Pariksha Adhyayan – social science 9th mp board

विषय-सूची

1. फ्रांसीसी क्रान्ति

2. यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रान्ति

2. यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रान्ति
2. यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रान्ति

3. नात्सीवाद और हिटलर का उदय

अध्याय 3 नात्सीवाद और हिटलर का उदय
अध्याय 3
नात्सीवाद और हिटलर का उदय

4.* बन्य-समाज और उपनिवेशवाद

5* आधुनिक विश्व में चरवाहे
6. भारत-आकार और स्थिति

अध्याय 6 भारत-आकार और स्थिति

7. भारत का भौतिक स्वरूप

अध्याय 7 भारत का भौतिक स्वरूप
अध्याय 7
भारत का भौतिक स्वरूप

8. अपवाह

अध्याय 8 अपवाह
अध्याय 8
अपवाह

9. जलवायु

अध्याय 9 जलवायु
अध्याय 9
जलवायु

10. प्राकृतिक वनस्पति तथा वन्य प्राणी

अध्याय 10 प्राकृतिक वनस्पति तथा वन्य प्राणी
अध्याय 10
प्राकृतिक वनस्पति तथा वन्य प्राणी

11. जनसख्या

अध्याय 11 जनसख्या
अध्याय 11
जनसख्या

12. लोकतन्त्र क्या है? लोकतन्त्र क्यों?

अध्याय 12 लोकतन्त्र क्या है ? लोकतन्त्र क्यों ?
अध्याय 12
लोकतन्त्र क्या है ? लोकतन्त्र क्यों ?

13. संविधान निर्माण

अध्याय 13 संविधान निर्माण
अध्याय 13
संविधान निर्माण

14. चुनावी राजनीति

अध्याय 14 चुनावी राजनीति
अध्याय 14
चुनावी राजनीति

15. संस्थाओं का कामकाज

अध्याय 15 संस्थाओं का कामकाज
अध्याय 15
संस्थाओं का कामकाज

16. लोकतान्त्रिक अधिकार

अध्याय 16 लोकतान्त्रिक अधिकार
अध्याय 16
लोकतान्त्रिक अधिकार

17. पालमपुर गाँव की कहानी

अध्याय 17 पालमपुर गाँव की कहानी
अध्याय 17
पालमपुर गाँव की कहानी

18. संसाधन के रूप में लोग

अध्याय 18 संसाधन के रूप में लोग
अध्याय 18
संसाधन के रूप में लोग

19. निर्धनता : एक चुनौती

अध्याय 19 निर्धनता : एक चुनौती
अध्याय 19
निर्धनता : एक चुनौती

20* भारत में खाद्य सुरक्षा

 

प्रथम भाग भारत और समकालीन विश्व-1
खण्ड i: घटनाएँ और प्रक्रियाएँ

अध्याय 1
फ्रांसीसी क्रान्ति
वस्तुनिष्ठ प्रश्न

.बहु-विकल्पीय प्रश्न

1. लुई सोलहवाँ किस वंश का राजा था ?
(i) रोमानोव
(ii) विंडसर
(iii) बूढे
(iv) हेप्सबर्ग।

2. फ्रांस की क्रान्ति कब आरम्भ हुई थी?
(i) सन् 1780 ई. में
(ii) सन् 1890 ई. में
(iin) सन् 1789 ई. में
(iv) सन् 1690 ई. में।

3. फ्रांस के विषय में,’टाइल’ क्या था?
(I)सेवा कर
(ii) प्रत्यक्ष कर
(iii) अप्रत्यक्ष कर
(iv) सीमा शुल्क।

4. किसका जैकोबिन क्लब से सम्बन्ध नहीं था ?
(i) नौकर
(ii) मुद्रक
(iii) कुलीन वर्ग
(iv) दिहाड़ी श्रमिक।

5. जैकोबिन क्लब का लीडर था-
(i) लॉक
(ii) थॉमस पियरे
(iii) रोबेस्य्यर
(iv) रूसो।

6. फ्रांस में स्त्रियों को वोट देने का अधिकार प्राप्त हुआ-
(i) 1946 में
(ii)1935 में
(iii) 1950 में
(iv) 1952 में।

7. वाटरलू का युद्ध कब हुआ था?
(i) 1850 ई. में
(ii) 1815 ई. में
(iii) 1790 ई. में
(iv) 1795 ई. में।

8. फ्रांसीसी उपनिवेशों से दास प्रथा का उन्मूलन कब हुआ?
(i) 1802 ई. में
(ii) 1810 ई. में
(iii) 1838 ई. में
(iv) 1848 ई. में।

उत्तर-1.(11), 2. (iii), 3. (ii), 4. (iii), 5. (iii), 6.00,7.(ii), 8.(iv),

रिक्त स्थानों की पूर्ति

1. फ्रांसीसी क्रान्ति को जन्म देने वाला प्रमुख फ्रांसीसी दार्शनिक ……… था।
2. फ्रांस की मुद्रा………गया जिसे 1794 में समाप्त कर दिया गया।
3. 1815 वाटरलू के युद्ध में………की हार हुई।
4. फ्रांस में 1791 में नवनिर्वाचित सभा के लिए………शब्द का प्रयोग किया गया।

5. टीपू सुल्तान और……… क्रान्तिकारी फ्रांस में उत्पन्न विचारों से प्रेरणा लेने वाले दो प्रमुख उदाहरण थे।

उत्तर-1. रूसो, 2. लिवे, 3. नेपोलियन बोनापार्ट,
4. नेशनल असेम्बली, 5. राजा मोहन राय।

.सत्य/असत्य

1. 1789 में पावरोटी के भाव बढ़ने से फ्रांस में जीविका संकट उत्पन्न हो गया था।
2. सोशल कांट्रेक्ट पुस्तक लॉक ने लिखी थी।
3. फ्रांस के सन्दर्भ में ‘टाइद’ चर्च द्वारा प्रतिपादित कर था।
4. फ्रांस के सन्दर्भ में कन्वेंशन’ एक विद्यालय था।
5. 21 जनवरी, 1793 को लुई सोलहवा को गिलोटिन पर चढ़ा दिया गया था।

उत्तर-1.सत्य, 2. असत्य, 3.सत्य,4.असत्य, 5. सत्य।

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

1. बूढे राजवंश का लुई सोलहवाँ फ्रांस की राजगद्दी पर कब बैठा ?
2. ‘शक्ति विकेन्द्रीकरण’ का सिद्धान्त किसने प्रतिपादित किया ?
3.781 ई. से 1794 ई. तक फ्रांस में चलने वाली मुद्रा का क्या नाम था ?
4. किस वर्ष में नेपोलियन बोनापार्ट ने खुद को फ्रांस का सम्राट घोषित किया ?
5. लुई सोलहवें को मृत्यु दण्ड कब दिया गया?

उत्तर-1.10 मई, 1774. 2. मॉन्टेस्क्यू, 3. लिने, 4.1804, 5.1793 में।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. ‘एस्टेट’ क्या था ?
प्रश्न फ्रांस के सन्दर्भ में टाइद क्या था?
उत्तर- कान्ति-पूर्व फ्रांसीसी समाज में सत्ता और सामाजिक हैसियत को अभिव्यक्त करने वाली श्रेणी।

प्रश्न 3. ‘कॉन्वेन्ट’ का क्या आशय है?
उत्तर- कॉन्वेन्ट धार्मिक जीवन को समर्पित समूह की इमारत।

प्रश्न 4. जेकोबिन क्लब के सदस्य कौन थे? इनका नेता कौन था?
उत्तर-जेकोबिन क्लब के सदस्य मुख्यत: समाज के कम समृद्ध हिस्से से आते थे। इनमें छोटे दुकानदार और कारीगर जैसे जूता बनाने वाले, पेस्ट्री बनाने वाले, घड़ीसाज, छपाई करने वाले और नौकर व दिहाड़ी मजदूर शामिल थे। उनका नेता मैक्समिलियन रोचेस्प्यर था।

प्रश्न 5: कांस की क्रान्ति ने विश्व को किन तीन सिद्धान्तों का सन्देश दिया ?
उत्तर-फ्रास को क्रान्ति ने विश्व को निम्नलिखित सिद्धान्तों का सन्देश दिया-स्वतन्त्रता, समानता तथा बन्धुत्व। इन सिद्धान्तों का प्रतिपादक रूसो था।

प्रश्न 6. फ्रांस की क्रान्ति कब आरम्भ हुई थी? इसके दो प्रभाव लिखिए।
उत्तर-फ्रांस की क्रान्ति 1789 ई. में आरम्भ हुई थी। फ्रांस की क्रान्ति ने सारे विश्व को झकझोर कर रख दिया था। विश्व अनेक भागों में इसका सीधा प्रभाव आगे आने वाले वर्षों में महसूस किया गया। यूरोप के सभी देशों में और दक्षिण व मध्य अमरीका में क्रान्तिकारी आन्दोलन इससे प्रेरित हुए।

प्रश्न 7. ‘सौं कुलाँत’ का अर्थ बताइए।
उत्तर-जैकोबिनो के एक बड़े वर्ग ने गोदी कामगारो की तरह धारीदार लम्बी पेर पहनने का निर्णय लिया। ऐसा उन्होंने समाज के फैशन परस्त वर्ग खासतौर से घुटने तक पहने जाने वाले ब्रीचेस (घुटन्ना) पहनने वाले कुलीनों से खुद को अलग करने के लिए किया। इसलिए जैकोबिनो को ‘सौं कुलाँत’ के नाम से जाना गया, जिसका अर्थ होता है-बिना घुटन्ने वाले।

प्रश्न 8.कां सीसी क्रान्ति को किन दार्शनिकों ने प्रभावित किया
उत्तर-फ्रांस की क्रान्ति को प्रभावित करने वाले प्रमुख दार्शनिक थे-वाल्टेयर, रूसो, मान्टेस्क्यू।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. ‘जीविका संकट’ प्राचीन राजतन्त्र के दौरान फ्रांस में काफी आम थे। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-फ्रांस की आबादी सन् 1715 में 2-3 करोड़ थी जो सन् 1789 में बढ़कर 2.8 करोड़ हो गई। परिणामस्वरूप अनाज उत्पादन की तुलना में उसकी माँग काफी तेजी से बढ़ी। अधिकांश लोगों के मुख्य खाद्य-पावरोटी की कीमत में तेजी से वृद्धि हुई। अधिकतर कामगार कारखानों में मजदूरी करते थे और उनकी मजदूरी मालिक तय करते थे। लेकिन मजदूरी महँगाई की दर से नहीं बढ़ रही थी। स्थितियाँ तब और बदतर हो जाती जब सूखे या ओले के प्रकोप से पैदावार गिर जाती। इससे रोजी-रोटी का संकट पैदा हो जाता था। ऐसे ‘जीविका संकट’ प्राचीन राजतन्त्र के दौरान फ्रांस में काफी आम थे।

प्रश्न 2. फ्रांस में लुई सोलहवें के समय में खजाना खाली होने के प्रमुख कारण बताइए।
उत्तर-फ्रांस में लुई सोलहवें के समय में खजाना खाली होने के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-
(1) राजा द्वारा शानो-शौकत पर खर्च अधिक करना।
(2) लम्बी अवधि तक युद्ध चलने से फ्रांस के संसाधन नष्ट हो गये।
(3) ब्रिटेन के युद्ध के चलते फ्रांस पर 10 अरब लिने का कर्ज और जुड़ गया क्योंकि 2 अरब लिने का कर्ज पहले से ही था।
(4) जिन्होंने सरकार को कर्ज दिया था वे अब 10 फीसदी ब्याज माँगने लगे।
(5) ब्रिटेन से 13 अमेरिकी उपनिवेश स्वतन्त्र कराने में सहायता दी।

प्रश्न 3. जैकोबिन्स कौन थे? इन्होंने देश में किस प्रकार आतंक फैलाया?
उत्तर-फ्रांस की विधानसभा में जैकोबिन्स तथा जेरोंदिस्ट नामक दो प्रमुख राजनीतिक दल थे। इनमें जैकोबिन्स अत्यधिक शक्तिशाली एवं कूटनीतिज थे, उन्होंने फ्रांस में आतंकवादी शासन की स्थापना कर दी। इनके दल के सदस्य मध्यम वर्ग के थे। इनके प्रमुख नेता दाते, रोब्सपियरे तथा दारा आदि थे। इस दल का कार्यालय पेरिस में था। अपने शत्रुओं के प्रति ये बड़ी कठोरता से व्यवहार करते थे। थोड़ा-सा सन्देह होने पर वे अपने विरोधियों को फाँसी पर चढ़ा देते थे।

प्रश्न 4.फ्रांस में 14 जुलाई का क्या महत्व है ?
उत्तर-4 जुलाई, 1789 ई. को फ्रांसीसी जनता ने वास्तील की जेल पर आक्रमण कर दिया। इस जेल को राजा के अत्याचार का प्रतीक समझा जाता था। लगभग एक घण्टे तक भीड़ घेरा डाले खड़ी रही। अन्त में क्रान्तिकारियों ने जेल के फाटक को तोड़कर राजनीतिक बन्दियों को मुक्त करा दिया। इस कारण ही 14 जुलाई को फ़ॉस में राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाता है।

प्रश्न 5. रूसो के विषय में आप क्या जानते हैं ? इसका फ्रांस की राज्य क्रान्ति में क्या योगदान था?
उत्तर-रूसो उस युग का महान् लेखक था। वह समाज का संगठन नवीन ढंग से करना चाहता था। उसने ही सर्वप्रथम लोक प्रभुत्व तथा लोकतन्त्र का समर्थन जोरदार शब्दों में किया। उसका कथन था “मानव इस दुनिया में स्वतन्त्र उत्पन्न हुआ है परन्तु सर्वत्र वह जंजीरों से जकड़ा हुआ है।” एक अन्य स्थल पर कहा था कि “कोई भी राजनीतिक पद्धति, जो जनता के सहयोग पर आधारित न हो, सफल नहीं हो सकती।” उन्होंने सामाजिक समझौते के सिद्धान्त का प्रतिपादन बड़े प्रभावशाली ढंग से किया। वह व्यक्तिगत स्वतन्त्रता और समानता का भी समर्थक था। रूसो के विचारों ने फ्रांस की जनता को अत्यधिक प्रभावित किया।

प्रश्न 6. माण्टेस्क्यू के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-माण्टेस्क्यू अपने युग का एक महान दार्शनिक, विचारक तथा लेखक था। उसका जन्म 1689 ई. में फ्रांस के एक उच्च परिवार में हुआ था। उसने राजा के अधिकारों के दैवी सिद्धान्त की कटु आलोचना की तथा इस बात पर जोर दिया कि एक आदर्श राज्य में शासन की तीनों शक्तियों या अंगों को एक-दूसरे से अलग होना चाहिए। माण्टेस्क्यू ने (द स्पिरिट ऑफ द लॉज) नामक रचना में सरकार के अन्दर विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच सत्ता विभाजन की बात कही। जब संयुक्त राज्य अमेरिका में 13 उपनिवेशों ने ब्रिटेन से खुद को आजाद घोषित कर दिया तो वहाँ इसी मॉडल की सरकार बनी।

प्रश्न 7. ‘डिरेक्ट्री शासित फ्रांस’ पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
उत्तर-जैकोबिन सरकार ने पतन के बाद मध्य वर्ग के सम्मन्न तबके के पास सत्ता आ गई। नए संविधान के अन्तर्गत सम्पत्तिहीन तबके को मताधिकार से वंचित कर दिया गया। इस संविधान के अन्तर्गत दो चुनी गई विधान परिषदों का प्रावधान था। इन परिषदों ने पाँच सदस्यों वाली एक कार्यपालिका ‘डिरेक्ट्रो’ को नियुक्त किया। इस प्रावधान के द्वारा जैकोबिनों के शासनकाल वाली एक व्यक्ति केन्द्रित कार्यपालिका से बचने की कोशिश की गई। लेकिन डिरेक्टरों का झगड़ा अक्सर विधान परिषदों से होता था और तब परिषद् उन्हें बर्खास्त करने की कोशिश करती थी। डिरेक्ट्री की राजनीतिक अस्थिरता ने सैनिक तानाशाह-नेपोलियन बोनापार्ट-के उदय का मार्ग प्रशस्त कर दिया था।

प्रश्न8.कास में दास प्रथा का उन्मूलन कब और किस प्रकार हुआ?
उत्तर-सन्-1794 के कन्वेंशन ने फ्रांसीसी उपनिवेशों में सभी दासों की मुक्ति का कानून पारित किया। पर यह कानून एक छोटी-सी अवधि तक ही लागू रहा। दस वर्ष बाद नेपोलियन ने दास-प्रथा पुन: शुरू कर दी। बागान-मालिकों को अपने आर्थिक हित साधने के लिए अफ्रीकी नीग्रो लोगों को गुलाम बनाने की स्वतन्त्रता मिल गयी। फ्रांसीसी उपनिवेशों से अन्तिम रूप से दास प्रथा का उन्मूलन 1848 में किया गया।

प्रश्न 9. फ्रांसीसी क्रान्ति की विरासत क्या है ? भारत के दो नेताओं के नाम लिखिए जिन्होंने इस क्रान्ति के आदर्शों को स्वीकार किया।
उत्तर- फ्रांसीसी क्रान्ति की सबसे महत्वपूर्ण विरासत स्वतन्त्रता और जनवादी अधिकारों के विचार थे। ये विचार उन्नीसवीं सदी में फ्रांस से निकलकर बाकी यूरोप में फैले और इनके कारण वहाँ सामन्ती व्यवस्था का अन्त हुआ। औपनिवेशिक समाजों ने सम्प्रभु राष्ट्र-राज्य की स्थापना के अपने आन्दोलनों में दासता से मुक्ति के विचार को नयी परिभाषा दी। टीपू सुल्तान और राजा राममोहन राय क्रान्तिकारी फ्रांस में उत्पन्न विचारों से प्रेरणा लेने वाले दो प्रमुख उदाहरण थे।

प्रश्न 10. फ्रांसीसी समाज के किन तबकों को क्रान्ति का फायदा मिला ? कौन-से समूह सत्ता छोड़ने के लिए मजबूर हो गए ? क्रान्ति के नतीजों से समाज के किन समूहों को निराशा हुई होगी?
उत्तर-फ्रांसीसी समाज के किन तबकों को क्रान्ति का फायदा मिला ?- इस क्रान्ति से किसानों तथा मजदूरों का शोषण समाप्त हो गया। मजदूर को उचित मजदूरी मिलने लगी। किसान करों के बोझ से मुक्त हो गये। साथ ही वकील, डॉक्टर, शिक्षक, लेखक, व्यापारी तथा दुकानदारों की सामाजिक तथा राजनीतिक क्षेत्रों में प्रतिष्ठा बढ़ी तथा उनके विकास के लिए वातावरण का निर्माण हुआ। राज्य के महत्वपूर्ण पदों तथा राजनीति पर इस वर्ग का प्रभुत्व स्थापित हो गया।
कौन-से समूह छत्ता छोड़ने के लिए मजबूर हो गए ?-लुई 16वें के शासनकाल में फ्रांस के सामन्ती वर्ग तथा चर्च के अधिकारियों को कुछ विशेष अधिकार प्राप्त थे। इन अधिकारों के माध्यम से वे जनता का शोषण करते थे। उच्च सरकारी नौकरियों पर सामन्ती वर्ग का अधिकार था। चर्च के अधिकारी शासन में हस्तक्षेप करते थे। इस क्रान्ति के कारण सभी विशेषाधिकार समाप्त हो गये। क्रान्ति के नतीजों से समाज के किन समूहों को निराशा हुई होगी ?-इस क्रान्ति के कारण पादरी वर्ग, कुलीन वर्ग-वथा राजतन्त्र समर्थकों व महिलाओं को निराशा हुई होगी।

प्रश्न 11. नेपालीन के उदय को कैसे समझा जा सकता है ?
उत्तर- नेपोलियन का उदय
1795 में राजतन्त्र के समर्थक तथा असन्तुष्ट गणतन्त्रवादियों ने संगठित होकर कन्वेन्शन पर आक्रमण कर दिया। कन्वेन्शन की रक्षा का भार नेपोलियन पर डाला गया। इस समय से ही वह फ्रांस की राज्यक्रान्ति के मंच पर चमका। कन्वेन्शन ने इससे प्रसन्न होकर उसे फ्रांस की सेना का प्रधान सेनापति नियुक्त कर दिया। इस प्रकार फ्रांस की क्रान्तिकारी सेना की बागडोर अब उसके हाथ में आ गयी और वह फ्रांस का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति बन गया। 1804 में नेपोलियन बोनापार्ट ने खुद को फ्रांस का सम्राट घोषित कर दिया। उसने पड़ोस के यूरोपीय देशों की विजय यात्रा शुरू की। पुराने राजवंशों को हय कर उसने नए साम्राज्य बनाए और उनकी बागडोर अपने खानदान के लोगों के हाथ में दे दी। नेपोलियन खुद को यूरोप के आधुनिकीकरण का अग्रदूत – मानता था। उसने निजी सम्पत्ति की सुरक्षा के कानून बनाए और दशमलव पद्धति पर आधारित नाप-तौल की एक समान प्रणाली चलायी।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.फ्रांस की क्रान्ति की शुरुआत किन परिस्थितियों में हुई
उत्तर-फ्रांस की क्रान्ति के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-
(1) अत्याचारी तथा निरंकुश राजतन्त्र-फ्रांस राज्य शासन का अध्यक्ष राजा होता था जो पूर्णतया निरंकुश तथा अत्याचारी होता था। क्रान्ति के समय फ्रांस का शासक लुई सोलहवाँ था जो जिद्दी, निरंकुश तथा राज्य कार्यों के प्रति उदासीन रहने वाला था। वह विलासी भी था।
(2) शोचनीय आर्थिक दशा-लुई सोलहवें को धन की अधिक आवश्यकता होती थी क्योंकि उसका जीवन विलासिता में डूबा रहता था। उसके राजमहल में हजारों अधिकारी थे जो कुछ नहीं करते थे परन्तु राजकोष से उन्हें धन प्राप्त होता था। शासक वर्ग जनता की आर्थिक कठिनाइयों की उपेक्षा करता था जिससे उनमें रोष की भावना दिन-प्रतिदिन बढ़ती गयी।
(3) दोषपूर्ण शासन-व्यवस्था-फ्रांस की शासन व्यवस्था निरंकुश होने के साथ-साथ दोषपूर्ण भी थी। राज्य के सभी प्रकार के कानून एक-दूसरे के विरोधी थे। राज्य के उच्च पदों की नीलामी होती थी फिर राजा के कृपापात्रों को नियुक्त किया जाता था।
(4) कृषकों की दयनीय दशा-अठारहवीं शताब्दी में ऋषि वाया में इस प्रकार परिवर्तन आए कि जिससे किसानों की दशा पहले से भी अधिक दयनीय हो गयी। नपा करी का अत्यधिक भार लाद दिया गया तथा उन्हें बेगार भी करनी पड़ती थी। वे जंगल मे जलाने के लिए न ईथन ला सकते थे श्रीरका घास के मैदानों में चरा सकते थे।
(5) नगर के मजदूर तथा दस्तकार-कृषकों की तरह फ्रांस के नगरों में निवास करने वाले मजदूरी की दशा भी अत्यन्त हीन थी। उन्हें अत्यन्त हीन प्राणी समझा जाता था। बिना अपने मालिक की इच्छा के किसी अन्य के यहाँ नौकरी नहीं कर सकते थे। हर मजदूर को काम अड़ने पर अपने मालिक से चरित्र प्रमाणपत्र नेता पड़ता था, जो पजदूर प्रमाणपत्र नहीं लेते थे उन्हें बन्दी बना दिया जाता था। इस प्रकार के गीपण तथा अन्याय के कारणों से शोषित मजदूर गुप्त संगठन बनाकर हड़ताल तथा विद्रोह करने लगे थे।
(6) बुद्धिजीवियों और क्रान्तिकारियों के विचार-किसी भी क्रान्ति को जन्म देने में बुद्धिजीवियों तथा क्रान्तिकारियों का विशेष योगदान होता है। अठारहवीं शताब्दी में फ्रांस में अनेक क्रान्तिकारी टया विचारड हुए जिन्होंने जनता का उचित ढंग से मार्गदर्शन कर उन्हें उनके अधिकारों का ज्ञान कराया तथा हानि की बाणा दी।
(7) तात्कालिक कारण-अमरीका के स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लेन से काम की अर्थिक दशा बाट खराब हो गयी थी। सन् 1788 में भारी अकाल पड़ा। सरकार पर ऋण का भारी बोझ बढ़ गाया। कोप सात हो गया। राजा ने समस्या को सुलझाने के लिए संसद का सत्र बुलाया। फ्रांस में संसट दी थी, किंतु सदा सत्र कभी नहीं बुलाया जाता था। किन्तु अब राजा को विवश होकर उसका सत्र बुलाना पड़ा काम की समस्ट
स्टेट्स जनरल कहलाती थी। मई, सन् 1789 में संसद का सत्र आरम्भ हुआ। प्रारम्भ में ही राजा तथा संसद के बीच झगड़ा हो गया इन्हीं परिस्थितियों में पेरिस (फ्रांस की राजधानी) की जनता ने बास्तील (वैग्याइल) नाम के पुराने औलखान पर धावा बोल दिया। रक्षा करने वाले सैनिकों की हत्या कर दी और कैदियों को मुक्त दिया। इस प्रकार काति
आरम्भ पाई।

प्रश्न2.फ्रांस के लिए फ्रांसीसी क्रान्ति के क्या परिणाम हुए ?
अथवा
फ्रसि की शान्ति के परिणामों की विवेचना कीजिए।
उत्तर- फ्रांस की क्रान्ति के अनेक महत्वपूर्ण परिणाम निकले, जिसका विवरण निम्नलिखित है-
(1) सामन्तवाद का अन्त-क्रान्ति के परिणामस्वरूप फ्रांस में सामन्तवाद समाप्त हो गया। सामन्ती शासन के प्राय: सभी नियमों को रद्द कर दिया गया। चर्च की भूमि को मध्यम वर्ग नै खरीद लिया। सामन्ती, जागीरदारों तथा उच्च पादरियों के सभी प्रकार के विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया गया।
(2) शासन व्यवस्था सुधार-राष्ट्रीय सभा ने देश की शासन व्यवस्था में सुधार किया। उसने उच्च कानूनों का निर्माण किया गया। पदों के लिए योग्यता के आधार पर चुनाव करने की प्रथा को आरम्भ किया। फ्रांस में सबके लिए एक से
(3) निरंकुश राजतन्त्र की समाप्ति-दस क्रान्ति ने निरंकुश राजतन्त्र को सदैव के लिए समाप्त कर दिया। लुई सोलहवें तथा उसकी रानी को उनके कुकृत्यों के दण्डस्वरूप फाँसी दे दी गयी।
(4) नवीन अर्थतन्त्रीय व्यवस्था की स्थापना-फ्रांस की क्रान्ति का एक स्थायी परिणाम यह निकला कि वहाँ सामन्ती प्रणाली का उन्मूलन कर उसके स्थान पर एक नवीन अर्थतन्त्रीय प्रणाली पूँजीवाद की स्थापना
(5) समानता और स्वतन्त्रता के विचारों का प्रमार-फ्रांस की क्रान्ति ने फ्रांस के अतिरिक्त यूरोप के अन्य देशों में भी समानता और स्वतन्त्रता के विचारों का प्रसार किया। यूरोप के विभिन्न देशों में स्वतन्त्रता, समानता तथा भ्रातृत्व के आदर्श वहाँ के क्रान्तिकारियों को प्रेरित करते रहे।
(6) फ्रांस का एक राष्ट्र के साप य उदय-उस क्रान्ति ने फ्रांस की एक गौरवशाली राष्ट्र का काम दिया। प्रभुसत्ता अव फ्रांस की जनता में निहित हो गयी।
(7) मताधिकार का विस्तार-इस क्रान्ति को सफल बनाने में नगर के निर्थन मजदूरों और किसानों का सर्वाधिक योगदान रहा था। अत: उनके बलिदानों के प्रतिफल में उनके लिए बयस्क मताधिकार की घोषणा की गयी। 1792 ई. में प्रथम बार फ्रांस के इतिहास में निर्धन वर्ग के मजदूरी और किसानों को राजनीतिक अधिकार प्रदान किये गये।
(8) गणतन्त्रीय आदशों की स्थापना-फ्रांस की क्रान्ति ने गणतन्त्रीय आदर्शों की स्थापना की। इसने यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया कि “जनता के ऊपर कोई शासन नहीं हो सकता, केवल एक गणतन्त्र होगा जिसकी सरकार जनता से प्रभुसत्ता अधिकार प्राप्त करेगी।”

प्रश्न 3. फ्रांस में जून 1793 ई. से जुलाई 1794 ई. के मध्य काल को ‘आतंक का राज्य’ के नाम से क्यों जाना जाता है?
अथवा
1793 से 1794 के समय को ‘आतंक का साम्राज्य’ कहा जाता है। स्पष्ट करें। रोव्सपियर द्वारा लागू किए गए कुछ कानूनों पर भी प्रकाश डालिए।
उत्तर-सन् 1793 से 1794 तक के काल को आतंक का युग कहा जाता है। रोव्सपियर ने नियन्त्रण एवं दण्ड की सख्त नीति अपनाई। उसके अनुसार गणतन्त्र के जो भी शत्रु थे-कुलीन एवं पादरी, अन्य राजनीतिक दलों के सदस्य, उसकी कार्यशैली से असहमति रखने वाले पार्टी सदस्य उन सभी को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया और क्रान्तिकारी न्यायालय द्वारा उन पर मुकदमा चलाया गया। यदि न्यायालय उन्हें दोषी पाता तो गिलोटिन पर चढ़ाकर उनका सिर कलम कर दिया जाता था। गिलोटिन दो खम्भों के बीच लटकते आरे वाली मशीन थी जिस पर रखकर अपराधी का सिर धड़ से अलग कर दिया जाता था। रोब्सपियर सरकार ने कानून बनाकर मजदूरी एवं कीमतों की अधिकतम सीमा तय कर दी। गोश्त एवं पावरोटी की राशनिंग कर दी गई। किसानों को अपना उत्पादन शहरों में ले जाकर सरकार द्वारा निर्धारित कीमत पर बेचने के लिए मजबूर किया गया। अपेक्षाकृत महँगे सफेद आटे के प्रयोग पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। सभी नागरिकों के लिए साबुत गेहूँ से बनी और बराबरी का प्रतीक मानी जाने वाली, ‘समता रोटी खाना आवश्यक
कर दिया। बोलचाल और सम्बोधन में भी बराबरी का आचार-व्यवहार लागू करने की कोशिश की गई। चर्चा को बन्द कर दिया गया और उनके भवनों को बैरक या दफ्तर बना दिया गया।
रोब्सपियर ने अपनी नीतियों को इतनी सख्ती से लागू किया कि उसके समर्थक भी त्राहि-त्राहि करने लगे। अंतत: जुलाई 1794 में न्यायालय द्वारा उसे दोषी ठहराया गया और गिरफ्तार कर दूसरे दिन ही गिलोटिन पर चढ़ा दिया गया।

