Pariksha Adhyayan Class 9 Social Science अध्याय 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय

अध्याय 3
नात्सीवाद और हिटलर का उदय

 अध्याय 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय

अध्याय 3
नात्सीवाद और हिटलर का उदय

वस्तुनिष्ठ प्रश्न
. बहु-विकल्पीय प्रश्न
1. एडोल्फ हिटलर का जन्म कहाँ हुआ था ?
(i) जापान
(ii) बुल्गारिया
(iii) आस्ट्रिया
(iv) रोमानिया।

2. हिटलर के प्रचार मन्त्री थे-
(i) ग्योबल्स
(i) हिन्डेनबर्ग
(iii) नीम्योलर
(iv) शार्लट बेराट।

3. ‘मेन केम्फ’ के रचियता कौन था?
(1) पादरी नीम्योलर
(ii) एडोल्फ हिटलर
(iii) प्लेटो
(iv) हिलमथ।

4. हिटलर ने 1939 में किस राष्ट्र पर आक्रमण किया?
(i) रोमानिया
(ii) जापान
(iii) पोलैण्ड
(iv) फ्रांस।

5. अमेरिका के सैनिक अड्डे पर्ल हार्बर’ पर बमबारी की थी-
(I) फ्रांस
(ii) रूस
(ii) जर्मनी
(iv) जापान।

6. विशेषाधिकार अधिनियम (इनेबलिंग एक्ट) किस वर्ष पारित किया गया?
(i) 3 मार्च, 1933
(ii) 3 मार्च, 1938
(ii) 4 अप्रैल, 1940
(iv)4 अप्रैल, 1941.

7. जर्मनी ने मित्र राष्ट्रों के सामने कब समर्पण किया था ?
(i) अक्टूबर, 1942
(ii) अक्टूबर, 1943
(iii) मई, 1945
(iv) मई, 1944.

उत्तर-1. (iii), 2. (i), 3. (ii), 4.(iii), 5. (iv), 6. (1), 7.(iii).

रिक्त स्थानों की पूर्ति
1. जर्मनी के विषय में, ‘थर्ड राइख ऑफ ड्रीम्स’………ने लिखी।
2. नई व्यवस्था में जर्मन संसद अर्थात् …………के लिए जन-प्रतिनिधियों का चुनाव किया जाने लगा।
3. दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत ……….में हुई।
4. वर्साय की सन्धि….…..में हुई।
5, सन्……….नाजी पार्टी जर्मनी की बड़ी पार्टी बनकर उभरी।

उत्तर-1. शार्लट बेराट, 2. राइखस्टाग, 3. सितम्बर, 1939, 4. 28 जून, 1919, 5. 1932.

सत्य/असत्य
1. 1929 में आर्थिक महामंदी का दौर शुरू हुआ।
2. 1915 में वाइमर गणराज्य की स्थापना हुई।
3, 1934 में हिटलर जर्मनी का राष्ट्रपति बना।।
4. जर्मनी के सम्बन्ध में नात्सी दमनकारी महाध्वंस था।
5. नात्सी जर्मनी में सारी माताओं के साथ एक जैसा बर्ताव होता था।

उत्तर-1. सत्य, 2. असत्य, 3. सत्य,4. सत्य, 5. असत्य।

एक शब्द/वाक्य में उत्तर
1. पहला विश्व युद्ध कब शुरू हुआ ?
2. वर्साय की सन्धि कब हुई थी?
3. दूसरे विश्व की युद्ध की शुरूआत कब हुई ?
4. नात्सियों ने ‘यूथनेजिया’ शब्द का प्रयोग किसके लिये किया था ?
5. ‘मेरे राज्य की सबसे महत्वपूर्ण नागरिक माँ है।” यह कब और किसने कहा ?
6. नाजियों द्वारा गैस चैम्बरों को क्या नाम दिया गया था ?

उत्तर-1. 1 अगस्त, 1914, 2. 28 जून, 1919,
3. 1 सितम्बर, 1939, 4. विकलांगों के लिए,
5. 1933 में हिटलर ने, 6. संक्रमण मुक्ति क्षेत्र ।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. मित्र राष्ट्रों का नेतृत्व करने वाले कौन से राष्ट्र थे ?
उत्तर-मित्र राष्ट्रों का नेतृत्व शुरू में ब्रिटेन और फ्रांस के हाथों में था। 1941 में सोवियत संघ और अमेरिका भी इस गठबन्धन में शामिल हो गए।

प्रश्न 2. नात्सी शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?
उत्तर-नात्सी शब्द जर्मन भाषा के शब्द ‘नात्सियोणाल’ के प्रारम्भिक अक्षरों को लेकर बनाया गया है। ‘नात्सियोणाल’ शब्द हिटलर की पार्टी के नाम का पहला शब्द था, इसलिए इस पार्टी के लोगों को नात्सी कहा जाता था।

