर्ण (ग)]
दिक् + अम्बरः दिगम्बर: [प्रथम वर्ण (क्) को तृतीय वर्ण (ग)]
सत् + आचारः = सदाचारः [प्रथम वर्ण (त्) को तृतीय वर्ण (द)]
वाक् + ईश: = वागीश: [प्रथम वर्ण (क) को तृतीय वर्ण (ग)]
सुप अन्त: = सुबन्तः [प्रथम वर्ण (प)को तृतीय वर्ण (ब)]
अच् + अन्त अजन्त: [प्रथम वर्ग (च्) को तृतीय वर्ण (ज)]

(ब) अपदान्त वर्ग के प्रथम, द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ वर्गों के आगे यदि कोई तृतीय या चतुर्थ याआये तो पूर्व आये वर्ण के स्थान पर अपने वर्ग को तृतीय वर्ण हो जाता है।

वर्ध + ध = वर्ध्द: [चतुर्थ वर्ण (ध) को त्रतिया वर्ण (द) ]
दुध + धमा = दुग्धं [चतुर्थ वर्ण (ध) को त्रतिया वर्ण (ग)]

४. चत्वं सन्धि (सूत्र-खरि च)
यदि वर्ग के प्रथम, द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ वर्गों के आगे किसी वर्ग का प्रथम,
द्वितीय वर्ण अथवा श् ष् स् में से कोई वर्ण आये तो पूर्व आये वर्ण के स्थान पर अपने वर्ण का प्रथम वर्ण है।जाता है।

सद् + कारः = सत्कारः [तृतीय वर्ण (द) को प्रथम वर्ण (त्)]
उद् + पन्नः = उत्पन्नः [तृतीय वर्ण (द) को प्रथम वर्ण (त्)]
दिग + पालः = दिक्पाल: [तृतीय वर्ण (ग) को प्रथम वर्ण (क)]
लभ् + स्यते = लप्स्यते [चतुर्थ वर्ण (भ) को प्रथम वर्ण (प)]

५. अनुस्वार सन्धि (सूत्र-मोऽनुस्वारः)
यदि किसी पद के अन्त में स्थित ‘म्’ के बाद कोई व्यंजन आये, तो ‘म्’ के स्थान पर अनुस्वार हो जाता है।

कृष्णं + वन्दे कृष्णम् वन्दे (म् को अनुस्वार)
कार्यम् + करोति = कार्य करोति (म् को अनुस्वार)
सत्यम् + सत्यं वद (म् को अनुस्वार)
हरिम् + वन्दे हरिं वन्दे (म् को अनुस्वार)
अहम् + गच्छामि = अहं गच्छामि (म् को अनुस्वार)
६. लत्व या परसवर्ण सन्धि (सूत्र-तोलि)
‘त’ वर्ग (त् थ् द्धू न्) के बाद ‘लू’ आने पर ‘त’ वर्ग के स्थान पर ल होजाता है।किन्तु ‘न’ के बाद यदि ‘ल’ आता है तो ‘न्’ के स्थान पर अनुनासिक ‘ल’ हो जाता है। अर्थात् ‘न्’ केस्थान पर ‘ल’ तो होता ही है, उसके साथ ही पूर्व वाले स्वर पर अनुनासिक (चन्द्र बिन्दु) चिह्न लग जाता है।

तत् + लय: तल्लयः (त् को ल)
तत् + लीन: तल्लीन: (त् को ल्)
उत् + लङ्घनम् उल्लङ्घनम् (त् को ल्)
उत् + लिखितम् उल्लिखितम् (त् को ल्)
उत + लेख: उल्लेख: (त् को ल्)
महान् + लाभ: महाँल्लाभ: (न् को अनुनासिक ल्)
विद्वान् + लिखति विदाँल्लिखति (न् को अनुनासिक ल्)

७. परसवर्ण सन्धि (सूत्र-अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः)
पद के मध्य में अनुस्वार (.) के बाद किसी भी वर्ग का कोई वर्ण आता है तो अनुस्वार (.) के स्थानपर सामने वाले वर्ग का पञ्चम वर्ण हो जाता है।
शा+त: = शान्त: (अनुस्वार को ‘त’ वर्ग का पञ्चम वर्ण ‘न्’)

अं+कितः अङकित:/अङ्कितः (अनुस्वार को ‘क’ वर्ग का पञ्चम वर्ण
अं. चितः = अञ्चितः (अनुस्वार को ‘च’ वर्ग का पञ्चम वर्ण ‘ज’)
सं+ कल्प: = सङ्कल्पः (अनुस्वार को ‘क’ वर्ग का पञ्चम वर्ण ”)
कुं+ ठितः = कुण्ठितः (अनुस्वार को ‘ट’ वर्ग का पञ्चम वर्ण ‘ण’)

