MP Board Solutions for Class 9 Social Science Geography Chapter 4 जलवायु
पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर का चयन करें :
(i) नीचे दिए गए स्थानों में किस स्थान पर विश्व में सबसे अधिक वर्षा होती है?
(क) सिलचर
(ख) चेरापूँजी
(ग) मॉसिनराम
(घ) गुवाहाटी
(ii) ग्रीष्म ऋतु में उत्तरी मैदानों में बहने वाली पवन को निम्नलिखित में से क्या कहा जाता है?
(क) काल वैशाखी
(ख) व्यापारिक पवनें
(ग) लू
(घ) इनमें से कोई नहीं
(iii) निम्नलिखित में से कौन-सी कारण भारत के उत्तर-पश्चिम भाग में शीत ऋतु में होने वाली वर्षा के लिए उत्तरदायी है?
(क) चक्रवातीय अवदाब
(ख) पश्चिमी विक्षोभ
(ग) मानसून की वापसी
(घ) दक्षिण-पश्चिम मानसून
(iv) भारत में मानसून का आगमन निम्नलिखित में से कब होता है?
(क) मई के प्रारंभ में
(ख) जून के प्रारंभ में
(ग) जुलाई के प्रारंभ में
(घ) अगस्त के प्रारंभ में
(v) निम्नलिखित में से कौन-सी भारत में शीत ऋतु की विशेषता है?
(क) गर्म दिन एवं गर्म रातें
(ख) गर्म दिन एवं ठंडी रातें
(ग) ठंडा दिन एवं ठंडी रातें
(घ) ठंडा दिन एवं गर्म रातें
उत्तर:
(i) (ग) मॉसिनराम
(ii) (ग) लू
(iii) (ख) पश्चिमी विक्षोभ
(iv) (ख) जून के प्रारंभ में
(v) (ग) ठंडा दिन एवं ठंडी रातें।
प्रश्न 2.
निम्न प्रश्नों के संक्षेप में उत्तर दीजिए-
- भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कौन-कौन से कारक हैं?
- भारत में मानसूनी प्रकार की जलवायु क्यों है?
- भारत के किस भाग में दैनिक तापमान अधिक होता है एवं क्यों?
- किन पवनों के कारण मालाबार तट पर वर्षा होती है?
- जेट धाराएँ क्या हैं तथा वे किस प्रकार भारत की जलवायु को प्रभावित करती हैं?
- मानसून को परिभाषित करें। मानसून में विराम से आप क्या समझते हैं?
- मानसून को एक सूत्र में बाँधने वाला क्यों समझा जाता है?
उत्तर:
- भारत की जलवायु को मुख्य रूप से तीन कारक प्रभावित करते हैं। ये हैं-
- अक्षांश,
- ऊँचाई,
- वायुदाब एवं पवनें।
- भारत में मानसूनी जलवायु होने के प्रमुख कारण इस प्रकार हैं
- मानसूनी जलवायु में मौसम के अनुसार पवनों की दिशा में परिवर्तन होता है।
- भारत की जलवायु में भी पवनें गर्मी में समुद्र से स्थल की ओर तथा शीत ऋतु में स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं।
- भारत में सबसे अधिक दैनिक तापमान भारत के मरुस्थल में होता है क्योंकि रेत शीघ्र गर्म होने से दिन में तापमान अधिक होता है।
- मालाबार तट पर दक्षिण-पश्चिमी पवनों के कारण वर्षा होती है।
- क्षोभमंडल की ऊपरी परत में पश्चिम से पूर्व की ओर तथा पूर्व से पश्चिम की ओर चलने वाली तीव्रगामी वायु धाराओं को जेट प्रवाह कहते हैं। पश्चिमी जेट प्रवाह के मार्ग में हिमालय तथा तिब्बत के पठार अवरोधक का काम करते हैं।
इस प्रकार यह प्रवाह दो भागों में बँट जाता है-- उत्तरी जेट प्रवाह
- दक्षिणी जेट प्रवाह।
उत्तरी जेट प्रवाह हिमालय के उत्तर में तथा दक्षिणी जेट प्रवाह हिमालय के दक्षिण में बहता है। जेट की दक्षिणी शाखा हमारे देश की जलवायु को प्रभावित करती है। जेट प्रवाह शीतकालीन चक्रवातों को भारत तक पहुँचाने में सहायक होते हैं। भारत की मानसून पवनों की दिशा को निर्धारित करने में जेट प्रवाह प्रभावशाली भूमिका निभाते हैं।
- मानसून अरबी भाषा का शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ ‘मौसम’ है। मानसूनी जलवायु में मौसम के अनुसार पवनों की दिशा में परिवर्तन आ जाता है-गर्मी में समुद्र से स्थल की ओर सर्दी में स्थल से समुद्र की ओर। मानसून में विराम का अर्थ है वह शुष्क समय जिसमें वर्षा नहीं होती।
- विभिन्न अक्षाशों में स्थित होने एवं उच्चावच लक्षणों के कारण भारत की मौसम संबंधी परिस्थितियों में बहुत अधिक भिन्नताएँ पाई जाती हैं। किन्तु ये भिन्नताएँ मानसून के कारण कम हो जाती हैं क्योंकि मानसून पूरे भारत में बहती हैं। सम्पूर्ण भारतीय भूदृश्य, इसके जीव तथा वनस्पति, इसका कृषि-चक्र, मानव-जीवन तथा उनके त्योहार-उत्सव, सभी इस मानसूनी लय के चारों ओर घूम रहे हैं।
मानसून के आगमन का पूरे देश में भरपूर स्वागत होता है। भारत में मानसून के आगमन का स्वागत करने के लिए विभिन्न त्योहार मनाए जाते हैं। मानसून झुलसाती गर्मी से राहत प्रदान करती है। मानसून वर्षा कृषि क्रियाकलापों के लिए पानी उपलब्ध कराती है। वायु प्रवाह में ऋतुओं के अनुसार परिवर्तन एवं इससे जुड़ी मौसम संबंधी परिस्थितियाँ ऋतुओं का एक लयबद्ध चक्र उपलब्ध कराती हैं जो पूरे देश को एकता के सूत्र में बाँधती है। ये मानसूनी पवनें हमें जल प्रदान कर कृषि की प्रक्रिया में तेजी लाती हैं एवं सम्पूर्ण देश को एकसूत्र में बाँधती हैं। नदी घाटियाँ जो इन जलों को संवहन करती हैं, उन्हें भी एक नदी घाटी इकाई का नाम दिया जाता है। भारत के लोगों का सम्पूर्ण जीवन मानसून के इर्द-गिर्द घूमता है। इसलिए मानसून को एक सूत्र में बाँधने वाला समझा जाता है।
प्रश्न 3.
उत्तर-भारत में पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा की मात्रा क्यों घटती जाती है?
उत्तर:
हवाओं में निरंतर कम होती आर्द्रता के कारण उत्तर भारत में पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा की मात्रा कम होती जाती है। बंगाल की खाड़ी से उठने वाली आर्द्र पवनें जैसे-जैसे आगे और आगे बढ़ती हुई देश के आंतरिक भागों में जाती हैं, वे अपने साथ लायी गयी अधिकतर आर्द्रता खोने लगती हैं। इसी के परिणामस्वरूप पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा धीरे-धीरे घटने लगती है। राजस्थान एवं गुजरात के कुछ भागों में बहुत कम वर्षा होती है। कोलकाता से दिल्ली की ओर बढ़ने पर वर्षा धीरे-धीरे घटती जाती है। उदाहरण के लिए, कोलकाता में जहाँ 162 सेमी वर्षा होती है वहीं वाराणसी में 107 सेमी तथा दिल्ली में 56 सेमी वर्षा होती है। मानसून शाखा का दबाव और उसकी आर्द्रता पश्चिम की ओर क्रमशः घटती जाती है। यही कारण है कि मानसून की इस शाखा के दिल्ली तक पहुँचते-पहुँचाते वर्षा करने की क्षमता घटती जाती है।
प्रश्न 4.
कारण बताएँ-
- भारतीय उपमहाद्वीप में वायु की दिशा में मौसमी परिवर्तन क्यों होता है?
