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अपठित बोध
अपठित-जिसका पाठ्यक्रम निर्धारित न हो वह अपठित
कहलाता है। परीक्षा में एक अपठित गद्यांश का भाव लिखना
होता है। इसमें पूछे गये गद्यांश का अभिप्राय प्रकट करना होता
है। परीक्षार्थी को चाहिए कि वह उस अंश को ध्यानपूर्वक पढ़े
तथा उसका भाव अपनी भाषा में लिखे। ‘भाव’, दिये गये गद्यांश
से छोटा होना चाहिए। इसमें अनावश्यक बातें, उदाहरण आदि
हटाकर थोड़े शब्दों में ही बात कही जाती है।
अपठित पर शीर्षक, सारांश तथा भाव सम्बन्धी प्रश्न पूछे
जाते हैं। इनके उत्तर दिये गये अंश के आधार पर ही देने होते हैं।
इसलिए गद्यांश या पद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़ना आवश्यक है।
उदाहरण, अलंकार या कहावत आदि को सारांश में नहीं दिया
जाता है। शीर्षक में दिये गये अंश का स्पष्ट आभास होना चाहिए।
सरल, सुबोध भाषा-शैली अच्छी मानी जाती है।
अपठित के कुछ हल सहित उदाहरण
अपठित गद्यांश
निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर नीचे लिखे प्रश्नों के
उत्तर दीजिए-
(1)
“उदारता का अभिप्राय केवल नि:संकोच भाव से किसी को
धन दे डालना ही नहीं, वरन् दूसरों के प्रति उदार भाव भी रखना
है। उदार पुरुष सदैव दूसरों के विचारों का आदर करता है और
समाज में सेवक भाव से रहता है। यह न समझो कि केवल मन
से उदारता हो सकती है, सच्ची उदारता इस बात से है कि एहसान
जताकर उपकार न किया जाये। एहसान जताकर उपकार करना
अनुपकार है।”
प्रश्न-(अ) उक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
(ब) गद्यांश का सारांश लिखिए।
उत्तर-(अ) शीर्षक ‘सच्ची उदारता’।
(ब) सारांश-उदारता का अभिप्राय उदार भाव रखना है।
दूसरों के विचारों का आदर करने वाले उदार व्यक्ति अज्ञात रूप
से उपकार करते हैं, वे एहसान नहीं जताते हैं।
(2)
राष्ट्रीय भावना, देश-प्रेम और चरित्र-निर्माण की दिशा में
संगीत का अपना स्थान है। कविता को पढ़ने की अपेक्षा उसे गाने
का एक अलग आनन्द है, जिसका स्थायी प्रभाव बच्चों पर पड़ता
है। कहते हैं कि लोरियों के भाव अबोध बच्चे भी आत्मसात कर
लेते हैं। सामूहिक रूप से बहुत से लोगों के साथ गीत गाने का
भी एक अलग मजा है और उसका चमत्कारी प्रभाव पड़ता है।
प्रश्न-(अ) गद्यांश का सारांश लिखिए।
(ब) गद्यांश का शीर्षक दीजिए।
उत्तर-(अ) सारांश-संगीत राष्ट्रीयता, देश-प्रेम और
चरित्र निर्माण का सशक्त माध्यम है। गीत गायन का चमत्कारपूर्ण
प्रभाव होता है।
(ब) शीर्षक ‘संगीत का महत्त्व’।
