pariksha adhyayan class 11th इतिहास – HISTORY अध्याय 15 अधिकार MP BOARD SOLUTION

अध्याय 15
अधिकार


वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहु-विकल्पीय प्रश्न

1. व्यक्तित्व के उच्चतम विकास हेतु निम्नांकित में क्या परमावश्यक है ?
(i) कानून (ii) न्याय व्यवस्था
(iii) सम्पत्ति (iv) अधिकार।

2. वे अधिकार जिनका देश के संविधान में उल्लेख किया जाए तथा जिनका अतिक्रमण अथवा हनन होने पर व्यक्ति न्यायपालिका की शरण ले सके कहलाते हैं-
(i) प्राकृतिक अधिकार (ii) मौलिक अधिकार
(ii) औपचारिक अधिकार (iv) कानूनी अधिकार।

3. “कुछ पाने की इच्छा सदैव से ही व्यक्ति की प्रेरणा स्त्रोत रही है।” उक्त कथन नागरिक के जिस अधिकार का मूल है, वह है-
(i) सम्पत्ति का अधिकार (ii) राजनीतिक अधिकार
(ii) शिक्षा का अधिकार (iv) रोजगार का अधिकार ।

4. “अधिकार उन सामाजिक व्यवस्थाओं का नाम है जिनके बिना कोई व्यक्ति पूर्णरूपेण विकास नहीं कर सकता।” खत कथन निम्न में से किस विद्वान का
(i) बोसाके (ii) हालैण्ड
(iii) लॉस्की (iv) ऑस्टिन।

5. निम्नांकित में से कौन से कर्तव्य राज्य के लिए बाध्यकारी होते हैं ?
(I) नैतिक कतव्य (ii) सामाजिक कर्तव्य
(iii) राजनीतिक कर्तव्य (iv) वैधानिक कर्तव्य।

उत्तर-1, (iv), 2. (11), 3. (1), 4. (iii), 5. (iv).

रिक्त स्थान पूर्ति

1. हॉब्स, लॉक तथा टामस पेन ने …..…अधिकारों के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया था।
2. समाज द्वारा स्वीकृत वे माँगे जिनमें व्यक्ति, समाज एवं राज्य तीनों का ही हित होता हैं……….कहलाती है।
3. अधिकार व्यक्ति के साथ-साथ ……….के विकास में भी सहायक हैं।
4. भारतीय संविधान में नागरिकों के ………. कर्तव्यों की व्यवस्था की गई है।
5. मानवाधिकार दिवस……..को मनाया जाता है।

उत्तर-1. प्राकृतिक, 2. अधिकार, 3. समाज एवं राष्ट्र,
4. ग्यारह, 5. 10 दिसम्बर ।

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

1. भारतीय संविधान में वर्णित अधिकारों को क्या कहा जाता है ?
उत्तर-मौलिक अधिकार।
2. वर्तमान समाज में प्राकृतिक अधिकारों के स्थान पर कौन-सा शब्द प्रयोग हो रहा
उत्तर-मानव अधिकार ।

3.कर्तव्यॊ के किस प्रकार का सम्बन्ध व्यक्ति की नैतिक भावना, अन्तःकरण तथा उचित कार्य की प्रवृत्ति से होता है?
उत्तर-नीतिक कर्तव्य।

4.कर्तव्यॊ का पालन कीजिए तथा अधिकार स्वतः ही आपको मिल जायेंगे।” कथन किसका था?
उत्तर- महात्मा गाँधी ने।

5.मानव अधिकारों का सार्वभौमिक घोषणा पत्र कब जारी हुआ
उत्तर-1948 में।

सत्य/असत्य

1. अधिकार संस्कृत भाषा के ‘अधि’ तथा ‘कार’ शब्दों से मिलकर बना है जिसका आशय क्रमश: ‘प्रभुत्व’ तथा ‘कार्य’ है।
2.अधिकार वह मांग है जिसे समाज क्रियान्वित करता है तथा राज्य स्वीकार करता है।
3.राज्य द्वारा प्रदत्त अधिकारों के पीछे तार्किक शक्ति होती है।
4.लोकतन्त्र में अधिकारों का अधिक महत्व नहीं होता है।
5.मध्य प्रदेश मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों का कार्यकाल पाँच वर्ष अथवा 70 वर्ष की आयु तक जो भी पहले हो, है।
6.विश्व में मानव अधिकार दिवस 15 दिसम्बर को मनाया जाता है।
7.42वें संवैधानिक संशोधन द्वारा भारतीय संविधान में मूल कर्तव्यों की व्यवस्था की गयी है।

