CLASS 9TH HINDI MP BOARD NCERT अध्याय 13 अपठित बोध Pariksha Adhyayan Hindi 9th
अध्याय 13
अपठित बोध
परीक्षा में एक अपठित गद्यांश/पद्यांश पर प्रश्न हल करना होता है। दिए गए अंश का उचित शोषक वताना होगा और उस अंश के विषय में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देने होंगे।
इसके लिए दिए गए गद्यांश/पद्यांश को ध्यान से पढ़कर उसके मूल भाव को समझकर शीर्षक तथा
1. प्रश्नों के उत्तर देने चाहिए।
अपठित गद्यांश
‘निम्नलिखित गद्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उनके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
(1) जिस मनुष्य के हृदय में ईर्ष्या घर बना लेती है वह उन चीजों से आनन्द नहीं उठाता जो उसके पास मौजूद हैं, बल्कि उन वस्तुओं से दुःख उठाता है जो दूसरों के पास मौजूद हैं। वह अपनी तुलना दूसरों से करता है और इस तुलना में अपने पक्ष के सभी अभाव उसके हृदय पर डंक मारते रहते हैं। डंक के इस दाह को भोगना कोई अच्छी बात नहीं है। मगर, ईर्ष्यालु मनुष्य करे भी तो क्या, आदत से लाचार होकर उसे यह वेदना भोगनी पड़ती है। ईर्ष्या का यही अनोखा वरदान है।
अपठित बोध
प्रश्न-(1) उपर्युक्त गद्यांश का सटीक शीर्षक चुनिए।
(2) ईर्ष्यालु व्यक्ति अपनी तुलना किससे करता है ?
(3) ईर्ष्यालु व्यक्ति दुःखी क्यों रहता है ?
(4) दाह’ और ‘लाचार’ शख्स के अर्थ लिखिए।
उत्तर-(1) शीर्षक-‘ईया’।
(2) ईर्ष्यालु व्यक्ति अपनी तुलना दूसरे व्यक्तियों से करता है।
(3) ईर्ष्यालु व्यक्ति उन वस्तुओं के अभाव से दुःख उठाता है जो दूसरों के पास मौजूद हैं।
(4) दाह = पीड़ा, लाचार = विवश।
(2) “जब धर्म और जाति के आधार पर राष्ट्र से अलग होने के प्रयास होते है, तभी राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा बढ़ जाता है। प्रत्येक स्वतन्त्र राष्ट्र के लिए राष्ट्रीय एकता की भावना आवश्यक होती है। इसके लिये राष्ट्रवासियों में स्नेह, सहिष्णुता, सहयोग तथा उदारता की भावना होनी चाहिए। राष्ट्रीय एकता के आदर्श
को व्यवहार में लाना हा राष्ट्र के प्रति हमारा कर्तव्य है।”
प्रश्न-(1) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(2) राष्ट्र के लिए हमारा क्या कर्त्तव्य है ?
(3) राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा कब बढ़ जाता है ?
(4) राष्ट्रवासियों में किस प्रकार की भावना होनी चाहिए?
(5) उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
उत्तर-(1) शीर्षक-‘राष्ट्रीय एकता।
(2) राष्ट्रीय एकता के आदर्श को व्यवहार में लाना ही राष्ट्र के प्रति हमारा कर्त्तव्य है।
(3) राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा उस समय बढ़ जाता है, जब धर्म और जाति के आधार पर राष्ट्र से अलग होने के प्रयास होते हैं।
(4) राष्ट्रवासियों में स्नेह, सहिष्णुता, सहयोग तथा उदारता की भावना होनी चाहिए।
(5) सारांश-किसी भी देश की उन्नति एवं प्रगति में उस देश के निवासियों के मध्य आपसी प्रेम एवं भाईचारे का बहुत योगदान होता है। किन्तु जब व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं की प्रतिपूर्ति के लिए जाति एवं धर्म को आधार बनाया जाता है तो ऐसे में राष्ट्र की एकता एवं अखण्डता के लिए चुनौती बढ़ जाती है। उसके टूटने
का खतरा बनने लगता है। अत: सच्चे अर्थों में राष्ट्र के प्रति हमारा सर्वोच्च कर्त्तव्य यही है कि सभी देशवासी परस्पर प्रेम, सहयोग, उदारता एवं समझ के साथ देश की प्रगति में सहयोगी बनें।
(3) उच्च शिक्षा व योग्यता तब ही उपयोगी है जब व्यक्ति समाज एवं राष्ट्र के हित में उसका उपयोग करे। कर्त्तव्यबोध की भावना से परिपूर्ण व्यक्ति ही अपने उत्तरदायित्वों के निर्वहन में खरे उतरते हैं। सचमुच में ऐसे ही व्यक्ति सही अर्थ में राष्ट्रसेवक होते हैं। एक शिक्षक कितना ही विद्वान क्यों न हो अगर उसमें अपने
विद्यार्थियों के प्रति कर्त्तव्यबोध न हो तो वह कभी भी राष्ट्र-निर्माता नहीं हो सकता।
प्रश्न-(1) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(2) एक शिक्षक राष्ट्र-निर्माता कब हो सकता है?
