3 कवियों का साहित्यिक-परिचय कवि-परिचय 3 कवियों का साहित्यिक-परिचय कवि-परिचय

3 कवियों का साहित्यिक-परिचय
कवि-परिचय

1.सूरदास

रचनाएँ–अधिकांश विद्वानों ने सूरदास की तीन रचनाएँ-
(1) सूर सागर, (2) सूर सारावली एवं (3) साहित्य लहरीमानी हैं।
काव्यगत विशेषताएँ-
(अ) भाव पक्ष-(1) भक्ति भाव-सूरदास के आराध्य
श्रीकृष्ण हैं। उनके हृदयस्थ भावों की अभिव्यक्ति बाल-लीलाओं,
प्रेमलीलाओं आदि में व्यापक रूप में हुई है।
(2) सहदयता और भावुकता-सूर के पदों में मानव
मन के भावों की यथार्थता तथा मार्मिकता स्पष्ट परिलक्षित
व होती है।
(3) उत्कृष्ट रस संयोजना-सूर रससिद्ध कवि थे। सूर
काव्य में शान्त, शृंगार और वात्सल्य रसों की त्रिवेणी प्रवाहित है।
(4) अद्वितीय वात्सल्य वर्णन-सूरदास के सूर सागर में
कृष्ण के बाल-चरित्र., शारीरिक सौन्दर्य, माता-पिता के हृदयस्थ
वात्सल्य का अद्भुत चित्रण हुआ है।
(5) श्रृंगार वर्णन-सूर ने अपने काव्य में संयोग और
वियोग का चित्रण करके शृंगार को रसराज सिद्ध कर दिया है।
(ब) कला पक्ष-(1) ब्रजभाषा
का लालित्य
स्वरूप-सूरदास ने ब्रजभाषा को लालित्य प्रधान बना दिया।
उनकी भाषा सरल, सरस और प्रभावशाली है। भाषा में भाव
प्रकाशन की क्षमता है। लोकोक्तियों से भाषा में चमत्कार आ
गया है।
(2) गेयपद शैली-सूर का साहित्य गेयपद शैली का उन्नत
और पूर्ण विकसित उदाहरण है। उसमें सभी राग-रागनियों का
प्रयोजन
हुआ है।
(3) आलंकारिकता की सहज आवृत्ति-सूर काव्य में
अलंकारों का अत्यन्त स्वाभाविक प्रयोग हुआ है। उपमा, रूपक,
उत्प्रेक्षा, यमक, श्लेष आदि सभी अलंकार उनके काव्य में देखे
जा सकते हैं।
साहित्य में स्थान-भक्ति काल को स्वर्णयुग की गरिमा
से अभिमण्डित करने में महात्मा सूर का अनुपम योगदान है। वे
भक्ति काल की कृष्ण-भक्ति शाखा के प्रतिनिधि कवि हैं। वे
वात्सल्य और शृंगार रस के आचार्य हैं। ब्रजभाषा को सुललित
काव्य भाषा बनाने का श्रेय सूर को ही है। भाषा तथा कला पक्ष
की जो गरिमा सूर में है वह किसी और में नहीं मिलती। सूर
वास्तव में हिन्दी साहित्याकाश के सूर (सूर्य) हैं।

2. तुलसीदास
रचनाएँ-(1) रामचरितमानस,
(2) विनयपत्रिका,
(3) कवितावली, (4) गीतावली, (5) बरवै रामायण, (6) रामलला
नहरू, (7) रामाज्ञा प्रश्नावली, (8) वैराग्य संदीपनी, (9) दोहावली,
(10) जानकी मंगल, (11) पार्वती मंगल, (12) हनुमान बाहुक,
(13) कृष्ण गीतावली।
काव्यगत विशेषताएँ-
(अ) भाव पक्ष (भाव तथा विचार)-तुलसी ने अपने
काव्य कौशल से विभिन्न मतों, सम्प्रदायों और सिद्धान्तों की
कटुता को समन्वयवादी दृष्टिकोण से दूर करके उनमें समन्वय
स्थापित करने का प्रयास किया है। सामाजिक समरसता, समन्वय
की भावना एवं लोक मंगल की भावना तुलसी के साहित्य में भरी
पड़ी है। मानव प्रकृति, जीवन जगत् की सूक्ष्म दृष्टि एवं विस्तृत
गहन अनुभव से जीवन के विविध पक्षों को उद्घाटित किया है।
