अध्याय 2 पुष्पी पादपों में लैंगिक जनन clASS 12TH परीक्षा अध्ययन

अध्याय 2
पुष्पी पादपों में लैंगिक जनन

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहु-विकल्पीय प्रश्न
1. एक परागकोष में 28 पराग मातृ कोशिकाएँ हैं तो इनसे बनने वाले पराग चतुष्क
की संख्या होगी-
(i) 7,
(ii) 28,
(iii) 14,
(v) 112.

2. पराग कण की बाहाभित्ति बनी होती है-
(i) पेक्टोसेल्युलोज से,
(ii) सेल्युलोज से,
(iii) स्पोरोपोलेनिन से,
(iv) लिग्निन से।
3. पेरीस्पर्म (परिभ्रूणपोष) होता है-
(1) भ्रूणपोष का बाहरी भाग,
(ii) द्वितीयक केन्द्रक का विघटित भाग,
(ii) सहायक कोशिकाओं का विघटित भाग,
(iv) बीजाण्डकाय का अवशिष्ट भाग।
4. अध्यावरणों से घिरा हुआ कोशिकाओं का एक पुंज होता है- (2019)
(i) निभाग,
(ii) बीजाण्डकाय,
(iii) भ्रूणकोष,
(iv) बीजाण्ड।
5. सेब में फल का खाद्य भाग है-
(1) मांसल पुष्पक्रम,
(ii) माँसल फलभित्ति,
(iii) माँसल पुष्पासन,
(iv) मीजोकार्प व एण्डोकार्प।
6. त्रिसंलयन के फलस्वरूप विकसित होने वाला बीज का भाग है-
(i) बीजपत्र,
(ii) भ्रूण,
(ii) भ्रूणपोष,
(iv) बीजाण्डकाय
उत्तर-1. (ii), 2. (iii), 3. (iv), 4. (ii), 5. (iii), 6. (iii).

रिक्त स्थान पूर्ति
1. बिना निषेचन के ही बीज (भ्रूण) पैदा करने की प्रक्रिया ………’ कहलाती है।
2. पुष्प को एक रूपान्तरित ……….. के रूप में परिभाषित किया जाता है।
3. परागकोष की सबसे आन्तरिक पर्त ……….” होती है।
4. बिना निषेचन के विकसित होने वाले फलों को कहते हैं। (2020)
5. एक प्रारूपिक आवृतबीजी भ्रूणकोष में …” कोशिकाएँ व केन्द्रक होते हैं।
6. नारियल में खाद्य भाग “””.” होता है।
उत्तर—1. असंगजनन/एपोमिक्सिस, 2. प्ररोह, 3. टेपीटम, 4. अनिषेकजनित (पार्थीनोकार्पिक) फल, 5. सात, आठ, 6, भ्रूणपोष।

सत्य/असत्य
1. घास कुल के पौधों में बीजपत्र को प्रशल्क या स्कूटेलम कहते हैं।
2. एक अण्डाशय में एक बीजाण्ड पाया जाता है।
3. एकलिंगी पुष्पों के संकरण प्रयोग में विपुंसन की आवश्यकता नहीं होती है।
4. मकरन्द व पराग कण फूलों द्वारा परागणकर्ताओं को प्रदत्त पारितोषिक हैं।
उत्तर-1, सत्य, 2. असत्य, 3. सत्य, 4. सत्य।

२ सही जोड़ी बनाइए
1. पुष्पी पादपों की खेती (i) बहुअण्डपी, युक्ताण्डपी स्त्रीकेसर
2. माइकेलिया             (ii) अनुन्मील्य परागणी पुष्प
3. पैपावर                    (iii) बहिःप्रजनन युक्ति
4. कोमेलीना                (iv) बहुअण्डपी, वियुक्ताण्डपी स्त्रीकेसर
5. मटर, मूंगफली         (v) फ्लोरीकल्चर
6. एकलिंगी पुष्प उत्पादन  (vi) गैर-एल्ब्युमिनस बीज
उत्तर-1. → (v), 2. – (iv), 3. → (i), 4. → (ii), 5. → (vi), 6. → (iii).

एक शब्द/वाक्य में उत्तर
1. दो ऐसे पुष्पों के नाम लिखिए जिसमें परागणकर्ता कीट पुष्प को अपने अण्डे देने के स्थल के रूप में भी प्रयोग करता है।
उत्तर (i) एमोकैफेलस, (ii) यक्का।

2. भूणीय अक्ष के चार भागों के नाम लिखिए।
उत्तर—प्रांकुर, बीजपत्रोपरिक, बीजपत्राधार तथा मूलांकुर ।

3. निम्नलिखित शब्दावली को सही विकासीय क्रम में व्यवस्थित कीजिए-
पराग कण, बीजाणुजन ऊतक, लघुबीजाणु चतुष्क, पराग मातृ कोशिका, नर युग्मक।

उत्तर (i) बीजाणुजन ऊतक → (ii) पराग मातृ कोशिका → (iii) लघुबीजाणु
चतुष्क → (iv) पराग कण → (v) नर युग्मक।