- भारत में अधिकतर वर्षा कुछ ही महीनों में होती है।
- तमिलनाडु तट पर शीत ऋतु में वर्षा होती है।
- पूर्वी तट के डेल्टा वाले क्षेत्र में प्रायः चक्रवात आते हैं।
- राजस्थान, गुजरात के कुछ भाग तथा पश्चिमी घाट का वृष्टि छाया क्षेत्र सूखा प्रभावित क्षेत्र है।
उत्तर:
(1) भारतीय उपमहाद्वीप में वायु की दिशा में मौसमी परिवर्तन-भारतीय उपमहाद्वीप में मानसून पवनों की दिशा में मौसमी परिवर्तन का मूल कारण स्थल एवं जल पर विपरीत वायुदाब क्षेत्रों को विकसित होना है। यह वायु के तापमान के कारण होता है। स्पष्ट है कि स्थल एवं जल असमान रूप से गर्म होते हैं। ग्रीष्म ऋतु में समुद्र की अपेक्षा स्थल भाग अधिक गर्म हो जाता है। परिणामस्वरूप स्थल भाग के आंतरिक क्षेत्रों में निम्न वायुदाब क्षेत्र विकसित हो जाता है। जबकि समुद्री क्षेत्रों में उच्च वायुदाब का क्षेत्र होता है। अतः समुद्री पवनें समुद्र से स्थल की ओर गतिशील होती हैं। शीत ऋतु में स्थिति इसके विपरीत होती है अर्थात् पवन स्थल से समुद्र की ओर गतिशील होती है।
(2) भारत में अधिकतर वर्षा कुछ ही महीनों में होती है भारत के अधिकांश भागों में जून से सितम्बर के मध्य वर्षा होती है। भारत में मई माह में भारत के उत्तरी भाग में गर्मी बहुत पड़ती है। फलस्वरूप यहाँ की वायु हल्की होकर ऊपर उठ जाती है जिससे यहाँ वायुदाब कम हो जाता है। जबकि हिंद महासागर पर वायुदाब अधिक होता है। पवन प्रवाह का यह सर्वमान्य नियम है कि वह उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर संचरित होती है। ऐसे में पवनें हिंद महासागर से भारत के उत्तरी भाग की ओर चलने लगती हैं। जलवाष्प से परिपूर्ण ये पवनें अपनी सम्पूर्ण आर्द्रता भारत में ही समाप्त कर देती हैं। ये पवनें जून से सितंबर तक भारत में सक्रिय रहती हैं। यही कारण है कि भारत में अधिकांश वर्षा जून से सितंबर माह की अवधि में होती है। भारत में मानसून की अवधि 100 से 120 दिन तक होती है।
(3) तमिलनाडु तट पर शीत ऋतु में वर्षा-पीछे हटते मानसून की ऋतु सितंबर से आरंभ हो जाती है। अब पवनें धरातल से समुद्र की ओर बहने लगती हैं। इसलिए ये शुष्क होती हैं और स्थल भाग पर वर्षा नहीं करतीं। जिस समय ये पवनें बंगाल की खाड़ी पर पहुँचती हैं तो वहाँ से ये आर्द्रता ग्रहण कर लेती हैं। अब ये उत्तरी-पूर्वी पवनों के प्रभाव में आकर इनकी दिशा भी उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर हो जाती है। और ये पवनें उत्तरी-पूर्वी मानसून के रूप में तमिलनाडु तट पर पहुँचती हैं। आर्द्रता ग्रहण की हुई ये पवनें तमिलनाडु तट पर शीत ऋतु में वर्षा करती हैं। अक्टूबर-नवंबर में पीछे हटते मानसून और बंगाल की खाड़ी पर उत्पन्न होने वाले उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों के मिले-जुले प्रभाव से पूर्वी तट पर भारी वर्षा होती है। तमिलनाडु तट पर अक्टूबर-नवंबर में भारी वर्षा होती है।
(4) पूर्वी तट के डेल्टा में चक्रवात-बंगाल की खाड़ी में प्रायः निम्न वायुदाब का क्षेत्र बनता रहता है जबकि इस समय पूर्वी तट पर स्थित कृष्णा, कावेरी तथा गोदावरी के डेल्टा प्रदेश में अपेक्षाकृत वायुदाब का उच्च क्षेत्र होता है। पूर्वी तट के डेल्टा वाले क्षेत्र में प्रायः चक्रवात आते हैं। ऐसा इस कारण होता है क्योंकि अंडमान सागर पर पैदा होने वाला चक्रवातीय दबाव मानसून एवं अक्टूबर-नवंबर के दौरान उपोष्ण कटिबंधीय जेट धाराओं द्वारा देश के आंतरिक भागों की ओर स्थानांतरित कर दिया जाता है। ये चक्रवात विस्तृत क्षेत्र में भारी वर्षा करते हैं। ये उष्ण कटिबंधीय चक्रवात प्रायः विनाशकारी होते हैं। गोदावरी, कृष्णा एवं कावेरी नदियों के डेल्टा प्रदेशों में अक्सर चक्रवात आते हैं, जिसके कारण बड़े पैमाने पर जान एवं माल की क्षति होती है। कभी-कभी ये चक्रवात ओडिशा, पश्चिम बंगाल एवं बांग्लादेश के तटीय क्षेत्रों में भी पहुँच जाते हैं। कोरोमंडल तट पर अधिकतर वर्षा इन्हीं चक्रवातों तथा अवदाबों से होती है।
(5) राजस्थान, गुजरात के कुछ भाग तथा पश्चिमी घाट की वृष्टि छाया क्षेत्र सूखा प्रभावित क्षेत्र है—राजस्थान तथा गुजरात के कुछ क्षेत्र अरबसागरीय मानसून शाखा द्वारा प्रभावित होते हैं–इस शाखा के बीच कोई प्राकृतिक अवरोधक नहीं है जो मानसून पवनों को रोककर राजस्थान तथा गुजरात के कुछ क्षेत्र में वर्षा करा सके। अरावली पर्वतमाला इस मानसून शाखा के समानांतर स्थित होने के कारण यह वर्षा कराने में असमर्थ रहती है। मरुभूमि होने के कारण यहाँ वाष्पीकरण अधिक होता है, संघनन नहीं होता। वनस्पतिविहीन होने के कारण वायुमंडलीय आर्द्रता यहाँ आकर्षित नहीं होती।
पश्चिमी घाट के वृष्टि छाया क्षेत्र सूखा से प्रवाहित होने के कारण-
- यह क्षेत्र पश्चिमी घाट के पूर्व में स्थित है।
- पश्चिमी घाट के वृष्टि छाया क्षेत्र में स्थित होने के कारण यहाँ वर्षा नहीं होती।
- इससे यहाँ प्रायः सूखा पड़ने की संभावना रहती है।
प्रश्न 5.
भारत की जलवायु अवस्थाओं की क्षेत्रीय विभिन्नताओं को उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
भारत की उत्तर दिशा में हिमालय पर्वत के निर्णायक प्रभाव तथा दक्षिण में महासागर होने के बावजूद भी तापमान आर्द्रता एवं वर्षा में विविधता विद्यमान है।
जलवायु में इस विभिन्नता के निम्नलिखित कारण हैं-
- उदाहरण के लिए, गर्मियों में राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में, उत्तर-पश्चिमी भारत में तापमान 60 डिग्री सेल्सियस होता है जबकि उसी समय देश के उत्तर में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में तापमान 20 डिग्री सेल्सियस हो सकता है।
सर्दियों की किसी रात में जम्मू-कश्मीर के द्रास में तापमान -45 डिग्री सेल्सियस तक हो सकता है, जबकि तिरुवनंतपुरम् में यह 22 डिग्री सेल्सियस हो सकता है। - अण्डमान व निकोबार एवं केरल में दिन व रात के तापमान में बहुत कम भिन्नता होती है।
- एक अन्य विभिन्नता वर्षण में है। जबकि हिमालय के ऊपरी भागों में वर्षण अधिकतर हिम के रूप में होता है, देश के शेष भागों में वर्षा होती है। मेघालय में 400 सेमी से लेकर लद्दाख एवं पश्चिमी राजस्थान में वार्षिक वर्षण 10 सेमी से भी कम होती है।
- देश के अधिकतर भागों में जून से सितंबर तक वर्षा होती है, लेकिन कुछ क्षेत्रों जैसे तमिलनाडु तट पर अधिकतर वर्षा अक्टूबर एवं नवम्बर में होती है।
- उत्तरी मैदान में वर्षा की मात्रा सामान्यतः पूर्व से पश्चिम की ओर घटती जाती है।
प्रश्न 6.