तुलसी के काव्य में शृंगार, शान्त तथा वीर रसों की निष्पत्ति हुई है।
संयोग और वियोग के हृदयग्राही वर्णन प्रभावशाली हैं। रौद्र, करुण
और अद्भुत रसों का सजीव चित्रण किया गया है। विनयपत्रिका
में भक्ति और विनय का उत्कृष्ट स्वरूप मिलता है।
(ब) कला पक्ष (भाषा तथा शैली)-तुलसीदास ने अपनी
काव्यकृतियों में अवधी और ब्रज भाषाओं का प्रयोग किया है।
संस्कृत, फारसी और अरबी शब्दावली का प्रयोग भी उत्कृष्ट
कोटि का है। शैली की विविधता द्रष्टव्य है।
भाषा और छन्द के विषय में तुलसी ने समन्वयवादी प्रवृत्ति
का परिचय दिया है। उन्होंने दोहा, चौपाई, कवित्त, सवैया आदि
सभी छन्दों का प्रयोग किया है।
साहित्य में स्थान-तुलसीदास ने लोकहित और लोकजीवन
को सुखी बनाने के लिए माता-पिता, गुरु-शिष्य, पुत्र-सेवक,
राजा-प्रजा के आदर्श रूप प्रस्तुत किए हैं। इस समग्र साहित्यिक
सेवा के लिए उन्हें सदैव स्मरण किया जाता रहेगा। हिन्दी साहित्य
जगत में आपको एक चन्द्रमा के समान माना जाता है। आपको
लोकनायक कवि के रूप में जाना जाता है।

3. देव
रचनाएँ-आपकी रचनाओं की संख्या 52 से 72 तक
मानी जाती है। परन्तु आपके मात्र 15 ग्रन्थ ही प्राप्त होते हैं।
इस प्रकार हैं-(1) भावविलास, (2) रसविलास, (3) अष्टयाम |
(4) कुशलविलास, (5) देवचरित्र, (6) प्रेम त
(7) भवानीविलास, (8) प्रेमचन्द्रिका, (9) सुजान विनोद |
(10) सुखसागर तरंग, (11) काव्य रसायन, (12) राग रत्नाकर |
(13) देवमाया, (14) देवशतक, (15) प्रपंच जाति विलास।
इनके अतिरिक्त आचार्य विश्व प्रसाद मिश्र आपकी कुछ अन्य
रचनाएँ भी मानते हैं, जैसे-वृक्ष विलास, पावस विलास, प्रेम
दीपिका, सिन्दूरी-सिन्दूर तथा राधिका विलास।
काव्यगत विशेषताएँ-
(अ) भाव पक्ष-देव रीतिकालीन कवि थे। उनका सम्बत्र |
तत्कालीन राजाओं से था। अत: आपकी रचनाओं में दरबार
संस्कृति का चित्रण हुआ है। आपने अपनी रचनाओं में प्रेस
तथा सौन्दर्य के सहज चित्र खींचे हैं। देव रसिक व शृंगारी का
थे। आपने संयोग एवं वियोग शृंगार का वर्णन किया है। आपन
रचनाओं में भाव सौन्दर्य के चित्र भी प्रस्तुत किए हैं।
(ब) कला पक्ष-देव एक प्रतिभा सम्पन्न कवि ।
आलंकारिकता एवं शृंगारिकता आपके काव्य की प्रमुख
विशेषताएँ हैं। शब्दों की आवृत्ति के माध्यम से नया सौन्दर्य प
करके उन्होंने सुन्दर ध्वनिचित्र प्रस्तुत किए हैं।
अपनी रचनाओं में आपने साहित्यिक ब्रजभाषा का प्रया
किया है। भाषा में तत्सम एवं तद्भव दोनों प्रकार के शब्दो
प्रयोग किया है। आपने विषयानुकूल शब्दों का चयन किया।
आपकी बिम्ब योजना एवं छंद योजना सराहनीय है।
साहित्य में स्थान-रीतिकालीन कवियों में देव का प्रमुख
स्थान माना जाता है। आपकी रचनाएँ राजाओं द्वारा सदी
सम्मानित एव पुरस्कृत रही है। आपकी रचनाओं के गुणग्राम
साहित्य जगत में आपका नाम अविस्मरणीय है।
राजा भोगीलाल से आपको प्रचुर धन-सम्मान प्राप्त होता रहा है।
4.
