pariksha adhyayan class 11th इतिहास – HISTORY अध्याय 18 धर्मनिरपेक्षता MP BOARD SOLUTIONpariksha adhyayan class 11th इतिहास – HISTORY MP BOARD SOLUTION

अध्याय 18
धर्मनिरपेक्षता

अध्याय 18 धर्मनिरपेक्षता
अध्याय 18
धर्मनिरपेक्षता

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहु-विकल्पीय प्रश्न

1. भारत निम्नांकित में किस प्रकार का राज्य है?
(i) हिन्दू (ii) मुस्लिम
(iii) धर्मनिरपेक्ष (iv) सिख।

2. निम्नांकित में धर्मनिरपेक्ष राज्य का लक्षण (विशेषता) है-
(I)सभी धर्मों में समानता
(ii) राज्य का कोई धर्म नहीं
(iii) धार्मिक संस्थाएँ स्थापित करने का अधिकार प्रदान करना
(iv) उपरोक्त सभी लक्षण।

3. निम्नांकित में धर्मनिरपेक्षता के रास्ते की सबसे बड़ी रुकावट (बाधा) है-
(i) साम्प्रदायिक दल (ii) साम्प्रदायिकता
(iii) जातिवाद (iv) उक्त सभी।

4. निम्नांकित में किसे जनसमुदाय के लिए अफीम माना जाता है ?
(I)धर्म को (ii) शासकीय नीतियों को
(iii) अधिकार को (iv) आडम्बरों को।

5. पुरोहिताई व्यवस्था द्वारा प्रत्यक्ष रूप से शासित राष्ट्र कहलाता है-
(i) समाजवादी (ii) धर्मतान्त्रिक
(iii) धर्मनिरपेक्ष (iv) समाजवादी।

उत्तर-1.(ii), 2. (iv), 3. (iv), 4. (i), 5. (ii),

रिक्त स्थान पूर्ति

1. भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द……..संवैधानिक संशोधन द्वारा जोड़ा गया।

2. लोकतान्त्रिक राज्य में ………. विभिन्न धर्मों एवं समुदायों को समानता की गारण्टी देती है।

3. मध्यकालीन यूरोप में पोप की राज्यसत्ता वाले राष्ट्र ………. थे।

4. धर्मतान्त्रिक राष्ट्र ……..के लिए बदनाम (कुख्यात) रहे हैं।
5. भारतीय धर्मनिरपेक्षता……….का प्रतिबिम्ब प्रस्तुत करती है।

उत्तर-1.42वें, 2. धर्मनिरपेक्षता, 3. धर्मतान्त्रिक,
4. धार्मिक उत्पीड़न, 5. भविष्य की दुनिया।

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

1. कुछ लोग जनसाधारण के लिए किसे अफीम की संज्ञा देते है।
उत्तर-धर्म।

2. धर्मनिरपेक्षता धर्म विरोधी न होकर किसकी विरोधी है।
उत्तर-धर्म में आपसी वर्चस्व को होइ को विरोधी है।

3 साम्प्रदायिकता को दूर करने का सबसे अच्छा साधन बतलाइए।
उत्तर-शिक्षा का प्रसार।

4 भारतीय धर्मनिरपेक्षता किन अधिकारों पर ध्यान देती है।
उत्तर-अल्पसंख्यक अधिकारों।

5. किस राज्य में किसी एक धर्म को राज्य धर्म के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती है?
उत्तर-बहुधर्मों।

सत्य/असत्य

1, धर्मनिरपेक्षता के पूरोपीय मॉडल में धर्म के मामलों में राज्यसत्ता हस्तक्षेप नहीं कर सकती।

2. हिन्दू धर्म में दलितों तथा महिलाओं को सदियों से उपेक्षा का शिकार होना पड़ा।

3. भारतीय धर्मानरपेक्षता में राज्य समर्थित धार्मिक सुधार को कोई सम्भावना नहीं है।

4. कांग्रेस के कराची अधिवेशन में सर्वसम्मत से भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बनाने पर बल दिया गया।

5. भारत में धर्म विशेष को संरक्षण प्रदान किया जाता है।

उत्तर-1.सत्य 2.सत्य, 3,असत्य,4 सत्य,5 असत्य।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न1. 20वीं शताब्दी में तुर्की में किस प्रकार धर्मनिरपेक्षता को अपनाया गया ?
उत्तर-20वीं शताब्दी में तुर्की में मुस्लिमों द्वारा एक विशेष टोपी पहनने पर रोक लगाई गई तथा पाश्चात्य वस्त्रों को पहनने पर विशेष बल दिया गया।

