NCERT Imp Questions for Class 12 Sociology Indian Society Chapter 1 भारतीय समाज-एक परिचय (Hindi Medium)

भाग ‘अ’ : भारतीय समाज

अध्याय 1 भारतीय समाज : एक परिचय*
[Indian Society : An Introduction]

वस्तुनिष्ठ प्रश्न
बहु-विकल्पीय प्रश्न

1. विश्व में समाजशास्त्र का नाम सबसे पहले प्रयोग में आया
(A) 1798.
(B) 1842,
(C) 1851,
(D) 1838.

2. समाजशास्त्र के पिता के रूप में किसे जाना जाता है ?
(A) ऑगस्ट कॉम्टे,
(B) इमाइल दुर्खीम,
(C) हरबर्ट स्पेन्सर,
(D) सोरोकिन या घुरिये।

3. समाजशास्त्र समाज का विज्ञान है, किसने कहा ?
(A) वार्ड,
(B) ऑगस्ट कॉम्टे,
(C) सिम्मेल,
(D) दुखम

4. समाजशास्त्र की प्रकृति किस प्रकार की है ?
(A) वैज्ञानिक,
(B) मानवीय,
(C) कलात्मक,
(D) सामान्य।

5. समाजशास्त्र का भौतिक या प्राकृतिक घटनाओं के साथ
(A) कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं है,
(B) कोई अप्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं है,
(C) कोई सम्बन्ध नहीं है,
(D) प्रत्यक्ष सम्बन्ध है।

6. समाजशास्त्र एक विज्ञान है
(A) आत्मनिर्भर,
(B) व्यावहारिक,
(C) परतन्त्र,
(D) आदर्शात्मक।
उत्तर- 1. (D), 2. (A), 3. (A), 4. (A) 5. (A), 6. (A).

•रिक्त स्थान पूर्ति
1. समाजशास्त्र के लिए …………………..बाधक भी है और सहायक भी।
2. मानव समाज में…………………….. विशेषताएँ पाई जाती है।
3. संस्कृति, धर्म, क्षेत्र तथा भाषा की भिन्नताओं को ………………….भिन्नताएँ कहा जाता है।
4. भारतीय समाज की विविधता के कारण इसे एक……………………… समाज कहा जाता है।
5. समाजशास्त्र आपकी ………………………..एवं ……………………के बीच कड़ियों एवं सम्बन्धों को उजागर करने में मदद करता है।
उत्तर- 1. सहज ज्ञान, 2. सामाजिक एवं सांस्कृतिक, 3. सजातीय, 4. बहुल, 5. व्यक्तिगत परेशानियाँ, सामाजिक मुद्दों

सत्य/असत्य
1. शिक्षा संस्कृति के हस्तांतरण में सहायक होती है।
2. समाजशास्त्र हमें सीखने का निमन्त्रण देता है कि संसार में हमारे अलावा अन्य दृष्टिकोण से कैसे देखा जाए।
3. भारतीय समाज और इसकी संरचना आपको एक सामाजिक नक्श प्रदान करती है।
4. माता-पिता के व्यवसाय एवं आपके परिवार की आय के मुताबिक आप एक आर्थिक वर्ग के सदस्य नहीं होंगे।
5. समाजशास्त्र में ऐतिहासिक उपागम को दूसरे उपागम की तुलना माना जाता है।
उत्तर – 1. सत्य, 2. सत्य, 3. सत्य, 4. असत्य, 5. सत्य

जोड़ी मिलाइए

1. दस्तकारों, कारीगरों और शिल्पियों का गाँव
2. सेवाएँ लेने वाला समूह या लोग
3. “समाज’ पुस्तक के लेखक
4. ‘भारत की जाति’ पुस्तक के लेखक
5. पैतृक व मातृक सिद्धान्त
6. परिवर्तन की प्रक्रिया

(i) मैकाइवर एवं पेज
(ii) जे. एच. हट्टन
(iii) परिवार
(iv) संस्कृतिकरण
(v) जजमान
(vi) गैर-कृषक गाँव

उत्तर – 1. → (vi), 2. → (v), 3. → (i), 4. › (ii), 5. → (iii), 6. → (iv).

