pariksha adhyayan class 11th इतिहास – HISTORY अध्याय 3 संविधान-एक जीवन्त दस्तावेज MP BOARD SOLUTION

अध्याय 3

संविधान-एक जीवन्त दस्तावेज

अध्याय 3  संविधान-एक जीवन्त दस्तावेज
अध्याय 3
संविधान-एक जीवन्त दस्तावेज

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहु-विकल्पीय प्रश्न

1. निम्नांकित में भारतीय संविधान को जीवंत दस्तावेज बनाते हैं-
(i) न्यायिक निर्णय (ii) संवैधानिक संशोधन
(ii) विधायिका द्वारा बनाए गए कानून (iv) उक्त सभी।

2. निम्नांकित में से किसे हम एक जीवन्त दस्तावेज मानते हैं-
(i) आरक्षण को (ii) संविधान को
(iii) मौलिक कर्तव्यों को (iv) संवैधानिक संशोधनों को।

3. निम्नांकित में से कौन भारतीय संविधान संशोधन प्रक्रिया में शामिल हैं-
(i) राष्ट्रपति (ii) संसद
(iii) राज्य विधानमण्डल (iv) उक्त सभी।

4. भारत के संविधान में संशोधन करने की प्रक्रिया का उल्लेख किस अनुच्छेद में किया गया है-
(I) 368 (ii) 370
(iii) 386 (iv) 395.

5. अभी तक (मार्च, 2019) भारतीय संविधान में कुल कितने संवैधानिक संशोधन किया जा चुके हैं ?
(I) 103 (ii) 100
(iii) 97 (iv) 86.
6. 230 वर्षों पुराने अमेरिकी संविधान में अभी तक कितने संवैधानिक संशोधन हुए
(i) 25 (ii) 27
(iii)33 (iv) उक्त में कोई नहीं।

उत्तर-1. (iv), 2. (11), 3. (iv), 4. (1), 5. (1), 6. (iii).

रिक्त स्थान पूर्ति

1. भारतीय संविधान का स्वरूप………रहा है।

2…………संवैधानिक संशोधन द्वारा उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्त आयु को 60 से बढ़ाकर 62 वर्ष किया गया।

3. भारतीय संविधान निर्माता संविधान को एक ……….बनाने के पक्षधर थे।

4. 38वें, 30वें तथा 42वें संवैधानिक संशोधनों का लक्ष्य संविधान के महत्वपूर्ण हिस्सों में ………” करना था।

5. सर्वोच्च न्यायालय ने केशवानन्द के मामले में ……….. में निर्णय दिया था।

उत्तर-1. लचीला एवं कठोर, 2. 15वें, 3. सन्तुलित दस्तावेज, 4. बुनियादी परिवर्तन, 5. 1973.

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

1. किस संवैधानिक संशोधन द्वारा मताधिकार की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष की गई?
उत्तर-61वें संवैधानिक संशोधन द्वारा।

2. भारतीय संविधान में 42वां संवैधानिक संशोधन कब हुआ?
उत्तर-1976.

3. भारतीय संविधान के मौलिक ढाँचे की धारणा का विकास किस मुकद्दमें में हुआ?
उत्तर-स्वामी केशवानन्द भारती।

4. किस संवैधानिक संशोधन द्वारा संविधान की प्रस्तावना के साथ-साथ सातवीं अनुसूची तथा 53 अनुच्छेदों में परिवर्तन किया गया?
उत्तर-42वें संशोधन।

सत्य/असत्य

1. संविधान की मूल संरचना के संवेदनशील विचार को राजनीतिक दलों, राजनेताओं, सरकार तथा संसद ने भी स्वीकृति प्रदान की।

2. जीवन्त संविधान का अर्थ संविधान की गतिशीलता तथा परिस्थितियों एवं समयानुसार परिवर्तन से है।

3. संविधान की समीक्षा करते समय उसकी मूल संरचना के सिद्धान्त द्वारा निर्धारित सीमाओं से बाहर जाना चाहिए।

4. भारतीय संविधान 26 नवम्बर, 1949 को अंगीकृत तथा 26 जनवरी, 1950 को लागू किया गया।