प्रश्न 3. प्रोपेगैंडा का क्या अर्थ है?
उत्तर-जनमत को प्रभावित करने के लिए किया जाने वाला एक खास तरह का प्रचार ( पोस्टर, फिल्मों और भाषणों आदि के माध्यम से)।

प्रश्न 4. ‘कंसन्ट्रेशन कैम्प क्या थे?
उत्तर-ऐसे स्थान जहाँ बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के लोगों को कैद रखा जाता था। ये कंसन्ट्रेशन कैम्प बिजली का करंट दौड़ते कँटीले तारों से घिरे रहते थे।

प्रश्न 5. ‘नाइट ऑफ ब्रोकन ग्लास’ के नाम से किस घटना को याद किया जाता है ?
उत्तर-नवम्बर 1938 के एक जनसंहार में यहूदियों की सम्पत्तियों को तहस-नहस किया गया, लूटा गया, उनके घरों पर हमले हुए, यहूदी प्रार्थनाघर जला दिए गए और उन्हें गिरफ्तार किया गया। इस घटना को ‘नाइट ऑफ ब्रोकन ग्लास’ के नाम से याद किया जाता है।

प्रश्न 6, नॉर्डिक जर्मन आर्य कौन थे?
उत्तर-आर्य बताये जाने वालों की एक शाखा। ये लोग उत्तरी यूरोपीय देशों में रहते थे और जर्मन या मिलते-जुलते मूल के लोग थे।

प्रश्न 7. युंगफोक से अर्थ बताइए।
उत्तर-युंगफोक 14 साल से कम उम्र वाले बच्चों के लिए नाजी युवा संगठन ।

प्रश्न 8. ‘जिप्सी’ व ‘घेटो’ का अर्थ बताइए।
उत्तर-जिप्सी-‘जिप्सी’ के नाम से श्रेणीबद्ध किए गए समूहों की अपनी सामुदायिक पहचान थी। सित्ती और रोमा ऐसे ही दो समुदाय थे। घेटो-किसी समुदाय को औरों से अलग-थलग करके रखना।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. नाजीवाद के प्रमुख उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-नाजीवाद के उद्देश्य-नाजीवाद आन्दोलन का सूत्रपात हिटलर के नेतृत्व में हुआ जिसके प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित थे-
(1) वर्साय की सन्धि के अपमान का बदला लेना।
(2) समाजवाद का विरोध करना।
(3) जर्मनी के खोये हुए उपनिवेश पुनः प्राप्त करना।
(4) सैन्य शक्ति का विकास करना तथा विरोधियों को युद्ध एवं हिंसा से कुचल देना।
(5) जर्मनी को विश्व की महान शक्ति के रूप में विकसित करना।
(6) यहूदियों को जर्मनी से निकालना।

प्रश्न 2. जर्मनी पर आर्थिक महामंदी के प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-जर्मनी पर आर्थिक महामंदी का बुरा प्रभाव पड़ा जैसा कि निम्न तथ्यों से स्पष्ट है-
(1) 1932 में जर्मनी का औद्योगिक उत्पादन 1929 के मुकाबले केवल 40 प्रतिशत रह गया था। बेरोजगारों की संख्या 60 लाख तक जा पहुंची।
(2) बेरोजगार नौजवान या तो ताश खेलते पाए जाते थे, नुक्कड़ों पर झुण्ड लगाए रहते थे या फिर रोजगार दफ्तरों के बाहर लम्बी-लम्बी कतार में खड़े पाए जाते थे।
(3) रोजगार खत्म हो रहे थे, युवा वर्ग आपराधिक गतिविधिों में लिप्त होता जा रहा था।
(4) आर्थिक संकट ने लोगों में गहरी बेचैनी और डर पैदा कर दिया था। जैसे-जैसे मुदा का अवमूल्यन होता जा रहा था; मध्यवर्ग, खासतौर से वेतनभोगी कर्मचारी और पेंशनधारियों की बचत भी सिकुड़ती जा रही
(5) किसानों का एक बहुत बड़ा वर्ग कृषि उत्पादों की कीमतों में बेहिसाब गिरावट की वजह से परेशान था। युवाओं को अपना भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा था।

प्रश्न 3. हिटलर की आर्थिक नीति क्या थी? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-हिटलर की आर्थिक नीति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित धी-
(1) मई 1934 ई. में एक राजकीय नियम बनाकर हड़तालों पर रोक लगा दी।
(2) उद्योग-धन्धों को स्वावलम्बी बनाने का प्रयास किया।
(3) खेती को राज्य के नियन्त्रण में कर दिया गया।
(4) श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए श्रमिक संस्थाएँ स्थापित की।
(3) लेबर फ्रण्ट खोलकर पूँजी और श्रम का सामंजस्य स्थापित किया।
(6) अस्त्र-शस्त्र, समुद्री जहाज, वायुयान तथा वस्त्र उद्योगों के निर्माण पर विशेष बल दिया गया।

