Pariksha Adhyayan Economics इकाई8 भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान चुनौतियाँ in Hindi Class 11th Arthashastra mp board

इकाई8
भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान चुनौतियाँ

इकाई8 भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान चुनौतियाँ
इकाई8
भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान चुनौतियाँ

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

:- बहु-विकल्पीय प्रश्न
1. भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष प्रमुख चुनौती है-
(i) बेरोजगारी
(ii) निर्धनता
(iii) दोनों
(iv) कोई नहीं।

2. बेरोजगारी के प्रकार हैं-
(i) अदृश्य बेरोजगारी
(iii) खुली बेरोजगारी
(ii) शिक्षित बेरोजगारी
(iv) ये सभी।

3. निर्धनता मापदण्ड के अनुसार ग्रामीण क्षेत्र में कैलोरी का उपभोग किया जाना
चाहिए-
(i) 2100 कैलोरी
(ii-2400 कैलोरी
(iii) 1800 कैलोरी
(iv) 2800 कैलोरी।

4. निर्धनता मापदण्ड के अनुसार शहरी क्षेत्र में कैलोरी उपभोग किया जाना चाहिए-
KI2100 कैलोरी
(ii) 2400 कैलोरी
(iii) 3200 कैलोरी
(iv) 1800 कैलोरी।

5. बेरोजगारी का एक सामान्य कारण है-
को तीव्र जनसंख्या वृद्धि
(ii) प्राकृतिक प्रकोप
(iii) कृषि सम्बन्धी
(iv) दोषपूर्ण औद्योगिकी।

6. किसानों को ऋण सुविधा उपलब्ध कराना कार्य है-
( ग्रामीण साख का
(ii) रिजर्व बैंक का
(iii) विपणन का
(iv) सभी का।

7. गाँव में हाट बाजार लगता है-
(6 साप्ताहिक
(ii) पाक्षिक
(iii) प्रतिदिन
(iv) विशेष अवसरों पर।

8. कृषि साख का गैर-संस्थागत स्रोत है-
(i) प्राथमिक सहकारी साख समितियाँ
(ii) व्यापारिक बैंक
(iii) महाजन
(iv) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक।

9. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक की स्थापना हुई थी-
है 1976 में
(ii) 1975 में
(iii) 1995 में
(iv) 1957 में।

10. आधुनिक कृषि में प्रोत्साहन दिया जा रहा है-
(i) जैविक खेती को
(ii) जैव उर्वरकों के उपयोग को
(iii) जैव कीटनाशकों के उपयोग को
(iii) उपर्युक्त सभी को।

11. दीर्घकालीन साख ऋणों की अदायगी की अवधि है-
(ii) 1 वर्ष
(iii) 4 वर्ष
(iii)10-6 वर्ष
(iv) 2 वर्ष।

12. मानवीय पूँजी निर्माण हेतु सुझाव है-
(i) जनशक्ति नियोजन
(ii) जनसंख्या पर नियन्त्रण
(iii) दोनों
(iv) कोई नहीं।

13. मध्य प्रदेश की स्थापना हुई थी-
(i) सन् 1856 में
(ii) सन् 1956 में
(iii) सन् 1756 में
(iv) सन् 1965 में।

14. मानवीय पूँजी निर्माण की एक समस्या है-
(i) लागत
(ii) मृत्युदर
(iii) जनसंख्या वृद्धि
(iv) उत्पादन।

15. भारत में कीमत वृद्धि का कारण है-
(i) घाटे की वित्त व्यवस्था
(ii) मुद्रा पूर्ति में वृद्धि
(iii) विदेशी विनिमय कोषों में वृद्धि
(iv)सभी।

3-1. (i), 2. (iv), 3. (ii), 4. (i), 5.0, 6.0), 7. (), 8. (iii), 9.(0),
10. (iv), 11. (i), 12. (1), 13. (ii), 14. (iii), 15. (iv)

* रिक्त स्थान पूर्ति
1. भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष वर्तमान में बेरोजगारी, निर्धनता एवं का………..प्रमुख चुनौतियाँ हैं।
2. निर्धनता से अभिप्राय है, जीवन, स्वास्थ्य तथा कार्यकुशलता के लिए न्यूनतम उपभोग
आवश्यकताओं की प्राप्ति की………..।
3. अल्प बेरोजगार को ………..” का ही एक भाग कहा जा सकता है।
4. में वृद्धि हेतु हरित क्रान्ति प्रारम्भ की गयी थी।
5. दीर्घकालीन साख ऋणों की अदायगी की अवधि वर्ष से अधिक होती है।
6. कपार्ट की स्थापना वर्ष ………. में हुई।
7. नाबार्ड का पूरा नाम ‘है।
8. राज्य सहकारी विपणन संघ राज्य स्तर पर समितियाँ होती हैं।
9. मानवीय पूँजी से में वृद्धि होती है।
10. वर्तमान में साक्षरता का प्रतिशत है।
11. राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन सन्
में प्रारम्भ हुआ।
उत्तर-1. मुद्रास्फीति, 2. असमर्थता, 3. अदृश्य बेरोजगारी, 4. कृषि उत्पादन, 5.5 वर्ष, 6. 1986, 7. राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक, 8. शीर्ष, 9. उत्पादन, 10.74.04, 11.20051

सत्य/असत्य

1. प्रो. शुल्ज ने मानवीय संसाधनों के विकास के चार तरीके बताये हैं।
2. मानवीय पूँजी का आशय किसी देश की जनसंख्या से नहीं होता है।
3. मानवीय पूँजी से उत्पादन में वृद्धि होती है।
4. बढ़ती कीमतें अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डालती
5. कृषि उत्पादन में वृद्धि हेतु हरित क्रान्ति प्रारम्भ की गयी थी।
उत्तर-1.सत्य, 2. असत्य, 3. सत्य, 4. सत्य, 5. सत्य।

* जोड़ी बनाइए
1. ‘अ’
1. अन्त्योदय अन्न योजना (क) । अप्रैल, 1999
2. प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना (ख) 2 फरवरी, 2006
3. राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना (ग) निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रम
4. स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना (घ) श्रमशक्ति या जनसंख्या
5. आर्थिक विकास का निर्धारक तत्व (ङ) 20 दिसम्बर, 2001
उत्तर-1.→ (ङ), 2. → (ग), 3. → (ख), 4. → (क), 5.7 (घ)।

* एक शब्द/वाक्य में उत्तर
1. वह बेरोजगारी जो कृषि प्रधान राज्यों में पाई जाती है।
उत्तर-मौसमी बेरोजगारी।

2. मानव पूँजी का एक महत्व बताइए।
उत्तर-आर्थिक विकास।

3. 25 सितम्बर, 2001 को कौन-सी योजना प्रारम्भ की गयी ?
उत्तर-सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना।

4. ऐसे व्यक्ति को आप क्या कहेंगे जो प्रचलित मजदूरी दरों पर कार्य करने की इच्छा, योग्यता व सामर्थ्य रखते हुए भी कार्य प्राप्त नहीं कर पाता ?
उत्तर-बेरोजगार।

5. मध्य प्रदेश राज्य में पढ़ना-बढ़ना’ कार्यक्रम किस सन् में प्रारम्भ किया गया?
उत्तर-1991।

6. ‘मनरेगा’ का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर-महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम।

7. मध्य प्रदेश में किस खेती को बायोफार्मिंग के नाम से
लागू किया गया है?
उत्तर-जैविक खेती।

8. निर्धनता रेखा क्या है ? 1 (2019)
उत्तर-एक व्यक्ति प्रतिदिन ग्रामीण क्षेत्र में 2400 कैलोरी तथा शहरी क्षेत्र में 2,100 कैलोरी प्राप्त करने के लिए उपभोग पर एक माह में जो व्यय करता है, वह निर्धनता की रेखा है।

9. कीमत में वृद्धि का विनियोग पर क्या प्रभाव पड़ता है ? (2019)
उत्तर-विपरीत प्रभाव पड़ता है।

10. मानवीय पूँजी किसे कहते हैं ? 14
(2019)
उत्तर-मानवीय पूँजी का आशय किसी राष्ट्र की जनसंख्या, उसकी शिक्षा, कौशलता, दूरदर्शिता तथा उत्पादकता से होता है।

11. सर्व शिक्षा अभियान कब प्रारम्भ हुआ ?
(2019)
उत्तर-2001-021

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. मानव संसाधन उत्पादन की मात्रा को किस प्रकार प्रभावित करता है?
उत्तर-उत्पादन की मात्रा तथा प्रक्रिया पर देश में उपलब्ध मानव संसाधन का भी प्रभाव ड़ता है। जिस देश में श्रमिक स्वस्थ, प्रशिक्षित तथा अधिक कार्यक्षमता वाला होगा, उस देश उत्पादन का स्तर ऊँचा होगा।

प्रश्न 2. सापेक्ष गरीबी से क्या आशय है ?
उत्तर-सापेक्ष गरीबी से आशय आय की असमानताओं से है। सापेक्ष गरीबी अन्तर्राष्ट्रीय मार्थिक असमानता या क्षेत्रीय असमानताओं का बोध कराती है। सापेक्ष गरीबी में हम आय के चतरण पर विचार करते हैं।

प्रश्न 3. निरपेक्ष गरीबी से क्या आशय है ?
उत्तर-निरपेक्ष गरीबी से आशय मानव की आधारभूत आवश्यकताओं, खाना, कपड़ा, वास्थ्य, सुविधा आदि की पूर्ति हेतु पर्याप्त वस्तुओं एवं सेवाओं को जुटा पाने में असमर्थता
ने है, अर्थात् यह सामान्य जीवन की आवश्यकताएँ जुटाने के लिए संसाधनों के अभाव को गित करता है।

प्रश्न 4. बेरोजगारी का क्या अर्थ है हैन
उत्तर-जब कोई व्यक्ति कार्य करने की योग्यता एवं इच्छा रखता है, परन्तु उसे कार्य हीं मिल पाता है, तो इसे बेरोजगारी कहते हैं। अत: बेरोजगारी से आशय ऐसी स्थिति से है, जसमें एक राष्ट्र उन सभी लोगों को कार्य उपलब्ध नहीं करा पाता है जो कार्य करने के इच्छुक एवं योग्य होने हैं।

प्रश्न 5.बेरोजगारी के प्रमुख प्रकार बताइए?
उत्तर-बेरोजगारी के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं-
(1) दृश्यता या खुली बेरोजगारी,
(2) अर्द्ध-बेरोजगारी,
(3) मौसमी बेरोजगारी
4) चक्रीय बेरोजगारी,
(5) यान्त्रिक (तकनीकी) बेरोजगारी,
(6) शिक्षित बेरोजगारी।

