NCERT class 12th samajshastra important question अध्याय 9 सांस्कृतिक परिवर्तन [Cultural Change]

अध्याय 9 सांस्कृतिक परिवर्तन [Cultural Change]

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहु-विकल्पीय प्रश्न

1. संस्कृतीकरण की अवधारणा किस विद्वान ने दी है ?
(A) राधाकमल मुखर्जी ने,
(B) एम. एन. श्रीनिवास ने,
(C) योगेन्द्र सिंह ने,
(D) महात्मा गाँधी ने।

2. संस्कृतीकरण की प्रक्रिया निम्न समाज के अन्तर्गत विद्यमान है
(A) हिन्दू समाज,
(B) हिन्दू सम्प्रदायों,
(C) समूहों,
(D) ये सभी ।

3. प्रार्थना समाज की स्थापना किस वर्ष हुई ?
(A) 1867,
(B) 1868,
(C) 1869,
(D) 1870.

4. आर्य समाज के संस्थापक कौन हैं ?
(A) स्वामी दयानन्द सरस्वती,
(B) स्वामी विवेकानन्द जी,
(C) राजा राममोहन राय,
(D) रामदास जी ।

5. भारतीय समाज पर पश्चिमीकरण का प्रभाव किस पर पड़ता है ?
(A) धार्मिक जीवन पर,
(B) विवाह संस्था पर,
(C) स्त्रियों की दशा पर,
(D) ये सभी।

6. “पश्चिमीकरण में पश्चिमी पोशाक, खान-पान, तौर-तरीके, शिक्षा, विधियाँ, खेल और मूल्यों को सम्मिलित किया जाता है। ” किसका कथन है ?
(A) डॉ. एम. एन. श्रीनिवास,
(B) मिल्टर सिंगर,
(C) लिंच,
(D) कोई नहीं।

7. पश्चिमीकरण शब्द का प्रयोग श्रीनिवास ने किस सन्दर्भ में किया ?
(A) आधुनिकीकरण,
(B) संस्कृतीकरण,
(C) सम्प्रदायीकरण,
(D) राजनीतिकरण ।

8. पश्चिमीकरण को किस तरह की अवधारणा माना जाता है ?
(A) भौतिक अवधारणा,
(B) क्षेत्रीय अवधारणा,
(C) तटस्थ अवधारणा,
(D) यूरोपीय अवधारणा

9. संस्कृतीकरण की प्रक्रिया से होने वाला सामाजिक परिवर्तन है
(A) नवीन उपजातियों का जन्म तथा उपजातियों में संघर्ष,
(B) निम्न जातियों का उत्थान,
(C) नवीन रीति-रिवाजों का जन्म,
(D) उपर्युक्त सभी।

10. धर्मनिरपेक्षीकरण की विशेषता है
(A) धर्म के प्रभाव में कमी,
(B) तर्क एवं विवेक की प्रधानता,
(C) वैज्ञानिक आविष्कारों का महत्त्व,
(D) ये सभी।

उत्तर – 1. (B), 2. (D), 3. (A), 4. (A) 5. (D), 6. (C). 7. (A), 8. (C), 9. (D), 10. (D).

रिक्त स्थान पूर्ति
1. ____________________को भारत के सामाजिक व धार्मिक इतिहास का अन्य युग कहते हैं।
2. पश्चिमीकरण शब्द _________________समाज व संस्कृति में उत्पन्न हुए परिर्वतनों के लिए प्रयोग किया जाता है।
3. संस्कृतीकरण की अवधारणा______________ ने दी है।
4. डॉ. एनी बेसेन्ट तथा श्रीमती काडसिस ने मद्रास में भारतीय _____________की स्थापना की थी।
5. संस्कृतीकरण की प्रक्रिया का उल्लेख करने वाले लेखक का नाम______________ है।
6. भारत में घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण कानून सन् _______________में पारित हुआ।
7. मुस्लिम समाज की कुरीतियों को दूर करने के लिए अलीगढ़ आन्दोलन के प्रणेता _______________हैं।
8. मुस्लिम महिलाओं के वैवाहिक अधिकारों के संरक्षण के लिए तीन तलाक को समाप्त करने वाला कानून सन् ________________में पारित हुआ।
9. सन्______________ में बन्धुआ मजदूरी उन्मूलन अधिनियम लागू किया गया।
10. संस्कृतीकरण की प्रक्रिया ________________की शुरुआत से पहले हुई

उत्तर – 1. मध्य युग, 2. भारतीय, 3. एम. एन. श्रीनिवास, 4. संघ, 5. एम. एन. श्रीनिवास, 6. 2005, 7. सर सैयद अहमद खाँ, 8. 2019, 9. 1976, 10. उपनिवेशवाद ।

सत्य / असत्य
1. सांस्कृतिक परिवर्तन का अर्थ रीति-रिवाजों, परम्पराओं, जीवन-शैली और व्यवहार में परिवर्तन है।
2. ब्रिटिश सरकार ने भारत में रेलवे तथा डाक व्यवस्था की बुनियाद रखी।
3. उपनिवेशवादी शासन का प्रभाव हमारे जीवन के किसी क्षेत्र पर नहीं पड़ा।
4. महात्मा गाँधीजी ने दलित और निम्न जातियों का सुधार करने की आवाज उठायी।
5. 19वीं शताब्दी को भारत में नव-जागरण का काल कहा जाता है।
6. स्वामी दयानन्द सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की।
7. पश्चिमीकरण एक तटस्थ प्रक्रिया नहीं है।
8. भारत एक धर्म प्रधान राज्य है।
9. आधुनिकीकरण की प्रक्रिया और औद्योगीकरण एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
10. भारतीय समाज की सांस्कृतिक संरचना में होने वाले परिवर्तन ने एक नए समाज का निर्माण किया है।
उत्तर – 1. सत्य, 2. सत्य, 3. असत्य, 4. सत्य, 5. सत्य, 6. सत्य, 7. असत्य, 8. असत्य, 9. असत्य, 10. सत्य ।