प्रश्न 4. हिटलर की विदेश नीति के मुख्य उद्देश्य क्या थे?
उत्तर-(1) हिटलर की विदेश नीति का मुख्य उद्देश्य जर्मनी को शक्तिशाली बनाना था।
(2) उसने वर्साय को सन्धि का उल्लंघन किया।
(3) उसने इटली, फ्रांस, इंग्लैण्ड, रूस, पोलण्ड तथा जापान के साथ सन्धियों को।
(4) उसने आस्ट्रिया एवं चेकोस्लोवाकिया पर आक्रमण करके उन पर अधिकार कर लिया।
(5) हिटलर ने 1 सितम्बर, 1939 को पोलैण्ड पर आक्रमण कर दिया जो द्वितीय विश्व युद्ध का कारण बना।

प्रश्न 5 मित्र राष्ट्रों के साथ वर्साय की शान्ति-सन्धि जर्मनी के लिए कठोर और शर्मनाक थी।” इस कवन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-मित्र राष्ट्रों के साथ वसाय में हुई शान्ति-सन्धि जर्मनी को जनता के लिए बहुत कठोर और अपमानजनक थी। जैसा कि निम्न तथ्यों से सष्ट है-
(1) इस सन्धि की वजह से जर्मनी को अपने सारे उपनिवेश, तकरीबन 10 प्रतिशत आबादी, 13 प्रतिशत भू-भाग, 75 प्रतिशत लौह भण्डार और 26 प्रतिशत कोयला भण्डार फ्रांस, पोलैंण्ड, डेनमार्क और लिथुआनिया के हवाले करने पड़े।
(2) जर्मनी की रही-सही ताकत खत्म करने के लिए मित्र राष्ट्रों ने उसकी सेना भंग कर दी।
(3) युद्ध अपराधबोध अनुच्छेद (War Guilt Clause) के तहत युद्ध के कारण हुई सारी तबाही के लिए जर्मनी को जिम्मेदार ठहराया गया। इसके एवज में उस पर छः अरब पौंड का जुर्माना लगाया गया।
(4) खनिज संसाधनों वाले राईनलैण्ड पर भी बीस के दशक में ज्यादातर मित्र राष्ट्रों का ही कब्जा रहा।

प्रश्न 6. उग्र-राष्ट्रवाद ने नाजीवाद को किस तरह बढ़ावा दिया ? समझाइए।
उत्तर-उन-राष्ट्रवाद की भावना ने नाजीवाद को अनेक प्रकार से पोत्साहित किया था। उग-राष्ट्रीयता को भावना ने ही नाजीवाद में एकता तथा सहयोग की भावना का अपूर्व संचार किया था। अन्य शब्दों में, उग-राष्ट्रवाद ने नाजीवाद के सभी विखण्डित तथा असमान तत्वों को एक-दूसरे से जोड़कर एकता की भावना उत्पन्न की। जर्मनी की जनता तथा नाजीदल में राष्ट्र-प्रेम तथा एकता की भावना उत्पन्न करने के लिए हिदलर ने कहा था, “जर्मनी को छोड़कर तुम्हारा कोई अन्य ईश्वर नहीं।” उग्र-राष्ट्रीयता की भावना से प्रेरित होकर ही वाय की सन्धि की अनेक धाराओं का उल्लंघन हिटलर ने किया तथा जर्मनी को अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित कर
दिया था।