प्रश्न 4. ओलम्प दे गूज द्वारा तैयार किए गए घोषणा-पत्र में उल्लिखित मूलभूत अधिकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-ओलम्प दे गूज के घोषणा-पत्र में उल्लिखित मूलभूत अधिकार
(1) औरत का जन्म लेना स्वतन्त्र है और उसे पुरुष के समान अधिकार प्राप्त हैं।
(2) सभी राजनीतिक संगठनों का लक्ष्य पुरुष एवं महिला के नैसर्गिक अधिकारों को संरक्षित करना है। ये अधिकार निम्न है-स्वतन्त्रता, सम्पत्ति, सुरक्षा और सबसे बढ़कर शोषण के प्रतिरोध का अधिकार।
(3) समग्र सम्प्रभुता का स्रोत राष्ट्र में निहित है जो पुरुषों एवं महिलाओं के संघ के अतिरिक्त कुछ नहीं है।
(4) कानून सामान्य इच्छा की अभिव्यक्ति होनी चाहिए। सभी महिला एवं पुरुष नागरिकों का या तो व्यक्तिगत रूप से या अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से विधि निर्माण में दखल होना चाहिए। यह सभी के लिए समान होना चाहिए। सभी महिला पुरुष नागरिक अपनी योग्यता एवं प्रतिभा के बल पर समान रूप से एवं बिना किसी भेदभाव के हर तरह के सम्मान व सार्वजनिक पद के हकदार हैं।
(5) कोई भी महिला अपवाद नहीं है। वह विधिसम्मत प्रक्रिया द्वारा अपराधी ठहरायी जा सकती है, गिरफ्तार और नजरबन्द की जा सकती है। पुरुषों की तरह महिलाएँ भी इस कठोर कानून का पालन करने के लिए बाध्य हैं।

प्रश्न 5. उनीसवीं और बीसवीं सदी की दुनिया के लिए फ्रांसीसी क्रान्ति कौन-सी विरासत छोड़ गई?
उत्तर- उन्लोमा और भोसली पदी को दुनिया के लिए फ्रांसीसी काति ने निम्न विरासत फोड़ी-
(1)समाचता का सिद्धान फ्रांसीसी जाति का महत्वपूर्ण सिद्धान्त समानता का सिद्धान्त था जोकि जम्नीसवी व चीसवी सदी के सभी लोकताकि राष्ट्रों द्वारा अपनाया गया। इस प्रकार इस क्रान्ति द्वारा स्थापित सयाक्ता का आदर्श वर्तमान के समस्त लोकतान्त्रिक संविधानों का मूल आधार है।
(2) लोकतच की स्थापना फ्रांसीसी प्राप्ति ने राजतन्त्र की कमजोरियों और कमियों को विश्व सयक्ष उजागर कर दिया। फ्रांसीसी क्रान्ति द्वारा स्थापित लोकतान्त्रिक विचारों ने बुद्धिजीवी वर्ग को आन्दोलित कर दिया जिसके परिणामस्वरूप उन्नीसवी व बीसवी सदी में संसार के अनेक राष्ट्रों में लोकतान्त्रिक सरकारों
(3) स्वतन्मयता की धारणा स्वतन्त्रता का विचार फ्रांसीसी क्रान्ति का एक मूल सिद्धान्त था। उन्होंने इसे मानव का प्राकृतिक अधिकार माना। अर्थात् इस क्रान्ति ने विश्व के लोगों में स्वतन्त्रता की भावना कूट-फूर कर भर दो और तत्पश्चात् जनता को अपनी प्रभुसत्ता का ज्ञान हुआ। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पोषित मान। अधिकारों में भी इसे मानव का नैसर्गिक अधिकार माना गया।
(4) बन्धुत्व के विचार-इस क्रान्ति ने बभुत्व के विचार को विश्व में फैलाया। इस प्रकार यह एक ऐसी क्रान्ति थी जिसने आजादी, समानता और भाईचारे जैसे विचारों को अपनाया।
उन्नीसवीं व बीसवीं सदी के प्रत्येक राष्ट्र के लोगों के लिए ये विचार आधारभूत सिद्धान्त बन गए।

प्रश्न 6.उन जनवादी अधिकारों की सूची बनाएँ जो हमें मिले हुए हैं और जिनका उद्गम फ्रांसीसी क्रान्ति में है।
उत्तर-उन जनवादी अधिकारों की सूची जिनका उद्गम फ्रांसीसी क्रान्ति से हुआ, निम्न है-
(1) मनुष्य स्वतन्त्र पैदा होता है, स्वतन्त्र रहता है और उनके अधिकार समान होते हैं।
(2) हर राजनीतिक संगठन का लक्ष्य मानव के नैसर्गिक एवं अहरणीय अधिकारों को संरक्षित रखना है। ये अधिकार है-स्वतन्त्रता, सम्पत्ति, सुरक्षा एवं शोषण के प्रतिरोध का अधिकार।
(3) सम्पूर्ण सम्पभुता का सोत राज्य में निहित है, कोई भी समूह या व्यक्ति ऐसा अनाधिकार प्रयोग नहीं करेगा जिसे जनता की सत्ता की स्वीकृति न मिली हो।
(4) स्वतन्त्रता का आशय ऐसे कार्य करने की शक्ति से है जो औरों के लिए हानिकारक न हो।
(5) कानून सामान्य इच्छा की अभिव्यक्ति है। कानून की नजर में सभी नागरिक समान हैं।
(6) कानूनी प्रक्रिया के बाहर किसी भी व्यक्ति को न तो दोषी ठहराया जा सकता है और न ही गिरफ्तार या नजरबन्द किया जा सकता है।
(7) प्रत्येक नागरिक बोलने, लिखने और छापने के लिए आजाद है।
(8) सम्पत्ति का अधिकार एक पावन एवं अनुलंघनीय अधिकार है, अत: किसी भी व्यक्ति को इससे
वंचित जारी किया जा सकता है।

प्रश्न 7.क्या आप इस तर्क से सहमत हैं कि सार्वभौमिक अधिकारों के संदेश में विभिन्न अंतर्विरोध थे?
उत्तर-सार्वभौमिक अधिकारों के घोषणा पत्र में विभिन्न अंतर्विरोध थे जैसे-
(1) शिक्षा के अधिकार को कोई महत्व नहीं दिया गया।
(2) व्यापार और कार्य की स्वतन्त्रता का कोई उल्लेख नहीं था।
(3) निर्वाचक बनने के लिए सम्पत्ति का होना आवश्यक था। इस प्रकार नागरिकों को समानता के अधिकार से वंचित रखा गया तथा पुराने विशेषाधिकारों के स्थान पर नवीन विशेषाधिकार स्थापित किये गये।
(4) हेजन के अनुसार, “मानव अधिकारों की घोषणा केवल कुछ सिद्धान्तों की सूची थी, उन सिद्धान्तों का साक्षात्कार नहीं। अर्थात् वह अधिकारों की घोषणा थी, अधिकारों की गारन्टी नहीं।”
(5) विधायिका को कार्यपालिका से पूर्णतया पृथक् कर दिया गया था।

अध्याय 2
यूरोप में समाजवाद एवं रूसी क्रान्ति
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
.बहु-विकल्पीय प्रश्न

1.रोज की अधिकांश जनता 20वीं शताब्दी के आरम्भ में कार्य करती थी-
(i)कृषि वर्ग
(ii) खनन वर्ग
(iii) यातायात वर्ग
(iv) औद्योगिक क्षेत्र में।

2. खूनी रविवार की घटना कब हुई?
(1) 1890
(121905
(iii) 1910
(iv) 1917.

3. रूस की क्रान्ति कब हुई थी?
(i) 1920
(ii) 1917
(iii) 1915
(iv) 1910.

4. रूस में सामूहिकीकरण कार्यक्रम’ को प्रारम्भ किया-
(i) गैपान
(ii) लेनिन
(iii) स्तालिन
(iv) ट्राट्स्की।

5. रूस में जार द्वारा कब पद से त्याग-पत्र दिया गया?
(i) 2 मार्च, 1917
(ii) 1 अप्रैल, 1919
(iii) 3 मई, 1920
(iv) 4 मार्च, 1915.

6. रूस के विषय में, ‘शान्ति, भूमि एवं रोटी’ का नारा किसने दिया था ?
(i) प्लेटो
(ii) कार्ल मार्क्स
(iii) मॉन्टेस्क्यू
(iv)लेनिन।
7. रूसी सामाजिक लोकतान्त्रिक श्रमिक पार्टी का गठन कब हुआ था ?
(i) 1898
(ii) 1885
(iii) 1860
(iv) 1850.

उत्तर-1.(i), 2. (ii), 3. (ii), 4. (iii), 5. (i), 6. (iv),7.(i).

रिक्त स्थानों की पूर्ति

1.सन 1917 की सर्दियों में रूस की राजधानी..……..की हालत बहुत खराब थी।
2. प्रथम विश्वयुद्ध की शुरूआत……..में हुई।
3. रूस अनाज का एक बड़ा………..था।
4. सन्..………में समाजवादी क्रान्तिकारी पार्टी का गठन किया गया।
5. रूसी मजदूरों के लिए………..का साल बहुत बुरा रहा।
6. सन् 1914 में दो….…… गठबन्धनों के बीच युद्ध छिड़ गया।
7. कॉमिन्टन का गठन वर्ष ………में हुआ।

उत्तर-1. पेट्रोगाड, 2. 28 जुलाई, 1914, 3. निर्यातक,
4. 1900, 5. 1904, 6. यूरोपीय, 7. 1919.

सत्य/असत्य

1.ऑस्ट्रिया और स्पेन, कैथोलिक चर्च के समर्थक थे।

3.अप्रैल पीसिस’ का विचार लेनिन ने दिया था।

4.सन् 1914 में रूस और उसके पूरे साम्राज्य पर जार निकोलस II का शासन था।

5. फरवरी 1920 में राजशाही को गही से हटाने वाली क्रान्ति का झण्डा पेत्रोग्राद की जनता के हाथों में था।

उत्तर-1. सत्य, 2. असत्य, 3. सत्य, 4. सत्य, 5. असत्य।

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

1.मेनशोविको का नेता कौन था ?
2.पीटर्सबर्ग का नाम बदलकर क्या कर दिया गया था ?
3. जार द्वारा कब पद त्याग दिया गया ?
4. वाल स्ट्रीट एक्सचेंज क्या था ?
5. रूस के विषय में ‘कुलक’ क्या था ?
6. किसके नेतृत्व में खूनी रविवार को मजदूरों का जुलूस विटर पैलेस पहुँचा ?

उत्तर-1, एलेक्जेंडर कॅरेस्की, 2, पेटोगाड, 3. 2 मार्च, 1917, 4. शेयर बाजार, 5. धनी किसान,6. पादरी गैपौन।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. ड्यूमा पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर-रूसी संसद का विधानमण्डल ‘ड्यूमा’ के नाम से जाना जाता था। 1905 की क्रान्ति के दौरान जार ने एक निर्वाचित परामर्शदाता संसद या ड्यूमा के गठन पर अपनी सहमति दी थी।

प्रश्न 2. 1900 से 1930 के बीच रूस में महिला कामगार की स्थिति क्या थी?
उत्तर-1900 से 1930 के बीच महिला कामगार-फैक्ट्री मजदूरों में औरतों की संख्या 31 प्रतिशत थी लेकिन उन्हें पुरुष मजदूरों के मुकाबले कम वेतन मिलता था। पुरुषों की तनख्वाह के मुकाबले आधे से तीन-चौथाई तक वेतन मिलता था। सन् 1917 में बहुत सारे कारखाने में हड़ताल का नेतृत्व महिलाओं ने किया था। महिला कामगार, अक्सर अपने पुरुष सहकर्मियों को प्रेरित करती रहती थीं।

प्रश्न 3. कार्ल मार्क्स का ‘पूँजीवाद’ पर क्या विचार था ?
उत्तर-कार्ल मार्क्स का विचार था कि औद्योगिक समाज ‘पूँजीवादी’ समाज है। फैक्ट्रियों में लगी पूँजी पर पूँजीपतियों का स्वामित्व है और पूँजीपतियों का मुनाफा मजदूरों की मेहनत से पैदा होता है।

प्रश्न 4. कोऑपरेटिव क्या था ?
उत्तर-कोऑपरेटिव ऐसे लोगों के समूह थे जो मिलकर चीजें बनाते थे और मुनाफे को प्रत्येक सदस्य द्वारा किए गए काम के हिसाब से आपस में बाँट लेते थे।

प्रश्न 5. ‘द्वितीय इण्टरनेशनल’ क्या था?
उत्तर-1817 का दशक आते-आते समाजवादी विचार पूरे यूरोप में फैल चुके थे। अपने प्रयासों में समन्वय लाने के लिए समाजवादियों ने द्वितीय इण्टरनेशनल के नाम से एक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था बनाई थी।

प्रश्न 6. लेबर पार्टी का गठन कब और कहाँ हुआ था ?
उत्तर-1905 में ब्रिटेन के समाजवादियों और ट्रेड यूनियन आन्दोलनकारियों ने लेबर पार्टी के नाम से अपनी एक अलग पार्टी बना ली थी।

प्रश्न 7. खूनी रविवार की घटना क्या थी?
उत्तर-22 जनवरी, 1905 ई. में रविवार के दिन फादर गैपान के नेतृत्व में रूसी क्रान्तिकारियों ने एक जुलूस निकाला था। जार के सैनिकों ने जुलूस के प्रदर्शनकारियों पर गोलियाँ चलायीं जिससे अनेक क्रान्तिकारी घायल हुए तथा मारे गये। इस कारण ही यह घटना खूनी रविवार के नाम से प्रसिद्ध है।

प्रश्न8.पहला विश्व युद्ध किसे कहा जाता है ?
उत्तर-1914 में दो यूरोपीय गठबन्धनों के बीच युद्ध छिड़ गया। एक ओर जर्मनी, ऑस्ट्रिया और तुर्की (केन्द्रीय शक्तियाँ) थे तो दूसरी ओर फ्रांस, ब्रिटेन व रूस (बाद में इटली और रूमानिया भी इसमें शामिल हो गए) थे। इसी युद्ध को पहला विश्व युद्ध कहा जाता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. निम्नलिखित के बारे में संक्षेप में लिखिए-
(1) उदारवादी, (2) स्तालिन का सामूहिकीकरण कार्यक्रम।
उत्तर-(1) उदारवादी-समाज परिवर्तन के समर्थकों में एक समूह उदारवादियों का था। उदारवादी ऐसा राष्ट्र चाहते थे जिसमें सभी धर्मों को बराबर सम्मान और जगह मिले। उदारवादी समूह वंश-आधारित शासकों की अनियन्त्रित सत्ता के भी विरोधी थे। वे सरकार के समक्ष व्यक्ति मात्र के अधिकारों की रक्षा के पक्षधर थे। उनका कहना था कि सरकार को किसी के अधिकारों का हनन करने या उन्हें छीनने का अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए। यह समूह प्रतिनिधित्व पर आधारित एक ऐसी निर्वाचित सरकार के पक्ष में था जो
शासकों और अफसरों के प्रभाव से मुक्त और सुप्रशिक्षित न्यायपालिका द्वारा स्थापित किए गए कानूनों के अनुसार शासन-कार्य चलाए। पर यह समूह ‘लोकतन्त्रवादी’ नहीं था। ये लोग सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार यानी सभी नागरिकों को वोट का अधिकार देने के पक्ष में नहीं थे। उनका मानना था कि वोट का अधिकार केवल सम्पत्तिधारियों को ही मिलना चाहिए।
(2) स्तालिन का सामूहिकीकरण कार्यक्रम-नियोजित अर्थव्यवस्था का शुरूआती दौर खेती के सामूहिकीकरण से पैदा हुई तबाही से जुड़ा हुआ था। इसी के बाद स्तालिन का सामूहिकीकरण कार्यक्रम शुरू हुआ। 1929 से पार्टी ने सभी किसानों को सामूहिक खेतों (कोलखोज) में कार्य करने का आदेश जारी कर दिया। ज्यादातर जमीन और साजो-सामान सामूहिक खेतों के स्वामित्व में सौंप दिए गए। सभी किसान सामूहिक खेतों पर कार्य करते थे और कोलखोज के मुनाफे को सभी किसानों के बीच बाँट दिया जाता था। सामूहिकीकरण का विरोध करने वालों को सख्त सजा दी जाती थी।

प्रश्न 8. 1917 में जार का शासन क्यों खत्म हो गया ?
अथवा
पेट्रोगाड में फरवरी कान्ति पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर-फरवरी की क्रान्ति 12 मार्च, 1917 की मानी जाती है, क्योंकि पुराने रूसी पंचांग के अनुसार उस दिन को तारीख 27 फरवरी थी। फरवरी क्रान्ति का प्रारम्भ निम्नलिखित प्रकार से हुआ-
(1)7 मार्च, 1917 के दिन भूखे-प्यासे और शीत से कँपकँपाते निर्धन श्रमिकों ने पेट्रोगाड की सड़कों पर जुलूस निकाला। सड़कों के किनारे के होटलों में घुसकर भोजन किया तथा बाहर निकलकर रोटी के नारे लगाते हुए सड़कों पर घूमने लगे। जार के अधिकारियों ने सैनिकों को गोली चलाने की आज्ञा दी, परन्तु सैनिकों ने नंगे-भूखे मजदूरों पर गोली चलाने से इन्कार कर दिया। इस प्रकार क्रान्ति का सूत्रपात सेना के असहयोग से आरम्भ हो गया।
(2) दूसरे दिन 8 मार्च, 1917 को पेट्रोगाड में नगर के कारखाने में काम करने वाले लगभग एक लाख श्रमिकों ने हड़ताल कर दी तथा सड़कों पर नारे लगाते निकले “रोटी दो, युद्ध बन्द करो, अत्याचारी शासन का अन्त हो।” जार द्वारा मार्च में ही ड्यूमा को भंग कर दिया गया तथा सैनिक मजदूर आन्दोलनकारियों से जा मिले। 13 मार्च को रूस की राजधानी पर मजदूरों ने अधिकार कर लिया। 15 मार्च को जार ने अपना सिंहासन त्याग दिया। इस प्रकार रूस से निरंकुश राजतन्त्र का अन्त हो गया तथा गणतन्त्र की स्थापना की घोषणा की गयी।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. रूस के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक हालात 1905 से पहले कैसे थे?
उत्तर-1905 से पूर्व रूस की सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति-रूस के जार शासक अत्यन्त भ्रष्ट तथा निरंकुश थे। जारों के शासनकाल में रूस का सामाज दो मुख्य वर्गों में विभाजित था-कुलीन और जनसाधारण। कुलीन वर्ग में बड़े-बड़े जमींदार और राजकीय अधिकारी सम्मिलित थे। वे धन सम्पन्न होने के कारण बड़ी शान से जीवन-यापन करते थे। उन्हें सभी विशेषाधिकार प्राप्त थे। राज्य के सभी सैनिक तथा असैनिक पदों पर उनकी नियुक्ति होती थी। वे कर भार से भी मुक्त थे। कुलीन वर्ग जनसाधारण वर्ग को हीन दृष्टि से देखता था। किसानों की तरह रूस में श्रमिकों की दशा भी अत्यन्त शोचनीय थी। रूस के पूँजीपति उनका व्यापार शोषण करते थे। कारखानों में उनके साथ बुरा व्यवहार होता था। उन्हें अत्यन्त अल्प वेतन दिया जाता था। मजदूर एक होकर आन्दोलन न करें इसके लिए 1900 ई. में हड़ताल करने व संघ बनाने पर रोक लगा दी गयी।
रूस की राजनीतिक स्थिति-1905 से पहले रूस की राजनीतिक स्थिति चिन्ताजनक थी। रूस के जार पूर्णतया निरंकुश शासक थे। वे अपनी परामर्शदात्री सभाओं के परामर्श की उपेक्षा करते थे। वे अपने गुप्तचरों तथा राजकीय अधिकारों को विशेष महत्व देते थे तथा उनकी सलाह से कार्य करते थे। इसके अतिरिक्त शासन पर भ्रष्ट जींदारों, शाही परिवार के लोगों अमीरों तथा सैनिक अधिकारियों का भी प्रभुत्व था। सामन्त तथा अमीर जनता पर घोर अत्याचार करते थे। शासकों तथा शासितों के मध्य गहरा अन्तर था तथा जन असन्तोष की पूर्णतया उपेक्षा की जाती थी।

प्रश्न 2.1917 से पहले स्कस की कामकाजी आबादी यूरोप के बाकी देशों के मुकाबले किन-किन स्तरों पर भिन्न थी?
उत्तर-1917 से पहले रूस की कामकाजी आबादी यूरोप के बाकी देशों के मुकाबले निम्न स्तरों पर भिन्न थी-
(1) रूसी साम्राज्य की लगभग 85 प्रतिशत जनता आजीविका के लिए खेती पर निर्भर थी। यूरोप के बाकी देशों में खेती पर आश्रित जनसंख्या का प्रतिशत इतना नहीं था। उदाहरण के तौर पर, फ्रांस और जर्मनी में खेती पर निर्भर आबादी 40-50 प्रतिशत से ज्यादा नहीं थी। रूसी साम्राज्य के किसान अपनी जरूरतों के साथ-साथ बाजार के लिए भी पैदावार करते थे।
(2) मजदूरों की तरह किसान भी बँटे हुए थे। यहाँ की स्थिति फ्रांस जैसी नहीं थी। मिसाल के तौर पर, फ्रांसीसी क्रान्ति के दौरान ब्रिटनी के किसान न केवल नवाबों का सम्मान करते थे बल्कि नवाबों को बचाने के लिए बाकायदा लड़ाइयाँ भी लड़ीं। इसके विपरीत, रूस के किसान चाहते थे कि नवाबों की जमीन छीनकर किसानों के बीच बाँट दी जाए। बहुधा वह लगान भी नहीं चुकाते थे।
(3) रूसी किसान यूरोप के बाकी किसानों के मुकाबले एक और लिहाज से भी भिन थे। यहाँ कि किसान समय-समय पर सारी जमीन को अपने कम्यून (मीर) को सौंप देते थे और फिर कम्यून ही प्रत्येक परिवार की जरूरत के हिसाब से किसनों को जमीन बाँटता था।
(4) रूस के अपने उद्योग तो वैसे भी बहुत कम थे, अब तो बाहर से मिलने वाली आपूर्ति भी बन्द हो गई क्योंकि बाल्टिक समुद्र में जिस रास्ते से विदेशी औद्योगिक सामान आते थे उस पर जर्मनी का कब्जा हो चुका था। यूरोप के बाकी देशों के मुकाबले रूस के औद्योगिक उपकरण ज्यादा तेजी से बेकार होने लगे थे। 1916 तक रेलवे लाइनें टूटने लगी। अच्छी सेहत वाले मर्दो को युद्ध में झोंक दिया गया। देशभर में मजदूरों की कमी पड़ने लगी और जरूरी सामान बनाने वाली छोटी-छोटी वर्कशॉप ठप्प होने लगी।

प्रश्न 3. रूसी राज्य-क्रान्ति 1917 के पूर्व रूस की दशा कैसी थी? सविस्तार समझाइए।
अथवा
रूस में क्रान्ति से पूर्व किस प्रकार की अर्थव्यवस्था थी?
उत्तर-1917 ई. की क्रान्ति के पूर्व रूस की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक तथा धार्मिक दशा निम्नलिखित थी-
(1) सामाजिक दशा-रूस विभिन्न जातियों का निवास स्थल था। रूसी, पोल, फिन, आर्मीनियन आदि विभिन्न जातियाँ यहाँ निवास करती थीं। इन जातियों में असन्तोष की भावना थी। मुख्यतया रूसी समाज दो वर्गों में विभाजित था जिनमें पर्याप्त विषमता थी। रूस का प्रथम वर्ग विशेष अधिकारों से युक्त तथा सम्पन वर्ग था जो करों से मुक्त था तथा राजकीय उच्च पदों का अधिकारी था। द्वितीय वर्ग अधिकारहीन वर्ग था जिसमें निर्धन, मजदूर, किसान तथा अर्ध-दास थे। इस वर्ग के पास कोई अधिकार नहीं थे। यह वर्ग अत्यन्त दयनीय जीवन व्यतीत कर रहा था।
(2) राजनीतिक दशा-क्रान्ति से पूर्व रूस की राजनीतिक दशा अत्यन्त शोचनीय थी। रूस के शासक जार निरंकुशता के पोषक थे। वे दैवी अधिकार के सिद्धान्त में आस्था रखते थे। रूस में नाम के लिए एक संसद थी, जो ड्यूमा कहलाती थी, परन्तु व्यवहार में यह शक्तिहीन थी। वास्तविक सत्ता का उपयोग जार ही करता था। शासन की आलोचना करने वालों को दण्डित किया जाता था। रूस में सामन्ती प्रथा का भी प्रचलन था। सामन्तों को राज्य से विशेष अधिकार प्रदान किये गये थे। वे स्वेच्छाचारी शासन में ही आस्था रखते थे।
(3) आर्थिक दशा-प्रथम विश्व युद्ध ने रूस की आर्थिक दशा को अत्यधिक शोचनीय बना दिया था। युद्ध के कारण बाल्टिक सागर एवं काले सागर के बन्द हो जाने से रूस पश्चिमी संसार से पृथक् हो गया जिससे उसके व्यापार को गहरा आघात लगा। जार एलक्जेण्डर के काल में रूस में औद्योगीकरण की गति तीव्र हो गयी थी जिससे पूँजीवाद को विशेष प्रोत्साहन मिला था। पूँजीवाद के कारण श्रमिकों की दशा अत्यधिक शोचनीय हो गयी थी, क्योंकि उनसे काम अधिक लिया जाता था परन्तु मजदूरी कम दी जाती थी। मजदूरों के समान ही किसानों की दशा भी अत्यन्त शोचनीय थी। किसानों पर अनेक प्रतिबन्ध लगा दिये गये थे, परिणामस्वरूप अनेक बार कृषक विद्रोह भी हुए।
(4) धार्मिक दशा-रूस में अधिकतर जनता ईसाई धर्म को मानने वाली थी तथा राज्य और चर्च में गहरा सम्बन्ध था। चर्च को राज्य की ओर से मान्यता प्रदान की गयी थी तथा उसके खर्चे के लिये रूसी जनता पर अनेक अनिवार्य कर भी लगा दिये गये थे। पादरियों का दृष्टिकोण संकीर्ण तथा अन्धविश्वासों पर आधारित था। वे राजा के दैवी अधिकार के सिद्धान्त को मान्यता देते थे तथा जनता से कहते थे कि राजा पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि है, अत: उसका विरोध करना ईश्वर का विरोध है।

प्रश्न 4. रूसी क्रान्ति के कारणों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
1917 ई. की रूसी क्रान्ति के सामाजिक एवं आर्थिक कारणों को लिखिए।
अथवा
“1917 की रूसी क्रान्ति जार निकोलस द्वितीय के अत्याचारों का परिणाम थी।” इस कथन की व्याख्या करते हुए क्रान्ति के कारण बताइए।
उत्तर-रूसी क्रान्ति के निम्नलिखित कारण थे-
(1) निरंकुश राजतन्त्र-रूस में निरंकुश राजतन्त्र था। राज्य के शासक को जार कहा जाता था जो अपने को ईश्वर का प्रतिनिधि कहता था। जार निरंकुशता को बनाये रखना अपना कर्त्तव्य समझता था। उसे मुख्यतया कुलीन वर्ग, सेना, नौकरशाही तथा पादियों का ही समर्थन प्राप्त था। रूस की शेष जनता उसके विरुद्ध थी, अत: वह निरंकुश राजतन्त्र को समाप्त करना चाहती थी।
(2) कुलीन वर्ग की स्वार्थपरता और विलासिता-फ्रांस के समान ही रूस में भी कुलीन वर्ग विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग था। इस वर्ग के लोग जार की छत्रछाया में रहकर अपनी जागीरों में मनमानी करते थे। वे फ्रांस के कुलीन वर्ग के समान रूस की जनता का शोषण करते थे तथा भोग-विलास का जीवन व्यतीत करते थे।
(3) अल्पसंख्यक जातियों का विद्रोह-रूस में पाल, यहूदी तथा फिन नामक अल्पसंख्यक जातियाँ निवास करती थी। जार इन जातियों का रूसीकरण करना चाहता था। इन जातियों को रूसी भाषा पढ़ने के लिए बाध्य किया गया तथा उच्च पदों पर केवल रूसियों को ही नियुक्त किया गया था। परिणामस्वरूप अल्पसंख्यक जातियाँ जार के निरंकुश शासन की विरोधी हो गयीं।
(4) कृषकों की दयनीय दशा-क्रान्ति से पूर्व रूस एक कृषि प्रधान देश था, परन्तु किसानों की दशा अत्यन्त शोचनीय थी। उन पर अनेक प्रतिबन्ध लगे हुए थे तथा अनेक करों ने उनकी स्थिति को पूर्णतया निर्धन बना दिया था। कृषकों की दयनीय दशा ने उन्हें क्रान्ति की प्रेरणा दी।
(5) श्रमिकों की दयनीय दशा-औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप रूस में अनेक उद्योगों को स्थापना हो गयी थी। विभिन्न उद्योगों में धन लगाकर पूँजीपति अधिक-से-अधिक धन कमाने की चेष्टा कर रहे थे। अधिक-से-अधिक धन कमाने की धुन में वे श्रमिकों का अधिक-से-अधिक शोषण भी करने का प्रयास करते थे। श्रमिकों को जो वेतन दिया जाता था वह बहुत कम होता था, अत: अपनी हीन दशा को ठीक करने के लिए जब उन्होंने 1900 ई. में श्रमिक संघ बनाने का प्रयास किया तो जार सरकार ने रोक दिया। परिणामस्वरूप श्रमिक-वर्ग जार विरोधी हो गया।
(6) प्रथम विश्व युद्ध में भाग लेना-रूस का जार साम्राज्यवादी प्रवृत्ति का था, अत: उसने रूस को प्रथम विश्व युद्ध में उलझा दिया था। युद्ध स्थल पर रूसी सेनाएँ बुरी तरह पराजित हुई तथा लगभग 6,00,000 सैनिक युद्ध में मारे गये। इस युद्ध ने रूस की आर्थिक दशा को भी शोचनीय बना दिया। सैनिक क्षति तथा आर्थिक संकट के कारण रूसी जनता रूसी सरकार के विरूद्ध भड़क उठी।

