अध्याय 3
मानव जनन
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
बहु-विकल्पीय प्रश्न
1. निम्न में से कौन-सी नर सहायक ग्रन्थि नहीं है ?
(1) शुक्राशय,
(iii) प्रोस्टेट,
(ii) तुम्बिका (एम्पुला),
(iv) बल्चोयूरेथ्रल ग्रन्थि।
2. शुक्राणुओं के एक्रोसोम में पाया जाता है-
(i) DNA,
(ii) माइटोकॉण्ड्यिा,
(iii) एन्जाइम्स,
(iv) फ्रक्टोज।
3. ऋतु स्राव (Menstrual flow) किस हॉर्मोन की कमी के कारण होता है ?
(i) प्रोजेस्टेरॉन,
(ii) FSH,
(iii) ऑक्सीटोसिन,
(iv) वेसोप्रेसिन।
4. प्रसव के लिए संकेत उत्पन्न होते हैं-
(i) उल्व तरल (एम्नियोटिक द्रव) द्वारा दाब पड़ने से,
(ii) पीयूष ग्रन्थि से ऑक्सीटोसिन की मुक्ति से,
(iii) पूर्ण विकसित गर्भ एवं अपरा से,
(iv) स्तन ग्रन्थियों का विभेदन होने से।
5. निम्न में से किसमें 23 गुणसूत्र होते हैं ?
(i) स्पर्मेटोगोनिया,
(ii) युग्मनज,
(iii) द्वितीयक ऊसाइट,
(iv) ऊगोनिया।
6. प्राक्शुक्राणु (शुक्राणुप्रसु या स्पर्मेटिड) का शुक्राणु में परिवर्तन होता है-
(i) शुक्राणुजनन या स्पर्मियोजेनेसिस द्वारा,
(ii) शुक्रजनन या स्पर्मेटोजेनेसिस द्वारा,
(iii) अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा,
(iv) युग्मकजनन द्वारा।
उत्तर-1. (ii), 2. (iii), 3. (i), 4. (ii), 5. (iii), 6. (i).
रिक्त स्थान पूर्ति
1. मानव ………. उत्पत्ति वाला है। (अलैंगिक/लैंगिक)
2, मानव ……….है।(अण्डप्रजक, सजीवप्रजक, अण्डजरायुज)
3. मानव में ११५……. निषेचन होता है। (बाहा/आन्तरिक)
4. नर एवं मादा युग्मक …….” होते हैं (अगुणित/द्विगुणित)
5. युग्मनज ” होता है। (अगुणित/द्विगुणित)
उत्तर-1, लैंगिक, 2.सजीवप्रजक, 3. आन्तरिक, 4. अगुणित, 5. द्विगुणित।
(B)
1. एक परिपक्व पुटक से अण्डाणु (ओवम) के मोचित होने की प्रक्रिया को ………. कहते हैं।
2. अण्डोत्सर्ग (ओव्यूलेशन) नामक हॉर्मोन द्वारा प्रेरित (इन्ड्यूस्ड) होता ………..है।
3. नर एवं स्त्री के युग्मकों के संलयन (फ्यूजन) को कहते हैं।
4. स्त्री में निषेचन ………. में सम्पन्न होता है।
5. युग्मनज विभक्त होकर ………. की रचना करता है जो गर्भाशय में अन्तर्रोपित (इम्प्लांटेड) होता है।
6. भ्रूण और गर्भाशय के बीच संवहनी सम्पर्क बनाने वाली संरचना को ……………… कहते हैं।
उत्तर—1. अण्डोत्सर्ग, 2. ल्यूटीनाइजिंग हॉर्मोन (LH), 3. निषेचन, 4. फैलोपियन नलिका के संकीर्ण पथ-एम्पुला सन्धि स्थल, 5. कोरकपुटी या ब्लास्टुला या ब्लास्टोसिस्ट, 6. अपरा।
सत्य/असत्य
1. पुंजनों (एन्ड्रोजन्स) का उत्पादन सरटोली कोशिकाओं द्वारा होता है।
2. शुक्राणु को सरटोली कोशिकाओं से पोषण प्राप्त होता है।
3. लीडिग कोशिकाएँ अण्डाशय में पायी जाती हैं।
4. लोडिग कोशिकाएँ पुंजनों (एन्ड्रोजन्स) को संश्लेषित करती हैं।
5. अण्डजनन पीत पिण्ड (कॉर्पस ल्यूटियम) में सम्पन्न होता है।
6. सगर्भता (प्रेगनेंसी) के दौरान आर्तव चक्र (मेन्सट्रअल साइकिल) बन्द होता है।
7. योनिच्छद (हाइमेन) की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति कौमार्य (वर्जिनिटी) या
यौन अनुभव का विश्वसनीय संकेत नहीं है।
8. आहार नाल का विकास मीजोडर्म व एक्टोडर्म से होता है।
उत्तर-1. असत्य, 2. सत्य, 3. असत्य, 4. सत्य, 5. असत्य, 6. सत्य, 7. सत्य,
8. असत्य।
एक शब्द/वाक्य में उत्तर
1. शुक्राशय की नलिका से जुड़कर शुक्रवाहक (वासाडिफरेंस) क्या कहालाती
उत्तर-स्खलन नलिका (Ejaculatory duct) |
2. मनुष्य के नर व मादा प्राथमिक जनन अंग क्या हैं?