उत्तर-1.सत्व,2. असत्य,3,असत्य, 4. असत्य,5.सत्य,
6. असत्य, 7. सत्य।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. अधिकारों को मुख्यतया कितने भागों में विभक्त किया जा सकता है?
उत्तर-अधिकारों को मुख्यतया चार भागों-प्राकृतिक अधिकार, नैतिक अधिकार, मौलिक अधिकार तथा कानूनी अधिकार में विभक्त किया जा सकता है।

प्रश्न 2. कोई दो प्रमुख नागरिक अधिकार लिखिए।
उत्तर-(i) जीवन एवं सुरक्षा का अधिकार तथा (2) स्वतन्त्रता एवं स्वतन्त्र आवागमन का अधिकार।

प्रश्न 3. नागरिकों के कानूनी अधिकार कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर-नागरिकों के कानूनी अधिकारों के तीन प्रकार-सामाजिक अथवा नागरिक अधिकार, राजनीतिक अधिकार तथा आर्थिक अधिकार है।

प्रश्न 5. नागरिक कर्तव्य से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- समाज तथा राज्य द्वारा अपने नागरिकों से जिन कार्यों को करने की अपेक्षा की जाती है, उसे नागरिक कर्त्तव्य कहते हैं।
प्रश्न 6. कर्त्तव्य के कौन-से तीन प्रकार होते हैं?
उत्तर- कर्त्तव्य के तीन प्रकार-(1) नैतिक कर्त्तव्य, (2) वैधानिक कर्तव्य, तथा (3) राजनीतिक कर्त्तव्य है।

प्रश्न 7. नागरिक कर्त्तव्य के कोई दो प्रकार लिखिए।
उत्तर-(1) राज्य हित को अपने हितों से सर्वोपरि समझना, तथा (2) सावधानीपूर्वक अपने मताधिकार का प्रयोग करना।

प्रश्न 8. वैधानिक अथवा कानूनी कर्तव्यों का प्रमुख लक्षण या विशेषता बताइए।
उत्तर-वैधानिक अथवा कानूनी कर्तव्यों का परिपालन व्यक्ति हेतु अनिवार्य है तथा इनका उल्लंघन किए जाने पर राज्य द्वारा दण्डित किए जाने का प्रावधान है।

प्रश्न 9. मानवाधिकार से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-ये मानवीय जीवन, उसकी स्वतन्त्रता, समानता तथा गरिमा से सम्बन्धित ऐसे अधिकार हैं जो संविधान द्वारा प्रत्याभूत, अन्तर्राष्ट्रीय प्रसविदाओं में सन्निहित तथा न्यायपालिका द्वारा प्रवर्तनीय हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. संक्षेप में समझाइए कि अधिकार मानवीय जीवन के स्रोत एवं विकास के साधन हैं।
उत्तर-मानवीय जीवन के मुख्य स्रोत अधिकार के अभाव में व्यक्ति का जीवित रहना असम्भव है। यदि व्यक्ति को जीवन रक्षा का अधिकार हासिल न हो तो वह अपनी रक्षार्थ
इधर-उधर छिपेगा तथा स्वतन्त्रता से किसी कार्य को क्रियान्वित नहीं कर पायेगा। अत: मानवीय जीवन की रक्षार्थ अधिकार परमावश्यक हैं। इसी तरह, व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक विकास हेतु भी अधिकार अत्यावश्यक है। जहाँ व्यक्ति की भौतिक जरूरतों की पूर्ति करने में जीवन रक्षा एवं सम्पत्ति का अधिकार सहायक है, वहीं शिक्षा एवं संस्कृति के अधिकार से उसका मानसिक एवं बौद्धिक विकास होता है। इसी प्रकार, व्यक्ति की आध्यात्मिक
तथा नैतिक प्रगति भी सिर्फ धार्मिक अधिकार द्वारा ही सम्भव है। उक्त से स्पष्ट है कि अधिकार मानवीय जीवन के स्रोत एवं विकास के साधन है।
प्रश्न 2. मूल अधिकार क्या हैं ? भारतीय नागरिकों को कितने मूल अधिकार प्राप्त हैं?
उत्तर-मूल अधिकारों का आशय उन अधिकारों से है जो व्यक्ति के विकास में सहायक होते हैं तथा जिनके अभाव में व्यक्ति का जीवन असम्भव है। विश्व के विभिन्न देशों के संविधानों में इनकी व्यवस्था की गई है। भारतीय नागरिकों को वर्तमान में छः मूल आधिकार प्राप्त हैं। इनमें स्वतन्त्रता का अधिकार, समानता का अधिकार, धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार, शिक्षा एवं संस्कृति का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार तथा संवैधानि उपचारों का अधिकार सम्मिलित हैं। इन मौलिक अधिकारों की सुरक्षा का दायित्व भारतीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्वहित किया जाता है।