जयशंकर प्रसाद
जीवन-परिचय-जयशंकर प्रसाद का जन्म वाराणसी में
‘सुँघनी साहु’ नाम के प्रसिद्ध एवं प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में
सन् 1889 ई. में हुआ था। आपके पिता श्री देवीप्रसाद जी थे,
जो साहित्य प्रेमी थे। प्रसाद जी का बचपन दु:खों में व्यतीत
हुआ। इनके बाल्यावस्था में ही माता-पिता की मृत्यु हो गयी।
प्रसाद जी की शिक्षा स्कूल में केवल आठवें दर्जे तक हुई थी।
सत्रह वर्ष की आयु में बड़े भाई का स्वर्गवास हो जाने के कारण
परिवार का बोझ प्रसाद जी पर ही आ पड़ा। प्रसाद जी को घर
पर ही अंग्रेजी, हिन्दी, उर्दू, संस्कृत की अच्छी शिक्षा मिली।
संस्कृत साहित्य के प्रति आपका गहन अनुराग था। इन्होंने वेद
और उपनिषदों के साथ-साथ इतिहास और दर्शन का भी गम्भीर
अध्ययन किया। इनका जीवन बड़ा संघर्षपूर्ण रहा। इन्हें अनेक
पारिवारिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। माता-पिता, भाई
तथा तीन पलियों की मृत्यु, व्यवसाय में घाटा आदि दु:खों के
कारण इनका स्वास्थ्य गिरता गया। फलस्वरूप सन् 1937 में
केवल 48 वर्ष की अवस्था में काशी में इनका देहान्त हो गया।
इन्होंने हिन्दी साहित्य को समृद्ध बनाने में अपूर्व योगदान दिया।
रचनाएँ-जयशंकर प्रसाद ने जिन श्रेष्ठ काव्य रचनाओं
से हिन्दी साहित्य को सम्पन्न किया; वे इस प्रकार हैं-
(1) कामायनी, (2) झरना, (3) आँसू, (4) लहर, (5) चित्रा धार,
(6) कानन कुसुम,(7) प्रेम पथिक,(8) करुणालय। इनके अतिरिक्त
प्रसाद ने उपन्यास, कहानी, नाटक आदि की भी रचना की।
काव्यगत विशेषताएँ-
(अ) भाव पक्ष-(1) भारतीयता में आस्था-जयशंकर
प्रसाद भारतीय संस्कृति के प्रति अटूट आस्थावान रहे। उसके
सभी आदर्श रूपों को उन्होंने अपने काव्य में स्थान दिया। वे
लोक-कल्याण तथा विश्वबन्धुत्व की भावना से ओतप्रोत हैं, वे
आशावादी हैं।
(2) प्रेम और सौन्दर्य प्रसाद जी मूलत: प्रेम और सौन्दर्य
के कवि हैं। प्रसाद के काव्य का मूल तत्व प्रेम है। उनके प्रेम में
वासना नहीं, अपितु त्याग, बलिदान की उदात्त भावना है। सौन्दर्य
की जैसी मधुर झाँकी उनकी कविता में मिलती है, वह अन्यत्र
दुर्लभ है।
(3) प्रकृति प्रेम-प्रकृति सौन्दर्य के प्रसाद जी कुशल
चित्रकार हैं। प्रसाद जी ने प्रकृति को अनेक रूपों में चित्रित
किया है। उन्होंने प्रकृति को मानवीकरण एवं प्रतीकात्मक रूप
में अपनाया है।
(4) रहस्य-भावना-प्रसाद जी के काव्य में रहस्यवाद के
अनुपम चित्र मिलते हैं। ‘कामायनी’ में उस विराट सत्ता के प्रति उनकी
हिन्दी 17
जिज्ञासा तीव्रता से व्यक्त हुई है। प्रसाद जी की यह रहस्य-भा
अद्वैतवाद और शैवदर्शन के आनन्दवाद से प्रभावित है।
(5) नारी के प्रति सहानुभूति-प्रसाद जी की नारी
प्रति गहन सहानुभूति है। वे पुरुष की अपेक्षा नारी को अधिक
महत्व देते हैं। उन्होंने नारी के विविध रूपों का चित्रण किया है।
उसे वे दया, ममता, माया, मधुरिमा, अगाध विश्वास से परिपूर्ण
मानते हैं।
(6) राष्ट्रीय भावना-प्रसाद जी यद्यपि सौन्दर्य, प्रेम एवं
प्रकृति के महान् चित्रकार हैं, किन्तु उनके काव्य में स्वाधीनता
के प्रति अपार प्रेम है, देश की स्वतन्त्रता के लिए जूझ जाने का
आह्वान उनके गीतों में मिलता है।
(ब) कला पक्ष-(1) भाषा-प्रसाद जी भाषा के धनी
थे। तत्सम शब्दों के कारण भाषा में कहीं-कहीं क्लिष्टता आ
गयी है, किन्तु स्वाभाविकता और प्रवाह बना रहता है। प्रारम्भ
में प्रसाद ने ब्रजभाषा में काव्य रचना की बाद में उन्होंने खड़ी
बोली को अपनाया है। प्रसाद की भाषा प्रौढ़, प्रांजल एवं प्रसाद
गुण सम्पन्न है।
(2) शैली-प्रसाद जी ने मुक्तक और प्रबन्ध दोनों शैलियों
में काव्य रचना की है। भावात्मकता, चित्रात्मकता उनकी शैली
