4 लेखकों का साहित्यिक-परिचय लेखक-परिचय for class 10th mp board ncert hindi

4 लेखकों का साहित्यिक-परिचय
लेखक-परिचय

स्वयं प्रकाश
1.
जीवन परिचय हिन्दी साहित्य की प्रसिद्ध गधकार स्वयं
प्रकाश जी का जन्म सन 194711 म०प्र० के इन्दौर शहर में
हुआ था। आपका बचपन राजस्थान राज्य व्यतीत हुआ तथा
वहीं से आप अध्ययन कार्य पूर्ण कर मैकनिकल इंजीनियरिंग
की पढ़ाई करके एक औद्योगिक प्रतिष्ठान में नौकरी करने लगे।
व्यतीत हुआ। परन्तु स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के बाद आप भोपाल
(म.प्र.) में रहते रहे। आप ‘वसुधा’ नामक पत्रिका के सम्पादन
कार्य से भी जुड़े हुए थे। 07 दिसम्बर, 2019 को आप स्वर्गवासी
हुए। अभी तक आपको पहल सम्मान, वनमाली पुरस्कार, राजस्थान
साहित्य अकादमी पुरस्कार आदि से पुरस्कृत किया जा चुका
है।
रचनाएँ-लेखक स्वयं प्रकाश एक प्रसिद्ध कहानीकार
हैं। अभी तक आपके तेरह कहानी-संग्रह तथा पाँच उपन्यास
प्रकाशित हो चुके हैं। उनमें से प्रमुख इस प्रकार हैं-
(1) कहानी-संग्रह- ‘सूरज कब निकलेगा’ ‘आएंगे अच्छे
दिन भी’, ‘आदमी जात का आदमी’, संधान’ आपकी चर्चित
कहानियाँ हैं।
(2) उपन्यास- ‘बीच में विनय’ तथा ‘ईंधन’ आपके प्रमुख
उपन्यास हैं।
भाषा-स्वयं प्रकाश जी ने अपनी रचनाओं में सरल, सरस
तथा भावानुकूल भाषा का प्रयोग किया है। उन्होंने साहित्यिक
खड़ी बोली में अपनी रचनाएँ रची हैं। आपकी रचनाओं में
अंग्रेजी, उर्दू, फारसी, देशज, तत्सम तथा तद्भव शब्दों की
प्रचुरता है।
शैली-उनकी शैली में हास्य एवं व्यंग्य का पुट प्रधान है।
छोटे-छोटे वाक्यों से शैली में सामासिकता भी आ गई है। एक
वाक्य में विभिन्न भाषाओं के शब्दों का प्रयोग करना आपकी
शैली की विशेषता है।
साहित्य में स्थान-लेखक स्वयं प्रकाश जी एक प्रसिद्ध
कहानीकार होने के साथ-साथ समाज के सजग प्रहरी भी है।
आपकी रचनाओं में सामाजिक परिस्थितियों का चित्रण देखने
को मिलता है। आप समाज के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपने
कहानी एवं उपन्यास की विधा से हिन्दी साहित्य को
सबलता
रहेंगे।
प्रदान की है। हिन्दी साहित्य में आप सूर्य के समान प्रकाशित
रामवृक्ष बेनीपुरी
जीवन-परिचय-रामवृक्ष बेनीपुरी भारतीय स्वतन्त्रता
संग्राम के अमर सेनानी रहे हैं। क्रान्ति के पथ पर इनकी रचनाएँ
प्रेरणा रूपी अग्नि का प्रकाश बनकर चमकी। इन्होंने नाटक,
कहानी, निबन्ध, रेखाचित्र, आलोचना आदि अनेक विधाओं में
लिखकर अपनी तेजस्वी प्रतिभा का परिचय दिया।
रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म सन् 1899 में बिहार के
मुजफ्फरपुर जिले के बेनीपुर गाँव में एक सामान्य कृषक परिवार
में हुआ था। इनके हृदय में देश-प्रेम की भावना बचपन से ही
भरी हुई थी। बचपन में ही इनके माता-पिता का देहान्त हो
गया, तो इनका लालन-पालन इनकी मौसी ने किया। इनकी
प्रारम्भिक शिक्षा बेनीपुर में ही हुई। मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करने
से पूर्व ही सन् 1920 में इन्होंने अध्ययन छोड़ दिया और महात्मा
गाँधी के असहयोग आन्दोलन में कूद पड़े। बाद में इन्होंने हिन्दी