प्रश्न 7. बोल्शेविकों ने अक्टूबर क्रान्ति के फौरन बाद कौन-कौन से प्रमुख परिवर्तन किए ?
उत्तर-अक्टूबर क्रान्ति के बाद बोल्शेविकों ने निम्नलिखित प्रमुख परिवर्तन किए-
(1) बोल्शेविक निजी सम्पत्ति की व्यवस्था के पूरी तरह खिलाफ थे। ज्यादातर उद्योगों और बैंकों का नवम्बर 1917 में ही राष्ट्रीयकरण किया जा चुका था।
(2) बोल्शेविकों ने जमीन को सामाजिक सम्पत्ति घोषित कर दिया। किसानों को सामन्तों की जमीन पर कब्जा करने की खुली छूट दे दी गई।
(3) शहरों में बोल्शेविकों ने मकान मालिकों के लिए पर्याप्त हिस्सा छोड़कर उनके बड़े मकानों के छोटे-छोटे हिस्से कर दिए ताकि बेघर या जरूरतमंद लोगों को भी रहने की जगह दी जा सके।
(4) उन्होंने अभिजात्य वर्ग द्वारा पुरानी पदवियों के उपयोग पर रोक लगा दी। परिवर्तन को स्पष्ट रूप से सामने लाने के लिए सेना और सरकारी अफसरों की वर्दियाँ बदल दी गई। इसके लिए 1918 में एक परिधान प्रतियोगिता आयोजित की गई जिसमें सोवियत टोपी (बुदियोनोव्का) का चुनाव किया गया।
(5) बोल्शेविक पार्टी का नाम बदलकर रूसी कम्युनिस्ट पार्टी (बोल्शेविक) रख दिया गया। नवम्बर 1917 में बोल्योविकों ने संविधान सभा के लिए चुनाव कराए लेकिन इन चुनावों में उन्हें बहुमत नहीं मिल पाया।
(6) मार्च 1918 में अन्य राजनीतिक सहयोगियों की असहमति के बावजूद बोल्शेविक ने ब्रेस्ट लिटोक्क में जर्मनी से सन्धि कर ली।
(7) गुप्तचर पुलिस (जिसे पहले चेका और बाद में ओजीपीयू तथा एनकेबीडो का नाम दिया गया) बोल्योविकों की आलोचना करने वालों को दण्डित करती थी।

अध्याय 3
नात्सीवाद और हिटलर का उदय
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
. बहु-विकल्पीय प्रश्न
1. एडोल्फ हिटलर का जन्म कहाँ हुआ था ?
(i) जापान
(ii) बुल्गारिया
(iii) आस्ट्रिया
(iv) रोमानिया।

2. हिटलर के प्रचार मन्त्री थे-
(i) ग्योबल्स
(i) हिन्डेनबर्ग
(iii) नीम्योलर
(iv) शार्लट बेराट।

3. ‘मेन केम्फ’ के रचियता कौन था?
(1) पादरी नीम्योलर
(ii) एडोल्फ हिटलर
(iii) प्लेटो
(iv) हिलमथ।

4. हिटलर ने 1939 में किस राष्ट्र पर आक्रमण किया?
(i) रोमानिया
(ii) जापान
(iii) पोलैण्ड
(iv) फ्रांस।

5. अमेरिका के सैनिक अड्डे पर्ल हार्बर’ पर बमबारी की थी-
(I) फ्रांस
(ii) रूस
(ii) जर्मनी
(iv) जापान।

6. विशेषाधिकार अधिनियम (इनेबलिंग एक्ट) किस वर्ष पारित किया गया?
(i) 3 मार्च, 1933
(ii) 3 मार्च, 1938
(ii) 4 अप्रैल, 1940
(iv)4 अप्रैल, 1941.

7. जर्मनी ने मित्र राष्ट्रों के सामने कब समर्पण किया था ?
(i) अक्टूबर, 1942
(ii) अक्टूबर, 1943
(iii) मई, 1945
(iv) मई, 1944.

उत्तर-1. (iii), 2. (i), 3. (ii), 4.(iii), 5. (iv), 6. (1), 7.(iii).

रिक्त स्थानों की पूर्ति
1. जर्मनी के विषय में, ‘थर्ड राइख ऑफ ड्रीम्स’………ने लिखी।
2. नई व्यवस्था में जर्मन संसद अर्थात् …………के लिए जन-प्रतिनिधियों का चुनाव किया जाने लगा।
3. दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत ……….में हुई।
4. वर्साय की सन्धि….…..में हुई।
5, सन्……….नाजी पार्टी जर्मनी की बड़ी पार्टी बनकर उभरी।

उत्तर-1. शार्लट बेराट, 2. राइखस्टाग, 3. सितम्बर, 1939, 4. 28 जून, 1919, 5. 1932.

सत्य/असत्य
1. 1929 में आर्थिक महामंदी का दौर शुरू हुआ।
2. 1915 में वाइमर गणराज्य की स्थापना हुई।
3, 1934 में हिटलर जर्मनी का राष्ट्रपति बना।।
4. जर्मनी के सम्बन्ध में नात्सी दमनकारी महाध्वंस था।
5. नात्सी जर्मनी में सारी माताओं के साथ एक जैसा बर्ताव होता था।

उत्तर-1. सत्य, 2. असत्य, 3. सत्य,4. सत्य, 5. असत्य।

एक शब्द/वाक्य में उत्तर
1. पहला विश्व युद्ध कब शुरू हुआ ?
2. वर्साय की सन्धि कब हुई थी?
3. दूसरे विश्व की युद्ध की शुरूआत कब हुई ?
4. नात्सियों ने ‘यूथनेजिया’ शब्द का प्रयोग किसके लिये किया था ?
5. ‘मेरे राज्य की सबसे महत्वपूर्ण नागरिक माँ है।” यह कब और किसने कहा ?
6. नाजियों द्वारा गैस चैम्बरों को क्या नाम दिया गया था ?

उत्तर-1. 1 अगस्त, 1914, 2. 28 जून, 1919,
3. 1 सितम्बर, 1939, 4. विकलांगों के लिए,
5. 1933 में हिटलर ने, 6. संक्रमण मुक्ति क्षेत्र ।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. मित्र राष्ट्रों का नेतृत्व करने वाले कौन से राष्ट्र थे ?
उत्तर-मित्र राष्ट्रों का नेतृत्व शुरू में ब्रिटेन और फ्रांस के हाथों में था। 1941 में सोवियत संघ और अमेरिका भी इस गठबन्धन में शामिल हो गए।

प्रश्न 2. नात्सी शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?
उत्तर-नात्सी शब्द जर्मन भाषा के शब्द ‘नात्सियोणाल’ के प्रारम्भिक अक्षरों को लेकर बनाया गया है। ‘नात्सियोणाल’ शब्द हिटलर की पार्टी के नाम का पहला शब्द था, इसलिए इस पार्टी के लोगों को नात्सी कहा जाता था।

प्रश्न 3. प्रोपेगैंडा का क्या अर्थ है?
उत्तर-जनमत को प्रभावित करने के लिए किया जाने वाला एक खास तरह का प्रचार ( पोस्टर, फिल्मों और भाषणों आदि के माध्यम से)।

प्रश्न 4. ‘कंसन्ट्रेशन कैम्प क्या थे?
उत्तर-ऐसे स्थान जहाँ बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के लोगों को कैद रखा जाता था। ये कंसन्ट्रेशन कैम्प बिजली का करंट दौड़ते कँटीले तारों से घिरे रहते थे।

प्रश्न 5. ‘नाइट ऑफ ब्रोकन ग्लास’ के नाम से किस घटना को याद किया जाता है ?
उत्तर-नवम्बर 1938 के एक जनसंहार में यहूदियों की सम्पत्तियों को तहस-नहस किया गया, लूटा गया, उनके घरों पर हमले हुए, यहूदी प्रार्थनाघर जला दिए गए और उन्हें गिरफ्तार किया गया। इस घटना को ‘नाइट ऑफ ब्रोकन ग्लास’ के नाम से याद किया जाता है।

प्रश्न 6, नॉर्डिक जर्मन आर्य कौन थे?
उत्तर-आर्य बताये जाने वालों की एक शाखा। ये लोग उत्तरी यूरोपीय देशों में रहते थे और जर्मन या मिलते-जुलते मूल के लोग थे।

प्रश्न 7. युंगफोक से अर्थ बताइए।
उत्तर-युंगफोक 14 साल से कम उम्र वाले बच्चों के लिए नाजी युवा संगठन ।

प्रश्न 8. ‘जिप्सी’ व ‘घेटो’ का अर्थ बताइए।
उत्तर-जिप्सी-‘जिप्सी’ के नाम से श्रेणीबद्ध किए गए समूहों की अपनी सामुदायिक पहचान थी। सित्ती और रोमा ऐसे ही दो समुदाय थे। घेटो-किसी समुदाय को औरों से अलग-थलग करके रखना।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. नाजीवाद के प्रमुख उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-नाजीवाद के उद्देश्य-नाजीवाद आन्दोलन का सूत्रपात हिटलर के नेतृत्व में हुआ जिसके प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित थे-
(1) वर्साय की सन्धि के अपमान का बदला लेना।
(2) समाजवाद का विरोध करना।
(3) जर्मनी के खोये हुए उपनिवेश पुनः प्राप्त करना।
(4) सैन्य शक्ति का विकास करना तथा विरोधियों को युद्ध एवं हिंसा से कुचल देना।
(5) जर्मनी को विश्व की महान शक्ति के रूप में विकसित करना।
(6) यहूदियों को जर्मनी से निकालना।

प्रश्न 2. जर्मनी पर आर्थिक महामंदी के प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-जर्मनी पर आर्थिक महामंदी का बुरा प्रभाव पड़ा जैसा कि निम्न तथ्यों से स्पष्ट है-
(1) 1932 में जर्मनी का औद्योगिक उत्पादन 1929 के मुकाबले केवल 40 प्रतिशत रह गया था। बेरोजगारों की संख्या 60 लाख तक जा पहुंची।
(2) बेरोजगार नौजवान या तो ताश खेलते पाए जाते थे, नुक्कड़ों पर झुण्ड लगाए रहते थे या फिर रोजगार दफ्तरों के बाहर लम्बी-लम्बी कतार में खड़े पाए जाते थे।
(3) रोजगार खत्म हो रहे थे, युवा वर्ग आपराधिक गतिविधिों में लिप्त होता जा रहा था।
(4) आर्थिक संकट ने लोगों में गहरी बेचैनी और डर पैदा कर दिया था। जैसे-जैसे मुदा का अवमूल्यन होता जा रहा था; मध्यवर्ग, खासतौर से वेतनभोगी कर्मचारी और पेंशनधारियों की बचत भी सिकुड़ती जा रही
(5) किसानों का एक बहुत बड़ा वर्ग कृषि उत्पादों की कीमतों में बेहिसाब गिरावट की वजह से परेशान था। युवाओं को अपना भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा था।

प्रश्न 3. हिटलर की आर्थिक नीति क्या थी? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-हिटलर की आर्थिक नीति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित धी-
(1) मई 1934 ई. में एक राजकीय नियम बनाकर हड़तालों पर रोक लगा दी।
(2) उद्योग-धन्धों को स्वावलम्बी बनाने का प्रयास किया।
(3) खेती को राज्य के नियन्त्रण में कर दिया गया।
(4) श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए श्रमिक संस्थाएँ स्थापित की।
(3) लेबर फ्रण्ट खोलकर पूँजी और श्रम का सामंजस्य स्थापित किया।
(6) अस्त्र-शस्त्र, समुद्री जहाज, वायुयान तथा वस्त्र उद्योगों के निर्माण पर विशेष बल दिया गया।

प्रश्न 4. हिटलर की विदेश नीति के मुख्य उद्देश्य क्या थे?
उत्तर-(1) हिटलर की विदेश नीति का मुख्य उद्देश्य जर्मनी को शक्तिशाली बनाना था।
(2) उसने वर्साय को सन्धि का उल्लंघन किया।
(3) उसने इटली, फ्रांस, इंग्लैण्ड, रूस, पोलण्ड तथा जापान के साथ सन्धियों को।
(4) उसने आस्ट्रिया एवं चेकोस्लोवाकिया पर आक्रमण करके उन पर अधिकार कर लिया।
(5) हिटलर ने 1 सितम्बर, 1939 को पोलैण्ड पर आक्रमण कर दिया जो द्वितीय विश्व युद्ध का कारण बना।

प्रश्न 5 मित्र राष्ट्रों के साथ वर्साय की शान्ति-सन्धि जर्मनी के लिए कठोर और शर्मनाक थी।” इस कवन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-मित्र राष्ट्रों के साथ वसाय में हुई शान्ति-सन्धि जर्मनी को जनता के लिए बहुत कठोर और अपमानजनक थी। जैसा कि निम्न तथ्यों से सष्ट है-
(1) इस सन्धि की वजह से जर्मनी को अपने सारे उपनिवेश, तकरीबन 10 प्रतिशत आबादी, 13 प्रतिशत भू-भाग, 75 प्रतिशत लौह भण्डार और 26 प्रतिशत कोयला भण्डार फ्रांस, पोलैंण्ड, डेनमार्क और लिथुआनिया के हवाले करने पड़े।
(2) जर्मनी की रही-सही ताकत खत्म करने के लिए मित्र राष्ट्रों ने उसकी सेना भंग कर दी।
(3) युद्ध अपराधबोध अनुच्छेद (War Guilt Clause) के तहत युद्ध के कारण हुई सारी तबाही के लिए जर्मनी को जिम्मेदार ठहराया गया। इसके एवज में उस पर छः अरब पौंड का जुर्माना लगाया गया।
(4) खनिज संसाधनों वाले राईनलैण्ड पर भी बीस के दशक में ज्यादातर मित्र राष्ट्रों का ही कब्जा रहा।

प्रश्न 6. उग्र-राष्ट्रवाद ने नाजीवाद को किस तरह बढ़ावा दिया ? समझाइए।
उत्तर-उन-राष्ट्रवाद की भावना ने नाजीवाद को अनेक प्रकार से पोत्साहित किया था। उग-राष्ट्रीयता को भावना ने ही नाजीवाद में एकता तथा सहयोग की भावना का अपूर्व संचार किया था। अन्य शब्दों में, उग-राष्ट्रवाद ने नाजीवाद के सभी विखण्डित तथा असमान तत्वों को एक-दूसरे से जोड़कर एकता की भावना उत्पन्न की। जर्मनी की जनता तथा नाजीदल में राष्ट्र-प्रेम तथा एकता की भावना उत्पन्न करने के लिए हिदलर ने कहा था, “जर्मनी को छोड़कर तुम्हारा कोई अन्य ईश्वर नहीं।” उग्र-राष्ट्रीयता की भावना से प्रेरित होकर ही वाय की सन्धि की अनेक धाराओं का उल्लंघन हिटलर ने किया तथा जर्मनी को अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित कर
दिया था।

प्रश्न 7. हिटलर और उसकी नाजी पार्टी किस प्रकार द्वितीय महायुद्ध के लिए जिम्मेदार थी?
अथवा
विश्व राजनीति में नात्सी पार्टी की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-वर्साय की सन्धि के बाद जर्मनी में नाजी दल का उदय हुआ। 1934 ई. में इस दल का प्रभाव इतना अधिक बढ़ गया कि हिटलर जर्मनी का तानाशाह बन बैठा । शक्ति के हाथ में आते ही उसने वर्साय की सन्धि की धज्जियाँ उड़ा दीं। उसने साम्राज्यवादी दृष्टिकोण को अपनाकर आस्ट्रिया, सुदेतेनलैण्ड और चेकोस्लोवाकिया पर अधिकार जमा लिया। नाजियों ने बड़े पैमाने पर पुस्तकें जलाने का काम शुरू कर दिया। जर्मनी और दूसरे राष्ट्रों के श्रेष्ठतम लेखकों की कृतियाँ जला दी गयीं। नाजीवाद की विजय जर्मनी जनता के लिए ही नहीं बल्कि विश्व के अनेक दूसरे भागों के लिए भी विनाशकारी सिद्ध हुई। उसी ने दूसरे विश्व युद्ध का आरम्भ किया।
प्रश्न 8. द्वितीय विश्व युद्ध का तात्कालिक कारण क्या था ?
अथवा
द्वितीय विश्व युद्ध का आरम्भ किस घटना से माना जाता है ?
उत्तर-द्वितीय विश्व युद्ध का तात्कालिक कारण-हिटलर द्वारा पोलैण्ड पर आक्रमण द्वितीय विश्व युद्ध का तात्कालिक कारण था। हिटलर ने मांग की कि एक देन्जिग नगर जर्मनी को लौटा दिया जाय, पर ब्रिटेन ने उसकी माँगें मानने से इन्कार कर दिया। सितम्बर 1939 में जर्मनी सेनाएँ पोलैण्ड में घुस गयीं। 3 सितम्बर को ब्रिटेन और फ्रांस ने जर्मनी के विरूद्ध युद्ध की घोषणा की। इस तरह पोलैण्ड पर आक्रमण के साथ द्वितीय
विश्व युद्ध आरम्भ हो गया।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. वाइमर गणराज्य के सामने क्या समस्याएँ थी?
उत्तर-साम्राज्यवादी जर्मनी की पराजय और सम्राट के पद त्याग ने वहाँ की संसदीय पार्टियों को जर्मन राजनीतिक व्यवस्था को नए साँचे में ढालने का अच्छा मौका उपलब्ध कराया। इसी सिलसिले में वाइमर में एक राष्ट्रीय सभा की बैठक बुलाई गई और संघीय आधार पर एक लोकतान्त्रिक संविधान पारित किया गया। नई व्यवस्था में जर्मन संसद यानी राइखस्टाग के लिए जनप्रतिनिधियों का चुनाव किया जाने लगा। प्रतिनिधियों के निर्वाचन के लिए औरतों सहित सभी वयस्क नागरिकों को समान और सार्वभौमिक मताधिकार प्रदान किया गया।
लेकिन यह नया गणराज्य खुद जर्मनी के ही बहुत सारे लोगों को रास नहीं आ रहा था। इसकी एक वजह तो यही थी कि पहले विश्व युद्ध में जर्मनी की पराजय के बाद विजयी देशों ने उस पर बहुत कठोर शर्ते थोप दी थीं। मित्र राष्ट्रों के साथ वसीय में हुई शान्ति-सन्धि जर्मनी की जनता के लिए बहुत कठोर और अपमानजनक थी। बहुत सारे जर्मनों ने न केवल इस हार के लिए बल्कि वर्साय में हुए इस अपमान के लिए
भी वाइमर गणराज्य को जिम्मेदार ठहराया। राजनीतिक स्तर पर वाइमर गणराज्य एक नाजुक दौर से गुजर रहा था, जैसा निम्न तथ्यों से स्पष्ट है-
(1) वाइमर संविधान में कुछ ऐसी कमियाँ थीं जिनकी वजह से गणराज्य कभी भी अस्थिरता और तानाशाही का शिकार बन सकता था। इनमें से एक कमी आनुपातिक प्रतिनिधित्व से सम्बन्धित थी। इस प्रावधान की वजह से किसी एक पार्टी को बहुमत मिलना लगभग नामुमकिन बन गया था। हर बार गठबन्धन सरकार सत्ता में आ रही थी।
(2) दूसरी समस्या अनुच्छेद 48 की वजह से थी जिसमें राष्ट्रपति को आपातकाल लागू करने, नागरिक अधिकार रद्द करने और अध्यादेशों के जरिए शासन चलाने का अधिकार दिया गया था।

(3)अपने छोटे जीवन काल में वाइमर गणराज्य का शासन 20 मन्त्रिमण्डलों के हार्थों में रहा और उनकी औसत अवधि उप दिन से ज्यादा नहीं रही। इस दौरान अनुच्छेद 48 का भी जमकर प्रयोग किया गया। उपयुक्त प्रयासों के बावजूद संकट दूर नहीं हो पाया। लोकतान्त्रिक संसदीय व्यवस्था में लोगों का
विश्वास खत्म होने लगा क्योंकि वह उनके लिए कोई समाधान नहीं खोज पा रही थी।
प्रयन 2.इस बारे में चर्चा कीजिए कि 1930 तक आते-आते जर्मनी में नात्सीवाद को लोकप्रियता कयों मिलने लगी।
अथवा
जर्मनी में नात्सीवाद का उदय किन कारणों से हुआ?
उत्तर-जर्मनी में हिटलर तथा नात्सीवाद के उत्थान के निम्नलिखित कारण थे-
(1) वर्याय की अपमानजनक सन्धि-अधिकांश इतिहासकार वर्साय की अपमानजनक सन्धि को नाजीवाद के उदय का कारण मानते हैं। इस सन्धि ने जर्मनी को एक दुर्बल राष्ट्र बना दिया था। मित्र राष्ट्रों ने स्वार्थी तथा विजेता होने के कारण जर्मन साम्राज्य को परस्पर बाँट लिया था। उसके कोयला एवं लोहा प्रधान क्षेत्र उससे अन लिये गये थे तथा उसका पूर्णतया निशस्त्रीकरण कर दिया गया था। इन सब स्थितियों से जर्मनी
की जनता को गहरा आघात लगा। हिटलर ने वर्साय सन्धि को अपमानजनक बताकर घोषणा की थी, “हमें वाय सन्धि को फाड़कर रद्दी की टोकरी में फेंकना है, जर्मन जनता का संगठन करके विशाल जर्मन साम्राज्य को पुनःस्थापना करती है तथा खोये हुए उपनिवेशों को प्राप्त करना है।” हिटलर की इस घोषणा ने जर्मनी की जनता को विशेष रूप से प्रभावित किया तथा उसके अनुयायियों की संख्या तीव्रता से बढ़ी। परिणामस्वरूप नाजीवाद का जर्मनी में तीव्रता से विकास हुआ।
(2) आर्थिक संकट-प्रथम विश्व युद्ध के प्रभाव से जर्मनी का आर्थिक दशा अत्यन्त शोचनीय हो गयी थी। कारखानों के बन्द हो जाने से उत्पादन कम हो गया तथा असंख्य मजदूर बेकार हो गये थे। मुद्रा का मूल्य भी गिर गया था। जर्मनी की जनता अपूर्व आर्थिक संकट से तंग आ चुकी थी ऐसी दशा का लाभ उठाकर हिटलर ने जनसाधारम की आर्थिक दशा सुधारने का आश्वासन देकर जनता को अपनी ओर आकर्षित किया जिससे नाजीवाद ने जर्मनी में अपनी गहरी जड़ें जमा ली।
(3) साम्बवाद का विरोध-जर्मनी की जनता साम्यवाद की भी विरोधी थी। मुख्यतया जमींदार, उद्योगपति तथा बनवान साम्बवाद का विशेष रूप से विरोध करते थे। हिटलर ने इस स्थिति का लाभ उठाकर स्वयं ने भी साम्यवाद का व्यापक विरोध किया।
(4) बहूदी विरोधी भावना-बहुसंख्या में बहूदी जर्मनी में वास करते थे। जर्मनी की अधिकांश जनता का विचार था कि प्रथम विश्व युद्ध में उनके देश की पराजय का कारण यहूदियों की गतिविधियाँ थीं। इसके अतिरिक्त जर्मनी के विशाल उद्योगों पर भी यहूदियों ने अधिकार कर रखा था, अत: सर्वसाधारण जर्मन जनता उ वृना की दृष्टि से देखती थी। हिटलर जर्मन जनता की इस यहूदी विरोधी भावना से परिचित था, अत: उसने बहूदियों के विरुद्ध तीव्रता से प्रचार कर जर्मन जनता का पर्याप्त सहयोग प्राप्त किया।
(5) प्रजातन्त्र में अविश्वास-जर्मन की जनता स्वभाव से प्रजातन्त्र तथा संसदीय प्रणाली की विरोधी थी। संसद में विभिन्न दलों के होने से संघर्ष का वातावरण रहता था जिससे प्रजातन्त्र को हीन दृष्टि से देखने लगी दी जर्मन जनता की प्रजातन्त्र विरोधी भावना का हिटलर ने स्वागत किया तथा उससे लाभ भी उठाया।
(6) नाजीदल का सैनिक संगठन-जर्मनी के विभिन्न दलों में नाजीदल का संगठन अपनी अलग विशेषता लिए हुए था। हिटलर ने इस दल का संगठन सैनिक आधार पर किया था। इस दल के सदस्य आवश्यकता पड़ने पर हिंसा का भी प्रयोग करते थे। नाजीदल के इन्हीं सैनिकों ने हिटलर को जर्मनी की सत्ता प्राप्त कराने में अपूर्व सहयोग दिया था।

प्रश्न 3. नात्यी सोच के खास पहलू कौन-से थे?
उतर-नात्सी सोच के बास पहलू अलिखित थे-
(1) नाजीवादी उदारवाद, समाजवाद और साम्यवाद को जड़ से उखाड़ना चाहते थे।
(2) यह जर्मनी की सैन्य शक्ति को बढ़ाना चाहते थे और उसे संसार की महान् शक्ति के रूप में देखना चाहते थे।
(3) नाजीवादी सभी प्रकार की संसदीय संस्थाओं को समाप्त करने के पक्ष में थे और एक महान् नेता के नेतृत्व की सराहना करते थे। इसी कारण हिटलर ने तानाशाही अधिकार प्राप्त किये।
(4) यह शक्ति के प्रयोग में विश्वास करते थे।
(5) यह यहूदी लोगों को बिल्कुल मिटा देने के पक्ष में थे क्योंकि यह यहूदियों को जर्मनी में आर्थिक संकट का कारण मानते थे।
(6) नाजीवाद ने न केवल हिंसा का खुलकर समर्थन किया वरन् उसे व्यक्ति का सर्वोच्च कर्त्तव्य बताया।
(7) राज्य सबसे ऊपर है। नाजीवाद के अनुसार, “लोग राज्य के लिए हैं न कि राज्य लोगों के लिए।”
(8) नाजियों की विचारधारा का एक महत्वपूर्ण पहलू लेबेन्स्त्राउम या जीवन-परिधि की भू-राजनीतिक अवधारणा से सम्बन्धित था। उनका मानना था कि अपने लोगों को बसाने के लिए ज्यादा से ज्यादा इलाकों पर कब्जा करना जरूरी है।
(9) नात्सी जर्मनी में प्रत्येक बच्चे को बार-बार यह बताया जाता था कि औरतें बुनियादी तौर पर मर्दो से भिन्न होती हैं। उन्हें समझाया जाता था कि औरत-मर्द के लिए समान अधिकारों का संघर्ष गलत है।

प्रश्न 4. नात्सियों का प्रोपेगन्डा यहूदियों के खिलाफ नफरत पैदा करने में इतना असरदार कैसे रहा?
उत्तर-‘प्रोपेगन्डा’ जनमत को प्रभावित करने के लिए किया जाने वाला एक खास तरह का प्रचार जोकि (पोस्टरों, फिल्मों और भाषणों आदि के माध्यम से)। यहूदियों के खिलाफ नफरत पैदा करने में निम्न प्रकार असरदार रहा-
(1) यहूदियों के प्रति नाजियों की दुश्मनी का एक आधार यहूदियों के प्रति ईसाई धर्म में मौजूद परम्परागत घृणा भी थी। ईसाइयों का आरोप था कि ईसा मसीह को यहूदियों ने ही मारा था।
(2) सन् 1933 से 1938 तक नात्सियों ने यहूदियों को तरह-तरह से आतंकित किया, उन्हें दरिद्र कर आजीविका के साधनों से हीन कर दिया और उन्हें शेष समाज से अलग-थलग कर डाला।
(3) 1939-45 के दूसरे दौर में यहूदियों को कुछ खास इलाकों में एकत्र करने और अंतत: पोलैण्ड में बनाए गए गैस चैम्बरों में ले जाकर मार देने की रणनीति अपनाई गई।
(4) शासन के लिए समर्थन हासिल करने और नाजी विश्व दृष्टिकोण को फैलाने के लिए मीडिया का बहुत सोच-समझ कर इस्तेमाल किया गया। नात्सी विचारों को फैलाने के लिए तस्वीरों, फिल्मों, रेडियो, पोस्टरों आकर्षक नारों और इश्तहारी पर्यों का खूब सहारा लिया जाता था।
(5) प्रचार फिल्मों में यहूदियों के प्रति नफरत फैलाने पर जोर दिया जाता था। ‘द एटर्नल ज्यू’ (अक्षय यहूदी) इस सूची की सबसे कुख्यात फिल्म थी। परम्पराप्रिय यहूदियों को खास तरह की छवियों में पेश किया जाता था। उन्हें दाढ़ी बढ़ाए और चोगा पहने दिखाया जाता था।
(6) उन्हें केंचुआ, चूहा और कीड़ा जैसे शब्दों से सम्बन्धित किया जाता था। उनकी चाल-ढाल की तुलना कुतरने वाले छछंदरी जीवों से की जाती थी। नाजीवाद ने लोगों के दिलोदिमाग पर गहरा असर डाला, उनकी भावनाओं को भड़का कर उनके गुस्से और नफरत को ‘अवांछितों’ पर केन्द्रित कर दिया।

