Pariksha Adhyayan Economics इकाई 9 आधारिक संरचना और सतत् पोषणीय आर्थिक विकास in Hindi Class 11th Arthashastra mp board

इकाई 9
आधारिक संरचना और सतत् पोषणीय आर्थिक विकास

इकाई 9 आधारिक संरचना और सतत् पोषणीय आर्थिक विकास
इकाई 9
आधारिक संरचना और सतत् पोषणीय आर्थिक विकास

वस्तुनिष्ठ प्रश्न
* बहु-विकल्पीय प्रश्न

1. भारत में सर्वप्रथम बिजली आपूर्ति प्रारम्भ हुई-\
(i)दार्जिलिंग में
(ii) भोपाल में
(iii) दिल्ली में
(iv) चेन्नई में।

2. सामाजिक संरचना का घटक है-
(i) शिक्षा
(ii) स्वास्थ्य
(iii) आवास
(iv) ये सभी।

3. सभी को आवास प्रदान करने का लक्ष्य है-
(i) 2019 तक
(ii)2022 तक
(iii) 2024 तक
(iv) 2029 तक।

4. आर्थिक वृद्धि का सम्बन्ध किस अर्थव्यवस्था से है ?
(i) अल्पविकसित
(iy विकसित
(iii) अविकसित
(iv) पिछड़ी।

5. “आर्थिक विकास एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा अर्थव्यवस्था की वास्तविक राष्ट्रीय आय दीर्घकाल तक बढ़ती जाती है।” यह परिभाषा किसने दी है ?
(i”)प्रो. मेयर एवं बाल्डविन
(ii) ऑर्थर लुईस
(iii) पाल अल्बर्ट
(iv) कोलिन क्लार्क।

6. राष्ट्रीय आय में सतत् एवं दीर्घकालिक वृद्धि किसकी विशेषता है ?
by आर्थिक विकास
(ii) आर्थिक संवृद्धि
(iii) धारणीय विकास
(iv) इनमें से कोई नहीं।

7. वह प्रक्रिया जिसके द्वारा किसी राष्ट्र की प्रति व्यक्ति वास्तविक आय में
दीर्घकाल में वृद्धि होती है, कहलाती है-
(i) धारणीय विकास
(ii) आर्थिक संवृद्धि
(HI) आर्थिक विकास
(iv) इनमें से कोई नहीं।

8. आर्थिक विकास का सूचक है-
(i) निजी आय
(ii) सकल घरेलू उत्पाद
(iii) शुद्ध विनियोग
(iv) राष्ट्रीय आय व प्रति व्यक्ति आय।

9. मध्य प्रदेश में मानव विकास सूचकांक की गणना की गई-
(i) सन् 1992 में
(if सन् 1995 में
(ii) सन् 1999 में
(iv) सन् 2000 में।

10. विकास के अर्थशास्त्र का सम्बन्ध है-
(i) विकसित देशों से
(if अल्पविकसित देशों से
(iii) उक्त दोनों से
(iv) इनमें से कोई नहीं।

11. निम्नलिखित में से कौन-सा गैर-परम्परागत ऊर्जा का स्रोत नहीं है ?
(10) विद्युत् शक्ति
(ii) आण्विक शक्ति
(iii) वायु शक्ति
(iv) बायोगैस।

12. निम्नलिखित में से कौन-सा परम्परागत ऊर्जा का स्रोत नहीं है ?
(i) विद्युत् शक्ति
(ii) कोयला
(iry वायु शक्ति
(iv) पेट्रोलियम।

उत्तर-1. (i), 2. (iv), 3. (ii), 4. (ii), 5. (i), 6. (i), 7. (iii), 8. (iv), 9. (ii), 10. (ii), 11. (i), 12. (iii)।

* रिक्त स्थान पूर्ति
1. प्रति व्यक्ति आय = …………..कुल जनसंख्या
2. आर्थिक विकास एवं पर्यावरण सुरक्षा की आवश्यकता के मध्य सन्तुलन बनाने के उद्देश्य से विकास की अवधारणा विकसित हुई।
3. आर्थिक विकास एक ……….” प्रक्रिया है।
4. सतत् विकास को मापने हेतु एक सूचक का नाम
5. आर्थिक संवृद्धि अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता में …………करने से है।
6. मानव विकास सूचकांक को …………..ने तैयार किया है।
उत्तर-1. राष्ट्रीय आय, 2. सतत् या धारणीय, 3. सतत्, 4. हरित लेखाकरण, 5. वृद्धि, 6. महबूब-अल-हक।

*सत्य/असत्य

1. पेट्रोलियम ऊर्जा का परम्परागत स्रोत है।
2. पोषण से आशय व्यक्ति को पर्याप्त आहार प्राप्त होने से होता है।
3. कोयले को काला सोना कहा जाता है।
4. कोयला गैर-परम्परागत ऊर्जा का साधन है।
5. मध्य प्रदेश में जैविक खेती को बायोफार्मिंग के नाम से लागू किया गया था।
6. सरकार ने पर्यावरण अनुकूल उत्पादों के उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए ‘एगमार्क योजना’ प्राराम्भ की है।
7. भारत देश के जलीय संसाधनों में प्रदूषण के प्रमुख स्रोत कार्बनिक एवं बैक्टीरिया नहीं हैं।
8. साँस का फूलना वायु प्रदूषण के कारण उत्पन्न होता है। (2018)
9. विश्व के कुल भूमिक्षेत्र का 50 प्रतिशत भाग वनों से ढका है।
10. नगरीकरण से जनसंख्या घनत्व सघन होने लगता है।
11. भारत में राष्ट्रीय आय अधिक होने से बचत कम होती है।
12. संवृद्धि विकास का प्रथम चरण है।
13. आर्थिक विकास एक अल्पकालीन प्रक्रिया है।
14. आर्थिक विकास अर्थव्यवस्था की सम्पूर्ण वृद्धि को दर्शाता है।
15. विकसित राष्ट्रों के आर्थिक विकास का सूचक राष्ट्रीय आय में वृद्धि है।
16. ‘आर्थिक संवृद्धि’ को प्रायः विकसित राष्ट्रों के सन्दर्भ में प्रयुक्त किया जाता है।
17. आर्थिक विकास, आर्थिक प्रगति एवं आर्थिक वृद्धि परस्पर पर्यायवाची शब्द हैं।
उत्तर-1. सत्य, 2. सत्य, 3. सत्य, 4. असत्य, 5. सत्य, 6. असत्य, 7. असत्य, 8.सत्य,9.सत्य, 10. सत्य, 11. असत्य, 12. असत्य, 13. असत्य, 14.सत्य, 15.सत्य, 16. सत्य, 17. सत्य।

* जोड़ी बनाइए

1. विकसित (क) अधिक उत्पादन
2. आर्थिक संवृद्धि (ख) स्थिर विकास
3. राष्ट्रीय वन आयोग (ग) उन्नत अर्थव्यवस्था
4. आर्थिक विकास (घ) 2003
5. सतत् विकास (ङ) राष्ट्रीय आय में वृद्धि
उत्तर-1.→ (ग), 2. → (क), 3. → (घ), 4. → (ङ),5. → (ख)।

* एक शब्द/वाक्य में उत्तर

1. विद्युत्, ऊर्जा का कौन-सा स्रोत है ? (2019)
उत्तर-परम्परागत स्रोत है।

2. शोर नापने की इकाई है।
उत्तर-डेसीबल।

3. ‘काटो और जलाओ’ का किससे सम्बन्ध है ?
उत्तर-स्थानान्तरी कृषि से।

4. प्रति व्यक्ति वास्तविक आय किसका सूचक है ?
उत्तर-आर्थिक विकास का।

5. आर्थिक विकास का आधार क्या है ?
उत्तर-आर्थिक कल्याण में वृद्धि ।

6. आर्थिक संवृद्धि का सम्बन्ध किससे है ?
उत्तर-विकसित राष्ट्रों से।

7. प्रति व्यक्ति आय और राष्ट्रीय आय में क्या सम्बन्ध है ?