जोड़ी मिलाइए
1. राजा राममोहन राय
2. ज्योतिबा फुले
3. दयानन्द सरस्वती
4. महादेव गोविन्द रानाडे
5. श्रीमती ऐनी बेसेंट
6. एम. एन. श्रीनिवास

(i) थियोसोफिकल सोसाइटी
(ii) प्रार्थना समाज
(iii) संस्कृतीकरण
(iv) सत्यशोधक समाज
(v) आर्य समाज
(vi) ब्रह्म समाज

उत्तर – 1. (vi). 2. → (iv), 3. → (v), 4. (ii), 5. (i), 6. → (iii).

एक शब्द/वाक्य में उत्तर
1. आधुनिक बनने की प्रक्रिया को क्या कहा जाता है?
2. ‘द पासिंग ऑफ ट्रेडिशनल सोसाइटी’ नामक पुस्तक के लेखक कौन हैं ?
3. ‘सोशल चेन्ज इन मॉडर्न इण्डिया’ नामक पुस्तक के लेखक का नाम क्या है?
4. आधुनिकीकरण किस प्रकार की प्रक्रिया है ?
5. भारत में परिवर्तन की किसी बाहरी प्रक्रिया का नाम लिखिए।
6. संस्कृतीकरण की प्रक्रिया में प्राय: किन जातियों का अनुकरण किया जाता है ?
7. संस्कृतीकरण की विपरीत प्रक्रिया को क्या कहा जाता है?
8. धार्मिक पक्ष के राजनीतिक पक्ष से अलग होने की दशा को क्या कहा जाता है? 9. भारतीय संविधान की प्रस्तावना में पंथनिरपेक्ष शब्द किस संविधान संशोधन के अन्तर्गत जोड़ा गया था ?
10. भारत में स्वतन्त्रता के बाद स्त्रियों को विवाह विच्छेद का अधिकार देने वाले पहले सामाजिक विधान का पूरा नाम क्या है ?
11. आधुनिकीकरण का सम्बन्ध भारत में सांस्कृतिक परिवर्तन से है अथवा संरचनात्मक परिवर्तन से ?
उत्तर- 1. आधुनिकीकरण, 2. डॉ. योगेन्द्र सिंह, 3. एम.एन. श्रीनिवास, 4. एक जटिल एवं दीर्घकालीन प्रक्रिया, 5. पश्चिमीकरण, 6. द्विज तथा प्रभु जातियों का, 7. असंस्कृतीकरण, 8. पंथनिरपेक्षीकरण, 9 42वें संविधान संशोधन, 10. हिन्दू विवाह अधिनियम 1955, 11. सांस्कृतिक परिवर्तन
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. संस्कृति क्या है ?
उत्तर- संस्कृति जीवन की विधि है। हम जो सोचते हैं, कार्य करते हैं, जो भोजन खाते हैं, कपड़े पहनते हैं, जिस भगवान की पूजा करते हैं, ये सभी संस्कृति के पक्ष हैं। एक सामाजिक वर्ग के सदस्य के रूप में मानवों की सभी उपलब्धियाँ संस्कृति कही जा सकती हैं।

प्रश्न 2. सामाजिक परिवर्तन किसे कहते हैं ?
उत्तर- सामाजिक परिवर्तन समाज के आधारभूत परिवर्तनों को कहते हैं। इसके अन्तर्गत मूलतः प्रस्थिति, वर्ग, स्तर तथा व्यवहार के अनेकानेक प्रतिमान बनते एवं बिगड़ते हैं। समाज गतिशील है और समय के साथ परिवर्तन अवश्यंभावी है।

प्रश्न 3. सामाजिक परिवर्तन तथा सांस्कृतिक परिवर्तन में क्या अन्तर है ?
उत्तर- सामाजिक परिवर्तन केवल सामाजिक सम्बन्धों में परिवर्तन तक सीमित है, जबकि सांस्कृतिक परिवर्तन में कला, विज्ञान व साहित्य के क्षेत्र में होने वाले परिवर्तन सम्मिलित हैं। सामाजिक सम्बन्धों में परिवर्तन आसानी से और शीघ्रता से हो सकता है, किन्तु संस्कृति में परिवर्तन धीमी गति से होता है।

प्रश्न 4. एम. एन. श्रीनिवास का संस्कृतीकरण और अ-संस्कृतीकरण से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर – एम. एन. श्रीनिवास के अनुसार जब जातियाँ द्विज के संस्कारों, आदर्शों को ग्रहण करती हैं, तो उसे संस्कृतीकरण तथा जब गैर-संस्कृतीकरण जातियाँ (निम्न जातियाँ) प्रभु जाति बनकर अपना विशेष प्रभाव बनाती हैं, तो इस प्रक्रिया को अ-संस्कृतीकरण कहते हैं।

