अध्याय 5 वंशागति और विविधता के सिद्धान्त BIOLOGY ClASS 12TH परीक्षा अध्ययन

अध्याय 5
वंशागति और विविधता के सिद्धान्त

वस्तुनिष्ठ प्रश्न
 बहु-विकल्पीय प्रश्न
1. एक पादप जिसका जीनोटाइप AA B b CC है, से कितने प्रकार के युग्मक
बनेंगे?
(i) 9,
(i) 2,
(iii) 3,
(iv)4.

2. डाउन सिन्ड्रोम का कारण निम्नलिखित में से किस गुणसूण की त्रिसूत्रता
है?
अथवा
डाउन सिंड्रोम किस गुणसूत्र की एक प्रति की अधिकता से होता है ? (2019)
(i) 21वें,
(ii) 18वें,
(iii) 13वें,
(iv) 19वें।

3. हीमोफीलिया के बारे में कौन-सा कथन गलत है ?
(i) यह एक लिंग सहलग्न रोग है,
(ii) यह एक अप्रभावी रोग है,
(iii) यह एक प्रभावी रोग है,
(iv) रुधिर स्कन्दन में निहित केवल एक प्रोटीन प्रभावित होती है।

4. मेण्डल ने मटर के पौधे के कितने विपर्यासी लक्षणों का अध्ययन
किया ?
(i) 2,
(ii) 3,
(iii) 4.
(iv) 7.

5. पिता का रक्त समूह AB तथा माता का रक्त समूह 0 है। इनके बच्चों में
कौन से रक्त समूह होने की संभावना है ?
(i) A या B,
(ii) केवल A,
(iii) B या 0,
(iv) केवल 0.

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6. दो लम्बे पौधों के बीच क्रॉस से ऐसी सन्तति बनी, जिसमें कुछ बौने पौधे
थे। दोनों जनकों का जीनोटाइप क्या होगा ?
(i) TT व Tt,
(ii) Tt व Tt,
(iii) Tt व tt,
(iv) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-1. (ii), 2. (i), 3. (iii), 4. (iv), 5. (i), 6. (ii).

रिक्त स्थान पूर्ति
1. मिराबिलिस तथा एंटीराइनम ………. के प्रमुख उदाहरण हैं।
2. मेण्डल के नियमों की पुनर्लोज का श्रेय डी वीज, कोरेन्स व को जाता
है।
3. मेण्डल ने अपने संकरण प्रयोग उद्यान मटर जिसका वानस्पतिक नाम है, पर किए।
4. मेण्डल द्वारा वर्णित ‘कारकों’ को आज कहा जाता है।
•5. किसी जीव के प्रेक्षणीय लक्षण कहलाते हैं।
6. ड्रोसोफिला मेलेनोगैस्टर पर ……….. ने कार्य किया। (2019)
7. 18वें अलिंगसूत्र की ट्राइसोमिकता से मनुष्य में हो जाता है।
8. वंशागति का क्रोमोसोमवाद और थियोडोर बोवेरी द्वारा प्रतिपादित किया गया।
(2020)
उत्तर-1. अपूर्ण प्रभाविता, 2. शेरमॉक, 3. पाइसम सेटाइवम, 4. जीन, 5. लक्षण- प्ररूप/फीनोटाइप, 6. टी. एच. मॉर्गन, 7. एडवर्ड सिन्ड्रोम, 8. सटन।

२ सत्य/असत्य
1. एक लक्षण के दो विपर्यासी रूपों के लिए विषमयुग्मजी एकसंकर कहलाते हैं।
2. कुछ विषाणु भी मनुष्य में उत्परिवर्तनजन (Mutagen) के रूप में कार्य करते हैं।
3. वर्णान्धता एक ऑटोसोमल प्रभावी आनुवंशिक विकार है।
4. पक्षियों में मादाएँ विषमयुग्मकी (ZW) तथा नर समयुग्मकी (ZZ) प्रकार के होते
हैं।
5. मॉर्गन ने जीन मैपिंग हेतु ड्रोसोफिला पर अनेक प्रयोग किए।
6. सहलग्न जीन हमेशा अलग-अलग क्रोमोसोम पर स्थित होते हैं।
7. टर्नर सिन्ड्रोम से पीड़ित व्यक्ति में कुल क्रोमोसोम की संख्या 47 होती है।
8. एल्केप्टोन्यूरिया एक गुणसूत्रीय विकार है।
उत्तर-1. सत्य, 2. सत्य, 3. असत्य, 4. सत्य, 5. सत्य, 6. असत्य, 7. असत्य, 8. असत्य।

३ एक शब्द/वाक्य में उत्तर
1. मेण्डलीय एकसंकर क्रांस के लक्षणप्ररूप अनुपात व जीनप्ररूप अनुपात क्या हैं?
उत्तर-लक्षणप्ररूप (फीनोटिपिक) अनुपात-3:1 जीनप्ररूप (जीनोटिपिक) अनुपात-1:2:1
2. तीन या अधिक जीनों द्वारा नियंत्रित वंशागति क्या कहलाती है ?
उत्तर-बहुजीनी वंशागति (Polygenic) या मात्रात्मक गति।
3. मेण्डल के किस नियम को युग्मकों की शुद्धता का नियम भी कहा जाता
उत्तर-पृथक्करण का नियम।
4. संकरण प्रक्रिया में मादा जनक के रूप में प्रयोग किए जा रहे पुष्प के वर्तिकान को अवांछित पराग कणों से कैसे बचाया जाता है ?
उत्तर-इस हेतु दो उपाय किए जाते हैं (i) विपुंसन (Emasculation), (ii) बैंगिंग (Bagging)|
5. वह ग्राफिक आरेख जिसके द्वारा आनुवंशिक संकरण में संतति के सभी संभावित जीनोटाइप की गणना की जा सकती है, क्या कहलाता है ?
उत्तर-पुनेट वर्ग (Punnett Square)।
6. एक विषमयुग्मकी द्विसंकर के परीक्षणार्थ संकरण का अनुपात क्या होगा?
उत्तर-1:1:1:1.
7. किस प्रकार के जीवों में xo प्रकार का लिंग निर्धारण पाया जाता है ? दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर-टिड्डा, कॉकरोच (ब्लाटा) में XO प्रकार का लिंग निर्धारण पाया जाता है।
8. वंशागति के क्रोमोसोम वाद को किसने प्रस्तावित किया ?
उत्तर—वंशागति के क्रोमोसोम वाद (Chromosomal Theory of Inheritence) को सटन व बोवेरी (Sutton and Boveri) ने 1902 में प्रस्तावित किया।
9. टर्नर सिन्ड्रोम व क्लाइनेफेल्टर सिन्ड्रोम की क्रोमोसोम संख्या व प्रकार
लिखिए।