प्रश्न 6. मौसमी बेरोजगारी से क्या आशय है ?
उत्तर- यह बेरोजगारी भारत जैसे कृषि प्रधान देश में विशेष रूप से मिलती है। वर्ष के कुछ भाग में तो किसानों पर अत्यधिक कार्य भार होता है और कुछ भाग में कार्य भार कम होता है। इस कम कार्य भार वाले समय में ही मौसमी बेरोजगारी होती है। सामान्यतः फसल की कटाई के बाद और अगली बुवाई से पहले मौसमी बेरोजगारी की स्थिति पायी जाती है।

प्रश्न 7. अदृश्य बेरोजगारी से क्या आशय है ?
उत्तर-इसे छिपी हुई बेरोजगारी भी कहते हैं। इसमें ऊपर से तो ऐसा प्रतीत होता है कि लोग काम में लगे हैं, परन्तु वास्तव में वे बेरोजगार होते हैं। देश के ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी
का एक ऐसा रूप है।

प्रश्न 8, मौसमी बेरोजगारी दूर करने के दो सुझाव दीजिए।
उत्तर-(1) लघु और मझोले उद्योगों को निजी क्षेत्र में विकसित किया जाए।
(2) ग्रामीण तालाबों, नदियों और शहरों में मछली-पालन और उनकी प्रोसेसिंग में स्थानीय भूमिहीन बेरोजगारों को लगाकर जीविका हेतु उचित पारिश्रमिक दिया जाए।

प्रश्न 9. ग्रामीण विकास से क्या आशय है ? A
उत्तर-ग्रामीण विकास से आशय ग्रामीण क्षेत्रों में निवास कर रहे निर्धन लोगों के जीवन स्तर में सुधार कर उन्हें आर्थिक विकास की धारा में प्रवाहित करना है, जिसके लिए इनकी मूल आवश्यकताओं को पूरा करने के साथ-साथ उन्हें पर्याप्त मात्रा में सामाजिक उपरिव्यय सुविधाएँ उपलब्ध करानी होगी।

प्रश्न 10. कृषि साख से क्या आशय है?
उत्तर-कृषि वित्त या साख से आशय उस वित्त (या साख) से होता है जिसका उपयोग कृषि से सम्बन्धित विभिन्न कार्यों को सम्पादित करने हेतु किया जाता है। कृषि वित्त या साख की पूर्ति के साधन हैं-साहूकार, सहकारी साख संस्थाएँ, व्यावसायिक बैंक, ग्रामीण बैंक, भूमि विकास बैंक, सरकार तथा अन्य वित्तीय संस्थाएँ।

प्रश्न 11. सहकारी साख ढाँचे में शिखर संस्था कौन-सी है व इसकी स्थापना कब हुई ?
अथवा
नाबार्ड का पूरा नाम बताइए। इसकी स्थापना क्यों हुई ?
उत्तर-राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापना 12 जुलाई, 1982 को हुई थी। 15 जुलाई, 1982 से इस बैंक ने कृषि एवं ग्रामीण आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए एक शीर्ष संस्था के रूप में कार्य करना आराम किया।

प्रश्न 12. तकाबी ऋण क्या है ?
उत्तर-सरकार द्वारा समय-समय पर किसानों की आवश्यकताओं; जैसे-बीज, साधारण कृषि यन्त्र, उर्वरक तथा पशु आदि खरीदने के लिए कृषक अधिनियम, 1984 के अन्तर्गत अल्पकालीन ऋण दिया जाता है। इस प्रकार दिये जाने वाले ऋण को ‘तकाबी ऋण’
कहते हैं।

प्रश्न 13. कृषि विपणन से क्या आशय है ?
उत्तर-कृषि विपणन का आशय साधारणतया कृषक से उपभोक्ता को सीधे या मध्यस्थों के माध्यम से कृषि पदार्थों के विक्रय से लगाया जाता है। इस प्रकार, राष्ट्रीय कृषि आयोग के भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान चुनौतियाँ 141 को सम्मिलित किया जाता है। अनुसार, कृषि विपणन में कृषि पदार्थों का एकत्रीकरण, श्रेणीकरण, भण्डारण तथा वितरण

प्रश्न 14. सहकारिता (Co-operation) से क्या आशय है ?
उत्तर-सहकारिता एक संगठन है। इसके अन्तर्गत लोग स्वेच्छा से मिलकर संगठित होकर जन-कल्याण के कार्य करते हैं, अर्थात् स्वेच्छा से संगठित होकर जन-कल्याण या जनहित में कार्य करने की प्रक्रिया ही सहकारिता है।

प्रश्न 15. कृषि विविधीकरण क्या है ?
(2018)
उत्तर-कृषि विविधीकरण से आशय कृषि को व्यावसायिक स्वरूप प्रदान करते हुए किसानों की निबल आय में वृद्धि करने के लिए अपनाये जाने वाले उपायों से है।

प्रश्न 16. जैविक खेती (Organic Farming) किसे कहते हैं ?
उत्तर-जैविक खेती वह पद्धति है जो पर्यावरणीय सन्तुलन को पुन:स्थापित करके उसका संरक्षण और संवर्धन करती है। इस पद्धति में रसायनों का उपयोग कम-से-कम किया जाता है। यह पद्धति सस्ती, स्वावलम्बी और स्थायी है, इसमें मिट्टी को जीवित माध्यम माना जाता है।

प्रश्न 17.सहकारी विपणन का क्या आशय है ?
उत्तर-सहकारी विपणन से आशय ऐसी व्यवस्था से है जिसमें कुछ उत्पादक अपनी-अपनी उपज की व्यक्तिगत रूप से अलग-अलग बेचकर सहकारी विपणन समितियों का निर्माण कर इन समितियों के माध्यम से बेचते हैं।

प्रश्न 18. भारत में कृषि विपणन की दो प्रमुख प्रचलित प्रणालियाँ लिखिए।
उत्तर-(1) मण्डियों में बिक्री-मण्डियों से अर्थ उन स्थानों से है जहाँ कृषि वस्तुओं का क्रय एवं विक्रय थोक मात्रा में होता है। दूसरे शब्दों में, कृषि वस्तुओं के बड़े-बड़े थोक बाजार को मण्डी कहा जाता है।
(2) सहकारी विपणन-कृषि विपणन में सुधार तथा मध्यस्थों द्वारा किसानों का शोषण रोकने के लिए सहकारी विपणन समितियों का विकास किया गया है। ये समितियाँ अपने सदस्यों की छोटी-छोटी उपजों को एकत्रित करके सामूहिक रूप से मण्डियों में बेचती हैं।

प्रश्न 19. मानवीय पूँजी निर्माण से क्या आशय है ।
उत्तर-मानवीय पूँजी निर्माण या कौशल निर्माण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके अन्तर्गत जनशक्ति (Man power) के विकास हेतु भारी मात्रा में पूँजी निवेश किया जाता है। ऐसा पूँजी निवेश, जो जनशक्ति की शिक्षा, प्रशिक्षण, स्वास्थ्य तथा जीवन स्तर में वृद्धि करता हो, मानवीय पूँजी निर्माण कहलाएगा।

प्रश्न 20. मानव पूँजी के स्रोत लिखें।
उत्तर-मानव पूँजी के स्रोत हैं-(1) शिक्षा में निवेश, (2) स्वास्थ्य में निवेश, (3) कार्य पर प्रशिक्षण में निवेश, (4) देशान्तरण में निवेश, तथा (5) सूचना में निवेश।

प्रश्न 21. लघु एवं कुटीर उद्योग से क्या आशय है ?)
(2019)
उत्तर-लघु उद्योग-वर्तमान में वे सभी औद्योगिक इकाइयाँ लघु उद्योग के अन्तर्गत आती हैं जिनकी अचल सम्पत्ति, संयन्त्र एवं मशीनरी में सीमित तथा सरकार द्वारा स्वीकृत से अधिक पूँजी न लगी हो, साथ ही जिनमें कारखाना अधिनियम लागू नहीं होता।
कुटीर उद्योग-कुटीर उद्योग से आशय ऐसे उद्योगों से है जो पूर्णतया या मुख्यतया परिवार के सदस्यों की सहायता से पूर्णकालिक या अंशकालिक व्यवसाय के रूप में चलाये जाते हैं। ये
प्राय: ग्रामीण एवं अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में स्थापित होते हैं तथा अंशकालीन रोजगार प्रदान करते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. भारत में बेरोजगारी के दुष्परिणाम लिखिए।
उत्तर-(1) जब कोई व्यक्ति बेरोजगारी की चपेट में आ जाता है, तो वह अपनी व अपने परिवार की आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर पाता है।
(2) बेरोजगारी की दशा में माँग घटती है, माँग के घटने से उत्पादन भी गिर जाता है। उत्पादन के कम होने से नये कल-कारखानों व उत्पादन-तकनीक में सुधार नहीं हो पाता है।
राष्ट्रीय विनियोग का स्तर गिर जाता है, आर्थिक विकास अवरुद्ध हो जाता है और चक्रीय बेरोजगारी बढ़ जाती है।
(3) बेरोजगारी से राजनीतिक उथल-पुथल को बढ़ावा मिलता रहता है।
(4) बेरोजगार व्यक्ति का नैतिक स्तर भी गिर जाता है, या दूसरे शब्दों में, बेरोजगारी व्यक्ति का नैतिक स्तर गिरा देती है।

प्रश्न 2. भारत में ग्रामीण बेरोजगारी के प्रमुख कारण लिखिए। मैं
भारत में ग्रामीण बेरोजगारी के कारण
(1) सीमित भूमि तथा बढ़ती जनसंख्या-भारत में सीमित भूमि की उपलब्धता बेरोजगारी का एक अहम् कारण है। आज देश की जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ रही है, जिसका दबाव भूमि पर निरन्तर बढ़ रहा है। परिणामस्वरूप, धीरे-धीरे कृषि भूमि की मात्रा का अनुपात कम होता जा रहा है।
(2) प्राकृतिक प्रकोप-आज भी भारतीय कृषि मानसून पर आधारित है। वर्षा जल संरक्षण, नहरों तथा कुओं का निर्माण ग्रामीण क्षेत्रों में काफी कम है। यदि कभी सूखा पड़ जाता
है, तो ग्रामीण बेरोजगारी और भी बढ़ जाती है।
(3) परिवहन व्यवस्था-किसान कृषि उत्पादों का उत्पादन तो कर लेता है, लेकिन उसको शहर तक पहुँचाने में असमर्थ रहता है। कृषि उत्पादों का ह्रास होता है तथा उचित मूल्य न मिलने से किसान की श्रम शक्ति बेकार चली जाती है।
(4) सरकारी योजनाओं का पूर्ण ज्ञान नहीं-ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों को सरकार द्वारा चलाई जाने वाली योजनाओं तक का ज्ञान नहीं है। ग्रामीण विकास योजनाओं का उचित क्रियान्वयन न होने से बेरोजगारी बढ़ रही है।