उत्तर-नर मनुष्य के प्राथमिक जनन अंग एक जोड़ी वृषण। स्त्री के प्राथमिक जनन अंग एक जोड़ी अण्डाशय।
3. निषेचन न होने पर पीत पिण्ड (कॉर्पस ल्यूटियम) का क्या होता है ?
उत्तर-निषेचन न होने पर पीत पिण्ड एक सफेद काय कॉर्पस एल्विकॅस में बदल कर प्रोजेस्टेरॉन बनाना बन्द कर देता है।
4. मनुष्य में 8 से 16 कोरकखण्डों वाला ठोस गेंद जैसा भ्रूण क्या कहलाता है?
उत्तर-तृतक या मोरुला।
5. कोरियोनिक विलाई क्या हैं?
उत्तर-भ्रूण की ट्रोफोब्लास्ट की बाह्य सतह से निकले अंगुली जैसे प्रवर्ध जो गर्भाशयी एण्डोमेट्रियम में फँस कर पोषण प्राप्त करते हैं, कोरियोनिक विलाई कहलाते हैं।
6. पुरुषों में ल्यूटीनाइजिंग हॉर्मोन को किस अन्य नाम से भी जाना जाता है?
उत्तर-इण्टरस्टीशियल सेल स्टीमुलेटिंग हॉर्मोन (ICSH)।
7. ग्रेफियन फॉलिकिल से अण्ड के बाहर निकलने की प्रक्रिया क्या कहलाती है ? (2020)
उत्तर अण्डोत्सर्ग (Ovulation) |
8. शुक्रीय प्रद्रव्य (सेमिनल प्लाज्मा) के प्रमुख संघटक क्या हैं?
उत्तर-शुक्रीय प्रद्रव्य के संघटक हैं फ्रक्टोज शर्करा, कुछ एन्जाइम्स, फॉस्फेट व कैल्शियम आयन, म्यूकस, सिट्रेट तथा प्रोस्टाग्लैन्डिस आदि।
9. विदलन को परिभाषित कीजिए।
उत्तर युग्मनज में होने वाले वह समसूत्री विभाजन जिनसे सन्तति कोशिकाओं (ब्लास्टोमियर्स) या कोरकखण्डों की संख्या तो बढ़ती है लेकिन उनका आयतन नहीं बढ़ता, विदलन कहलाती है।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. आप क्या सोचते हैं कि एक कुतिया, जिसने 6 बच्चों को जन्म दिया है, के अण्डाशय से कितने अण्डे मोचित हुए थे ?
उत्तर-अनेक मेटे स्तनधारी जीव; जैसे-कुत्ते में मादाओं के अण्डाशय से एक समय में अनेक अण्डे मुक्त होते हैं। ऐसे जन्तु बहुल सगर्भता (multiple pregnancy) हेतु अनुकूलित होते हैं। इनमें से प्रत्येक का अलग-अलग निषेचन होता है, जिससे अलग भ्रूण विकसित हो।
शिशु को जन्म देता है। अत: कुतिया के अण्डाशय से 6 अण्डे मोचित हुए होंगे।
प्रश्न 2. शुक्राणुजनन की प्रक्रिया के नियमन में शामिल हॉर्मोनों के नाम बताइए।
उत्तर-शुक्राणुजनन के नियमन में निम्न हॉर्मोन्स शामिल होते हैं-
(i) गोनेडोट्रॉपिन रिलीजिंग हॉर्मोन (GnRH),
(ii) फॉलिकिल स्टिमुलेटिंग हॉर्मोन (FSH),
(iii) ल्यूटीनाइजिंग हॉर्मोन (LH),
(iv) एन्ड्रोजंस (प्रमुखत: टेस्टोस्टीरॉन),
(v) इनहिबिन कारक।
प्रश्न 3. शुक्राणुजनन व वीर्यसेचन (स्पर्मिएशन) की परिभाषा लिखें।
उत्तर शुक्राणुजनन (Spermiogenesis) –गोलाकार, अचल व अगुणित शुक्राणु प्रसु कोशिकाओं (स्पर्मेटिड्स) का चल, सक्रिय शुक्राणु में रूपान्तरण शुक्राणुजनन कहलाता है। स्पर्मिएशन (Spermiation)*—शुक्राणुजनन की प्रक्रिया समाप्त होने पर शुक्राणुओं
के शीर्ष सरटोली कोशिकाओं में धंस जाते हैं। इन शुक्राणुओं का सरटोली कोशिकाओं से निकल कर शुक्राणुजनन नलिका की गुहा में आना स्पर्मिएशन कहलाता है।
प्रश्न 4)अण्डोत्सर्ग को परिभाषित कीजिए।
उत्तर-ऋतुसाव चक्र में पुटिकीय प्रावस्था के पश्चात् आर्तव चक्र के लगभग 14वें दिन अग्र पिट्यूटरी के ल्यूटिनाइजिंग हॉर्मोन (LH) के प्रभाव में अण्डाशय की ग्राफी पुटिका कहलाता है। का फटकर अण्ड कोश्किा (द्वितीयक ऊसाइट) को मुक्त करना अण्डोत्सर्ग (Ovulation)
(2020)
प्रश्न 5. मनुष्य में अगर वृषण उदर से वृषण कोष में न आएँ तो बन्ध्यता उत्पन्न हो सकती है। समझाइए।
अथवा
क्या कारण है कि मनुष्य के वृषण उदर गुह्य के बाहर स्थित होते हैं ?