उत्तर-प्रति व्यक्ति आय =राष्ट्रीय आय/जनसंख्या

8. प्रो. साइमन कुजनेट्स ने आर्थिक विकास को मापने के लिए क्या मानदण्ड बताया है ?
उत्तर-वास्तविक राष्ट्रीय आय में वृद्धि।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. आर्थिक संरचना से क्या आशय है ?
उत्तर-आर्थिक संरचना का आशय वार्षिक ढाँचे से है। आर्थिक संरचना में उन तत्वों का समावेश किया जाता है जो आर्थिक विकास को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं। दूसरे शब्दों में, वे तत्व जिनका अभाव विकास प्रक्रिया में बाधक होता है व जिनकी पर्याप्त उपलब्धि विकास में सहायक होती है। इसके अन्तर्गत, यातायात, संचार, शक्ति, सिंचाई, मौद्रिक व वित्तीय संस्थाएँ शामिल हैं।

प्रश्न 2. आर्थिक संरचना के घटक बताइए।
उत्तर-आर्थिक संरचना के घटक यातायात, संचार, शक्ति, सिंचाई, मौद्रिक व वित्तीय संस्थाएँ हैं।

प्रश्न 3. ऊर्जा के परम्परागत साधन बताइए।
उत्तर-कोयला, पेट्रोलियम, परमाणु ऊर्जा, जल शक्ति ऊर्जा के परम्परागत साधन हैं।

प्रश्न 4. ऊर्जा के गैर-परम्परागत साधन बताइए।
उत्तर-सौर ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, पवन ऊर्जा, कूड़े-कचरे या गोबर व मल-मूत्र से तैयार ऊर्जा इस श्रेणी में आती है।

प्रश्न 5. ऊर्जा के खनिज संसाधनों के नाम बताइए।
उत्तर-कोयला, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस तथा परमाणु शक्ति के लिए यूरेनियम और थोरियम ऊर्जा के खनिज संसाधन हैं।

प्रश्न 6. भारत में कार्यरत् चार परमाणु बिजलीघरों के नाम लिखें।
उत्तर-(1) कलपक्कम-तमिलनाडु, (2) तारापुर-महाराष्ट्र, (3) रावतभाटा-राजस्थान, (4) नरौरा-उत्तर प्रदेश।

प्रश्न 7. सौर ऊर्जा क्या है ?
उत्तर-इसमें सूर्य के ताप को ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है। इसका प्रयोग खाना करने में किया जाता है। बनाने, पानी गर्म करने, स्थान गर्म करने, फसल सुखाने तथा ग्रामीण क्षेत्रों को विद्युतीकरण

प्रश्न 8. भू-तापीय ऊर्जा से क्या आशय है ?
उत्तर- भू-तापीय ऊर्जा (Geothermal Energy) उस ऊर्जा को कहते हैं, जो प्राकृतिक गर्म पानी के झरने या तालाब से संयन्त्र लगाकर प्राप्त की जाती है। भारत में ऐसे लगभग 340
स्थान हैं, जहाँ गर्म पानी के झरनों का पता चला है।

प्रश्न 9. सामाजिक आधारिक संरचना से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-सामाजिक आधारिक संरचना से अभिप्राय उन सभी घटकों से है, जो मानवीय पूँजी निर्माण में सहायक होते हैं या जिनसे मानवीय संसाधन के विकास में सहायता मिलती है।

प्रश्न 10. सामाजिक संरचना के घटक बताइए।
उत्तर-सामाजिक संरचना के घटकों में शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छ आवास तथा नागरिक सुविधा आदि को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 11. आर्थिक संवृद्धि की परिभाषा दीजिए।
उत्तर-प्रो. साइमन कुजनेट्स के अनुसार, “आर्थिक संवृद्धि से आशय क्षमता में होने वाली वह दीर्घावधि वृद्धि है, जो जनसंख्या को उत्तरोत्तर विविध वस्तुओं की माँग की पूर्ति करने के लिए होती है, यह बढ़ती हुई क्षमता उन्नतशील प्रौद्योगिकी तथा संस्थागत एवं वैचारिक समायोजन पर आधारित है।”

प्रश्न 12. राष्ट्रीय आय का अर्थ बताइए।
(2019)
उत्तर-एक देश की राष्ट्रीय आय से आशय साधारणत: एक वर्ष में उत्पादित समस्त वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य का योग होता है। जिनमें वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन हेतु प्रयोग की गयी मशीनों एवं पूँजी की घिसावट (या ह्रास) को घटा दिया जाता है तथा विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय को जोड़ दिया जाता है।

प्रश्न 13. आर्थिक विकास से क्या आशय है?
उत्तर-आर्थिक विकास एक निरन्तर प्रक्रिया है, जिसके अन्तर्गत राष्ट्र के आर्थिक, सामाजिक एवं औद्योगिक विकास के सभी सम्भव प्रयास किये जाते हैं तथा राष्ट्र के उपलब्ध संसाधनों का अधिकतम सम्भव विदोहन किया जाता है।

प्रश्न 14. सतत् विकास (Sustainable Development) से क्या आशय है ?
उत्तर-सतत् विकास से आशय ऐसे विकास से है, जिसमें वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को पूरा करते हुए भावी पीढ़ियों की आवश्यकताओं एवं हितों पर समुचित ध्यान दिया जाता है।

प्रश्न 15. प्रति व्यक्ति आय को परिभाषित कीजिए।
164 शिवलाल परीक्षा अध्ययन अर्थशास्त्र : कक्षा XI (2020)
उत्तर–प्रति व्यक्ति आय (IPer Cupita Income)-एक देश की किसी वर्ष विशेष में औसत आय को ही प्रति व्यक्ति आय कहते हैं। इसे ज्ञात करने के लिए किसी एक वर्ष की
राष्ट्रीय आय में उस वर्ष की जनसंख्या से भाग दे दिया जाता है।
संक्षेप में,
2011 की राष्ट्रीय आय
2011 की प्रति व्यक्ति आय =
2011 की जनसंख्या

लघु उत्तरीय प्रश्न
उत्तर-
प्रश्न 1. ऊर्जा के प्रकार समझाइए।
ऊर्जा के प्रकार ऊर्जा को दो भागों में बाँटा गया है-
(1) व्यापारिक ऊर्जा-व्यापारिक ऊर्जा में कोयला, पेट्रोल और बिजली आते हैं, क्योंकि इन्हें खरीदा और बेचा जाता है। भारत में उपयोग किए जाने वाले समस्त ऊर्जा स्रोतों में इसका 50 प्रतिशत भाग है। वर्तमान में परमाणु ऊर्जा का उत्पादन भी प्रारम्भ हो गया है।

(2) गैर-व्यापारिक ऊर्जा-जलाऊ लकड़ी, कृषि का कूड़ा-कचरा, सूखा गोबर आदि गैर-व्यापारिक ऊर्जा के प्रमुख घटक हैं। इस ऊर्जा का प्रयोग घरेलू कार्यो; जैसे-खाना बनाना, घरेलू यन्त्रों के चलाने, रोशनी आदि के लिए किया जाता है। ये गैर-व्यापारिक हैं, क्योंकि ये हमें प्रकृति से मिलते हैं। प्राय: ऊर्जा के व्यापारिक स्रोत (पनबिजली को छोड़कर) समाप्त हो जाते हैं, जबकि गैर-व्यापारिक स्रोत का पुन: नवीनीकरण हो सकता है।

प्रश्न 2. ऊर्जा के परम्परागत व गैर-परम्परागत साधनों की तुलना कीजिए।
उत्तर-ऊर्जा के परम्परागत एवं गैर-परम्परागत साधनों की तुलना
क्र.सं. ऊर्जा के परम्परागत साधन ऊर्जा के गैर-परम्परागत साधन
कोयला, पेट्रोलियम, परमाणु ऊर्जा, जल सौर ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, | शक्ति ऊर्जा के परम्परागत साधन हैं। पवन ऊर्जा, कूड़े-कचरे या गोबर व मल-मूत्र से तैयार ऊर्जा इस श्रेणी में
आती है।
2. जल-विद्युत के अतिरिक्त, इन सभी ये साधन प्रदूषण मुक्त ऊर्जा देते हैं।

3.साधनों से प्रदूषण फैलता है। | जल-विद्युत् को छोड़कर वे साधन | ये सभी साधन आपूर्ति साधनों की अनापूर्ति साधनों की श्रेणी में आते हैं | श्रेणी में आते हैं। इनका प्रयोग निरन्तर जिनका एक बार प्रयोग करने के बाद सम्भव है।
4. दोबारा प्रयोग करना सम्भव नहीं है। इनका प्रयोग गैर-परम्परागत साधनों के इनका प्रयोग बहुत पहले से हो रहा है।

प्रश्न 3. वर्तमान ऊर्जा नीति को बताइए।
उत्तर-देश में ऊर्जा संरक्षण एवं ऊर्जा के स्रोतों के विकास हेतु सरकार की ऊर्जा नीति
निम्नलिखित बिन्दुओं से सम्बन्धित है-
(1) ऊर्जा के परम्परागत स्रोतों; यथा-पेट्रोलियम उत्पाद, कोयला, बिजली तथा परमाणु को अधिकाधिक मात्रा में प्राप्त करना।
(2) देश के अन्दर तेल एवं प्राकृतिक गैस के भण्डारों का पता लगाना एवं उनका विदोहन करना।
(3) ऊर्जा का संरक्षण एवं प्रबन्ध करना।
(4) ऊर्जा के पुनः प्रयुक्त होने वाले संसाधनों को विकसित करके ऊर्जा प्राप्त करना जिससे कि ग्रामीण क्षेत्र में ऊर्जा की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके। कार्य को त्वरित करना।
(5) ऊर्जा के नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के क्षेत्र में अनुसन्धान एवं विकास

प्रश्न 4. भारत में शिक्षा के विकास की किन्हीं चार बाधाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-भारत में शिक्षा के विकास की बाधाएँ-(1) शिक्षा में पाठ्यक्रम सम्बन्धी समस्या है। आज के पाठ्यक्रम संकीर्ण, कठोर, अरुचिकर एवं एकमार्गीय हैं।
(2) शिक्षा की सबसे व्यापक समस्या धन का अभाव है। सरकार अन्य देशों की तुलना में शिक्षा पर कम व्यय करती है।
(3) प्राथमिक शिक्षा में प्रारम्भिक शिक्षकों का अभाव है।
(4) पर्याप्त मात्रा में विद्यालयों का अभाव है।

