मङ्गलम्
(कल्याण)
ॐ तच्चक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुकमुच्चरत् ।
पश्येम शरदः शतं जीवेत शरदः शतम्।
भृणुयाम शरदः शतं प्रनवाम शरदः शतम्।
अदीनाः स्याम शरदः शतम्। भूयश्च शरदः शतात् ।। 1 ।।
अनुवाद – देवों द्वारा निरूपित यह शुक्ल वर्ण का नेत्र रूप (सूर्य) पूर्व दिशा में ऊपर उठ चुका है। हम सब सौ वर्षों तक देखते रहें, सौ वर्षों तक जीते रहें, सौ वर्षों तक सुनते रहें, सौ वर्षों तक शुद्ध रूप से बोलते रहें, सौ वर्षों तक स्वावलम्बी (अदीन) बने रहें और यह सब सौ वर्षों से भी अधिक चलता रहे।
आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदव्यासो अपरीतास उद्भिदः ।
देवा नो यथा सदमिद वृधे असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवे दिवे ।।2।।
अनुवाद- हमारे पास चारों ओर से ऐसे कल्याणकारी विचार आते रहें जो किसी से न दबें, उन्हें कहीं से बाधित न किया जा सके (अपरीतासः) एवम् अज्ञात विषयों को प्रकट करने वाले (उद्भिदः) हों, प्रगति को न रोकने वाले (अप्रायुव:) तथा सदैव रक्षा में तत्पर देवगण प्रतिदिन हमारी वृद्धि के लिए तत्पर रहें।.
Leave a Reply