साहित्य सम्मेलन, प्रयाग से ‘विशारद’ की परीक्षा उत्तीर्ण की।
ये राष्ट्र सेवा के साथ-साथ साहित्य सेवा भी करते रहे। इन्होंने
पत्र-पत्रिकाओं में लिखकर और सम्पादन करके लोगों के हृदय
में देशभक्ति की भावना जागृत की। इनको कई बार जेल यात्रा
करनी पड़ी। जेल में भी ये लिखते रहे। सन् 1968 में स्वतन्त्रता
के इस पुजारी साहित्यकार का निधन हो गया।
(1) उपन्यास-‘पतितों के देश में’।
रचनाएँ-बेनीपुरीजी की प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित है-
(2) रेखाचित्र- ‘माटी की मूरते’, ‘लालतारा’ आदि।
(3) संस्मरण-‘जंजीर और दीवार’, ‘मील के पत्थर’
आदि।
(4) निबन्ध-गेहू बनाम गुलाब’, ‘मशाल’, ‘बन्दै वाणी
(5) नाटक-‘आवपाली’, ‘सीता की माँ’, ‘संघमित्रा’,
‘अमर ज्योति’, ‘रामराज्य’ आदि।
(6) कहानी-‘चिता के फूल’ कहानी संग्रह।
(7) जीवनी-‘महाराज प्रताप सिंह’, ‘कार्ल मावर्स’, ‘जय
प्रकाश नारायण’ आदि।
(8) यात्रा वृत्तान्त-‘पैरों में पंख बाँध कर’,’उड़ते चल’।
(१) आलोचना-‘बिहारी सतसई की सुबोध टीका’,
‘विद्यापति पदावली’।
(10) सम्पादन-‘तरुण भारती’, ‘बालक’, ‘युवक’,
‘किसान’, ‘मित्र’, ‘कैदी’, ‘योगी’, ‘जनता’, ‘नई धारा’, ‘चुन्नू
मुनू आदि।
भाषा-बेनीपुरी की भाषा व्यावहारिक है। सरलता, सुबोधता
और सजीवता से युक्त होकर प्रभावोत्पादक बन गई है। इन्होंने
तत्सम, देशज, विदेशी सभी प्रकार के शब्दों का प्रयोग किया है।
इनकी भाषा में बिम्ब-विधायकता का गुण विद्यमान है। मुहावरों
और कहावतों के प्रयोग से इनकी भाषा में सुन्दरता आ गई है।
लाक्षणिकता, व्यंग्यात्मकता, ध्वन्यात्मकता, सौष्ठव प्रतीकात्मकता
और आलंकारितकता के कारण इनकी भाषा में अद्भुत लालित्य
उत्पन्न हुआ है। छोटे-छोटे वाक्य अर्थ अभिव्यक्ति के कारण
बड़ी तीखी चोट करते हैं। एक मुहावरे का प्रयोग देखिए- “गेहूँ
सिर धुन रहा है खेतों में, गुलाब रो रहा है बगीचों में-दोनों
अपने-अपने पालनकर्ताओं के भाग्य पर, दुर्भाग्य पर…”।
शैली-बेनीपुरी की रचनाओं में हम विषयानुसार विविध
प्रकार की शैलियों के दर्शन करते हैं। इनकी शैलियाँ निम्न प्रकार
की हैं-
(1) वर्णनात्मक शैली-बेनीपुरी जी ने किसी वस्तु अथवा
घटना का वर्णन करते समय इस शैली का प्रयोग किया है।
रेखाचित्र, संस्मरण, यात्रा, कहानी तथा जीवनियाँ इसी शैली में
इन्होंने लिखी हैं। इस शैली की भाषा सरल एवं सुबोध है। कुछ
वाक्य लम्बे हैं, पर वाक्य-विन्यास सहज बन पड़ा है।
(2) भावात्मक शैली-यह शैली बेनीपुरी जी की प्रधान
शैली है। इसमें भावों का प्रबल वेग, मार्मिकता तथा आलंकारिक
सौन्दर्य है। ललित निबन्धों का लेखन इसी कवित्वपूर्ण शैली में
हुआ है, यथा-
“वह ईट धन्य है, जो कट-र कर कौगो पर चढ़ती है और
बरबस लोक लोचनों को अपनी ओर आकृष्ट करती है। किन्तु
धन्य है वाईर, जो जापान के सात हाथ नीचे जाकर गढ़ गई और
इमारत की पहलीट बनी।”
(3) चित्रोपम शैली-बेनीपुरी जी के रेखाचित्र प्राय: इसी
शैली में लिखे गये हैं। कहीं-कहीं निवन्धों और कहानियों में भी
इस शैली के दर्शन होते हैं। इस शैली के माध्यम से बेनीपुरी जी
विषय का साक्षात्कार करा देते हैं।
(4) प्रतीकात्मक शैली-बेनीपुरी जी अपनी बात को