प्रश्न 3. ग्रामीण बेरोजगारी दूर करने के उपाय बताइए।
उत्तर-ग्रामीण बेरोजगारी दूर करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाये जाने चाहिए-
(1) लघु और मझोले उद्योगों को निजी क्षेत्र में विकसित किया जाये।
(2) तालाबों, नदियों और नहरों में मछली-पालन और उनकी प्रोसेसिंग में स्थानीय भूमिहीन बेरोजगारों को लगाकर जीविका हेतु उचित पारिश्रमिक दिया जाये।
(3) बंजर या खाली भूमि में फलदार वृक्षों के रोपड़ में स्थानीय लोगों को लगाकर प्रतिफल दिया जाये और फल प्रसंस्करण हेतु उन्हें उचित प्रशिक्षण दिया जाये।
(4) ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष जाति की पारम्परिक कुशलता और दस्तकारीको संरक्षण कर उनके औजारों और साज-सामान का आधुनिकीकरण करके अधिक प्रभावी बनाया जाए।
(5) स्थानीय रोजगार का दायित्व ग्राम पंचायतों पर छोड़ दिया जाए तथा उन क्षेत्रों में मंचाई,संचार और आवागमन की सुविधाएं देकर गाँवों तक उनकी पहुंच आसान की जाए।

प्रश्न 4, बेरोजगारी के विभिन्न प्रकार बताइए।
उत्तर-(1) मौसमी बेरोजगारी-अति लघु उत्तरीय प्रश्न 6 का उत्तर देखें।
(2) अदृश्य बेरोजगारी-अति लघु उत्तरीय प्रश्न 7 का उत्तर देखें।
खुली बेरोजगारी-खुली बेरोजगारी से आशय उस बेरोजगारी से है, जिसके अन्तर्गत मिकों को बिना किसी कामकाज के रहना पड़ता है। उन्हें थोड़ा-बहुत भी काम नहीं मिलता इसके अन्तर्गत मुख्यतः शिक्षित बेरोजगार तथा साधारण (अदक्ष) बेरोजगार श्रमिकों को
म्मिलित किया जाता है।
(4) संरचनात्मक बेरोजगारी-दीर्घकालीन प्रवृत्ति की यह बेरोजगारी अर्थव्यवस्था के के पिछड़ेपन, सीमित पूँजी एवं श्रम के बाहुल्य के कारण उत्पन्न होती है। इसके अतिरिक्त, के निर्यात व्यापार में दीर्घकालीन गिरावट आने पर निर्यात वस्तु उद्योगों में बेरोजगारी फैल जाती है। औद्योगिक जगत में इस प्रकार के संरचनात्मक परिवर्तनों के परिणामस्वरूप उत्पन्न ने वाली बेरोजगारी को संरचनात्मक बेरोजगारी कहते हैं।

प्रश्न 5. निर्धनता क्या है ? 4
(2018)
उत्तर-निर्धनता या गरीबी का अर्थ-जब देश में लोगों को न्यूनतम अनिवार्य नावश्यकताओं; जैसे-जीवन रक्षक आवश्यकताएँ, स्वास्थ्य सम्बन्धी आवश्यकताएँ, कार्य-कुशलता रक्षक आवश्यकताएँ पूरी करने में असमर्थता होती है, अर्थात् जब लोगों के मास इन न्यूनतम आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त साधन उपलब्ध नहीं होते हैं, तो इस स्थिति को निर्धनता की स्थिति कहा जाता है। निर्धनता को मापने या अध्ययन करने की दो वधियाँ हैं-निरपेक्ष माप तथा सापेक्ष माप। निरपेक्ष माप से आशय उस माप से है जिसमें स्पष्ट रूप से निर्धनता का माप स्वतन्त्र रूप से किया जाता है। जैसे, यदि देश में लोगों को न्यूनतम नर्धारित भोजन (ग्रामीण क्षेत्र में 2,400 कैलोरी तथा शहरी क्षेत्र में 2,100 कैलोरी प्रति दिन) उपलब्ध नहीं हो पाता है, तो इसे निरपेक्ष गरीबी कहा जायेगा और इन लोगों को निर्धनता की रखा के नीचे जीवन-यापन कर रहे लोगों में सम्मिलित किया जायेगा। निर्धनता को सापेक्ष माप के अन्तर्गत देश के लोगों की प्रति व्यक्ति आय का अन्य राष्ट्रों की प्रति व्यक्ति आय की तुलना में अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 6. भारत में निर्धनता के चार प्रमुख कारणों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
भारत में गरीबी के आर्थिक कारण बताइए।
उत्तर-भारत में निर्धनता के कारण-गरीबी के प्रमुख कारण निम्न प्रकार हैं-
(1) तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या-इस समय, जनसंख्या की दृष्टि से भारत का विश्व में दूसरा स्थान है। बढ़ती हुई जनसंख्या का अर्थ है, वस्तुओं की माँग में अपार वृद्धि होना। देश की सम्पत्ति का एक बड़ा भाग अपनी जनसंख्या के पालन में व्यय हो जाता है जिससे विकास कार्यों को पूँजी उपलब्ध नहीं हो पाती है।
(2) पूँजी निर्माण का अभाव-पूँजी निर्माण आर्थिक विकास की आधारशिला है, परन्तु पूँजी निर्माण की दर भारत में अपेक्षाकृत कम है।
(3) बेरोजगारी-निर्धनता का एक प्रमुख कारण बेरोजगारी है। देश में बेरोजगारी की समस्या कितनी व्यापक और भीषण है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि रोजगार कार्यालयों में रोजगार के इच्छुक व्यक्तियों के दर्ज नामों की संख्या 31 दिसम्बर, 1981 तक 178.38 लाख थी, जो दिसम्बर 2010 में बढ़कर 388-29 लाख हो गयी।
(4) कीमत स्तर में वृद्धि-कीमतों में वृद्धि के परिणामस्वरूप मुद्रा की क्रय-शक्ति कम हो जाने के कारण वास्तविक आय कम हो जाती है, जबकि भारत में आय वृद्धि की दर कीमत-वृद्धि दर से कम रही है। अत: लोगों के पास उपलब्ध क्रय-शक्ति का ह्रास हुआ है।
(5) असमान वितरण- उत्पादन के साधनों तथा आय का असमान वितरण भी निर्धनता के लिए उत्तरदायी है। सम्पत्ति का चन्द हाथों में केन्द्रीकरण हो गया है। सम्भवत: इन्हें अपार आय प्राप्त होती है, जबकि अधिकांश लोगों को गरीबी की रेखा से नीचे रहना पड़ता है।

प्रश्न 7. भारत में निर्धनता उन्मूलन के किन्हीं चार कार्यक्रमों को समझाइए।
उत्तर-भारत में गरीबी निवारण के प्रमुख कार्यक्रम-गरीबी निवारण के प्रमुख कार्यक्रम निम्नलिखित हैं-
(1) प्रधानमन्त्री रोजगार योजना-यह योजना 2 अक्टूबर, 1993 से प्रारम्भ की गई। इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों तथा छोटे शहरों के 18 से 35 वर्ष के शिक्षित बेरोजगारों को स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराना है।
(2) ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम-अप्रैल 1995 में यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों तथा छोटे कस्बों में परियोजनाएँ लगाने और रोजगार के अवसर उत्पन्न करने के लिए आरम्भ की गई।
(3) स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना (SGSY)-यह योजना 1 अप्रैल, 1999 को आरम्भ की गई थी। इस योजना में पूर्व की अनेक स्वरोजगार तथा सम्बद्ध कार्यक्रमों की योजनाओं; जैसे-IRDP, TRYSEM, DWACRA आदि का विलय कर दिया गया है। इस योजना में ग्रामीण क्षेत्र के निर्धनों को रोजगार देने के उद्देश्य से सूक्ष्म तथा लघु उद्योग की स्थापना की जाती है। इन उद्योगों में कार्य करने वाले लोगों को स्वरोजगारी कहा जाता है। इस योजना का प्रारम्भिक लक्ष्य सहायता प्राप्त परिवारों को 3 वर्ष की अवधि में गरीबी की रेखा से ऊपर उठाना था।
(4) जवाहर ग्राम समृद्धि योजना (1999)-यह योजना भी सन् 1999 में पुरानी जवाहर रोजगार योजना को पुनर्गठित करके आरम्भ की गई थी। इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण गरीबों का जीवन स्तर सुधारना तथा उन्हें लाभप्रद रोजगार के अवसर प्रदान करना है। इसके अन्तर्गत, सरकार द्वारा ग्रामीण गरीबों को ग्राम पंचायतों द्वारा शुरू किये निर्माण कार्यों अथवा परियोजनाओं में रोजगार दिया जाता है।

प्रश्न 8. भारत में कृषि साख के स्रोत बताइए। पी
उत्तर- भारत में कृषि वित्त या साख की व्यवस्था अनेक साधनों के द्वारा की जाती है। कृषि वित्त की अल्पकालीन और मध्यकालीन आवश्यकताओं की पूर्ति साहूकारों, सहकारी साख समितियों, व्यापारियों तथा सरकार से रुपया उधार लेकर की जाती है, जबकि दीर्घकालीन वित्त की पूर्ति साहूकारों तथा भूमि विकास प्रबन्धन बैंकों से की जाती है। (4) स्टेट बक, (5) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, (6) नाबार्ड।
भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान चुनौतियाँ 145
कृषि वित्त के स्रोतों को निम्न वर्गों में बाँटा जा सकता है-
(1) गैर-संस्थागत स्रोत-(1) साहूकार, (2) देशी बैंकर।
(I) संस्थागत स्रोत-(1) सरकार, (2) सहकारी साख समितियाँ, (3) व्यापारिक बैंक,