प्रश्न 5. सुधार आन्दोलनों को सामाजिक आन्दोलन क्यों कहते हैं ?
उत्तर- समाज सुधार आन्दोलनों का मुख्य उद्देश्य समाज में व्याप्त धार्मिक तथा सामाजिक कुरीतियों को दूर करना था इसलिए इन आन्दोलनों को सामाजिक आन्दोलन कहते हैं।

प्रश्न 6. भारत में सामाजिक आन्दोलन क्यों शुरू हुए ?
उत्तर- औपनिवेशिक काल में पश्चिमी शिक्षा के सम्पर्क में आने से समाज में एक प्रबुद्ध वर्ग का जन्म हुआ। शिक्षा ग्रहण करते समय मानवीय अधिकारों की जानकारी ने समाज में व्याप्त कुरीतियों के प्रति संघर्ष करने का साहस दिया जिससे अपने समाज में फैली कुरीतियों, कुप्रथाओं, अंधविश्वासों को दूर करने के लिए समाज सुधार आन्दोलन शुरू हो गए।

प्रश्न 7. किन मुस्लिम सुधारवादियों ने समाज सुधार आन्दोलन में सहयोग किया ?
उत्तर- मुसलमानों द्वारा चलाए गए आन्दोलनों में अहमदिया आन्दोलन तथा अलीगढ़ आन्दोलन का प्रमुख स्थान था। अहमदिया आन्दोलन मिर्जा गुलाम अहमद ने मुसलमानों में शिक्षा का प्रसार तथा अंग्रेजों के खिलाफ मुसलमानों को संगठित करने हेतु चलाया। अलीगढ़ आन्दोलन के संस्थापक सर सैयद अहमद खाँ थे, उन्होंने मुस्लिम समाज में फैले अन्धविश्वासों को दूर करने के लिए शिक्षा का प्रसार किया और सन् 1875 में अलीगढ़ मोहम्मडन ऐंग्लो ओरियण्टल स्कूल की स्थापना की।
प्रश्न 8. भारत में संस्कृतीकरण का प्रभाव धर्म के क्षेत्र में किस रूप में पड़ा ? उत्तर भारत में संस्कृतीकरण का प्रभाव धार्मिक क्षेत्र पर भी पड़ा है। पहले घंटों पूजा-स्थलों पर बैठे रहने के बजाए लोग अब कार्य करते हुए ही प्रार्थना, इबादत कर लेते हैं। धार्मिक स्थलों पर जाने के बजाए अब वे टी.वी. चैनलों पर भी धार्मिक उपदेश सुन लिया करते हैं। पंडितों तथा पुजारियों को दान-दक्षिणा देने की बजाए अब वे दान की राशि चैरिटेबल संस्थानों को भी प्रदान करते हैं जो सामाजिक कल्याण के कार्यों में संलिप्त हैं।

प्रश्न 9. प्रभु जाति किसे कहते हैं ?
उत्तर- ग्रामीण क्षेत्र में जाति विशेष या स्थानीय समुदाय अधिकतम कृषि योग्य भूमि रखता हो तथा उसी जाति के सदस्य अधिक संख्या में निवास करते हों तथा उस ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले अन्य जातियों में उनका स्थान उच्च हो, वह प्रभु जाति कहलाती है।

प्रश्न 10. सामाजिक सुधार हेतु स्वतन्त्र भारत में महिलाओं के लिए क्या सामाजिक विधान बने ?
उत्तर- सामाजिक सुधार हेतु स्वतन्त्र भारत में महिलाओं के संरक्षण के लिए अनेक सामाजिक विधान बनाए गए। सन् 1954 में विशेष विवाह अधिनियम पास किया गया जिसमें भिन्न जातियों और धर्मों को कानून के द्वारा विवाह की सुविधा देना था। सन् 1955 में बहुपत्नी विवाह को समाप्त कर दिया गया। सन् 1961 में दहेज निरोधक अधिनियम लागू किया गया। सन् 2005 में घरेलू हिंसा के विरुद्ध महिलाओं के लिए संरक्षण कानून बनाया गया।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. संस्कृति किस प्रकार से सामाजिक परिवर्तन को प्रोत्साहन देती है ? उत्तर-संस्कृति का सम्बन्ध उन विचारों, मूल्यों एवं मान्यताओं से होता है जो मनुष्य के लिए आवश्यक माने जाते हैं तथा उनसे जीवन को आकार देने में सहायता मिलती है। धार्मिक मान्यताओं का समाज को व्यवस्थित करने में महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। प्राचीन भारत में सामाजिक तथा राजनीतिक जीवन पर बौद्ध धर्म के प्रभाव तथा मध्यकालीन सामाजिक संरचना में अन्तर्निहित जाति व्यवस्था के सन्दर्भ में व्यापक प्रभाव भी भारत में सामाजिक-सांस्कृतिक परिवर्तन के प्रमुख उदाहरण हैं। महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन भी सांस्कृतिक परिवर्तन का ही उदाहरण है।

प्रश्न 2. संस्कृतीकरण के स्त्रोत क्या हैं ?
उत्तर- संचार तथा यातायात के साधन-संचार तथा यातायात के साधनों से संस्कृतीकरण को देश के विभिन्न भागों तथा विविध समूहों में फैलाने में योग मिलता है। शिक्षा-शिक्षा पर किसी एक वर्ग अथवा जाति का एकाधिकार नहीं होता है। निम्न जातियों में शिक्षा का प्रचार होने पर शिक्षित व्यक्तियों में उच्च जातियों की जीवन-शैली को अपनाने की लालसा जागृत हो जाती है। बड़े नगर, मन्दिर तथा तीर्थ स्थान- धार्मिक स्थल, बड़े नगर आदि भी संस्कृतीकरण के अन्य स्त्रोत रहे हैं। ऐसे स्थानों पर एकत्रित जन समुदाय में सांस्कृतिक विचार तथा विश्वासों के प्रचार हेतु उचित अवसर उपलब्ध होते हैं। राजनीतिक व्यवस्था-संस्कृतीकरण के प्रमुख स्रोत में राजनीतिक व्यवस्था भी है। राजनीतिक दलों का मुख्य उद्देश्य सामाजिक समस्याओं का निराकरण करके सामाजिक जीवन को स्वस्थ बनाना होता है।