प्रश्न 2. धर्मनिरपेक्षता की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर-(1) धर्मनिरपेक्ष राज्य का कोई धर्म नहीं होता है तथा (2) राज्य के दृष्टिकोण से सभी धर्म एकसमान हैं।

प्रश्न 3. किसी अल्पसंख्यक समुदाय को अपने अलग शैक्षणिक संस्था बनाने की अनुमति होना, क्या धर्मनिरपेक्षता है?
उत्तर-हाँ, धर्मनिरपेक्षता है क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 29 के संवैधानिक प्रावधान के अनुसार अल्पसंख्यकों को अपनी विशेष भाषा, लिपि अथवा संस्कृति बनाए रखने का
अधिकार है। अनुच्छेद 31 में स्पष्टतया उल्लिखित है कि अल्पसंख्यक तथा अन्य सभी लोग अपनी रुचि की शिक्षा हासिल कर सकते हैं।

प्रश्न 4. धर्मनिरपेक्षता की भारतीय अवधारणा तथा पश्चिमी अवधारणा में दो अन्तर लिखिए।
उत्तर-(1) भारतीय धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा में धार्मिक सहनशीलता है जबकि पाश्चात्य अवधारणा में इसका अभाव है। (2) जहाँ भारतीय धर्मनिरपेक्षता में विभिन्नता के साथ
भेदभाव नहीं है तथा अल्पसंख्यकों को संरक्षण प्रदान किया गया है, वहीं पाश्चात्य (पश्चिमी) देशों में ऐसा नहीं है।

प्रश्न 5. धर्मनिरपेक्ष राज्य की आलोचना के दो बिन्दु लिखो।
उत्तर-(1) धर्मनिरपेक्षता एक असम्भव परियोजना है तथा (2) धर्मनिरपेक्षता से वोट बैंक की राजनीति को प्रोत्साहन मिलता है।
लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. क्या धर्मनिरपेक्षता भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल है ? चार कारण लिखिए।
उत्तर-धर्मनिरपेक्षता भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल है, जिसके प्रमुख कारण निम्नवत् हैं-
(1) हमारा देश भारत एक बहुधर्मी राज्य है, जिसमें किसी एक धर्म विशेष को राज्य धर्म के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती है।
(2) सर्वविदित तथ्य है कि धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना के लिए ही भारत का विभाजन किया गया था।
(3) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1931 के कराची अधिवेशन के दौरान समस्त नेतृत्व करने वाले नेताओं ने एकमत होकर भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य बनाने पर बल दिया था।
(4) हमारा देश लोकतान्त्रिक सिद्धान्तों पर आधारित है। लोकतान्त्रिक राज्य तथा धर्मतान्त्रिक राज्य परस्पर एक-दूसरे के खिलाफ हैं। लोकतन्त्र की महत्वपूर्ण विशेषता जनसाधारण को धार्मिक स्वतन्त्रता देना है।