प्रश्न 5. “स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारत में स्वास्थ्य सेवाओं का विकास” पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
भारत में स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् स्वास्थ्य विकास के प्रमुख बिन्दु बताइए।
उत्तर-पिछले दशकों में स्वास्थ्य सेवाओं में काफी विकास हुआ है, जैसा कि निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट है-
(1) प्रत्याशित आयु में वृद्धि हुई है, जो सन् 1951 में 32 वर्ष थी, वर्तमान में 63-6 वर्ष हो गई है।
(2) मृत्यु दर में काफी कमी हुई है, जो सन् 1951 में 27.4 प्रति हजार से घटकर सन् 2012-13 में 7% प्रति हजार रह गई है।
(3) सामाजिक-आर्थिक प्रगति और स्वास्थ्य की स्थिति के संवेदनशील सूचकांक शिशु
अथवा
मृत्यु दर में महत्वपूर्ण गिरावट आई है। 1946-51 में यह 134 प्रति हजार थी, जो सन् 2013 में घटकर 40 प्रति हजार तक आ गई है।
(4) मलेरिया, हैजा, चेचक, टी. बी., पोलियो जैसी भयंकर एवं जानलेवा बीमारियों पर काफी नियन्त्रण कर लिया गया है।

प्रश्न 6. भारत में आवास समस्या के कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-भारत में आवास समस्या के कारण-भारत में शहरी और ग्रामीण आवास समस्या के मुख्य कारण अग्र प्रकार हैं-

(1) देश में जनसंख्या में बहुत तेजी से वृद्धि हो रही है और प्रत्येक व्यक्ति के लिए मकान उपलब्ध करवाना बहुत कठिन हो गया है।
(2) नये मकान बनाने के लिए पर्याप्त मात्रा में सीमेण्ट, लोहा, ईंट आदि उपकरणों की कमी के कारण मकान बनाने की गति बहुत धीमी रही है।
(3) शहरीकरण की तीव्र गति होने के कारण भी आवास समस्या का जन्म हुआ है।
(4) भारत में भूमि वितरण बहुत ही असन्तुलित एवं अनियोजित ढंग से हुआ है।
(5) आवास हेतु जो वित्तीय सहायता दी जाती है, वह पर्याप्त नहीं है।
(6) भारत में आवास निर्माण हेतु कोई सुनियोजित योजना नहीं है।

प्रश्न 7. भारत में आवास समस्या के समाधान हेतु सुझाव बताइए।
उत्तर-आवास समस्या को दूर करने के लिए सुझाव-आवास समस्या को दूर करने के लिए निम्न सुझाव दिये जा सकते हैं-
(1) भवन निर्माण के लिए विभिन्न संस्थाएँ जो ऋण देती हैं, उनकी वापसी की किस्तों में कुछ रियायत कर देनी चाहिए।
(2) वित्तीय सहायता और ऋण में वृद्धि करके श्रमिकों की सहकारी समितियों को प्रोत्साहन दिया जा सकता है।
(3) जहाँ श्रमिक स्वयं अपने श्रम से मकान की व्यवस्था कर सकता हो, वहाँ पर श्रमिकों को एक अलग भूमि का टुकड़ा दिया जाना चाहिए जिसमें उसको समस्त सुविधाएँ प्राप्त हो सकें।
(4) भूमिहीन मजदूरों को अपने घर के स्वामित्व का अधिकार मिलना चाहिए।
(5) राज्य आवास निगमों के कार्य-कलापों में तेजी से वृद्धि करनी चाहिए।
(6) पंचायतों व सहकारी समितियों को अपने सदस्यों को ऋण देकर मकान बनाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

प्रश्न 8. आर्थिक संवृद्धि से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-आर्थिक संवृद्धि का अर्थ एवं परिभाषा-आर्थिक संवृद्धि से आशय राष्ट्रीय आय के विस्तार से है। अत: आर्थिक संवृद्धि में केवल इस तथ्य पर ध्यान दिया जाता है कि क्या किसी अवधि में इससे पहले की अवधि की तुलना में मात्रा की दृष्टि से अधिक उत्पादन
हो रहा है या नहीं। इस प्रकार, आर्थिक संवृद्धि की धारणा एक परिमाणात्मक संकल्पना है। आर्थिक संवृद्धि की विचारधारा आर्थिक दृष्टि से ऐसे उन्नत देशों के लिए उपयुक्त है, जहाँ पर
संसाधन ज्ञात एवं विकसित हैं। आर्थिक वृद्धि की दर धनात्मक के साथ कभी-कभी ऋणात्मक भी हो सकती है।
साइमन कुजनेट्स के अनुसार, “आर्थिक संवृद्धि से आशय किसी देश में उसकी जनसंख्या एवं प्रति व्यक्ति उत्पाद में निरन्तर वृद्धि से लगाया जाता है।” शुम्पीटर के अनुसार, “आर्थिक संवृद्धि प्राय: दीर्घकाल में क्रमिक और स्थिर दर से होती है तथा जनसंख्या एवं वचत जैसे संसाधनों में सामान्य वृद्धि के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती है।”

प्रश्न 9. आर्थिक विकास से आप क्या समझते हैं? .
उत्तर-आर्थिक विकास का अर्थ एवं परिभाषा-आर्थिक विकास एक निरन्तर प्रक्रिया है, जिसके अन्तर्गत राष्ट्र के आर्थिक, सामाजिक एवं औद्योगिक विकास के सभी सम्भव हैं। इन प्रयासों के परिणामस्वरूप राष्ट्र की वास्तविक राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय में प्रयास किये जाते हैं तथा राष्ट्र के उपलब्ध संसाधनों का अधिकतम सम्भव विदोहन किया जाता दीर्घकालीन वृद्धि सम्भव हो जाती है। अर्थशास्त्रियों ने इसकी परिभाषा विकास के भिन्न-भिन्न आधारों को ध्यान में रखते हुए दी है। मायर एवं बाल्डविन के अनुसार, “आर्थिक विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें
दीर्घकाल में अर्थव्यवस्था की वास्तविक राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है।” कोलिन क्लार्क के अनुसार, “आर्थिक विकास का अर्थ उस प्रक्रिया से है जिसमें बढ़ती हुई पूँजी की आवश्यकता एक निश्चित सीमा तक प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि लाती है।”\

प्रश्न 10. आर्थिक विकास की चार विशेषताएँ बताइए। 4
उत्तर-आर्थिक विकास की विशेषताएँ-(1) आर्थिक विकास एक निरन्तर प्रक्रिया है। विश्व का प्रत्येक देश अपने आर्थिक विकास के लिए निरन्तर विभिन्न कार्यक्रम एवं योजनाएँ अपनाता रहता है।
(2) राष्ट्रीय आय से जनसाधारण के जीवन स्तर एवं कल्याण में वृद्धि होनी चाहिए।
(3) आर्थिक विकास से वास्तविक राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होती है।
(4) आर्थिक विकास के प्रयासों में राष्ट्र के उपलब्ध प्राकृतिक भौतिक एवं मानवीय संसाधनों का अधिकतम विदोहन करने के प्रयास शामिल होते हैं।

प्रश्न 11. सतत् विकास का अर्थ एवं तीन उद्देश्य समझाइए।
उत्तर-सतत् विकास का अर्थ-अति लघु उत्तरीय प्रश्न 14 का उत्तर देखें। सतत् विकास के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
(1) सतत् विकास का प्रमुख उद्देश्य आर्थिक क्रियाकलापों के विशुद्ध लाभों को अधिकतम करना होता है।
(2) इसके लिए अनिवार्य है कि उत्पादक परिसम्पत्तियों (भौतिक, मानवीय, पर्यावर्णिक) के स्टॉक को संरक्षित रखा जाए।
(3) निर्धनों की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक सामाजिक सुरक्षा तन्त्र प्रदान किया जाए

प्रश्न 12. पर्यावरण क्षति के प्रमुख प्रभावों को समझाइए।
अथवा
पर्यावरणीय क्षति के चार कारण दीजिए।
उत्तर-पर्यावरण क्षति के प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित हैं-
(1) मानव ने अपने जीवन-यापन के लिए वनों को काटा। जंगलों की अन्धा-धुन्ध कटाई के कारण जैव-मण्डल का सन्तुलन बिगड़ गया है।
(2) वनों के ह्रास के कारण और भूमि पर से वनस्पति को हटाकर मानव उस पर कुछ विशेष प्रकार की फसलें उगाने लगा, जिससे वनस्पति की विविधता समाप्त हो गई।
(3) वायु और जल प्रदूषण के कारण पेड़-पौधों की कई प्रजातियाँ विलुप्त हो गई, क्योंकि प्रदूषित वायु और जल उनके अनुकूल नहीं होता।
(4) मनुष्य जाति सर्वभक्षी है, क्योंकि वह न केवल वनस्पति, अपितु पशु उत्पाद भी भोजन के रूप में खाता है। मानव द्वारा अन्धाधुन्ध शिकार करने की प्रवृत्ति के फलस्वरूप पशु-पक्षियों की कई जातियाँ विलुप्त हो गई हैं और कुछ विलुप्तप्राय हैं।
(5) हमने अपनी जनसंख्या में इतनी तीव्र गति से वृद्धि की है, जिसे बहुधा विनाश का पर्याय माना जा सकता है। हम बड़ी शीघ्रता से विश्व के अपूर्व साधनों का प्रयोग कर रहे हैं तथा अनेक प्रकार से पर्यावरण को हानि पहुँचा रहे हैं। जैसे-जैसे हमारी जनसंख्या बढ़ती गयी. उपजाऊ भूमि व वन सिमटते गये। तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या की माँग को पूरा करने के
लिए प्राकृतिक संसाधनों का दोहन भी तीव्र गति से हुआ है।