5. किसी संशोधन विधेयक को देश के आधे राज्यों की विधायिका द्वारा पारित किए जाने पर ही वह प्रभावी माना जाता है।

उत्तर-1.सत्य, 2. सत्य, 3. असत्य, 4. सत्य, 5. सत्य।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. कोई दो उदाहरण दीजिए जिनमें भारतीय संसद अनुच्छेद 368 में दी गई प्रक्रिया को अपनाए बिना ही संशोधन कर सकती है ?
उत्तर-(1) अनुच्छेद 2 (नए राज्यों को प्रवेश देना) तथा (2) अनुच्छेद 3 (राज्यों का क्षेत्रफल बढ़ाना)।

प्रश्न 2. भारतीय संविधान शिल्पियों ने किन आदर्शों को दृष्टिगत रखते हुए संविधान का निर्माण किया जो वर्तमान में भी विद्यमान हैं ?
उत्तर-व्यक्ति की गरिमा एवं स्वतन्त्रता, सामाजिक एवं आर्थिक समानता तथा राष्ट्रीय एकता एव अखण्डता।

प्रश्न 3. संविधान में संशोधन प्रस्ताव पर संसद के दोनों सदनों में मतभेद होने पर क्या किया जाता है ?
उत्तर-दोनों सदनों में अलग-अलग विशेष बहुमत परमावश्यक है, यदि दोनों सदनों में संशोधन प्रस्ताव पारित नहीं होता है तब वह रद्द हो जाता है।

प्रश्न 4. न्यायिक पुनरावलोकन क्या है ?
उत्तर-विधानमण्डल द्वारा बनाए गए कानूनों पर न्यायपालिका द्वारा फिर से विचार करने को न्यायिक पुनरावलोकन कहते हैं।

प्रश्न 5. भारतीय संविधान में बहुत अधिक संशोधन होने के कोई चार कारण लिखिए।
उत्तर-(1) लचीला संविधान, (2) परिस्थितियाँ, (3) विभिन्न वर्गों को सन्तुष्ट करना तथा (4) सामाजिक एवं आर्थिक बदलाव।

प्रश्न 6. केशवानन्द भारती मुकदमे के महत्व के दो बिन्दु लिखिए।
उत्तर-(1),38वें एवं 39वें संवैधानिक संशोधनों को चुनौती, (2) सर्वोच्च न्यायालय द्वारा संविधान के मौलिक ढाँचे की धारणा का प्रतिपादन।

प्रश्न 7. साधारण बहुमत तथा विशेष बहुमत में क्या अन्तर है
उत्तर-साधारण बहुमत मतदान करने वाले सदस्यों की संख्या का पचास प्रतिशत +1 है, जबकि विशेष बहुमत सदन के कुल सदस्यों का दो-तिहाई बहुमत है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. “भारतीय संविधान कानूनों की एक बन्द और जड़ किताब न होकर एक जीवन्त दस्तावेज के रूप में विकसित हो सका है ?” संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- यह बात पूर्णतया सही है कि भारत के संविधान में समय एवं आवश्यकतानुसार अनुकूल संशोधन किए जा सकते हैं। संविधान के व्यावहारिक क्रियाकलाप में भी इस तथ्य की पूर्ण सम्भावना रहती है कि किसी भी संवैधानिक बात की एक से अधिक व्याख्याएँ की जा सकें। इससे स्पष्ट है कि भारतीय संविधान लचीला है जो कानूनों की एक बन्द
और जड़ किताव (पुस्तक) न होकर एक जीवन्त दस्तावेज के रूप में विकसित हो सका है।

प्रश्न 2. भारतीय संविधान के कई अनुच्छेदों को संसद किस प्रकार संशोधित कर सकती है?
उत्तर-भारतीय संविधान के कई अनुच्छेदों को संसद सामान्य कानून निर्मित करकं
संशोधित कर सकती है। संसद को ऐसा करने में किसी विशेष प्रक्रिया की जरूरत नहीं पड़ती है। संविधान के कुछ हिस्सों को काफी लचीला स्वरूप प्रदान किया गया है। अनुच्छेद 2 तथा 3 में ‘विधि द्वारा’ शब्द प्रयुक्त किया गया है। भारत की संसद इन अनुच्छेदों में अनुच्छेद 368में उल्लिखित प्रक्रिया को अपनाए बिना ही संशोधित कर सकती है।