प्रश्न 2. धर्मनिरपेक्षता के मार्ग की कोई चार बाधाएं संक्षेप में लिखिए।
उत्तर-धर्मनिरपेक्षता के मार्ग की प्रमुख बाधाएँ निम्न प्रकार हैं-
(1) धर्मनिरपेक्षता के मार्ग को सबसे बड़ी बाधा साम्प्रदायिकता है।
(2) धर्मनिरपेक्षता के मार्ग को दूसरी बड़ी रुकावट साम्प्रदायिक दल हैं, जो धर्म निरपेक्षता के विकास में बाधा पैदा करते हैं। हमारे देश में मुख्य रूप से मुस्लिम लीग, अकाली दल तथा विश्व हिन्दू सभा इत्यादि साम्प्रदायिकता को बढ़ाते हैं।
(3) धर्मनिरपेक्षता के रास्ते में जाति भी बाधा उत्पन करती है।
(4) धर्मनिरपेक्षता के सिद्धान्त के अनुसार सामाजिक रीति-रिवाजों में शासन हस्तक्षेप नहीं कर सकता है, लेकिन सामाजिक न्याय की अवधारणा सामाजिक ढाँचे में प्रगतिशील
बदलावों की माँग करती है। अतः स्पष्ट है कि धर्मनिरपेक्षता के मार्ग में शासकीय अहस्तक्षेप भी एक बाधा ही है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. धर्मनिरपेक्ष राज्य का आशय स्पष्ट करते हुए इसकी स्थापना की अनिवार्य शर्ते लिखो।
उत्तर-धर्मनिरपेक्ष राज्य का अर्थ-वह राज्य जिसमें समस्त धर्मों का एकसमान आदर किया जाए तथा राज्यसत्ता किसी भी धर्म विशेष से स्वयं को अलग रखे, धर्मनिरपेक्ष
राज्य कहलाता है। धर्मनिरपेक्ष राज्य में सभी धर्मों के लोगों को अपने-अपने धर्म को मानने और उससे सम्बद्ध रीति-रिवाजों एवं परम्पराओं का अनुसरण करने की पूर्णरूपेण आजादी होती है। संयुक्त राज्य अमेरिका तथा भारत इत्यादि धर्मनिरपेक्ष राज्य के श्रेष्ठ उदाहरण हैं।
धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना की अनिवार्य शर्ते-धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना की प्रमुख शर्ते निम्न प्रकार हैं-
(1) धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना की प्रमुख अनिवार्य शर्त है कि राज्यसत्ता तथा धर्म के मध्य में उचित दूरी होनी चाहिए। राज्यसत्ता के फैसलों, कानूनों तथा नीतियों इत्यादि पर धर्म
का प्रभाव नहीं होना चाहिए।
(2) धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना हेतु परमावश्यक है कि राज्यसत्ता की गैर-धार्मिक स्रोतों से उत्पन्न सिद्धान्तों एवं मूल्यों के प्रति अटूट आस्था होनी चाहिए।
(3) धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना के लिए यह भी जरूरी है कि सभी लोगों को समान रूप से अपने अन्त:करण के अनुसार धर्म को मानने तथा उससे सम्बद्ध रीति-रिवाजों को
अपनाने की पूरी आजादी होनी चाहिए। ऐसा होने से राज्य में धार्मिक सौहार्द्र, भाईचारा तथा शान्ति कायम रहती है और सभी धर्मों के अनुयायियों को पूरा सम्मान भी मिलता है।
(4) धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना के लिए यह भी परमावश्यक है कि उसमें धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों एवं हितों की समुचित सुरक्षा की जाए। अल्पसंख्यकों के हितों
की रक्षार्थ राज्य द्वारा विशेष नीतियाँ एवं कानून भी बनाए जा सकते हैं।

प्रश्न 2. धर्मनिरपेक्षता के यूरोपीय प्रतिमान (मॉडल) के गुण-दोषों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- धर्मनिरपेक्षता के यूरोपीय प्रतिमान के गुण-दोष
आधुनिक धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा का प्रादुर्भाव 18वीं-19वीं शताब्दी में यूरोपीय देशों में हुआ, जिसे ही धर्मनिरपेक्षता का यूरोपीय प्रतिमान अर्थात् मॉडल कहा जाता है। इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण अमेरिका में अपनाई गई धर्मनिरपेक्षता तथा उसका क्रियान्वयन है। गुण-धर्मनिरपेक्षता के यूरोपीय प्रतिमान अर्थात् मॉडल के निम्न गुण हैं-
(1) धर्मनिरपेक्षता के यूरोपीय मॉडल में धर्म एवं राज्यसत्ता के मध्य स्पष्ट रूप से विभाजन किया गया है। धार्मिक मामलों में राज्य का किसी भी प्रकार का कोई हस्तक्षेप नहीं है तथा राज्य की नीतियों में धर्म का भी कोई दखल अवैध माना जाता है।
(2) धर्मनिरपेक्षता के यूरोपीय मॉडल के अन्तर्गत सभी धर्मों को स्वतन्त्रता हासिल है। प्रत्येक नागरिक को यह अधिकार प्रदत्त है कि वह अपनी स्वेच्छा से किसी भी धर्म का पालन
कर सकता है। दोष-धर्मनिरपेक्षता के यूरोपीय प्रतिमान में उच्च गुणों के बावजूद निम्न दोष भी विद्यमान हैं-
(1) धर्मनिरपेक्षता के यूरोपीय प्रतिमान का सबसे बड़ा दोष अथवा अवगुण है कि यह राज्य को प्रत्येक परिस्थिति में उदासीन बनाए रखता है। धार्मिक सुधारों अथवा कुरीतियों के
सम्बन्ध में भी राज्य कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। यदि किसी धार्मिक समुदाय द्वारा किसी दूसरे समुदाय का बहिष्कार किया जाता है, तब भी राज्य सिर्फ मूकदर्शक ही बना रहता है।
(2) धर्मनिरपेक्षता के यूरोपीय मॉडल का एक अन्य दोष यह भी है कि यह व्यक्तिगत स्वतन्त्रता पर अत्यधिक बल अथवा जोर देता है। इसमें विविध धर्मों के मध्य तथा धर्म के भीतर
विभिन्न समुदायों, वर्गों एवं लोगों की समानता की उपेक्षा की जाती है। अत: यह अत्यधिक व्यक्तिवादी लगती है। यूरोपीय धर्मनिरपेक्षता सामाजिक सुधारों एवं धार्मिक सुधारों के क्षेत्र में
राज्य को सकारात्मक कदम उठाने से भी रोकती है।