की विशेषता है।
(3) छन्द-प्रारम्भ में प्रसाद जी ने अपनी कविता में सवैया
और कवित्त छन्दों का प्रयोग किया, किन्तु आगे चलकर उन्होंने
अतुकान्त छन्द का प्रयोग व्यापक रूप में किया। आपने कुछ नये
छन्दों का भी निर्माण किया।
(4) अलंकार-अलंकार योजना की दृष्टि से अनेक नवीन
उपमानों के प्रयोग में प्रसाद जी सिद्धहस्त हैं। उनके काव्य में
उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, मानवीकरण आदि का अधिक प्रयोग
हुआ है।
साहित्य में स्थान-छायावाद के प्रवर्तक जयशंकर
प्रसाद बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। इतिहास, दर्शन और कला
के मणिकांचन संयोग ने इनके काव्य को अपूर्ण गरिमा प्रदान
की। ‘कामायनी’ जैसी अमूल्य कृति के रचनाकार प्रसाद हिन्दी
साहित्य की महान् विभूति थे।
5. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’
जीवन-परिचय-सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म
सन् 1899 ई. में बसन्त पंचमी के दिन बंगाल के मेदिनीपुर
जिले की महिषादल नामक रियासत में हुआ था। इनके पिता का
नाम पं. रामसहाय त्रिपाठी था, जो उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले
में गढ़ाकोला नामक ग्राम के निवासी थे। अपने भरे-पूरे परिवार
को छोड़कर महिषादल नामक रियासत (बंगाल) में बस गये थे।
निराला के जन्म के तीन वर्ष पश्चात ही इतकी माता की मृत्यु ही
गयी। पत्नी की मृत्यु के कारण पिता रामसहाय जी के स्वभाव
में कठोरता आ गयी जिसके कारण निराला का शैशव ममता के
अभाव में बीता। निराला की शिक्षा दीक्षा बंगाल में ही हुई।
आपने बंगला साहित्य का अध्ययन भी किया।
लगभग चौदह वर्ष की अवस्था में निराला का विवाह,
मनोहरा देवी के साथ हुआ। उनकी पत्नी हिन्दी भाषा एवं साहित्य
में विशेष रूप से रुचि रखती थीं। उन्हीं की प्रेरणा से निराला
की हिन्दी साहित्य और संगीत में अभिरुचि उत्पन्न हुई। मात्र
बाइस वर्ष की अवस्था में ही उनकी पत्नी का स्वर्गवास हो गया।
निराला का मन टूट गया और महिषादल रियासत की नौकरी
छोड़कर चले आये। रामकृष्ण मिशन द्वारा संचालित ‘समन्वय’
के सम्पादक के रूप में आप नियुक्त हुए। इसके बाद में आप
‘मतवाला’ के सम्पादक बनाये गये। इसके बाद आप लखनक
आ गये, फिर इलाहाबाद में रहे। निराला का समस्त जीवन दु:ख,
संकट और अर्थाभाव में व्यतीत हुआ। सन् 1961 में सरस्वती का
यह ‘निराला’ वरद पुत्र सदैव के लिए इस संसार से चल बसा।
रचनाएँ-निराला की प्रमुख काव्य-कृतियाँ इस प्रकार
हैं-(1) अनामिका, (2) परिमल, (3) गीतिका, (4) तुलसीदास,
(5) अणिमा, (6) बेला, (7) आराधना, (8) अपरा, (9) गीत गूंज,
(10) कुकुरमुत्ता, (11) नये पत्ते आदि।
काव्यगत विशेषताएँ-
(अ) भाव पक्ष-(1) प्रेम और सौन्दर्य-छायावाद के
उन्नायक कवि होने के कारण निराला के काव्य में प्रेम और
सौन्दर्य के मोहक चित्र मिलते हैं। उनके सौन्दर्य वर्णन में ताजगी,
आकर्षण और स्वच्छन्दता है।
(2) प्रकृति-चित्रण-निराला ने प्रकृति के सजीव चित्र
अंकित किये हैं। उन्होंने उसमें मानवीय भावों का आरोप करके
प्रकृति के प्रति एक नूतन दृष्टिकोण उपस्थित किया है। उनका
प्रकृति वर्णन अत्यन्त मधुर और हृदयस्पर्शी है।
(3) भक्ति एवं दर्शन-जीवन के अन्तिम वर्षों में लिखी
गयी कविताओं में निराला के भवत हृदय की आर्त पुकार सुनायी
पड़ती है। उन पर वेदान्त का प्रभाव था, किन्तु वे भक्ति का द्वैतवाद
चाहते थे निराला की कविताओं में कबीर जैसी भक्ति-भावना,
लोक-कल्याण, रहस्यवाद विद्यमान हैं।
(4) प्रगतिवादी दृष्टिकोण-महाप्राण निराला के काव्य
में प्रगतिवादी स्वर सुनायी पड़ता है। उनके काव्य की प्रमुख