प्रश्न 7. हिटलर और उसकी नाजी पार्टी किस प्रकार द्वितीय महायुद्ध के लिए जिम्मेदार थी?
अथवा
विश्व राजनीति में नात्सी पार्टी की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-वर्साय की सन्धि के बाद जर्मनी में नाजी दल का उदय हुआ। 1934 ई. में इस दल का प्रभाव इतना अधिक बढ़ गया कि हिटलर जर्मनी का तानाशाह बन बैठा । शक्ति के हाथ में आते ही उसने वर्साय की सन्धि की धज्जियाँ उड़ा दीं। उसने साम्राज्यवादी दृष्टिकोण को अपनाकर आस्ट्रिया, सुदेतेनलैण्ड और चेकोस्लोवाकिया पर अधिकार जमा लिया। नाजियों ने बड़े पैमाने पर पुस्तकें जलाने का काम शुरू कर दिया। जर्मनी और दूसरे राष्ट्रों के श्रेष्ठतम लेखकों की कृतियाँ जला दी गयीं। नाजीवाद की विजय जर्मनी जनता के लिए ही नहीं बल्कि विश्व के अनेक दूसरे भागों के लिए भी विनाशकारी सिद्ध हुई। उसी ने दूसरे विश्व युद्ध का आरम्भ किया।
प्रश्न 8. द्वितीय विश्व युद्ध का तात्कालिक कारण क्या था ?
अथवा
द्वितीय विश्व युद्ध का आरम्भ किस घटना से माना जाता है ?
उत्तर-द्वितीय विश्व युद्ध का तात्कालिक कारण-हिटलर द्वारा पोलैण्ड पर आक्रमण द्वितीय विश्व युद्ध का तात्कालिक कारण था। हिटलर ने मांग की कि एक देन्जिग नगर जर्मनी को लौटा दिया जाय, पर ब्रिटेन ने उसकी माँगें मानने से इन्कार कर दिया। सितम्बर 1939 में जर्मनी सेनाएँ पोलैण्ड में घुस गयीं। 3 सितम्बर को ब्रिटेन और फ्रांस ने जर्मनी के विरूद्ध युद्ध की घोषणा की। इस तरह पोलैण्ड पर आक्रमण के साथ द्वितीय
विश्व युद्ध आरम्भ हो गया।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. वाइमर गणराज्य के सामने क्या समस्याएँ थी?
उत्तर-साम्राज्यवादी जर्मनी की पराजय और सम्राट के पद त्याग ने वहाँ की संसदीय पार्टियों को जर्मन राजनीतिक व्यवस्था को नए साँचे में ढालने का अच्छा मौका उपलब्ध कराया। इसी सिलसिले में वाइमर में एक राष्ट्रीय सभा की बैठक बुलाई गई और संघीय आधार पर एक लोकतान्त्रिक संविधान पारित किया गया। नई व्यवस्था में जर्मन संसद यानी राइखस्टाग के लिए जनप्रतिनिधियों का चुनाव किया जाने लगा। प्रतिनिधियों के निर्वाचन के लिए औरतों सहित सभी वयस्क नागरिकों को समान और सार्वभौमिक मताधिकार प्रदान किया गया।
लेकिन यह नया गणराज्य खुद जर्मनी के ही बहुत सारे लोगों को रास नहीं आ रहा था। इसकी एक वजह तो यही थी कि पहले विश्व युद्ध में जर्मनी की पराजय के बाद विजयी देशों ने उस पर बहुत कठोर शर्ते थोप दी थीं। मित्र राष्ट्रों के साथ वसीय में हुई शान्ति-सन्धि जर्मनी की जनता के लिए बहुत कठोर और अपमानजनक थी। बहुत सारे जर्मनों ने न केवल इस हार के लिए बल्कि वर्साय में हुए इस अपमान के लिए
भी वाइमर गणराज्य को जिम्मेदार ठहराया। राजनीतिक स्तर पर वाइमर गणराज्य एक नाजुक दौर से गुजर रहा था, जैसा निम्न तथ्यों से स्पष्ट है-
(1) वाइमर संविधान में कुछ ऐसी कमियाँ थीं जिनकी वजह से गणराज्य कभी भी अस्थिरता और तानाशाही का शिकार बन सकता था। इनमें से एक कमी आनुपातिक प्रतिनिधित्व से सम्बन्धित थी। इस प्रावधान की वजह से किसी एक पार्टी को बहुमत मिलना लगभग नामुमकिन बन गया था। हर बार गठबन्धन सरकार सत्ता में आ रही थी।
(2) दूसरी समस्या अनुच्छेद 48 की वजह से थी जिसमें राष्ट्रपति को आपातकाल लागू करने, नागरिक अधिकार रद्द करने और अध्यादेशों के जरिए शासन चलाने का अधिकार दिया गया था।