८. छत्व सन्धि (सूत्र-शश्छोऽति)
यदि पद के अन्त में किसी वर्ग के प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ वर्ण के बाद श्’ हो और ‘श्’ के बादकोई स्वर या ‘य'””र”ह’ वर्ण हो तो ‘श्’ के स्थान पर ‘छ्’ हो जाता है। ‘त’ वर्ग का ‘च’ वर्ग श्चुत्वसन्धि से होता है।
जैसे-
तत् + शिवः तच्छिव: (त् को च तथा श् को छ)
सत् + शील: (त् को च तथा श् को छ)
एतत् + शोभनम् एतच्छोभनम् (त् को च तथा श् को छ)
तत् + श्रुत्वा तत्छुत्वा (त् को च तथा श् को छ्)
एतत् + शान्तम् एतच्छान्तम् (त् को च तथा श् को छ)

९. चागम सन्धि (सूत्र-छे च)हो जाता है।
ह्रस्व स्वर के आगे ‘छ’ आने पर ‘छ’ से पूर्व ‘त्’ का आगम होता है तथा श्चुत्व सन्धि से ‘त्’ को ‘च’सच्छील:

जैसे-
अनु + छेदः अनुच्छेदः (च का आगम)
तरु+छाया तरुच्छाया (च का आगम)
परि + छेदः परिच्छेदः (च का आगम)
शिव + छाया शिवच्छाया (च का आगम)
तव + छवि तवच्छवि (च का आगम)

१०. ‘र’ का लोप तथा पूर्व स्वर का दीर्घ होना
(सूत्र-रो रि तथा ठूलोपे पूर्वस्य दीर्घोऽण:)” के बाद ‘र’ हो तो पहले ‘र’ का लोप हो जाता है तथा उससे पूर्ववर्ती अ, इ, उ को दीर्घ हो जाता है।

अन्तर + राष्ट्रियः अन्तर्राष्ट्रीय
स्वर् + राज्यम् स्वराज्यम्
निर् + रोगःनीरोग:
निर् रस: नीरसः।

११. न् का ण होना
(i) किसी एक ही पद में ऋ, र ष् के बाद ‘न्’ आये तो ‘न्’ को ‘ण’ हो जाता है।
जैसे-चतुर्णाम्, कृष्णः, पुष्णाति, स्वर्णः, वर्ण : इत्यादि।
(ii) अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, लू, ए, ओ, ऐ, औ, ह, य, व, क वर्ग (क् ख् ग् घ् ङ्) प वर्ग
(एफ् व् भ् म्) आङ् (आ) तथा नुम् (न्) ये वर्ण बीच में होंगे तो भी ‘न्’ को ‘ण’ हो जाताहै।
जैसे-गुरुणा, सर्वेण, करिणा, कराणाम्, नराणाम्, ऋषीणाम् इत्यादि।

(III) विसर्ग सन्धि
विसर्ग का स्वर या व्यञ्जन से मेल होने पर जब विसर्ग में कोई परिवर्तन होता है तो उसे विसर्ग सानिकहते हैं।

१. (I) विसर्ग का ‘स्’ होना (सूत्र-विसर्जनीयस्य सः)
विसर्ग (:) के बाद स्वर् प्रत्याहार (वर्गों के प्रथम, द्वितीय वर्ण तथा श् स्) हो तो विसर्ग (:) की स्’ हो जाता है। साथ ही आवश्यक होने पर श्चुत्व सन्धि भी होती है।

नमः +ते नमस्ते (विसर्ग को स्)
इतः + ततः इतस्ततः (विसर्ग को स्)
रामः + तिष्ठति – रामस्तिष्ठति (विसर्ग को स्)
निः+ चल: – निश्चल: (विसर्ग को स् तथा स् को श्चुत्व सन्धि से श्)
क: + चित् – कश्चित् (विसर्ग को स् तथा स् को श्चुत्व सन्धि से श)
शिवाः +ते शिवास्ते (विसर्ग को स्)

(ii) विसर्ग का ‘स्’ होना (सूत्र-नमस्पुरसोर्गत्योः)
यदि आगे क वर्ग या प वर्ग हो तो नमः और पुर: के विसर्ग (:) को ‘स्’ हो जाता है। जैसे
नमः + करोति = नमस्करोति (विसर्ग को स्)
नमः + कारः = नमस्कार: (विसर्ग को स्)
पुरः + कारः = पुरस्कार: (विसर्ग को स्)
पुरः + करोति:- पुरस्करोति (विसर्ग को स्)

२. विसर्ग का ‘ए’ होना (इदुदुपधस्य-चाप्रत्ययस्य)
बाद में क वर्ग (क् ख ग घ ङ्) या प वर्ग (प् फ ब भ म्) हो तथा उपधा (अन्तिम से पूर्व वर्ण) में इ’ या ‘उ’ होने पर, उसके विसर्ग को ‘घ’ हो जाता है। परन्तु यह विसर्ग किसी प्रत्यय का नहीं होना चाहिए।
जैसे-
नि: + प्रत्यूहम्= निष्प्रत्यूहम् (विसर्ग को प्)
निः + कपट: = निष्कपट: (विसर्ग को )
दू + कर्म = दुष्कर्म (विसर्ग को )
नि: + फल: = निष्फल: (विसर्ग को )