प्रश्न 3. अनुच्छेद 368 में संविधान संशोधन हेतु क्या प्रावधान किया गया है ?
उत्तर-संविधान में संशोधन करने हेतु अनुच्छेद 368 में दो प्रकार बतलाए गए हैं, हालांकि ये तरीके संविधान के सभी अनुच्छेदों पर समान रूप से लागू नहीं होते हैं। प्रथम प्रकार
के अनुसार, संसद के दोनों सदनों के विशेष बहुमत द्वारा संशोधन किया जा सकता है। दूसर प्रकार पहले की अपेक्षा अधिक कठोर है। इस प्रकार में संसद के विशेष बहुमत तथा राज्य विधायिकाओं की आधी संख्या की जरूरत होती है।

प्रश्न 4. संसद तथा न्यायपालिका के मध्य उत्पन्न विवादों से सम्बन्धित कोई तीन दृष्टान्त लिखिए।
उत्तर-संसद तथा न्यायपालिका के मध्य उत्पन्न विवादों के तीन प्रमुख दृष्टान्त निम्नवत् हैं-
(1) दोनों के मध्य प्रथम विवाद मौलिक अधिकारों तथा नीति निदेशक सिद्धान्तों से सम्बन्धित मतभेद था।
(2) निजी सम्पत्ति के अधिकार की सीमा तथा संविधान में संशोधन के अधिकार की सीमा को लेकर भी संसद तथा न्यायपालिका के बीच मतभेद होते रहे हैं।
(3) 1970 से 1975 की समयावधि में संसद ने न्यायपालिका की प्रतिकूल व्याख्या को निरस्त करने के लिए बार-बार संशोधन किए।

प्रश्न 5. केशवानन्द भारती विवाद के ऐतिहासिक निर्णय द्वारा न्यायपालिका ने संवैधानिक विकास में क्या सहयोग प्रदान किया ?
उत्तर-केशवानन्द भारती विवाद के निर्णय द्वारा न्यायपालिका ने संवैधानिक विकासकिया में निम्न सहयोग प्रदान किया-
(1। इस निर्णय द्वारा संसद की संविधान संशोधन करने को शक्तियों की सीमाएँ निर्धारित की गई।
(2) इस ऐतिहासिक फैसले द्वारा संविधान के किसी अथवा सम्पूर्ण भागों के सभी संशोधन (निर्धारित सीमाओं के अन्दर) की अनुमति प्रदत्त की गई।
(3) इस निर्णय द्वारा संविधान की मूल संरचना अथवा उसके बुनियादी तत्व का उल्लंघन करने वाले किसी संवैधानिक संशोधन के बारे में न्यायपालिका का फैसला अन्तिम होने का
आदेश दिया गया।