सीधे-सीधे न कहकर प्रतीकों के माध्यम से ही प्रस्तुत करते हैं।
इनके निबन्धों में इस शैली का अधिकता से प्रयोग हुआ है। ‘गेहूँ
बनाम गुलाब’, ‘नींव की ईंट’ आदि ललित निबन्ध प्रतीकात्मक
शैली के सुन्दर उदाहरण हैं।
(5) आलोचनात्मक शैली-बेनीपुरी ने समीक्षा के समय
आलोचनात्मक शैली को अपनाया है। इस शैली में प्रसाद गुण
सर्वत्र दिखाई देता है। भाषा प्रौढ़ और सुबोध है।
बेनीपुरी जी के साहित्य में नाटकीय, डायरी, सूक्ति आदि
शैलियों का भी प्रयोग हुआ है।
साहित्य में स्थान-रामवृक्ष बेनीपुरी जी के क्रान्तिकारी
व्यक्त्वि में उत्कृष्ट देशभक्ति, मौलिक साहित्यिक प्रतिभा,
नि:स्वार्थ समाज सेवा और चारित्रिक पावनता का अद्भुत
समन्वय है। भाषा शैली पर इनका असाधारण अधिकार है। भाषा
सर्वत्र सहज और स्वाभाविक है। इन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं
का सम्पादन किया और अनेक नाटकों, निबन्धों, कहानियों तथा
रेखाचित्रों आदि की रचना करके हिन्दी साहित्य के भण्डार में
श्रीवृद्धि की। एक देशभक्त साहित्यकार के रूप में बेनीपुरी जी
का नाम हिन्दी साहित्य में सदा अमर रहेगा।
3.
यशपाल
जीवन-परिचय-हिन्दी साहित्य जगत के प्रसिद्ध
साहित्यकार यशपाल का जन्म सन् 1903 में पंजाब के फिरोजपुर
छावनी में हुआ था। इनके पूर्वज हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा जिले
के निवासी थे। आपके पिता का नाम हीरालाल तथा माता का
नाम प्रेम देवी था। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा कांगड़ा के गुरुकुल
से सम्पन्न हुई तथा लाहौर के ‘नेशनल कॉलेज’ से बी.ए. की
शिक्षा ग्रहण की। यहीं पर आपका परिचय क्रांतिकारी भगतसिंह
और सुखदेव से हुआ। स्वाधीनता संग्राम की क्रांतिकारी धारा से
जुड़ने के कारण आपको कई बार जेल भी जाना पड़ा। सन् 1976
में आपका स्वर्गवास हो गया।
रचनाएं- यशपाल की प्रमुख रचनाएँ निम्न प्रकार हैं-
(1) कहानियाँ- ‘ज्ञानदान’, ‘तर्क का तूफान’, ‘पिंजरे की
उड़ान, ‘फूलों का कुर्ता’।
(2) उपन्यास- ‘अमिता’, ‘दिव्या’, ‘पार्टी कामरेड’, ‘दादा
कामरेड’, ‘मेरी तेरी उसकी बात’, ‘मनुष्य के रूप’, ‘क्यों फसे’,
‘अपसरा का श्राप’ तथा ‘झूठा सच।
(3) नाटक-‘नशे नशे की बात’, ‘रूप की परख’,
‘गुडबाई दददिल’।
(4) व्यंग्य लेख- ‘चक्कर क्लब’ ‘लखनवी अंदाज’।
(5) संस्मरण-‘सिंहावलोकन।
(6) विचारात्मक निबंध- ‘न्याय का संघर्ष’, ‘मार्क्सवाद’,
‘रामराज्य की कथा’।
भाषा-भाषा की स्वाभाविकता और सजीवता उनकी
रचनागत विशेषता है। आपकी भाषा सरल, सहज तथा पात्रानुकूल
है। आपने अपने साहित्य में बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया
है।
शैली- यशपाल जी ने अपने साहित्य में प्रमुख रूप से
वर्णनात्मक तथा संवादात्मक शैली का प्रयोग किया है। इसके
अतिरिक्त विषय के अनुकूल भावात्मक शैली को भी अपनाया
साहित्य में स्थान-कवि यशपाल क्रांतिकारी विचारधारा
से जुड़े रहे हैं। कई बार आपको जेल भी जाना पड़ा है। एक बार
दिल्ली में बम बनाते हुए आपको गिरफ्तार भी किया गया था।
आपको एक प्रमुख साहित्यकार एवं प्रकाशक के रूप में जाना
जाता है। हिन्दी साहित्य जगत में आपका नाम सदैव के लिए
अमर बना हुआ है।
4.