प्रश्न 13. संधृतशील (पोषणीय) विकास की विशेषताएँ लिखिए।
अथवा
धारणीय विकास का क्या महत्व है ?
उत्तर-संधृतशील (धारणीय) विकास की विशेषताएँ (महत्व)-
(1) निर्धनों की संख्या में वृद्धि न हो।
(2) आय-वितरण में गिरावट न आए।
(3) देश का संसाधन आधार अक्षुण्ण बना रहे।
(4) पर्यावरणीय कारकों-वायु, जल एवं भूमि की गुणवत्ता अक्षुण्ण बनी रहे तथा ये वर्तमान एवं भावी पीढ़ियों के सामूहिक विरासत का प्रतिनिधित्व करे।
(5) पर्यावरणीय लेखांकन को नीतिगत निर्णयों का आधार बनाया जाए।
(6) वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताएँ इस प्रकार पूरी की जाएँ कि भावी पीढ़ियों की अपनी आवश्यकताएं पूरी करने की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।

प्रश्न 14. पर्यावरण संरक्षण’ से क्या अभिप्राय है ? इसके लिए सुझाव दीजिए।
अथवा
पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए उपाय बताइए। (कोई चार) –
उत्तर-पर्यावरण संरक्षण का अर्थ विकास ही समझा जाना चाहिए और इस कार्य में ग्रामीण तथा शहरी सभी लोगों को सक्रिय होकर हिस्सा लेना चाहिए। बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए रचनात्मक कदम उठाने होंगे, जिससे न तो पर्यावरण प्रदूषित हो और न ही आर्थिक- सामाजिक विकास अवरुद्ध हो। इस सम्बन्ध में, यहाँ कुछ सकारात्मक सुझाव दिए जा रहे हैं-
(1) जनसाधारण को प्रदूषण से उत्पन्न खतरों से अवगत कराया जाए, जिससे प्रत्येक व्यक्ति अपने स्तर पर प्रदूषण कम करने का हरसम्भव प्रयास ईमानदारी से करे।
(2) पर्यावरण की सुरक्षा के लिए औद्योगिक विकास अवरुद्ध न किया जाए। औद्योगिक विकास भी नियोजित ढंग से हो, जिससे कि पर्यावरण में किसी भी प्रकार असन्तुलन उत्पन्न न हो, क्योंकि देखा गया है कि जिस ढंग से औद्योगिक ऊर्जा विकास के लिए पेड़-पौधों को काटा जा रहा है, वह आज भी पर्यावरण सम्बन्धी सबसे बड़ी समस्या है।
(3) यातायात के साधनों से होने वाले प्रदूषण से बचने के लिए मोटर वाहन सम्बन्धी नियमों व कानून को सख्ती से लागू किया जाए। अत्यधिक धुआँ छोड़ने वाले तथा तीव्र ध्वनि के हॉर्न वाले वाहनों पर प्रतिबन्ध लगाया जाए।
(4) उद्योगों से निकलने वाला प्रदूषित जल, जो कि नदियों व कृषि में पहुँचता है; पर भी प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिए। सभी उद्योगों में जल उपचार संयन्त्र स्थापित किये जाने चाहिए
जिससे प्रदूषित जल को शुद्ध किया जा सके।
(5) जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण कर प्रदूषण को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
(6) वनों की अन्धाधुन्ध कटाई पर सरकार को सख्ती बरतनी चाहिए, भूमि को अंजर होने से बचाने, पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने तथा वन रोपने हेतु सिंचाई की व्यवस्था में सुधार
के लिए सघन वृक्षारोपण कार्यक्रम चलाया जाना चाहिए।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. ऊर्जा के किन्हीं दो परम्परागत एवं दो गैर-परम्परागत प्रोतों का वर्णन
अथवा
ऊर्जा के परम्परागत स्रोत कौन-से है ? वर्णन करो।
(2018, 19)
उत्तर-वर्तमान समय वैज्ञानिक एवं तकनीकी प्रगति का समय है। आधुनिक तकनीक ऊर्जा के के बढ़ते महत्व को देखते हुए व्यावसायिक ऊर्जा को उसका पर्याय माना जा रहा है। व्यावसायिक त्वपूर्ण स्रोतों के अन्तर्गत कोयला, पेट्रोलियम या खनिज तेल, विद्युत् आदि हैं।
(1) कोयला वर्तमान शक्ति संसाधनों में कोयला अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है। मानव सभ्यता के प्रारम्भ और आर्थिक विकास के प्रथम चरण में कोयला ईंधन के क्षेत्र में सम्राट माना जाता रहा है। पश्चिमी देशों में औद्योगिक क्रान्ति को शक्ति देने का प्रारम्भिक कार्य कोयले ने ही किया था। भारत में भी शक्ति के विभिन्न साधनों में कोयले का विशिष्ट स्थान रहा है। इसके महत्व को देखते हुए आज भी इसे काला सोना (Black Gold) या काला हीरा (Black Diamond) का नाम दिया जाता है। कोयले का उपयोग कल-कारखानों, रेला तथा जहाजों को चलाने वाले ईंधन के रूप
में, तेल बेन्जाल आदि निकालने, बिजली के सामान; जैसे-बटन बनाने, कोलतार बनाने आदि में किया जाता है।
(2) पेट्रोलियम पेट्रोलियम ऊर्जा का एक प्रमुख स्रोत होने के कारण मानव-जीवन को एक महत्वपूर्ण आवश्यकता बना हुआ है। कृषि, उद्योग एवं परिवहन आदि विभिन्न क्षेत्रों में पेट्रोलियम के
बिना प्रगति की आशा नहीं की जा सकती है। पेट्रोलियम वर्तमान समय में आर्थिक विकास की मुख्य शक्ति बन गयी है।
(3) विद्युत् कोयला एवं तेल जैसे ऊर्जा के साधनों की सीमित उपलब्धता को देखते हुए ऊर्जा के विद्युत् स्रोत को अधिक महत्व दिया जा रहा है। विद्युत्, ऊर्जा प्राप्ति का सबसे उपयोग एवं
सुविधाजनक साधन है। यही कारण है कि ऊर्जा के अन्य साधनों की तुलना में इसकी माँग बहुत तेजी से बढ़ी है। ऊर्जा का यह साधन उद्योग, कृषि, परिवहन एवं घरेलू क्षेत्र की कार्यविधि को
सुगम बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
ऊर्जा के गैर-परम्परागत स्रोत
(1) सौर ऊर्जा- इसमें सूर्य के प्रकाश से ऊर्जा को उत्पादित किया जाता है। इसका प्रयोग घरेलू कार्यों में, प्रकाश हेतु तथा कृषि कार्यों हेतु किया जाता है। मार्च 2005 तक यह विधि देश के कुल 15 लाख वर्गमीटर क्षेत्र में उपलब्ध कराई जा चुकी थी और इससे प्रतिवर्ष 51,200 खरब किलोवाट सौर ऊर्जा प्राप्त होती है। खाना बनाने के लिए विश्व की सबसे बड़ी सौर वाष्प प्रणाली राजस्थान के माउण्ट आबू में स्थापित की गई है।
(2) पवन ऊर्जा-पवन ऊर्जा में वायु या हवा से विद्युत् या ऊर्जा उत्पादित की जाती है। अक्षय ऊर्जा मन्त्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, 31 मार्च, 2005 तक देश में पवन ऊर्जा की स्थापित क्षमता 1710 मेगावाट है। भारत में पवन ऊर्जा की कुल सम्भावित क्षमता 45,000 मेगावाट है। विश्व में पवन ऊर्जा के क्षेत्र में भारत का पाँचवाँ स्थान है और भारत पवन चक्की का निर्यात भी करता है।