(3)अपने छोटे जीवन काल में वाइमर गणराज्य का शासन 20 मन्त्रिमण्डलों के हार्थों में रहा और उनकी औसत अवधि उप दिन से ज्यादा नहीं रही। इस दौरान अनुच्छेद 48 का भी जमकर प्रयोग किया गया। उपयुक्त प्रयासों के बावजूद संकट दूर नहीं हो पाया। लोकतान्त्रिक संसदीय व्यवस्था में लोगों का
विश्वास खत्म होने लगा क्योंकि वह उनके लिए कोई समाधान नहीं खोज पा रही थी।
प्रयन 2.इस बारे में चर्चा कीजिए कि 1930 तक आते-आते जर्मनी में नात्सीवाद को लोकप्रियता कयों मिलने लगी।
अथवा
जर्मनी में नात्सीवाद का उदय किन कारणों से हुआ?
उत्तर-जर्मनी में हिटलर तथा नात्सीवाद के उत्थान के निम्नलिखित कारण थे-
(1) वर्याय की अपमानजनक सन्धि-अधिकांश इतिहासकार वर्साय की अपमानजनक सन्धि को नाजीवाद के उदय का कारण मानते हैं। इस सन्धि ने जर्मनी को एक दुर्बल राष्ट्र बना दिया था। मित्र राष्ट्रों ने स्वार्थी तथा विजेता होने के कारण जर्मन साम्राज्य को परस्पर बाँट लिया था। उसके कोयला एवं लोहा प्रधान क्षेत्र उससे अन लिये गये थे तथा उसका पूर्णतया निशस्त्रीकरण कर दिया गया था। इन सब स्थितियों से जर्मनी
की जनता को गहरा आघात लगा। हिटलर ने वर्साय सन्धि को अपमानजनक बताकर घोषणा की थी, “हमें वाय सन्धि को फाड़कर रद्दी की टोकरी में फेंकना है, जर्मन जनता का संगठन करके विशाल जर्मन साम्राज्य को पुनःस्थापना करती है तथा खोये हुए उपनिवेशों को प्राप्त करना है।” हिटलर की इस घोषणा ने जर्मनी की जनता को विशेष रूप से प्रभावित किया तथा उसके अनुयायियों की संख्या तीव्रता से बढ़ी। परिणामस्वरूप नाजीवाद का जर्मनी में तीव्रता से विकास हुआ।
(2) आर्थिक संकट-प्रथम विश्व युद्ध के प्रभाव से जर्मनी का आर्थिक दशा अत्यन्त शोचनीय हो गयी थी। कारखानों के बन्द हो जाने से उत्पादन कम हो गया तथा असंख्य मजदूर बेकार हो गये थे। मुद्रा का मूल्य भी गिर गया था। जर्मनी की जनता अपूर्व आर्थिक संकट से तंग आ चुकी थी ऐसी दशा का लाभ उठाकर हिटलर ने जनसाधारम की आर्थिक दशा सुधारने का आश्वासन देकर जनता को अपनी ओर आकर्षित किया जिससे नाजीवाद ने जर्मनी में अपनी गहरी जड़ें जमा ली।
(3) साम्बवाद का विरोध-जर्मनी की जनता साम्यवाद की भी विरोधी थी। मुख्यतया जमींदार, उद्योगपति तथा बनवान साम्बवाद का विशेष रूप से विरोध करते थे। हिटलर ने इस स्थिति का लाभ उठाकर स्वयं ने भी साम्यवाद का व्यापक विरोध किया।
(4) बहूदी विरोधी भावना-बहुसंख्या में बहूदी जर्मनी में वास करते थे। जर्मनी की अधिकांश जनता का विचार था कि प्रथम विश्व युद्ध में उनके देश की पराजय का कारण यहूदियों की गतिविधियाँ थीं। इसके अतिरिक्त जर्मनी के विशाल उद्योगों पर भी यहूदियों ने अधिकार कर रखा था, अत: सर्वसाधारण जर्मन जनता उ वृना की दृष्टि से देखती थी। हिटलर जर्मन जनता की इस यहूदी विरोधी भावना से परिचित था, अत: उसने बहूदियों के विरुद्ध तीव्रता से प्रचार कर जर्मन जनता का पर्याप्त सहयोग प्राप्त किया।
(5) प्रजातन्त्र में अविश्वास-जर्मन की जनता स्वभाव से प्रजातन्त्र तथा संसदीय प्रणाली की विरोधी थी। संसद में विभिन्न दलों के होने से संघर्ष का वातावरण रहता था जिससे प्रजातन्त्र को हीन दृष्टि से देखने लगी दी जर्मन जनता की प्रजातन्त्र विरोधी भावना का हिटलर ने स्वागत किया तथा उससे लाभ भी उठाया।
(6) नाजीदल का सैनिक संगठन-जर्मनी के विभिन्न दलों में नाजीदल का संगठन अपनी अलग विशेषता लिए हुए था। हिटलर ने इस दल का संगठन सैनिक आधार पर किया था। इस दल के सदस्य आवश्यकता पड़ने पर हिंसा का भी प्रयोग करते थे। नाजीदल के इन्हीं सैनिकों ने हिटलर को जर्मनी की सत्ता प्राप्त कराने में अपूर्व सहयोग दिया था।

प्रश्न 3. नात्यी सोच के खास पहलू कौन-से थे?
उतर-नात्सी सोच के बास पहलू अलिखित थे-
(1) नाजीवादी उदारवाद, समाजवाद और साम्यवाद को जड़ से उखाड़ना चाहते थे।
(2) यह जर्मनी की सैन्य शक्ति को बढ़ाना चाहते थे और उसे संसार की महान् शक्ति के रूप में देखना चाहते थे।
(3) नाजीवादी सभी प्रकार की संसदीय संस्थाओं को समाप्त करने के पक्ष में थे और एक महान् नेता के नेतृत्व की सराहना करते थे। इसी कारण हिटलर ने तानाशाही अधिकार प्राप्त किये।
(4) यह शक्ति के प्रयोग में विश्वास करते थे।
(5) यह यहूदी लोगों को बिल्कुल मिटा देने के पक्ष में थे क्योंकि यह यहूदियों को जर्मनी में आर्थिक संकट का कारण मानते थे।
(6) नाजीवाद ने न केवल हिंसा का खुलकर समर्थन किया वरन् उसे व्यक्ति का सर्वोच्च कर्त्तव्य बताया।
(7) राज्य सबसे ऊपर है। नाजीवाद के अनुसार, “लोग राज्य के लिए हैं न कि राज्य लोगों के लिए।”
(8) नाजियों की विचारधारा का एक महत्वपूर्ण पहलू लेबेन्स्त्राउम या जीवन-परिधि की भू-राजनीतिक अवधारणा से सम्बन्धित था। उनका मानना था कि अपने लोगों को बसाने के लिए ज्यादा से ज्यादा इलाकों पर कब्जा करना जरूरी है।
(9) नात्सी जर्मनी में प्रत्येक बच्चे को बार-बार यह बताया जाता था कि औरतें बुनियादी तौर पर मर्दो से भिन्न होती हैं। उन्हें समझाया जाता था कि औरत-मर्द के लिए समान अधिकारों का संघर्ष गलत है।