मानसूनी अभिक्रिया की व्याख्या करें।
उत्तर:
किसी भी क्षेत्र का वायुदाब एवं उसकी पवनें उस क्षेत्र की अक्षांशीय स्थिति एवं ऊँचाई पर निर्भर करती हैं। भारत की जलवायु में ऋतुओं के अनुसार पवनों की दिशा उलट जाती है। मानसून के रचनातंत्र में भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी पर्वत सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे मानसून पवनों के प्रवाह को नियंत्रित करते हैं। इसी प्रकार की भूमिका पश्चिमी घाट भी निभाते हैं।
भारत में जलवायु तथा संबंधित मौसमी अवस्थाएँ निम्नलिखित वायुमंडलीय अवस्थाओं से संचालित होती हैं-
(1) पश्चिमी चक्रवाती विक्षोभ – हिमालय पर्वत के दक्षिण में प्रवाहित होने वाली उपोष्ण कटिबन्धीय पश्चिमी जेट धाराएँ जाड़े के महीने में देश के उत्तर एवं उत्तर पश्चिमी भागों में उत्पन्न होने वाले पश्चिमी चक्रवाती विक्षोभों के लिए उत्तरदायी हैं।
(2) वायुदाब एवं धरातलीय पवनें – वायु का संचार उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर होता है। शीत ऋतु में हिमालय के उत्तर में उच्च वायुदाब क्षेत्र होता है। ठण्डी शुष्क हवाएँ इस क्षेत्र से दक्षिण में सागर के ऊपर कम वायुदाब क्षेत्र की ओर बहती हैं। ग्रीष्म ऋतु के दौरान मध्य एशिया के साथ उत्तर-पश्चिमी भारत के ऊपर कम वायुदाब क्षेत्र विकसित हो जाता है। परिणामस्वरूप, कम वायुदाब प्रणाली दक्षिण गोलार्द्ध की दक्षिणपूर्वी व्यापारिक पवनों को आकर्षित करती है। ये व्यापारिक पवने विषुवत रेखा को पार करने के उपरांत कोरिआलिस बल के कारण दाहिनी ओर मुड़ते हुए भारतीय उपमहाद्वीप पर स्थित निम्न दाब की ओर बहने लगती हैं।
विषुवत् रेखा को पार करने के बाद ये पवनें दक्षिण-पश्चिमी दिशा में बहने लगती हैं और भारतीय प्रायद्वीप में दक्षिण-पश्चिमी मानसून के रूप में प्रवेश करती हैं। इन्हें दक्षिण पश्चिमी मानसून के नाम से जाना जाता है। ये पवनें गर्म महासागरों के ऊपर से बहते हुए आर्द्रता ग्रहण करती हैं और भारत की मुख्यभूमि पर विस्तृत वर्षण लाती हैं। इस प्रदेश में, ऊपरी वायु परिसंचरण पश्चिमी प्रवाह के प्रभाव में रहता है। भारत में होने वाली वर्षा मुख्यतः दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों के कारण होती है। मानसून की अवधि 100 से 120 दिनों के बीच होती है। इसलिए देश में होने वाली अधिकतर वर्षा कुछ ही महीनों में केंद्रित है।
(3) जेट वायु धाराएँ – जेट वायु धाराएँ क्षोभमण्डल में अत्यधिक ऊँचाई पर एक संकरी पट्टी में स्थित होती हैं। इन हवाओं की गति ग्रीष्म ऋतु में 110 किमी प्रति घण्टा एवं सर्दी में 184 किमी प्रति घण्टा के बीच विचलन करती रहती है। हिमालय पर्वत के उत्तर की ओर पश्चिमी जेट धाराएँ एवं ग्रीष्म ऋतु की अवधि में भारतीय प्रायद्वीप में बहने वाली पश्चिम जेट धाराओं की उपस्थिति मानसून को प्रभावित करती हैं। जब उष्णकटिबंधीय पूर्वी दक्षिण प्रशांत महासागर में उच्च वायुदाब होता है तो उष्णकटिबंधीय पूर्वी हिन्द महासागर में निम्न वायुदाब होता है।
किन्तु कुछ निश्चित वर्षों में वायुदाब परिस्थितियाँ विपरीत हो जाती हैं और पूर्वी प्रशांत महासागर में पूर्वी हिन्द महासागर की अपेक्षाकृत निम्न वायुदाब होता है। दाब की अवस्था में इस नियतकालिक परिवर्तन को दक्षिणी दोलन के नाम से जाना जाता है। एलनीनो, दक्षिणी दोलन से जुड़ा हुआ एक लक्षण है। यह एक गर्म समुद्री जलधारा है, जो पेरू की ठंडी धारा के स्थान पर प्रत्येक 2 या 5 वर्ष के अंतराल में पेरू तट से होकर बहती है। दाब की अवस्था में परिवर्तन का संबंध एलनीनो से है। हवाओं में निरंतर कम होती आर्द्रता के कारण उत्तर भारत में पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा की मात्रा कम होती जाती है।
बंगाल की खाड़ी शाखा से उठने वाली आर्द्र पवनें जैसे-जैसे आगे, और आगे बढ़ती हुई देश के आंतरिक भागों में जाती हैं, वे अपने साथ लाई गई अधिकतर आर्द्रता खोने लगती हैं। परिणामस्वरूप पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा धीरे-धीरे घटने लगती है। राजस्थान एवं गुजरात के कुछ भागों में बहुत कम वर्षा होती है।
प्रश्न 7.
शीत ऋतु की अवस्था एवं उसकी विशेषताएँ बताएँ।।
उत्तर:
उत्तरी भारत में शीत ऋतु मध्य नवम्बर से शुरू होकर फरवरी तक विद्यमान रहती है। इस मौसम में आकाश मेघरहित एवं स्वच्छ रहता है। तापमान कम रहता है और मन्द गति से हवाएँ चलती हैं। तापमान दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ने पर घटता जाता है। दिसम्बर एवं जनवरी सबसे ठंडे महीने होते हैं। उत्तर में तुषारापात सामान्य है तथा हिमालय के उपरी ढालों पर हिमपात होता है। इस ऋतु में देश में उत्तर-पूर्वी व्यापारिक पवनें प्रवाहित होती हैं। ये स्थल से समुद्र की ओर बहती हैं तथा इसलिए देश के अधिकतर भाग में शुष्क मौसम होता है। इन पवनों के कारण कुछ मात्रा में वर्षा तमिलनाडु के तट पर होती है, क्योंकि वहाँ ये पवनें समुद्र से स्थल की ओर बहती हैं जिससे ये अपने साथ आर्द्रता लाती हैं।
देश के उत्तरी भाग में, एक कमजोर उच्च दाब का क्षेत्र बन जाता है, जिसमें हलकी पवनें इस क्षेत्र से बाहर की ओर प्रवाहित होती हैं। उच्चावच से प्रभावित होकर ये पवन पश्चिम एवं उत्तर-पश्चिम से गंगा घाटी में बहती है। शीत ऋतु में उत्तरी मैदानों में पश्चिम एवं उत्तर-पश्चिम से चक्रवाती विक्षोभ का अंतर्वाह विशेष लक्षण है। यह कम दाब वाली प्रणाली भूमध्यसागर एवं पश्चिमी एशिया के ऊपर उत्पन्न होती है तथा पश्चिमी पवनों के साथ भारत में प्रवेश करती है। इसके कारण शीतकाल में मैदानों में वर्षा होती है तथा पर्वतों पर हिमपात, जिसकी उस समय बहुत अधिक आवश्यकता होती है। यद्यपि शीतकाल में वर्षा की कुल मात्रा कम होती है, लेकिन ये रबी फसलों के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण होती है।
प्रश्न 8.
भारत में होने वाली मानसूनी वर्षा एवं उसकी विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
भारत में वार्षिक वर्षा की औसत मात्रा 118 सेंटीमीटर के लगभग है। यह समस्त वर्षा मानसूनी पवनों द्वारा प्राप्त होती है।
इस मानसूनी वर्षा की विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
- भारत में मानसून की अवधि जून से शुरू होकर सितम्बर के मध्य तक होती है। इसकी औसत अवधि 100 से 120 दिन तक होती है। मानसून के आगमन के साथ ही सामान्य वर्षा में अचानक वृद्धि हो जाती है। यह वर्षा लगातार कई दिनों तक होती रहती है। आर्द्रतायुक्त पवनों के जोरदार गरज व चमक के साथ अचानक आगमन को ‘मानसून प्रस्फोट’ के नाम से जाना जाता है।
- मानसून में आई एवं शुष्क अवधियाँ होती हैं जिन्हें वर्षण में विराम कहा जाता है।
- वार्षिक वर्षा में प्रतिवर्ष अत्यधिक भिन्नता होती है।
- यह कुछ पवनविमुखी ढलानों एवं मरुस्थल को छोड़कर भारत के शेष क्षेत्रों को पानी उपलब्ध कराती है।
- वर्षा का वितरण भारतीय भूदृश्य में अत्यधिक असमान है। मौसम के प्रारंभ में पश्चिमी घाटों की पवनमुखी ढालों पर भारी वर्षा होती है अर्थात् 250 सेमी से अधिक। दक्कन के पठार के वृष्टि छाया क्षेत्रों एवं मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, तथा लेह में बहुत कम वर्षा होती हैं। सर्वाधिक वर्षा देश के उत्तरपूर्वी क्षेत्रों में होती है।
- उष्णकटिबंधीय दबाव की आवृत्ति एवं प्रबलता मानसून वर्षण की मात्रा एवं अवधि को निर्धारित करते हैं।
- भारत के उत्तर पश्चिमी राज्यों से मानसून सितम्बर के प्रारंभ में वापसी शुरू कर देती है। अक्टूबर के मध्य तक यह देश के उत्तरी हिस्से से पूरी तरह लौट जाती है और दिसम्बर तक शेष भारत से भी मानसून लौट जाता है।
- मानसून को इसकी अनिश्चितता के कारण भी जाना जाता है। जहाँ एक ओर यह देश के कुछ हिस्सों में बाढ़ ला देता है, वहीं दूसरी ओर यह देश के कुछ हिस्सों में सूखे का कारण बन जाता है।
भारत में मानसूनी वर्षा के प्रभाव को निम्न रूप में देखा जा सकता है-
- मानसून भारत को एक विशिष्ट जलवायु पैटर्न उपलब्ध कराती है। इसलिए विशाल क्षेत्रीय भिन्नताओं की उपस्थिति के बावजूद मानसून देश और इसके लोगों को एकता के सूत्र में पिरोने वाला प्रभाव डालती है।
- भारतीय कृषि मुख्य रूप से मानसून से प्राप्त पानी पर निर्भर है। देरी से, कम या अधिक मात्रा में वर्षा का फसलों पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।
- वर्षा के असमान वितरण के कारण देश में कुछ सूखा संभावित क्षेत्र हैं जबकि कुछ बाढ़ से ग्रस्त रहते हैं।
मानचित्र कौशल
प्रश्न 1.
भारत के रेखा मानचित्र पर निम्नलिखित को दर्शाएँ-
- 400 सेमी से अधिक वर्षा वाले क्षेत्र
- 20 सेमी से कम वर्षा वाले क्षेत्र।।
- भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून की दिशाअन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तरअतिलघु उत्तरीय प्रश्नप्रश्न 1.
पीछे हटते हुए मानसून की ऋतु की दो प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:- पीछे मानसून का निम्न वायुदाब का गर्त कमजोर पड़ जाता है तथा इसका स्थान उच्च वायुदाब ले लेता है।
- इस ऋतु में पृष्ठीय पवनों की दिशा उलटनी शुरू हो जाती है। अक्टूबर तक मानसूनी पवनें पीछे हटने लगती
प्रश्न 2.