प्रश्न 3. भारतीय धर्मनिरपेक्षता का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।
उत्तर-भारतीय धर्मनिरपेक्षता का आलोचनात्मक परीक्षण
भारतीय धर्मनिरपेक्षता सदैव तीव्र आलोचनाओं का शिकार रही है। संक्षेप में, हम इसकी आलोचना को निम्न प्रकार स्पष्ट कर सकते हैं-
(1) धर्म विरोधी-विभिन्न आलोचकों द्वारा भारतीय धर्मनिरपेक्षता को धर्म विरोधी माना है। आलोचकों ने यह आरोप सम्भावतया इस कारण लगाया है कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता किसी भी तरह के संस्थागत धार्मिक वर्चस्व की विरोधी है। व्यावहारिक रूप से यह धर्म विरोधी
होने का कोई आधार नहीं है। आलोचक तर्क देते हैं कि यह धार्मिक पहचान के लिए खतरा है परन्तु वास्तविकता के धरातल पर यह भी सही नहीं है क्योंकि भारतीय धर्मनिरपेक्षता तो धार्मिक स्वतन्त्रता एवं समानता को प्रोत्साहित ही करती है।
(2) पाश्चात्य नकल-आलोचकों के मतानुसार भारतीय धर्मनिरपेक्षता ईसाईयत से जुड़ी है, अत: यह देश की परिस्थितियों हेतु अनुपयुक्त है। यह आलोचना भी सही प्रतीत
नहीं होती क्योंकि भारतीय धर्मनिरपेक्षता का उदय देश की परिस्थितियों के अनुसार ही हुआ है।
(3) अल्पसंख्यकों को प्रोत्साहन- भारतीय धर्मनिरपेक्षता पर अल्पसंख्यकों को अत्यधिक बढ़ावा देने का गम्भीर आरोप आलोचकों द्वारा लगाया जाता है। लेकिन उक्त आरोप
असत्य है क्योंकि हमारे देश में धर्मनिरपेक्षता अल्पसंख्यकों को भी समान धार्मिक आजादी प्रदत्त करती है जिसे कुछ विशेष कानूनों एवं नीतियों द्वारा सुनिश्चित किया गया है।
(4) असम्भव परियोजना-आलोचक भारतीय धर्मनिरपेक्षता को एक असम्भव परियोजना मानते हैं। यह भारी मतभेद वाले लोगों को भी एक साथ शान्तिपूर्वक रखना चाहती है, जो कि सम्भव ही नहीं है। आलोचकों का उक्त कथन भी सर्वथा व्यर्थ ही है क्योंकि भारतीय सभ्यता का इतिहास साक्षी है कि इस तरह साथ-साथ रहना एकदम सम्भव है। उक्त विवेचन से स्पष्ट है कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता स्वयं में विशिष्ट तथा महत्वपूर्ण
है। हमारे देश की एकता एवं अखण्डता में धर्मनिरपेक्षता का योगदान किसी से छिपा हुआ नहीं है। इसकी अनेक आलोचनाएँ आवेश एवं जल्दबाजी में की गई है, जिसमें वास्तविक तथ्यों का प्रायः अभाव ही है।

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