३. (i) विसर्ग (स्) को रु > उ> गुण > पूर्वरूप होना (सूत्र-अतो रोरप्लुतादप्लुते)
बाद में गुण तथा पूर्वरूप सन्धि भी होती है।
हस्व अ के बाद विसर्ग (स) को ‘रु’ तथा ‘रु’ को ‘उ’ हो जाता है, यदि बाद में भी ह्रस्व ‘अ’ हो तो

जैसे-बालस् • अयम् > बालरु + अयम् > बालउ> अयम् > बाल् ओ> अयम् > बालो • अयम्
> बालो + ऽयम् > बालोऽयम्
शिवः + अर्ध्यः शिवोऽy:
सः + अवदत्
सो+वदत्
सो+पि
को+पि
(11) विसर्ग () को रु > उ> गुण होना (सूत्र-हशि च)
ह्रस्व ‘अ’ के बाद विसर्ग (स्) को ‘रु’ तथा ‘रु’ को ‘3’ हो जाता है, यदि बाद
(हश्) वर्ग के तृतीय, चतुर्थ, पंचम वर्ण या य, व, र, ल, ह वर्ण हों तो बाद में गुण सन्धि भी होती है।
मन् • ओ• रथ:> मनो • रथ:> मनोरथः।

जैसे-मन: + रथ: > मन् + अ+:+ रथः> मन् + अ + रु + रथ:> मन् + अ. उ. रथः
में

मनः + हर: मनोहर:
तपः + वनम् तपोवनम्
शिवः + वन्द्य शिवोवन्द्यः
बाल: + गच्छत बालो गच्छति
गज: + गच्छति गजो गच्छति
रामः + वदति रामो वदति

४. विसर्ग कार होना
यदि अ या आ के अतिरिक्त अन्य स्वरों के बाद विसर्ग (:) हो और विसर्ग (:) के बाद कोई भी स्वरअथवा किसी वर्ग का तृतीय, चतुर्थ, पंचम वर्ण हो तो विसर्ग : को ‘र’ हो जाता है।
जैसे-
गुरु: + जयति गुरुर्जयति
मुनिः + अयम् मुनिरयम्
हरि: + आगच्छति हरिरागच्छति
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
• बहु-विकल्पीय प्रश्न
१. ‘स्वागतम्’ इत्यस्य पदच्छेदः भविष्यति-
(i) सु + आगतम्
(ii) स्वा + गतम्
(iii) स्वा + आगतम्
(iv) स्वाग + तम्।
२. वृद्धिसन्धेः उदाहरणम् अस्ति-
(i) सैव
(ii) सोऽपि
(iv) सुरेशः।
३. व्यञ्जनसन्थेः उदाहरणम् अस्ति-
(i) जगदीशः
(ii) सुरेशः
(iv) इत्यादिः।
४. मनः + रथः = भवति-
(i) मनारथः
(ii) मन्रथः
(iii) मनोरथः
(iv) मनौरथः।
५. ‘उत् + ज्वलः’ इत्यस्य सन्धिः अस्ति-
(i) उज्ज्वलः
(ii) उदज्वल:
(iii) उच्चवल:
(iv) उज्वलः।
उत्तर-१. (), २. (i), ३. (i), ४. (iii), ५. (i).
• रिक्त स्थान पूर्तिः
१. यदि + अपि =………………….!
२. रल + आगार:………………..!
३. सदैव = ……………………….!
४. प्रति + एक:-……………………!
५. भवनम् =……………………..!
उत्तर-१. यद्यपि, २. रत्नागार, ३. सदा + एव, ४. प्रत्येकः,५. भो + अनम्।

.आम् (हाँ)/न (नहीं)
१. विद्या + अर्थी = विद्यार्थी।
२. रमा + ईशः = रमेशः।
३. सदा + एव = सदैव।
४. पो + अनः = पवनः।
निः + छल: = निश्छलः।
उत्तर-१. आम्, २. आम्, ३. आम्,४. आम्, ५. आम्।
• युग्ममेलनम् (जोड़ी मिलाना)
‘अ’ ‘आ’
१. दु: + आत्मा = दुरात्मा (i) दीर्घसन्धिः
२. रवि + इन्द्र: + = – रवीन्द्रः (ii) यण्सन्धिः
३. सदा + एव = सदैव (iii) गुणसन्धिः
४. यदि + अपि = यद्यपि (iv) विसर्गसन्धिः
५. उमा + ईशः = उमेश: (v) वृद्धिसन्धिः
उत्तर-१.→ (iv), २. → (i), ३. → (v), ४. → (ii), ५. → (iii).

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