(3) उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
उत्तर-(1) शीर्षक-कर्त्तव्यबोध ।
(2) एक शिक्षक तब ही राष्ट्र-निर्माता बन सकता है जब उसमें विद्यार्थियों के प्रति अपने कर्तव्य का
(3) सारांश-उच्च शिक्षा एवं योग्यता की महत्ता समाज एवं राष्ट्रहित करने में है। कर्त्तव्य-बोध वाला बोध हो।
व्यक्ति ही अपने दायित्वों का निर्वाह करते हुए राष्ट्र सेवक बन जाता है। अपने विद्यार्थियों के प्रति कर्त्तव्य बोध युक्त शिक्षक ही राष्ट्र-निर्माता होते हैं।
(4) देश-प्रेम है क्या ? प्रेम ही तो है। इस प्रेम का आलम्बन क्या है ? सारा देश अर्थात् मनुष्य, पशु-पक्षी, नदी-नाले, वन-पर्वत सहित सारी भूमि। यह प्रेम किस प्रकार का है ? यह साहचर्यगत प्रेम है, जिनके बीच हम रहते हैं, जिन्हें बराबर आँखों से देखते हैं, जिनकी बातें बराबर सुनते रहते हैं, जिनका हमारा हर बड़ी का साथ रहता है। सारांश यह है कि जिनके सान्निध्य का हमें अभ्यास पड़ जाता है, उनके प्रति लोभ या राग हो सकता है, देश-प्रेम यदि अन्त:करण का कोई भाव है तो यही हो सकता है।
प्रश्न- (1) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
(2) साहचर्यगत प्रेम से क्या आशय है ?
(3) अन्तःकरण, वन का पर्यायवाची लिखिए।
(4) देश-प्रेम का सम्बन्ध किससे है ?
उत्तर-(1) शीर्षक-‘देश-प्रेम’।
(2) साहचर्यगत प्रेम वह है जिनके साथ हम रहते हैं, जिन्हें बराबर आँखों से देखते हैं, जिनकी बातें बराबर सुनते हैं और जिनका हमारा हर घड़ी का साथ रहता है, उनसे प्रेम हो जाता है।
(3) अन्त:करण- हृदय, वन जगल।
(4) देश-प्रेम का सम्बन्ध हृदय से है।
(5) विद्यार्थियों में अनुशासनहीनता की कथित समस्या का समाधान एक ही प्रकार से हो सकता है कि उन्हें जीवन की जिम्मेदारियों का अनुभव कराया जाए। अनुशासनहीनता से होने वाली हानियों एवं राष्ट्रीय क्षति से उन्हें परिचित कराया जाए। विद्यालय की जिम्मेदारियों को पूरा करने में उसे सहयोगी बनाया जाए। अनुशासन, अध्ययन एवं आदर्श नागरिकता के गुणों का इनमें विकास किया जाए, तो कोई कारण नहीं कि विद्यार्थियों में
असंतोष भड़के।
प्रश्न- (1) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(2) उपर्युक्त गद्यांश सारांश लिखिए।
(3) विद्यार्थियों में किन-किन गुणों का विकास किया जाना चाहिए।
उत्तर-(1) शीर्षक-विद्यार्थियों की अनुशासनहीनता का समाधान।
(2) सारांश-विद्यार्थियों की अनुशासनहीनता की समस्या के हल के लिए आवश्यक है कि उन्हें जिम्मेदार बनाया जाए। उनको अनुशासनहीनता से होने वाली हानि, राष्ट्रीय क्षति से परिचित कराते हुए विद्यालय की जिम्मेदारियों में सहयोगी बनाया जाए। उनमें अनुशासन, अध्ययन एवं आदर्श नागरिकता का विकास किया जाए।
(3) विद्यार्थियों में अनुशासन, अध्ययन तथा आदर्श नागरिकता के गुणों का विकास किया जाना चाहिए।
(6) प्रायः लोग मानते हैं कि अनुशासन और स्वतन्त्रता में विरोध है, किन्तु वास्तव में यह भ्रम है। अनुशासन किसी की स्वतंत्रता का हनन नहीं करता वरन् इसके द्वारा दूसरों की स्वतन्त्रता की रक्षा होती है। जैसे विद्यालय में कक्षा में शोर नहीं करना चाहिए यह अनुशासन है और इससे हमारे साथ-साथ दूसरों की स्वतंत्रता
की रक्षा होगी। विद्यार्थी भारत के भावी राष्ट्रनिर्माता हैं। उन्हें अनुशासन के गुणों का अभ्यास अभी से करना चाहिए, जिससे वे भारत के सच्चे सपूत कहला सकें।
प्रश्न- (1) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(2) उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
(3) अनुशासन क्यों आवश्यक है ?