4. सहाय कोशिका का कौन-सा भाग बीजाण्ड के भ्रूणकोष में परागनलिका के प्रवेश को निर्देशित करता है ?
उत्तर-तंतुरूप समुच्चय (फिलीफॉर्म अपरेटस)।

5. संघनित पुष्पक्रम, स्पष्ट अनावृत पुंकेसर, पंखवत् वर्तिकान वाले पौधे किस प्रकार के परागण हेतु अनुकूलित हैं ?
उत्तर-वायु परागण।

6. बहुभ्रूणता किसे कहते हैं ?
उत्तर सिट्रस जैसे कुछ आवृतबीजियों के बीजों में एक से अधिक भ्रूण उत्पन्न करने की परिघटना बहुभ्रूणता कहलाती है।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न
युग्मकोद्भिद का विकास होता है।
प्रश्न 1. एक आवृतबीजी पुष्य के उन अंगों के नाम बताइए जहाँ नर एवं मादा उत्तर-नर युग्मकोद्भिद (पराग कण) का विकास पुंकेसर के परागकोष में होता है।
मादा युग्मकोद्भिद (भ्रूणकोष) का विकास अण्डाशय में स्थित बीजाण्ड के बीजाण्डकाय (nucellus) भाग में होता है।

प्रश्न 2. सेब को आभासी फल क्यों कहते हैं? पुष्प का कौन-सा भाग फल की रचना करता है?
उत्तर-पुष्प का अण्डाशय ही निषेचन के बाद फल की रचना करता है। अण्डाशय के अतिरिक्त जब अन्य भाग; जैसे-पुष्पासन, पुष्पक्रम आदि भी फल निर्माण में भाग लेते हैं तब ऐसे फल आभासी फल या असत्य फल कहलाते हैं। सेब में पुष्प का पुष्पासन माँसल होकर फल का प्रमुख खाद्य भाग बनाता है अत: सेब को आभासी फल कहा जाता

प्रश्न 3. यदि कोई व्यक्ति वृद्धि कारकों का प्रयोग करते हुए अनिषेकजनन को प्रेरित करता है तब आप प्रेरित अनिषेकजनन के लिए कौन से फल चुनते हैं और क्यों?
उत्तर—अनिषेकजनन द्वारा बने फल, निषेचन के अभाव के कारण बीज रहित होते हैं। प्रेरित अनिषेकजनन निम्न फलों में उपयोगी रहता है-
(1) ऐसे फल जिनमें बीजों का कोई आर्थिक/पोषक महत्व नहीं होता।
(ii) जिनमें बीज, फलों के खाने में बाधा बनते हैं व फल की गुणवत्ता कम कर देते हैं।
जैसे-केला, तरबूज, संतरा आदि।
कुछ फलों; जैसे-अनार, लीची आदि में बीज ही फल का प्रमुख खाद्य भाग बनाते हैं, अत: इनमें अनिषेकजनक हानिकारक होता है।

प्रश्न 4. पराग कण भित्ति की रचना में टेपीटम की भूमिका की व्याख्या कीजिए।
उत्तर—टेपीटम, परागकोष या लघुबीजाणुधानी की सबसे भीतरी पोषक पर्त बनाता है। टेपीटम पराग कणों की बाह्य भित्ति पर एक तैलीय पर्त लगाता है। स्पोरोपोलेनिन जैसे प्रतिरोधी पदार्थ के निर्माण में भी इसकी प्रमुख भूमिका है। कीट परागित पुष्पों के कणों की पोलेन
किट का निर्माण भी टेपीटम द्वारा होता है।

प्रश्न 5. पुष्पी पादपों के लिए बीज निर्माण का क्या जैविक महत्व है ?
उत्तर-(1) बीज निर्माण निषेचन के लिए बाह्य जल की अनिवार्यता समाप्त कर देता है, अत: यह विशिष्ट स्थलीय अनुकूलन है।
(ii) बीज प्रकीर्णन में मदद कर पौधे के नये आवासों में पहुँच बनाते हैं।
(iii) बीज में संचित खाद्य पदार्थ नवांकुर को तब तक पोषकों की आपूर्ति जारी रखता है जब तक पादप स्वयं प्रकाश-सश्लेषण द्वारा भोजन निर्माण प्रारम्भ नहीं कर देता।

प्रश्न 6. एक परिपक्व पराग कण की काट का नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर-

चित्र 2.1. एक परिपक्व पराग कण
प्रश्न 7. पुष्पी पौधों के अनिषेचित भ्रूणकोष के अन्दर स्थित सभी कोशिकाओं के नाम लिखिए। इसमें कोशिकाओं की कुल संख्या लिखिए।
उत्तर—एक अण्ड कोशिका तथा दो सहाय कोशिकाएँ (अण्ड उपकरण), तीन प्रतिमुखी कोशिकाएँ, केन्द्रीय कोशिका जिसमें दो ध्रुवीय केन्द्रक होते हैं। अतः भ्रूणकोष में कुल 7 कोशिकाएँ व 8 केन्द्रक होते हैं।