प्रश्न 3. 19वीं तथा 20वीं शताब्दी में सामाजिक सुधार आन्दोलन पर चर्चा कीजिए।
उत्तर- समाज सुधार आन्दोलन का 19वीं सदी में उस समय प्रादुर्भाव हुआ, जब समाज में छुआछूत, जातिगत भेदभावों, सती प्रथा, बहुपत्नी विवाह, बाल-विवाह, विधवाओं के अमानवीय शोषण और अन्धविश्वासों को लोग अपने धर्म का अंग मानने लगे थे। औपनिवेशिक शासन के दौरान जिन शिक्षित और जागरूक लोगों ने पश्चिमी संस्कृति के मानवतावाद और उदारवादी विचारों को समझा, उन्होंने भारतीय समाज में फैले हुए पाखण्डों तथा कुप्रथाओं का विरोध करने के लिए एक व्यापक समाज सुधार आन्दोलन आरम्भ कर दिया। उसमें अनेक सुधारकों और उनके द्वारा स्थापित संगठनों का सराहनीय योगदान रहा। यह आन्दोलन केवल हिन्दुओं तक ही सीमित नहीं रहे बल्कि अनेक मुस्लिम, जनजातीय और निम्न जातियों के लोगों ने भी इसमें योगदान किया।

प्रश्न 4. ब्रह्म समाज के मुख्य उद्देश्य क्या थे ?
उत्तर- ब्रह्म समाज की स्थापना राजा राममोहन राय ने सन् 1828 में की थी। जिसके मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित थे
(1) समाज में फैली कुरीतियों; जैसे- सती प्रथा, बाल-विवाह, जाति प्रथा, विधवा-विवाह आदि को दूर करना था।
(2) ब्रह्म समाज अन्तर्जातीय विवाहों को करवाने के पक्ष में था।
(3) सती प्रथा निरोधक कानून, 1829 तथा विधवा पुनर्विवाह कानून, 1856 का बनना
(4) शिक्षा का प्रसार तथा लड़कों के समान लड़कियों को भी शिक्षा प्राप्त करने की ब्रह्म समाज की ही देन है। सुविधाओं का विस्तार करना था।
(5) ब्रह्म समाज ने वैयक्तिक स्वतन्त्रता, राष्ट्रीय एकता तथा सामाजिक संस्थाओं के लोकतन्त्रीकरण के सिद्धान्तों का प्रचार करके भारत में एक नए युग का आरम्भ किया।

प्रश्न 5. ‘भारत सेवक समाज’ के क्या लक्ष्य थे ?
उत्तर प्रमुख स्वतन्त्रता सेनानी एवं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता गोपाल कृष्ण गोखले ने सन् 1905 में भारत सेवक समाज की स्थापना की, जिसके प्रमुख लक्ष्य निम्न हैं (1) इस संस्था का प्रमुख लक्ष्य ऐसे लोगों को प्रशिक्षित करना था जो निःस्वार्थ रूप से देश की सेवा तथा त्याग की भावना को बढ़ा सकें।
(2) दलित वर्गों का उत्थान करना।
(3) अशिक्षित और गरीब लोगों को कानूनी सहायता देना।
(4) इस संस्था द्वारा कई स्काउट संगठन बनाए गए जो आपातकाल में लोगों की मदद कर सकें।