प्रश्न 2. भारत में ऊर्जा संकट व उसके कारण बताइए व ऊर्जा संकट के समाधान हेतु सुझाव दीजिए।
अथवा
भारत में ऊर्जा संकट उत्पन्न होने के कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर-भारत में ऊर्जा संकट-भारत आज अपनी 90% ऊर्जा की आवश्यकताओं की पूर्ति विभिन्न ऊर्जा स्रोत; जैसे-कोयला, खनिज तेल तथा प्राकृतिक गैस से कर रहा है, लेकिन भारत में इन ऊर्जा स्रोतों का भण्डार सीमित है। देश में ऊर्जा की बढ़ती माँग के कारण ऊर्जा संकट की समस्या खड़ी हो गयी है।
मोटे तौर पर भारत में ऊर्जा संकट मुख्य रूप से निम्नलिखित दो कारणों से उत्पन्न हुआ है-
(1) ऊर्जा एवं शक्ति की मांग बढ़ने के कारण-ऊर्जा की माँग बढ़ने के निम्नांकित कारण हैं-
(i) देश का तीव्र गति से औद्योगिक विकास।
(ii) कृषि में उन्नत तकनीकों का उपयोग और कृषि का मशीनीकरण।
(iii) ग्राम विद्युतीकरण।
(iv) भारत में परिवहन, संचार व सिंचाई व्यवस्था की तीव्र गति से वृद्धि।
(2) पूर्ति के दृष्टिकोण से ऊर्जा का संकट-एक ओर शक्ति एवं ऊर्जा की माँग में
वृद्धि हुई, और दूसरी और इसका उत्पादन लक्ष्यों से नीचे रहा, इसलिए ऊर्जा संकट गम्भीर बना
हुआ है। इसके लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी रहे हैं-
(i) ताप विद्युत् गृहों को समय पर कोयला न मिलना।
(ii) मानसून की असफलता के कारण जल-विद्युत् उत्पादन में कमी।
(iii) परमाणु शक्ति के विकास की धीमी गति।
(iv) विद्युत् गृहों की पूरी क्षमता का उपयोग न होना।
(v) ऊर्जा के गैर-परम्परागत स्रोतों का उचित विकास न होना।
ऊर्जा संकट के समाधान के लिए सुझाव-ऊर्जा संकट के समाधान हेतु अग्रलिखित
सुझाव दिये जा सकते हैं-
171
आधारिक संरचना और सतत् पोषणीय आर्थिक विकास
(1) कोयले के उत्पादन को बढ़ाया जाए, क्योंकि कोयले के भण्डार भी यहाँ पर्याप्त
मात्रा में हैं।
जाती है। अत: जल विद्युत् उत्पादन बढ़ाकर ऊर्जा संकट को दूर किया जा सकता है।
(2) जल-विद्युत् के उत्पादन में वृद्धि की जाय। इसके लिए यहाँ बारहमासी नदियाँ पाई
(3) तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम की क्रियाओं में पर्याप्त विस्तार करके प्राकृतिक गैस
की नवीन स्थानों पर खोज का कार्यक्रम तेज किया जाए।
(4) पेट्रोलियम पदार्थों का आन्तरिक उपयोग कम किया जाए ताकि विदेशी मुद्रा की
बचत हो सके।

प्रश्न 3. भारत में शिक्षा में सुधार हेतु सरकारी उपाय लिखिए। (2019)
अथवा
सर्वशिक्षा अभियान क्या है ?
[संकेत : ‘सर्वशिक्षा अभियान’ शीर्षक देखें।
उत्तर-
शिक्षा में सुधार हेतु सरकारी उपाय
सरकार ने शिक्षा में सुधार हेतु निम्नलिखित प्रयास किये हैं-
(1) व्यय में बढ़ोत्तरी-शिक्षा के लिए अधिक संसाधन उपलब्ध कराने की प्रतिबद्धता के अनुपालन में पिछले वर्षों के दौरान किए जाने वाले आबंटन में भारी वृद्धि हुई है। शिक्षा के लिए निर्धारित योजना परिव्यय पहली योजना के ₹ 151-20 करोड़ से बढ़ाकर 11वीं योजना में ₹ 2,69,873 करोड़ हो गया है।
(2) सर्व शिक्षा अभियान-यह योजना 2001 में शुरू की गई थी। एक राष्ट्रीय योजना के रूप में यह देश के सभी जिलों में लागू की जा रही है। इस अभियान का उद्देश्य 2010 तक 6 से 14 वर्ष के आयु वर्ग वाले सभी बच्चों को उपयोगी और प्रासंगिक प्राथमिक
शिक्षा उपलब्ध कराना है।
(3) मध्याह्न भोजन योजना-नामांकन बढ़ाने, उन्हें बनाए रखने और उपस्थिति के साथ-साथ बच्चों के बीच पोषण स्तर सुधारने के दृष्टिकोण के साथ प्राथमिक शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पोषण सहयोग कार्यक्रम 15 अगस्त, 1995 से शुरू किया गया।
(4) राष्ट्रीय साक्षरता मिशन-राष्ट्रीय साक्षरता मिशन की स्थापना मई 1998 में की गई थी। इसका उद्देश्य 15 से 35 वर्ष तक के आयु वर्ग के निरक्षर लोगों को व्यावहारिक साक्षरता प्रदान करते हुए 75 प्रतिशत साक्षरता का लक्ष्य हासिल करना है। निरक्षरता उन्मूलन के लिए सम्पूर्ण साक्षरता अभियान ही राष्ट्रीय साक्षरता मिशन की मुख्य अवधारणा है।
(5) प्रारम्भिक शिक्षा कोष-बुनियादी शिक्षा की गुणवत्ता हेतु सरकार की वित्तीय सहायता के लिए वित्त अधिनियम, 2004 के द्वारा सभी प्रमुख केन्द्रीय करों पर दो प्रतिशत शिक्षा उप-कर लगाया गया। प्रारम्भिक शिक्षा कोष का उपयोग विशेष रूप से सर्वशिक्षा अभियान के लिए किया जाता है।

प्रश्न 4. भारत में निम्न स्तर के स्वास्थ्य के कारण लिखिए।
उत्तर-
भारत में निम्न स्तर के स्वास्थ्य के कारण
(1) जनसंख्या में वृद्धि-भारत में जनसंख्या वृद्धि के कारण लोगों के जीवन स्तर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। जनसंख्या तेजी से बढ़ने के कारण शहरों व बस्तियों में भीड़-भाड़ तथा गन्दगी का साम्राज्य फैल रहा है, जिसका स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
(2) निर्धनता-भारत की जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन कर रहा है। जिसके कारण अधिकांश व्यक्तियों की कुछ न्यूनतम आवश्यकताएँ; जैसे- भोजन, वस्त्र तथा आवास भी अपूर्ण रह जाती हैं। इस प्रकार, भारत में जनसंख्या का
एक बड़ा भाग अपने जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पाता। इसके परिणामस्वरूप, देश के निवासियों के स्वास्थ्य का स्तर अत्यन्त निम्न है।
(3) असन्तुलित आहार-अपौष्टिक तथा असन्तुलित आहार ग्रहण करने के कारण लोगों की रोग प्रतिरोधी शक्ति का स्तर भी अत्यन्त निम्न है, जिससे लोग विभिन्न बीमारियों के
शीघ्र ही शिकार हो जाते हैं।
(4) जन-स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सम्बन्धी सुविधाओं का अभाव- भारत के विस्तृत क्षेत्र एवं यहाँ की जनसंख्या के आकार की दृष्टि से यहाँ स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सुविधाओं का अभाव है।
(5) शिक्षा का निम्न स्तर-भारत में आज भी अशिक्षित व्यक्तियों का प्रतिशत बहुत अधिक है। अशिक्षा के कारण लोगों को विभिन्न बीमारियों के सम्बन्ध में सामान्य ज्ञान, कारण तथा उपचार की जानकारी नहीं है। सामान्यतया, लोग सन्तुलित आहार की अवधारणा से परिचित नहीं हैं। इस प्रकार, अशिक्षा निम्न स्तर के स्वास्थ्य का एक प्रमुख कारण है।

प्रश्न 5. सरकार द्वारा शिक्षा में सुधार हेतु किये गये निम्न उपायों को लागू करने की केवल तिथि तथा उनका केवल एक उद्देश्य दीजिए-
(i) राष्ट्रीय शिक्षा नीति, (ii) मध्याह्न भोजन कार्यक्रम, (ii) ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड योजना, (iv) सर्वशिक्षा अभियान, (v) राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा मिशन, (vi) कस्तूरबा
गाँधी बालिका विद्यालय।
उत्तर-(i) राष्ट्रीय शिक्षा नीति-सरकार ने सन 1986 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनायो और इसमें शिक्षा क्षेत्र के विकास हेतु अनेक उपायों की घोषणा की गयी।
(ii) मध्याह्न भोजन कार्यक्रम-दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 3 का उत्तर देखें।
(iii) ऑपरेशन ब्लैक बोर्ड योजना-1987-88 में प्रारम्भ की गई इस योजना में प्रत्येक प्राथमिक विद्यालय में न्यूनतम सुविधाओं के प्रावधान की व्यवस्था की गई थी।
(iv) सर्व शिक्षा अभियान-दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 3 का उत्तर देखें।
(v) राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा मिशन-इस योजना की माध्यमिक शिक्षा तक पहुँच बढ़ाने और इसकी गुणवत्ता में सुधार करने के उद्देश्य के साथ मार्च 2009 में शुरू किया गया था।
(vi) कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय-यह योजना 2004-05 में प्रारम्भ की गई। इसके अन्तर्गत, एस. सी., एस. टी. ओ., ओ. बी. सी., मुस्लिम समुदाय और गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली लड़कियों के लिए आवासीय उच्च प्राथमिक स्कूल हैं।