प्रश्न 8, स्व-परागण व पर-परागण में अंतर लिखिए।
(2019, 20)
उत्तर-
स्व-परागण व पर-परागण में अन्तर

लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. त्रिसंलयन क्या है ? यह कहाँ और कैसे सम्पन्न होता है ? त्रिसंलयन में सम्मिलित केन्द्रकों के नाम बताइए।
उत्तर त्रिसंलयन (triple fusion) आवृतबीजियों द्वारा प्रदर्शित विशिष्ट परिघटना द्विनिषेचन का एक चरण है। इस घटना में तीन अगुणित केन्द्रकों का संलयन होता है अत: यह त्रिसंलयन कहलाती है। त्रिसंलयन बीजाण्ड में स्थित भ्रूणकोष (embryo sac) में सम्पन्न होता है। पराग नलिका भ्रूणकोष में प्रवेश के बाद दो नर युग्मक उसमें मुक्त करती है। इनमें से एक नर युग्मक भ्रूणकोष की केन्द्रीय कोशिका में स्थित दो ध्रुवीय केन्द्रकों से संलयित हो जाता है। इस प्रकार तीन केन्द्रकों के संलयन से प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक (Primary endosperm nucleus) का निर्माण होता है जो त्रिगुणित होता है।
1 नर युग्मक + 2 ध्रुवीय केन्द्रक = त्रिगुणित प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक।

प्रश्न 2. आप मादा युग्मकोद्भिद के एक बीजाणुक विकास से क्या समझते
उत्तर—गुरुबीजाणु मातृ कोशिका में हुए अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा चार अगुणित गुरुबीजाणुओं का निर्माण होता है। इन गुरुबीजाणुओं में सबसे नीचे वाला केवल एक क्रियाशील रहता है व तीन अपघटित हो जाते हैं। यह क्रियाशील गुरुबीजाणु तीन समसूत्री विभाजनों द्वारा
8 केन्द्रकीय भ्रूणकोष का निर्माण करता है। चूँकि भ्रूणकोष के विकास में केवल एक ही गुरुबीजाणु भाग लेता है अत: इस प्रकार
के भ्रूणकोष विकास को एकबीजाणुक (monosporic) विकास कहते हैं। अधिकांश पुष्पी पादपों में इसी प्रकार का भ्रूणकोष पाया जाता है। अर्थात् यह सर्वाधिक सामान्य प्रकार का भ्रूणकोष विकास है। इसे सबसे पहले पॉलीगोनम डाइवेरिकेटम (Polygonum divaricatun) में देखा गया था अतः इसे पॉलीगोनम प्रकार का भ्रूणकोष भी कहा जाता है। यह 7 कोशिकीय व 8 केन्द्रकीय होता है। इसमें बीजाण्डद्वार की ओर एक अण्ड कोशिका व दो सहाय कोशिकाएँ स्थित होती हैं। विपरीत सिरे पर तीन प्रतिमुखी कोशिकाएँ स्थित होती हैं तथा बीच की केन्द्रीय कोशिका में 2 ध्रुवीय केन्द्रक पाए जाते हैं।

(प्रश्न 3) एकबीजपत्री व द्विबीजपत्री बीजों में अन्तर स्पष्ट कीजिए। (2019)
उत्तर-
एकबीजपत्री व द्विबीजपत्री बीजों में अन्तर

प्रश्न 4. बैगिंग (बोरा वस्त्रावरण) या थैली तकनीक क्या है ? पादप प्रजनन कार्यक्रम में यह कैसे उपयोगी है ?
उत्तर- परम्परागत रूप से पादप प्रजनन कृत्रिम संकरण (Artificial hybridization) तकनीक द्वारा किया जाता है। इस तकनीक में दो वांछित गुणों वाले जनकों को नर व मादा जनक के रूप में प्रयोग कर उनके बीच संकरण कराया जाता है। इस तकनीक में ही विपुंसन (emasculation) तथा बैगिंग (bagging) जैसे पदों का | प्रयोग किया जाता है। इस प्रक्रिया में मादा जनक के रूप में जिस पौधे का चयन किया जाता है उसके पुष्प को विपुंसन के बाद वटर पेपर से बन एक छोटी थैली से ढक दिया जाता है। यही प्रक्रिया  बैगिंग कहलाती है। एकलिंगी मादा पौधे में बिना विपुंसन के बैगिंग की जाती है। बैगिंग, मादा पौधे के पुष्प के वर्तिकान को किसी अवांछित पराग कण से परागित नहीं होने देती। वांछित परागकण द्वारा परागित करने के बाद इस मादा पुष्प पर पुन:-बैगिंग (rebagging) की जाती |
है। यह अवांछित परागण रोकने का उपाय मात्र है। चयनित पादप प्रजनन तकनीक में वांछित संकरण उत्पाद ही प्राप्त करने के लिए बैगिंग
एक आवश्यक चरण है।

प्रश्न 5. विपुंसन से क्या तात्पर्य है ? एक पादप प्रजनक कब और क्यों इस तकनीक का प्रयोग करता है ?