एक शब्द/वाक्य में उत्तर
1. एक धार्मिक समुदाय की दूसरे धार्मिक समुदाय के प्रति विद्वेष की भावना क्या कहलाती है ?
2. वह कौन-सी प्रक्रिया है जिसमें हम स्वयं को बाहर से कैसे देख सकते हैं ?
3. शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य क्या है ?
4. भारतीय समाज में विविधता के क्या परिणाम हैं ?
5. उपनिवेशवाद के शत्रु का क्या नाम है ?
उत्तर- 1. साम्प्रदायिकता, 2. आत्मवाचक, 3. व्यक्ति का समाजीकरण करना, 4. क्षेत्रवाद, भ्रष्टाचार तथा अपराधों में वृद्धि, 5. राष्ट्रवाद

अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. समाजशास्त्र क्या है ?
उत्तर- समाजशास्त्र मानव समाज का अध्ययन है, जो मानवीय सामाजिक संरचना और गतिविधियों से सम्बन्धित जानकारी को परिष्कृत करने और उनका विकास करने के लिए, विभिन्न पद्धतियों का उपयोग करता है।

प्रश्न 2. भारत में राष्ट्रवाद कब उत्पन्न हुआ ?
उत्तर- 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में राष्ट्रीय भावना के विकास के परिणामस्वरूप राजनीतिक आन्दोलन का सूत्रपात हुआ। भारतीयों ने राजनीतिक आन्दोलन के माध्यम से अंग्रेजी सत्ता से मुक्ति प्राप्त करने के लिए एक लम्बा संघर्ष किया।

प्रश्न 3. सामाजिक वर्ग से क्या आशय है ?
उत्तर- सामाजिक वर्ग सम में आर्थिक और सांस्कृतिक व्यवस्थाओं का समूह है। समाजशास्त्रियों, राजनीतिक वैज्ञानिकों, अर्थशास्त्रियों, मानवविज्ञानियों आदि के लिए यह एक आवश्यक वर्ग है।

प्रश्न 4. क्या राज्य एक समुदाय है ? बताइए।
उत्तर-राज्य उस संगठित इकाई को कहते हैं जो एक शासन (सरकार) के अधीन हो। राज्य सम्प्रभुता सम्पन्न हो सकते हैं। इसके अलावा किसी शासकीय इकाई या उसके किसी प्रभाग को भी राज्य कहते हैं। जैसे-भारत के प्रदेशों को भी ‘राज्य’ कहते हैं।

प्रश्न 5. सामाजिक मानचित्र से क्या आशय है ?
उत्तर-समाज में जन्म के आधार पर व्यक्ति की अवस्थिति। इसमें आयु, क्षेत्र, आर्थिक व्यवस्था, धर्म तथा जातिगत सीमाएँ शामिल होती हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. आत्मवाचक क्या है ?
उत्तर- समाजशास्त्र आपको यह दिखा सकता है कि दूसरे आपको किस तरह देखते है; यूँ कहें, आपको यह सिखा सकता है कि आप स्वयं को ‘बाहर से’ कैसे देख सकते हैं। इसे ‘स्ववाचक’ या ‘ आत्मवाचक’ कहा जाता है। यह अपने बारे में सोचने, अपनी दृष्टि को लगातार अपनी तरफ घुमाने (जो कि अक्सर बाहर की तरफ होती है) की क्षमता है, परन्तु यह स्वनिरीक्षण आलोचनात्मक होना चाहिए-इसमें समीक्षा अधिक और आत्म-मुग्धता कम होनी चाहिए।

प्रश्न 2. अन्य विषयों की तुलना में समाजशास्त्र एक भिन्न विषय क्यों है ?
उत्तर- समाजशास्त्र अन्य विषयों की तुलना में उन वस्तुओं के बारे में ज्यादा चर्चा करता है जिनके बारे में अधिकांश लोग पहले से जानते हैं। हम एक समाज में रहते हैं तथा हम पहले से ही समाजशास्त्र की विषय-वस्तु, सामाजिक समूहों, संस्थाओं, मानकों, सम्बन्धों तथा अन्य के बारे में अपने अनुभवों के द्वारा काफी हद तक जानते हैं। अन्य विषयों की शिक्षा हमें घर, विद्यालय या अन्य स्थानों पर निर्देशों के द्वारा प्राप्त होती है, किन्तु समाज के बारे में हमारा ज्ञान बिना किसी सुस्पष्ट शिक्षा से अर्जित होता है। समय के साथ बढ़ने वाला यह एक अभिन्न अंग की तरह है, जो स्वाभाविक तथा स्वतः स्फूर्त तरीके से प्राप्त होता है।

प्रश्न 3. भारतीय समाज विविध संस्कृतियों, लोगों, विश्वासों, मान्यताओं का जटिल मिश्रण है, कैसे ?
उत्तर- भारत एक प्राचीन देश है, कुछ अनुमानों के अनुसार भारतीय सभ्यता लगभग 5 हजार वर्ष पुरानी है, इसलिए इसका समाज भी बहुत पुराना और जटिल प्रकृति का है। अपनी लम्बी ऐतिहासिक अवधि के दौरान भारत बहुत से उतार-चढ़ावों और अप्रवासियों के आगमन का गवाह है; जैसे-आर्यों का आगमन, मुस्लिमों का आगमन आदि। ये लोग अपने साथ जातीय बहुरूपता और संस्कृति को लेकर आए साथ ही भारत की विविधता में योगदान दिया। इसलिए भारतीय समाज विविध संस्कृतियों, लोगों, विश्वासों तथा मान्यताओं का जटिल मिश्रण है।