उत्तर–वृषण में होने वाली शुक्रजनन की प्रक्रिया को शरीर के सामान्य ताप से 2°C से 3°C कम ताप की आवश्यकता होती है। मानव शरीर में उदरगुहा का तापमान, शरीर के * NCERT हिन्दी पुस्तक में शुक्रजनन नलिका की भित्ति से शुक्राणुओं की मुक्ति तथा वीर्य के स्त्री के जनन भाग में पहुँचने दोनों के लिए वीर्यसेचन शब्द का प्रयोग किया गया है। विद्यार्थी इससे भ्रमित न हों। अंग्रेजी में पहली प्रक्रिया स्पर्मिएशन व दूसरी इनसेमीनेशन कहलाती है। ताप के समान अर्थात् 37° ही होता है। अतः ऐसी स्थिति में शुक्रजनन प्रक्रिया सम्पन्न नहीं हो
पाती जिससे बन्ध्यता उत्पन्न हो जाती है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
्रश्न 5. वृषण व अण्डाशय में से प्रत्येक के दो-दो प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-(A) वृषण के कार्य-
(1) वृषण का प्रमुखतम कार्य है नर युग्मकों या शुक्राणुओं का निर्माण करना।
(ii) वृषण एक अन्त:स्रावी ग्रन्थि की भाँति भी कार्य करते हैं तथा एंड्रोजन्स जैसे टेस्टोस्टीरॉन का निर्माण करते हैं। यह हॉर्मोन द्वितीयक लैंगिक लक्षणों के विकास व शुक्राणु निर्माण में मदद करते हैं।
(B) अण्डाशय के कार्य-
(1) अण्डाशय का प्रमुख कार्य है मादा युग्मक अथवा अण्डाणुओं का निर्माण करना।
(ii) अण्डाशय भी अन्त:स्रावी ग्रन्थि की भाँति कार्य करते हैं। इनके द्वारा मादा लिंग हॉर्मोन एस्ट्रोजन व प्रोजेस्टेरॉन का निर्माण व स्राव किया जाता है। यह हॉर्मोन स्त्रियों के द्वितीयक लैंगिक लक्षणों के विकास, ऋतुस्राव चक्र, सगर्भता आदि का नियमन करते हैं।
प्रश्न 7. निम्नलिखित के कार्य बताइए-
(a) पीत पिण्ड (कॉर्पस ल्यूटियम), (b) गर्भाशय अन्तः स्तर (एंडोमेट्रियम),(c) अग्र पिण्डक (एक्रोसोम), (d) शुक्राणु पुच्छ (Sperm tail),
(e) झालर (फिम्ब्री)
उत्तर-(a) पीत पिण्ड (कार्पस ल्यूटियम) हॉर्मोन प्रोजेस्टेरॉन का स्राव करना। अपरा (प्लेसेण्टा) के निर्माण होने तक प्रोजेस्टेरॉन का स्तर उच्च बनाए रखकर गर्भाशय की गर्भाशयी एण्डोमेट्रियम को बनाए रखना, सफल सगर्भता सुनिश्चित करना।
(b) गर्भाशय अन्तः स्तर (एण्डोमेट्रियम)—ब्लास्टोसिस्ट (कोरकपुटी) का गर्भ योनि अन्तर्रोपण सुनिश्चित करना, अपरा निर्माण में सक्रिय योगदान, गर्भाशयी दुग्ध (uterine milk) का निर्माण करना जो भ्रूण के प्रारम्भिक पोषण में सहायक है।
(c) अग्र पिण्डक (एक्रोसोम)—इसमें पाए जाने वाले लयनकारी एंजाइम्स (स्पर्म लाइसिन्स) शुक्राणु द्वारा अण्ड के भेदन में मदद करते हैं।
(d) शुक्राणु पुच्छ (स्पर्म टेल) शुक्राणु को गतिशील (motile) बनाना। गतिशील शुक्राणु स्त्री की योनि से शुक्राणु पुच्छ द्वारा गति करते हुए अण्डवाहिनी के निषेचन स्थल तक पहुँचते हैं।
(e) झालर (फिम्ब्री)—अण्डवाहिनी का मुख कीपक (इन्फंडीबुलम) के रूप में होता है जिसके किनारे की अंगुली के आकृति के प्रवर्षों से फिम्ब्री बनती है। फिम्ब्री अण्डोत्सर्ग के समय अण्डाशय से मुक्त हुए अण्ड को ग्रहण करने में मदद करती है।