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
जीवन-परिचय-सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जन्म सन्
1927 में जिला बस्ती (उ.प्र.) में हुआ था। उन्होंने हाईस्कूल की
परीक्षा ‘ऐंग्लो संस्कृत उच्च विद्यालय’ बस्ती से पास की तथा
‘इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की।
उन्होंने अपने कार्य का प्रारम्भ ऑडीटर जनरल इलाहाबाद के
कार्यालय से किया था। इसके बाद वे अध्यापक, आकाशवाणी में
सहायक प्रोड्यूसर, ‘दिनमान’ पत्रिका में
के पद पर
रहे। जीवन के अन्तिम वर्षों में उन्होंने बच्चों की ‘पराग’ नामक
मासिक पत्रिका का संपादन भी किया। सन् 1983 में आपका
स्वर्गवास हो गया।

आदि के क्षेत्र में साहित्य का सृजन किया है। आपकी
रचनाएँ-लेखक ने कहानी, उपन्यास, नाटक, कवित
(1) कविता संग्रह- ‘काठ की पंटियाँ’, ‘कुआगो
‘जंगल का दर्द’, ‘खटियों पर टंगे लोग’।
(2) उपन्यास- ‘पागल कुत्तों का मसीहा’, ‘सोया हुन
जल’।
(३) कहानी- ‘लड़ाई।
(4) नाटक-‘बकरी।
(5) बाल साहित्य-‘भौं भौं खौं खौँ’, ‘बतूता का जूता’
‘लाख की नाक’।
(6) लेख-‘चरचे और चरखे।
भाषा-लेखक सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की भाषा सरल,
सहज व लोक भाषा से मिश्रित है। उन्होंने अपनी सरल और
सामान्य भाषा के माध्यम से असाधारण और असामान्य के
अभिव्यक्ति बड़ी सरलता से की है।
शैली-आपने अपनी रचनाओं में वर्णनात्मक, भावात्मक
तथा व्यंग्य प्रधान शैली का प्रयोग किया है।
साहित्य में स्थान-सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की पहचान
मध्यमवर्गीय जीवन की आकांक्षाओं के रूप में की जाती है।
आपके साहित्य में शोषण, संघर्ष, हताशा, कुंठा आदि का चित्रप
देखने को मिलता है। ‘खूटियों पर टँगे लोग’ कविता पर आपके
‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार भी प्राप्त हुआ है। हिन्दी साहित्य
जगत में आपका स्थान उच्च है।
5.