प्रश्न 9. ‘नाबार्ड’ का कृषि वित्त में क्या स्थान है?
उत्तर-राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापना 12 जुलाई, 1982 को की गयी। इसकी स्थापना समेकित ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने और ग्रामीण क्षेत्रों में खुशहाली लाने के उद्देश्य से गाँवों में कृषि, लघु उद्योग, कुटीर एवं ग्राम उद्योग, हस्तशिल्प और अन्य आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहन देने हेतु ऋण उपलब्ध कराने के लिए की गयी। इस बैंक ने कृषि एवं ग्रामीण आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए एक शीर्ष संस्था के रूप में कार्य करना आरम्भ किया। इस बैंक को वे सभी कार्य सौंपे गये जिन्हें रिजर्व बैंक का कृषि साख विभाग करता था। यह कृषि विकास के लिए सर्वोच्च बैंक है। यह बैंक सभी एजेन्सियों
के कार्यों में समन्वय करते हुए कृषि साख का विस्तार करती है। कृषि पुनर्वित्त एवं विकास निगम’ के कार्य भी अब यही बैंक करती है। रिजर्व बैंक ने ‘राष्ट्रीय कृषि दीर्घकालीन कोष’ तथा ‘राष्ट्रीय कृषि साख स्थायीकरण’ कोष भी इसी बैंक को स्थानान्तरित कर दिये हैं। अब यही बैंक कृषि के सम्बन्ध में सभी प्रकार की साख की व्यवस्था करती है।

प्रश्न 10. नाबार्ड के प्रमुख कार्यों को लिखिए। (कोई चार)
उत्तर- नाबार्ड के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-
(1) यह राज्य सहकारी बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, भूमि विकास बैंकों एवं रिजर्व बैंक द्वारा मान्यता प्राप्त वित्तीय संस्थाओं को अल्पकालीन, मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन ऋण प्रदान करता है।
(2) यह राज्य सरकारों को (20 वर्ष की अवधि तक) दीर्घकालीन ऋण प्रदान करता है ताकि वे सहकारी ऋण समितियों की हिस्सा-पूँजी में योगदान दे सकें।
(3) यह प्राथमिक सहकारी बैंकों को छोड़कर क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और सहकारी बैंकों का निरीक्षण कर सकता है।
(4) समन्वित ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने के लिए नाबार्ड कृषि, लघु कुटीर तथा ग्राम उद्योगों, हस्तशिल्पों, ग्रामीण दस्तकारियों तथा अन्य सम्बन्धित कार्यों के उत्पादन को बढ़ावा
देने के लिए पुनर्वित्त संस्थान के रूप में कार्य करता है।

प्रश्न 11. जैविक खेती से क्या आशय है ? हमें जैविक खेती क्यों अपनानी चाहिए?
अथवा
जैविक खेती का पर्यावरण पर प्रभाव लिखिए।
अथवा
जैविक खेती के चार लाभों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-जैविक खेती का आशय-जैविक खेती, जिसे ऑर्गेनिक खेती भी कहा जाता है, में पर्यावरण को स्वच्छ तथा प्राकृतिक सन्तुलन को कायम रखते हुए उत्पादन प्राप्त किया जाता है। इस पद्धति में रसायनों का उपयोग कम-से-कम किया है। यह पद्धति सस्ती,
स्वावलम्बी और अस्थाई है, इसमें मिट्टी को जीवित माध्यम माना जाता है। खेत की मिट्टी वास्तव में एक जीवित माध्यम है जिसमें फसलों की बढ़वार व पैदावार देने में सहायक, सभी
लाभदायक जीवाणु प्रचुर मात्रा में रहते हैं, जो वायुमण्डल में नत्रजन की स्थापना व भूमि को अधिक स्वस्थ व उपजाऊ बनाते हैं।
जैविक खेती के लाभ-जैविक खेती के प्रमुख लाभ निम्न प्रकार हैं-
(1) जैविक खेती के अन्तर्गत हरी खाद को अपनाकर भूमि में जलधारण क्षमता में वृद्धि, भूमि में पोषक तत्वों की वृद्धि, भूमि सुधार, उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि सम्भव है।
(2) पशुओं को विष रहित स्वस्थ चारा उपलब्ध कराया जा सकता है।
(3) जैविक खेती अपनाकर किसान विष रहित खाद्यान्नों का उत्पादन कर सकते हैं।
(4) जैविक खेती को अपनाकर पर्यावरण प्रदूषण, जल एवं मृदा संरक्षण, नमी का ह्रास, मृदा संरचना की क्षतिग्रस्तता, कृषि लागत में बढ़ोत्तरी को कम किया जा सकता है।

प्रश्न 12. कृषि विविधीकरण के चार लाभ लिखिए।
उत्तर-कृषि विविधीकरण अपनाने से किसानों को निम्न लाभ प्राप्त होते हैं-
(1) कृषि विविधीकरण के अन्तर्गत फार्म पर उपलब्ध उत्पादन साधनों; जैसे- भूमि, श्रम, पूँजी आदि का पूर्ण एवं उचित उपयोग होता है, क्योंकि विभिन्न उद्यमों के उत्पादन के लिए उत्पादन साधनों की आवश्यकता विभिन्न मात्रा में होती है।
(2) इस प्रकार की कृषि में मौसम की प्रतिकूलता एवं उत्पादों की कीमतों के गिरने की स्थिति में हानि, विशिष्ट कृषि की अपेक्षा कम होती है।
(3) फार्म पर उचित फसल-चक्र अपनाने से भूमि की उर्वरा शक्ति में बस नहीं होता और उचित उर्वरकता-स्तर बना रहता है।
(4) किसानों को खाद्यान्न एवं सब्जी की घरेलू आवश्यकता पूर्ति के लिए दूसरे किसानों पर निर्भर नहीं रहना होता है।

प्रश्न 13. ग्रामीण विकास में सहकारिता की भूमिका संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
अथवा
‘सहकारिता’ क्या है ? ग्रामीण विकास में इसकी भूमिका बताइए।
[संकेत : ‘सहकारिता’ का आशय-अति लघु उत्तरीय प्रश्न 14 का उत्तर देखें।
उत्तर-गाँधीजी ने ग्रामों में ग्राम सहकारिता की कल्पना की थी। उनके अनुसार, गाँव में आर्थिक क्रियाकलापों के संचालन हेतु सहकारी संस्था जरूरी है। गाँवों के विकास सम्बन्धी कार्यों का संचालन इन सहकारी संस्थाओं के माध्यम से होना चाहिए। सहकारिता एक संगठन है जिसमें लोग स्वेच्छा से संगठित होकर जनहित का कार्य करते हैं। सहकारिता की आधारभूत धारणा यह है कि इसका प्रबन्ध एवं संचालन लोकतान्त्रिक आधार पर होता है। सहकारिता की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इस संगठन के आर्थिक उद्देश्यों में नैतिक एवं सामाजिक तत्व भी शामिल रहते हैं। इस प्रकार का संगठन केवल आर्थिक लाभ प्राप्त करने हेतु ही कार्य नहीं करता है, बल्कि नैतिक एवं सामाजिक पहलू से भी सदस्यों के हितार्थ कार्य करता है।

प्रश्न 14. सहकारी विपणन की भूमिका को किन्हीं चार बिन्दुओं में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-सहकारी विपणन की भूमिका निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट है-
(1) अपने सदस्यों के लिए बीज, खाद तथा अन्य आगतों की व्यवस्था करना।
(2) सदस्यों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाना।
(3) भण्डारण की सुविधा प्रदान करना।
(4) सदस्यों को बाजार सम्बन्धी सूचनाओं की जानकारी प्रदान करना।

प्रश्न 15. कृषि विविधीकरण से आप क्या समझते हैं ? इसकी आवश्यकता क्यों है?
उत्तर-कृषि के विविधीकरण से आशय कृषि को व्यावसायिक स्वरूप प्रदान करते हुए किसानों की निबल आय में वृद्धि करने के लिए अपनाये जाने वाले उपायों से है। भूमि, जैसा सर्वविदित है अपने क्षेत्र के आधार पर सीमित है। यह सीमित भूमि भी जनसंख्या के बोझ से चरमरा रही है। बढ़ती हुई जनसंख्या को जीविका प्रदान करने के लिए भूमि पर आश्रित नहीं रह सकते हैं। इसलिए रोजगार के अन्य विकल्पों की खोज आवश्यक थी। कृषि के अतिरिक्त अन्य विकल्पों की तलाश कृषि का विविधीकरण है। यह माना जाता है कि खाद्यान्नों में मुख्य रूप से गेहूँ तथा धान का उत्पादन एवं उत्पादकता लगभग परिपक्व स्थिति में पहुँच गई है।
इससे आगे अब इनके उत्पादन से कृषिकों की निबल आय में वृद्धि नहीं हो पा रही है। ऐसे में कृषि को बागवानी, पुष्प खेती, कृषि वानिकी की ओर मोड़कर अधिक लाभदायी बनाया जा सकता है। इस तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए वर्तमान में कृषि का विविधीकरण आवश्यक

प्रश्न 16. पशुपालन के बारे में आप क्या जानते हैं ।
उत्तर–पशुपालन-हम गाय, बैल, भैंस, बकरी, ऊँट, भेड़ आदि का पालन करते हैं। यह क्रिया कृषि की सहायक क्रिया के रूप में की जाती है। पशुधन ग्रामीण आर्थिक विकास में अनेक तरह से अपनी भूमिका निभाता है। ग्रामीण परिवार, खासकर भूमिहीन और छोटे तथा सीमान्त किसान पशुपालन को आय के पूरक स्रोत के रूप में अपनाते हैं। इस व्यवसाय से अर्द्ध-शहरी, पर्वतीय, जनजातीय और सूखे की आशंका वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को सहायक रोजगार मिलता है, जहाँ केवल फसल की उपज से परिवार का गुजर बसर नहीं हो सकता। देश के कृषि उत्पादन में पशुपालन का योगदान 30 प्रतिशत है। अनेक उद्योगों की आधारशिला भी पशु ही हैं; जैसे-चमड़ा उद्योग, ऊन उद्योग, वस्त्र
उद्योग, माँस उद्योग, डेरी उद्योग आदि। स्पष्ट है कि ये उद्योग हमारे दैनिक उपयोग से सम्बन्धित हैं, जिनके बिना हमारे जीवन में अनेक प्रकार की कठिनाइयाँ उत्पन्न हो सकती हैं। इन उद्योगों
से हमें पर्याप्त विदेशी मुद्रा भी प्राप्त होती है। ये उद्योग घरेलू उद्योग के रूप में भी हैं, जिस पर हमारे ग्रामीण क्षेत्रों में कई लोगों की गुजर-बसर होती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि भारत के ग्रामीण आर्थिक विकास ही नहीं, अपितु सर्वांगीण विकास में पशुपालन व्यवसाय अपनी अहम् भूमिका निभा सकता है।