प्रश्न 4. समाजशास्त्र से हमें क्या सीखने को मिलता है ?
उत्तर- समाजशास्त्र के माध्यम से हम यह सीख सकते हैं कि विश्व को केवल अपने दृष्टिकोण से कैसे देखा जाए। इसमें अलग-अलग पक्षपात व अधूरेपन से हम एक महत्वपूर्ण सबक सीख सकते हैं। मानव समाज में सत्य की ओर बढ़ना हो, तो सर्वप्रथम हमें यह स्वीकार करना होगा कि सत्य एक नहीं अनेक है और प्रत्येक सत्य अपने में अपूर्ण है। समाजशास्त्र के क्षेत्र में सत्य की बहुलता एक समस्या है लेकिन इसका समाधान ‘तुलना’ है (विभिन्न लोगों के अलग-अलग नजरियों को आमने-सामने किया जाए)। यह हमें भारतीय समाज की समझ और जानकारी देता है। सामाजिक नक्शे से हम भाषा, समुदाय, व्यवसाय, आर्थिक वर्ग आदि की जानकारी प्राप्त करते हैं। अतः समाजशास्त्र हमें समाज में पाए जाने वाले समूहों, वर्गों उनके सम्बन्धों के विषय के बारे में बताता है जिससे हमें समाज को समझने की क्षमता मिलती है।

दीर्घ उत्तरीय / विश्लेषणात्मक प्रश्न

प्रश्न 1. समाजशास्त्र के महत्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- समाजशास्त्र का महत्व निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से जान सकते हैं
(1) समग्र मानवता एवं समाज से परिचय- एक सामाजिक विज्ञान के रूप में, समाजशास्त्र हमारा परिचय समग्र मानवता एवं समाज से कराता है। अनेक देशों के समाजशास्त्री विभिन्न समाज तथा उनके सदस्यों के समाजिक जीवन का अध्ययन तथा उनके सम्बन्ध में व्यवस्थित ज्ञान का संग्रह करते हैं।
(2) नवीन सामाजिक परिस्थितियों का सामना करने में सहायक- आज मानव गतिशील है। आज मानव ने विज्ञान, कला, ज्ञान, जीवन, विचार, शिक्षा इत्यादि में आधुनिक प्रगति कर ली है, लेकिन प्राचीन मान्यताओं में भी तीव्र परिवर्तन हो रहे हैं। व्यक्ति के सम्मुख
एक बड़ी समस्या इन नवीन परिवर्तनों से सामना करने की है। समाजशास्त्रीय ज्ञान ही व्यक्ति को नवीन परिस्थितियों से सामना कर सामंजस्य बैठाने में मदद करता है।
(3) नगर-नियोजन में सहायक-देश की औद्योगिक प्रगति नगरों को बढ़ावा देती है। भारत के औद्योगिक नगरों में आज भी स्थायी श्रम शक्ति का अभाव है, जिसके कारण श्रमिक संघों का विकास नहीं हो पाता। नगरों में अस्वास्थ्यकर दशाएँ देखकर श्रमिक गाँवों में रहना ही पसन्द करता है। समाजशास्त्रीय ज्ञान नगर नियोजन में सहायक सिद्ध हो सकता है। साथ ही रूढ़िवादिता को भी समाप्त करता है।
(4) सह-अस्तित्व की भावना का प्रसार-समाजशास्त्र का ज्ञान विश्व में सह-अस्तित्व की भावना के प्रसार में भी अत्यधिक सहायक सिद्ध हो सकता है। समाजशास्त्रीय ज्ञान हमें सिखाता है कि विश्व में प्रत्येक व्यक्ति एवं समूह को रहने का अधिकार है।
(5) दण्ड व्यवस्था एवं सुधार कार्यों में सहायक- औद्योगीकरण के फलस्वरूप देश में अपराधों, सफेदपोश अपराधियों की संख्या में भी इजाफा हुआ। समाजशास्त्र हमें यह ज्ञात देता है कि अपराधी क्यों अपराध करता है व उसका किस विधि से सुधार करना चाहिए।