दीर्घ उत्तरीय/विश्लेषणात्मक प्रश्न
प्रश्न 1. संस्कृतीकरण पर एक आलोचनात्मक लेख लिखिए।
उत्तर संस्कृतीकरण शब्द की उत्पत्ति एम. एन. श्रीनिवास ने की। संस्कृतीकरण का अभिप्राय उस प्रक्रिया से है जिसमें निम्न जाति या जनजाति या अन्य समूह उच्च जातियों विशेषकर, द्विज जाति की जीवन पद्धति, अनुष्ठान, मूल्य, आदर्श, विचारधाराओं का अनुकरण करते हैं।
● संस्कृतीकरण की प्रक्रिया हिन्दू समाज के अन्तर्गत भाषा, साहित्य, विचारधारा संगीत, नृत्य, नाटक, अनुष्ठान व जीवन पद्धति में देखी जा सकती है। यह प्रक्रिया देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग ढंग से होती है। जिन क्षेत्रों में उच्चस्तरीय सांस्कृतिक जातियाँ प्रभुत्वशाली थीं। उन क्षेत्रों की सम्पूर्ण संस्कृति में किसी-न-किसी स्तर का संस्कृतीकरण हुआ। जहाँ गैर-संस्कृतीकरण जातियाँ प्रभुत्वशाली थीं, वहाँ की संस्कृति को इन जातियों ने प्रभावित किया। 19वीं शताब्दी के तीन-चौथाई भाग तक पारसियों को प्रभुत्वशाली माना जाता था। • संस्कृतीकरण सम्बन्धित समूह की आर्थिक अथवा राजनीतिक स्थिति में सुधार है अथवा हिन्दुत्व की महान परम्पराओं का किसी स्रोत के साथ सम्पर्क होता है, तो उस समूह में उच्च चेतना का भाव उभरता है। महान परम्पराओं का स्त्रोत कोई तीर्थ स्थान, कोई गढ़ या मढ़ हो सकता है। भारत में उच्च जातियों की जीवन शैली, परम्पराओं को निम्न जातियों द्वारा अपनाया जाना बेहद कठिन है। पारम्परिक तौर पर उच्च जाति के लोग उन निम्न जातीय लोगों को दण्डित करते थे। ● संस्कृतीकरण एक ऐसी प्रक्रिया की ओर संकेत करता है जिसमें व्यक्ति सांस्कृतिक दृष्टि से प्रतिष्ठित समूहों के रीति-रिवाज एवं नामों का अनुकरण कर अपनी प्रस्थिति को बनाते हैं। सन्दर्भ प्रारूप अधिकतर आर्थिक रूप से बेहतर होता है। दोनों ही स्थितियों में यह संकेत विद्यमान हैं कि जब व्यक्ति धनवान होने लगते हैं. तो उनकी आकांक्षाओं और इच्छाओं को प्रतिष्ठित समूह भी स्वीकारने लगते हैं। संस्कृतीकरण की आलोचना- संस्कृतीकरण की अवधारणा की अनेक स्तरों पर आलोचना की गई है जोकि निम्न है
(1) सामाजिक गतिशीलता निम्न जाति का सामाजिक स्तरीकरण में उर्ध्वगामी परिवर्तन करती है-इसमें कुछ व्यक्ति असमानता पर आधारित सामाजिक संरचना में अपनी स्थिति तो सुधार लेते हैं, लेकिन इससे समाज में व्याप्त असमानता व भेदभाव समाप्त नहीं हो पाते।
(2) जीवन-शैली के अनुकरण की इच्छा-संस्कृतीकरण की अवधारणा में उच्च जाति की जीवन-शैली उच्च एवं निम्न जाति के लोगों की जीवन-शैली निम्न होती है, अतः उच्च जाति के लोगों की जीवन-शैली का अनुकरण करने की इच्छा को वांछनीय और प्राकृतिक माना है।
(3) जातिगत भेदभाव- उच्च जाति के अनुष्ठानों, रिवाजों और व्यवहार को संस्कृतीकरण के कारण स्वीकृति मिलने से लड़कियों और महिलाओं को समानता की सीढ़ी में सबसे नीचे धकेल दिया जाता है। इससे कन्या मूल्य के स्थान पर दहेज प्रथा और अन्य समूहों के साथ जातिगत भेदभाव इत्यादि बढ़ गए हैं।
(4) असमानता एवं अपवर्जन की बात-संस्कृतीकरण की अवधारणा असमानता तथा अपवर्जन पर आधारित प्रारूप को सही ठहराती है। यह पवित्रता तथा अपवित्रता के जातिगत पक्षों को उपयुक्त मानती है। इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि उच्च जाति के द्वारा निम्न जाति के प्रति भेदभाव एक प्रकार का विशेषाधिकार है। इससे पता चलता है कि असमानता की विचारधारा हमारे जीवन में कितना प्रवेश कर गई है। समानता वाले समाज की आकांक्षा के
बजाय वर्जित समाज एवं भेदभाव को अपने तरीके से अर्थ देकर बहिष्कृत स्तरों को स्थापित किया गया है इससे एक अलोकतान्त्रिक समाज का गठन होता है। (5) दलितों को पिछड़ा मानना-संस्कृतीकरण में दलित संस्कृति तथा दलित समाज के मूलभूत पक्षों को भी पिछड़ापन मान लिया जाता है। उदाहरणार्थ-निम्न जाति के लोगों के द्वारा किए गए श्रम को निम्न तथा शर्मनाक माना जाता है। निम्न जाति से जुड़े सभी कार्य शिल्प, तकनीकी योग्यता आदि गैर-उपयोगी मान लिया जाता है।
प्रश्न 2. पश्चिमीकरण का साधारणतः मतलब होता है पश्चिमी पोशाकों व जीवन शैली का अनुकरण। क्या पश्चिमीकरण के दूसरे पक्ष भी हैं ? क्या पश्चिमीकरण का मतलब आधुनिकीकरण है ? चर्चा करें।
उत्तर-पश्चिमीकरण पश्चिम समाज के अनुकरण से सम्बन्धित है। पश्चिमी समाज के साथ लगभग 150 वर्ष के सम्पर्क के संस्था, विचारधारा, मूल्य, सामाजिक न्याय, भौतिक, विकास इत्यादि के परिवर्तन से है।
पश्चिमीकरण के विभिन्न प्रकार
(1) एक प्रकार के पश्चिमीकरण का मतलब उस पश्चिमी उपसंस्कृति प्रतिमान से है, जिसे भारतीयों के उस छोटे समूह ने अपनाया जो पहली बार पश्चिमी संस्कृति के सम्पर्क में आए हैं। इसमें भारतीय बुद्धिजीवियों की उपसंस्कृति भी शामिल थी, जिन्होंने न केवल पश्चिमी प्रतिमान चिंतन के प्रकारों, स्वरूपों व जीवन-शैली को स्वीकारा, बल्कि इनका समर्थन एवं विस्तार भी किया।
(2) पूरे देश में मध्य वर्ग के एक बड़े हिस्से के परिवारों में टेलीविजन उपकरणों का प्रयोग, पोशाक, खाद्य पदार्थ, उठने-बैठने के तौर-तरीके अपनाए।
(3) जीवन-शैली एवं चिंतन के अलावा भारतीय कला और साहित्य पर भी पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव पड़ा। बहुत से कलाकार जैसे कि रवि वर्मा, अवनीन्द्रनाथ टैगोर, चन्दू मेनन तथा बंकिमचन्द चट्टोपाध्याय ने औपनिवेशिक स्थितियों में कई प्रकार की प्रतिक्रियाएँ कीं। इस प्रकार हम देख सकते हैं कि विभिन्न स्तरों पर सांस्कृतिक परिवर्तन हुआ तथा औपनिवेशिक काल में हमारा पश्चिम से सम्पर्क हुआ। आज के समय में दो पीढ़ियों में अन्तर पाया जाता है, तो यह पश्चिमीकरण का ही परिणाम है। पश्चिमीकरण के कारण हमारे जीवन के प्रत्येक पक्ष में परिवर्तन आया।
पश्चिमीकरण का अर्थ आधुनिकीकरण-पश्चिमीकरण का अर्थ आधुनिकीकरण नहीं है, क्योंकि आधुनिकीकरण पूर्व में भी हो सकता है। परन्तु पश्चिमीकरण का अर्थ केवल पश्चिम के कारण आए परिवर्तनों से है। समाजशास्त्रीय रूप से आधुनिकता का अर्थ इसे परम्परा की तुलना से समझना जरूरी है। जो समाज परम्परागत होते हैं उनमें अलौकिक विश्वासों, प्रथाओं के पालन, शुभ और अशुभ जैसे विचारों को अधिक महत्त्व दिया जाता है। जब समाज में धार्मिक विश्वासों की जगह वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रभाव बढ़ता है तथा पारलौकिक विश्वासों की जगह वर्तमान जीवन की सफलता को अधिक महत्त्वपूर्ण मानते हैं, दैनिक क्रियाओं में तकनीक पर आधारित वस्तुओं का प्रयोग बढ़ने लगता है, तर्क पर आधारित धारणाएँ स्वीकृत होती हैं, तब उस रूप में होने वाले परिवर्तन को आधुनिकीकरण कहते हैं।