प्रश्न 17. भारत में कृषि विविधीकरण की समस्याएँ लिखिए। (कोई पाँच)
उत्तर- भारत में कृषि विविधीकरण की समस्याएँ
कृषि विविधीकरण की प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं-
(1) प्रबन्ध में असुविधा-फार्म पर विभिन्न उद्यमों के होने से वर्ष भर किसानों को विभिन्न कार्य करने होते हैं। कार्य की विविधता के कारण फार्म-प्रबन्ध (या कृषि प्रबन्ध) में असुविधा होती है एवं दक्षता नहीं आ पाती है।
(2) प्रति इकाई अधिक विपणन लागत-कृषि विविधीकरण के अन्तर्गत फार्म पर विभिन्न फसलों के विक्रय अधिशेष की मात्रा कम होती है। अत: उत्पादों को विक्रय करने में प्रति इकाई उत्पाद पर विपणन लागत अधिक आती है एवं किसानों को उत्पाद की शुद्ध कीमत कम प्राप्त होती है।
(3) स्थायी लागत अधिक-फार्म पर उन्नत यन्त्रों का उपयोग आर्थिक दृष्टि से लाभकर नहीं होता है। यन्त्र वर्ष में अधिक समय बेकार पड़े रहते हैं, जिससे स्थायी लागत अधिक आती है।
(4) भूमि का उचित उपयोग नहीं कृषि विविधीकरण में भूमि की उपयुक्तता एक भी उस पर अनेक फसलें उत्पादित की जाती हैं, जिससे भूमि का फसल के लिए होते उचित उपयोग नहीं हो पाता है।
(5) कार्यदक्षता पर प्रभाव-कृषि विविधीकरण में कार्य की विभिन्नता के कारण श्रमिक कार्य में दक्षता प्राप्त नहीं कर पाते हैं।

प्रश्न 18. मानवीय पूँजी निर्माण को समझाइए।
उत्तर-मानवीय पूँजी या कौशल निर्माण एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके अन्तर्गत
जनशक्ति (Man Power) के विकास हेतु भारी मात्रा में पूँजी निवेश किया जाता है। इससे देश की जनशक्ति प्राविधिक ज्ञान, योग्यता एवं कुशलता की दृष्टि से विशिष्टता प्राप्त करती है। प्रो. मायर के अनुसार, “मानवीय पूँजी निर्माण ऐसे लोगों को प्राप्त करने तथा उनकी संख्या को बढ़ाने की प्रक्रिया है जिसके पास वे कुशलताएँ, शिक्षा तथा अनुभव होता है जो किसी देश के आर्थिक और राजनीतिक विकास के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण होती हैं।”
प्रो. हारबिसन के अनुसार, “मानवीय पूँजी निर्माण से आशय ऐसे व्यक्तियों को उपलब्ध कराना और उनकी संख्या में वृद्धि करना है जो कुशल, शिक्षित तथा अनुभवपूर्ण हों, जिसकी राष्ट्र के आर्थिक तथा राजनीतिक विकास के लिए नितान्त आवश्यकता होती है। इस प्रकार मानवीय पूँजी निर्माण मनुष्य में पूँजी निवेश और सृजनकारी तथा उत्पादन साधन के रूप में विकास से सम्बद्ध है।” सारांश यह है, कि ऐसा पूँजी निवेश जो जनशक्ति की शिक्षा, प्रशिक्षण, स्वास्थ्य तथा जीवन स्तर में वृद्धि करता हो, मानवीय पूँजी निर्माण कहलाएगी।

प्रश्न 19. भौतिक पूँजी तथा मानवीय पूँजी में अन्तर स्पष्ट कीजिए। (2018)
उत्तर-भौतिक पूँजी तथा मानवीय पूँजी में निम्नलिखित अन्तर हैं-
क्र.सं. भौतिक पूँजी
1. मानवीय पूँजी भौतिक पूँजी दृश्य है। इसकी आकृति मानवीय पूँजी अदृश्य है। इसकी कोई होती है।
आकृति नहीं होती।
2. इसे बाजार में सरलता से बेचा जा इसे बाजार में नहीं बेचा जा सकता।
सकता है।
केवल इसकी सेवाओं को बेचा जा
सकता है।
3. इसकी विदेशों में गतिशीलता पर कृत्रिम इसकी विदेशों में गतिशीलता पर
व्यापारिक बाधाएँ आती हैं। राष्ट्रीयता सम्बन्धी तथा सांस्कृतिक
रुकावटें आती हैं।

प्रश्न 20, भारत में मानवीय संसाधनों के विकास की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
मानवीय पूँजी निर्माण की कोई पाँच समस्याएँ बताइए।
(2019)
भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान चुनौतियाँ 149
उत्तर- भारत में मानवीय संसाधनों के विकास की प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं-
(1) कृषि क्षेत्र की वरीयता- भारत एक कृषि प्रधान राष्ट्र है, जिसके कारण सर्वोच्च प्राथमिकता कृषि को दी जानी चाहिए, उसके बाद जो संसाधन बचते हैं उनको महत्व दिया
जाना चाहिए। अन्य क्षेत्रों को सर्वोच्च प्राथमिकता दिये जाने के कारण मानवीय पूँजी निर्माण पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया। फलस्वरूप, इसका विकास उचित ढंग से नहीं हो पाया।
हुई जनसंख्या मानव पूँजी निर्माण में बाधक सिद्ध होती है।
(2) जनसंख्या वृद्धि-जनसंख्या की दृष्टि से भारत का विश्व में दूसरा स्थान है। बढ़ती है, वह अपर्याप्त है।
(3) अपर्याप्त वित्त-मानव पूँजी निर्माण के लिए सरकार जो वित्त उपलब्ध कराती
(4) उत्पादकता का निम्न स्तर-मानव पूँजी पर जो निवेश किया जाता है उसके बदले में शीघ्र ही लाभ प्राप्त नहीं होता, परन्तु इसमें निवेशित राशि के लाभ दीर्घकाल में मिलते हैं।
अत: इसे निम्न उत्पादकीय समझकर उपेक्षा की गयी है।
(5) विशिष्ट श्रमिकों का अभाव-भारत में निर्धनता व बेरोजगारी के कारण विशिष्ट श्रमिकों का अभाव पाया जाता है जिसके कारण वे प्राकृतिक संसाधनों का उचित प्रयोग नहीं कर पाते हैं, जो कि मानव पूँजी निर्माण में बाधा उत्पन्न करती हैं।
(6) मानव पूँजी का पलायन-उच्च वेतनमान को प्राप्त करने की आशा से व्यक्ति मूल देश से निकलकर दूसरे देश में रोजगार की तलाश में चला जाता है, जिससे मानव पूँजी का पलायन हो जाता है।

प्रश्न 21. आर्थिक विकास में मानवीय पूँजी की भूमिका बताइए।
उत्तर-किसी राष्ट्र के लिए मानव संसाधन का आशय है स्वस्थ एवं शिक्षित श्रम का उपलब्ध होना। सम्पूर्ण स्वस्थ एवं पूर्ण शिक्षित श्रम या कार्यशील जनसंख्या की मानव पूँजी (Human capital) की भी संज्ञा दी जाती है जो किसी राष्ट्र के उत्पादन व आय के स्तर को पूँजी (मानवकृत पूँजी) के संयोग से बढ़ाता है। इसके अतिरिक्त, मानव पूँजी (कुशल श्रम) तथा मानवकृत पूँजी (द्रव्य, मशीन आदि के रूप में पूँजी) किसी राष्ट्र के आर्थिक विकास
के सम्पूर्ण संसाधन हैं जिनमें मानवीय-पूँजी को आर्थिक नियोजन के सभी विकास प्रयासों का केन्द्र बिन्दु माना जाता है। मानव पूँजी मानव विकास को उत्प्रेरित करती है और मानव विकास
आर्थिक विकास को। अत: यह भी कहा जा सकता है कि केवल शिक्षित और स्वस्थ मनुष्य ही आर्थिक विकास में योगदान कर सकते हैं।

प्रश्न 22. भारत में कीमत-वृद्धि के चार कारणों को समझाइए।
अथवा
भारत में मुद्रास्फीति के प्रमुख कारण बताइए।
(2018)
भारत में कीमत-वृद्धि के कारण
उत्तर-
(1) जनसंख्या वृद्धि-जनसंख्या में सन् 1951 से निरन्तर तीव्र गति से वृद्धि हो रही है। जनसंख्या जो सन् 1951 में 36 करोड़ थी, वह बढ़कर | मार्च, 2001 को एक अरब दो करोड़ सत्तर लाख तथा मार्च 2011 की एक अरब 21 करोड़ हो गयी। इस प्रकार, पिछले पाँच दशकों में जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ी है। इस कारण, वस्तुओं तथा सेवाओं की माँग बढ़ी है और इनकी पूर्ति कम होने से कीमतों में वृद्धि हो रही है। हर वर्ष, एक ऑस्ट्रेलिया जनसंख्या
की दृष्टि से भारत में जुड़ जाता है।

(2) घाटे की अर्थव्यवस्था सरकार द्वारा घाटे के वित्त प्रबन्धन से मौद्रिक संसाधनों में जिस तीव्र गति से प्रसार हुआ है, उस गति से हमारे सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि नहीं हुई है। इससे अर्थव्यवस्था में मौद्रिक आय बढ़ने के परिणामस्वरूप कीमतों में निरन्तर वृद्धि हुई है।
(3) काला धन-भारत में काला धन भी एक जटिल समस्या बन गयी है। 18 मार्च, 2006 को वित्त मंत्री द्वारा संसद में दी गई एक सूचना के अनुसार, “देश में ₹31,584 करोड़ से ₹ 36,786 करोड़ के बीच काला धन मौजूद है।” इस धन पर सरकारी नियन्त्रण न होने से लोगों की मौद्रिक आय अधिक होने से विभिन्न वस्तुओं तथा सेवाओं की माँग पर अत्यधिक दबाव पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप कीमतों में निरन्तर वृद्धि होती है।
(4) नियन्त्रित मूल्यों में वृद्धि- भारत के सार्वजनिक उपक्रम बहुत-सी वस्तुएँ उत्पादित करते हैं, जैसे-कोयला, इस्पात, विद्युत, रेल सेवाएँ आदि। ये वस्तुएँ दूसरे उपभोक्ता वस्तुओं के उद्योगों के लिए कच्चे माल का कार्य करती हैं। जब सरकार द्वारा निर्धारित कीमतों में वृद्धि होती है, तो कीमत स्तर में वृद्धि हो जाती है।