उत्तर न सिन्डोम कल कोपयोग (NO)
जनाले परिवार सिम्योग – जाल मोमोसाय 47 (NNY)

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

एक द्विगुणित जीच स्थलों के लिए विषमयुग्मजी है, वह कितने प्रकार
के युग्मकों का निर्माण करेगा?

त्तर उस जीन में जो ० स्थलों के लिए विषमयुग्गजी है, तीन विभिन्न लक्षणों के
विपर्यासी/वैकल्पिक रूपों को एलील होंगे। इस जीव का जीनोटाइप ALB C होगा। इस
जोनोवाइप के जीव से प्रकार के गुग्मकों का निर्माण हो सकता है।
ABC.ARCANCARD
aRC, alie.abcale

प्रश्न 2. बिन्दु उत्परिवर्तन क्या है ? एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर जोन के किसी एक क्षारक में हुआ बदलाव (विलोपन, निवेशन या प्रतिस्थापन के कारण) बिन्दु उत्परिवर्तन कहलाता है। उदाहरण हीमोग्लोबिन की बीटा ग्लोबिन खला कारवाँ अमीनो अम्ल ग्लूटेमिक अम्ल, कोडॉन GAG द्वारा कोडित होता है। इस कोडॉन में
क्षारक (एडीनिन) के ।। ( यूरेसिल) से प्रतिस्थापित होने से बना कोडॉन GUG, अमीनो अम्ल वेलीन को कोड करता है। इस परिवर्तन से सामान्य हीमोग्लोबिन, असामान्य हीमोग्लोबिन में बदल जाता है, जो सिकल सेल एनीमिया का कारण है।

प्रश्न 3. दो जीन किन अवस्थाओं में 60% पुनसंयोजन आवृत्ति प्रदर्शित करती
उत्तर जीनों का स्वतंत्र अपव्यूहन जो 50% पुनसंयोजन आवृत्ति प्राप्त कराता है, निान स्थितियों में होता है-
(i) यदि जीन अलग-अलग क्रोमोसोम पर स्थित हों।
(i) यदि जीन एक ही क्रोमोसोम पर स्थित हों तो इतनी दूर-दूर स्थित हों कि अर्द्धसूत्री
विभाजन के समय उनके बीच जीन विनिमय (क्रॉसिंग ओवर) हमेशा सुनिश्चित हो।

प्रश्न 4. मनुष्यों में NXY स्थिति कैसे उत्पन्न हो सकती है ?
उत्तर ऐसा तब हो सकता है जब स्त्री में अण्डजनन (Oogenesis) की प्रक्रिया में नॉन डिस्जंक्शन (Non-disjunction) के कारण दोनों लिंग गुणसूत्र एक ही अण्ड कोशिका  में आ जाएँ। (अर्थात् XX क्रोमोसोम्स का पृथक्करण न हो) । यदि यह XX धारी अण्ड किसी सामान्य Y प्रकार के शुक्राणु से निषेचित होता है तबXXY स्थिति बन जाती है। शुक्राणु- जनन में दोनों लिंग गुणसूत्रों CXY) के एक ही शुक्राणु में आने तथा इसके सामान्य अण्ड कोशिका (X) से निषेचन से भी यह स्थिति बन सकती है।

 

प्रश्न 5. ऐसा क्यों कहा जाता है कि नर फल मक्खी (ड्रोसोफिला) व मादा पुगी विषमयुग्मकी हैं तथा मादा फल मक्खी व नर मुर्गा समयुग्मकी हैं ?

उत्तर–लिंग क्रोमोसोम के आधार पर इन्हें विषमयुग्मकी/समयुग्मकी कहा जाता है। नर फल मक्खी (XY) व मादा मुर्गी (ZW) विषमयुग्मकी हैं अर्थात् दो प्रकार के अण्ड (युग्मक) बनाती हैं। नर फल मक्खी X तथा Y तथा मुर्गी Z तथा W प्रकार के। मादा फल मक्खी (XX) तथा नर मुर्गा (ZZ) एक ही प्रकार के शुक्राणु बनाते हैं। मादा फल मक्खी केवल X तथा मुर्गा केवल Z प्रकार के शुक्राणु बनाता है, अतः समयुग्मकी हैं।

 

प्रश्न 6. क्यों एक पिता लिंग सहलग्न रोग को अपने पुत्र को संचरित नहीं कर सकता?

उत्तर-लिंग सहलग्न रोग (वर्णान्धता, हीमोफीलिया आदि) की जीन X लिंग गुणसूत्र पर स्थित होती है। पिता निषेचन के समय पुत्र को केवल Y क्रोमोसोम का योगदान देता है। यदि पिता X लिंग गुणसूत्र का योगदान करता है तो पुत्री का जन्म होता है अत: पिता अपने पुत्र को लिंग सहलग्न रोग का संचरण कभी नहीं करता।

 

प्रश्न 7. परीक्षार्थ संकरण (टेस्ट क्रॉस) में अज्ञात जीनोटाइप वाले प्रभावी जीव का संकरण समयुग्मजी अप्रभावी जीव से कराए जाने का क्या कारण है? इसके लिए समयुग्मजी प्रभावी जीव का प्रयोग क्यों नहीं किया जाता?