प्रश्न 3. कर्त्तव्य किसे कहते हैं ?
उत्तर-कर्त्तव्य समाज एवं राज्य की उन अवस्थाओं को कहते हैं जिसके द्वारा व्यक्ति के लिए समाज एवं राज्य हेतु हितकर कार्यों को करना तथा अहितकर को न करना उचित और
आवश्यक समझा जाता है। जिन कार्यों के सम्बन्ध में समाज एवं राज्य सामान्य रूप से व्यक्ति से वह उम्मीद करते हैं कि उसे वह कार्य करने ही चाहिए, वे कार्य व्यक्ति के कर्तव्य कहलाते हैं। अन्य शब्दों में, कहा जा सकता है कि किसी विशेष कार्य के करने अथवा न करने के सम्बन्ध में व्यक्ति के उत्तरदायित्व को ही कर्तव्य कहकर सम्बोधित किया जाता है।

प्रश्न 4.“नागरिक अधिकार सभ्यता एवं संस्कृति के वाहक हैं।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-नागरिक अधिकार सभ्यता एवं संस्कृति के वाहक अथवा विकास में मददगार सिद्ध होते हैं। प्रत्येक राज्य सामान्यतया अपने देशवासियों को विचार अभिव्यक्त करने का अधिकार प्रदान करता है। इस नागरिक अधिकार से कोई भी व्यक्ति अन्य लोगों को अपनी विचारधारा से अवगत करा सकता है। इस अधिकार का प्रयोग समाचार पत्रों, रेडियो तथा तेजी से लोकप्रिय हुए टी. वी. चैनलों द्वारा सुगमतापूर्वक किया जाता है। यदि किसी व्यक्ति से उसके विचार अभिव्यक्ति के इस अधिकार को छीन लिया जाए तो उसमें तथा किसी जानवर (पशु) में कोई अन्तर अथवा भेद नहीं रह जाएगा।
किसी व्यक्ति के नागरिक अधिकारों को प्रतिबन्धित किये जाने पर ज्ञान-विज्ञान,सभ्यता एवं संस्कृति का विकास भी अवरुद्ध हो जाता है, क्योंकि इनकी वृद्धि सिर्फ अधिकारों की
वजह से ही होती है। उक्त से स्पष्ट है कि नागरिक अधिकार सभ्यता एवं संस्कृति के वाहक हैं।

प्रश्न 5. नागरिक अधिकारों के किन्हीं चार प्रकारों को समझाइए।
उत्तर-दीर्घ उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 का उत्तर देखें।