मन्नू भण्डारी
जीवन-परिचय-स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी साहित्य की प्रसिद्ध
कथा लेखिका मन्नू भण्डारी का जन्म मध्य प्रदेश के मंदसौर
जिले में स्थित भानपुरा’ नामक गाँव में सन् 1931 में हुआ था।
इनका मूल नाम महेन्द्र कुमारी था। आपने प्रमुख रूप से अजमेर
(राजस्थान) शहर से शिक्षा प्राप्त की। हिन्दी में एम.ए. की
परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने दिल्ली के ‘मिरांडा हाउस
कॉलेज’ में अध्यापन कार्य भी किया। अवकाश प्राप्ति के बाद वे
आजकल दिल्ली में रहकर ही स्वतन्त्र लेखन कर रही हैं।
रचनाएँ-लेखिका की प्रमुख रचनाएँ निम्न प्रकार हैं-
(1) कहानी-संग्रह-‘एक प्लेट सैलाब’, ‘मैं हार गई,
‘यही सच है’, ‘त्रिशंकु’, ‘तीन निगाहों की एक तस्वीर, ‘आँखों
देखा झूठ’।
(2) उपन्यास-‘आपका बंटी’, ‘महाभोज’, ‘स्वामी’, ‘एक
इंच मुस्कान’ (राजेन्द्र यादव के साथ।

(3) पट कथाएँ- ‘रजनी’, ‘निर्मला’, ‘दर्पण’
भाषा-मन्नू भण्डारी की भाषा सरल, सहज तथा
स्वाभाविक है। प्रसंगानुकूल आपने भाषा में अंग्रेजी, उर्दू शब्दों
के साथ-साथ मुहावरों का भी प्रयोग किया है। आपकी कहानियाँ
तथा उपन्यासों में भाषा और शिल्प की सादगी मिलती है।
“शैली-लेखिका ने अपनी रचनाओं में प्रमुख रूप से
वर्णनात्मक तथा भावात्मक शैली का प्रयोग किया है। चित्रात्मक
करना भी आपकी प्रमुख विशेषता रही है।
शैली का प्रयोग करने में भी आप सिद्धहस्त हैं। समासों का प्रयोग
साहित्य में स्थान- मन्नू भण्डारी एक सुलझी हुई लेखिका
हैं। उनकी उपलब्धियों के लिए उन्हें हिन्दी अकादमी के ‘शिखर
सम्मान’ सहित अनेक पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। लेखिका होने
के साथ-साथ वे एक क्रांतिकारी के रूप में भी जानी जाती हैं।
अत: हिन्दी साहित्य जगत में आपका उच्च स्थान है।
6.
महावीरप्रसाद द्विवेदी
जीवन-परिचय-द्विवेदी युग के कर्णधार महावीरप्रसाद
द्विवेदी का जन्म ‘दौलतपुर’, जिला-रायबरेली (उ.प्र.) में सन्
1864 में हुआ था। परिवार की आर्थिक दशा ठीक न होने के
कारण स्कूली शिक्षा पूर्ण करके उन्होंने रेल विभाग में नौकरी कर
ली थी। धीरे-धीरे उनका मन हिन्दी साहित्य में कविताएँ लिखने
की ओर बढ़ने लगा। बाद में नौकरी से त्याग-पत्र देकर सन्
1903 में आपने हिन्दी की प्रसिद्ध मासिक पत्रिका ‘सरस्वती’ का
सम्पादन शुरू किया और सन् 1920 तक उसके सम्पादन से जुड़े
रहे। इस पत्रिका में उन्होंने अनेक कवियों/लेखकों की रचनाओं
को प्रकाशित कर उनके मनोबल को बढ़ाया।
द्विवेदी के विषय में समझा जाता रहा है कि उन्होंने हिन्दी गद्य
की भाषा का परिष्कार किया और लेखकों की सुविधा के लिए
व्याकरण तथा वर्तनी के नियम भी बनाए। ‘सरस्वती’ पत्रिका के
माध्यम से आपने पत्रकारिता का श्रेष्ठ रूप सामने रखा। हिन्दी
में समालोचना को स्थापित करने का श्रेय आपको ही जाता है।
आपके लेखन में व्यंग्य की छटा भी समाहित है। सन् 1938 में
आपका स्वर्गवास हो गया था।
रचनाएँ-आपकी प्रमुख रचनाएँ निम्न प्रकार हैं-
(1) निबन्ध-संग्रह-‘रसज्ञ रंजन’, ‘साहित्य-सीकर’,
‘साहित्य-सन्दर्भ’, ‘अद्भुत आलाप’।
(2) कविता-संग्रह-‘द्विवेदी काव्य माला’।
(3) अर्थशास्त्रीय कृति-‘सम्पत्ति शास्त्र’।
इनके अतिरिक्त ‘महिला मोद’ (महिला उपयोगी पुस्तक),
‘आध्यात्मिकी’ (दार्शनिक पुस्तक) भी प्रकाशित हैं। आपका
सम्पूर्ण साहित्य ‘महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली’ के नाम से
पन्द्रह खण्डों में प्रकाशित है।
भाषा-आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी भाषा एवं व्याकरण
के मर्मज्ञ थे। इनकी भाषा परिमार्जित, परिष्कृत तथा व्याकरण
सम्मत है। आपने अपनी कविताओं में खड़ी बोली का प्रयोग
किया है। आपने हिन्दी शब्द भण्डार की श्रीवृद्धि में बहुत सहयोग
किया है।
शैली-वैसे तो आपने अपनी कृतियों में विवरणात्मक,
विवेचनात्मक आदि शैलियों का प्रयोग किया है परन्तु प्रमुख रूप
से ‘व्यास शैली’ पर आपका पूर्ण अधिकार था।
साहित्य में स्थान-आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी मात्र एक
लेखक ही नहीं बल्कि ऐसी संस्था थे जिससे परिचित होना हिन्दी
साहित्य के गौरवशाली साहित्य से परिचित होना है। वे हिन्दी
के प्रथम व्यवस्थित सम्पादक, भाषावैज्ञानिक, इतिहासकार,
पुरातत्ववेत्ता, अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, समालोचक एवं
अनुवादक थे। हिन्दी साहित्य जगत में अमरता प्राप्त करने के
साथ ही उनका उच्च स्थान है।
7.