प्रश्न 5. नात्सियों ने जनता पर पूरा नियन्त्रण हासिल करने के लिए कौन-कौन से तरीके अपनाए?
उत्तर-नाजियों ने जनता पर नियन्त्रण हासिल करने के लिए अग्र तरीके अपनाए-
(1) सत्ता हासिल करने के बाद हिटलर ने लोकतान्त्रिक शासन की संरचना और संस्थानों को भग करना शुरू कर दिया।
(2)28 फरवरी, 1933 को जारी किए गए अग्नि अध्यादेश (फायर डिक्री) के जरिए अभिव्यक्ति, एवं सभा करने की आजादी जैसे नागरिक अधिकारों को अनिश्चितकाल के लिए निलम्बित कर दिया गया।
(3) हिटलर ने अपने कट्टर शत्रु कम्युनिस्टों पर निशाना साधा। ज्यादातर कम्युनिस्टों को रातों-रात प्रय कन्स्ट्रेशन कैंपों में बन्द कर दिया गया। कम्युनिस्टों का बर्बर दमन किया गया।
(4) 3 मार्च 1933 को प्रसिद्ध विशेषाधिकार अधिनियम (इनेबलिंग एक्ट) पारित किया गया। इस कानून के द्वारा जर्मनी में बाकायदा तानाशाही स्थापित कर दी गई। इस कानून ने हिटलर को संसद को हाशिए पर धकेलने और केवल अध्यादेशों के जरिए शासन चलाने का निरंकुश अधिकार प्रदान कर दिया।
(5) नात्सी पार्टी और उससे जुड़े संगठनों के अलावा सभी राजनीतिक पार्टियों और टेड यूनियनों पर पाबन्दी लगा दी गई। अर्थव्यवस्था, मीडिया, सेना और न्यायपालिका पर राज्य का पूरा नियन्त्रण स्थापित हो गया।
(6) पूरे समाज को नात्सियों के हिसाब से नियन्त्रित और व्यवस्थित करने के लिए विशेष निगरानी और सुरक्षा दस्ते गठित किए गए। पहले से मौजूद हरी वर्दीधारी पुलिस और स्टॉर्म (एस. ए.) के अलावा गेस्तापो (गुप्तचर राज्य पुलिस), एस. एस. (अपराध नियन्त्रण पुलिस) और सुरक्षा सेवा (एस. डी.) का भी गठन किया गया। इन नवगठित दस्तों को बेहिसाब असंवैधानिक अधिकार दिए गए और इन्हीं की वजह से नात्सी राज्य को एक खूखार आपराधिक राज्य की छवि प्राप्त हुई।

प्रश्न 6. हिटलर की विदेश नीति की विवेचना कीजिए।
अथवा
“हिटलर की विदेश नीति द्वितीय विश्व युद्ध का कारण थी। ?” उपर्युक्त कथन का सत्यापन कीजिए।
उत्तर-हिटलर की विदेश नीति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) हिटलर की विदेश नीति के उद्देश्य-हिटलर का प्रथम तथा प्रमुख उद्देश्य वर्साय सन्धि को भंग करना था। हिटलर इस सन्धि को जर्मनी के लिए अपमानजनक समझता था। हिटलर की विदेश नीति का अन्य उद्देश्य वृहत्तर जर्मनी में आत्मनिर्णय के सिद्धान्त के अनुसार जर्मनवासियों का एकीकरण करना था। हिटलर को विदेश नीति का अन्तिम उद्देश्य था, जर्मनी को विश्व का एक सर्वोच्च शक्ति राष्ट्र बनाने के लिए अधिक-से-अधिक राज्यों को अपने अधिकार में करना।
(2) राष्ट्रसंघ से अलग होना-हिटलर ने अपनी विदेश नीति को पूर्णतया स्वतन्त्र बनाये रखने के लिए 14 अक्टूबर, 1933 ई. में निशस्त्रीकरण सम्मेलन का बहिष्कार किया तथा राष्ट्रसंघ से जर्मनी को भी पृथक् कर दिया।
(3) वर्साय सन्धि को अवैध घोषित करना-राष्ट्रसंघ से जर्मनी को पृथक् करने के साथ ही हिटलर ने वर्साय सन्धि को भी रद्द घोषित कर दिया। वर्साय सन्धि से मुक्त होने का प्रमुख उद्देश्य था बिना किसी बाधा के साम्राज्यवादी नीति का पालन करना।
(4) चार महाशक्तियों के साथ समझौता-हिटलर ने अपने शान्ति का अग्रदूत दिखाने के लिए मुसोलिनी के प्रस्ताव पर 1933 ई. में इटली, फ्रांस तथा इंग्लैण्ड के साथ एक समझौता किया। परन्तु यह समझौता नाममात्र का ही सिद्ध हुआ, क्योंकि यह कभी लागू नहीं हुआ।
(5) रोम-बर्लिन-टोकियो धुरी की स्थापना-21 अक्टूबर, 1936 ई. में हिटलर ने इटली के साथ सन्धि कर ली थी जिसे ‘रोम-बर्लिन धुरी’ कहा जाता है। इसके पश्चात् उसने जापान से रूस के विरुद्ध 25 नवम्बर, 1936 ई. में सन्धि कर ली जो ‘रोम-बर्लिन-टोकियो धुरी’ के नाम से प्रसिद्ध है। इस प्रकार यूरोप दो गुटों में विभाजित हो गया-फ्रांस, इंग्लैण्ड एवं रूस तथा जर्मनी, इटली व जापान।
(6) आस्ट्रिया पर अधिकार-11 मार्च, 1936 ई. को हिटलर की सेनाओं ने आस्ट्रिया में प्रवेश कर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। इंग्लैण्ड तथा फ्रांस ने हिटलर की इस कार्यवाही का कोई भी विरोध नहीं किया था।
(7) चेकोस्लोवाकिया पर अधिकार (म्यूनिख समझौता)-आस्ट्रिया पर अधिकार कर लेने के पश्चात् हिटलर ने चेकोस्लोवाकिया पर अधिकार करने का प्रयास किया जिससे युद्ध का वातावरण उत्पन्न हो गया। इंग्लैण्ड ने चेकोस्लोवाकिया तथा जर्मनी के मध्य हस्तक्षेप करके प्यूनिख समझौता कराया जिससे जर्मनी का चेकोस्लोवाकिया पर अधिकार हो गया।
(8) मेमल पर अधिकार तथा रूस से सन्धि-इसी काल में हिटलर ने मेमल पर भी अधिकार स्थापित कर लिया। मेमल एक बन्दरगाह था। इसके पश्चात् 1939 ई. में हिटलर ने रूस से अनाक्रामक समझौता किया। इन समझौते द्वारा दोनों देशों ने मितवत् रहने का निश्चय किया।
(9) पॉलैण्ड पर आक्रमण-रूस से सन्धि करने से हिटलर में साहस तथा उत्साह की भावना का विकास हो गया था, अत: उसने सितम्बर 1939 ई. में पॉलैण्ड पर आक्रमण कर द्वितीय विश्व युद्ध को प्रारम्भ किया। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि, “हिटलर की विदेश नीति द्वितीय विश्व युद्ध का कारण थी।”

प्रश्न 7. नाजी स्कूलों में उठाए गए कदमों की व्याख्या कीजिए।
अथवा
नात्सीवाद के दौरान स्कूली शिक्षा’ पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर-हिटलर का मानना था कि एक शक्तिशाली नात्सी समाज के लिए बच्चों को नात्सी विचारधारा की घुट्टी पिलाना बहुत जरूरी है। इसके लिए स्कूल के भीतर और बाहर, दोनों जगह बच्चों पर पूरा नियन्त्रण आवश्यक था। इसके लिए निम्न कदम उठाए गए-
(1) तमाम स्कूलों में सफाई और शुद्धीकरण की मुहिम चलाई गई। यहूदी या राजनीतिक रूप से अविश्वसनीय’ दिखाई देने वाले शिक्षकों को पहले नौकरी से हटाया गया और बाद में मौत के घाट उतार दिया गया।
(2) बच्चों को अलग-अलग बिठाया जाने लगा। जर्मन और यहूदी बच्चे एक साथ न तो बैठ सकते थे और न खेल सकते थे।
(3)’अच्छे जर्मन’ बच्चों को नात्सी शिक्षा प्रक्रिया से गुजरना पड़ता था। यह विचारधारात्मक प्रशिक्षण की एक लम्बी प्रक्रिया थी।
(4) स्कूली पाठ्यपुस्तकों को नए सिरे से लिखा गया। नस्ल के बारे में प्रचारित नात्सी विचारों को सही ठहराने के लिए नस्ल विज्ञान के नाम से एक नया विषय पाठ्यक्रम में शामिल किया गया।
(5) बच्चों को सिखाया गया है कि वफादार व आज्ञाकारी बनें, यहूदियों से नफरत और हिटलर की पूजा करें।
(6) खेल-कूद के द्वारा भी बच्चों में हिंसा और आक्रामकता की भावना पैदा की जाती थी। हिटलर का मानना था कि मुक्केबाजी का प्रशिक्षण बच्चों को फौलादी दिल वाला, ताकतवर और मर्दाना बना सकता है।

प्रश्न 8. नात्सी समाज में औरतों की क्या भूमिका थी? फ्रांसीसी क्रान्ति और नात्सी शासन में
औरतों की भूमिका के बीच क्या फर्क था ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-नात्सी समाज में औरतों की भूमिका-नात्सी समाज में प्रत्येक बच्चे को बार-बार यह बताया जाता था कि औरतें बुनियादी तौर पर मर्दो से भिन्न होती हैं। उन्हें समझाया जाता था कि औरत-मर्द के लिए समान अधिकारों का संघर्ष गलत है। यह समाज को नष्ट कर देगा। इसी आधार पर लड़कों को आक्रामक, मर्दाना और पत्थर दिल होना सिखाया जाता था जबकि लड़कियों को यह कहा जाता था कि उनका फर्ज एक
अच्छी माँ बनना और शुद्ध आर्य रक्त वाले बच्चों को जन्म देना और उनका पालन-पोषण करना है। नस्ल की शुद्धता बनाए रखने, यहूदियों से दूर रहने, घर संभालने और बच्चों को नात्सी मूल्य-मान्यताओं की शिक्षा देने का दायित्व उन्हें ही सौंपा गया था। आर्य संस्कृति और नस्ल की ध्वजवाहक वही थीं। फ्रांसीसी क्रान्ति में औरतों की भूमिका-महिलाएं शुरू से ही फ्रांसीसी समाज में इतने अहम परिवर्तन लाने वाली गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल थीं। उन्हें उम्मीद थी कि उनकी भागीदारी क्रान्तिकारी सरकार को उनका जीवन सुधारने हेतु ठोस कदम उठाने के लिए प्रेरित करेगी। तीसरे एस्टेट की अधिकांश महिलाएं जीविका निर्वाह के लिए कार्य करती थीं। फ्रांस के विभिन्न नगरों में महिलाओं के लगभग 60 क्लब अस्तित्व में आए।
नात्सी शासन में औरतों की भूमिका-इसके विपरीत नात्सी शासन में औरतों को अपनी मर्जी से विवाह करने का अधिकार नहीं था। निर्धारित आचार संहिता का उल्लंघन करने वाली औरतों की सार्वजनिक रूप से निंदा की जाती थी और उन्हें कड़ा दण्ड दिया जाता था। आपराधिक कृत्य के लिए बहुत सारी औरतों को न केवल जेल की सजा दी गई बल्कि उनसे तमाम नागरिक सम्मान और उनके पति व परिवार भी
छीन लिए गए।

द्वितीय भाष समकालीन भारत-1

अध्याय 6
भारत-आकार और स्थिति
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
बहू-विकल्पीय प्रश्न

1. विश्व के क्षेत्रफल का कितना भू-भाग भारत में हैं।
(i) 1•2 प्रतिशत
(ii) 1•8 प्रतिशत
(iii) 2•4 प्रतिशत
(iv) 3•4 प्रतिशत।

2. भारत में कितने राज्य हैं?
(i) 25
(ii) 28
(iii) 22
(iv) 26.

3. देश का सबसे बड़ा केन्द्र शासित क्षेत्र है-
(i)दादरा और नागर हवेली
(ii) पाण्डिचेरी
(ii) लक्षद्वीप
(iv) अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह।

4. कर्क रेखा किस राज्य से नहीं गुजरती है ?
(i) राजस्थान
(ii)ओडिशा
(iii) छत्तीसगढ़
(iv) त्रिपुरा।

5. भारत का सबसे पूर्वी देशान्त कौन-सा है ?
(i) 97°25′ पू.
(ii) 68°7 पू.
(iii) 77°6′ पू.
(iv) 82°32′ पू.।

6. उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और सिक्किम की सीमाएँ किस देश को छूती हैं?
(i) चीन
(ii) भूटान
(iii) नेपाल
(iv) म्यांमार।

7. ग्रीष्मावकाश में आप यदि कवरत्ती जाना चाहते हैं, तो किस केन्द्र शासित क्षेत्र में जाएंगे।
(i) पाण्डिचेरी
(ii)लक्षद्वीप
(iii) अण्डमान और निकोबार
(iv) दीव और दमन।

8. मेरे मित्र एक ऐसे देश के निवासी हैं जिस देश की सीमा भारत के साथ नहीं लगती है। आप बताइए वह कौन सा देश है?
(i) भूटान
(ii) ताजिकिस्तान
(iii) बांग्लादेश
(iv) नेपाल।

उत्तर-1. (iii), 2. (ii). 3. (iv), 4. (11), 5. (1),
6. (iii).7.(ii), 8. (11).

सत्य/असत्य

1. भारतीय भूखण्ड एशिया महाद्वीप के पूर्व और पश्चिम के मध्य स्थित है।
2. क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा राज्य मध्य प्रदेश है।
3. दक्षिण में समुद्र पार हमारे पड़ोसी दो द्वीप समूह राष्ट्र श्रीलंका और मालदीव हैं।
4. भारत में पूर्व-पश्चिम का विस्तार उत्तर-दक्षिण के विस्तार की अपेक्षा अधिक प्रतीत होता है।
5. अक्षांश का प्रभाव दक्षिण से उत्तर की ओर, दिन रात की अवधि पर पड़ता है।

उत्तर-1. सत्य, 2. असत्य, 3. सत्य, 4. असत्य, 5. सत्य।

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

1. कर्क रेखा भारत को कितने भागों में बाँटती है ?
2. भारत उत्तरी गोलार्द्ध में एशिया महाद्वीप के किस भाग में स्थित है ?
3. भारत का क्षेत्रफल लिखिए।
4. भारत की स्थल सीमा कितनी है ?
5. भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे प्राचीनतम भू भाग कौन-सा है?

उत्तर-1. दो भागों में, 2. दक्षिणी भाग,
3. 32.8 लाख वर्ग किमी. 4. 15,200 किमी,
5. विशाल प्रायद्वीप

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. भारतीय संघ राज्य का सबसे दक्षिणी बिन्दु किसे कहा जाता, यह कब जलमग्न हो गया?
उत्तर- भारतीय संघ राज्य का सबसे दक्षिणी बिन्दु, जो इन्दिरा बिन्दु कहा जाता था, सन् 2004 में सुनामी लहरों के कारण समुद्र में जलमग्न हो गया। कौन-कौन से द्वीपीय देश हमारे पड़ोसी हैं?

2. कब और किस नहर के खुलने से भारत और यूरोप के बीच की दूरी कम हो गई ?
उत्तर- सन् 1869 में स्वेज नहर के खुलने से भारत और यूरोप के बीच दूरी 7,000 किमी कम हो गई है।

प्रश्न 3. अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी में स्थित द्वीप समूह के नाम बताइए। दक्षिण में
उत्तर-अरब सागर में द्वीप समूह-लक्षद्वीप, बंगाल की खाड़ी में स्थित द्वीप समूह-अण्डमान एवं निकोबार, दक्षिण में हमारे पड़ोसी द्वीपीय देश श्रीलंका व मालदीव हैं।

प्रश्न4. उन देशों के नाम बताइए जो क्षेत्रफल में भारत से बड़े हैं ?
उत्तर- क्षेत्रफल में भारत से बड़े देश हैं-रूस, कनाडा, सं. रा. अमेरिका, चीन, ब्राजील, आस्ट्रेलिया।

प्रश्न 5. हमारे उत्तर-पश्चिमी, उत्तरी तथा उत्तर-पूर्वी पड़ोसी देशों के नाम बताइए।
उत्तर-भारत की भूमि की सीमाएँ उत्तर-पश्चिम में पाकिस्तान और अफगानिस्तान के साथ, उत्तर में चीन (तिब्बत) नेपाल और भूटान के साथ तथा पूर्व में म्यांमार व बांग्लादेश के साथ हैं।

प्रश्न6. भारत में किन-किन राज्यों से कर्क रेखा गुजरती हैं ? उनके नाम बताइए।
उत्तर-राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, मिजोरम, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा ।

प्रश्न 7. तीन सागरों पर स्थित स्थान का नाम लिखिए। इन सागरों के नाम भी बताइए।
अथवा
भारत के दक्षिणी छोर का नाम देते हुए बताइए वहाँ कौन-से तीन सागर मिलते हैं ?
उत्तर-भारत का दक्षिणी छोर कन्याकुमारी स्थान तमिलनाडु राज्य में तीन सागरों पर स्थित है। इन सागरों के नाम हैं-हिन्द महासागर, अरब सागर, बंगाल की खाड़ी।

प्रश्न8.भारत की भौगोलिक स्थिति बताइए।
उत्तर- भारत 84′ और 37°6′ उत्तरी अक्षांश और 68°7′ और 97°25′ पूर्वी देशान्तर के बीच फैला हुआ है।

प्रश्न 9. भारतीय उपमहाद्वीप में कौन-कौन से देश हैं ?
उत्तर-भारतीय उपमहाद्वीप में भारत सहित उसके निम्नलिखित पड़ोसी देश सम्मिलित हैं-पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका तथा मालदीव।

प्रश्न10. क्षेत्रफल के आधार पर सबसे बड़ा एवं सबसे छोटा राज्य कौन-सा है ?
उत्तर-क्षेत्रफल के आधार पर सबसे बड़ा राज्य राजस्थान व सबसे छोटा राज्य गोवा है।

प्रश्न 11. कौन-से राज्य अन्तर्राष्ट्रीय सीमा तथा समुद्र तट को स्पर्श नहीं करते हैं?
उत्तर-मध्य प्रदेश, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, हरियाणा राज्य अन्तर्राष्ट्रीय सीमा तथा समुद्र तट को स्पर्श नहीं करते हैं।

प्रश्न12. भारत में कितने राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश हैं ?
उत्तर-भारत में 28 राज्य तथा केन्द्र शासित प्रदेश हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. भारत को एक उपमहाद्वीप क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-उपमहाद्वीप से आशय एक विस्तृत भौगोलिक इकाई से है जो शेष महाद्वीपों से प्राकृतिक सीमाओं द्वारा स्पष्टत: भिन्न दिखायी पड़ती है। भारतीय उपमहाद्वीप एशिया में स्थित होते हुए भी एक अलग भौगोलिक इकाई दिखायी देती है। इस महाद्वीप में एशिया के देशों से भिन्न एक विशिष्ट संस्कृति का विकास हुआ है। इस उपमहाद्वीप में कई राष्ट्र सम्मिलित हैं। इसके उत्तर-पश्चिम में पाकिस्तान, केन्द्र में भारत, उत्तर में
नेपाल, उत्तर पूर्व में भूतान तथा पूर्व में बांग्लादेश है। भारत के दक्षिण में श्रीलंका और मालदीय हिन्द महासागर में स्थित हैं। ये दोनों द्वीपीय राष्ट्र है। उपर्युका विशेषताओं के कारण ही भारत एक उपमहाद्वीप कहा जाता है।

प्रश्नों 3. सूर्योदय अरुणाचल प्रदेश के पूर्वी भाग में गुजरात के पश्चिमी भाग की अपेक्षा 2 घण्टे पहले क्यों होता है, जबकि दोनों राज्यों में घड़ी एक ही समय दर्शाती है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-गुजरात से अरुणाचल प्रदेश के स्थानीय समय में दो घण्टे का अन्तर है। अत: 82°30′ पूर्व देशान्तर रेखा को भारत की मानक याम्योत्तर माना गया है जो कि उत्तर प्रदेश में मिर्जापुर से गुजरती है। अक्षांश का प्रभाव दक्षिण से उत्तर की ओर, दिन-रात की अवधि पर पड़ता है। पृथ्वी एक अक्षांश घूमने में 4 मिनट का समय लेती है। इसलिए 15 अक्षांश घूमने में पृथ्वी को । घण्टा लगता है। भारत का अक्षांशीय विस्तार 30° है, और इसलिए देश के सबसे पूर्वी तथा सबसे पश्चिमी भाग के बीच का अन्तर 2 घण्टे है। किन्तु भारत के सभी भागों में घड़ियाँ एक ही समय दिखाती हैं क्योंकि भारतीय मानक समय 82. अक्षांश के अनुसार निर्धारित
किया गया है। इसी कारण गुजरात और अरुणाचल प्रदेश दोनों ही राज्यों में घड़ियाँ एक ही समय दर्शाती हैं।

प्रश्न 4. 82°30′ पूर्व देशान्तर को भारत की मानक याम्योत्तर क्यों माना गया है?
उत्तर-82°30′ पूर्व देशान्तर रेखा देश के लगभग मध्य मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश से होकर गुजरती है। जिससे पूरे देश का मानक समय निर्धारित है। यह रेखा पूर्वी और पश्चिमी दोनों भागों के लिए ठीक पड़ती है। इसलिए पूरे देश में इस तरह के भ्रम को दूर करने के लिए देश के मध्य से गुजरने वाले देशान्तर (82°30) को भारत का मानक याम्योत्तर निर्धारित किया गया है। सारे देश की घड़ियाँ याम्योत्तर के समय के अनुसार चलती हैं। इसका समय सारे देश में मानक माना गया है।

प्रश्न 5. कन्याकुमारी और कश्मीर में दिन-रात की अवधि में अन्तर क्यों है ?
उत्तर-कन्याकुमारी विषुवत् रेखा के समीप है और विषुवत रेखा पर दिन-रात बराबर होते हैं। जैसे-जैसे विषुवत वृत से उत्तर या दक्षिण की ओर जाते हैं तो दिन और रात की अवधि में अन्तर आता जाता है। दिन घटते जाते हैं, रातें बढ़ती जाती हैं। कन्याकुमारी में दिन और रात की अवधि में 45 मिनट का अन्तर होता है। यहाँ दिन रात की अपेक्षा 45 मिनट छोटा होता है। कश्मीर की और बढ़ने पर दिन छोटा हो जाता है, रात बड़ी होती जाती है। कश्मीर के उत्तरी भाग पर दिन रात की अपेक्षा पाँच घण्टे कम होता है।

प्रश्न 6.”भारत की ग्लोब पर एक महत्वपूर्ण स्थिति है।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- भारत एक विशाल देश है। यह उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित है और इसका मुख्य भाग 8°4′ उत्तर से 37°6′ उत्तर अक्षांश तथा 68°7′ पूर्व से 97°25′ पूर्व देशान्तर तक है। कर्क रेखा 23°30′ उत्तर में देश को लगभग दो बराबर भागों में बाँटती है। मुख्य भू-भाग के दक्षिण-पूर्व में अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह बंगाल की खाड़ी में तथा दक्षिण-पश्चिम में लक्षद्वीप द्वीप समूह अरब सागर में स्थित हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न1. हिन्द महासागर में भारत की केन्द्रीय स्थिति से इसे किस प्रकार लाभ प्राप्त हुआ है ?
उत्तर-हिन्द महासागर जो कि पश्चिम में यूरोपीय देशों और पूर्वी एशियाई देशों को मिलाता है, भारत को केन्द्रीय स्थिति प्रदान करता है। दक्षिण का पठार हिन्द महासागर में शीर्षवत् फैला हुआ है और पश्चिम एशिया, अफ्रीका और यूरोप के देशों के साथ-साथ पूर्वी एशिया के देशों से भी पूर्वी तट के माध्यम से निकटतम सम्बन्ध बनाए हुए है। हिन्द महासागर में किसी भी देश की तटीय सीमा भारत जैसी नहीं है। भारत की इसी
महत्वपूर्ण स्थिति के कारण इसका नाम हिन्द महासागर रखा गया है। भारत का विश्व के देशों के साथ सम्पर्क युगों पुराना है परन्तु यह सम्बन्ध समुद्री जलमार्गों की अपेक्षा भू-भागों से होकर था। इन मार्गों से प्राचीन समय से विचारों और वस्तुओं का आदान-प्रदान होता रहा है। इसी प्रकार उपनिषदों के विचार, रामायण तथा पंचतंत्र की कहानियों, भारतीय अंक एवं दशमलव प्रणाली आदि विश्व के विभिन्न भागों तक पहुँच सके। मसाले, मलमल आदि कपड़े तथा व्यापार के अन्य सामान भारत से विभिन्न देशों को ले जाए जाते थे। इसके विपरीत यूनानी स्थापत्य कला तथा पश्चिमी एशिया की वास्तुकला के प्रतीक मीनारों तथा गुम्बदों का प्रभाव हमारे देश के विभिन्न भागों में देखा जा सकता है।

प्रश्न 2. भारत की स्थिति व विस्तार का वर्णन कीजिए।
उत्तर-भारत की स्थिति-भारत विषुवत् रेखा के उत्तर में 894′ उत्तरी अक्षांश से 37°6′ उत्तरी अक्षांश तक तथा 68°7′ पूर्वी देशान्तर से 97925′ पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है। इस प्रकार सम्पूर्ण भारतवर्ष उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित है। कर्क रेखा 237° (उत्तरी अक्षांश) इसके मध्य से होकर गुजरती है और भारतवर्ष को दो भागों-(i) महाद्वीपीय भारत या उत्तरी भारत, (ii) उष्ण कटिबन्धीय भारत या दक्षिणी भारत में बाँटती है। इसी प्रकार 821 पूर्वी देशान्तर देश के मध्य से होकर गुजरती है। विस्तार-भारत का उत्तर-दक्षिण विस्तार 3214 किमी तथा पूर्व पश्चिम विस्तार 2933 किमी है। इसकी स्थलीय सीमा 15,200 किमी एवं कुल समुद्री सीमा 7,5166 किमी है। इसका क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किमी है। यह विश्व का सातवाँ बड़ा देश है। भारत के उत्तर-पश्चिम में पाकिस्तान, अफगानिस्तान, उत्तर में चीन, नेपाल एवं भूटान, पूर्व में बांग्लादेश म्यांमार व दक्षिण में श्रीलंका है।

प्रश्न 3. भारत की भौगोलिक स्थिति का महत्त्व समझाइए। का
उत्तर-भारत विषुवत् रेखा के उत्तर में 8°4′ उत्तरी अक्षांश से 37°6′ उत्तरी अक्षांश तक तथा 6807′ पूर्वी देशान्तर से 97°25′ पूर्वी देशान्तर के मध्य स्थित है। इस प्रकार सम्पूर्ण भारतवर्ष उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि एशिया महाद्वीप में भारत की स्थिति लगभग केन्द्रीय है। इसके निम्न महत्त्व हैं-(1) केन्द्रीय स्थिति के कारण भारत अन्तर्राष्ट्रीय जलमार्गों का केन्द्र है। (ii) हिन्द महासागर के शीर्ष पर स्थित होने के कारण अफ्रीका और आस्ट्रेलिया महाद्वीपों से जुड़ा है। (iii) भारत के तीन ओर समुद्री तटरेखा होने के कारण प्राकृतिक बन्दरगाहों की सुविधा है। (iv) केन्द्रीय स्थिति के कारण भारत पूर्व से पश्चिम के अन्तर्राष्ट्रीय वायुमार्गों का संगम स्थल है। इस प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की दृष्टि से भारत की भौगोलिक
स्थिति अच्छी है।

अध्याय 7

भारत का भौतिक स्वरूप
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
. बहु-विकल्पीय प्रश्न
1. एक स्थलीय भाग जो तीन ओर से समुद्र से घिरा हो-
(i) तट
(ii) द्वीप,
(iii) प्रायद्वीप
(iv) इनमें से कोई नहीं।

2. भारत के पूर्वी भाग में म्यांमार की सीमा का निर्धारण करने वाले पर्वतों का संयुक्त नाम-
(1) हिमाचल
(ii) उत्तराखण्ड
(iii) पूर्वांचल
(iv) इनमें से कोई नहीं।

3. गोवा के दक्षिण में स्थित पश्चिम तटीय पट्टी-
(i) कोरोमण्डल
(ii) कोंकण
(iii) कन्नड
(iv) उत्तरी सरकार।

4. पूर्वी घाट का सर्वोच्च शिखर-
(i) अनाईमुडी
(ii) कचनजंघा
(iii) महेन्द्रगिरि
(iv) खासी।

5. अपने पूरे देशान्तरीय विस्तार के साथ हिमालय को बाँट सकते हैं-
(i) दो भागों में
(ii) तीन भागों में
(iii) चार भागों में
(iv) पाँच भागों में।

7. प्रायद्वीपीय पठार किस प्रकार की आकृति वाला स्थल है?
(i) मेज
(ii) कुसी
(iii) गेंद
(iv) इनमें से कोई नहीं।

8. वे नदियों के बाढ़ वाले मैदान के ऊपर स्थित हैं, वेदिका जैसी आकृति प्रदर्शित करते हैं, कह जाता है-
(1) भाबर
(ii) तराई
(iii) भागर
(iv) खादर।

उत्तर-1. (iii), 2. (iii), 3. (iii), 4. (iii), 5. (ii), 6. (iv), 7.(i), 8. (iii).