विशेषता दीन-हीन निर्धन किसानों के प्रति गहरी सहानुभूति है।
इस दृष्टि से निराला की ‘कुकुरमुत्ता’, ‘तोड़ती पत्थर’, ‘दीन’
आदि कविताएँ महत्त्वपूर्ण हैं।
(5) राष्ट्रीयता-निराला जी का काव्य देश-प्रेम और
राष्ट्रीयता की भावनाओं से परिपूर्ण है। कविताओं में राष्ट्रीय प्रेम
ओज के साथ उमड़कर आया है।
(ब) कला पक्ष-(1) भाषा-निराला की भाषा भावों के
हैं। इन्होंने कुछ नवीन शब्दों की रचना भी की है।
अनुरूप बदलती जाती है। देश-प्रेम तथा भक्तिपरक व्यंग्यात्मक
कविताओं में इनकी भाषा सरल एवं व्यावहारिक है। गम्भीर
है। निराला की भाषा में उर्दू, फारसी एवं बंगला शब्द भी आ गए
रचनाओं में आपकी भाषा क्लिार, संस्कृतनिष्ठ एवं दुरूह हो गयी
(2) शैली-‘निराला’ को दो शैलियाँ स्पष्ट हैं-(i) उत्कृष्ट
() सरल, प्रवाहपूर्ण, प्रचलित उर्दू के शब्द लिये व्यंग्यपूर्ण और
(3) छन्द-निराला ने छन्दों के क्षेत्र में नये-नये प्रयोग किये
हैं। आपने तुकान्त एवं अतुकान्त दोनों प्रकार के छन्द लिखे हैं।
चुटीली शैली।
मुक्तक छन्द को आपने ही जन्म दिया।
(4) अलंकार-निराला की अलंकार योजना उच्चकोटि की
है। आपने नवीन एवं प्राचीन दोनों प्रकार के उपमानों का प्रयोग
किया है। आपके काव्य में उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, मानवकिरण,
विशेषण विपर्यय, पुनरुक्तिप्रकाश आदि अलंकार अधिक प्रयोग
साहित्य में स्थान-आधुनिक कवियों में महाप्राण निराला
का उत्कृष्ट स्थान है। वे मुक्तक के जनक थे। निराला जी ने
हिन्दी कविता को नयी दिशा प्रदान की। इन्होंने हिन्दी कविता को
नवीन विषयों और शैलियों से समृद्ध किया। निराला जी हिन्दी
के मूर्धन्य रचनाकार हैं।
6. नागार्जुन
जीवन-परिचय-कवि नागार्जुन का जन्म बिहार राज्य के
दरभंगा जिले के सतलखा गाँव में सन् 1911 में हुआ था। इनका
वास्तविक नाम वैद्यनाथ मिश्र था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव
की संस्कृत पाठशाला में ही हुई थी। काशी संस्कृत महाविद्यालय
से आचार्य की उपाधि ग्रहण करके वे कलकत्ता गए। परिवार की
दशा ठीक न होने के कारण आपको अभाव में ही जीवन-यापन
करना पड़ा। बौद्ध धर्म से प्रभावित होकर उन्होंने बौद्ध धर्म अपना
लिया। प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान ‘नागार्जुन’ के नाम को ग्रहण कर
अपना उपनाम ‘नागार्जुन’ रख लिया।
वैवाहिक बंधन में बँधने पर भी घुमक्कड़ी प्रवृत्ति होने के
कारण वे एक बार श्रीलंका में भी पहुँच गए। वहाँ भी उन्होंने कुछ
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समय तक संस्कृत भाषा का अध्यापन कार्य किया। कुछ दिनों
बाद वे स्वदेश वापस लौटे और पुनः गृहस्थ जीवन को स्वीकार
कर लिया। सन् 1998 में आपका स्वर्गवास हो गया।
रचनाएँ-नागार्जुन की प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं-
काव्य-रचनाए-(1) युगधारा, (2) प्यासी पथराई आँखें,
(3) सतरंगे पंखों वाली, (4) तालाब की मछलियाँ, (5)
प्यासी
परछाई,(6) हज़ार-हज़ार बाँही वाली,(7) तुमने कहा था,(8) खून
और शोले,(9) पुरानी जूतियों का कोरस, (10) चना और गर्म।
(1) खण्डकाव्य-“भस्मांकुर’ नागार्जुन का प्रसिद्ध खण्ड
काव्य है। इसमें भस्मासुर की पौराणिक कथा को नवीन रूप में
प्रस्तुत किया गया है। इसमें स्थान-स्थान पर प्रेम, सौन्दर्य एवं
प्रकृति को अत्यन्त सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया है।
(2) उपन्यास-वरुण के बेटे, बलचनमा, रतिनाथ की
चाची, हीरक जयन्ती, कुम्भीपाक, उग्रतारा, नई पौध आदि ।
नागार्जुन की सभी रचनाएँ ‘नागार्जुन रचनावली’ के सात भागों
में प्रकाशित हैं। साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें अनेक
पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्हें हिन्दी अकादमी दिल्ली
का शिखर सम्मान, उत्तर प्रदेश का भारत-भारती पुरस्कार, बिहार
का राजेन्द्र प्रसाद पुरस्कार तथा मैथिली भाषा में कविता लिखने
के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से विभूषित किया गया। वे
मैथिली में यात्री’ नाम से काव्य रचना करते थे।
काव्यगत विशेषताएं-आपकी काव्यगत विशेषताएँ इस
प्रकार है-
(अ) भाव पक्ष-(1) सच्चे देशभक्त-कवि नागार्जुन एक
सच्चे देशभक्त थे। क्रांतिकारी विचारधारा होने के कारण आपको
अनेक बार जेल यात्राएँ भी करनी पड़ी। आपकी रचनाओं में भी
देशभक्ति की झलक देखने को मिलती है।
(2) व्यंग्य कवि-नागार्जुन को व्यंग्य रचनाओं में भी महारथ
हासिल थी। अत: उन्हें व्यंग्य प्रधान कवि भी माना जाता है।
(3) जनकवि-नागार्जुन को आधुनिक कवीर भी कहा
जाता है। छायावादोत्तर काल में वे ऐसे अकेले कवि हैं जिनकी
कविता गाँव की चौपालों और साहित्यिक दुनिया में समान रूप
से लोकप्रिय है। अत: वे एक सच्चे जनकवि हैं।
(ब) कला पक्ष (भाषा-शैली)-आपकी भाषा तत्सम एवं
प्रभावशाली शब्दों से युक्त साहित्यिक खड़ी बोली है। आपकी
भाषा में आंचलिक शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। आपने अपनी
रचनाओं में प्रबंध तथा मुक्तक दोनों प्रकार की शैलियों का प्रयोग
किया है। प्रतीकात्मकता एवं व्यंग्यता शैली की विशेषता है।
साहित्य में स्थान-कवि नागार्जुन एक प्रतिभाशाली कवि
है। आपको देश में ही नहीं विदेश में भी अनेक सम्मानों से
सम्मानित किया गया है। साहित्य जगत में आपकी गणना श्रेष्ठ
कवियों में की जाती है। आप आज भी सूर्य के समान साहित्य
जगत में अमर हैं। अतः साहित्य में आपका उच्च स्थान है।
7. गिरिजाकुमार माथुर
जीवन-परिचय-गिरिजाकुमार माथुर का जन्म सन् 1918
ई. में अशोक नगर, गुना (मध्य प्रदेश) में हुआ था। प्रारम्भिक
शिक्षा से लेकर स्नातकोत्तर स्तर तक की शिक्षा झाँसी, ग्वालियर,
लखनऊ से ग्रहण की। आकाशवाणी से कार्य आरम्भ किया और
बाद में दूरदर्शन से अवकाश प्राप्त किया। सन् 1994 में आप
स्वर्ग को चले गए।
रचनाएँ-(1) मंजरी, (2) नाश और निर्माण, (3) धूप
के धान, (4) शिलापंख चमकीले, (5) भीतरी नदी की यात्रा,
(6) जो बंध नहीं सका,(7) जनम कैद (नाटक),(8) नई कविता :
सीमा और सम्भावनाएँ (आलोचना)।
काव्यगत विशेषताएं-
(अ) भाव पक्ष (भाव तथा विचार)-इनके गीतों पर
छायावाद का प्रभाव है। सामाजिक समस्याओं को उद्घाटित
करके समाधान की दिशा-निर्दिष्ट की है। कवि ने अपनी कविता
में आनन्द, रोमांस और सन्ताप की तरलता की अनुभूति की है।
प्राचीनता को तोड़ा है, नवीनता की भावभूमि को अपनाया गया है।
(ब) कला पक्ष (भाषा तथा शैली)-इनकी भाषा शुद्ध
परिमार्जित तथा चित्र खींचने की क्षमता से युक्त खड़ी बोली हिन्दी
है। नये-नये भावों को नई शैली में और नए छन्द विधान द्वारा
अभिव्यक्ति दी है। शब्द चयन में तुक, तान और अनुतान की
काव्यात्मक झलक ध्वनित होती है। इनकी रचनाओं में मालवा
की समृद्ध प्रकृति का स्वरूप अंकित है। आंचलिक शब्दों के
प्रयोग की मिठास भी इनकी कविता की श्रीवृद्धि करती है।
साहित्य में स्थान-हिन्दी काव्य के आधुनिक कवियों में
इनका विशिष्ट स्थान है। नई कविता के कवि गिरिजाकुमार माथुर
को विभिन्न पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया है। हिन्दी
साहित्य जगत में आप सदैव के लिए अमर हैं।
8.
ऋतुराज
जीवन-परिचय-कवि ऋतुराज का जन्म भरतपुर
(राजस्थान) में सन् 1940 में हुआ था। वहीं से प्रारम्भिक शिक्षा
प्राप्त करके राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर से अंग्रेजी में एम. ए.