प्रश्न 8. ग्राफी पुटक (ग्राफियन फॉलिकिल) का एक नामांकित आरेख बनाइए।
उत्तर-
प्रश्न 9. प्रसव (पारट्यूरिशन) क्या है ? प्रसव को प्रेरित करने में कौन-कौन से हॉर्मोन शामिल होते हैं? (2020)
उत्तर—गर्भ की अवधि के पूरा हो जाने पर गर्भाशयी भित्ति के तीव्र संकुचनों के कारण शिशु का योनिमार्ग से बाहर आना प्रसव (Parturition) कहलाता है। प्रसव एक जटिल प्रक्रिया है जो जटिल तंत्रिकीय अन्तःस्रावी क्रियाविधि (Complex neuro-endocrine mechanism) द्वारा प्रेरित व नियंत्रित होती है। पूर्ण विकसित गर्भ तथा अपरा से ही प्रसव के संकेत जन्म लेते हैं। यह हल्के गर्भाशयी संकुचनों को प्रेरित करते हैं, जिन्हें गर्भ उत्क्षेपण प्रतिवर्त (Foetal ejection reflexes) कहा जाता है। यह माँ की पिट्यूटरी ग्रन्थि से ऑक्सीटोसिन के स्राव को प्रेरित करता है। ऑक्सीटोसिन गर्भाशयी पेशियों में और अधिक संकुचन उत्पन्न करता है। यह संकुचन और ऑक्सीटोसिन के स्राव का प्रेरण करता है। तीव्र से तीव्र होते संकुचन व ऑक्सीटोसिन की बढ़ती मात्रा से गर्भ योनि के रास्ते शरीर से बाहर आ जाता है। अण्डाशय द्वारा स्रावित रिलेक्सिन हॉर्मोन भी प्रसव में सहायक है। प्रसव जैसी जटिल प्रक्रिया शिशु व माँ दोनों के हॉर्मोन्स के जटिल सामंजस्य से नियंत्रित होती है।
इसके तीन प्रमुख चरण होते हैं-
(1) गर्भाशयी ग्रीवा (सरविक्स) का फैलना या प्रसरण तथा एम्नियोटिक द्रव का बाहर आना।
(ii) शिशु का (सिर पहले) बाहर आना, नाभि नाल का काटना।
(1) अपरा का ‘आफ्टर वर्थ’ के रूप में बाहर आना।
प्रश्न 10 शुक्रजनन नलिका की संरचना का वर्णन कीजिए।
अथवा
मानव वृषण की अनुप्रस्थ काट का नामांकित चित्र बनाइए। (2019)
उत्तर प्रत्येक वृषण में अनेक वृषण पालियाँ (lobules) पायी जाती हैं तथा प्रत्येक पालि में 1 से तीन अतिकुण्डलित शुक्रजनन नालिकाएँ व्यवस्थित होती हैं। शुक्रजनन नलिका की आन्तरिक सतह जननिक एपीथीलियम की बनी होती है। इस परत में अग्रलिखित दो प्रकार
की कोशिकाएँ पायी जाती हैं
शुक्राणुजन कोशिकाएँ (Spermatogenic cells) जननिक कोशिकाएँ, पोषक सरटोली कोशिकाएँ (Sertoli cells)। शुक्रजनन नलिका के बाहर की ओर संयोजी ऊतक का स्तर पाया जाता है। जननिक कोशिकाएँ घनाकार होती हैं तथा शुक्रजनन नलिकाओं का अधिकांश भाग बनाती हैं। यही कोशिकाएँ अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा शुक्राणुओं का निर्माण करती हैं। अत: शुक्रजनन नलिकाओं में शुक्रजनन कोशिकाओं से शुक्राणु के बीच की अनेक मध्यवर्ती कोशिकाएँ भी उपस्थित हो सकती हैं।
सरटोली कोशिकाएँ पिरामिड के आकार की व बड़ी होती हैं। यह विकसित होते शुक्राणुओं को पोषण उपलब्ध कराती हैं। इन नलिकाओं के बाहर के स्थान में (नलिकाओं के बीच-बीच) अन्तःस्रावी लीडिग कोशिकाएँ पायी जाती हैं।
प्रश्न 11. हमारे समाज में लड़कियों को जन्म देने का दोष महिलाओं को दिया जाता है। बताइए कि यह क्यों सही नहीं है ?