प्रश्न 4. नात्सियों का प्रोपेगन्डा यहूदियों के खिलाफ नफरत पैदा करने में इतना असरदार कैसे रहा?
उत्तर-‘प्रोपेगन्डा’ जनमत को प्रभावित करने के लिए किया जाने वाला एक खास तरह का प्रचार जोकि (पोस्टरों, फिल्मों और भाषणों आदि के माध्यम से)। यहूदियों के खिलाफ नफरत पैदा करने में निम्न प्रकार असरदार रहा-
(1) यहूदियों के प्रति नाजियों की दुश्मनी का एक आधार यहूदियों के प्रति ईसाई धर्म में मौजूद परम्परागत घृणा भी थी। ईसाइयों का आरोप था कि ईसा मसीह को यहूदियों ने ही मारा था।
(2) सन् 1933 से 1938 तक नात्सियों ने यहूदियों को तरह-तरह से आतंकित किया, उन्हें दरिद्र कर आजीविका के साधनों से हीन कर दिया और उन्हें शेष समाज से अलग-थलग कर डाला।
(3) 1939-45 के दूसरे दौर में यहूदियों को कुछ खास इलाकों में एकत्र करने और अंतत: पोलैण्ड में बनाए गए गैस चैम्बरों में ले जाकर मार देने की रणनीति अपनाई गई।
(4) शासन के लिए समर्थन हासिल करने और नाजी विश्व दृष्टिकोण को फैलाने के लिए मीडिया का बहुत सोच-समझ कर इस्तेमाल किया गया। नात्सी विचारों को फैलाने के लिए तस्वीरों, फिल्मों, रेडियो, पोस्टरों आकर्षक नारों और इश्तहारी पर्यों का खूब सहारा लिया जाता था।
(5) प्रचार फिल्मों में यहूदियों के प्रति नफरत फैलाने पर जोर दिया जाता था। ‘द एटर्नल ज्यू’ (अक्षय यहूदी) इस सूची की सबसे कुख्यात फिल्म थी। परम्पराप्रिय यहूदियों को खास तरह की छवियों में पेश किया जाता था। उन्हें दाढ़ी बढ़ाए और चोगा पहने दिखाया जाता था।
(6) उन्हें केंचुआ, चूहा और कीड़ा जैसे शब्दों से सम्बन्धित किया जाता था। उनकी चाल-ढाल की तुलना कुतरने वाले छछंदरी जीवों से की जाती थी। नाजीवाद ने लोगों के दिलोदिमाग पर गहरा असर डाला, उनकी भावनाओं को भड़का कर उनके गुस्से और नफरत को ‘अवांछितों’ पर केन्द्रित कर दिया।

प्रश्न 5. नात्सियों ने जनता पर पूरा नियन्त्रण हासिल करने के लिए कौन-कौन से तरीके अपनाए?
उत्तर-नाजियों ने जनता पर नियन्त्रण हासिल करने के लिए अग्र तरीके अपनाए-
(1) सत्ता हासिल करने के बाद हिटलर ने लोकतान्त्रिक शासन की संरचना और संस्थानों को भग करना शुरू कर दिया।
(2)28 फरवरी, 1933 को जारी किए गए अग्नि अध्यादेश (फायर डिक्री) के जरिए अभिव्यक्ति, एवं सभा करने की आजादी जैसे नागरिक अधिकारों को अनिश्चितकाल के लिए निलम्बित कर दिया गया।
(3) हिटलर ने अपने कट्टर शत्रु कम्युनिस्टों पर निशाना साधा। ज्यादातर कम्युनिस्टों को रातों-रात प्रय कन्स्ट्रेशन कैंपों में बन्द कर दिया गया। कम्युनिस्टों का बर्बर दमन किया गया।
(4) 3 मार्च 1933 को प्रसिद्ध विशेषाधिकार अधिनियम (इनेबलिंग एक्ट) पारित किया गया। इस कानून के द्वारा जर्मनी में बाकायदा तानाशाही स्थापित कर दी गई। इस कानून ने हिटलर को संसद को हाशिए पर धकेलने और केवल अध्यादेशों के जरिए शासन चलाने का निरंकुश अधिकार प्रदान कर दिया।
(5) नात्सी पार्टी और उससे जुड़े संगठनों के अलावा सभी राजनीतिक पार्टियों और टेड यूनियनों पर पाबन्दी लगा दी गई। अर्थव्यवस्था, मीडिया, सेना और न्यायपालिका पर राज्य का पूरा नियन्त्रण स्थापित हो गया।
(6) पूरे समाज को नात्सियों के हिसाब से नियन्त्रित और व्यवस्थित करने के लिए विशेष निगरानी और सुरक्षा दस्ते गठित किए गए। पहले से मौजूद हरी वर्दीधारी पुलिस और स्टॉर्म (एस. ए.) के अलावा गेस्तापो (गुप्तचर राज्य पुलिस), एस. एस. (अपराध नियन्त्रण पुलिस) और सुरक्षा सेवा (एस. डी.) का भी गठन किया गया। इन नवगठित दस्तों को बेहिसाब असंवैधानिक अधिकार दिए गए और इन्हीं की वजह से नात्सी राज्य को एक खूखार आपराधिक राज्य की छवि प्राप्त हुई।