उत्तर—कृत्रिम संकरण पादप प्रजनन की एक प्रमुख प्रक्रिया है। वांछित गुणों वाली सन्तति प्राप्त करने हेतु इस प्रक्रिया में वांछित गुणधारी जनकों के बीच संकरण कराया जाता है। व अधिकांश पुष्पी पादप द्विलिंगी होते हैं अर्थात् उनके पुष्पों में नर भाग पुंकेसर व मादा
भाग अण्डप दोनों ही पाए जाते हैं। अगर ऐसे किसी पुष्प को कृत्रिम संकरण प्रक्रिया में | मादा जनक के रूप में प्रयोग किया जाना हो, तो इस द्विलिंगी पुष्प से कलिका अवस्था में ही | पुंकेसरों को हटाना आवश्यक होता है। ऐसा न करने पर पुष्प का वर्तिकाग्र उसी पुष्प के या
किसी अवांछित पुष्प के पराग कणों से परागित हो सकता है। मादा जनक के पुष्पों से कलिका अवस्था में परागकोषों का चिमटी द्वारा काटकर अलग कर देना विपुंसन (Emasculation) कहलाता है। पादप प्रजनक, द्विलिंगी पुष्पधारी पौधे को |
से मादा जनक के रूप में प्रयोग करने पर इस तकनीक का प्रयोग करता है। एकलिंगी मादा पुष्प में विपुंसन की आवश्यकता ही नहीं होती। कृत्रिम संकरण की सफलता हेतु सफल विपुंसन आवश्यक होता है।

प्रश्न 6, असंगजनन क्या है और इसका क्या महत्व है ?
उत्तर-असंगजनन (Apomixis) लैंगिक जनन जैसा प्रतीत होने वाला एक प्रकार का अलैंगिक जनन है। लैंगिक जनन की नकल करने वाली यह ऐसी अलैंगिक विधि है जिसमे युग्मकों के संलयन के बिना ही भ्रूण का निर्माण हो जाता है। अत: असंगजनन को “बिना  निषेचन भ्रूण बनने की क्रिया” के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इस प्रकार का अलैंगिक जनन कुछ धासों व एस्टीरेसी कुल (सूरजमुखी कुल) के कुछ सदस्यों में देखा गया है। असंगजनन की प्रक्रिया में बने भ्रूण, जनक कोशिका की गुणिता के अनुसार अगुणित या द्विगुणित हो सकते हैं। बीजाण्डकाय की किसी कोशिका का भ्रूण में परिवर्तित हो जाना भी असंगजनन का उदाहरण है। इसे अपस्थानिक भ्रूणता कहा जाता है।
असंगजनन बहुभ्रूणता की स्थिति को भी जन्म देता है। महत्व (Significance) असंगजनन के सिद्धान्त के आधार पर ऐसी संकर फसलों
के निर्माण का प्रयास, वैश्विक स्तर पर किया जा रहा है जिनको साल-दर-साल उगाना सम्भव होगा। वर्तमान में संकर फसलों को बार-बार उगाना सम्भव नहीं होता क्योंकि लैंगिक प्रजनन  के कारण उनके लक्षणों का पृथक्करण हो जाता है। असंगजन (Apomict) फसल आ जाने
पर किसान को हर वर्ष महंगे संकर बीज खरीदना आवश्यक नहीं होगा, क्योंकि इन्हें साल-दर साल उगाया जा सकेगा।

प्रश्न 7. उन्मील परागणी पुष्पों से क्या तात्पर्य है ? क्या अनुन्मील्य परागणी पुष्पों में पर-परागण सम्पन्न होता है? अपने उत्तर की तर्क सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर—उन्मील परागणी पुष्प (Chasmogamous flower) सामान्य रूप से खिलने वाले पुष्य उन्मील परागणी पुष्प कहलाते हैं। इनमें परागकोष तथा वर्तिकाग्र अनावृत होते हैं। इनमें पर-परागण आसानी से सम्पन्न हो सकता है। अनुन्मील्य परागणी पुष्प (Cleistogamous flower) कभी न खुलने (खिलने) वाले पुष्प होते हैं। हमेशा बन्द रहने के कारण न तो इनके पराग कण किसी दूसरे पुष्प तक जा सकते हैं और न ही किसी अन्य पुष्प के पराग कण इनके वर्तिकाग्र तक आ सकते हैं। अनुन्मील्य परागणी पुष्पों में पर-परागण सम्पन्न नहीं हो सकता क्योंकि पर-परागण वह प्रक्रिया है जिसमें किसी एक पुष्प के परागकोषों से निकले पराग कण उसी प्रजाति के दूसरे पौधे पर स्थित पुष्प के वर्तिकाग्र तक स्थानान्तरित होते हैं। पूणर्त: बन्द होने अर्थात् कभी न खुलने के कारण इनमें पर-परागण सम्भव नहीं हो सकता।
अनुन्मील्यता (Cleistogamy) स्व-परागण सुनिश्चित करने हेतु एक अनुकूलन है।