(3)
उपवन का प्रात:कालीन दृश्य अत्यन्त सुन्दर था। विभिन्न
रंग के विकसित पुष्प अपनी सुवास से नेत्र और नासिका को तो
तृप्त कर ही रहे थे, साथ ही उन पर उड़ती हुई भावनामयी रंगीन
तितलियाँ हदय को बरबस मोह लेती थीं। वे ऐसी लगती थीं जैसे
किसी के हृदय-सागर में उठने वाली आनन्दमयी भाव तरंगें हों
और उनके साथ ही संगीत की मधुर तान छेड़ने वाले भौरों का
तो कहना ही क्या ? ऐसा लग रहा था, जैसे मतवाले प्रेमी प्रेम में
मस्त होकर मोहक राग गा रहे हों। उपवन.के एक ओर विभिन्न
वर्ण के गुलाब, जहाँ प्रकृति की रहस्यमयता को प्रकट कर रहे
थे, वहाँ कोमल सुमनों को काँटों में फंसा देखकर विधाता की
हृदयहीनता का परिचय भी दे रहे थे।
प्रश्न-(अ) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
(ब) उक्त गद्यांश का सार लिखिए।
उत्तर-(अ) शीर्षक-‘उपवन का प्रातःकालीन दृश्य’।
(ब) सार-प्रात:काल में उपवन का दृश्य अत्यन्त मनोहर
था। उसे देखकर हृदय में आनन्द की हिलोरें उठ रही थीं।
गुनगुनाते मस्त भौरों, खिले हुए गुलाबों से प्रकृति का रहस्यमय
रूप उजागर हो रहा था, वहीं फूलों को काँटों से घिरा देख ब्रह्मा
की कठोरता का संकेत मिल रहा था।
(4)
जो विद्याभ्यासी पुरुष पढ़ता और पुस्तकों से प्रेम करता है,
संसार में उसकी स्थिति चाहे जितनी ही बुरी हो, उसे साथियों का
अभाव नहीं खल सकता है। उसकी कोठरी में सदा ऐसे लोगों
का वास रहेगा जो अमर हैं। वे उसके प्रति सहानुभूति प्रकट करने
और उसे समझाने के लिए सदा प्रस्तुत रहेंगे।
प्रश्न-(अ) उक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
(ब) उपर्युक्त गद्यांश का शीर्षक दीजिए।
उत्तर-(अ) सारांश-पुस्तक-प्रेमी विद्याभ्यासी पुरुष को
बुरी स्थिति में भी साथियों का अभाव नहीं खलता हा आ
निकट सहानुभूति रखने वाले अमर लोगो का वास रहता है।
(ब) शीर्षक-‘पुस्तकों का महत्त्व’ ।
अपठित पद्यांश
नीचे
निम्नलिखित अपठित पद्यांशों को पढ़कर
प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
(1)
भारतमाता का मन्दिर यह, समता का संवाद जहाँ,
सबका शिव-कल्याण यहाँ है, पावें सभी प्रसाद यहाँ
जाति, धर्म या सम्प्रदाय का, नहीं भेद-व्यवधान यहाँ
सबका स्वागत, सबका आदर, सबका सम सम्मान यहाँ।
प्रश्न-(अ) उक्त पद्यांश का शीर्षक दीजिए।
(ब) भारतमाता के मन्दिर की किन अच्छाइयों का वर्णन
किया गया है?
(स) उपर्युक्त पद्यांश का सार लिखिए।
उत्तर-(अ) शीर्षक-‘भारतमाता का मन्दिर’।
(ब) भारतमाता के मन्दिर में समानता, लोक-मंगल.