प्रश्न 3. लघु निबन्ध लिखिए
संस्कार और पंथ निरपेक्षीकरण, जाति और पंथ निरपेक्षीकरण, जेंडर और संस्कृतीकरण।
उत्तर-संस्कार और पंथ निरपेक्षीकरण- भारतीय संस्कृति विश्व संस्कृतियों का मूलाधार है। मनुष्य द्वारा लौकिक-पारलौकिक विकास के लिए किया गया आचार-विचार ही संस्कार है। सनातन परम्परा के अनुरूप संस्कार की पद्धति ही संस्कृति है। अनुभवजन्य ज्ञान पर संस्कार और उदार गुणों के आधार पर पंथ निरपेक्ष यह उदात्त व्यवहार का प्रतीक है। इसमें सहिष्णुता कूट-कूटकर भरी है। भारतीय संस्कृति प्रत्येक जाति व प्रत्येक व्यक्ति में सुसंस्कार उत्पन्न करती है। स्वामी विवेकानन्द ने कहा है, यदि मनुष्य के पास संसार की प्रत्येक वस्तु है, लेकिन मानवता व धर्म नहीं है, तो क्या लाभ ? संस्कार अपने आप में अमूर्त होते हैं। ये व्यक्ति के आचरण से झलकते हैं। चरित्र निर्माण में धर्म व संस्कार महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जाति और पंथ निरपेक्षीकरण-पारम्परिक भारतीय समाज में जाति व्यवस्था धार्मिक चौखटे के अन्दर क्रियाशील थी। पवित्र अपवित्र से सम्बन्धित विश्वास व्यवस्था इस क्रियाशीलता का केन्द्र थी। आज के समय में जाति एक राजनीतिक दबाव समूह के रूप में ज्यादा कार्य कर रही है। समसामयिक भारत में जाति संगठनों और जातिगत राजनीतिक दलों का उद्भव हुआ है। ये जातिगत संगठन अपनी माँग मनवाने के लिए दबाव डालते हैं। जाति की इस बदली हुई भूमिका को जाति का पंथ निरपेक्षीकरण कहा गया है। भारत की पारम्परिक सामाजिक व्यवस्था जातिगत संरचना तथा जातिगत पहचान के रूप में संगठित थी। जाति और राजनीति के सम्बन्ध की व्याख्या करते हुए आधुनिकता के सिद्धान्त से बना नजरिया एक प्रकार के भय से ग्रसित होता है। राजनीतिज्ञ जाति समूहों को इकट्ठा करके अपनी शक्ति में संगठित करते हैं। वहाँ, जहाँ अलग प्रकार के समूह और संस्थाओं के अलग आधार होते हैं। राजनीतिज्ञ उन तक भी पहुँचते हैं। जिस प्रकार से वे कभी भी ऐसी संस्थाओं के स्वरूपों को परिवर्तित करते हैं, वैसे ही जाति के स्वरूपों को भी परिवर्तित करते हैं। लिंग (जेंडर) और संस्कृतीकरण- सामाजिक सिद्धान्त में लिंग शब्द पुरुषों व स्त्रियों के मध्य सामाजिक व सांस्कृतिक रूप से उत्पन्न अन्तरों को दर्शाने के लिए इस्तेमाल किया है। यह यौन शब्द से अलग है जो पुरुष और स्त्री के मध्य के शारीरिक-जैव वैज्ञानिक अन्तरों को स्पष्ट करता है। प्रकृति यौन अन्तर पैदा करती है और समाज-लैंगिक अन्तरों की रचना करता है। वस्तुत: अनुष्ठानों के पंथनिरपेक्ष आयाम पंथ निरपेक्षता के लक्ष्यों से पृथक् होते हैं। इनसे पुरुषों व स्त्रियों को मौका मिलता है कि वे अपने मित्रों से व अपनी उम्र से बड़े लोगों से घुलें-मिलें व अपनी सम्पत्ति का भी कपड़े व जेवर पहनकर प्रदर्शन करें। पुरुषों व स्त्रियों के मध्य असमानता का कोई जैविक कारण नहीं है। इस तरह लिंग, जाति व वर्ग की तरह ही सामाजिक विषमता अथवा असमानता तथा बहिष्कार का एक रूप है। आधुनिक भारत में स्त्रियों की स्थिति का सवाल 19वीं शताब्दी के मध्यवर्गीय सामाजिक सुधार आन्दोलनों के एक हिस्से के रूप में उदित हुआ। इन आन्दोलनों का स्वरूप सभी क्षेत्रों में एक जैसा नहीं था। बंगाल के राजा राममोहन राय ने सती-विरोधी अभियान का नेतृत्व किया। रानाडे ने विधवाओं के पुनर्विवाह हेतु आन्दोलन चलाया, ज्योतिबा फुले ने एक साथ जातीय व लैंगिक अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई व सर सैयद अहमद खान ने इस्लाम में सामाजिक सुधारों के आन्दोलन का नेतृत्व किया।