उत्तर—शिशु का विकास नर व मादा युग्मक के संलयन से बने युग्मनज द्वारा होता है। मनुष्य में लिंग का निर्धारण निषेचन के समय ही हो जाता है। स्त्रियों में लिंग गुणसूत्र XX प्रकार के होते हैं अत: स्त्रियाँ केवल एक ही प्रकार के मादा युग्मक (अण्ड कोशिका बनाती हैं। सभी अण्ड कोशिकाओं में गुणसूत्र (22 + X) होते हैं। अर्थात् महिलाएँ समयुग्मजी (Homogametic) होती हैं।
पुरुषों में XY प्रकार के लिंग गुणसूत्र पाए जाते हैं। अर्थात् पुरुषों के आधे शुक्राणुओं में गुणसूत्र 22 + X तथा आधों में 22 + Y होते हैं। अत: पुरुष विषमयुग्मकी (Heterogametic) अण्ड कोशिका का निषेचन अगर पुरुषों के X प्रकार के शुक्राणु द्वारा होता है तो लड़की का जन्म होता है जबकि अण्ड कोशिका के Y प्रकार के शुक्राणु से निषेचित होने पर लड़के का जन्म होता है। स्त्री हमेशा समान अण्डाणु का योगदान करती है पुरुष द्वारा निर्मित शुक्राणु ही युग्मनज का आनुवंशिक संघटन निर्धारित करते हैं। अत: लड़कियों को जन्म देने के लिए
महिलाओं को उत्तरदायी मानना तथ्यपरक नहीं है। यह वैज्ञानिक रूप से गलत है।
प्रश्न 12. एक माह में मानव अण्डाशय से कितने अण्डे मोचित होते हैं ? यदि माता ने समरूप जुड़वाँ बच्चों को जन्म दिया हो तो आप क्या सोचते हैं कि कितने अण्डे मोचित हुए होंगे ? क्या आपका उत्तर बदलेगा यदि जन्मे जुड़वां बच्चे द्विअण्डज यमज
थे?
उत्तर मानव अण्डाशय से एक माह में प्राय: एक ही अण्ड कोशिका मोचित समरूप जुड़वाँ (Identical twins) को जन्म देने वाली माँ में भी एक ही अण्ड मोचित होता है। समरूप जुड़वाँ बच्चे युग्मनज अथवा प्रारम्भिक भ्रूण के दो बराबर भागों में बँटने से बनते हैं। प्रत्येक भाग गर्भाशय के एक प्लेसेण्टा पर विकसित होता है। एक ही युग्मनज से विकसित होने के कारण इनका रंग-रूप, लिंग व आनुवंशिक संगठन समान होता है। इन्हें एकयुग्मनजी यमज (मोनोजाइगोटिक ट्विन) कहा जाता है। यदि जुड़वाँ बच्चे द्विअण्डज यमज हैं तो प्रश्न का उत्तर बदल जाएगा। यदा-कदा मानव अण्डाशय से एक से अधिक अण्ड कोशिकाएँ मोचित होती हैं। प्रत्येक अण्ड कोशिका अलग-अलग शुक्राणु द्वारा निषेचित होकर गर्भाशय में अलग-अलग बढ़ती है। इस प्रकार के जुड़वाओं का रंग-रूप, लिंग व आनुवंशिक संगठन भिन्न-भिन्न होता
है। यह नॉन-आइडेन्टिकल ट्विन्स या द्वियुग्मनजी यमज कहलाते हैं।
प्रश्न 13. (a) अण्ड कोशिका व शुक्राणु में प्रमुख अन्तर लिखिए।
(b) किस दृष्टि से अण्ड कोशिका की संरचना शुक्राणु के समान है ?
उत्तर- (a) अण्ड कोशिका तथा शुक्राणु में प्रमुख अन्तर
(b) अण्ड कोशिका व शुक्राणु दोनों ही अगुणित होते हैं तथा दोनों युग्मनज निर्माण में
भाग लेते हैं।
प्रश्न 14, अपरा क्या है ? अपरा के कार्य लिखिए।
उत्तर–गर्भ में स्थित भ्रूण तथा मातृ ऊतकों (गर्भाशयी भित्ति) के बीच का अन्तरंग, अस्थायी, भौतिक-संरचनात्मक तथा शरीर क्रियात्मक सम्बन्ध जो भ्रूण की जैविक आवश्यकताओं की पूर्ति करता है, अपरा (Placenta) कहलाता है। यह होमोकोरियल प्रकार का होता है। दो प्राणियों के ऊतकों से बनी यह संरचना निम्न कार्य सम्पन्न करती है.