‘आगे बढ़ते हुए मानसून की ऋतु’ की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:- आगे बढ़ते हुए मानसून की ऋतु में भारत भर में वर्षा होती है।
- मानसून की प्रभावी ऋतु में दक्षिण से उत्तर की ओर तथा पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा की मात्रा घटती जाती
प्रश्न 3.
भारत में सर्वाधिक वर्षा कब और कहाँ होती है?
उत्तर:
भारत में सर्वाधिक वर्षा मेघालय के मॉसिनराम में होती है। यह भारत ही नहीं बल्कि विश्व का सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान है। यह स्थान गारो, खासीं और जैयन्तिया नामक तीन पहाड़ियों से घिरा हुआ है जिसके कारण बंगाल की खाड़ी से चलने वाली मानसूनी पवनें तीनों पहाड़ियों से टकराकर भारी वर्षा करती हैं।प्रश्न 4.
‘काल वैशाखी’ किसे कहते हैं?
उत्तर:
मई माह में कभी-कभी तेज हवाओं के साथ गरज व चमक के साथ भारी वर्षा होती है। इसके साथ ही प्रायः हिम वृष्टि भी होती है। वैशाख का महीना होने के कारण पश्चिम बंगाल में इसे ‘काल वैशाखी’ कहते हैं।प्रश्न 5.
‘क्वार की उमस’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मानसून की वापसी होने से आसमान निर्मल होता है और तापमान में वृद्धि होती है। दिन का तापमान उच्च होता. है जबकि रातें ठण्डी एवं सुहानी होती हैं। स्थल अभी भी आई होता है। दिन में उच्च तापमान व आर्द्रता वाली अवस्था के कारण दिन का मौसम कष्टकारी होता है। इसे सामान्यतः ‘क्वार की उमस के नाम से जाना जाता है।प्रश्न 6.
महावट किसे कहते हैं?
उत्तर:
शीत ऋतु में उत्तरी मैदानों में पश्चिम एवं उत्तर-पश्चिम से चक्रवाती विक्षोभ का अंतर्वाह विशेष लक्षण है। यह कम दाब वाली प्रणाली भूमध्य सागर एवं पश्चिमी एशिया के ऊपर उत्पन्न होती है तथा पश्चिमी पवनों के साथ भारत में प्रवेश करती है। इसके कारण शीतकाल में मैदानों में वर्षा होती है तथा पर्वतों पर हिमपात जिसकी उस समय बहुत अधिक आवश्यकता होती है। यद्यपि शीतकाल में वर्षा को स्थानीय तौर पर महावट कहा जाता है।प्रश्न 7.
दक्षिणी पश्चिम मानसून पवनें किसे कहा जाता है?
उत्तर:
गर्मी के दिनों में वायु की दिशा पूरी तरह से परिवर्तित हो जाती है। वायु दक्षिण में स्थित हिंद महासागर के उच्च दाब वाले क्षेत्र से दक्षिण पूर्वी दिशा में बहते हुए विषुवत् वृत्त को पार कर दाहिनी ओर मुड़ते हुए भारतीय उपमहाद्वीप पर स्थित निम्न दाब की ओर बहने लगती है। इन्हें दक्षिण-पश्चिम मानसून पवनों के नाम से जाना जाता है।प्रश्न 8.
एलनीनो किसे कहते हैं?
उत्तर:
ठंडी पेरू जलधारा के स्थान पर अस्थायी तौर पर गर्म जलधारा के विकास को एलनीनो का नाम दिया गया है। एलनीनो स्पैनिश शब्द है, जिसका अर्थ होता है बच्चा तथा जो कि बेबी क्राइस्ट को व्यक्त करता है क्योंकि यह धारा क्रिसमस के समय बहना शुरू करती है। एलनीनो की उपस्थिति समुद्र की सतह के तापमाम को बढ़ा देती है तथा उस क्षेत्र में व्यापारिक पवनों को शिथिल कर देती है।प्रश्न 9
कोरिआलिस बल किसे कहते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी के अपनी धुरी पर घूमने के कारण उत्पन्न आभासी बल को कोरिआलिस बल कहते हैं। कोरिआलिस बल के कारण पवन उत्तरी गोलार्द्ध में दाहिनी ओर और दक्षिणी गोलार्द्ध में बायीं ओर मुड़ जाती है। हवाओं के इस प्रकार मुड़ने को ‘फेरेल का नियम’ कहते हैं।प्रश्न 10.
पश्चिमी विक्षोभ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान एवं नेपाल में भूमध्य सागर से उत्पन्न होने वाले अतिरिक्त उष्णकटिबंधीय तूफानों को पश्चिमी विक्षोभ कहा जाता है जो सर्दियों के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भागों में अचानक वर्षा एवं हिमपात का कारण बनते हैं।प्रश्न 11.
अन्तः उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
ये विषुवतीय अक्षांशों में विस्तृत गर्त एवं निम्न दाब का क्षेत्र होता है। यहीं पर उत्तर-पूर्वी एवं दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक पवनें आपस में मिलती हैं। यह अभिसरण क्षेत्र विषुवत् वृत्त के लगभग समानांतर होता है, लेकिन सूर्य की आभासी गति के साथसाथ यह उत्तर या दक्षिण की ओर खिसकता है।प्रश्न 12.
भारत में शीत ऋतु की दो प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:- भारत में शीत ऋतु-नवम्बर, दिसम्बर, जनवरी तथा फरवरी महीने में होती है।
- यह ऋतु अत्यन्त सुहानी एवं आनन्दप्रद होती है। दिन के समय शीतल मंद समीर चलती है, लेकिन जाड़े की रातें शीतलहर के दौरान कष्टदायक होती हैं।
- पर्वतीय क्षेत्रों में बर्फवारी होने से वहाँ पर पेयजल तक की समस्या हो जाती है। पीने के लिए भी पानी गर्म करना पड़ता है।
प्रश्न 13.
दक्षिण-पश्चिम मानसून की उत्पत्ति के कारण बताइए।
उत्तर:
इस मानसून की उत्पत्ति देश के उत्तर-पश्चिमी मैदानी भाग में कम वायुदाब उत्पन्न हो जाने के कारण होती है। जून के प्रारंभ तक निम्न वायुदाब का यह क्षेत्र इतना प्रबल हो जाता है कि दक्षिणी गोलार्द्ध की व्यापारिक पवनें भी इस ओर खिंच आती हैं। इन दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक वनों की उत्पत्ति समुद्र से होती है। हिन्द महासागर में विषुवत रेखा को पार करके ये पवनें बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर में आ जाती हैं। इनकी दिशा दक्षिण-पश्चिम हो जाती है तथा विषुवतीय गर्म धाराओं के ऊपर से गुजरने के कारण ये भारी मात्रा में आर्द्रता ग्रहण कर लेती हैं। इसके बाद ये भारत के वायुसंचरण का अंग बन जाती हैं। दक्षिण-पश्चिम दिशा के कारण इन्हें दक्षिण-पश्चिम मानसून कहा जाता है।प्रश्न 14.
शीत ऋतु में उत्तरी भारत में होने वाली वर्षा का क्या कारण है? इस वर्षा का महत्त्व भी बताइए।
उत्तर:
शीत ऋतु में उत्तरी भारत में पश्चिमी विक्षोभों द्वारा वर्षा होती है। इनकी उत्पत्ति भूमध्य सागर से होती है। ये विक्षोभ मार्ग में फारस की खाड़ी तथा केस्पियन सागर से कुछ आर्द्रता ग्रहण कर लेते हैं और उत्तरी भारत में पहुँचकर हल्की वर्षा करते हैं।
उत्तरी भारत में होने वाली शीतकालीन वर्षा रबी की फसल, विशेष रूप से गेहूँ के लिए अत्यन्त लाभप्रद होती है।प्रश्न 15.
यदि अरब सागर, बंगाल की खाड़ी तथा हिमालय पर्वत न होते तो भारत की जलवायु पर क्या प्रभाव पडता?
उत्तर:- यदि हिमालय पर्वत न होता तो भारत मानसूनी वर्षा से वंचित रह जाता क्योंकि मानसूनी हवाएँ हिमालय से टकरा कर वर्षा करने के बजाय उससे आगे निकल जातीं तथा वर्षा कहीं और होती। हिमालय न होता तो उत्तर में चीन से आने वाली भयानक बर्फीली हवाएँ उत्तर-भारत को जमा देतीं।
- यदि अरब सागर न होता तो पश्चिमी घाट के पश्चिमी भाग पर अधिक वर्षा न होती। इसके अतिरिक्त पश्चिमी तटीय भागों के तापमान में विषमता आ जाती।
- यदि बंगाल की खाड़ी न होती तो देश के पूर्वी तट (तमिलनाडु) पर शीत ऋतु में वर्षा न होती। इसके अलावा यहाँ के तापमान में भी विषमता आ जाती।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
मानसून के आगमन की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
मानसून के आगमन की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-- मानसून की शुरुआत जून माह में होती है। जून के प्रारंभ में उत्तरी मैदानों में निम्न दाब की अवस्था तीव्र हो जाती है। यह दक्षिणी गोलार्द्ध की व्यापारिक हवाओं को आकर्षित करता है। ये अपने साथ इस महाद्वीप में बहुत अधिक मात्रा में नमी लाती है।
- मानसून से संबंधित एक अन्य परिघटना है, ‘वर्षा में विराम’। वर्षा में विराम का अर्थ है कि मानसूनी वर्षा एक समय में कुछ दिनों तक ही होती हैं। मानसून में आने वाले ये विराम मानसूनी गर्त की गति से संबंधित होते हैं।
- मानसून को इसकी अनिश्चितता के कारण जाना जाता है। जब यह एक हिस्से में बाढ़ का कारण बनता है, उसी समय यह किसी दूसरे भाग में अकाल का कारण बन सकता है।
- मौसम के प्रारंभ में पश्चिम घाट के पवनमुखी भागों में भारी वर्षा लगभग 250 सेमी से अधिक होती है। दक्कन का पठार एवं मध्य प्रदेश के कुछ भागों में भी वर्षा होती है, यद्यपि ये क्षेत्र वृष्टि छाया क्षेत्र में आते हैं।
- इस मौसम की अधिकतर वर्षा खासी पहाड़ी के दक्षिणी श्रृंखलाओं में स्थित मॉसिनराम विश्व में सबसे अधिक औसत वर्षा प्राप्त करता है।
प्रश्न 2.