प्रश्न 2. क्या कारण है कि समाजशास्त्र को पढ़ने या सीखने के लिए अक्सर हमें सहज बोध छोड़ना पड़ता है ?
अथवा
सहज ज्ञान या सहज बोध समाजशास्त्र के लिए बाधक भी है और सहायक भी। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-सहज ज्ञान या सहज बोध समाजशास्त्र के लिए बाधक है-सहज बोध द्वारा प्राप्त किया गया ज्ञान समाजशास्त्र के लिए बाधा है क्योंकि समाजशास्त्र समाज के व्यवस्थित व वैज्ञानिक अध्ययन पर आधारित है। इस प्रकार की अध्ययन प्रक्रिया को सीखने और समझने के लिए अनिवार्य है कि हम अपने सहज बोध को ‘भूलने’ या मिटा देने की भरपूर कोशिश करें। जैसे किसी बुने हुए स्वेटर या अन्य वस्त्र को नए सिरे से बुनने के लिए पहले की बुनाई को उधेड़ना पड़ता है ठीक उसी तरह समाजशास्त्र को सीखने से पहले हमें समाज के बारे में अपनी पूर्व धारणाओं को उधेड़ना पड़ता है या छोड़ना पड़ता है। समाज के बारे में हमारा पहले का ज्ञान एक विशिष्ट दृष्टिकोण से प्राप्त किया हुआ होता है। समाजशास्त्र हमें यह सीखने का निमन्त्रण देता है कि संसार को केवल हमारे अपने दृष्टिकोण के अलावा हमसे अलग दृष्टिकोणों से कैसे देखा जाए मानव समाज के सन्दर्भ में “वैज्ञानिक सत्य’ की ओर बढ़ना हो, तो सबसे पहले यह स्वीकार करना होगा कि सत्य एक नहीं अनेक हैं और प्रत्येक सत्य अपने आप में अपूर्ण है। सत्य की बहुलता एक समस्या है, तो इसका समाधान तुलना है। समाजशास्त्र तुलना करके पूर्वाग्रह से मुक्त ही नहीं होता, परन्तु औरों के पूर्वाग्रहों को पहचानने की क्षमता विकसित करने का भी वादा करता है। सहज ज्ञान या सहज बोध सहायक है-समाजशास्त्र का ज्ञान प्राप्त करते समय आमतौर पर छात्रों को डर नहीं लगता है क्योंकि इसकी विषय-वस्तु के बारे में पहले से बहुत कुछ पता होता है।

प्रश्न 3. समाजीकरण की प्रमुख संस्थाएँ कौन-सी है, जिनके माध्यम से हम सामाजिक नक्शा तैयार करते हैं ?
उत्तर समाजीकरण की प्रमुख संस्थाएँ
(1) परिवार-बच्चा सबसे पहले परिवार में ही जन्म लेता है। माँ के त्याग और पिता की संरक्षा में रहते हुए काफी कुछ सीख जाता है और उसके व्यक्तित्व का विकास होता है, साथ ही समाजीकरण भी।
(2) जाति तथा वर्ग-व्यक्ति के समाजीकरण में जाति तथा वर्ग का भी महत्वपूर्ण योग होता है। जाति जन्म के आधार पर सामाजिक संस्तरण और खण्ड-विभाजन की वह गतिशील व्यवस्था है जो खाने-पीने, विवाह, पेशा और सामाजिक सहवासों में अनेक या कुछ प्रतिबन्धों को अपने सदस्यों पर लागू करती है। इसी प्रकार वर्ग व्यवस्था भी व्यक्ति को सामाजिक स्थिति प्रदान करती है।
(3) धार्मिक, आर्थिक व राजनैतिक संस्थाएँ-व्यक्ति के सामाजिक नक्शे में धार्मिक, आर्थिक और राजनैतिक संस्थाओं का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है, क्योंकि धर्म का प्रभाव व्यक्ति के सामाजिक व्यक्तित्व के विकास पर पड़ता है। धर्म के माध्यम से अनेक उपदेश व निर्देश देते हैं, जिनसे सामाजिक व्यवहार पनपता है। विभिन्न राजनैतिक क्रियाओं, राजनैतिक दलों के कार्य-कलापों और आम चुनावों आदि में भाग लेकर निरन्तर नए अनुभव प्राप्त होते हैं। इसी प्रकार आर्थिक संस्थाएँ, आर्थिक आवश्यकताओं को पूर्ण करती हैं जिससे व्यक्ति ईमानदारी या बेइमानी, सहयोग, प्रतिस्पर्धा आदि गुणों को सीखता है।
(4) शिक्षण संस्थाएँ-शिक्षण संस्थाएँ अर्थात् स्कूल, कॉलेज आदि भी समाजीकरण अत्यन्त महत्वपूर्ण संस्थाएँ हैं। इन्हीं संस्थाओं में बच्चे की मानसिक क्षमताओं का विकास होता है। वहाँ वह अनेक प्रकार के बच्चों एवं व्यक्तियों के सम्पर्क में आता है और उनसे बहुत कुछ सीखता है। बालक अपने शिक्षकों में से किसी एक शिक्षक को अपना आदर्श मान सकता है और उसी के अनुरूप अपने जीवन को ढाल सकता है।

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