उत्तर—यदि TT जैसे समयुग्मजी प्रभावी जीव का प्रयोग परीक्षार्थ संकरण में किया जाए तब सभी सन्तति (100%) प्रभावी लक्षण वाली ही होगी। इससे ज्ञात नहीं हो पाएगा कि अज्ञात जीनोटाइप वाला जीव समयुग्मजी है या विषमयुग्मजी। अप्रभावी समयुग्मजी (।। जैसे जीव) प्रयोग करने पर एक विषमयुग्मजी जीव 50 प्रभावी तथा 50% अप्रभावी फीनोटाइप उत्पन्न करेगा। अत: पता लगाया जा सकता है कि जीव समयुग्मजी है या विषमयुग्मजी। Tt x tt 50%TE+5011

 

प्रश्न 8. नियंत्रित पर परागण के विभिन्न चरणों की सूची बनाइए। क्या एक कुकुरबिट में विपुंसन की आवश्यकता होगी? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिए।

उत्तर-(a) नियंत्रित पर-परागण के चरण-

(i) जनकों का चयन, (ii) विपुंसन,(iii) बैगिंग, (iv) परागण (ब्रश से वांछित पुष्प के परागकोष से वतिकाग्र तक कृत्रिम परागण,(v) पुनः बैगिंग।

(b) जी नहीं, कुकुरबिट्स में विपुंसन की आवश्यकता नहीं होगी। इन पौधों में पुष्प एकलिंगी होते हैं तथा मादा पुष्पों में पुंकेसर नहीं होते।

 

प्रश्न 9. निम्न चित्र में किस प्रकार का विकार दर्शाया गया है ? उत्तर के पक्ष में तर्क दीजिए।

 

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उत्तर अप्रभावी ऑटोसोमल विकार, माता व पिता दोनों सामान्य लेकिन वाहक (विषमयुग्मकी) है, अप्रभावी है। अत: जनक प्रभावित नहीं हैं। माता व पिता दोनों त्रुटिपूर्ण

एलील का योगदान पुत्री को कर रहे हैं जिससे समयुग्मकी स्थिति में रोग प्रकट हो रहा है।

यह लिंग सहलग्न रोग नहीं है क्योंकि किसी लड़की के रोगग्रस्त होने के लिए उसके

पिता का रोगग्रस्त होना आवश्यक है।

 

प्रश्न 10. मेण्डल द्वारा अध्ययन किए गये मटर के पौधे के लक्षणों तथा उनके

वैकल्पिक रूपों की सूची बनाइए।

 

प्रश्न 11. नॉनसेन्स म्यूटेशन से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर—इस प्रकार के आनुवंशिक परिवर्तन में किसी सामान्य क्षारक का प्रतिस्थापन

समापन कोडॉन से हो जाता है। फलस्वरूप प्रोटीन संश्लेषण की प्रक्रिया पर विराम लग जाता है। इन्हें मिस सेन्स म्यूटेशन कहते हैं। UAA, UAG व UGA समापन कोडॉन है। निवेशन या विलोपन प्रकार के उत्परिवर्तन भी ऐसी स्थिति को जन्म दे सकते हैं।

 

लघु उत्तरीय प्रश्न

 

प्रश्न 1. मेण्डल द्वारा प्रयोगों के लिए मटर के पौधे चुनने से क्या लाभ हुए ?

उत्तर—मेण्डल द्वारा प्रयोगों के लिए मटर का चुनाव निम्न प्रकार से लाभप्रद रहा-

(i) मटर का पौधा सामान्यतः स्वपरागित होता है लेकिन इसमें पर-परागण भी सुलभता

से कराया जा सकता है।

(ii) मटर का पौधा एक वर्षीय (annual) है व आसानी से उगाया जा सकता है।

 

(iv) संकरण से प्राप्त संकर (hybrid) पूर्णत: उर्वर होते हैं। एक पौधे से अनेक बीज

अधिक पीढ़ियों की अधिक सन्ततियों का विश्लेषण परिणामों को प्रामाणिकता प्रदान कर देता

 

प्रश्न 2) एकसंकर क्रॉस का प्रयोग करते हुए प्रभाविता के नियम की व्याख्या (2020)

उत्तर-ऐसा क्रॉस जिसमें एक समय में एक जीन के दो वैकल्पिक रूपों की वंशागति

का अध्ययन किया जाता है, एकसंकर क्रॉस (Monohybrid cross) कहलाता है। एकसंकर

क्रॉस के तीन पद हैं

(i) शुद्ध प्रजननी जनकों का चयन (मटर के पौधे में लम्बाई को लक्षण मानने पर इसके

दो वैकल्पिक रूप लम्बे व बौने पौधे थे

(ii) शुद्ध प्रजनन लम्बे पौधे व बौने पौधों के बीच संकरण द्वारा F का निर्माण। ।

(iii) F, पौधों के स्वपरागण से F, पीढ़ी तैयार करना।

प्रतीकों के रूप में इस क्रॉस को निम्न प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है-

मेण्डल का प्रभाविता का नियम बताता है कि एक जोड़ा विपर्यासी विभेदकों में अन्तर

रखने वाले दो शुद्ध प्रजननी पौधों के संकरण से बनी F1 पीढ़ी में केवल एक ही जनक के लक्षण प्रकट होते हैं। अर्थात् Fसंकर के दो एलील्स में से केवल एक ही की अभिव्यक्ति होती है। यह विभेदक (वैकल्पिक रूप) प्रभावी कहलाता है। जबकि वह एलील या (वैकल्पिक रूप) जो F1 पीढ़ी में छिपा रहता है, अप्रभावी कहा जाता है।