की शिक्षा प्राप्त की। आपने चालीस वर्षों तक अंग्रेजी साहित्य
के अध्यापन के बाद अपनी सेवा पूर्ण की। सेवानिवृत्ति के बाद
वे जयपुर में ही निवास कर रहे हैं।
रचनाएँ-कवि ऋतुराज के अब तक आठ कविता-संग्रह
प्रकाशित हो चुके हैं। जिनमें (1) एक मरणधर्मा और अन्य,(2) पुल
पर पानी, (3) सुरत निरत, (4) लीला मुखारविंद मुख्य हैं।
काव्यगत विशेषताएँ-
(अ) भाव-पक्ष-कवि ऋतुराज हिन्दी साहित्य के कवियों
में से एक हैं। इनकी कविताओं का केन्द्रीय भाव प्रत्येक परिस्थिति
में सम-सामयिक व सामाजिक मुद्दों पर आधारित रहा है। कवि
ने मुख्य धारा से अलग समाज के लोगों की चिन्ताओं को अपने
लेखन का विषय बनाया है। आपकी कविताओं में दैनिक जीवन
के अनुभव का यथार्थ छिपा हुआ है।
(ब) कला-पक्ष (भाषा-शैली)-कवि अपने आस-पास
घटित होने वाले सामाजिक शोषण और विडम्बनाओं पर नजर
डालते हैं। इसी कारण उनकी भाषा अपने परिवेश और लोक
जीवन से जुड़ी हुई है। अतः आपकी भाषा सरल, सहज तथा
भावानुकूल है। कविताओं में प्रमुख रूप से भावात्मक शैली
प्रयोग की है।
साहित्य में स्थान-कवि ऋतुराज सदैव से ही सामाजिक
जीवन से जुड़े रहे हैं। साहित्य एवं समाज से जुड़ने के कारण
ही उन्हें सोमदत्त, परिमल सम्मान, मीरा पुरस्कार, पहल सम्मान,
बिहारी सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। हिन्दी साहित्य जगत में आपका
विशेष स्थान है।
9.
मगलेश डबराल
जीवन-परिचय-नई कविता के क्षेत्र में अपनी विशेष
पहचान बनाने वाले कवि मंगलेश डबराल का जन्म टिहरी
गढ़वाल (उत्तरांचल, वर्तमान उत्तराखण्ड) के काकलपानी नामक
गाँव में सन् 1948 में हुआ था। आपकी शिक्षा देहरादून में सम्पन्न
हुई थी। इसके बाद दिल्ली आकर ‘हिन्दी पेट्रियट’, ‘प्रतिपक्ष’
तथा ‘आसपास’ में काम करने के बाद वे भोपाल में भारत भवन
से प्रकाशित होने वाले ‘पूर्वग्रह’ में सहायक सम्पादक बने। आपने
इलाहाबाद और लखनऊ से प्रकाशित ‘अमृत प्रभात’ में भी कुछ
दिन कार्य किया। सन् 1983 में ‘जनसत्ता’ नामक अखबार में
आपने साहित्य सम्पादक का पद संभाला था। कुछ समय सहारा
समय’ में सम्पादन कार्य करने के बाद वे ‘नेशनल बुक ट्रस्ट’
से जुड़े हुए हैं।
रचनाए-कवि डबराल के प्रमुख रूप से चार कविता
संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। वे इस प्रकार हैं-(1) पहाड़ पर
लालटेन, (2) घर का रास्ता, (3) हम जो देखते हैं, (4) आवाज
भी एक जगह हैं।
काव्यगत विशेषताएँ-
(अ) भाव-पक्ष-कवि डबराल ने कविता लेखन के
साथ-साथ साहित्य, सिनेमा, संस्कृति तथा संचार माध्यम पर भी
अनेक लेख लिखे हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं में पूँजीवाद का घोर
विरोध किया है। वे यह विरोध शोर-शराबे के साथ नहीं बल्कि
काव्य में रचना के माध्यम से करते हैं।
(ब) कला पक्ष (भाषा-शैली)-कवि मंगलेश डबराल
ने अपनी रचनाओं में सरल, सहज तथा भावानुकूल भाषा का
प्रयोग किया है। आपकी कविताओं के भारतीय भाषाओं के
अतिरिक्त अंग्रेजी, रूसी, जर्मन, स्पानी, पोल्स्की और बल्गारी
भाषाओं में भी अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं। आपकी कविताओं
में प्रतीकात्मकता, लाक्षणिकता, बिम्ब योजना, आलंकारिकता
है।
का स्वयं ही प्रयोग हुआ है। आपकी शब्दावली तत्सम प्रधान
शैली में भावात्मकता है।
साहित्य में स्थान-कवि डबराल को एक प्रसिद्ध अनुवादक
के रूप में भी जाना जाता है। आपको ‘साहित्य अकादमी’ तथा
जगत में आपका नाम प्रसिद्ध है।

महत्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्न
(कवियों पर आधारित)
रिक्त स्थान पूर्ति
1. कवि सूरदास के आराध्य…………हैं।(श्रीकृष्ण/श्रीराम)
2. गोस्वामी तुलसीदास के आराध्य देव ………….हैं। (श्रीराम/श्रीकृष्ण)
3. ‘रसविलास’ के रचनाकार कवि……..हैं। (देव/घनानन्द)
4. ‘झरना’ के रचनाकार………..हैं। (जयशंकर प्रसाद/दुष्यन्त कुमार)
5. कवि नागार्जुन का वास्तविक नाम…………था। (रामजी लाल/वैद्यनाथ मिश्र)
6. कवि गिरिजाकुमार माथुर का जन्म………..प्रदेश में हुआ था। (मध्य/उत्तर)
7. ‘कन्यादान’ कविता के रचनाकार ………………हैं।(ऋतुराज/देव)
8. कवि डबराल को………….का कवि माना जात.हैं। (छायावादी/नई कविता)
उत्तर-1. श्रीकृष्ण,2. श्रीराम, 3. देव,
4. जयशंकर प्रसाद, 5. वैद्यनाथ मिश्र, 6. मध्य,
7. ऋतुराज, 8. नई कविता।

सही विकल्प चुनिए
1. बल्लभाचार्य के शिष्य इनमें से कौन थे ?