प्रश्न 6. जून 1975 में भारत में आपातकाल की घोषणा की गई,ये तीन संशोधन इसी पृष्ठभूमि से निकले थे। इन संशोधनों का लक्ष्य संविधान के कई महत्वपूर्ण हिस्सों में बुनियादी परिवर्तन करना था। वास्तव में संविधान का 42वाँ संशोधन बहुत बड़ा संशोधन है। इसने संविधान को गहरे स्तर पर प्रभावित किया। एक प्रकार से यह सर्वोच्च न्यायालय द्वारा केशवानन्द मामले में दिए गए निर्णय को भी चुनौती दे रहा
था। यहाँ तक कि इसके अन्तर्गत लोकसभा की अवधि को भी 5 वर्ष से बढ़ाकर 6 वर्ष कर दिया गया। मूल कर्तव्यों को भी संविधान में इसी संशोधन द्वारा जोड़ा गया। कहा तो यह भी जाता है कि इस संशोधन के द्वारा संविधान के बड़े मौलिक हिस्से को नए सिरे से लिखा गया।
उक्त के अध्ययनोपरान्त निम्न प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
(1) भारत में आपातकाल की घोषणा कब और किसके द्वारा की गई?
(2) इस कालावधि में कौन-से तीन विवादास्पद संशोधन किए गए ?
(3) केशवानन्द भारती विवाद का संविधान संशोधन पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-(1) भारत में आपातकाल की घोषणा 25 जून, 1975 को राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद द्वारा की गई थी।
(2) इस कालावधि में तीन विवादास्पद संशोधन-(1) लोकसभा की समयावधि 5 वर्ष से बढ़ाकर 6 वर्ष करना, (ii) संविधान में मूल कर्तव्यों को जोड़ा जाना तथा (iii) न्यायपालिका की समीक्षा पर प्रतिबन्ध लगाना था।
(3) संविधान के मूल ढाँचे के परिवर्तन पर रोक लगी।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1, भारतीय संविधान को जीवन्त दस्तावेज बनाने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-संविधान को जीवन्त दस्तावेज बनाने वाले कारक
भारतीय संविधान को जीवन्त दस्तावेज बनाने वाले प्रमुख कारक निम्न प्रकार हैं-
(1) संवैधानिक संशोधन- भारतीय संविधान में किए जाने वाले विभिन्न संवैधानिक संशोधनों ने इसे एक जीवन्त दस्तावेज बनाने में अपनी अहम भूमिका का निर्वहन किया है।
(2) संसदीय अधिनियम-समय-समय पर भारतीय संसद द्वारा निर्मित किए गए कानूनों ने भी देश के संविधान का विकास किया है।
(3) न्यायिक फैसले-समय-समय पर भारत की न्यायपालिका ने विभिन्न विषयों के सन्दर्भ में अपने ऐतिहासिक फैसले सुनाए हैं। इन न्यायिक फैसलों से भारतीय संविधान
गतिशील हुआ है।
(4) संवैधानिक विशेषज्ञों का परामर्श-भारत के संवैधानिक विशेषज्ञों द्वारा विभिन्न अवसरों पर संवैधानिक टिप्पणियाँ की जाती रही हैं जो देश के संविधान को एक जीवन्त दस्तावेज
बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करती हैं।
(5) कार्यकारी आज्ञाएँ-समय-समय पर कार्यपालिका द्वारा आदेश, नियम अथवाnविनियम भी जारी किए जाते हैं जो भारतीय संविधान के विकास में मददगार रहे हैं।
(6) राजनीतिक दल-भारत के राजनीतिक दल विभिन्न प्रकार की गतिविधियाँ करते रहते हैं जिनसे संविधान को जीवन्त दस्तावेज बनाने में मदद होती है।

प्रश्न 2. भारतीय संविधान में संवैधानिक संशोधनों द्वारा किए गए प्रमुख परिवर्तनों का वर्णन कीजिए। संवैधानिक संशोधनों परिवर्तन भारतीय संविधान में संवैधानिक संशोधनों द्वारा प्रमुख रूप से निम्न परिवर्तन हुए हैं-
(1) 42वाँ संवैधानिक संशोधन-इस संवैधानिक संशोधन द्वारा भारत के संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी’ एवं ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द जोड़े गए और मौलिक कर्तव्यों को भी
संविधान में सम्मिलित किया गया।
(2) 44वाँ संवैधानिक संशोधन-इस संवैधानिक संशोधन द्वारा सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों के अध्याय में से हटाकर कानूनी अधिकार बनाने की व्यवस्था की गई।
(3) 52वाँ संवैधानिक संशोधन-1985 में पारित इस संवैधानिक संशोधन का प्रमुख उद्देश्य राजनीतिक दल-बदल की बुराई पर प्रभावी अंकुश लगाना था। इस संशोधन द्वारा
राजनीतिक जीवन में सदाचार लाने का प्रयत्न किया गया।
(4)61वाँ संवैधानिक संशोधन-इस संवैधानिक संशोधन द्वारा मतदान करने की आयु
(5) 73वाँ एवं 74वाँ संवैधानिक संशोधन-इस ऐतिहासिक संशोधन द्वारा स्थानीय संस्थाओं को और अधिक मजबूत बनाया गया।
(6) 86वाँ संवैधानिक संशोधन- इस संवैधानिक संशोधन द्वारा 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की गई तथा शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची में सम्मिलित किया गया।
(7) 91वाँ संवैधानिक संशोधन-इस संवैधानिक संशोधन द्वारा दल-बदल कानून को और अधिक प्रभावशाली बनाया गया।