धर्म-निरपेक्षता, सम्प्रदायहीनता, प्रेम, मैत्री आदि अच्छाइयों की
ओर संकेत किया है।
(स) भारतमाता के मन्दिर में सर्वत्र समानता एवं मंगल का
भाव विद्यमान है। यहाँ जाति, धर्म, सम्प्रदाय आदि से परे सभी
का स्वागत, आदर एवं सम्मान है।
(2)
जो शूलों को चले फूल ही मानकर।
झंझाओं में चलता सीना तानकर॥
काँटों के बदले में खुश हो फूल दे।
सपने में भी नहीं किसी को शूल दे॥
जिसको राहें मिलती हैं व्यवधान में।
जो रातों को बदले स्वर्ण विहान में॥
मझधारों को लाकर तट पर प्यार दे।
आवर्तो को भी जो पार उतार दे॥
जिसके दिल में बहती गंगा-धार है।
सच कहता हूँ मुझको उससे प्यार है॥
प्रश्न-(अ) उक्त पद्यांश का सारांश लिखिए।
(ब) उक्त पद्यांश का शीर्षक दीजिए।
उत्तर-(अ) सारांश- इस पद्यांश में कवि ने देश के प्रति
समर्पित सपूतों का अभिनन्दन किया है। विविध विषमताओं पर
विजय प्राप्त करके सुख का सृजन करने वाले सहृदयजन वास्तव
में सम्मान तथा प्रेम के पात्र हैं। ओजस्वी वाणी में राष्ट्रीयता का
स्वर मुखरित है।
धरा
(ब) शीर्षक-‘मुझको उससे प्यार है।’
(3)
यह तुलसी की
जन्म भूमि,
यह है तुलसी का
धाम।
जिसके रजकण के कण-कण में,
बिखरी उनकी
गाथा प्रकाम।
हे पथिक सँभल कर चलो यहाँ,
हे पथिक चलो निज पाँव थाम।
धूमिल न कहीं पड़ जाय धूलि से,
उनकी
कोई स्मृति ललाम।
उन चरणों पर जो चले सदा,
ढूँढ़ा न कभी पथ पर विराम।
उन चरणों पर जो चले सदा,
जब तक न मिल जाय परम धाम।
उन चरणों पर जो
करता है,
लौ, बन कर पद तल प्रणाम।
आश्चर्य नहीं मेरा भी
तन,
बन याम याम॥
प्रश्न-(अ) इस पद्यांश का सारांश अपने शब्दों में
महके चन्दन
लिखिए।
(ब) उपर्युक्त पद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(स) तुलसी की जन्मभूमि का नाम क्या है ?
हिन्दी । 119
उत्तर-(अ) सारांश-इस पद्यांश में तुलसी की जन्मभूमि
भारत की गौरव गाथा प्रस्तुत की गई है। तुलसी की मर्यादा,
लोकमंगल तथा भक्तिभाव से भरे देश में मानव को सँभल कर
जीवन-यापन करने की सलाह दी गयी है।
(ब) शीर्षक-‘तुलसी की जन्मभूमि’ या ‘भारत’
उपयुक्त रहेंगे।
(स) तुलसी की जन्मभूमि भारत है।
(4)
तर्क से तर्कों का रण छिड़ा, विचारों से लड़ रहे विचार।
ज्ञान के कोलाहल के बीच, डूबता जाता है संसार॥
और सबका उल्टा परिणाम,बुद्धि का जितना बढ़ताजोर।
आदमी के भीतर की शिरा हुई जाती कुछ और कठोर॥
ज्ञान के मरु में चलता हुआ, आदमी खोता जाता है।
हृदय के सर का शीतल बारि और कम होता जाता है।
बुद्धि तृष्णा की रासी हुई मृत्यु का सेवक है विज्ञान।
चेता तब भी नहीं मनुष्य, विश्व का क्या होगा भगवान्।
प्रश्न-(अ) उपर्युक्त कविता का सारांश लिखिए।
(ब) ज्ञान के कोलाहल से क्या अभिप्राय है ?
(स) इस अंश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
उत्तर-(अ) सारांश-इस पद्यांश में कवि ने आज के बुद्धि
प्रधान वैज्ञानिक युग पर कटाक्ष किया है। मानव भावहीन होकर
निरन्तर बुद्धिवादी होता जा रहा है। वह सहयोग, दया, शान्ति, प्रेम
से रहित होकर कठोर एवं स्वार्थी होता जा रहा है।
(ब) ज्ञान के कोलाहल से अभिप्राय है आज का युग बुद्धि
प्रधान हो गया है। भावहीन हो रहा है। यह बुद्धि व्यक्ति को
परेशान किये है।
(स) शीर्षक-‘वैज्ञानिक दुष्प्रभाव’।
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