(क) कबीरदास
(ख) तुलसीदास
(ग) नरोत्तमदास
(घ) सूरदास।
2. ‘कामायनी’ रचना रचनाकार हैं-
(क) सूरदास
(ख) तुलसीदास
(ग) जयशंकर प्रसाद (घ) नागार्जुन।
3. ‘गीतावली’ के रचनाकार कौन हैं ?
(क) सूरदास
(ख) कबीरदास
(ग) रहीमदास
(घ) तुलसीदास।
4. कवि देव का जन्मस्थान था-
(क) इटावा
(ख) कानपुर
(ग) आगरा
(घ) ग्वालियर।
5. कवि जयशंकर प्रसाद के पिता का नाम था-
(क) रामनाथ सिंह (ख) देवी प्रसाद
(ग) रामचन्द्र
(घ) देव प्रसाद।
6. अनामिका के रचनाकार कौन हैं ?
(क) देव
(ख) जयशंकर प्रसाद
(ग) निराला
(घ) नागार्जुन।
7. ‘यात्री’ नाम से काव्य रचना करने वाले कवि थे-
(क) जयशंकर प्रसाद
(ग) देव
8. ‘पुल पर पानी’ के रचनाकार हैं-
(क) घनानन्द
(ख)मतिराम
(घ) नागार्जुन।
(ख) देव
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-1. (घ), 2. (ग) 3. (घ), 4. (क), 5. (ख),
(ग) ऋतुराज
6. (ग), 7. (घ), 8. (ग)।

4सही जोड़ी मिलाइए

(i) अष्टछाप कवि. (क) देव
(ii) लोकनायक कवि. (ख) निराला
(iii) रीतिकालीन कवि. (ग) जयशंकर प्रसाद
(iv) कामायनी. (घ) तुलसीदास
(v) कुकुरमुत्ता. (ङ) सूरदास
उत्तर-(i) → (ङ), (ii) → (घ), (ii) → (क),
(iv) → (ग), (v)→ (ख)।
सत्य/असत्य
1. तुलसीदास की पत्नी का नाम गीतावली था।
2. देव के आश्रयदाता का नाम भोगीलाल था।
3. ‘अष्टयाम’ के रचनाकार जयशंकर प्रसाद हैं।
4. ‘रतिनाथ की चाची’ नागार्जुन का प्रसिद्ध उपन्यास है।
5. ‘जनम कैद’ नाटक के लेखक गिरिजाकुमार माथुर हैं।
6. कवि ऋतुराज को सोमदत्त पुरस्कार से सम्मानित किया
गया है।
7. ‘अर्चना’ कवि मंगलेश डबराल की रचना है।
8. मंगलेश डबराल का जन्म म. प्र. में हुआ था।
उत्तर-1. असत्य, 2. सत्य, 3. असत्य, 4. सत्य,
5. सत्य, 6. सत्य,7. असत्य,8. असत्य।
एक शब्द/वाक्य में उत्तर
1. ‘साहित्य लहरी’ के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर-सूरदास।
2. ‘बीच में विनय’ प्रमुख उपन्यास के उपन्यासकार
कौन हैं?
उत्तर-स्वयं प्रकाश।
3. गोस्वामी तुलसीदास के पिता का नाम क्या था ?
उत्तर-आत्माराम दुबे।
4. कवि देव का पूरा नाम क्या था ?
उत्तर-देवदत्त द्विवेदी।
5. ‘युगधारा’ रचना के रचनाकार कौन हैं?
उत्तर-नागार्जुन।
6. कवि ऋतुराज का जन्म किस प्रदेश में हुआ था ?
उत्तर-राजस्थान में।
7. ‘संगतकार’ कविता के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर-कवि मंगलेश डबराल।
8. कवि मंगलेश डबराल का जन्म किस सन् में हुआ
था?
उत्तर-सन् 1948 में।

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