प्रश्न 3. भारतीय संविधान के मूल ढाँचे अथवा आधारभूत ढांचे को समझाते हुए इसके तत्वों को लिखो।
उत्तर-भारतीय संविधान की मूल अवधारणा का तात्पर्य है कि संविधान की कुछ व्यवस्थाएँ अथवा उपबन्ध अन्य व्यवस्थाओं या उपबन्धों को अपेक्षाकृत अधिक महत्वपूर्ण हैं। वे संवैधानिक ढाँचे के आधार स्वरूप हैं, जिनका उल्लंघन संविधान की मूल भावना के उल्लंघन के समान होगा।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 24 अप्रैल, 1973 को केशवानन्द भारती बनाम केरल राज्य विवाद में ऐतिहासिक व्यवस्था देते हुए कहा था कि संसद को मौलिक अधिकारों के साथ संविधान के किसी भी भाग को संशोधित करने की शक्ति तो है लेकिन ऐसा करने से संविधान के मूल ढाँचे का उल्लंघन नहीं होना चाहिए।
भारतीय संविधान के मूल ढाँचे में निम्नलिखित तत्व सम्मिलित हैं-
(1) देश के संविधान का लोकतान्त्रिक तथा गणतन्त्रीय स्वरूप,
(2) राज्य का धर्मनिरपेक्ष स्वरूप,
(3) शासन का संघीय स्वरूपं,
(4) नागरिकों के मौलिक अधिकार,
(5) न्यायपालिका की स्वतन्त्रता तथा न्यायिक पुनरावलोकन की व्यवस्था,
(6) विधि (कानून) का शासन, तथा
(7) संसदात्मक व्यवस्था।

प्रश्न 4. भारतीय संविधान के कौन-कौन से संवैधानिक संशोधन विवादास्पद हैं ? इनमें 42वें संवैधानिक संशोधन का क्या महत्व है ?
उत्तर-विवादास्पद संवैधानिक संशोधन
हमारे देश भारत में सत्तर से अस्सी के दशक में हुए संवैधानिक संशोधनों को लेकर कानून तथा राजनीतिक क्षेत्रों में एक बड़ी बहस का सूत्रपात हुआ। 1971 से 1976 के कालखण्ड के दौरान भारतीय विपक्षी राजनीतिक दल संविधान के कुछ संशोधनों को संदेहास्पद दृष्टिकोण से
देखते थे। इनकी स्पष्ट मान्यता थी कि संवैधानिक संशोधनों के माध्यम से सत्तारूढ़ राजनीतिक दल संविधान के मूल स्वरूप को नष्ट करने की साजिश रच रहा है।
भारतीय संविधान के 38वें, 39वें तथा 42वें संवैधानिक संशोधन विशेष रूप से विवादास्पद रहे। जून 1975 में हमारे देश में आपातकाल की घोषणा हुई थी तथा उक्त तीनों संवैधानिक संशोधन इसी पृष्ठभूमि की देन माने जाते हैं। उक्त संवैधानिक संशोधनों का प्राप्त लक्ष्य संविधान के विभिन्न हिस्सों में आमूलचूल बुनियादी बदलाव करना था। पिछले तीन दशको में संविधान की बुनियादी संरचना को लेकर देश की सभी संस्थाओं में सहमति उत्पन्न हुई।
वास्तव में भारत में संविधान का 42वाँ संवैधानिक संशोधन एक बड़ा संशोधन वा जिसने संविधान को गहराई से प्रभावित किया। यह सर्वोच्च न्यायालय द्वारा केशवानन्द विवाद
में दिए गए फैसले के समक्ष भी एक चुनौती प्रस्तुत कर रहा था। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि 42वाँ संवैधानिक संशोधन न्यायपालिका की समीक्षा शक्तियों पर भी प्रतिबन्ध लगाता है। कहा तो यहाँ तक जाता है कि इस संशोधन द्वारा संविधान के एक बड़े मौलिक हिस्से को नए सिरे से लिखा गया। इस संशोधन द्वारा संविधान की प्रस्तावना, सातवीं अनुसूची तथा 53 अनुच्छेदों में बदलाव किए गए।

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