उत्तर-(1) शीर्षक-‘अनुशासन का महत्व’।
(2) सारांश-अनुशासन और स्वतंत्रता विरोधी नहीं।। अनुशासन द्वारा स्वतंत्रता छिनती नहीं वरन् की स्वतंत्रता की रक्षा होती है। भावी भारत के निर्माता विद्यार्थियों को अनुशासन के गुणों का अभी से दूसरों अभ्यास करना चाहिए।
(3) अनुशासन इसलिए आवश्यक है पयोंकि इससे अपनी और दूसरों की स्वतंत्रता की रक्षा होती है।
(7) “मानव का अकारण ही मानव के प्रति अनुदार हो उठना न केवल मानवता के लिए, कर सकता है। केवल इसलिए कि कोई मनुष्य बुद्धिहीन है अथवा दरिद्र, वह घृणा का तो दूर, उपेक्षा का भी लज्जाजनक है, वरन् अनुचित भी है। वस्तुतः यथार्थ मनुष्य वही है जो मानवता का आदर करना जानता है, पात्र नहीं होना चाहिए। मानव तो इसलिए सम्मान के योग्य है कि वह मानव है, भगवान की सर्वश्रेष्ठ रचना
प्रश्न- (1) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
(2) यथार्थ मनुष्य किसे कहा गया है ?
(3) भगवान की सर्वश्रेष्ठ रचना क्या है ?
(4) मानवता के लिए लज्जाजनक किसे कहा गया है ?
उत्तर-(1) ‘मानव और मानवता’।
(2) यथार्थ मनुष्य वही है जो मानवता का आदर करना जानता है, कर सकता है।
(3) भगवान की सर्वश्रेष्ठ रचना ‘मानव’ है।
(4) मानव का अकारण ही मानव के प्रति अनुदार हो उठना न केवल मानवता के लिए लज्जाजनक है, वरन् अनुचित भी है।
(8) मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज से अलग उसके अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती। परिचित तो बहुत होते हैं, पर मित्र बहुत कम होते हैं। क्योंकि मैत्री एक ऐसा भाव है, जिसमें प्रेम के साथ समर्पण और त्याग की भावना मुख्य होती है। मैत्री में सबसे आवश्यक है, परस्पर विश्वास। मित्र ऐसा
सखा, गुरु और माता है, जो सबके स्थानों को पूर्ण करता है।
प्रश्न- (1) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
(2) उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
(3) मैत्री में कौन-कौनसे भाव सम्मिलित हैं ?
(4) मित्र किस-किसके स्थान को पूर्ण करता है ?
उत्तर-(1) शीर्षक-सच्चा मित्र।
(2) सारांश-मनुष्य का अस्तित्व समाज से ही है। अनेक परिचितों में से कुछ मित्र बनने वालों में प्रेम,
समर्पण, त्याग एवं विश्वास का भाव मुख्यतः होता है। मित्र सखा, गुरु एवं माँ की पूर्ति करता है।
(3) मैत्री में प्रेम, समर्पण, त्याग एवं परस्पर विश्वास जैसे श्रेष्ठ भाव सम्मिलित हैं।
(4) मित्र सखा, गुरु एवं माता के स्थान को पूर्ण करता है।
(9) एक महान तत्ववेत्ता के अनुसार विद्या दो प्रकार की होती है-पहली वह जो हमें कमाना सिखाती है और दूसरी वह जो हमें जीना सिखाती है। वर्तमान समय में पहली विद्या का अभाव है और दूसरी भी विकृत रूप में पढ़ाई जाती है। स्कूलों और कॉलेजों में हमें अंग्रेजी में शिक्षा दी जाती है जो हमारे दृष्टिकोण को विस्तृत तथा हमारी भावनाओं को चेतन करती है। किन्तु शिल्पकला नाम मात्र भी नहीं सिखाई जाती है जिससे आज
का विद्यार्थी स्वरोजगार करने के बजाय नौकरियों के अभाव में बेरोजगार घूमता-फिरता है।
प्रश्न- (1) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
(2) विद्या कितने प्रकार की कही गयी है?