प्रश्न 23. मुदा-स्फीति का समाज के विभिन्न वर्गों पर प्रभाव बताइए।
अथवा
उत्तर- कीमत वृद्धि के प्रतिकूल प्रभावों को लिखिए।
अथवा
मुद्रा प्रसार के प्रभावों को समझाइए।
मुद्रा-स्फीति या कीमत वृद्धि के प्रभाव
•(1) निवेशकर्ता वर्ग-निवेशकर्ता वर्ग दो प्रकार के होते हैं, एक तो वह जिनको निवेश से निश्चित आय होती है; जैसे-ऋण-पत्र, प्रतिज्ञा-पत्र आदि में धन लगाने वाले निवेशकर्ता, दूसरे वे निवेशकर्ता जिनकी आय कीमत परिवर्तन से प्रभावित होती है; जैसे-अंशधारी। निश्चित आय वाले निवेशकर्ताओं को मुद्रा-स्फीति से हानि होती है तथा परिवर्तनशील आय वाले निवेशकर्ताओं को इससे लाभ होता है।
(2) उत्पादक-वर्ग पर प्रभाव-मुद्रा-स्फीति के फलस्वरूप उत्पादक-वर्ग को लाभ होता है। मुद्रा-स्फीति से व्यक्तियों की क्रय-शक्ति बढ़ती है जिससे वस्तुएँ अधिक बिक सकती है।
(3) श्रमिकों पर प्रभाव-मुद्रास्फीति से श्रमिकों को प्राय: हानि होती है। यह सही है कि मुद्रा-स्फीति के प्रारम्भिक काल में मजदूरी कुछ बढ़ती है, किन्तु जिस दर से मजदूरी बढ़ती है, उससे अधिक दर से कीमतें बढ़ती हैं। अत: मुद्रास्फीति से श्रमिक वर्ग को हानि होती है।
(4) कर्जदाता पर प्रभाव-मुद्रा-स्फीति के कारण मुद्रा सस्ती हो जाती है। कर्जदाता इस सस्ती मुद्रा के रूप में ऋण का भुगतान करते हैं जिससे उन्हें लाभ होता है।
(5) उपभोक्ताओं पर प्रभाव-मुद्रास्फीति का सबसे अधिक बुरा प्रभाव उपभोक्ताओं पर पड़ता है। सभी वस्तुओं और सेवाओं के मूल्यों में मुद्रा-स्फीति के कारण वृद्धि होती है

प्रश्न 24. भारत में कीमत वृद्धि के उपचार हेतु पाँच सुझाव दीजिए।
उत्तर-कीमत वृद्धि को रोकने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये जा सकते हैं-
(1) जनसंख्या नीति-वस्तुओं की माँग की समुचित आपूर्ति के लिए आवश्यक है कि जनसंख्या वृद्धि को नियन्त्रित किया जाये। इसके लिए सरकार को उचित व कड़े कदम उठाने चाहिए।
(2) वितरण नीति सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से अनावश्यकता की सभी वस्तुओं को उचित कीमत पर उपलब्ध कराया जा सकता है।
(3) उत्पादन नीति-कीमतों को नियन्त्रित करने की कोई भी नीति उस समय तक सफल नहीं हो सकती, जब तक कि उसमें कृषि एवं औद्योगिक क्षेत्रों में उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाने के लिए प्रयास नहीं किया जाये। कृषि क्षेत्रों में उत्पादन को बढ़ाने के लिए संस्थागत सुधारों के साथ तकनीकी सुधारों को लागू करना चाहिए।
(4) व्यापारिक नीति-सरकार ने आयातों के द्वारा कीमतों की वृद्धि पर अंकुश लगाने का प्रयास किया है, परन्तु आयात प्रतिस्थापन पर ध्यान नहीं दिया है। दूसरी ओर, आवश्यक वस्तुओं के निर्यात को कम किया जाना चाहिए। इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि देश में एक विवेकपूर्ण एवं लोचपूर्ण व्यापारिक नीति को अपनाया जाए जिसमें कि आवश्यकतानुसार सामंजस्य स्थापित करना सम्भव हो सके।
(5) कीमत नीति-सरकार ने अपने घाटे को पूरा करने के लिए पेट्रोल, कोयला, विद्युत् जैसी बुनियादी आवश्यकता की वस्तुओं की कीमतें समय-समय पर बहुत बढ़ा दी हैं। इसका प्रभाव अन्य वस्तुओं पर भी पड़ता है। अत: सार्वजनिक क्षेत्र के अन्य उद्यमों की कार्यकुशलता को बढ़ाया जाए व इन वस्तुओं की कीमतें तीव्र गति से न बढ़ायी जाएँ।

प्रश्न 25. सरकार की वर्तमान कीमत नीति क्या है ? वर्णन कीजिए।
उत्तर-सरकार की वर्तमान कीमत नीति के प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं-
(1) चावल, गेहूँ, दालें, खाद्य तेलों (कच्चे) और चीनी तथा मक्का से आयात शुल्क हटाकर शून्य करना।
(2) परिष्कृत एवं हाइड्रोजनीकृत तेलों तथा वनस्पति तेलों के आयात शुल्क घटाकर 7.5 प्रतिशत करना।
(3) राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को ₹ 15 प्रति किलो की सब्सिडी पर आयातित तेलों का वितरण।
(4) खाद्य तेलों के टैरिफ दरों में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है।
(5) भारतीय रिजर्व बैंक ने साविधिक नकदी अनुपात (एलएलआर) और आरक्षित नकदी अनुपात (सीआरआर) में वृद्धि करने की घोषणा करके अर्थतन्त्र में मौजूद अतिरेक नकदी को समाप्त करने के वर्ष 2010-11 में 13 बार चरणबद्ध परिवर्तन किए हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. भारत में बेरोजगारी के प्रमुख कारणों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत में बेरोजगारी के कोई चार कारण लिखिए। 4
(2019)
उत्तर-भारत में बेरोजगारी की समस्या के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
(1) जनसंख्या में भारी वृद्धि-भारत में बेरोजगारी का मुख्य कारण तेज गति से बढ़ती हुई जनसंख्या है। प्रतिवर्ष 1.20 प्रतिशत की दर से जनसंख्या में वृद्धि हो रही है। जनगणना वर्ष 2011 के अनुसार, भारत की जनसंख्या एक अरब 21 करोड़ से भी अधिक हो गयी है। भारत की जनसंख्या में प्रतिवर्ष 1-50 करोड़ की वृद्धि हो रही है, जो बेरोजगारी का सबसे बड़ा कारण है।
सुझाव दीजिए।
उत्तर-
पराक्षा अध्ययन अर्थशास्त्र : कक्षा XI (2020)
(2) प्राचीन उद्योगों का अन्त-आंग्ल सरकार की दोषपूर्ण नीति के कारण देश में लघु तथा कुटीर उद्योगों का करुण अन्त हो गया। परिणामस्वरूप, अनेक व्यक्ति बेरोजगार हो गये।
(3) आर्थिक विकास की मन्द गति-यद्यपि भारत में प्राकृतिक संसाधनों की विपुलता है, किन्तु इनका समुचित उपयोग न हो पाने के कारण रोजगार के अवसरों का आवश्यकतानुसार
विस्तार नहीं हो पाया है। इसलिए देश में बेरोजगारी की समस्या बनी हुई है।
(4) देश में पूँजी का अभाव-भारत में पूँजी की भी बहुत कमी है। इसलिए उत्पादन तथा रोजगार के अवसरों में वृद्धि नहीं हो पायी है और बेरोजगारी की समस्या बढ़ती जा रही है। का
(5) त्रुटिपूर्ण आर्थिक नियोजन- भारत में सन् 1951 से आर्थिक विकास हेतु नियोजन की नीति अपनायी गयी है, परन्तु भारतीय नियोजन में रोजगारमूलक नीति का प्रतिपादन नहीं किया गया है। न ही इस बात के लिए नीति निर्धारित की गयी कि योजनाओं के अन्तर्गत कितने लोगों को रोजगार दिलाना है।

प्रश्न 2. बेरोजगारी दूर करने के कोई चार उपाय लिखिए कि
अथवा
भारत में शिक्षित बेरोजगारी कम करने के उपाय बताइए।
अथवा
• भारत में बेरोजगारी दूर करने के सम्बन्ध में
भारत में बेरोजगारी दूर करने के उपाय
भारत में बेरोजगारी की समस्या के निवारण हेतु कुछ प्रमुख सुझाव निम्नलिखित हैं-
(1) जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण-बेरोजगारी की समस्या के समाधान हेतु जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण किया जाना आवश्यक है। इसके लिए, परिवार कल्याण कार्यक्रम का व्यापक रूप से प्रचार व इसे क्रियान्वित किया जाना चाहिए, अन्यथा बेरोजगारी की समस्या कभी समाप्त न होने वाली समस्या बनकर रह जायेगी।
(2) शहरों की ओर ग्रामीण जनता के प्रवाह पर रोक-ग्रामीण क्षेत्र से आकर शहरों में बसने की प्रवृत्ति पर रोक लगानी चाहिए। इसके लिए, गाँवों में रोजगार के अवसर उत्पन्न करने होंगे व अन्य आकर्षक पारिश्रमिक देना होगा।
(3) प्राकृतिक संसाधनों का समुचित उपयोग-भारत में प्राकृतिक संसाधनों के विपुल भण्डार हैं जिनका यथोचित उपयोग किया जाना चाहिए। इससे अधिकाधिक रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे और बेरोजगारी की समस्या को हल किया जा सकेगा।
(4) शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन-बेरोजगारी की समस्या के समाधान हेतु वर्तमान शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन करके उसे व्यवसायोन्मुख तथा विकास की आवश्यकताओं के अनुरूप
बनाया जाना चाहिए, ताकि शिक्षित युवक अपना व्यवसाय प्रारम्भ कर सकें।
(5) रोजगार कार्यालयों का विस्तार-देश में रोजगार कार्यालयों की संख्या में वृद्धि की जानी चाहिए, ताकि बेरोजगार व्यक्ति इनके माध्यम से रोजगार प्राप्त कर सकें। इनके ऊपर कठोर नियन्त्रण भी होना चाहिए, ताकि इनका कार्य निष्पक्ष तथा कुशलतापूर्वक हो सके।