ग्रीष्म ऋतु की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
ग्रीष्म ऋतु मार्च से जून तक रहती है। इसकी प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-- ग्रीष्म ऋतु में धूलभरी गर्म और शुष्क हवाएँ चलती हैं जिन्हें ‘लू’ कहते हैं। ये हवायें दिन के समय उत्तर एवं उत्तर पश्चिम भारत में गतिशील रहती हैं। ये देर शाम तक गतिशील रहती हैं। इस हवा का मानव स्वास्थ्य पर घातक प्रभाव होता है।
- उत्तर भारत में मई के महीने में धूलभरी आँधियाँ चलती हैं। ये धूलभरी आंधियाँ तापमान घटाकर लोगों को राहत पहुँचाती हैं। आँधियों के बाद ठण्डी हवा चलती है और कभी-कभी हल्की वर्षा भी होती है।
- ग्रीष्म ऋतु के दौरान कभी-कभी तेज हवाओं के साथ गरजवाली मूसलधारे वर्षा भी होती है। कभी-कभी वर्षा के साथ ओला वृष्टि भी होती है।
प्रश्न 3.
वृष्टि छाया क्षेत्र से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
वह क्षेत्र जो किसी पर्वत की पवनविमुख ढाल पर पड़ता है वृष्टि छाया क्षेत्र कहलाता है। ऊँचे पर्वत ठण्डी व गर्म पवनों के लिए रुकावट का काम करते हैं किन्तु यदि ये वर्षा करने वाली पवनों को रोकने के लिए पर्याप्त ऊँचे होते तो ये वर्षा भी करा सकते थे। पर्वत की पवनविमुख ढाल शुष्क रह जाती है। उदाहरण के लिए, पश्चिमी घाट तथा पूर्वी घाट भारत के प्रमुख वृष्टि छाया क्षेत्र हैं।प्रश्न 4.
लौटती हुई मानसून के समय मौसमी विशेषताओं को प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
लौटती हुई मानसून के समय मौसम की दशाएँ इस प्रकार होती हैं-- अक्टूबर-नवम्बर को मध्यकाल लौटती हुई मानसून का समय होता है। यह वर्षा ऋतु के गर्म मौसम से सर्दी के शुष्क मौसम में परिवर्तित होने का समय है।
- भारत के पूर्वी तट के डेल्टाई क्षेत्र में चक्रवात सामान्यतः आते रहते हैं। गोदावरी, कृष्णा एवं कावेरी नदियों में सघन आबादी वाले डेल्टा प्रदेशों में अक्सर चक्रवात आते हैं, जिसके कारण बड़े पैमाने पर जान एवं माल की क्षति होती है।
- कभी-कभी ये चक्रवात ओडिशा, पश्चिम बंगाल एवं बांग्लादेश के तटीय क्षेत्रों में भी पहुँच जाते हैं। कोरोमंडल तट पर अधिकतर वर्षा इन्हीं चक्रवातों तथा अवदाबों से होती हैं।
- दिन में आर्द्रता अधिक व तापमान उच्च होता है जबकि रातें ठण्डी, और सुहानी होती हैं। इसे सामान्यतः ‘क्वार की उमस’ के नाम से जाना जाता है।
- अक्टूबर के उत्तरार्द्ध में, विशेषकर उत्तरी भारत में तापमान तेजी से गिरने लगता है। नवम्बर के प्रारंभ में, उत्तर पश्चिम भारत के ऊपर निम्न दाब वाली अवस्था बंगाल की खाड़ी पर स्थानांतरित हो जाती है। यह स्थानांतरण चक्रवाती निम्न दाब से संबंधित होता है, जो कि अंडमान सागर के ऊपर उत्पन्न होता है।
प्रश्न 5.
दक्षिणी दोलन को स्पष्ट कीजिए तथा इसकी विशेषताएँ भी बताइए।
उत्तर:
जब उष्णकटिबंधीय पूर्वी-दक्षिणी प्रशान्त महासागर में उच्च वायुदाब होता है तो उष्णकटिबंधीय पूर्वी हिन्द महासागर में निम्न वायुदाब होता है। लेकिन कुछ निश्चित वर्षों में वायुदाब परिस्थितियाँ विपरीत हो जाती हैं तथा पूर्वी प्रशान्त महासागर में हिन्द महासागर की अपेक्षा निम्न वायुदाब होता है। वायुदाब की इस अवस्था में इस नियतकालिक परिवर्तन को दक्षिणी दोलन कहते हैं।एलनीनो दक्षिणी दोलन से जुड़ी हुई एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है। यह एक गर्म समुद्री जलधारा है जो पेरू की ठण्डी धारा के स्थान पर प्रत्येक 2 से 5 वर्ष के अंतराल में पेरू तट से होकर प्रवाहित होती है। वायुदाब की इस अवस्था में परिवर्तन का सम्बन्ध ‘एलनीनो’ से है। एलनीनो का विपरीत प्रभाव भारत के मानसून पर पड़ता है। एलनीनो के प्रभाव से भारत में वर्षा देर से या फिर कम होती है।
प्रश्न 6.
‘मानसून’ शब्द का अर्थ तथा मानसूनी वर्षा की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
‘मानसून’ शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के शब्द ‘मौसम’ से हुई है। मौसम का शाब्दिक अर्थ ऋतु है। इस प्रकार मानसून का अर्थ ऐसी ऋतु से है, जिसमें पवनों की दिशा पूरी तरह से उलट जाती है। मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा मानसून की परिभाषा इस प्रकार की गई है-“शुष्क गर्म वायु को पूरी तरह हटाकर विषुवतीय समुद्री वायु का स्थल भागों तथा सागरीय क्षेत्र में तीन से लेकर पाँच किमी की ऊँचाई तक फैल जाना है।”
मानसूनी वर्षा की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-- देश के अधिकांश भागों में अधिक वर्षा दक्षिण-पश्चिमी मानसून में होती है। इस अवधि (जून से सितम्बर तक चार महीनों की अवधि) में 90% वर्षा होती है, शेष 10% वर्षा वर्ष के 8 महीनों में होती है।
- शीत ऋतु में अधिकतर वर्षा तमिलनाडु तथा आंध्र प्रदेश के तटीय प्रदेशों में होती है। इस अवधि में उत्तर-पश्चिमी भारत में वर्षा पश्चिमी विक्षोभों से होती है।
- समस्त देश में वर्षा की अवधि, मात्रा एवं प्रकृति अनिश्चित, अनियमित और असमान है।
- सामान्यतः वर्षा पूर्व से पश्चिम तथा दक्षिण से उत्तर की ओर कम होती जाती है।
प्रश्न 7.
शीत ऋतु में पश्चिमी विक्षोभ भारत की जलवायु को किस प्रकार प्रभावित करते हैं? इस सम्बन्ध में तीन तथ्य स्पष्ट करो।
उत्तर:
देश के उत्तरी भागों में तापमान तथा वायु में आर्द्रता शीत ऋतु में कम होती है। शीत ऋतु में आकाश स्वच्छ होता है तथा शीतल-मंद समीर संचरित होती है एवं दिन वर्षारहित होते हैं। इस सुहावने मौसम में कभी-कभी क्षीण चक्रवातीय अवदाबों के आ जाने के कारण मौसम में एकदम परिवर्तन हो जाते हैं। इससे उत्तरी-पश्चिमी भागों में शीत ऋतु में पश्चिमी विक्षोभों से वर्षा होती है।
इसके निम्नलिखित कारण हैं-- इन पश्चिमी विक्षोभों से उत्तरी भारत में हल्की वर्षा होती है क्योंकि इनको भारत में प्रवेश करते ही हिमालय के ढालों पर चढ़कर घनीभूत होना होता है।
- इनसे पश्चिमी हिमालय के क्षेत्रों में भारी हिमपात होता है। वर्षा के साथ कभी ओला-वृष्टि भी होती है।
- इन चक्रवातीय अवदाबों को पश्चिमी विक्षोभ कहते हैं। इनकी उत्पत्ति पूर्वी भूमध्य सागर में होती है। यहाँ से ये पूर्व की ओर पछुआ हवाओं के प्रभाव में बढ़ते हैं। एशिया, ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान को पार करते हुए, देश के उत्तर-पश्चिमी भागों में प्रवेश कर जाते हैं। मार्ग में कैस्पियन सागर तथा फारस की खाड़ी से भी आर्द्रता ग्रहण कर लेते हैं।
- पश्चिमी जेट स्ट्रीम इन पवनों को सोखकर इनकी गति तेज कर देता है।
प्रश्न 8.