प्रश्न 6. नैतिक कर्त्तव्य क्या हैं ? कोई पाँच नैतिक कर्त्तव्य लिखिए।
उत्तर-जो कर्त्तव्य व्यक्ति की नैतिक भावना, अन्त:करण तथा सही करने की प्रवृत्ति से सम्बन्धित होते हैं, उन्हें नैतिक कर्तव्य के नाम से जाना जाता है। नैतिक कर्तव्यों को राज्य द्वारा मान्यता हासिल नहीं होती है। पाँच नैतिक कर्तव्यों का उल्लेख निम्न प्रकार किया जा सकता है-
(1) चूँकि समाज व्यक्ति के जीवन को सुरक्षित करते हुए उसकी समस्त आवश्वकताओं को पूरा करता है। अत: व्यक्ति का समाज के प्रति यह नैतिक कर्त्तव्य है कि वह सामाजिक बुराइयों को मिटाने तथा असहाय एवं दीन दुखियों की मदद करे।
(2) प्रत्येक नागरिक का अपने ग्राम, नगर तथा राष्ट्र के प्रति भी यह नैतिक कर्तव्य है कि शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा एवं सफाई इत्यादि की तरफ विशेष ध्यान दे।
(3) सामाजिक जीवन के आधार स्तम्भ परिवार के प्रति व्यक्ति को कर्तव्य पालन के उत्तरदायित्व का निर्वहन करना चाहिए। प्रत्येक नागरिक का यह नैतिक कर्तव्य है कि वह अपने सभी परिजनों के प्रति सद्भाव, सहानुभूति तथा प्रेम व सहयोग के भाव प्रदर्शित करे।
(4) प्रत्येक नागरिक का यह नैतिक कर्तव्य है कि वह अपने विकास पर पूर्णरूपेण ध्यान दे। इसके लिए उसे स्वस्थ, संयमी, अनुशासनप्रिय, शिक्षित तथा परोपकारी होना चाहिए।
(5) व्यक्ति का यह भी नैतिक दायित्व है कि वह मानवता के प्रति अपने कर्त्तव्य का परिपालन करे। जहाँ व्यक्ति को विश्व शान्ति की स्थापना में वांछित योगदान देना चाहिए, वहीं
सम्पूर्ण मानवीय समाज के कल्याणार्थ प्रत्येक सम्भव कार्य करना चाहिए।

प्रश्न 7. प्रमुख नागरिक कर्त्तव्य लिखिए।
उत्तर-प्रमुख नागरिक कर्तव्यों को संक्षेप में निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) राज्य के प्रत्येक नागरिक का यह कर्त्तव्य है कि वह राज्य हित को अपने हितों से सर्वोपरि समझे।
(2) प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह राज्य के प्रति पूर्ण भक्ति तथा निष्ठा के भाव रखे।
(3) कानून के प्रति निष्ठा रखना तथा कानूनों का परिपालन करना भी प्रमुख नागरिक कर्तव्य है।
(4) राज्य के नागरिकों का यह कर्त्तव्य है कि वे जिस भी पद पर कार्य करें, उन्हें पूर्ण निष्ठा के साथ उस पद से सम्बद्ध दायित्वों का निर्वहन करना चाहिए।

प्रश्न 8. नागरिकों के राजनीतिक कर्तव्यों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-नागरिकों के राजनीतिक कर्तव्य निम्नवत् हैं-
(1) शासकीय कार्यों में सहयोग-प्रत्येक नागरिक का यह पुनीत कर्त्तव्य है कि वह शासकीय कार्यों में राज्य कर्मचारियों को अपना पूरा-पूरा सहयोग प्रदान करे।
(2) अपने मत का समुचित प्रयोग-प्रत्येक नागरिक का यह कर्त्तव्य है कि वह जनप्रतिनिधियों का चयन खूब सोच-समझकर अपने विवेक का प्रयोग करते हुए करे।
(3) सार्वजनिक पद ग्रहण करना-प्रत्येक नागरिक का यह भी पुनीत कर्त्तव्य है कि वह सार्वजनिक पद को ग्रहण करने के लिए सदैव अपने आप को तत्पर रखे। इसके साथ ही, वह समाज द्वारा प्रदत्त किए गए प्रत्येक उत्तरदायित्व का अपनी पूर्ण ईमानदारी के साथ निर्वहन करे।