प्रश्न 4. पंथ निरपेक्षीकरण क्या है ? भारतीय समाज में पंथ निरपेक्षता से सम्बन्धित परिवर्तनों को समझाइए।
उत्तर- पंथ निरपेक्षीकरण को उस सामाजिक एवं सांस्कृतिक प्रक्रिया के रूप में समझा जाता है जिनके द्वारा धार्मिक एवं परम्परागत व्यवहारों में धीरे-धीरे तार्किकता या वैज्ञानिकता का समावेश होता जाता है।
डॉ. एम. एन. श्रीनिवास के शब्दों में-धर्मनिरपेक्षीकरण या लौकिकीकरण शब्द का अर्थ है जो कुछ पहले धार्मिक माना जाता था, वह अब वैसा नहीं माना जा रहा है, इसका अर्थ विभेदीकरण की प्रक्रिया से भी है जोकि समाज के विभिन्न पहलुओं, आर्थिक, राजनीतिक, कानूनी और नैतिकता में एक-दूसरे से अधिक पृथक होने से दृष्टिगोचर होती है।
भारतीय समाज में पंथ निरपेक्षता से सम्बन्धित परिवर्तन
(1) पवित्रता एवं अपवित्रता की धारणा में परिवर्तन-धर्मनिरपेक्षीकरण के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में पवित्रता एवं अपवित्रता की धारणा में परिवर्तन आया। इसके प्रभाव से जाति, व्यवसाय, खान-पान, विवाह, पूजा-अर्चना आदि में धर्म का प्रभाव कम हुआ। जाति प्रथा के अपवित्रता सम्बन्धी कट्टर विचारों में कमी आई। एक जाति दूसरे जाति के सम्पर्क में आकर एक साथ रेल, बस आदि में यात्रा करते हैं। अपनी योग्यता और रुचि से एक-दूसरे के व्यवसाय को अपना रहे हैं जिससे उनकी सामाजिक स्थिति पहले से बेहतर हुई है। वर्तमान समय में परम्परागत पवित्रता एवं अपवित्रता सम्बन्धी विचारधारा में परिवर्तन हुआ है।
(2) कर्मकाण्डों व संस्कारों में परिवर्तन-वर्तमान समय में बढ़ते धर्मनिरपेक्षीकरण के बढ़ते प्रभाव के कारण धार्मिक संरचना में विभिन्न संस्कारों, अनुष्ठानों, धार्मिक समारोहों, व्रतों, पुरोहितों को दिये जाने वाले दान आदि में व्यापक परिवर्तन आए हैं। विवाह और मृत्यु संस्कार को छोड़कर आज अधिकांश संस्कारों को लोग जानते भी नहीं हैं और जिन कर्मकाण्डों, संस्कारों को पूरा करते भी हैं, तो उनका सुविधा के अनुसार संक्षिप्तीकरण हो गया है।
(3) परिवार में परिवर्तन-वर्तमान में बदलती परिस्थितियों ने परिवार के संगठन में भी परिवर्तन किया है। आज संयुक्त परिवारों का विघटन हो रहा है। इनकी जगह एकाकी परिवार विकसित हो रहे हैं। वर्तमान समय में परिवार के वरिष्ठ सदस्यों के विचारों को नई पीढ़ी के साथ परिवर्तित कर रहे हैं। परिवारों में जिन त्यौहारों को धार्मिकता के आधार पर परम्परागत रूप से मनाया जाता था। उन त्यौहारों को धार्मिक तथा सामाजिक अवसर अधिक माना जाता है। इन सब आधारों से स्पष्ट है कि पारिवारिक संस्था को धर्म निरपेक्षीकरण ने पूर्णत: प्रभावित किया है।
(4) ग्रामीण समुदाय में परिवर्तन-लौकिकीकरण की प्रक्रिया का ग्रामीण जीवन के अनेक क्षेत्रों में प्रभाव स्पष्ट होने लगा है। सरकार द्वारा ग्रामीण विकास की नई योजनाएँ लागू करने से परम्परागत संस्कृति में ग्रामीणों के विचार व आकांक्षाएँ बदलने लगी हैं। अब वह भाग्यवादी न होकर अपने अधिकारों के लिए अधिक जागरूक हैं।
(5) ब्राह्मण पुरोहितों की प्रस्थिति में परिवर्तन-लौकिकीकरण के प्रभाव से जिन लोगों ने वैज्ञानिक और व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त करके बड़े-बड़े प्रतिष्ठित पद प्राप्त कर लिए, उनकी प्रतिष्ठा ब्राह्मण पुरोहितों से काफी ऊँची हो गई। सामान्य लोग भी ब्राह्मण पुरोहितों को अपने आध्यात्मिक गुरू के रूप में देखकर उन्हें सामान्य व्यक्ति के रूप में ही देखते हैं।
(6) परम्परागत धार्मिक मान्यताओं में परिवर्तन-लौकिकीकरण के प्रभाव से आज धार्मिक कट्टरता तथा धर्म पर आधारित कुरीतियों का अधिकांश लोग विरोध करने लगे हैं। कानून के माध्यम से उन नियमों का प्रभाव समाप्त हो गया है जिन्हें परम्परागत धार्मिक नियमों का संरक्षण प्राप्त था।

