अध्याय 11
उपसर्गः
धातु रूपों तथा धातुओं के निष्पन्न शब्द रूपों से पूर्व प्रयुक्त होकर उनके अर्थ का परिवर्तन करने वाले शब्दों को उपसर्ग कहते हैं
उपसर्गेण धात्वर्थो बलादन्यत्र नीयते ।
प्रहाराहार-संहार-विहार-परिहारवत् । उपसर्ग प्रयोगेण शब्दनिर्माणम्एकस्य पदस्य वाक्यप्रयोगः
उपसर्गों के जुड़ने से पद का अर्थ बदल जाता है, यथा-हार शब्द का अर्थ है-‘माला’, परन्तु जब उसमें ‘प्र’ उपसर्ग लगता है तो शब्द बनता है प्रहार और उसका अर्थ होता है-मारना। इसी प्रकार ‘आ’ उपसर्ग लगने पर आहार बनता है, जिसका अर्थ है-भोजन। इसी प्रकार यदि हार शब्द में ‘सम’ उपसर्ग जुड़ता है तो संहार शब्द बनता है जिसका अर्थ है नष्ट करना, परन्तु इसी शब्द में वि’ उपसर्ग लगने पर विहार शब्द बनता है जिसका अर्थ होता है-घूमना-फिरना। इसी तरह ‘परि’ उपसर्ग जुड़कर परिहार शब्द बनाता है जिसका अर्थ होता हैसुधार करना/त्याग करना। इस प्रकार हमने देखा कि अलग-अलग उपसर्गों के जुड़ने से शब्दों के अर्थों में परिवर्तन आ जाता है। उपसर्गों का स्वतंत्र प्रयोग नहीं होता।
1. प्र-प्रभवति, प्रकर्षः, प्रयत्नः, प्रतिष्ठा गङ्गा हिमालयात् प्रभवति।
2. परा
-पराजयते, पराभवति, सैनिकः शत्रून् पराजयते।
3. अप-अपहरति, अपकरोति, चौरः धनम् अपहरति।
। 5. अनु-अनुगच्छति, अनुकरोति शिष्यः गुरुम् अनुगच्छति।
4. सम्–संस्करोति, सङ्गच्छते, अध्यापक: छात्रं संस्करोति
6. अव-अवगच्छति, अवतरति रामः भवन्तम् अवगच्छति
अवजानाति वा। 7. निर्-निर्गच्छति, निराकरोति प्राचार्यः कार्यालयात् निर्गच्छति।
8. निस्-निष्कारणम्, निस्सरति सर्पः बिलाद् निस्सरति।
9. दुस्-दुस्त्याज्यः, दुष्प्रयोजनम् स्वभावः दुस्त्याज्यः भवति
। 10. दुर्-दुर्बोध्यः, दुर्लभः अयं गूढविषयः दुर्बोध्यः
अस्ति। 11. वि-विजयते, विहरति धर्मः सदा विजयते।
12. आङ्-आकण्ठम्, आजीवनम् जलं पीतम्
। 13. नि-निगदति, निपतति पुत्रः पितरं निगदति।
। 15. अति-अतिवादः, अत्याचारः अतिवादो न कर्तव्यः।
14. अधि-अधिराजते, अधिशेते विद्वान् सर्वत्र अधिराजते
16. सु-सुपुत्रेण, सुशोभते उद्याने पुष्पाणि सुशोभन्ते
। 17. उत्-उड्डयते, उत्पतितः पक्षिण:आकाशे उड्डयन्ते
। 18. अभि-अभिगच्छति, अभ्यागतः अभ्यागतः सर्वैः सदा पूजनीयः
। 19. प्रति-प्रत्युपकारः, प्रत्यवदत् पुत्री मातरं प्रत्यवदत्।
। 21. उप-उपगच्छति, उपहरति शिष्यः अध्ययनार्थं गुरुम्
20. परि-परित्यजामि, परिवर्तनम् अहं दुष्टं परित्यजामि
उपगच्छति । 22. अपि-अपिदधाति द्वारपालः द्वारम् अपिदधाति (पिदधाति
)। किसी भी धातु में उपसर्ग जुड़ने से अर्थ परिवर्तन हो जाता है, यथा- गम-जाना आ + गम् आगच्छति – आना –
उपसर्गः | 143
उप + गम् उपगच्छति
पास जाना अनु + गम् अनुगच्छति पीछे जाना
अव + गम् अवच्छति समझना
यहाँ हमें यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि जब हमें किसी उपसर्ग युक्त धातु का वाक्य में प्रयोग करने की आवश्यकता पड़ती है, तब धातुरूप के सामान्य प्रयोग में ही पदनिर्माण करने के पश्चात् निर्मित पद में उपसर्ग को संधि-नियमों के अनुसार जोड़ना चाहिए, यथा
लकार धातुरूप लट् (गम्) गच्छति
उपसर्ग + धातुरूप
अनुगच्छति लुट् गमिष्यति अनुगमिष्यति
– अन्वगच्छत् (यण सन्धि) लोट गच्छतु अनुगच्छतु
लङ् अगच्छत् अनुअगच्छत्
विधिलिङ् गच्छेत् अनुगच्छेत्
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