भारत की चारों ऋतुओं के नाम उनके महीनों के साथ लिखिए।
उत्तर:- शीत ऋतु-दिसम्बर, जनवरी, फरवरी।
- ग्रीष्म ऋतु-मार्च, अप्रैल, मई।
- आगे बढ़ते मानसून की ऋतु-जून, जुलाई, अगस्त, सितम्बर।
- पीछे हटते मानसून की ऋतु -अक्टूबर, नवम्बर, दिसम्बर।
प्रश्न 9.
त्रिवेंद्रम की जलवायु सम क्यों है? दो कारण बताइए।
उत्तर:
समुद्र तटवर्ती स्थानों और क्षेत्रों की जलवायु सम होती है। जल अपना समकारी प्रभाव स्थल पर छोड़ता है। अतः तटवर्ती क्षेत्र गर्मियों में न अधिक गर्म और न ठंड में अधिक ठंडे होते हैं। त्रिवेन्द्रम के तटवर्ती क्षेत्रों का दैनिक तथा वार्षिक तापपरिसर दोनों ही कम होते हैं। त्रिवेन्द्रम का वार्षिक तापक्रम अधिकतम 28° सेन्टीग्रेड व न्यूनतम तापमान 26° सेन्टीग्रेड रहता है। इस तरह त्रिवेन्द्रम का वार्षिक ताप परिसर 28° – 26° = 2° सेन्टीग्रेड है।प्रश्न 10.
दैनिक ताप परिसर का क्या अर्थ है? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
किसी स्थान के अधिकतम व न्यूनतम दैनिक तापमान में अंतर को दैनिक ताप परिसर कहते हैं अर्थात् किसी स्थान के पिछले 24 घण्टों के अधिकतम और न्यूनतम तापमान के अंतर को दैनिक ताप परिसर कहते हैं। उदाहरण के लिए 8 अक्टूबर, 2017 ई. को दिल्ली अधिकतम तापमान 33.7° तथा न्यूनतम तापमान 19.1° था। इस प्रकार दिल्ली का दैनिक ताप परिसर 33.7° – 19.1° = 14.6° से हुआ।प्रश्न 11.
वार्षिक ताप परिसर किसे कहते हैं? इसे एक उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
किसी स्थान पर वर्ष में पाए जाने वाले अधिकतम तापमान और न्यूनतम तापमान के अंतर को वार्षिक ताप परिसर कहते हैं अर्थात् वर्ष के औसत अधिकतम और औसत न्यूनतम वाले महीनों के तापमान के अंतर को वार्षिक तापपरिसर कहते हैं। उदाहरण के लिए दिल्ली के सबसे गर्म महीने का औसत तापमान 33.3° से. तथा सबसे ठंडे महीने का औसत तापमान 14.4° से. है। अतः यहाँ वार्षिक ताप परिसर 33.3° – 14.4° = 18.9° से. है।प्रश्न 12.
सम जलवायु किसे कहते हैं? भारत में सम जलवायु वाले दो स्थानों के नाम बताइए।
उत्तर:
जब किसी क्षेत्र या देश के सबसे अधिक गर्म तथा सबसे अधिक ठंडे महीने के तापमान में बहुत कम अंतर होता है, तो उस क्षेत्र, स्थान या देश की जलवायु को सम जलवायु कहते हैं अर्थात् जब किसी क्षेत्र या देश में तापमान की परिस्थितियाँ वर्षभर प्रायः समान रहती हैं, तो उसकी जलवायु सम कहलाती है। उदाहरण के लिए त्रिवेंद्रम और मुंबई की जलवायु सम है।प्रश्न 13.
विषम जलवायु से क्या अभिप्राय है? भारत में विषम जलवायु वाले दो स्थानों के नाम लिखिए।
उत्तर:
किसी देश अथवा क्षेत्र के वार्षिक तापमानों और वर्षा की मात्रा में बहुत अंतर पाया जाता है, वहाँ की जलवायु का स्वरूप विषम होता है। तापमान की विषमता चाहे दैनिक हो अथवा वार्षिक वह विषम जलवायु के निर्धारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। उदाहरण के लिए, थार मरुस्थल में दिन का तापमान ग्रीष्म ऋतु में 50° से. को भी पार कर जाता है और रात के समय तापमान हिमांक बिंदु तक गिर जाता है। दिल्ली, जोधपुर, लेह आदि का वार्षिक ताप परिसर अधिक है। अतः इनकी जलवायु विषम है।प्रश्न 14.
“हिमालय के समकारी प्रभाव के बावजूद तापमान, आर्द्रता एवं वर्षण में भिन्नता बनी रहती है।”
उदाहरण सहित व्याख्या करें।
उत्तर:
भारत में उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण में सागर के समकारी प्रभाव के बावजूद तापमान, आर्द्रता एवं वर्षण में क्षेत्रीय भिन्नता बनी रहती है। ऐसा किसी स्थान की जलवायु को प्रभावित करने वाले छह कारकों के कारण है जो इस प्रकार हैं- अक्षांश, तुंगता, ऊँचाई, वायुदाब एवं पवनतंत्र, समुद्र से दूरी, महासागरीय धाराएँ तथा उच्चावच लक्षण। उदाहरण के लिए गर्मियों में राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में, उत्तर-पश्चिमी भारत में तापमान 50°C होता है जबकि उसी समय देश में उत्तर में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में तापमान 20°C हो सकता है। सर्दियों की किसी रात में जम्मू-कश्मीर के द्रास में तापमान -45 डिग्री सेल्सियस तक हो सकता है, जबकि तिरुवनंतपुरम् में यह 22 डिग्री सेल्सियस हो सकता है।प्रश्न 15.
भारत के पूर्वी तटीय क्षेत्र के संभावित खतरों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत के पूर्वी तट के डेल्टाई क्षेत्र में अक्सर चक्रवात आते हैं। ऐसा इस कारण होता है क्योंकि अण्डमान सागर में उत्पन्न होने वाला चक्रवातीय दबाव मानसून एवं अक्टूबर-नवम्बर के दौरान उपोष्ण कटिबंधीय जेट धाराओं द्वारा देश के आंतरिक भागों की ओर स्थानान्तरित कर दिया जाता है। ये चक्रवात बड़े क्षेत्र में भारी वर्षा करते हैं। ये उष्णकटिबंधीय चक्रवात प्रायः विनाशकारी होते हैं। कृष्णा, गोदावरी, कावेरी नदियों के डेल्टा प्रदेशों में प्रायः चक्रवात आते रहते हैं, जिसके कारण बड़े पैमाने पर धन-जन की हानि होती है। ये चक्रवात कभी-कभी ओडिशा एवं पश्चिम बंगाल के तटीय क्षेत्रों में भी पहुँच जाते हैं। इन्हीं चक्रवातों के अवदाबों के चलते कोरोमण्डल तट पर अधिकांश वर्षा होती है।प्रश्न 16.
दक्षिण-पश्चिम मानसून की अरब सागर शाखा से भारत के किन भागों में वर्षा होती है?
उत्तर:
दक्षिण-पश्चिम मानसून की अरब सागर शाखा को तीन उपशाखाओं में बाँटा जा सकता है-- पश्चिमी घाट को प्रभावित करने वाली शाखा
- विंध्या-सर्तपुड़ा मध्य शाखा
- सौराष्ट्र-कच्छ शाखा।
1. पश्चिमी घाट शाखा – अरब सागर शाखा जब दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर गतिशील होती है, तो पश्चिमी घाट उसके मार्ग में अवरोधक बन जाते हैं। यहाँ इन पवनों को बाध्य होकर ऊपर चढ़ना पड़ता है। इस प्रक्रिया में संघनन बहुत तेजी से होता है। फलतः पश्चिमी घाट के पवनाभिमुख ढालों पर भारी वर्षा होती है। यह देश के अधिक वर्षा प्राप्त करने वाले क्षेत्रों में गिना जाता है। पश्चिमी घाट के पूर्वी भागों में ये पवनें बहुत कम वर्षा कर पाती हैं। पश्चिम तटीय भागों में दक्षिण से उत्तर की ओर कम वर्षा होती है। मालाबार तट अधिक वर्षा प्राप्त करता है, जबकि कोंकण तट पर कम वर्षा होती है।
2. विंध्या-सतपुड़ा मध्य शाखा – यह शाखा विंध्या और सतपुड़ा पर्वतों के मध्य में होकर अपना मार्ग बनाती है। नर्मदा घाटी को पार कर छोटानागपुर तथा राजमहल की पहाड़ियों तक पहुँचाती है। इस क्षेत्र में पहुँचकर यहाँ अपेक्षाकृत अधिक वर्षा करने में समर्थ होती है। इस शाखा से पश्चिम से पूर्व की ओर वर्षा कम होती जाती है।
3. सौराष्ट्र-कच्छ शाखा – यह शाखा गुजरात तथा राजस्थान से होकर पंजाब के मैदान तक पहुँचती है। इसके मार्ग में अरावली का विस्तार पवनों के समानांतर है। अतः यह शाखा बेरोक-टोक हिमालय प्रदेश के पर्वतीय भागों तक पहुँचती । है। यहाँ हिमालय से अवरोध पाकर कश्मीर, पंजाब तथा हरियाणा में सामान्य वर्षा करने में समर्थ होती है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
दक्षिणी-पश्चिमी मानसून उत्तरी-पूर्वी मानसून से किस प्रकार भिन्न है? कोई चार अंतर लिखिए।
उत्तर:
उत्तरी-पूर्वी मानसून एवं दक्षिणी-पश्चिमी मानसून में अंतर-
उत्तरी-पूर्वी मानसून |
दक्षिणी-पश्चिमी मानसून |
1. भारत में दिसंबर से फरवरी तक की अवधि में उत्तर पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर चलने वाली पवनों को उत्तर-पूर्वी मानसून पवनें कहते हैं। | 1. भारत में जून से सितंबर तक की अवधि में दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर चलने वाली आर्द्र पवनों को दक्षिण पश्चिम मानसून कहते हैं। |
2. ये पवनें शीतकाल में देश के उत्तरी भागों में उच्च दाब की स्थिति पैदा होने के कारण देश के इस भाग से बाहर की ओर बहने लगती हैं। | 2. इस अवधि में भारत के उत्तर-पश्चिमी भागों में निम्न दाब क्षेत्र पाया जाता है। |
3. ये पवनें शीतकाल में स्थल से चलती हैं। अतः शुष्क एवं ठंडी होती हैं। | 3. ये पवनें उष्णकटिबंधीय समुद्री भागों से चलकर आती हैं। अतः ये पवनें गर्म और आई होती हैं। |
4. ये पवनें बंगाल की खाड़ी से आर्द्रता ग्रहण कर तमिलनाडु के तट पर वर्षा करती हैं। | 4. इन पवनों से देश के अधिकांश भागों में लगभग 90 प्रतिशत वर्षा होती है। |
5. देश के शेष भागों में स्वच्छ आकाश, निम्न तापमान व आर्द्रता, मंद समीर और वर्षारहित मौसम सुहावना होता है। | 5. दक्षिण-पश्चिमी मानसून दो शाखाओं-बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में बँट जाता है। |
प्रश्न 2.