मेण्डल का प्रभाविता का नियम F2 पीढ़ी में अप्रभावी लक्षणों के पुनः प्रकट होने की

भी व्याख्या करता है। यह नियम कारको (Factors) की विछिन्न (Discrete) प्रकृति को भी स्पष्ट करता है।

 

प्रश्न 3, आनुवंशिकी में टी. एच. मॉर्गन के योगदान का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।

उत्तर आनुवंशिकी में टी.एच. मॉर्गन का योगदान आनुवंशिकी के क्षेत्र में थामस हंट मॉर्गन (1866-1945) एक बड़ा नाम है। इन्हें प्रायोगिक आनुवंशिकी (Experimental genetics) के जनक का सम्मान दिया जाता है।

(i) मॉर्गन व उनके शिष्यों ने ड्रोसोफिला के अनेक उत्परिवर्तियों (mutants) की खोज की।

(ii) मॉर्गन ने ड्रोसोफिला के सहलग्नता समूहों (linkage groups) की खोज की।

(iii) इन्होंने ड्रोसोफिला में अनेक एकसंकर व द्विसंकर संकरण कराए तथा लिंग सहलग्न वंशागति में हमारी समझ विकसित की।

(iv) ड्रोसोफिला के सफेद आँख वाले उत्परिवर्ती की खोज का श्रेय भी मॉर्गन को जाता है।

(v) मॉर्गन के कार्य ने वंशागति के गुणसूत्रीय सिद्धान्त को बल प्रदान कर उसका विस्तार किया।

(vi) उनके जीन मैपिंग के कार्य का जीनोम अध्ययन में व्यापक प्रयोग किया जाता है।

(vii) आनुवंशिकी में क्रोमोसोम की भूमिका विषयक उनके कार्य के लिए मॉर्गन को

सन् 1933 का चिकित्सा/कार्यिकी क्षेत्र का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।

 

प्रश्न 4. एक ही जीन स्थल वाले समयुग्मजी मादा और विषमयुग्मजी नर के संकरण से प्राप्त प्रथम संतति पीढ़ी के फीनोटाइप वितरण का पुनेट वर्ग बनाकर प्रदर्शन कीजिए।

उत्तर- (a) जब एक विषमयुग्मजी नर लम्बे पौधे (Tt) को एक समयुग्मजी प्रभावी

मादा लम्बे पौधे (TT) से क्रॉस कराया जाता है, तब नर पौधा दो प्रकार के युग्मक T तथा ।

बनाता है। मादा पौधे द्वारा एक ही प्रकार के युग्मक T का निर्माण होता है।

(b) इसमें एक स्थिति तब भिन्न हो सकती है जब मादा के रूप में समयुग्मजी अप्रभावी बौने (tt) पौधे का प्रयोग किया जाय।

ही क्रॉस में F1 की 50% सन्तति लम्बी तथा 50% सन्तति बौनी होगी। यह टेस्ट क्रॉस कहलाता है। लम्बे पौधों का जीनोटाइप तथा बौनों का ॥ होगा।

 

प्रश्न 5. वंशावली विश्लेषण क्या है ? यह विश्लेषण किस प्रकार उपयोगी है ?

उत्तर-कुछ आनुवशिक विशेषकों (Trits) का दो या अधिक पीढ़ियों का वंशवृक्ष

या आरेख के रूप में प्रस्तुत अभिलेख वंशावली या पेडिग्री कहलाता है। सरल शब्दों में मनुष्य या अन्य जन्तुओं की अनेक पीढ़ियों में लक्षणों का वंशागाति का विश्लेषण करना ही वंशावली विश्लेषण कहलाता है।

वंशावली विश्लेषण में अध्ययन किए जाने वाले लक्षण किसी प्रमुख चिकित्सकीय

विकार से सम्बन्धित हो सकते हैं अथवा बिना किसी महत्व के जैसे जीभ को रोल करना।

वंशावली विश्लेषण का महत्व

(i) अनेक नैतिक व जैविक कारणों से मनुष्यों में तुलनार्थ संकरण नहीं कराए जा सकते। अत: वंशावली विश्लेषण ही मनुष्य के आनुवंशिक लक्षणों/विकारों के अध्ययन का उपाय है।

(ii) दम्पत्तियों को उनकी वंशावली के अध्ययन के आधार पर उनके बच्चों में हो सकने वाली असमान्यताओं के बारे में पूर्व जानकारी दी जा सकती है।

(iii) वंशावली विश्लेषण से मनुष्य के लिंग सहलग्न रोगों की वंशागति सम्बन्धी हमारे

ज्ञान में अभिवृद्धि हुई है।

 

प्रश्न 6. किन्हीं दो अलिंग सूत्री आनुवंशिक विकारों का उनके लक्षणों सहित उल्लेख कीजिए।

उत्तर—फिनाइल कीटोन्यूरिया तथा दांत्र कोशिका अरक्तता दो अलिंग सूत्री आनुवंशिक

विकार हैं।

(a) फिनाइल कीटोन्यूरिया (Phenyl ketonuria) प्रकृति–अलिंग सूत्री (ऑटोसोमल) अप्रभावी। केवल समयुग्मजी अवस्था में प्रकट होता है। विषमयुग्मजी अवस्था में सामान्य एलील उदाहरण है। के प्रभावी होने के कारण रोग की स्थिति नहीं बनती। यह बहुप्रभाविता (Pleiotropy) का भी कारण-12वें क्रोमोसोम पर स्थित, फिनाइल एलेनीन हाइड्रोक्सीलेज एन्जाइम को कोड करने वाली जीव के परिवर्तित होने के कारण होता है। इस कारण फिनाइल एलेनीन अम्ल टाइरोसिन में परिवर्तित नहीं होता। यह एंजाइम लिवर में पाया जाता है। अत: इस प्रकार के रोग का कारण जीन के उपापचय पर प्रभाव है। उपापचय प्रभावित होने से अनेक फीनोटाइप उत्पन्न होते हैं।