प्रश्न 6. आर्थिक विकास से क्या आशय है ? इसकी प्रमुख विशेषताओं को स्पष्ट
कीजिए।
अथवा
आर्थिक विकास की पाँच विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-आर्थिक विकास से आशय-अति लघु उत्तरीय प्रश्न 13 देखें।
आर्थिक विकास की विशेषताएँ आर्थिक विकास की विशेषताओं को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) निरन्तर प्रक्रिया-आर्थिक विकास एक निरन्तर प्रक्रिया है, जिसका आशय कुछ विशेष प्रकार की शक्तियों के निरन्तर कार्यशील रहने के रूप में लगाया जाता है। इन शक्तियों
के निरन्तर गतिशील रहने के कारण आर्थिक घटकों में सदैव परिवर्तन होते रहते हैं। परिवर्तन की यही प्रक्रिया अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में परिवर्तन लाती है, जिससे अन्त में अर्थव्यवस्था की राष्ट्रीय आय बढ़ जाती है। राष्ट्रीय आय में होने वाली यह वृद्धि समय के साथ-साथ जनसंख्या वृद्धि से अधिक होनी चाहिए। यदि जनसंख्या वृद्धि राष्ट्रीय आय वृद्धि से अधिक या बराबर है, तो ऐसी दशा में आर्थिक विकास ‘निरन्तर प्रक्रिया’ नहीं कहलायेगी।
(2) वास्तविक राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि-आर्थिक विकास की निरन्तर प्रक्रिया में वास्तविक राष्ट्रीय आय में वृद्धि होनी चाहिए। इसके दो अर्थ हैं- पहला तो यह है कि कुल उत्पादन तथा कुल राष्ट्रीय आय की वृद्धि के साथ-साथ प्रति व्यक्ति आय भी
बढ़नी चाहिए और यह वृद्धि निरन्तर हो। दूसरे, वास्तविक रूप में राष्ट्रीय आय का बढ़ना लोगों के रहन-सहन के स्तर में निरन्तर वृद्धि का सूचक है। इस रूप में, राष्ट्रीय आय के वास्तविक रूप का सम्बन्ध अर्थव्यवस्था के सामान्य मूल्य स्तर से है। जब मूल्य स्तर में होने वाली वृद्धि राष्ट्रीय आय में होने वाली वृद्धि से कम होती है, तो लोग अपनी बढ़ी हुई प्रति व्यक्ति आय का उपयोग अधिक वस्तुओं व सेवाओं को प्राप्त करने में करते हैं जिससे उनका रहन-सहन का स्तर बढ़ जाता है।
(3) दीर्घकालीन अथवा निरन्तर वृद्धि-आर्थिक विकास की निरन्तर प्रक्रिया में वास्तविक राष्ट्रीय आय में निरन्तर वृद्धि होनी चाहिए। इस वृद्धि का सम्बन्ध दीर्घकाल से है, जिसमें कम से कम 15-20 वर्षों का समय लगता है। आर्थिक विकास का सम्बन्ध अल्पकाल या एक या दो वर्षों में होने वाले परिवर्तनों से नहीं है। इसलिए अगर किसी अर्थव्यवस्था में किन्हीं अस्थायी कारणों से देश की आर्थिक स्थिति में सुधार हो जाता है; जैसे-अच्छी फसल,
अप्रत्याशित निर्यात आदि का होना, तो इसे आर्थिक विकास नहीं समझना चाहिए।
(4) तकनीकी अवधारणा-विकास एक तकनीकी अवधारणा है जिसका आशय उत्पादन तकनीक में सुधार से है। यह सुधार प्रशिक्षित एवं कुशल श्रम के रूप में, श्रम-प्रधान-तकनीक के ऊपर पूँजी-प्रधान-तकनीक के रूप में, नव-प्रवर्तनों (या नवीन
खोजों) एवं अनुसन्धानों के रूप में, जीवन-स्तर (रहन-सहन का स्तर) में वैज्ञानिक बढ़ावा देने के रूप में हो सकता है।
को
(5) उच्च जीवन स्तर की प्राप्ति-आर्थिक विकास का आशय एक अच्छे जीवन तथा उच्च जीवन स्तर को प्राप्त करने से है और इसका सम्बन्ध ‘मानवीय विकास’ तथा मानवीय कल्याण से है। इस तरह, आर्थिक विकास का अर्थ जीवन के ऊँचे मूल्यों को प्राप्त करने से है तथा अर्थव्यवस्था में बहुत सी ऐसी आधारभूत बातों को उत्पन्न करने से है जिसका उपयोग अधिकांश लोग कर सकें।

प्रश्न 7. ‘आर्थिक विकास के सूचकों’ पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
आर्थिक विकास से क्या आशय है ? आर्थिक विकास के सूचकांकों की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
|संकेत-आर्थिक विकास का आशय-अति लघु उत्तरीय प्रश्न 13 देखें।
आर्थिक विकास के अभिसूचक
उत्तर-
आर्थिक विकास का मापदण्ड आर्थिक विकास एक तुलनात्मक शब्द है। इसका सम्बन्ध एक विशेष समय से न होकर दीर्घकालीन परिस्थितियों के साथ है। इसलिए आर्थिक विकास की एक निश्चित माप करना बहुत कठिन है। यही कारण है कि आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने आर्थिक विकास के कई मापदण्ड बताये हैं, जिनमें से मुख्य निम्नलिखित हैं-
(1) राष्ट्रीय आय, (2) प्रति व्यक्ति आय, (3) आर्थिक कल्याण, तथा (4) सामाजिक अभिसूचक।
इसमें राष्ट्रीय आय को GNP, प्रति व्यक्ति आय को GNP per capita, आर्थिक कल्याण को ‘उपभोग एवं जीवन स्तर’ तथा सामाजिक अभिसूचक को ‘मानव विकास सूचक’ (Human
Development Index-HDI) के रूप में विकासवादी अर्थशास्त्री प्रस्तुत करते हैं। इनमें से किसी भी मापदण्ड को सर्वश्रेष्ठ (अभिसूचक) नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इन सभी मापकों
(मापदण्डों) के अपने-अपने गुण-दोष हैं। यदि ‘राष्ट्रीय आय’ और आर्थिक कल्याण’ मापकों या कसौटियों को विकसित अर्थव्यवस्था से सम्बद्ध किया जाए तथा ‘प्रति व्यक्ति आय’ और ‘सामाजिक अभिसूचक’ मापकों को अल्पविकसित अर्थव्यवस्था से सम्बद्ध किया जाए, तो इसे उचित ही कहा जायेगा, क्योंकि विकसित देश अधिक आय, अधिक उपभोग की समस्या से जुड़े हैं तो अल्पविकसित राष्ट्रों की समस्या कम आय, कम उपभोग की समस्या है। विकास की समस्या मुख्य रूप से अल्पविकसित राष्ट्रों के विकास की समस्या से सम्बन्धित है। इन राष्ट्रों में ‘मानव विकास’ का लाभ ‘सामाजिक सूचक’ के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है, किन्तु इसका लाभ (1) निर्धन वर्ग के लिए, एवं (ii) दीर्घकाल में प्राप्त होता है। उदाहरण के लिए, यह अवधि 100 वर्ष भी हो सकती है, ऐसा सुझाव संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम’ (UNDP) का है। इससे कम अवधि में, उदाहरण के लिए, 40-50 वर्षों में, यही लाभ प्रति व्यक्ति आय से प्राप्त किया जा सकता है। इसके अलावा, प्रति व्यक्ति आय, आर्थिक विकास का एक सरल-मापक है। अर्थशास्त्रियों की राय में प्रति व्यक्ति वास्तविक आय
(GNP per capita) आर्थिक विकास का एक उपयुक्त एक श्रेष्ठ अभिसूचक या मापदण्ड है।