प्रश्न 5. आधुनिकीकरण से आप क्या समझते हैं ? इसे बहुपक्षीय प्रक्रिया क्यों कहा जाता है ?
उत्तर- आधुनिकीकरण एक सामान्य शब्द है जिसका प्रयोग सामाजिक परिवर्तनों को व्यक्त करने के लिए किया जाता है। समाजशास्त्रीय रूप में आधुनिकीकरण का अर्थ धार्मिक विश्वासों की जगह वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाने से है। यह बहु-स्तरीय अवधारणा है। इसे अनेक विद्वान औद्योगीकरण एवं आर्थिक विकास से अथवा वैज्ञानिक एवं तकनीकी विकास से जोड़ने का प्रयास करता है। लेकिन आज के सन्दर्भ में इस शब्द का प्रयोग उस प्रक्रिया से किया जाता है जिसके परिणामस्वरूप विकासशील देश विकसित देशों की विशेषताओं को अपनाते हैं।
परिभाषा – विभिन्न समाजशास्त्रियों ने आधुनिकीकरण की अवधारणा को अलग अलग आधारों पर स्पष्ट किया है। एस.सी. दुबे के अनुसार- “आधुनिकीकरण वस्तुतः एक प्रक्रिया है। एक ऐसा आन्दोलन है जिसके द्वारा परम्परागत या अर्द्ध-परम्परागत व्यवस्था निश्चित रूप से वांछित तकनीक के स्वरूपों और उससे जुड़ी सामाजिक संरचना, मूल्य उन्मेष एवं प्रेरक तथा आदर्शों की ओर अग्रसर होती है।” डॉ. योगेन्द्र सिंह के अनुसार-“आधुनिकीकरण सांस्कृतिक व्यवहारों का एक विशेष रूप है। इसकी विशेषताएँ मानवतावाद से सम्बन्धित होने के साथ यह किसी विशेष धर्म या विचारधारा पर आधारित नहीं होती।” अतः आधुनिकीकरण एक ऐसी दशा है जिसमें पहले से प्रचलित मूल्यों और व्यवहार के तरीकों का स्थान नए मूल्यों और व्यवहार के नए तरीकों में परिवर्तित हो जाते हैं। आधुनिकीकरण एक बहुपक्षीय प्रक्रिया है- आधुनिकीकरण एक बहुपक्षीय प्रक्रिया है जो आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, वैयक्तिक आदि सभी क्षेत्रों में व्याप्त है। आर्थिक क्षेत्र में आधुनिकीकरण का अर्थ औद्योगीकरण, अधिक उत्पादन, मशीनीकरण, मुद्रा के महत्त्व तथा नगरीकरण में वृद्धि इत्यादि से है। राजनीतिक क्षेत्र में आधुनिकीकरण का अर्थ ऐसे धर्मनिरपेक्ष एवं कल्याणकारी राज्य की स्थापना से है जिसमें सभी नागरिक कानून के समक्ष एक-समान हैं तथा उन्हें अपने विचार व्यक्त करने, सरकार चुनने तथा सरकार बदलने की स्वतन्त्रता है। सामाजिक क्षेत्र में आधुनिकीकरण से अभिप्राय सामाजिक स्तरीकरण की एक खुली व्यवस्था से है जिसमें अर्जित पदों को महत्त्व दिया जाता है तथा बिना किसी भेदभाव के सभी नागरिकों को समान अवसर उपलब्ध होते हैं। वैयक्तिक क्षेत्र में आधुनिकीकरण का अर्थ ऐसे परिवर्तनों से है जिनके परिणामस्वरूप समतावादी और स्वतन्त्रतावादी दृष्टिकोण को प्रोत्साहन मिलता है, विश्वव्यापी दृष्टिकोण का विकास होता है तथा जीवन के सभी पहलुओं; जैसे-विवाह, धर्म, परिवार तथा व्यवसाय इत्यादि में व्यक्तियों को पूर्ण स्वतन्त्रता मिल जाती है।

 

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