. रिक्त स्थानों की पूर्ति

1. हिमालय की पूरी पर्वत शृंखला एक…….. स्थलाकृति को दर्शाती है।
2. हिमालय की सबसे बाहरी शृंखला को……… कहा जाता है

3. निम्न हिमाचल तथा शिवालिक के बीच स्थित लावतत् घाटी को………के नाम से जाना जाता है।
4. उत्तरी मैदान………. मृदा से बना है।
5. अरावली पहाड़ी के पश्चिमी किनारे पर ……..स्थित है।
6…….. झील भारत में खारे पानी की सबसे बड़ी झील है।

उत्तर-1. युवा, 2. शिवालिक, 3. दून, 4. जलोद,
5. थार का मरुस्थल, 6. चिल्का ।

सत्य/असत्य

1. भू-गर्भ वैज्ञानिकों के अनुसार हिमालय पर्वत एक स्थिर भाग है।
2. माउंट एवरेस्ट हिमालय का सबसे ऊंचा शिखर है।
3. ब्रह्मपुत्र हिमालय की सबसे पूर्वी सीमा बनाती है।
4. दक्षिण का पठार पूर्व में ऊँचा एवं पश्चिम की ओर कम दाल वाला है।
5. बंगाल की खाड़ी में उत्तर से दक्षिण की तरफ अण्डमान एवं निकोबार द्वीप है।
6, खादर का निर्माण लगभग प्रत्येक वर्ष होता है।
7. प्रायद्वीपीय पठार की उत्पत्ति ज्वालामुखी से हुई है।
8. उत्तरी मैदान देश के अन्न भंडार है।

उत्तर-1. असत्य, 2. सत्य, 3. सत्य, 4. असत्य, 5. सत्य,
6, सत्य, 7. सत्य, 8. सत्य।

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

1. विश्व की सबसे ऊंची पर्वत श्रेणी है।
2. उत्तरी मैदान किस मृदा से बना है?
3. दक्षिण का पठार किस आकार का भू-भाग है ?
4. सतलुज एवं सिन्ध के बीच स्थित हिमालय के भाग को किस नाम से जाना जाता है ?
5. हिमालय की सबसे बाहरी श्रृंखला को क्या कहा जाता है
6. सतलुज तथा काली नदियों के बीच स्थित हिमालय के इस भाग को किस नाम से जाना जाता है ?

उत्तर-1. हिमालय, 2. जलोढ़, 3. त्रिभुजाकार, 4. पंजाब हिमालय, 5. शिवालिक, 6. कुमाऊँ हिमालय।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1, भाबर क्या है?
उत्तर-नदियाँ पर्वतों से नीचे उतरते समय शिवालिक की ढाल पर 8 से 16 किमी की चौड़ी पट्टी में गुटिका का निक्षेपण करती हैं। इसे ‘भाबर’ के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 2. हिमालय के तीन प्रमुख विभागों के नाम उत्तर से दक्षिण के क्रम में बताइए।
उत्तर-(1) हिमाद्री, (2) हिमाचल श्रेणी, (3) शिवालिक।

प्रश्न 3. अरावली और विंध्याचल की पहाड़ियों में कौन-सा पठार स्थित है ?
उत्तर-अरावली और विंध्याचल की पहाड़ियों में मालवा का पठार स्थित है।

प्रश्न 4. भारत के उन द्वीपों के नाम बताइए जो प्रवाल भित्ति के हैं।
उत्तर-लक्षद्वीप।

प्रश्न 5. मसूरी, नैनीताल एवं रानीखेत किस राज्य में स्थित हैं?
उत्तर-मसूरी, नैनीताल एवं रानीखेत उत्तराखण्ड में स्थित हैं।

प्रश्न 6. हिमालय का भौगोलिक वर्गीकरण लिखिए।
उत्तर-(1) वृहत् हिमालय, (2) लघु हिमालय, (3) उप-हिमालय या बाह्य हिमालय।

प्रश्न 7.’दोआब’ का अर्थ बताइए।
उत्तर-‘दोआब’ का अर्थ है, दो नदियों के बीच का भाग। ‘दोआब’ दो शब्दों से मिलकर बना है-दो तथा आब अर्थात् पानी।
प्रश्न 8. ‘खादर’ क्या है ? यह किस प्रकार की खेती के लिए आदर्श है?
उत्तर-बाढ़ वाले मैदानों के नये तथा युवा निक्षेपों को ‘खादर’ कहा जाता है। इनका लगभग प्रत्येक वर्ष पुनर्निर्माण होता है, इसलिए ये उपजाऊ होते हैं तथा गहन खेती के लिए आदर्श होते हैं।

प्रश्न 9. धरातलीय संरचनात्मक भिन्नता के आधार पर उत्तर भारत के मैदान को कितने भागों में विभाजित किया जाता है ? नाम लिखिए।
उत्तर-धरातलीय संरचनात्मक भिन्नता के आधार पर उत्तर भारत के मैदान को निम्नलिखित चार प्रमुख भागों में विभाजित किया जाता है-
(1) भाबर, (2) तराई, (3) भांगर, (4) खादर ।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 4. देश के किस भाग को पूर्वांचल कहा जाता है ?
उत्तर-ब्रह्मपुत्र हिमालय की सबसे पूर्वी सीमा बनाती है। दिहांग महाखड्ड (गार्ज) के बाद हिमालय दक्षिण की ओर एक तीखा मोड़ बनाते हुए भारत की पूर्वी सीमा के साथ फैल जाता है। इन्हें पूर्वांचल या पूर्वी पहाड़ियों तथा पर्वत श्रृंखलाओं के नाम से जाना जाता है। ये पहाड़ियाँ उत्तर-पूर्वी राज्यों से होकर गुजरती हैं तथा मजबूत बलुआ पत्थरों, जो अवसादी शैल हैं, से बनी हैं। ये घने जंगलों से ढंकी हैं तथा अधिकतर समानान्तर श्रृंखलाओं एवं घाटियों के रूप में फैली हैं। पूर्वांचल में पटकाई, नागा, मिजो तथा मणिपुर पहाड़ियाँ शामिल हैं।

प्रश्न 5. दक्षिण के पठार पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
उत्तर-दक्षिण का पठार-दक्षिण का पठार एक त्रिभुजाकार भू-भाग है, जो नर्मदा नदी के दक्षिण में स्थित है। इसके उत्तर में चौड़े आधार पर सतपुड़ा की श्रृंखला है जबकि महादेव, कैमूर की पहाड़ी तथा मैकाल शृंखला इसके पूर्वी विस्तार हैं। दक्षिण का पठार पश्चिम में ऊँचा एवं पूर्व की ओर कम ढाल वाला है। इस पार का एक भाग उत्तर-पूर्व में भी देखा जाता है, जिसे स्थानीय रूप से मेघालय’, ‘कार्वी एंगलोंग पठार’ तथा
‘उत्तर कचार पहाडी’ के नाम से जाना जाता है। यह एक अंश के द्वारा खेटा नागपुर पठार से अलग हो गया है। पश्चिम से पूर्व की ओर तीन महत्वपूर्ण शृंखलाएँ गारो, खासी तथा जयंतिया है। दक्षिण के पठार के पूर्वी एवं पश्चिमी सिरे पर कमशः पूर्वी तथा पश्चिमी घाट स्थित है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 2. भारत के उत्तरी मैदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर-भारत के उत्तरी मैदान का वर्णन निम्न शीर्षकों में किया जा सकता है-
(1) निर्माण- उत्तरी मैदान तीन प्रमुख नदी प्रणालियों-सिन्धु, गंगा एवं ब्रह्मपुत्र तथा इनकी सहायक नदियों से बना है। यह मैदान जलोढ़ मृदा से बना है। लाखों वर्षों में हिमालय के गिरिपाद में स्थित बहुत बड़े बेसिन (द्रोणी) में जलोढ़ों का निक्षेप हुआ जिससे इस उपजाऊ मैदान का निर्माण हुआ है।
उत्तरी पर्वतों से आने वाली नदियाँ निक्षेपण कार्य में लगी हैं। नदी के निचले भागों में ढाल कम होने के कारण नदी की गति कम हो जाती है जिसके परिणामस्वरूप नदीय द्वीपों का निर्माण होता है। ये नदियाँ अपने निचले भाग में गाद एकत्र हो जाने के कारण बहुत-सी धाराओं में बँट जाती हैं। इन धाराओं को वितरिकाएँ कहा जाता है।
(2) विस्तार-उत्तरी मैदान का विस्तार 7 लाख वर्ग किमी के क्षेत्र पर है। यह मैदान लगभग 2,400 किमी लम्बा एवं 240 से 320 किमी चौड़ा है। उत्तरी मैदान को मोटे तौर पर तीन उपवर्गों में विभाजित किया गया है। उत्तरी मैदान के पश्चिमी भाग को पंजाब का मैदान कहा जाता है। सिन्धु तथा इसकी सहायक नदियों के द्वारा बनाए गए इस मैदान का बहुत बड़ा भाग पाकिस्तान में स्थित है। सिन्धु तथा इसकी सहायक नदियाँ झेलम, चेनाब, रावी, ब्यास तथा सतलुज हिमालय से निकलती हैं। गंगा के मैदान का विस्तार घघर तथा तिस्ता नदियों के बीच है। यह उत्तरी भारत के राज्यों हरियाणा,
दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड के कुछ भाग तथा पश्चिम बंगाल में फैला है। ब्रह्मपुत्र का मैदान इसके पश्चिम विशेषकर असम में स्थित है।
(3) उत्पादक क्षेत्र-यह सघन जनसंख्या वाला भौगोलिक क्षेत्र है। समृद्ध मृदा आवरण, पर्याप्त पानी की उपलब्धता एवं अनुकूल जलवायु के कारण कृषि की दृष्टि से यह भारत का अत्यधिक उत्पादक क्षेत्र है। बाढ़ वाले मैदानों के नये तथा युवा निक्षेपों को खादर’ कहा जाता है। इनका लगभग प्रत्येक वर्ष
पुनर्निर्माण होता है, इसलिए ये उपजाऊ होते हैं तथा गहन खेती के लिए आदर्श होते हैं।
(4) आकृतिक भिन्नता-इन विस्तृत मैदानों को भौगोलिक आकृतियों में भी विविधता है। आकृतिक भिन्नता के आधार पर उत्तरी मैदानों को चार भागों में विभाजित किया गया है। नदियों पर्वतों से नीचे उतरते समय शिवालिक की ढाल पर 8 से 16 किमी की चौड़ी पट्टी में गुटिका का निक्षेपण करती हैं। इसे ‘भाबर’ के नाम से जाना जाता है। सभी सरिताएँ इस भाबर पट्टी में विलुप्त हो जाती हैं। इस पट्टी के दक्षिण में ये सरिताएँ एवं नदियाँ पुनः निकल आती हैं, एवं नम तथा दलदली क्षेत्र का निर्माण करती हैं, जिसे ‘तराई’ कहा जाता है।
उत्तरी मैदान का सबसे विशालतम भाग पुराने जलोद का बना है। वे नदियों के बाढ़ वाले मैदान के ऊपर स्थित हैं तथा वेदिका जैसी आकृति प्रदर्शित करते हैं। इस भाग को ‘भागर’ के नाम से जाना जाता है। इस क्षेत्र की मृदा में चूनेदार निक्षेप पाए जाते हैं, जिसे स्थानीय भाषा में ‘ककड़’ कहा जाता है।
का
प्रश्न 3. निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए-
(i) मध्य हिमालय,
(ii) मध्य उच्च भूमि,
(iii) भारत के द्वीप समूह।
उत्तर-(i) मध्य हिमालय-मध्य हिमालय औसतन 3,700 मीटर से 4,500 मीटर तक ऊँचे हैं तथा औसत चौड़ाई 50 किलोमीटर है। सर्वोच्च हिमालय के दक्षिण में मध्य या लघु हिमालय है, इसे हिमाचल श्रेणी भी कहते हैं। इन श्रृंखलाओं का निर्माण मुख्यत: अत्याधिक संपीड़ित तथा परिवर्तित शैलों से हुआ है। सभी प्रमुख पर्वतीय नगर, जैसे- हस्तही जी, धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश), नैनीताल (उत्तराखण्ड), दार्जिलिंग (पश्चिम वाला इसी पर्वत श्रेणी पर हैं। कश्मीर को पीरपंजाल तथा हिमाचल प्रदेश की धौलाधार श्रेणी, मध्य हिमालय
के ही भाग हैं । नेपाल को मात HEARTH | इस क्षेत्र को पहाड़ी नगरों के लिए जाना जाता है।
(ii) मध्य उपन्च भूमि-नर्मदा नदी के सर में प्रायद्वीपीय पठार का यह भाग जो कि मालवा के पटार के अधिकतर भागों पर फैला है, उसे any के नाम से जाना जाता है। विध्य शृंखला दक्षिण में सतपुड़ा प्रखला तथा उत्तर पश्चिम में अरावली पश्चिम में यह धीरे धीरे राजस्थान के बलुई तथा पथरील
मरुस्थल से मिल जाता है। इस क्षेत्र में बहने वाली नदियाँ चाबल, सिन्धु, बेतवा तथा केन दक्षिण-पश्चिम से
उत्तर-पूर्व की तरफ बहती हैं, इस प्रकार के इस क्षेत्र के गाल को दर्शाती हैं। मध्य उच्चभूमि पश्चिम में चौड़ी लेकिन पूर्व में संकीर्ण है।
(iil) भारत के द्वीप समूह-भारत में दो द्वीपों का समूह स्थित है।
(1) लक्षद्वीप-यह केरल के मालाबार तट के पास अरब सागर में स्थित है। द्वीपों का यह समूह छोटे प्रवाल द्वीपों से बना है। पहले इनको वकादीव, मोनीकाय तथा एमीनदीव के नाम से जाना जाता था। 1973 में इनका नाम लक्षद्वीप रखा गया। यह 32 वर्ग किमी के छोटे से क्षेत्र में फैला है। कबरती द्वीप लक्षद्वीप का प्रशासनिक मुख्यालय है। इस द्वीप समूह पर पादप तथा जन्तु के बहुत से प्रकार पाए जाते हैं। पिटली द्वीप, जहाँ मानव का निवास नहीं है, वहाँ एक पक्षी अभयारण्य है।
(2) अण्डमान एवं निकोबार द्वीप समूह-ये द्वीप समूह बंगाल की खाड़ी में उत्तर से दक्षिण की ओर फैले हुए हैं। यह द्वीप समूह आकार में बड़ी संख्या में बहुत तथा बिखरे हुए हैं। यह द्वीप समूह मुख्यत: दो भागे में बाँटा गया है-उत्तर में अण्डमान तथा दक्षिण में निकोबार । यह माना जाता है कि यह द्वीप समूह निमज्जित पर्वत श्रेणियों के शिखर हैं। यह द्वीप समूह देश की सुरक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। भारत का एकमात्र
सक्रिय ज्वालामुखी यहाँ के बैरेन द्वीप पर स्थित है। इन द्वीप समूहों में पाए जाने वाले पादप एवं जन्तुओं में बहुत अधिक विविधता है। ये द्वीप विषुवत् वृत के समीप स्थित हैं यहाँ की जलवायु विषुवतीय है तथा यह घने जंगलों से घिरा है।

प्रश्न 4. हिमालय पर्वतीय क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
उत्तर-हिमालय की पर्वत श्रेणियाँ भारत के उत्तर में अर्द्ध चाप के आकार में उत्तर-पश्चिम, उत्तर तथा उत्तर-पूर्व की सीमा बनाती हैं। इनकी लम्बाई 2,400 किमी है। चौड़ाई 150 से 400 किमी है। विस्तार तथा ऊँचाई के आधार पर हिमालय को तीन भागों में बाँट सकते हैं-
(1) महान या आन्तरिक हिमालय-यह हिमालय की सबसे ऊँची और सबसे लम्बी श्रेणी है। इसे प्रधान हिमालय और हिमाद्रि भी कहते हैं। इसकी औसत ऊँचाई 6000 मीटर है। यह अत्यन्त दुर्गम क्षेत्र है, किन्तु इसमें जोजिला, कराकोरम, शिपकी, नाथूला आदि कई दरें हैं जिनसे होकर इनको पार किया जा सकता है। इस क्षेत्र में हिमालय के कई ऊँचे शिखर मिलते हैं। मुख्य पर्वत शिखर माउण्ट एवरेस्ट, कंचनजंघा,
धौलागिरी, नंगा पर्वत और नंदा देवी हैं।
(2) मध्य हिमालय-प्रश्न 3(i) देखें।
(3) शिवालिक हिमालय-हिमालय की दक्षिणतम श्रेणी को बाहरी हिमालय या शिवालिक हिमालय कहते हैं। इनकी औसत ऊँचाई 900 से 1100 मीटर तथा चौड़ाई 10 से 50 किमी है। हिमालय के पश्चिमा अर्द्ध भाग में यह श्रेणी बहुत अधिक स्पष्ट है। यह पर्वत श्रेणी जलोढ़ अवसादों से बनी है। इनकी शैलें वेस नहीं हैं। लघु हिमालय और शिवालिक श्रेणी के बीच अनेक घाटियाँ हैं जिन्हें पूर्व में ‘द्वार’ और पश्चिम में
‘दून’ कहा जाता है।

प्रश्न 5. निम्नलिखित पर टिप्पणी कीजिए-
(i) भारतीय मरुस्थल (Ii) तटीय मैदान।
उत्तर–(i) भारतीय मरुस्थल-अरावली पहाड़ी के पश्चिमी किनारे पर थार का मरुस्थल स्थित है। यह बालू के टिब्बों से ढका एक तरंगित मैदान है। इस क्षेत्र में प्रति वर्ष 150 मिमी से भी कम वर्षा होती है। इस शुष्क जलवायु वाले क्षेत्र में वनस्पति बहुत कम है। वर्षा ऋतु में ही कुछ सरिताएँ दिखती हैं और उसके बाद वे बालू में ही विलीन हो जाती हैं। पर्याप्त जल नहीं मिलने से वे समुद्र तक नहीं पहुँच पाती है। केवल ‘खूनी’ ही इस क्षेत्र की सबसे बड़ी नदी है। बरकान (अर्धचंद्राकार बालू का टीला) का विस्तार बहुत अधिक क्षेत्र पर होता है, लेकिन लम्बवत् टीले भारत पाकिस्तान सीमा के समीप प्रमुखता से पाए जाते हैं। जैसलमेर में बरकान समूह पाए जाते हैं।
(i) तटीय मैदान-दक्षिणी पटार के पश्चिम और पूर्व की ओर तटीय मैदान स्थित हैं, ये दो भागों में विभाजित हैं-
(1) पश्चिमी तटीय मैदान-पश्चिमी तट, पश्चिमी घाट तथा अरब सागर के बीच स्थित एक संकीर्ण मैदान है। इस मैदान के तीन भाग हैं। तट के उत्तरी भाग को कोंकण (मुम्बई तथा गोवा), मध्य भाग को कन्नड़ मैदान एवं दक्षिणी भाग को मालाबार तट कहा जाता है। धारवार के दक्षिण में यह मैदान कुछ चौड़ा है। इस मैदान में माही, साबरमती, नर्मदा एवं ताप्ती नदियाँ बहती हैं।
(2) पूर्वी तटीय मैदान-बंगाल की खाड़ी के साथ विस्तृत मैदान चौड़ा एवं समतल है। उत्तरी भाग में इसे ‘उत्तरी सरकार’ कहा जाता है जबकि दक्षिणी भाग कोरोमण्डल’ तट के नाम से जाना जाता है। इसमें मुख्य नदियों के पूर्ण विकसित डेल्टा पाये जाते हैं। बड़ी नदियाँ; जैसे-महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी इस तट पर विशाल डेल्टा का निर्माण करती हैं। चिल्का झील पूर्वी तट पर स्थित एक महत्वपूर्ण भू-लक्षण है।

अध्याय 8
अपवाह
वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहु-विकल्पीय प्रश्न
1. अपवाह तन्त्र शब्द से आशय किसी क्षेत्र के-
(1) वायु तन्त्र से है
(ii) नदी तन्त्र से हैं
(iii) जल तन्त्र से है
(iv) पर्वत तन्त्र से है।

2. अरब सागर में गिरने वाली नदी है-
(i) गगा
(ii) नर्मदा
(iii) महानदी
(iv) ब्रह्मपुत्र।

3. ‘नमामि देवि नर्मदे’ किस राज्य सरकार द्वारा प्रारम्भ की गई ?
(i) मध्य प्रदेश
(ii) महाराष्ट्र
(iii) उत्तराखण्ड
(iv) बिहार।

4. नर्मदा नदी का उद्गम कहाँ से है ?
(i) सतपुड़ा
(ii) अमरकटक
(iii) ब्रह्मागिरी
(iv) पश्चिमी घाट के हाल।

5. निम्नलिखित नदियों में से कौन-सी नदी भ्रंश घाटी से होकर बहती है ?
(i) महानदी
(ii) कृष्णा
(iii) तुंगभद्रा
(iv) तापी।

6. निम्नलिखित में से कौन-सी नदी प्रायद्वीपीय भारत की सबसे बड़ी नदी है?
(1) नर्मदा
(iii) कृष्णा
(ii) गोदावरी
(iv) महानदी।

7. वुलर झील निम्नलिखित में से किस राज्य में स्थित है ?
(i) राजस्थान
(ii) पंजाब
(iii) उत्तर प्रदेश
(iv) जम्मू-कश्मीर।

8. निम्नलिखित में से कौन सी लवणीय जल वाली झीन है ?
(1) सांभर
(iii) डल
(ii) खुलर
(iv) गोविन्द सागर।

उत्तर-1. (ii), 2. (ii), 3. (1), 4. (ii), 5. (iv), 6. (ii),
7. (iv), 8. (i).

रिक्त स्थानों की पूर्ति

1. प्रायद्वीपीय भारत की अधिकतर नदियाँ ……..से निकलती हैं।
2. सुन्दरवन डेल्टा का नाम वहाँ पाये जाने वाले ……..से लिया गया है।
3. गोदावरी सबसे बड़ी……… नदी है।
4. नर्मदा नदी जहाँ तीव्र ढाल से गिरती है, वहाँ………का निर्माण करती है।
5. गंगा की मुख्य धारा ‘भागीरथी’ ………. से निकलती है।
6. भारत की अधिकांश जनसंख्या जीविका के लिए………पर निर्भर है।

उत्तर-1. पश्चिमी घाट, 2. सुन्दरी पादप, 3. प्रायद्वीपीय,
4. धुआँधार प्रपात, 5. गंगोत्री हिमान, 6. कृषि।

सत्य/असत्य

1. हिमालय की अधिकतर नदियाँ मौसमी नदियाँ होती हैं।
2. सोदावरी बहकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
3. 2900 किमी लम्बी सिन्धु नदी विश्व की लम्बी नदियों में से एक है।
4. महानदी का उद्गम मध्य प्रदेश की उच्च भूमि से है।
5. पृथ्वी के धरातल का लगभग 71 प्रतिशत भाग जल से ढका है।
6. झीलों का प्रयोग जलविद्युत उत्पन्न करने में भी किया जा सकता है।

उत्तर-1. असत्य, 2. सत्य, 3. सत्य, 4. असत्य, 5. सत्य,
6. सत्य।

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

1. भारत की सबसे लम्बी नदी।
2. ब्रह्मपुत्र को बांग्लादेश में क्या कहा जाता है ?
3. पाकिस्तान में चेनाब से मिलने वाली नदी।
5. राष्ट्रीय नदी संरक्षण का पाराम कम हुआ ?
6. किस नदी को दक्षिण भारत की गंगा करते?
7, नदी अपने मार्ग अन्त में क्या निर्मित करती है?

उत्तर-1, गंगा, 2. जमुना, ३, होला, क. कृष्णा नदी,
8, 1985, 6, गोदावरी, 7. हेल्दा या ऐरब्युरी।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. जल विभाजक का क्या कार्य है? एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर-यह उपचाभूमि जो दो पड़ोसी अपनास प्रोता को एक दूसरे से अलग करती है, जलविभाजक कहलाती है। उदाहरण के लिए, अंबाला, सिन्धु और गंगा नदी प्रणाली के बीच जलविभाजक पर स्थित है।

प्रश्न 2. भारत में सबसे विशाल नदी द्रोणी कौन-सी है?
उत्तर-गंगा द्रोणी भारत में सबसे विशाल नदी द्रोणी है।

प्रश्न 3. सिन्धु एवं गंगा नदियाँ कहाँ से निकलती है?
उत्तर-सिन्धु नदी का उद्गम मानसरोवर झील के निकट तिब्बत में है। गंगा की मुख्य धारा ‘भागीरथी’ गंगोत्री हिमानी से निकलती है।

प्रश्न 4. गंगा की दो मुख्य धाराओं के नाम लिखिए। ये कहाँ पर एक-दूसरे से मिलकर गंगा नदी का निर्माण करती है?
उत्तर-गंगा की दो मुख्य धाराएँ भागीरथी और अलकनंदा हैं। ये उत्तरांचल राज्य के देवप्रयाग नामक स्थान पर मिलती हैं।

प्रश्न 5. लम्बी धारा होने के बावजूद तिब्बत के क्षेत्रों में ब्रह्मपुत्र में कम गाद (सिल्ट) क्यों है ?
उत्तर-तिब्बत एक शीत एवं शुष्क क्षेत्र है। अत: यहाँ इस नदी में जल एवं गाद (सिल्ट) की मात्रा बहुत कम होती है।

प्रश्न 6. कौन-सी दो प्रायद्वीपीय नदियाँ गर्त से होकर बहती हैं समुद्र में प्रवेश करने के पहले वे किस प्रकार की आकृतियों का निर्माण करती हैं?
उत्तर-नर्मदा एवं तापी, दो ही बड़ी नदियाँ हैं जो कि पश्चिम की तरफ बहती हैं और ज्वारनदमुख का निर्माण करती हैं।

प्रश्न 7. अपवाह तन्त्र से क्या आशय है?
उत्तर-अपवाह तन्त्र से आशय किसी क्षेत्र के नदी तन्त्र से है जो विभिन्न दिशाओं से बहकर आती है और मिलकर एक मुख्य नदी का निर्माण करती है।

प्रश्न 8. नदी अपहरण से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-जब एक नदी दूसरी नदी के जल क्षेत्र को अपने में मिला लेती है तो उसे नदी अपहरण कहते हैं।

प्रश्न 9. गंगा नदी की सहायक नदियों के नाम लिखिए।
उत्तर-गंगा नदी की सहायक नदियाँ हैं-यमुना, घाघरा, गण्डक और कोसी।

प्रश्न 10. सिन्धु नदी की पाँच सहायक नदियाँ कौन-सी हैं?
उत्तर-सिन्धु नदी की पाँच सहायक नदियाँ-झेलम, चिनाब, रावी, सतलुज और व्यास हैं।

प्रश्न 11. ‘नमामि देवि नर्मदे’ क्या है?
उत्तर-नर्मदा नदी के संरक्षण के लिए मध्य प्रदेश सरकार द्वारा ‘नमामि देवि नर्मदे’ नाम की एक योजना प्रारम्भ की गई है।

प्रश्न 12. ‘नमामि गंगे परियोजना’ क्या है ?
उत्तर-‘नमामि गंगे परियोजना’ एक एकीकृत संरक्षण मिशन है, इसमें राष्ट्रीय नदी गंगा से सम्बन्धित दो उद्देश्यों-प्रदूषण के प्रभाव को कम करना तथा उसके संरक्षण और कायाकल्प को पूरा किया जा सके।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. हिमालय की नदियों की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर-(1) हिमालय की अधिकतर नदियाँ बारहमासी नदियाँ होती हैं। इनमें वर्ष भर पानी रहता है। क्योंकि इन्हें वर्षों के अतिरिक्त ऊँचे पर्वतों से पिपलने वाले हिम द्वारा भी जल प्राप्त होता है।
(2) हिमालय की दो मुख्य नदियाँ सिन्म तथा ब्रह्मपुत्र इस पर्वतीय पंखला के उत्तरी भाग से निकलती
उत्तर हैं। इन नदियों ने पर्वतों को काटकर गॉों का निर्माण किया है।
(3) हिमालय की नदियाँ अपने उत्पत्ति स्थान से लेकर समुद्र तक के लम्बे रास्ते को तय करती। अपने मार्ग के ऊपरी भागों में तीव्र अपरदन क्रिया करती है तथा अपने साथ भारी मात्रा में सिल्ट एवं बालू का संवहन करती हैं।
(4) मध्य एवं निचले भागों में ये नदियाँ विसर्प, गोखुर झील तथा अपने बाढ़ वाले मैदानों में बहुत-सी अन्य निक्षेपण आकृतियों का निर्माण करती हैं। ये पूर्ण विकसित डेल्टाओं का भी निर्माण करती हैं।

प्रश्न 2. सिन्धु नदी-तन्त्र का वर्णन निम्न के आधार पर कीजिए-
(1) उद्गम, (ii) सहायक नदियाँ, (ii) सिन्धु जल समझौता।
उत्तर-(1) उद्गम-सिन्धु नदी का उद्गम मानसरोवर झील के निकट तिब्बत में है।
(ii) सहायक नदियाँ-सिन्धु की पाँच सहायक नदियाँ झेलम, चिनाव, रावी, सतलुज और व्यास हैं।
(iii) सिन्धु जल समझौता-सिन्धु जल समझौता सन्धि के अनुच्छेदों (1960) के अनुसार भारत इस नदी प्रक्रम के सम्पूर्ण जल का केवल 20 प्रतिशत जल उपयोग कर सकता है। इस जल का उपयोग हम पंजाब, हरियाणा एवं राजस्थान के दक्षिण-पश्चिम भागों में सिंचाई के लिए करते हैं।

प्रश्न 6. कावेरी द्रोणी के बारे में बताइए। इस पर निर्मित जलप्रपात के बारे में बताइए।
उत्तर-(i) कावेरी पश्चिमी घाट के ब्रह्मगिरी शृंखला से निकलती है।
(i) यह तमिलनाडु में कुडलूर के दक्षिण में बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। (iii) इसकी लम्बाई 760 किमी है।
(iv) इसकी द्रोणी तमिलनाडु, केरल तथा कर्नाटक में विस्तृत है।
(v) इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ हैं-अमरावती, भवानी, हेमावती तथा काबिनि ।
जलप्रपात-भारत में दूसरा सबसे बड़ा जलप्रपात कावेरी नदी बनाती है। इसे शिवसमुन्दरम् के नाम से जाना जाता है। प्रपात द्वारा उत्पादित विद्युत् मैसूर, बंगलौर तथा कोलार स्वर्ण-क्षेत्र को प्रदान की जाती है।