प्रश्न 8, पुष्पों द्वारा स्व-परागण रोकने के लिए विकसित की गई दो कार्य नीतियों  का विवरण दीजिए।
उत्तर–पुष्पों में स्वपरागण बाधित करने हेतु अनेक नीतियाँ अपनायी गयी हैं, जिनमें  से दो प्रमुख नीतियाँ अग्र प्रकार हैं-

(a) एकलिंगता (Unisexuality) कुछ पौधे एकलिंगाश्रयी (dioecious) होते हैं, अर्थात् वह या तो नर पुष्प धारण करते हैं या मादा पुष्प। इन पौधों में स्वपरागण की सम्भावना ही समाप्त हो जाती है। उदाहरण-पपीता, खजूर।
(b) भिन्न कालपक्वता (Dichogamy) इस नीति में परागकोषों से पराग कणों की मुक्ति के समय व वर्तिकाग्र की ग्राह्यता (receptivity) के समय में सामन्जस्य व समन्वयन का अभाव होता है। अत: परिपक्वन काल की भिन्नता के कारण स्व-परागण सफल नहीं हो पाता।
यह दो प्रकार का होता है-
(1) पुंपूर्वता (Protandry) वर्तिकाग्र के ग्राह्य होने से पहले ही पराग कण परिपक्व हो जाते हैं। उदाहरण साल्विया।
(ii) स्त्रीपूर्वता (Protogyny) इस नीति में वर्तिकान पराग कणों के परिपक्वन से पहले ही ग्राह्य हो जाते हैं। उदाहरण-रेननकुलस।

प्रश्न 9. एक निषेचित बीजाण्ड में समय की युग्मनज प्रसुप्ति के बारे में आप क्या सोचते हैं?
उत्तर–निषेचित बीजाण्ड में अल्पावधि की युग्मनज प्रसुप्ति आवृतबीजी पौधों का एक विशिष्ट अनुकूलन है। दोहरा निषेचन आवृतबीजियों का महत्वपूर्ण गुण है। युग्मनज के प्रसुप्ति काल में भ्रूणपोष (endosperm) को विकास का अवसर मिल जाता है। पुष्पीय पौधों
में युग्मनज का विभाजन तब तक प्रारम्भ नहीं होता जब तक कि भ्रूणपोष का विकास प्रारम्भ नहीं हो जाता। यह आवश्यक भी है क्योंकि भ्रूणपोष एक पोषक ऊतक है जिसका कार्य विकासशील भ्रूण को पोषण प्रदान करना है। इसी कारण भ्रूणपोष भ्रूण से पहले विकसित हो जाता है। युग्मनज की प्रसुप्ति भ्रूणपोष को विकास हेतु पर्याप्त समय व संसाधन प्राप्ति के अवसर प्रदान करती है। साथ ही इससे भ्रूण का पोषण सुनिश्चित हो जाता है।

प्रश्न 10. स्व-अयोग्यता क्या है ? स्व-अयोग्यता वाली प्रजातियों में स्व-परागण प्रक्रिया बीज निर्माण तक क्यों नहीं पहुँच पाती है ?
उत्तर-स्व-अयोग्यता अथवा स्व-अनिषेच्यता अथवा स्व-असंगतता (Self incompatibility) स्व अयोग्यता, अन्त:प्रजनन बाधित करने हेतु विकसित हुई एक आनुवंशिक रूप से नियंत्रित प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में किसी पुष्प के वर्तिकान पर उसी पुष्प के पराग कण का अथवा उसी पौधे पर स्थिति किसी अन्य पुष्प के पराग कण का अंकुरण या विकास बाधित हो जाता है। अर्थात् या तो पराग कण का अंकुरण ही नहीं होता अथवा पराग नलिका की वृद्धि रुक जाती है। सरल शब्दों में यह स्व-परागण को बाधित करने का आनुवंशिक प्रक्रम है। आवृतबीजियों में युग्मक स्थानान्तरण का कार्य परागण द्वारा तथा परागनलिका की वर्तिकाग्र से बीजाण्ड तक वृद्धि द्वारा दो चरणों में पूरा होता है। परागनलिका द्वारा नर युग्मक का निषेचन हेतु, बीजाण्ड स्थित अण्ड कोशिका तक स्थानान्तरण साइफनोगैमी (Siphonogamy)
कहलाता है। स्व-असंगतता प्रदर्शित करने वाले पुष्पी पादपों में चूँकि स्व-परागण के बाद पराग कण का अंकुरण अथवा परागनलिका की वृद्धि रोक दी जाती है, अतः युग्मक स्थानान्तरण पद सफल नहीं हो पाता। परागनलिका में स्थित नर युग्मक मादा युग्मक तक नहीं पहुँच पाता।
बीज का निर्माण होने के लिए निषेचन एक अनिवार्य पद है। निषेचन हेतु युग्मक स्थानान्तरण आवश्यक है। अतः स्व-अयोग्यता प्रदर्शित करने वाली प्रजातियों में स्वपरागण प्रक्रिया बीज निर्माण तक नहीं पहुँच पाती।