लक्षण मस्तिष्क में फिनाइल एलेनीन के व्युत्पन्न जमा हो जाते हैं। फलस्वरूप

मन्दबुद्धिता, जड़ता, I.Q. में कमी, दौरे (Fits), त्वचीय रंजकता जैसे लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं।

फिनाइल एलेनीन के व्युत्पन्न रोगी के मूत्र में भी उपस्थित होते हैं।

(b) दात्र कोशिका अरक्तता/सिकेल सैल एनीमिया (Sickle cell Anaemia)

प्रकृति—अलिंग सूत्री अप्रभावी (ऑटोसोमल रिसेसिव)।

कारण–असामान्य प्रकार के हीमोग्लोबिन का निर्माण। इस हीमोग्लोबिन की बीटा शृंखला में छठवां अमीनो अम्ल ग्लूटेमिक अम्ल न होकर वेलीन होता है। यह बीटा ग्लोबिन श्रृंखला को कोड करने वाली जीन के छठवें कोडॉन GAG में A की जगह U हो जाने (GUG

हो जाने) से होता है। यह बिन्दु उत्परिवर्तन है। यह रोग प्लियोट्रॉपी का भी उदाहरण है।

जीन का एक प्रभाव असामान्य हीमोग्लोबिन का निर्माण व दूसरा लाल रक्त कोशिकाओं को हसियाकार कर देता है।

लक्षण—गम्भीर रक्ताल्पता (Anaemia), बुखार, दर्द, प्लीहा (Spleen) का ह्रास,

कमजोरी (General debility), मानसिक कार्यों में बाधा, RBC का हँसिया के आकार का

हो जाना।

 

प्रश्न 7. परीक्षार्थ संकरण की परिभाषा लिखिए व चित्र बनाइए।

उत्तर कोई प्रभावी फीनोटाइप वाला जीव समयुग्मजी है या विषयुग्मजी, यह जानने

हेतु किया जाने वाला संकरण, परीक्षार्थ संकरण (Test cross) कहलाता है। इस क्रॉस में

अज्ञात जीनोटाइप वाले प्रभावी जीव को अप्रभावी जनक से संकरित कराया जाता है।

एकसंकर परीक्षार्थ परीक्षण लम्बे पौधे का जीनोटाइप ज्ञात करने हेतु।

द्विसंकर परीक्षार्थ परीक्षण द्विसंकरण परीक्षार्थ संकरण में जनकीय व पुनर्संयोजन रूप 1 : 1:1 : 1 के अनुपात में बनते हैं।

 

प्रश्न 8.मानव में लिंग निर्धारण कैसे होता है?

उत्तर-मनुष्य में लिंग निर्धारण XX-XY प्रकार का होता है। शिशु का लिंग निषेचन के समय ही निर्धारित हो जाता है। मनुष्य में द्विगुणित क्रोमोसोम संख्या 46 होती है। स्त्रियों में ऑटोसोम के अतिरिक्त दो लिंग क्रोमोसोम xx होते हैं। यह समयुग्मकी होती है अत: एक ही प्रकार के अण्ड का निर्माण करती हैं। स्त्रियों में अण्ड कोशिका में क्रोमोसोम सिर्फ 22 + x प्रकार के होते हैं। पुरुषों की द्विगुणित कोशिकाओं में ऑटोसोम के अतिरिक्त XY लिंग क्रोमोसोम होते हैं अत: वह विषमयुग्मजी होते हैं। उनके आधे शुक्राणुओं में 22 ऑटोसोम के साथ x  क्रोमोसोम होता है व शेष आधों में 22 ऑटोसोम के साथ Y क्रोमोसोम। यदि अण्ड का निषेचन X क्रोमोसोम वाले शुक्राणु से होता है तो इस युग्मनज से लड़की का जन्म होता है। लेकिन जब अण्ड का निषेचन Y क्रोमोसोम से होता है, तब इस प्रकार बने युग्मनज से नर शिशु बनता है। इस प्रकार के लिंग निर्धारण को नर विषमयुग्मकता (Male heterogamety) कहा जाता है। यह लिंग निर्धारण स्पष्ट करता है कि मनष्य में लिंग निर्धारण की जिम्मेदारी पुरुष की होती है।

 

प्रश्न 9. दो विषमयुग्मजी जनकों का क्रॉस कराया गया। मान लीजिए दो स्थल सहलग्न हैं तो द्विसंकर क्रॉस में F1 पीढ़ी के फीनोटाइप लक्षणों का वितरण क्या होगा?

उत्तर–परिकल्पनात्मक द्विसंकरक्रॉस-मीठी मठर (Sweetpea) में फूलकानीलारंग

(B) लाल रंग (b) पर प्रभावी होता है। इसी प्रकार परागकणों का लम्बा होना (L) गोल परागकणों (1) पर प्रभावी है। इनके विषमयुग्मकी जनक होंगे BbL1 तथा BbLI, इनमें दो स्थल (Loci) सहलग्न हैं। अर्थात् फूल के नीले रंग का जीन (एलील) फूल के लम्बे पराग कण की जीन के साथ सहलग्न है। इसी प्रकार फूल के लाल रंग का जीन फूल के गोल पराग कण की जीन के साथ सहलग्न है। इस क्रॉस को निम्न प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है-

यह जनक चार के बजाय सिर्फ दो प्रकार के ही युग्मक बनाएँगे क्योंकि दो स्थल सहलग्न हैं।

प्रश्न 10. शिशु का रुधिर वर्ग 0 है। पिता का रुधिर वर्ग A और माता का B है। जनकों के जीनोटाइप मालूम कीजिए और अन्य सन्ततियों में सम्भावित जीनोटाइप की जानकारी प्राप्त कीजिए।