यतीन्द्र मिश्र
जीवन-परिचय-हिन्दी साहित्य में अपना विशेष योगदान
देने वाले यतीन्द्र मिश्र का जन्म अयोध्या (उ.प्र.) में सन् 1977
में हुआ है। उन्होंने ‘लखनऊ विश्वविद्यालय’, लखनऊ से हिन्दी
विषय में एम.ए. की उपाधि प्राप्त की है। वे आजकल स्वतन्त्र
लेखन के साथ अर्द्धवार्षिक पत्रिका ‘सहित’का सम्पादन कर रहे
मिश्र जी अपनी रचनाओं के माध्यम से गद्य तथा पद्य दोनों
विधाओं पर सफलतापूर्वक लेखन कार्य कर रहे हैं। सरल एवं
सरस पहलुओं को उन्होंने अपनी कविताओं का विषय बनाया
है। सन् 1999 से मिश्र जी एक सांस्कृतिक न्यास ‘विमला देवी
फाउण्डेशन’ का भी संचालन कर रहे हैं जिसमें साहित्य और
कलाओं के संवर्धन और अनुशीलन पर विशेष ध्यान दिया जाता
है।
रचनाएँ- अभी तक यतीन्द्र मिश्र के तीन काव्य संग्रह
प्रकाशित हुए हैं- ‘यदा-कदा’, ‘अयोध्या तथा अन्य कविताएँ’,
‘ड्योढ़ी पर आलाप’। इनके अतिरिक्त शास्त्रीय गायिका गिरिजा
देवी के जीवन एवं उनकी संगीत-साधना पर ‘गिरिजा’ नामक
पुस्तक लिखी है। रीतिकाल के अन्तिम प्रतिनिधि कवि द्विजदेव
की ग्रन्थावली (2000) का सह-सम्पादन भी किया है। कुँवर
नारायण पर केन्द्रित दो पुस्तकों के अतिरिक्त स्पिक मैके के लिए
विरासत-2001 के कार्यक्रम हेतु रूपंकर कलाओं पर केन्द्रित
‘थाती’का सम्पादन भी किया है।
भाषा-यतीन्द्र मिश्र की भाषा सरल, सहज तथा प्रसंगानुकूल
है। उनकी रचनाओं में संवेदना तथा भावुकता का पुट विद्यमान
है। रचनाओं को प्रभावशाली बनाने हेतु आपने तत्सम तद्भव
शब्दों के साथ ही विदेशी शब्दों का भी प्रयोग किया है।
शैली- भावात्मक शैली के साथ ही विवरणात्मक एवं
विवेचनात्मक शैली का प्रयोग उनकी रचनाओं में देखने को
मिलता है।
साहित्य में स्थान युवा रचनाकार यतीन्द्र मिश्र को भारत
भूषण अग्रवाल कविता सम्मान, हेमन्त स्मृति कविता पुरस्कार,
ऋतुराज सम्मान जैसे कई पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। कविता,
संगीत आदि के अतिरिक्त संस्कृति के क्षेत्र में भी आपकी गहरी
रुचि है। गम्भीर विषय को सरल बना देने की योग्यता के कारण
ही मिश्र जी का साहित्य लोकप्रिय है। हिन्दी साहित्य जगत में
इन्हीं सब गुणों के कारण आपका विशेष स्थान है।
8.