सम और विषम जलवायु में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सम और विषम जलवायु में अंतर –
सम जलवायु |
विषम जलवायु |
1. इस प्रकार की जलवायु समुद्र तटवर्ती क्षेत्रों में पाई जाती है। केरल के तटीय भागों में सम जलवायु पाई जाती है। | 1. विषम जलवायु महाद्वीपों के आंतरिक भागों में पाई जाती है। भारत के भीतरी भागों की जलवायु विषम है। दिल्ली और कानपुर क्षेत्रों की जलवायु विषम है। |
2. सम जलवायु समुद्र तटवर्ती क्षेत्रों में मिलने के कारण इसे अनुसमुद्री या समुद्री जलवायु कहते हैं। | 2. महाद्वीपों के आंतरिक भागों में इस प्रकार की जलवायु मिलने के कारण, इसे महाद्वीपीय जलवायु भी कहते हैं। |
3. ग्रीष्म ऋतु में न अधिक गर्मी तथा शीत ऋतु में न अधिक ठंड का पड़ना ही सम जलवायु की विशेषता है। | 3. महाद्वीपीय जलवायु को अर्थ ऐसी जलवायु से है, जिसमें ग्रीष्म ऋतु में अधिक गर्मी तथा शीत ऋतु में अधिक ठंड पड़ती है। |
4. सम जलवायु वाले क्षेत्रों में वार्षिक ताप परिसर कम होता है। इन भागों में दैनिक ताप परिसर वार्षिक ताप परिसर से अधिक होता है। | 4. विषम जलवायु वाले क्षेत्रों में वार्षिक ताप परिसर अधिक पाया जाता है। उच्च वार्षिक ताप परिसर के साथ दैनिक ताप परिसर भी अधिक होता है। |
5. सम जलवायु प्रदेशों में वर्षा की अवधि और वर्षा की मात्रा प्रायः दोनों ही अधिक होते हैं। | 5. विषम जलवायु वाले क्षेत्रों में वर्षा की अवधि और वर्षा की मात्रा दोनों ही कम पाई जाती है। |
प्रश्न 3.
किसी क्षेत्र की जलवायु को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों को वर्णन कीजिए।
उत्तर:
किसी क्षेत्र की जलवायु को छह प्राकृतिक कारक प्रभावित करते हैं, जिनका विवरण इस प्रकार है-
(1) उच्चावचे – ऊँचे पर्वत शीतल व गर्म वायु को रोकने का कार्य करते हैं। यदि इन पर्वतों की ऊँचाई इतनी हो कि वे वर्षा लाने वाली वायु के मार्ग को रोकने में सक्षम होते हैं तो वे उस क्षेत्र में वर्षा लाने में समर्थ होते हैं। पर्वतों के पवनविमुख ढाल अपेक्षाकृत सूखे रहते हैं।
(2) वायुदाब एवं पवनें – किसी क्षेत्र-विशेष को वायुदाब एवं उसकी पवनें उस क्षेत्र की अक्षांशीय स्थिति एवं ऊँचाई पर निर्भर करती हैं। इस प्रकार यह तापमान एवं वर्षण की प्रवृत्ति को भी प्रभावित करता है।
(3) महासागरीय धाराएँ – समुद्र की ओर से स्थल की ओर आने वाली पवनों के साथ-साथ महासागरीय धाराएँ भी तटीय क्षेत्रों की जलवायु को प्रभावित करती हैं। उदाहरण के लिए, कोई भी तटीय क्षेत्र जहाँ गर्म या ठण्डी जलधाराएँ प्रवाहित होती हैं और वायु की दिशा समुद्र से तट की ओर होती है, तब वह तट गर्म या ठण्डा हो जाएगा।
(4) सागर तट से दूरी – जैसे-जैसे स्थलीय क्षेत्र की सागर से दूरी बढ़ती जाती है, तो इसका समकारी प्रभाव घटने लगता है। इस तरह यह तापमान तथा वर्षा की प्रवृत्ति को प्रभावित करता है। इसे महाद्वीपीय अवस्था कहते हैं। महाद्वीपीय व्यवस्था का आशय है कि गर्मी में बहुत अधिक गर्मी और सर्दी में बहुत अधिक ठण्ड पड़ती है।
(5) स्थलीय क्षेत्र की ऊँचाई – भारत के उत्तर में पर्वत हैं जिनकी औसत ऊँचाई लगभग 6,000 मीटर है। भारत का तटीय क्षेत्र भी विशाल है, जहाँ अधिकतम ऊँचाई लगभग 30 मीटर है। हिमालय पर्वत मध्य एशिया से आने वाली सर्द हवाओं को इस उपमहाद्वीप में आने से रोकता है यही कारण है कि मध्य एशिया की अपेक्षा भारत में ठंड अपेक्षाकृत कम होती है। जैसे-जैसे हम पृथ्वी की सतह से ऊँचे स्थानों की ओर जाते हैं, वायुमंडल विरल होता जाता है तथा तापमान गिरने लगता है। इसलिए पहाड़ियाँ गर्मियों में अपेक्षाकृत ठण्डी होती हैं।
(6) अक्षांशीय स्थिति – पृथ्वी की गोलाई के कारण, इसे प्राप्त सौर ऊर्जा की मात्रा अक्षांशों के अनुसार अलग-अलग होती है। तापमान विषुवत् वृत्त से ध्रुवों की ओर घटता जाता है। कर्क वृत्त देश के मध्य भाग, पश्चिम में कच्छ के रन से लेकर पूर्व में मिजोरम से होकर गुजरती है। देश का लगभग आधा भाग कर्क रेखा के दक्षिण में स्थित है, जो उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में आता है। कर्क रेखा के उत्तर में स्थित शेष भाग उपोष्ण कटिबंध में आता है। इसलिए भारत की जलवायु में उष्णकटिबंधीय जलवायु एवं उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु दोनों की विशेषताएँ पाई जाती हैं।
प्रश्न 4.
ग्रीष्म ऋतु में भारत की जलवायु-दशा का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
भारत में मार्च, अप्रैल, मई और जून माह को ग्रीष्म काल में शामिल किया जाता है। ग्रीष्मकाल में सम्पूर्ण भारत में उच्च तापमान और निम्न वायुदाब का क्षेत्र बन जाता है। ग्रीष्म ऋतु में देश के उत्तर-पश्चिमी भागों में शुष्क और गर्म हवाएँ चलती हैं। इन शुष्क एवं गर्म पवनों का स्थानीय नाम ‘लू’ है। मई माह में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में शाम के समय धूलभरी आँधियाँ चलती हैं। कभी-कभी इन आँधियों के पश्चात् हल्की वर्षा होती है, जिससे कष्टदायक गर्मी से कुछ राहत मिलती है।
ग्रीष्म ऋतु के अंत में केरल तथा कर्नाटक के तटीय भागों में मानसून से पूर्व की वर्षा होती है, जिसका स्थानीय नाम आम्रवृष्टि है। इस समय दक्कन के पठार पर अपेक्षाकृत उच्चदाब होने के कारण, मानसून से पूर्व की वर्षा का क्षेत्र आगे । नहीं बढ़ पाता है। इस ऋतु में बंगाल और असोम में भी उत्तर-पश्चिमी तथा उत्तरी पवनों द्वारा वर्षा की तेज बौछारें पड़ती हैं।
प्रश्न 5.