उत्तर–ज्ञात है शिशु का रुधिर वर्ग 0 है। 0 रुधिर वर्ग अप्रभावी एलील i की समयुग्मजी स्थिति से बनता है। अतः शिशु का जीनोटाइप केवल ii ही हो सकता है। इस शिशु ने दोनों जनकों में से प्रत्येक से i एलील प्राप्त किया होगा। चूँकि पिता का रुधिर वर्ग A है अत: इस स्थिति में पिता विषमयुग्मकी होगा और उसका जीनोटाइप IA1 होगा। माँ का रुधिर वर्ग B है। उसने भी शिशु को i का योगदान किया है अतः वह भी विषमयुग्मकी होगा। उसका जीनोटाइप IB होगा।

अन्य सन्ततियों में रक्त समूह की सम्भावना को निम्न पुनेट वर्ग से समझा जा सकताहै-

 

्रश्न 11. पीले बीज वाले लम्बे पौधों (YyTt) का संकरण हरे बीज वाले लम्बे

चौधों (ST) से करने पर निम्न में से किस प्रकार के संतति फीनोटाइप की अपेक्षा की

ना सकती है?

(क) लम्बे हरे,

(ख) बौने हरे।

उत्तर-

प्रश्न 12. नीचे दिए गए वंशावली चार्ट (Pedigree chart) का अध्ययन करकेनिम्न प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

(a) लक्षण प्रभावी है या अप्रभावी।

(b) लक्षण लिंग सहलग्न हैं या अलिंगसूत्री (ऑटोसोमल)।

(c) पीढ़ी में जनकों का जीनोटाइप, द्वितीय पीढ़ी के तृतीय शिशु तथा तृतीय पीढ़ी के प्रथम शिशु का जीनोटाइप लिखिए।

उत्तर-(a) यह एक प्रभावी लक्षण है। लक्षण प्रत्येक पीढ़ी में उपस्थित होते हैं। एक सामान्य स्त्री तथा विषमयुग्मकी रोगी व्यक्ति के विवाह से सामान्य व रोगी बच्चे 1 : 1 के अनुपात में उत्पन्न होते हैं।)

(b) यह एक अलिंगसूत्री (ऑटोसोमल) लक्षण है। (लिंग सहलग्न लक्षण पिता से

पुत्र में संचरित नहीं होते। दूसरे लड़की के रोगी होने के लिए माँ का रोगी होना जरूरी है।)

(c) जनक (प्रथम पीढ़ी)के जीनोटाइप को

  • स्त्री aa (सामान्य), पुरुष (Aa) विषमयुग्मकी प्रभावी रोगी।
  • द्वितीय पीढ़ी में तृतीय शिशु का जीनोटाइप लड़का =Aa
  • तृतीय पीढ़ी में प्रथम शिशु का जीनोटाइप लड़की = Aa

 

प्रश्न 13. मेण्डल की सफलता के कारणों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर मेण्डल की सफलता के कारण

(1) मेण्डल की सफलता का श्रेय उनके द्वारा प्रयोगों के लिए चुने गए मटर के पौधों को भी दिया जाता है। इस पौधे में अनेक लक्षणों के वैकल्पिक रूप उपस्थित थे। प्रयोगों से    मटर के पौधे का गहन अध्ययन सफलता का कारण बना।

(ii) मेण्डल ने किसी जैविक प्रक्रिया की व्याख्या हेतु पहली बार सांख्यिकीय विश्लेषण व गणितीय तर्कों का प्रयोग किया। इस नवाचार से त्रुटिरहित परिशुद्ध परिणाम प्राप्त होसके।

(iii) मेण्डल ने प्रयोगों में प्रतिदर्शों या सैम्पल की बड़ी संख्या का प्रयोग किया। इससे आँकड़ों को विश्वसनीय बनाया जा सका।

(iv) उन्होंने प्रयोगों के परिणाम व निष्कर्षों की पुष्टि हेतु परीक्षणाधीन पौधों का पीढ़ी दर पीढ़ी अध्ययन किया। इसी के आधार पर यह तय हुआ कि परिणाम वंशागति के सामान्य नियम हैं, केवल अपुष्ट विचार नहीं हैं।

 

प्रश्न 14. मेण्डल के प्रयोगों के परिणाम, प्रकाशन समय 1866 से 1900 तक किन कारणों से उपेक्षित रहे?

उत्तर-(i) मेण्डल ने आनुवंशिकी के कारकों के विच्छिन्न (discrete) होने का विचार प्रस्तुत किया। यह तत्कालीन वैज्ञानिकों द्वारा प्रस्तुत सम्मिश्र वंशागति (blending inheritance) के विरोध में था, अत: अधिकांश के गले नहीं उतरा।

(ii) मेण्डल कारकों (factors) की भौतिक उपस्थिति का भी कोई प्रमाण प्रस्तुत न करसके।

(iii) उस वक्त संचार के साधन सीमित थे। उनका शोध पत्र भी किसी छोटी पत्रिका में ही प्रकाशित हुआ था। 

(iv) जैविक प्रयोगों की व्याख्या हेतु गणितीय तर्कों और सांख्यिकीय विश्लेषणों का प्रयोग विज्ञान जगत में तब तक अस्वीकार्य व एकदम नई बात थी।

 

प्रश्न 15. डाउन सिन्ड्रोम क्या है ? इसका कारण व लक्षण बताइए। यह भी बताइए कि माँ की उम्र 45 वर्ष से अधिक हो जाने पर इस प्रकार की विसंगतियों की संभावनाएँ अधिक क्यों होती हैं ?