प्रश्न 8. आर्थिक विकास एवं आर्थिक संवृद्धि में अन्तर लिखिए।
अथवा
आर्थिक विकास की परिभाषा दीजिए एवं आर्थिक विकास तथा आर्थिक संवृद्धि में कोई चार अन्तर कीजिए।
उत्तर-
संकेत : आर्थिक विकास की परिभाषा हेतु लघु उत्तरीय प्रश्न 9 का उत्तर देखें। आर्थिक संवृद्धि एवं आर्थिक विकास में अन्तर
सामान्यत: आर्थिक संवृद्धि एवं आर्थिक विकास में कोई अन्तर नहीं माना जाता है और दोनों शब्दों को एक-दूसरे के पर्यायवाची के रूप में प्रयोग करते हैं। किन्तु शुम्पीटर, एल्फ्रेड बोनी, श्रीमती उसुला हिक्स, ब्राइट सिंह आदि ने आर्थिक संवृद्धि एवं आर्थिक विकास में अन्तर स्पष्ट किया है। आर्थिक संवृद्धि एवं आर्थिक विकास में अन्तर को निम्न प्रकार स्पष्ट कर सकते हैं- का सम्बन्ध पूजी से है। आय से पूँजी प्राप्त की जा सकती है और इस पूँजी से आय को। अत:
(1) ‘संवृद्धि’ की अवधारणा का सम्बन्ध ‘आय’ से है किन्तु विकास की अवधारणा संवृद्धि विकास की धुरी है।
(2) प्रो. शुम्पीटर के अनुसार, “आर्थिक विकास एक स्थिर अवस्था या अर्थव्यवस्था में हविरल तथा स्वत: परिवर्तनों से सम्बन्धित है जो कि सदा वर्तमान सन्तुलन को भंग करता रहता है, जबकि संवृद्धि उत्तरोत्तर तथा सतत् परिवर्तनों से सम्बन्धित है जो कि दीर्घकाल में बचतों, पूँजी तथा जनसंख्या आदि संसाधनों में परिवर्तनों के परिणामस्वरूप होती है।”
(3) विकास का आशय अर्थव्यवस्था में कुल मिलाकर परिवर्तन से है जिसमें संस्थागत, ढाँचागत, भौतिक, अभौतिक सभी परिवर्तन सम्मिलित करते हैं। इस सम्बन्ध में श्रीमती उर्सला हिक्स (Ursula Hicks) के अनुसार, “आर्थिक विकास का सम्बन्ध अर्द्धविकसित देशों से है, जबकि आर्थिक संवृद्धि का सम्बन्ध विकसित देशों से है।”
(4) संवृद्धि का आधार ‘आय’ और विकास का आधार ‘पूँजी’ है। दूसरों शब्दों में, आय-वृद्धि ‘संवृद्धि’ के लिए उपयोगी है तथा पूँजी-वृद्धि ‘विकास’ के लिए उपयोगी है। संवृद्धि के लिए उपयोगी आय (या राष्ट्रीय आय) प्रवाह (Flow) अवधारणा है, किन्तु पूँजी
एक ‘स्टॉक’ अवधारणा है।
(5) विकास का महत्व गुणात्मक तथा मात्रात्मक दोनों है, किन्तु संवृद्धि का महत्व केवल मात्रात्मक है। अत: किसी देश की जनसंख्या कुल आय, सकल राष्ट्रीय उत्पाद, प्रति व्यक्ति आय, उपभोग, विनियोग, बचत या विदेशी व्यापार किसी अवधि में मात्रात्मक रूप से बढ़े, तो इसे संवृद्धि कहेंगे।
(6) आर्थिक संवृद्धि का आशय अधिक उत्पादन तथा अधिक आय से है, जबकि आर्थिक विकास का सम्बन्ध अधिक उत्पादन तथा साथ-साथ संस्थागत प्रबन्धों एवं संरचनात्मक परिवर्तनों से है जिसके आधार पर राष्ट्रीय आय में वृद्धि सम्भव होती है। आर्थिक विकास आर्थिक संवृद्धि के साथ-साथ अर्थव्यवस्था के संरचनात्मक परिवर्तनों से सम्बद्ध है। आर्थिक विकास एक विस्तृत अवधारणा है, जबकि आर्थिक संवृद्धि कुछ अंश तक उसका एक भाग है।
अन्त में, यह कहा जा सकता है कि संवृद्धि और विकास एक-दूसरे से जुड़ी अवधारणाएँ हैं। संवृद्धि और विकास साथ-साथ चलते हैं। दोनों अवधारणाएँ एक-दूसरे की घटक (Complementary) हैं। एक के बिना दूसरे का औचित्य सिद्ध नहीं किया जा सकता। सम्भवतः यही कारण है कि दोनों शब्दों को पर्यायवाची मानते हुए एक ही अर्थ में प्रयुक्त किया जाता है।

प्रश्न 9. आर्थिक विकास को निर्धारित करने वाले आर्थिक एवं अनार्थिक तत्वों को लिखिए।
अथवा
आर्थिक विकास के घटक बताइए।
अथवा
आर्थिक विकास को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारणों को बताइए।
उत्तर—आर्थिक विकास को प्रभावित करने वाले तत्वों को दो भागों में बाँटा जा सकता
है-(अ) आर्थिक तत्व, तथा (ब) अनार्थिक तत्व।
(अ) आर्थिक तत्व
(1) प्राकृतिक साधन-किसी भी राष्ट्र का आर्थिक विकास राष्ट्र के प्राकृतिक साधनों; जैसे- भौगोलिक स्थिति, खनिज सम्पदा, जलवायु, वन सम्पदा; आदि पर निर्भर करता है। आम तौर पर, यह बात स्वीकार की जा चुकी है कि अन्य बातों के समान रहने पर जिस राष्ट्र के पास प्राकृतिक साधन जितने अधिक होंगे, उस राष्ट्र का विकास उतना ही तीव्र गति से होगा। कुछ विद्वानों का विचार है कि यह सोच लेना भयंकर भूल होगी कि जिस राष्ट्र में जितने अधिक प्राकृतिक साधन होंगे, उस राष्ट्र का विकास उतना ही अधिक होगा। आर्थिक विकास के लिए प्राकृतिक साधनों की केवल बहुलता ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उनका उचित ढंग से
विदोहन किया जाना अधिक आवश्यक है।
(2) मानवीय साधन-आधुनिक आर्थिक वृद्धि में मानवीय साधनों का अभूतपूर्व योगदान है। यह जनसंख्या में वृद्धि एवं श्रम-शक्ति की कुशलता के फलस्वरूप है। प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि का मुख्य कारण मानवीय साधनों का विकास माना गया है, जो कि श्रम-शक्ति की कुशलता में निहित है, किन्तु एक अल्पविकसित राष्ट्र में तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या आर्थिक विकास के मार्ग में बहुत बड़ी बाधा है। अत: इन राष्ट्रों में श्रम की उत्पादकता कम होती है।
(3) पूँजी निर्माण-आर्थिक विकास का एक महत्त्वपूर्ण निर्धारक पूँजी निर्माण है। पूँजी निर्माण की दर में वृद्धि करना आवश्यक है, जिससे समाज मशीनों, औजारों तथा उपकरणों का भारी स्टॉक एकत्र कर सके जिसे उत्पादन कार्य में लगाया जा सके। केवल इतना ही नहीं, पूँजी निर्माण के लिए कौशल निर्माण (Skill Formation) की आवश्यकता होती है, ताकि उत्पन्न किए गए भौतिक पूँजी-उपकरणों का प्रयोग किया जा सके जिससे समाज की उत्पादकता में वृद्धि होगी।
(4) व्यावसायिक ढाँचा-एक और कारण, जो कि आर्थिक विकास को निर्धारित करता है और स्वयं आर्थिक विकास द्वारा निर्धारित होता है, व्यावसायिक ढाँचा है। व्यावसायिक ढाँचे से आशय है, “किसी देश में कार्यशील जनसंख्या का विभिन्न उत्पादन क्रियाओं में वितरण करना।” व्यावसायिक ढाँचा तीन भागों में बाँटा जा सकता है। प्रथम के अन्तर्गत, व्यवसाय प्रकृति की सहायता से चलाये जाते हैं। इसके अन्तर्गत, मछली पालन, खेती करना इत्यादि सम्मिलित हैं। द्वितीय व्यवसाय के अन्तर्गत, कच्चे माल सम्बन्धी एवं जनता उपयोगी सेवाओं से सम्बन्धित व्यवसाय सम्मिलित किये जाते हैं। तृतीय व्यवसाय के अन्तर्गत, शेष समस्त व्यवसाय सम्मिलित किये जाते हैं; लोक-प्रशासन से सम्बन्धित, मनोरंजन के साधनों व यातायात के साधनों से सम्बन्धित व्यवसाय इत्यादि।
(5) तकनीक-किसी राष्ट्र के आर्थिक विकास पर तकनीक का प्रभाव पड़ता है। यहाँ पर, तकनीक से तात्पर्य नयी वस्तुओं के उत्पादन से है। जिस राष्ट्र में वैज्ञानिक प्रगति तीव्र गति से होती है, उस राष्ट्र के बाजार में नयी-नयी वस्तुएँ उपलब्ध होती हैं, जिससे श्रम आधारिक संरचना और सतत् पोषणीय आर्थिक विकास 177
का आर्थिक विकास होता है। की उत्पादकता में वृद्धि हो जाती है। उत्पादन लागत कम होती है। इन सबके फलस्वरूप राष्ट्र
(ब) अनार्थिक तत्व
(1) सामाजिक घटक-किसी देश के आर्थिक विकास के लिए उसके देशवासियों की इच्छा एवं तत्परता भी अनिवार्य है। वातावरण एवं सामाजिक संरचना भी इसके लिए महत्वपूर्ण है। जनता को अपने प्रयासों एवं श्रम का पूरा-पूरा प्रतिफल मिलना चाहिए। भारत में जमींदारी प्रथा ने किसानों का शोषण किया है। अल्पविकसित देशों में निम्न तथ्य आर्थिक विकास के मार्ग में बाधक होते हैं-जाति प्रथा, भूमि वितरण, संयुक्त परिवार उत्तराधिकार के नियम। इन सभी में परिवर्तन होना चाहिए।
(2) धार्मिक घटक-धार्मिक भावनाओं का राष्ट्र के आर्थिक विकास पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। धार्मिक संस्थाएँ अल्पविकसित राष्ट्रों की मन्द प्रगति के लिए विशेषकर उत्तरदायी हैं। जिस देश के नागरिक धार्मिक आस्था के कारण बहुत सारा समय धार्मिक क्रिया-कलापों में लगाते हों, वहाँ आर्थिक विकास अवरुद्ध हो जाता है और विकसित राष्ट्रों की तुलना में पिछड़ जाता है।
(3) राजनैतिक घटक-राजनैतिक घटक भी राष्ट्र के आर्थिक विकास को प्रभावित करते हैं। शासन में जितनी अधिक आर्थिक स्थिरता होगी, जनता का उतना की अधिक विश्वास सरकार में होगा, विकास की दीर्घकालीन योजनाएँ उतनी ही अधिक सफलता व कुशलता के साथ कार्यान्वित की जा सकेंगी। इससे आर्थिक विकास में गति आयेगी तथा जनता का अधिकतम आर्थिक व सामाजिक सुधार होगा। कोई भी राष्ट्र कुशल प्रशासन के प्रयासों के बिना आर्थिक विकास नहीं कर सकता है। राजनीतिक नीतियाँ वर्तमान आर्थिक वृद्धि में बहुत उपयोगी सिद्ध हुई हैं।