प्रश्न 3. निर्धनता क्या है ? भारत में निर्धनता दूर करने हेतु उपाय बताइए।
अथवा
भारत में निर्धनता को दूर करने हेतु उपाय बताइए।
(2018)
उत्तर-निधनता का आशय-जब देश में लोगों की न्यूनतम अनिवार्य आवश्यकताओं; जैसे-जीवनरक्षक आवश्यकताएँ, स्वास्थ्य सम्बन्धी आवश्यकताएँ, कार्य-कुशलता रक्षक आवश्यकताएँ पूरी करने में असमर्थता होती है, अर्थात् जब लोगों के पास इन न्यूनतम आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त साधन उपलब्ध नहीं होते हैं, तो इस स्थिति को निर्धनता की स्थिति कहा जाता है।
उपाय निम्नलिखित हो सकते हैं-
भारत में गरीबी दूर करने हेतु सुझाव
भारत में गरीबी दूर करने के लिए अनेक सुझाव दिये जा सकते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख
(1) कृषि विकास-देश में कृषि के विकास पर पर्याप्त ध्यान दिया जाना चाहिए। कृषि में यंत्रीकरण को बढ़ावा न देकर श्रम को बढ़ावा दिया जाना चाहिए तथा इसे व्यावसायिक आधार पर किया जाना चाहिए, ताकि कृषि से सम्बद्ध श्रमिक पूरे कृषि कार्यों में लगे रहें। इसके लिए, सिंचाई की सुविधाओं में पर्याप्त वृद्धि की जानी चाहिए, उन्नतशील बीज, रासायनिक खाद, कीटनाशक दवाइयों व अन्य आवश्यक वस्तुओं को उचित दर पर उपलब्ध
कराना चाहिए।
(2) जनसंख्या नियन्त्रण-सामान्यतया, यह देखने में आता है कि गरीब परिवारों में जन्म दर ऊँची होती है। अत: इसे घटाया जाना बहुत आवश्यक है। सरकार को चाहिए कि वह जनसंख्या को नियन्त्रित करने के लिए प्रोत्साहन मूलक तथा स्वैच्छिक कार्यक्रम विकसित करे और इसका पर्याप्त प्रचार व प्रसार किया जाए। इससे छोटे परिवारों को बढ़ावा देने का उद्देश्य पूरा हो सकेगा।
(3) आर्थिक विकास में तेजी-गरीबी दूर करने के लिए देश में आर्थिक विकास की गति को तेज करना होगा। तीव्र अधिक विकास से बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसरों का सृजन होगा, जिससे अधिक-से-अधिक श्रमिकों को रोजगार मिलेगा। फलस्वरूप आय में वृद्धि होगी।
(4) ग्रामीण सार्वजनिक निर्माण-ग्रामीण क्षेत्रों में सार्वजनिक निर्माण कार्यों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इसके अन्तर्गत, ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों का निर्माण, नहर, कुएँ, ग्रामीण आवास, विद्युत आदि के निर्माण कार्य प्रारम्भ किए जा सकते हैं। इससे ग्रामीण लोगों को रोजगार मिलेगा और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार आएगा।
(5) शोषण से मुक्ति-ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता की समस्या का स्थायी हल करने की दृष्टि से यह आवश्यक है कि उन्हें जमींदारों, साहूकारों और बड़े किसानों के दबाव और शोषण से मुक्ति दिलाई जाए। इसके लिए, निर्धनता की रेखा के नीचे के परिवारों के ऋण माफ किये जायें, उन्हें खेती करने के लिए उचित मात्रा में भूमि उपलब्ध कराई जाए तथा उनकी उपज को उचित मूल्य पर बिकवाने में सहायता की जाए।

प्रश्न 4. कृषि विपणन व्यवस्था के दोष बताइए।
(2018)
अथवा
कृषि विपणन क्या है ? भारत में इसके तीन प्रमुख दोष बताइए।
[संकेत-कृषि विपणन का आशय : अति लघु प्रश्न 13 का उत्तर देखें।
उत्तर- भारत में कृषि विपणन के दोष या कठिनाइयाँ
भारत में प्रचलित कृषि विपणन व्यवस्था के प्रमुख दोष अग्र प्रकार हैं-(1) मध्यस्थों की अधिकता-किसान तथा उपभोक्ता के बीच क्रय-विक्रय सम्बन्धी व्यापार में ग्रामीण महाजन, आढ़तिया, दलाल, थोक व्यापारी, फुटकर व्यापारी आदि अनेक मध्यस्थों की एक श्रृंखला होती है। इन मध्यस्थों के कारण किसान को अपनी उपज का 40 से 70 प्रतिशत ही मूल्य मिल पाता है। उपभोक्ताओं को तो काफी अधिक दामों में वही वस्तुएँ मिल पाती हैं। इस प्रकार, मध्यस्थ किसान तथा उपभोक्ता दोनों का ही शोषण करते हैं।
(2) मण्डियों में कपटपूर्ण व्यवहार-प्रदेश की अधिकतर मण्डियाँ अनियन्त्रित हैं। अत: आढ़तिया, दलाल तथा व्यापारी लोग आपसी साठ-गाँठ द्वारा कपटपूर्ण व्यवहार करके बेचारे अशिक्षित, अज्ञानी व सीधे स्वभाव वाले किसान को ठग लेते हैं।
(3) किसानों में संगठन का अभाव-भारतीय किसानों में अभी तक पारस्परिक संगठन का अभाव है, इसलिए वे बुरी तरह से ठगे जाते हैं और उन्हें अपनी उपज का उचित मूल्य नहीं मिल पाता है; क्योंकि मण्डियों के क्रेता सुसंगठित होते हैं, जो किसानों के संगठित न होने का पूरा-पूरा लाभ उठाते हैं।
(4) भण्डारण सुविधाओं का अभाव-ग्रामों में किसानों के पास कृषि उपज को सुरक्षित रखने की समुचित व्यवस्था नहीं होती है। इसलिए या तो वे अपनी उपज को फसल के समय ही सस्ते मूल्यों पर बेच देते हैं या फिर बोरियों में भरकर अथवा खुला हुआ ही नम व खुली जगह में रख लेते हैं, जिससे सीलन, दीमक, पई, सुरसरी एवं चूहों आदि के द्वारा उपज का एक बड़ा भाग नष्ट हो जाता है।

प्रश्न 5. भारत में कृषि विविधीकरण की समस्याओं को दूर करने हेतु सुझाव दीजिए।
उत्तर- भारत में कृषि विविधीकरण की समस्याओं को दूर करने हेतु निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं-
(1) प्रौद्योगिक विकास-गैर-खाद्यान्न फसलों, बागवानी पशुपालन आदि में उन्नत तकनीक का विकास किया जाये। फसलों के श्रेणीयन, प्रोसेसिंग आदि की व्यवस्था की जाए। तकनीकी प्रजनन नीति हेतु अनुसन्धान किये जाएँ। प्रौद्योगिकी के प्रशिक्षण की उचित व्यवस्थाकी जाए।
(2) बीमा योजना-कृषि विविधीकरण में शामिल फसलों के लिए बीमा योजना चलाई जानी चाहिए। इससे किसानों को उत्पादन हानि व मूल्यों में उच्चावचन से सुरक्षा प्राप्त होगी।
(3) मूल्यों में स्थायित्व-सरकार को कृषि विविधीकरण को प्रोत्साहित करने के लिए यह भी आवश्यक है कि मूल्यों में स्थायित्व बना रहे। इसके लिए, सरकार को खाद्यान्न फसलों
के साथ-साथ गैर-खाद्यान्न फसलों; जैसे-फल, वनस्पति, पुष्प आदि के भी न्यूनतम समर्थित मूल्य घोषित करने चाहिए।
(4) आधारिक संरचनाओं का विकास-पिछड़े तथा दूरस्थ क्षेत्रों में परिवहन, संचार, विद्युत, शीत गृह व गोदाम आदि आधारिक संरचनाओं का विकास किया जाए। इससे कृषि विविधीकरण को पर्याप्त प्रोत्साहन मिलता है।
(5) भूमि सुधार कानूनों का प्रभावकारी क्रियान्वयन-गैर-कृषि क्रियाओं की अनुमति तथा छोटे एवं सीमान्त किसानों को पट्टे पर भूमि उपलब्ध करायी जाये। इसी के साथ, छोटे जोतों की चकबन्दी की दिशा में विशेष प्रयास किये जाएँ।
(3) बाँटों तथा माप-तौल का प्रमापीकरण-भारतीय योजना आयोग की सिफारिश के अनुसार भारत सरकार ने सन् 1956 में माप-तौल की मीट्रिक प्रणाली प्रचलित की। इसका प्रयोग अप्रैल, 1952 से अनिवार्य हो गया है। अप्रैल, 1957 में मुद्रा की दाशमिक प्रणाली क्रियान्वित कर दी गई थी। अत: अब हिसाब करना बहुत ही सरल हो गया है।
(4) कृषि उपज का वर्गीकरण तथा प्रमापीकरण-अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में भारतीय कृषि उपज का उचित मूल्य प्राप्त करने तथा देश में कृषि विपणन व्यवस्था में सुधार करने के लिए भारत सरकार ने सन् 1937 में कृषि विपणन श्रेणीयन एवं बिक्री अधिनियम पारित करके एगमार्क (Agmark) का लेबिल लगाने की व्यवस्था की। एगमार्क के अन्तर्गत वस्तओं की शुद्धता एवं श्रेष्ठता बनाये रखने के लिए दिल्ली, कोलकाता, नागपुर, मुम्बई तथा बंगलौर आदि 22 स्थानों पर प्रयोगशालाएँ स्थापित की गई हैं।
(5) कृषि विपणन में लगे कर्मचारियों को प्रशिक्षण देना-सरकार ने कृषि विपणन में लगे कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने के लिए निम्नलिखित पाँच प्रकार के पाठ्यक्रमों की व्यवस्था की है-
(i) नागपुर में राजकीय विपणन विभाग के उच्च अधिकारियों के लिए 11 महीने का पाठ्यक्रम।
(ii) लखनऊ, हैदराबाद तथा साँगली में विपणन सचिवों एवं अधीक्षकों के प्रशिक्षण के लिए 5 महीने का पाठ्यक्रम।
(iii) नागपुर तथा चेन्नई में पदार्थों के वर्गीकरण की देख-रेख सम्बन्धी प्रशिक्षण के लिए 3 महीने का पाठ्यक्रम।
(iv) गुन्टूर में तम्बाकू के वर्गीकरण के प्रशिक्षण हेतु 6 महीने का पाठ्यक्रम।
(v) पशुओं सम्बन्धी प्रशिक्षण के लिए 6 महीने का पाठ्यक्रम।

प्रश्न 8. जैविक खेती से क्या आशय है ? इसकी प्रमुख समस्याएँ बताइए।
उत्तर जैविक खेती का आशय-लघु उत्तरीय प्रश्न 11 के उत्तर में देखें।
जैविक खेती की समस्याएँ-जैविक कृषि की मुख्य समस्याएँ निम्नलिखित हैं-
(1) जैविक खेती के लिए उपयुक्त नीतियों का अभाव है।
(2) जैविक खेती के उत्पादों के विपणन की समस्या है। वस्तुओं की तुलना में कम होता है।
(3) जैविक खेती द्वारा उत्पादित पदार्थों का जीवनकाल रसायन कृषि द्वारा उत्पादित
(4) शुरू में जैविक खेती की उत्पादकता रासायनिक खेती से कम रहती है। अत: बहुत बड़े स्तर पर छोटे और सीमान्त किसानों के लिए इसे अपनाना कठिन होगा।
(5) बे-मौसमी फसलों का जैविक खेती में उत्पादन बहुत सीमित होता है।