प्रश्न 7. राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (एनआरसीपी) को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-भारत में नदी सफाई कार्यक्रम का शुभारंभ 1985 में गंगा एक्शन प्लान (जीएपी) के साथ आरम्भ हुआ। वर्ष 1995 में राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना (एनआरसीपी) के तहत अन्य नदियों को जोड़ने के लिए गंगा कार्य योजना का विस्तार किया गया। नदियाँ देश में जल का प्रमुख स्रोत हैं। एनआरसीपी का उद्देश्य नदियों के जल में प्रदूषण को कम करके जल की गुणवत्ता में सुधार करना है।

प्रश्न 8. नदियों तथा झीलों के कुछ आर्थिक महत्व को बताएं।
उत्तर-नदियों के महत्व-नदियों का जल मूल प्राकृतिक संसाधन है तथा अनेक मानवीय क्रियाकलापों के लिए अनिवार्य है। भारत जैसे देश के लिए जहाँ कि अधिकांश जनसंख्या जीविका के लिए कृषि पर निर्भर है, वहाँ सिंचाई, नौ संचालन, जल विद्युत् निर्माण में नदियों का महत्व बहुत अधिक है। यही नहीं भारत में तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या और देश के आर्थिक विकास के सन्दर्भ में हमारे लिए नदियों का विशेष महत्व है। झीलों का महत्व-झीलें पर्यटन को बढ़ावा देती हैं। द्वारा नौकायान, तैराकी एवं अन्य जलीय खेलों से धन का अर्जन होता है। राजस्थान की सांभर झील, जो एक लवण वाली झील है। इसके जल का उपयोग नमक के निर्माण के लिए किया जाता है। झीलों का प्रयोग जल विद्युत् उत्पन्न करने में भी किया जाता है। झीलों में मछली पालन होता है। अत्यधिक वर्षा के समय यह बाढ़ को रोकती हैं तथा सूखे के मौसम में यह पानी के बहाव को सन्तुलित करने में सहायता करती हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 3. हिमालय से निकलने वाली प्रमुख नदियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
उत्तर भारत के अपवाह तन्त्र का स्पष्ट वर्णन कीजिए।
उत्तर-उत्तरी भारत के अपवाह तन्त्र में हिमालग पर्वत का महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि उत्तर भारत की प्रमुख नदियाँ हिमालय पर्वत से ही निकलती है। इसलिए इन नदियों को हिमालय की नदियाँ भी कहते हैं। इस अपवाह तन्त्र की प्रमुख नदियाँ सिन्धु, गंगा और ब्रह्मपुत्र हैं।
(1) सिन्धु नदी तन्त्र-सिन्धु नदी हिमालय पर्वत के पार कैलाश पर्वत के समीप से निकलकर आती है। इसकी कुल लम्बाई 2900 किमी है। यह तिब्बत के मानसरोवर के पास से निकलकर पश्चिम की ओर बहती हुई जम्मू और कश्मीर के लद्दाख जिले में 500 मीटर ऊँचा एक सुन्दर दर्शनीय गार्ज बनाती हुई वहती है। यहाँ से यह दक्षिण-पश्चिम में बहती हुई पाकिस्तान में प्रवेश कर अन्त में अरब सागर में मिल जाती है। सिन्धु की पाँच सहायक नदियाँ झेलम, चिनाब, रावी, सतलुज और व्यास हैं। इसके जल का उपयोग हम पंजाब, हरियाणा एवं राजस्थान के दक्षिण-पश्चिम भागों में सिंचाई के लिये करते हैं।
(2) गंगा नदी तन्त्र-भारत के उत्तरी मैदान की प्रमुख नदी गंगा है। इसकी लम्बाई 2500 किमी से अधिक है। यह गंगोत्री हिमनद से 4000 मीटर की ऊंचाई से निकलकर शिवालिक श्रेणियों को पार करके हरिद्वार के मैदान में प्रवेश करती है। इसकी सहायक नदियाँ यमुना, घाघरा, गंडक और कोसी प्रमुख हैं। ये नदियाँ उपजाऊ बाढ़ का मैदान बनाती हैं। इसमें नदी मोड़ तथा गोखुर झोलें पायो जाती हैं। आबाला के निकट जल विभाजक द्वारा गंगा एवं सिन्धु नदी के प्रवाह क्षेत्र का विभाजन होता है। प्रायद्वीपीय भारत की कठोर भूमि से निकलने वाली चम्बल, केन, बेतवा, सोन और दामोदर नदियाँ भी गंगा प्रणाली का अंग हैं। इन पर बड़े-बड़े बाँधों का निर्माण किया गया है जिनसे जल विद्युत् बनाई जाती है और सिंचाई की जाती है। दक्षिण की ओर बहती हुई गंगा डेल्टा बनाते हुए बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। गंगा की मुख्य धारा बांग्लादेश में प्रवेश कर जाती है। ब्रह्मपुत्र नदो से मिलने के बाद यह मेघना कहलाती है।
(3) ब्रह्मपुत्र नदी तन्त्र-ब्रह्मपुत्र नदी हिमालय के पार मानसरोवर झील के समीप से निकलकर आती है। हिमालय पर्वत के समानान्तर प्रवाहित होती हुई यह अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश करती है। भारत में इसका प्रवाह 1400 किमी है। इसकी सहायक नदियाँ दिबांग, लोहित, धनश्री, कालांग आदि हैं। अधिक वर्षा के क्षेत्र में बहने के कारण इसमें अवसाद अधिक होते हैं जिनके जमाव से प्रतिवर्ष बाढ़ आती है। नदियों का प्रवाह बदलता रहता है। नदी द्वीपों का भी निर्माण होता है। तिब्बत में इसे सांगपो, भारत में ब्रह्मपुत्र एवं बांग्लादेश में पद्मा और मेघना नाम से जाना जाता है। यह बहती हुई विशाल डेल्टा का निर्माण करती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है।

प्रश्न 5. नदी प्रदूषण से क्या आशय है ? नदियों को प्रदूषण से कैसे बचाया जा सकता है ?
उत्तर-नदी प्रदूषण से आशय-नदी जल की घरेलू, औद्योगिक तथा कृषि में बढ़ती माँग के कारण इसकी गुणवत्ता प्रभावित हुई है। इसके परिणामस्वरूप नदियों से अधिक जल की निकासी होती है तथा आयतन घटता जाता है। दूसरी ओर उद्योगों का प्रदूषण तथा अपरिष्कृत कचरे नदी में मिलते रहते हैं। यह केवल जल की गुणवत्ता को ही नहीं, बल्कि नदी के स्वत: स्वच्छीकरण की क्षमता को भी प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए, दिए गए समुचित जल प्रवाह में गंगा का जल लगभग 20 किमी क्षेत्र में फैले बड़े शहरों को गन्दगी
को तनु करके समाहित कर है। लेकिन निरन्तर बढ़ते हुए औद्योगीकरण एवं शहरीकरण के कारण ऐसा सम्भव नहीं हो पाता तथा अनेक नदियों में प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है।
नदी प्रदूषण कम करने के उपाय-
(1) प्रदूषण की समस्या के निराकरण के लिए सरकार द्वारा कानून बनाये गये हैं।
(2) औद्योगिक कचरे को नदियों में प्रवाहित करने पर प्रतिबन्ध लगाया गया है।
(3) सीवेज लाइनों के जल को परिष्कृत किया जाए।
(4) सरकार द्वारा समय-समय पर नदियों की सफाई कराई जाए।
(5) लोगों को नदी प्रदूषण की समस्या के प्रति जागरूक किया जाए।

प्रश्न 6. किसी देश की अर्थव्यवस्था के लिए नदियाँ महत्वपूर्ण क्यों हैं ?
उत्तर-नदियों का देश की अर्थव्यवस्था में निम्नलिखित महत्त्व है-
(1) पीने के जल की प्राप्ति-प्राचीनकाल में नदियों से ही पीने के लिए जल प्राप्त किया जाता था। आज भी अनेक गाँवों तथा नगरों में इस आधारभूत आवश्यकता की पूर्ति नदियों द्वारा की जाती है।
(2) सिंचाई सुविधा- भारत की नदियाँ सदावाहिनी हैं। अत: इनसे नहरें निकालकर सिंचाई की सुविधाएँ जुटाई जाती हैं। नहरें भारत में सिंचाई के महत्त्वपूर्ण साधन हैं जिनसे देश की 45% भूमि सींची जाती है।
(3) उपजाऊ मृदा का निर्माण-भारत को नदियाँ पर्वत से उपजाऊ मृदा बहाकर लाती हैं तथा इस मृदा को मैदानी भागों में बिछाकर उपजाऊ काँप मृदा का निर्माण करती हैं। यह उपजाऊ भूमि कृषि के लिए अत्यन्त उपयोगी होती है।
(4) जल-विद्युत् शक्ति का उत्पादन-उत्तर भारत की नदियों पर बाँध बनाकर तथा दक्षिण भारत की नदियों के प्राकृतिक प्रपातों पर जल विद्युत् बनायी जाती है। जल-विद्युत् ने उद्योग-धन्धों के विकास में बहुत सहयोग दिया है।
(5) बालू की प्राप्ति- नदियों के किनारों पर बालू पायी जाती है। इस बालू का प्रयोग भवन निर्माण व काँच उद्योग में किया जाता है।

प्रश्न 7. प्रायद्वीपीय भारत की नदियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
दक्षिण भारत में नदी-तन्त्र का स्पष्ट वर्णन कीजिए।
उत्तर-दक्षिण भारत नदी-तन्त्र में प्रमुख नदियाँ पश्चिमी घाट से निकलकर आती हैं तथा पूर्व की ओर बहती हैं और बंगाल की खाड़ी में मिल जाती हैं। इन नदियों में महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी प्रमुख इसके अतिरिक्त पश्चिम की ओर बहने वाली दो नदियाँ नर्मदा तथा ताप्ती अरब सागर में गिरती हैं।
(1) नर्मदा नदी-यह नदी मध्य प्रदेश में अमरकंटक पहाड़ी से निकलकर गहरी भ्रंश घाटी में 1312 किमी बहती हुई अरब सागर में गिरती है। इसका प्रवाह क्षेत्र मध्य प्रदेश और गुजरात में है। यह जबलपुर के निकट संगमरमर के शैलों में भेड़ाघाट पर धुआँधार जलप्रपात बनाती है।
(2) ताप्ती नदी-यह नदी मध्य प्रदेश में सतपुड़ा पर्वत शृंखलाओं में बैतूल जिले के मुल्ताई नामक स्थान से निकलती है। इसकी लम्बाई 724 किमी है। यह मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात में बहती हुई खम्भात की खाड़ी में गिरती है।
(3) गोदावरी नदी-गोदावरी नदी नासिक के पास पश्चिमी घाट से निकलकर 1500 किमी ओडिशा तथा आन्ध्र प्रदेश में बहती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है। इसकी सहायक नदियाँ वर्धा, मांजरा, वेन गंगा तथा पेन गंगा हैं। बड़े आकार और विस्तार के कारण इसे दक्षिण की गंगा भी कहते हैं।
(4) महानदी नदी- इस नदी का उद्गम छत्तीसगढ़ की उच्चभूमि में सिहावा नामक स्थान से है। इसको लम्बाई 858 किमी हैं। यह महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखण्ड और ओडिशा में बहती है। हीराकुंड बाँध इसी नदी पर बनाया गया है।
(5) कृष्णा नदी-कृष्णा नदी महाराष्ट्र में महाबलेश्वर के पास से निकलती है। इसकी लम्बाई 1400 किमी है। कोयना, पचगंगा, मालप्रभा, घाटप्रभा,भीमा, मूसी और तुंगभद्रा इसकी सहायक नदियाँ हैं। अलमाटी और नागार्जुनसागर बाँध इसी नदी पर बनाये गये हैं।
(6) कावेरी नदी-इसका उद्गम कुर्ग की ब्रह्मगिरि पहाड़ी शृंखला से होता है। इसकी लम्बाई 760 किमी है। इसकी सहायक नदियाँ हेमावती, अमरावती, भवानी आदि हैं। शिवसमुद्रम् इसका प्रमुख प्रपात है। इस नदी से जल विद्युत् बनायी जाती है एवं सिंचाई की जाती है।

अध्याय 9
जलवायु
वस्तुनिष्ठ प्रश्न

. बहु-विकल्पीय प्रश्न

1. नीचे दिए गए स्थानों में किस स्थान पर विश्व में सबसे अधिक वर्षा होती है ?
(i) सिलचर
(ii) चेरापूंजी
(iii) मासिनराम
(iv) गुवाहटी।

2. ग्रीष्म ऋतु में उत्तरी मैदानों में बहने वाली पवन को निम्नलिखित में से क्या कहा जाता है ?
(i) काल वैशाखी
(ii) व्यापारिक पवनें
(iii) लू
(iv) इनमें से कोई नहीं।

3. निम्नलिखित में से कौन-सा कारण भारत के उत्तर-पश्चिम भाग में शीत ऋतु में होने वाली वर्षा के लिए उत्तरदायी है ?
(i) चक्रवातीय अवदाब
(ii) पश्चिमी विक्षोभ
(iii) मानसून की वापसी
(iv) दक्षिण-पश्चिमी मानसून।

4. भारत में मानसून का आगमन निम्नलिखित में से कब होता है?
(i) मई के पारा में
(ii) जून के प्रारम्भ में
(iii) जुलाई के पाराध में
(iv) अगस्त के प्रारम्भ में।

5. निम्नलिखित में से कौन-सी भारत में शीत त्रातु की विशेषता है?
(i) गर्म दिन एवं गर्म रातें
(ii) गर्म दिन एवं ठण्डी रातें
(iii) उण्डा दिन एवं ठण्डी रातें
(iv) ठण्डा दिन एवं गर्म रातें।

6. किस राज्य में दक्षिण-पश्चिम मानसून से वर्षा बहुत कम होती है ?

(1) राजस्थान
(ii) तमिलनाडु
(iii) कर्नाटक
(iv) पजाब

7. बताइए निम्नलिखित में से सबसे कम वर्षा कहाँ होती है ?
(i) पश्चिमी मरुस्थल में
(ii) लेह में
(iii) तमिलनाडु तट पर
(iv) महान हिमालय में।

8. अधिक वर्षा वाले राज्य हैं-
(i) बिहार, उड़ीसा
(ii) मेघालय, असम
(iii) मध्य प्रदेश, गुजरात
(iv) राजस्थान, पंजाब।

उत्तर-1.(iii), 2. (iii), 3. (ii), 4. (ii), 5. (iii), 6. (i),
7. (i), 8. (ii).

रिक्त स्थानों की पूर्ति

1. भारत के कारोमण्डल तट पर सर्वाधिक वर्षा माह में होती है।
2. भारत में दक्षिण-पश्चिमी मानसून का समय
तक हैं
3. भारत की वर्षा का वार्षिक औसत “है।
4. पृथ्वी की गोलाई के कारण, इसे प्राप्त सौर ऊर्जा की मात्रा के अनुसार अलग-अलग होती है।
5. वर्षा की अनिश्चितताएँ तथा उसका असमान वितरण मानसून का एक है।

उत्तर-1. अक्टूबर-नवम्बर, 2. जून से सितम्बर, 3. 105 सेमी, 4. अक्षांशों, 5. विशिष्ट लवण।

. सत्य/असत्य

1. भारतीय मानसून में होने वाली वर्षा अनिश्चित है। अस्य
2. शीत ऋतु दिसम्बर से शुरू होती है।
3. मानसूनी हवाओं का सम्बन्ध मौसम से है।
4. अल्प वर्षा वाले क्षेत्रों में औसत वर्षा 50 सेमी वार्षिक से कम रहती है।
5. वर्षा की मात्रा में सर्वाधिक परिवर्तनशीलता असम में पाई जाती है।

उत्तर-1, असत्य, 2. सत्य,3. सत्य, 4. सत्य, 5. असत्य।

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

1. किसी स्थान की पीर्ष अवधि की वायुमण्डलीय दशा कहलाती है।
2. दक्षिण दोलन से जुड़ा हुआ एक लक्षण क्या है?
3. जहाँ गर्मी में अधिक गर्मी ताप सर्दी में अधिक सर्दी हो, वह जलवयु कहलाती है।
4. किन भागों में शीत ऋतु स्पष्ट नहीं होती है।
5. जम्मू कश्मीर में दास का न्यूनतम तापमान कितना हो सकता है?
6. स्लैग्माहट एवं स्टैलैक्टाइट गुफाओं के लिए कौन सा क्षेत्र प्रसिद्ध है?

उत्तर-1. जलवाय, 2. एलनीनो, ३. महाद्वीपीय जलवायु,
4. प्रायद्वीपीय भार्गों में, 5, 45° से , 6. मासिनरामा

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. जलवायु से क्या आशय है ?
उत्तर-एक विशाल क्षेत्र में लम्बे समयावधि (30 वर्ष से अधिक) में मौसम की अवस्थाओं तथा विविधताओं का कुल योग ही जलवायु है।

प्रश्न 2. मौसम से क्या आशय है?
उत्तर- मौसम का आशय किसी स्थान विशेष के किसी निर्दिष्ट समय की वायुमण्डलीय दशाओं, तापमान, वायुदाब, हवा, आर्द्रता एवं वर्षा से होता है। वायुमण्डल की उपर्युक्त दशाओं को ही जलवायु और मौसम के तत्व कहते हैं।

प्रश्न 3. व्यापारिक पवनें किन्हें कहते हैं?
उत्तर- भूमध्यरेखीय निम्न वायुदाब कटिबन्ध की और दोनों ही गोलार्डों के उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबन्धों से निरन्तर बहने वाली पवन को व्यापारिक पवन कहते हैं।

प्रश्न 4. वृष्टि छाया प्रदेश क्या है ?
उत्तर-पर्वतीय वायु विमुख ढाल क्षेत्र जहाँ वर्षा नहीं हो पाती और वह क्षेत्र शुष्क रह जाता है, वृष्टि छाया क्षेत्र की श्रेणी में आता है।

प्रश्न 5. वर्षा ऋतु में मानसून की प्रमुख शाखाएं कौन-कौन-सी हैं ?
उत्तर- भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून की दो शाखाएँ होती हैं-(1) अरब सागर की मानसून शाखा, जो प्रायद्वीप के अधिकतर भागों में वर्षा करती है, और (2) बंगाल की खाड़ी की शाखा जो निम्न वायुदाब की ओर गंगा के मैदान में वर्षा करती हैं।

प्रश्न 6. ‘आम्र वर्षा’ क्या है?
उत्तर-ग्रीष्म ऋतु के अन्त में कर्नाटक एवं केरल में प्राय: पूर्व मानसूनी वर्षा होती है। इसके कारण आम जल्दी पक जाते हैं तथा प्राय: इसे ‘आम्र वर्षा’ भी कहा जाता है।

प्रश्न 7. भारत में किस भाग में दैनिक तापमान अधिक होता है और क्यों ?
उत्तर-राजस्थान के मरुस्थल में कुछ स्थानों का तापमान लगभग 50° से. तक पहुँच जाता है। ऐसा इस कारण होता है क्योंकि रेत ऊष्मा को बहुत जल्दी अवशोषित करती है और छोड़ती है। इस कारण मरुस्थल में दिन का तापमान अधिक और राम का तापमान कम होता है।

प्रश्न 8. किन पवनों के कारण मालाबार तट पर वर्षा होती है?
उत्तर-मालाबार पश्चिमी तट पर स्थित है। दक्षिण पश्चिमी मानसूनी पवनों के कारण मालाबार तट पर बर्षा होती है।

प्रश्न 9. भारतीय उपमहाद्वीप में वायु की दिशा में मौसमी परिवर्तन क्यों होता है ?
उत्तर-सर्दी के मौसम में हिमालय के उत्तर में उच्च दाब का क्षेत्र बन जाता है, ठंडी शुष्क पवनें उत्तर से दक्षिण की ओर बहती हैं। गर्मी के मौसम के दौरान भूमि जल की तुलना में अधिक गर्मी ग्रहण करती है जिसके कारण भीतरी भू भाग के ऊपर एक निम्न दाब का क्षेत्र बन जाता है। इस प्रकार पवनें उच्च दाब के क्षेत्र से, उत्तर में निम्न दाब क्षेत्र की और बाने लगती हैं। यही कारण है कि पवनों की दिशा उलट जाती है।

प्रश्न 10. भारत में अधिकतर वर्षा कुछ ही महीनों में होती है
उत्तर- भारत को 25% वर्षा केवल चार महीनों-जून से सितम्बर के वर्षाकाल में होती है। शेष आठ महीनों में बहुत कम वर्षा होती है। इस प्रकार वर्षा की अवधि बहुत कम है। 15 सितम्बर से मानसून वापस होने लगता है क्योंकि उत्तरी-पश्चिमी भाग का निम्न वागदाब क्षेत्र उच्च वायुदाब क्षेत्र में परिणत होने लगता है। इस प्रकार वर्षों का समय दक्षिण में अधिक और उत्तर में कम होता है। सामान्य रूप से वर्षा 100 से 120 दिन होती है।

प्रश्न 11. तिरुवनन्तपुरम् तथा शिलांग में जुलाई की अपेक्षा जून में अधिक वर्षा क्यों होती है ?
उत्तर-तिरुवनन्तपुरम् में अरब सागर की मानसून शाखा तथा शिलांग में बंगाल की खाड़ी के द्वारा वर्षा होती है। ये शाखाएँ इन स्थानों पर जून मास में सक्रिय हो जाती हैं तथा जुलाई आते-आते आगे बढ़ जाती हैं। इसी कारण इन दोनों स्थानों पर जुलाई की अपेक्षा जून में अधिक वर्षा होती है।

प्रश्न 12. मानसून फटने अथवा टूटने से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर- उत्तरी भारत में मानसून की शाखाओं के मिलन तथा जेट वायुधारा की अनुकूलता के मिलने से घनघोर वर्षा होने की स्थिति को मानसून का फटना या टूटना कहते हैं।

प्रश्न 13. जुलाई माह में त्रिवेन्द्रम की अपेक्षा मुम्बई में अधिक वर्षा होती है, क्यों ?
उत्तर-मानसून सबसे पहले जून माह में भारत के धुर दक्षिण में स्थित समुद्र से उठता है। हमारे देश के पश्चिमी तट पर सर्वप्रथम त्रिवेन्द्रम पड़ता है, इसलिए वहाँ पहले मानसून पहुंचता है और वर्षा होती है। मानसून को मुम्बई तक पहुँचने में 15 से 20 दिन लग जाते हैं, इसलिए मुम्बई में जुलाई में अधिक वर्षा होती है।

प्रश्न 14. दिल्ली में वर्षा लगभग तीन महीने ही क्यों होती है ?
उत्तर-दिल्ली समुद्र से बहुत दूरी पर स्थित है। मानसूनी हवाओं को दिल्ली तक पहुँचने में बहुत समय लगता है तथा लौटने वाली मानसूनी हवाएँ शीघ्र लौट जाती हैं। इसलिए दिल्ली में जुलाई, अगस्त व सितम्बर इन तीन महीनों में वर्षा होती है।

प्रश्न 15. सम जलवायु किसे कहते हैं ?
उत्तर-जब किसी क्षेत्र या देश के सबसे अधिक गर्म तथा सबसे अधिक ठण्डे महीने के तापमान में कम अन्तर होता है, तो उस क्षेत्र, स्थान या देश की जलवायु को सम जलवायु कहते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कौन-कौन से कारक हैं ?
उत्तर-(i) अक्षांश, (ii) ऊँचाई, वायु दाब एवं पवन-भारत में जलवायु तथा सम्बन्धित मौसमी अवस्थाएँ निम्नलिखित वायुमण्डलीय अवस्थाओं से संचालित होती हैं-
• वायु दाब एवं धरातलीय पवनें
•ऊपरी वायु परिसंचरण तथा
•पश्चिमी चक्रवाती विक्षोभ एवं उष्ण कटिबंधीय चक्रवात।

प्रश्न 2. भारत में मानसूनी प्रकार की जलवायु क्यों है ?
उत्तर-भारत की जलवायु को मानसूनी जलवायु कहा जाता है। एशिया में इस प्रकार की जलवायु मुख्यत: दक्षिण तथा दक्षिण पूर्व में पाई जाती है। सामान्य प्रतिरूप में लगभग एकरूपता होते हुए भी देश की जलवायु-अवस्था में स्पष्ट प्रादेशिक भिन्नताएँ हैं। गर्मियों में राजस्थान के मरुस्थल में कुछ स्थानों का तापमान लगभग 50° से. तक पहुँच जाता है जबकि जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में तापमान 20° से. रहता है। वर्षण के रूप तथा प्रकार में ही नहीं, बल्कि इसकी मात्रा एवं ऋतु के अनुसार वितरण में भी भिन्नता
होती है। वार्षिक वर्षण में भिन्नता मेघालय में 400 सेमी से लेकर लद्दाख एवं पश्चिमी राजस्थान में यह 10 सेमी से भी कम होती है। देश के अधिकतर भागों में जून से सितम्बर तक वर्षा होती है, लेकिन कुछ क्षेत्र जलवायु है। जैसे तामलनाडुतट पर अधिकतर वर्षा अक्टूबर एवं नवम्बर में होती है। अर्थात् भारत की जलवायु मानसूनी

प्रश्न 3. जेट धाराएँ क्या हैं तथा वे किस प्रकार भारत की जलवायु को प्रभावित करती हैं।
उत्तर-जेट वायुधाराएँ (प्रवाह)-ऊपरी वायुमण्डल में तीव्र गति से चलने वाली पवनों को जेट वायुधाराएँ कहते हैं। ये बहुत ही संकरी पट्टी में चलती हैं। प्रभाव-भारत में, ये जेट धाराएँ ग्रीष्म ऋतु को छोड़कर पूरे वर्ष हिमालय के दक्षिण में प्रवाहित होती
हैं। इस पश्चिमी प्रवाह के द्वारा देश के उत्तर एवं उत्तर-पश्चिम भाग में पश्चिमी चक्रवाती विक्षोभ आते हैं। गर्मियों में, सूर्य की आभासी गति के साथ ही उपोष्ण कटिबंधीय पश्चिमी जेट धारा हिमालय के उत्तर में चली जाती है। भारत की जलवायु जेट वायुधाराओं की गति से भी प्रभावित होती है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि उत्तरी भारत में मानसून के अचानक ‘फटने’ के लिए यही जिम्मेदार हैं।

प्रश्न 4. मानसून को परिभाषित करें। मानसून में विराम से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-‘मानसून’ शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के मौसिम (Mausim) से हुई है, इसका आशय है-मौसम या मौसम के अनुसार हवाओं में होने वाला परिवर्तन, जिसके अनुसार वर्ष में छः माह तक एक दिशा में तथा छ: माह तक विपरीत दिशा में हवाएँ चला करती हैं। इस प्रकार मौसम के परिवर्तन के अनुसार चलने वाली हवाओं को ‘मानसून’ कहते हैं।
मानसून में विराम-मानसून से सम्बन्धित एक अन्य परिघटना है, ‘वर्षा में विराम’ मानसूनी वर्षा एक समय में कुछ दिनों तक ही होती है। इनमें वर्षा रहित अन्तराल भी होते हैं। मानसून में आने वाले ये विराम मानसूनी गर्त की गति से सम्बन्धित होते हैं।

प्रश्न 5. मानसून को एक सूत्र में बाँधने वाला क्यों समझा जाता है?
अथवा
उपयुक्त उदाहरण देते हुए मानसून की एकता स्थापित करने वाली भूमिका की विवेचना कीजिए।
उत्तर-भारत में जलवायु की विविधता होते हुए भी भारत अपनी जलवायु सम्बन्धी (मानसूनी) एकता के लिए प्रसिद्ध है। हिमालय पर्वत और मानसून की नियमितता ने भारत की इस एकता को बनाये रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हिमालय तथा उसके विस्तार एक प्रभावशाली जलवायु विभाजक का कार्य करते हैं। यह विशाल उच्च पर्वत-शृंखला उत्तरी हवाओं के सामने अलंघ्य दीवार बनकर खड़ी है। उत्तर ध्रुवीय वृत्त के निकट इन ठण्डी और बर्फीली हवाओं की उत्पत्ति का स्थान है, जहाँ से ये मध्य तथा पूर्वी एशिया की ओर चलती हैं। लेकिन ये हिमालय को पार नहीं कर पाती हैं। इस प्रकार इस उत्तरी पर्वतीय प्राचीर के कारण सम्पूर्ण उत्तर भारत में उष्ण कटिबन्धीय जलवायु पायी जाती है।
हिमालय हमारे देश को एक प्रकार से बन्द बक्से का रूप प्रदान करता है जिसमें मानसून विविध प्रकार की लीलाएँ दिखाता रहता है। इस भौगोलिक ढाँचे में मानसूनी एकता के दर्शन होते हैं जिसमें जीवन की ऋतुलय की विशेषता है। सामान्य भूमि लक्षण, वनस्पति और प्राणी, कृषि कार्य और लोगों का जीवन इस ऋतुलय से पूरी तरह प्रभावित है।

प्रश्न 6. तमिलनाडु तट पर शीत ऋतु में वर्षा होती है।
उत्तर-तमिलनाडु राज्य भारत के दक्षिण पूर्वी तट पर स्थित है। यहाँ शीतकाल में चलने वाली उत्तर-पूर्वी मानसून पवनें अधिक वर्षा करती है जबकि ग्रीष्मकालीन दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनें कम वर्षा करती हैं। इसका कारण यह है कि ग्रीष्मकाल में मानसून पवनें दक्षिण-पश्चिम दिशा से चलती हैं। अत: यह क्षेत्र पश्चिमी घाट पर्वत की वृष्टि छाया में पड़ता है जिससे कम वर्षा होती है। शीतकाल में लौटती हुई मानसून
पवनें बंगाल की खाड़ी को पार करके नमी ग्रहण कर लेती हैं। ये पवर्ने पूर्वी घाट की पहाड़ियों से टकराकर तमिलनाडु के तटीय प्रदेश में वर्षा करती हैं। इस प्रकार जाड़े के मौसम में यह प्रदेश आर्द्र पवनों के सम्मुख होने के कारण अधिक वर्षा प्राप्त करता है।