भदंत आनन्द कौसल्यायन
जीवन-परिचय-हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध संस्मरणकार
भदंत आनन्द कौसल्यायन का जन्म सन् 1905 में पंजाब प्रदेश
के अम्बाला जिले में ‘सोहाना’ गाँव में हुआ था। प्रारम्भिक
शिक्षा ग्रहण करके उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया था और बाद
में बौद्ध-भिक्षु भी बन गए थे। भिक्षु बनने के बाद आपने अनेक
यात्राएँ भी की तथा बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार हेतु अपना जीवन
समर्पित कर दिया था। देश-विदेश के भ्रमण ने भदंत जी को
अनुभव की व्यापकता प्रदान की और उनकी सृजनात्मकता को
समृद्ध भी किया। उन्होंने हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग तथा
‘राष्ट्रभाषा प्रचार समिति’ वर्धा के माध्यम से देश-विदेश में
हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार का भी कार्य किया।
इनके बचपन का नाम ‘ हरनाम दास था। उन्होंने लाहौर के
‘नेशनल कॉलेज’ से बी.ए, की शिक्षा ग्रहण की। वे गाँधी जी
के साथ लम्बे समय तक वर्धा में रहे। वे गाँधी जी के व्यक्तित्व
से बहुत ही प्रभावित थे। सन् 1988 में आपका
स्वर्गवास
ही
रचनाएँ- भदंत आनन्द कौसल्यायन ने छोटी-बड़ी लगभग
गया।
बीस पुस्तकों की रचना की है जिनमें संस्मरण तथा रेखाचित्र
अधिक हैं। आपकी प्रमुख रचनाएँ निम्न प्रकार हैं-‘भिक्षु के
पत्र’, ‘जो भूल ना सका’, ‘आह ! ऐसी दरिद्रता’, ‘बहानेबाजी’
‘यदि बाबा ना होते, ‘रेल का टिकट’, ‘कहाँ क्या देखा।
भाषा-लेखक कौसल्यायन की भाषा सरल व रोचक है।
भाषा में कहीं-कहीं तत्सम, तद्भव, तथा ग्रामीण भाषा के
शब्द भी प्रयोग किए हैं। सरल, सहज तथा बोलचाल की भाषा
में लिखे गए निबन्ध तथा संस्मरण बहुत लोकप्रिय हैं।
शैली-आपने वर्णनात्मक शैली के
साथ-साथ
आत्मकथात्मक तथा संवादात्मक शैली का भी प्रयोग किया है।
साहित्य में स्थान-लेखक भदंत आनन्द कौसल्यायन जी
का गाँधी जी के साथ भी घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है। हिन्दी साहित्य
को बढ़ाने में आपका विशेष योगदान रहा है। आपने अपनी
रचनाओं द्वारा पाठक के मन में सत्य और अहिंसा की भावना भर
दी है। आपके द्वारा रचित ग्रन्थ हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि
हैं। हिन्दी साहित्य जगत में आपका नाम आदर के साथ लिया
जाता है। अत: हिन्दी साहित्य में आपका उच्च स्थान है।
महत्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्न
(लेखकों पर आधारित)
रिक्त स्थान पूर्ति
1. स्वयं प्रकाश एक प्रसिद्ध……………. हैं।
(कहानीकार/कवि)
2. रामवृक्ष बेनीपुरी के गाँव का नाम ….. है।
(बेनीपुर/रामपुर)
3. यशपाल की माता का नाम………….था।
(प्रेमदेवी/रामवती)
4. सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जन्म जिला में………….हुआ था।
(बस्ती/आगरा)
5, मन्नू भण्डारी प्रमुख रूप से प्रसिद्ध ………….. के रूप में
जानी जाती हैं।(कहानीकार/नाटककार)
6. ‘सम्पत्ति शास्त्र’ इस अर्थशास्त्रीय पुस्तक के लेखक
जी हैं।
7. यतीन्द्र मिश्र का जन्म स्थान …………..है।
(अज्ञेय/महावीरप्रसाद द्विवेदी
(अयोध्या (उ.प्र.)/ग्वालियर (म.प्र.))