प्रश्न 9. नागरिकों के कानूनी अथवा वैधानिक कर्तव्यों को समझाकर लिखिए।
उत्तर-नागरिकों के कानूनी अथवा वैधानिक कर्त्तव्य वे हैं, जिनका निर्धारण राज्य द्वारा किया जाता है तथा नागरिकों को इनका परिपालन आवश्यक रूप से करना पड़ता है, और इनका उल्लंघन करने पर उन्हें राज्य द्वारा दण्डित किया जाता है। संक्षेप में इन्हें निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) राज्य के प्रति निष्ठा भाव-राज्य के प्रति निष्ठा एवं भक्ति भावना नागरिकों का प्रथम कानूनी कर्त्तव्य है। नागरिकों को शत्रुओं से राज्य को बचाने हेतु देश के भीतर शान्ति एवं
सुव्यवस्था कायम करने में राज्य को प्रत्येक सम्भव मदद करनी चाहिए।
(2) राज्य के कानूनों का परिपालन-राज्य समाज के कल्याणार्थ विभिन्न कानू बनाता है। अतः प्रत्येक नागरिक का यह कर्त्तव्य है कि वह राज्य द्वारा समय-समय पर बनाए
गए कानूनों अथवा नियमों का परिपालन करे।
(3) करों का भुगतान-शासन के सफल संचालन एवं नागरिकों की प्रगति हेतु प्रत्येक राज्य को आर्थिक शक्ति की जरूरत होती है। इस आर्थिक शक्ति को हासिल करने के लिए
राज्य समय-समय पर अनेक प्रकार के करों को लागू करता है। अतः प्रत्येक नागरिक का यह कर्त्तव्य है कि वह सहर्ष इस प्रकार के करों का निश्चित समयावधि तक भुगतान जरूर
ही करे।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. अधिकार कितने प्रकार के होते हैं ? समझाइए।
अथवा
अधिकारों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर- नागरिक अधिकार के प्रकार अथवा वर्गीकरण
साधारणतया नागरिक अधिकार निम्न प्रकार के होते हैं-
(1) प्राकृतिक अधिकार-इस श्रेणी के अन्तर्गत नागरिकों के वे अधिकार आते हैं जो उसे प्रकृति द्वारा मिलते हैं। हालांकि वर्तमान में अधिकारों का यह प्रकार इस वजह से अस्वीकार्य
है, क्योंकि ये समाज एवं राज्य के पश्चात् हासिल ही नहीं किये जा सकते।
(2) नैतिक अधिकार- यह अधिकारों का वह प्रकार है जिसका सरोकार व्यक्ति के नैतिक आचरण से होता है। इनका स्वरूप अधिकारों की अपेक्षा कर्तव्य पालन में अधिक
निहित होता है।
(3) मौलिक अधिकार-वह अधिकार जो मानवीय जीवन हेतु अपरिहार्य होने की वजह से संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदत्त किये जाते हैं, मौलिक अधिकारों की श्रेणी में आते
हैं।
(4) कानूनी अधिकार-ये नागरिकों के वे अधिकार होते हैं जिन्हें राज्य मान्यता प्रदान करता है तथा जिनकी रक्षा राज्य के कानूनों द्वारा होती है। इन अधिकारों की अनदेखी करने
वाले को राज्य द्वारा दण्डित किया जाता है। नागरिकों के कानूनी अधिकार निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं-
(i) सामाजिक अथवा नागरिक अधिकार-यह अधिकार नागरिकों के व्यक्तित्व विकास हेतु तथा सामाजिक जीवन के सभ्य, सुसंस्कृत एवं कुशल संचालन हेतु परमावश्यक
होते हैं। इनमें जीवन रक्षा, शिक्षा, धार्मिक स्वतन्त्रता, विचार अभिव्यक्ति, मनोरंजन, आवागमन तथा न्याय प्राप्त करने इत्यादि के नागरिक अधिकार शामिल हैं।
(ii) राजनीतिक अधिकार-ये नागरिकों के वे अधिकार हैं जिनसे उसे शासकीय कार्यों में हिस्सा लेने का अवसर मिलता है। मत देने, निर्वाचित होने, शासकीय पद हासिल
की श्रेणी में ही आते हैं। करने, आवेदन पत्र देने तथा विदेशों में अपनी सुरक्षा इत्यादि का अधिकार राजनीतिक अधिकारी
(iii) आर्थिक अधिकार-चकि प्रत्येक व्यक्ति की भौतिक जरूरतों की पूर्ति का प्रमुख साधन सम्पत्ति है, अत: प्रत्येक नागरिक को अपनी इच्छानुसार सम्पत्ति का उपयोग करने का
अधिकार है। इसी तरह, प्रत्येक नागरिक काम करने, उचित पारिश्रमिक प्राप्त करने, विश्राम, आर्थिक समानता एवं सुरक्षा का भी स्वेच्छा से अधिकारी है।