प्रश्न 11. मक्का के दाने की ऊर्ध्व काट का स्वच्छ नामांकित चित्र बनाकर उसमें प्रांकुर चोल (Coleoptile), बरूथिका (Scutellum), फलभित्ति (Pericarp) व मूलांकुर (Radicle) को नामांकित कीजिए।
उत्तर-

त्र 2.2. मक्का के दाने की ऊर्ध्व काट

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. एक स्पष्ट एवं साफ-सुथरे चित्र के द्वारा परिपक्व मादा युग्मकोद्भिद की 7 कोशिकीय व 8 केन्द्रकीय प्रकृति की व्याख्या कीजिए।
उत्तर- -अगुणित, कार्यशील गुरुबीजाणु ही तीन समसूत्री विभाजनों द्वारा 8 केन्द्रकीय अवस्था का निर्माण करता है। यह विभाजन मुक्त केन्द्रकीय होते हैं, अर्थात् केन्द्रक विभाजन के तुरन्त बाद कोशिका भित्ति निर्माण नहीं होता। बाद में हुए भित्ति निर्माण से परिपक्व मादा
युग्मकोद्भिद का विकास होता है। प्रारम्भ में प्रारूपिक भ्रूणकोष में आठ केन्द्रकों में से छः के चारों ओर पूर्ण कोशिका भित्ति का निर्माण हो जाता है लेकिन भ्रूण कोष के बीच में स्थित दो केन्द्रक एक केन्द्रीय कोशिका में स्थित होते हैं। इस सातवीं कोशिका में स्थित यह केन्द्रक ध्रुवीय केन्द्रक (Polar nuclei) कहलाते हैं। पॉलीगोनम प्रकार के इस भ्रूण कोष में अन्य कोशिकाओं की व्यवस्था निम्न होती है- अण्ड उपकरण (Egg apparatus)—दो सहाय कोशिकाएँ एक अण्ड कोशिका के साथ बीजाण्डद्वार की ओर स्थित होती हैं। यह तीनों मिलकर अण्ड उपकरण कहलाती हैं। सहाय कोशिकाओं में बीजाण्डद्वार सिरे की ओर विशिष्ट प्रकार का स्थूलन पाया जाता है। इसे तंतुरूपी अध्ययन जावावज्ञान: समुच्चय या फिलीफॉर्म उपकरण कहते हैं। यह कोशिकाएँ पोषक पदार्थों का अवशोषण करती हैं जबकि फिलीफॉर्म उपकरण पराग नलिका को सहाय कोशिकाओं में प्रवेश हेतु दिशा निर्देश प्रदान करता है।
प्रतिमुखी कोशिकाएँ (Antipodal cells) अण्ड उपकरण को ठीक विपरीत दिशा में (अर्थात् निभागीय छोर की ओर) एक समूह में स्थित तीन कोशिकाएँ प्रतिव्यासांत या प्रतिमुखी कोशिकाएँ कहलाती हैं। कभी-कभी केन्द्रीय कोशिका में उपस्थित दोनों ध्रुवीय केन्द्रक संलयन करके एक द्वितीयक केन्द्रक (Secondary nucleus) का निर्माण कर देते हैं। केन्द्रीय कोशिका भ्रूण कोष की सबसे बड़ी कोशिका होती है। अतयह द्विगुणित हो जाती है।

अतः अधिकांश पुष्पी पौधों में परिपक्व भ्रूण कोष (मादा युग्मकोद्भिद) 8 केन्द्रकीय व 7 कोशिकीय होता है। इसका निर्माण केवल एक गुरुबीजाणु से होता है अतः इसकी प्रकृति एकबीजाणु (monosporic) प्रकार की होती है। द्विबीजाणुक (bisporic) भ्रूण कोष के निर्माण में दो गुरुबीजाणु भाग लेते हैं। चतुष्कबीजाणुक (tetrasporic) भ्रूण कोष के निर्माण में सभी चारों गुरुबीजाणु भाग
लेते हैं।

प्रश्न 2. इनमें विभेद कीजिए-
(a) बीजपत्राधार और बीजपत्रोपरिक,
(b) प्रांकुर चोल और मूलांकुर चोल,
(c) अध्यावरण व बीजचोल,
(d) परिभ्रूणपोष एवं फलभित्ति।
उत्तर—(a) बीजपत्राधार और बीजपत्रोपरिक (Hypocotyl and Epicotyl) भ्रूण की अक्ष में मूलांकुर और प्रांकुर के अतिरिक्त दो अन्य महत्वपूर्ण भाग बीजपत्राधार तथा बीजपत्रोपरिक उपस्थित होते हैं। भ्रूणीय अक्ष का बीजपत्र से जुड़ाव से नीचे का भाग बीजपत्राधार कहलाता है। मूलांकुर इसी के शीर्ष पर स्थित होता है। भ्रूणीय अक्ष का बीजपत्र  से जुड़ने के स्थान से ऊपर का भाग बीजपत्रोपरिक कहा जाता है। प्रांकुर, बीजपत्रोपरिक के ऊपर स्थित होता है।