प्रश्न 9. मध्य प्रदेश में शिक्षा के क्षेत्र में विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
उत्तर- मध्य प्रदेश में शिक्षा क्षेत्र का विकास
मध्य प्रदेश सरकार ने प्राथमिक शिक्षा पर केन्द्रित एक सार्थक रणनीति बनायी, जिसके अन्तर्गत चुने हुए विकास क्षेत्रों में मिशनों की स्थापना की गयी और एक तय समय-सीमा
के भीतर कार्य के लक्ष्य तय किये गये। कुल नामांकन अनुपात वर्ष 1996 में 76.5 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2007 में 149-7 हो गया है। लड़कियों में यह अनुपात इसी अवधि में 70-7
प्रतिशत से बढ़कर 150 पर पहुँच गया। यह स्पष्ट रूप से समझ में आता है कि लड़कियों के अनुपात में वृद्धि हुई है। जनसंख्या के आधार पर स्कूल न जाने वाले बच्चों का प्रतिशत सन 1996 में 29.3 प्रतिशत था, जो घटकर वर्ष 2000-01 में 112 प्रतिशत हो गया। राज्य में वर्तमान में 82.64 लाख बच्चे प्राथमिक स्तर पर नामांकित हैं। इनमें से 37.78 लाख लड़कियाँ हैं, जो कि कुल नामांकन का 45.7 प्रतिशत है। लड़कियों के नामांकन को प्रोत्साहित करने वाले महिला शिक्षा अभियान एवं अन्य ऐसी ही गतिविधियों की शृंखला चलाये जाने के परिणामस्वरूप यह नामांकन स्तर बढ़ा है।

प्रश्न 10. मानव विकास सूचक का अर्थ एवं इसके घटकों की व्याख्या कीजिए।
अथवा
मानव विकास सूचक से आप क्या समझते हैं ? मानव विकास सूचकांक की प्रमुख सीमाओं का उल्लेख कीजिए। अथवा
आर्थिक विकास के अभिसूचक के रूप में मानव विकास सूचक को समझाइए।
उत्तर-
मानव विकास सूचक
[Human Development Index-HDI]
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) के साथ जुड़े हुए अर्थशास्त्री महबूब-अल-हक ने ‘विकास के एक सर्वमान्य सूचक’ को विकसित करने की दिशा में सबसे पहले प्रयास शुरू
किया। इनके सुझाव पर, नोबेल पुरस्कार से सम्मानित विश्व प्रसिद्ध भारतीय अर्थशास्त्री प्रोफेसर अमर्त्य सेन तथा प्रोफेसर सिंगर हंस के नेतृत्व में अर्थशास्त्रियों के एक समूह ने मानव विकास सूचक (HDI) को विकसित किया है।
मानव विकास सूचक (HDI) की अवधारणा इस मान्यता पर आधारित है, कि ‘किसी राष्ट्र में रहने वाले लोग ही उस राष्ट्र की वास्तविक सम्पत्ति है।’ आर्थिक विकास का मूल उद्देश्य एक ऐसा वातावरण तैयार करना है, जिससे लोग लम्बे, स्वस्थ तथा सृजनात्मक जीवन का आनन्द उठा सकें। इन विकासवादी अर्थशास्त्रियों के अनुसार राष्ट्रीय आय तथा उसकी वृद्धि आर्थिक विकास का सही अभिसूचक (या मापदण्ड) नहीं है। मानव विकास ही मानव का साध्य है तथा आर्थिक विकास का श्रेष्ठ मापक है, क्योंकि राष्ट्रीय आय सम्बन्धी आँकड़े अनेक दृष्टियों से उपयोगी होने के बावजूद राष्ट्रीय आय की संरचना व उससे वास्तव में लाभान्वित होने वाले निवासियों पर प्रकाश नहीं डालते। मानव
विकास रिपोर्ट के अनुसार, ‘मानव विकास लोगों की पसन्दगी को व्यापक करने की एक प्रक्रिया है। ये पसंदगियाँ अनेक हो सकती हैं और इन पसंदगियों में समय के साथ परिवर्तन हो सकता है।
विकास के प्रत्येक स्तर पर तीन अनिवार्य बातें हैं-(1) लम्बा और स्वस्थ जीवन जीने
की इच्छा, (2) ज्ञान प्राप्त की अभिलाषा, और (3) एक अच्छा जीवन व्यतीत करने के लिए आवश्यक संसाधनों तक पहुँचने की इच्छा । अर्थशास्त्रियों के अनुसार, यदि ये तीनों बातें उपलब्ध
नहीं हैं तो मानव को अन्य अनेक अवसरों से वंचित होना पड़ेगा।
मानव विकास सूचक (HDI) तीन सामाजिक अभिसूचकों या सामाजिक मापदण्डों (Social Indicators) का एक मिश्रित सूचक है, जिसमें वास्तविक प्रति व्यक्ति GDP का भी ध्यान रखा जाता है। किसी राष्ट्र के HDI का मूल्य निकालने के लिए अग्रलिखित तीन सूचकों (घटकों) को लिया जाता है-
(1) दीर्घ आयु-आयु का माप जन्म के समय जीवन सम्भावना के रूप में किया जाता है, जिसे न्यूनतम 25 वर्ष तथा अधिकतम 85 वर्ष प्रदर्शित किया गया है।
(2) शैक्षिक योग्यताओं की प्राप्ति-इसे वयस्क शिक्षा (दो तिहाई भार) तथा प्राथमिक माध्यमिक व क्षेत्रीय विद्यालयों में उपस्थित अनुपातों (एक तिहाई भार) के मिश्रण के रूप में मापा जाता है।
(3) जीवन स्तर-जीवन स्तर का माप प्रति व्यक्ति वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (डॉलर में क्रय शक्ति समता) के रूप में होता है।
मानव विकास सूचकांक के आकलन से पूर्व उपर्युक्त तीनों ही क्षेत्रों में अलग-अलग विमीय सूचकांक आकलित किए जाते हैं-(i) जन्म पर जीवन प्रत्याशा, (ii) साक्षरता दर, (iii) प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद । इसकी गणना में प्रत्येक चर (मद) को ‘शून्य’ और ‘एक’ के मध्य पैमाने पर रखा जाता है। प्रत्येक राष्ट्र इस पैमाने के किसी-न-किसी बिन्दु पर आता है। विमीय सूचकांक की गणना निम्न प्रकार की जाती है- वास्तविक मूल्य-न्यूनतम मूल्य
विमीय सूचकांक (Dimensional Index) =
अधिकतम मूल्य – न्यूनतम मूल्य
इसके अगले चरण में मानव विकास सूचकांक की गणना की जाती है, जो तीनों विमीय सूचकांकों का औसत होता है।
मानव विकास सूचकांक (HDI) की सीमाएँ-आर्थिक विकास के माप एवं अभिसूचक (मापदण्ड) की दृष्टि से HDI की अपनी सीमाएँ हैं, जो निम्न प्रकार हैं-
(1) HDI में सम्मिलित केवल तीन सूचकों को मानव विकास सूचक नहीं कहा जा सकता। शिशु मृत्यु दर, पोषण आदि सामाजिक सूचकों को भी HDI की गणना (माप) में सम्मिलित करना चाहिए।
(2) किसी राष्ट्र का HDI वहाँ पाई जाने वाली ऊँची असमानताओं को दूर करने के लक्ष्य से भटक सकता है, अर्थात् HDI से आय को असमानताओं को दूर करने में हमें कोई सहायता नहीं मिलती है।
(3) HDI की तुलना में प्रति व्यक्ति वास्तविक आय (GNP per capita) मापक में सरलता है और इसे बेहतर भी माना जा सकता है।

प्रश्न 11. निम्न में से किसी एक पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए-
(i) शाला पूर्व शिक्षा (ii) ऑपरेशन श्यामपट्ट।
उत्तर-(i) शाला पूर्व शिक्षा (Pre-school Education)-शाला पूर्व शिक्षा से तात्पर्य उस शिक्षा से है जो छोटे बच्चों को कक्षा 1 में दाखिले से पूर्व दी जाती है, क्योंकि पारिवारिक माहौल से बाहरी माहौल को अपनाने के लिये छोटे बच्चे मानसिक रूप से तैयार नहीं हो पाते हैं। ऐसे बच्चों की उम्र 3 से 5 साल के भीतर होती है। शाला पूर्व शिक्षा के लिये शहर में अनेक प्रकार के नर्सरी स्कूल और किण्डर गार्डन स्कूल खोले गये हैं, जिसमें योग्य शिक्षक छोटे बच्चों को मानसिक और शारीरिक रूप से स्कूल में दाखिले के लिये तैयार करते हैं। इसमें खेल के माध्यम से बच्चों में पढ़ने और सीखने की रुचि पैदा की जाती है, क्योंकि खेल ही बच्चों को पढ़ाने व सिखाने का सबसे सशक्त माध्यम है। अनेक शोधों और प्राचीन विचारकों के अनुसार,
“परिवार ही बच्चे की प्रारम्भिक पाठशाला है’ कथन सत्य है, पर वर्तमान में एकल परिवारों में जहाँ माता, पिता दोनों ही नौकरी करते हैं, शाला पूर्व शिक्षा का महत्व बढ़ जाता है। वर्तमान
परिस्थितियों में नर्सरी व किण्डर गार्डन स्कूल एक उभरता हुआ व्यवसाय है।
(ii) ऑपरेशन श्याम पट्ट (Operation Black hoard)-राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 के अन्तर्गत 1987-88 में प्रारम्भ की गई। इस योजना में प्रत्येक प्राथमिक विद्यालय में न्यूनतम सुविधाओं के प्रावधान की व्यवस्था की गई थी। इनमें साल के सभी मौसमों में उपयोग करने योग्य दो कमरों, एक बरामदे और लड़के-लड़कियों के लिए अलग-अलग शौचालय वाली हमारत, कम-से-कम दो अध्यापक (जिनमें से एक यथासम्भव महिला हो) तथा बोर्ड, डस्टर, मानचित्र, शिक्षा के अलावा अन्य दूसरे प्रकार के चार्ट, खेल और खिलौने आदि शामिल हैं।
इस योजना का मूल्यांकन राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् के दिल्ली स्थित ऑपरेशन अनुसंधान दल, इलाहाबाद के जी. बी. पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान और जयपुर के संस्थान ने मिलकर किया। रिपोर्ट में पाया गया कि प्राथमिक विद्यालयों में सुविधाएँ बढ़ी है।

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