8. मानव…………….एक अविभाज्य वस्तु है।
(संस्कृति/शरीर)
उत्तर-1. कहानीकार, 2. बेनीपुर, 3. प्रेमदेवी,
. बस्ती, 5. कहानीकार, 6. महावीरप्रसाद द्विवेदी,
7. अयोध्या (उ.प्र.), 8. संस्कृति ।

सही विकल्प चुनिए
1. ‘सूरज कब निकलेगा’ कहानी-संग्रह के रचनाकार
(क) मन्नू भण्डारी
(ग) यशपाल
(ख) यतीन्द्र मिश्र
(घ) स्वयं प्रकाश।
2. ‘माटी की मूरतें’ किसका रेखाचित्र है ?
(क) रामवृक्ष बेनीपुरी का
(ख) यतीन्द्र मिश्र का
(ग) यशपाल का
(घ) इनमें से किसी का नहीं।
3. यशपाल के पिता का नाम क्या था ?
(क) हीरालाल
(ख) रमेश
(ग) कालीचरन
(क) राकेश कुमार
(घ) रामसिंह।
4. ‘खूटियों पर टंगे लोग किसका प्रसिद्ध कविता-संग्रह
है?
(क) स्वयं प्रकाश
(ख) यशपाल
(ग) मन्नू भण्डारी
(घ) सर्वेश्वर दयाल सक्सेना।
5. प्रसिद्ध कहानी ‘यही सच है’ के रचनाकार हैं-
(ख) यशपाल
(ग) मन्नू भण्डारी
(घ) राजेन्द्र प्रसाद।
6. साहित्य-सीकर के रचनाकार कौन हैं?
(क) महावीरप्रसाद द्विवेदी
(ख) अज्ञेय
(ग) यतीन्द्र मिश्र
(घ) रामवृक्ष बेनीपुरी।
7. ‘यदा-कदा’ काव्य-संग्रह के रचनाकार कौन हैं ?
(ख) यतीन्द्र मिश्र
(घ) राजेश्वर सिंह।
8. ‘संस्कृति’ निबन्ध के रचनाकार कौन हैं ?
(क) वीरेन्द्र मिश्र
(ग) भवानी प्रसाद
(क) राकेश वर्मा
(ख) मन्नू भण्डारी
(ग) राजेन्द्र यादव
(घ) भदंत आनन्द कौसल्यायन।
उत्तर-1. (घ), 2. (क), 3. (क), 4. (घ), 5.
(ग), 6. (क), 7. (ख), 8. (घ)।

सत्य/असत्य
1. ‘आत्मकथा’ स्वयं प्रकाश की रचना है।
2. ‘मील के पत्थर’ बेनीपुरी का संस्मरण है।
3. ‘नशे नशे की बात’ यशपाल लिखित एक नाटक है।
4. ‘बकरी’ नाटक के लेखक सर्वेश्वर दयाल सक्सेना हैं।
5. ‘बाँस का फूल’ की रचना मन्नू भण्डारी ने की थी।
6. ‘द्विवेदी काव्य माला’ के रचनाकार आचार्य हजारीप्रसाद
द्विवेदी जी हैं।
7. ‘गिरिजा’ नामक पुस्तक के लेखक यतीन्द्र मिश्र हैं।
8. “भिक्षु के पत्र’ कृति के रचनाकार भदंत आनन्द
कौसल्यायन हैं।
उत्तर-1. असत्य, 2. सत्य, 3. सत्य, 4. सत्य,
5. असत्य, 6. असत्य, 7.सत्य,8. सत्य।
एक शब्द/वाक्य में उत्तर
1. ‘नेताजी का चश्मा’ की विधा क्या है ?
उत्तर-कहानी।
2. ‘गेहूँ बनाम गुलाब’ निबन्ध के लेखक कौन हैं ?
उत्तर-रामवृक्ष बेनीपुरी।
3. ‘सिंहावलोकन’ संस्मरण के लेखक कौन हैं ?
उत्तर-यशपाल।
4. ‘सोया हुआ जल’ उपन्यास के लेखक कौन हैं ?
उत्तर-सर्वेश्वर दयाल सक्सेना।
5. मन्नू भण्डारी का जन्म कहाँ हुआ था ?
उत्तर-भानपुरा, जिला-मंदसौर (म.प्र.) में।
6. ‘रसज्ञ रंजन’ निबन्ध के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर-आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी।
7. यतीन्द्र मिश्र ने किस विश्वविद्यालय से एम.ए. की
उपाधि प्राप्त की थी?
उत्तर-लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ से।
8. भदंत आनन्द कौसल्यायन का जन्म किस
सन्
हुआ था ?
उत्तर-सन् 1905 में।

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