बीज के अंकुरण के समय बीजपत्राधार की अधिक वृद्धि मूलांकुर को तथा बीजपत्रोपरिक की वृद्धि प्रांकुर को भूमि से बाहर लाने में मदद करती है।
(b) प्रांकुर चोल और मूलांकुर चोल (Coleoptile and coleorrhiza)—प्रांकुर तथा मूलांकुर, एकबीजपत्री पौधों के बीजों में सुरक्षात्मक आच्छद से आवरित रहते हैं। प्रांकुर  को ढकने वाले आच्छद को प्रांकुर चोल तथा मूलाकुर को ढकने वाले आच्छद को मूलांकुर
चोल कहा जाता है। घास कुल के पौधों में प्रांकुर चोल प्रथम पत्ती के रूप में बाहर निकलता है। यह भूमि से ऊपर निकले कोमल प्रांकुर का सुरक्षात्मक आवरण बनाता है।
(c) अध्यावरण व बीजचोल (Integument and seed coat) गुरुबीजाणुधानी या बीजाण्ड के चारों ओर उपस्थित एक अथवा दो सुरक्षात्मक आवरण अध्यावरण कहलाते हैं। निषेचन के पश्चात् बीजाण्ड बीज में परिवर्तित हो जाता है। बीजाण्ड के अध्यावरण ही बीज
में बीच चोल कहलाते हैं। अध्यावरण के द्विस्तरीय होने पर बीजचोल में भी दो परतें होती हैं- बाह्य मोटा व कड़ा टेस्टा तथा भीतरी झिल्ली सदृश्य पतला टेगमेन।
(d) परिभ्रूणपोष व फलभित्ति (Perisperm and Pericarp)—परिभ्रूणपोष, कुछ पौधों में बीजाण्डकाय (nucellus) का वह भाग है जो बीज बनने के बाद भी भ्रूणपोष के चारों ओर एक पतली पर्त के रूप में बचा रहता है। अधिकांश पौधों में बीजाण्डकाय बीज बनने के बाद भ्रूणपोष बनने के कारण समाप्त हो जाता है। काली मिर्च, चुकन्दर आदि के बीजों में परिभ्रूणपोष (पेरोस्पर्म) पाया जाता है।
निषेचन के बाद अण्डाशय त्रिस्तरीय फलभित्ति (पेरीकार्प) में परिवर्तित हो जाता है। स्पष्ट है परिभ्रूणपोष बीज का भाग है जबकि पेरीकार्प फल से सम्बन्धित है। परिभ्रूणपोष मेंकेवल एक ही स्तर होता है जबकि फलभित्ति में प्रायः तीन स्तर होते हैं।

प्रश्न 3. एक प्रारूपी आवृतबीजी बीजाण्ड के भागों का विवरण दिखाते हुए स्पष्ट एवं साफ-सुथरा नामांकित चित्र बनाइए।

उत्तर—प्रारूपिक बीजाण्ड—आवृतबीजियों में एनाट्रॉपस बीजाण्ड सर्वाधिक सामान्य प्रकार का बीजाण्ड होता है। अण्डाशय में एक या अधिक बीजाण्ड या गुरुबीजाणुधानी बीजाण्डासन से जुड़ी होती हैं।

 

बीजाण्ड में निम्न भाग होते हैं

(a) बीजाण्डवृन्त (Funicle) एक वृन्त द्वारा बीजाण्ड अण्डाशय के बीजाण्डासन से जुड़ा रहता है। यह वृन्त ही बीजाण्डवृन्त (फ्युनिकल) कहलाता है। बीजाण्ड का वह भाग जहाँ फ्युनिकल जुड़ा होता हैं, हाइलम कहा जाता है।
(b) अध्यावरण (Integu. ments) प्रत्येक बीजाण्ड एक अथवा दो (प्राय: दो) सुरक्षात्मक आवरणों से घिरा रहता है। यह आवरण ही अध्यावरण कहलाते हैं।
(c)बीजाण्डद्वार (Micropyle)- यह बीज का वह भाग है जो अध्यावरण से ढका नहीं होता। यह एक छोटे से छिद्र के रूप में पाया जाता है जो बीजाण्डद्वार कहलाता है। सामान्यतः पराग नलिका बीजाण्डद्वार से ही बीजाण्ड में प्रवेश करती है।
(d) बीजाण्डकाय (Nucenus) बीजाण्ड के बीच का मृदूतकी कोशिकाओं से बना भाग बीजाण्डकाय कहलाता है। इसके एक सिरे की ओर बीजाण्डद्वार स्थित होता है। बीजाण्डद्वार से विपरीत दिशा वाला सिरा निभाग (Chalaza) कहलाता है।