(i) अपरा भ्रूण के पोषण में सहायक है। माँ के रक्त में उपस्थित पोषक पदार्थ अपरा
द्वारा ही भ्रूण के रक्त में पहुँचते हैं।
(ii) अपरा भ्रूण के श्वसन व उत्सर्जन में मदद करता है
(iii) यह एक अन्त:स्रावी ऊतक की भाँति भी कार्य करता है। इसके द्वारा स्रावित हॉर्मोन हैं-ह्यूमन कोरिओनिक गोनेडोट्रॉपिन (HCG), ह्यूमन प्लेसेण्टल लैक्टोजन (HPL) प्रोजेस्टेरॉन एस्ट्रोजन, रिलैक्सिन।
(iv) माँ के शरीर में बने एंटीबॉडीज अपरा के माध्यम से भ्रूण के शरीर में पहुँचकर उसे अनेक संक्रामक रोगों; जैसे-टी.बी., खसरा आदि से सुरक्षा प्रदान करते हैं।
प्रश्न 15. भ्रूणीय जनन स्तर से बनने वाले प्रमुख संरचनाओं की सूच
बनाइए।
उत्तर—प्राथमिक भ्रूणीय जनन स्तरों से बनने वाली प्रमुख संरचनाएँ
प्रश्न 17. निम्न के अर्थ स्पष्ट कीजिए-
(a) कोलोस्ट्रम, (b) ब्लास्टुला, (c) बाह्य भ्रूण कलाएँ।
उत्तर-(a) कोलोस्ट्रम (Colostrum) या प्रथम स्तन्य/खीस शिशु जन्म के पश्चात् दुग्ध स्रावण के प्रारम्भिक काल में कुछ दिनों तक स्तनों से निकलने वाला गाढ़ा दूध कोलोस्ट्रम कहलाता है। यह हल्का पीला, गाढ़ा द्रव प्रोटीन्स, खनिज लवणों व सभी आवश्यक पोषक तत्वों से समृद्ध होता है। इसमें अनेक प्रकार की प्रतिरक्षी (एंटीबॉडीज) भी पायी जाती हैं जो शिशु को निष्क्रिय प्रतिरक्षा प्रदान कर संक्रामक रोगों से रक्षा करती हैं।
(b) ब्लास्टुला (Blastula) कोरकपुटी या ब्लास्टुला वह भ्रूणीय अवस्था है जिसमें भ्रूण का गर्भाशयी एण्डोमेट्रियम में अन्तर्रोपण होता है। यह कोरकखण्डों की एक खोखली गेंद जैसी संरचना है जिसकी गुहा केन्द्रीय गुहा/ब्लास्टोसील/खण्डीभवन गुहा कहलाती है। इसका बाह्यतम स्तर ट्रोफोब्लास्ट कहलाता है। गुहा की ओर स्थित कोशिकाओं का एक समूह अंतर कोशिका समूह का निर्माण करता है, जिससे मुख्य भ्रूण का विकास होता है।
(c) बाह्य भ्रूण कलाएँ (Extra embryonic membranes)—सरीसृप, पक्षियों व स्तनधारियों जैसे आन्तरिक निषेचन प्रदर्शित करने वाले जन्तुओं में भ्रूण की सुरक्षा, पोषण, श्वसन तथा उत्सर्जन सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु कुछ विशिष्ट झिल्लियाँ पायी
जाती हैं, जिन्हें बाह्य भ्रूण कलाएँ भी कहा जाता है। यह कलाएँ हैं—योक कोष, एम्नियॉन, कोरिऑन तथा एलेन्टॉइस। मानव में योक कोष व एलेन्टॉइस अवशेषी होती हैं। इन्हीं कलाओं ने इन जीवों को स्थलीय जीवन के अनुकूल बनाया है।
प्रश्न 1) अण्डजनन क्या है ? अण्डजनन की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
अथवा
अण्डजनन क्या है ? अण्डजनन में शामिल दो हॉर्मोनों के नाम लिखिए। (2019)
उत्तर—अण्डाशय स्थित द्विगुणित अण्डाणु मातृ कोशिका में हुए अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा अगुणित अण्ड कोशिका (मादा युग्मक) के निर्माण की प्रक्रिया अण्डजनन कहलाती है। अण्डजनन एक लम्बी व असतत् (रुक-रुक कर चलने वाली) प्रक्रिया है। किसी स्त्री में यह प्रक्रिया तभी प्रारम्भ हो जाती है जब यह स्त्री अपनी माँ के गर्भ में भ्रूण के रूप में होती है। गर्भ के 2 माह का होने पर कन्या भ्रूण के अण्डाशय में लगभग 6 लाख ऊगोनिया पायी जाती हैं। कन्या के जन्म के समय तक इनमें से अधिकांश अपह्रासित हो जाती हैं। ऊगोनिया का इस प्रकार क्षरित होते रहना एट्रेसिया किशोरावस्था तक चलता है। द्वितीयक लैंगिक लक्षण प्रदर्शित करने वाली किशोरावस्था में प्रत्येक अण्डाशय में 60 से 80 हजार पुटक बचे होते हैं।
अण्डजनन में तीन प्रावस्थाएँ होती हैं
(i) गुणन प्रावस्था—अण्डाशय की जननिक एपीथीलियम की कुछ कोशिकाएँ समसूत्री विभाजन द्वारा संख्या बढ़ाती हैं तथा अण्ड मातृ कोशिका या ऊगोनिया में बदल जाती है। (ii) वृद्धि प्रावस्था—यह बहुत लम्बी प्रावस्था है। इस अवस्था में ऊगोनिया वृद्धि कर प्राथमिक अण्डक में बदल जाती है। कुछ कोशिकाएँ इसे चारों ओर से घेर कर एक प्राथमिक पुटक बना देती हैं। प्राथमिक पुटक के केन्द्र में स्थित प्राथमिक अण्डक में प्रारम्भ हुआ अर्द्धसूत्री विभाजन प्रोफेज I में ही निलम्बित रहता है।
(iii) परिपक्वन प्रावस्था—इसमें प्राथमिक अण्डक में हुए अर्द्धसूत्री विभाजन प्रथम से दो असमान कोशिकाएँ बनती हैं। बड़ी कोशिका द्वितीयक अण्डक (सेकण्डरी ऊसाइट) कहलाती है जबकि छोटी कोशिका को ध्रुवीयकाय कहते हैं। अण्डाशय से अण्डोत्सर्ग के समय
द्वितीयक अण्डक ही मुक्त होती है। द्वितीयक अण्डक में अर्द्धसूत्री विभाजन तभी होता है जब यह शुक्राणु द्वारा निषेचित होती है।
अर्द्धसूत्री विभाजन II में द्वितीयक अण्डक से एक बड़ा अण्डाणु (Ootid) तथा दूसरी छोटी द्वितीय ध्रुवीयकाय बनती है। अण्डजनन का नियंत्रण हॉर्मोन्स के अधीन होता है। प्रमुख नियंत्रक हॉर्मोन हैं-
हाइपोथैलेमस के मोचन कारक (releasing factors), पिट्यूटरी के FSH तथा LH एवं अण्डाशय के एस्ट्रोजन तथा प्रोजेस्टेरॉन।
प्रश्न 2. आर्तव चक्र क्या है ? आर्तव चक्र (मेन्सटुअल साइकिल) को कौन-से हॉर्मोन्स नियमन करते हैं?