वायुदाब व पवन-तंत्र किसी स्थान की जलवायु को किस प्रकार प्रभावित करते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भूगोल वेत्ताओं के अनुसार पवनें उच्च वायुदाब से निम्न वायुदाब की ओर प्रवाहित होती हैं। सर्दियों में हिमालय के उत्तर में उच्च वायुदाब क्षेत्र बना होता है। इसीलिए ठण्डी शुष्क पवनें इस क्षेत्र से महासागरों की ओर निम्न दाब क्षेत्रों की ओर दक्षिण दिशा में बहती हैं। गर्मियों में भीतरी एशिया तथा उत्तर-पश्चिमी भारत में निम्न वायुदाब क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप, वायु दक्षिण में स्थित हिंद महासागर के उच्च दाब वाले क्षेत्र से दक्षिण-पूर्वी दिशा में बहते हुए विषुवत् वृत्त को पार कर दाहिनी ओर मुड़ते हुए भारतीय उपमहाद्वीप पर स्थित निम्न दाब की ओर बहने लगती है।
इन्हें दक्षिण-पश्चिम मानसून पवनों के नाम से जाना जाता है। ये पवनें कोष्ण महासागरों के ऊपर से बहती हैं, नमी ग्रहण करती हैं तथा भारत की मुख्य भूमि पर वर्षा करती हैं। इस प्रदेश में, ऊपरी वायु परिसंचरण पश्चिमी प्रवाह के प्रभाव में रहता है। भारत में होने वाली वर्षा मुख्यतः दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों के कारण होती है। मानसून की अवधि 100 से 120 दिन के बीच होती है। इसलिए देश में होने वाली अधिकतर वर्षा कुछ ही महीनों में केंद्रित है।
(1) पश्चिमी चक्रवाती विक्षोभ एवं उष्णकटिबंधीय चक्रवात – हिमालय के दक्षिण से बहने वाली उपोष्ण कटिबंधीय पश्चिमी जेट धाराएँ शीत ऋतु के महीनों में देश के उत्तर एवं उत्तर-पश्चिमी भागों में उत्पन्न होने वाले पश्चिमी चक्रवातीय विक्षोभों के लिए जिम्मेदार हैं। भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान एवं नेपाल में भूमध्यसागर से उत्पन्न होने वाले अतिरिक्त उष्णकटिबंधीय तूफानों का पश्चिमी विक्षोभ कहा जाता है जो सर्दियों के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भागों में अचानक वर्षा एवं हिमपात का कारण बनते हैं। यह पश्चिमी विक्षोभों के कारण होने वाला गैर-मानसूनी वर्षण है। इन तूफानों को मिलने वाली आर्द्रता का स्रोत भूमध्य सागर एवं अटलांटिक महासागर है।
(2) कोरिआलिस बल – भारतीय उपमहाद्वीप में पवनों की दिशा में मौसम के अनुरूप परिवर्तन कोरिआलिस बल के कारण होता है। भारत उत्तर पूर्वी पवनों के क्षेत्र में स्थित है। ये पवनें उत्तरी गोलार्द्ध के उपोष्ण कटिबंधीय उच्च दाब पट्टियों से उत्पन्न होती हैं। ये दक्षिण की ओर बहती, कोरिआलिस बल के कारण दाहिनी ओर विक्षेपित होकर विषुवतीय निम्न दाब वाले क्षेत्रों की ओर बढ़ती हैं।
(3) जेट धाराएँ – क्षोभमंडल में अत्यधिक ऊँचाई पर एक सँकरी पट्टी में स्थित हवाएँ होती हैं। इनकी गति गर्मी में 110 किमी प्रति घंटा एवं सर्दी में 184 किमी प्रति घंटा के बीच विचलन करती है। हिमालय के उत्तर की ओर पश्चिमी जेट धाराओं की गतिविधियों एवं गर्मियों के दौरान भारतीय प्रायद्वीप पर बहने वाली पश्चिमी जेट धाराओं की उपस्थिति मानसून को प्रभावित करती है। प्रायः जब उष्णकटिबंधीय पूर्वी दक्षिण प्रशांत महासागर में उच्च वायुदाब होता है। तो-उष्णकटिबंधीय पूर्वी हिन्द महासागर में निम्न वायुदाब होता है।
किन्तु कुछ निश्चित वर्षों में वायुदाब परिस्थितियाँ विपरीत हो जाती हैं और पूर्वी प्रशांत महासागर में पूर्वी हिन्द महासागर की अपेक्षाकृत निम्न वायुदाब होता है। दाब की अवस्था में इस नियतकालिक परिवर्तन को दक्षिणी दोलन के नाम से जाना जाता है। एलनीनो, दक्षिणी दोलन । से जुड़ा हुआ एक लक्षण है। यह एक गर्म समुद्री जलधारा है, जो पेरू की ठंडी धारा के स्थान पर प्रत्येक 2 या 5 वर्ष के अंतराल में पेरू तट से होकर बहती है। दाब की अवस्था में परिवर्तन का संबंध एलनीनो से है।
इसलिए इस परिघटना को एंसो-(ENSO) (एलनीनो दक्षिणी दोलन) कहा जाता है। हवाओं में निरंतर कम होती आर्द्रता के कारण उत्तर भारत में पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा की मात्रा कम होती जाती है। बंगाल की खाड़ी शाखा से उठने वाली आर्ट पवनें जैसे-जैसे आगे, और आगे बढ़ती हुई देश के आंतरिक भागों में जाती हैं, वे अपने साथ लाई गई अधिकतर आर्द्रता खोने लगती हैं। परिणामस्वरूप पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा धीरे-धीरे घटने लगती है। राजस्थान एवं गुजरात के कुछ भागों में बहुत कम वर्षा होती है।
प्रश्न 6.
मानसून की एकता स्थापित करने वाले विभिन्न कारकों को उदाहरण सहित प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
भारत में तापमान और वर्षा के वितरण को देखने एवं स्वरूप को समझने से इस बात का आभास होता है कि भारत की जलवायु में पर्याप्त विषमता है। लेकिन भारत अपनी जलवायु सम्बन्धी एकता के लिए जाना जाता है। इस मानसूनी एकता को प्रदान करने में जिन कारकों का विशेष योगदान है उसमें उत्तर दिशा में स्थित हिमालय पर्वत और वर्षा की प्रवृत्ति का विशेष योगदान है।
(1) हिमालय की विशिष्ट स्थिति – भारत की उत्तरी सीमा पर हिमालय पर्वतमालाओं का विस्तार उत्तर-पश्चिम से उत्तर पूर्व की ओर लगभग 3,000 किमी में है। ये पर्वतमालाएँ भारत के लिए अनेक प्रकार से वरदान सिद्ध हुई हैं। वास्तव में ये जलवायु विभाजक हैं तथा भारत के लिए बंद बक्से का काम करती हैं। शीतकाल में मध्य एशिया से चलने वाली ठंडी और शुष्क पवनों को ये पर्वत, भारत में आने से रोककर उसे ठंडा होने से बचाते हैं। दूसरी ओर दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनें जो उष्णआई होती हैं, उन्हें रोककर ये पर्वतमालाएँ वर्षा करने के लिए बाध्य करती हैं।
इस प्रकार भारत में वर्षा के वितरण को प्रभावित करने में इनका महत्त्वपूर्ण योगदान है। इन पर्वतों के कारण देश में उष्णकटिबंधीय जलवायु दशाएँ पैदा होती हैं। ग्रीष्म ऋतु में प्रायः सारे देश में जलवायु की समान दशाएँ पाई जाती हैं। जलवायु की विषमताओं तथा एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में परिवर्तनशीलता के होते हुए भी मानसून के कारण प्रतिवर्ष ऋतुओं के चक्र की एक लय बनी रहती है। इस ऋतु लय का प्रभाव भूमि, वनस्पति, प्राणी वर्ग, कृषि कार्य एवं संपूर्ण भारतीय जीवन पर पड़ता है।
(2) भारत में वर्षा की प्रवृत्ति – भारत के विभिन्न भागों में वर्षा की मात्रा उच्चावच पर निर्भर रहती है। फिर भी एक लंबे शुष्क और गर्म मौसम के बाद सारे देश में मानसून की पहली बरसात की तीव्रता से प्रतीक्षा की जाती है। रबी की फसल घर में ले आने के बाद कश्मीर से कन्याकुमारी तथा गुजरात से गुवाहाटी तक का किसान बड़ी बेसब्री के साथ आकाश में बादलों को वर्षा के लिए निहारता रहता है ताकि वर्षा से उसकी जमीन की प्यास बुझ सके तथा वह अपने कृषि कार्य में लग सके। लेकिन वर्षा की प्रवृत्ति मानसून की सनक पर निर्भर करती है। समय, मात्रा एवं स्थान के अनुसार वर्षा की अनिश्चितता एवं अनियमितता पाई जाती है। इसका प्रभाव सारे देश पर पड़ता है।
मानचित्र कौशल
प्रश्न 1.
भारत के राजनैतिक रेखा मानचित्र पर निम्नलिखित को नामांकित करते हुए स्थिति दर्शाएँ-
- तिरुवनंतपुरम्
- चेन्नई
- जयपुर
- बंगलुरु
- मुंबई
- कोलकाता
- शिलांग उत्तर
- नागपुर
उत्तर:
प्रश्न 2.
नीचे दिए गए मानचित्र का ध्यानपूर्वक अध्ययन कीजिए और उसके नीचे के प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
- 1 सितम्बर और 15 सितम्बर के मध्य मानसून वापसी का समय किन दो अक्षरों द्वारा दिखाया गया है?
- 1 अक्टूबर और 15 अक्टूबर के मध्य मानसून वापसी का समय किन दो अक्षरों से दिखाया गया है?
उत्तर:
- अ तथा ब
- स तथा द.
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