(e) भ्रूण कोष (Embryo Sac) बीजाण्डकाय में मध्य में, थोड़ा-सा बीजाण्डद्वार सिरे की ओर मादा युग्मकोद्भिद या भ्रूण कोष स्थित होता है। प्रारूपिक भ्रूण कोष 7 कोशिकीय व 8 केन्द्रकीय होता है। इसमें बीजाण्डद्वार के सिरे की ओर अण्ड उपकरण स्थित होता है जो एक अण्ड
कोशिका तथा दो सहाय कोशिकाओं से बना होता है। निभागीय सिरे की ओर (विपरीत सिरे की ओर) तीन प्रतिमुख कोशिकाएँ स्थित होती हैं। भ्रूण कोष के बीच में एक बड़ी केन्द्रीय कोशिका उपस्थित होती है जिसमें दो ध्रुवीय केन्द्रक (polar nuclei) पाए जाते हैं।

प्रश्न 4. लघुबीजाणुजनन तथा गुरुबीजाणुजनन के बीच अन्तर स्पष्ट करें। इन घटनाओं के दौरान किस प्रकार का कोशिका विभाजन सम्पन्न होता है? इन दोनों घटनाओं के अन्त में बनने वाली संरचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर- लघुबीजाणुजनन व गुरुबीजाणुजनन में अन्तर

प्रश्न 5. वायु परागित व कीट परागित पुष्पों में अन्तर स्पष्ट की कीजिए।
उत्तर- वायु परागित व कीट परागित पुष्यों में अन्तर

प्रश्न 6. एक प्रारूपिक द्विबीजपत्री पादप के युग्मनज से पूर्ण विकसित भ्रूण बनने
तक अवस्थाओं को केवल नामांकित चित्रों की सहायता से प्रदर्शित कीजिए।

चित्र 2.8. द्विबीजपत्री भ्रूण में विकास के चरण : (A) युग्मनज, (B) द्विकोशिकीय भ्रूण, (C) गोलाकार भ्रूण, (D) हृदयाकार भ्रूण, (E) परिपक्व भ्रूण

प्रश्न 7. भ्रूणपोष क्या है ? विभिन्न प्रकार के भ्रूणपोषों का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर—द्विनिषेचन आवृतबीजियों का विशिष्ट गुण है। इसके त्रिसंलयन पद में एक नर युग्मक दो ध्रुवीय केन्द्रकों के साथ संलयित होकर त्रिगुणित प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक बनाते हैं। कभी-कभी ध्रुवीय केन्द्रक स्वयं संलयित होकर द्विगुणित द्वितीयक केन्द्रक बना लेते हैं जो
त्रिसंलयन प्रक्रिया में नर केन्द्रक से संलयित होकर प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक बना देता है। प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक ही समसूत्री विभाजनों द्वारा भ्रूणपोष को जन्म देता है। अत: भ्रूणपोष पुष्पी पादपों के बीजों में बनने वाला एक पोषक भाग है। इसमें संचित भोज्य पदार्थ बढ़ते भ्रूण को पोषण प्रदान करता है।
भ्रूणपोष निम्न प्रकार के होते हैं
(i) मुक्त केन्द्रकीय भ्रूणपोष, (ii) कोशिकीय भ्रूणपोष, (in) हेलोबियल भ्रूणपोष।

(i) मुक्त केन्द्रकीय भ्रूणपोष (Free nuclear endosperm) अधिकांश पुष्पी पादपों में प्राय: इसी प्रकार का भ्रूणपोष पाया जाता है। मुक्त केन्द्रकीय भ्रूणपोष में नाम के अनुरूप प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक अनेक बार विभाजित होकर बहुत सारे मुक्त केन्द्रक बना देता है। यह केन्द्रक कोशिका में परिधि की ओर व्यवस्थित रहते हैं। इसी प्रकार के भ्रूणपोष को मुक्त केन्द्रकीय भ्रूणपोष कहते हैं। बाद में इन केन्द्रकों के चारों ओर भित्ति निर्माण भी होता है। कच्चा नारियल हजारौं मुक्त केन्द्रकों से बना मुक्त केन्द्रकीय भ्रूणपोष है। इसके चारों ओर कोशिकीय भ्रूणपोष का निर्माण प्रारम्भ हो जाता है।
(ii) कोशिकीय भ्रूणपोष (Cellular endosperm)—इस प्रकार के भ्रूणपोष में प्रत्येक केन्द्रक विभाजन के बाद कोशिका भित्ति का भी निर्माण होता है। अत: प्रारम्भ से ही  भ्रूणपोष कोशिकीय होता है।
(iii) हेलोबियल भ्रूणपोष (Helobial endosperm) यह भ्रूणपोष, मुक्त केन्द्रकीय व कोशिकीय दोनों प्रकार के भ्रूणपोषों का मिला-जुला रूप है, अर्थात् दोनों के गुण प्रदर्शित करता है।

प्रश्न 8. एक प्रारूपिक पुष्य की अनुदैर्ध्य काट का नामांकित चित्र बनाइए। (2019)

प्रश्न 8. एक प्रारूपिक पुष्य की अनुदैर्ध्य काट का नामांकित चित्र बनाइए। (2019)

 

 

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