प्रश्न 2. प्रमुख राजनीतिक अधिकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-प्रत्येक लोकतान्त्रिक देश में नागरिकों को निम्नलिखित राजनीतिक अधिकार दिए जाते हैं-
(1) मताधिकार प्रत्येक लोकतान्त्रिक देश में जाति, वर्ण, धर्म, सम्प्रदाय तथा लिंग इत्यादि के भेदभाव के बिना नागरिकों को अपने मत देने का अधिकार दिया जाता है।
(2) निर्वाचित होने का अधिकार-नागरिकों को योग्यता सम्बन्धी कुछ प्रतिबन्धों के साथ जनप्रतिनिधि के रूप में निर्वाचित होने का अधिकार, राजनीतिक अधिकार ही है।
(3) सार्वजनिक पदधारण का अधिकार-समस्त सार्वजनिक पदों पर नागरिकों को योग्यता के आधार पर नियुक्ति पाने का समान राजनीतिक अधिकार है।
(4) राजनीतिक दल गठित करने का अधिकार किसी भी नागरिक द्वारा अलग राजनीतिक दल बनाने का अधिकार भी राजनीतिक अधिकारों की श्रेणी के अन्तर्गत आता है।
(5) आवेदन पत्र तथा सम्मति देने का अधिकार-नागरिक सामूहिक अथवा व्यक्तिगत रूप से सरकार को शासन सम्बन्धी शिकायतें दूर करने के लिए अथवा उन्हें और
ज्यादा लोक कल्याणकारी बनाने हेतु आवेदन पत्र दे सकते हैं। वे शासकीय नीतियों के समर्थन में अपनी सम्मति भी प्रकट कर सकते हैं। यह अधिकार राजनीतिक अधिकारों का ही रूप है।

प्रश्न 3. मानव जीवन में अधिकारों के महत्त्व को लिखिए।
उत्तर- अधिकारों का महत्त्व
किसी भी नागरिक के लिए अधिकारों का अत्यधिक महत्व है, जिसे संक्षेप में निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) वास्तविक लोकतन्त्र की स्थापना में सहायक-नागरिकों के अधिकारों द्वारा ही वास्तविक लोकतन्त्र की स्थापना होती है, क्योंकि इनके हासिल होने पर ही जनता का, जनता द्वारा तथा जनता के लिए शासन स्थापित होता है।
(2) शान्ति एवं सुव्यवस्था के परिचायक-समाज में शान्ति एवं सुव्यवस्था कायम करने में अधिकारों की महती भूमिका है। इनके बिना व्यक्ति के कार्यों की कोई सीमा नहीं रहती है तथा उसके आपस में संघर्षरत होने की प्रबल सम्भावनाएँ उत्पन्न हो जाती हैं।
(3) न्याय का आधार स्तम्भ-अधिकारों के महत्त्व का एक महत्त्वपूर्ण बिन्दु यह भी है कि इसके द्वारा सभी नागरिकों के कर्तव्यों की सीमा निर्धारित कर दी जाती है, जिससे समाज
में न्याय की स्थापना होती है। इस प्रकार, राज्य में जंगल राज स्थापित नहीं हो पाता।
(4) मानव समाज हेतु जरूरी-जिस प्रकार किसी व्यापार को चलाने के लिए कुछ धनराशि को जरूरत पड़ती है, ठीक उसी प्रकार समाज के अस्तित्व की रक्षा हेतु अधिकारों की आवश्यकता होती है।
(5) मानवीय जीवन का स्त्रोत एवं विकास का साधन-मानवीय जीवन के प्रमुख स्रोत अधिकार के बिना व्यक्ति का जीवित रहना असम्भव है। यदि नागरिकों को जीवन रक्षा का अधिकार प्रदत्त न किया जाए तो वह अपनी रक्षार्थ इधर-उधर छिपता फिरेगा तथा स्वतन्त्र रूप से कोई कार्य क्रियान्वित नहीं कर पायेगा। इस प्रकार, नागरिकों के शारीरिक, मानसिक,
नैतिक तथा आध्यात्मिक विकास हेतु अधिकारों की अत्यधिक उपयोगिता है।

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