उत्तर—प्राइमेट मादाओं की प्रजनन अवस्था में अण्डाशय व सहायक नलिकाओं की एण्डोमेट्रियम में होने वाले चक्रीय परिवर्तन आर्तव चक्र (Menstrual cycle) कहलाते हैं। एक स्त्री में आर्तव चक्र प्रत्येक 28/29 दिनों में दोहराया जाता है तथा एक ऋतु स्राव (Menstrual flow) से दूसरे तक की चक्रीय घटनाएँ मासिक चक्र कहलाती हैं। अण्डाशय व सहायक नलिकाओं में होने वाले परिवर्तन, हाइपोथैलेमस, पिट्यूटरी तथा अण्डाशयी हॉर्मोन्स के नियंत्रण में होते हैं। आर्तव चक्र में निम्न अवस्थाएँ क्रमिक रूप से आती हैं-ऋतुस्राव अवस्था, पुटिकीय
अवस्था, अण्डोत्सर्ग, पीतकी अवस्था।
चित्र 3.10. आर्तव चक्र में गर्भाशय भित्ति, अण्डाशय व हॉर्मोन्स स्तर में होने वाले परिवर्तन
(a) ऋतुस्राव अवस्था (Menstrual flow phase)-3 से 5 दिन तक चलने वाली इस अवस्था में गर्भाशयी एण्डोमेट्रियम के कुछ ऊतक, वहाँ की रक्त केशिकाओं के क्षतिग्रस्त होने से निकला रक्त, कुछ म्यूकस आदि योनिद्वार से बाहर निकलते हैं। अण्ड का निषेचन न होने पर व प्रोजेस्टेरॉन के अभाव के कारण गर्भाशयी लाइनिंग (एण्डोमेट्रियम) को बनाए रखना संभव नहीं होता, अत: वह कुछ रक्त के साथ शरीर से बाहर आ जाती है। इसी को ऋतु स्राव कहा जाता है।
(b) पुटिकीय प्रावस्था (Follicular stage)—इस अवस्था को प्रचुरोद्भवन अवस्था (प्रोलिफरेटिव फेज) भी कहा जाता है। गर्भाशयी एन्डोमेट्रियम में ऋतु स्राव के कारण हुई क्षति (टूट-फूट) की भरपाई होती है। इससे एन्डोमेट्रियम मोटी व ग्रन्थिल हो जाती है।
इस अवस्था में अण्डाशय में प्राथमिक पुटक का ग्राफी पुटक के रूप में विकास होता है। अतः एस्ट्रोजन व प्रोजेस्टेरॉन का स्तर बढ़ जाता है। यह अवस्था 5वें दिन से 13वें दिन तक चलती है।
(c) अण्डोत्सर्ग अवस्था (Ovulation stage) अग्र पिट्यूटटी के ल्यूटीनाइजिंग हॉर्मोन (LH) का स्तर आर्तव चक्र के 14वें दिन अपने चरम पर होता है। इसे एल एच सर्ज कहा जाता है। इसी के प्रभाव से 14वें दिन अण्डोत्सर्ग होता है। इसका अर्थ है अण्ड (द्वितीयक ऊसाइट) ग्राफी पुटक व अण्डाशय से मुक्त हो जाता है।
(d) पीतकी अवस्था (Luteal phase) या स्रावी अवस्था स्रावी अवस्था 15वें दिन से 28वें दिन तक चलती है। ग्राफी पुटक अण्ड के निकल जाने के कारण पीत पिण्ड(कॉर्पस ल्यूटियम) में बदल जाता है। यह पिण्ड प्रोजेस्टेरॉन का स्राव करता है। इसी कारण इस अवस्था में प्रोजेस्टेरॉन स्तर अपने चरम पर होता है। इस हॉर्मोन के प्रभाव से गर्भाशयी एण्डोमेट्रियम और मोटी व ग्रन्थिल हो जाती है। वह हॉर्मोन उसे इसी रूप में बनाए रखने में मदद करता है। अधिक प्रोजेस्टेरॉन के फीडबैक प्रभाव से पिट्यूटरी हॉर्मोन स्तर कम हो जाता
है अत: पुटिकीय विकास रुक जाता है। अण्ड के निषेचित न होने पर कॉर्पस ल्यूटियम अपघटित हो जाती है अत: प्रोजेस्टेरॉन
स्तर गिरने लगता है। प्रोजेस्टेरॉन के अभाव में एन्डोमेट्रियम का क्षरण प्रारम्भ हो जाता है जो ऋतु स्राव अवस्था आने का परिचायक है।