प्रश्न 7. पूर्वी तट के डेल्टा वाले क्षेत्र में प्राय: चक्रवात आते हैं।
उत्तर- नवम्बर के प्राराप में, उत्तर पश्चिम भारत के ऊपर निम्न दाब वाली अवस्था बंगाल की खाड़ी पर स्थानान्तरित हो जाती है। यह स्थानान्तरण चक्रवाती निम्न दाब से सम्बन्धित होता है, जो कि अंडमान सागर के ऊपर उत्पन्न होता है। ये चक्रवात सामान्यत: भारत के पूर्वी सर को पार करते हैं, जिनके कारण व्यापक एवं भारी वर्षा होती है। ये उष्ण कटिबंधीय चक्रवात प्राय: विनाशकारी होते हैं। गोदावरी, कृष्णा एवं कावेरी नदियों
के सघन आबादी वाले गेल्या प्रदेशों में अक्सर चक्रवात आते हैं, जिसके कारण बड़े पैमाने पर जान एवं माल को क्षति होती है। कभी कभी ये चक्रवात ओडिशा, पश्चिम बंगाल एवं बांग्लादेश के तटीय क्षेत्रों में भी पहुँच जाते हैं। कोरोमंडल तट पर अधिकतर वर्षा इन्हीं चक्रवातों तथा अवदाबों से होती है।

प्रश्न 8. राजस्थान, गुजरात के कुछ भाग तथा पश्चिमी घाट का वृष्टि छाया क्षेत्र सूखा प्रभावित
उत्तर-दक्षिण-पश्चिम मानसून का भारत में अंतर्वाह यहाँ के मौसम को पूरी तरह परिवर्तित कर देता है। मौसम के प्रारम्भ में पश्चिम घाट के पवनमुखी भागों में भारी वर्षा होती है। दक्कन का पठार एवं मध्य प्रदेश के कुछ भाग में भी वर्षा होती है, यद्यपि ये क्षेत्र वृष्टि छाया क्षेत्र में आते हैं। इस मौसम की अधिकतर वर्षा देश के उत्तर-पूर्वी भागों में होती है। खासी पहाड़ी के दक्षिणी श्रृंखलाओं में स्थित मासिनराम विश्व में सबसे अधिक औसत वर्षा प्राप्त करता है। गंगा की घाटी में पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा की मात्रा घटती जाती है।
राजस्थान एवं गुजरात के कुछ भागों में बहुत कम वर्षा होती है।

प्रश्न 9. भारत की जलवायु अवस्थाओं की क्षेत्रीय विभिन्नताओं को उदाहरण सहित समझाएँ।
उत्तर-सामान्य प्रतिरूप में लगभग एकरूपता होते हुए भी देश की जलवायु अवस्था में स्पष्ट प्रादेशिक भिन्नताएँ हैं। नीचे दो महत्वपूर्ण तत्व तापमान एवं वर्षण द्वारा स्पष्ट किया गया कि एक स्थान से दूसरे स्थान पर तथा एक मौसम से दूसरे मौसम में इनमें किस प्रकार की भिन्नता है।
(1) तापमान सम्बन्धी क्षेत्रीय विभिन्नताएँ-गर्मियों में, राजस्थान के मरुस्थल में: कुछ स्थानों का तापमान लगभग 50° से. तक पहुँच जाता है जबकि जम्मू कश्मीर के पहलगाम में तापमान लगभग 20° से. रहता है। सर्दी की रात में जम्मू-कश्मीर में दास का तापमान – 45° से. तक हो सकता है, जबकि तिरुवनंतपुरम् में यह 22° से. हो सकता है।
(2) वर्षण सम्बन्धी क्षेत्रीय विभिन्नताएँ-वर्षण के रूप तथा प्रकार में ही नहीं, बल्कि इसको मात्रा एवं ऋतु के अनुसार वितरण में भी भिन्नता होती है। हिमालय में वर्षण अधिकतर हिम के रूप में होता है तथा देश के शेष भाग में यह वर्षा के रूप में होता है। वार्षिक वर्षण में भिन्नता मेघालय में 400 सेमी से लेकर लद्दाख एवं पश्चिमी राजस्थान में यह 10 सेमी से भी कम होती है। देश के अधिकतर भागों में जून से सितम्बर तक वर्षा होती है, लेकिन कुछ क्षेत्रों जैसे तमिलनाडु तट पर अधिकतर वर्षा अक्टूबर एवं नवम्बर में होती है।

प्रश्न 10. विषम जलवायु से क्या आशय है ? भारत में विषम जलवायु वाले दो स्थानों के नाम लिखिए।
उत्तर-किसी देश या क्षेत्र के वार्षिक तापमानों और वर्षा की मात्रा में बहुत अन्तर पाया जाता है, वहाँ की जलवायु विषम कहलाती है। तापमान की विषमता चाहे दैनिक हो या वार्षिक वह विषम जलवायु के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। उदाहरण के लिए, थार मरुस्थल में दिन का तापमान गर्मियों में 50° से. को भी पार कर जाता है और रात के समय तापमान काफी गिर जाता है। दिल्ली, जोधपुर आदि का वार्षिक ताप परिसर अधिक है। अत: इनकी जलवायु विषम है।

प्रश्न 11. मानसून के रचना-तन्त्र की विवेचना कीजिए।
उत्तर-मानसून शब्द अरबी भाषा के ‘मौसिम’ शब्द से बना है जिसका अर्थ है ऋतु या मौसम। इस प्रकार मानसून का अर्थ उन मौसमी हवाओं से है जो मौसमी परिवर्तन के साथ अपनी दिशा पूर्णतया बदल देती हैं। शुष्क और गर्म स्थलीय हवाएँ समुद्री और वाष्पकणों से भरी हुई हवाओं में बदल जाती हैं। ये मानसून हवाएं हिन्द महासागर में भूमध्यरेखा को पार करते ही दक्षिण पश्चिम दिशा अपना लेती हैं। जब कभी उत्तरी गोलार्द्ध में प्रशान्त महासागर के विषुवतीय भागों में उच्च दाब होता है तब हिन्द महासागर के दक्षिणी भागों में दबाव कम
होता है और यह परिवर्तन का क्रम चलता रहता है। इस प्रकार भूमध्यरेखा के आस-पास की हवाएँ विभिन्न दिशाओं में आती-जाती रहती हैं। इन हवाओं की अदला-बदली का मानसून हवाओं पर गहरा प्रभाव पड़ता है। मौसम वैज्ञानिकों द्वारा दी गई परिभाषा के आधार पर यह हवाएँ शुष्क गर्म चायु को पूरी तरह हटकर तक फैल जाती हैं। विषुवतीय महासागरीय वायु के स्थलीय भागों तथा सागरीय क्षेत्र में तीन से लेकर पाँच किलोमीटर की ऊँचाई

प्रश्न 15. थार मरुस्थल में कम वर्षा क्यों होती है ? संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-(1) थार का मरुस्थल राजस्थान के पश्चिमी भाग में है।
(2) इस वनस्पति रहित बलुई क्षेत्र का ग्रीष्म ऋतु में तापमान इतना अधिक रहता है अत: वह आर्द्रता सोख लेता है और वर्षा करने में बाधक बनता है।
(3) वर्षा कम होने का एक प्रमुख कारण यह है कि इस क्षेत्र तक पहुँचते-पहुँचते वर्षावाहिनी मानसूनी पवनों में आर्दता बहुत कम रह जाती है।
(4) यह देश का सबसे कम वर्षा प्राप्त करने वाला क्षेत्र है। किसी-किसी वर्ष तो यहाँ वर्षा के दर्शन नहीं होते। फलत: थार मरुस्थल प्यासा-का-प्यासा रह जाता है और यहाँ बहुत कम वर्षा हो पाती है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. मानसून अभिक्रिया की व्याख्या करें।
उत्तर-मानसून का प्रभाव उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में लगभग 20° उत्तर एवं 20° दक्षिण के बीच रहता है। मानसून की अभिक्रिया समझने के लिए निम्न बातें महत्वपूर्ण हैं-
(1) स्थल तथा जल के गर्म एवं ठंडे होने की विभेदी प्रक्रिया के कारण भारत के स्थल भाग पर निम्न दाब का क्षेत्र उत्पन्न होता है जबकि इसके आस-पास के समुद्रों के ऊपर उच्च दाब का क्षेत्र बनता है।
(2) ग्रीष्म ऋतु के दिनों में अंत:उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र की स्थिति गंगा के मैदान की ओर खिसक जाती है। (यह विषुवतीय गर्त है, जो प्रायः विषुवत् वृत्त से 5° उत्तर में स्थित होता है। इसे मानसून ऋतु में मानसून गर्त के नाम से भी जाना जाता है।)
(3) हिन्द महासागर में मेडागास्कर के पूर्व लगभग 20° दक्षिण अक्षांश के ऊपर उच्च दाब वाला क्षेत्र होता है। इस उच्च दाब वाले क्षेत्र की स्थिति एवं तीव्रता भारतीय मानसून को प्रभावित करती है।
(4) ग्रीष्म ऋतु में, तिब्बत का पठार बहुत अधिक गर्म हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप पठार के ऊपर समुद्र तल से लगभग 9 किमी की ऊँचाई पर तीव्र ऊर्ध्वाधर वायु धाराओं एवं उच्च दाब का निर्माण होता है।
(5) दक्षिणी महासागरों के ऊपर दाब की अवस्थाओं में परिवर्तन भी मानसून को प्रभावित करता है। सामान्यत: जब दक्षिण प्रशांत महासागर के उष्ण कटिबंधीय पूर्वी भाग में उच्च दाब होता है तब हिन्द महासागर के उष्ण कटिबंधीय पूर्वी भाग में निम्न दाब होता है, लेकिन कुछ विशेष वर्षों में वायु दाब की स्थिति विपरीत हो जाती है तथा पूर्वी प्रशांत महासागर के ऊपर हिन्द महासागर की तुलना में निम्न दाब का क्षेत्र बन जाता है। दाब की अवस्था में इस नियतकालिक परिवर्तन को दक्षिणी दोलन के नाम से जाना जाता है।
(6) डार्विन, उत्तरी ऑस्ट्रेलिया (हिन्द महासागर 12°30′ दक्षिण/131° पूर्व) तथा ताहिती (प्रशांत महासागर 180° दक्षिण/149° पश्चिम) के दाब के अन्तर की गणना मानसून की तीव्रता के पूर्वानुमान के लिए की जाती है। अगर दाब का अन्तर माणात्मक है तो इसका अर्थ होगा औसत से कम तथा देर से आने वाला मानसून।
(7) एलनीनो, दक्षिणी दोलन से जुड़ा एक लक्षण है। यह एक गर्म समुद्री जलधारा है, जो पेरू की ठंडी धारा के स्थान पर प्रत्येक 2 या 5 वर्ष के अन्तराल में पेरू तट होकर बहती है। दाब की अवस्था में परिवर्तन का सम्बन्ध एलनीनो से है। इसलिए इस परिघटना को एसो (ENSO) (एलनीनो दक्षिणी दोलन) कहा जाता है।

प्रश्न 2. शीत ऋतु की अवस्था एवं उसकी विशेषताएँ बताइए।
उत्तर- शीत ऋतु की अवस्था एवं उसकी विशेषताएँ
(1) उत्तरी भारत में शीत त्रातु मध्य नवम्बर से आरम्भ होकर फरवरी तक रहती है। भारत के उत्तरी भाग में दिसम्बर एवं जनवरी सबसे ठंडे महीने होते हैं। तापमान दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ने पर घटता जाता है। पूर्वी तट पर चेन्नई का औसत तापमान 24° सेल्सियस से 25° सेल्सियस के बीच होता है, जबकि उत्तरी मैदान में यह 10° सेल्सियस से 15° सेल्सियस के बीच होता है। दिन गर्म तथा रातें ठंडी होती हैं। उत्तर में तुषारापात सामान्य है तथा हिमालय में ऊपरी ढालों पर हिमपात होता है।
(2) शीत ऋतु में, देश में उत्तर-पूर्वी व्यापारिक पवनें प्रवाहित होती हैं। ये स्थल से समुद्र की और बहती हैं तथा इसलिए देश के अधिकतर भाग में शुष्क मौसम होता है। इन पवनों के कारण कुछ मात्रा में वर्षा तमिलनाडु के तट पर होती है, क्योंकि वहाँ ये पवनें समुद्र से स्थल की ओर बहती हैं।
(3) देश के उत्तरी भाग में, एक कमजोर उच्च दाब का क्षेत्र बन जाता है जिसमें हल्की पवनें इस क्षेत्र से बाहर की ओर प्रवाहित होती हैं। उच्चावच से प्रभावित होकर ये पवनें पश्चिम तथा उत्तर-पश्चिम से गंगा घाटी में बहती हैं। सामान्यत: इस मौसम में आसमान साफ, तापमान तथा आर्द्रता कम एवं पवनें शिथिल तथा परिवर्तित होती हैं।
(4) शीत ऋतु में उत्तरी मैदानों में पश्चिम एवं उत्तर-पश्चिम से चक्रवाती विक्षोभ का अन्तर्वाह विशेष लक्षण है। यह कम दाब वाली प्रणाली भूमध्यसागर एवं पश्चिमी एशिया के ऊपर उत्पन्न होती है तथा पश्चिमी पवनों के साथ भारत में प्रवेश करती है। इसके कारण शीतकाल में मैदानों में वर्षा होती है तथा पर्वतों
पर हिमपात, जिसकी उस समय बहुत अधिक आवश्यकता होती है। यद्यपि शीतकाल में वर्षा, जिसे स्थानीय तौर पर ‘महावट’ कहा जाता है, की कुल मात्रा कम होती है। ये रबी की फसलों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होती है।
(5) प्रायद्वीपीय भागों में शीत ऋतु स्पष्ट नहीं होती है। समुद्री पवनों के प्रभाव के कारण शीत ऋतु में भी यहाँ तापमान के प्रारूप में न के बराबर परिवर्तन होता है।

प्रश्न 3. भारत में होने वाली मानसूनी वर्षा एवं उसकी विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर- भारत में होने वाली मानसूनी वर्षा एवं उसकी विशेषताएँ
(1) मानसून का समय जून के आरम्भ से लेकर मध्य सितम्बर तक 100 से 120 दिनों के बीच होता है। इसके आगमन के समय सामान्य वर्षा में अचानक वृद्धि हो जाती है तथा निरन्तर कई दिनों तक होती है। इसे मानसून का फटना कहते हैं।
(2) सामान्यतः जून के प्रथम सप्ताह में मानसून भारतीय प्रायद्वीप के दक्षिणी छोर से प्रवेश करता है। इसके बाद यह दो भागों में बँट जाता है- पहली अरब सागरीय मानसून एवं दूसरा बंगाल की खाड़ी का मानसून। अरब सागर शाखा लगभग दस दिन बाद 10 या 12 जून के आस-पास मुंबई पहुँचती है। यह एक तीव्र प्रगति है।
(3) बंगाल की खाड़ी शाखा भी तेजी से आगे की ओर बढ़ती है तथा जून के प्रथम सप्ताह में असम पहुँच जाती है। ऊँचे पर्वतों के कारण मानसूनी पवनें पश्चिम में गंगा के मैदान की ओर मुड़ जाती हैं। मध्य जून तक अरब सागर शाखा सौराष्ट्र, कच्छ एवं देश के बीच भागों में पहुँच जाती हैं। अरब सागर शाखा एवं बंगाल की खाड़ी शाखा, दोनों परस्पर गंगा के मैदान के उत्तर-पश्चिम भाग में आपस में मिल जाती हैं।
(4) दिल्ली में मानसून, बंगाल की खाड़ी से 29 जून के लगभग पहुँचता है। जुलाई के प्रथम सप्ताह तक मानसून पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा तथा पूर्वी राजस्थान में पहुँच जाता है। 15 जुलाई तक मानसून हिमाचल प्रदेश एवं देश के शेष भागों में पहुँच जाता है। भारत में मानसूनी वर्षा समय के अनुसार निश्चित नहीं होती। कभी मानसून पवनें जल्दी और कभी बहुत देर से आती हैं जिससे नदियों में बाढ़ आ जाती है या फसलें सूखे से नष्ट हो जाती हैं। कई बार मानसून पवनें निश्चित समय से पूर्व ही समाप्त हो जाती हैं जिससे खरीफ की फसल को नुकसान होता है।

प्रश्न 4. भारतीय जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं ?
उत्तर- भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक
भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले निम्नलिखित कारक हैं-
(1) स्थिति- भारत की जलवायु को प्रभावित करने में देश की अक्षांशीय स्थिति महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भारत उत्तरी गोलार्द्ध में एशिया महाद्वीप के दक्षिण में स्थित है। कर्क रेखा से इसके मध्य से होकर गुजरती है। भारत की इस विशिष्ट स्थिति के कारण इसके दक्षिणी भाग में उष्ण कटिबन्धीय जलवायु तथा उत्तरी भाग में महाद्वीपीय जलवायु पायी जाती है।
(2) समुद्र से दूरी-भारत के तटीय भागों में समुद्र का समकारी प्रभाव पड़ने से सम जलवायु है, जबकि उत्तरी मैदान समुद्र से दूर होने के कारण वहाँ गर्मी में अधिक गर्मी और सर्दी में अधिक सर्दी पड़ती है। फलस्वरूप वहाँ महाद्वीपीय जलवायु पायी जाती है।
(3) भू-रचना-भारत की भू-रचना न केवल तापमान अपितु वर्षा को भी प्रभावित करती है। देश के उत्तरी भाग में पूरब से पश्चिम को फैला हुआ विशाल हिमालय पर्वत शीत ऋतु में उत्तर से आने वाली अति ठण्डी हवाओं को रोककर भारत को अत्यधिक शीतल होने से बचाता है। यह पर्वत मानसून पवनों को रोककर वर्षा में मदद करता है।
(4) जल और थल का वितरण- भारत को तीन ओर से समुद्र से घेरता है-पश्चिम में अरब सागर, दक्षिण में हिन्द महासागर और पूर्व में बंगाल की खाड़ी। उत्तर में विशाल मैदान स्थित है। ग्रीष्म काल में इसका पश्चिमी भाग अत्यधिक गर्म हो जाता है और वहाँ निम्न वायुदाब स्थापित हो जाता है जिससे समुद्र की ओर से हवाएँ चलने लगती हैं। ये हवाएँ दो शाखाओं-अरब सागरीय मानसून शाखा और बंगाल की खाड़ी मानसून
शाखा में विभाजित हो जाती हैं, इनसे पूर्वी, उत्तर-पूर्वी और दक्षिण भारत में वर्षा होती है।
(5) उपरितन वायुधाराएँ-वायुधाराएँ हवाओं से भिन्न होती हैं क्योंकि वे भू-पृष्ठ से बहुत ऊँचाई पर चलती हैं। भारत की जलवायु जेट वायुधाराओं की गति से भी प्रभावित होती हैं। ऊपरी वायुमण्डल में बहुत तीव्र गति से चलने वाली हवाओं को जेट वायुधाराएँ कहते हैं। शीतकाल में पश्चिमी विक्षोभों को भारतीय उपमहाद्वीपउपमहाद्वीप तक लाने में जेट प्रवाह मददगार होते हैं। इस प्रकार उपरितन वायुधाराएँ भारत की जलवायु को प्रभावित करने बाला महत्त्वपूर्ण कारक है।
(6) मानसूनी पवनें-हमारा देश व्यापारिक पवनों के प्रवाह क्षेत्र में आता है, किन्तु यहाँ की जलवायु पर मानसूनी पवनों का व्यापक प्रभाव देखा जाता है। ये पवनें हमारे देश में ग्रीष्म ऋतु में समुद्र से स्थल की ओर तथा शीत ऋतु में स्थल से समुद्र की ओर चला करती हैं। मानसूनी हवाओं के इस परिवर्तन के साथ भारत में मौसम और ऋतुओं में परिवर्तन हो जाता है।

प्रश्न 5. निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर भारत में जलवायु की विषमताओं के कुछ उदाहरण दीजिए-
(i) तापान्तर,
(ii) वर्षावाहिनी पवनों की दिशा,
(iii) वर्षण का रूप,
(iv) वर्षा की मात्रा,
(v) वर्षा की प्रवृत्ति अर्थात् वर्षा का वस्तुनिष्ठ वितरण।
उत्तर- भारत की जलवायु में बहुत विषमता पायी जाती है, जो निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट है-
(1) तापान्तर- भारत के विभिन्न भागों में तापान्तर में काफी विषमता पायी जाती है। एक ही ऋतु में अलग-अलग स्थानों में अलग अलग तापमान पाया जाता है। शीत ऋतु में लेह में इतनी कड़ाके की सर्दी पड़ती है कि वहाँ तापमान हिमांक से नीचे चला जाता है जबकि उसी समय दक्षिणवासी खुले में आनन्दपूर्वक कार्य में लगे होते हैं। अत: तापमान में अन्तर के फलस्वरूप जलवायु में भी विविधता उत्पन्न हो जाती है।
(ii) वर्षावाहिनी पवनों की दिशा-वर्षा करने वाली पवनों की दिशा का भी किसी स्थान की जलवायु पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ता है। भारत में ग्रीष्म ऋतु में वर्षावाहिनी पवनों की दिशा दक्षिण-पश्चिम होती है, परन्तु शीत ऋतु में इनकी दिशा उत्तर-पूर्व हो जाती है। उत्तर-पूर्वी मानसून तमिलनाडु में वर्षा करता है।
(iii) वर्षण का रूप- भारत में वर्षण के विभिन्न रूप देखने को मिलते हैं-वर्षा, ओला, हिमपात, पाला आदि। उत्तर भारत, हिमालय तथा हिमालय के निकटवर्ती क्षेत्रों में वर्षण के प्रायः सभी रूप देखने को मिलते हैं।
(iv) वर्षा की मात्रा- भारत में वर्षा का वितरण बहुत ही असमान है। चेरापूँजी (मासिनराम) में सबसे अधिक वर्षा होती है। यहाँ औसतन वार्षिक वर्षा 1080 सेमी है। मेघालय में 400 सेमी वर्षा होती है, जबकि पश्चिमी मरुस्थल में 10 सेमी वर्षा होती है।
(v) वर्षा की प्रवृत्ति अर्थात् वर्षा का वस्तुनिष्ठ वितरण-भारत में अधिकतर ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ ग्रीष्म ऋतु में वर्षा होती है परन्तु कुछ ऐसे प्रदेश हैं जो इस ऋतु में बिल्कुल शुष्क रह जाते हैं। शीत ऋतु में केवल तमिलनाडु राज्य में ही पर्याप्त वर्षा होती है।

प्रश्न 6. भारत में ग्रीष्म ऋतु में जलवायु की दशाओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर- ग्रीष्म ऋतु में उत्तरी भारत में तापमान अधिक रहने से वायुदाब कम रहता है। मई माह तक थार मरुस्थल से लेकर छोटा नागपुर पठार तक न्यून वायुदाब क्षेत्र बन जाता है। हिन्द महासागर में उच्च वायुदाब रहता है। पवनें उच्चदाब से न्यूनदाब की ओर चलती हैं। ग्रीष्मकाल में स्थानीय पवनें-लू, वैशाखी (धूल भरी आँधियाँ) सक्रिय हो जाती हैं।
कर्क रेखा भारत के लगभग मध्य भाग से गुजरती है। 21 जून को कर्क रेखा पर सूर्य की किरणें लम्बवत् गिरती हैं, अत: उत्तरी भारत का तापमान बढ़ने लगता है। देश के उत्तर-पश्चिम भाग में तापमान 450 से 480 सेल्सियस तक हो जाता है। दक्षिण भारत में समुद्र के समकारी प्रभाव के कारण तापमान अधिक नहीं हो पाता है। यह 27 से 30° सेल्सियस तक रहता है। ग्रीष्म ऋतु के अन्त में केरल तथा कर्नाटक के तटीय भागों में मानसून से पूर्व की वर्षा होती है, जिसका स्थानीय नाम आम्रवृष्टि है। इस समय दक्कन के पठार पर अपेक्षाकृत
उच्चदाब होने के कारण मानसून से पूर्व की वर्षा का क्षेत्र आगे नहीं बढ़ पाता है। इस ऋतु में बंगाल और असम में भी उत्तर-पश्चिमी तथा उत्तरी पवनों द्वारा वर्षा की तेज बौछारें पड़ती हैं।

प्रश्न 7. क्या कारण है कि तमिलनाडु में दक्षिण-पश्चिम मानसून की अपेक्षा उत्तर-पूर्वी मानसून
से अधिक वर्षा होती है?
उत्तर-तमिलनाडु में दक्षिण-पश्चिम मानसून की अपेक्षा उत्तर-पूर्वी मानसून से अधिक वर्षा होती है, क्योंकि-
(1) मानसून की अरब सागर शाखा पश्चिमी घाट के पश्चिमी भागों में अधिक वर्षा करती है।
(2) पश्चिमी घाट को पार करने पर इन पवनों में नमी की कमी आ जाती है।
(3) पवनों के नीचे आने के कारण उनका तापमान बढ़ जाता है और वायु की शुष्कता में वृद्धि हो जाती है। परिणामस्वरूप तमिलनाडु तट दक्षिण-पश्चिम मानसून शाखा से बहुत ही कम वर्षा प्राप्त कर पाता है।
(4) तमिलनाडु तट पर पीछे हटते मानसून काल में अधिक वर्षा होती है।
(5) नवम्बर के महीने में बंगाल की खाड़ी में निम्नदाब बन जाता है।
(6) इस अवधि में यहाँ चक्रवात बनने लगते हैं। इन चक्रवातों से युक्त पवनें जब कोरोमंडल तट (तमिलनाडु तर) की ओर आती हैं तो भारी वर्षा करती हैं। इस प्रकार तमिलनाडु तट पर अधिकतर वर्षा शीत ऋतु में (उत्तर-पूर्वी मानसून से) होती है।

प्रश्न 8. निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए-
(i) कोरिओलिस बल, (11) एलनीनो,
(iii) पश्चिमी चक्रवातीय विक्षोभ, (IV) अंत: उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र।
उत्तर-(1) कोरिओलिस बल-पृथ्वी के घूर्णन के कारण उत्पन्न आभासी बल को कोरिओलिस बल कहते हैं। इस बल के कारण पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलाई में बाईं ओर ‘विक्षेपित हो जाती हैं। यह ‘फेरेल का नियम’ भी कहा जाता है।
(i) एलनीनो-ठंडी पेरू जलधारा के स्थान पर अस्थायी तौर पर गर्म जलधारा के विकास को एलनीनी का नाम दिया गया है। एलनीनो स्पैनिश शब्द है, जिसका आशय होता है बच्चा तथा जो कि बेबी क्राइस्ट को प्रदर्शित करता है क्योंकि यह धारा क्रिसमस के समय बहना शुरू करती है। एलनीनो की उपस्थिति समुद्र की सतह के तापमान को बढ़ा देती है तथा उस क्षेत्र में व्यापारिक पवनों को शिथिल कर देती हैं।
(iii) पश्चिी चक्रवातीय विक्षोभ-सर्दी की ऋतु में उत्पन्न होने वाला पश्चिमी चक्रवातीय विक्षोभ भूमध्यसागरीय क्षेत्र से आने वाले पश्चिमी प्रवाह के कारण होता है। ये प्राय: भारत के उत्तर एवं उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं। उष्ण कटिबंधीय चक्रवात मानसूनी महीनों के साथ-साथ अक्टूबर एवं नवम्बर के महीनों में आते हैं तथा ये पूर्वी प्रवाह के एक भाग होते हैं एवं देश के तटीय क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं।
(iv) अंत:उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र-ये विषुवतीय अक्षांशों में विस्तृत गर्त एवं निम्न दाब का क्षेत्र होता है। यहीं पर उत्तर-पूर्वी एवं दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक पवनें आपस में मिलती हैं। यह अभिसरण क्षेत्र विषुवत् वृत्त के लगभग समानांतर होता है लेकिन सूर्य की आभासी गति के साथ साथ यह उत्तर या दक्षिण की ओर खिसकता है।

अध्याय 10
प्राकृतिक वनस्पति तथा वन्य प्राणी

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

. बहु-विकल्पीय प्रश्न
1. रबड़ का सम्बन्ध किस प्रकार की वनस्पति से है ?
(i) टुण्ड्रा
(ii) हिमालय
(iii) मैंग्रोव
(iv) उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वन।

2. सिनकोना के वृक्ष कितनी वर्षा वाले क्षेत्र में पाये जाते हैं ?
(i) 100 सेमी
(ii) 70 सेमी
(iii) 50 सेमी
(iv)50 सेमी से कम वर्षा ।

3. सिमलीपाल जीवमण्डल निचय कौन-से राज्य में स्थित है
(i) पंजाब
(ii) दिल्ली
(iii) ओडिशा
(iv) पश्चिम बंगाल।

4. भारत के कौन-से जीवमण्डल निचय विश्व के जीवमण्डल से लिए गए हैं ?
(i) मानस
(ii) मन्नार की खाड़ी
(iii) नीलगिरि
(iv) नन्दादेवी।

 

5. भारत में कितने नेशनल पार्क है?
(1) 103
(ii) 95
(iii) 128
(iv) 138.

6. कौन-सी औषधीय वनस्पति नहीं है ?
(i) तुलसी
(ii) नीम
(iii) सर्पगंधा
(iv) टीक।

7. भारत में सबसे कम वन क्षेत्र वाला राज्य है-
(i) झारखण्ड
(ii) हरियाणा
(iii) राजस्थान
(iv) उत्तर प्रदेश।

उत्तर-1.(iv), 2. (i), 3.(iii), 4. (iv), 5. (1), 6. (iv),
7. (ii).