उत्तर—डाउन सिन्ड्रोम मनुष्यों में पाया जाने वाला एक आनुवंशिक रोग है। यह रोग 21 अलिंगसूत्र (ऑटोसोम) की त्रिसूत्रता (trisomy) के कारण उत्पन्न होता है। इसका अर्थ है कि इस रोग में 21वें क्रोमोसोम की दो के बजाय तीन प्रतियाँ उपलब्ध होती हैं। अत: रोगी मनुष्य असुगुणित (aneuploid) होता है व उसमें कुल गुणसूत्र संख्या 47 होती है। यह स्थिति अण्ड के निर्माण के समय होने वाले अर्द्धसूत्री विभाजन में 21वे क्रोमोसोम के पृथक् न हो पाने के कारण बनती है। इसे नॉन-डिस्जंकशन (non-disjunction) कहा जाता है। लक्षण असामान्य या मन्दित शारीरिक वृद्धि, मन्द बुद्धिता, लगातार आंशिक रूप से खुला मुख, हथेली पर उभरी रेखा (palm crease), गोल सिर व पलकों के किनारे झुके।आदि इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं। अधिक उम्र की कोशिकाएँ भ्रूणीय विसंगतियों के लिए अधिक भेद्य या ग्राह्य हो जाती हैं। अत: 45 वर्ष की आयु या अधिक होने पर यह संम्भावना बढ़ जाती है।

 

प्रश्न 16. जीनोटाइप व फीनोटाइप में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

जीनोटाइप व फीनोटाइप में अन्तर

उत्तर-

 

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. निम्न शब्दों को उदाहरण सहित समझाइए-

(a) सह-प्रभाविता, (b) अपूर्ण प्रभाविता।

उत्तर-(a) सह-प्रभाविता (Codominance) जब किसी विषमयुग्मजी के दोनों

एलील अपना-अपना पूर्ण तथा बराबर का प्रभाव दिखाते हैं, तब वंशागति का प्रकार सहप्रभाविता कहलाता है।

सह प्रभाविता का एक सामान्य उदाहरण मानव में ARO स्क्त समूह को वंशागति है। मनुष्यों में रक्त समूह का निर्धारण RBC पर उपस्थित एरीजन की उपस्थिति से होता है। यह एटोजन दो प्रकार के होते हैं। अगर RBC पर A एटोजन उपस्थित है तो रक्त समूहA होता है जबकि न एटोजन B रक्त समूह के लिए उत्तरदायी होता है। अगर RBC पर दोनों एंटीजन उपस्थित हो तो रक्त समूह AB हो जाता है। 0 रक्त समूह वाले व्यक्ति को RRC पर कोई एंटीजन नहीं होता। इन एंटीजनों के निर्माण से सम्बन्धित जोन को । नाम दिया गया है। इस जोन के तीन एलोल पाए जाते हैं –

A एलोत, A एंटीजन निर्माण हेतु 18 एलील, B एंटोजन निर्माण हेतु उत्तरदायी होता है। एलोल से कोई एंटीजन निर्माण नहीं होता। एलोल 1 तथा B दोनों प्रभावी एलील हैं तथा । एलोल अप्रभावी होता है। किसी भी मनुष्य में इन तीनों में से कोई दो एलील पाए जाते हैं। [AB एलोल जब साथ होते हैं तब अपना-अपना पूर्ण तथा समान प्रभाव प्रदर्शित करते हैं। चूँकि दोनों एलील के फीनोटाइप की अभिव्यक्ति होती है अत: यह सह-प्रभाविता कहलाता है।

(b) अपूर्ण प्रभाविता (Incomplete daminance)-अपूर्ण प्रभाविता वंशागति का वह प्रकार है जिसमें किसी विषययुग्मजी अवस्था में एक एलील अपना पूर्ण प्रभाव प्रदर्शित नहीं कर पाता। इसके फलस्वरूप दोनों जनों के बीच का एक नया फीनोटाइप बनता है। निम्न दो पादपों में अपूर्ण प्रभावित को आसानी से देखा जा सकता है—फोर ओ क्लॉक प्लाण्ट या मिराबिलिस जलापा, स्नेपड्रेगन या एंटीराइनम मेजस इनमें शुद्ध लाल रंग के पुष्प वाले (RR) पौधों का संकरण सफेद रंग (IT) के पुष्प वाले पौधों से कराने पर गुलाबी रंग (Rr) पुष्प वाले पौधे प्राप्त होते हैं। लेकिन अपूर्ण प्रभाविता समिश्र वंशागति या ब्लेडिंग इनहेरिटेंस नहीं है क्योंकि F, पौधों को स्वपरागित करने पर F पीढ़ी में फोनोटिपिक अनुपात 1:2: 1 प्राप्त होता है। जो जीनोटिपिक अनुपात का भी प्रतिनिधित्व करता है। अपूर्ण प्रभाविता में लाल रंग के निर्माण से सम्बन्धित एलील के किसी परिवर्तन (त्रुटि के कारण इससे बना एंजाइम पूर्ण रूप से क्रियाशील नहीं होता।

 

प्रश्न 3. बहुजीनी वंशागति का किसी उदाहरण की सहायता से संक्षिप्त परिचय दीजिए।

उत्तर—बहुजीनी वंशागति (Polygenic inheritance)—प्रकृति में अनेक लक्षणों के सिर्फ दो वैकल्पिक रूप ही नहीं होते, अपितु यह क्रमिक स्तरों के रूप में पाए जाते हैं। उदाहरण के लिए, मनुष्य में त्वचा का रंग सिर्फ.काला या बहुत गोरा (सफेद) नहीं होता। इनके बीच में अनेक रंग पाए जाते हैं। मनुष्य की लम्बाई भी इसी प्रकार का गुण है।

यह सतत् विभिन्नता प्रायः दो से अधिक जीनों के योगात्मक प्रभाव (Additive effect) के कारण उत्पन्न होती है। इसी को बहुजीनी अथवा मात्रात्मक वंशागति कहाजाता है।

स्पष्ट है कि नाम के अनुरूप बहुजीनी लक्षण तीन या अधिक जीनों द्वारा नियंत्रित होतेहैं। इनके फीनोटाइप में प्रत्येक एलील का मात्रात्मक योगदान होता है।

मनुष्य में त्वचा का रंग तीन अलग-अलग जीनों द्वारा नियंत्रित होता है जिसमें से प्रत्येक