प्रश्न 10. आर्थिक विकास की आवश्यकता एवं महत्व लिखिए।
अथवा
आर्थिक विकास का महत्व बताइए।
उत्तर- आर्थिक विकास की आवश्यकता एवं महत्व
किसी राष्ट्र का आर्थिक विकास का महत्व निम्न बातों में निहित है-
(1) आर्थिक उपलब्धियाँ-आर्थिक विकास की प्रक्रिया के फलस्वरूप अर्थव्यवस्था को अनेक आर्थिक लाभ प्राप्त होते हैं; जैसे-राष्ट्रीय उत्पादन में वृद्धि, पूँजी निर्माण, व्यापार चक्रों से मुक्ति अर्थात् आर्थिक स्थायित्व, उत्पत्ति के साधनों का न्यायपूर्ण एवं सर्वोपयुक्त वितरण, प्रतिस्पर्धा सम्बन्धी अपव्ययों पर रोक, राष्ट्रीय आय का उचित वितरण और प्राकृतिक साधनों का पूर्ण विदोहन आदि।
(2) आर्थिक विषमता में कमी-सामाजिक न्याय की दृष्टि से आर्थिक विषमता की उपस्थिति अनुचित मानी जाती है। नियोजित आर्थिक विकास का मुख्य लक्ष्य ही होता है, आर्थिक विषमता को समाप्त करना। इस प्रकार, आर्थिक विकास से धन का वितरण समान व न्यायपूर्ण ढंग से सम्भव हो पाता है।
(3) रोजगार के अवसरों में वृद्धि-आर्थिक विकास की प्रक्रिया में राष्ट्र में संरचनात्मक उद्योगों का व्यापक विस्तार एवं विकास होता है, जिससे जनता को रोजगार के अच्छे अवसर प्राप्त होने लगते हैं व बेरोजगारी की समस्या का समाधान होने लगता है।
(4) प्राकृतिक आपदाओं पर नियन्त्रण-प्राचीनकाल में मानव को प्राकृतिक आपदाओं; जैसे-बाढ़, सूखा, महामारी, भूकम्प आदि का सामना करना पड़ता था, लेकिन अब आर्थिक विकास के परिणामस्वरूप मनुष्य ने अनेक आपदाओं पर विजय प्राप्त की है।
(5) जीवन-स्तर में सुधार एवं निर्धनता उन्मूलन में सहायता-आर्थिक विकास की प्रक्रिया में राष्ट्रीय आय में वृद्धि के साथ-साथ लोगों की मौद्रिक आय में वृद्धि हो जाती है, जिससे उनकी क्रय शक्ति बढ़ती है और रहन-सहन के स्तर में सुधार होता है, लोग अधिक आरामदायक जीवन-यापन करते हैं।

प्रश्न 11. पर्यावरणीय ह्रास से क्या आशय है ? इसका अर्थव्यवस्था तथा मानव
जीवन स्तर पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-पर्यावरणीय ह्रास का आशय-दोहन, विनिर्माण, परिवहन प्रसंस्करण उपभोग एवं नियमन जैसी क्रियाओं के उपरान्त जब पर्यावरणीय साधनों की निरन्तरता एवं गुणवत्ता में कमी होती है, तो उसे पर्यावरणीय हस कहा जाता है। पर्यावरणीय ह्यस अर्थव्यवस्था एवं मानव जीवन दोनों पर बुरा प्रभाव डालता है।
पर्यावरणीय ह्रास के प्रभाव- लघु उत्तरीय प्रश्न 12 का उत्तर देखें।

प्रश्न 12. सतत् आर्थिक विकास से क्या आशय है ? सतत् आर्थिक विकास हेतु उपाय संक्षेप में बताइए।
अथवा
संधृतशील विकास की शर्तों का वर्णन कीजिए।
अथवा
संधृतशील या सतत् आर्थिक विकास हेतु कोई चार उपाय सुझाइए।
उत्तर- सतत् विकास (या संधृतशील विकास) का अर्थ
संधृतशील विकास से आशय ऐसे विकास से है जिसमें वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को पूरा करते हुए भावी पीढ़ियों की आवश्यकताओं एवं हितों पर समुचित ध्यान दिया जाता है। विकास प्राथमिकताएँ निर्धारित करते समय यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि इसका भावी पीढ़ी की अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। यह क्षमता प्रमुख रूप से मानव-पूँजी एवं मानव निर्मित भौतिक पूँजी के संचयन द्वारा निर्धारित होती है। ब्रूनलैण्ड रिपोर्ट ‘आवर कॉमन फ्यूचर'(1987) [Brunland Report Our Common Future’ (1987)] में पोषणीय विकास को परिभाषित करते हुए कहा गया है-
“संधृतशील विकास वर्तमान पीढ़ी द्वारा भावी पीढ़ियों की आवश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता से किसी प्रकार का समझौता किए बिना, अपनी अपेक्षाओं और आवश्यकताओं को
पूरा करने की पहल है।” सतत् या संधृतशील विकास हेतु निम्नलिखित रणनीति अपनायी जानी चाहिए-
(1) जैविक खेती को बढ़ावा देना ताकि मृदा में रसायनों की मिलावट को समाप्त किया जा सके।
(2) बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण कराना तथा वनों व वनस्पति को संरक्षित करना।
(3) सतही जल एवं भूमिगत जल संसाधनों का सन्तुलित एवं न्यायोचित उपयोग।
(4) भूमिगत जल स्रोतों को पुनः पूर्ति हेतु स्वच्छ एवं मीठे सतही जल का उपयोग।
(ड) सतही एवं भूमिगत जल स्रोतों को कारखानों, विद्युत् गृहों, परमाणु ऊर्जा संयन्त्रों, चीनी कारखानों से निकलने वाले जहरीले रसायनों से युक्त कचरे के प्रदूषण से बचाना।
(6) वर्षा जल का संग्रह करना एवं भूमि की ऊपरी सतह की नमी को बनाए रखने के लिए वैज्ञानिक एवं कम लागत के तरीके अपनाना।

प्रश्न 13. पर्यावरणिक क्षति के क्या कारण हैं ? सरकार की इसे कम करने हेतु क्या भूमिका है ?
उत्तर-पर्यावरणिक क्षति के प्रमुख कारण-औद्योगीकरण, परिवहन, कृषि विकास हेतु जल व भूमि का अत्यधिक दोहन, बढ़ती जनसंख्या, निर्धनता, शहरीकरण, अप्रभावी कानून । पर्यावरणिक क्षति को नियन्त्रित करने में सरकार की भूमिका सरकार का चौथी पंचवर्षीय योजना में पर्यावरण से सम्बन्धित समस्याओं पर सीधा ध्यान गया और इन समस्याओं का अध्ययन करने तथा विशेषज्ञों और सरकार के सम्बद्ध मन्त्रालयों विभागों के परामर्श से समाधान सुझाने के लिए सन् 1972 में एक समिति गठित की गयी। सन् 1985 में पर्यावरण और वानिकी कार्यक्रमों के आयोजन के लिए प्रशासनिक ढाँचे में केन्द्रीय बिन्दु की तरह कार्य करने के लिए पर्यावरण और वन मन्त्रालय की स्थापना की गयी।
वनस्पति जीव-जन्तुओं, वनों और वन्य जीवन का संरक्षण और सर्वेक्षण, प्रदूषण की रोकथाम व नियन्त्रण, वनीकरण और बंजर क्षेत्रों को फिर से हरा-भरा बनाना और पर्यावरण की रक्षा करना इस मन्त्रालय का उत्तरदायित्व है। इन उद्देश्यों के लिए कानूनी व विनियामक उपायों की व्यवस्था है, जिनका उद्देश्य पर्यावरण का संरक्षण और परिरक्षण है। कुछ उपाय हैं-वायु (प्रदूषण निवारक एवं नियन्त्रण) अधिनियम, 1981; जल (प्रदूषण निवारण एवं नियन्त्रण अधिनियम), 1986; जन-दायित्व बीमा अधिनियम, 1991; राष्ट्रीय पर्यावरण न्यायाधिकरण अधिनियम, 1995; राष्ट्रीय पर्यावरण प्राधिकरण अधिनियम, 1997; वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम, 1972; तथा वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980। विधायी उपायों के अतिरिक्त, राष्ट्रीय संरक्षण रणनीति तथा पर्यावरण एवं विकास सम्बन्धी नीतिगत वक्तव्य, 1992; राष्ट्रीय वन नीति, 1988 और प्रदूषण उपशमन नीतिगत वक्तव्य, 1992 भी तैयार किए गए हैं। शोध व प्रशिक्षण केन्द्र-भारत में पर्यावरण सम्बन्धी शोध और प्रशिक्षण के ढाँचे को सुदृढ़ बनाने के लिए ‘उत्कर्ष केन्द्र’ स्थापित किए गए हैं। ये केन्द्र हैं पारिस्थितिकीय विज्ञान केन्द्र, बेंगलुरू; खनन पर्यावरण केन्द्र, धनबाद; पर्यावरण शिक्षा केन्द्र, अहमदाबाद, सी. पी. आर. पर्यावरणीय शिक्षा केन्द्र, चेन्नई और सलीम अली पक्षी विज्ञान एवं प्राकृतिक इतिहास केन्द्र, कोयम्बटूर आदि।

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