अतः हाइपोथैलेमस के प्रभाव से निकले अग्र पिट्यूटरी हॉर्मोन FSH, LH तथा अण्डाशयी हॉर्मोन एस्ट्रोजन व प्रोजेस्टेरॉन ऋतु स्राव चक्र का नियमन करते हैं।
प्रश्न शुक्रजनन क्या है ? संक्षेप में शुक्रजनन की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
अथवा
शुक्रजनन क्या है ? इस प्रक्रिया के नियमन में शामिल दो हॉर्मोनों के नाम
(2019)
लिखिए।
उत्तर शुक्रजनन (Spermatogenesis) वृषण स्थित द्विगुणित जननिक कोशिकाओं (शुक्रजन कोशिकाओं) में हुए अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा अगुणित नर युग्मकों या परिपक्व शुक्राणुओं का निर्माण शुक्रजनन कहलाता है। शुक्रजनन एक लगातार चलने वाली अर्थात् सतत् प्रक्रिया है जो लगभग 74 दिन में पूर्ण होती है। इस प्रक्रिया का अध्ययन दो शीर्षकों के
अन्तर्गत किया जा सकता है-
(i) शुक्राणुप्रसु (स्पर्मेटिड) का बनना।
(ii) शुक्राणुजनन (स्मर्मियोजेनेसिस)।
(i) शुक्राणुप्रसु (स्पर्मेटिड) का बनना यह प्रक्रिया निम्न तीन पदों में पूर्ण होती है-
(a) गुणन प्रावस्था (Multiplicative phase) शुक्रजनन नलिकाओं की भित्ति बनाने वाली जननिक एपीथीलियम की कोशिकाएँ विभेदित होकर शुक्राणु मातृ कोशिकाओं या स्पर्मेटोगोनिया का रूप ले लेती हैं। इनमें कुछ स्पर्मेटोगोनिया को A प्रकार की कोशिकाएँ कहा जाता है जो स्टेम कोशिकाओं की तरह लगातार विभाजित होकर गुणन करती रहती हैं। जबकि कुछ अर्थात् B प्रकार की स्पर्मेटोगोनिया अगली प्रावस्था में प्रवेश करती हैं।
(b) वृद्धि प्रावस्था (Growth phase)—इस अवस्था में प्रत्येक स्पर्मेटोगोनियम केआकार में वृद्धि होती है। वृद्धि के बाद इन्हें प्राथमिक शुक्राणु कोशिका (प्राइमरी स्पर्मेटोसाइट) कहा जाता है। वृद्धि प्रावस्था कम अवधि की होती है।
(c) परिपक्वन प्रावस्था (Maturation phase) यह शुक्रजनन की को महत्वपूर्ण अवस्था है जिनमें अर्द्धसूत्री विभाजन होता है। प्रथम अर्द्धसूत्री विभाजन से प्राथमिक शुक्राणु कोशिका (प्राइमरी स्पर्मेटोसाइट) दो अगुणित द्वितीयक शुक्राणु कोशिकाओं (सेकण्डा स्पर्मेटोसाइट) का निर्माण करती है। द्वितीयक शुक्राणु कोशिकाओं में अर्द्धसूत्री विभाजन द्वितीय सम्पन्न होता है जिससे प्रत्येक द्वितीयक शुक्राणु कोशिका दो अगुणित शुक्राणुप्रसु बना देती है। अत: एक शुक्राणु मातृ कोशिका से 4 स्पर्मेटिड्स बनते हैं।
(ii) शुक्राणुजनन (स्पर्मियोजेनेसिस)–शुक्राणुजनन वह प्रक्रिया है जिसमें अचल गोल, अगुणित, शुक्राणु प्रसु गतिशील (motile) सक्रियशुक्राणु में रूपान्तरित हो जाता है। यह वह प्रक्रिया है जिसमें गॉल्जीकाय शुक्राणु का एक्रोसोम बनाता है। इसमें केन्द्रक संघनित हो
जाता है तथा कोशिकाद्रव्य कम हो जाता है। शुक्रजनन के नियमन में शामिल हॉर्मोन्स-अति लघु उत्तरीय प्रश्न क्रमांक 2 के
उत्तर देखें।
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