(3) उपर्युक्त गद्यांश का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-(1) शीर्षक-‘विद्या’।
(2) विद्या दो प्रकार की कही गई है।
(3) सारांश-विद्या कमाना सिखाती तथा जीना सिखाती है। वर्तमान में इन दोनों की स्थिति ठीक नहीं है।
विद्यालयों में अंग्रेजी माध्यम से दी जाने वाली शिक्षा विस्तृत दृष्टिकोण तथा चेतना तो लाती है किन्तु शिल्पकला
नहीं सिखाती है। फलस्वरूप स्वरोजगार के बजाय नौकरियों की तलाश रहती है।
2. अपठित पद्यांश
निम्नलिखित पद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उनके नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर सावधानीपूर्वक
दीजिए-
(1) निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटै न हिय को सूल ।।
इक भाषा इक जीव, इक मीत सब घर के लोग।
तब बनत है सबन सौं, मिटत मूढ़ता सोग॥
प्रश्न- (1) उपर्युक्त पद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(2) उपर्युक्त पद्यांश का भाव अपने शब्दों में लिखिए।
(3) कवि के अनुसार मूढ़ता और शोक किस प्रकार मिटता है ?
(4) शब्दार्थ बताइए-निज, सूल।
(5) ‘ज्ञान’ शब्द का वाक्य में प्रयोग कीजिए।
उत्तर-(1) शीर्षक-‘राष्ट्रभाषा’।
(2) भावार्थ-अपनी राष्ट्र भाषा की उन्नति और विकास से ही सभी प्रकार की उन्नति सम्भव है। अपनी भाषा का ज्ञान प्राप्त करके ही अपने हृदय की बात को, व्यथा को बता सकते हैं। जब पूरे राष्ट्र के लोग एक भाषा, एक ही तरह की जीवन-शैली एवं समान विचारधारा अपनाएँगे, तो अवश्य ही उनका मूर्खता एवं शोक
(कष्ट) दूर हो सकेंगे।
(3) कवि के अनुसार जब सभी लोग एक भाषा, एक शैली एवं विचार अपनाएँगे, तभी उनकी मूढ़ता एवं शोक मिट सकेंगे।
(4) निज = अपना, शूल = कष्ट।
(5) मनुष्य ज्ञान प्राप्त करके ही उन्नति करता है।
(2) सावधान मनुष्य ! यदि विज्ञान है तलवार,
तो इसे दो फेंक, तजकर मोह, स्मृति के सार।
हो चुका है सिद्ध ! है तू शिशु अभी अज्ञान;
फूल काँटों की तुझे कुछ भी नहीं पहचान।
खेल सकता तू नहीं ले हाथ में तलवार,
काट लेगा अंग, तीखी है, बड़ी ये धार।
प्रश्न- (1) उपर्युक्त पद्यांश का उपयुक्त (सटीक) शीर्षक लिखिए।
(2) उपर्युक्त पद्यांश का भावार्थ अपने शब्दों में लिखिए।
(3) ‘फूल और काँटों’ से कवि का क्या तात्पर्य है ?
(4) विलोम शब्द बताइए-स्मृति, अज्ञान।
(5) धार’ शब्द का वाक्य में प्रयोग कीजिए।
(2)काव का आशय यह है कि मनुष्य को विज्ञान से सावधान रहना चाहिए। इसका प्रयोग अज्ञानता। पत्र-लेखन । अनौपचारिक एवं औपचारिक
उत्तर-(1) उपयुक्त शीर्षक-विज्ञान के प्रति सावधान’
नहीं कीजिए। मनुष्य ने अभी विज्ञान से होने वाली in जानकारी नहीं ली है। अत: की पसा
न हो कि अज्ञानता के कारण यह विज्ञान मनुष्य को ही हानि पहुँचा दे।
(3) ‘फूल और काँटों’ से कवि का तात्पर्य है-लाभ और हानि ।
(4) स्मृति – विस्मृति, अज्ञान ज्ञान।
(5) तलवार की धार तेज होती है।
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