प्रश्न 6. हिटलर की विदेश नीति की विवेचना कीजिए।
अथवा
“हिटलर की विदेश नीति द्वितीय विश्व युद्ध का कारण थी। ?” उपर्युक्त कथन का सत्यापन कीजिए।
उत्तर-हिटलर की विदेश नीति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) हिटलर की विदेश नीति के उद्देश्य-हिटलर का प्रथम तथा प्रमुख उद्देश्य वर्साय सन्धि को भंग करना था। हिटलर इस सन्धि को जर्मनी के लिए अपमानजनक समझता था। हिटलर की विदेश नीति का अन्य उद्देश्य वृहत्तर जर्मनी में आत्मनिर्णय के सिद्धान्त के अनुसार जर्मनवासियों का एकीकरण करना था। हिटलर को विदेश नीति का अन्तिम उद्देश्य था, जर्मनी को विश्व का एक सर्वोच्च शक्ति राष्ट्र बनाने के लिए अधिक-से-अधिक राज्यों को अपने अधिकार में करना।
(2) राष्ट्रसंघ से अलग होना-हिटलर ने अपनी विदेश नीति को पूर्णतया स्वतन्त्र बनाये रखने के लिए 14 अक्टूबर, 1933 ई. में निशस्त्रीकरण सम्मेलन का बहिष्कार किया तथा राष्ट्रसंघ से जर्मनी को भी पृथक् कर दिया।
(3) वर्साय सन्धि को अवैध घोषित करना-राष्ट्रसंघ से जर्मनी को पृथक् करने के साथ ही हिटलर ने वर्साय सन्धि को भी रद्द घोषित कर दिया। वर्साय सन्धि से मुक्त होने का प्रमुख उद्देश्य था बिना किसी बाधा के साम्राज्यवादी नीति का पालन करना।
(4) चार महाशक्तियों के साथ समझौता-हिटलर ने अपने शान्ति का अग्रदूत दिखाने के लिए मुसोलिनी के प्रस्ताव पर 1933 ई. में इटली, फ्रांस तथा इंग्लैण्ड के साथ एक समझौता किया। परन्तु यह समझौता नाममात्र का ही सिद्ध हुआ, क्योंकि यह कभी लागू नहीं हुआ।
(5) रोम-बर्लिन-टोकियो धुरी की स्थापना-21 अक्टूबर, 1936 ई. में हिटलर ने इटली के साथ सन्धि कर ली थी जिसे ‘रोम-बर्लिन धुरी’ कहा जाता है। इसके पश्चात् उसने जापान से रूस के विरुद्ध 25 नवम्बर, 1936 ई. में सन्धि कर ली जो ‘रोम-बर्लिन-टोकियो धुरी’ के नाम से प्रसिद्ध है। इस प्रकार यूरोप दो गुटों में विभाजित हो गया-फ्रांस, इंग्लैण्ड एवं रूस तथा जर्मनी, इटली व जापान।
(6) आस्ट्रिया पर अधिकार-11 मार्च, 1936 ई. को हिटलर की सेनाओं ने आस्ट्रिया में प्रवेश कर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। इंग्लैण्ड तथा फ्रांस ने हिटलर की इस कार्यवाही का कोई भी विरोध नहीं किया था।
(7) चेकोस्लोवाकिया पर अधिकार (म्यूनिख समझौता)-आस्ट्रिया पर अधिकार कर लेने के पश्चात् हिटलर ने चेकोस्लोवाकिया पर अधिकार करने का प्रयास किया जिससे युद्ध का वातावरण उत्पन्न हो गया। इंग्लैण्ड ने चेकोस्लोवाकिया तथा जर्मनी के मध्य हस्तक्षेप करके प्यूनिख समझौता कराया जिससे जर्मनी का चेकोस्लोवाकिया पर अधिकार हो गया।
(8) मेमल पर अधिकार तथा रूस से सन्धि-इसी काल में हिटलर ने मेमल पर भी अधिकार स्थापित कर लिया। मेमल एक बन्दरगाह था। इसके पश्चात् 1939 ई. में हिटलर ने रूस से अनाक्रामक समझौता किया। इन समझौते द्वारा दोनों देशों ने मितवत् रहने का निश्चय किया।
(9) पॉलैण्ड पर आक्रमण-रूस से सन्धि करने से हिटलर में साहस तथा उत्साह की भावना का विकास हो गया था, अत: उसने सितम्बर 1939 ई. में पॉलैण्ड पर आक्रमण कर द्वितीय विश्व युद्ध को प्रारम्भ किया। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि, “हिटलर की विदेश नीति द्वितीय विश्व युद्ध का कारण थी।”