जीन अपूर्ण प्रभाविता के कारण त्वचा के रंग की एक इकाई का योगदान करती है। इन जीनों को प्रतीक के रूप में A, B, C से अभिव्यक्त किया जाता है। अत: बहुत काले लोगों (अफ्रीकन्स) का जीनोटाइप AABBCC तथा बहुत गोरे का aabbcc का होता है। इसके बीच में अनेक शेड उपलब्ध होते हैं। तीनों जीनों के लिए विषमयुग्मजी जीव का जीनोटाइप AaBbCc होगा जो बीच का रंग प्रदर्शित करता है। यह विषमयुग्मजी मनुष्य विभिन्न एलील संयोजनों के कारण 8 प्रकार के युग्मक उत्पन्न करता है। समान प्रकार के जीनोटाइप वाले व्यक्ति से विवाह होने पर इनसे 8 x 8 = 64 प्रकार के फीनोटाइप बनने की संभावना होती है।

इनमें बहुत काले AABBCC के लिए फीनोटाइप आवृत्ति 1/64 से होती है जो बढ़कर बीच के रंग AaBbCc के लिए 20/64 पहुँचकर पुन: घटकर बहुत गोरे aabbcc के लिए 1/64 पर पहुँच जाती है। यह आवृत्ति वितरण एक घण्टाकार (bell-shaped) आकार ले लेता है। इस प्रकार की वंशागति को मात्रात्मक वंशागति कहते हैं। 

यह वंशागति सतत् विभिन्नताओं का आधार है।

 

प्रश्न 4. मेण्डल के स्वतंत्र अपव्यूहन नियम को समझाइए तथा एक पौधा गोल बीज व पीला बीजपत्र एवं दूसरा झुर्रादार बीज तथा हरे बीजपत्र के बीच क्रॉस कराने पर प्राप्त होने वाले F, पीढ़ी के जीनोटाइप व फीनोटाइप अनुपात को चेकर बोर्ड के द्वारा समझाइए।

(a) एक शुद्ध प्रजननी समयुग्मजी मटर के पौधे, जिसमें गोल पीले रंग के बीज प्रभावी लक्षणों के रूप में थे, का संकरण एक शुद्ध प्रजननी समयुग्मजी अप्रभावी पौधे जिसमें हरे झुरींदार बीज बनते थे, से कराया गया। इस संकरण का F, पीढ़ी तक हिसाब दर्शाइए। बताइए कि F1 तथा F, पीढ़ियों का अपना-अपना लक्षणप्ररूपी अनुपात क्या था ?

(b) वह मेण्डलीय सिद्धान्त बताइए जो इसी प्रकार के संकरण से प्राप्त किया जा

सकता है न कि एकसंकरण से।

उत्तर-प्रभावी लक्षणों पीले बीज के लिए Y तथा गोल बीज के लिए R प्रतीक के रूप में लेने पर तथा अप्रभावी लक्षणों हरे बीजों के लिए y तथा झुर्रादार बीजों के लिए r लेने पर जनकों का जीनोटाइप निम्न प्रकार होगा- 

गोल पीले बीज वाला जनक

RRYY

झुर्रादार हरे बीज वाला जनक

гуу

हैं।

F: पीढ़ी में सभी बीज एक ही प्रकार का फीनोटाइप ‘गोल पीले’ बीज प्रदर्शित करते

अथवा

F2 पीढ़ी में 9 : 3 : 3 : 1 का अनुपात प्राप्त होता है। चार फीनोटाइप व 9 जीनोटाइप

प्राप्त होते हैं।

9 गोल पीले, 3 गोल हरे, 3 झुरींदार पीले, 1 झुरींदार हरा।

जीनोटिपिक अनुपात

1:2:2:4:1:2:1:2:1

 

]

वह क्रॉस जिसमें दो लक्षणों के विपर्यासी रूपों की वंशागति का अध्ययन किया जाता

है, द्विसंकर क्रॉस कहलाता है। इस पर आधारित नियम स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम (Law of Independent Assortment) है। अर्थात् यह दो जीनों की वंशागति पर आधारित है।

इसके अनुसार “दो जीनों की वंशागति में प्रत्येक जीन के दोनों एलील युग्मक निर्माण के समय दूसरी जीन के दोनों एलीलों से स्वतन्त्र रूप से पृथक् तथा युग्मकों के संलयन में पृथक् रूप से पुनर्व्यवस्थित व अपव्यूहित होते हैं।” इनमें संकरण को निम्न प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है-

अथवा

जब किसी संकर में विशेषकों के दो जोड़े संयोजित हों तब युग्मक निर्माण के समय किसी लक्षण के दोनों एलील का पृथक्करण दूसरे लक्षण के एलील से स्वतन्त्र होता है।

प्रश्न 5. मनुष्य में हीमोफीलिया की वंशागति का वर्णन कीजिए। 

उत्तर-हीमोफीलिया-हीमोफीलिया या ब्लीडर्स रोग एक x सहलग्न अप्रभावी विकार है। पुरुषों में केवल एक प्रभावित जीन की उपस्थिति रोग को जन्म दे देती है क्योंकि पुरुषों में Y क्रोमोसोम X के प्रभावित भाग का समजात नहीं होता। महिलाएँ सामान्यतः रोग की वाहक होती हैं क्योंकि सामान्य x लिंग गुणसूत्र प्रभावी होता है। महिलाएँ केवल समयुग्मकी अप्रभावी स्थिति में ही रोग के लक्षण प्रकट करती हैं, अर्थात् जब दोनों प्रभावित या रोगी जीन उपस्थित हों। इस प्रकार की वंशागति में पिता कभी भी अपने पुत्रों को रोग का संचरण नहीं करता (पिता पुत्र को सदैव Y क्रोमोसोम का योगदान करता है) पुत्रों में यह रोग सदा उनकी माँ से आता है। इस प्रकार की वंशागति को क्रिस क्रॉस (Criss cross) वंशागति कहते हैं।

 

 

 

 

 

 

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