रिक्त स्थानों की पूर्ति

1. वह वनस्पति जो मूलरूप से भारतीय है उसे …….कहते हैं।
2. जो पौधे भारत के बाहर से आए हैं उन्हें ……..कहते हैं।
3. सुन्दरी वृक्ष ……..में पाया जाता है।

4. सतपुड़ा राष्ट्रीय ……….जिले में है।
5. भारत में प्रथम जीव आरक्षित क्षेत्र ……..में स्थापित किया गया है।
6. देश में सिंहों का प्राकृतिक आवास स्थल गुजरात का …….. जंगल है।

उत्तर-1. देशज, 2. विदेशज पौधे, 3. मैग्रोववन,
4. होशंगाबाद, 5. नीलगिरि, 6. गिर क्षेत्र।

सत्य/असत्य

1. ज्वारीय वन में सुन्दरी वृक्ष पाया जाता है।
2. सन् 2003 में वनों का कुल क्षेत्रफल 68 लाख वर्ग किमी था।
3. भारत में प्राणी की लगभग 60,000 प्रजातियाँ मिलती हैं।
4. अल्पाइन घास के मैदानों में विलीन हो जाते हैं।
5. हमारा देश विश्व के मुख्य 12 जैव विविधता वाले देशों में एक है।

उत्तर-1. सत्य, 2. सत्य, 3. असत्य, 4. सत्य, 5. सत्य।

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

1. भारत में वन्य जीव सुरक्षा अधिनियम कब पारित हुआ ?
2. अल्पाइन घास के मैदानों का उपयोग पशुचारण के लिए कौन करते हैं ?
3. ऐसे वन जो एक ऋतु विशेष में पत्ते गिरा देते हैं।
4. जीवमण्डल निचय (आरक्षित क्षेत्र) पंचमढ़ी किस राज्य में स्थित है ?
5. गंगा ब्रह्मपुत्र डेल्टा क्षेत्र का प्रसिद्ध जानवर कौन-सा है ?
6. अल्पकाल के लिए आने वाले पक्षी को कहते हैं।

उत्तर-1.1972, 2. गुज्जर तथा बक्करवाल, 3. पर्णपाती वन, 4. मध्य प्रदेश, 5. रॉयल बंगाल टाइगर, 6. प्रवासी पक्षी।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. भारत में पादपों तथा जीवों का वितरण किन तत्वों द्वारा निर्धारित होता है ?
उत्तर- भारत में पादपों तथा जीवों का वितरण भूमि, मिट्टी, तापमान, सूर्य का प्रकाश तथा वर्षा आदि द्वारा निर्धारित होता है।

प्रश्न 2. जीवमंडल निचय से क्या अभिप्राय है? कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर-भारत में जैव-विविधता की सुरक्षा के लिए अनेक प्रयास किये जा रहे हैं। इस योजना के अन्तर्गत नीलगिरि में भारत का प्रथम जीव आरक्षित क्षेत्र (बायोस्फीयर रिजर्व) स्थापित किया गया है। यह कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल के सीमावर्ती क्षेत्रों में फैला है। इसका क्षेत्रफल 5500 वर्ग किमी है। इस योजना के अन्तर्गत प्रत्येक जन्तु तथा पौधे का रक्षण अनिवार्य है। इसकी स्थापना 1986 में की गयी थी।
उत्तराखण्ड के हिमालय क्षेत्र में नन्दादेवी का जीव-आरक्षित क्षेत्र 1988 में स्थापित किया गया था।

प्रश्न 3. किन्हीं दो वन्य प्राणियों के नाम बताइए जो कि उष्ण कटिबंधीय वर्षा और पर्वतीय वनस्पति में मिलते हैं।
उत्तर-उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन-हाथी, बंदर, हिरण।
पर्वतीय वनस्पति-चितरा हिरण, हिम तेंदुआ, घने बालों वाली भेड़।

प्रश्न 4. प्राकृतिक वनस्पति से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-प्राकृतिक रूप से मानव के हस्तक्षेप के बिना उगने वाले पेड़-पौधों को प्राकृतिक वनस्पति कहते हैं।

प्रश्न 5. वन किसे कहते हैं ?
उत्तर-वन उस बड़े भू-भाग को कहते हैं, जो प्राकृतिक रूप से उगने वाले पेड़-पौधों तथा झाड़ियों द्वारा आच्छादित होता है।

प्रश्न 6. प्राकृतिक आधार पर वनों को कितने भागों में बाँटा जा सकता है ?
उत्तर-प्राकृतिक आधार पर वनों को पाँच भागों में बाँटा जा सकता है-(1) उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन, (2) उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती वन, (3) पर्वतीय वन, (4) मैंग्रोव वन, (5) उष्ण कटिबन्धीय कँटीले वन।

प्रश्न 7. उन वन्य प्राणियों के नाम लिखिए जो अब विलुप्त होने के कगार पर हैं ?
उत्तर-गैंडा, चीता, शेर, सोहन चिड़िया आदि वन्य प्राणी अब विलुप्त होने के कगार पर हैं।

प्रश्न 8. भारत की वनस्पति में इतनी विविधता क्यों है ?
उत्तर-दक्षिण से लेकर उत्तर ध्रुव तक विविध प्रकार की जलवायु के कारण भारत में अनेक प्रकार की वनस्पतियाँ पाई जाती हैं जो समान आकार के अन्य देशों में बहुत कम मिलती है। यहाँ लगभग 47,000 प्रकार के पेड़-पौधे पाए जाते हैं।

प्रश्न 9. पारिस्थितिक तन्त्र से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-भौतिक पर्यावरण और उसमें रहने वाले जीवों के सम्मिलित रूप को पारिस्थितिक तन्त्र या पारितन्त्र कहते हैं।

प्रश्न 10. कियांग क्या है ? भारत में यह कहाँ पाया जाता है ? कियांग के साथ पाये जाने वाले अन्य दो जानवरों के नाम लिखिए।
उत्तर-कियांग तिब्बती जंगली गधा है। कियांग के साथ तिब्बतीय बारहसिंघा, भारल (नीली भेड़) पायी जाती है।

प्रश्न 11. पर्वतीय वनों में कौन-से जानवर पाये जाते हैं ?
उत्तर-पर्वतीय वनों में प्राय: कश्मीरी महामृग, चितरा हिरण, जंगली भेड़, खरगोश, तिब्बतीय बारहसिंघा, याक, हिम तेंदुआ, गिलहरी, रीछ, आइबैवस, कहीं-कहीं लाल पांडा, घने बालों वाली भेड़ तथा बकरियाँ पाई जाती हैं।

प्रश्न 12. अभ्यारण्य किसे कहते हैं ?
उत्तर-अभ्यारण्य राष्ट्रीय उद्यानों के समान ही होते हैं। ये वन्य प्राणियों को संरक्षित और प्रजातियों को सुरक्षित करने के लिए प्राकृतिक स्थल हैं यहाँ बिना अनुमति के शिकार करना मना होता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 3. भारत में बहुत सख्या में जीव और पादप प्रजातियाँ संकटग्रस्त है। उदाहरण सहित कारण जीवों के अत्यधिक उपयोग के कारण पारिस्थितिक तंत्र असन्तुलित हो गया है। लगभग 1300 पाद प्रजातिय
उत्तर-भारत में बहुत संख्या में जीव और पादप प्रजातियाँ संकटग्रस्त है क्योंकि मानव द्वारा पादपा जी संकट में है तथा 20 प्रजातियाँ नष्ट हो चुकी है। काफी वन्यजीव प्रजातियाँ भी सकट में है आर कुछ नष्ट पारिस्थितिक तंत्र के असन्तुलन का प्रमुख कारण लोभी व्यापारियों का अपने व्यवसाय के लिए
अत्यधिक शिकार करना है। रासायनिक और औद्योगिक अवशिष्ट तथा तेजाबी जमाव के कारण प्रदूषण विदेशी प्रजातियों का प्रवेश, कृषि तथा रहने के लिए वनों की अधाधुध कटाई पारिस्थितिक तत्र के असन्तुलन
चुकी हैं। का कारण है।

प्रश्न 4. उष्ण आर्द सदाबहार वनों की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-(1) ये वन भारत के उन प्रदेशों में पाये जाते हैं जहाँ वार्षिक वर्षा 300 समी से अधिक होती है। तथा शुष्क ऋतु छोटी होती है।
(2) ये वन अत्यधिक घने होते हैं। इनमें पेड़ों की लम्बाई 60 मीटर या इससे अधिक होती है।
(3) इन वनों के पेड़ों के नीचे झाड़ियाँ, बेलों, लताएँ आदि का सघन जाल पाया जाता है। घास प्रायः अनुपस्थित होती हैं।
(4) इनके पेड़ों की लकड़ी अधिक कठोर व भारी होती है।
(5) वृक्षों में पतझड़ का कोई निश्चित समय नहीं होता है। अत: ये वन सदैव हरे-भरे लगते हैं।
(6) भारत में ये वन पश्चिमी घाट के दक्षिणी भाग, केरल, कर्नाटक तथा उत्तर पूर्व की पहाड़ियों में
प्रमुखता से पाये जाते हैं।
प्रश्न 5.भारतीय वनस्पति के प्रमुख कटिबन्धों के नाम लिखिए। ज्वारीय वन का वर्णन कीजिए।
अथवा
मैंग्रोव वन पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर- भारतीय वनस्पति के चार प्रमुख कटिबन्ध निम्नलिखित हैं-
(1) उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वन, (ii) उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती वन, (iii) कँटीले बन तथा झाड़ियाँ,
(iv) ज्वारीय वन (मैंग्रोव वन)।
ज्वारीय वन-ये वन तट के सहारे नदियों के ज्वारीय क्षेत्र में पाये जाते हैं। ज्वारीय क्षेत्र में मिलने के कारण इन वनों को ज्वारीय वन कहा जाता है। इन वनों में ताड़, नारियल, मैंग्रोव, नीपा, फोनेक्स, कैज्युराइना आदि के वृक्षों की प्रधानता होती है। गंगा तथा ब्रह्मपुत्र नदियों के डेल्टा में सुन्दरी नामक वृक्ष पाये जाते हैं। इन वनों में सागरीय जल भरा रहता है, अत: इनमें आने-जाने के लिए नावों का प्रयोग किया जाता है। इन वनों के वृक्षों की अल खारे जल के प्रभाव से नमकीन तथा लकड़ी कठोर हो जाती है। इन वृक्षों की कटोर लकड़ी का
उपयोग नाव बनाने तथा नमकीन छाल का उपयोग चमड़ा रंगने में किया जाता है।

प्रश्न 6. भारत की हिमालयी क्षेत्र की वनस्पति का वर्णन कीजिए।
उत्तर-हिमालयी क्षेत्रों में तापमान की कमी तथा ऊँचाई के कारण अन्य भागों की में वनस्पति
में अधिक अन्तर होता है। शिवालिक श्रेणियों में 1000 मीटर की ऊँचाई पर, पर्वतीय क्षेत्र, भाबर व तराई में उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती वन पाये जाते हैं। 1000 से 2000 मीटर की ऊंचाई पर आर्द शीतोष्ण कटिबन्धीभ सदाबहार वन पाये जाते हैं। ये लम्बे पेड़ों से युक्त घने वन हैं। पूर्वी हिमालय में ओक तथा चेस्टनट, पश्चिना हिमालय में चीड़ तथा 2000 से 3000 मीटर की ऊँचाई वाले भागों में देवदार, सिल्वर, फर, स्यूस कम अन रूप में मिलते हैं। कम ऊंचाई वाले भागों में साल मुख्य वृक्ष है। जहाँ तापमान कम तथा वर्षा 100 सेमी से का तुलना होती है, वहाँ जंगली जैतून, कठोर बबूल एवं कठोर सवाना घास के साथ ओक व देवदार के वृक्ष पाये जाते हैं। 3000 से 4000 मीटर की ऊँचाई पर अल्पाइन वनस्पति पाई जाती है।

प्रश्न 7. “वन पर्यावरण के महत्त्वपूर्ण अंग हैं।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
पर्यावरण सन्तुलन के लिए वन क्यों आवश्यक हैं ? कोई चार कारण बताइए।
उत्तर-वनों एवं पर्यावरण में घनिष्ठ सम्बन्ध है। यह निम्न तथ्यों से स्पष्ट है-
(1) वन वायुमण्डल को शुद्ध रखते हैं और वायु प्रदूषण को कम करते हैं।
(2) वन वायुमण्डल को ऑक्सीजन प्रदान करते हैं।
(3) वन वायु के तापमान को बनाये रखते हैं, जिससे वर्षा होती है।
(4) वन जलवायु को सम रखते हैं।
(5) वन जल के बहाव को रोकते हैं जिससे भूमि का कटाव रुक जाता है तथा भूगर्भीय जल-स्तर में
वृद्धि होती है।

प्रश्न 8. वनों के विनाश के क्या कारण हैं ?
उत्तर-वनों के विनाश के कारण-(1) जनसंख्या में तीव्र वृद्धि होने से कृषि भूमि की प्राप्ति के लिए वनों को काटकर खेती की जा रही है।
(2) इमारती लकड़ी और चारे की बढ़ती माँग तथा वन्य भूमि के खेती के लिए उपयोग से वनों पर जबरदस्त प्रभाव पड़ रहा है।
(3) ईधन के रूप में प्रयोग करने हेतु लकड़ी काटी जा रही है।
(4) आवागमन के साधनों, रेल, सड़क मार्गों के विकास हेतु वनों को काटा जा रहा है।
(5) आवास समस्या की पूर्ति के लिए वनों को काटकर रिहायशी भूमि का विस्तार किया जा रहा है।

प्रश्न 9. पारिस्थितिक सन्तुलन के लिए वन क्यों आवश्यक हैं
अथवा
वन संरक्षण क्यों आवश्यक है ?
उत्तर-वनों को काटे जाने के कारण पर्यावरण प्रदूषित हुआ है तथा पारिस्थितिकी में भी परिवर्तन आया है। इसी प्रकार वर्तमान युग में अधिकांश देशों में वनों का क्षेत्रफल कम हो रहा है। इस कमी के कारण भू-अपरदन, अनावृष्टि, बाढ़ आदि समस्याएँ आज मानव के समक्ष आ खड़ी हैं। अत: वायु प्रदूषण की समस्या आज के मानव के सामने सबसे बड़ी समस्या के रूप में उपस्थित हुई है। इसी कारण वन-संरक्षण पारिस्थितिक सन्तुलन के लिए आवश्यक है।

प्रश्न 10. प्रवासी पक्षी क्या है ?
उत्तर-उत्तरी एशिया से भारत में अल्पकाल के लिए आने वाले पक्षियों को प्रवासी पक्षी कहा जाता है। भारत के कुछ दलदली भाग प्रवासी पक्षियों के लिये प्रसिद्ध हैं। शीत ऋतु में साइबेरियन सारस बहुत संख्या में यहाँ आते हैं। इन पक्षियों का मनपसन्द स्थान कच्छ का रन है। जिस स्थान पर मरुभूमि समुद्र से मिलती है, वहाँ लाल सुन्दर कलगी वाले फ्लैमिंगो हजारों की संख्या में आते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. भारत में विभिन्न प्रकार की पाई जाने वाली वनस्पति के नाम बताइए और अधिक ऊँचाई पर पाई जाने वाली वनस्पति का ब्यौरा दीजिए।
उत्तर- भारत में निम्न प्रकार की वनस्पतियाँ पाई जाती हैं-
(1) उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन,
(ii) उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन,
(iii) उष्ण कटिबंधीय कंटीले वन तथा झाड़ियाँ,
(iv) पर्वतीय वन,
(v) मैंग्रोव वन।
अधिक ऊंचाई पर पाई जाने वाली वनस्पति (पर्वतीय वन)
इस प्रकार निम्न वनस्पति कटिबन्ध पर्वतों की ऊँचाई के अनुसार पाये जाते हैं-
आई पर्णपाती वनों से ढकी है। इन वनों का आर्थिक दृष्टि से सबसे महत्त्वपूर्ण वृक्ष साल है। पर्वतीय प्रदेशों में वनस्पति के वितरण के सम्बन्ध में ऊंचाई की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है, क्योंकि ऊंचाई के बढ़ने पर तापमान घर जाता है। हिमालय पर्वतीय प्रदेश में ऊंचाई के साथ-साथ तापमान तयार में अन्तर आ जाने के कारण वृक्षों की जातियों, उनके आकार, ऊंचाई तथा प्रकृति में भी भिन्नता पायी जाती है।
(i) उष्ण कटिबन्धीय आर्द पर्णपाती वन-हिमालय की गिरपाद शिवालिक श्रणिया उष्ण कटिबमीत
(ii) उपोष्ण कटिबन्धीय पर्वतीय वन-समुद्र तल से 1000 से 2000 मीटर तक की ऊचाई जान भागों में आई पर्वतीय वन पाये जाते हैं। इस प्रकार के वनों में अधिकतर चीड़ के वृक्षों की प्रधानता होती है।
(iii) शंकुधारी वन-समुद्र तल से 1600 से 3300 मीटर की ऊँचाई के बीच चीड़, सडिर, फर और स्पूस के वृक्षों की प्रधानता है।
(iv) अल्पाइन वन-ये हिमालय पर 3300 से 3600 मीटर की ऊँचाई तक पाये जाते हैं। इन वनों के प्रमुख वृक्ष सिल्वर, फर, चीड़, भुर्ज तथा हपषा हैं।

प्रश्न 2. भारत वनस्पति जगत तथा प्राणी जगत की धरोहर में धनी क्यों है?
उत्तर- भारत एक विशाल देश है। हमारा देश विश्व के मुख्य 12 जैव विविधता वाले देशों में से एक है। भारत वनस्पति जगत तथा प्राणी जगत की धरोहर में धनी निम्न कारणों से है-
(1) भारत में लगभग 47,000 विभिन्न जातियों के पौधे पाए जाने के कारण यह हमारा देश विश्व में
दसवें स्थान पर और एशिया के देशों में चौथे स्थान पर है।
(2) भारत में लगभग 15,000 फूलों के पौधे हैं जो कि विश्व में फूलों के पौधों का 6 प्रतिशत है।
(3) भारत में बहुत से बिना फूलों के पौधे हैं; जैसे कि फर्न, शैवाल (ऐल्गी) तथा कवक (फंजाई) भी पाए जाते हैं।
(4) भारत में उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन, पर्णपाती वन, कंटीले वन तथा झाड़ियाँ, पर्वतीय वन तथा मैंग्रोव वन में अनेक प्रजातियों के पेड़-पौधे व जीव जन्तु पाए जाते हैं।
(5) वनस्पति की भाँति ही, भारत विभिन्न प्रकार की प्राणी सम्पत्ति में भी धनी है। यहाँ जीवों को लगभग 90,000 प्रजातियाँ मिलती हैं।
(6) भारत में लगभग 2,000 से अधिक पक्षियों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। यह कुल विश्व का 13 प्रतिशत है।
(7) यहाँ मछलियों की 2,546 प्रजातियाँ हैं जो विश्व की लगभग 12 प्रतिशत है।
(8) भारत में विश्व के 5 से 8 प्रतिशत तक उभयचरी, सरीसृप तथा स्तनधारी जानवर भी पाए जाते हैं। स्तनधारी जानवरों में हाथी सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। एक सींग वाले गेंडे, जंगली गधे तथा ऊँट, भारतीय भैंसा, नील गाय, बन्दरों की अनेक प्रजातियाँ पाई जाती हैं। भारत विश्व का अकेला देश है जहाँ शेर तथा बाब दोनों पाए जाते हैं।

प्रश्न 3. भारत में पौधों तथा वनस्पति का वितरण किन तत्वों पर निर्भर करता है ? लिखिए।
उत्तर-भारत में पौधों तथा वनस्पति का वितरण निम्न तत्वों पर निर्भर करता है-
(1) भूमि-भूमि का वनस्पति पर प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। ऊबड़-खाबड़ तथा असमान भू-भाग पर जंगल व घास के मैदान मिलते हैं जो कि वन्य प्राणियों के आश्रय स्थल हैं।
(2) मिट्टी-विभिन्न स्थानों की विभिन्न प्रकार की मिट्टियाँ विविध प्रकार की वनस्पति का आधार है। नदियों कृषि
के लिये अनुकूल है तो पठारी क्षेत्रों में पर्णपाती वन मिलते हैं।
(3) तापमान-प्रत्येक पौधे के अंकुरण, वृद्धि एवं प्रजनन के लिए अनुकूल तापमान की आवश्यकता होती है। उष्ण कटिबन्ध में उच्च तापमान और आर्द्रता के कारण विविध प्रकार के पेड़-पौधे उगते हैं। ऊँचे पर्वतों पर तापमान कम होने के कारण वनस्पति का वर्द्धन काल छोटा होता है।
(4) सूर्य का प्रकाश-सूर्य का प्रकाश अधिक समय तक मिलने के कारण वृक्ष गर्मी की ऋतु में जल्दी बढ़ते हैं। जैसे-हिमालय पर्वतीय क्षेत्र की दक्षिणी ढलानों पर अधिक सूर्यताप मिलने के कारण उत्तरी ढलानों की अपेक्षा अधिक सघन वनस्पति पायी जाती है।
(5) वर्षा-भारी वर्षा वाले क्षेत्रों में बड़े-बड़े पेड़ सघनता में पाये जाते हैं। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में बौने वृक्ष, घास तथा झाड़ियाँ पायी जाती हैं। मरुस्थलीय क्षेत्रों में पेड़-पौधों की जड़ें लम्बी होती हैं। थार मरुस्थल की वनस्पति पानी की कमी के कारण काँटेदार होती है।

प्रश्न 4. भारत के मुख्य वनस्पति प्रकारों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत में कितने प्रकार के वन पाये जाते हैं ?.संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर-(1) उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन-इस प्रकार के वन भारत के उन भागों में पाये जाते हैं जहाँ वर्षा का वार्षिक औसत 200 सेमो या उससे अधिक रहता है। ये वृक्ष 60 मीटर या इससे भी अधिक ऊँचाई तक बढ़ जाते हैं। ये वन पश्चिमी घाट, मेघालय तथा उत्तरी-पूर्वी भारत के अन्य भागों में पाये जाते हैं। इस प्रकार के वनों में महोगनी, आबनूस तथा कपूरा जैसे अनेक प्रकार के वृक्ष पाये जाते हैं।
(2) उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती वन-इस प्रकार के वन भारत के उन क्षेत्रों में पाये जाते हैं जहाँ वर्षी का औसत 75 से 200 सेमी के मध्य रहता है। इन वनों को ‘मानसूनी वन’ भी कहते हैं। इन वनों के दो उपवर्ग है-(i) आई पर्णपाती वन, (ii) शुष्क पर्णपाती वन। प्रथम वर्ग के वनों का विस्तार उत्तर में हिमालय की तराई व भावर प्रदेश, प्रायद्वीप के उत्तर-पूर्वी भागों तथा पश्चिमी घाट के पूर्वी भागों में पाया जाता है। सागौन इन वनों
का महत्त्वपूर्ण वृक्ष है। आर्थिक दृष्टि से ये महत्त्वपूर्ण वन हैं। शुष्क पर्णपाती वनों के प्रमुख क्षेत्र दक्षिण-पश्चिमी बिहार, दक्षिणी उत्तर प्रदेश, पश्चिमी मध्य प्रदेश, पूर्वी महाराष्ट्र,गुजरात, कर्नाटक आदि में विस्तृत हैं। साल इन
वनों का सर्वाधिक लाभदायक और महत्वपूर्ण वृक्ष है। इन्हें पर्णपाती (शुष्क और आर्द्र) इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये ग्रीष्म ऋतु में 6 से लेकर 8 सप्ताह तक अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं। प्रत्येक जाति के वृक्षों के पतझड़ का समय अलग-अलग होता है।
(3) कँटीले वन तथा झाड़ियाँ-इस प्रकार के वन भारत के उन भागों में उगते हैं जहाँ वर्षा का वार्षिक औसत 75 सेमी से कम है। ये वन प्रदेश के उत्तर-पश्चिमी भाग में, दक्षिण में सौराष्ट्र से लेकर उत्तर में पंजाब के मैदानों तक फैले हैं। पूर्व में ये वन उत्तरी मध्य प्रदेश प्रमुख रूप से मालवा का पठार तथा दक्षिण-पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड के पठार पर फैले हैं। इन वनों में कीकर, बबूल, बेर, खजूर, रामबाँस, नागफनी,
खजेड़ा आदि वृक्ष अधिक उगते हैं। आर्थिक दृष्टि से ये वन उपयोगी नहीं हैं, केवल खजूर ही उपयोगी है।
(4) पर्वतीय वन-लघु उत्तरीय प्रश्न 6 का उत्तर देखें।
(5) मैंग्रोव या ज्वारीय वन-भारत के तटवर्ती क्षेत्रों में जहाँ ज्वारभाटा आता है, ये वन पाये जाते हैं। इन वनों में ताड़, नारियल, मैंग्रोव, नीपा, फोनेक्स, कैज्युराइना आदि वृक्षों की प्रधानता होती है। गंगा तथा ब्रह्मपुत्र नदियों के डेल्टा में सुन्दरी वृक्ष पाये जाते हैं। इन वनों में सागरीय जल भरा रहता है। अत: इनमें आने-जाने के लिये नावों का प्रयोग किया जाता है। इन वनों में वृक्षों की छाल खारे जल के कारण नमकीन व कठोर हो जाती है। वृक्षों की लकड़ी का उपयोग नाव बनाने तथा नमकीन छाल का प्रयोग चमड़ा रंगने में किया है।

प्रश्न 5. भारत में वनस्पति जगत एवं प्राणी जगत को बचाने के लिए सरकार ने क्या कदम उठाये हैं?
अथवा
‘वन्य जीवों का संरक्षण’ पर टिप्पणी लिखिए।
अथवा
हमारे देश में कितने जीवमण्डल निचय (आरक्षित क्षेत्र) स्थापित किये गये हैं?
उत्तर-वन्य-जीवों का संरक्षण-वन्य-प्राणी प्रकृति की धरोहर हैं। वन्य जीवों को संरक्षण प्रदान करने के लिए विशेष प्रयास किये जा रहे हैं। संकटापन्न वन्य-जीवों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। इनकी अब गणना की जाने लगी है। बाघ परियोजना को सफलता मिल चुकी है। असम में गैंडे के संरक्षण की एक विशेष योजना चलायी जा रही है। सिंहों की घटती संख्या चिन्ता का विषय बन गयी है। अत: आरक्षित क्षेत्रों की संख्या और उनके क्षेत्रों के विस्तार पर बल दिया जा रहा है। वन्य-प्राणियों की सुरक्षा के लिए भारत में वन प्राणी संरक्षण क्षेत्रों की स्थापना की गयी है, जहाँ पशु-पक्षियों को प्राकृतिक वातावरण में फलने-फूलने का अवसर प्रदान किया जाता है। “वर्तमान में संरक्षित क्षेत्र के अन्तर्गत 103 राष्ट्रीय उद्यानों और 535 अभ्यारण्यों को गिनती की जाती है जो देश के । लाख 56 हजार वर्ग किमी क्षेत्र पर फैले हैं।” देश में प्राणी उद्यानों के प्रबन्धन की देखरेख के लिए एक केन्द्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण स्थापित किया गया है। यह संस्था 200 से अधिक चिड़ियाघरों के कार्यों में तालमेल रखती है और जानवरों के आदान-प्रदान की वैज्ञानिक ढंग से देखरेख करती है। देश में जीवमण्डल निचय (आरक्षित क्षेत्र) की स्थापना-देश में 18 जीवमण्डल निचय स्थापित किये गये हैं। इनमें से सुन्दर वन (पश्चिम बंगाल), नंदादेवी (उत्तराखण्ड), मन्नार की खाड़ी (तमिलनाडु), नीलगिरि (केरल, कर्नाटक तथा तमिलनाडु) की गणना विश्व के जीवमण्डल निचय में की जाती है। अन्य जीवमण्डल नाकरेक, ग्रेट निकोबार, मानस, सिमलीपाल, दिहांग-दिबांग, डिब्रू साइकवोबा, अगस्तमलाई, कंचनजंघा,
पंचमढ़ी, अचनकमट-अभटूकंटक हैं। सन् 1992 से सरकार द्वारा पादप उद्यानों को वित्तीय तथा तकनीकी सहायता देने की योजना बनाई है।

प्रश्न 6. व्याख्या कीजिए कि मानव के लिए वन क्यों महत्वपूर्ण हैं ?
अथवा
बनों से होने वाले लाभ लिखिए।
उत्तर-वन राष्ट्रीय सम्पदा हैं। यह मानव के लिए विभिन्न प्रकार से उपयोगी हैं। बन उत्पाद व संरक्षण दोनों प्रकार के कार्य करते हुए देश के आर्थिक विकास में योगदान देते हैं। वनों से हमें दो प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं-प्रत्यक्ष लाभ एवं अप्रत्यक्ष लाभ।
(A) प्रत्यक्ष लाभ-(1) वनों से पर्याप्त मात्रा में लकड़ी प्राप्त होती है। वनों की लकड़ियों का उपयोग ईंधन, फर्नीचर, खेल का सामान, दियासलाई तथा कागज आदि वस्तुएँ बनाने में किया जाता है।
(2) वनों से अनेक प्रकार के गौण पदार्थ प्राप्त होते हैं, जिनमें बाँस, बेंत, लाख, राल, शहद, गोंद, चमड़ा रंगने के पदार्थ तथा जड़ी-बूटियाँ प्रमुख हैं।
(3) वनों से हमें वस्त्र बनाने के लिए रेशम और समूर प्राप्त होता है।
(4) खैर नामक वृक्ष से कत्था प्राप्त होता है।
(5) वनों से अनेक लोगों को रोजगार प्राप्त होता है।
(B) अप्रत्यक्ष लाभ-(1) वन भूमि के कटाव को रोकते हैं, क्योंकि वृक्ष जल की बूंदों को सीधे भूमि पर गिरने से रोक देते हैं।
(2) वनों द्वारा भूमि की उर्वरता में अत्यधिक वृद्धि होती है, क्योंकि वृक्षों की पत्तियाँ, घास व पेड़-पौधे, झाड़ियाँ आदि भूमि पर गिरकर व सड़कर ह्यूमस रूप में भूमि की उर्वरा-शक्ति को बढ़ाते हैं।
(3) वन बाढ़ के प्रकोप को रोकते हैं, क्योंकि वृक्ष जल के तीव्र प्रवाह पर रोक लगा देते हैं जिससे जल का प्रवाह मन्द पड़ जाता है।
(4) वायु-प्रदूषण भी वन रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
(5) वन वर्षा करने में सहायक होते हैं।