प्रश्न 7. नाजी स्कूलों में उठाए गए कदमों की व्याख्या कीजिए।
अथवा
नात्सीवाद के दौरान स्कूली शिक्षा’ पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर-हिटलर का मानना था कि एक शक्तिशाली नात्सी समाज के लिए बच्चों को नात्सी विचारधारा की घुट्टी पिलाना बहुत जरूरी है। इसके लिए स्कूल के भीतर और बाहर, दोनों जगह बच्चों पर पूरा नियन्त्रण आवश्यक था। इसके लिए निम्न कदम उठाए गए-
(1) तमाम स्कूलों में सफाई और शुद्धीकरण की मुहिम चलाई गई। यहूदी या राजनीतिक रूप से अविश्वसनीय’ दिखाई देने वाले शिक्षकों को पहले नौकरी से हटाया गया और बाद में मौत के घाट उतार दिया गया।
(2) बच्चों को अलग-अलग बिठाया जाने लगा। जर्मन और यहूदी बच्चे एक साथ न तो बैठ सकते थे और न खेल सकते थे।
(3)’अच्छे जर्मन’ बच्चों को नात्सी शिक्षा प्रक्रिया से गुजरना पड़ता था। यह विचारधारात्मक प्रशिक्षण की एक लम्बी प्रक्रिया थी।
(4) स्कूली पाठ्यपुस्तकों को नए सिरे से लिखा गया। नस्ल के बारे में प्रचारित नात्सी विचारों को सही ठहराने के लिए नस्ल विज्ञान के नाम से एक नया विषय पाठ्यक्रम में शामिल किया गया।
(5) बच्चों को सिखाया गया है कि वफादार व आज्ञाकारी बनें, यहूदियों से नफरत और हिटलर की पूजा करें।
(6) खेल-कूद के द्वारा भी बच्चों में हिंसा और आक्रामकता की भावना पैदा की जाती थी। हिटलर का मानना था कि मुक्केबाजी का प्रशिक्षण बच्चों को फौलादी दिल वाला, ताकतवर और मर्दाना बना सकता है।

प्रश्न 8. नात्सी समाज में औरतों की क्या भूमिका थी? फ्रांसीसी क्रान्ति और नात्सी शासन में
औरतों की भूमिका के बीच क्या फर्क था ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-नात्सी समाज में औरतों की भूमिका-नात्सी समाज में प्रत्येक बच्चे को बार-बार यह बताया जाता था कि औरतें बुनियादी तौर पर मर्दो से भिन्न होती हैं। उन्हें समझाया जाता था कि औरत-मर्द के लिए समान अधिकारों का संघर्ष गलत है। यह समाज को नष्ट कर देगा। इसी आधार पर लड़कों को आक्रामक, मर्दाना और पत्थर दिल होना सिखाया जाता था जबकि लड़कियों को यह कहा जाता था कि उनका फर्ज एक
अच्छी माँ बनना और शुद्ध आर्य रक्त वाले बच्चों को जन्म देना और उनका पालन-पोषण करना है। नस्ल की शुद्धता बनाए रखने, यहूदियों से दूर रहने, घर संभालने और बच्चों को नात्सी मूल्य-मान्यताओं की शिक्षा देने का दायित्व उन्हें ही सौंपा गया था। आर्य संस्कृति और नस्ल की ध्वजवाहक वही थीं। फ्रांसीसी क्रान्ति में औरतों की भूमिका-महिलाएं शुरू से ही फ्रांसीसी समाज में इतने अहम परिवर्तन लाने वाली गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल थीं। उन्हें उम्मीद थी कि उनकी भागीदारी क्रान्तिकारी सरकार को उनका जीवन सुधारने हेतु ठोस कदम उठाने के लिए प्रेरित करेगी। तीसरे एस्टेट की अधिकांश महिलाएं जीविका निर्वाह के लिए कार्य करती थीं। फ्रांस के विभिन्न नगरों में महिलाओं के लगभग 60 क्लब अस्तित्व में आए।
नात्सी शासन में औरतों की भूमिका-इसके विपरीत नात्सी शासन में औरतों को अपनी मर्जी से विवाह करने का अधिकार नहीं था। निर्धारित आचार संहिता का उल्लंघन करने वाली औरतों की सार्वजनिक रूप से निंदा की जाती थी और उन्हें कड़ा दण्ड दिया जाता था। आपराधिक कृत्य के लिए बहुत सारी औरतों को न केवल जेल की सजा दी गई बल्कि उनसे तमाम नागरिक सम्मान और उनके पति व परिवार भी
छीन लिए गए।

द्वितीय भाष समकालीन भारत-1

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